BCom 2nd year Management Companies Directors Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Management Companies Directors Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Management Companies Directors Study Material Notes in Hindi: Minimum and Maximum Number of Director Manner of Selection of Independent (Director) Right of Person other than Retiring Director to Stand for Directorship Duties of Directors Vacations of Office of Director Resignation by Director Removal of Directors Members Right to Inspect Register of Directors Central Government of Company to Fix Limit With Regard to Remuneration Legal position of Directors of a Company  :

Management Companies Directors
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BCom 2nd year Corporate Laws Prospectus Study Material notes in Hindi

कम्पनियों का प्रबन्धसंचालकगण

(Management of Companies-Directors)

कम्पनी, एक कृत्रिम व्यक्ति होने के कारण स्वयं कोई कार्य नहीं कर सकती। वस्तुत: कम्पनी अपने सभी कार्यों को अपने एजेन्टों के द्वारा कराती है, जिन्हें संचालक/निदेशक कहते हैं। सरल शब्दों में, कम्पनी के संदर्भ में संचालक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जिसे कम्पनी के सदस्यों द्वारा कम्पनी का। प्रबन्ध, संचालन, निर्देशन एवं नियन्त्रण करने के लिए नियुक्त किया जाता है।

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (34) के अनुसार, “संचालक का आशय एक निदेशक (संचालक) से है जिसे निदेशक मण्डल पर नियुक्त किया जाता है।”

वैबस्टर शब्दकोष के अनुसार, “संचालक से अभिप्राय किसी भी व्यक्ति से हैं जो कम्पनी के मामलों का प्रबन्ध करने के लिए नियुक्त किया जाता है।”

निष्कर्षउपरोक्त परिभाषा कम्पनी निदेशक का सही अर्थ और उसकी स्थिति को स्पष्ट नहीं करती है। सरल शब्दों में, निदेशक कम्पनी के कारोबार का प्रबन्ध करने के लिए अंशधारियों द्वारा चुना हआ एक व्यक्ति है। संयुक्त रूप से निदेशकों को ‘निदेशक मण्डल’ या ‘मण्डल’ के नाम से पुकारा जाता है। निदेशक वास्तव में अपनी शक्तियों का प्रयोग संयुक्त रूप से मण्डल के रूप में कर सकते हैं। कुछ ऐसी शक्तियाँ हैं जो निदेशक मण्डल द्वारा मण्डल की सभाओं में प्रस्ताव पारित करके उपयोग की जा सकती हैं, परन्तु निदेशक मण्डल कुछ शक्तियों को निदेशक मण्डल की समिति को सौंप सकते हैं। जहाँ तक कम्पनी के प्रबन्ध का प्रश्न है, वहाँ निदेशक मण्डल उच्चतम अधिकारी है। संचालक वह व्यक्ति है जो कम्पनी के संचालन, प्रबन्ध एवं नियन्त्रण के लिए उत्तरदायी है।

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संचालकों की न्यूनतम एवं अधिकतम संख्या [धारा 149]

(Minimum and Maximum Number of Directors)

निदेशकों/संचालकों की न्यूनतम संख्या (Minimum number of Directors)[धारा 149(1)(a)]—प्रत्येक सार्वजनिक कम्पनी में कम -से-कम 3 निदेशक, प्रत्येक निजी कम्पनी में कम-से-कम दो निदेशक और एक व्यक्ति वाली कम्पनी में कम-से-कम एक निदेशक होना आवश्यक है, परन्तु एक निर्दिष्ट कम्पनी में कम-से-कम एक महिला निदेशक अवश्य होगी।

प्रत्येक कम्पनी में कम-से-कम एक ऐसा निदेशक होगा जो पिछले कलेण्डर वर्ष में कम-से-कम 182 दिन के लिए भारत में रहा हो।

प्रत्येक सूचीबद्ध (Listed) कम्पनी, कुल निदेशकों की संख्या के कम-से-कम एक तिहाई के बराबर स्वतन्त्र निदेशक रखेगी। केन्द्र सरकार किसी वर्ग या वर्गों की सार्वजनिक कम्पनी के लिए स्वतन्त्र निदेशकों की न्यूनतम संख्या निर्धारित कर सकती है।

निदेशकों/संचालकों की अधिकतम संख्या (Maximum number of Directors) [धारा 149(1)(b)]-1. कम्पनी अधिनियम, 2013 में अधिकतम निदेशकों की संख्या 15 निश्चित की गई है। एक सार्वजनिक कम्पनी के निदेशकों की 15 सदस्यों से अधिक की संख्या विशेष प्रस्ताव पारित करके की जा सकती है।

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2. प्रत्येक वर्तमान कम्पनी जो इस अधिनियम के आरम्भ होने वाली तिथि को या उससे पहले विद्यमान थी, अगले एक वर्ष में उपरोक्त धारा का अनुपालन करेगी।

स्पष्टीकरण (Explanation)—इस उप-धारा के उद्देश्यों के लिए एक तिहाई निदेशकों की संख्या में एक छोटे अंश या भिन्न (Fraction) को एक के बराबर पूर्णांक (Rounded off) किया जाएगा।

स्वतन्त्र निदेशक कौन है? (Who is an Independent Director ?) [धारा 149 (6)]-एक कम्पनी के सम्बन्ध में स्वतन्त्र निदेशक का आशय प्रबन्ध निदेशक (Managing director) अथवा पूर्णकालिक निदेशक (Whole-time director) या नामिती निदेशक (nominee director) के आतारक्त एक निदेशक से है

1 जो निदेशक, मण्डल की राय में निष्ठावान व्यक्ति है तथा जिसके पास सम्बद्ध विशेषज्ञता एवं अनुभव है;

(i) जो कम्पनी का या इसकी सूत्रधारी, सहायक या एसोसिएट कम्पनी का प्रवर्तक नहीं है। अथवा नहीं था;

(ii) जो कम्पनी की या इसकी सूत्रधारी, सहायक या एसोसिएट कम्पनी में किसी प्रवर्तक या। निदेशक से सम्बन्धित नहीं है।

3. जिसका कम्पनी में या इसकी सूत्रधारी, सहायक या एसोसिएट कम्पनी या उनके प्रवर्तक या निदेशकों के साथ तुरन्त के दो पहले वित्तीय वर्षों में या चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आर्थिक सम्बन्ध (pecuniary relationship) नहीं हैं या नहीं थे।

4. जिसके किसी रिश्तेदार का कम्पनी, इसकी सूत्रधारी कम्पनी, सहायक कम्पनी या एसोसिएट कम्पनी या उनके प्रवर्तक या निदेशकों का इसके सकल आवर्त या कुल आय के दो प्रतिशत या अधिक अथवा पचास लाख ₹ कोई ऊँची राशि जो निर्दिष्ट की जाए जो इनमें से कम है, तुरन्त के पिछले दो वित्तीय वर्षों में या चालू वित्तीय वर्ष के दौरान कोई आर्थिक सम्बन्ध या लेन-देन नहीं है या नहीं था।

5. जो न तो स्वयं और न उसका रिश्तेदार ।

(i) कम्पनी के मुख्य प्रबन्धकीय कर्मचारी का पद न धारण करता है, न धारण किया है या कम्पनी या उसकी सूत्रधारी कम्पनी, सहायक कम्पनी, एसोसिएट कम्पनी का तुरन्त के पिछले तीन वित्तीय वर्षों में उस पिछले वर्ष के पहले जिसमें उसकी नियुक्ति का प्रस्ताव हुआ था, कम्पनी का कर्मचारी रहा है;

(ii) पिछले तुरन्त के तीन वित्तीय वर्षों के दौरान जिसमें उसकी नियुक्ति प्रस्तावित की गई थी उसका कर्मचारी या स्वामी या साझेदार रहा है

() कम्पनी या इसकी सूत्रधारी कम्पनी या इसकी सहायक कम्पनी या एसोसिएट कम्पनी के अंकेक्षक या पेशेवर कम्पनी सचिव या लागत अंकेक्षक फर्म का; या

() किसी कानूनी या सलाहकार फर्म जिसका कम्पनी या इसकी सूत्रधारी कम्पनी या सहायक कम्पनी या एसोसिएट कम्पनी के साथ इसके सकल आवर्त का 10 प्रतिशत या इस राशि से अधिक का लेन-देन रहा है।

(iii) अपने रिश्तेदार के साथ कम्पनी की कुल मतदान शक्ति (Voting power of the company) का दो प्रतिशत या अधिक भाग रखता है या धारण करता है।

(iv) गैर लाभकारी संस्था का मुख्य कार्यकारी अधिकारी या निदेशक है, जिसे किसी भी नाम से पुकारा जाए जो कम्पनी से या इसके प्रवर्तक, निदेशक या इसकी सूत्रधारी कम्पनी या इसकी सहायक कम्पनी या एसोसिएट कम्पनी से इसकी आय के 25 प्रतिशत या उससे अधिक प्राप्त करता है या जो कम्पनी की कुल मतदान शक्ति का 2 प्रतिशत या अधिक धारण करता है; या

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6. उसके पास कोई अन्य निर्दिष्ट योग्यता।

7. प्रत्येक स्वतन्त्र निदेशक, निदेशक मण्डल की प्रथम सभा में और उसके बाद प्रत्येक वित्तीय वर्ष में या जब कभी परिस्थितियों में परिवर्तन हो जो उसकी स्वतन्त्र स्थिति को प्रभावित करता हो तो वह एक घोषणा करेगा कि वह अभी भी उप-धारा (6) में निर्दिष्ट स्वतन्त्रता की कसौटी को पूरा करता है।

