BCom 2nd Year Principles Business Management Communication Study Material Notes in hindi

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BCom 2nd Year Principles Business Management Communication Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd Year Principles Business Management Communication Study Material Notes in Hindi : Meaning and Definitions of Communication  Nature or Characteristics  of Communications Elements of Components of Communications Process of Communications Organization and Scope of Communications Signification Importance of Communication in Management  Types Methods of Communications :

Communication Study Material
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BCom 2nd Year Principles Business Management Leadership Study Material Notes in Hindi

सम्प्रेषण

[Communication]

सम्प्रेषण को संवहन, संचार या सन्देशवाहन के नाम से भी जाना जाता है। सम्प्रेषण प्रबन्ध । के महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक है। सम्पूर्ण उपक्रम को एक सूत्र में बाँधने एवं संगठित करने के लिए यह आवश्यक है कि संस्था का प्रत्येक अंग अपने कार्य एवं उत्तरदायित्व से पूर्णतः परिचित हो। ऐसी सम्पूर्ण जानकारियों का माध्यम सम्प्रेषण है जिसकी विधियों के द्वारा संस्था का प्रत्येक अंग एक दूसरे के सम्पर्क में रहता है और उसे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों से सम्बन्धित सचनाओं के आदान-प्रदान में सरलता रहती है। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि आधुनिक समय में प्रबन्धक अपने कुल समय का 90 प्रतिशत से भी अधिक समय सन्देशों/सूचनाओं के आदान-प्रदान में व्यतीत करते हैं, क्योंकि प्रबन्धक को न केवल अपने अधीनस्थों, उच्च अधिकारियों, सहकर्मियों के साथ ही सन्देशों का आदान-प्रदान करना होता है, बल्कि उसे श्रम-संघों, उपभोक्ताओं, सरकारी अधिकारियों एवं कार्यालयों, शोध एवं विकास संस्थाओं आदि से भी निरन्तर सम्पर्क रखना पड़ता है। वास्तविकता यह है कि बिना सम्प्रेषण के प्रबन्ध असम्भव है। प्रस्तुत अध्याय में सम्प्रेषण के महत्त्वपूर्ण पहलुओं की विवेचना की गई है।

Principles Business Management Communication

सम्प्रेषण का अर्थ एवं परिभाषाएँ

MEANING AND DEFINITIONS OF COMMUNICATION)

सम्प्रेषण को अंग्रेजी में Communication कहते हैं। अंग्रेजी का ‘Communication’ शब्द लैटिन भाषा के ‘Communis’ अथवा ‘Communicare’ से लिया गया है जिसका अर्थ है अवबोध (Commonness) अर्थात् जानना या समझना। इस प्रकार सम्प्रेषण के द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपनी बात समझाता है और दूसरे की बात समझता है।

संकुचित अर्थ में, दो या अधिक व्यक्तियों के बीच सन्देशों का आदान-प्रदान करना ही सम्प्रेषण है, किन्तु सम्प्रेषण का यह अर्थ उचित नहीं हैं, इससे सम्प्रेषण का उद्देश्य पूरा नहीं होता है। सम्प्रेषण का उद्देश्य तभी पूरा होता है, जबकि सन्देश पाने वाला सन्देश को ठीक उसी रूप में समझता एवं ग्रहण करता है जिस रूप एवं अर्थ में उस सन्देश को भेजने वाला समझता है। यदि ऐसा नहीं है तो उसे सम्प्रेषण नहीं कहा जा सकता है। अतः इस व्यापक अर्थ में, सम्प्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो या अधिक व्यक्ति सन्देशों के आदान-प्रदान के साथ-साथ उनसे सम्बन्धित अर्थों, भावनाओं, सम्मतियों, तों, दृष्टिकोण एवं आपसी समझ का भी आदान-प्रदान करते हैं।

सम्प्रेषण की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

मैगिंसन के अनुसार, “सम्प्रेषण एक व्यक्ति से दसरे व्यक्ति को विचारों अथवा सूचनाओं के रूप में ‘अर्थ’ प्रेषित करने की प्रक्रिया है।”

कीथ डेविस के अनुसार, “सम्प्रेषण एक प्रक्रिया है जिसमें सन्देश और समझ को एक से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है।”

लुइस ए० ऐलन के अनुसार, “सम्प्रेषण में वे सभी चीजें शामिल हैं जिनके माध्यम से एक व्यक्ति अपनी बात दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में डालता है। यह अर्थ का पुल है। इसके अन्तर्गत कहने, सुनने तथा समझने की व्यवस्थित तथा निरन्तर प्रक्रिया सम्मिलित होती है।”

न्यूमेन तथा समर के अनुसार, “सन्देशवाहन दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य तथ्यों, विचारों तथा सम्मतियों अथवा भावनाओं का विनिमय है।”

मेक्फारलैण्ड के अनुसार, “विस्तृत रूप में सन्देशवाहन.वह प्रविधि है जिसमें मनुष्यों के बीच अर्थपूर्ण बातों का आदान-प्रदान होता है। विशेष रूप से यह वह प्रक्रिया है जिसमें मनुष्यों बाग अर्थों को समझाया जाता है तथा समझ पहँचायी जाती है

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रॉबर्ट अल्बानीज के अनुसार, “सन्देशवाहन वह सूचना प्रवाह है जो अर्थ एवं समझ (Meaning and Undrestanding) को सूचना स्रोत से सूचना प्राप्तकर्ता तक पहुँचाता है।”

निष्कर्ष : उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के उपरान्त हम यह कह सकते हैं कि सम्प्रेषण एक व्यवस्थित एवं सतत् प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो या अधिक व्यक्ति अपने विचारों, तथ्यों, अर्थों, मनोभावना, सम्मतियों, दृष्टिकोण आदि का आदान-प्रदान करते हैं। यह सन्देशदाता एवं सन्देशप्राप्तकर्ता के बीच अर्थ एवं भावना के साथ-साथ ‘समझ’ का भी विनिमय है। इसका उद्देश्य सन्देश प्राप्तकर्ता के मस्तिष्क में वही ‘समझ एवं भावना’ उत्पन्न करना है जो सन्देश भेजने वाले के मस्तिष्क में थी। सन्देश विभिन्न साधनों एवं संकेतों के द्वारा भेजा जा सकता है। इस प्रकार सन्देशवाहन विचारों, भावनाओं तथ्यों आदि को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने, जानने व समझने की कला है। संक्षेप में, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपने विचारों व दृष्टिकोण से अवगत कराता है।

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सम्प्रेषण की प्रकृति अथवा विशेषताएँ

(NATURE OR CHARACTERISTICS OF COMMUNICATION)

1 दो या दो से अधिक व्यक्ति (Two or More Persons)-सम्प्रेषण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है-एक सन्देश भेजने वाला एवं दूसरा सन्देश प्राप्त करने वाला। ।

2. विचारों का आदानप्रदान (Exchange of Ideas)-सम्प्रेषण को पूरा करने के लिए विचारों, सम्मतियों, संवेदनाओं या सूचनाओं का आदान-प्रदान होना आवश्यक है। इस आदान-प्रदान के बिना सम्प्रेषण के विषय में सोचा भी नहीं जा सकता।

3. आपसी समझ (Mutual Understanding)-सम्प्रेषण का अर्थ केवल सन्देश भेजना या सन्देश प्राप्त करना कदापि नहीं है, बल्कि इसमें आपसी समझ भी निहित है। आपसी समझ से तात्पर्य है कि सन्देश प्राप्तकर्ता को सन्देश उसी भावना से समझना चाहिए जिस भावना से सन्देश दिया गया

4. द्विमार्गीय प्रक्रिया (Two Way Process)-सम्प्रेषण में सन्देश भेजना और प्राप्तकर्ता की प्रतिक्रिया प्राप्त करना सम्मिलित है। इसलिए यह द्वि-मार्गीय प्रक्रिया है।

5. सतत् प्रक्रिया (Continuous Process)-सम्प्रेषण कभी न रुकने वाली सतत् प्रक्रिया है अर्थात जो निर्बाध रूप से निरन्तर चलती रहती है।

6. मानवीय समूह से सम्बन्धित प्रक्रिया (Related with Human Group Process) – सम्प्रेषण मानवीय समूह से सम्बन्धित प्रक्रिया है न कि पशु-पक्षियों के समूह से सम्बन्धित प्रक्रिया।

7. प्रभावशीलता (Effectiveness)-सम्प्रेषण की प्रभावशीलता केवल सन्देश देने की योग्यता पर ही निर्भर नहीं करती, बल्कि सन्देश सुनने की योग्यता पर भी निर्भर करती है।

