BCom 1st Year Practice Business Communication Study material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Practice Business Communication Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Practice Business Communication Study Material Notes in Hindi: Group Discussion Essentials of Group Discussion Types of Group Discussion Pre Requisites of successful Group Discussion Merits of Group Discussion Demerits of Group Discussion  Conducting of Seminar Objects of seminar How to make seminar Effective Mock Interview Characteristics of Mock Interview Definitions of Interviews Various Tips of Mock interview Examinations Questions Long Answer Questions Short Questions Answer Objectives Questions:

Practice Business Communication
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BCom 1st Year Business mis Communication Barriers and Improvement Study material Notes in Hindi

व्यावसायिक संचार की कार्यविधियाँ

(Practices in Business Communication)

जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये प्रभावी संचार कला का होना आवश्यक है। जैसे-जैसे व्यक्ति सामाजिक जीवन के क्षेत्र में एक-एक कदम आगे बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे संचार कला का महत्त्व भी बढ़ता जाता है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें अपना खुद का व्यवसाय करना है या दूसरे के व्यवसाय में प्रबन्धक बनना है या जनता का प्रतिनिधि बनना है तो उन्हें संचार कला का विशेष ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। व्यवसाय के क्षेत्र में यह योग्यता विशेषत: लाभदायक सिद्ध होती है। एक व्यवसायी का कार्य मुख्य रूप से शारीरिक न होकर मानसिक होता है, इसलिये एक कुशल व्यवसायी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने विचारों तथा जानकारी को कितने प्रभावपूर्ण तरीके से संचारित करता है। किसी विद्यार्थी को पढ़ाई पूरी करने के बाद यदि नौकरी में आना है तो उसे साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुजरना होगा और साक्षात्कार में सफल होने के लिये विद्यार्थी को संचार कला में प्रवीण होना आवश्यक है। अत: विद्यार्थियों को संचार कला में निपुण होने का प्रयास करना चाहिये। इससे वें जिस किसी भी क्षेत्र में जायेंगे उन्हें सफलता हासिल होती रहेगी। इस सम्बन्ध में जान डैविसन रौक फैल्लर ने कहा है किलोगों के साथ व्यवहार करने की योग्यता ऐसे ही एक क्रय योग्य वस्तु है जैसे चीनी और कॉफी और मैं इस संसार में इस योग्यता के लिये सबसे अधिक धन खर्च करता हूँ।

इस अध्याय में संचार की मुख्य व्यवहारिक क्रियाओं का वर्णन किया गया है जो कि निम्नलिखित प्रकार हैं

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सामूहिक विचार विमर्श/परिचर्चा (Group Discussion) सामूहिक परिचर्चा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सामूहिक + परिचर्चा। समूह से अभिप्राय दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों के संगठन से है जो कि आपस में मिलकर किसी कार्य को पूरा करते हैं। जब दोनों व्यक्तियों के उद्देश्य किसी कार्य विशेष से सम्बन्धित एक से होते है तभी समूह में किसी कार्य को सम्पन्न किया जाता है। दोनों व्यक्ति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कुछ मापदण्डों को आधार मानकर व्यवसाय सम्प्रेषण के द्वारा लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। समूह केवल वही होता है जो सम्प्रेषण के बारे में कुछ शर्तों की पूर्ति करे। इन शर्तों के अन्तर्गत दो व्यक्तियों का आपस में मिलने का कुछ उद्देश्य होना चाहिए तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये कुछ मापदण्डों को अपनाना चाहिए। यह समूह

औपचारिक, अनौपचारिक, प्राथमिक या द्वितीयक हो सकते हैं। एक संस्था अथवा संगठन में कईं व्यक्ति होते हैं जिनके द्वारा व्यावसायिक संस्था अथवा संगठन में समन्वित प्रयास किया जाता है।

जब एक से अधिक व्यक्ति एक साथ बैठकर आपस में अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं अर्थात वार्तालाप करते हैं तो उसे ही सामूहिक परिचर्चा / विचार-विमर्श कहते हैं। सामूहिक परिचर्चा, सामूहिक निर्णय लेने की ऐसी तकनीक है जिससे अधिकांश व्यक्तियों को निर्णय के पक्ष में किया जा सकता है। किसी संगठन की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि उस संगठन में व्यवहारिक निर्णय लिये जाएं और व्यवहारिक निर्णय तभी सम्भव हैं जब ये निर्णय सामूहिक परिचर्चा के माध्यम से लिये जायेंगे। समूह चर्चा के माध्यम से हम अपने ज्ञान, विचार व अनुभव को अन्य लोगों तक पहुँचाते हैं और अन्य लोगों के ज्ञान, विचार एवं अनुभव को ग्रहण करते हैं। इससे संगठन में सद्भावपूर्ण माहौल (वातावरण) बनता है जो व्यक्ति के आपसी सम्बन्धों को मजबूती प्रदान करता है तथा संगठन को प्रभावशाली बनाता है।

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समूह परिचर्चा / विचार विमर्श एक प्रकार का मौखिक सम्प्रेषण का रूप है जिसमें अधिकारी तथा कर्मचारी संगठन की समस्याओं या नीतियों पर आपस में बैठकर विचार-विमर्श करते हैं। संस्था की कार्यविधि का मूल्यांकन करते हैं तथा भविष्य के लिये योजनाएँ तैयार करते हैं। समूह परिचर्चा में योग्य कर्मचारियों को अपने सम्प्रेषण कौशल को प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त होता है। आजकल सभी प्रबन्ध संस्थान एम० बी० ए० कोर्स में प्रवेश हेतु विद्यार्थियों को सब प्रकार से उपयुक्त पाने के बाद समूह परिचर्चा के माध्यम से सम्प्रेषण कौशल को परखने के बाद प्रवेश हेतु चयनित करते हैं। अतः सय परिचर्चा अभ्यर्थियों के प्रवेश से लेकर संस्था में प्रबन्धक बनने एवं उसके बाद तक की क्रियाओं के लिय। एक महत्त्वपूर्ण यन्त्र है।

सामूहिक विचार विमर्श, मौखिक संचार की वह प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए व्यक्तियों की सभा की जाती है जिनमें विभिन्न समस्याओं को रखा जाता है तथा उन समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार विमर्श कर सर्वोत्तम विकल्प को चुना जाता है।

अत: व्यक्तियों का औपचारिक या अनौपचारिक ऐसा संगठन जो किसी विषय या समस्या पा परिचर्चा या सहचिन्तन करता है, उसे सामूहिक परिचर्चा या सहचिन्तन कहते हैं। सरल शब्दों में, किसी सामूहिक समस्या का हल खोजने के उद्देश्य से मिल बैठकर सोचने के लिए एकत्र व्यक्तियों के छोटे। समूह द्वारा की जाने वाली बातचीत सामूहिक परिचर्चा या सहचिन्तन है।

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सामूहिक विचार-विमर्श के आवश्यक तत्त्व

(Essentials of Group Discussion)

सामूहिक विचार-विमर्श के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं

(1) उद्देश्य (Purpose) सामूहिक विचार-विमर्श का पहला तत्व उद्देश्य है जोकि स्पष्ट होना चाहिए। बिना स्पष्ट उद्देश्य के सदस्यों का समय उद्देश्य रहित बातों में नष्ट होगा।

(2) नियोजन (Planning) सामूहिक विचार-विमर्श के लिए अग्रिम नियोजन (Advance Planning) आवश्यक है। विचार-विमर्श की कार्य सूची (Agenda) सदस्यों को पूर्व सूचना, तिथि, समय, विचार-विमर्श का स्थान सावधानी पूर्वक पहले से तय होने चाहिये।

(3) भागीदारी (Participation) सामूहिक विचार-विमर्श में समूह के प्रत्येक सदस्य से आशा की जाती है कि वह समूह की परिचर्चा में योगदान करे। एक बड़े समूह के सभी सदस्य परिचर्चा में योगदान नहीं कर सकते। वे सक्रिय श्रोता के रूप में भाग लेते हैं। छोटे समूह में लगभग सभी सदस्य विचार-विमर्श में भाग लेते हैं।

(4) नेतृत्व (Leadership)-सामूहिक विचार-विमर्श की सफलता काफी सीमा तक एक अच्छे नेता पर निर्भर करती है। नेता ही परिचर्चा को आरम्भ करता है तथा उसका संचालन करता है।

(5) अनौपचारिकता (Informality).-सामूहिक विचार-विमर्श का एक आवश्यक तत्त्व अनौपचारिक है। सभी सदस्य अपनी राय प्रकट करने के लिए स्वतन्त्र होने चाहिएँ। विचार-विमर्श का वातावरण अनौपचारिक एवम् मधुर होना चाहिए।

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समूह विचार-विमर्श के प्रकार

(Types of Group Discussion)

समूह परिचर्चा मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है

1 औपचारिक एवं अनौपचारिक (Formal and Informal)-जब कोई ऐसा संगठन, जिसका गठन औपचारिक रूप से किया गया हो, आपस में मिल बैठकर विचारों का आदान प्रदान करता है तो उसे औपचारिक समूह परिचर्चा की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके ठीक विपरीत यदि अनौपचारिक रूप से स्थापित कोई भी संगठन आपस में एकजुट होकर किसी बात पर विचार-विमर्श करके किसी निर्णय पर पहुँचता है तो इसे अनौपचारिक समूह विचार-विमर्श कहते हैं। औपचारिक समूहों में आवश्यक उद्देश्य और भिन्न-भिन्न सदस्यों की भूमिका पूर्व निर्धारित होती है जबकि अनौपचारिक समह स्वाभाविक रूप से बन जाते हैं अर्थात् ये आपसी जरूरत के कारण तत्कालीन मेल-जोल से निर्मित होते हैं।

2. प्राथमिक एवं द्वितीयक (Primary and Secondary)-ऐसे समूह जिनका आकार छोटा होता है, जिनमें सम्बन्ध अत्यधिक निकट और मैत्रीपूर्ण होते हैं उन्हें प्राथमिक समह की संज्ञा दी जाती है। जैसे परिवार मित्रों का समूह, खेल की टीम आदि। द्वितीयक समूह वे समह होते हैं जो व्यक्तिगत