8. कम्पनी और स्वतन्त्र निदेशक अनुसूची (iv) में निर्दिष्ट प्रावधानों का अनुपालन करेंगे।

9. इस अधिनियम के प्रावधानों के बावजूद परन्तु धारा 197 और 198 की शर्तों के अनुसार एक स्वतन्त्र निदेशक किसी स्टॉक विकल्प (Stock Option) के लिए अधिकारी नहीं होगा और वह फीस के द्वारा पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है और निदेशक मण्डल की सभाओं एवं अन्य सभाओं में भाग लेने के व्ययों की प्रतिपूर्ति करवा सकता है और लाभ सम्बन्धी कमीशन जेसा सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाए, प्राप्त कर सकता है।

धारा 152 के प्रावधानों के अधीन एक स्वतन्त्र निदेशक एक कम्पनी के मण्डल (Board of a company) पर पाँच वर्ष तक की लगातार अवधि के लिए निदेशक के पद पर बना रह सकता है, परन्तु वह कम्पनी द्वारा विशेष प्रस्ताव पारित करने पर ही पुन: नियुक्ति का अधिकारी होगा एवं इस नियुक्ति का प्रकटीकरण मण्डल की रिपोर्ट में किया जाएगा।

उपधारा (10) के बावजूद कोई भी स्वतन्त्र निदेशक लगातार दो अवधियों से अधिक पद-भार नहीं सँभालेगा परन्तु स्वतन्त्र निदेशक बनने का पद समाप्त होने के तीन वर्ष बाद वह पन: नियुक्ति के योग्य होगा। परन्त शर्त यह है कि एक स्वतन्त्र निदेशक उपरोक्त तीन वर्ष की अवधि में। कम्पनी में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से किसी भी पद पर नियुक्त नहीं किया जाएगा।

इस अधिनियम में सम्मिलित अन्य बातों के बावजूद(i) एक स्वतन्त्र निदेशक;

(ii) एक गैर कार्यकारी निदेशक जो प्रवर्तक या मुख्य प्रबन्धकीय कर्मचारी (Key managerial personnel) नहीं है, केवल कम्पनी द्वारा उन कार्यों एवं भूल के सम्बन्ध में उत्तरदायी होगा जो उसकी जानकारी के कारण या उसकी सहमति या उसकी मिलीभगत या असावधानी के कारण हुई हैं।

11 . निदेशकों के बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करने के सम्बन्ध में धारा 152 की उपधारा (6) और (7) के प्रावधान स्वतन्त्र निदेशकों की नियुक्ति पर लागू नहीं होंगे।

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स्वतन्त्र निदेशकों के चुनाव की विधि (धारा 150)

(Manner of Selection of Independent Directors)

(1) धारा 149(5) के प्रावधानों के अनुसार एक स्वतन्त्र निदेशक का चुनाव उस आँकड़ो के बैंक (Data Bank) से किया जायेगा जिसमें व्यक्तियों के नाम, पते और योग्यताएँ दी गई हैं और जो स्वतन्त्र अंकेक्षक के रुप में कार्य करने के लिए योग्य और इच्छुक हैं। उपरोक्त में वर्णित आँकड़ों का बैंक केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी संस्था, इन्स्टीट्यूट या एसोसिएशन द्वारा रखा जायेगा जिसने इस कार्य में विशेषज्ञता प्राप्त की है और जो आँकड़ों को अपनी वेबसाइट पर कम्पनी द्वारा ऐसे निदेशकों की नियुक्ति करने के लिए प्रयोग हेतु प्रदर्शित करती है।

(2) धारा 152 (2) में दिये गये प्रावधान के अनुसार स्वतन्त्र निदेशकों की नियुक्ति कम्पनी द्वारा साधारण सभा में अनुमोदित की जाएगी और जिस साधारण सभा में उनका चुनाव किया जाना है उसकी सूचना के साथ व्याख्यात्मक विवरण दिया जाएगा जो नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति का स्वतन्त्र निदेशक के रुप में चुनाव का औचित्य सिद्ध करेगा।

(3) उपरोक्त धारा 150 (1) में वर्णित डाटा बैंक उन व्यक्तियों का डाटा रखेगा जो निर्दिष्ट नियमों के अनुसार स्वतन्त्र निदेशक के रुप में कार्य करने के लिए इच्छुक होंगे।

(4) केन्द्र सरकार स्वतन्त्र निदेशकों के चुनाव की रीति एवं प्रविधि निर्दिष्ट कर सकता है।

लघु अंशधारियों द्वारा चुने गए निदेशक की नियुक्ति (Appoinment of Director Elected by Small Shareholders) [धारा 151] —एक सूचीबद्ध कम्पनी निर्दिष्ट तरीके से और शर्तों के साथ लघु अंशधारियों द्वारा चुने गए एक निदेशक को नियुक्त कर सकती हैं।

स्पष्टीकरण (Explanation)—इस धारा के उद्देश्यों के लिए ‘लघु अंशधारियों’ का आशय एक ऐसे अंशधारी से है जो बीस हजार रु० अधिकतम अंकित मूल्य या अन्य निर्दिष्ट राशि के मूल्य के अंश धारित करता है।

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निदेशकों की नियुक्ति (Appointment of Directors) (धारा 152)

1 प्रथम निदेशक, प्रवर्तकों द्वारा नियुक्त किए जाएँगे-प्रायः प्रवर्तक प्रथम निदेशकों की नियुक्ति करते हैं। यदि प्रवर्तक अपने अधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं अर्थात् वे निदेशकों को नियुक्ति नहीं करते हैं तो पार्षद सीमा नियम के अभिदाताओं को कम्पनी का प्रथम निदेशक मान लिया जाता है। एक व्यक्ति वाली कम्पनी की दशा में एक व्यक्ति ही सदस्य होने के कारण इसका पहला निदेशक माना जाता है। निदेशकों की नियुक्ति से सम्बन्धित नियम प्रायः कम्पनी के अन्तर्नियमों में दिए होते हैं। प्रति वर्ष ऐसे निदेशकों में से जो बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करने वाले हैं कम-से-कम एक तिहाई निदेशक अनिवार्य रूप से अवकाश ग्रहण करेंगे, परन्तु अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक पुनः नियुक्ति के योग्य होंगे। कम्पनी के प्रथम निदेशक कम्पनी की प्रथम वार्षिक सभा समाप्त होने तक पद पर बने रहेंगे, अर्थात् । ने कम्पनी की प्रथम वार्षिक सभा में अवकाश ग्रहण करेंगे।

निदेशकों की नियुक्ति (Appointment Pamnanv)-(i) प्रथम वार्षिक सभा पर सभी प्रथम निदेशक और अन्य मामलों में एक तिहाई निदशक बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करेंगे।

(ii) इस अधिनियम म अन्यथा स्पष्ट प्रावधान होने के अतिरिक्त प्रत्येक निदेशक की नियुक्ति साधारण सभा में की जाएगी।

निदेशक द्वारा केन्द्र सरकार को निदेशक पहचान संख्या के आबण्टन के लिए आवेदन करना (Application for allotement of Director Identification Number (DIN)) (धारा 153)—प्रत्येक व्यक्ति जो कम्पनी में निदेशक के पद पर नियुक्त होना चाहता है, वह केन्द्र सरकार को निदेशक पहचान संख्या (DIN) आबण्टित करने के लिए निर्दिष्ट रीति से आवेदन करेगा।

निदेशक पहचान संख्या का आबण्टन (Allotment of Director Identification Number) (धारा 154) केन्द्र सरकार धारा 153 के अधीन आवेदन प्राप्त होने के एक महीने के अन्दर निदेशक पहचान संख्या प्रार्थी को आबण्टित कर देगी।

एक व्यक्ति, दो निदेशक पहचान संख्याओं के लिए आवेदन नहीं करेगा (No Individual shall apply for two Director Identification Numbers) (धारा 155)–एक व्यक्ति जिसे निदेशक पहचान संख्या पहले से ही आबण्टित हो गई है वह दूसरी निदेशक पहचान संख्या के लिए आवेदन नहीं करेगा या प्राप्त नहीं करेगा।

निदेशक द्वारा कम्पनी को निदेशक पहचान संख्या सूचित करना (Director to Intimate Director Identification Number) (धारा 156)—प्रत्येक वर्तमान कम्पनी निदेशक केन्द्र सरकार से निदेशक पहचान संख्या प्राप्त करने के एक महीने के अन्दर अपनी निदेशक पहचान संख्या कम्पनी या सभी कम्पनियों को सूचित करेगा, जिसमें वह निदेशक है।

कम्पनी द्वारा रजिस्ट्रार को निदेशक पहचान संख्या की सूचना (Company to inform Director Identification Number to Registrar) (धारा 157)-(i) प्रत्येक कम्पनी धारा 156 के अन्तर्गत सूचना प्राप्त होने के पन्द्रह दिनों के अन्दर अपने सभी निदेशकों की निदेशक पहचान संख्या रजिस्ट्रार को या केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित किसी अन्य अधिकारी या अधिकरण को धारा 403 के अन्तर्गत निर्दिष्ट फीस या अतिरिक्त फीस और समय के अन्दर रजिस्ट्रार को सूचित करेगी और प्रत्येक ऐसी सूचना निर्दिष्ट प्रारूप एवं ढंग से दी जाएगी।

(ii) दण्ड (Penalty) यदि एक कम्पनी उप-धारा (1) के अन्तर्गत निदेशक पहचान संख्या सूचित करने में असफल रहती है तो यह जुर्माने से दण्डित होगी जो पच्चीस हजार रूपये से कम नहीं होगा परन्तु जो एक लाख रूपये तक हो सकता है और कम्पनी का प्रत्येक दोषी अधिकारी भी जुर्माना देने का दायी होगा जो पच्चीस हजार रुपये से कम नहीं होगा परन्तु जो एक लाख रूपये तक हो सकता है। __ निदेशकों की नियुक्ति (धारा 152) से लेकर (ii) दण्ड-से कम नहीं होगा परन्तु जो एक लाख रुपये तक हो सकता है।)

