BCom 3rd Year Financial Management Fund Flow Statement Study Material Notes in Hindi

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BCom 3rd Year Financial Management Fund Flow Statement Study Material Notes in Hindi

BCom 3rd Year Financial Management Fund Flow Statement Study Material Notes in Hindi: Meaning and Definition of Funds flow Statement  Meaning of Flow of Funds  Funds Flow Statement  Importance of Fund Flow Statement  Confusion Items in Preparation of Funds Flow Statement  Format of Funds Flow Statement

Financial Management Fund Flow
Financial Management Fund Flow

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कोष प्रवाह विवरण

(Fund Flow Statement)

चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता किसी भी व्यावसायिक संस्था के दो आधारभूत वित्तीय विवरण होते हैं जो स्वामियों प्रबन्धकों एवं विनियोजकों को सम्बन्धित व्यवसाय की महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करते हैं। चिटा एक निश्चित तिथि को व्यवसाय की आर्थिक स्थिति अर्थात् व्यवसाय की सम्पत्तियों तथा उसके दायित्वों की जानकारी कराता है, जबकि लाभ-हानि खाता किसी लेखा अवधि में व्यवसाय द्वारा अर्जित लाभ-हानि का ज्ञान कराता है। परन्तु इन वित्तीय विवरणों से यह जानकारी नहीं मिल पाती है कि किसी लेखा वर्ष में किन-किन साधनों से कुल कितना धन प्राप्त हुआ और इसका उपयोग किन-किन उद्देश्यों के लिए किया गया? साधनों के आवागमन को स्पष्ट करने के लिए जिस वित्तीय विश्लेषण तकनीक का प्रयोग किया जाता है, उसे कोष-प्रवाह विश्लेषण तकनीक कहते हैं।

कोष-प्रवाह विवरण का अर्थ एवं परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF FUNDS FLOW STATEMENT)

कोष-प्रवाह विवरण तकनीक की विवेचना करने से पूर्व इसमें प्रयुक्त दो शब्दों-कोष’ (Funds) तथा ‘प्रवाह’ (Flow) की व्याख्या करना उपयुक्त रहेगा।

कोष’ का आशय (Meaning of Fund)- कोष-प्रवाह विवरण में प्रयुक्त ‘कोष’ शब्द को विभिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है । संकुचित विचारधारा वाले विद्वानों के अनुसार, ‘कोष’ शब्द का आशय नकदी (Cash) से माना जाता है, जबकि विस्तृत अर्थ में इसका आशय ‘सम्पूर्ण साधनों’ (Total Resources) से लेते हैं। ‘कोष’ शब्द के इन दोनों अर्थों के स्थान पर व्यवहार में ‘कोष’ शब्द का अभिप्राय ‘शुद्ध कार्यशील पूँजी’ (Net Working Capital) से है। ‘शुद्ध कार्यशील पूँजी’ से आशय कुल चालू सम्पत्तियों (Total Current Assets) तथा कुल चालू दायित्वों (Total Current Liabilities) के अन्तर से है।

चूँकि कोष, चालू सम्पत्तियों और चालू दायित्वों का अन्तर है, अत: यह जानना आवश्यक है कि चिढे की कौन-सी मदें इनमें सम्मिलित होती हैं।

वालू सम्पत्तियाँ (Current Assets)- चालू सम्पत्तियों में सामान्यतः निम्नांकित सम्पत्तियाँ शामिल की जाती हैं__हस्तस्थ रोकड़ (Cash in hand), बैंक में रोकड़ (Cash at Bank), देनदार (Debtors), पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses), उपार्जित आय (Accrued Income), अल्पकालीन निक्षेप (Short-term Deposits), प्राप्य बिल (Bill Receivable), पुस्तकीय ऋण (Book-Debts), स्टॉक/स्कन्ध (Stock, Inventory or Merchandise), विक्रय (विपणन) योग्य प्रतिभूतियाँ (Marketable Securities) एवं ac faftert (Current Investment)!

__सामान्यतः विनियोगों (Investments) को चालू त्तयों के अन्तर्गत शामिल नहीं करना चाहिए, परन्तु यदि उक्त विनियोग आसानी से विपणन योग्य हैं अर्थात् बाजार में बेचे जा सकते हैं या अल्पकालीन हैं तो इन्हें चालू सम्पत्तियों में शामिल करना चाहिए। स्पष्ट सूचना के अभाव में सामान्यत: विनियोगों को दीर्घकालीन ही माना जाता है।

चालू दायित्व (Current Liabilities)- चालू दायित्वों का आशय ऐसे दायित्वों से है जिनका भुगतान सामान्यत: एक वर्ष के अन्तर्गत कर दिया जाता है। चालू दायित्वों में सामान्यतः निम्नलिखित को शामिल किया जाता है