8. उद्देश्यपरक (Object-oriented)-सम्प्रेषण कुछ उद्देश्यों से प्रेरित होता है अर्थात् प्रत्येक सन्देश का कोई न कोई निश्चित उद्देश्य होता है। सम्प्रेषण को तभी प्रभावी माना जाता है जब उससे अपेक्षित उद्देश्यों की पूर्ति हो रही हो।

9. बहुआयामी (Multi-dimensional)-सम्प्रेषण बहु-आयामी है। यह अधोगामी, ऊध्वगामी, समतल, आन्तरिक एवं बाह्य किसी भी प्रकार का हो सकता है।

10. सम्प्रेषण के माध्यम (Media of Communication)-सन्देशों का आदान-प्रदान माखिक, लिखित, सांकेतिक, दृश्य-श्रव्य साधनों/माध्यमों से किया जा सकता है।

11. प्रबन्धकीय कार्यों का आधार (Basis of Managerial Functions) -बिना सम्प्रषण के प्रबन्ध असम्भव है अर्थात सम्प्रेषण सभी प्रबन्धकीय कार्यों का आधार है जिसके बिना प्रबन्धक पंग हो जाता है।

12. सार्वभौमिक प्रक्रिया (Universal Process)-सम्प्रेषण एक सार्वभौमिक क्रिया है. क्योंकि यह व्यवसाय के अलावा समाज, शासन, राजनीति, धर्म एवं अर्थव्यवस्था में समान रूप से उपयोगी एवं आवश्यक है।

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सम्प्रेषण के तत्त्व अथवा घटक/अंग

(ELEMENTS OR COMPONENTS OF COMMUNICATION)

सम्प्रेषण के तत्त्व, घटक अथवा मुख्य अंग निम्नलिखित हैं

1.सन्देश प्रेषक (Sendor or Communicator)—यह वह व्यक्ति है जो सन्देश भेजता है। यह व्यक्ति सम्प्रेषण प्रक्रिया को आरम्भ करता है अर्थात् सम्प्रेषण प्रक्रिया का स्रोत एवं सूत्रधार होता है। इसे संचालक या सम्प्रेषक कहते हैं।

2. सन्देश (Message)-सम्प्रेषक क्या सूचना किसी को पहँचाना चाहता है, उसे सन्देश कहते हैं। सन्देश, सम्प्रेषण की विषय-सामग्री होती है। यदि कोई सन्देश न हो तो कोई सम्प्रेषण नहीं होता। यह धारणा, दृष्टिकोण, तथ्य, अनुभव, राय, सुझाव, आदेश-निर्देश, समीक्षा आदि के रूप में भी हो सकता है।

3. सन्देश प्रापक (Receiver of Message)-सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति सन्देश प्रापक कहलाता है। सम्प्रेषण प्रक्रिया तभी पूरी होती है, जब सन्देश प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश, सन्देश प्रापक को प्राप्त हो जाता है।

4. सन्देशवाहन मार्ग या श्रृंखला (Communication Channel or Media)-माध्यम वह कड़ी, मार्ग या धारा है जो सन्देश प्रेषक तथा सन्देश प्रापक को जोड़ती है अर्थात् वह तरीका जिसके द्वारा सन्देश प्रेषक अपना सन्देश, सन्देश प्रापक तक पहुँचाता है।

5. प्रति पुष्टि (Feedback)-प्रतिपुष्टि से आशय, सन्देश प्रापक की प्रतिक्रिया को वापस सन्देश प्रेषक के पास पहुँचाने की क्रिया से है।

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सन्देशवाहन की प्रक्रिया

(Process of Communication)

कीथ डेविस (Keih Davis) के अनुसार सम्प्रेषण की प्रक्रिया में 6 अवस्थाएँ शामिल हैं। इन अवस्थाओं की संक्षिप्त विवेचना निम्नलिखित है

1 विचार की सृष्टि (Ideation)-सन्देशवाहन की प्रक्रिया का प्रारम्भ किसी ऐसे विचार की उत्पत्ति से होता है जिसे हम दूसरे व्यक्ति को भेजने के इच्छुक हों। इस सम्बन्ध में यह महत्त्वपूर्ण है कि अपने विचार को सही ढंग से प्रस्तुत करने के लिए सर्वप्रथम सन्देश प्रेषक को इसे स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए तथा इसकी स्पष्ट संक्षिप्त रचना कर लेनी चाहिए।

2. सन्देशबद्धता (Encoding)—यह निर्णय हो जाने के बाद कि क्या सन्देश दूसरे व्यक्ति को भेजा जाना है, उस सन्दश का नाश्चत चिन्हा में बदलना पड़ता है। सन्देश मौखिक. लिखि विभिन्न संकेतों के माध्यम से दिया जा सकता है। संकेत कैसे दिए जाएंगे यह निर्णय लेने के उपरान्त. हमें अपने सन्देश को उचित संकेतों या चिन्हों में परिवर्तित कर लेना चाहिए। अनेक सन्देश गोपनीय होते हैं। इन सन्देशों को प्राय: सांकेतिक भाषा के माध्यम से देखा जा सकता है।

3. सन्देश का प्रेषण (Transmission of Message)-जब सन्देश को लिपिबद्ध कर तो निश्चित व्यक्ति को सन्देश भेजने की व्यवस्था करना पटती है। इसके लिए उचित माध्यम का उपयोग करना पड़ता है। मौखिक और लिखित सन्देश भेजने के अनेक माध्यम हैं; जैसे-टेलीफोन, पत्र, परिपत्र सन्देशवाहक के माध्यम से सन्देश भेजना आदि। सन्देश भेजते समय हमें अपनी आवश्यकता के अनुसार उचित माध्यम तथा समय का चयन कर लना। चाहिए।

4.सन्देश प्राप्त करना (Receiving Message)-सन्देशवाहन की प्रक्रिया में यह व्यवस्था। सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति से सम्बन्ध रखती है। इसके अन्तर्गत सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति के द्वारा सन्देश को ध्यान से सुन या प्राप्त कर लेने के बाद पढ़ना सम्मिलित किया जाता है।

5. सन्देशवाचन (Decoding)-सन्देशवाचन के अन्तर्गत सन्देश का प्तकर्ता उसको पढकर समझने का प्रयास करता है। यदि इस सम्बन्ध में कोई सन्देह या अस्पष्टता हो तो तुरन्त ही सन्देश प्रेषक से उसे दूर करा लेनी चाहिए, ताकि बाद में किसी प्रकार की समस्या न आए।

6. कार्यवाही (Action)-सन्देशवाहन की प्रक्रिया में दूसरे व्यक्ति तक सन्देश को पहुँचाना ही शामिल नहीं किया जाता, बल्कि उसे उस समय पूरा माना जाता है जब सन्देश प्राप्तकर्ता उस सन्देश पर उचित कार्यवाही कर दे। इस सन्दर्भ में यह जानने के लिए कि सन्देश प्राप्तकर्ता ने सन्देश का पालन किया या नहीं, इस बात की व्यवस्था की जाती है कि वापसी जानकारी प्राप्त हो जाए। यदि सन्देश का पालन सही प्रकार से नहीं होने की सूचना मिले तो सन्देश प्रेषक को उचित सुधारात्मक कार्यवाही करनी पड़ती है।

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सन्देशवाहन का संगठन एवं क्षेत्र

(ORGANIZATION AND SCOPE OF COMMUNICATION)

सन्देशवाहन के संगठन एवं क्षेत्र को अध्ययन की दृष्टि से निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

 एकल-मागाय सन्दशवाहन (One-way Communication)-ओद्योगिक प्रादभाव के आरम्भ में, सन्देशवाहन के अन्तर्गत केवल आदेशों या निर्देशों का देना ही सम्मिलित किया जाता था। यह एकल-मार्गीय सन्देशवाहन कहा जा सकता है। इसमें उच्चाधिकारी द्वारा आदेश व निर्देश अधीनस्थों को सम्प्रेषित कर दिए जाते हैं, लेकिन इसमें अधीनस्थों अथवा निम्न-स्तरीय अधिकारियों की ओर से उच्चाधिकारियों को सम्प्रेषण करने की कोई व्यवस्था नहीं होती है। अधीनस्थ मात्र अधिकारी के आदेश का अक्षरशः पालन करता था, किन्तु यह बाद में अनुभव किया जाने लगा कि केवल सूचना देना ही पर्याप्त नहीं है, कर्मचारियों को सुझाव देने का अधिकार भी मिलना चाहिए। एकल-मार्गीय सन्देशवाहन चित्र निम्नवत है

(2) द्विमार्गीय सन्देशवाहन (Two-way Communication)-आधुनिक औद्योगिक एवं व्यावसायिक जटिलता के इस युग में द्वि-मार्गीय सन्देशवाहन व्यवस्था एक अनिवार्यता बन गई है। इसमें ऊपर से नीचे और नीचे से  उपर दोनेों दिशाओं में सूचनाओं व सुझावों का आदान प्रदान होता है  इसका चित्र निम्नलिखित हैं ।

