BCom 1st Year Payment Instrument Discharge Parties Liability Study Material Notes in Hindi

//

BCom 1st Year Payment Instrument Discharge Parties Liability Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Payment Instrument Discharge Parties Liability Study Material Notes in Hindi: Payment and Interest  Discharge of Parties form Liability  material Alteration Examinations Questions Long Answer Questions Short Answer Question ( Most Important Notes for BCom 1st Year Students )

Payment Instrument Discharge Parties
Payment Instrument Discharge Parties

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Presentment Study Material Notes in Hindi

विलेख का भुगतान तथा पक्षकारों की दायित्व से मुक्ति

(Payment of Instrument and Discharge of Parties from Liability)

विनिमय-साध्य लेख-पत्र का भुगतान किसको किया जाये, ब्याज की दर क्या हो, किन दशाओं में इससे सम्बन्धित पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं, आदि महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनके सम्बन्ध में प्रदत्त प्रावधानों का वर्णन प्रस्तुत अध्याय के अन्तर्गत किया गया है।

भुगतान तथा ब्याज

(Payment and Interest)

भुगतान किसको किया जाये ? (To whom payment should be made ?) किसी प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र अथवा चैक के लेखक (maker) अथवा स्वीकर्ता को दायित्व से मुक्ति प्राप्त करने के लिए उसकी देय धनराशि का भुगतान लेख-पत्र के धारक को करना चाहिए। (धारा 78)

ब्याज जबकि दर निश्चित हो (Interest when rate is specified)- जब किसी प्रतिज्ञा-पत्र अथवा विनिमय-पत्र में स्पष्ट रुप से किसी निश्चित दर से ब्याज देने का निर्देश हो, तो निश्चित दर से ब्याज लेख-पत्र की प्राप्त मूल धनराशि (Principal Amount) पर, लेख-पत्र की तिथि से लगाकर ‘भुगतान या वसूली होने तक अथवा ऐसी तिथि तक जोकि वाद प्रस्तुत करने की दशा में न्यायालय द्वारा निर्देशित की जाये, लगाया जायेगा।

ब्याज जबकि दर निश्चित हो (Interest when no rate is specified)- जब लेखपत्र में कोई ब्याज दर निश्चित नहीं हो, तो प्राप्त धनराशि पर ब्याज 6% प्रति वर्ष की दर से उस तिथि से लेकर जबकि उत्तरदायी पक्षकार को धन चुका देना चाहिए था उस समय तक जबकि न्यायालय ऐसी धनराशि की वसूली के लिए निर्देश करे, लगाया जायेगा, भले ही पक्षकारों में कुछ भी ठहराव क्यों न हुआ हो।

(धारा 80) यदि उत्तरदायी पक्षकार किसी ऐसे लेख-पत्र का पृष्ठांकनकर्ता है जो कि भुगतान न करने के कारण अप्रतिष्ठित हो गया हो, तो वह अप्रतिष्ठित होने की सूचना प्राप्त होने की तिथि से ब्याज देने के लिए उत्तरदायी है।

भुगतान करने पर लेखपत्र की सुपुर्दगी अथवा क्षति के समय हानिरक्षा (Delivery of instrument on payment or indemnity in case of Loss)- जब कोई व्यक्ति भुगतान करने के लिए बाध्य है और धारक उससे लेख-पत्र का भुगतान करने के लिए कहता है, तो प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र अथवा चैक पर देय धनराशि चुकाने से पहले उसे लेख-पत्र को भली प्रकार देखने और भुगतान के पश्चात् सुपुर्दगी लेने का अधिकार है, अथवा यदि लेख-पत्र खो गया है अथवा उपस्थित नहीं किया जा सकता तो अन्य पक्षकारों के विरुद्ध, जो लेख-पत्र के सम्बन्ध में आगे वाद करें, उसे क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है।

Payment Instrument Discharge Parties

पक्षकारों की दायित्व से मुक्ति

(Discharge of Parties From Liability)