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निदेशक पहचान संख्या प्रदर्शित करने का दायित्व (Obligation to indicate Director Indentification Number) (धारा 158)-प्रत्येक व्यक्ति या कम्पनी इस अधिनियम (कम्पनी अधिनियम 2013) के अन्तर्गत विवरणी, सूचना या विवरण फाइल करते समय ऐसी विवरणी, सूचना या विवरण में यदि यह विवरणी, सूचना या विवरण निदेशक से सम्बन्धित है या उसमें किसी निदेशक का सन्दर्भ है, उसमें निदेशक पहचान संख्या उल्लिखित करेगी।

दण्ड (Penalty)[धारा 159] यदि कोई व्यक्ति या कम्पनी का निदेशक धारा 152, 155 एवं 156 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो ऐसा व्यक्ति या कम्पनी का निदेशक सजा पाने का दायी होगा जिसकी अवधि 6 माह तक हो सकती है या जुर्माने के साथ पचास हजार ₹ तक हो सकती है। जहाँ चूक लगातार जारी रहती है अतिरिक्त जुर्माने के साथ जो पहले दिन के बाद प्रत्येक दिन के लिए जिसके दौरान चूक जारी रहती है, प्रत्येक दिन के लिए पाँच सौ ₹ तक हो सकता है।

प्रत्येक साधारण सभा पर बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करने वाले एक तिहाई निदेशक अवकाश ग्रहण करेंगे (At every annual general meeting one third of the directors as are liable to retire by rotation will retire)

() जब तक कि अन्तर्नियम में सभी निदेशकों के अवकाश ग्रहण के बारे में प्रावधान न दिया गया हो तो एक सार्वजनिक कम्पनी के कम-से-कम कुल निदेशकों के दो तिहाई निदेशक

(i) जिनके पद की अवधि बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करने वाली हो; और ।

(ii) इस अधिनियम में अन्यथा स्पष्ट रुप से प्रावधान को छोड़कर कम्पनी की साधारण सभा में नियुक्त किए जाएंगे।

() ऐसी कम्पनी की दशा में शेष निदेशक अन्तर्नियमों में कोई प्रावधान न होने पर साधाण सभा में नियक्त किए जाएंगे।

 () बारी-बारी से अवकाश ग्रहण वाले निदेशकों के एक तिहाई निदेशक अगली प्रत्येक साधा सभा में अवकाश ग्रहण करेंगे। प्रथम वार्षिक साधारण सभा जो साधारण सभा के बाद की गई है जिससे प्रथम निदेशक नियुक्त किए गए थे और बाद की प्रत्येक वार्षिक साधारण सभा में बारी-बारी से अवकाश ग्रहण करने वाले सदस्यों की एक तिहाई संख्या अवकाश ग्रहण करेगी यदि उनकी संख्या न तो तीन है। और न ही तीन के गुणक (Multiple) में है तो एक तिहाई के सर्वाधिक निकट संख्या में निदेशक अवकाश ग्रहण करेंगे।

() प्रत्येक वार्षिक साधारण सभा में अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक जो अपने पद पर। सर्वाधिक समय के लिए कार्यरत रहे हैं, अवकाश ग्रहण करेंगे परन्तु ऐसे निदेशकों की दशा में जो एक ही दिन निदेशक नियुक्त हुए थे उनमें कोई आपसी समझौता न होने पर उनका अवकाश ग्रहण लॉटरी के द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

(य) एक वार्षिक साधारण सभा पर जहाँ एक निदेशक अवकाश ग्रहण करता है वहाँ कम्पनी अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक को या अन्य किसी व्यक्ति को उस रिक्त स्थान को भरने के लिए नियुक्त कर सकती है।

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() यदि अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक का रिक्त स्थान इस प्रकार से नहीं भरा जाता है एवं साधारण सभा में स्पष्ट रुप से यह निर्णय नहीं लिया गया है कि रिक्त स्थान को नहीं भरा जाएगा तो साधारण सभा अगले सप्ताह, उसी दिन, उसी समय और उसी स्थान के लिए स्थगित हो जाएगी। यदि उस दिन राष्ट्रीय अवकाश है तो अगले दिन, जो अवकाश नहीं है, उसी समय एवं उसी स्थान पर होगी।

() यदि स्थगित सभा में भी अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक का रिक्त स्थान नहीं भरा गया है और सभा ने स्पष्ट रुप से यह प्रस्ताव पारित नहीं किया है कि रिक्त स्थान की पूर्ति की जाए तो यह माना जाएगा कि अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक की स्थगित सभा में पुन: नियुक्ति कर दी गई है जब तक कि

(i) उस सभा में या पिछली सभा में ऐसे निदेशक की नियुक्ति का प्रस्ताव असफल न हो गया हो;

(ii) अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक ने कम्पनी या निदेशक मण्डल को लिखित में पुनः नियुक्त न होने की इच्छा प्रकट कर दी है।

(iii) वह नियुक्ति के योग्य नहीं है अथवा अयोग्य है;

(iv) एक प्रस्ताव, चाहे विशेष हो या साधारण, इस अधिनियम के अनुसार उसकी नियुक्ति या पुनः नियुक्ति के लिए आवश्यक है; या

(v) इस मामले में धारा 162 लागू होगी।

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अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक के अतिरिक्त एक व्यक्ति का निदेशक के चुनाव के लिए खड़ा होने का अधिकार (धारा 160)

(Right of persons other than retiring director to stand for directorship)

1 एक व्यक्ति जो धारा 152 के अन्तर्गत अवकाश ग्रहण करने वाला निदेशक नहीं है इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत वह किसी भी साधारण सभा में निदेशक के पद की नियुक्ति के लिए योग्य (eligible) होगा। यदि उसने या किसी अन्य सदस्य ने सभा से कम-से-कम 14 दिन पहले उसे निदेशक के पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावित करते हुए अपने हाथ से लिखित एक सूचना कम्पनी को भेजी है या ऐसे सदस्य द्वारा उस पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तावित करते हुए दस हजार ₹ (एक लाख ₹के स्थान पर दिनांक 5.6. 2015 से प्रभावी) के निक्षेप (Deposit) या इससे अधिक राशि, जो निर्दिष्ट की जाए जमा करा दी गई है, जो उस व्यक्ति को या उस सदस्य को लौटा दी जाएगी जैसी भी स्थिति है, यदि प्रस्तावित व्यक्ति निदेशक के पद पर चुना जाता है या कुल वैध मतों का 25 प्रतिशत या अधिक मत, हाथ उठाकर या ऐसे प्रस्ताव पर मतदान के द्वारा प्राप्त करता है।

2. कम्पनी अपने सदस्यों को उस व्यक्ति के निदेशक पद के लिए उम्मीदवारी की सूचना निर्दिष्ट । तरीके से देगी

अतिरिक्त निदेशक, वैकल्पिक निदेशक और नामिती निदेशक की नियुक्ति

(Appointment of Additional Director, Alternate Director and Nominee Director) (धारा 161)

(1) कम्पनी के अन्तर्नियम, निदेशक मण्डल उस व्यक्ति के अतिरिक्त जो साधारण सभा में । निदेशक नियक्त होने में असफल रहता है, एक व्यक्ति को एक अतिरिक्त निदेशक के रुप में नियुक्त । करने की शक्ति प्रदान करते हैं। ऐसा निदेशक अगली वार्षिक साधारण सभा या अन्तिम तिथि तक, जिस पर वार्षिक साधारण सभा हो जानी चाहिए थी, जो भी पहले हो, तक के लिए पद पर बना रहेगा।

(2) यदि निदेशक मण्डल इस सम्बन्ध में अन्तर्नियमों द्वारा या कम्पनी द्वारा साधारण सभा में पारित प्रस्ताव द्वारा अधिकृत है तो किसी व्यक्ति को, जो कम्पनी में किसी अन्य निदेशक के लिए वैकल्पिक निदेशक का पद धारण नहीं करता है, एक निदेशक के स्थान पर उसके भारत के बाहर जाने पर कम-से-कम तीन माह की अवधि की अनुपस्थिति में वैकल्पिक निदेशक के रुप में कार्य करने के लिए नियुक्त कर सकता है।

परन्तु शर्त यह है कि किसी भी व्यक्ति को स्वतन्त्र निदेशक का वैकल्पिक निदेशक नियुक्त नहीं किया जाएगा जब तक कि वह स्वयं स्वतन्त्र निदेशक नियुक्त होने के योग्य न हो।

वैकल्पिक निदेशक उस निदेशक से अधिक समय के लिए निदेशक का पद धारण नहीं करेगा जिसके स्थान पर उसकी नियुक्ति हुई है। इसके अतिरिक्त वह उस निदेशक के भारत लौटने पर अपना पद छोड़ देगा। परन्तु शर्त यह है कि यदि मूल निदेशक के भारत लौटने से पहले उसके पद की अवधि समाप्त हो जाती है तो अवकाश ग्रहण करने वाले निदेशक की स्वयंमेव पुनः नियुक्ति का प्रावधान मूल निदेशक पर लागू होगा न कि वैकल्पिक निदेशक पर।

(3) निदेशक मण्डल कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार, किसी व्यक्ति को किसी कानून के अनुसार संस्था द्वारा नामित निदेशक नियुक्त कर सकता है या केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के किसी अनुबन्ध के सरकारी कम्पनी में अंश धारित करने के कारण।