वास्तविक सन्देशवाहन आधुनिक युग में द्वि-मार्गीय यातायात के समान हैं जिससे प्रबन्धकों मार अबान्धता (Managers and Managed) के मध्य सन्देशों का खुला आदान-प्रदान होता ह। इसके निम्न तीन रूप होते हैं

() भिन्नस्तरीय सन्देशवाहन (Inter-scalar Communication)-इसमें दो भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत व्यक्तियों के बीच सन्देशवाहन को शामिल किया जाता है। यह वरिष्ठों और कनिष्ठों के मध्य का सम्प्रेषण होता है।

() समानस्तरीय सन्देशवाहन (Same-scalar Communication)-इसका आशय एक ही स्तर पर कार्यरत दो कर्मचारियों के मध्य का सन्देशवाहन होता है। दो श्रमिकों के द्वारा अपने विभागीय प्रबन्धक की आलोचना करना समान-स्तरीय सन्देशवाहन है।

() संगठनेतर सन्देशवाहन (Extra-organizational Communication)-इसका आशय संगठन के पदाधिकारियों या कर्मचारियों द्वारा संगठन से बाहर की एजेन्सियों के मध्य होने वाले सन्देशों के आदान-प्रदान से है।

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सन्देशवाहन का प्रबन्ध में महत्त्व

(SIGNIFICANCE/IMPORTANCE OF COMMUNICATION IN MANAGEMENT)

आधुनिक युग में, व्यावसायिक प्रबन्ध में सम्प्रेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कीथ डेविस के अनुसार, “एक व्यवसाय के लिए सन्देशवाहन का उतना ही महत्त्व है जितना एक व्यक्ति के लिए रक्त-संचार का।” यह संस्था रूपी शरीर में धमनियों का कार्य करता है जिसके माध्यम से सम्पूर्ण संस्था में जीवन रक्त का संचार होता रहता है। संक्षेप में, प्रबन्ध एवं व्यवसाय में प्रभावी सम्प्रेषण के महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

1 प्रबन्धकीय कार्यों का क्रियान्वयन (Performance of Managerial Functions)-किसी भी उपक्रम में प्रबन्धक सम्प्रेषण के माध्यम से ही विभिन्न प्रबन्धकीय क्रियाओं; जैसे-नियोजन, संगठन, समन्वय, निर्देशन एवं नियन्त्रण आदि का सफलतापूर्वक निष्पादन करता है।

2. व्यवसाय का सफल संचालन (Efficient/Successful Operation of Business)व्यवसाय के संचालन के लिए अनेक तकनीकी, आर्थिक, प्रशासकीय, वित्तीय, निर्माणी क्रियाओं का निष्पादन किया जाता है। व्यवसाय में विशिष्टीकरण, श्रम-विभाजन, नवीन संगठन प्रारूपों एवं नवीन प्रौद्योगिकी के प्रयोग से व्यवसाय बहु-आयामी एवं बहु-पक्षीय हो गया है। अनेक विभागों, अनेक क्रियाओं, अनेक हितों व लक्ष्यों के कारण व्यवसाय को एक सूत्र में बाँधकर चलाने हेतु सतत् सम्प्रेषण आवश्यक है। सन्देशवाहन व्यवस्था जितनी सुगम होगी व्यवसाय की सफलता की उतनी ही अधिक आशा की जा सकेगी।

3. शीघ्र निर्णय एवं क्रियान्वयन (Quick Decision and its Implementation)-प्रबन्धका को पग-पग पर अनेक निर्णय लेने होते हैं जिनके लिए अनेक प्रकार की सूचनाओं की आवश्यकता होती है जो प्रभावी सन्देशवाहन द्वारा ही सुलभ हो सकती है। लिए गए निर्णयों को सम्बन्धित व्यक्तियों तथा विभागों तक पहुँचाने का कार्य भी सन्देशवाहन द्वारा शीघ्रता एवं सुगमतापूर्वक किया जा सकता है। स्पष्ट है कि व्यवस्थित सन्देशवाहन की पद्धति को अपनाने से सन्देशों के आदान-प्रदान में शीघ्रता एवं सुगमता आती है तथा संस्था लाभ के अवसरों का सदुपयोग कर सकती

4. प्रभावशाली समन्वय (Effective Co-ordination)-संस्था में कार्यों को करने के लिए/लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक व्यक्ति तथा विभाग होते हैं। इन सभी के कार्यों में एकरूपता तथा क्रमबद्धता स्थापित करके ही संस्था के उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है। प्रभावशाली समन्वय का कार्य प्रभावी सम्प्रेषण के माध्यम से ही सम्भव हो सकता है।

5. मानवीय सम्बन्धों के निर्माण में सहायक (Helps to Build Human ‘ Relations)-मानवीय सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रबन्धकों को कर्मचारियों के सामाजिक एवं मानसिक स्वरूप को समझना चाहिए। उन्हें उनकी समस्याओं, कठिनाइयों, भावनाओं, अपेक्षाओं। आदि के बारे में भी जानना चाहिए। इस हेतु प्रबन्धकों को उनके साथ औपचारिक सम्बन्धों के साथ-साथ अनौपचारिक सम्बन्ध भी स्थापित करने पड़ते हैं। इन सम्बन्धों के निर्माण के लिए उनके साथ निरन्तर सम्पर्क रखना पड़ता है जो बिना सन्देशवाहन के सम्भव नहीं है।

6. जनतान्त्रिक भावना को बल (Emphasis to Democratic Feelings)-सन्दशवाहन कर्मचारियों के विचारों, सुझावों, भावनाओं आदि को प्रबन्धकों तक पहुँचाता है और प्रबन्धकीय कार्यों में उन्हें प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान करता है जिससे कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा होता है, संस्था में शान्तिमय वातावरण रहता है, कर्मचारी अभिप्रेरित होते हैं और मधुर सम्बन्धों का विकास होता है।

7.सफल/प्रभावी नेतृत्त्व का आधार (Basis of Successful/Effective Leadership)सफल नेतृत्त्व के लिए सन्देशों का आदान-प्रदान बहुत आवश्यक है। सम्प्रेषण के अभाव में कोई भी नेता अपने अनुयायियों को प्रभावित नहीं कर सकता है। वह सन्देशवाहन क्षमता से ही अनुयायियों को प्रभावित करता है तथा उनका मार्गदर्शन करता है। इस प्रकार प्रभावी एवं स्पष्ट सन्देशवाहन ही नेतृत्त्व को प्रभावशाली बना सकता है।

8. सन्देहों, भ्रमों एवं अज्ञानताओं के निवारण के लिए (To Eradicate Suspicion, Misunderstanding and Ignorance)-सन्देह व भ्रम के कारण आपसी सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं। नियमों व कार्यपद्धतियों की अज्ञानता भी कर्मचारियों के कार्य में बाधक होती है। सम्प्रेषण की उचित । व्यवस्था से ये सभी कार्य बाधाएँ दूर हो जाती हैं। यथासम्भव सूचनाओं व तथ्यों के आदान-प्रदान से शंकाओं व भ्रमों का निवारण करके कार्यकुशलता में वृद्धि की जा सकती है।

9. बाह्य पक्षकारों से ठोस सम्बन्धों के निर्माण में सहायक (Helps to Build Sound Relations with Outside World)-सन्देशवाहन की आवश्यकता एवं महत्त्व किसी उपक्रम में आन्तरिक प्रबन्ध के लिए प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के मध्य सम्पर्क स्थापित करने तक ही सीमित नहीं हैं, अपितु इसकी आवश्यकता एवं महत्त्व बाह्य पक्षों से सम्पर्क बनाए रखने के लिए भी कम नहीं है। बाह्य पक्षों में ग्राहक, श्रमसंघ, विनियोजक, प्रतिस्पर्धा संस्थाएँ, स्थानीय समुदाय, सरकार एवं आपूर्तिकर्ताओं आदि को शामिल किया जाता है। प्रत्येक संस्था को अपने अस्तित्व को बनाए रखने तथा अपना विकास करने के लिए इन सभी पक्षकारों से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखना होता है। यह सम्पर्क सन्देशवाहन के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आधुनिक प्रबन्ध व्यवस्था में सम्प्रेषण प्राण ऊर्जा के समान है जिसके बिना कोई भी उपक्रम कार्य नहीं कर सकता है। थियोडोर हर्बर्ट के अनुसार “सम्प्रेषण के बिना कोई भी संगठन अधिक समय तक कार्य नहीं कर सकता है।”