व्यापारिक लेनदार (Trade Creditors). नकद साख (Cash Credit), बैंक अधिविकर्ष (Bank Overdraft), देय बिल (Bills Payable), अदत्त व्यय (Outstanding Expenses), अनुपार्जित आय (Unearned Income), अल्पकालीन ऋण (Short-term Loans), डूबत एवं संदिग्ध ऋणों के लिए प्रावधान (Provision or Reserve for Doubtful Debts), करों के लिए आयोजन (Provision for Taxation), अयाचित या न मांगा गया लाभांश (Unclaimed Dividend)

कोष-प्रवाह’ का आशय

(MEANING OF ‘FLOW OF FUNDS’)

प्रवाह का सामान्य अर्थ ‘आवागमन’ है। अत: किसी व्यवसाय में विभिन्न व्यावसायिक क्रिया परिणामस्वरूप कोषों का आवागमन ‘कोष-प्रवाह’ कहलाता है । जैसा कि पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है ‘कोर से आशय ‘शद्ध कार्यशील पँजी’ से होता है, अत: कोष-प्रवाह विश्लेषण में कोष-प्रवाह और पूँजी में परिवर्तन समानार्थक है। किसी लेन-देन से कोष-प्रवाह तभी होगा जबकि उससे शुद्ध कार्यशील पत्र में वद्धि या कमी होती हो। किसी व्यावसायिक क्रिया या लेन-देन से कोष का प्रवाह होता है अथवा नहीं। बात का निर्णय करते समय निम्नांकित नियम ध्यान रखने योग्य हैं

कोष-प्रवाह न होना (Where There is no Flow of Funds)

जिन लेन-देनों से शद्ध कार्यशील पूंजी में कोई कमी या वृद्धि नहीं होती, उन लेन-देनों से कोष नहीं होता है। मुख्यतः निम्नलिखित लेन-देन ऐसे हैं जिनसे कोष-प्रवाह नहीं होता है

1.लेन-देन से प्रभावित होने वाले दोनों खाते चाल सम्पत्ति वर्ग के हों-जैसे-माल का नकद क्रय नकट बिक्री. देनदारों से भुगतान प्राप्त होना, देनदारों से प्राप्त विपत्र मिलना, प्राप्य विपत्रों का भुगतान मिलना, आदि । इन व्यवहारों से चालू सम्पत्तियों के स्वरूप में ही परिवर्तन होता है, उनका कुल योग पूर्ववत् ही रहता है। अत: ऐसे लेन-देनों का शुद्ध कार्यशील पूँजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

2. लेन-देन से प्रभावित होने वाले दोनों खाते चालू दायित्व वर्ग के हों-जैसे-लेनदारों को देय बिलों पर स्वीकृति प्रदान करना, देय बिल का अनादृत होना, आदि । ऐसे लेन-देनों से केवल चालू दायित्वों का स्वरूप ही परिवर्तित होता है, परन्तु चालू दायित्वों की कुल रकम तथा शुद्ध कार्यशील पूँजी अपरिवर्तित रहती है। _

3. चालू सम्पत्तियों व चालू दायित्वों में समान दिशा और समान मात्रा में परिवर्तन हो-यदि किसी लेन-देन से चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों में समान दिशा और समान मात्रा में परिवर्तन होता है तो उनका शुद्ध कार्यशील पूँजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् कोई ‘कोष-प्रवाह’ नहीं होता है। जैसे-लेनदारों को भुगतान, देय बिलों का भुगतान, उधार माल खरीदना, आदि।

4 .स्थायी सम्पत्तियाँ तथा स्थायी दायित्व या पूँजी वर्ग के खाते समान रूप से प्रभावित (परिवर्तित) होते हों-जैसे-अंश या ऋणपत्रों के बदले स्थायी सम्पत्तियों का क्रय । ऐसे लेन-देनों का किसी चालू सम्पत्ति या चालू दायित्व के खाते पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता जिनके कारण शुद्ध कार्यशील पूँजी अपरिवर्तित रहती है अर्थात् कोष-प्रवाह नहीं होता है।

5. लेन-देन से प्रभावित होने वाले दोनों खाते गैर चालू वर्ग के हों-जैसे-ऋणपत्रों या पूर्वाधिकार अंशों का समता, अंशों में परिवर्तन के द्वारा शोधन, बोनस अंशों का निर्गमन, आदि।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यदि लेन-देन से प्रभावित होने वाले दोनों खाते एक ही वर्ग (स्थायी या चालू) के हों तो कोष-प्रवाह नहीं होगा।

कोष-प्रवाह होना (Where There is Flow of Funds)

कोष-प्रवाह उन्हीं लेन-देनों से होता है जिनके कारण शुद्ध कार्यशील पूँजी में वृद्धि या कमी होती है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि ‘कोष-प्रवाह तभी होता है जब किसी लेन-देन से प्रभावित होने वाले दोनों खाते अलग-अलग वर्गों के हों, अर्थात् एक चालू सम्पत्ति या चालू दायित्व वर्ग का तथा दूसरा स्थायी सम्पत्ति या स्थायी दायित्व व पूँजी वर्ग का होना चाहिए। इस प्रकार कोष का प्रवाह निम्नलिखित दशाओं में ही हो सकता है

