BCom 2nd year Principles Business management Delegation Authority Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Principles Business management Delegation Authority Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Principles Business management Delegation Authority Study Material Notes in Hindi: Main Elements or Process or Delegation of Authority Principle of Delegation  Types or Forms of Delegation Can the Responsibilities Be delegated Need and Importance of Delegation Hindrances or Difficulties in Delegation Process Suggestions to Overcome Barriers or Delegation important Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions Objectives type Questions :

Delegation Authority Study Material
Delegation Authority Study Material

BCom 2nd Year Principles Business Management Authority Responsibility Study Material Notes in Hindi

अधिकार का भारार्पण

[Delegation of Authority]

आशय-अधिकार के भारार्पण को विविध नामों; जैसे-प्रतिनिधायन, प्रत्यायोजन, अन्तरण, हस्तान्तरण, प्रत्यायुक्ति, समर्पण आदि से भी सम्बोधित किया जाता है। अधिकार के भारार्पण से आशय कार्य-भार के सौंपे जाने से है। आज के जटिल औद्योगिक युग में किसी एक व्यक्ति के लिए उपक्रम की सम्पूर्ण व्यवस्था को सम्भालना सम्भव नहीं है। इसीलिए प्रशासनिक अधिकारी अपना कार्य-भार दूसरे अधीनस्थों को सौंपते हैं। प्रत्येक अधीनस्थ जिसे कुछ कार्य सौंपे जायें तो आवश्यक है कि उसे कुछ अधिकार भी प्रदान किए जायें, क्योंकि अधिकारों के बिना कोई भी व्यक्ति अपने कर्त्तव्य को पूर्णतया पालन करने में असमर्थ रहेगा। यह अधिकार और कर्त्तव्य का सौंपना ही अधिकार का भारार्पण कहलाता है।

परिभाषाएँ–अधिकार के भारार्पण की उल्लेखनीय परिभाषाएँ निम्न प्रकार से हैं

1 प्रोफेसर थियो हैमन के अनुसार—“अधिकार के भारार्पण से तात्पर्य अधीनस्थों को निर्दिष्ट सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करने का अधिकार प्रदान किये जाने से है।”

2. मैकफारलैण्ड के अनुसारभारार्पण संगठन प्रक्रिया का वह अंग है, जिसके द्वारा एक अधिकारी, प्रशासक अथवा प्रबन्धक अन्य व्यक्तियों को कम्पनी के कार्यों को पूरा करने में भाग लेने को सम्भव बनाता है।’

3. एफ० जी० मूरे के अनुसार, “भारार्पण से आशय है दूसरे लोगों को कार्य सौंपना तथा उसे करने हेतु अधिकार प्रदान करना।

4. विक्सवर्ग के अनुसार, “अधीनस्थों को संगठन के निर्दिष्ट कार्यों को सौंपना तथा सौंपे हुए कार्यों एवं कर्त्तव्यों को पूरा करने के उद्देश्य से सत्ता प्रदान करना भारार्पण कहलाता है।”

5. बैसिल के अनुसार, “भारार्पण पूर्व निर्धारित क्षेत्रों में अधीनस्थों को सत्ता अथवा निर्णयन का अधिकार प्रदान करना है जिससे कि उन्हें निर्दिष्ट कार्यों के सम्पादन के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सके।”

Principles Business management Delegation

विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के अध्ययन के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि अधिकार के भारार्पण से आशय अधिशासियों द्वारा अपने अधीनस्थों को निर्दिष्ट सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करने हेतु अधिकार प्रदान करने से है।

विशेषताएँअधिकार के भारार्पण की प्रकृति निम्नांकित विशेषताओं से स्पष्ट की जा सकती

1 भारार्पण संगठनात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कुल अधिकारों का एक अंश व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह को सौंपा जाता।

2. प्रबन्धक उस अधिकार का भारार्पण नहीं कर सकता जो उसके पास नहीं होता है।

3. भारार्पण ऊपर से नीचे की ओर होता है।

4. भारार्पण का उद्देश्य प्रबन्धकीय एवं क्रियात्मक दक्षता को बढ़ा करके विशिष्टीकरण का लाभ लेना होता है।

5. यह अधिकारों का वितरण है विकेन्द्रीकरण नहीं।

6. भारार्पण के द्वारा भारार्पणकर्ता अपने दायित्व से मुक्त नहीं होता है।

7. यह अधीनस्थों की अधिकार सीमा को स्पष्ट करता है।

8. भारार्पण दूसरों का सहयोग प्राप्त करने का एक प्रयत्न है।

9. अधीनस्थ को कार्य के सम्बन्ध में अधिकार का भारार्पण किया जाता है न कि पदों का।

10. भारार्पण राष्ट्र के कानून, कम्पनी की नीतियों व नियमों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। 11. एक बार अधिकार का भारार्पण होने के बाद बढ़ाया, कम या वापिस लिया जा सकता है।

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अधिकार के भारार्पण के प्रमख तत्त्व अथवा प्रक्रिया

(MAIN ELEMENTS OR PROCESS OF DELEGATION OF AUTHORITY)

