BCom 2nd Year Principles Business Management Authority Responsibility Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Principles Business Management Authority Responsibility Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Principles Business Management Authority Responsibility Study Material Notes in Hindi:  Characteristic or Clemens of Authority  Mutual Relationship Between Authority and Power Sources or Theories or Authority Role and Importance or Authority Limitation of the use of Authority Meaning and Features or Responsibility  Accountability Types of Authority Relationship  Line Authority Staff Authority Examination Questions Long Answer Question Short Answer Question :

Authority Responsibility Study Material
Authority Responsibility Study Material

BCom 2nd Year Principles Organization Concepts Nature Process Significance Study Material notes in Hindi

अधिकार एवं उत्तरदायित्व 

[Authority and Responsibility]

अधिकार  या ‘सत्ता’ प्रबन्ध की कुंजी मानी जाती है। अधिकार से आशय किसी व्यक्ति को / प्राप्त उस वैधानिक शक्ति से होता है जिसके आधार पर वह अपने से नीचे के व्यक्तियों को आदेश ।

दे सकता है। प्रबन्धकीय अधिकार एक व्यक्ति को अपने उच्चाधिकारी से प्राप्त होता है जिसके। आधार पर वह अपने अधीनस्थों से उपक्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु काम करा सकता है। ये अधिकार विविध किस्म के होते हैं; जैसे-अधीनस्थों को आदेश देने का अधिकार, दोषी अधीनस्थों को दण्ड देने का अधिकार, उपक्रम का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार, उपक्रम की सम्पत्तियों के प्रयोग, हस्तान्तरण या प्राप्त करने का अधिकार, प्रलेखों पर हस्ताक्षर करने का अधिकार, कर्मचारियों में की नियुक्ति का अधिकार, उत्पादों के मूल्य निर्धारण का अधिकार आदि। समस्त अधिकार सर्वोच्च

और प्रशासन (जैसे-कम्पनी की दशा में संचालक मण्डल) के पास केन्द्रित होते हैं आवश्यकतानुसार शीर्ष प्रशासन अधिकारों का प्रतिनिधायन या विकेन्द्रीकरण करता है। यही भाव अधिकार की निम्न परिभाषाओं से भी स्पष्ट होता है

1 हेनरी फेयोल के अनुसार, “अधिकार आदेश देने के स्वत्व तथा उसे पालन कराने की शक्ति को कहते हैं।’

2. जी० आर० टेरी के अनुसार, “अधिकार से आशय उस स्वत्व या शक्ति से होता है जिसके अधीन प्रबन्धक आदेश देता है और अपनी इच्छानुसार उस आदेश का पालन कराता है।’

3. कुण्ट्ज एवं ओ’डोनेल के अनुसार, “अधिकार से तात्पर्य ऐसी वैधानिक या स्वत्वाधिकार सम्बन्धी शक्ति से होता है जिसमें उपक्रम या विभागीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य कराने या न कराने के लिए आदेश देने की शक्ति होती है।”

4. फ्रेंकलिन जी० मूरे के अनुसार, “अधिकार से आशय निर्णय करने के स्वत्व और निर्णयों का पालन करने की शक्ति से है।”

इस प्रकार स्पष्ट है कि अधिकार एक वैधानिक शक्ति है जिससे अधिकार प्राप्त करने वाला व्यक्ति अधीनस्थों से कार्य कराने में सफल होता है। कोई भी व्यक्ति बिना अधिकार के अपने दायित्वों का निर्वाह नहीं कर सकता है।

Principles Business Management Authority

अधिकार की विशेषताएँ या तत्त्व

(CHARACTERISTICS OR ELEMENTS OF AUTHORITY)

अधिकार की प्रमुख विशेषताएँ या तत्त्व निम्नांकित हैं

1 शक्ति की विद्यमानता और उपयोग (Existence and Use of Power)-अधिकार के अन्तर्गत वैधानिक शक्ति का होना गर्भित है। बिना शक्ति के अधिकार का कोई महत्व नहीं होता है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि व्यावसायिक सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिए प्रबन्धक को अधिकारी का सदुपयोग करना चाहिए, दुरुपयोग नहीं। उसे अपनी शक्ति का उपयोग मानवीय भावना, सहृदयता और उदारता के वातावरण में करना चाहिए, ताकि अधीनस्थ आदेश का पालन स्वेच्छा से करें। .

2.पदों का आबंटित (Allocated to Positions) संस्था में अधिकार विधिवत रूप में पदा को ही प्राप्त होते हैं, व्यक्तियों को नहीं। चूँकि कोई व्यक्ति उस पद पर विशेष आसीन होता है तो व्यवहार में लगता है कि अमुक अधिकार अमुक व्यक्ति को प्राप्त हुआ है। अधिकार हमेशा पद स माबद्ध होता है और अव्यक्तिगत होता है। अधिकार के इसी अव्यक्तिगत लक्षण के कारण संस्था म भता और वस्तुनिष्ठता सुनिश्चित होती है।

3. नाच का रि प्रवाह (Downward Flow)-संस्था में समस्त अधिकार सर्वोच्च प्रशासन के हाथों में केन्द्रित होता है। वह अधिकारों के प्रतिनिधायन और विकेन्द्रीकरण द्वारा कनिष्ठ शिकारी की ओर से नीचे प्रवाहित करता है। इससे संगठन में अधिकार की शुण्डाकार शक्ल है जो उच्च स्तर पर सर्वाधिक और निम्न स्तर पर छोटी होती जाती है।