(i) लेन-देन का प्रभाव चालू सम्पत्ति और स्थायी सम्पत्ति पर पड़े; जैसे-स्थायी सम्पत्तियों का क्रय। अथवा विक्रय करना।

(ii) लेन-देन का प्रभाव चालू सम्पत्ति और स्थायी दायित्व पर पड़े; जैसे-रोकड़ के बदले ऋणपत्रों को। निर्गमित करना।

(iii) लेन-देन का प्रभाव चालू सम्पत्ति और पूँजी पर पड़े जैसे-अंश पूँजी को रोकड़ के बदले निर्गमित । करना।

(iv) लेन-देन का प्रभाव चालू दायित्व और स्थायी सम्पत्ति पर पड़े; जैसे–मशीन का उधार क्रय करना ।

(v) लेन-देन का प्रभाव चालू दायित्व और स्थायी दायित्व पर पड़े; जैसे-लेनदारों के भुगतान हेतु ऋणपत्र निर्गमित करना।

(vi) लेन-देन का प्रभाव चालू दायित्व और पूँजी पर पड़े; जैसे-लेनदारों को भुगतान में अंश निर्गमित करना, पूर्वाधिकार अंशों के शोधन हेतु देय बिल स्वीकार करना।

(vii) व्यावसायिक क्रियाओं के फलस्वरूप होने वाले शुद्ध लाभ या शुद्ध हानि से भी कोष-प्रवाह होता है जिसे ‘संचालन से कोष’ (Funds from Operations) कहा जाता है।

कोष-प्रवाह विवरण

(FUNDS FLOW STATEMENT)

‘कोष’ एवं ‘कोष-प्रवाह’ की व्याख्या के उपरान्त कोष-प्रवाह विवरण को आसानी से समझा जा सकता

किसी संस्था के दो तिथियों पर तैयार किये गये स्थिति विवरणों (आर्थिक चिट्ठों) के बीच संस्था के कोषों के परिवर्तनों के अध्ययन के लिए बनाया गया विवरण कोष-प्रवाह विवरण’ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, इस विवरण में यह दर्शाया जाता है कि दो लेखा अवधियों के मध्य कोष का प्रवाह किस प्रकार हुआ है अर्थात् किन-किन साधनों से कोष प्राप्त हुए हैं और इनका उपयोग किन-किन मदों में किया गया है।

कोष-प्रवाह विवरण के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई मुख्य परिभाषाएँ निम्नवत् हैं

फाउल्के के अनुसार, “कोष की प्राप्ति व प्रयोग का विवरण वह तकनीकी साधन है, जो दो तिथियों के मध्य किसी व्यावसायिक उपक्रम की वित्तीय स्थिति में हए परिवर्तनों का विश्लेषण करने के लिए तैयार किया जाता है।”

स्मिथ एवं ब्राउन के अनुसार, “कोष-प्रवाह विवरण सारांश रूप में तैयार किया गया एक विवरण-पत्र है जो दो विभिन्न तिथियों पर बनाये गये चिट्ठों के समयान्तर में वित्तीय दशाओं में हुए परिवर्तन का ज्ञान कराता है।”

रॉबर्ट एन० एन्थोनी के अनुसार, “कोष-प्रवाह विवरण इस बात का विवेचन करता है कि किन साधनों से अतिरिक्त कोष प्राप्त हुए और किन मदों पर इन कोषों को प्रयोग में लाया गया है ।”3

निष्कर्ष-उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ‘कोष-प्रवाह विवरण’ किसी भी संस्था की दो लेखा अवधियों के मध्य वित्तीय विवरणों की सहायता से बनाया जाने वाला एक विवरण-पत्र है. जो यह विश्लेषण प्रस्तुत करता है कि आवश्यक कोषों को किन-किन साधनों से प्राप्त किया गया एवं उन कोषों का उपयोग किस प्रकार किया गया। कोष-प्रवाह विवरण के अन्य नाम

कोष-प्रवाह विवरण को निम्नलिखित नामों से भी सम्बोधित किया जाता है :

1. कोषों के उपयोग का विवरण (Statement of Application of Funds),

2. कोषों के स्रोतों एवं उपयोग का विवरण (Statement of Sources and Application of Funds),

3. कोषों के स्रोतों एवं प्रयोगों का विवरण (Statement of Sources and Uses of Funds),

4 कहाँ से आया एवं कहाँ गया विवरण (Where got and where gone Statement),

5. कोषों की पूर्ति एवं उपयोग का विवरण (Statement of Funds Supplied and Applied),

6. संसाधनों की प्राप्ति एवं उपयोग का विवरण (Statement of Resources Provided and Applied)

कोष-प्रवाह विवरण का महत्त्व, उपयोग या लाभ

(IMPORTANCE, USES OR ADVANTAGES OF FUNDS FLOW STATEMENT)