विनिमयसाध्य विलेख के सम्बन्ध में ‘मुक्ति’ शब्द के दो अर्थ होते हैं (अ) विलेख की मुक्ति, तथा (ब) विलेख के एक या अधिक पक्षकारों की उनके दायित्व से मक्ति।

विलेख की मुक्ति उस समय कही जाती है जबकि उसके अन्तर्गत सभी पक्षकारों का दायित्व समाप्त हो जाता है। ऐसे विलेख की विनिमय-साध्यता समाप्त हो जाती है और यथाविधिधारी को भी ऐसे विलेख पर कोई अधिकार प्राप्त नहीं होता है। के एक या एक से अधिक पक्षकारों की उनके दायित्व से मुक्ति उस समय म है जबकि कुछ पक्षकार तो अपने दायित्वों से मुक्त हो जाते हैं, परन्तु अन्य पक्षकार विलेख के अन्तर्गत उत्तरदायी रहते हैं। उदाहरण के लिये, देय तिथि पर विनिमय-पत्र को प्रस्तुत न करने से सभी पक्षकार अपन दायित्व से मुक्त हो जाते हैं, परन्तु उसका स्वीकर्ता मल ऋणी के प्रति उत्तरदायी रहता है। इसा। प्रकार कोई पक्षकार दिवालिया घोषित हो जाने पर स्वयं दायित्व-मक्त हो जाता है, परन्तु अन्य पक्षकार दायित्व-मुक्त नहीं होते।

पक्षकारों की दायित्व मुक्ति की दशाएँ

(Circumstances of Discharge of Parties from their Liability)-

पक्षकारों की दायित्व मुक्ति के निम्नलिखित दो प्रमुख ढंग हैं

1 भुगतान द्वारा;

2. भुगतान के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से।

भुगतान द्वारा दायित्व मुक्ति (Discharge by Payment)- यदि किसी विलेख के परिपक्व (देय) (Mature) होने पर उसके लेखक, स्वीकर्ता अथवा देनदार द्वारा विलेख के धारक को भुगतान कर दिया जाता है एवं वाहक को देय-विलेख की दशा में यथाविधि भुगतान कर दिया जाता है तो विलेख के सभी पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं।

भुगतान द्वारा दायित्व मक्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है

1 ‘आदेश पर देयचैक की दशा में (Cheque Pavable to Order)- यदि ‘आदेश पर देय’ चेक को आदाता (Payee) द्वारा अथवा उसकी ओर से पृष्ठांकित कर दिया जाता है, तो बैंक (चैक का आहायो) (Drawee of Cheque) यथाविधि भुगतान करने पर अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

(1)) यदि कोई चैक प्रारम्भ से ही ‘वाहक को देय’ है, तो बैंक, चैक के वाहक को यथाविधिधारी भुगतान कर देने पर अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

2. परिवर्तित विलेख के भुगतान की दशा में (By Payment of Altered Instrument)दि किसी विलेख पर किया गया परिवर्तन इस प्रकार का है कि वह देखने से पता नहीं चलता तो यथाविधि भुगतान कर देने वाला पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त माना जाता है।

3. भुगतान के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से दायित्वमुक्ति (Discharge Otherwise than by Payment)- भुगतान के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से विलेख में वर्णित दायित्व से मुक्ति प्राप्त करने के तरीके एक प्रकार से अपवाद स्वरुप ही हैं। इस रुप में दायित्व-मुक्ति के निम्नलिखित प्रमुख ढंग है

3. निरस्तीकरण या विलोपन द्वारा (By Cancellation) धारा 82 (ए) के अनुसार, जब किसी विलेख का धारक विलेख के स्वीकर्ता का अथवा पृष्ठांकनकर्ता का नाम उसको मुक्त करने के इरादे से निरस्त या रद्द कर देता है तो ऐसा स्वीकर्ता अथवा पृष्ठाकनकर्ता उक्त धारक तथा उसके बाद वाले पक्षकारों के प्रति अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

4. छुटकारे द्वारा (By Release)- यदि किसी विलेख का धारक, विलोपन के अतिरिक्त अन्य किसी विधि से उसके लेखक, स्वीकर्ता अथवा पृष्ठांकनकर्ता को उनके दायित्व से मुक्त कर देता है तो ऐसा पक्षकार धारक के प्रति धारक के बाद स्वामित्व प्राप्त करने वाले सभी पक्षकारों के प्रति छुटकारे के द्वारा अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