(4) एक सार्वजनिक कम्पनी की दशा में यदि साधारण सभा में नियुक्त निदेशक का पद उसके पद की अवधि समाप्त होने से पहले सामान्य रुप से रिक्त हो जाता है तो इस प्रकार उत्पन्न आकस्मिक रिक्तता अन्तर्नियमों की शर्तों के अनुसार निदेशक मण्डल द्वारा मण्डल की सभा में भरी जाएगी।

परन्तु शर्त यह है कि ऐसा नियुक्त व्यक्ति उस तिथि तक पद पर बना रहेगा जिस तिथि तक वह व्यक्ति बना रहता, जिसके स्थान पर वह नियुक्त हुआ था। । निदेशकों की नियुक्ति पृथक्-पृथक् मतदान से होगी (Appointment of Directors to be voted individually) (धारा 162)-(1) कम्पनी की साधारण सभा में एक सुझाव (motion) दो या अधिक व्यक्तियों को एक प्रस्ताव द्वारा कम्पनी का निदेशक नियुक्त करने के लिए प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि सुझाव (motion) सभा में पहले निर्विरोध मत द्वारा स्वीकृत हो गया है।

(2) उपधारा (1) के उल्लंघन में पारित किया गया प्रस्ताव शून्य/व्यर्थ होगा चाहे उसको प्रस्तावित करते समय कोई आपत्ति उठाई गई थी या नहीं।

(3) एक व्यक्ति की नियुक्ति का अनुमोदन करने के लिए सुझाव या एक व्यक्ति को निदेशक हेतु नामित करने के सुझाव को उसकी नियुक्ति का सुझाव (motion) माना जाएगा।

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निदेशकों की नियुक्ति के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त अपनाने की छूट  

(Option to adopt principle of proportional representation for appointment of directors)

(धारा 163)- इस अधिनियम में कुछ भी होने के बावजूद एक कम्पनी के अन्तर्नियम कम्पनी के निदेशकों की कुल संख्या के कम-से-कम दो तिहाई निदेशकों की नियुक्ति आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के अनुसार करने का प्रावधान कर सकती है चाहे अकेले हस्तान्तरणीय मत के द्वारा या संचयी मतदान की पद्धति के द्वारा या अन्यथा। ऐसी नियुक्ति तीन वर्ष में एक बार होगी। ऐसे निदेशकों के आकस्मिक रिक्त स्थान अधिनियम की धारा 161(4) के अनुसार भरे जायेंगे।

निदेशकों की नियुक्ति के लिए अयोग्यता (धारा 164)

(Disqualifications for Appointment of Directors)

1 एक व्यक्ति एक कम्पनी में निदेशक के रूप में नियुक्त होने के योग्य नहीं होगा। यदि

(i) वह अस्वस्थ मस्तिष्क वाला है और उसे सक्षम न्यायालय ने ऐसा घोषित किया है ।

(ii) वह एक अमुक्त (Undischarged) दिवालिया है।

(iii) उसने दिवालिया घोषित करने के लिए आवेदन किया है और उसका आवेदन लम्बित है।

(iv) उसे न्यायालय द्वारा किसी अपराध की सजा दी गई है चाहे नैतिक पतन (Moral Turpitude) के कारण या अन्यथा और उसको उस सम्बन्ध में कम-से-कम 6 माह की सजा हुई है और उसकी सजा समाप्त होने के बाद पाँच वर्ष की अवधि पूरी नहीं हुई है। परन्तु शर्त यह है कि यदि उसे सात वर्ष या अधिक की सजा हुई है तो वह किसी भी कम्पनी में निदेशक नियुक्त करने के योग्य नहीं है।

(v) किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा उसे निदेशक के रूप में नियुक्त होने के अयोग्य आदेश जारी किया गया है जो अभी लागू है;

(vi) उसने कम्पनी के अंशों पर बकाया याचना का भुगतान नहीं किया है अकेले या अन्यों साथ और याचना देने की अन्तिम तिथि के बाद 6 माह बीत गए हैं।

(vii) पिछले पाँच वर्षों में उसे धारा 188 के अन्तर्गत सम्बन्धित पक्ष लेन-देन के अपराध में सजा हुई है; या

(viii) उसने धारा 152 (3) का अनुपालन नहीं किया है।

2. एक व्यक्ति जो एक कम्पनी का निदेशक है या रहा है जिसने

(i) वित्तीय विवरण या वार्षिक विवरणी लगातार तीन वित्तीय वर्षों के लिए फाइल नहीं की है..

(ii) इसके द्वारा स्वीकार किए गए निक्षेप या उन पर देय ब्याज या किसी ऋणपत्र को देय तिथि पर शोधित करने या उन पर देय ब्याज या घोषित लाभांश का भुगतान करने में असफल रहता है और एसी असफलता एक वर्ष या उससे अधिक अवधि के लिए रहती है, वह कम्पनी के निदेशक के रूप या किसी अन्य कम्पनी में सम्बन्धित कम्पनी की असफलता की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि के लिए। पुनः नियुक्ति के योग्य नहीं होगा।

3. एक निजी कम्पनी अपने अन्तर्नियमों द्वारा निदेशक की नियुक्ति के लिए अतिरिक्त अयोग्यता के आधारों का प्रावधान कर सकती है

परन्त शर्त यह है कि उपधारा (1) के वाक्यांश (iv). (v), (vi) प्रभावी नहीं होंगे(i) सजा या अयोग्यता के आदेश की तिथि से 30 दिन के लिए;

(ii) जहाँ इन 30 दिनों में सजा के विरुद्ध अपील या याचिका दायर की गई है तो 7 दिन के बीतने तक अपील या याचिका का निर्णय होने के बाद; या

(iii) जहाँ इसके विरुद्ध 7 दिन में अपील या याचिका दायर की गई है तो ऐसी अपील या याचिका के निर्णय हो जाने तक।

संचालित कम्पनियों की संख्या (Number of Directorship) (धारा 165)-(1) कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के लागू होने के बाद वैकल्पिक निदेशक के पद सहित, 20 कम्पनियों से अधिक कम्पनियों में निदेशक का पद धारण नहीं करेगा। परन्तु शर्त यह है कि सार्वजनिक कम्पनियों की अधिकतम संख्या जिसमें एक व्यक्ति की निदेशक के रूप में नियुक्ति की जा सकती है दस से अधिक नहीं होगी।

स्पष्टीकरण (Explanation) सार्वजनिक कम्पनी की सीमा की गणना करने के लिए जिसमें एक व्यक्ति को निदेशक नियुक्त किया जा सकता है, निजी कम्पनियों में निदेशक के पद सम्मिलित किए जाएँगे चाहे वह सार्वजनिक कम्पनी की सूत्रधारी या सहायक कम्पनी हैं।

(2) उपधारा (1) के प्रावधानों के अनुसार कम्पनी के सदस्य विशेष प्रस्ताव द्वारा कम्पनियों की कम संख्या निर्दिष्ट कर सकते हैं जिसमें कम्पनी का एक निदेशक, निदेशक के रुप में कार्य कर सकता

(3) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) में निर्दिष्ट सीमा से अधिक कम्पनियों में निदेशक का पद धारण किए हुए है तो वह इस अधिनियम के आरम्भ होने के एक वर्ष की अवधि में

() कम्पनियों में निर्दिष्ट सीमा में कम्पनियों का चयन करेगा जिसमें वह निदेशक के पद पर बना रहना चाहता है;

() अन्य कम्पनियों से त्याग-पत्र देगा; एवं

() प्रत्येक कम्पनी को, जिसमें वह निदेशक था और सम्बन्धित कम्पनी के रजिस्ट्रार को सूचित करेगा, जिन कम्पनियों में वह निदेशक के पद पर बना रहना चाहता है।

(4) उपधारा (3) के वाक्यांश (ब) में दिया गया त्याग-पत्र कम्पनी को भेजे जाने के तुरन्त बाद प्रभावी हो जाएगा।

(5) ऐसा व्यक्ति निर्दिष्ट कम्पनियों की सीमा से अधिक कम्पनियों में निदेशक के रुप में कार्य नहीं करेगा

() निदेशक के पद का त्याग-पत्र भेजने के बाद या

() इस अधिनियम के आरम्भ होने के

एक वर्ष बाद, जो भी पहले हो।

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(6) दण्ड (Penalty) यदि कोई व्यक्ति उप-धारा (1) का उल्लंघन करते हुए निदेशक का पद स्वीकार कर लेता है तो वह जुमाने से दण्डित किया जाएगा जो पाँच हजार रुपये से कम नहीं होगा. परन्त जो पहले दिन को छोड़कर प्रत्येक दिन के लिए जिसमें चूक जारी रहती है, पच्चीस हजार रुपये। तक हो सकता है।

निदेशकों के कर्तव्य (धारा 166)

(Duties of Directors)

(1) इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन एक निदेशक कम्पनी के अन्तर्नियमों के अनुसार कार्य करेगा।

(2) एक निदेशक समग्र रुप से कम्पनी के सदस्यों के लाभ के लिए कम्पनी के उद्देश्यों का संवर्द्धन करने हेतु सद्विश्वास से काम करेगा एवं कम्पनी उसके कर्मचारियों, अंशधारियों के सर्वोत्तम हित में समाज और पर्यावरण को बचाने के लिए काम करेगी।

(3) एक कम्पनी का निदेशक अपना कर्तव्य उचित सावधानी, कौशल एवं लगन के साथ पूरा करेगा और स्वतन्त्र निर्णय लेगा।