विलियम एच० न्यूमैन के अनुसार, भारार्पण प्रक्रिया में निम्न तीन तत्त्व निहित होते हैं—(अ) कार्यभार का सौंपना, (ब) अधिकार प्रदान करना, तथा (स) जवाबदेही निर्धारित करना।

 () कार्यभार का सौंपना (Assigning of Work Load)-भारार्पण की प्रक्रिया कार्यभार को सौंपने से प्रारम्भ होती है। इस हेतु. मुख्य प्रबन्धक को अपने सम्पूर्ण कार्य और उद्देश्यों का विश्लेषण करना पड़ता है। वह अपने कार्यों को विभाजित करता है और यह निश्चिय करता है कि उनमें से कौन-सा भाग अपने पास रखेगा और किन्हें अधीनस्थों को सौंपेगा। फिर वह अधीनस्थों की उपलब्धता, ज्ञान, सक्षमता के आधार पर उन्हें कार्यों को सौंपता है और उनसे अपेक्षित परिणामों को स्पष्ट करता है। कार्य का यह विभाजन और आबंटन संगठन में ऊपर से नीचे की ओर प्रत्येक भारार्पण में होता है और तब तक चलता रहता है जब तक कि कार्य का इतना छोटा अंश नहीं रह जाता कि उसे एक कर्मचारी कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर ले।

() अधिकार प्रदान करना (Granting of Authority)-अगर किसी व्यक्ति को मात्र कार्यभार सौंपा जाए और उसे कोई अधिकार प्रदान न किया जाए तो उस व्यक्ति के लिए दायित्वों का निर्वाह करना असम्भव होगा। “यदि हम आवश्यक अधिकार दिए बिना दायित्व सौंपते हैं तो यह नर्क के तुल्य होता है।”1 अत: यह आवश्यक है कि जिस व्यक्ति को कोई उत्तरदायित्व सौंपा जाए उसे कार्यभार से सम्बन्धित समान अधिकार भी प्रदान किया जाए। उत्तरदायित्व, अधिकारों के बिना बेकार होते हैं और अधिकार. उत्तरदायित्व के बिना व्यर्थ होता है। अत: उत्तरदायित्व सौंपने के लिए जरूरी है कि अधिकार भी उसी तुलना में प्रदान किए जाएँ। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को क्रय विभाग का भार सौंपा जाता है तो आवश्यक है कि उसे कच्चे माल के लिए टेण्डर आमन्त्रित करने, माल का निरीक्षण करने, श्रेष्ठ माल के लिए आदेश देने, त्रुटिपूर्ण माल की पूर्ति को निरस्त करने आदि के अधिकार भी प्रदान किए जाएँ।

() जवाबदेही निर्धारित करना (Determination of Accountability)-किसी उपक्रम में उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थों को कार्यभार सौंपने तथा आवश्यक अधिकार प्रदान करने से ही भारार्पण का कार्य समाप्त नहीं हो जाता है, अपितु उसे यह भी देखना होता है कि अधीनस्थ कार्यों। का निष्पादन उद्देश्यों के अनुकूल एवं नियमित ढंग से कर रहे हैं या नहीं। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उच्च अधिकारी उनसे जवाबदेही कर सकता है और उनका उत्तरदायित्व निर्धारित कर सकता है। अधीनस्थों की जवाबदेही सदैव उच्च अधिकारी के प्रति होती है।

उपयुक्त वर्णित तीनों तत्त्व एक तिपाई के तीनों टांगों के समान हैं। तिपाई की प्रत्येक टांग खड़े रहने के लिए अन्य दो टांगों का अवलम्बन जरूरी होता है। किसी भी एक अथवा दो टांगों के सहारे तिपाई को खड़ा नहीं किया जा सकता।

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भारार्पण के सिद्धान्त

(PRINCIPLES OF DELEGATION)

अधिकार के भारार्पण को प्रभावी बनाने हेत निम्नलिखित सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया

1 वांछित परिणामों के अनुरूप भारार्पण का सिद्धान्त (Principle of Delegation by Results Expected)-भारार्पण का प्रथम सिद्धान्त यह है कि सौंपे जाने वाले अधिकारों एवं कार्यों की प्रकृति और सीमा वांछित परिणामों के अनुरूप होनी चाहिए। भारार्पण के लिये सर्वप्रथम यह निश्चित करना चाहिए कि वह अधीनस्थ से क्या परिणाम की आशा करता है और तदनुरूप अधीनस्थ को अधिकार और कार्यभार सौंपा जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक यह है कि संगठन में उद्देश्यों, नीतियों व नियमों का पूर्व निर्धारण करके उनका संदेशवाहन किया जा चुका हो जिससे कि निष्पादनीय कार्यों की सूची तैयार की जा सके।