4. वरिष्ठ अधिकारी द्वारा कुछ अधिकार की रोक (Retention of Some Authority by the rior)-वरिष्ठ अधिकारी अपने कनिष्ठों में समस्त अधिकार का प्रतिनिधायन नहीं करता है,

कछ अपने पास रोक लेता है। इससे कनिष्ठों से जवाबदेही माँगना सम्भव होता हैं। इसा कार कोई भी अधिकारी ऐसा अधिकार अपने कनिष्ठ को हस्तान्तरित नहीं कर सकता जो उसके पास स्वयं ही नहीं है। फिर, अधिकारों के सभी हस्तान्तरण, हस्तान्तरणकर्ताओं द्वारा वापस लिए जा सकते हैं। मूल अधिकारी अपने अधिकार को स्थायी रूप से सदैव के लिए पृथक् नहीं करते हैं, वे उसे वापस ले सकते हैं।

5. प्रभावशाली व्यक्तित्व (Impressive Personality)-उपक्रम में प्रबन्धक का निजी व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए जिससे कि अधीनस्थ प्रभावित हो करके स्वेच्छा से कार्य करें। यद्यपि अधिकारी आदश के पालन हेतु अनुनय, विनय, आग्रह, डाँट-डपट और दण्ड का भी सहारा ले सकता है, लेकिन श्रेष्ठ आज्ञा-पालन तभी माना जायेगा जब कर्मचारी स्वेच्छापूर्वक अपना कर्त्तव्य समझ कर कार्य का सम्पादन करें। प्रबन्धक को अपने अधिकार के साथ-साथ व्यक्तित्व का भी विकास करना चाहिए जिससे कि कर्मचारी स्वप्रेरित हों। अधिकारी को तानाशाही प्रवृत्ति के स्थान पर लोगों के हृदय पर विजय हासिल करके शासन करना चाहिए।

6. दायित्व से समानता (Parity with Responsibility)-अधिकार दायित्व के स्वभाव और सीमा के अनुसार ही दिया जाना चाहिए। अधिकार की कमी दायित्व निर्वाह में कठिनाई उत्पन्न कर सकती है और अधिकार की अधिकता उसके दुरुपयोग का कारण। अतः अधिकार और दायित्व दोनों का समान हस्तान्तरण ही ठीक रहता है।

7. अन्य (Other)-() अधिकार लिखित या मौखिक प्राप्त हो सकते हैं। (ब) अधिकार औपचारिक, स्वीकृति और दक्षता के स्रोत से प्राप्त होते हैं। (स) अधिकार का निश्चित सीमा के भीतर प्रतिनिधायन और विकेन्द्रीकरण किया जा सकता है।

अधिकार एवं शक्ति का पारस्परिक सम्बन्ध

(MUTUAL RELATIONSHIP BETWEEN AUTHORITY AND POWER)

आधिकार और शक्ति को पर्यायवाची समझा जाता है, परन्तु दोनों में थोड़ा सा अन्तर होता है। आधकार प्रबन्धक को संगठन में पद ग्रहण करने के कारण औपचारिक व विधिवत रूप में प्राप्त हो शाक्ति एक व्यापक शब्द है जिसमें अधिकार भी शामिल होता है। शक्ति का अर्थ है दसरों क व्यवहार को प्रभावित करने की क्षमता। बोल्फे के अनुसार, “शक्ति का आशय एक व्यक्ति की अन्तनिहित क्षमता से है जिससे कि वह किसी अन्य व्यक्ति को अपनी शक्ति के द्वारा एक व्यवहार क्षेत्र या समय में. किसी मार्ग की तरफ ले जा सकता है या उसमें परिवर्तन करा सकता है।” अधिक आधिकार वास्तव में शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत होता है, परन्तु संगठन में व्यक्ति अन्य जस-लम्बे अनुभव. व्यक्तिगत गण, सामाजिक प्रतिष्ठा, तकनीकी कौशल, परम्परा आदि से प्राप्त करते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि शक्ति संगठन द्वारा औपचारिक व विधिवत रूप हो परन्तु शक्ति के प्रयोग से व्यक्ति संगठन में प्रबन्धकीय निर्णयों को प्रभावित अवश्य करते हैं। संग संगठन चार्ट अधिकार सम्बन्धों को ही प्रदर्शित करते हैं, शक्ति केन्द्रों को नहीं। एक उच्चाधिकारीलेके तुलनात्मक रूप से निम्नाधिकारी से अधिकार अधिक हुआ करते हैं. परन्त। श्यक नहीं हैं कि शक्ति भी अधिक हो। शक्ति का वास्तविक केन्द्र संगठन के किसी भी स्तर, अथवा व्यक्ति में हो सकता है। बहधा हम देखते हैं कि निम्न स्तर का अनौपचारिक नेता निर्णयों प्रभावित कर ले जाता है। उसमें अधिकार भले ही कम हो, शक्ति अधिक होती है। संगठनात्मक अपहार और निर्णयन प्रक्रिया को ठीक से समझने हेत अधिकार और शक्ति केन्द्रों दोनों को भली-भाँति जानना जरूरी होता है।

अधिकार के स्रोत अथवा सिद्धान्त

(SOURCES OR THEORIES OF AUTHORITY)