नयों पर आधारित नहीं होते हैं तथा बड़े स्तर पर होते हैं जैसे धार्मिक समह, एक कमपनी के कर्मचारी कॉलेज या विश्वविद्यालय के कमचारा आदि। उपरोक्त के मध्य जब विचारों का आदान-प्रदान होता है तो उसे ही प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह विचार-विमर्श कहते हैं।

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समूह चर्चा के उद्देश्य

(Objectives of Group Discussion)

(I) सुझाव प्राप्त करना (Obtaining Suggestions)-समूह चर्चा द्वारा विभिन्न रचनात्मक विचार एवं सुझाव प्राप्त होते हैं। इन विचारों एवं सझावोंप्राप्त होते हैं। इन विचारों एवं सुझावों के माध्यम से संगठन की समस्याओं का निवारण किया जाता है।

(2) विचारों का आदान-प्रदान (Exchange of Ideas)-समूह चर्चा में विभिन्न प्रकार के विचारों एवं आदर्शों को प्रस्तुत करके प्रतिक्रियाओं को प्राप्त किया जाता है। इससे प्रतिभागी प्रश्न पूछने एवं चर्चा करने के लिए उत्साहित होते हैं तथा विचारों को रखने में आत्मविश्वास का प्रदर्शन करते हैं।

(3) रचनात्मकता (Creativity)-समूह चर्चाएँ स्पष्ट एवं रचनात्मक होती हैं, क्योंकि समूह चर्चा में विशिष्ट प्रकार के व्यक्तियों की सहभागिता होती है एवं इन विशिष्ट व्यक्तियों के निर्णय स्पष्ट होते हैं।

(4) निर्णय लेना (Taking Decision)-समूह में विशिष्ट प्रकार के व्यक्ति सम्मिलित होते हैं जो समस्या पर गम्भीर विचार विमर्श करके निर्णय लेते हैं। समूह द्वारा लिये गए निर्णय उपक्रम में सभी को मान्य होते हैं।

सामहिक विचार-विमर्श की तैयारी (Preparation of Group Discussion)-सामूहिक चर्चा के आयोजन के लिए निम्नलिखित तैयारी करनी होती है

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1 आवश्यक व्यवस्थाएँ (Essential Arrangements)

(i) दिनांक, स्थान, समय एवं समयावधि।

(ii) समूह चर्चा में कौन सम्मिलित होंगे?

(iii) समूह चर्चा की अध्यक्षता कौन करेगा?

(iv) व्याख्यान बोलने के लिए कौन आमन्त्रित करेगा?

2. लिखित कार्य (Written Work)

(i) विषय सूची/मुख्य बिन्दु/कार्यसूची।

(ii) पूर्व चर्चा के बिन्दु (यदि हों तो)।

(iii) तैयार पूर्ण रिपोर्ट का अध्ययन।

(iv) लिखित रिपोर्ट या चर्चा के लिए आवश्यक चित्र।

3. उद्देश्य (Objectives)

(i) आपका लक्ष्य क्या है?

(ii) आप किस प्रकार की चर्चा आयोजित कर रहे हैं?

(iii) क्या आपको प्रचार की आवश्यकता है?

(iv) क्या आपको किसी विषय पर विशेषज्ञ की सलाह की आवश्यकता है?

(vi) क्या आप चर्चा के कारण से परिचित हैं?

4. सहयोग (Co-operation)

(i) क्या आप दृश्यिक उपकरणों के प्रयोग की आवश्यकता महसूस करते हैं?

(ii) क्या कोई लिखित रिपोर्ट की आवश्यकता है?

(iii) विषय पर वहाँ कितना सामान्य ज्ञान उपलब्ध है?

(iv) यदि आप प्रस्तुति करते हैं तो क्या आप आवश्यक बिन्दुओं को पढेंगे और उनका अनुपालन करेंगे?

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अध्यक्ष, रिकॉर्डर तथा सदस्यों की भूमिका (The Role of Chairperson, Recorder and Members)-जब भी किसी व्यावसायिक संगठन में कोई भी विचार-विमर्श समूह में किया जाता है तो समूह के अध्यक्ष के उत्तरदायित्व विचार-विमर्श के उद्देश्य से बढ़ जाते हैं, जिसके अन्तर्गत अध्यक्ष यह देखता है कि समूह में विचार-विमर्श करते समय निर्धारित नियमों का पालन किया गया है या नहीं क्योंकि समूह का अध्यक्ष होने के कारण उसका यह उत्तरदायित्व है कि वह विचार-विमर्श के दौरान नियमों को बनाए रखे।

(1) अध्यक्ष का उत्तरदायित्व (Responsibility of Chairperson)-समूह में विचार-विमर्श करने से पूर्व अध्यक्ष समूह के अन्य सदस्यों को विचार-विमर्श करने के विषय के बारे में बताता है तथा यदि लिखित रूप में विचार-विमर्श करने के विषय पर कुछ तथ्य हैं तो उन तथ्यों को समूह में उपस्थित सभी सदस्यों में बँटवाता है जिससे अन्य सदस्यों को भी विचार-विमर्श के विषय में पता चल सके। एक अध्यक्ष को अपना एजेण्डा विचार-विमर्श से पहले ही तैयार कर लेना चाहिए तथा आवश्यक चीजों को विचार-विमर्श के दौरान उपलब्ध करा देना चाहिए। विचार-विमर्श के दौरान समय का विशेष महत्त्व होता है क्योंकि यदि अध्यक्ष विचार-विमर्श को अधिक लम्बा खींचता है तो यह एक समय नष्ट करने वाली प्रक्रिया होगी। अतः अध्यक्ष को चाहिए कि वह समूह में अपनी बात को एक निर्धारित समय में ही समाप्त करे क्योंकि विचार-विमर्श के दौरान अधिक समय लेने का विचार-विमर्श पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

विचार-विमर्श को समाप्त करने से पूर्व अपने विचारों का सारांश या मख्य बातें अवश्य बतानी चाहिये। विचार-विमर्श में मुख्य बातें स्पष्ट करने के पश्चात् इनका मूल्यांकन किया जाता है तथा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि विचार-विमर्श का मूल्यांकन करने के पश्चात् एक रिपोर्ट बनाकर लिखित रूप में सचिव को दे दी जाए तथा इस रिपोर्ट की एक-एक प्रति अन्य सदस्यों को भी वितरित की जाए तथा विचार-विमर्श कर लिये गये निर्णयों के बारे में सदस्यों को पत्र भेज कर जानकारी दे दी जाए। इसे निम्न प्रकार से भी समझा जा सकता है

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(2) रिकार्डर का उत्तरदायित्व (Responsibility of Recorder) किसी भी समूह में विचार-विमर्श के दौरान विचार-विमर्श की सम्पूर्ण प्रक्रिया को रिकॉर्ड करने वाला व्यक्ति रिकार्डर कहलाता है। यह व्यक्ति समूह में विचार-विमर्श करने से पूर्व समूह के अध्यक्ष से इस विषय पर वार्तालाप करता है। यह व्यक्ति प्राय: उस संगठन का सचिव होता है। सचिव के उत्तरदायित्व निम्न प्रकार है

विचार-विमर्श से पूर्व (Pre-Discussion) समूह में विचार-विमर्श करने से पूर्व सचिव का यह उत्तरदायित्व होता है कि वह विचार-विमर्श के लिए एक निर्धारित स्थान का प्रबन्ध करे तथा समूह के अन्य सदस्यों को विचार-विमर्श का स्थान, दिनांक तथा समय के विषय में पहले से ही सूचित कर दे तथा विचार-विमर्श से पूर्व इससे सम्बन्धित यदि कोई जानकारी है तो वह अन्य सदस्यों को वितरित कर दे। विचार-विमर्श के समय के दौरान (During Discussion)-समूह में विचार-विमर्श के दौरान सचिव वहाँ उपस्थित रह कर सम्पूर्ण प्रक्रिया को ध्यान से सुनता है तथा उस विचार-विमर्श में प्रयुक्त मुख्य बातों को किसी कागज पर नोट कर लेता है तथा इन बातों को एक तथ्य के रूप में अपने पास रख लेता है। विचार-विमर्श के समापन के पश्चात् (Post Discussion)-विचार-विमर्श करने के। पश्चात् सचिव इन विभिन्न तथ्यों की जाँच करके इन्हें उच्च अधिकारियों को या छपाई (Press) के लिए देता है।

(3) सदस्यों का उत्तरदायित्व (Responsibility of Participants) किसी भी समूह में प्रत्येक सदस्य का यह उत्तरदायित्व होता है कि वह विचार-विमर्श के दौरान जागरूक रहे तथा विभिन्न विचारों को ध्यानपूर्वक सुने। यदि आप विचार-विमर्श के दौरान अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करेंगे तो अधिक जानकारी प्राप्त करने में असफल हो सकते हैं। एक सदस्य को समूह में विचार-विमर्श करने के पश्चात पूरे व्यावसायिक संगठन तथा व्यवसाय की कार्यप्रणाली के बारे में पता चलता है। विचार-विमर्श आपको अपनी योग्यता को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है। एक अच्छा सदस्य एक अच्छा नेता बन सकता है क्योंकि वह सम्पूर्ण प्रक्रिया को ध्यानपूर्वक सुनता एवं देखता है। इसके लिए उसे हमेशा अन्य सदस्यों से सहयोग की भावना रखनी चाहिए तथा दूसरे के विचारों को भी पूरा सम्मान देना चाहिए तथा समूह में विचार-विमर्श के दौरान अन्य सहयोगियों या सदस्यों को कभी भी बाधा नहीं पहुँचानी चाहिए तथा एजेण्डे का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। इस विषय पर कुछ जानकारी इत्यादि को एकत्रित करना चाहिए। एजेण्डा के साथ वितरित की गई सभी सामग्री का एक बार ध्यानपूर्वक अध्ययन अवश्य करना चाहिए तथा यदि आप विचार-विमर्श के दौरान अपनी बात रखना चाहते हैं तो उसे बिना किसी रूकावट के प्रस्तत करना चाहिए परन्तु इस बात का ध्यान अवश्य रहे कि हमारे द्वारा कहे गये शब्द छोटे तथा महत्त्वपूर्ण हों।

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सफल सामूहिक विचार-विमर्श की आवश्यक शर्ते

(Pre-requisites of Successful Group Discussion)

