BCom 3rd Year Auditing Objects Advantages Study Material Notes in hindi

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BCom 3rd Year Auditing Objects Advantages Study Material Notes in Hindi

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BCom 3rd Year Auditing Objects Advantages Study Material Notes in Hindi: Objects of Auditing Main objects of Auditing Secondary Objects of Auditing  Errors and Its Classifications Frauds Types of Frauds Difference between objects and Frauds Social Frauds Specific objects  Advantages / Significance of Audit Questions Answer  ( For BCom Students )

Objects Advantages Study Material
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BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

अंकेक्षण के उद्देश्य एवं लाभ

[OBJECTS AND ADVANTAGES OF AUDITING]

अशुद्धियों एवं कपटों की खोज एवं उनकी रोकथाम करना बीसवीं शताब्दी तक अंकेक्षक का मुख्य उद्देश्य माना जाता रहा है। अंकेक्षकों के लिए यह आवश्यक था कि वे इस बात का प्रतिवेदन करें कि संस्था के वित्तीय विवरण व्यवसाय की सही एवं शुद्ध आर्थिक स्थिति को दर्शाते हैं। वर्तमान समय में व्यवसाय के बढ़ते हुए आकार एवं जटिलताओं ने अंकेक्षण में परीक्षण अंकेक्षण (Test audit) की अवधारणा को जन्म दिया। परीक्षण जांच के बढ़ते हुए प्रयोग से अंकेक्षकों ने व्यवहारों की जांच हेतु बाहरी व्यक्तियों के प्रमाणों को आधार मानना प्रारम्भ कर दिया है। इसके साथ ही साथ उन्होंने अंशधारी एवं विनियोगकर्ता के हितों का ध्यान रखते हुए सम्पत्तियों एवं दायित्वों के मूल्यांकन एवं उनके प्रकटीकरण (Valuation and disclosure) पर भी बल देना प्रारम्भ कर दिया है। इन अवधारणाओं के विकास ने अंकेक्षक के उद्देश्यों का क्षेत्र विस्तृत कर दिया है और अब अंकेक्षण का उद्देश्य केवल लिपिकीय अशुद्धियों एवं कपटों को ढूंढ़ कर वित्तीय विवरणों की वैधता को सत्यापित करने तक सीमित नहीं रह गया है। वर्तमान में अंकेक्षण का मुख्य उद्देश्य वित्तीय विवरणों की सत्यता एवं शुद्धता पर राय देना हो गया है और अशुद्धियों एवं कपटों का पता लगाना एवं उनकी रोकथाम करना सहायक उद्देश्य माना जाने लगा है। इन उद्देश्यों के अतिरिक्त अंकेक्षण को सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति और विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भी प्रयोग किया जाने लगा है। अंकेक्षण के उद्देश्यों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है :

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अंकेक्षण के उद्देश्य

(OBJECTS OF AUDITING)

मुख्य उद्देश्य            सहायक उद्देश्य           सामाजिक उद्देश्य           विशिष्ट उद्देश्य         अन्य उद्देश्य

लेखा-पुस्तकों की जांच            अशुद्धियों व छल-कपट का पता लगाना              प्रबन्धकों की राय

वित्तीय विवरणों सत्यापन   अशुद्धियों एवं छल-कपट की रोकथाम करना  कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव

अंकेक्षण के मुख्य उद्देश्य

(MAIN OBJECTS OF AUDITING)

अंकेक्षण का मुख्य उद्देश्य नियोक्ता (client) द्वारा तैयार किये गये हिसाब-किताब और खातों की। जांच एवं विवरण-पत्रों का सत्यापन करना है। सत्यापन से उनकी पूर्णता, सत्यता तथा नियमानुकूलता का पता लगाया जाता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए (अ) अशद्धियों (errors) और छल-कपट (fraud) का। पता लगाना, तथा (ब) अशुद्धियों और छल-कपट को रोकना भी अंकेक्षण का आवश्यक अंग हो जाता है। यदि हिसाब-किताब अशुद्धियों तथा छल-कपट से भरे हए हैं और उनका पता नहीं चलता, ता उनका। नियमानुकूल, पूर्ण तथा सत्य प्रमाणित करना बडी भारी भल होगी। एक अंकेक्षक को अपनी रिपाट म य सभा। बातें स्पष्ट करनी चाहिए।