अधिकार के स्रोत का आशय अधिकारों के उद्गम स्थल से है। इसका आशय यह है कि प्रबन्धकों को अधिकार किसके द्वारा प्रदान किए जाते हैं। अधिकारों के स्रोत सम्बन्धी अवधारणा के बारे में प्रबन्ध विज्ञान में पर्याप्त मतभेद हैं जिनमें से निम्न तीन सिद्धान्त उल्लेखनीय हैं

1 औपचारिक अधिकार का सिद्धान्त (Formal Authority Theory)-इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अधिकार का उद्गम प्रत्यक्षतः उससे ऊँचे अधिकारी से तथा अप्रत्यक्षतः देश के संविधान द्वारा होता है। उदाहरणार्थ, एक निम्नस्तरीय प्रबन्धक को मध्यस्तरीय प्रबन्धक से, मध्यस्तरीय प्रबन्धक को शीर्ष प्रबन्धक से, शीर्ष प्रबन्धक को संचालक मण्डल से, संचालक मण्डल को अंशधारियों से और अंशधारियों को अपने अधिकार ‘निजी सम्पत्ति रखने का अधिकार’ से प्राप्त होती है। निजी सम्पत्ति रखने का अधिकार भी देश के संविधान द्वारा प्राप्त होता है। इस उदाहरण से स्पष्ट है कि औपचारिकताओं के साथ अधिकारों का मूल स्रोत राष्ट्र का संविधान ही है।

इस प्रकार, अधिकार मौलिक रूप से संविधान से व्यक्तियों तक अन्तरित होते हैं और यह अन्तरण औपचारिक होता है। संविधान देश के सभी अधिकारों का मूल स्रोत होता है। संविधान का निर्माण, संशोधन एवं परिवर्तन देशवासियों द्वारा समाज की आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक व शैक्षणिक परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है। अधिकार के औपचारिक प्रवाह सिद्धान्त का रेखाचित्र

2. स्वीकृति का सिद्धान्त (Acceptance Theory)-अधिकार की स्वीकृति के सिद्धान्त को विकसित करने का श्रेय चेस्टर आई० बर्नार्ड (Chester I. Bernard) और हरबर्ट साइमन को है। इस विचारधारा के अनुसार औपचारिक अधिकार नाम मात्र का होता है, यह अधिकार उस समय प्रभावशाली बन पाता है, जबकि अधीनस्थ इसे स्वीकारें। ऐसी दशा में अधिकार का प्रवाह नीचे से ऊपर होता है, यानि कि “शासित” होने वाले से “शासनकर्ता” की तरफ। एक प्रबन्धकका अधिकार वहीं तक है जहाँ तक कि उसके अधीनस्थों द्वारा उसे स्वीकारा जाता है और उसका पालन। किया जाता है। यदि अधीनस्थों द्वारा प्रबन्धकों के आदेश का पालन किये जाने से मना कर दिया

अधिकार एवं उत्तरदायित्व जाता है तो इसका अर्थ हुआ कि प्रबन्धक के पास आदेश को जारी करने का प्रभावी अधिकार हा नहीं है। अतः स्पष्ट है कि उच्चाधिकारी को प्रभावी अधिकार उनके अधीनस्थों से प्राप्त होता है, जा उनको स्वीकारते हैं।

सामान्यत: उच्चाधिकारी के अधिकारों को स्वीकार करने से अधीनस्थों को निम्नलिखित लाभ मिलते हैं-(i) उचित पारिश्रमिक की प्राप्ति, (ii) अधीनस्थों के सम्मान में वृद्धि, (iii) संस्था क उद्देश्य की प्राप्ति में योगदान, (iv) निजी आचरण की प्रशंसा, (v) नेतृत्व की रक्षा आदि। याद अधीनस्थ अपने उच्चाधिकारी के अधिकारों को स्वीकार नहीं करते हैं तो उन्हें उपरोक्त लाभों के स्थान पर ऋणात्मक कार्यवाहियों; जैसे-वेतन व सम्मान में कमी. जुर्माना, नौकरी स छंटनी, जेल आदि का सामना करना पड़ सकता है। आदेशों का पालन उसी स्थिति में किया जायेगा, जबकि स्वीकार करने से उत्पन्न लाभ अस्वीकार करने से उत्पन्न हानियों से अधिक होगा। स्वीकृति का सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि शासित की सहमति के बिना औपचारिक अधिकार निरर्थक होते हैं।

निम्नलिखित रेखाचित्र में औपचारिक अधिकार के सिद्धान्त और स्वीकृति के सिद्धान्त में अन्तर को दर्शाया गया है

स्वीकृति का यह सिद्धान्त अस्पष्ट और अपूर्ण होते हुए भी स्वीकृति के महत्त्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डालता है। औपचारिक अधिकार सिद्धान्त के विचारक अधिकार के वैधानिक पहलू पर ही प्रकाश डालते हैं। यदि अधीनस्थ अधिकार को स्वीकृति प्रदान करते हैं तो वह वास्तविक और प्रभावशाली हो जाती है। अगर राज्य द्वारा निर्मित विधान देशवासियों द्वारा अस्वीकृत कर दिए जा तो उन्हें प्रभावशाली ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है। आपातकाल में सरकार को सम्पूर्ण अधिकार के विद्यमान होते हुए भी परिवार नियोजन की योजनाओं को देशवासियों की अस्वीकृति होने के कारण असफलता का मुँह देखना पड़ा था। एक अंग्रेजी कहावत है कि आप घोड़े को पानी तक ले जा सकते हैं, परन्तु पानी पीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते हैं। प्रजातांत्रिक देशों में अधिकार। आरोपित नहीं किये जा सकते. उसके लिए स्वीकृति आवश्यक होती है।