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सन्देशवाहन के प्रकार/माध्यम/विधियाँ

(TYPES/MEDIA/METHODS OF COMMUNICATION)

1 मौखिक सन्देशवाहन (Oral/Verbal Communication)-जब कोई संवाद या सूचना उपस उच्चारण कर प्रेषित की जाए तो इसे मौखिक सन्देशवाहन कहते हैं। मौखिक सन्देशवाहन के मध्य प्रत्यक्ष रूप में वार्तालाप द्वारा. टेलीफोन पर बात करके, विचारगोष्ठियों में भाग र, सम्मेलनों में उपस्थित होकर सचना प्रसारण यन्त्रों के माध्यम से, घण्टी या सीटी बजाकर अथवा अन्य किसी संकेत द्वारा भी किया जाता है।

2. लिखित सन्देशवाहन (Written Communication)-ऐसा सन्देश जो लिखित रूप में एक 1 से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाया जाता है, उसे लिखित सन्देशवाहन कहते हैं। लिखित व्यक्ति सन्देशवाहन के लिए पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार-पत्र, रिपोर्ट, परिपत्र, हैण्डबुक, डायरियों एवं नियमावलियों आदि का प्रयोग किया जाता है। लिखित सन्देशवाहन के रूप में आजकल फक्स एवं इण्टरनेट आदि का प्रयोग किया जा रहा है।

3.सांकेतिक सन्देशवाहन (Gestural Communication)-जसा यह एक प्रकार का ऐसा सम्प्रेषण है जिसके अन्तर्गत सन्देश प्रेषक न बोलता है और न लिखता है. बल्कि अपने संकेतों. इशारों एवं हाव-भावों से सन्देश पहुँचाता है। ऐसा सन्देशवाहन तभी सम्भव है। जबकि सन्देश प्रेषक एवं सन्देश प्रापक आमने-सामने हों।

4. औपचारिक सम्प्रेषण (Formal Communication)-जब किसी उपक्रम में औपचारिक सम्बन्धों वाले व्यक्तियों के बीच निर्धारित मार्ग व श्रृंखला के अनुसार सन्देशों का आदान-प्रदान किया जाता है तो उसे औपचारिक सम्प्रेषण कहा जाता है। इस सम्प्रेषण का मार्ग संगठन के ढाँचे में निर्धारित प्रक्रियाओं के अनुसार तय होता है। यह विशेष पद या स्थिति में रहकर किया गया सम्प्रेषण है। यह व्यक्तियों के बीच न होकर पदों के बीच होने वाला सन्देशवाहन है।

5. अनौपचारिक सन्देशवाहन (Informal Communication)-जब दो या अधिक व्यक्ति आपस में सन्देशों का आदान-प्रदान अपनी औपचारिक स्थिति के कारण न करके अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक सम्बन्धों के आधार पर करते हैं तो वह अनौपचारिक सन्देशवाहन कहलाता है। अनौपचारिक सम्प्रेषण का कोई पूर्व-निर्धारित मार्ग नहीं होता है। इसकी श्रृंखलाएँ (Channels) संगठन द्वारा निर्धारित नहीं होती वरन् स्वतः ही बनती एवं परिवर्तित होती हैं। ऐसे सन्देशों का आदान-प्रदान सामाजिक समारोहों, दोपहर के भोजन के समय, क्लब, गोष्ठी, अनौपचारिक भेंट, सभा या सैर के दौरान अथवा सामूहिक कार्यक्रमों के अवसर पर विशेष रूप से होता हैं। ऐसे अवसरों पर उच्चाधिकारी अपने अधीनस्थों से ऐसी सूचनाएँ प्राप्त करते हैं जो औपचारिक सम्प्रेषण के द्वारा प्राप्त करनी कठिन हो सकती हैं। अनौपचारिक सन्देशवाहन को अंगूरीलता (Grapevine) या जनप्रवाद के नाम से भी जाना जाता है।

6. अधोमुखी/अधोगमी सन्देशवाहन (Downward Communication)-उच्च अधिकारियों से अधीनस्थों की ओर जाने वाले सन्देशों को अधोमुखी/अधोगामी सन्देशवाहन कहते हैं। ऐसे सन्देश संगठन में औपचारिक पदानुक्रम (Hierarhcy) के अनुसार क्रमश: ऊपर से नीचे की ओर लम्बवत् रूप से चलते हैं। ये प्रबन्धकों तथा अधीनस्थों के मध्य अधिकार-दायित्व सम्बन्धों को दर्शाते हैं। इस सम्प्रेषण व्यवस्था का उपयोग उस समय किया जाता है, जबकि उच्चाधिकारियों को अपने अधीन कर्मचारियों को कोई आदेश, निर्देश, सूचना, परिपत्र अथवा जानकारी आदि देनी होती है। इसे ‘कर्मचारी सम्प्रेषण’ अथवा ‘आदेशात्मक सम्प्रेषण’ भी कहते हैं। अधोगमी सम्प्रेषण लिखित एवं मौखिक दोनों में से किसी भी रूप में हो सकता है।

7. ऊर्ध्वगामी सन्देशवाहन (Upward Communication)-जब सन्देशवाहन की दिशा अधीनस्थ कर्मचारियों की ओर से उच्चाधिकारियों की ओर होती है तो इसे ऊर्ध्वगामी सन्देशवाहन कहते हैं। यह सम्प्रेषण लिखित या मौखिक किसी प्रकार का हो सकता है। ऊर्ध्वगामी सम्प्रेषण में प्राय: ये सन्देश हो सकते हैं-आदेश-निर्देशों पर आपत्तियाँ, कार्य सम्बन्धी कठिनाइयाँ एवं शिकायतें, कर्मचारियों की व्यक्तिगत समस्याएँ, कर्मचारियों के कार्य प्रतिवेदन, कार्य व नीतियों की आलोचनाएँ तथा सझाव, अधीनस्थों की प्रतिक्रियाएँ और कर्मचारियों के विचार. मत आदि।

8.  समतल अथवा पाश्विक सम्प्रेषण (Horizontal or Lateral Communication)-जब समान स्तर के कर्मचारियों, अधिकारियों अथवा विभागाध्यक्षों के बीच सन्देशों का आदान-प्रदान होता है तो इसे समतल, पाश्विक या क्षैतिज सम्प्रेषण कहते हैं। उदाहरण के लिए, क्रय एवं विक्रय विभागों के प्रबन्धकों के बीच होने वाला सन्देशों का आदान-प्रदान समतल का आदान-प्रदान समतल सन्देशवाहन कहलाता है। समतल सन्देशवाहन औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों ही प्रकार का हो सकता है। समतल सन्देशवाहन से संस्था के विभिन्न विभागों के कार्यों में समन्वय करना सरल हो जाता है।

9. आरेखी अथवा विकर्णीय सम्प्रेषण (Diagonal Communication)-संगठन में दो विभिन्न विभागों में कार्यरत और विभिन्न स्तरों पर कार्य करने वाले व्यक्तियों के मध्य होने वाला सम्प्रेषण आरेखी अथवा विकर्णीय सम्प्रेषण कहलाता है। उदाहरण के लिए, विपणन प्रबन्धक एवं वित्त विभाग के लेखाकार के बीच होने वाला सम्प्रेषण। कुछ विशिष्ट परिस्थितियों को छोड़कर यह सम्प्रेषण आमतौर पर नहीं होता है।

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सन्देशवाहन के माध्यम के चुनाव को प्रभावित करने वाले तत्त्व

(FACTORS AFFECTING SELECTION OF MEDIA OF COMMUNICATION)

एक प्रबन्धक को सन्देशवाहन के उचित माध्यम/साधन का चुनाव करते समय निम्न कारका। पर ध्यान देना चाहिए

(1) लागतसन्देशवाहन के साधन को स्थापित करने और चलाने की लागत संस्था के साधनों की सामर्थ्य के अन्दर होनी चाहिए और उस पर किए गए व्यय की तुलना में प्राप्त होने वाले लाभ अधिक होने चाहिएँ।

(2) गोपनीयताजो भी सन्देश जिन व्यक्तियों को भेजा जाए वह उन्हीं व्यक्तियों तक गुप्त रहना चाहिए। ऐसे व्यक्तियों को उसकी जानकारी नहीं होनी चाहिए जिन व्यक्तियों को उसकी जानकारी नहीं दी जानी है।

(3) शुद्धतासन्देश प्रेषण का माध्यम ऐसा होना चाहिए कि उनमें शद्धता बनी रहे। सन्देश भेजा कुछ जाए और प्राप्त व समझा कुछ और जाए तो बहुत बड़ी क्षति की सम्भावना होती है।