मह में विचार-विमर्श के दौरान लिखित संचार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि एजेण्डे के मेत विभिन्न विषय. जिन पर विचार-विमर्श किया जाना है तथा विचार-विमर्श में लगे समय का एक जाता है। इसके लिए प्रत्येक सदस्य को समूह विचार-विमर्श के अनुसार तथा। कम से बैठाया जाता है जिससे प्रत्येक सदस्य को विचार-विमर्श की प्रक्रिया ठीक से अराध्य एवं अन्य सदस्यों द्वारा किये जाने वाले विचार-विमर्श को समह के सभी। सपा में आ जाए तथा अध्यक्ष एव अन्य सदस्यों द्वारा किये जाने वाले बिना उपयुक्त (उचित) क्रम से बैठाया जाता है जिस व्यावसायिक संचार सदस्य ध्यानपूर्वक सुन सकें। इस सम्पूर्ण कार्य प्रणाली का प्रबन्ध व्यावसायिक संगठन का सचिव करता है तथा इस बात का ध्यान रखता है कि विचार-विमर्श के कम से कम एक माह पर्व सभी सदस्यों को इसका पता चल जाए। एक सफल विचार-विमर्श के लिए आवश्यक शर्ते निम्नलिखित हैं

1 विचारों का आदान-प्रदान (Exchange of Ideas)-समूह में विचार-विमर्श के दौरान विभिन्न विशेषज्ञ निर्धारित समस्या पर अपने-अपने मत प्रस्तुत करते हैं जिसके आधार पर समूह में उपस्थित सदस्यों को भी जानकारी प्राप्त होती है।

(2) उद्देश्य या लक्ष्य (Objective or Aim) समूह में उपस्थित सभी सदस्यों को इस विचार-विमर्श करने का मुख्य उद्देश्य भली प्रकार स्पष्ट होना चाहिए जिससे समूह उस उद्देश्य को पूरा कर सके अन्यथा समूह में विचार-विमर्श करने का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा।

(3) सहयोगात्मक वातावरण (Co-operative Environment)-समूह के अन्तर्गत एक ऐसा सहयोगात्मक वातावरण तैयार किया जाता है जिसके आधार पर समूह के अन्य सदस्य अपने विचारों को प्रस्तुत करने में बाधा का अनुभव न करें तथा बिना किसी डर के अपने विचारों को प्रस्तुत कर सकें।

(4) प्रोत्साहित करना (Appreciation)-समूह के अन्तर्गत सदस्यों द्वारा प्रस्तुत विचारों के आधार पर सदस्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए क्योंकि तभी वे और अधिक अच्छे विचारों को आपके सामने प्रस्तुत कर सकेंगे। इसके विपरीत किसी सदस्य को हतोत्साहित करने से वह सदस्य अगली बार अपने विचारों को आपके सामने प्रस्तुत नहीं करेगा।

(5) ध्यानपूर्वक सुनना (Attentiveness)-समूह के अन्तर्गत विचारों को प्रोत्साहन केवल तभी मिलेगा जब सदस्य विचार-विमर्श को ध्यानपूर्वक सुनेगे तथा अपना सम्पूर्ण ध्यान विचार-विमर्श के विषय पर लगाएंगे।

(6) सकारात्मक भावना (Positive Attitude)-विचार-विमर्श केवल तभी सफल हो सकता है जब विचार-विमर्श के सम्बन्ध में सभी सदस्यों की सोच सकारात्मक हो।

समूह विचार विमर्श के लाभ

(Merits of Group Discussion)

समूह विचार विमर्श के प्रमुख लाभ निम्नवत् हैं

(1) समस्या के समाधान का उत्तम विकल्प (Best Alternative to Solve Problem)-समूह में विचार विमर्श करने से किसी समस्या को हल करने के लिए विभिन्न विकल्प सामने आते हैं तथा उन विकल्पों में से उत्तम विकल्प का चयन किया जा सकता है।

(2) विश्वसनीयता (Reliability)-समूह चर्चा, श्रम की विशिष्टता एवं उसके महत्त्व को सम्मान देती है। समूह चर्चा में किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए विभिन्न विषयों में दक्ष व्यक्ति अपने विचारों एवं अनुभवों के द्वारा सहयोग प्रदान करते हैं। अत: कहा जा सकता है कि समूह चर्चा निष्कर्षों की उपयोगिता एवं विश्वसनीयता बढ़ाने के साथ-साथ निर्णय लेने की क्षमता में भी वृद्धि करती है।

(3) अधिक जानकारी प्राप्त होना (Obtain More Information)-समूह चर्चा में शामिल विभिन्न व्यक्ति सम्बन्धित विषय पर अपने-अपने विचार प्रस्तुत करते हैं। इसमें कई विशेषज्ञों के अथाह ज्ञान का निष्कर्ष होता है। अत: समूह में विचार विमर्श करने से सदस्यों को अधिक जानकारी प्राप्त होती है।

(4) सहयोग की भावना (Feeling of Co-operation)-समूह में विचार विमर्श करने से सदस्यों में सहयोग की भावना जागृत होती है। सामूहिक विचार विमर्श प्रतिबद्धता की भावना को जन्म देता है जिसमें निर्णयों की स्वीकृति एवं बँधे रहने की भावना छिपी होती है।

(5) ज्ञान में वृद्धि (Increase Knowledge)-समूह चर्चा ज्ञान में वृद्धि करती है तथा प्रतिभागियों को समझने में सहायता प्रदान करती है। ।

(6) शक्तिशाली संगठन के निर्माण में सहायक (Helpful in making Powerful Organisation)-समूह द्वारा लिये गए निर्णय संगठन में कार्य करने वाले सभी व्यक्तियों के हितों को ध्यान में रखकर लिये जाते हैं जिससे प्रबन्धकों व अधीनस्थों के मध्य मधुर सम्बन्ध बनते हैं जिससे संगठन शक्तिशाली बनता है।

(7) संस्था के साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग (Best Use of Resources)-समूह के द्वारा लिये गए निर्णय संस्था के हित में होते हैं जिससे साधनों के सर्वोत्तम प्रयोग को बढ़ावा मिलता है तथा संस्था के लाभों में भी वृद्धि होती है।

(8) समय का अनुकूल प्रयोग (Favourable Use of Time)-समूह में विचार-विमर्श करने से अकेले प्रबन्धकों द्वारा लिया जाने वाला निर्णय सभी सदस्यों द्वारा मिल कर लिया जाता है, जिससे समस्या का समाधान शीघ्रतापूर्वक होने से समय की बचत होती है।

सामूहिक विचार विमर्श की हानियाँ

(Demerits of Group Discussion)

यद्यपि सामूहिक विचार विमर्श के अनेक लाभ हैं, परन्तु इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं जो निम्नांकित प्रकार हैं

(1) निर्णय लेने में विलम्ब (Delay in Decision Making)-समूह में विभिन्न व्यक्तियों के भिन्न-भिन्न मत होते हैं जिससे किसी भी निर्णय तक पहुँचने के लिये बहुत अधिक समय लगता है।। इससे निर्णय लेने में देरी होती है।

(2) खर्चीली पद्धति (Expensive Method)-समूह में विचार विमर्श करने के लिये विभिन्न सदस्यों को नोटिस भेजना पड़ता है, मीटिंग की जगह निर्धारित करनी पड़ती है तथा विषय सामग्री भी वितरित करनी पड़ती है। इन सब कार्यों पर संगठन को अधिक व्यय करना पड़ता है। अत: यह निर्णय लेने की एक खर्चीली पद्धति है।

(3) सदस्यों के मध्य मन-मुटाव (Collision between Members)-समूह में विचार-विमर्श करने से कभी-कभी सदस्यों के मध्य मन-मुटाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। समूह के अन्तर्गत यदि सदस्यों के विचारों को पर्याप्त महत्त्व न दिया जाए या उनके विचारों को अस्वीकार कर दिया जाए तो ऐसे सदस्य अपने आपको अपमानित महसूस करके दूसरे सदस्यों द्वारा लिये जाने वाले निर्णयों में बाधा पहुँचाते हैं।

(4) समय अधिक लगना (Take More Time)-समूह में विचार-विमर्श करने के लिए समूह के विभिन्न सदस्यों को नोटिस भेजना आवश्यक होता है जिससे सदस्यों को किस विषय पर विचार-विमर्श किया जाना है, के बारे में पता लग सके। नोटिस के अन्तर्गत विचार-विमर्श का समय, दिनांक तथा स्थान के बारे में लिखा जाता है जिससे नोटिस इत्यादि भेजने की प्रक्रिया में समय अधिक बर्बाद होता है।

(5) आपातकालीन स्थिति में उपयुक्त नहीं (Inappropriate in Emergency)आपातकालीन स्थिति में संस्था को शीघ्र निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, अत: ऐसी स्थिति में समूह विचार-विमर्श उपयुक्त नहीं रहता क्योकि इसमें समय बहुत अधिक लगता है।

(6) असहमति उत्पन्न होना (Disagreement)-जब समूह में विचार विमर्श के बाद भी समस्या का कोई उपयुक्त हल नहीं निकल पाता अथवा बिना किसी हल के ही विचार-विमर्श समाप्त कर दिया जाता है तो सदस्यों में असहमति उत्पन्न हो जाती है।

II संगोष्ठी / सेमिनार (Seminar) सेमिनार (संगोष्ठी)

मौखिक संचार की एक प्रभावशाली विधि है। इसमें एक पूर्व निश्चित विषय पर विभिन्न विद्वान व्यक्तियों द्वारा अपने ज्ञान, अनुभव तथा जानकारियों का आदान-प्रदान किया जाता है। संगोष्ठी का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान का वितरण एवं विषय विशेषज्ञ सदस्यों के मध्य अपने-अपने विचारों के प्रस्तुतीकरण से है। इसमें एक वक्ता किसी विशेष विषय पर किये गए अध्ययन, अनुसन्धान आदि का ब्यौरा देता है तथा अन्य सभी विद्वान उसके विचारों को सुनते हैं और अपने अनुभव व ज्ञान के आधार पर तर्क वितर्क करते हैं। सेमिनार को आयोजित करने से किसी विशेष विषय से सम्बन्धित विशेषज्ञों के विचारों को सुनने का अवसर प्राप्त होता है जिससे इन विशेष विषयों पर व्यक्तियों को आसानी से जानकारी प्राप्त हो जाती है। संगोष्ठी में परिचर्चा सीमित समय में अत्यधिक गम्भीर विषयों पर होती है। इसमें प्रत्येक सदस्य अपने विचार प्रस्तुत करने के लिये स्वतन्त्र होता है। इसके द्वारा नवीनतम सिफारिशों की जानकारी मिलती है तथा बाद में उन्हें एक रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित भी किया जाता है।