अंकेक्षण के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना निम्न है:

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(1) लेखा-पुस्तकों की जांच (Examination of Books of Accounts)-अंकेक्षणक का एक प्रमुख उद्देश्य हिसाब-किताब की पुस्तकों की जांच करना है। विभिन्न लेखा-पुस्तकों में लिखे गये विभिन्न प्रकृति के व्यावसायिक लेन-देन, व्यवहार एवं घटनाओं का मिलान उनके प्रमाणकों (Vouchers) एवं अन्य आवश्यक दस्तावेजों (documents) से किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि पुस्तकों में किए गए प्रत्येक लेखों के प्रमाणक होने चाहिए एवं प्रत्येक प्रमाणक की प्रविष्टि पुस्तकों में होनी चाहिए। अंकेक्षक का यह कर्तव्य है कि वह इन प्रमाणकों के औचित्य, वैधता, सत्यता एवं विश्वसनीयता की जांच करे।

AAS-2 “Objective and Scope of the Audit of Financial Statements” के अनुसार अंकेक्षण का उद्देश्य अंकेक्षक को वित्तीय विवरणों के सम्बन्ध में अपनी राय प्रकट करने से है जो प्रमाणित लेखांकन नीतियों (policies), अभ्यास (practice) एवं आवश्यक कानूनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। अंकेक्षण की राय को व्यवसाय की वित्तीय स्थिति एवं व्यापारिक परिणाम (Operating results) को सही एवं सत्य निर्धारित करने का आधार माना जाता है।

(2) वित्तीय विवरणों का सत्यापन (Verification of Financial Statements)—डी. पौला के अनुसार, “अंकेक्षण का मुख्य उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि संस्था का आर्थिक चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता उसकी सही तथा ठीक वित्तीय स्थिति एवं कमाई को दर्शाता है।

वित्तीय विवरणों का अंकेक्षण, अंकेक्षक को वित्तीय विवरणों की सत्यता एवं पूर्णता के सम्बन्ध में अपनी निष्पक्ष राय देने में सहायता प्रदान करना है। कम्पनी अधिनियम की धारा 227 के अनुसार अंकेक्षक को राय प्रदान करनी होती है कि (i) कम्पनी का चिट्ठा वित्तीय वर्ष के अन्त की आर्थिक स्थिति एवं (ii) लाभ-हानि खाता, वित्तीय वर्ष के लाभ एवं हानि का सच्चा और उचित चित्रण करता है।

इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु अंकेक्षक को सर्वप्रथम वित्तीय विवरणों एवं उनसे सम्बन्धित खातों की गहन जांच करनी चाहिए और इस आशय की सन्तुष्टि कर लेनी चाहिए कि लेखांकन कार्य लेखांकन नियमों, मान्यताओं एवं अवधारणाओं एवं सामान्य लेखांकन नियमों (Generally Accepted Accounting Principles, GAAP), लेखांकन मानकों (Accounting Standards) के अंकेक्षण व ऐशुरेन्स मानक (Auditing and Assurance Standard) एवं अन्य वैधानिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किए। गए हैं।

अंकेक्षक को वित्तीय विवरणों व खातों की जांच करते समय स्वतन्त्र एवं पेशेवर राय को अपनाना चाहिए। ‘स्वतन्त्र’ से आशय है कि उस पर कम्पनी का. सदस्यों, प्रबन्धकों या किसी अन्य व्यक्ति के दवाव या नियन्त्रण में कार्य नहीं करना चाहिए व अंकेक्षण कार्य के निष्पादन में उचित विधि, रीतियों व तकनीको का प्रयोग किया जाना चाहिए।

