BCom 3rd Year Management Of Working Capital Study Material Notes in Hindi

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BCom 3rd Year Management Of  Working Capital Study Material Notes in Hindi

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BCom 3rd Year Management Of  Working Capital Study Material Notes in Hindi: Concepts of Working Capital  Kinds of Working Capital  Components of Working Capitals  Advantages of Adequate Working Capital Importance and Necessary of Workings Capitals  Factors Affecting Workings Capital. Sources of Workings Capital Management of Working Capital:

Management Of  Working Capital
Management Of Working Capital

BCom 3rd Year Management of Working Capital Examination Questions Study Material Notes in Hindi

कार्यशील पूँजी का प्रबन्ध

(MANAGEMENT OF WORKING CAPITAL)

प्रत्येक व्यवसाय के सफल संचालन हेतु दो प्रकार की पँजी की आवश्यकता होती है स्थायी पूंजी एवं अस्थायी पूँजी । व्यवसाय की स्थायी वित्तीय आवश्यकताओं की पर्ति के लिए जैसे-भूमि, भवन,संयन्त्र, आदि पर विनियोजित की जाने वाली पूंजी को स्थायी पूँजी तथा कच्चे माल के क्रय कर्मचारियों के वेतन, मजदूरी, दैनिक व्यय, आदि व्यवसाय की सामयिक आवश्यकताओं की पर्ति के लिए विनियोजित की जाने वाली पूजा को अस्थायी पूँजी कहते हैं । संक्षेप में,स्थायी सम्पत्तियों में विनियोजित पूँजी को स्थिर पूँजी (Fixed Capital) एवं चालू सम्पत्तियों में विनियोजित पूँजी को कार्यशील पूँजी या चक्रशील पूँजी या चल पूँजी (Working Capital, Circulating Capital or Current Capital) कहा जाता है। इस प्रकार कार्यशील पूजा व्यवसाय के दैनिक कार्यों के संचालन के लिए आवश्यक होती है। कार्यशील पँजी के कशल प्रबन्ध पर ही फर्म के कोषों की तरलता व सक्रियता निर्भर करती है । प्रस्तुत अध्याय में कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विवेचन किया गया है।

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कार्यशील पूँजी की अवधारणा

(Concept of Working Capital)

कार्यशील पूँजी को सही ढंग से समझने के लिए इसकी विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन व विश्लेषण आवश्यक है। कार्यशील पूँजी की प्रमुख अवधारणाएं निम्नांकित प्रकार हैं

(1) परिमाणात्मक अवधारणा (Quantitative Concept),

(2) गुणात्मक अवधारणा (Qualitative Concept)।

1 परिमाणात्मक अवधारणा (Quantitative Concept)-इसे प्रायः ‘सकल क अवधारणा’ (Gross Working Capital Concept) के नाम से जाना जाता है । इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक मीड (Meed), मैलोट (Mallot), फील्ड (Field), बेकर (Baker) तथा बोनविले (Bonneville), मिल (Mill), आदि हैं। इस अवधारणा के अनुसार सम्पूर्ण चालू सम्पत्तियों का योग ही कार्यशील पूँजी का प्रतिनिधित्व करता है। यह विचारधारा इस तथ्य पर आधारित है कि समस्त चालू सम्पत्तियाँ चाहे उनकी व्यवस्था दीर्घकालीन ऋणों या अंश पूँजी के आधार पर अथवा अल्पकालीन ऋणों व लेनदारों के आधार पर की जाये, सभी कार्यशील पूँजी के अन्तर्गत आयेंगी।

मीड मैलोट तथा फील्ड के अनुसार “कार्यशील पूँजी से तात्पर्य चालू सम्पत्तियों के योग से है।” __बोनविले के अनुसार, “कोषों की कोई भी प्राप्ति, जो सम्पत्तियों में वृद्धि करती है वह कार्यशील पूँजी में भी वृद्धि करती है, क्योंकि ये दोनों एक ही हैं।” । ____ स्पष्ट है कि बोनविले ने कार्यशील पूँजी तथा चालू सम्पत्तियों को एक ही अर्थ में प्रयोग किया है।

2. गुणात्मक अवधारणा (Qualitative Concept)-इसे प्रायः ‘शुद्ध कार्यशील पूँजी अवधारणा’ (Net Working Capital Concept) कहा जाता है। इस विचारधारा के समर्थकों में मुख्यत: लिंकन (Lincon).सेयर्स (Savors). स्टेवेन्स (Stavens), आदि को शामिल किया जाता है। इस अवधारणा अनुसार चालू सम्पत्तियों का चाल दायित्वों पर आधिक्य ही कार्यशील पूजी कहलाता है। यदि चाल सम्पत्तियों एव चाल दायित्वों की राशि एक-समान हो तो संस्था में कार्यशील पूंजी का अनुपस्थिति मानी जाती विपरात. यदि चाल सम्पत्तियों की तुलना में चालू दायित्वों की राशि अधिक है तो ऐसी स्थिति को of Working Capital कहा जाता है। इसे गुणात्मक अवधारणा इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अवधारणा संस्था को तरल स्थिति को प्रकट करती है तथा यह भी बतलाती है कि कार्यशील पूंजी का प्रसार तक स्थायी कोषों से किया जा सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गुणात्मक अवधारणा, कार्यशील पूंजी सकुंचित अर्थ प्रस्तुत करती है जबकि परिमाणात्मक अवधारणा उसे व्यापक अर्थ में प्रयोग करती है। वास्तव में दोनों ही अपनी-अपनी जगह पर ठीक हैं। एकाकी तथा साझेदारी जैसे व्यवसायों की दशा में गुणात्मक अवधारणा अधिक उपयुक्त लगती है, क्योंकि इनका स्वामित्व एवं प्रबन्ध उन्हीं व्यक्तियों के पास होता है, परन्तु कम्पनियों एवं अन्य बड़े व्यवसायों में जहां स्वामित्व एवं प्रबन्ध अलग-अलग होता है वहाँ परिमाणात्मक अवधारणा अधिक उपयक्त मानी जाती है. क्योंकि समस्त चाल सम्पत्तियों (चाहे अल्पकालीन साधनों से प्राप्त की गई हों या दीर्घकालीन साधनों से) व्यवसाय में प्रयोग होती हैं। इसी प्रकार व्यावसायिक दृष्टिकोण से परिमाणात्मक अवधारणा तथा लेखांकन दृष्टिकोण से गणात्मक अवधारणा अधिक उपयुक्त मानी जाती है।

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वित्तीय विश्लेषक भी कार्यशील पूँजी की गुणात्मक अवधारणा का ही अनुसरण करते हैं।

कार्यशील पूँजी के प्रकार

(Kinds of Working Capital)

कार्यशील पूँजी का निम्नलिखित दो आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है

  1. अवधारणा के आधार पर (On the basis of Concepts)
  2. आवश्यकताओं के आधार पर (On the basis of Necessities)

 

1 अवधारणा के आधार पर-अवधारणा के आधार पर कार्यशील पूँजी दो प्रकार की हो सकती है :

(अ) सकल कार्यशील पूंजी (Gross Working Capital)-सकल कार्यशील पूंजी का आशय सम्पूर्ण चालू सम्पत्तियों के योग से होता है।

(ब) शुद्ध कार्यशील पूँजी (Net Working Capital) चालू सम्पत्तियों के चालू दायित्वों पर आधिक्य की राशि को शुद्ध कार्यशील पूँजी के नाम से जाना जाता है। आधुनिक विद्वान कार्यशील पूँजी के सम्बन्ध में इसी अवधारणा का अनुसरण करते हैं।

2. आवश्यकता के आधार पर कार्यशील पूँजी का वर्गीकरण आवश्यकताओं के आधार पर कार्यशील पूँजी निम्नलिखित दो प्रकार की हो सकती है

(अ) स्थायी अथवा नियमित कार्यशील पूँजी (Fixed or Regular Working Capital)कार्यशील पूँजी की वह रकम जो व्यवसाय के सामान्य संचालन हेतु नियमित रूप से चालू सम्पत्तियों में विनियोजित रहती है, नियमित या स्थायी कार्यशील पूँजी कहलाती है जैसे, कच्ची सामग्री का न्यूनतम स्तर, निर्मित माल का न्यूनतम स्तर, न्यूनतम बैंक या रोकड़ शेष, आदि।

(ब) परिवर्तनशील या मौसमी कार्यशील पूँजी (Variable or Seasonal Working Capital)कार्यशील पूँजी की वह रकम जिसकी आवश्यकता व्यवसाय के किसी समय विशेष पर व्यापार की अधिकता या कच्चे माल की उपलब्धता के कारण होती है, परिवर्तनशील या मौसमी कार्यशील पूँजी कहलाती है; जैसे, चीनी उद्योग में गन्ने की फसल के समय ही वर्ष भर का गन्ना खरीद कर रखना होता है।

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कार्यशील पूँजी के संघटक

(Components of Working Capital)

कार्यशील पूँजी के निम्नलिखित दो संघटक हैं

1 .चालू सम्पत्तियाँ (Current Assets) चालू सम्पत्तियों का अभिप्राय ऐसी सम्पत्तियों से है जो अल्प अवधि के अन्तर्गत अधिकतम एक वर्ष के भीतर रोकड़ में परिवर्तित हो जाती है। चालू सम्पत्तियों में मुख्यतः निम्नलिखित सम्पत्तियों को शामिल किया जाता है

हस्तस्थ रोकड़ (Cash in hand), बैंक में रोकड़ (Cash at Bank), देनदार (Debtors), पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses), अल्पकालीन निक्षेप (Short-term Deposits), प्राप्य बिल (Bills | Receivable), पुस्तकीय ऋण (Book Debts), स्टॉक/स्कन्ध (Stock, Inventory or Merchandise), विक्रय योग्य प्रतिभूतियाँ (Marketable Securities)।

2. चालू दायित्व (Current Liabilities) चालू दायित्वों का आशय ऐसे दायित्वों से है जिनका भुगतान सामान्यतया 1 वर्ष के भीतर कर दिया जाता है। चालू दायित्वों में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है

– व्यापारिक लेनदार (Trade Creditors), बैंक अधिविकर्ष (Bank Overdraft), देय बिल (Bills Payable), कर के लिए प्रावधान या देय आय कर (Provision for Taxation or Income Tax Due), अदत्त व्यय (Outstanding Expenses), अल्पकालीन ऋण (Short-term Loans) आदि।

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कार्यशील पूँजी का महत्त्व एवं आवश्यकता

(Importance and Necessity of Working Capital)

कार्यशील पूंजी एक व्यवसाय का जीवनरक्त (life blood) एवं स्नाय केन्द्र (nerve centre) हाता है। जिस प्रकार जीवन को बनाये रखने के लिए मानवीय शरीर में रक्त का संचारण आवश्यक है, उसी प्रकार

माय के सचारू संचालन के लिए कार्यशील पूंजी अति आवश्यक होती है।

कैनडी एवं मैकमूलन के अनुसार, “कार्यशील पूँजी का अध्ययन आन्तरिक एवं बाह्य विश्लेषकों के लिए बहत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका व्यवसाय के दिन-प्रतिदिन के संचालन से बहत निकट का सम्बन्ध है। कार्यशील पूंजी को अपर्याप्तता या खराब प्रबन्ध व्यवसाय की असफलताओं का एक प्रमुख कारण है।”

(“A study of working capital is of major importance to internal and external analysis because of its close relationship to current day-to-day operations of business. Inadequacy or mismanagement is a leading cause of business failures.” –Kennedy and Mcmullen).