अत: संगोष्ठी भी एक तरह का सामूहिक संचार ही है जिसमें एक व्यक्ति प्रस्तुति देता है, चुने हुए विषय पर बोलते हुए वह इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करता है और वर्तमान सन्दर्भ में इसका। महत्त्व बतलाता है। इस तरह संगोष्ठी, भाषण और सामूहिक वार्तालाप का मिला-जुला रूप है। सामूहिक शिक्षण में एक व्यक्ति सभापति का कार्य करता है। वह विषय की भूमिका बतलाता है और वक्ता का। परिचय देता है। अधिवेशन की समाप्ति पर वह श्रोताओं से प्रश्न पूछने के लिए कहता है और सनिश्चित । करता है कि वार्तालाप उसी सारांश पर होगा। सामूहिक शिक्षण को सामूहिक वार्तालाप के यन्त्र के रूप में। प्रयोग किया जा सकता है।

व्यवसायिक संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में इसे नए विचारों को बढ़ावा देने के लिए।

शिक्षण-सहायक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। किसी विशेष सारांश पर सूचना सांझी करने के साधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

व्यावसायिक संचार भिन्न-भिन्न नीति निर्धारकों और भागीदारों के चिन्तन को प्रभावित करने के लिए प्रयोग किया। जा सकता है।

सेमिनार (संगोष्ठी ) की विशेषताएँ

(Characteristics of Seminar)

सेमिनार की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

(1) संगोष्ठी का अभिप्राय एक छोटे समूह में विषय विशेषज्ञों के मध्य चर्चा से होता है।

(2) संगोष्ठी में चर्चा का विषय अत्यन्त ही उच्च शैक्षिक मूल्य वाला होता है।

(3) चर्चा व वाद-प्रतिवाद के स्वरूप में विषय विशेषज्ञों का एकत्रित होना सार्थक निष्कर्षों व सुझावों के रूप में परिलक्षित होता है।

(4) यह एक मौखिक रूप में व्यावसायिक संचार है।

(5) संगोष्ठी में प्रत्येक सदस्य अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए स्वतन्त्र होता है।

(6) संगोष्ठी सीमित एवं औपचारिक प्रकृति की होती है।

विचारगोष्ठी/संगोष्ठी की प्रक्रिया

(Conducting of Seminar)

विचारगोष्ठी का आयोजन करने के लिए सर्वप्रथम किसी नवीनतम विषय का चुनाव किया जाता है। तत्पश्चात् उस विषय पर विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न विशेषज्ञों को आमन्त्रित किया जाता है। प्रत्येक विचारगोष्ठी दो या तीन दिन तक विभिन्न सत्रों में चलती है। प्रत्येक सत्र का विषय पहले ही निर्धारित कर लिया जाता है। प्रत्येक सत्र का एक अध्यक्ष होता है जो उस विषय का विशेषज्ञ होता है जिस पर उस सत्र में विचार विमर्श किया जाना है। प्रत्येक सत्र में अध्यक्ष वक्ताओं को अपने पेपर पढ़ने के लिए आमन्त्रित करता है। वक्ता द्वारा अपने विचार व्यक्त करने के पश्चात् उससे प्रश्न पूछे जाते हैं। इससे उस विषय पर तर्क-वितर्क प्रारम्भ हो जाता है तथा सुनने वाले व्यक्तियों के ज्ञान में वृद्धि होती है।

किसी भी संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत करते समय अपने शोध-पत्र के मुख्य बिन्दुओं पर विचार करके उन्हें एक क्रम में समय-सीमा के अन्दर प्रस्तुत करना चाहिए। अपने वक्तव्य की मुख्य बातों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए उसे स्क्रीन पर ओवरहैड प्रोजेक्टर के द्वारा भी दिखाया जा सकता है। चार्ट और रेखाचित्रों के प्रयोग के द्वारा भी अपने शोध-पत्र की मुख्य बातों की तरफ ध्यान आकर्षित कराया जा सकता है। जब सभी वक्ता अपने विचार व्यक्त कर लेते हैं तब परिचर्चा के निचोड़ के रूप में अध्यक्ष अपने विचार प्रस्तुत करता है तथा विचारगोष्ठी की कार्यप्रणाली तथा परिचर्चा के प्रमख तत्त्वों का विवरण तैयार किया जाता है। तत्पश्चात् उपयोगी शोध पत्रों तथा वाद-विवाद के निष्कर्षों को प्रकाशित किया जाता है।

विचारगोष्ठी/संगोष्ठी के उद्देश्य (Objects of Seminar)

प्रजातान्त्रिक प्रबन्ध-तन्त्र एवं अधीनस्थों के लिए विचारगोष्ठी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। इससे ज्ञानात्मक एवं भावनात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सकती है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं

(1) विश्लेषण एवं आलोचनात्मक क्षमताओं का विकास करना।

(2) निरीक्षण एवं अनुभवों के प्रस्तुतीकरण की क्षमताओं का विकास करना।

(3) विरोधी विचार तथा दृष्टिकोणों की सहनशीलता का विकास करना।

(4) विचारों में स्वच्छन्दता तथा सहयोग की भावना का विकास करना।

(5) दूसरे की भावनाओं के प्रति सम्मान की भावना का विकास करना आदि।

विचारगोष्ठी/संगोष्ठी को प्रभावी कैसे बनाया जाए?

(How to Make Seminar Effective)

संगोष्ठी/सामूहिक शिक्षण का प्रभावी होना इस बात पर निर्भर करता है कि भिन्न-भिन्न दल अपनी भूमिका कैसे निभाते हैं। इन दलों में, प्रबन्धक, वक्ता, सभापति और श्रोता होते हैं।

संगठक की भूमिका (Oragniser’s Role) सामूहिक शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए

(क) सामूहिक शिक्षण की अग्रिम योजना बना लेनी चाहिए तथा, तिथि, स्थान एवं विषय का निर्णय कर लेना चाहिये।

(ख) सम्बन्धित विषय वस्तु को अग्रिम में छपवा लेना चाहिए।

(ग) संगोष्ठी के विषय में समाचार-पत्रों में प्रकाशित करवाना चाहिये और सभी भागीदारों को समय पर बुलाना चाहिये।

(घ) OHP का उचित इन्तजाम जैसे स्लाइड, प्रकाश और दूसरी श्रवण-दृष्टि सम्बन्धी व्यवस्थाएँ। करनी चाहिये।

(ङ) बैठने का, चाय नाश्ते आदि का उचित प्रबन्ध करना चाहिए। वक्ता की भूमिका (Speaker’s Role) विचारगोष्ठी के वक्ताओं को चाहिए कि

(क) पुस्तकालयों और वेबसाइट से जानकारी प्राप्त करके विषय पर अच्छी तरह तैयारी करें, एकत्रित सूचना का तर्कपूर्ण ढंग से संगठन करें तथा साथ में आत्म चिन्तन भी करें।

(ख) सुनिश्चित करें कि उनका भाषण, सूचित करने वाला एवं ज्ञान देने वाला तथा रूचिकर है।

(ग) उचित दृष्टि सम्बन्धी सहायकों जैसे OHP ट्रांसपेरैन्सी का प्रयोग करें।

(घ) समय सीमा का पूर्ण ध्यान रखें।

(ङ) समाप्ति पर श्रोताओं के अधिक से अधिक प्रश्नों का उत्तर दें।

(च) धैर्यपूर्वक सुनने के लिए श्रोताओं का धन्यवाद करें।

सभापति की भूमिका (Chair Person’s Role)-विचारगोष्ठी के सभापति को चाहिए कि

(क) विषय का संक्षिप्त परिचय दें, इसके बाद वक्ता का परिचय दें। परिचय में वक्ता की उपलब्धियों का वर्णन करें और उसकी विशिष्टता बतलाएं।

(ख) सुनिश्चित करें कि वक्ता सीमित समय में अपना भाषण समाप्त करें।

(ग) समाप्ति पर श्रोताओं को प्रश्न पूछने को कहें।

(घ) ध्यान रखें कि वार्तालाप निश्चित विषय पर ही होता है और प्रश्न-उत्तर काल में कोई किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाता।

(ङ) प्रश्नोत्तर के पश्चात् भाषण की उपलब्धि/ खोज को संक्षेप में कहें। (च) श्रोताओं और वक्ता का धन्यवाद करें। श्रोताओं की भूमिका (Audience’s Role) (क) सामूहिक भाषण शुरू होने से पहले अपना स्थान लें। (ख) वक्ता/वक्ताओं के भाषण को ध्यान से सुनें। (ग) महत्त्वपूर्ण बातों को लिखें, उद्धरणों को भी लिखें। (घ) भाषण के दौरान वक्ता को परेशान न करें। (ङ) संगत प्रश्न ही पूछे। (च) सामूहिक भाषण की समाप्ति तक रूकें।

III कृत्रिम साक्षात्कार

(Mock Interview)

कृत्रिम साक्षात्कार दो शब्दों कृत्रिम + साक्षात्कार से मिलकर बना है। कृत्रिम शब्द का अर्थ है किसी असली चीज की नकल करना अर्थात् किसी की आवाज निकालना, किसी के हाव-भाव की नकल उतारना, किसी वास्तविक घटना का कृत्रिम रूपान्तरण करना, किसी प्रकार का नाटक करना आदि। अत: हम कह सकते हैं कि किसी भी वास्तविक क्रिया का नकली प्रस्तुतीकरण ही बनावटी या कृत्रिम क्रिया कही जा सकती है।