लेखों की सत्यता एवं शुद्धता के सम्बन्ध में अंकेक्षण की राय सिर्फ वित्तीय स्थिति जो चिठे द्वारा। प्रदर्शित है एवं लाभ-हानि जो लाभ-हानि खाते से प्रकट होती है के सम्बन्ध में होनी चाहिए। उसके विचार कार्यक्षमता. प्रबन्धकीय प्रभावपूर्णता या संस्था की लाभदायकता के सम्बन्ध में नहीं होने चाहिए।

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अंकेक्षण के सहायक उद्देश्य

(SECONDARY OBJECTS OF AUDITING)

एक अंकेक्षक द्वारा उन वित्तीय लेखों के आधार पर ‘सत्य एवं सही’ राय तब तक नहीं प्रकट कर सकता जब तक कि लेखों में त्रुटियों एवं चतुराई से किये गये कपट विद्यमान हैं। अंकेक्षक का एक आकस्मिक परन्तु महत्वपूर्ण कार्य त्रुटियों या अशुद्धियों एवं कपटों का पता लगाना एवं उनकी रोकथाम करना है। अंकेक्षक के उत्तरदायित्व का निर्धारण करने के लिए अशुद्धियों एवं कपटों में पर्याप्त अन्तर करना अनिवार्य है।

Auditing Accounting Standard-4 (AAS-4) के अनुसार त्रुटि या अशुद्धि बिना किसी मकसद या अनजाने में कोई गलत वर्णन लेखांकन पुस्तकों व खातों में किये जाने से है। ये त्रुटियां (1) गणितीय अशुद्धि के रूप में, (ii) तथ्यों के गलत वर्णन के द्वारा या (iii) लेखांकन नीतियों का गलत प्रयोग द्वारा हो सकता है। इस प्रकार अशुद्धि अबोद्धता का प्रतीक होती है परन्तु कपट चालाकी का सूचक है। ।

अंकेक्षक के सहायक उद्देश्यों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है ।

(1) अशुद्धियों व छल-कपट का पता लगाना,

(2) अशुद्धियों व छल-कपट को रोकना।

इन दोनों उद्देश्यों की विवेचना करने से पूर्व विभिन्न प्रकार की लेखा-पुस्तकों में अशुद्धियों एवं छल-कपट का अध्ययन करना अति आवश्यक है। तत्पश्चात ही यह स्पष्ट से निर्धारित किया जा सकता है कि अंकेक्षक के इनके प्रति क्या कर्तव्य या उत्तरदायित्व हैं।

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अशुद्धियां एवं उनका वर्गीकरण

(ERRORS AND ITS CLASSIFICATIONS)

वे त्रुटियां या भूल-चूक जो अनजाने में, अज्ञानतावश या अबोद्धता के कारण लेखा-पुस्तकों में हो जाएं अशुद्धियां कहलाती हैं। सामान्यतः अशुद्धियों को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है :

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अशुद्धियों का वर्गीकरण

1 लिपिकीय अशुद्धियां II. सैद्धान्तिक अशुद्धियां III. क्षतिपूरक अशुद्धियां IV.दो बार लिखी जाने वाली अशुद्धियां

Clerical Errors)               (Errors of Principle)    (Compensatory Errors) (Errors of Duplication)

(अ) भूल की अशुद्धियां            (ब) लेखे की अशुद्धियां

(Errors of Omission)        (Errors of Commission)

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1 लिपिकीय अशुद्धियां (Clerical Errors)

ये वे अशद्धियां होती हैं जो लेखा-पुस्तकों में व्यवहारों को लिखते समय (recording), खतौनी (posting), योग लगाने (totalling) व शेष निकालने (balancing) के दौरान हो जाती हैं। लिपिकीय अशुद्धियों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है :