वास्तविकता यह है कि केवल स्थायी सम्पत्तियों के लिए पूँजी की व्यवस्था कर देने मात्र से ही व्यवसाय का संचालन नहीं किया जा सकता। व्यवसाय के सुचारू संचालन के लिए स्थिर सम्पत्तियों हेतु आवश्यक पूँजी के साथ-साथ चालू सम्पत्तियों के लिए भी आवश्यक पूँजी की व्यवस्था करना परमावश्यक है। कच्चा माल खरीदने, निर्माण प्रक्रिया द्वारा उसे निर्मित माल में परिवर्तित करने,माल को बेचने के लिए उसकी विक्रय व्यवस्था | करने, ग्राहकों को उधार माल देने के लिए, कर्मचारियों को वेतन एवं मजदूरी देने आदि के लिए भी कार्यशील | पूँजी की आवश्यकता होती है। संक्षेप में, कार्यशील पूँजी की आवश्यकता निम्नलिखित कार्यों के लिए पड़ती

1 कच्चा माल खरीदने के लिए अथवा माल की खरीद हेतु वित्त प्रदान करने के लिए;

2. कच्चे माल को निर्मित माल में परिवर्तित करने तक की सम्पूर्ण निर्माणी प्रक्रियाओं के लिए वित्त प्रदान करने हेतु;

3. कार्यालय व्ययों की दैनिक आपूर्ति के लिए;

4. विक्रय व्यवस्था एवं माल के उधार विक्रय हेतु वित्त प्रदान करने के लिए।

कार्यशील पूँजी की आवश्यकता किसी भी व्यवसाय को इसलिए होती है क्योंकि उपरोक्त मदों पर व्यय तत्काल किया जाता है तथा माल को तैयार करके ग्राहकों को उधार देना होता है, परन्तु उसकी वसूली कुछ समय पश्चात् होती है । व्यय एवं आय की प्राप्तियों में होने वाले इस अन्तराल के कारण ही संस्था को कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।

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पर्याप्त कार्यशील पूँजी के लाभ

(Advantages of Adequate Working Capital)

कार्यशील पँजी की आवश्यकताओं का सही एवं उचित अनुमान लगाया जाना आवश्यक है. ताकि कार्य प्रारम्भ करने के बाद कम्पनी के पास सदैव अपने अल्पकालीन दायित्वों का भुगतान करने के लिए पर्याप्त नकद राशि एवं तरल सम्पत्तियाँ रहें और आकस्मिक माँग होने पर संस्था ऐसी स्थिति में हो कि वह सरलता एवं शीघ्रता से अल्पकालीन ऋण लेकर समय पर अपने वचनों को पूरा कर सके। अत: कार्यशील पूँजी अपर्याप्त नहीं होनी चाहिए। कार्यशील पूँजी आवश्यकता से अधिक भी नहीं होनी चाहिए, विशेषकर नकद एवं विक्रय योग्य प्रतिभूतियों के रूप में क्योंकि यह भी व्यवसाय के लिए उतनी ही नुकसानदायक है जितनी कि अपर्याप्त कार्यशील पूँजी । कोषों की अधिकता के कारण उनका उपयोग कुशलतापूर्वक नहीं किया जायेगा और व्यवसाय म कोष फालतू रहेंगे जबकि उनकी लागत का भुगतान तो व्यवसाय को करना ही पड़ेगा। वास्तव में आवश्यकता से अधिक कार्यशील पूँजी की उपलब्धि, लागत के बारे में लापरवाही को बढ़ावा देती है और क्रियाओं के संचालन में अकुशलता में वृद्धि होती है। वस्तुत: पर्याप्त कार्यशील पूंजी की आवश्यकता के बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती। जिस प्रकार मनष्य के जिन्दा रहने के लिए भोजन आवश्यक है उसी प्रकार कार्यशील पूंजी व्यवसाय के लिए, लेकिन इसका ज्यादा होना भी उतना ही खतरनाक है जितना कि कम होना। एक व्यवसाय में कार्यशील पूँजी की पर्याप्त राशि बनाये रखने के मुख्य लाभ अग्रलिखित प्रकार है

1 विक्रेताओं को तत्काल भुगतान (Prompt Payment to Sellers) पर्याप्त कार्यशील पल सस्था अपने विक्रेताओं को तत्काल भगतान कर सकती है। इससे उसे नियमित रूप से कच्चा माल प्रार न में कोई कठिनाई नहीं होती और उत्पादन कार्य निर्विघ्न रूप से जारी रखा जा सकता है।

2. नकद छूट का लाभ (Benefit of Cash Discount)-आधुनिक समय में प्रायः प्रत्येक व्यवसायी बच गये माल का नकद भगतान प्राप्त करना चाहता है जिसके लिए वे नकद छूट का प्रावधान रखते हैं। अब जिन संस्थाओं के पास पर्याप्त कार्यशील पूँजी होती है, वे नकद छूट का लाभ उठा सकते हैं।

3.साख एवं ऋण क्षमता में वृद्धि (Increase in Goodwill and Debt Capacity)-पर्याप्त कार्यशील पूंजी न केवल किसी संस्था की सदढ वित्तीय स्थिति की परिचायक होती है वरन अच्छी शोधत क्षमता का भी प्रतीक होती है। इस प्रकार पर्याप्त कार्यशील पूँजी से संस्था को सुदृढ़ वित्तीय स्थिति एवं उन शोधन क्षमता वाला माना जाता है जिसके परिणामस्वरूप उक्त संस्था की ऋण क्षमता में वृद्धि होती है।

4. ऋण-प्राप्ति में सविधा (Easy Loans)-पर्याप्त कार्यशील पूंजी, उच्च शोधन क्षमता एवं अच्छी साख स्थिति वाले प्रतिष्ठान बैंकों एवं अन्य संस्थाओं से सरल व अनुकूल शर्तों पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं।

5. पर्याप्त लाभांश वितरण (Distribution of Adequate Dividend) कार्यशील पूंजी की कमी वाली संस्थाओं में लाभों का पनर्विनियोग करके कार्यशील पूंजी में वृद्धि की जाती है ताकि कार्यशील पँजी की कमी न रहे। ऐसा करने से पर्याप्त लाभ अर्जित करने की स्थिति में भी आकर्षक लाभांश का वितरण नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत, यदि संस्था के पास पर्याप्त कार्यशील पूँजी हो तो याप्त लाभ अर्जित करने की स्थिति में आकर्षक लाभांश का वितरण करके अंशधारियों को सन्तुष्ट किया जा सकता है। अंशधारियों के सन्तुष्ट रहने से जनसाधारण के बीच में संस्था की छवि अच्छी रहती है एवं बाजार में संस्था की प्रतिभतियों का मूल्य भी स्थिर रहता है।

6. कार्यकशलता में वृद्धि (Improvement in Efficiency)-एक कम्पनी जिसके पास पर्याप्त कार्यशील पूँजी होती है, न केवल अपने कर्मचारियों एवं श्रमिकों को उचित समय पर वेतन व मजदूरी का भुगतान कर सकती है वरन् दिन-प्रतिदिन के अन्य व्ययों का भी नियमित रूप से भुगतान कर सकती है। इससे कर्मचारियों के उत्साह में वृद्धि होती है, उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है, क्षय व लागतें घटती हैं और संस्था का उत्पादन व लाभ बढ़ता है।

7. अनुकूल अवसरों का लाभ (Benefit of Favourable Opportunities)-व्यवसाय में अनेक ऐसे अवसर आते रहते हैं जबकि कोई संस्था उस अवसर का लाभ उठाकर पर्याप्त धन अर्जित कर सकती है। उदाहरणार्थ-अचानक माल की आपूर्ति का बड़ा आदेश प्राप्त हो जाना, कच्चे माल के मूल्य में वृद्धि की पाभावना आदि। ऐसे अनुकूल अवसरों का लाभ कोई संस्था तभी उठा सकती है जब उसके पास पर्याप्त कार्यशील पूँजी हो।

8. आकस्मिक परिस्थितियों का सामना (Unexpected Contingencies)-पर्याप्त कार्यशील पूंजी होने की दशा में संस्था छोटे-मोटे आकस्मिक आर्थिक या व्यापारिक संकटों का सफलतापूर्वक सामना कर सकती है। उदाहरणार्थ-मन्दीकाल की दशा में कार्यशील पूँजी की अधिक आवश्यकता पड़ती है क्योंकि माल कम बिकता है और उसे अनुकूल समय आने तक संग्रहित करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त बेचे गये माल का भगतान भी विलम्ब से प्राप्त होता है। इस प्रकार कठिन प्रतिस्पर्धा, हडताल एवं तालाबन्दी की आकस्मिक विपरीत परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है। इन परिस्थितियों का सामना तभी किया जा सकता है जब कम्पनी के पास पर्याप्त कार्यशील पूँजी हो।

9 स्थायी सम्पत्तियों की उत्पादकता में वृद्धि (Improvement in Productivity of Fixed Assets)-पर्याप्त कार्यशील पूंजी, स्थायी सम्पत्तियों की उत्पादकता में भी वृद्धि करती है। उदाहरणार्थ-यदि कच्चा माल,श्रमिक आदि पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हों तो मशीनें पूर्णक्षमता पर कार्य नहीं कर पायेंगी वस्तुतः पर्याप्त कार्यशील पूंजी के अभाव में स्थायी सम्पत्तियों की वही स्थिति होती है जो स्थिति बिना कारतूस के बन्दूक की होती है।

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अत्यधिक एवं अपर्याप्त कार्यशील पूँजी

(Excess or Inadequate Working Capital)

किसी भी व्यावसायिक संस्था के कुशलतापूर्वक संचालन हेतु पर्याप्त कार्यशील पूँजी का होना परमावश्यक है अर्थात विनियोजित कार्यशील पूंजी की रकम न तो आवश्यकता से अधिक होनी चाहिए और न ही आवश्यकतासे कम होनी चाहिए। आवश्यकता से अधिक कार्यशील पँजी विनियोजित होने पर उसे ‘अत्यधिक कार्यशील पूजा की स्थिति कहा जाता है एवं आवश्यकता से कम कार्यशील पूँजी विनियोजित होने पर उसे अपयाप्त कार्यशील पूँजी की स्थिति पूँजी का स्थिति कहा जाता है। वस्तुतः आवश्यकता से अधिक पँजी का आशय निष्क्रिय कोषों से हजो सस्था के लिए कोई लाभ अर्जित नहीं करते । दूसरी ओर आवश्यकता से कम पूँजी संस्था की लाभदायकता का ता क्षात पहचाती ही है. इसके साथ-साथ उत्पादन में व्यवधान तथा अकुशलता का भा बढ़ावा दता कावशाल पूजा का अधिकता या कमी दोनों ही स्थितियाँ संस्था के लिए अच्छी नहीं होता हा वास्तावकता यह है कि ये दोनों परिस्थितियाँ व्यवसाय को उसी प्रकार पीडित करती हैं जिस प्रकार मानव शरीर में उच्च रक्तचाप एवं निम्न रक्तचाप । फिर भी दोनों स्थितियों के तुलनात्मक दृष्टिकोण से व्यवसाय के सम्बन्ध में अपर्याप्त कार्यशील पूँजी की स्थिति, अत्यधिक कार्यशील पूँजी की स्थिति से अधिक खतरनाक होती है। अत्यधिक एवं अपर्याप्त कार्यशील पूँजी दोनों स्थितियों के प्रमुख दोषों की विवेचना नीचे की गई है

अत्यधिक कार्यशील पँजी के दोष (Disadvantages of Redundant or Excessive Working Capital) –

1 अनावश्यक स्कन्ध का संग्रह-आवश्यक पूँजी से अधिक कार्यशील पूँजी होने पर सामग्री का अनावश्यक क्रय एवं स्कन्ध का संग्रहण होता है। परिणामस्वरूप सामग्री के क्षय, चोरी तथा अन्य हानियों में वृद्धि की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं।

2. दोषपूर्ण साख नीति-अत्यधिक कार्यशील पूंजी के परिणामस्वरूप संस्था की साख नीति दोषपूर्ण हो जाती है क्योंकि अत्यधिक कार्यशील पूँजी की वजह से संस्था देनदारों से की जाने वाली वसूली के प्रति लापरवाह हो जाती है जिससे न केवल देनदारों की रकम में वद्धि होती चली जाती है वरन अशोध्य ऋण की सम्भावना भी बढ़ जाती है।

3. प्रबन्धकीय अकुशलता अत्यधिक कार्यशील पूँजी प्रबन्धकीय अकुशलता की परिचायक भी मानी जाती है क्योंकि आवश्यकता से अधिक कार्यशील पूँजी की विद्यमानता का सीधा सा अर्थ यह है कि प्रबन्ध, उपलब्ध कोर्षों का पूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहा है।

4. अंशधारियों में असंतोष-अत्यधिक कार्यशील पूँजी से जहाँ लाभांश दर घटती है.वहीं अंशों के मूल्य भी घटने लगते हैं। परिणामस्वरूप अंशधारियों में असन्तोष उत्पन्न होने लगता है।

5 सट्टात्मक लाभों की प्रवृत्ति को बढ़ावा अत्यधिक कार्यशील पूंजी स्टॉक संग्रहण द्वारा सट्टात्मक लाभों की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।

6 ऋण मिलने में कठिनाई अत्यधिक कार्यशील पूँजी होने से बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थानों के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं हो सकते क्योंकि ये संस्थाएं अत्यधिक कार्यशील पूँजी वाले व्यावसायिक उपक्रमों को ऋण प्रदान करने में संकोच करती हैं।

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अपर्याप्त कार्यशील पूँजी के दोष (Disadvantages of Inadequate Working Capital)__

1. अपर्याप्त कार्यशील पूँजी की स्थिति में संस्था अपने अल्पकालीन दायित्वों का भुगतान सही समय पर नहीं कर पाती है जिससे संस्था की ख्याति (प्रतिष्ठा) प्रभावित होती है। __

2 अपर्याप्त कार्यशील पूँजी की स्थिति में संस्था प्रचुर मात्रा में क्रय तथा नकद छूट की सुविधा आदि का लाभ नहीं उठा सकती है। __

3 कार्यशील पूँजी की कमी के कारण संस्था अपने संचालन व्ययों (Operating Expenses) का भी समय पर भुगतान नहीं कर पाती है।

4.अपर्याप्त कार्यशील पूँजी की स्थिति में स्थायी सम्पत्तियों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना भी असम्भव हो जाता है।

5 कार्यशील पूँजी में कमी के परिणामस्वरूप प्रत्याय दर भी गिरने लगती है।

6. कार्यशील पूँजी की कमी के कारण कभी-कभी लाभप्रद परियोजनाएं भी संस्था के हाथ से निकल जाती हैं।

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कार्यशील पूँजी को निर्धारित करने वाले घटक