साक्षात्कार शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द Entrevoir से हुई है जिसका अर्थ है झलक To Glimpse अथवा एक-दूसरे को परखना To see each other। साक्षात्कार शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से नौकरी के लिये अभ्यर्थियों के समूह से चयन करने के लिये मौखिक परीक्षा के लिये किया जाता है। इस प्रक्रिया में दो पक्ष आमने-सामने होते हैं, एक साक्षात्कार लेने वाला और दूसरा साक्षात्कार देने वाला। साक्षात्कार लेने वाला साक्षात्कार के माध्यम स अच्छ व्यक्ति का चयन करता है। सम्प्रेषण क्रिया में साक्षात्कार का आशय केवल नौकरी के लिये अभ्यर्थियों की चयन प्रक्रिया से ही नहीं है बल्कि इसे सम्प्रेषण क्रिया का एक महत्त्वपर्ण अंग माना गया है अर्थात् इस विधि के द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति आमने-सामने प्रत्यक्ष रूप से सम्पर्क स्थापित करके महत्त्वपूर्ण जानकारी का आदान-प्रदान करते हैं। यहाँ साक्षात्कार से आशय दो दलों के मध्य योजनाबद्ध ढंग से किसी उद्देश्य को प्राप्ति के लिये वार्तालाप किये जाने से है।।

से साक्षात्कार का आयोजन आवेदकों का नौकरी के लिये मूल्यांकन करने, नये कर्मचारियों को पराने। कर्मचारियों से परिचित कराने, कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन करने, समस्याग्रस्त कर्मचारियों को परामर्श देने या अन्य किन्हीं समस्याओं के लिये किया जाता है।

साक्षात्कार की परिभाषा

(Definition of Interview)

साक्षात्कार को विभिन्न विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया है

”साक्षात्कार क्षेत्रीय कार्य की एक विशेष तकनीक है जिसका प्रयोग किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के व्यवहार को देखने, उनके कथनों को लिखने व सामाजिक अथवा अन्तःक्रिया के स्पष्ट परिणामों का अध्ययन करने के लिये किया जाता है।”

-एच०पी० यंग “साक्षात्कार दो व्यक्तियों के मध्य पायी जाने वाली एक विशेष सामाजिक परिस्थिति है जिसमें एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत दोनों व्यक्ति परस्पर उत्तर-प्रति उत्तर करते हैं।’

-वी० एम० पामर साक्षात्कार चयन प्रक्रिया का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, प्रचलित एवं लोकप्रिय अंग है। यह आवेदक की योग्यताओं और गुणों को सीधे तौर से आमने-सामने बैठ कर मौखिक विचार-विमर्श के द्वारा पहचानने

और आँकने की क्रिया है। यह साक्षात्कार किए जाने वाले व्यक्ति की मुद्रा, बातचीत, आचार-विचार तथा हाव-भाव के अवलोकन एवं विश्लेषण से उसकी रूचि, अभिप्रेरणा, स्वभाव, सन्तुलन, उत्तरदायित्व ग्रहण करने की योग्यता, तत्काल बुद्धि तथा परिपक्वता आदि को जाँचना है।

साक्षात्कार एक कला है जो अनुभव द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। इसका उद्देश्य नियोक्ता को प्रार्थी के विषय में पूर्ण जानकारी देना है। रोजर ने एक सर्वश्रेष्ठ साक्षात्कार के लिए निम्नलिखित बातें बताई हैं

(1) आवेदक की स्वास्थ्य शक्ति, आकृति व चरित्र कैसा है? (2) वह कितना शिक्षित और अनुभवी है? (3) उसमें सामान्य बुद्धि कितनी है और वह उसका कितना सफल प्रदर्शन कर सकता है? (4) क्या आवेदक में अनुभव या मस्तिष्क सम्बन्धी कोई विशेष उपयुक्तता है? (5) आवेदक की रूचि किस ओर है?

उपरोक्त पाँच बातें साक्षात्कार लेते समय सहायक सिद्ध हो सकती हैं, परन्तु इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं है कि साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति अपने अनुभव और ज्ञान का प्रयोग बिल्कुल ही न करे। जहाँ तक सम्भव हो साक्षात्कार एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा लिया जाना चाहिये और आवेदक को अधिक बोलने का मौका दिया जाना चाहिए। प्रश्न संक्षिप्त और स्पष्ट होने चाहिये।

साक्षात्कार एवं बनावटी शब्द का अर्थ समझ लेने के बाद बनावटी साक्षात्कार का अर्थ स्पष्ट हो जाता है अर्थात् साक्षात्कार सम्बन्धी वास्तविक स्थितियों की नकल करना ही कृत्रिम या बनावटी साक्षात्कार कहा जाता है। यह एक प्रकार से वास्तविक साक्षात्कार का नमूना होता है, इससे इस बात की जानकारी की जाती कि वास्तविक साक्षात्कार कैसे किया जाता है। इसके अन्तर्गत संस्था में भविष्य में किये जाने वाले साक्षात्कार आयोजन का कृत्रिम स्वरूप तैयार किया जाता है और आपस में ही कोई साक्षात्कार लेने वाला बन जाता है एवं कोई साक्षात्कार देने वाला और दोनों आपस में वार्तालाप करते हैं। पुन: साक्षात्कार लेने वाला साक्षात्कार देने वाले के स्थान पर और साक्षात्कार देने वाला साक्षात्कार लेने वालों के स्थान पर हो जाता हैं। इस प्रकार एक व्यक्ति में दोनों प्रकार का कौशल विकसित हो जाता है कि साक्षात्कार कैसे लिया जाता है एवं कैसे दिया जाता है। इसी क्रिया को बनावटी साक्षात्कार कहते हैं। अत: वास्तविक साक्षात्कार से पहले उसे समझने तथा जानने के लिए जो साक्षात्कार आयोजित किया जाता है उसे नकली (कृत्रिम या छदम) साक्षात्कार कहते हैं। वास्तव में यह वास्तविक साक्षात्कार का एक नमूना होता है जिससे इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि असली साक्षात्कार कैसे किया जाता है। कृत्रिम साक्षात्कार में साक्षात्कार सम्बन्धी वास्तविक स्थितियों को पैदा किया जाता है अर्थात् वास्तविक साक्षात्कार की नकल की जाती है।

कृत्रिम साक्षात्कार की विशेषताएँ

(Characteristics of Mock Interview)

कृत्रिम साक्षात्कार की सभी विशेषताएँ वही हैं जो साक्षात्कार की होती हैं। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार हैं

1 साक्षात्कार में दो या दो से अधिक व्यक्ति होते हैं। 2. साक्षात्कार निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिये होता है। 3. साक्षात्कार के अन्तर्गत दो व्यक्ति परस्पर उत्तर-प्रतिउत्तर करते हैं। 4. साक्षात्कार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य वार्तालाप की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है।।

1 साक्षात्कार एक विशेष तकनीक है जिसके द्वारा व्यक्तियों के ज्ञान एवं व्यवहार की जानकारी प्राप्त की जाती है। 6. साक्षात्कार औपचारिक सम्प्रेषण का महत्त्वपूर्ण अंग है।

कृत्रिम साक्षात्कार का उद्देश्य

(Objectives of Mock Interview)

कृत्रिम साक्षात्कार का प्रमुख उद्देश्य होता है कि वास्तविक साक्षात्कार क्रिया को सफल बनाना। वास्तविक साक्षात्कार सही तरीके से सम्पन्न हो, इसीलिये बनावटी साक्षात्कार की प्रक्रिया अपनायी जाती है। अतः यहाँ इस बात की व्याख्या की जा रही है कि वास्तविक साक्षात्कार का सम्प्रेषण क्रिया के लिये क्या उद्देश्य है

1 प्रार्थी को कम्पनी के उद्देश्यों से अवगत कराना तथा आपसी सद्भाव एवं विश्वास की भावना उत्पन्न करना।

1 तथ्यों की सही जानकारी का आदान-प्रदान। 3. कर्मचारियों की रूचियों एवं क्रियाकलापों की जानकारी प्राप्त करना। 4. नवीनतम जानकारी प्राप्त करना। 5.बाजार अनुसन्धान करना। 6. अतीत की घटनाओं का सत्यापन करना। 7. प्रार्थी को मैत्रिक तथा अनौपचारिक वातावरण में परखने का प्रयास करना।

कृत्रिम साक्षात्कार आयोजित करने की आवश्यक दशाएँ

(Essential Conditions to Organize the Mock Interview)

एक कृत्रिम साक्षात्कार आयोजित करने के लिए आवश्यक शर्ते निम्नलिखित प्रकार हैं

(1) उचित स्थान का निर्णय लेना, नकली साक्षात्कार का प्रथम चरण है अर्थात ऐसे स्थान का चयन जो आरामदायक, अलग-थलग व बाधा या रूकावट पैदा करने वाला न हो। साक्षात्कार देने वालों के लिए एक प्रतीक्षालय जहाँ अध्ययन के लिए पत्र/पत्रिकाएँ हों, ताकि वे अपनी प्रतीक्षा अवधि आसानी से व्यतीत कर सकें।

(2) उचित स्थान का चयन हो जाने के पश्चात् साक्षात्कार की तैयारी एक महत्त्वपूर्ण चरण है। इसके लिए निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं

(i) साक्षात्कार व्यवस्था का समय कब निर्धारित करना है ? (ii) साक्षात्कार का नोटिस कब लगाया जाये ? (iii) साक्षात्कार की समयावधि क्या होगी? (iv) साक्षात्कार कौन लेगा? (v) साक्षात्कार में कौन-से-प्रश्न पूछे जायें? (vi) पूछे गये प्रश्नों के उत्तर को भविष्य के लिए किस प्रकार सुरक्षित रखा जाये। (vii) साक्षात्कार लेने के उपरान्त साक्षात्कार देने वालों की तुलना कैसे की जाये ? ।

(3) साक्षात्कार को लेने वालों की सूची पहले से ही तैयार कर उन्हें नियत तिथि व स्थान की जानकारी के साथ-साथ साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्नों की एक सामान्य जानकारी देना भी सुविधाजनक रहता है।

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कृत्रिम साक्षात्कार के विभिन्न चरण

(Various Steps of Mock Interview)

किसी संगठन में कृत्रिम साक्षात्कार का आयोजन करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं से गजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया, साक्षात्कार चाहे कृत्रिम हो या वास्तविक दोनों के लिये आवश्यक है

1 प्रथम चरण (First Step)-कृत्रिम साक्षात्कार प्रारम्भ होने से पूर्व साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति से एक प्रपत्र भरवाया जाता है जिसमें उसे अपनी सम्पूर्ण जानकारी देनी होती है जैसे-शिक्षा, अनुभव,