(अ) भूल की अशुद्धियां,

(ब) लेखे की अशुद्धियां।

(अ) भूल की अशुद्धियां (Errors of Omission)-जब कोई लेखा प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में पूर्ण या आंशिक रूप में नहीं लिखा जाता तो ऐसी अशुद्धि को भूल की अशुद्धि कहते हैं। जो अशुद्धियां लिखने से बिल्कुल छूट जाती हैं, उनका तलपट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और अंकेक्षक के लिए ऐसी अशुद्धियों का पता लगाना कठिन हो जाता है।

उदाहरण किराया, व्याज, आदि ऐसे मद हैं जिनका पूरे वर्ष के लेखा देखने से यह पता लग जाता है कि कितना ब्याज या किराया दे दिया गया है व कितना अदत्त है। यदि परे वर्ष का किराया 10,000 र है और केवल 7.500 ₹ का लेखा किया गया है तो 2.500 ₹ का लेखा नहीं किया गया है। ऐसी अशुद्धि लेखों को देखकर मालूम की जा सकती है। परन्तु यदि क्रय व विक्रय के लेखे नहीं किये जाएं तो ऐसी भूल । की अशुद्धियों को ज्ञात करना अत्यन्त कठिन हो जाता है। ये अशुद्धियां तलपट पर प्रभाव नहीं डालती लेकिन जब किसी व्यवहार या सौदे के एक ही पहलू का लेखा किया गया हो तो ऐसी अशुद्धि तलपट से ज्ञात हो। सकती है।

(ब) लेखे की अशुद्धियां (Errors of Commission)-जब कोई सौदा आंशिक रूप से अथवा पूर्ण रूप से गलत लिख दिया जाए, तो अशुद्धि लेख की अशद्धि मानी जायेगी। ये अशुद्धियां कई प्रकार से हो। सकती हैं, परन्तु इनका सम्बन्ध किसी सौदे के लेखे से होता है। निम्नांकित गलतियां लेखे की अशुद्धियां कही जा सकती हैं :

(क) प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में लेन-देन के लिखने में अशुद्धि (Incorrect recording wholly or partially)—प्रारम्भिक लेखे की पुस्तक में लेन-देन की सही रकम न लिखने से ये अशुद्धियां हो जाती हैं, जैसे, बिक्री 100 ₹ की हुई और विक्रय-बही में केवल 10 ₹ ही लिखा गया। ऐसी गलती का तलपट पर प्रभाव नहीं पड़ता।

(ख) खाताबही में खतियाने की गलती (Incorrect posting or posting an item to wrong account)—यह सम्भव है कि लेन-देन सम्बन्धी लेखा प्रारम्भिक लेखे की पुस्तक में ठीक किया जाए लेकिन खाताबही में खतौनी करते समय गलत रकम लिख दी जाए; जैसे, 100 ₹ के विक्रय को ग्राहक के खातों में केवल 10 ₹ ही लिखा जाए, तो इससे डेबिट में 90 ₹ की रकम कम लिखी जायेगी। इसका प्रभाव तलपट पर यह होगा कि डेबिट पक्ष 90 ₹ से कम होगा और दोनों पक्षों के योग में अन्तर होगा। उसी प्रकार किसी गलत खाते में किसी रकम के खतियाने से भी यह अशुद्धि हो जाती है जैसे यदि 10 ₹ राम के डेबिट में खतियाने हैं और इसके स्थान पर मोहन के डेबिट में गलती से खतिया दिये जाएं, तो इसका भी तलपट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

() जोड़ एवं शेष निकालने में अशुद्धि (Error in totalling and balancing)—पुस्तकों के जोड़ करने अथवा खातों के शेष निकालने में भी गलतियां हो जाती हैं। ये सभी लेखे की अशुद्धियां मानी जाती हैं। इनका प्रभाव तलपट पर पड़ता है। जिस पक्ष में गलती होती है, तलपट का वही पक्ष गलत होगा (Errors in totalling and balancing)