(4) शीघ्रतासन्देशवाहन माध्यम ऐसा होना चाहिए जो शीघ्र गति से सन्देश भेज सके।

(5) सुविधापूर्णसन्देशवाहन विधि ऐसी होनी चाहिए कि उसे दैनिक व्यवहार में आसानी से प्रयोग किया जा सके।

(6) अभिलेखनकार्यालय के सभी महत्त्वपूर्ण सन्देश लिखित होने चाहिएँ कि वे विवाद होने पर न्यायालय में रिकार्ड के रूप में दिखाए जा सके।

(7) प्रभावपूर्णतासन्देशवाहन का साधन प्रभावपूर्ण और उपयुक्त भी होना चाहिए।

सम्प्रेषण तन्त्र

(COMMUNICATION NETWORK)

सम्प्रेषण का उद्गम सन्देश प्रेषक से होता है एवं अन्त सन्देश प्रापक पर होता है। इन दोनों सिरों के मध्य कुछ कड़ियाँ या मार्ग हैं जिनके माध्यम से सन्देशवाहन का प्रवाह सन्देश प्रेषक से सन्देश प्रापक तक चलता है। इन सभी कड़ियों अथवा मार्ग के जोड़ने की क्रिया को सन्देशवाहन के जाल अथवा ताना-बाना अथवा सम्प्रेषण तन्त्र कहते हैं। सरल शब्दों में, सम्प्रेषण विधि के अन्तर्गत सम्बन्धित सूचना को जिन कड़ियों अथवा मार्गों द्वारा प्रवाहित किया जाता है, उसे हम नेटवर्क (Network) के नाम से पुकारते हैं।

सन्देशवाहन जालों के प्रकार

(TYPES OF COMMUNICATION NETWORKS)

सामान्यतया सन्देशवाहन जाल (तन्त्र/तानाबाना) सम्प्रेषण शृंखलाओं की प्रकृति एवं सन्देशवाहन में संलग्न व्यक्तियों की संख्या पर निर्भर करता है। मुख्यतया संचार तन्त्र निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं

1 श्रृंखलाबद्ध जाल (Chain Network)-इस जाल में सन्देश सीधी रेखा के रूप में चलता है। इसमें सन्देश का आदान-प्रदान निरन्तर आगे बढ़ता है, वापिस नहीं लौटता है। सूचना का प्रवाह ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर की ओर होता है। इस प्रकार का संचार तन्त्र नौकरशाही संगठनों में पाया जाता है। श्रृंखलाबद्ध जाल को निम्नलिखित चित्र की सहायता से आसानी से समझा जा सकता हैं ।

2. वृत्त जाल (Circle Network)-वृत्त जाल की दशा में सन्देश एक वृत्त में घूमता है। इस कार के संचार तन्त्र में सभी व्यक्ति सम्बन्धित वृत्त में स्थित व्यक्तियों से सन्देश का आदान-प्रदान करते हैं। इस प्रकार के तन्त्र में सचना का प्रवाह धीमा होता है। वृत्त जाल को निम्नलिखित चित्र का सहायता से आसानी से समझा जा सकता है

3. चक्र/पहिया अथवा केन्द्रीकृत जाल (Wheel Network)-इस प्रकार के संचार तन्त्र में सन्देशों का केन्द्र बिन्द एक व्यक्ति होता है जिसके माध्यम से सन्देश चारों तरफ फैलते हैं। अन्य शब्दों में, इस प्रकार के संचार तन्त्र में सभी अधीनस्थ एक अधिकारी के अधीन आते हैं। यह अधिकारी चक्र का केन्द्र बिन्दु होता है एवं सम्पूर्ण सन्देशवाहन उसी के माध्यम से होता है। इस प्रकार के संचार तन्त्र के अन्तर्गत अधीनस्थों में प्रत्यक्ष कोई सन्देशवाहन नहीं होता है। यह सबसे तेज गति से चलने वाला संचार तन्त्र है। चक्र जाल को निम्नलिखित चित्र के द्वारा प्रकट किया जा सकता हैंं ।

4. सभी मार्ग जाल अथवा स्वतन्त्र प्रवाह जाल (All Channel or Free Flow Network)-इस संचार तन्त्र में सन्देश का स्वतन्त्र (Free) प्रवाह होता है। प्रत्येक सदस्य को दूसरे सदस्यों के साथ बिना किसी रूकावट के सन्देश का आदान-प्रदान करने की स्वतन्त्रता होती है। सन्देशवाहन का यह जाल सदस्यों को अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करता है। यह अनौपचारिक सन्देशवाहन का जाल है। इसे निम्नलिखित चित्र के द्वारा प्रकट किया जा सकता है

सन्देशवाहन में बाधाएँ अथवा अवरोधक

QUINDRANCES OR BARRIERS OR OBSTACLES IN COMMUNICATION)

देशवाहन की सफलता की कसौटी यह है कि प्रबन्ध जो भी सूचना, आदेश या निर्देश को दें वे उसी रूप में उसे स्वीकार करें, समझें तथा ग्रहण करें जिस रूप में सचना को यदि ऐसा नहीं है तो इससे संस्था की कार्यकुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। प्रेषित किया गया है। यदि ऐसा नहीं है तो इससे संस्था की प्रेषक से सन्देश प्रापक के बीच के मार्ग की वे बाधाएँ जिनकी वजह से प्रेषित किया गया। सन्देश अपना मूल स्वरूप खो देता है, सम्प्रेषण बाधाएँ अथवा अवरोध कहलाती हैं। संचार के मार्ग में आने वाली ये बाधाएं अनेक प्रकार से सन्देश को क्षति पहुँचाती हैं। यहाँ तक कि कभी-कभी तो। भेजे गये सन्देश का रूप पूर्णतया बदल जाता है तथा उसके परिणाम अत्यन्त अनर्थकारी एवं भयंकर । होते हैं। सम्प्रेषण की कुछ प्रमुख बाधाएँ निम्न प्रकार हैं

1 जटिल संगठनात्मक संरचना (Complex Organizational Structure)-कसा ना संगठन में प्रबन्ध के जितने अधिक स्तर होंगे, संचार का मार्ग उतना ही जटिल हो जाता है एवं सन्देशवाहन में उतनी ही अधिक बाधाएँ उपस्थित होंगी। सोपन श्रृंखला (Scalar Chain) लम्बी होने के कारण उच्च प्रबन्धक तथा श्रमिकों के बीच की दरी बढ़ जाती है। ऐसे में उर्ध्वमुखी या अधोमुखी संचार के समय प्रत्येक स्तर का अधिकारी संदेश में अपनी ओर से कुछ न कुछ परिवर्तन कर देता है। इससे एक ओर तो संदेश का मूल स्वरूप अधिक बिगड़ने का भय, बना रहता है, दूसरी ओर संचार प्रक्रिया में अनावश्यक विलम्ब भी होता है।

2. गलत माध्यम का चुनाव (Selection of Wrong Medium)-एक गलत माध्यम का चुनाव संचार में अवरोध का कार्य करता है, जबकि उपयुक्त माध्यम का चुनाव संचार की प्रभावशीलता को बढ़ा देता है। उदाहरण के लिए यदि एक विपणन विभाग के कार्यकर्ता को माँग विश्लेषण की रिपोर्ट भेजनी है तो इसके लिए टेलीफोन या अन्य मौखिक संचार माध्यम अनुपयुक्त रहेगा। लिखित माध्यम में भी उसे जटिल पत्र की अपेक्षा सारिणीयुक्त प्रस्तुतीकरण भेजना उपयुक्त रहेगा। किसी कर्मचारी के श्रेष्ठ निष्पादन पर खश होकर प्रबन्धक यदि शाबाशी देना चाहता है तो चपरासी के हाथ पत्र भेजना ठीक नहीं होगा, बल्कि उसे स्वयं व्यक्तिगत रूप से कर्मचारी को बधाई देनी चाहिए।

3. नीतियाँ एवं नियम (Policies and Rules)-कठोर अनुशासन, नीतियों एवं नियमों में बँधकर संचार बाधित हो जाता है। यदि लिखित सन्देश की नीति लागू है तो इसमें कुछ ऐसे सन्देश जिन्हें तुरन्त प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है, उनमें अनावश्यक विलम्ब हो सकता है। यही कारण है कि कभी-कभी अनौपचारिक सन्देशवाहन अधिक प्रभावी सिद्ध होता है। कभी-कभी कर्मचारी निश्चित नियमों एवं नीतियों के कारण सन्देश भेजने में हिचकिचाते हैं।