3. सक्षमता का सिद्धान्त (Competence Theory)-प्रसिद्ध प्रबन्धशास्त्री एल० एफ० उर्विक का मत था कि सक्षमता अर्थात् प्रभावशाली व्यक्तित्व भी अधिकार के स्रोत का काम करता है। ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिनके पास औपचारिक रूप से अधिकार कुछ भी नहीं होता है, परन्तु प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं तकनीकी योग्यता के कारण अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। इनमें कुशल इंजीनियर, विद्वान, अर्थशास्त्री और अध्यापक आते हैं जो बौद्धिक क्षमता से प्रभुत्व स्थापित करके मान्यता प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे व्यक्तियों के पास भले ही अधिकार न हों अथवा कम हो, परन्तु उनके का आदश मान करके पालन किया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के पास औपचारिक

लोकन उनका चमत्कारिक व जादुई व्यक्तित्व, कृतित्व व व्यवहार में लोगों में खा पदा करके बातों को मानने हेत बाध्य करता था। यह स्रोत मात्र व्यक्तिगत होता है, सामाजिक या संगठनात्मक नहीं और स्वीकृति स्वेच्छा से होती है किसी डर या शक्ति के कारण नहीं।

अधिकार की भूमिका एवं महत्ता

(ROLE AND IMPORTANCE OF AUTHORITY)

प्रबन्ध के क्षेत्र में अधिकार की भूमिका निम्नलिखित कारणों से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती।

(i) बिना अधिकार के संगठन का जन्म नहीं हो सकता है। संगठन करने का अर्थ ही होता है विविध पदों में अधिकार सम्बन्धों की स्थापना करना। अधिकारों के प्रतिनिधायन से ही अधिकारी अधीनस्थ सम्बन्ध का जन्म होता है और संगठन संरचना प्रारम्भ होती है।

(i) अधिकार से ही कार्य-सम्पन्नता एवं आदेश पालन में सुनिश्चितता आती है। अधिकार वह शक्ति है जिससे संगठन की योजनाएँ प्रभावी क्रिया के रूप में रूपान्तरित हो पाती हैं।

(iii) प्रबन्धकीय अधिकार अव्यवस्था, अनुशासनहीता और भ्रान्तियों को दूर करते हैं और नियोजन, नियन्त्रण, संदेशवाहन और समन्वय स्थापित करते हैं, परन्तु अधिकारों का सफल प्रयोग वास्तव में, अनुकूल वातावरण, न्यायपूर्ण व्यवहार, पारस्परिक सहयोग, आदर, सम्मान व कार्य के प्रति रुचि पर निर्भर करता है।

अधिकार के प्रयोग की सीमाएँ

(LIMITATIONS OF THE USE OF AUTHORITY)

अधिकारों का प्रयोग करते समय प्रबन्धक को निम्नलिखित सीमाओं को ध्यानान्तर्गत रखना चाहिए

1.आर्थिक सीमाएँकोई भी अधिकारी ऐसा आदेश नहीं दे सकता जिसे आर्थिक दृष्टिकोण से पूरा करना असम्भव हो। आर्थिक सीमाओं में बाजार की प्रतियोगिता, मूल्य स्तर, बाजार की दशाएँ आदि शामिल होती हैं। उदाहरण के लिए, किसी प्रबन्धक का 20 रुपये वाली वस्तु मात्र 2 रुपये में कर्मचारी द्वारा क्रय करके लाने का आदेश सार्थक नहीं माना जायेगा।

2. जीवविज्ञान सम्बन्धी सीमाएँ-आदेश देते समय जीव-विज्ञान सम्बन्धी (Biological) सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए। अधिकारी को ऐसा आदेश नहीं देना चाहिए जो जीव-विज्ञान के दृष्टिकोण से असम्भव हो। कोई भी व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक कार्य नहीं कर सकता; जैसे-एक प्रबन्धक अपने अधीनस्थ कर्मचारी को खड़ी दीवार पर ऊपर की ओर चढ़ने का आदेश नहीं दे सकता, क्योंकि यह कर्मचारी की क्षमता के बाहर होता है।

3. तकनीकी सीमाएँतकनीकी सीमाओं के परे कार्य करने हेतु भी प्रबन्धक को आदेश नहीं देना चाहिए। उदाहरणार्थ, कोई अधिकारी अपने अधीनस्थ को बिना यन्त्रों की सहायता के औजार उत्पादन का आदेश नहीं दे सकता है।

4. प्राकतिक सीमाएँभौगोलिक स्थिति, जलवायु तथा प्राकृतिक (Physical) नियमों से सम्बन्धित सीमाएँ भी अधिकतर-प्रयोग को प्रतिबन्धित करती हैं। उदाहरण के लिए, कोई अधिकारी अपने कर्मचारी को लोहे को मिट्टी में बदलने का आदेश देता है तो यह आदेश व्यर्थ होगा क्योंकि ऐसा करना असम्भव है।

5. व्यक्ति समूह की प्रतिक्रियाएँ–अधिकारों का प्रयोग करते समय अधिकारी को अन्य व्यक्तियों की प्रतिक्रियाओं एवं व्यक्ति समूह की प्रतिक्रियाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए।