() शेषों को तलपट में लिखने में गलती (Errors in writing balances in Trial Balance)भिन्न-भिन्न खातों के शेष को तलपट में ले जाने में भी गलतियां हो जाती हैं। शेष से कम या अधिक लिखने या दुबारा लिख देने से या दूसरे पक्ष में लिख देने से भी ये अशुद्धियां हो जाती हैं। इन अशुद्धियों का प्रभाव तलपट पर पड़ता है, अर्थात् तलपट का योग नहीं मिलता है (Errors in carrying forward totals to trial balance)।

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(ड) अन्य अशुद्धियां (Other Errors)

(1) डेबिट की रकम क्रेडिट पक्ष में लिखना तथा क्रेडिट की दूसरी रकम डेबिट पक्ष में लिख देना (इसका प्रभाव तलपट पर पड़ता है)।

(2) किसी खाते की रकम गलत लिखना (इसका प्रभाव तलपट पर पड़ता है)।

(3) लेखे की पुस्तकों में किसी योग को आगे ले जाते समय (Carry fowards) गलती करना (यदि दोनों पक्षों में गलती से एक-सी रकम लिखी जायेगी तो तलपट पर प्रभाव नहीं पड़ेगा)।

(4) प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में किसी लेन-देन की खतौनी करना अथवा एक ही खाते में खतियाना । पडली अवस्था में तलपट पर प्रभाव नहीं होगा परन्तु दूसरी अवस्था में तलपट में दोनों पक्षों का योग नहीं। मिलेगा)।

11. सैद्धान्तिक अशुद्धियां (Errors of Principle)

ये अशुद्धियां लेखाकर्म के सिद्धान्तों की अवहेलना करने या सिद्धान्तों के विपरीत प्रविष्टियां करने से हो जाती हैं। प्रायः ऐसी अशुद्धियां आयगत व्यय एवं पंजीगत व्यय व आयगत प्राप्ति व पूंजीगत प्राप्ति में पर्याप्त अन्तर न करने के कारण होती हैं। उदाहरणार्थ

(क) पूंजी और आय में ठीक अन्तर न करना यदि किसी भवन या मशीन की मरम्मत में कुछ रकम व्यय की जाए और उसे इस सम्पत्ति के खाते में लिख दिया जाए तो यह सैद्धान्तिक अशुद्धि मानी जायेगी। इसका प्रभाव यह होगा कि लाभ-हानि खाता में रकम के बराबर लाभ बढ़ जायेगा और चिठा गलत हो जायेगा।

(ख) एक आय-व्यय को गलती से किसी अन्य आय-व्यय में डाल देनायदि मजदूरी खाते की रकम व्यापारिक व्यय में डाल दी जाए अथवा वेतन खाते की रकम विज्ञापन खाते में डाल दी जाए, तो अशुद्धि का प्रभाव संस्था के लाभ की रकम पर नहीं पड़ेगा, परन्तु यह सिद्धान्त के विपरीत प्रविष्टि होगी।

(ग) आय तथा व्यय की रकम व्यक्तिगत खातों में लिखना किराया दिया गया परन्तु इसकी रकम किसी देनदार (debtor) के व्यक्तिगत खाते लिख दी गयी, तो यह भी सिद्धान्त की अशुद्धि होगी। इसका प्रभाव यह होगा कि एक ओर चिट्ठा गलत हो जायेगा और दूसरी ओर लाभ-हानि खाता में लाभ की रकम बढ़ जायेगी।

(घ) सम्पत्तियों (Assets) का मूल्यांकन सिद्धान्तों के अनुसार न करना ह्रास की उचित व्यवस्था न करना भी सैद्धान्तिक अशुद्धि मानी जाती है।

सैद्धान्तिक अशुद्धियों का तलपट पर प्रभाव नहीं पड़ता। अतः इनका पता लगाने के लिए अंकेक्षक को बड़ी सावधानी से कार्य करना चाहिए। अंकेक्षक इन अशुद्धियों को चतुराई तथा सतर्कता से जांच करने पर ही पता कर सकता है।

II क्षतिपूरक अशुद्धियां (Compensating Errors)