2. उत्तरदायित्व की सम्पूर्णता का सिद्धान्त (Principle of Absoluteness of Responsibility)-ऐसा अक्सर कहा जाता है कि प्रबन्धक द्वारा अपने अधीनस्थों को अधिकार का भारार्पण तो किया जा सकता है, परन्तु प्रभावी निष्पादन के लिए उच्चाधिकारी के प्रति उनका जो व्यक्तिगत उत्तरदायित्व या बाध्यता है, उसका भारार्पण नहीं हो सकता। अधीनस्थ अधिकारी का दायित्व अपने उच्चाधिकारी के प्रति अखण्ड, अटूट, निर्विरोध और सम्पूर्ण होता है। अपने अधीनस्थों में अधिकार का भारार्पण करने के उपरान्त भी प्रबन्धक परिणामों के लिए अपने उच्चाधिकारी के प्रति सम्पूर्ण उत्तरदायी होता है। उत्तरदायित्व अविभाज्य होता है जिसका भारार्पण नहीं किया जा सकता है। इसलिए उच्च अधिकारी को चाहिए कि वह जिन अधीनस्थों को कार्य सौंपता है, उनका निरीक्षण करे कि वे उचित एवं नियमित रूप से कार्य कर रहे हैं अथवा नहीं।

3. अधिकार और उत्तरदायित्व की समता का सिद्धान्त (Principle of Parity of Authority and Responsibility)-यह सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि अधीनस्थ को उतना ही अधिकार दिया जाना चाहिए जितना कि सौंपे गये उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए जरूरी हो। अधिकार उत्तरदायित्व से सम्बद्ध हो करके बराबर होना चाहिए कम या अधिक नहीं। यद्यपि व्यवहार में पूर्ण समानता बरतना सम्भव नहीं हो तो दोनों के बीच पर्याप्त सन्तुलन व सामंजस्य होना चाहिए। प्रबन्धक को देखना चाहिए कि सौंपे गये कार्यों को पूरा करने के लिए अधीनस्थों के पास पर्याप्त अधिकार हों अन्यथा इससे अधीनस्थों की प्रभावशीलता व मनोबल पर प्रतिकूल असर होगा। बिना पर्याप्त अधिकार भारार्पण किये हुए अधीनस्थों को परिणाम के लिए जवाबदेह ठहराना सम्भव नहीं होता है। उत्तरदायित्व की तुलना में अधिकार का कम भारार्पण यदि अधिशासी करता है तो अधीनस्थ कार्य सम्पादन सही रूप में कर ही नहीं सकता है। इसी प्रकार, अधीनस्थों को सौंपे गये कार्यभार या दायित्व से अधिक अधिकार का भारार्पण करने से उसका दुरुपयोग या कार्य में लापरवाही सम्भव होती है। उत्तरदायित्व विहीन अधिकार व्यक्ति को भ्रष्ट और अक्खड़ बनाते हैं।

4. आदेश की एकता का सिद्धान्त (Principle of Unity of Command)-यह सिद्धान्त यह दर्शाता है कि संगठन में एक व्यक्ति की एक समय में प्रत्यक्ष रूप से एक ही अधिकारी के प्रति जवाबदेही हो। अधीनस्थ को एक ही व्यक्ति विशेष से ही आदेश मिलना चाहिए। यदि अनेक बॉस Jआदेश देंगे तो उसके लिए उनका पालन करना कठिन हो जायेगा, क्योंकि सम्भव है कि आदेशों की -प्रकृति में अन्तर हो। “सबका उत्तरदायित्व किसी का उत्तरदायित्व नहीं होता है। अत: सभी आदेश, -निर्देश व सूचनायें एक ही बॉस के माध्यम से उच्चाधिकारियों तक पहुँचाए जाने चाहिएँ। यह सिद्धान्त यह प्रतिपादित करता है कि निर्देशों व मार्गदर्शनों में अपरिहार्य संघर्ष, विरोधाभास, खण्डित निष्ठा व्यक्तित्व में टकराव आदि की पति को देखते हुए एक अधीनस्थ एक समय में एक ही अधिकारी की सेवा कर सकता है।

5. स्पष्टता का सिद्धान्त (Principle of Clarity)-भारार्पण प्रकृति के आधार पर साधारण अथवा विशिष्ट, लिखित अथवा मौखिक, औपचारिक अथवा अनौपचारिक हो सकता है। भारापण का प्रकृति चाहे जो भी हो, उसका पूर्णतया स्पष्ट होना परम आवश्यक होता है। अधिकार की सीमा का पूर्ण व स्पष्ट रूप से परिभाषित होना जरूरी होता है जिससे कि अधिकार का गलत प्रयोग न हा सके। भारार्पण का स्पष्ट होना उसकी प्रभावशीलता को बढ़ाता है। स्पष्टता की दृष्टि से विशिष्ट, लिखित व औपचारिक भारार्पण श्रेष्ठ माना जाता है।

6. अपवाद का सिद्धान्त (Principle of Exception)-अधिकार भारार्पणकर्ता अधिकारी का चाहिए कि वह अधिकार प्राप्त होने वाले व्यक्तियों के कार्यों में हस्तक्षेप न करे। इसका कारण यह है कि भारार्पण की सफलता कुछ सीमा तक शीर्ष एवं अधीनस्थ अधिकारियों के पारस्परिक विश्वास पर आधारित होती है। अगर अधीनस्थ अधिकारी अधिकार प्राप्त करने के उपरान्त भी गलती करता है तो भी शीर्ष अधिकारी को उसे कार्य करने की पूरी स्वतन्त्रता प्रदान करते रहना चाहिए। गलती से उत्पन्न हानि को अधीनस्थ के प्रशिक्षण का व्यय मान लेना चाहिए। शीर्ष अधिकारी को विशेष परिस्थितियों में अपवाद स्वरूप ही हस्तक्षेप करना चाहिए।