(Factors Affecting Working Capital)

कार्यशील पूंजी की व्यवसाय में कितनी आवश्यकता होगी अर्थात् किसी समय विशेष के लिए कार्यशील पूँजी की कितनी राशि का प्रबन्ध किया जाए, इसके लिए कोई एक ऐसा सामान्य मापदण्ड नहीं है जिसे सभी।

संस्थाओं द्वारा अपनाया जा सके। कार्यशील पँजी की यह मात्रा प्रत्येक व्यवसाय में अनेक घटकों द्वारा प्रभावित होती है एवं प्रत्येक घटक का अलग-अलग महत्त्व होता है। कार्यशील पूंजी कितनी हो, इस बात को निर्धारित करने वाले प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

1 व्यवसाय की प्रकृति (Nature of Business) कार्यशील पूँजी की मात्रा को निर्धारित करने वाले घटकों में व्यवसाय की प्रकृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिन व्यवसायों द्वारा उत्पादित माल या सेवा की पर अधिक होती है, उन व्यवसायों में अपेक्षाकत कम कार्यशील पूँजी से कार्य चल जाता है ; जैसे, रेलवे कम्पनि परिवहन संस्थाओं, विद्युत् कम्पनियों, आदि में निरन्तर रोकड़ अन्तर्वाह (Cash Inflows) होते रहते हैं, अतः इनको कम कार्यशील पूँजी की आवश्यकता पड़ती है। इसके विपरीत, विलासिता की वस्तुएं उत्पन्न करने वाली संस्थाओं या क्रय-विक्रय में संलग्न व्यापारिक संस्थाओं में अपेक्षाकृत अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है क्योंकि पूँजी का महत्त्वपूर्ण भाग माल का स्टॉक रखने और माल उधार देने में प्रयोग हो जाता है।

2 व्यवसाय का आकार (Size of Business)-व्यवसाय के आकार का भी कार्यशील पूंजी की मात्रा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। छोटे आकार के व्यवसायों में कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है जबकि बड़े आकार के व्यवसायों के लिए अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता पड़ती है।

3 उत्पादन प्रक्रिया की अवधि (Period of Production Process)-जिन व्यवसायों में उत्पादन प्रक्रिया लम्बी होती है, उनमें कच्चा माल, श्रम, आदि काफी लम्बी अवधि के लिए उत्पादन कार्य में संलग्न रहता है जिससे निर्मित माल को रोकड़ में बदलने में काफी समय लग जाता है, अत: ऐसी संस्थाओं को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए काफी अधिक कार्यशील पूँजी रखनी पड़ती है। इसके विपरीत, ऐसे उद्योगों में जिनमें उत्पादन प्रक्रिया में कम समय लगता है, निर्मित वस्तु के रोकड़ में परिवर्तन का कार्य जल्दी-जल्दी होता है जिसके कारण अपेक्षाकृत कम कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।

4 परिचालन चक्र की अवधि (Period of Operating Cycle)-परिचालन चक्र अवधि वह समय है जो सामग्री प्राप्ति, निर्मित माल में रूपान्तरण, विक्रय एवं देनदारों से वसूली, आदि क्रियाओं में लगता है। इस परिचालन चक्र की गति जितनी तीव्र होगी, कार्यशील पूँजी की आवश्यकता उतनी ही कम होगी। इस चक्र की गति में कहीं भी अवरोध उत्पन्न हो जाने पर व्यवसाय में रोकड़ अन्तर्वाह कम होने लगता है और ऐसी दशा में दायित्वों का भुगतान करने के लिए अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता पड़ती है।

5 क्रय-विक्रय की शर्ते (Terms of Purchase and Sale)-उधार अथवा नकद क्रय-विक्रय की प्रकृति एवं इनकी शर्ते भी कार्यशील पूँजी की मात्रा को प्रभावित करती हैं। यदि क्रय-विक्रय की शर्तों में समानता है तो कम कार्यशील पूँजी से भी व्यवसाय का संचालन किया जा सकता है,क्योंकि उधार क्रय का भुगतान उधार विक्रय की नियमित वसूली से होता रहेगा। यदि कोई संस्था कच्ची सामग्री का क्रय तो नकदी में करती है परन्तु अपने ग्राहकों को उधार माल बेचती है तो अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत.यदि संस्था कच्ची सामग्री तो उधार क्रय करती है परन्तु भाल का विक्रय नकद करती है तो ऐसी दशा में कम कार्यशील पूँजी से काम चल सकता है। यह भी ध्यान देने योग्य है | समस्त वार्षिक आवश्यकता को फसल के समय ही खरीदकर स्टॉक में रखना पड़ता है तो अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत, यदि कच्चा माल वर्ष के दौरान विभिन्न किस्तों में खरीदा जाता है तो कम कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी।

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6 व्यवसाय की मौसमी प्रकृति (Seasonal Nature of Business)-ऐसे उद्योग जिनमें उत्पादित वस्तओं की माँग किसी मौसम विशेष में ही होती है अथवा उत्पादन एक विशेष मौसम में ही किया जाता है उनकी कार्यशील पूँजी की आवश्यकता मौसम परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है। इनमें कुछ उद्योग तो ऐसे होते हैं, जिनके निर्मित माल की माँग वर्ष-पर्यन्त रहती है परन्तु उत्पादन विशेष मौसम में ही होता है. जैसे- भारत में चीनी उद्योग । ऐसे उद्योगों में उत्पादन के मौसम में अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, कुछ उद्योग ऐसे भी होते हैं जिनका उत्पादन तो वर्ष-पर्यन्त चलता है परन्तु उत्पादित माल की माँग विशेष मौसम में ही होती है, जैसे, ऊनी वस्त्र उद्योग। ऐसे उद्योगों में माल की माँग न होने वाले महीनों में अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होगी, क्योंकि निर्मित माल के स्टॉक में पूँजी अवरुद्ध हो जाती है तथा बिक्री न होने के कारण रोकड़-प्रवाह नहीं होगा। कुछ उद्योग ऐसे भी होते हैं जिनमें उत्पादन तथा । माल की माँग दोनों ही एक विशेष मौसम में होते हैं, जैसे, शीतल पेय, शरबत, आदि । ऐसे उद्योगों में मौसम विशेष में ही कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी तथा वर्ष के शेष महीनों में कोई आवश्यकता नहीं होगी। इस प्रकार व्यवसाय की मौसमी प्रकृति कार्यशील पूंजी की मात्रा को प्रभावित करती है।

7 व्यापार चक्र (Trade Cycles) व्यापार चक्र भी कार्यशील पूंजी की मात्रा को प्रभावित करते है। सामान्य व्यापार की दशा में कम कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है, परन्त तेजी से मन्दीकाल में प्राय: अधिक कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है। तेजी के दिनों में मूल्यों में वृद्धि के साथ-साथ वस्तु की मांग में भी वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में भावी मूल्य वृद्धि की सम्भावना के कारण कच्चे तथा निर्मित माल का पर्याप्त भण्डार रखना पड़ता है जिसके लिए अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, मन्दी के समय माँग कम होने के कारण बिक्री की मात्रा कम हो जाती है तथा उधार बिक्री की वसूली भी शीघ्र नहीं हो पाती, जबकि उत्पादन के सभी व्यय नियमित रूप से होते रहते हैं। ऐसी दशा में आर्थिक स्थिति की सुदृढ़ता के लिए अतिरिक्त कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।

8 बैंकिंग सम्बन्ध (Banking Relations)-ऐसी संस्थाएं जिनके बैंकों के साथ अच्छे सम्बन्ध होते हैं अर्थात् बैंकों की दृष्टि में जिन संस्थाओं की अच्छी साख होती है, वे संस्थाएं आवश्यकता पड़ने पर वांछित वित्त की शीघ्र व्यवस्था कर सकती हैं। अतः ऐसी संस्थाएं अपना कार्य कम कार्यशील पूँजी से चला सकती हैं।

9 व्यवसाय के विकास की दर (Growth Rate of Business)-विद्यमान व्यवसायों के सम्बन्ध में व्यापार के विकास की गति का भी कार्यशील पूँजी की मात्रा पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि व्यापार के विकास की दर धीमी है तो कम कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी जिसकी व्यवस्था भी लाभों के पुनर्विनियोजन द्वारा की जा सकती है, परन्तु यदि व्यापार का विस्तार बड़े पैमाने पर किया जाना है तो उसके लिए स्थायी सम्पत्तियों के साथ-साथ चालू सम्पत्तियों के लिए भी पर्याप्त धन की आवश्यकता होगी जिसके लिए पर्याप्त कार्यशील पूँजी की व्यवस्था करनी पड़ेगी। इस प्रकार यदि विकास की दर काफी तेज हो तो अधिक कार्यशील पूंजी की व्यवस्था, मध्यकालीन व दीर्घकालीन ऋणों से की जाती है।

10. अन्य घटक (Other Factors)-उपर्युक्त घटकों के अतिरिक्त किसी संस्था की कार्यशील पूँजी,कुछ अन्य घटकों से भी प्रभावित होती है; जैसे-उपक्रम की उत्पादन एवं वितरण नीतियों में समन्वय, परिवहन एवं संचार साधनों की व्यवस्था, सरकारी नीतियां,आदि । इसके अतिरिक्त कार्यशील पूंजी के तीन घटक-रोकड़, प्राप्यविपत्र तथा स्कन्ध को प्रभावित करने वाले घटक भी कार्यशील पूंजी की मात्रा को प्रभावित करेंगे।

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कार्यशील पूँजी के स्रोत

(Sources of Working Capital)

कोई भी संस्था सामान्यतया निम्नलिखित दो स्रोतों से कार्यशील पूँजी प्राप्त कर सकती है(I) दीर्घकालीन स्रोत (Long-term Sources), तथा

(II) अल्पकालीन स्रोत (Short-term Sources)।

(I) दीर्घकालीन स्रोत (Long-term Sources)

कार्यशील पूँजी प्राप्त करने के लिए दीर्घकालीन स्रोतों को मुख्यतः अग्रलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है__(अ) स्वामीगत स्रोत (Owned Sources)-स्वामीगत स्रोतों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है

(1) अंश निर्गमन (Issue of Shares)-अंश निर्गमन के माध्यम से प्राप्त कार्यशील पूँजी से व्यवसाय की आय पर कोई स्थायी भार उत्पन्न नहीं होता है, अतः स्थायी कार्यशील पूँजी की पूर्ति हेतु अंश निर्गमन के माध्यम से ही कोष प्राप्त करना उपयुक्त रहता है।

(2) प्रतिधारित अर्जने (Retained Earnings)–कार्यशील पूंजी की पूर्ति संस्थाओं में लाभों का पुनर्विनियोजन करके भी की जा सकती है। व्यवसाय द्वारा अर्जित लाभ कार्यशील पूँजी का एक नियमित एवं लागत रहित स्रोत होता है।

(3) संचित कोष (Reserves)-प्रतिधारित अर्जनों की भाँति कार्यशील पूँजी की पूर्ति हेतु संचित कोषों का प्रयोग भी लागत रहित स्रोत होता है ।

(ब) ऋणगत स्रोत (Borrowed Sources) ऋणगत स्रोतों में मुख्यतः अग्रांकित स्रोतों को शामिल किया जा सकता है

(1) ऋणपत्र (Debentures)-एक कम्पनी ऋणपत्र निर्गमित करके भी कार्यशील पूंजी प्राप्त कर सकता है, परन्तु इनके निर्गमन से कम्पनी की आय पर ब्याज का स्थायी भार उत्पन्न हो जाता है। अतः स्रोत का प्रयोग व्यवसाय में आय की स्थिरता, व्यवसाय की प्रगति, जोखिम की मात्रा, आदि तत्वों को ध्यान में रखते हुए ही करना चाहिए।

2) दीर्घकालीन ऋण (Long-term Debts) कार्यशील पूँजी की पूर्ति हेतु दीर्घकालीन ऋणों को। भी प्राप्त किया जा सकता है।

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अल्पकालीन स्त्रोत (Short-term Sources)

कार्यशील पूँजी प्राप्त करने के अल्पकालीन स्रोतों को मुख्यतः निम्नलिखित दो भागों में विभक्त किया जा सकता है__ (अ) आन्तरिक स्रोत (Internal Sources)-अल्पकालीन आन्तरिक स्रोतों में मुख्यतः निम्नलिखित । को शामिल किया जाता है :

(1) ह्रास कोष (Depreciation Funds)-जब तक ह्रास कोषों का प्रयोग स्थायी सम्पत्ति खरीदने । में नहीं किया जाता है तब तक यह संस्था को कार्यशील पूँजी प्रदान करते हैं।

(2) अदत्त भुगतान (Outstanding Payments)-अदत्त व्ययों का भुगतान स्थिति विवरण की तिथि के पश्चात् किया जाता है। अतः भुगतान किये जाने तक अदत्त भुगतान कार्यशील पूँजी के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।

– (3) करों के लिए प्रावधान (Provision for Taxation)-करों के लिए प्रावधान की रकम को कर चुकाने में प्रयोग किये जाने तक कार्यशील पूँजी के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