आय. रुचि आदि। यह सूचनायें क्या होंगी, यह साक्षात्कार के उद्देश्य पर भी निर्भर करता है। यदि साक्षात्कार किसी को नौकरी देने के लिये किया जाना है तो सम्पूर्ण सुचनायें भरवायी जायेंगी जिनका सम्बन्ध अभ्यर्थी (प्रार्थी) से होगा, यदि साक्षात्कार संस्था के कर्मचारियों की पदोन्नति से सम्बन्धित होता है तो केवल पिछले कार्य का मूल्यांकन विवरण भरा जायेगा। यदि साक्षात्कार केवल कर्मचारियों को नयी जानकारियों से अवगत कराने के लिये किया जाना है तो किसी प्रपत्र को भरवाने की आवश्यकता नहीं होगी। अत: साक्षात्कार का पहला चरण यही होता है साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति से सम्बन्धित सम्पूर्ण सचना साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति के समक्ष प्रस्तुत की जाय।

2. द्वितीय चरण (Second Step)-द्वितीय चरण साक्षात्कार का मौखिक और व्यवहारिक पक्ष होता है जिसमें अभ्यर्थी का साक्षात्कार के लिये कमरे में प्रवेश करने से लेकर और साक्षात्कार समाप्त कर बाहर आने तक की क्रिया शामिल होती है। एक साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति के लिये यह चरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। यदि साक्षात्कार नौकरी पाने के लिये है तो इसकी महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती है।

साक्षात्कार के लिये सही वातावरण के निर्माण के लिये पहले कुछ मिनट साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति से सामाजिक विषय पर बातचीत की जाती है। यह इसलिये किया जाता है जिससे कि साक्षात्कार देने वाला सहज हो सके। साक्षात्कार लेने वाला इसके बाद साक्षात्कारी से प्रश्न पूछने शुरू कर देता है। सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नों की निम्नांकित श्रेणियाँ हो सकती हैं

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Closed Question) ऐसे प्रश्न जिनका जवाब केवल हाँ या न में दिया जा सकता है, उन्हें वस्तुनिष्ठ या बन्द प्रश्न कहते हैं जैसे

क्या आप दिल्ली के रहने वाले हैं? क्या आपने हमारे विज्ञापन का अध्ययन किया है? क्या आप किसी संस्था में कार्य कर रहे हैं? क्या आपने एम० बी० ए० किया है?

(ख) व्याख्यात्मक प्रश्न (Open Question)—व्याख्यात्मक प्रश्न या खुले प्रश्न वे होते हैं जिनका उत्तर विस्तार में देना होता है जैसे

आपका लक्ष्य क्या है? एक प्रबन्धक बनने के बाद आपकी प्राथमिकतायें क्या होगी? स्वॉट (SWOT) विश्लेषण क्या है? एक प्रबन्धक के रूप में सम्प्रेषण क्रिया को आप कैसे प्रभावशाली बनायेंगे।

(ग) खोजी प्रश्न (Probing Questions)-खोजी प्रश्न वे प्रश्न होते हैं जो अभ्यर्थी के जवाब में से बना लिये जाते हैं जैसे यदि अभ्यर्थी से यह प्रश्न किया गया कि प्रबन्धक बनने के बाद आपकी क्या प्राथमिकता होगी। अभ्यर्थी ने जवाब दिया कि “प्रबन्धक बनने के बाद मैं संस्था के कर्मचारियों में आपस में सामंजस्य स्थापित करते हुये उन्हें अधिक कार्य के लिये अभिप्रेरित करूँगा तथा संस्था के लाभों को बढ़ाने का प्रयास करूंगा।” साक्षात्कारकर्ता तुरन्त प्रश्न उठा सकता है कि अभिप्रेरणा क्या होती है? कैसे आप कर्मचारी को अभिप्रेरित करेंगे? तो यह खोजी प्रश्न कहा जायेगा।

(घ) स्थिति सम्बन्धी प्रश्न (Situation Related Question) कभी-कभी साक्षात्कारकर्त्ता अभ्यर्थी के सामने किसी समस्या की स्थिति को रखता है और कहता है कि आप इस समस्या का निदान (हल) बताइये जैसे-किसी संस्था के कर्मचारी एक माह के वेतन के बराबर बोनस की माँग करते हैं

और यह धमकी देते हैं कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम लोग हड़ताल पर चले जायेंगे। इस स्थिति से निपटने के लिये आप क्या करेंगे?

3. तृतीय चरण (Third Step)-कृत्रिम साक्षात्कार के तीसरे चरण का सम्बन्ध इस बात से है कि साक्षात्कारक (Interviewer), साक्षात्कारी (Interviewee) के उत्तरों को किस प्रकार ध्यान से सुनता है। साक्षात्कारक सामने बैठे प्रत्याशी में अपनी रूचि दिखाता है, कभी-कभी चेहरे पर मुस्कान भी लाता है

और कभी-कभी सिर भी हिलाता है, ताकि साक्षात्कारी को प्रोत्साहन मिले और वह बातचीत जारी रख सके। बनावटी साक्षात्कार में जहाँ तक सम्भव होगा साक्षात्कार को वास्तविक बनाने का प्रयास किया जाएगा।

4. अन्तिम चरण (Last Step)-साक्षात्कार का अन्तिम चरण होता है कि साक्षात्कार का समापन किया जाये तथा समस्त अभ्यर्थियों (प्रार्थियों/आवेदकों)की एक सूची तैयार की जाये और साक्षात्कार के प्रदर्शन के आधार पर अभ्यर्थियों को श्रेणी (Rank) प्रदान किया जाए।

स्वाति प्रकाशन इस प्रकार साक्षात्कार की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। साक्षात्कार औपचारिक सम्प्रेषण का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। इसके द्वारा नये कर्मचारी की नियक्ति, पदोन्नति, ज्ञानवृद्धि, प्रशिक्षण आदि का क्रिया। को आसानी से सम्पन्न किया जा सकता है।

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विद्यार्थियों के लिये साक्षात्कार से सम्बन्धित मार्गदर्शक बातें

(Guidelines for the Students Relating to Interview)

एक विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी प्राप्त करने के लिये प्रयास करता है और काइ भा नोकरी ऐसी नहीं है जो बिना साक्षात्कार का सामना किये मिल सके। ऐसे में विद्यार्थियों को अपने अध्ययन काल से ही साक्षात्कार की तैयारी करनी चाहिये। उसे साक्षात्कार के बारे में जानने और समझने का प्रयास करना चाहिये। वर्तमान समय में किसी कक्षा में प्रवेश के लिये भी साक्षात्कार की व्यवस्था की जाने लगी है। एक ऐसा बालक जो पहली बार स्कूल जाता है उसे भी साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुजरने। के बाद ही स्कूल जाने का मौका मिलता है। ऐसे में साक्षात्कार की महत्ता बहुत अधिक बढ़ गयी है। किसी भी विद्यार्थी को यदि एम० बी० ए० में प्रवेश लेना है तो उसे समूह परिचर्चा व साक्षात्कार की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। अत: साक्षात्कार कैसे दिया जाए? क्या सावधानियाँ रखी जाए, आदि बातों पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है। यहाँ कुछ मार्गदर्शक बातें नीचे लिखी जा रही हैं

1 सर्वप्रथम यह देखिये कि आप किस पद के किये साक्षात्कार देने जा रहे हैं, उसके बारे में अध्ययन करें।

2. आप किस विभाग में जा रहे हैं उस विभाग की सामान्य सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करें।

3. आपने जिस विषय में अध्ययन पूरा किया है, उस विषय के कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को तैयार करें।

4. सामान्य ज्ञान की तैयारी करें।

5. कृत्रिम साक्षात्कार का आयोजन करें।

6. साक्षात्कार के दिन के लिये अपने वस्त्रों का चयन करें। वस्त्र ऐसे न हों जो चुभने वाले हों। शान्त व शालीन दिखने का प्रयास करें।

7.साक्षात्कार के लिये कमरे में प्रवेश करते समय अनुमति अवश्य लें।

8. कमरे में जाने के बाद साक्षात्कार लेने वालों का अभिवादन करें।

9. अपना आसन ग्रहण करने के बाद साक्षात्कार लेने वालों को धन्यवाद अवश्य दें।

10. अपने दिल की धड़कन को दबाने का प्रयास करें एवं सामान्य रहने की कोशिश करें क्योंकि घबराहट होना स्वाभाविक है।

11. साक्षात्कार लेने वाले व्यक्तियों द्वारा जो जानकारी आप से मांगी जाए, शान्त होकर उसका जवाब दें।

12. यदि जवाब न आ रहा हो तो क्षमा मांगते हुये दूसरा प्रश्न पूछने का आग्रह करें।

13. प्रश्नों का जवाब देते समय इस बात का ध्यान रखें कि जवाब में से खोजी प्रश्न किये जा सकते हैं। इसलिये जवाब में उन्हीं बातों को शामिल करें जिनको आप भली-भाँति जानते हों अन्यथा साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति आपको आपकी ही बातों में उलझा देगा।

14. साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति कितने ही अट्पटे प्रश्न करे, आप को संयत होकर ही जवाब देना चाहिये। जवाब देते समय शारीरिक हाव-भाव को भी स्पष्ट करना चाहिये। इससे आत्म विश्वास बढ़ता है।

15. साक्षात्कार लेने वाला व्यक्ति यदि यह कहे कि आप थक गये होंगे. थोडा पानी पी लें तो। आप मुस्कुराते हुये उसे धन्यवाद दें और कहें कि मुझे कोई थकान नहीं हुई है।

16. साक्षात्कार हो जाने के बाद जब आपको बाहर जाने को कहा जाये तभी आप बाहर निकले।

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कृत्रिम साक्षात्कार के लाभ

(Advantages of Mock Interview)

कृत्रिम साक्षात्कार के प्रमुख लाभ निम्नांकित प्रकार हैं

(1) वास्तविक साक्षात्कार का अभ्यास करना।।

(2) साक्षात्कार की रणनीति को विकसित करना।

(3) वास्तविक साक्षात्कार से पहले चिन्ता एवं घबराहट को कम करना।

(4) साक्षात्कार के ढंग का वर्णन करना।

(5) प्रथम प्रभाव (First Impression) को प्रभावशाली बनाना।

(6) अपने गुणों एवं कौशल का स्पष्ट रूप से संचार करने का अभ्यास करना।

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IV व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रस्तुतीकरण