7. क्रियात्मक परिभाषा का सिद्धान्त (Principle of Functional Definition)-आधिकारा के श्रेष्ठ भारार्पण के लिए संगठन का क्रियात्मक विभागीकरण होना चाहिए और प्रत्येक कृत्य, क्रिया, सम्बन्ध, भूमिका व कार्य इकाई के अपेक्षित परिणाम की सुस्पष्ट परिभाषा दी होनी चाहिए। तब सभी सम्बन्धित पक्षकार उन्हें भली-भाँति समझ करके अधिक उत्तरदायित्व के साथ लक्ष्यों की प्राप्ति में योगदान दे सकते हैं।

8. अधिकार स्तर का सिद्धान्त (Principle of Authority Level)-इस सिद्धान्त का अर्थ है कि निर्णयन का अधिकार उसी स्तर का होना चाहिए जिस स्तर पर भारार्पण किया गया है। अधीनस्थों को चाहिए कि वे अपने निर्णयन क्षेत्र की जानकारी रखें और अपने क्षेत्र के बिन्दुओं को उच्च अधिकारियों के पास निर्णयन हेतु भेजने से परहेज करना चाहिए। उच्चाधिकारियों से कदापि यह आशा नहीं की जानी चाहिए कि वह निर्णयन प्रक्रिया में अधीनस्थों के अधिकार स्तर की सीमा में हस्तक्षेप करेगा।

9. अन्य सिद्धान्त (Other Principles)-(i) अवैयक्तिकरण का सिद्धान्त, (ii) सोपान सिद्धान्त, (iii) स्वीकृति का सिद्धान्त, (iv) प्रभावशाली नियन्त्रण का सिद्धान्त, तथा (v) औपचारिक भारार्पण का सिद्धान्त।

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भारार्पण के प्रकार अथवा प्रारूप

(TYPES OR FORMS OF DELEGATION)

विभिन्न विद्वानों ने भारार्पण का भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्गीकरण किया है, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं__

1 औपचारिक तथा अनौपचारिक भारार्पण (Formal and Informal Delegation)-जब भारार्पण संगठन की अधिकार रेखा द्वारा निर्धारित सीमाओं के आधार पर होता है तो उसे औपचारिक भारार्पण कहते हैं। इसके विपरीत. अनौपचारिक भारार्पण के अन्तर्गत अधीनस्थ कर्मचारी उच्चाधिकारियों की आज्ञा पर नहीं. अपित स्वतः प्रेरणा से कार्य करते हैं। अनौपचारिक भारार्पण का प्रमुख उद्देश्य लालफीताशाही को समाप्त करके समय की बचत करना होता है। सार्वजनिक उद्यमों में आम तौर पर अनौपचारिक तरीकों से भारार्पण होता है, जबकि निजी उद्यमों में अनौपचारिक एवं औपचारिक दोनों विधियों से भारार्पण होता है।

2. सामान्य तथा विशिष्ट भारार्पण (General and Specific Delegation)-सामान्य भारार्पण के अन्तर्गत उपक्रम की समस्त क्रियाओं का दायित्व किसी एक व्यक्ति को सौंप दिया जाता है। उदाहरण के लिए, किसी उपक्रम के जनरल मैनेजर को सौंपा गया कार्य सामान्य भारार्पण के अन्तर्गत आता है। विशिष्ट अथवा निश्चित भारार्पण के अन्तर्गत एक व्यक्ति को निश्चित क्रियाओं के सम्बन्धों में ही कार्य-भार सौंपे जाते हैं। उदाहरणार्थ, उत्पादन प्रबन्धक, मानव संसाधन प्रबन्धक, वित्त प्रबन्धक, विपणन प्रबन्धक आदि को सौंपा गया कार्य भार विशिष्ट भारार्पण कहलाता है।

3. लिखित तथा मौखिक भारार्पण (Written or Verbal Delegation)-जब भारापण स्पष्टतया और लिखित रूप में किया जाता है तो उसे लिखित भारार्पण कहते हैं। इसके विपरीत, जब केवल मौखिक रूप में ही अधिकार अन्तरित किये जाते हैं तो इसे मौखिक भारार्पण कहते हैं। मौखिक भारार्पण की तुलना में लिखित भारार्पण अधिक श्रेष्ठ होता है।

4. अधोगामी, उर्ध्वगामी तथा पाश्विक भारार्पण (Downward, Upward and Lateral Delegation)-भारार्पण सामान्य रूप में अधोगामी ही होता है अर्थात् उच्च अधिकारी अपने नीचे के अधिकारी को अधिकारों का भारार्पण करता है. परन्तु कभी-कभी इसकी प्रकृति उर्ध्वगामी हो सकती हा अगर अधीनस्थ भारार्पण को स्वीकार नहीं करना चाहे तो वह शीर्षाधिकारी को भारार्पण कर सकता है। जब भारार्पण समस्तरीय अधिकारी को किया जाता है तो उसे पाश्विक भारार्पण कहते हैं।

5. प्रशासनिक, क्रियात्मक तथा तकनीकी भारार्पण (Administrative, Functional and Technical Delegation)-जब कुछ प्रशासनिक कार्य अपने अधीनस्थों को उच्चाधिकारी द्वारा सौंपे जाते हैं तो उसे प्रशासनिक भारार्पण कहते हैं। जो भारार्पण विविध क्रियाओं के आधार पर किये जाते हैं, उन्हें क्रियात्मक भारार्पण कहते हैं। जब भारार्पण तकनीकी कार्यों के हेतु किया जाता है तो उसे तकनीकी भारार्पण कहते हैं।

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क्या उत्तरदायित्वों का भारार्पण हो सकता है?