5. विलेख के देनदार (आदेशिती) को 48 घण्टे से अधिक का समय देने पर (By Allowing More Than 48 Hours to Drawee)- यदि किसी विपत्र का धारक उसके आहार्दी देनदार की स्वीकृति के लिये 48 घण्टे से अधिक समय (सार्वजनिक अवकाश के अतिरिक्त) प्रदान करता है, तो ऐसे सभी पक्षकार जो ऐसी छूट से सहमत नहीं हैं, धारक के प्रति अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं।

6. चैक को देरी से प्रस्तुत करने पर (Discharge by Delay in Presentation of Cheque)- एक चैक को निर्गमित करने के बाद उचित समय में भुगतान के लिये प्रस्तत न करने पर यदि चैक के लेखक (आहर्ता) (Drawer) को कोई हानि होती है तो चैक का लेखक उस सीमा तक अपने दायित्व से मुक्त माना जाता है, परन्तु धारक उस सीमा तक बैंक का ऋणदाता माना जायेगा।

उदाहरण सुरेश 1,000 ₹ का एक चेक लिखता है, और जिस समय चैक को प्रस्तुत किया जाना चाहिये उस समय इसका भुगतान करने के लिये बैंक में उसके पर्याप्त कोष हैं। चैक प्रस्तुत करने से पूर्व बैंक फेल हो जाता है। सुरेश अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है, परन्तु उसका धारक बैंक से चेक की राशि वसूल कर सकता है।

7. मयादित अथवा सीमित स्वीकृति की दशा में (Discharged by Onli m ited Acceptance) (धारा 86)- जब किसी बिल का धारक पूर्ववर्ती पक्षकारों (अपने से पहले वाले पक्षकारों) की सहमति के बिना बिल के स्वीकता द्वारा दी गई शर्तयुक्त या सीमित स्वीकृति के लिये सहमत हो जाता है तो सभी पूर्ववर्ती पक्षकार, जिनकी उक्त स्वीकति के लिये सहमति प्राप्त नहीं की गई। है. धारक के प्रति तथा उसके बाद वाले पक्षकारों के प्रति अपने-अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं।

8. महत्त्वपूर्ण परिवर्तन द्वारा (By Material Alteration) (धारा 87)- यदि कोई धारक पूर्व पक्षों की सहमति के बिना विलेख में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करता है तो उसके पूर्व के पक्ष अपने दायित्व से मक्त हो जाते हैं। परन्तु परिवर्तित विलेख का स्वीकर्ता अथवा पृष्ठांकनकर्ता अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।

इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान रखना आवश्यक है कि यदि परिवर्तन पूर्व पक्षों की सहमति से या सभी पक्षों की सामान्य इच्छा को पूर्ण करने के उद्देश्य से किया जाये तो अन्य पक्षों का दायित्व समाप्त नहीं होता।

9. अनादरण की सूचना देने पर (धारा 93)- जब किसी विलेख का धारक इसके अनादरण की सूचना उचित समय के अन्दर सभी पूर्व पक्षकारों को नहीं देता है तो वे सभी पक्षकार ऐसे धारक के प्रति अपने दायित्व से मुक्त हो जाते हैं।

10. स्वीकर्ता के धारक बनने पर (By Acceptor Becoming Holder)(धारा 90)- जब परक्रामित किये गये विनिमय-पत्र का स्वीकर्ता देय तिथि पर या उसके बाद विलेख का पुन: धारक बन जाता है तो उस विपत्र के सभी पक्षकार दायित्व मुक्त हो जाते हैं।

11. कानून लागू हो जाने पर (By Operation of Law)– कभी-कभी किसी कानून के लागू हो जाने पर भी कोई पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त जाता है। उदाहरण के लिये, दिवालिया अधिनियम के अन्तर्गत दिवालिया घोषित हो जाने पर ऋणी अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है। इसी प्रकार देय तिथि के तीन वर्ष की अवधि में कानूनी कार्यवाही न करने पर ऋण Time Barred हो जाता है तथा दायी पक्ष अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