6. आन्तरिक सीमाएँप्रबन्धक के अधिकार संगठन के उद्देश्य व नीतियों से सीमित होते हैं। वह संगठन की आन्तरिक नीतियों व नियमों के विरुद्ध नहीं जा सकता है।

7. कानूनी सीमाएँउपरोक्त सीमाओं के अतिरिक्त प्रबन्धक को साझेदारी अनुबन्ध, पार्षद सीमा नियम, पार्षद अन्तर्नियम, कम्पनी अधिनियम, कारखाना अधिनियम आदि के वैधानिक प्रावधाना के अनुसार ही अधिकार का प्रयोग करना चाहिए।

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उत्तरदायित्व का आशय एवं लक्षण

(MEANING AND FEATURES OF RESPONSIBILITY)

आशय-अपने उच्चाधिकारी के आदेशानुसार कार्य को पूरा करने के कर्त्तव्य को उत्तरदायित्व कहते हैं। यह एक ऐसा नैतिक व वैधानिक बन्धन होता है जिससे अधी प्थ कार्य पूरा करने के लिये बाध्य होते हैं। थियो हैमन के शब्दों में, “उत्तरदायित्व एक अधीनस्थ पर अपने अधिकारी द्वारा इच्छित तरीके से कार्य को सम्पन्न करने का बन्धन है।”1 न्यूमैन और समर के अनसार, “उत्तरदायित्व से हमारा आशय अपने निर्धारित कर्त्तव्यों को पूरा करने की एक अधीनस्थ द्वारा अनुभव की जाने वाली नैतिक अनिवार्यता से है।”लुइस ए० ऐलन के शब्दों में, “उत्तरदायित्व मानसिक एवं शारीरिक क्रियाएँ हैं, जिन्हें किसी कार्य के करने तथा कर्त्तव्य का पालन करने के लिए किया जाना चाहिए।

लक्षण-उत्तरदायित्व की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् हैं

1 उत्तरदायत्व का निमाण (Creation of Responsibility)-उत्तरदायित्व का निर्माण अनुबन्धात्मक सम्बन्ध (Contractional Relationship) के कारण उत्पन्न होता है। जब कोई व्यक्ति किसी संस्था में सेवारत होने पर मौद्रिक भुगतान पाता है और बदले में उसे कुछ सेवाएँ उत्पन्न करनी होती हैं। यही कार्य सम्पन्नता का भार एक अधीनस्थ का उत्तरदायित्व निर्माण करता है।

2. उत्तरदायित्व का प्रवाह (Flow of Responsibility)-उत्तरदायित्व का प्रवाह सदैव नीचे से ऊपर अर्थात् अधीनस्थ से अधिकारी की ओर होता है। इसके विपरीत, अधिकार अधिकारी से अधीनस्थ की ओर प्रवाहित होते हैं।

3. उत्तरदायित्व का सम्बन्ध (Relationship of Responsibility)-उत्तरदायित्व का सम्बन्ध मात्र मनुष्यों अर्थात् अधीनस्थों से होता है। भवन, प्लाण्ट, मशीन या जानवर को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

4. व्यक्तिगत एवं सामहिक उत्तरदायित्व (Individual and Group Responsibility)अगर कार्य निष्पादन का उत्तरदायित्व एक व्यक्ति का है तो व्यक्तिगत उत्तरदायित्व कहलायेगा। अगर कार्य के निष्पादन के लिए एक समूह उत्तरदायी हो तो इसे सामूहिक उत्तरदायित्व कहेंगे। जब कार्य कठिन, जोखिमपूर्ण और विस्तृत हो तो सामूहिक उत्तरदायित्व का निर्णय लिया जाता है।

5. सतत् और विशिष्ट उत्तरदायित्व (Continuous and Specific Responsibility)-जब किसी उपक्रम में निरन्तर रूप से चलने वाले कार्य का भार सम्हालने के लिए किसी व्यक्ति की उच्चाधिकारी के अधीन नियुक्ति की जाती है तो उसका उत्तरदायित्व सतत् प्रकृति का कहलायेगा। इसके विपरीत, जब किसी व्यक्ति को किसी विशेष अधिकारी के अधीन किसी विशिष्ट कार्य को ही सम्पन्न करने हेतु कुछ समय विशेष के लिए रखा जाता है तो यह उसका तदर्थ व विशिष्ट उत्तरदायित्व होगा। उदाहरणार्थ, किसी उपक्रम में महाप्रबन्धक के अधीन कार्यरत विभागीय प्रबन्धक का उत्तरदायित्व सतत प्रकति का होता है, जबकि किसी समस्या विशेष पर विचार करके परामर्श देने हा प्राप्त की गयी तकनीकी विशेषज्ञ की सेवाएँ विशिष्ट उत्तरदायित्व होंगी।

प्रतिनिधायन (Delegation)-अधिकारी जब अपने अधिकार का प्रतिनिधियन अपने

अधिकार एवं उत्तरदायित्व में अन्तर

(Difference Between Authority And Responsibility)

अधिकार एवं उत्तरदायित्व वास्तव में एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। उत्तरदायित्व के। सफल निष्पादन हेतु समुचित अधिकारों का होना नितान्त आवश्यक होता है। अधिकार और उत्तरदायित्व दोनों ही व्यक्तिनिष्ठ तत्त्व हैं। मात्र व्यक्ति के ही अधिकार और उत्तरदायित्व हो सकते हैं किसी निर्जीव उपकरण के नहीं। फिर भी. दोनों में निम्न अन्तर होते हैं।