काष-प्रवाह विवरण एक निश्चित अवधि में कार्यशील पंजी में हुए परिवर्तनों के सम्बन्ध में महत्त्वपर्ण सूचना प्रदान करता है। इस विवरण की सहायता से ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर दिये जा सकते हैं जिनका समाधान चिट्ठे अथवा लाभ-हानि खाते के आधार पर नहीं किया जा सकता। इस विवरण से व्यवसाय के प्रबन्धकों,स्वामियों ऋणदाताओं भावी विनियोजकों तथा शोधकर्ताओं को अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध होती हैं। संक्षेप में कोष-प्रवाह विवरण निम्नलिखित दृष्टिकोणों से एक उपयाोगी तकनीक हैं ।

1.प्रबन्ध के लिए महत्त्व (Importance for Management)-कोष-प्रवाह विवरण प्रवन्ध के लिए अत्यन्त उपयोगी अस्त्र (tool) का काम करता है। प्रबन्धक को संस्था के हित हेतु विभिन्न प्रकार के निर्णय लने पड़ते हैं तथा नीतियों का निर्माण करना पड़ता है। ये निर्णय/नीतियाँ कोष-प्रवाह विवरण के विश्लेषण के आधार पर तय की जाती हैं।

प्रबन्ध के लिए कोष-प्रवाह विवरण के महत्त्व को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है

(i) वित्तीय विश्लेषण (Financial Analysis)-कोष-प्रवाह विवरण को तैयार करने की कोई बाध्यता (Boundation) नहीं होती है, फिर भी संस्था के प्रबन्धक द्वारा इसे तैयार किया जाता है । प्रबन्धक द्वारा इस विवरण को तैयार करने के मूल में संस्था की वित्तीय स्थिति का विश्लेषण प्राप्त करना होता है । ‘कोष’ (Fund) के स्रोत विभिन्न वर्षों में कौन-कौन से रहे हैं तथा ‘कोष’ का प्रयोग किन-किन साधनों में किया गया है? संस्था की कार्यशील पूँजी में वृद्धि हुई है अथवा विगत वर्ष की तुलना में उसमें कमी आयी है। उसके पीछे कौन-कौन से कारण रहे हैं? इनका विश्लेषण केवल कोष-प्रवाह विवरण के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।

(ii) वित्तीय विनियोजन एवं बजट (Financial Planning and Forecasting of Budget)कोष-प्रवाह विवरण के द्वारा संस्था को विभिन्न स्रोतों एवं कोषों के उपयोग मदों की विस्तृत जानकारी मिलती है। शुद्ध कार्यशील पूँजी की कितनी आवश्यकता होगी, इसका अनुमान लगाने हेतु विगत वर्षों के परिवर्तनों को ध्यान में रखकर बजट तैयार किया जाता है। कोष-प्रवाह विवरण के द्वारा वित्तीय नियोजन में सहायता मिलती है। भविष्य में स्थायी सम्पत्तियों के क्रय, कार्यशील पूँजी की आवश्यकता, ऋणों का भुगतान आयकर एवं लाभांश के भुगतान हेतु आवश्यक रोकड़ का पूर्वानुमान लगाया जाता है। इस हेतु किन-किन साधनों से फण्ड का आगमन होगा? जैसे-पूँजी का निर्गमन, स्थायी सम्पत्तियों का विक्रय, संचालन से रोकड़ प्राप्त, आदि । फण्ड की प्राप्तियों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि संस्था के आन्तरिक (Internal) स्रोतों से कितने फण्ड मिलेंगे तथा कितने फण्ड बाह्य (External) स्रोतों से जुटाने पड़ेंगे। अतः प्रबन्धकों को कोष-प्रवाह विवरणों की सहायता से वित्तीय नियोजन एवं बजट बनाने में आवश्यक मदद मिलती है।

(iii) भावी मार्ग-दर्शन (Future Guidance)- कोष-प्रवाह विवरण विगत वर्षों (Previous years) की सूचनाओं की सहायता से बनाये जाते हैं। इसके आधार पर भावी योजनाएँ बनायी जाती हैं तथा भविष्य के लिए वित्तीय नीतियों का निर्माण किया जाता है।

(iv) तुलनात्मक अध्ययन में सहायक (Helpful in Comparative Study)- कोष-प्रवाह विवरण। का निमोण दो समयावधियों के आर्थिक चिट्ठों के आधार पर किया जाता है, जिससे तुलनात्मक अध्ययन में सहायता मिलती है। यद्यपि प्रत्येक संस्था में वित्तीय वर्ष के अन्त में लाभ-हानि खाता (P. & L. A/c) एव। आथिक चिट्ठा (Balance Sheet) तो अनिवार्य रूप से तैयार किया जाता है। परन्तु इन दोनों वित्तीय विवरणों के आधार पर व्ययों, सम्पत्तियों एवं दायित्वों का तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया जा सकता है, वास्तविकता। यह है कि इनका तुलनात्मक अध्ययन केवल कोष-प्रवाह विवरण द्वारा ही किया जा सकता है।