Payment Instrument Discharge Parties

महत्त्वपूर्ण/तात्विक/सारवान परिवर्तन

(Material Alteration)

किसी भी विलेख में पक्षकारों की सहमति के बिना महत्त्वपूर्ण या तात्विक/सारवान परिवर्तन करने से विलेख व्यर्थ एवं निष्प्रभावी हो जाता है। महत्त्वपूर्ण, तात्विक या सारवान परिवर्तन से तात्पर्य सामान्यतः किसी ऐसे परिवर्तन से लगाया जाता है जिससे विलेख का मूल अभिप्राय एवं वैधानिक प्रभाव परिवर्तित हो जाता है। ऐसे परिवर्तन से पक्षकारों के अधिकारों, दायित्वों, तथा उनकी वैधानिक स्थिति में इस प्रकार का परिवर्तन हो जाता है कि वे उनके मूल रुप से भिन्न हो जाते हैं।

भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में स्पष्ट किया है कि महत्त्वपूर्ण परिवर्तन वह है

(i) जिससे पक्षकारों के अधिकारों, दायित्वों तथा उनकी वैधानिक स्थिति, जो विलेख द्वारा मूल रुप में निर्धारित की गई थी, से भिन्न हो जाती है।

(ii) जिससे विलेख के मूल रुप में निर्धारित वैधानिक प्रभाव में किसी भी प्रकार का परिवर्तन हो जाता है, अथवा

(iii) जो मूल विलेख से आबद्ध पक्षकार को प्रतिकूल रुप से प्रभावित कर सकता है।

(Loonkaran Sethia Vs. Evan E. John, AIR (1977) SC 336)

इससे पूर्व भी भारत के उच्चतम न्यायालय ने विलेख में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के लक्षणों की ओर संकेत किया था। इतना ही नहीं, भारत के कई उच्च न्यायालयों ने भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट किये हैं। संक्षेप में, महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से तात्पर्य विलेख में किसी भी ऐसे परिवर्तन से है

(i) जो विलेख के पक्षकारों के अधिकारों एवं दायित्वों में परिवर्तन कर देता है।

(ii) जो विलेख के पक्षकारों की वैधानिक स्थिति में मूलभूत परिवर्तन कर देता है।

(iii) जो विलेख के वैधानिक प्रभाव को मूल रुप से परिवर्तित कर देता है।

(iv) जो विलेख के पक्षकारों की स्थिति को प्रतिकल या अनकल (Prejudicial or beneficial) ढंग से परिवर्तित कर देता है।

(v) जो विलेख के वैधानिक चरित्र या पहचान (Legal identity or character) का

परिवर्तित कर देता है।

(vi) जा विलेख को ऐसी वैधानिक प्रभाव वाली भाषा में बदल देता है जो उस भाषा से भिन्न है। जो यह मूल रुप से व्यक्त करता था।

(vii) जो विलेख के व्यावसायिक एवं वैधानिक प्रभाव को परिवर्तित कर देता है।

(viii) जो विलेख के मूल आधार (Foundation) को ही इस प्रकार हिला देता है कि उसे वही विलेख नहीं कहा जा सकता है जिससे उसके पक्षकार सहमत थे।

प्रभावकारी परिवर्तन (Effective Alteration) : कोई परिवर्तन तब प्रभावी माना जाता है जबकि वह निम्नांकित शर्तों को पूरा करता है :

(i) परिवर्तन महत्त्वपूर्ण (material) हो।  (ii) परिवर्तन जान बूझकर किया गया हो न कि अनजाने में हो गया हो।  (iii) परिवर्तन अनुचित तरीके से किया गया हो।  (iv) परिवर्तन विलेख के मुखपृष्ठ पर स्पष्ट दिखायी देता हो।

ऐसा परिवर्तन ही विलेख को व्यर्थ एवं प्रभावहीन बना सकेगा। उदाहरण के लिए, सामान्यतः