(Individual and Group Presentation)

प्रस्तुतीकरण का अर्थ-प्रस्तुतीकरण से आशय श्रोताओं के एक छोटे समूह अर्थात् थोड़े से श्रोताओं के लिये पहले से ही तैयार किये गए भाषण से है। लेकिन प्रस्तुतीकरण केवल एक अच्छा भाषण ही नहीं होता बल्कि इसके द्वारा एक ऐसी रणनीति प्रस्तुत की जाती है जो श्रोताओं एवं सम्बन्धित विषय के उद्देश्यों के अनुकूल होती है। एक श्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण में श्रेष्ठ विषय सामग्री होनी चाहिए तथा इसे प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। प्रस्तुतीकरण श्रोताओं की प्रकृति व परिस्थितियों से प्रभावित होता है, इसलिए विषय सामग्री को प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है। प्रस्तुतीकरण दो रूपों में हो सकता है

(1) व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण (Individual Presentation) व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण में केवल एक वक्ता होता है जो पहले से ही निर्धारित विषय पर श्रोताओं के सम्मुख अपने विचार व्यक्त करता है। व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण भी दो प्रकार का हो सकता है-प्रथम जब एक वक्ता और एक श्रोता होता है तथा द्वितीय, जब एक वक्ता किसी छोटे समूह के सामने अपने विचार व्यक्त करता है।

(2) सामूहिक प्रस्तुतीकरण (Group Presentation)-जब किसी पूर्व निश्चित विषय पर कई वक्ता श्रोताओं के समक्ष अपने विचार व्यक्त करते हैं तो इसे सामूहिक प्रस्तुतीकरण कहते हैं।

समूह प्रस्तुतीकरण के अन्तर्गत एक समूह होता है जिसमें एक समय में एक वक्ता अपने विचार व्यक्त करता है तथा शेष उसे सुनते हैं, फिर दूसरा वक्ता अपने विचार रखता है। इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है। समूह के सदस्यों में से ही एक वक्ता उस समूह का अध्यक्ष होता है तथा वह समूह का संचालन करता है। विचार प्रस्तुतीकरण के लिए पहले से निश्चित विषय होता है। प्राय: मीटिंग, गोष्ठियाँ तथा सम्मेलन आदि में समूह प्रस्तुतीकरण होता है।

सामूहिक प्रस्तुतीकरण की योजना बनाने में विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है। इसमें कई वक्ता सम्मिलित होते हैं। इसलिए प्रस्तुतीकरण के क्रम का निर्धारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। सामूहिक प्रस्तुतीकरण में इस बात पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक होता है कि विभिन्न वक्ताओं द्वारा व्यक्त किए गए विचारों में सामंजस्य व समरसता हो। इसमें समूह के विभिन्न सदस्यों को उनके क्रम के साथ-साथ विषय से सम्बद्ध दृश्य सामग्री के प्रस्तुतीकरण का ज्ञान होना भी आवश्यक है।

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समूह प्रस्तुतीकरण की विशेषताएँ

(Features of Group Presentation)

समूह प्रस्तुतीकरण की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

(1) समूह प्रस्तुतीकरण का विषय पूर्व निश्चित होता है।

(2) विभिन्न वक्ताओं में से एक अध्यक्ष होता है जो कार्यवाही को संचालित करता है।

(3) समूह के सदस्यों के बैठने, बोलने तथा प्रस्तुतीकरण का तरीका निश्चित होता है।

(4) अध्यक्ष द्वारा बुलाये जाने पर प्रत्येक वक्ता अपने विचार एक निश्चित समय में प्रस्तुत करता है।

(5) विचार विमर्श समाप्त होने पर अध्यक्ष सभी वक्ताओं द्वारा व्यक्त किये गए विचारों का सारांश प्रस्तुत करता है और सभा के एक निष्कर्ष पर पहुँचने की घोषणा करता है।

(6) अन्त में, अध्यक्ष द्वारा सभा की समाप्ति की घोषणा की जाती है।

(7) सभा में लिए गए निर्णयों को सचिव द्वारा लिखा जाता है और जो व्यक्ति उस निर्णय से प्रभावित होते हैं, उन्हें इन निर्णयों से अवगत कराया जाता है।

(8) समूह प्रस्तुतीकरण को प्रभावी बनाने के लिए यह भी आवश्यक है कि समूह को रिहर्सल के लिए भी समय अवश्य देना चाहिए।

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प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य

(Objects of Presentation)

प्रस्तुतीकरण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं(1) किसी उत्पाद अथवा सेवा के सम्बन्ध में सूचनाएँ उपलब्ध कराना।

स्वाति प्रकाशन (2) किसी समस्या के समाधान या किसी नवीन अवधारणा के सम्बन्ध में सुझाव प्रस्तुत करना।। (3) बिक्री की मात्रा में वृद्धि करने के लिये मॉडल या रणनीति तैयार करना।। (4) किसी प्रणाली, दृष्टिकोण या वस्तु का प्रचार एवं प्रसार करना। (5) एक समूह या विभाग का प्रतिनिधित्व करना तथा भविष्य की कार्यवाही निश्चित करना। (6) किसी पूर्व निश्चित विषय पर अपने विचार व्यक्त करना।

प्रस्तुतीकरण के प्रकार 

(Types of Presentation)

एच.ए. मर्फी, एच.डब्लयू. हिल्डे ब्राण्ड तथा जे.पी. थामस ने अपनी संयुक्त पुस्तक Effective Business Communication में प्रस्तुतीकरण को निम्नलिखित प्रकार वर्गीकृत किया है

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1 सूचनात्मक प्रस्तुतीकरण (Informative Presentation)-जब किसी प्रस्तुतीकरण में किसी विचार या तथ्य को स्पष्ट करने का प्रयास किया जाता है तो ऐसे प्रस्तुतीकरण सूचनात्मक प्रस्तुतीकरण कहलाता है। इसमें संचार के सूचनात्मक पहलू पर विशेष बल दिया जाता है। किसी प्रणाली, सेवा या वस्तु के विषय में श्रोता/श्रोताओं को इस प्रकार समझाया जाये कि सन्देश के सभी पहलू स्पष्ट हो जाएँ। सूचनात्मक प्रस्तुतीकरण को पुनः चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(i) रिपोर्ट (Report) रिपोर्ट ऐसे मौखिक सूचनात्मक विवरण को कहा जाता है जो लेखन सामग्री की सहायता से तैयार किया जाता है। इस प्रकार रिपोर्ट को लिखित विवरण कहा जा सकता है लेकिन इन्हें केवल पढ़ा जाता है, इसलिए इन्हें मौखिक सूचनात्मक विवरण कहा जाता है। सामयिक विभागीय रिपोर्ट, बिक्री की प्रगति रिपोर्ट, निर्माणी सयन्त्र में समस्याओं पर रिपोर्ट, प्रतियोगात्मक कार्यों पर रिपोर्ट, विक्रेताओं की समस्याओं पर रिपोर्ट, कर्मचारियों की मासिक रिपोर्ट, उत्तरदायित्व विभाजन सम्बन्धी रिपोर्ट तथा मासिक सम्पर्क सारांश आदि रिपोर्ट के कुछ उदाहरण हैं।

(i) सद्भाव सूचना प्रस्तुतीकरण (Goodwill Information Presentation)-व्यवसाय को समाज के साथ निरन्तर सम्पर्क बनाये रखना पड़ता है। इसके लिए आजकल कम्पनियाँ आम नागरिकों के बीच ऐसे आयोजन करती हैं जिनमें कम्पनी के उच्च पदाधिकारी जनता की पसन्द के विषयों पर बोलते हैं तथा साथ ही कम्पनी इसके उत्पाद एवं इसके कर्मचारियों से समाज को परिचित कराने की चेष्टा करते हैं। अवकाश ग्रहण समारोह, भ्रमण कार्यक्रम, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता, पुरस्कार वितरण समारोह, श्रद्धान्जलि सभाएँ आदि सद्भाव प्रस्तुतीकरण के उदाहरण हैं। इन सभी कार्यक्रमों में कम्पनी के अधिकारी एक ओर तो ऐसा भाषण देते हैं जिनसे जनता उनसे जुड़ी रहती है, दूसरी ओर वे कम्पनी के उत्पादों से भी जनता को परिचित कराना नहीं भूलते।

(iii) संक्षेप (Briefings)-संक्षेप ऐसे सूचनात्मक विवरण को कहा जाता है जिसमें किसी तथ्य के गण-दोष दोनों का उल्लेख किया जाता है। किसी विषय पर सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों।

पहलओं से युक्त विवरण प्रबन्धकीय उच्चाधिकारियों को प्रस्तुत किया जाता है जिसके आधार पर उच्चाधिकारियों द्वारा उचित निर्णय लिया जाता है। उदाहरण के लिए किसी दसरे क्षेत्र में व्यवसाय के विस्तार पर सूचना जुटाने के लिए आप से कहा जाता है। आप सभी सम्भावनाओं का पता लगाकर व्यवसाय विस्तार के लाभ तथा आने वाली कठिनाइयों से प्रबन्ध को अवगत कराते हैं तो प्रबन्ध आपके द्वारा तैयार विवरण के आधार पर व्यवसाय का विस्तार करने या न करने के विषय में निर्णय लेगा।

(iv) निर्देश (Instructions)-एक सामान्य सिद्धान्त है कि जितने लम्बे समय तक आप व्यवसाय से जुड़े रहेंगे, अपने ज्ञान एवं अनुभव का लाभ नये कर्मचारियों तथा दूसरे लोगों को देते रहेंगे ताकि उन लोगों को व्यवसाय की नीतियों, प्रक्रियाओं तथा दृष्टिकोणों का ज्ञान हो जाए। इसके लिए आप उन्हें समय-समय पर निर्देश देते रहते हैं। आपका दायित्व यह भी होता है कि नव-नियुक्त कर्मचारी तथा अन्य लोग आपकी बात सुनें, उसे समझें तथा इसका व्यवसाय के हित में उपयोग करें।