(v) ऋणों को प्राप्त करने में सहायक (Helpful in Procurement of Loans)- कोष-प्रवाह विवरण। वित्तीय विवरणों का अन्त्य-परीक्षण (Postmortem) करता है। इसकी सहायता से विनियोजकों एवं ऋणदाताओं को संस्था की पूर्ण विस्तृत जानकारी एवं शोधन क्षमता का ज्ञान हो जाता है, इसके आधार पर वे संस्था के संंस्था को ऋण देने का निर्माण शीध्रता से कर सकते हैं। अतः कोष-प्रवाह विवरण ऋण प्राप्त करने में अत्यन्त । महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।

(vi) अर्जनों का विश्लेषण (Analysis of Accruals)- व्यावसायिक लाभों का किस प्रकार उपयोग किया गया? व्यवसाय में पर्याप्त लाभ होने पर भी कोष पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध क्यों नहीं हैं? इन प्रश्नों का उत्तर, कोष-प्रवाह विवरण द्वारा ही सम्भव है।

2 अंशधारियों के लिए महत्त्व (Importance for Shareholders)-अंशधारी कोष-प्रवाह विवरण से निम्नलिखित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं

(i) संस्था में वित्त प्रबन्धन किस प्रकार किया जा रहा है?

(ii) संस्था में उनका हित सुरक्षित है या नहीं?

(iii) लाभांश का भुगतान लाभों में से हो रहा है या पूँजी में से?

(iv) संस्था में कार्यशील पूँजी की क्या स्थिति है ?

(v) संस्था में लाभों की प्रवृत्ति क्या है?

(vi) संस्था संचालन (Operation) से अधिक कोष प्राप्त कर रही है या अन्य साधनों से? उपर्युक्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर संस्था के अंशधारी, प्रबन्धकीय कुशलता की जाँच कर सकते

3. ऋणदाताओं एवं विनियोक्ताओं के लिए महत्त्व (Importance for Creditors and Investors)–ऋणदाता व विनियोक्ता इस विवरण की सहायता से निम्नलिखित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं

(i) संस्था की कार्यशील पूँजी में कमी या वृद्धि का अनुमान लगाकर भावी प्रवृत्ति का विश्लेषण कर सकते हैं।

(ii) संस्था की सामान्य क्रियाओं से चालू कोष उत्पन्न करने की क्षमता का अनुमान लगा सकते हैं। (iii) प्रदान किये जाने वाले ऋण की रकम सुरक्षित है या नहीं तथा ऋण पर ब्याज समय से मिलता रहेगा या नहीं?

(iv) भविष्य में आय की क्या सम्भावना है? उपर्युक्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर ऋणदाता व विनियोजक संस्था में विनियोजन करने या न करने का निर्णय ले सकते हैं।

कुछ वित्तीय संस्थाएँ तो ऋण देने से पूर्व कोष-प्रवाह विवरण विशेष रूप से माँगती हैं।

4. अन्य फर्मों के लिए महत्त्व (Importance for Other Firms)-समान उद्योग में संलग्न अन्य फर्मों के कोष-प्रवाह विवरण के तुलनात्मक अध्ययन से एक फर्म अपने वित्तीय प्रबन्ध में कमियाँ ज्ञात कर सकती है तथा सुधार के लिए ठोस कदम उठा सकती है।

5. सरकार के लिए महत्त्व (Importance for Government)-कोष-प्रवाह विवरण से सरकार को उद्योगों में प्रयुक्त पूँजी के विभिन्न स्रोतों का ज्ञान होता है जिससे सरकार को पूँजी नियन्त्रण में सहायता मिलती है। संचालन लाभों (Operating Profits) का अध्ययन कर सरकार विक्रय मूल्य नीति के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण निर्णय ले सकती है।

6. अर्थशास्त्रियों के लिए महत्त्व (Importance for Economists)-व्यवसाय की वित्तीय स्थिति के विश्लेषण में तो इस विधि का प्रयोग किया ही जाता है, आजकल अर्थशास्त्रियों ने भी अर्थव्यवस्था में उदित हुए कोषों की गणना में इस विधि का उपयोग प्रारम्भ कर दिया है। केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (C.S.O.) ने क्षेत्रीय कोष-प्रवाह की संगणना में इस विधि का प्रयोग किया है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि कोष-प्रवाह विवरण, चिट्टे तथा लाभ-हानि खाते की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करता है। यही कारण है कि अमेरिकन कम्पनियों के लिए चिट्ठे तथा लाभ-हानि खाते के समान ही वित्तीय स्थिति में परिवर्तनों का विवरण (Statement of Changes in Financial Position)-सम्पूर्ण साधनों (Total Resources) की अवधारणा पर आधारित कोष-प्रवाह विवरण एक आवश्यक विवरण बना दिया गया है। भारत में यद्यपि कम्पनियों के लिए इस प्रकार की कोई अनिवार्यता नहीं है, फिर भी भारत के

चार्टर्ड लेखापालों के संस्थान (Institute of Chartered Accountants of India) द्वारा सिफारिश की गई है कि वार्षिक लेखों के साथ ‘वित्तीय स्थिति में परिवर्तन की विवरण भी प्रकाशित किया जाए ।