1 अधिकारों का प्रतिनिधायन किया जा सकता है, उत्तरदायित्व का नहीं।

2. अधिकारों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है, जबकि उत्तरदायित्व का नीचे से ऊपर की ओर।

3. अधिकार अन्य लोगों से काम कराने की शक्ति है, जबकि उत्तरदायित्व किसी कार्य को करने का बन्धन होता है।

4. अधिकार सदैव उच्च अधिकारी से सम्बन्धित होता है, जबकि उत्तरदायित्व अधीनस्थ व्यक्तियों से।

जवाबदेही

(ACCOUNTABILITY)

सैनिक संगठनों और लोक उद्यमों में उत्तरदायित्व के स्थान पर जवाबदेही शब्द ही अधिक लोकप्रिय है। जवाबदेही का अर्थ है कर्मचारी किसे उत्तर देने, स्पष्टीकरण देने, अपनी प्रगति समीक्षा प्रस्तुत करने तथा किससे निर्देश लेने के लिए उत्तरदायी है? लुइस ए० ऐलन के शब्दों में, “जवाबदेही उत्तरदायित्व को पूर्ण करने का बन्धन है तथा स्थापित मानक के सन्दर्भ में अधिकार के प्रयोग का एक दायित्व है।”

जवाबदेही की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-(1) जवाबदेही में उत्तरदायित्व भी निहित है, क्योंकि बिना उत्तरदायित्व के जवाबदेही नहीं हो सकती। (2) जवाबदेही का भारार्पण नहीं हो सकता है। (3) यह हमेशा नीचे से ऊपर जाती है। (4) इसका क्षेत्र अधिकार एवं उत्तरदायित्व की सीमा से परे नहीं हो सकता। (5) एक अधीनस्थ एक से ज्यादा उच्चाधिकारी के प्रति जवाबदेह नहीं हो सकता। इन विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही में कुछ प्रमुख अन्तर भी हैं; जैसे—(1) उत्तरदायित्व एक दायित्व है, जबकि जवाबदेही एक बन्धन सदृश्य है। (2) उत्तरदायित्व का सम्बन्ध कार्य निष्पादन से होता है, जबकि जवाबदेही का निष्पाद के परिणाम से। (3) उत्तरदायित्व की उत्पत्ति कार्य से होती है, किन्तु जवाबदेही की अधिकार से।

अधिकार सम्बन्ध के प्रकार

(TYPES OF AUTHORITY RELATIONSHIP)

अधिकार सम्बन्ध ऐसी शक्ति होते हैं जो प्रतिष्ठान के विभिन्न संघटकों को एक सूत्र में | बाँधकर उसे एक संयोजित रूप प्रदान करते हैं। प्रमुख अधिकारी अपने अधीनस्थों में अधिकारों का प्रतिनिधायन करता है जिससे अधिकारों की एक क्रमिक श्रृंखला (Scalar Chain of Authority) बन जाती है और संगठन का प्रत्येक कर्मचारी इस श्रृंखला से सम्बद्ध कर दिया जाता है। चूंकि अधिकारों की मात्रा क्रमश: प्रत्येक निम्न स्तर पर घटती जाती है अतः इसे अधिकारों की क्रमिक श्रंखला कहते। हैं। संगठनों में प्राय: दो प्रकार के अधिकार सम्बन्ध पाए जाते हैं-(1) रेखा अधिकार और (2) स्टाफ अधिकार। इन दोनों के आशय, गुण, दोष, पारस्परिक सम्बन्ध आदि का विवेचन अग्रलिखित पृष्ठों पर किया गया है

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रेखा अधिकार

(LINE AUTHORITY)

इसमें अधिकार सदैव लम्बवत अर्थात ऊपर से नीचे प्रवाहित होता है। अधिकारों का प्रतिनिधायन वरिष्ठ अधिकारी से कनिष्ठ अधिकारी तक शनैः शनैः कम मात्रा में होता जाता है। इसक निम्न लक्षण होते हैं

(1) ऊपर से नीचे तक सभी आदेश, निर्देश और सचनायें रेखाधिकारियों से होती हुई पहुचता हैं। (2) नीचे से ऊपर होते हुए सभी शिकायतें, परिवेदनायें, सझाव उच्चाधिकारियों तक पहुंचते है। (3) प्रत्येक अधिकारी अपने ठीक नीचे के कनिष्ठ को ही आदेश-निर्देश देता है। इस प्रकार आदेश रेखा श्रृंखला में होते हुए नीचे तक पहुँचते हैं। (4) संगठन में विविध स्तरों का निर्माण हो जाता है। (5) यह सैन्य संगठनों, लघु प्रतिष्ठानों व गैर-तकनीकी संस्थाओं में अधिक लोकप्रिय है। ।

गुण एवं दोष-रेखा अधिकार के प्रमुख लाभ सरलता, पूर्ण अनुशासन, अधिकारों का स्पष्ट विभाजन, प्रत्यक्षता, एकीकृत नियन्त्रण, निर्णयन में सुविधा, दोषी को दण्ड देने में सुविधा, लोचशीलता, समन्वय, स्थायित्व आदि हैं। इसके विपरीत रेखा अधिकार में अविशिष्टीकरण, पक्षपात, नौकरशाही, लालफीताशाही, बड़े उद्यमों हेतु अनुपयुक्तता, विभागों के निर्माण में कठिनाई, एकतन्त्रीय पद्धति जैसे दोष भी पाए जाते हैं। रेखा अधिकार केन्द्रीकरण और तानाशाही को बढ़ावा देता है।