निम्नांकित परिवर्तनों को महत्त्वपूर्ण परिवर्तन माना जाता है :

(i) तिथि में परिवर्तन। (i) भगतान के समय में परिवर्तन। (iii) विलेख पर भुगतान का समय अंकित न होने पर पक्षकारों की सहमति के बिना उसे ‘माँग पर देय’ बना देना। (iv) भुगतान के स्थान में परिवर्तन। () भगतान का स्थान जोड़कर परिवर्तन। (vi) देय धनराशि में परिवर्तन। (vii) भुगतान विधि में परिवर्तन-आदेशानुसार देय चैक को वाहक चैक बना देना। (viii) पृष्ठांकन की तिथि में परिवर्तन। (ix) ब्याज या ब्याज की दर में परिवर्तन। (x) वचन-पत्र में खाली स्थान पर वचनदाता की सहमति के बिना ब्याज दर लिखना। (xi) पक्षकारों में परिवर्तन करना। (xii) वचन-पत्र पर वचनदाता की सहमति के बिना स्टाम्प लगाना। (xiii) अपर्याप्त स्टाम्पयुक्त विलेख पर स्टाम्प लगाना।

प्रभावहीन परिवर्तन (Ineffective Alterations): निम्नांकित परिवर्तन महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावहीन होने के कारण विलेख को दूषित नहीं कर पाते हैं :

1 किसी विलेख के जारी करने से पूर्व या किसी विलेख के किसी पक्षकार के पास पहँचने से पूर्व किया गया महत्त्वपूर्ण परिवर्तन।

2. विलेख की लिपिकीय या सामान्य त्रुटि को दूर करने हेतु किया गया परिवर्तन। उदाहरणार्थ, विलेख पर सन् 2002 के स्थान पर 2020 लिख देने पर सही करने हेतु परिवर्तन करना।

3. विलेख के मूल पक्षकारों की समानान्तर या सामूहिक भावना को पूरा करने हेतु किया गया कोई परिवर्तन।

4. पक्षकारों की सहमति से किया गया कोई परिवर्तन।

5. पक्षकार की पहचान बनाने के उद्देश्य से उसके नाम के साथ उसका उपनाम जोड़ना।

6. कोई भी ऐसा परिवर्तन जो महत्त्वपूर्ण नहीं हो।

अधिकत या वैधानिक परिवर्तन (Authorised or Legal Alterations):

निम्नांकित परिवर्तनों को अधिनियम के अन्तर्गत वैधानिक एवं अधिकृत किया गया है:

(i) हस्ताक्षरयुक्त एवं स्टाम्पयुक्त किसी अपूर्ण विलेख को पूर्ण करना।

(ii) कोरे या निरंक पृष्ठांकन को पूर्ण पृष्ठांकन में परिवर्तित करना।

(iii) किसी विपत्र पर सशर्त या सीमित स्वीकृति देना।

(iv) किसी अरेखांकित चैक को रेखांकित करना।

(v) वाहक चैक को आदेशानुसार देय चैक में परिवर्तित करना।

महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के परिणाम

(Consequences/Effects of Material Alterations)

यदि किसी विलेख में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन पक्षकारों की सहमति के बिना किया जाता है तो उसके निम्नांकित परिणाम होते हैं :

1. विलेख का व्यर्थ हो जाना-विलेख में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर देने से वह विलेख उन पक्षकारों के विरुद्ध व्यर्थ या निष्प्रभावी हो जाता है (i) जो ऐसे परिवर्तन के समय उस विलेख के | पथकार थे तथा जिन्होनें ऐसे परिवर्तन के लिए अपनी सहमति नहीं दी थी। किन्त यदि ऐसा परिवर्तन पत्रकारों के सामान्य इरादे या उनकी सामान्य भावना को पूरा करने के लिये किया गया है तो वह विलेख व्यर्थ नहीं होगा।

2.पृष्ठांकक की दायित्व मुक्तियदि कोई पृष्ठांकिती विलेख में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कर देता है। तो उसका पष्ठांकक (Endorser) उसके प्रतिफल के सम्बन्ध में अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

3. धारक प्रतिफल का अधिकारी नहींकोई भी धारक किसी भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के बाद विलेख के प्रतिफल को वसूल करने का अधिकारी नहीं होता है। (Suresh Chandra Vs. Satish Chandra, AIR (1983) All 81).