4.पदों एवं स्थितियों में भिन्नता के कारण अवरोध (Barriers as to Difference in Status and Position)-सन्देश प्रेषक एवं सन्देश प्रापक के पद की स्थिति में भिन्नता के कारण भी प्रभावी सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न होती है। वरिष्ठ अधिकारी कनिष्ठ अधिकारियों से इसलिए विचार-विमर्श नहीं करते कि उन्हें लगता है कि ऐसा करना कनिष्ठ अधिकारियों के समक्ष घुटने टेकने जैसा होगा और कनिष्ठ अधिकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसलिए विचार-विमर्श नहीं करते कि कहीं वे अप्रसन्न न हो जाएँ। कभी-कभी कनिष्ठ अपने अधिकारी की बात बिना पूरा समझे हुए ही सिर हिलाता है अथवा हाँ-हाँ करता रहता है, वास्तव में पद स्थिति की भिन्नता के कारण कनिष्ठ अधिकारी बार-बार स्पष्टीकरण माँगने की हिम्मत नहीं कर पाता है। ऐसी बाधा सैन्य संगठनों में अधिकतर आती रहती है।

5. भाषा सम्बन्धी अवरोध (Language Barriers)-भाषा सन्देशवाहन का माध्यम होती है। द्वि-अर्थी शब्दों, क्लिष्ट भाषा, अस्पष्ट मान्यता, मुहावरों आदि के प्रयोग से संचार में अवरोध उत्पन्न होता है। एक ही शब्द का प्रयोग जब सन्देश प्रेषक तथा सन्देश प्रापक विभिन्न अर्थों में करते हैं तो उनमें आपसी समझ के स्थान पर भ्रम उत्पन्न हो सकता है।

6. प्रेषित सन्देश को ध्यान से सुनना (Poor Listening Skills or Inattention)-प्रेषित सन्देश को ध्यान से न सुनना भी सम्प्रेषण की एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। सम्प्रेषण की प्रभावशीलता के लिए यह आवश्यक है कि संवाद प्राप्तकर्ता, संवाद/सन्देश को ठीक प्रकार से सुने। यदि सन्देश प्राप्तकर्ता, सन्देश प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश को ध्यान से नहीं सुनता तो सम्प्रेषण अपना महत्त्व खो देगा एवं वह सन्देश का सही एवं पूर्ण अर्थ नहीं समझ पायेगा।

7. भौगोलिक दूरी (Geographical Distance)-सन्देश प्रेषक एवं सन्देश प्राप्तकर्ता के मध्य भौगोलिक दूरी भी सम्प्रेषण की एक प्रमुख बाधा है।

8. भावनात्मक धारणाएँ (Emotional Attitudes)-संवाददाता और सन्देश प्राप्तकर्ता की भावनात्मक धारणाएँ भी सम्प्रेषण में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं। कभी-कभी संवाददाता एवं सन्देश प्राप्तकत्ता की धारणाएँ एवं विचार इतने दृढ़ हो जाते हैं कि सन्देश प्राप्तकर्ता, संवाददाता के प्रत्येक सन्देश का अलग ही अर्थ लगाता है और सम्बन्धित सन्देश को सही रूप में समझने को तैयार नहीं। होता। संवाददाता और सन्देश प्राप्तकर्ता की भावनाओं में अन्तर अनेक कारणों से हो सकता है। इन कारणों में शारीरिक बनावट, आचरण, खानपान, वेशभूषा आदि प्रमुख हैं।

9. अधिकारियों की उपेक्षा (Negligence of officers)-अधिकारियों की उपेक्षा भी कई बार सन्देशवाहन में बाधा बन जाती है। वे केवल आदेश एवं निर्देश देकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझते हैं। वे कर्मचारियों की शिकायतों एवं सुझावों को नहीं सुनते हैं। इससे आपसी भ्रान्तियाँ बढ़ती हैं और सन्देशवाहन प्रभावशाली सिद्ध नहीं हो पाता है।

10. सन्देश की निथराई अथवा छानना (Filtering of Message)-प्रत्येक व्यक्ति अपने दृष्टिकोण से सन्देश का अवलोकन एवं मूल्याँकन करता है। कोई भी व्यक्ति अपनी कमजोरी दूसरों को नहीं बताना चाहता है और वह सूचना की जाँच-पड़ताल करके केवल ऐसी सूचनाओं को ही आगे भेजता है जो उसके हित में हों। इससे सन्देश का विरूपण (Distoration) हो जाता है और सन्देश प्राप्तकर्ता को सन्देश तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है।

11. परिवर्तन के प्रति विरोध (Resistance to Change)-स्वभाव से ही मनुष्य यथापूर्ण स्थिति (Statusquo) बनाए रखना चाहता है क्योंकि परिवर्तन से असुविधा होती है। नये विचारों तथा वर्तमान धारणाओं के प्रतिकूल सूचनाओं को लोग सुनना पसन्द नहीं करते और आसानी से उन्हें स्वीकार नहीं करते। इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप सम्प्रेषण में अवरोध उत्पन्न होता है।

12. पूर्वमूल्याँकन (Premature Evaluation)-कभी-कभी सन्देश प्राप्तकर्ता, सन्देश प्रेषक द्वारा अपना सन्देश पूरा करने से पूर्व ही उसका पूर्व मूल्यांकन करके सन्देश को बीच में ही रोक देता है। ऐसा पूर्व मूल्याँकन भी सम्प्रेषण में बाधा उपस्थित करता है।

संचार/सम्प्रेषण अवरोधों (बाधाओं) को दूर करने के लिए सुझाव

(SUGGESTIONS TO REMOVE COMMUNICATION BARRIERS)

संचार/सम्प्रेषण अवरोधों (बाधाओं) को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं

1.सम्प्रेषण योजना (Communication Plan)-सम्प्रेषण की विभिन्न बाधाओं को दूर करने के लिए सर्वप्रथम सुझाव यह है कि सम्प्रेषण का कार्य एक निश्चित योजनानुसार होना चाहिए। योजनाबद्ध सम्प्रेषण से जहाँ एक ओर उच्च अधिकारियों और अधीनस्थों के मध्य सूचनाओं का आदान-प्रदान सरल हो जायेगा वहीं दूसरी ओर अधीनस्थों को समय पर सूचनायें प्राप्त होने से वे कार्य का भली-भाँति निष्पादन कर सकेंगे।

2. उद्देश्यों की स्पष्टता (Clarity of Purpose)-सम्प्रेषण प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रेषक को सन्देश की विषय-वस्तु, सन्दर्भ तथा सन्देश प्राप्तकर्ता को भी सन्देश के उद्देश्यों को पूर्णतया स्पष्ट कर लेना चाहिए।

3. अर्थपर्ण,स्पष्ट एवं संक्षिप्त सन्देश (Meaningful, Clear and Brief Message)-सचार। की सफलता इस तथ्य पर बहुत कुछ टिकी होती है कि सन्देश अर्थपूर्ण, स्पष्ट एवं संक्षिप्त हो। सन्देश स्पष्ट तभी हो सकता है जब प्रेषक को स्वयं सन्देश का पूर्ण ज्ञान हो। सन्देश में भ्रमपूर्ण, अनेकार्थी शब्दों, मुहावरों एवं तकनीकी शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए अथवा बहत आवश्यक होने पर कम से कम करना चाहिए। सन्देश यथासम्भव लिखित होना चाहिए और टाइप किया हुआ हो। इसके अतिरिक्त सन्देश बहुत अधिक लम्बा न होकर संक्षिप्त होना चाहिए।

4. प्राप्तकर्ता की आवश्यकताओं के अनुरूप (Focus the Needs of Receiver)-सन्देश अथवा सचनाओं का सम्प्रेषण प्राप्तकता को आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए।

5. आदर्श व्यवहार (Ideal Behaviour)-सुचारू संचार के लिए यह आवश्यक है कि जैसे व्यवहार एवं अनुशासन को आशा हम अधानस्थों से करते हैं पहले हमें उसका उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। उदाहरण के लिए दि वरिष्ठ अधिकारी समय पर कार्यालय पहुंचते हैं तो शेष कर्मचारी भी समय पर ही कार्यालय पहुँचेगे।

6.सम्प्रेषण श्रृंखलाएँ (Communication Chains)-सम्प्रेषण श्रंखलाएँ सीधी तथा छोटी हों जिससे सूचनाओं में देरी तथा व्यवधानों को न्यूनतम किया जा सके। संगठन की सभी गतिविधियाँ । इकाई सम्प्रेषण शृंखलाओं से जुड़ी हुई होनी चाहिएँ।

7. लोचपूर्ण तन्त्र (Flexible System)-सम्प्रेषण तन्त्र को पर्याप्त लोचपूर्ण होना चाहिए, ताकि वह सूचनाओं के अतिरिक्त भार को समा सके. सचना प्रेषण की नई तकनीकों का समावेश कर सके तथा परिवर्तित हो रही संगठनात्मक जरूरतों को लागू कर सके।