यदि किसी खाते के डेबिट पक्ष में गलती से कुछ रकम लिख दी जाए और दूसरे खाते के क्रेडिट पक्ष में भी उतनी ही रकम गलती से लिख दी जाए, तो ऐसी अशुद्धियां पूरक अशुद्धियां मानी जाती हैं। उदाहरणार्थ, ‘अ’ के डेबिट में 200 ₹ लिखने थे, लेकिन ‘अ’ के क्रेडिट में 200 ₹ लिख दिये और वैसे ही अशुद्धि से ‘ब’ के डेबिट में क्रेडिट के स्थान पर 200 ₹ लिख दिये जाएं तो वह क्षतिपूरक अशुद्धि मानी जायेगी। यदि मजदूरी खाते के डेबिट में 100 ₹ के स्थान पर 120 ₹ लिख दिये और वैसी ही अशुद्धि से किराये खाते के क्रेडिट में 100 ₹ के स्थान पर 120 ₹ लिख दिये तो यह भी पूरक अशुद्धि होगी। तलपट पर इन अशुद्धियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। हां, सम्बन्धित खाते अवश्य प्रभावित होते हैं। अतएव इनकी जांच करने में सावधानी की आवश्यकता है।

iv. दो बार लिखी जाने वाली अशुद्धियां (Errors of Duplication)

यदि कोई लेन-देन प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों में दो-चार बार लिख दिया जाए और खाताबही में भी इसकी दो बार खतौनी कर दी जाए तो इसे लेखक द्वारा दुबारा लिखे जाने वाली अशुद्धि (error of duplication) कहते हैं। वास्तव में, यह भी एक प्रकार से लेख की ही अशुद्धि मानी जाती है।

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छल-कपट

(FRAUDS)

छल-कपट प्रायः संस्था के कर्मचारियों द्वारा जानबूझकर एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेत किये जाते हैं। छल व कपट एक पूर्ण नियोजित एवं योजनाबद्ध कार्य है। छल व कपट प्रायः संस्था के प्रबन्धकों के द्वारा किया जाता है जिनके पास संस्था को नियन्त्रण, निरीक्षण एवं आदेश देने का अधिकार प्राप्त होता है। प्रबन्धक कर्मचारी व अन्य पक्षकार गैर-कानूनी लाभ या व्यक्तिगत हित की प्राप्ति के लिए छल व कपट करते हैं। कोई भी ऐसा कार्य जिससे संस्था के माल, धन या सम्पत्ति का जानबूझकर गबन किया जाये छल-कपट कहलाता है। इसके अतिरिक्त उच्च स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा लेखों में जानबूझकर की गयी गड़बड़ी भी छल-कपट में सम्मिलित है।

छल-कपट के प्रकार

(TYPES OF FRAUDS)

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि छल-कपट दो प्रकार के हो सकते हैं:

(अ) धन-माल व सम्पत्तियों का गबन, तथा

(ब) हिसाब-किताब में गड़बड़ी।

(अ) धन, माल व सम्पत्तियों का गबन (Defalcation of Cash. Goods and Assets)-धन,माल व सम्पत्तियों के गबन प्राय : कर्मचारियों द्वारा किये जाते हैं। अत: इस प्रकार के कपट का कर्मचारिया का कपट’ (Employers’ fraud) कहा जाता है। यह गबन तीन प्रकार का होता है ।

(i) धन का गबन,

(ii) माल का गबन, तथा

(iii) सम्पत्तियों का गबन।

(i) धन का गबन (Defalcation of Cash) रोकड या धन का गबन बड़ा आसान है। एक संस्था के धन का दुरुपयोग निम्न प्रकार से हो सकता है :