परिवर्तनयुक्त विलेख के भुगतान करने वाले को संरक्षण (Protection)

यदि विलेख के प्रति दायी कोई पक्षकार किसी महत्त्वपूर्ण परिवर्तनयुक्त विलेख का भुगतान कर देता है तो निम्नांकित दशाओं में वह अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है :

(i)  यदि उस विलेख पर परिवर्तन प्रतीत या दष्टिगोचर नहीं होता है.

(ii) यदि उस पक्षकार ने यथाविधि भुगतान कर दिया है, तथा

(iii) यदि भुगतान उसी व्यक्ति या बैंक द्वारा किया गया है, जो उस विलेख के भुगतान हेतु दायी

(1)) संक्षेपित चैक की इलेक्ट्रॉनिक छवि में परिवर्तन-यदि कोई चैक संक्षेपित चैक की इलेक्ट्रॉनिक छवि में है तो उसकी इलेक्ट्रॉनिक छवि तथा संक्षेपित चैक के प्रकट अभिप्राय (Apparent tenor) में किसी भी प्रकार के अन्तर को महत्त्वपूर्ण अन्तर माना जायेगा। ऐसी दशा में बैंक या समाशोधन गृह का यह कर्तव्य होगा कि वह चैक को संक्षेपित करते समय एवं उसकी छवि को प्रेषित करते समय संक्षेपित चैक की इलेक्ट्रॉनिक छवि के प्रकट अभिप्राय की यथार्थता को सुनिश्चित करे। (सन् 2002 में जोड़ी गयी नई धारा 89 (2))

बैंक द्वारा सत्यापित करना-कोई भी बैक या समाशोधन गृह जो किसी संक्षेपित चैक की इलेक्ट्रॉनिक छवि को प्राप्त करता है, उसका कर्तव्य है कि वह उसे प्रेषित करने वाले पक्षकार से इस बात की जाँच करे कि प्रेषित की गई एवं प्राप्त की गई छवि हूबहू या एक समान ही है। (सन् 2002 में जोड़ी गयी नई धारा 89 (3))

Payment Instrument Discharge Parties

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 विनिमय साध्य विलेख अधिनियम में उल्लिखित दायित्व से मुक्ति के विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए।

State and explain the different modes of discharge from liability dealt with by Negotiable Instrument Act.

2. वे कौन-सी दशाएँ हैं, जिनमें विनिमय साध्य विलेख का पक्षकार दायित्व से मुक्त हो जाता है ?

What are the circumstances in which a party to a negotiable instrument is discharged from liability ?

3. विनिमय साध्य विलेख में मूलभूत परिवर्तन का अर्थ बताइये। ऐसे परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ता है ? उदाहरण दीजिये। विनिमय साध्य विलेख अधिनियम द्वारा अधिकृत परिवर्तन कौन-से है ?

Explain the meaning of material alteration in a Negotiable Instrument. Which particular alteration have been authorised by the Negotiable Instrument Act ?

4. इस नियम के क्या अपवाद है कि किसी विनिमय साध्य विलेख में मूलभूत परिवर्तन करते ही वे सभी पूर्व-पक्षकार दायित्व मुक्त हो जाते हैं, जो इस परिवर्तन के समय विलेख से सम्बन्धित थे।

What are the exceptions to the rule that the effect of material alteration of a negotiable instrument is to discharge all the parties on it at the time of the alteration?

5. विलेख की मुक्ति एवं विलेख से सम्बन्धित दायित्व से एक या दो पक्षकारों की मुक्ति, क्या इन दोनों में कोई अन्तर है? यदि हाँ, तो क्यों?

The is there any difference between discharge of an instrument and discharge of one of two parties from the liabilities related to the instrument ? If yes, why?