(4) एक कम्पनी का निदेशक कम्पनी को उस स्थिति में नहीं ले जाएगा जिसमें उसका अपना हित प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से कम्पनी के हित के विरोध में होगा।

(5) एक कम्पनी का निदेशक अनुचित लाभ अपने लिए, रिश्तेदारों, साझेदारों या सहयोगियों के लिए प्राप्त करने का प्रयास नहीं करेगा और यदि उसे ऐसा करते हुए पाया गया तो वह कम्पनी को उस लाभ के बराबर राशि देने का उत्तरदायी होगा

(6) एक कम्पनी का निदेशक अपना पद किसी को हस्तान्तरित (assign) नहीं करेगा एवं कोई भी ऐसा किया गया हस्तान्तरण (assignment) व्यर्थ (void) होगा।

(7) दण्ड (Penalty) यदि कम्पनी का कोई निदेशक इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो वह जुर्माने से दण्डित किया जाएगा जो एक लाख रु० से कम नहीं होगा परन्तु जो पाँच लाख रु० तक हो सकता है।

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निदेशक का पद रिक्त होना (धारा 167)

(Vacation Of Office Of Director)

(1) निम्नलिखित दशाओं में एक निदेशक का पद रिक्त हो जाएगा(i) वह धारा 164 में निर्दिष्ट कोई अयोग्यता प्राप्त कर लेता है;

(ii) वह 12 माह की अवधि के दौरान बगैर अवकाश की अनुमति प्राप्त किए अथवा अवकाश की अनुमति प्राप्त करके निदेशक मण्डल की सभी सभाओं में अनुपस्थित रहता है;

(iii) वह अनुबन्ध या व्यवस्थाओं (जिनमें वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से कोई हित रखता है) से सम्बन्धित धारा 184 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है;

(iv) धारा 184 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए वह किसी अनुबन्ध या व्यवस्था में अपने हित का प्रकटीकरण करने में असफल रहता है जिसमें उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित है;

(v) वह किसी न्यायालय या अधिकरण (Tribunal) के आदेश द्वारा अयोग्य हो जाता है:

(vi) यदि उसे न्यायालय द्वारा किसी अपराध के लिए सजा दी जाती है चाहे नैतिक पतन या अन्यथा और इस सम्बन्ध में कम-से-कम 6 माह की सजा दी गई है। ऐसी दशा में निदेशक को अपना पद छोड़ना होगा चाहे उसने न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील फाइल कर दी हो

(vii) इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत उसे हटाया गया है।

(viii) उसे सूत्रधारी, सहायक या एसोसिएट कम्पनी में पद धारण करने के कारण या नियुक्ति के कारण निदेशक नियुक्त किया गया था तो ऐसे पद या नियुक्ति के समाप्त होने पर।

(2) दण्ड (Penalty) यदि कोई व्यक्ति इस जानकारी के बाद भी कि उसका निदेशक का पद समाप्त हो गया है, निदेशक के रुप में कार्य करता है तो उसे सजा से दण्डित किया जाएगा जिसकी अवधि एक वर्ष तक हो सकती है या जर्माने के साथ जो एक लाख रु० से कम नहीं होगा परन्तु जो पाँच लाख रुपये तक हो सकता है या दोनों के साथ।

(3) जहाँ एक कम्पनी के सभी निदेशक उप-धारा (1) में निर्दिष्ट किसी अयोग्यता के कारण अपना पद रिक्त कर देते हैं तो प्रवर्तक या उसकी अनुपस्थिति में केन्द्र सरकार आवश्यक संख्या में निदेशकों

नियुक्ति करेगी जो तब तक पद पर बने रहेंगे जब तक कि कम्पनी साधारण सभा में निदेशकों की नियुक्ति न कर दे।

(4) एक निजी कम्पनी अपने अन्तर्नियम के द्वारा निदेशक द्वारा पद रिक्त करने के लिए उप धारा (1) में निर्टि

“दष्ट कारणों के अतिरिक्त अन्य कारण निर्दिष्ट कर सकती है।

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निदेशकों द्वारा त्यागपत्र (धारा 168)

(Resignation By Directors)

1 एक निदेशक कम्पनी को लिखित सूचना देकर अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है। मण इसकी सूचना प्राप्त होने पर उस पर विचार करेगा और कम्पनी, निर्दिष्ट तरीके, समय और प्रामा रजिस्ट्रार को सूचित करेगी एवं त्याग-पत्र के तथ्य को कम्पनी की तुरन्त बाद में होने वाली बाई साधारण सभा में रखी जाने वाली निदेशकों की रिपोर्ट में सम्मिलित करेगी।

परन्तु शर्त यह है कि ऐसा निदेशक त्याग-पत्र की प्रति त्याग-पत्र के विस्तृत कारणों सहित त्याग-पत्र के 30 दिनों के अन्दर निर्दिष्ट तरीके से रजिस्ट्रार को भेजेगा।

2. निदेशक का त्याग-पत्र उस तिथि से जिस तिथि में कम्पनी को सूचना प्राप्त होती है या निदेशक द्वारा निर्दिष्ट तिथि से, यदि कोई है लाग होगा दोनों में जो भी तिथि बाद में हो।

परन्तु शर्त यह है कि एक निदेशक जिसने त्याग-पत्र दे दिया है त्याग-पत्र देने के बाद भी उस अपराध के लिए उत्तरदायी होगा, जो उसके कम्पनी में निदेशक रहने की अवधि में घटित हुआ था।

3. जहाँ सभी निदेशक अपने पद से त्याग-पत्र दे देते हैं या धारा 167 के अन्तर्गत अपना पट रिक्त कर देते हैं तो प्रवर्तक या उसकी अनुपस्थिति में केन्द्र सरकार आवश्यक संख्या में निदेशकों की नियुक्ति करेगी जो उस समय तक निदेशक का पद सम्भालेंगे जब तक कि कम्पनी द्वारा साधारण सभा में निदेशकों की नियुक्ति न कर दी गई हो।

निदेशकों को पद से हटाना (धारा 169)

(Removal of Directors)

1 एक कम्पनी साधारण प्रस्ताव द्वारा धारा 242 के अन्तर्गत अधिकरण द्वारा नियुक्त निदेशक को छोड़कर एक निदेशक को सुनवाई का उचित अवसर देकर उसके पद की अवधि समाप्त होने से पहले उसे निदेशक के पद से हटा सकती है। परन्तु शर्त यह है कि इस उप-धारा में सम्मिलित कुछ भी लागू नहीं होगा जहाँ कम्पनी ने धारा 163 के अन्तर्गत आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के अनुसार निदेशकों की कुल संख्या के कम-से-कम दो-तिहाई निदेशकों की नियुक्ति स्वयं करने का विकल्प चुना है।

2. इस धारा के अन्तर्गत किसी निदेशक को हटाने या ऐसे हटाए गए निदेशक के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को उस सभा में नियुक्त करने जिसमें से उसे हटाया गया है, ऐसे प्रस्ताव के लिए विशेष सूचना की आवश्यकता होगी।

3. इस धारा के अन्तर्गत निदेशक को हटाने के प्रस्ताव की सूचना के प्राप्त होने पर कम्पनी तुरन्त उस सूचना की एक प्रति सम्बन्धित निदेशक को भेजगी। वह निदेशक चाहे वह कम्पनी का सदस्य है या नहीं, सभा में उस प्रस्ताव पर सुनवाई करने का अधिकारी होगा।

4. जहाँ एक निदेशक को इस धारा के अन्तर्गत हटाने के प्रस्ताव की सूचना दी गई है और सम्बन्धित निदेशक कम्पनी को कम्पनी के सदस्यों को सूचित करने की प्रार्थना करता है तो कम्पनी समय रहने पर

 () कम्पनी के सदस्यों को प्रस्ताव के सम्बन्ध में दी गई सूचना में प्रतिवेदन (representation) दिए जाने के तथ्य का वर्णन करेगी; और

() प्रतिवेदन की प्रति कम्पनी के प्रत्येक सदस्य को भेजेगी जिसे सभा की सूचना भेजी गई है (चाहे कम्पनी द्वारा प्रतिवेदन प्राप्त होने के पहले या बाद);

यदि प्रतिवेदन की प्रति अपर्याप्त समय के कारण या कम्पनी की भूल के कारण नहीं भेजी जाती है तो निदेशक अपने सुनवाई के अधिकार के पूर्वाग्रह के बिना यह माँग कर सकता है कि प्रतिवेदन सभा में पढ़ा जाएगा। परन्तु शर्त यह है कि कि प्रतिवेदन की प्रति को भेजे जाने की कोई आवश्यकता नहीं है और प्रतिवेदन को सभा में पढ़ने की आवश्यकता नहीं है यदि या तो कम्पनी या कोई अन्य व्यक्ति के आवेदन पर जो पीड़ित होने का दावा करता है, अधिकरण (Tribunal) सन्तुष्ट है कि इस उप-धारा दारा प्रदान अधिकारों का दुरुपयोग अपमानजनक विषय के अनावश्यक प्रचार के लिए किया जा रहा है. और ___ अधिकरण, कम्पनी द्वारा प्रार्थना पर, किए गए पूर्ण या आंशिक व्यय का भुगतान निदेशक द्वारा करने का आदेश दे सकता है चाहे वह इसका एक पक्षकार नहीं था।

5. इस धारा के अन्तर्गत एक निदेशक को हटाने के कारण हुआ रिक्त स्थान, यदि उसकी नियक्ति सभा में कम्पनी द्वारा या मण्डल द्वारा की गई थी उस सभा में किसी अन्य निदेशक को नियक्त करके भरी जा सकती है जिसमें उसे हटाया गया था, बशर्ते कि ऐसी नियुक्ति की विशेष सचना उप-धारा