कोष-प्रवाह विवरण की सीमाएँ

(LIMITATIONS OF FUNDS FLOW STATEMENT)

 कोष-प्रवाह विवरण वित्तीय प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी साधन है, फिर भी इसकी की सामाएं हैं जिनकी जानकारी होना आवश्यक है। इसकी प्रमुख सीमाएँ निम्नवत् है

1 गैर-कोष मदों की उपेक्षा यद्यपि यह विवरण चिट्ठे तथा लाभ-हानि खाते की तुलना में अनेक महत्त्वपर्ण सूचनाएँ उपलब्ध कराता है, परन्तु इसमें गैर-कोष मदों से सम्बन्धित व्यवहारों की पूर्णत: उपेक्षा की जाती है। इस दृष्टि से यह विवरण चिट्ठे तथा लाभ-हानि खाते की तुलना में अपरिष्कृत है।

2. भूतकालीन विश्लेषण-कोष-प्रवाह विवरण भूतकालीन विश्लेषण से अधिक सम्बन्ध रखता है. क्योंकि यह विवरण मुख्यतः यह बताता है कि क्या हो चुका है। इस विवरण से यह मालूम नहीं होता कि भविष्य में किस प्रकार के परिवर्तन होंगे।

3. मौलिक सूचनाओं का अभाव-इस विवरण से व्यवसाय की वित्तीय स्थिति अथवा उसमें परिवर्तन के सम्बन्ध में जो भी जानकारी मिलती है.वह मौलिक नहीं होती है। यह विवरण तो केवल चिट्ठ एवं लाभ-हानि । खाते द्वारा प्रदर्शित समंकों का रूप परिवर्तित करके अथवा उन्हें पुनः व्यवस्थित करके कुछ सूचनाएँ उपलब्ध। करा देता है।

4. रोकड़ स्थिति में परिवर्तन की जानकारी नहीं-यह विवरण केवल कोष-प्रवाह की ही जानकारी देता। है, रोकड़ स्थिति में परिवर्तन (Changes in Cash Position) की नहीं । अत: केवल कोष-प्रवाह पर आधारित सूचनाएँ भ्रामक चित्र प्रस्तुत कर सकती हैं जिससे भ्रामक निष्कर्ष निकल सकते हैं।

5. कार्यशील पूँजी के विभिन्न मदों का अलग-अलग विश्लेषण करने में असमर्थ यह विवरण कार्यशील पूँजी की कुल राशि में परिवर्तन का ही विश्लेषण करता है, कार्यशील पूँजी के विभिन्न मदों में परिवर्तन या उच्चावचन का नहीं।

कोष-प्रवाह विवरण एवं आर्थिक चिट्ठे में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN FUND-FLOW STATEMENT AND BALANCE SHEET)

(i) प्रकृति (Nature)-कोष-प्रवाह पिवरण की प्रकृति गतिशील (Dynamic) होती है क्योंकि यह दो समयावधियों के मध्य कोषों में हुए परिवर्तनों की जानकारी देता है। आर्थिक चिट्टे को प्रकृति स्थायी (Fixed) होती है। यह संस्था के समाप्त होने वाले वर्ष की आर्थिक स्थिति प्रति वर्ष प्रकट करता है। ___ (ii) विषय-सामग्री (Subject-matter)- कोष-प्रवाह विवरण के अन्तर्गत आर्थिक चिट्ठे की केवल उन्हीं मदों (Items) को लिया जाता है, जिनसे किसी-न-किसी रूप में कोष प्रभावित होते हैं, जबकि आर्थिक चिट्ठे के अन्तर्गत खाताबही (Ledger) के व्यक्तिगत एवं वास्तविक शेषों को सम्मिलित किया जाता है।

(iii) उद्देश्य (Purpose)- कोष-प्रवाह विवरण बनाने का उद्देश्य अल्पकालिक होता है। यह दो समयावधियों के मध्य सम्पत्तियों, दायित्वों, पूँजी में हुए परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से बनाया। जाता है जबकि चिट्टे का उद्देश्य संस्था की आर्थिक स्थिति से अवगत कराना होता है।

(iv) उपयोगिता (Utility)- कोष-प्रवाह विवरण की उपयोगिता, अल्पकालिक शोधन क्षमता एवं कोषों के प्रवाह की जानकारी देने में होती है जबकि आथिक चिट्ठे की उपयोगिता संस्था या व्यवसाय की आर्थिक स्थिति को स्पष्ट करने की होती है।

(v) आन्तरिक एवं बाह्य प्रलेख (Internal and External Documents)-कोष-प्रवाह विवरण, संस्था या प्रबन्ध-मण्डल का आन्तरिक प्रलेख होता है। इसे बनाने एवं प्रकाशन की कोई बाध्यता नहीं होता। है। चिट्ठे को बनाना एवं प्रकाशित करना संस्था के लिए अनिवार्य होता है. अत: यह बाह्य प्रलेख समझा। जाता है।

(vi) तैयारी (Preparation)- कोष-प्रवाह विवरण को चिट्ठे में प्रदर्शित सूचनाओं के आधार पर तैयार। किया जाता है । अत: पहले चिट्ठे को तैयार किया जाता है एवं उसके पश्चात् कोष-प्रवाह विवरण तैयार होता। है। इस प्रकार आर्थिक चिट्ठा, कोष-प्रवाह विवरण को आवश्यक विषय-सामग्री उपलब्ध कराता है। .