(ब) बाह्य स्रोत (External Sources) कार्यशील पूँजी प्राप्त करने के अल्पकालीन बाह्य स्रोतों में मुख्यतः निम्नलिखित को शामिल किया जाता है

(1) व्यापारिक साख (Trade Credit)-माल का उधार क्रय अल्पकालीन कार्यशील पँजी प्राप्त करने का प्रमुख बाह्य स्रोत माना जाता है।

(2) बैंक साख (Bank Credit)-बैंक अधिविकर्ष,नकद साख,बिलों की पुनर्कटौती तथा अल्पकालीन ऋणों की सुविधा प्राप्त करके भी कोई संस्था अल्पकालीन कार्यशील पूँजी प्राप्त कर सकती है।

(3) वित्त संस्थाओं से अल्पकालीन ऋणों की प्राप्ति (Short-term Loans from Financial Institutions) विभिन्न वित्तीय संस्थाओं से अल्पकालीन ऋण प्राप्त करके भी अल्पकालीन कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है।

(4) जन-निक्षेप (Public Deposits)-जनता से अल्पकालीन निक्षेप प्राप्त करके भी अल्पकालीन कार्यशील पूंजी प्राप्त की जा सकती है।

(5) ग्राहकों से अग्रिम (Advance from Customers)-ग्राहकों से प्राप्त अग्रिम भुगतान भी अल्पकालीन कार्यशील पूंजी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है।

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कार्यशील पूँजी का परिचालन चक्र

(Operating Cycle of Working Capital)

प्रत्येक व्यावसायिक संस्था में प्रारम्भ में कार्यशील पूँजी नकद या रोकड़ के रूप में ही होती है। इस नकद राशि से कच्चा माल खरीदा जाता है । उत्पादन प्रक्रिया द्वारा कच्चे माल को निर्मित माल में परिवर्तित किया जाता है। इस निर्मित माल का जब उधार विक्रय किया जाता है तो यह देनदारों अथवा प्राप्य विपत्रों के रूप में परिवर्तित हो जाता है। कुछ समय उपरान्त देनदारों अथवा प्राप्य विपत्रों से राशि वसूल होने पर नकद धन प्राप्त हो जाता है जिससे पुनः कच्ची सामग्री का क्रय किया जाता है। इस प्रकार नकदी से कच्चा। माल – निर्मित माल→ विक्रय- देनदार-प्राप्य विपत्र तथा पुनः नकदी में परिवर्तित होने वाली कार्यशील पूंजी। के इस चक्र को ही कार्यशील पूँजी का परिचालन चक्र कहते हैं। इस चक्र के दौरान कार्यशील पूँजी का एक स्वरूप से दूसरे स्वरूप में परिवर्तन होता रहता है । इस चक्र को अग्रांकित चित्र की सहायता से सरलतापूवर्क समझा जा सकता है

कार्यशील पूँजी का एक परिचालन चक्र कितनी अवधि मे पूरा होगा, इसकी गणना परिचालन की विभिन्न अवस्थाओं अर्थात् सामग्री प्राप्ति से लेकर देनदारों से विक्रय राशि की वसूली की समाप्ति तक की अवधि में सामग्री पूर्तिकर्ताओं द्वारा स्वीकृत दिनों का समायोजन करके की जाती है। संक्षेप में परिचालन चक्र की अवधि की गणना कच्ची सामग्री के भण्डार में रहने की अवधि, उत्पादन प्रक्रिया में लगने वाली अवधि, निर्मित माल के स्टॉक में रहने की अवधि तथा देनदारों से धन वसूली में लगने वाली अवधि के योग में से लेनदारों को भुगतान देने की अवधि को घटाकर की जाती है।

उदाहरणार्थ, यदि किसी व्यवसाय में कच्ची सामग्री की भण्डारण की अवधि 24 दिन, उत्पादन प्रक्रिया में लगने वाला समय 25 दिन, निर्मित माल के स्टॉक में रहने की अवधि 23 दिन तथा देनदारों से वसूली में लगने वाला समय 15 दिन तथा उधार क्रय किये गए माल का भुगतान लेनदारों को 14 दिन में करना हो तो कार्यशील पूंजी के परिचालन चक्र की अवधि 24 + 25 + 23 + 15 – 14 = 73 दिन होगी। दूसरे शब्दों में,वर्ष भर (365 दिनों में) कार्यशील पूँजी के 365 73 = 5 परिचालन चक्र पूर्ण होंगे। यदि व्यवसाय में पूरे वर्ष में 5 लाख रुपये के परिचालन व्यय का अनुमान हो तो 5,00,000 + 5 = 1,00,000 रुपये की कार्यशील पूँजी से पूरे वर्ष की आवश्यकता पूरी की जा सकती है। परिचालन चक्र की अवधि जितनी कम होगी कुल परिचालन चक्र उतना ही तीव्र होगा।

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कार्यशील पूँजी का विश्लेषण

(Analysis of Working Capital)

व्यवसाय में कार्यशील पूँजी न तो इतनी अधिक होनी चाहिए कि वह बेकार पड़ी रहे तथा उसका कोई उपयोग ही न हो पाए और न ही इतनी कम हो कि व्यवसाय के दैनिक क्रियाकलाप ही अवरूद्ध हो जायें। स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यवसाय के सुसंचालन हेतु कार्यशील पूँजी का विश्लेषण अत्यन्त आवश्यक है। वस्तुतः कार्यशील पूँजी की आवश्यकता एवं उसकी मात्रा में सन्तुलन रहना चाहिए। कार्यशील पूंजी के विश्लेषण से यह भी पता चल जाता है कि संस्था में कार्यशील पूंजी का प्रयोग प्रभावी ढंग से किया गया है या नहीं। कार्यशील पूँजी के विश्लेषण की प्रमुख विधियां निम्नांकित प्रकार हैं

  1. कोष-प्रवाह विवरण (Funds-Flow Statement)
  2. अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis)
  3. कार्यशील पूँजी का बजट (Working Capital Budget) |

कार्यशील पूँजी का प्रबन्ध

(Management of Working Capital)

संकुचित अर्थ में कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध का आशय है, उसकी चालू सम्पत्तियों की सुव्यवस्था करना। इन सम्पत्तियों के विनियोग-स्तर तथा इनके कुशल प्रबन्ध पर ही फर्म के धन-कोषों की तरलता व सक्रियता निर्भर करती है। व्यापक अर्थ में कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध में चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों दोनों के प्रबन्ध से सम्बन्धित सभी पहलू शामिल होते हैं।

कोल्ब तथा डेमोंग के अनुसार, “कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध में चालू सम्पत्तियों का प्रशासन एवं नियन्त्रण, चालू दायित्वों के माध्यम से अल्पकालीन वित्त साधनों का उपयोग तथा शुद्ध कार्यशील पूँजी की राशि (मात्रा) को नियन्त्रित करना, सम्मिलित होता है।”

Working Capital management encompasses the administration and control of current assets, use of short-term financing and various current liability sources, and- control of amount of net working capital.”       Kolb and Demong

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कार्यशील पूंजी के प्रबन्ध में निहित समस्याएं

(Problems involved in the Management of Working Capital)

कार्यशील पूंजी के प्रबन्ध में मुख्यतः निम्नांकित समस्याओं पर विचार किया जाता है

1. कार्यशील पूंजी की आवश्यकता के बारे में पूर्वानुमान लगाना।

2. विभिन्न चालू सम्पत्तियों में विनियोजित की जाने वाली कार्यशील पूंजी की मात्रा का अनुकूलतम-स्तर निर्धारित करना।

3. अल्पकालीन वित्त अर्थात् कार्यशील पूँजी के उपयुक्त स्रोतों का चयन करना ।

4 .कार्यशील पूँजी का विश्लेषण करना ।

कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध के उपयुक्त सभी अवयव (Components) अपने आप में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। वस्तुतः कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध के मुख्यतः निम्नांकित दो उद्देश्य होते हैं

(अ) कार्यशील पूँजी का अनुरक्षण, तथा ।

(ब) पर्याप्त कार्यशील धन-कोषों की समय पर उपलब्धि।

कार्यशील पूँजी का अनुमान लगाने की विधियां

(Methods of Estimating Working Capital)

किसी व्यावसायिक संस्था में व्यावसायिक क्रियाओं के किसी विशेष-स्तर हेतु कार्यशील पूँजी की मात्रा का निर्धारण करना वित्तीय प्रबन्धकों के लिए एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परन्तु जटिल समस्या है। इसके लिए कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है। यह पूर्वानुमान लगाना कोई सरल कार्य नहीं है और न इसके लिए कोई सर्वमान्य सूत्र तथा सिद्धान्त ही है । इस पूर्वानुमान के लिए व्यावसायिक क्रियाओं के प्रत्येक पहलू के सावधानीपूर्ण व गहन अध्ययन और जटिल गणनाओं की आवश्यकता होती है। ये सभी गणनाएं रोकड़ आधार पर की जाती हैं।

कार्यशील पूंजी का पर्वानमान लगाने की प्रमख विधियाँ निम्नांकित प्रकार हैं

1 रोकड़ पूर्वानुमान पद्धति (Cash Forecasting Method),

2 लाभ-हानि समायोजन विधि (Adjusting Profit and Loss Method),

3.प्रक्षेपित आर्थिक चिट्ठा विधि (Projected Balance Sheet Method),

4 चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों की पूर्वानुमान विधि (Forecasting of Current Assets and Current Liabilities Method),

5 परिचालन चक्र विधि (Operation Cycle Method)

1 रोकड़ पूर्वानुमान पद्धति (Cash Forecasting Method)- इस विधि के अन्तर्गत आगामी अवधि में सम्भावित रोकड़ प्राप्तियों तथा रोकड़ भुगतानों का अनुमान लगाया जाता है। अवधि के प्रारम्भ में उपलब्ध कार्यशील पूँजी में अनुमानित प्राप्य रोकड़ राशि को जोड़ दिया जाता है तथा उस योग में से अनुमानित रोकड़ भुगतानों को घटा दिया जाता है। शेष बची हुई राशि ही अवधि के अन्त में कार्यशील पूँजी की राशि को प्रदर्शित करती है। यह विधि एक तरह से रोकड़ बजट का ही रूप है जिसका विस्तृत विवेचन अगले अध्याय ‘रोकड़ का प्रबन्ध’ (Management of Cash) के अन्तर्गत किया गया है।

2. लाभ-हानि समायोजन विधि (Adjusting Profit and Loss Method)- इस विधि के अन्तर्गत आगामी जिस अवधि की कार्यशील पूँजी का अनुमान लगाना हो, उस तिथि तक के सम्भावित लेन-देनों के आधार पर पहले तो लाभों का पूर्वानुमान कर लिया जाता है और इसके बाद लाभ की अनुमानित रकम नकदी के आधार पर समायोजित किया जाता है। इसके लिए अनुमानित लाभों की रकम में गैर-रोकड़ी मर्दो (Non-Cash Items) जैसे,ह्रास, सम्पत्तियों के विक्रय पर हानि तथा ख्याति एवं प्रारम्भिक व्ययों की अपलिखित रकम, आदि को जोड़ दिया जाता है क्योंकि इन मदों से कार्यशील पूँजी में कमी नहीं होती। इसके अतिरिक्त इसमें ऐसी मदों को भी जोड़ दिया जाता है जिनसे रोकड की प्राप्ति होती है तथा ऐसी मदों की राशि घटा दी। जाती है जिनसे रोकड़ व्यवसाय से बाहर जाती है अर्थात रोकड अन्तर्वाह जोड़े जाते हैं तथा रोकड़ बहिर्वाह घटा दिया जाता है। इस प्रकार प्राप्त राशि कार्यशील पँजी में वद्धि या कमी को दर्शाती है। वस्तुतः यह वाथ रोकड़-प्रवाह विवरण का ही एक रूप है।

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इस विधि के द्वारा कार्यशील पँजी के पर्वानमान को निम्नांकित प्रारूप के द्वारा सरलता से समझा जा सकता है

3. प्रतेश्रित आर्थिक चिट्ठा विधि (Projected Balance Sheet Method)-इस विधि के अन्तर्गत जिस तिथि को समाप्त होने वाली अवधि की कार्यशील पँजी का अनमान लगाना हो उस आगामी अवधि में होने वाले लेन-देनों को ध्यान में रखते हए एक निश्चित तिथि को विभिन्न सम्पत्तियों (रोकड शेष को छोड़कर) और दायित्वों का पूर्वानुमान करके चिट्ठा बना लिया जाता है जिसे प्रक्षेपित आर्थिक चिट्ठा कहते हैं । इस प्रकार तैयार किये गए प्रक्षेपित चिट्ठे में सम्पत्तियों एवं दायित्वों के योग का अन्तर उस अवधि में कार्यशील पूँजी की कमी या आधिक्य को प्रकट करता है। यदि दायित्व पक्ष का योग सम्पत्ति पक्ष के योग से अधिक है तो अन्तर की राशि को रोकड़ आधिक्य (Cash Surplus) कहा जायेगा। इसके विपरीत, यदि सम्पत्ति पक्ष का योग दायित्व पक्ष के योग से अधिक है तो यह कार्यशील पूँजी की कमी व्यक्त करता है जिसकी व्यवस्था प्रबन्धकों को बैंक अधिविकर्ष या अन्य साधनों से करनी होगी।

निम्नलिखित उदाहरण की सहायता से प्रक्षेपित चिट्ठा विधि की प्रक्रिया को भली प्रकार समझा जा सकता है

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Illustration 1. आप नीचे दी गई सूचनाओं से आवश्यक कार्यशील पूँजी का अनुमान प्रक्षेपित चिट्ठा विधि से लगाइए –

From the following informations given below, prepare an estimate of working capital requirements by projected Balance Sheet Method :

रुपये (Rs.)