(CAN THE RESPONSIBILITIES BE DELEGATED)

इसका स्पष्ट उत्तर यह है कि अधिकार का भारार्पण हो सकता है, उत्तरदायित्व का नहीं। कोई अधिकारी अपने उत्तरदायित्व को पूरा करने में अधीनस्थों का सहयोग ले सकता है और इस हेतु अधिकार का भारार्पण कर सकता है। उत्तरदायित्व तो उसी अधिकारी का होगा जिसे उपक्रम का कार्य-भार सौंपा गया है। यदि उपक्रम में हानि होती है तो इसके लिए उच्च अधिकारी जवाबदेह और उत्तरदायी होंगे न कि अधीनस्थ। उत्तरदायित्व अविभाज्य है और इसे भारोपित नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि सौंपे गये कार्य के लिए अधीनस्थों का कोई उत्तरदायित्व नहीं है। वास्तव में, इसके लिए अधीनस्थ उस अधिकारी के प्रति उत्तरदायी होते हैं जिसने उन्हें कार्य भार सौंपा है और पूरा करने के लिए अधिकार सत्ता सौंपी है। कोई भी प्रबन्धक परिणामों की विफलता के लिए यह कहकर उच्चाधिकारी के प्रति अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता है कि अधीनस्थ जिम्मेदार हैं।

भारार्पण की आवश्यकता एवं महत्त्व

(NEED AND IMPORTANCE OF DELEGATION)

भारार्पण’ प्रबन्ध की एक अति आवश्यक तकनीक है जिसके द्वारा अधिकारी अपने कार्यभार को कम करके अपना ध्यान महत्वपूर्ण कार्यों में लगाता है। भारार्पण की आवश्यकता (लाभ, उद्देश्य, महत्व आदि) के सम्बन्ध में निम्न बिन्द स्मरणीय हैं

1 मानवीय सीमाओं के कारण (Due to Human Limits)-कोई भी मानव कितना भा कशल और अधिक काम करने वाला क्यों न हो, आज के जटिल व्यवसाय के युग में समस्त क्रियाओं पर अकेले नियन्त्रण नहीं कर सकता है। एक मानव अपनी सीमित क्षमता के बराबर ही तो काम कर सकता है और शेष कार्य के निष्पादन हेतु अधिकारों का भारार्पण आवश्यक हो जाता है।

2. विशिष्टीकरण में वृद्धि (Increase in Specialisation)-आधुनिक युग अति विशिष्टीकरण का है। अत: कोई भी एक व्यक्ति उत्पादन, विपणन, वित्त, मानव संसाधन आदि से साबन्धित सारे मामलों को अकेले सुलझा नहीं सकता है। प्रत्येक क्षेत्र के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ नियक्त किये जाने से अधिकार का भारार्पण जरूरी हो जाता है।

3. व्यवसाय का विस्तार (Expansion of Business)-जब एक उपक्रम का विस्तार होता है। तो उसका आकार और व्यापार बढ़ जाने के कारण एक व्यक्ति के लिए सब कुछ देखना सम्भव नहीं रह जाता है। दूरदराज के स्थानों पर शाखायें उप-विभाग, प्लाण्टस और विक्रय केन्द्र आदि खुलन पर अधिकार भारार्पण की आवश्यकता पड़ती है।

4. अधीनस्थों के प्रशिक्षण हेतु (For the Training of Subordinates)- उच्च प्रबन्ध अपने आधिकारों और कत्तव्यों को भारार्पण करके अधीनस्थों को महत्वपर्ण विषयों एवं समस्याआ का सुलझाने व समझने का प्रशिक्षण प्रदान करता है। अधीनस्थों में प्रबन्धकीय गुणों का विकास होता ह और भविष्य में प्रशिक्षित प्रबन्धक आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। वास्तव में, भारार्पण से न केवल अधीनस्थों बल्कि शीर्ष प्रबन्धकों में भी प्रबन्धकीय दक्षता विकसित होती है कि किस प्रकार अधीनस्थों, से श्रेष्ठ कार्य लिया जा सकता है।

5. कार्य शक्ति का सम्वर्द्धन (Multiplication of Work Force)-भारार्पण के द्वारा एक प्रबन्धक अपनी कार्य शक्ति का सम्वर्द्धन कर सकता है। प्रसिद्ध कहावत “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता” भी भारार्पण की अनिवार्यता स्पष्ट करता है। प्रबन्ध की सफलता और असफलता वास्तव में, भारार्पण की कला पर निर्भर करती है। भारार्पण करने के साहस का अभाव अथवा भारार्पण कला की अनभिज्ञता संगठनों की असफलता का प्रमुख कारण होती है। संगठन रचना का निर्माण और समूहों में कार्य निष्पादन भारार्पण के द्वारा ही हो पाता है।