(2) में दे दी गई है।

6. इस प्रकार से नियुक्त निदेशक उस तिथि तक पद पर बना रहेगा जब तक उसका पूर्वज (Predecessor) निदेशक उस पद पर बना रहता यदि उसे हटाया गया न होता।

7. यदि उप धारा (5) रिक्त स्थान की पूर्ति (fill) नहीं की जाती है तो उसे इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आकस्मिक रिक्त स्थान (Casual Vacancy) के रुप में भरा जा सकता है। बशर्ते कि जिस निदेशक को हटाया गया है उसे निदेशक मण्डल द्वारा पुनः नियुक्त नहीं किया जाएगा।

8. इस धारा में कुछ भी ऐसा नहीं माना जाएगा जो

() इस धारा के अन्तर्गत हटाए गए व्यक्ति के पद के समाप्त होने के कारण उसे दी जाने वाली क्षतिपूर्ति या हर्जाने के रुप में कोई राशि प्राप्त करने से किसी अनुबन्ध या नियुक्ति की शर्तों के अनुसार वंचित करे।

() इस अधिनियम के अन्तर्गत प्राप्त अन्य अधिकार के अन्तर्गत एक निदेशक को हटाने की शक्ति समाप्त करे।

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निदेशकों एवं मुख्य प्रबन्धकीय कर्मचारियों एवं उनके द्वारा

धारित अंशों का रजिस्टर (धारा 170)

(Register of Directors And Key Managerial Personnel

And Their Share Holding)

1 प्रत्येक कम्पनी अपने पंजीकृत कार्यालय पर एक रजिस्टर रखेगी जिसमें इसके निदेशकों एवं मुख्य प्रबन्धकीय कर्मचारियों का निर्दिष्ट वर्णन देगी जिसमें कम्पनी में या इसकी सूत्रधारी कम्पनी में या सहायक कम्पनी में या कम्पनी की सूत्रधारी या एसोसिएट कम्पनी की सहायक कम्पनी में धारित प्रतिभूतियों का विवरण सम्मिलित होगा।

2. ऐसे निर्दिष्ट विवरण और प्रपत्र सहित एक विवरणी निदेशक और प्रमख प्रबन्धकीय कर्मचारी की नियुक्ति के 30 दिन के अन्दर रजिस्ट्रार के यहाँ फाइल की जाएगी और किसी परिवर्तन की दशा में 30 दिन के अन्दर। दिनांक 5. 6. 2015 से उपरोक्त प्रावधान सरकारी कम्पनी पर लागू नहीं होंगे।

निदेशक आदि के रजिस्टर का सदस्यों द्वारा निरीक्षण (धारा 171)

(Members Right To Inspect Register of Directors Etc.)

धारा 170 की उप-धारा (1) के अन्तर्गत रखा गया रजिस्टर

() कार्य घण्टों के दौरान निरीक्षण के लिए खुला रहेगा और सदस्यों को उसका सारांश लेने का अधिकार होगा एवं सदस्यों द्वारा प्रार्थना करने पर उसकी प्रति बिना किसी शल्क के 30 दिन के अन्दर प्रदान की जाएगी; और

() कम्पनी की साधारण वार्षिक सभा के दौरान निरीक्षण के लिए खुला रहेगा और (स) सभा में उपस्थित होने वाले प्रत्येक सदस्य को उक्त रजिस्टर उपलब्ध कराएगी।

रजिस्टर का निरीक्षण या प्रति देने पर रजिस्ट्रार द्वारा निरीक्षण के तुरन्त आदेश (On Refusal of inspection or copy, Registrar can order immediate inspection or supply of conv) यदि उप-धारा (1) के वाक्यांश (अ) के अन्तर्गत निरीक्षण से मना किया जाता है या माँगी गई प्रति प्रार्थना प्राप्त होने के 30 दिन के अन्दर नहीं भेजी जाती है तो रजिस्ट्रार उसे किए गए आवेदन पर तुरन्त निरीक्षण एवं प्रति देने के आदेश दे सकता है।

दण्ड (Penalty) (धारा 172) यदि कम्पनी इस अध्याय के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करती है एवं इसके लिए किसी विशिष्ट सजा का प्रावधान नहीं है तो कम्पनी और प्रत्येक दोषी अधिकारी जर्माने से दण्डित किया जाएगा जो पचास हजार रु० से कम नहीं होगा परन्तु जो पाँच लाख रु० तक हो सकता है।

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प्रबन्ध निदेशक और प्रबन्धक की एक साथ नियुक्ति पर प्रतिबन्ध

(Prohibition of Simultaneous Appointment or Employment of a Managing Director and a Manager)

(धारा 196-1. कोई भी कम्पनी एक साथ प्रबन्ध निदेशक और प्रबन्धक की नियुक्ति नहीं करेगी या नौकरी पर नहीं रखेगी।

2. कोई भी कम्पनी अपने किसी प्रबन्ध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक की नियक्ति पाँच वर्ष की अवधि से अधिक नहीं करेगी।

परन्तु शर्त यह है कि उसकी नियुक्ति की अवधि समाप्त होने से एक वर्ष से अधिक पहले पन। नियुक्ति नहीं करेगी।

3. प्रबन्धकीय कर्मचारियों की न्यूनतम और अधिकतम आयु (Minimum and maximum age of Managerial Personnel) कोई भी कम्पनी किसी व्यक्ति को प्रबन्ध निदेशक, पर्णकालिक निदेशक या प्रबन्ध नियुक्त नहीं करेगी या उसकी सेवाएँ जारी नहीं रखेगी जो

() 21 वर्ष की आयु से कम है या जिसकी आयु 70 वर्ष की हो गई है।

परन्तु एक व्यक्ति की नियुक्ति जिसने 70 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है, विशेष प्रस्ताव के द्वारा की जा सकती है। ऐसी दशा में सभा की सूचना के साथ संलग्न स्पष्टीकरण विवरण (Explanatory Statement) में उसकी नियुक्ति का औचित्य (Justification) दर्शाना होगा।

() वह अमुक्त (Undischarged) दिवालिया है या किसी समय दिवालिया घोषित किया जा चुका है;

() उसने किसी समय अपने ऋणदाताओं को भुगतान स्थगित कर दिया गया था या उनके साथ। समझौता करता है या किया था; या

() किसी समय न्यायालय द्वारा किसी अपराध के लिए उसे दोषी ठहराया गया था और उसे 6 महीने से अधिक की सजा हुई है या हुई थी।

प्रबन्धकीय अधिकारियों का अधिकतम समग्र पारिश्रमिक (धारा 197)

(Overall Maximum Managerial Remuneration)

धारा 197 एवं अनुसूची V के प्रावधानों के अनुसार प्रबन्ध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक की नियुक्ति की जाएगी और नियुक्ति की शर्ते एवं देय पारिश्रमिक निदेशक मण्डल के अनुमोदन द्वारा किया जायेगा जो कि कम्पनी की अगली साधारण सभा में अनुमोदित किया जाना चाहिए। यदि नियुक्ति अनुसूची v के प्रावधानों के अनुसार नहीं हैं तो केन्द्र सरकार द्वारा अनुमोदन किया जाना चाहिए।

किसी वित्तीय वर्ष के लिए एक सार्वजनिक कम्पनी द्वारा अपने निदेशकों, प्रबन्ध निदेशक और पूर्णकालिक निदेशक और इसके प्रबन्धक सहित को दिया जाने वाला पारिश्रमिक कम्पनी के उस वित्तीय वर्ष के शुद्ध लाभ के 11 प्रतिशत से अधिक नहीं रहेगा। लाभ की गणना धारा 198 के अनुसार की जाएगी सिवाय इसके कि सकल लाभ में से निदेशकों का पारिश्रमिक घटाया नहीं जाएगा।

कम्पनी केन्द्र सरकार की अनुमति से साधारण सभा के द्वारा कम्पनी के शुद्ध लाभ के 11 प्रतिशत से अधिक पारिश्रमिक अनुसूची (V) के प्रावधानों के अनुसार दे सकती है।

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एक प्रबन्ध निदेशक, एक पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक का पारिश्रमिक

(Remuneration Payable to Any one Managing Director, Whole Time Director or Manager)

प्रबन्ध निदेशक, पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक का पारिश्रमिक कम्पनी के शुद्ध लाभ के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा और यदि उनमें से एक से अधिक ऐसे निदेशक हैं, तो पारिश्रमिक ऐसे सभी निदेशक और प्रबन्धक, इस सभी को मिलाकर शुद्ध लाभ के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

निदेशकों का पारिश्रमिक जो तो प्रबन्ध निदेशक हैं और ही पूर्णकालिक निदेशक हैं (Remumeration Payable to directors who are Neither Managing Director nor Whole Time Director)-ऐसे निदेशकों का पारिश्रमिक निम्नलिखित से अधिक नहीं होगा

(i) कम्पनी के शुद्ध लाभ का 1 प्रतिशत यदि वहाँ प्रबन्ध निदेशक या पूर्णकालिक निदेशक हैं या प्रबन्धक हैं;

(ii) किसी अन्य मामले में शुद्ध लाभ का 3 प्रतिशत। उपरोक्त प्रतिशतों में निदेशकों को उप-धारा (5) के अन्तर्गत देय फीस सम्मिलित नहीं होगी।

लाभ के होने या अपर्याप्त होने पर प्रबन्धकीय पारिश्रमिक [धारा 197(3)]

(Managerial Remuneration in Case of Absence or Inadequacy of Profit)