(1) रोकड़ प्राप्ति तथा फुटकर रोकड का राशि को गबन कर लेना।

(2) चैक तथा अन्य विनिमय-साध्य प्रपत्रों की चोरी कर लेना।

(3) झूठे (fictitious) लेनदारों या मजदूरों का भुगतान।

प्राप्य रोकड़ की रकम पुस्तकों में बिल्कुल न लिखकर अथवा कम रकम लिखकर गबन हो सकता है। वैसे ही भुगतान की रकम वास्तविक रकम से अधिक लिखकर या झूठे भुगतान लिखकर आसानी से गबन किया जा सकता है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :

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(क) बिक्री सम्बन्धी

(1) बिक्री का लेखा न करना तथा ग्राहकों से प्राप्त रकम को हड़प जाना।

(2) ऐसा प्रबन्ध करना जिसमें एक ग्राहक से प्राप्त रकम को हड़प जाना और दूसरे ग्राहक से प्राप्त रकम को पहले ग्राहक के खाते में लिख देना (teeming and lading)| उसी प्रकार तीसरे ग्राहक से प्राप्त राशि रोकड़ पुस्तक में न लिखकर दूसरे ग्राहक के क्रेडिट में लिखना। यही प्रक्रिया आगे तक चलती रहती है जब तक कि गबन पकड़ में नहीं आता है।

(3) ग्राहकों के खाते में छूट (discount), वापसी (returns), अप्राप्य ऋण (bad debts), इत्यादि के लिए झूठी प्रविष्टियां करना तथा उनकी रोकड़ का गबन करना।

(4) नकद बिक्री की कुछ रकमों को न लिखना तथा उनसे प्राप्त धनराशि का गबन कर लेना।

(5) वी. पी. पी. (V.P.P.) या बिक्री या वापसी (sale or returns) के आधार पर भेजे हुए सामान से प्राप्त रकम का गबन करना और इस माल की बिक्री न दिखाकर वापस किया हुआ दिखाना।

(ख) क्रय सम्बन्धी

(1) झूठा क्रय दिखाना तथा उससे सम्बन्धित रकम संस्था से लेकर हड़प जाना।

(2) लेनदार की क्रय वापसी अथवा उससे प्राप्त भेजे गये जमापत्रों (credit notes) को दबा लेना। जिससे संस्था की उतनी रकम हड़पी जा सके।

(ग) कुछ प्राप्तियां

(1) रोकड़ की असाधारण प्राप्ति (जैसे, पुराने टूटे-फटे माल की बिक्री. पिछले अप्राप्य ऋण से प्राप्त । राशि जो पहले अप्राप्य लिख दी गयी है, आदि) का गबन कर लेना।

(2) विनिमय-साध्य-पत्र (bill receivable) के भुनाने से प्राप्त रकम को गायब कर लेना और विपत्र । को अपने पास अपनी सम्पत्ति दिखाना।

(घ) भुगतान-मजदूरी तालिका (Wages Sheet) में मजदूरों के झूठे नाम दिखाकर मजदूरी का वास्तविक से अधिक रकम का भुगतान करना और इस अधिक रकम को हड़प जाना।

(i) माल का गबन (Misappropriation of Goods) व्यापारिक संस्थाओं के मालिक जितना ध्यान धन के गबन की ओर देते हैं उतना माल के गबन की ओर नहीं देते। माल का गबन अथवा अनचित प्रयोग उन संस्थाओं में अधिक होता है जहां माल अधिक मूल्यवान तथा आकार में छोटा होता है। इस प्रकार माल का गबन दो प्रकार से सम्भव है :

(1) स्टॉक की वास्तविक चोरी, या

(2) जहां संस्था के कर्मचारी का ग्राहक से तालमेल है, वहां ग्राहक को झूठे जमा-पत्र (credit notes), निर्गमित करना।

माल का गबन कठिनाई से पकड़ा जा सकता है। जहां रोकड़ के गबन का पता लगाने के लिए अंकेक्षक को रोकड़ पुस्तक की सूक्ष्म जांच विक्रेता की रिपोर्ट (salesman’s report) रसीद-बही का प्रतिपूर्ण (counterfoils) तथा अन्य प्रमाणकों से करना आवश्यक है, वैसे ही माल के गबन का पता लगाने के लिए उस माल के आवागमन पर उचित नियन्त्रण-प्रणाली का सहारा लेना होगा। माल का गबन व्यवस्थित लेखा प्रणाली, क्रय तथा विक्रय पर उचित नियन्त्रण तथा समय-समय पर निरीक्षण की व्यवस्था द्वारा रोका जा सकता है।