कोष-प्रवाह विश्लेषण की विधि

(PROCEDURE FOR FUNDS FLOW ANALYSIS)

या

कोष-प्रवाह विवरण तैयार करने की विधि

(PROCEDURE OF PREPARATION OF FUNDS-FLOW STATEMENT).

कोष-प्रवाह विश्लेषण सामान्यतः एक वर्ष की अवधि के लिए तैयार किया जाता है, यद्यपि यह अवधि दो या अधिक वर्ष की भी हो सकती है । इस विश्लेषण के लिए आवश्यक समंक दोनों चिट्ठों (प्रारम्भिक एवं अन्तिम) से प्राप्त किये जाते है । कुछ अतिरिक्त सूचनाएँ अन्य खातों से प्राप्त कर लेते हैं। कोष-प्रवाह विश्लेषण के लिए निम्नलिखित दो विवरण तैयार किये जाते हैं

1 कार्यशील पूंजी में परिवर्तनों की अनुसूची अथवा विवरण (Schedule or Statement of Changes in Working Capital),

  1. कोष-प्रवाह विवरण (Funds Flow Statement)

कार्यशील पँजी में परिवर्तनों की अनुसूची (Schedule of Changes in Working Capital)

यह अनुसूची दो तिथियों के चिट्ठों के बीच कार्यशील पूँजी में हुए परिवर्तनों को प्रदर्शित करती है। इसे चालू सम्पत्तियों व चालू दायित्वों की सहायता से तैयार किया जाता है। चालू सम्पत्तियों व चालू दायित्वों का अन्तर कार्यशील पूँजी’ कहलाता है।

कार्यशील पूँजी में होने वाले परिवर्तनों की गणना हेतु ध्यान रखने योग्य प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं : 1. यदि गत वर्ष की तुलना में चालू वर्ष में चालू सम्पत्तियों में वृद्धि होती है, तो शुद्ध कार्यशील पूँजी में भी वृद्धि होती है (If current assets increases, working capital increases)

2. यदि गत वर्ष की तुलना में चालू वर्ष में चालू सम्पत्तियों की धनराशि में कमी होती है, तो शुद्ध कार्यशील पूँजी भी घट जाती है (If current assets decreases, working capital decreases)।

3. यदि किसी चालू दायित्व में वृद्धि होती है तो कार्यशील पूँजी में कमी होती है (If current liabilities increases, working capital decreases)

4. यदि किसी चालू दायित्व में कमी होती है तो कार्यशील पूँजी में वृद्धि होती है (If current _ liabilities decreases, working capital increases)।

उपर्यक्त विवेचन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चाल सम्पत्तियों के साथ कार्यशील पूँजी का सीधा सम्बन्ध पाया जाता है तथा चालू दायित्वों के साथ कार्यशील पूँजी का विपरीत सम्बन्ध होता है।

चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों में शामिल किये जाने वाले मदों की विस्तृत विवेचना इसी अध्याय के प्रारम्भ में दी हुई है। कार्यशील पूँजी में परिवर्तनों की अनुसूची का प्रारूप निम्नवत् है

कोष-प्रवाह विवरण (Funds Flow Statement) _

कार्यशील पूँजी में परिवर्तनों की अनुसूची दो तिथियों के बीच कार्यशील पूँजी में हुए परिवर्तन को प्रदर्शित करती है जबकि कोष-प्रवाह विवरण उस परिवर्तन के कारणों को स्पष्ट करता है । इस विवरण के दो भाग होते हैं-कोषों के स्रोत (Sources of Funds) तथा कोषों के प्रयोग (Applications or Uses of Funds) | इन दोनो पक्षों के अन्तर की राशि शुद्ध कार्यशील पूंजी में परिवर्तन को प्रदर्शित करती है। जब कोषों के स्रोत पक्ष का योग कोषों के प्रयोग पक्ष से अधिक होता है, तो शुद्ध कार्यशील पूंजी में वृद्धि होती है। जब कोषों के स्रोत पक्ष का योग, कोषों के प्रयोग पक्ष की तुलना में कम होता है तो शुद्ध कार्यशील पूँजी में कमी होती है।

यह सदैव ध्यान रखें कि कोष-प्रवाह विवरण के स्रोतों तथा प्रयोगों के बीच उतना ही अन्तर होता है जितना कार्यशील पूँजी में परिवर्तन आ रहा हो।