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स्टाफ अधिकार

(STAFF AUTHORITY)

इसमें स्टाफ अधिकारियों की नियुक्ति, रेखा अधिकारियों की सहायता, सेवा और उचित परामर्श हेतु की जाती है जिससे कि निर्णयन और कार्य-निष्पादन अधिक कुशलता से हो सके। स्टाफ अधिकारी को रेखा अधिकारियों की भाँति आदेश और निर्देश देने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है। वह तो मात्र परामर्श के रूप में अपनी बात प्रस्तुत करता है। स्टाफ अधिकार के प्रमुख लक्षण निम्न होते हैं

(1) स्टाफ अधिकारी विशेषज्ञ के रूप में रेखा अधिकारियों को परामर्श देते हैं। (2) स्टाफ अधिकारी को आदेश व निर्देश देने का अधिकार नहीं होता है। (3) इनके ऊपर कोई उत्तरदायित्व और जवाबदेही नहीं होती है। (4) स्टाफ अधिकारी का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता है, वह तो मात्र रेखा अधिकारी का सहायक होता है। (5) रेखा अधिकारी स्टाफ अधिकारी के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं होते हैं।

गुण एवं दोषस्टाफ अधिकारी में विशेषज्ञता, अनुसंधान को प्रोत्साहन, सोचने और करने में स्पष्ट भेद, सुदृढ़ निर्णय, रेखा अधिकारियों के कार्य-भार में कमी के गुण पाए जाते हैं। दूसरी ओर, स्टाफ अधिकार में विविध दोष भी पाए जाते हैं; जैसे-विशेषज्ञों का उत्तरदायित्व नहीं, संघर्ष की सम्भावना, भ्रम की आशंका, खर्चीली व्यवस्था, बौद्धिक सहयोग की कमी।

स्टाफ के प्रकार (Types of Staff)-किसी संगठन में स्टाफ कार्य करने वाले सेविवर्गियों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

() व्यक्तिगत स्टाफ (Personal Staff)-व्यक्तिगत स्टाफ की सेवा बहुत व्यस्त और शीर्ष रेखाधिकारियों को दी जाती है। यद्यपि एक रेखाधिकारी अपने बहुत से कार्य अधीनस्थों को सौंपता है फिर भी कुछ ऐसे उत्तरदायित्व होते हैं जो उसे स्वयं परा करने होते है। अत: व्यक्तिगत स्टाफ की सेवा उसके व्यक्तित्व का विस्तार होती है। वह रेखाधिकारी की जगह सोचता है और सलाहकार, समस्या निवारक, सूचना संग्राहक, भाषण लेखक की सेवा देता है। कभी-कभी तो व्यक्तिगत स्टाफ का प्रभाव आदेश श्रृंखला के अधिकारियों और कर्मचारियों में इतना अधिक होता है। कि पर्दे के पीछे उसे ही वास्तविक अधिकारी समझने लगते हैं। 1. (ब) विशिष्ट स्टाफ (Specialised Staff)-विशिष्ट स्टाफ विविध क्रियात्मक क्षेत्रों जस- सविवगाय, गुणवत्ता नियन्त्रण, क्रय, बाजार अनसंधान. औद्योगिक इंजीनियरिंग, सुरक्षा, लखाकन, अंकेक्षण, विधि, जन सम्पर्क आदि में से किसी खास में विशेषज्ञ होते हैं। इनका प्रमुख कार्य उच्चाधिकारी को विशिष्ट तकनीकी परामर्श सेवा देना होता है।

() सामान्य स्टाफ (General Staff)-इनका कार्य सम्पूर्ण संस्था की कार्यकुशलता सुधार  हेतु विविध सुझाव शीर्ष प्रबन्ध को देना होता है। सेना के मुख्यालयों में इस किस्म के स्टाफ अधिकारी रखे जाते हैं जो विविध नीतियों, प्रणालियों, नियमों और कार्यविधियों की रूपरेखा बनाते हैं।

स्टाफ का प्रभाव (Influence of Staff-यद्यपि स्टाफ अधिकारी को केवल परामर्श देने का अधिकार होता है और वह संचालन कर्मचारियों को आदेश नहीं दे सकता, फिर भी वह अपने सुझावा को स्वीकृति पाने में सफल हो जाते हैं। इस स्वीकृति को पाने के निम्न कारण होते हैं

1 स्टाफ अधिकारी अपने सुझाव सीधे उच्चाधिकारी को देते हैं। वह अधिकारी स्टाफ के सुझाव को अधीनस्थों में आदेश-निर्देश के रूप में प्रेषित करता है। स्टाफ अधिकारी के सुझाव आदेश शृखला में आदेश के रूप में पहँचते हैं, सुझाव के रूप में नहीं।

2. स्टाफ अधिकारी इंजीनियर, लेखांकन विशेषज्ञ, वकील, सांख्यिकीविद, मशीन सुधारक जैसे प्रवाण लोग होते हैं और उनके उत्कृष्ट सुझाव, प्रस्ताव और परामर्श रेखा अधिकारियों को अति प्रभावित करते हैं।

3. स्टाफ अधिकारी का प्रतिष्ठित पद और आकर्षक पदवी होती है अत: उनके सुझाव गम्भीरतापूर्वक आदेश श्रृंखला में लिए जाते हैं।