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 विनिमय साध्य विलेख के पक्षकार की विमुक्ति तथा विलेख की विमुक्ति से आप क्या समझते हैं ।

What do you mean by discharge of a party and discharge o instrument?

2. विनिमय साध्य विलेख के प्रभावहीन परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।

State the alterations of a negotiable instrument which are not effective.

3. मूलभूत परिवर्तन से क्या आशय हैं ?

What is meant by material alteration ?

4. विलेख पर देय ब्याज के सम्बन्ध में क्या प्रावधान हैं ?

What are the provisions for interest on instruments ?

5. विलेख में मूलभूत परिवर्तन का क्या प्रभाव होता है ?

What is the effect of material alteration on instrument ?

6. “विनिमय-साध्य विलेख में किया गया मुलभूत परिवर्तन उसे व्यर्थ बना देता है।” टिप्पणी कीजिए।

“Any material alteration of a negotiable instrument renders the same void.” Discuss

7. कोन से परिवर्तन मूलभूत परिवर्तन की श्रेणी में आते है ?

Which alterations are considered as material alterations ?

Payment Instrument Discharge Parties

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answers)

1 आहायीं को निम्नलिखित से अधिक समय देने पर पूर्व पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त हो जाते

(By giving more time than mentioned to drawee all other parties are discharged from their liability) :

(अ) 12 घण्टे (12 Hours)

(ब) 24 घण्टे (24 Hours)

(स) 30 घण्टे (30 Hours)

(द) 48 घण्टे (48 Hours) (1)

2. महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से आशय-

(By material alteration means) :

(अ) अपूर्ण लेखपत्र को पूर्ण करना (To Complete the Incomplete Instrument)

(ब) ब्याज की दर में परिवर्तन करना (To Change the Rate of Interest) (1)

(स) स्वीकृति को मर्यादित करना (To Make the Acceptance Qualified)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above)

3. महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं होता है-

(There is no material alteration) :

(अ) वाहक चैक को आदेशित चैक बनाना (On making a Bearer Cheque to Order Cheque) (1)

(ब) पक्षकारों में परिवर्तन (Alteration in Parties)

(स) स्थान में परिवर्तन (Alteration in Place)

(द) उपर्युक्त सभी (All of the above)

4. निम्नलिखित में किसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं माना जाता ?

(Which of the following is not treated as material alteration) :

(अ) तिथि में परिवर्तन (Alteration of date)

(ब) राशि में परिवर्तन (Alteration of amount)

(स) भुगतान के समय में परिवर्तन (Alteration of time of payment)

(द) लिपिक त्रुटि में परिवर्तन (Clerical Alteration) (1)

5. विलेख की मक्ति तब मानी जाती है जब निम्नलिखित में कौन सा पक्षकार दायित्व से मक्त हो। जाता है-

The discharge of which party from the liability will result in discharge of  document):

(अ) मल रूप से दायी पक्षकार (The party originally liable)

(स) आगे के दायी पक्षकार (The party has subsequent liability)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

6. एक विनिमय विपत्र मुक्त माना जाता है जब स्वीकर्ता परक्रामण वापसी द्वारा विपत्र का धारक हो जाता है-

(When there is negotiation back then the bill is assumed as discharged) :

(अ) परिपक्वता पर (On maturity)

(ब) परिपक्वता उपरान्त (After maturity)

(स) उपरोक्त दोनों (Both the above) (1)

(द) परिपक्वता पूर्व (Before maturity)

7. बिना पक्षकारों की अनुमति के यदि विलेख में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया जाय तो ऐसे परिवर्तन से कौन से पक्षकार दायित्व मुक्त हो जाते हैं-

(If without the consent of all the other parties any material alteration will discharge the parties not giving consent):

(अ) परिवर्तन के उपरान्त (After alteration)

(ब) परिवर्तन के पूर्व (Before alteration) (1)

(स) परिवर्तन के कारण (As a result of alteration)

(द) परिवर्तन के बिना (Without alteration)

Payment Instrument Discharge Parties

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Presentment Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Negotiable Instrument Notes in Hindi

Latest from BCom 1st Year Business Regulatory Framework Notes