6. अभिप्रेरण का माध्यम (Medium of Motivation)-भारार्पण अभिप्रेरणा का महत्वपूर्ण माध्यम है तथा इसके द्वारा कर्मचारियों की सामाजिक व मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जा सकती है। प्रबन्ध में श्रमिकों की सहभागिता और औद्योगिक प्रजातन्त्र की पुनर्स्थापना बिना भारार्पण के सम्भव ही नहीं है।

अन्य (Others)-(i) समय व शक्ति की बचत, (ii) कर्मचारियों में पहलपन शक्ति का विकास, (iii) संगठन में स्थायित्व व निरन्तरता, (iv) सरल व सुगम निर्णयन, (v) कार्यकुशलता में वृद्धि, (vi) अन्तरवैयक्तिक सम्बन्धों में मधुरता, (vii) विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहन, (viii) प्रशासनिक भार में कमी, (ix) पदोन्नति में सुगमता आदि।

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भारार्पण प्रक्रिया में बाधाएँ या कठिनाइयाँ

(HINDRANCES OR DIFFICULTIES IN DELEGATION PROCESS)

व्यवहार में अधिकारों का भारार्पण कार्य बहुत मुश्किल होता है। इसमें अनेक बाधाएँ आती हैं। कुछ बाधाएँ ऐसी होती हैं जिसके कारण प्रबन्धक अपने अधीनस्थ को अधिकार नहीं देना चाहता है अथवा अधीनस्थ कार्यभार को लेना ही नहीं चाहते हैं। इससे भारार्पण प्रक्रिया अवरुद्ध होती है। भारार्णण प्रक्रिया में प्रमुख बाधाओं का संक्षिप्त विवेचन निम्न प्रकार है :

() अधिकारियों की ओर से उत्पन्न बाधाएँ

1 अधीनस्थों में विश्वास का अभाव (Lack of Confidence in Subordinates)- कुछ उच्च प्रबन्धक अपने अधिकारों का भारार्पण इसलिए नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें अपने अधीनस्थों पर कम विश्वास होता है। उनको यह विश्वास रहता है कि जितनी अच्छी तरह वे स्वयं कार्य करते हैं उतनी अच्छी तरह अन्य कोई व्यक्ति कार्य नहीं कर सकता। हो सकता है कि यह भ्रम कुछ सीमा तक सत्य हो, किन्तु आखिर जब तक दूसरे लोगों को कार्य-भार नहीं सौंपा जायेगा तब तक वे लोग उस कार्य में दक्षता कैसे प्राप्त कर सकते हैं। हाँ, इसके लिए व्यवस्थित प्रशिक्षण और सिखाने का कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए।

2. अपने भविष्य के प्रति आशंका (Fear to their Own Future)-कुछ प्रबन्धक इसलिए भी अधिकार के भारार्पण से कतराते हैं. क्योंकि उनके मन में यह डर बैठा रहता है कि ऐसा करने से अधीनस्थ अधिक प्रकाश में आ जायेगा और जब अधीनस्थ को अधिक मान्यता प्राप्त हो जायेगी तो फिर उसे कौन पछेगा? अधीनस्थों का विकास होने से यह हो सकता है कि वे आगे बढ़ जायें और पदोन्नति पा करके अधिकारी की ही छुट्टी कर दें। अतः अपनी अकार्यकुशलता को छिपाने के लिए वे यही उचित समझते हैं कि अधीनस्थों को अपनी क्षमता प्रदर्शित करने का अवसर ही न दिया जाए। अधिकारी को यह भय बना रहता है कि यदि वह भारार्पण करेगा तो उसके पास करने को बहुत कम काम रहेगा और वह स्वामी की निगाह में कामचोर कहलायेगा। इस भय से भी बहुतेरे अधिकारी भारार्पण से कतराते हैं। अक्षम अधिकारी को हमेशा यह खतरा रहता है कि अधिकार के भारार्पण। करने से उसकी अपनी अक्षमताओं का ही भांडा फूट जायेगा।

3. एकाकी शासन और नियन्त्रण करने की इच्छा (Desire to Sole Administer and Control)-कुछ अधिकारी भारार्पण करना इसलिए नहीं चाहते, क्योंकि उनमें दूसरों पर शासन करने एवं हावी रहने की इच्छा बड़ी बलवती होती है। वे ऐसा सोचते हैं कि अगर अधिकारों का भारार्पण अधीनस्थों को कर दिया तो उनका नियन्त्रण व प्रभाव शिथिल पड़ जायगा। भला फिर कान उनकी और परिजनों की खुशामद करेगा, कौन उनके यहाँ हाजिरी देगा, कौन उनके हुक्म को सिर आखों पर बैठायेगा और कौन डरेगा? इस प्रवत्ति के अधिकारी विविध बहाने बना करके अधिकारों को अधीनस्थों में हस्तान्तरित नहीं करते हैं और अधिक से अधिक अधिकार अपने ही हाथों में केन्दित रखतें हैं