4. बहुधा किसी वरिष्ठ अधिकारी का वरदहस्त स्टाफ अधिकारी पर होता है। उसे लोग बॉस का प्रतिनिधि मानते हैं और विश्वास करते हैं कि यदि उसकी राय को अस्वीकार किया गया तो बॉस गुस्सा होंगे अत: रेखाधिकारी स्टाफ अधिकारी के सुझाव मान लेते हैं।

5. आदेश श्रृंखला के कर्मचारी स्टाफ अधिकारी के सुझाव की अवहेलना करके उसे अप्रसन्न नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि पदोन्नति, वेतन वृद्धि, स्थानान्तरण, अनुशासनात्मक कार्यवाही आदि में वह महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

परन्तु व्यवहार में स्टाफ के प्रयोग में निम्न व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती हैं

1 प्रायः संगठन में स्टाफ के अधिकार और कर्त्तव्य स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं होते जिससे उनकी भूमिका के बारे में भ्रान्तियाँ पैदा होती हैं।

2. कभी-कभी स्टाफ का कार्य करने वाले अधिकारी कुशल और निष्ठावान नहीं होते हैं, जिससे उनका अच्छा उपयोग नहीं हो पाता है।

3. कभी-कभी एक ही अधिकारी को रेखा और स्टाफ दोनों के मिश्रित काम दे दिए जाते हैं, जिससे उनके स्टाफ और रेखीय व्यक्तित्व को अलग-अलग कर पहचानना कठिन हो जाता है।

4. कुछ दशाओं में वरिष्ठ रेखाधिकारी स्वयं ही स्टाफ अधिकारी के परामर्शों की अवहेलना करते हैं।

फिर भी कुछ हठी और सशक्त रेखाधिकारी स्टाफ अधिकारी की राय की अवहेलना करके मनमाने निर्णय और कार्यवाही करने से नहीं चूकते हैं अत: स्टाफ के प्रभाव को सशक्त बनाने हेतु निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं

(1) महत्त्वपूर्ण मामलों में कार्यवाही के पूर्व स्टाफ परामर्श को अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।

(2) आदेश शृंखला में स्टाफ के प्रभाव को बढ़ाने के लिए कुछ क्रियात्मक अधिकार भी दिया जाना चाहिए।

(3) योग्य एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों को ही स्टाफ अधिकारी के रूप में चयनित करना चाहिए।

(4) स्टाफ और रेखा अधिकारियों में परस्पर सद्विश्वास का वातावरण पैदा करना चाहिए।

(5) स्टाफ अधिकारी को अपने को पुलिस शक्ति न मानकर रेखा अधिकारियों का सहायक एवं शुभचिन्तक मान कर कार्य करना चाहिए।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. अधिकार, दायित्व एवं उत्तरदेयता शब्दों की परिभाषा दीजिये और उनमें सम्बन्धों की विवेचना कीजिये।

Define the terms authority, responsibility and accountability and discuss their relationship.

प्रश्न 2. अधिकार से क्या आशय है ? अधिकार के प्रकारों, स्रोतों एवं सीमाओं का संक्षेप में। वर्णन कीजिये।

What is meant by authority ? Describe in brief the types, sources and limitations of authority.

प्रश्न 3. उत्तरदायित्व की परिभाषा दीजिये। क्या यह जवाबदेही से भिन्न है ? क्या इसका भारार्पण हो सकता है?

Define responsibility. Is it different from accountability ? Can it be delegated ?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. अधिकार के आवश्यक तत्व बताइये।

Explain the essential elements of authority

प्रश्न 2. अधिकार के प्रयोग की सीमाएँ क्या हैं ?

What are the limitations of the use of authority ?

प्रश्न 3. अधिकार तथा उत्तरदायित्व में अन्तर बताइये।

Explain the difference between authority and responsibility.

प्रश्न 4. अधिकार सम्बन्ध के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?

What are the various types of authority relationships?

प्रश्न 5. अधिकार तथा उत्तरदायित्व में सम्बन्ध बताइये।

State the relationship between authority and responsibility,

प्रश्न 6. अधिकार सत्ता के स्रोत पर एक टिप्पणी लिखिये।

Write a note on the source of authority.

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं’ या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False’

(i) रेखा अधिकार में अधिकार नीचे से ऊपर प्रवाहित होता है।

In line authority, authority flows from the bottom level to upper level

(ii) अधिकार तथा उत्तरदायित्व दोनों में गहन सम्बन्ध है।

There is close relationship between authority and responsibility.

(iii) जवाबदेही तथा उत्तरदायित्व में स्पष्ट अन्तर है।

There is expressed the difference between accountability and responsibility

Principles of Business Management Authority

उत्तर-(i) गलत (ii) सही (iii) गलत

2. सही उत्तर चुनिये (Select the correct answer)

(i) उत्तरदायित्व होता है

Responsibility is of :

(अ) अधीनस्थ का (Subordinate)

(ब) अधिकारी का (Officer)

(स) दोनों का (Both)

(द) इनमें से किसी का नहीं (None of these)

(ii) प्रतिनिधायन किया जा सकता है

Delegation can done of :

(अ) अधिकार का (Authority) (ब)

उत्तरदायित्व (Responsibility)

(स) जवाबदेही (Accountability)

(द) इनमें से कोई नहीं (None of these)

उत्तर-(i) (ब) (ii) (अ)

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chetansati

Admin

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