धन तथा माल के सम्बन्ध में गड़बड़ी उन्हीं संस्थाओं में पायी जाती है जो आकार में बड़ी होती हैं और जिनमें व्यापारिक लेन-देन अधिक होते हैं। पर्याप्त नियन्त्रण की कमी होने से ऐसा गबन सम्भव है। छोटी संस्थाओं में मालिक स्वयं धन तथा माल के ऊपर निगरानी रखते हैं, अतः ऐसे गबन की सम्भावना कम रहती है।

(iii) सम्पत्तियों या उपकरणों का गबन या दुरुपयोग (Defalcation of Assets and Equipment)

व्यापार में छोटी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में दो प्रकार के गबन हो सकते हैं :

(क) सम्पत्ति या उपकरण को संस्थान से बाहर कर देना, तथा

(ख) सम्पत्तियों या उपकरणों का अपने कार्यों में उपयोग करना।

इस प्रकार का कपट सामान्यतया उन सम्पत्तियों के सम्बन्ध में हो सकता है जो छोटी होती हैं या जिनका बाहर ले जाना सुविधाजनक होता है। फर्नीचर, टाइप की मशीन (Typewriter), आदि इसके उदाहरण हैं। यह कपट संस्था के अधिकारियों तथा कर्मचारियों के द्वारा होता है। अधिकारी संस्था के वाहनों का अपने कार्य के लिए प्रयोग किया करते हैं। उचित नियन्त्रण से ही यह कपट रोका जा सकता है।

(ब) हिसाब-किताब में गड़बड़ी (Manipulation of Accounts) हिसाब-किताब की गड़बड़ी अधिक कठिनाई से पकड़ी जा सकती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि ऐसी गड़बड़ी प्रायः संस्था के संचालकों (directors), प्रबन्धकों (managers) अथवा अन्य जिम्मेदार व्यक्तियों के द्वारा की जाती है।

ऐसी गड़बड़ी के प्रमुखतः निम्नांकित दो उद्देश्य होते हैं :

(i) लाभ वास्तविक रकम से अधिक दिखाना जिससे कि

(क) यदि उन्हें लाभ के आधार पर कमीशन मिलता है, तो वे अधिक कमीशन प्राप्त कर सकें।

(ख) वे अपनी कुशलता का परिचय दे सकें और व्यापार के स्वामियों में अपने प्रति विश्वास पैदा कर सकें।

(ग) अधिक लाभ और अधिक लाभांश की दर अपने अंशों (shares) पर घोषित करके बाजार में अंशों की ऊंची कीमत प्राप्त कर सकें;

(घ) संस्था को अधिक कर्ज मिल सके क्योंकि संस्था की हालत अच्छी है और वह अधिक लाभ कमाती है।

(ङ) अपने अंश बाजार में अधिक लिये जाएं ताकि अधिक पूंजी इकट्ठी की जा सके और

(च) अपने व्यवसाय के प्रतिद्वन्द्वियों को अपनी अच्छी स्थिति दिखाकर भयभीत किया जा सके।

(ii) लाभ वास्तविक रकम से कम दिखाना जिससे कि

(क) आय-कर (Income-tax) कम कर दिया जाए और आयकर अधिकारियों को धोखा दिया जा

सके:

(ख) अपने प्रतिद्वन्द्वियों को धोखे में डाला जा सके और उनको संस्था की सफलता के सम्बन्ध में सही स्थिति मालूम न हो सके; और

(ग) अंशों को कम कीमत पर बाजार में क्रय करके भी वास्तविक रकम से कम लाभ दिखलाना सम्भव है।

chetansati

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