अनूसूची V के प्रावधानों के अनुसार यदि किसी वित्तीय वर्ष में कम्पनी को लाभ नहीं हुए हैं या अपर्याप्त हैं तो कम्पनी अपने निदेशकों, प्रबन्धकीय या पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक पारिश्रमिक के द्वारा कोई राशि उप-धारा (5) के अन्तर्गत देय फीस को छोडकर सिवाय अनूसूची के अनसार भुगतान नहीं करेगी। यदि कम्पनी इन प्रावधानों का पालन करने में अयोग्य है तो केन्द्र सरकार की अनुमति से निदेशकों, प्रबन्ध या पूर्णकालिक निदेशक या प्रबन्धक सहित को देय पारिश्रमिक इस धारा के अनुसार या कम्पनी के अन्तर्नियम या एक कम्पनी की साधारण सभा में विशेष प्रस्ताव द्वारा निदेशकों को देय पारिश्रमिक निर्धारित किया जाएगा और इसमें किसी अन्य हैसियत से की गई सेवा का पारिश्रमिक सम्मिलित होगा।

पारिश्रमिक देने का तरीका (Mode of Remuneration)-1. एक निदेशक, मण्डल या उसकी समिति की सभाओं में भाग लेने के लिए या मण्डल द्वारा निर्णित किसी उद्देश्य के लिए फीस के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है, बशर्ते कि ऐसी फीस की राशि निर्दिष्ट राशि से अधिक नहीं होगी।

2. एक निदेशक या प्रबन्धक को पारिश्रमिक मासिक भुगतान या कम्पनी के शुद्ध लाभ का निर्दिष्ट प्रतिशत या आंशिक रूप से एक तरीके से या आंशिक रूप से दूसरे तरीके से किया जा सकता है।

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केन्द्र सरकार या कम्पनी द्वारा पारिश्रमिक की सीमा निर्धारित करना (धारा 200)

(Central Government or Company to Fix Limit With Regard to Remuneration)

इस अध्याय के प्रावधानों के बावजूद केन्द्र सरकार या कम्पनी धारा 196 के अन्तर्गत या धारा 197 के अन्तर्गत किसी नियुक्ति या पारिश्रमिक के सम्बन्ध में अनुमोदन करते समय यदि कम्पनी के लाभ अपर्याप्त हों या न हों तो इस अधिनियम की सीमाओं के अन्दर कम्पनी के लाभ का प्रतिशत या उसकी राशि, जैसा यह उचित समझे, निश्चित कर सकती है।

पारिश्रमिक निश्चित करते समय केन्द्र सरकार निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखेगी

(i) कम्पनी की आर्थिक स्थिति;

(ii) सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा किसी अन्य हैसियत से प्राप्त किए गये पारिश्रमिक या कमीशन;

(iii) किसी अन्य कम्पनी से प्राप्त किए गए पारिश्रमिक या कमीशन;

(iv) सम्बन्धित व्यक्ति की पेशेवर योग्यताएँ और अनुभव;

(v) अन्य कोई निर्दिष्ट विषय।

कम्पनी के संचालकों की वैधानिक स्थिति

(Legal Position Of Directors Of A Company)

कम्पनी में संचालकों की वैधानिक स्थिति क्या है ? इस सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम में कोई स्पष्ट वर्णन नहीं किया गया है। इसलिए संचालकों की वैधानिक स्थिति की व्याख्या करना एक कठिन कार्य है। वास्तव में संचालकों के कम्पनी के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होते हैं, जिनके अनुसार वे कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों एवं कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुरूप कार्य करते हैं। संचालकों को कम्पनी का ट्रस्टी, एजेण्ट एवं प्रबन्धकीय साझेदार कहा जाता है। संक्षेप में, कम्पनी के संचालकों की स्थिति निम्न प्रकार होती है

(1) संचालक की स्थिति कम्पनी के प्रन्यासी (ट्रस्टी) के रूप में (Directors as a Trustee of the Company)—वस्तुतः संचालक वे व्यक्ति हैं जिन्हें अंशधारियों के हितों की रक्षा करने के लिए कम्पनी की प्रबन्ध व्यवस्था हेतु चुना जाता है अर्थात् संचालकों का कम्पनी के साथ विश्वासाश्रित सम्बन्ध होता है। एक ट्रस्टी का भी ट्रस्ट सम्पत्ति के साथ ऐसा ही सम्बन्ध रहता है। इसीलिए संचालकों को कम्पनी का ट्रस्टी कहा जाता है।

यद्यपि कानुनी रूप से संचालकों की स्थिति ट्रस्टी के रूप में नहीं होती परन्तु फिर भी उनसे यह आशा की जाती है कि वे अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय सद्भावना और सावधानी से कार्य करेंगे, किसी प्रकार का निजी या गुप्त लाभ नहीं कमायेंगे और कम्पनी के हितों की सुरक्षा करेंगे। विशेष रूप से अंशों के आबंटन, अंशों के अपहरण, अंशों के हस्तान्तरण, मॉग या याचना राशि की माँग. कम्पनी की सम्पत्ति या धन का प्रयोग करने आदि के सम्बन्ध में संचालकों को ट्रस्टी के रूप में पर्ण सद्भावना से कार्य करना चाहिए।

2. एजेन्ट या अभिकर्ता के रूप में संचालक की स्थिति (Directors as an Agent)-कम्पनी. विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका कोई भातिक अस्तित्व नहीं होता। अतः कम्पनी अपने कार्यों को स्वयं नहीं कर सकती। कम्पनी अपने कार्यों का संचालकों द्वारा कराती है जो उसके एजेल होने हैं। वस्ततः कम्पनी व संचालकों के मध्य ठीक वैसा ही सम्बन्ध होता है जैसे नियोक्ता व पजेल – सम्बन्ध होता है। अतः नियोक्ता व एजेन्ट के सम्बन्धों को निर्धारित करने वाले एजेसिद्धान्त कम्पनी व संचालकों पर भी लागू होते हैं।

यह उल्लेखनीय है कि कम्पनी को बाध्य करने के लिए यह आवश्यक है कि संचालक अपनी अधिकार सीमा के अन्तर्गत कम्पनी के नाम से कार्य करें। यदि संचालक कोई ऐसा कार्य करते हैं जो उनकी अधिकार सीमा से बाहर है परन्त कम्पनी की अधिकार सीमा में है तो कम्पनी ऐसे कार्यों की पर (Ratify) कर सकती है। लेकिन यदि संचालक द्वारा किया गया कार्य कम्पनी की अधिकार सीमा बाहर (Ultra vires) है तो कम्पनी ऐसे कार्य की पष्टि नहीं कर सकती और न तो कम्पनी और न ही संचालक ऐसे कार्य के लिए उत्तरदायी होंगे। संचालकों को अपने अधिकारों के गर्भित आश्वासन (Implied Warranty) के खण्डन (Breach) के लिए अवश्य ही उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

संचालकों की एजेन्ट के रूप में स्थिति का अध्ययन करते समय इस बात का उल्लेख करना भी। आवश्यक है कि संचालकों के अधिकार एक सामान्य एजेन्ट की तुलना में कहीं अधिक होते हैं। जैसे ही संचालकों का चुनाव हो जाता है तो उन्हें अन्तर्नियमों एवं कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। ऐसे अधिकारों का प्रयोग वे स्वतन्त्र रूप से कर सकते हैं और इसके लिए उन्हें अंशधारियों से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं होती जबकि एक एजेन्ट सदैव ही अपने नियोक्ता या प्रधान से नियन्त्रित होता है और उसके मार्गदर्शन में ही कार्य करता है।

(3) प्रबन्धकीय साझेदार के रूप में संचालक की स्थिति (Directors as Managing Partner)—संचालकों की स्थिति कम्पनी में प्रबन्धकीय साझेदार के रूप में भी होती है क्योंकि एक तरफ तो वह कम्पनी के अंशधारी होते हैं और दूसरी तरफ उन्हें कम्पनी के कार्य-कलापों का प्रबन्ध एवं नियन्त्रण करने हेतु नियुक्त किया जाता है। इस प्रकार कम्पनी में उनकी स्थिति प्रबन्धक एवं साझेदार दोनों ही रूपों में होती है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि साझेदारी फर्म के साझेदार और कम्पनी के संचालक की स्थिति में अन्तर होता है। साझेदार का असीमित दायित्व होता है जबकि संचालक का अंशों की अंकित राशि तक ही सीमित दायित्व होता है।

(4) कम्पनी के अधिकारी के रूप में संचालक की स्थिति (Directors as an officer of the Company) कम्पनी अधिनियम की धारा 2 (59) के अनुसार संचालकों को कम्पनी का अधिकारी माना जाता है। अधिकारी के रूप में कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं का पालन न करने पर संचालकों को उत्तरदायी भी ठहराया जा सकता है।

(5) संचालककर्मचारी के रूप में (Directors as an Employee) सामान्यत: किसी संचालक को कम्पनी में कर्मचारी के रूप में नियुक्त नहीं किया जाता है, किन्तु इस सम्बन्ध में कर्मचारी के रूप में उसकी नियुक्ति पर कम्पनी अधिनियम में कोई प्रतिबन्ध भी नहीं लगाया गया है। इस दृष्टि से उसकी स्थिति कर्मचारी के रूप में भी होती है। ऐसी स्थिति में ऐसा संचालक कर्मचारी के रूप में सभी अधिकारों को प्राप्त करने का अधिकारी है। यहाँ पर यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि उसके अधिकार संचालक के रूप में पृथक् होंगे। किसी कम्पनी के समापन की दशा में ऐसा व्यक्ति धारा 327 के अधीन संचालक के रूप में प्राथमिकता के आधार पर अपना संचालक शुल्क पाने का अधिकारी नहीं होगा।