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4. जोखिम उठाने की अनिच्छा (Unwillingness of Risk-taking)-यह सर्वविदित है कि अधिकार का भारार्पण हो सकता है, किन्तु उत्तरदायित्व का नहीं (Authority can be delegated, but responsibility cannot be delegated)। अत: अधिकारी अपने अधिकार को भारार्पण करने से इसलिए भी हिचकिचाते हैं कि वे खतरा मोल लेना नहीं चाहते। भारार्पण प्रक्रिया में अधीनस्थों के गलत निर्णयों और त्रुटियों का भी जोखिम अधिकारी पर ही होता है, अधीनस्थ पर नहीं। अतः अधिकारी अधिकार और कार्यभार सौंपने से डरते हैं।

अन्य (Others)-(i) समन्वय की कला में अकुशल प्रबन्धक भारार्पण से बचते हैं, क्योंकि भारार्पण से समन्वय की समस्या का उदय होता है। (ii) अगर प्रबन्धक में अधीनस्थों को आवश्यकतानुसार आदेश व निर्देश देने की संदेशवाहन योग्यता का अभाव रहता है तो वे भारार्पण भी नहीं करना चाहते हैं। (iii) जब प्रबन्धक सभी कार्यों का श्रेय अपने ही ऊपर लेना चाहते हैं तो वे किसी अधीनस्थ को कार्य नहीं सौंपना चाहते हैं। (iv) बहुत बार सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराएँ, प्रथाएँ, परिस्थितियाँ आदि भी अधिकार के भारार्पण में प्रबन्धक की ओर से बाधा बनती हैं। (v) अगर प्रबन्धक कठोर निरीक्षण एवं नियन्त्रण चाहता है तब भी वह अधिकार का भारार्पण नहीं करता है। (ब) अधीनस्थों की ओर से उत्पन्न बाधाएँ

कई बार अधिकार का भारार्पण इस कारण भी बाधित होता है कि अधीनस्थ निम्नलिखित कारणों से इसे स्वीकार ही नहीं करना चाहते हैं-(1) अधीनस्थों को सौंपे गये कार्य के निष्पादन के संदर्भ में आलोचना किये जाने का भय रहता है। नए कर्त्तव्य एवं दायित्व को स्वीकारने पर भूल हुई तो ‘आ बैल मुझे मार’ वाली उक्ति सार्थक होगी। (2) जिन अधीनस्थों में आत्मविश्वास का अभाव होता है वे असफलता से डरते हुए नए उत्तरदायित्व अपनाने से हिचकिचाते हैं। वे अपनी क्षमता को कम समझते हैं अतः अधिकारी द्वारा अधिकार प्रदान किए जाने पर भी स्वीकारने में संकोच करते हैं। (3) कोई भी अधीनस्थ भारार्पण से उत्पन्न उत्तरदायित्व को तब तक स्वीकार नहीं करना चाहता है जब तक कि स्पष्ट मौद्रिक व अमौद्रिक प्रोत्साहन उसे न प्राप्त हो। उत्तरदायित्व स्वीकारने से मानसिक श्रम, भावनात्मक तनाव, अतिरिक्त जोखिम, अधिक समय और धन लगता है अत: अतिरिक्त भुगतान, पदोन्नति, प्रतिष्ठा व पद जैसे स्पष्ट प्रलोभन भारार्पण के साथ सम्बद्ध करने पर स्वीकार्यता बढ़ती है। (4) कभी-कभी अधीनस्थों पर इतना कार्यभार पहले से रहता है कि वे नये कार्य को स्वीकारने को अनिच्छुक रहते हैं। (5) अगर अधीनस्थों को कार्य सम्पादन हेतु आवश्यक सुचनाएँ व संसाधन न उपलब्ध हों तो वे नये कार्यभार को स्वीकारने में हिचकते हैं। (6) कई बार अधीनस्थों को स्पष्ट व उचित निर्देश व संदेश नहीं दिए जाते हैं तो वे नया कार्य लेने को तैयार नहीं होते हैं। (7) पर्याप्त प्रशिक्षण के अभाव के कारण भी भारार्पण में बाधा आती है।

() संगठनात्मक सीमाएँ बाधाएँ

कभी-कभी भारार्पण हेतु प्रबन्धक व अधीनस्थ दोनों तैयार होते हैं, फिर भी संगठनात्मक संरचना की ओर से निम्न कारणों से रुकावट आ जाती है-(1) संगठन स्थापना के समय ही नीति पस्तिका में अगर भारार्पण पर कुछ रोक का उल्लेख हो तो उनका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। (2) कुछ अधिकार ऐसे होते हैं जिनका भारार्पण सम्भव ही नहीं होता है। (3) नवीन संगठनों में

अधिकार का भारार्पण अनुभवहीन अधीनस्थों के होने के कारण भारार्पण सीमित मात्रा में ही करना ठीक रहता है। (4) भौगोलिक परिस्थितियाँ एवं संदेशवाहन भी भारार्पण में बाधा उत्पन्न करती हैं। (5) लघु सगठना में तो वास्तव में, भारार्पण ही अनौचित्यपूर्ण सिद्ध होता है। (6) संगठन में अधिकारी-कर्मचारा | सम्बन्ध खराब होने पर भारार्पण असफलतादायक होता है। (7) संगठन में क्रियाओं का वर्गीकरण | और आबंटन त्रुटिपूर्ण होने तथा उचित विभागीकरण के अभाव में भारार्पण में अवरोध उत्पन्न होता चाहिए।

भारार्पण की बाधाओं को दूर करने के लिए सुझाव

(SUGGESTIONS TO OVERCOME BARRIERS OF DELEGATION)

.अथवा

भारार्पण को कैसे प्रभावी बनाया जाए?