निर्गमित अंश पूँजी (Issued share capital)                                                                               4,20,000

6% ऋण पत्र (6% Debenture)                                                                                                      80,000

स्थायी सम्पत्तियां लागत पर (Fixed Assets at cost)                                                               80,000

विक्रय मूल्य से लागत के अनुमानित अनुपात इस प्रकार हैं

The expected ratios of cost to selling price are :

कच्ची सामग्री (Raw Materials)                                50%

श्रम (Labour)                                                                 20%

उपरिव्यय (Overheads)                                               20%

लाभ (Profit)                                                                  10%

निम्नलिखित सूचनाएँ और उपलब्ध हैं

(i) भण्डार में कच्चा माल दो माह रखा जाता है।

(ii) तैयार माल स्टॉक में औसतन तीन माह की अवधि के लिए रहता है

( ii) गत वर्ष में उत्पादन 1,80,000 इकाइयाँ था तथा चालू वर्ष में भी इसी स्तर को बनाये रखने की

योजना है।

(iv) उत्पादन की प्रत्येक इकाई का 1/2 महीने प्रक्रिया में रहने का अनमान है: ।

(v) ग्राहकों को तीन माह की उधार दी जाती है तथा पूर्तिकर्ताओं द्वारा दो माह की उधार दी जाती है ।

(vi)  विक्र्य मूल्य प्रति ईकाई 10 रुपये है ।

(vii) उत्पादन तथा विक्र्य का चक्र नियमित है ।

(viii) देनदारों की गणना विक्रय मूल्य पर की जा सकती है ।

Following further information are available :

(i) Raw materials are kept in store for an average period of two months;

(ii) Finished goods remain in stock for an average period of three months;

(iii) Production during the previous year was 1,80,000 units and it is planned to maintain the same in the current year also;

(iv) Each unit of production is expected to be in process for half a month;

(v) Credit allowed to customers is three months and given by suppliers is two months;

(vi) Selling price is Rs. 10 per unit ; (vii) There is a regular production and sales cycle;

(viii) Calculation of debtors may made at selling price.

नोट-यह मान लिया गया है कि अर्द्ध-निर्मित माल में श्रम एवं उपरिव्यय अवधि के प्रारम्भ में लगा दिए हैं। अत: अर्द्ध-निर्मित माल की गणना में श्रम व उपरिव्ययों की पूरी राशि सम्मिलित की गई है।

4. चाल सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों की पूर्वानुमान विधि (Forecasting of Current Assets and Current Liabilities Method) कार्यशील पूंजी की आवश्यक मात्रा का अनुमान लगाने की यह सर्वाधिक प्रचलित विधि है । इस पद्धति के अन्तर्गत उत्पादन प्रक्रिया, साख नीति एवं स्कन्ध नीति के विगत अनभव के आधार पर विभिन्न चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों का अनुमान लगाया जाता है। यह अनुमान लगाने के लिए सर्वप्रथम प्रत्येक चालू सम्पत्ति एवं चालू दायित्व की आवश्यकता महीनों में निधारित की जाती है और फिर इस मासिक आवश्यकता में सम्बन्धित मद की मासिक राशि से गुणा करके उस मद की राशि का पर्वानमान लगा लिया जाता है। कार्यशील पूंजी की आवश्यकता के पूर्वानुमान के लिए पर्वानमानित चाल सम्पत्तियों के योग में से पूर्वानुमानित चालू दायित्वों की राशि को घटा दिया जाता है। यदि आवश्यक समझा जाता है तो इस राशि में आकस्मिकताओं के लिए कुछ प्रतिशत राशि और जोड दी जाती है। संक्षेप में इस विधि से कार्यशील पूंजी का निर्धारण करने के लिए निम्नांकित मदों पर विचार करना होता है

1 वर्ष में उत्पन्न की जाने वाली वस्तु की इकाइयों की कुल संख्या।

2 प्रत्येक इकाई के लिए कच्चे माल, मजदूरी तथा उपरिव्ययों की लागत

3 कच्ची सामग्री के उत्पादन हेतु निर्गमन से पूर्व कितने समय तक भण्डार में रहने की सम्भावना है।

4. कितने समय तक माल उत्पादन प्रक्रिया में रहेगा. इस अवधि की गणना करनी होगी।

5 ग्राहकों को विक्रय की प्रतीक्षा में तैयार माल कितने समय तक गोदाम में रहेगा।

6  देनदारों को कितने समय के लिए उधार माल बेचा जायेगा।

7 लेनदारों से कितने समय के लिए उधार माल खरीदने की सुविधा प्राप्त होगी।

8. मजदूरी एवं उपरिव्ययों के भुगतान में समय-विलम्ब (Time-lag) के बारे में सूचना प्राप्त करना।

इस विधि के अनुसार कार्यशील पूँजी का अनुमान लगाने के लिए निम्नलिखित प्रारूप का प्रयोग किया जाता है

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कच्ची सामग्री के स्टॉक और लेनदारों का पूर्वानुमान उपभोग की जाने वाली सामग्री की लागत के आधार पर, चालू कार्य का पूर्वानुमान निर्माण लागत के आधार पर, निर्मित माल का पूर्वानुमान उत्पादन लागत के आधार पर तथा देनदारों का पूर्वानुमान विक्रय की लागत के आधार पर लगाया जाता है। कुछ व्यक्ति देनदारों के पूर्वानुमान हेतु विक्रय मूल्य का भी प्रयोग करते हैं।

टण्डन समिति ने भी कार्यशील पूँजी के आकलन की यही विधि अपनाने का सुझाव दिया है जिसमें विभिन्न प्रकार की चालू सम्पत्तियों के लिए कार्यशील पूँजी की मात्रा मासिक आवश्यकता के आधार पर निकाली जाती है। इसके लिए समिति ने 15 उद्योगों के लिए विभिन्न चालू सम्पत्तियों व चालू दायित्वों (कच्ची सामग्री, अद्ध-निर्मित माल का स्टॉक,देनदार, लेनदार) की आवश्यकता के मापदण्ड महीनों में तय किए हैं। वर्तमान में ।कार्यशाल पूजा का अनुमान लगाने की यह सर्वाधिक प्रचलित विधि है। भारत में व्यावसायिक संस्था द्वारा बैंकों से अल्पकालीन ऋण हेतु आवेदन देते समय ‘कार्यशील पँजी का आकलन’ भी प्रस्तुत करना होता है, जा प्रायः इस विधि के अनुसार ही ज्ञात किया जाता है। कछ बैंक इसके लिए छपे हुए प्रारूप (Forms) भा प्रयाग में लेते हैं।

Illustration 2. एक उधारकर्ता ने निम्नलिखित जानकारी प्रस्तुत की है :

(i) वार्षिक उत्पादन का प्रत्याशित स्तर                                             2,40,000 इकाइयाँ

(i) भण्डार में रखे जाने वाले कच्चे माल की अवधि                                 2 माह

(ii) माल तैयार करने की अवधि                                                               1 माह

(vi) तैयार माल के भण्डार में रहने की औसत अवधि                             3 माह

(v) ग्राहकों को दिये जाने वाले उधार की प्रेषण की तारीख से अवधि     3 माह

(vi) बिक्री मूल्य से लागत का प्रत्याशित अनुपात

(a) कच्चा माल                                   60%

(b) प्रत्यक्ष मजदूरी                              10%

(c) ऊपरी खर्च (उपरिव्यय)                  20%

(vii) प्रति यूनिट बिक्री मूल्य                                                                    Rs. 20

(viii) बिक्री पर प्रत्याशित मार्जिन                                                          10%

आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप उधारकर्ता की कार्यकारी-पँजी की आवश्यकताओं का अनुमान लगायें।

The following information has been submitted by a borrower :

(i) Expected level of annual production                                                2,40,000 units

(ii) Raw Material to remain in stock on an average                               2 months

(iii) Processing Period                                                                                       1 month

(iv) Finished goods remain in stock on an average                               3 months

(v) Credit allowed to the customers from the date of despatch     3 months

(vi) Expected ratio of cost to selling price :

(a) Raw Material                             60%

(b) Direct Wages                             10%

(c) Overheads                                  20%

(vii) Selling price per unit                        Rs. 20

(viii) Expected margin on sale                   10%

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नोट- कच्ची सामग्री के भुगतान के सम्बन्ध में कोई सूचना न होने के कारण यह माना गया है कि कच्चे माल का नकद क्रय किया जाता है, अत: लेनदारों का प्रश्न ही नहीं है।

(2) देनदारों का पूर्वानुमान विक्रय की लागत के आधार पर किया गया है।

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Illustration 3. वर्ष 2004 के लिए कम्पनी के प्रबन्धकों के समक्ष निम्नलिखित पूर्वानुमान प्रस्तुत किए गए हैं

The following projections have been presented for consideration before the management of the company for the year 2004:

(अ) वार्षिक व्यय (Annual Expenses) :

मजदूरी (Wages) 52,000 रुपये ; स्टोर्स एवं सामग्री (Stores and Materials) 9,600 रुपये; कार्यालय वेतन (Office Salaries) 12,480 रुपये ; किराया (Rent) 2,000 रुपये; अन्य व्यय (Other Expenses) 9,600 रुपये।

(ब) रखे जाने वाले स्टॉक की औसत धनराशि (Average amount of stock to be maintained):

रुपये (Rs.) निर्मित माल का रहतिया (Stock of Finished Goods)         1,000

स्टोर्स एवं सामग्री का रहतिया (Stock of Stores and Materials)         1,600

(स) व्ययों का अग्रिम भुगतान-तिमाही अग्रिम 1,600 रुपये प्रति वर्ष (Expenses paid in

advance : Quarterly advance Rs. 1,600 p.a.)

(द) वार्षिक बिक्री (Annual Sales):

रुपये (Rs.)

घरेलू बाजार (Home Market)                               62,400

विदेशी बाजार  (Foreign Market)                        15,600

(य) सभी व्ययों के भुगतान में समय विलम्ब (अन्तराल) (Lag in payment of all expenses) :

मजदूरी (Wages)-12 weeks; स्टोर्स एवं सामग्री (Stores and Materials) 15 months; कार्यालय वेतन (Office Salaries) 1/2 month; किराया (Rent)-6 months; अन्य व्यय।

(Other Expenses)- 1 months.

(र) ग्राहकों को स्वीकृत साख-अवधि (Credit period allowed to customers) :

घरेलू बाजार (Home Market)                                 6 Weeks

विदेशी बाजार (Foreign Market)                           1/1/2 Weeks

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IIlustration 4. दोआबा एण्टरप्राइजेज लिमिटेड के विक्रय मूल्य, लागतों तथा लाभ के प्रति इकाई आंकडे निम्नलिखित हैं

Below are given the per unit selling price, costs and profit for Doaba Enterprises Limited :

      Details                                                              Per Unit

Rs.

कच्ची सामग्री (Raw Material)                          160

प्रत्यक्ष मजदूरी (Direct Labour)                        100

उपरिव्यय (Overheads)                                      140

कुल लागत (Total Cost)                                      400

लाभ (Profit)                                                        100

विक्रय मूल्य (Selling Price)                              500

उपलब्ध अतिरिक्त सचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) कम्पनी ग्राहकों को दो महीने के उधार पर माल बेचती है तथा पूर्तिकर्ताओं से कच्चे माल की खरीद भी दो महीने के उधार पर करती है।।

(ii) स्टॉक में भण्डारण अवधि कच्चे माल के लिए 1 महीना, निर्माणाधीन माल के लिए 12 महीना तथा निर्मित माल के लिए 1 महीना है।

(iii) भुगतान में समय का अन्तराल मजदूरी के लिए 1/2 महीने तथा उपरिव्ययों के लिए 1 महीने का है। (iv) उत्पादन का 25% नकद आधार पर बेचा जाता है।

(v) औसत 50,000 रुपये रोकडं के रुप में रखे जाते हैं ।

(vi) कम्पनी के प्रबन्धकों द्धारा अगले वर्ष 36,000 इकाइयों के उत्पादन की योजना बनाई गयी है

(vii) कम्पनी का उत्पादन एवं विक्रय वर्ष-पर्यन्त निरन्तर समान गति से होता रहता है।

The additional information available are as follows:

(1) The Company sells goods to its customers on 2 months credit and purchases raw material from its suppliers on 2 month credit.

(ii) The average storage period is 1 month for raw material, 1/2 month for work-in-progress and 1 month for finished goods.

(iii) Time-lag in payment is 1/2 month for wages and 1 month for overheads

(iv) 25% of the output is sold against cash. (v) On an average a sum of Rs. 50,000 is kept as cash.

(vi) The management of the company has made out plan to manufacture 36,000 units in the coming year.