निष्कर्षउपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि कम्पनी का संचालक कभी ट्रस्टी है तो कहीं पर वह एजेण्ट भी है। वह कभी प्रबन्ध साझेदार के रूप में है, तो कहीं वह कम्पनी का प्रमख अधिकारी भी है। कहने का आशय यह है कि वह भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए तथा भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जा सकता है। इसलिए कहा गया है कि संचालक वह है जो संचालक का कार्य करे भले ही उसको किसी भी नाम से पुकारा जाता हो तथा उसकी कम्पनी में कुछ भी स्थिति हो।

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प्रबन्ध संचालक एवं पूर्णकालिक संचालक में अन्तर

(Managing Director And Wholetime Director Being Distinguished)

पूर्णकालिक संचालक से आशय ऐसे संचालक से है जो कम्पनी की पूर्णकालिक सेवा में हो किन्तु जिसके पास प्रबन्ध के सारभूत अधिकार (Substantial Powers of Management) न हों, जबकि प्रबन्ध संचालक एक ऐसा संचालक हे जिसके पास प्रबन्ध के सारभूत अधिकार हैं। अत: ये दोनों एक ही सारित नहीं होते यद्यपि इन दोनों पर कम्पनी अधिनियम के सभी प्रावधान समानरूप से लाग होते हैं। इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर हैं

1 प्रबन्ध संचालक के पास प्रबन्ध के सारभूत अधिकार होते हैं जबकि पूर्णकालिक संचालक नक पर्णकालिक कर्मचारी की भाँति होता है जो कम्पनी के सामान्य कार्य सम्पन्न करता है।

2 .प्रबन्ध संचालक एव प्रबन्धक एक साथ एक ही कम्पनी में नियुक्त नहीं किए जा सकते जबकि

कम्पनी सन्नियम प्रबन्धक एव पूर्णकालिक संचालक एक साथ एक ही कम्पनी में नियुक्त किये जा सकते हैं।

3. प्रबन्ध संचालक एक से अधिक कम्पनियों का प्रबन्ध संचालक हो सकता है जबकि पूर्णकालिक संचालक केवल एक ही कम्पनी का पर्णकालिक संचालक हो सकता है।

4. प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति एक बार में अधिकतम 5 वर्ष के लिए की जा सकती है जबकि पूर्णकालिक संचालक की नियुक्ति की अवधि के लिए कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

5. प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति के लिए अंशधारियों की सहमति आवश्यक नहीं है जबकि पूर्णकालिक संचालक की नियुक्ति तभी की जा सकती है जबकि अंशधारियों की सभा में विशेष प्रस्ताव द्वारा इसके लिए अनुमति ले ली हो।

प्रबन्धक (Manager)

धारा 2(53) के अनुसार, “प्रबन्धक से आशय उस व्यक्ति से है जो संचालक मण्डल के निरीक्षण, नियन्त्रण तथा निर्देशन में कम्पनी का पूर्ण अथवा लगभग पूर्ण प्रबन्ध करता है। इस परिभाषा में संचालक अथवा कोई भी अन्य व्यक्ति भी सम्मिलित है जो प्रबन्धक की स्थिति में कार्य करता है चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारा जाता हो तथा चाहे उसके साथ सेवा का कोई अनुबन्ध हुआ हो अथवा नहीं।”

गिब्सन बनाम बर्टन (Gibson Vs. Burten) के मामले में न्यायाधीश ब्लेकबर्न ने प्रबन्धक की परिभाषा देते हुए लिखा है कि “प्रबन्धक एक ऐसा व्यक्ति होता है जो कम्पनी के प्रबन्ध सम्बन्धी लगभग सम्पूर्ण अधिकार अथवा शक्ति रखता है। वह किसी विशेष कार्य के लिये एजेण्ट नहीं है और न आदेशों के पालन के लिये कर्मचारी ही, बल्कि वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसे कम्पनी का व्यवसाय चलाने की सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त होती है।”

प्रबन्धक तथा प्रबन्ध संचालक में अन्तर

(Distinction between Manager and Managing Director)

Management Companies Directors Study

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

1 संचालकों से क्या आशय है ? भारतीय कम्पनियों में संचालकों की नियुक्ति सम्बन्धी अधिनियम की व्यवस्थाओं का वर्णन कीजिए।

What is meant by directors ? Explain the provisions of the Act, with regard to the appointment of directors in Indian Companies.

2. संचालकों की नियुक्ति किस प्रकार होती है ?संचालकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम के अधीन कौन-कौन से प्रतिबन्ध लगाये गये हैं ?

How are directors appointed ? What restrictions have been imposed by the Companies Act in respect of appointment of directors ?

3. प्रबन्ध चालक से क्या आशय है ? प्रबन्ध संचालक के सम्बन्ध में कम्पनीज अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों का वर्णन कीजिये।

Who is a ‘Managing Director’ ? State the provisions relating to Companies Act.

4. किन दशाओं में संचालक मण्डल अन्य संचालकों की नियक्ति कर सकता है?एसा तान दशाए बताइये और कम्पनी अधिनियम की सम्बन्धित धाराएँ भी बताइये।

Under what conditions the Board of Directors have the right to appoint other directors ? Give three conditions and also quote the relevent sections of the Companies Act.

5. एक के सार्वजनिक कम्पनी में संचालकों की नियक्ति पर क्या प्रतिबन्ध हैं? नियक्ति के सम्बन्धमा उनकी योग्यताएँ तथा अयोग्यताएँ समझाइये।

What are the restrictions on the appointment of directors ? Explain their सqualifications and disqualifications as to their appointment.

6. कम्पनी के संचालकों की संख्या, नियुक्ति और पारिश्रमिक के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।

State the provisions of the Companies Act, 2013 as to the number, appointment and remuneration of the directors of a company.

7. संचालक का क्या आशय है ? संचालकों की योग्यताओं और अयोग्यताओं की व्याख्या कीजिये।

What is meant by Director ? Explain qualifications and disqualifications of directors.

8. एक कम्पनी के संचालकों के अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।

Describe the powers and duties of directors of a company.

9. किन परिस्थितियों में एक संचालक की सेवाएँ समाप्त की जा सकती हैं ? संक्षेप में संचालकों के दायित्वों का वर्णन कीजिये।

Under what circumstances the services of a director can be terminated ? Discuss in brief the liabilities of directors.

10. कम्पनी के संचालक केवल एजेन्ट नहीं हैं, वरन् वे कुछ दृष्टि से तथा कुछ सीमा तक विश्वाश्रित व्यक्ति हैं या उनकी स्थिति में हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिये।

“Directors of a company are not only agents, but they are also in some sense and to some extent trustees or in the position of trustees.” Discuss this statement.

11. प्रबन्धक तथा संचालक में क्या अन्तर है ? कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति, पारिश्रमिक तथा निष्कासन सम्बन्धी क्या प्रावधान हैं ? संक्षेप में बताइये।

What is the difference between Manager and Director ? State in brief the provisions relating to appointment, remuneration and removal of managing director under the Company Act.

12. कम्पनी संचालकों के विभिन्न प्रकार के दायित्वों का वर्णन कीजिये।

Discuss the various types of liabilities of a Company’s Director.

13. एक कम्पनी के संचालक कौन हैं ? एक कम्पनी में उनकी वैधानिक स्थिति का वर्णन कीजिये।

Who are directors of a company ? Discuss their legal position in the company.

14. एक कम्पनी में संचालकों की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? क्या संचालक के रूप में कार्य करने से पहले कम्पनी का अंशधारी होना या योग्यता अंश प्राप्त करना अनिवार्य है?

State how directors are appointed in a company ? Is it compulsory to be a shareholder or to acquire qualification shares before acting as a director ?

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

Management Companies Directors Study

1 संचालकों से क्या आशय है?

What is meant by Directors?

2. एक कम्पनी में संचालकों की संख्या कितनी होती है ?

What are the number of directors in a company ?

3. संचालकों की नियुक्ति तथा अवकाश ग्रहण करने सम्बन्धी नियम क्या हैं ?

What are the rules regarding appointment and retirement of directors ?

4. आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर संचालकों की नियुक्ति सम्बन्धी प्रावधान बताइए।

Explain the provisions regarding the appointment of directors on the basis of Proportionate Representation.

5. संचालकों की अयोग्यताएँ क्या हैं ?

What are the disqualifications of directors ?

6. संचालकों द्वारा संचालित कम्पनियों की संख्या पर प्रतिबन्ध सम्बन्धी प्रावधानों को स्पष्ट कीजिये।

Describe the restrictions imposed on directors for the number of companies directed by them.

7. संचालकों के पारिश्रमिक के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का वर्णन कीजिये।

Describe the provisions of Companies Act, 2013 regarding remuneration of directors.

8. संचालकों की नियुक्ति की विधियाँ बताइये।

State the modes of appointment of directors.

9. कम्पनी के प्रथम संचालकों की नियुक्ति कैसे की जाती है ?

How are the first directors of the company appointed ?

10. संचालकों की शक्तियों की सीमाएँ बताइये।

State the limitations of powers of Directors.

11. प्रबन्ध संचालक तथा प्रबन्धक में अन्तर कीजिये।

Distinguish between Managing Director and Manager.

12. एक कम्पनी के संचालकों की क्या शक्तियाँ हैं ?

What are the powers of the directors of a company ?

13. एक कम्पनी के संचालकों के कर्तव्यों का वर्णन कीजिये।

Explain the duties of the directors of a company.

14. संचालक की नियुक्ति का वर्णन कीजिये।

Explain the appointment of directors.

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chetansati

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