(v) प्रोत्साहक प्रस्तुतीकरण (Persuasive Presentation)-जब कोई प्रस्तुतीकरण इस उद्देश्य एवं इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि आप इस प्रस्ताव पर दूसरों की सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करें तो उसे प्रोत्साहक अथवा प्रेरणात्मक प्रस्तुतीकरण कहा जाता है। प्रोत्साहक अवसरों का वैसे तो कोई अन्त नहीं होता और अनेक अवसरों पर व्यवसाय को प्रोत्साहक या प्रेरणात्मक प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता होती है लेकिन मोटे तौर पर प्रेरणात्मक प्रस्तुतीकरण को निम्नलिखित चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

(i) नीति (Policy)-किसी व्यवसाय की नीतियाँ निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने का साधन हैं। कुण्ट्ज एवं ओ.डोनेल के अनुसार “नीतियाँ उस क्षेत्र को सीमित कर देती हैं जिस पर निर्णय लेना है, साथ ही इस बात का भी निश्चय करती हैं कि निर्णय उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होगा।”

नीतियाँ हमें यह बताती हैं कि किसी कार्य को कैसे किया जाता है। ‘माल का विक्रय केवल नकद किया जायेगा’, ‘उच्च पदों को प्रोन्नति के आधार पर भरा जायेगा’, तथा नकद बिक्री पर बट्टा केवल 2 प्रतिशत दिया जायेगा, आदि नीतियों के कुछ उदाहरण हैं। नीतियाँ कर्मचारियों को एक निश्चित दिशा में निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

(ii) कार्यविधि (Procedure)-नीतियों के अनुसार व्यवहारिक रूप से कार्य करने के लिए कार्य प्रणाली या कार्य विधियाँ तय की जाती हैं। इससे नियन्त्रण एवं निर्देशन की आवश्यकता कम हो जाती है। कार्यविधि की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं तथा इन्हें निश्चित क्रम में किया जाता है। अत: कार्यविधि एक प्रोत्साहक प्रस्तुतीकरण है।

(ii) मूल्यांकन निर्णय (Value Judgement)-मूल्यांकन निर्णयों में स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती है। जैसे “हमें ओलम्पिक खेलों को बढ़ावा देने से क्या लाभ है?” “अपने संगठन के अच्छे वक्ताओं की सूची मुझे दीजिए।” मूल्यांकन निर्णयों में उपर्युक्त प्रकार के प्रश्नों के उत्तर देने और उन पर प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। श्रोता इन सम्भावित प्रश्नों के उत्तर के आधार पर अपनी प्रतिक्रिया तय करेगा। अत: मूल्य निर्णय प्रोत्साहक प्रस्तुतीकरण का ही रूप होते हैं। (iv) तथ्य (Facts)—“सत्य क्या है?”

“किसने क्या किया?” उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर हमें तथ्यों की ओर संकेत करते हैं। यह आवश्यक नहीं कि तथ्यों से प्रत्येक व्यक्ति सहमत हो। तथ्य वर्तमान, भूतकालीन या भविष्य से सम्बन्धित हो सकते हैं। जैसे सन् 2030 के अन्त में भारत की जनसंख्या कितनी होगी? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका सम्भावित उत्तर भविष्य के तथ्य की ओर संकेत करता है, लेकिन ऐसे तथ्यों का वर्तमान या भूतकालीन तथ्यों के आधार पर अनुमान ही लगाया जा सकता है।

रिपोर्ट लेखन (Report Writing) एक व्यक्ति द्वारा किसी विषय पर अनुसन्धान, पूछताछ एवं घटनाओं के अवलोकन के निष्कर्ष निकालने तथा इन तथ्यों का ब्यौरा अपनी भाषा में लिखने को ही प्रतिवेदन का नाम दिया जाता है। रिपोर्ट लेखन प्रबन्धकीय प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग है जो व्यवसाय की समस्त कार्यप्रणाली को दर्शाता है।

लुईस ऐलन के अनुसार, व्यावसायिक प्रतिवेदन एक निश्चित महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक उद्देश्य से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया तथ्यों का निष्पक्ष, वस्तुपरक, योजनाबद्ध प्रस्तुतीकरण है।

कूण्ट्ज एवं ओ’डोनल के अनुसार प्रतिवेदन एक ऐसा प्रलेख है, जिसमें सूचना देने के उद्देश्य से

किसी विशेष समस्या की जाँच की जाती है और इस सम्बन्ध में निष्कर्ष, विचार एवं कभी-कभी सिफारिशें भी प्रस्तुत की जाती हैं। रिपोर्ट का प्रमुख उद्देश्य किसी व्यक्ति को समस्त जानकारी देना तथा तथ्यों से अवगत कराना होता है। अत: रिपोर्ट विस्तत एवं आँकडों का विश्लेषण करके तैयार की जानी चाहिए।

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अत: रिपोर्ट, किसी विशेष उद्देश्य के लिए, परी छानबीन के बाद, स्थिति पर प्रभाव डालने वाले तथ्यों को अच्छी तरह ध्यान में रखकर, औपचारिक रूप से तैयार की गई राय का ब्यौरा है। यह रिपोर्ट अव्यक्तिगत और योजनाबद्ध ढंग से, विशेष उद्देश्य के साथ तथ्यों का प्रस्तुतीकरण है।

रिपोर्ट की आवश्यक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(क) व्यवस्थित-क्योंकि यह ध्यानपूर्वक, योजनाबद्ध, तैयार की गई प्रस्तुति है।

(ख) अव्यक्तिगत-क्योंकि यह निजी पूर्वाग्रहों से एवं परिकल्पनाओं से मुक्त होती है।

(ग) संचार सम्बन्धी-इसमें सन्देश और समझ का हस्तान्तरण होता है तथा संचार सम्बन्धी साधनों का प्रयोग किया जाता है।

(घ) तथ्यों पर आधारित-क्योंकि यह घटनाओं, रिकार्डो, आँकड़े तथा इसी प्रकार की अन्य बातों पर निर्भर होती है।

एक अच्छी रिपोर्ट में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहियें1. यह स्पष्ट एवं पूर्ण रूप से समझने योग्य होनी चाहिए। 2. लेखन के उद्देश्य के साथ, एकरूप होनी चाहिए। 3. प्रयोगकर्ता के दृष्टिकोण से लिखी हुई होनी चाहिए। 4. आँकड़े इकट्ठे करने में और रिपोर्ट लिखने में अव्यक्तिगत ढंग अपनाया जाना चाहिए। 5. तथ्य एवं आकड़े यथार्थ होने चाहिए। 6. संक्षिप्त एवं बिन्दु केन्द्रित होनी चाहिए। 7. ध्वनि औपचारिक होनी चाहिए।

छोटी रिपोर्ट, मीमो अथवा पत्र के ढाँचे में लिखी जा सकती है परन्तु लम्बी रिपोर्ट हमेशा औपचारिक शैली में लिखी जाती है। रिपोर्ट लिखने के लिए, पहले उद्देश्य निश्चित किया जाता है, संगत साहित्य एवं तथ्य एकत्रित किए जाते हैं, फिर विश्लेषण किया जाता है, फिर इसे छोटे या लम्बे आकार में लिखा जाता है। अन्त में इसका पुनरीक्षण किया जाता है और ध्यान रख कर पुनः लिखी जाती है कि इसमें पूर्णता, स्पष्टता और यर्थाथता है।

इन सब चरणों को ‘रिपोर्ट लेखन’ के अध्याय में विस्तार से लिखा गया है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1. सामूहिक विचार-विमर्श क्या है? इसके उद्देश्यों, लाभ एवं सीमाओं को बताइए।

What is meant by group discussion? Explain its objectives, advantages and limitations.

2. सामूहिक विचार-विमर्श का क्या अर्थ है? इसके लिए कौन सी तैयारी करनी होती है?

What is meant by Group discussion? What preparations are to be made it?

3. सामूहिक विचार-विमर्श के आवश्यक तत्त्व क्या हैं? एक सफल समूह विचार-विमर्श की आवश्यक शर्ते बताइए।

What are the essentials of Group-discussion? Explain pre-requisites of successful group discussion.

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4. साक्षात्कार से आप क्या समझते हैं? यह कैसे संचालित किया जाता है?

What do you understand by the interview? How it is conducted?

5. सेमिनार की अवधारणा क्या है? इसका संचालन कैसे होता है?

Define seminar. How seminar is conducted?

6. सेमिनार की अवधारणा की व्याख्या कीजिए। इसकी क्या विशेषताएँ हैं? आप एक सफल सेमिनार कैसे आयोजित करेंगे?

Explain the concept of the seminar. What are its features? How will you organize a successful Seminar?

7. बनावटी साक्षात्कार से क्या आशय है? यह कैसे संचालित किया जाता है?

What is meant by Mock Interview? How it is conducted?

8. व्यक्तिगत तथा सामूहिक प्रस्तुतीकरण से आप क्या समझते हैं? प्रस्तुतीकरण के विभिन्न प्रकार बताइए।

What do you understand by individual and group presentation? Describe various types of presentation.

9. व्यावसायिक सम्प्रेषण की विभिन्न कार्यविधियों की संक्षेप में विवेचना कीजिए।

Describe in brief various practices in business communication.

10. व्यावसायिक सम्प्रेषण में सामूहिक विचार-विमर्श तथा सेमिनारों की भूमिका का वर्णन कीजिए।

Explain the role of group discussion and seminars in business communication.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 सामूहिक विचार-विमर्श से क्या आशय है?

What is meant by group discussion?

2. सामूहिक विचार-विमर्श के प्रकार बताइए।

Describe various types of group-discussion.

3. सफल सामूहिक विचार-विमर्श की आवश्यक शर्ते बताइए।

Describe pre-requisites of successful group discussion.

4. सेमिनार की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

Explain the concept of Seminar.

5. व्यक्तिगत तथा सामूहिक प्रस्तुतीकरण को समझाइए।

Describe individual and group presentation.

6. प्रस्तुतीकरण के प्रमुख उद्देश्य बताइए।

Describe main objectives of presentation.

7. कृत्रिम साक्षात्कार से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by Mock-Interview?

8. रिपोर्ट से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by the Report?

9. विचार गोष्ठी के उद्देश्य बताइए।

Explain the objectives of seminars.

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chetansati

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