8. प्रत्यक्ष सम्प्रेषण (Direct Communication)-सम्प्रेषण की बाधाओं को दूर करने के लिए एक अन्य उपयोगी सुझाव यह है कि यथासम्भव इस बात का प्रयत्न किया जाना चाहिए कि सन्देश देने वाले और सन्देश पाने वाले के मध्य प्रत्यक्ष सम्पर्क की व्यवस्था की जाए। प्रत्यक्ष सम्प्रेषण के लिए संगठन स्तरों में कमी करना अति आवश्यक है। उपक्रम में जितने संगठन स्तर कम होंगे उतना ही अधिक प्रत्यक्ष सम्प्रेषण सम्भव होगा। प्रत्यक्ष सम्प्रेषण में समय बचता है एवं मूल सन्देश अपरिवर्तित रहता है।

9.समयानुकूलता (Timeliness)-सन्देशवाहन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि सन्देश प्रापक को सन्देश सही समय पर दिया जाए। सही समय से पूर्व या बाद में दिया गया सन्देश कोई महत्त्व नहीं रखता।

10. सतत् संचार (Continuous Communication)-विचारों के आदान-प्रदान का सही लाभ प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सम्बन्धित पक्षों के बीच सतत् अथवा निरन्तर संचार चालू रहना चाहिए जिससे संचार में कोई गतिरोध उत्पन्न न हो।

11. उचित माध्यम का चुनाव (Selection of Adequate Medium)-सही माध्यम का प्रयोग ही सन्देश को प्राप्तकर्ता तक पहुँचाने में सहायता करता है। अत: संचार अवरोध दूर करने के लिए उचित माध्यम का चयन करना अत्यन्त आवश्यक है।

12. खुले दिमाग से काम लेना (To be Open Minded)-पहले से कोई पूर्वाग्रह, विशेष आदत, व्यवहार या दृष्टिकोण हमें नहीं बनाना चाहिए। सन्देश को निष्पक्ष एवं खुले दिमाग से ग्रहण करना चाहिए।

13. मधुर संगठनात्मक सम्बन्ध (Cordial Organization Relations)-संचार के अवरोधों को दर करने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि संगठन स्तर पर कर्मचारियों तथा प्रबन्धकों के बीच मधुर सम्बन्ध हों। औद्योगिक सम्बन्ध जितने ही मधुर होंगे, संचार में उतने ही अवरोध कम होंगे।

14. अनुगमन एवं प्रतिपुष्टि (Following up and Feedback)-सम्प्रेषक (सन्देश प्रेषक) को इस बात की जानकारी कर लेनी चाहिए कि सन्देश प्राप्तकर्ता प्रेषित किये गये सन्देश का वही अर्थ समझा है जो उसके (सम्प्रेषक) के मस्तिष्क में है। किसी भी सम्प्रेषण को सफल एवं प्रभावी बनाने के लिए उसकी प्रतिपुष्टि होना आवश्यक है अर्थात् प्रेषित किये गये सन्देश के सम्बन्ध में सन्देश प्रापक की प्रतिक्रिया को जानना परमावश्यक है।

15. प्रभावी श्रवण (Effective Listening)-सम्प्रेषण की प्रभावशीलता के लिए आवश्यक है कि सन्देश प्रापक द्वारा प्रेषित किये गये सन्देश को ध्यानपूर्वक व प्रभावशाली ढंग से सुना जाए। कवल सुनने के लिये कान की जरूरत होती है परन्तु ध्यान से सुनने के लिए दिमाग की जरूरत होती है। अगर कार्य स्थल पर ध्वनि प्रदूषण हो तो कर्मचारियों को सुनने हेतु मशीनें प्रदान करना ठीक रहता है।

प्रभावी सम्प्रेषण

(EFFECTIVE COMMUNICATION)

कुशल प्रबन्ध के लिए प्रभावी सम्प्रेषण अत्यन्त आवश्यक है। प्रभावी सम्प्रेषण से आशय उस स्थिति से है, जबकि सम्प्रेषण के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। प्रभावी सम्प्रेषण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1 स्पष्ट एवं सरल अभिव्यक्ति (Clear and simple Expression)-सम्प्रेषण करते समय बारा का एसी भाषा में व्यक्त करना चाहिए जो सन्देश प्रापक आसानी से समझ सके। व्यक्त किये जान वाल विचार भी एकदम स्पष्ट तथा भ्रान्तिरहित होने चाहिएँ। बहत-सी संस्थाएँ ऐसी होती हैं जो सम्प्रेषण में अपनी निजी भाषा का भी प्रयोग करती हैं जिसमें सामान्य शब्द किसी विशिष्ट अर्थ का बाध कराते हैं। अत: ऐसी संस्थाओं के सभी कर्मचारियों को इन विशिष्ट अर्थ रखने वाले शब्दों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए, ताकि सन्देश प्रापक प्रेषित किये गये सन्देश का वही अर्थ समझे जो कि सन्देश प्रेषित करने वाले के मस्तिष्क में है।

2. संक्षिप्तता (Conciseness)-सन्देश को प्रभावी बनाना है तो उसे संक्षिप्त करना आवश्यक है। अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए, इसके साथ-साथ सन्देश का दोहराव (Repetition) नहीं होना चाहिए। वर्तमान समय में सभी व्यक्तियों की व्यस्तता बढ़ती जा रही है ऐसे में छोटे सन्देश अधिक प्रभावी होते हैं।

3. सन्देश की पूर्णता (Completeness of Message)-प्रेषित किया जाने वाला सन्देश उद्देश्य की पूर्ति के लिए पर्याप्त एवं पूर्ण होना चाहिए। अपूर्ण सन्देश से न केवल भ्रम उत्पन्न होता है, बल्कि बार-बार पूछताछ करने में समय भी बर्बाद होता है। पूर्ण सन्देश का अर्थ यह कदापि नहीं है कि सन्देश अनावश्यक रूप से विस्तृत होना चाहिए। वस्तुतः सन्देश में आवश्यक तथ्य एवं वांछित सूचनाओं का समावेश होना चाहिए।

4. समयानुकूलता (Timeliness)-प्रत्येक सन्देश सही समय पर भेजना चाहिए तभी उसका उचित प्रभाव होगा। समय के प्रतिकूल किया गया सम्प्रेषण न तो सन्देश प्रापक के ध्यान को सहज आकर्षित करता है और न ही उसके मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ता है, बल्कि वह गलतफहमियाँ उत्पन्न कर देता है। सामान्यतया सन्देशवाहन उस समय ज्यादा प्रभावशाली होता है जब सन्देश प्राप्त करने वाले पर सूचनाओं का बोझ न हो और सन्देश उसकी तत्कालीन समस्या का तुरन्त समाधान करता हो।

5. ध्यान आकर्षित करना (Attracting Attention)-सम्प्रेषण का अभिप्राय केवल सूचना देना या विचार व्यक्त करना नहीं हैं, वरन् दूसरे पक्ष को अपने विचार समझाना है। यह तभी सम्भव होगा, जबकि सन्देश-प्रापक सन्देश में रूचि ले और सन्देश को समझने के लिए अपना पूरा ध्यान दे। सन्देशवाहन में सन्देशवाहक द्वारा प्रेषित किये गये सन्देश को सन्देश प्राप्तकर्ता को सावधानी, धैर्य और सतर्कता के साथ सुनना चाहिए।

6. पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास (Mutual Co-operation and Confidence)-सन्देश प्रेषक (सम्प्रेषक) एवं सन्देश प्रापक (सम्प्रेषिती), दोनों के बीच विश्वास एवं सद्भाव का ऐसा वातावरण हो कि वे एक दूसरे की बात सुनने, समझने और ग्रहण करने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार हों अर्थात् दोनों में पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास की भावना होनी चाहिए और किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह (Prejudices) नहीं होने चाहिएँ।

7. उचित माध्यम (Right Medium)-प्रभावी सम्प्रेषण हेतु सम्प्रेषण के उचित माध्यम का प्रयोग किया जाना परमावश्यक है। प्रत्येक सम्प्रेषण माध्यम प्रत्येक परिस्थिति में उचित नहीं माना जा सकता। अनपढ़ कर्मचारी को मौखिक अथवा दृष्टिगोचर संचार माध्यम के द्वारा सम्प्रेषण किया जाना चाहिए। औपचारिक सम्बन्धों की दशा में लिखित संचार व्यवस्था अपनानी चाहिए। आपसी व्यवहार, प्रोत्साहन और दिमाग से गलत बात को हटाने के लिए आमने-सामने मौखिक संचार सबसे अच्छा तरीका है।