(vii) Output and sales of the company are evenly spread over throughout the year.

यह मानते हुए कि कम्पनी में कार्यशील पूँजी का 5 प्रतिशत भाग अतिरिक्त कोष के रूप में आकस्मिकताओं के लिए रखा जाता है, आपको कम्पनी की कार्यशील पूँजी की कुल आवश्यकताओं का आकलन करना है।

Assuming that 5% of the working capital is kept as additional fund for contingencies, you are required to work out an estimate of the total requirements for working capital by the company.

Management Of Working Capital

Illustration 5. एक जनवरी, 2004 को लिटिलमोर एण्ड कं.का संचालक-मण्डल वर्ष के नियोजित कार्यक्रम को पूरा करने के लिए कार्यशील पूंजी की राशि ज्ञात करना चाहता है।

निम्नलिखित सूचना से कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं का एक अनुमान तथा लाभ-हानि खाते और चिठे का एक पूर्वानुमान तैयार करो :

रुपये निर्गमित अंश पूँजी                                                        12,00,000

8% ऋणपत्र                                                                               50,000

1 जनवरी को स्थायी सम्पतियाँ                                             1,25,000

गत वर्ष 60,000 इकाइयों का उत्पादन हुआ था और 2004 में इसे ही बनाये रखने का प्रस्ताव है।

विक्रय मूल्य से लागत के अनुमानित अनुपात ये हैं : कच्ची सामग्री 60%, प्रत्यक्ष मजदूरी 10%, उपरिव्यय 20%।

निम्नलिखित अतिरिक्त सूचनाएँ उपलब्ध हैं

(i) उत्पादन के लिये निर्गमन से पूर्व कच्ची सामग्री का औसतन 2 माह के लिए स्टोर्स में पड़े रहने का अनुमान है।

(ii) उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्येक इकाई को एक माह लगता है।

(iii) तैयार माल ग्राहकों को भेजने के इन्तजार में लगभग तीन माह के लिए पड़ा रहेगा।

(iv) लेनदारों द्वारा अनुमत साख कच्ची सामग्री की सुपुर्दगी की तिथि से 2 माह है।

(v) देनदारों को माल भेजने की तिथि से 3 माह की उधार दी जाती है।

(vi) विक्रय मूल्य 5 रुपये प्रति इकाई है।

(vii) बिक्री और उत्पादन की गति एकसमान रहती है।

On 1st Jan., 2004 the Board of Directors of Littlemore & Co. desire to know the amount of working capital that will be required to meet the programme they have planned for the year. From the following information, prepare an estimate of working capital requirements and a forecast Profit & Loss Account and Balance Sheet :

Rs.

Issued Share Capital                                                                2,00,000

8% Debentures                                                                           50,000

Fixed Assets as on 1st January                                           1,25,000

Production during the previous year was 60,000 units and it is proposed to maintain the same during 2004. The expected ratios of cost to selling price are : raw materials 60%, direct wages 10%, overheads 20%.

Following further information are available :

(i) Raw materials are expected to remain in stores for an average of before issue to production.

(ii)Each unit of production is expected to be in process for one month.

(iii) Finished goods will remain in the warehouse awaiting despatch to custo for approximately three months.

(vi) Credit allowed by creditors is two months from the date of delivery of tow material.

(v) Credit given to debtors is three months from the date of despatch

(vi) Selling price is Rs. 5 per unit.

(vii) Sales and Production follow a consistent pattern.

2. यह मान लिया गया है कि अर्द्ध-निर्मित माल में श्रम एवं उपरिव्यय अवधि के प्रारम्भ में लगा दिए । हैं। अतः श्रम व उपरिव्ययों की पूरी राशि अर्द्ध-निर्मित माल में सम्मिलित की गई है। यदि यह माना जाए कि श्रम व उपरिव्यय समान रूप से अर्जित होते हैं तब इनकी आधी राशि ही अर्द्ध-निर्मित । माल में जोड़ी जाएगी। सामग्री तो सदैव प्रारम्भ में ही लगा दी जाती है।

3. देनदारों का पूर्वानुमान विक्रय की लागत के आधार पर किया गया है

Illustration 6. निम्नलिखित सूचनाओं से सॉलवेन्ट लि. द्वारा अपेक्षित कार्यशील पूँजी की औसत राशि दिखाते हुए एक विवरण तैयार कीजिए। वर्ष में 360 दिन लीजिए।

वार्षिक बिक्री 2 रु. प्रति इकाई पर 5,00,000 इकाइयाँ अनुमानित हैं। उत्पादन की मात्रा और बिक्री एकसमान है और वर्ष भर एकसमान रूप से होगी। उत्पादन लागत इस प्रकार है

सामग्री                                        1 रु. प्रति इकाई

श्रम                                          0.40 रु. प्रति इकाई

उपरिव्यय                                      0.35 रु. प्रति इकाई

गाहकों को 45 दिन का उधार दिया जाता है तथा माल पूर्तिकर्ताओं से 60 दिन का उधार लिया जाता है-36 दिन की कच्ची सामग्री की पूर्ति तथा 15 दिन के तैयार माल की पूर्ति रखी जाती है।

उत्पादन-चक्र 18 दिन है तथा सभी सामग्री प्रत्येक उत्पादन-चक्र के प्रारम्भ में निर्गमित की जाती है।

अन्य कार्यशील पूँजी की आवश्यकता के औसत के एक-तिहाई के बराबर रोकड़ शेष आकस्मिकताओं के लिए रखा जाता है।

from the following information, prepare a statement showing the average  amount of working capital required by Solvent Ltd. taking 360 days in a year :

Annual sales are estimated at 5,00,000 units at Rs. 2 per unit. Production quantities coincide with sales and will be carried on evenly throughout the year and the production cost is :

Materials                                                                                                        1 per unit

Labour                                                                                                         Re. 0.40 per unit

Overheads                                                                                                 Re. 0.35 per unit

Customers are given 45 days’ credit and 60 days’ credit is taken from suppliers-36 days’ supply of raw materials and 15 days’ supply of finished goods are kept.

Production cycle is 18 days and all materials is issued at the commencement of each production cycle.

A cash balance equivalent to one-third of the average of other working capital requirement is kept for contingencies.

Illustration 7. एक्स एण्ड कम्पनी एक व्यवसाय खरीदने की इच्छुक है आर सलाह मांगी है जिस पर आपको सलाह देनी है और वह यह है कि प्रथम वर्ष में व्यवसाय सचालनमा औसत कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी?

X & Co. is desirous to purchase a business and has consulted  on which you are asked to advise them is the average amount of working capital which will be required in the first year’s working? _

आपको निम्नलिखित अनुमान दिये जाते हैं और आप द्वारा की गई गणना में 10 प्रतिशत आकास्मकताआ के लिए जोड़ने के लिए कहा जाता है।

You are given the following estimates and are instructed to add 10% to your computed figure to allow for contingencies :

समंक वर्ष के सम्बन्ध में

(Figures for the year)

रुपये (Rs.)

1.स्टॉक में विनियोजित औसत राशि (Average amount invested in stocks):

निर्मित माल का स्टॉक (Stock of finished product)                                                              5,000

सामग्री, स्टोर्स आदि का स्टॉक (Stock of materials & stores)                                              8,000

2 औसत उधार दी गई राशि (Average credit given)

देश में विक्रय (Inland Sales)-6 weeks credit                                                                      3,12,000

निर्यात विक्रय  (Export Sales)-One and a half weeks credit                                         78,000

3 मजदूरी और अन्य खर्चों के भुगतान में विलम्ब (Lag in payment of Wages & other expenses) मजदूरी (Wages)-One and a half weeks                                                                             2,60,000

स्टोर्स,सामग्री आदि (Stores, materials etc.)-One and a half month                             48,000

किराया, अधिकार शुल्क आदि (Rent, Royalty etc.)-6 months                                           10,000

वेतन (Salaries)-half month                                                                                                     67,200

विविध व्यय (Miscellaneous Expenses                                                                                  48,000

4. अग्रिम भुगतान (Advance Payments):

विविध व्यय (Misc. Expenses) (paid quarterly in advance)                                            8,000

5. वर्ष भर न निकाले गये औसत लभ (Undrawn Profits)                                                     11,000

अपेक्षित कार्यशील पूँजी की औसत राशि की गणना कीजिए।

Set up your calculation for the average amount of Working Capital required.

Notes : Undrawn profits has been ignored for the following reasons:

(i) Funds provided by profits may or may not be used as working capital;

(ii) For the purpose of determining working capital provided by net profit for the year, adjustment should be made for drawings, income tax and dividend etc.

Illustration 8. मोनिका लि के सम्बन्ध ने वर्ष में 3,00,000 इकाइयों के उत्पादन की क्रियाशीलता

स्तर का वित्त पोषण करने के लिए आवश्यक कार्यशील पूँजी दर्शाते हुए एक विवरण की माँग की है। उपरोक्त क्रियाशील स्तर के लिए कम्पनी के उत्पादन के लागत ढाँचे का विस्तृत विवरण निम्नांकित है

The Management of Monika Ltd. has called for a statement showing the working capital needed to finance a level of activity of 3,00,000 units of output for the year. The cost of structure for the company’s product, for the above mentioned activity level is detailed below:

Cost (per unit)

                         Rs.

Raw Material                                                                 20

Direct Labour                                                                  5

Overheads                                                                       15

Total            40

Profit        10

Selling Price      50

अतिरिक्त सूचनाएँ (Further Informations)

(1) पिछला अनुभव बतलाता है कि कच्ची सामग्री औसत रूप से दो माह के लिए स्टॉक में पड़ी रहती

(Past experience indicates, the raw materials are held in stock, on average for 2 months.)

(2) प्रक्रियारत् कार्य 100% सामग्री और 50% श्रम व उपरिव्यय की दृष्टि से पूर्ण ( आये माह के उत्पादन के लगभग होना ।

(Work in progress (100% complete in regard to materials and 50% for labour and overheads) will approximately be to half a month’s production.)

(3) निर्मित माल औसतन एक माह के लिए गोदाम में पडां रहता है ।

(Finished goods remain warehouse, on an average for a month.)

(4) सामग्री के आपूर्तिकर्ता एक माह की साख देते हैं ।

(Suppliers of materials extend one month credit.)

(5) दनदारों को दो माह की साख दी जाती है। देनदारों की गणना बिक्री मूल्य पर की जा सकता हा

(wo months’ credit is allowed to debtors, calculations of debtors may be made at selling price.)

(6) 25,000 रु. के न्यूनतम रोकड़ शेष बने रहने की आशा है । (A minimum cash balance of Rs. 25,000 is expected to be maintained.)

(7) उत्पादन ढाचा पूरे वर्ष एक समान माना जा सकता है ।

(The production pattern is assumed to be even during the year.)

कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं का एक विवरण तैयार कीजिए।

Prepare the statement of working capital requirement.

Illustration 9. श्री कृष्ण एक नया व्यापारिक व्यवसाय प्रारम्भ करना चाहते हैं और निम्नलिखित सूचनाएँ प्रदान करते हैं

Mr. Krishna  wishes to commence a new trading business and gives the following information :

(1) एक वर्ष में कुल अनुमानित बिक्री 12,00,000 रु. होगी। The total estimated sales in a year will be Rs. 12,00,000.

(2) उसके व्ययों के बारे में अनुमान है कि 2,000 रु. प्रति माह स्थिर व्यय और उसकी बिक्री के पाँच प्रतिशत के बराबर परिवर्तनशील व्यय होंगे।

His expenses are estimated as fixed expenses of Rs. 2,000 per month plus variable expenses equal to five percent of his turnover.

(3) वह अपने प्रत्येक उत्पाद का विक्रय मूल्य अपने क्रय की लागत से 25% अधिक निश्चित करने की आशा करता है।

Illustration 10.  निम्नलिखित सूचना से आपको शुद्ध कार्यशील पूँजी का अनुमान लगाना है

From the following information you are required to estimate capital:

 Cost per unit

 Rs.

Raw Material                                                       400

Direct Labour                                                    150

Overheads (excluding depreciation)        300

Total Cost 850

Additional Information:

Selling price                                  Rs.1,000

per unit Output                               52,000

units per annum Raw Material in stock   average 4 weeks

Work in progress (assume 50% completion stage with full material consumption

average 2 weeks

Finished goods in stock                                                average 4 weeks

Credit allowed by suppliers                                         average 4 weeks

Credit allowed to debtors                                             average 8 weeks

Cash at bank is expected to be                                      Rs. 50,000

मान लीजिए कि वर्ष के 52 सप्ताहों में उत्पादन की एक समान गति रही है। सभी बिक्री उधार आधार पर की गयी है। यदि संगणना करने में आपने अन्य कोई परिकल्पना की है तो उसका उल्लेख करें।

Assume that production is sustained at an even pace during the 52 weeks of the year. All sales are on credit basis. State any other assumption that you might have made while computing.

Working Notes :

(i) Profit has been ignored and debtors have been taken at cost. The profit has been ignored because this may or may not be used or may not be used as a source of work: capital.

(ii) It has been assumed that raw material is introduced at the beginning of process.