(HOW TO MAKE DELEGATION EFFECTIVE?)


अधिकार का भारार्पण प्रबन्धन का अनिवार्य, परन्तु अभ्यास में एक कठिन कार्य है, अत: भारार्पण को सफल बनाने हेतु इसके मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना नितान्त आवश्यक है। इस दिशा में प्रभावी भारार्पण हेत निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

1 भारार्पणकर्ता अधिकारी को अपनी भूमिका और कुल अधिकारों को भली प्रकार समझ लेना चाहिए।

2. अधिकारी को तय कर लेना चाहिए कि किन अधिकारों का भारार्पण करना है और किन का नहीं।

3. कुशल अधिशासियों का चयन किया जाना चाहिए।

4. अधीनस्थों की योग्यता व सीमा की स्पष्ट पहचान करके कार्य आबंटित करना चाहिए।

5. भारार्पण करते समय अधीनस्थों को स्पष्टया अधिकार बता देना चाहिए। ‘अगर और मगर’ के प्रश्नों का साफ जवाब दे देना चाहिए।

6. भारार्पण विश्वास पर आधारित होना चाहिए।

7. प्रबन्ध का अनुकूल वातावरण निर्मित करके भय और नैराश्य को दूर करना चाहिए।

8. जो निर्णय अधीनस्थों के सीमा-क्षेत्र में हो उसमें अनावश्यक अधिकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

9. जो कार्य अधीनस्थ कर सकते हैं, उन्हें सौंप देना चाहिए।

10. ध्यान रहे, उत्तरदायित्व का भारार्पण नहीं होता है, मात्र अधिकार का भारार्पण होता है।

11. प्रभावी सन्देशवाहन व्यवस्था होनी चाहिए।

12. अधिकारी को भारार्पण अपने अधिकार सीमा के परे नहीं करना चाहिए।

Principles Business management Delegation

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. अधिकार सत्ता के भारार्पण से आप क्या समझते हैं ? एक प्रभावी भारार्पण की क्या विशेषताएँ हैं ?

What do you understand by delegation of power ? What are the features of an effective delegation of power ?

प्रश्न 2. “कर्तव्यों. सत्ता और दायित्वों को स्पष्ट समझे बिना प्रत्यायोजन सम्पूर्ण नहीं होता। है।” स्पष्ट कीजिये। वास्तविक व्यवहार में प्रत्यायोजन में बहुधा क्या कठिनाईयाँ आती हैं ?

“No delegation is completed without a clear understanding of duties, authority, and obligation.” Explain. What difficulties frequently arise in delegation in actual practice ?प्रश्न 3. “अधिकार का प्रत्यायोजन किया जा सकता है किन्तु उत्तरदायित्व का प्रत्यायोजन नहीं किया जा सकता है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिये तथा इनके सम्बन्ध बताइये।

“Authority can be delegated but responsibility cannot be delegated.” Explain this statement and state the relationship between them.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. अधिकार के भारार्पण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिये।

Explain the process of delegation of authority.

प्रश्न 2. भारार्पण के प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।

State the main principles of delegation.

प्रश्न 3. भारार्पण की आवश्यकता एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।

Explain the need and importance of delegation.

प्रश्न 4. भारार्पण प्रक्रिया में आने वाली प्रमुख बाधाएँ बताइये।

State the main hindrances in the delegation of authority.

प्रश्न 5. क्या उत्तरदायित्वों का प्रत्यायोजन किया जा सकता है ?

Can responsibility be delegated?

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Type Questions)

  1. बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं’ या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False’

(i) अधिकारों का प्रतिनिधायन किया जा सकता है।

Authority can be delegated.

(ii) उत्तरदायित्व का प्रत्यायोजन किया जा सकता है।

Responsibility can be delegated.

(iii) न्यूमैन के अनुसार, भारार्पण प्रक्रिया में तीन तत्व निहित होते हैं।

According to Newmann, delegation process includes three elements.

उत्तर-(i) सही (ii) गलत (iii) सही

2. सही उत्तर चुनिये (Select the correct answer)

(i)  भारार्पण प्रक्रिया है  Delegation process is a:

(अ) संगठनात्मक (Organizational)

(ब) नियोजनात्मक (Planning)

(स) नियन्त्रणामक (Controlling)

(द) इनमें से कोई नहीं (None of the above)

(ii) भारार्पण किया जाता है  legation is made to:

(अ) अधीनस्थों को (Subordinates)

(ब) अधिकारियों को (Officers)

(स) दोनों को (Both)

(द) इनमें से कोई नहीं (None of the above)

उत्तर-(i) (अ) (ii) (अ)

Principles Business management Delegation

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

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