कोष-प्रवाह विवरण में शुद्ध कार्यशील पूँजी को प्रभावित करने वाली मदें ही दिखलायी जाती हैं। जिन व्यावसायिक लेन-देनों से शुद्ध कार्यशील पूँजी बढ़ जाती है (जैसे-भवन का नकद विक्रय, अंशों या ऋणपत्रों का जनता में निर्गमन आदि) उन्हें ‘कोषों का प्रयोग’ कहते हैं। किन्तु यदि किसी लेन-देन से शुद्ध कार्यशील पूँजी में कोई परिवर्तन नहीं होता (जैसे-लेनदारों को भुगतान, ऋणपत्रों का अंशों में परिवर्तन, बोनस अंशों का निर्गमन, आदि) तो उसे कोष-प्रवाह विवरण में नहीं दिखलाया जाता। शुद्ध कार्यशील पूंजी में परिवर्तन केवल उन्हीं लेन-देनों द्वारा होते हैं जो एक ओर चालू सम्पत्ति/दायित्व को प्रभावित करते हैं एवं दूसरी ओर पूँजी, स्थायी सम्पत्ति/दायित्व को प्रभावित करते हैं। यह भी नियम ध्यान रखने योग्य है कि जो मदें कार्यशील पूँजी की अनुसूची में सम्मिलित कर ली जाती हैं (चालू सम्पत्तियाँ एवं चालू दायित्व) उन्हें कोष-प्रवाह विवरण में नहीं दिखलाया जाता है।

कोषों के स्रोत (Sources of Funds)-जिन लेन-देनों से कोषों का आगमन होता है. उन्हें ‘कोषों के स्रोत’ कहा जाता है । इनका विस्तृत विवरण निम्नांकित है

(i) अंश पूँजी में वृद्धि (Increase in share capital),

(ii) दीर्घकालीन ऋणों की प्राप्ति या वृद्धि (Receipts or increases of long-term loans),

(iv) स्थायी सम्पत्तियों का विक्रय (Sale of fixed assets),

(v) गैर-व्यापारिक प्राप्तियाँ (Non-trading receipts),

(vi) कार्यशील पूंजी में कमी (Decrease in working capital)।

कोषों के प्रयोग (Applications of funds)- कोष-प्रवाह विवरण बनाते समय कोषों के प्रयोग में। अग्रलिखित मदों को दर्शाते हैं

(i) व्यवसाय संचालन से प्राप्त हानि (Funds lost from business operations),

(ii) स्थायी सम्पत्तियों का क्रय (Purchases of fixed assets),

(iii) पर्वाधिकार अंशों/ऋणपत्रों/ऋणों का शोधन (Redemption of preferential shares/debc natures/loans),

(iv) लाभांश का भुगतान (Payment of dividend),

(v) गैर-व्यापारिक व्ययों का भुगतान (Payment of non-trading expenses),

(vi) कार्यशील पूँजी में वृद्धि (Increase in working capital) ।

(vii) चालू वर्ष में करों के लिए भुगतान (Payment for tax in current year)

कोषों के प्रवाह से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण मदों की विवेचना

1 व्यवसाय के संचालन से लाभ या हानि (Profit or loss from business operations or Funds from operations)-कोष प्राप्ति का यह सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। किसी व्यवसाय में होने वाली आय व्यावसायिक क्रियाओं एवं गैर-व्यावसायिक क्रियाओं दोनों से हो सकती है। व्यावसायिक कुशलता को। स्पष्ट करने के लिए कोष-प्रवाह विवरण में व्यावसायिक क्रियाओं से होने वाली आय (Funds or Profits from Business Operations) को ही दर्शाया जाता है। व्यावसायिक क्रियाओं में मुख्यतः माल के क्रय-विक्रय या प्रमुख व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाली आय को ही सम्मिलित किया जाता है. जबकि गैर-व्यावसायिक आय में विनियोगों से प्राप्त ब्याज या लाभांश, सम्पत्ति के विक्रय पर लाभ,मकान-सम्पत्ति से प्राप्त किराया, आकस्मिक आय, आदि को शामिल किया जाता है। लाभ-हानि खाते द्वारा प्रदर्शित लाभ-हानि को कोष-प्रवाह विवरण के लिए व्यवसाय संचालन का लाभ अथवा हानि नहीं माना जा सकता,क्योंकि लाभ-हानि खाते में बहुत-सी ऐसी मदें सम्मिलित होती हैं, जिनका व्यवसाय संचालन से कोई सम्बन्ध नहीं होता। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसी मदें भी सम्मिलित होती हैं जिनका कार्यशील पूंजी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः संचालन से कोष की गणना करते समय लाभ-हानि खाते द्वारा प्रदर्शित शुद्ध लाभ में कुछ समायोजन करने पड़ते हैं। संक्षेप में संचालन से कोष की गणना निम्नांकित दो प्रारूपों में की जा सकती है

(i) विवरण प्रारूप (Statement Form)- यदि चालू वर्ष के शुद्ध लाभ की रकम सम्बन्धी सूचना स्पष्ट रूप से दी गई है या लाभ-हानि खाते का सारांश दिया गया है, तो उस शुद्ध लाभ में गैर-नकद खर्च व गैर-संचालन आय व हानि के सम्बन्ध में निम्नलिखित समायोजन किया जाता है

chetansati

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