Illustration 11. दिल्ली मैन्यूफैक्चरिंग कम्पनी केवल घरेलू बाजार में ही माल बेचती है और विक्रय का 20% सकल लाभ कमाती है। 31 दिसम्बर,2006 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए निम्नलिखित आँकर उपलब्ध हैं

Delhi Manufacturing company sells goods in the home market only and earns a gross profit of 20% on sales. For the year ending 31st December, 2006, the following figures are available :

Rs.

Material used                                                                               1,12,500

Wages paid                                                                                        90,000

Manufacturing expenses                                                              1,35,000

Administrative expenses                                                          30,000

Depreciation                                                                                 15,000

Sales promotion expenses                                                        15,000

Sales                                                                                                 3,00,000

अन्य विवरण हैं

(i) सामग्री के आपूर्तिदाता दो माह की साख प्रदान करते हैं।

(ii) मजदूरी का भुगतान आधे माह के बकाया के रूप में होता है।

(iii) निर्माणी व प्रशासनिक व्यय सभी नकद खर्चे हैं और एक माह बाद दिये जाते हैं।

(iv) विक्रय सम्वर्द्धन व्यय अग्रिम तिमाही के रूप में दिये जाते हैं।

(v) बिक्री एक माह की उधार पर होती है।

(vi) कम्पनी कच्ची सामग्री व तैयार माल का एक माह का स्टॉक रखना चाहती है।

(vi) कम्पनी 25,000 रु. अपने पास रखना चाहती है जिसमें 12,500 रु. की अधिविकर्ष सीमा भी है जो अभी तक प्रयोग नहीं की गयी है।

आपको वर्ष 2006 के लिए कार्यशील पूँजी की आवश्यकता का निर्धारण करना है।

Other particulars are :

(i) Suppliers of materials provide two months credit.

(ii) Wages are paid half month in arrear.

(iii) Manufacturing and administrative expenses are all cash expenses and are paid one month in arrear.

(iv) Sales promotion expenses are paid quarterly in advance.

(v) Sales are made at one month’s credit.

(vi) Company wishes to keep one month stock of raw materials and also of  finished goods.

(vii) The Company believes in keeping Rs. 25,000 available to it including the overdraft limit of Rs. 12,500 not yet utilished by the company.

You are requested to ascertain the requirements of Working Capital for the year 2006.

Illustration 12. आयुष लि. घरेलू बाजार में 25% सकल लाभ पर माल को बेचती है। बेची गयी वस्तु की लागत में ह्रास को नहीं जोड़ा जाता है। इसके वार्षिक आँकड़े निम्नवत् हैं

                                       रु.

विक्रय-घरेलू एक माह की साख पर                                  1,20,000

विक्रय-निर्यात तीन माह की साख पर (विक्रय मूल्य घरेलू मूल्य से 10% कम)  54,000

प्रयुक्त सामग्री (आपूर्तिदाता द्वारा दो माह की साख)         45,000

मजदूरी भुगतान (आधा माह का बकाया)                        36,000

निर्माणी व्यय (नकद) का भुगतान (एक माह के बकाया के रूप में)   54,000

प्रशासनिक व्यय (एक माह के बकाया के रूप में चुकता)               12,000

विक्रय सम्वर्द्धन व्यय तिमाही अग्रिम रूप में देय                       6,000

चार किस्तों में देय आय-कर जिसकी एक किस्त अगले वित्तीय वर्ष में देय है।   15,000

कम्पनी कच्चा माल व तैयार प्रत्येक का एक माल  का स्टाँक रखती है और 10,000 रु नकद 5,000 रु के अधिविकर्ष सीमा सहित जो अभी तक प्रयोग नहीं की गयी है रखने में विश्वास करती हैं ।15% सुरक्षा सीमान्त मानते हए कम्पनी की कार्यशील पूंजी की आवश्यकता निर्धारित कीजिए। चाल कार्य । को ध्यान में न रखें।

Ayush Ltd. sells goods in the domestic market at a gross profit of 25% not counting depreciation as part of the cost of goods sold. Its annual figures are as under:

                                                                                                                                          Rs.

Sales – Home at one month’s credit                                                                          1,20,000

Sales-Expo t at three months’ credit (sale price 10% below home price)   54,000

Materials used (suppliers extend two month’s credit)            45,000

Wages paid 1/2 month in arrear                                          36,000

Manufacturing Expenses (cash) paid (one month in arrear)    54,000

Adm. expenses paid one month in arrear                              12,000

Sales promotion Expenses payable quarterly in advance        6,000

Income-tax payable in four instalments of which one falls in the next financial year                                                                                  15,000

The company keeps one month’s stock of each of raw materials and finished goods and believes in keeping Rs. 10,000 available to it including the overdraft limit of Rs. 5,000 not yet utilised by the company. Assuming a 15% safety margin, ascertain the requirements of the working capital of the company. Ignore work-in-progress.

Illustration 13. एक नवस्थापित कम्पनी ने अपनी कार्यशील पूँजी के अर्थप्रबन्धन हेतु एक व्यापारिक बैंक में अल्पकालीन ऋण के लिए आवेदन किया है। बैंक की ओर से आपको उस कम्पनी की कार्यशील पूंजी का अनुमान लगाने को कहा गया है। अनुमानित राशि में 10 प्रतिशत अप्रत्याशित सम्भावनाओं के लिए जोडिये । कम्पनी का प्रक्षेपित लाभ-हानि खाता नीचे दिया गया है

A newly formed company has applied for a short-term loan to a commercial bank for financing its working capital requirements. You are requested by the bank to prepare an estimate of the requirements of the Working Capital for that company. Add 10% to your estimated figure to cover unforseen contingencies. The information about the profit and loss account of this company is as under :

उपर्युक्त संख्याएँ निर्मित किये गये माल (तैयार हो चुके माल) से सम्बन्धित हैं, चालू कार्य से नहीं। वार्षिक उत्पादन (भौतिक इकाइयों के रूप में) के 15% के बराबर माल औसतन प्रक्रिया में रहता है जिसमें पूर्ण सामग्री तथा अन्य व्ययों का केवल 40% आवश्यक होगा। कम्पनी दो माह के उपभोग के बराबर सामग्री स्टॉक में रखने में विश्वास करती है। __

सभी खर्चों का भुगतान एक माह बाद किया जाता है। सामग्री के आपूर्तिदाता 11 माह के लिए उधार देते हैं। बिक्री 20% नकद और शेष दो माह के लिए उधार होती है। आय-कर के 70% की अदायगी तिमाही किस्तों में अग्रिम करनी पड़ती है।

The figures given above relate only to the goods which have been finished and not work-in-progress. Goods equal to 15% of the year’s production (in terms of physical units) are in process on average requiring full materials but only 40% of other expenses. The company believes in keeping two months’ consumption of materials in stock.

All expenses are paid one month in arrear. Suppliers of materials extend 11 months credit, sales are 20% for cash and rest at two months’ credit. 70% of income-tax has to be paid in advance in quarterly instalment.

Assumptions and Working Notes :

(i) Depreciation is not a cash expense and therefore, excluded from the cost of goods sold for the purposes of determining work-in-process, finished goods and investment in debtors.

(ii) Administrative and selling expenses are excluded from the computation of work-in-process.

(iii) The given figures relate only to the goods which have been finished and not work-in-progress. Hence, the consumption of materials has been calculated as follows:

Illustration 14. स्वाति लि के अगले वर्ष से सम्बन्धित निम्नलिखित विवरणों के आधार पर कम्पनी की कार्यशील पूंजी का निर्धारण कीजिए

From the following particulars of Swati Ltd. for the next year, you are required to work out the working capital required by the company :

वार्षिक बिक्री (Annual Sales)                                         Rs. 7,20,000

60,000 रुपये ह्रास के सम्मिलित करते हुए उत्पादन लागत       6,00,000

(Cost of Production including depreciation of Rs. 60,000)

कच्ची सामग्री का क्रय (Raw Material Purchases)            Rs  3,52,500

अग्रिम रूप में देय मासिक व्यय (Monthly Expenses paid in advance)   Rs. 12,500

कच्ची सामग्री का प्रत्याशित प्रारम्भिक रहतिया                     Rs. 70,000

(Anticipated opening stock of raw materials)

कच्ची सामग्री का प्रत्याशित अन्तिम रहतिया                      Rs. 62,500

(Anticipated closing stock of raw materials)

स्कन्ध मानदण्ड (Inventory Norms) :

कच्ची सामग्री (Raw Material)                                          2 months

चालू कार्य  (Work-in-progress)                                        15 days

निर्मित माल (Finished Goods)                                         1 month

फर्म अपनी क्रय पर 15 दिन की उधार प्राप्त करती है एवं दी जाने वाली पूर्तियों पर एक माह का उधार प्रदान करती है। विक्रय आदेशों पर कम्पनी को 7,500 रुपये अग्रिम में प्राप्त होते हैं । यह मानिये कि उत्पादन वर्ष पर्यन्त समान गति से होता है एवं 5,000 रुपये न्यून्तम रोकडं शेष रखना है ।

The firm enjoys a credit of 15 days on its purchases and allows one month’s credit on its supplies. The company has received an advance of 7,500 on sales orders. You may assume that production is carried on evenly throughout the year, and the minimum cash balance desired to be maintained is Rs. 5,000.

It is assumed that there is neither an opening nor closing stock of finished stock and, therefore, cost of sales is Rs. 5,40,000 excluding depreciation.

Illustration 15. निम्नलिखित वार्षिक संख्याएँ अनमोल लि० से सम्बन्धित हैं

The following annual figures relate to Anmol Ltd. :

बिक्री दो माह की साख पर (Sales at two months credit)                    Rs. 9,00,000

एक माह की साख पर उपभुक्त सामग्री                                                         Rs. 2,25,000

(Materials consumed at 1 month credit)

मजदूरी (मासिक बकाया) Wages (one month in arrear)                   Rs. 1,80,000

रोकड निर्माणी व्यय (मासिक बकाया)                                                         Rs. 2,40,000

Cash Manufacturing Expenses (one month in arrear)

प्रशासनिक व्यय (मासिक बकाया)                                                               Rs. 60,000

Administrative Expenses (one month in arrear)

विक्रय सम्वर्द्धन व्यय तिमाही अग्रिम रूप में देय                                       Rs. 30,000

(Sales Promotion Expenses payable quarterly in advance)

कम्पनी अपने उत्पाद को 25% सकल लाभ पर बेचती है तथा हास को उत्पादन की लागत का एक भाग मानती है। वह कच्ची सामग्री और तैयार माल प्रत्येक का 1 माह का स्टॉक और 50,000 रु. का रोकड़ शेष रखती है।

20% सुरक्षा सीमा मानते हुए रोकड़ लागत आधार पर कम्पनी की कार्यशील पूँजी आवश्यकताओं की । गणना करो। चालू कार्य को छोड़ दीजिये।

The company sells its products on gross profit of 25% counting depreciation as part of the cost of production. It keeps one month’s stock each of raw materials and finished goods, and a cash balance of Rs. 50,000.

Assuming a 20% safety margin works out the working capital requirements of the company on a cash cost basis. Ignore work-in-progress.

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5 परिचालक चक्र विधि Operating Cycle Method) – कार्यशील पूँजी का अनुमान लगाने हेतु भारत में अधिकतर चालू सम्पत्तियों एवं दायित्वों के पूर्वानुमान की परम्परागत विधि को ही अपनाया जाता है, परन्तु अब परिचालन चक्र विधि के पक्ष में परिवर्तन आ रहा है । बैंक अपने ग्राहकों को साख सुविधाएं प्रदान करने के लिए अब इसी विधि का अनुसरण करते हैं । वस्तुतः किसी भी संस्था की रोकड़ कार्यशील पूंजी का अनुमान लगाने के लिए यह सर्वोत्तम तकनीक है। इस विधि के अनुसार कार्यशील पूँजी की गणना, किसी। अवाध के कल परिचालन व्ययों में सम्बन्धित अवधि के परिचालन चक्रों की संख्या का भाग देकर की जाती। है। अतः कार्यशील पूँजी की धनराशि का अनुमान लगाने के लिए कुल परिचालन व्यय, परिचालन चक्र अवधि । तथा परिचालन चक्रों की संख्या की जानकारी होना आवश्यक है। इनकी संक्षिप्त विवेचना निम्न प्रकार है

(अ) परिचालन व्यय (Operating Expenses)-किसी अवधि विशेष के कुल परिचालन व्ययों में अवधि विशेष में क्रय की गई सामग्री का मूल्य,शक्ति व ईंधन,प्रत्यक्ष श्रम तथा अन्य प्रत्यक्ष व्ययों के अतिरिक्त प्रशासनिक एवं विक्रय तथा वितरण व्ययों को भी शामिल किया जाता है जिनके अनुमान लागत लेखों से प्राप्त। किये जा सकते हैं। इन व्ययों की गणना में ह्रास तथा अमूर्त सम्पत्तियों (Intangible assets) के अपलेखन को शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि यह गैर-रोकड़ व्यय हैं इनसे कार्यशील पूँजी प्रभावित नहीं होती है। इसी प्रकार कर एवं लाभांश, आदि को लाभों का नियोजन मानकर छोड़ दिया जाता है । पूंजीगत व्ययों को भी इनमें सम्मिलित नहीं किया जाता है। इन व्ययों की राशि का अनुमान लगाते समय उत्पाद मिश्रण में परिवर्तन या प्रविधि में परिवर्तन के फलस्वरूप व्ययों में होने वाले अन्तर को भी समायोजित कर लिया जाता है। इस प्रकार ज्ञात की गयी राशि कुल रोकड़ परिचालन व्यय कहे जाते हैं।