8. सन्देशवाहन में निरन्तरता (Continuity in Communication)-सन्देशवाहन की कोई भी प्रणाली तभी सफल हो सकती है जब सन्देशों के आदान-प्रदान का क्रम निरन्तर चलता रहे, ताकि जब भी आवश्यक हो सूचनाओं का सम्प्रेषण किया जा सके। सूचनाओं एवं विचारों का निरन्तर आदान-प्रदान प्रभावशाली संचार का आवश्यक तत्त्व है।

9. प्रतिपुष्टि (Feedback)-प्राय: अधिकांश सम्प्रेषण एकमार्गीय (One way) ही होता है जो सन्देश प्रापक की प्रतिक्रिया पर वार नहीं करता। क्या सन्देश प्रापक ने उसे भली प्रकार समझ लिया है? क्या वह उससे सहमत है? क्या वह उससे असहमत है ? क्या उसके पास इस सम्बन्ध में कोई सुझाव है ? इन सब बातों का उत्तर प्रतिपुष्टि से ही मिलता है। किसी भी सम्प्रेषण को सफल एवं प्रभावी बनाने के लिए उसकी प्रतिपुष्टि होना आवश्यक है। प्रत्यक्ष संचार में सन्देश प्रेषक, श्रोता (सन्देश प्रापक) के चेहरे को देखकर प्रतिपुष्टि प्राप्त कर सकता है, परन्तु अप्रत्यक्ष संचार में। प्रतिपष्टि प्राप्त करने के लिए ऊर्ध्वगामी सन्देशवाहन (Upward Communication) का सहारा लना। पड़ता है। ऊर्ध्वगामी सन्देशवाहन को प्रोत्साहित करके प्रबन्धक प्रतिपुष्टि प्राप्त कर सकता है।

10. अनौपचारिक सम्प्रेषण का कुशल उपयोग (Strategic Use of Informal Communication)-औपचारिक सम्प्रेषण को तीव्र तथा प्रभावशाली बनाने के लिए अनौपचारिक सम्प्रेषण का सावधानी से उपयोग करना चाहिए। कछ परिस्थितियाँ ऐसी भी हो सकती हैं, जबकि अनौपचारिक सम्प्रेषण अधिक प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है तो ऐसी स्थिति में प्रबन्ध को उसी का प्रयोग करना चाहिए।

11. अच्छे मानवीय सम्बन्धों की स्थापना (Establishing Good Human Relations) – सम्प्रेषण की सफलता के लिए यह भी अति आवश्यक है कि उपक्रम में अच्छे मानवीय सम्बन्धों की स्थापना की जाये। प्रबन्ध को स्वयं भी व्यवहार द्वारा कर्मचारियों के सामने उनके पालन का आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए जिससे कर्मचारी अधिक प्रभावित होंगे।

12. स्तरों की न्यूनतम संख्या (Minimum Levels)-प्रभावी सम्प्रेषण के लिए यह भी आवश्यक है कि सम्प्रेषण प्रक्रिया में संगठनात्मक स्थिति के अनुसार सन्देश प्रेषक एवं सन्देश प्रापक के मध्य स्तरों की न्यूनतम संख्या हो। स्तरों की संख्या कम होने पर जहाँ एक ओर सन्देश प्रापक को सन्देश शीघ्र प्राप्त हो जायेगा वहीं दूसरी ओर प्रेषित सन्देश के अशुद्ध एवं विकृत होने की सम्भावना भी कम हो जाती है।

13. लोचता (Flexibility)-प्रभावी सम्प्रेषण हेतु आवश्यक है कि सम्पूर्ण सम्प्रेषण व्यवस्था लोचदार होनी चाहिए, ताकि वर्तमान परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन किया जा सके। ऐसी सम्प्रेषण व्यवस्था कोई महत्त्व नहीं रखती जो परिवर्तित परिस्थितियों का समायोजन करने में असमर्थ रहती है।

Principles Business Management Communication

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. सन्देशवाहन से आपका क्या आशय है ? सन्देशवाहन सम्बन्धी कौन-कौन सी बाधाएँ हैं ? इन बाधाओं को दूर करने हेतु सुझाव दीजिये।

What do you mean by communication ? What are the barriers to communication ? Give the suggestions to overcome these barriers ?

प्रश्न 2. सन्देशवाहन के विभिन्न प्रारूपों का वर्णन कीजिये। एक अच्छे सन्देशवाहन प्रक्रिया की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।

Describe the various forms of communication. Explain the essentials of a good communication process.

प्रश्न 3. सन्देशवाहन के विभिन्न प्रारूपों को समझाइये। मौखिक एवं लिखित संवहन के तुलनात्मक लाभों की विवेचना कीजिये।

Explain the various forms of communication. Discuss the comparative advantages of verbal and written communication.

प्रश्न 4. प्रभावी संचार के आवश्यक तत्व बताइये। संचार को प्रभावी बनाने के लिये आवश्यक उपायों का वर्णन कीजिये।

Discuss the essentials of effective communication. Describe the measures for making communication effective.

प्रश्न 5. सम्प्रेषण का क्या अर्थ है ? एक प्रभावशाली सम्प्रेषण के आवश्यक तत्व बताइये।

What is meant by communication ? Describe the essentials of an effective communication.

प्रश्न 6. प्रबन्ध में सन्देशवाहन से क्या तात्पर्य है? इसकी प्रकति एवं प्रक्रिया की विवेचना कीजिये। What is meant by communication in management ? Discuss its nature and essentials.

प्रश्न 7. सम्प्रेषण प्रक्रिया का संक्षेप में रेखांकन कीजिये। प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण में निहित अवरोधों का उल्लेख कीजिये तथा उनके समाधान हेतु सुझाव प्रस्तुत कीजिये।

Briefly outline the process of communication. State the main barriers involved in effective communication and suggest measures to remove them.

प्रश्न 8. संवहन से आप क्या समझते हैं ? इसके जाल एवं अवरोधों को समझाइये। What do you mean by communication ? Explain its networks and barriers.

Principles Business Management Communication

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. सम्प्रेषण को परिभाषित कीजिये। एक बड़े संगठन में इसके महत्त्व की विवेचना कीजिये।

Define communication. Discuss its importance in a big organisation.

प्रश्न 2. सम्प्रेषण की बाधाएँ क्या हैं ? इन्हें कैसे दूर किया जा सकता है?

What are the barriers to communication ? How can these be overcome ?

प्रश्न 3. प्रबन्ध में प्रभावी सन्देशवाहन के महत्त्व की विवेचना कीजिये।

Discuss the importance of effective communication in management.

प्रश्न 4. संचार प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिये।

Explain the process of communication.

प्रश्न 5. संवहन की प्रभावशाली पद्धति का वर्णन कीजिये।

Explain effective system of communication.

प्रश्न 6. सम्प्रेषण की बाधाओं का वर्णन कीजिये।

Describe the barriers of communication.

प्रश्न 7. प्रभावी संचार हेतु मार्गदर्शनों की व्याख्या कीजिये।

Discuss the guidelines for effective communication.

प्रश्न 8. “प्रबन्ध एक प्रकार का दो-मार्गीय यातायात है, यह संवहन की प्रभावपूर्ण पद्धति पर । निर्भर करता है।” विवेचना कीजिये।

“Management is like a two-way traffic, it is based upon an effective machinery of communication.” Comment.

प्रश्न 9. अंगूरीलता सन्देशवाहन से क्या तात्पर्य है ?

What is meant by grapevine communication?

Principles Business Management Communication

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Type Questions)

1 बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही है या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False’

(i) प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण समन्वय का तत्व है।

Effective communication is the element of coordination.

(ii) रिपोर्टिंग एवं वार्तालाप सन्देशवाहन नहीं है।

Reporting and discussion are not communication.

(iii) अंगूरीलता सन्देशवाहन औपचारिक सन्देशवाहन का प्रारूप है।

Grapevine communication is a form of formal communication.

(iv) बिना सम्प्रेषण के प्रबन्ध असम्भव है।

Without communication, management is impossible.

(v) सम्प्रेषण एक मार्गीय प्रक्रिया है।

Communication is a one way process.

उत्तर-(i) सही (ii) गलत (ii) गलत (iv) सही (v) गलत

Principles Business Management Communication

2. सही उत्तर चुनिये

(Select the correct answer)

(i) अंगूरी लता है (Grapevinw is) :

(अ) औपचारिक सम्प्रेषण (Formal communication)

(ब) अनौपचारिक सम्प्रेषण (Informal communication)

(स) लिखित सम्प्रेषण (Written communication)

(द) उपरोक्त में से कोई नहीं (None of these)

(ii) सन्देशवाहन के न्यूनतम पक्षकार होते हैं

The minimum parties to communication are :

(अ) 2

(ब) 4

(स) 8

(द) 16

उत्तर-(i) () (ii) (अ)

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chetansati

Admin

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