(ब) परिचालन चक्र की अवधि की गणना करना (Calculating Operating Cycle Period)परिचालन चक्र के सम्बन्ध में इसी अध्याय में पीछे विवेचना कर चुके हैं। परिचालन चक्र की अवधि की गणना कच्ची सामग्री के भण्डार में रहने की अवधि, उत्पादन प्रक्रिया में लगने वाली अवधि, निर्मित माल के स्टॉक में रहने की अवधि तथा देनदारों से धन वसूली में लगने वाली अवधि के योग में से लेनदारों को भुगतान देने की अवधि को घटाकर की जाती है। अधिकतर प्रश्नों में इन सभी की अवधि स्वयं ही दी हुई होती है। यदि इनकी अवधि प्रश्न में नहीं दी हुई है तो इन्हें निम्नलिखित सूत्रों की सहायता से ज्ञात कर लिया जाता है

(i) सामग्री संग्रहण अवधि (Material Storage Period)-यह वह अवधि है जिसमें उत्पादन हेतु निर्गमन से पूर्व सामग्री भण्डार में रहती है। इसकी गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

Material Storage Period = Average Stock of Raw Materials

Daily Average Consumption

where (a) Average Stock = Opening Stock + Closing Stock

(b) Daily Average Consumption =  Material Consumed in the year

(ii) उत्पादन प्रक्रिया की अवधि या रूपान्तरण अवधि (Production Process Period or Conversion Period)- यह वह अवधि है जो कच्चे माल को निर्मित माल में परिवर्तित होने में लगने वाले समय को प्रकट करती है। इसकी गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है : Production Process Period =   Average Stock of Work-in-Progress

Daily Average Factory Cost where (a) Average Stock of WIP =

a_Opening WIP + Closing WIP

Total Factory Cost (b) Daily Average Factory Cost = 0

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कुल कारखाना लागत के लिए प्रयुक्त सामग्री, श्रम, कारखाना उपरिव्यय के योग में अर्द्ध-निर्मित माल के प्रारम्भिक स्टॉक को जोड़ दिया जाता है तथा अन्तिम स्टॉक को घटा दिया जाता है।

(iii) निर्मित माल की संग्रहण अवधि (Period of Storage of Finished Goods) -यह वह। अवधि है जिसमें विक्रय से पूर्व निर्मित माल गोदाम में पड़ा रहता है । इसकी गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Finished Goods Storage Period – Average Stock of Finished Goods

Daily Average Cost of Sales where (a) Average Stock of EG – Op. Stock of F.G. + Cl. Stock of EG.

Daily Average Cost of Sales =

(b) Daily Average Cost of Sales – Total Cost of Sales

बिक्रीत माल का कल लागत (Total Cost of salocl की गणना कारखाना लागत मानामतमाला के प्रारम्भिक व आन्तम शष के समायोजन के अतिरिक्त प्रशासन व्ययों को जोडकर की जाती है। विक्रय एव। वितरण व्ययों को छोड़ दिया जाता है।

(iv) देनदारों की औसत वसुली अवधि (Averace Collection Period of Debtors)-उधार। बिक्री के उपरान्त देनदारों से उधार वसूली में लगने वाला समय ही औसत वसूली अवधि कहलाता है । इसकी गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता हैAverage Collection Period =

Average Debtors

Credit Sales per Day where (a) Average Debtors Opening Drs. + Closing Drs.

Total Credit Sales for the year Credit Sales per day = 10 (b)

(v) देनदारों से प्राप्त औसत उधार अवधि या लेनदारों को भुगतान अवधि (Creditors Payment Period)-उधार क्रय का जितने समय उपरान्त भुगतान किया जाता है, उसे ही लेनदारों को भुगतान अवधि कहते हैं। इसकी गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Average Creditors Creditors Payment Period =

Net Credit Purchases per day

Opening Crs. + Closing Crs. where (a)

Average Creditors =

Total Credit Purchase for the year (b)sze10Net Credit Purchase per day =

(स) वर्ष भर के कुल परिचालन चर्कों की गणना करना (Calculation of Total Operation Cycles in the year)- परिचालन चक्र की अवधि ज्ञात हो जाने के उपरान्त वर्ष के कुल दिनों में ज्ञात की गई परिचालन चक्र की अवधि के दिनों का भाग देकर परिचालन चक्रों की संख्या ज्ञात कर ली जाती है। इससे यह पता चलता है कि वर्ष भर में कुल कितने परिचालन चक्रों का फेरा होता है ।संक्षेप में इसकी गणना निम्नलिखित सत्र से की जाती है

365 No. of Operating Cycles = Period of Operating Cycle

उपरोक्त तीनों घटकों की गणना करने के बाद परिचालन चक्र विधि द्वारा कार्यशील पूँजी का अनुमान लगाने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Total Cash Operating Expenses Working Capital Requirement = * No. of Operating Cycles

यदि व्यवसायी चाहे तो उपर्युक्त आगणित कार्यशील पूँजी में आकस्मिकताओं के लिए कुछ प्रतिशत राशि और जोड सकता है। यह आयोजन अनुमानों में सम्भावित अशुद्धता को दूर करने के लिए किया जाता है। परिचालन चक्र विधि द्वारा कार्यशील पूंजी के अनुमान लगाने की प्रक्रिया को निम्नलिखित उदाहरणों की सहायता से भली प्रकार समझा जा सकता है-

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Illustration 16. एक निर्माणी कम्पनी की पुस्तकों से ली गई निम्नलिखित सचनाओं से परिचालन चक्र की दिनों में गणना कीजिए

From the following information extracted from the books of a manufacturing company, compute the operating cycle in days :

ली गई अवधि (Period Covered)                                                              365 days

पूर्तिकर्ताओं द्वारा साख की स्वीकृत औसत अवधि

(Average Period of credit allowed by suppliers)                                   16 days

कच्ची सामग्री का उपभोग (Raw Materials Consumption)                          Rs. 73,000

अदत्त देनदारों का औसत योग  (Average Total of Debtors Outstanding)     Rs. 7.900

कुल उत्पादन लागत (Total Production Cost)                                   Rs. 1,09,500

कुल विक्रय लागत (Total Cost of Sales)                                                Rs. 1,13,150

वर्ष के लिए विक्रय (Sales for the year)                                                 Rs. 1,80,000

रखे जाने वाले औसत स्टॉक का मूल्य (Value of Average Stock Maintained):

कच्ची सामग्री (Raw Material)                                            Rs. 5,600

अर्ध निर्मित (Work-in-Progress)                                      Rs. 4,800

निर्मित माल (Finished Goods)                                          Rs. 4,340

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Illustration 17. निम्नलिखित आंकडों सीमा कम्पनी लिमिटेड के वित्तिय विवरणों से लिए जाते हैं

कच्ची सामग्री                                                         40 रु प्रति इकाई

प्रत्यक्ष श्रम                                                              20 . रु प्रति इकाई

उपरिव्यय                                                                 5,40,000 रु कुल

निम्नलिखित अतिरिक्त सूचनाएँ भी उपलब्ध हैं

(i) अगले वर्ष कम्पनी के प्रबन्धक एक लाख इकाइयों के उत्पादन की योजना बना रहे हैं। प्रति इकाई विक्रय मूल्य 125 रुपये होगा। कम्पनी के उत्पादन एवं विक्रय में पूर्ण तालमेल है जो वर्ष-पर्यन्त बना रहता है।

(ii) औसत भण्डारण अवधि कच्चे माल के लिए 40 दिन तथा तैयार माल के लिए 30 दिन की है।

(iii) कम्पनी द्वारा अपने ग्राहकों को 30 दिन के उधार पर माल बेचा जाता है। कम्पनी स्वयं कच्चा माल  60 दिन के उधार पर आपूर्तिकर्ताओं से खरीदती है।

(iv) कम्पनी में उत्पादन चक्र की अवधि 20 दिन की है तथा आवश्यक कच्चा माल प्रत्येक उत्पादन चक्र के आरम्भ में ही उत्पादन विभाग को सुपुर्द कर दिया जाता है।

(v) औसत कार्यशील पूंजी के 20% भाग को अतिरिक्त कोष के रूप में आकस्मिकताओं के लिए रखा जाता है।

वर्ष में 360 दिन के कार्य दिवस मानते हुए कम्पनी के लिए कार्यशील पूँजी की कुल आवश्यकताओं का अनुमान परिचालन चक्र विधि के द्वारा लगाइए।

The following data have been taken from the financial records of Seema Co. Ltd. :

Raw Material                                                 Rs. 40 per unit

Direct Labour                                               Rs. 20 per unit

Overhead Expenses                                    Rs. 5,40,000 (Total)

The following additional informations are also available :

(i) The management of the company is planning to manufacture 1,00,000 units in the coming year. The selling price per unit will be Rs. 125. There is perfect harmony between output and sales of the company which is maintained throughout the year.

(ii) The average storage period is 40 days for raw material and 30 days for finished goods.

(iii) The company sells goods to its customers on 30 days credit and purchases raw materials on 60 days credit from its suppliers.

(iv) The duration of the production cycle in the Company is 20 days and needed raw materials is issued to the production department at beginning of each production cycle.

(v) 20% of the average working capital is kept as extra cash for contingencies.

Assume 360 working days in the operating period, work out an estimate of the total requirements of working capital for the company, using operating cycle method.

Solution :

(A) Duration of Operating Cycle :                                   Days

(i) Materials Storage Period                                            40

(ii) Production Cycle Period                                            20

(iii) Finished Goods Storage Period                                 30

(iv) Average Collection Period                                         30

                                                                                  120

Less : Average Payment Period                                     60

Duration of Operating Cycle                                           60

(B) Number of Operating Cycles in the Operating Period

Total Number of Working Days

Duration of Operating Cycle

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Illustration 18. ब्ल्यू एण्ड व्हाइट से ली गई निम्नलिखित सूचनाओं से कम्पनी की आवश्यक कार्यशील पूँजी की गणना परिचालन चक्र विधि से कीजिए

(i) अनुमानित वार्षिक बिक्री 10,000 इकाइयाँ 10 रु. प्रति इकाई की दर पर है; (ii) उत्पादन एवं विक्रय मात्राएं मेल खाती हैं तथा वर्ष-पर्यन्त समान रूप से जारी रहती हैं। उत्पादन लागतें इस प्रकार हैं-सामग्री 5 रु; श्रम 2 रु; उपरिव्यय 1.75 रु. (2,500 रु. ह्रास सम्मिलित करते हुए); (iii) ग्राहकों को 60 दिन की उधार दी जाती है जबकि लेनदारों से 50 दिन की पूर्ति स्टॉक में रखी जाती है; (iv) कच्चे माल की 40 दिन की पूर्ति तथा निर्मित भाल की 15 दिन की पूर्ति स्टॉक में रखी जाती है; (v) उत्पादन चक्र 20 दिन का है तथा प्रत्येक उत्पादन चक्र के प्रारम्भ में ही सामग्री का निर्गमन कर दिया जाता है; (vi) अन्य औसत कार्यशील पूंजी का एक-तिहाई हिस्सा नकद के रूप में आकस्मिकताओं के लिए रखा जाता है।

From the following informations taken from the Blue and White Limited, calculate the working capital required by the company by operating cycle method :

(i) Annual sales are estimated at 10,000 units @ Rs. 10 per unit; (ii) Produciion and sales quantities coincide and will be carried on evenly throughout the year and production cost per unit is : Materials Rs. 5.00; Labour Rs. 2.00%; Overheads Rs. 1.75 (including Rs. 2,500 for depreciation); (iii) Customers are given 60 days’ credit and 50 days’ credit is taken from suppliers; (iv) Forty days of supply of raw materials and fifteen days’ supply of finished goods are kept in stock; (v) The production cycle is 20 days and all materials are issued at the commmencement of each production cycle; (vi) A cash balance equal to one-third of the average other working capital is kept for contingencies.

Computation of Working Capital Requirements

(1) Computation of Operating Cycle :

(i) Materials storage period                                          40

(ii) Finished Goods storage period                               15

(iii) Processing or Conversion period                            20

(iv) Debtors collection period                                       60

                                                                              135

Less : Creditors payment period                                50

Operating Cycle Period            85 

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Illustration 19. निन्नलिखित सूचना से अनमोल लिमिटेड की कार्यशील पूँजी का आकलन परिचालन चक्र विधि से कीजिये

From the following information, calculate the amount of working capital required to Anmol Ltd. using operating cycle method :

Balance on 1-1-2006           Balance on 31-12-2006

                                                                  Rs.                             Rs.

Raw Material                               8,600                           9,400

Work-in-progress                        6,000                        10,000

Finished Goods                         10,000                          14,000

Sundry Debtors                         17,640                          14,040

Sundry Creditors                        4,200                            6,360

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chetansati

Admin

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