BCom 2nd Year Principles Business Management Leadership Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Principles Business Management Leadership Study Material Notes in Hindi

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Leadership Study Material Notes
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BCom 2nd Year Motivation Concepts Incentives Theories Study Material Notes in Hindi

नेतृत्व

[Leadership]

प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम में व्यक्तियों का समूह एक साथ मिलकर सामान्य लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है। वास्तव में प्रत्येक समूह को चाहे वह छोटा हो या बड़ा, अपने उद्देश्य का प्राप्ति हेतु सदस्यों के कार्य-कलापों के पथ-प्रदर्शन, अभिप्रेरणा एवं निर्देशन के लिए एक प्रभावशाली नेता की आवश्यकता होती है। यह नेता समूह कर्मचारियों को अभिप्रेरित कर उनसे संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त कराता है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि किसी भी व्यावसायिक या आद्योगिक उपक्रम के लिए अन्य कोई साधन/पहलू इतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि कुशल नेतृत्व। कुशल नेतृत्व के अभाव में कोई भी संस्था या समूह अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता है। पीटर ड्रकर के अनुसार, “प्रबन्धक किसी व्यावसायिक उपक्रम के प्रमुख एवं दुर्लभ साधन हैं। अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के असफल होने का प्रमुख कारण अकुशल नेतृत्व ही है।” प्रस्तुत अध्याय में नेतृत्व के विभिन्न पहलुओं की विस्तृत विवेचना की गई है।

Principles Business Management Leadership

नेतृत्व का अर्थ एवं परिभाषाएँ

MEANING AND DEFINITIONS OF LEADERSHIP)

सामान्य अर्थ में, नेतृत्त्व से आशय किसी व्यक्ति विशेष के उस गुण से है जिसके द्वारा वह अन्य व्यक्तियों/अनुयायियों/अधीनस्थों का मार्गदर्शन करता है एवं नेता के रूप में उनकी क्रियाओं का निर्देशन करता है। वास्तव में नेतृत्व एक ऐसी क्षमता है जिसके द्वारा अन्य व्यक्तियों से वांछित कार्य स्वेच्छापूर्वक कराये जाते हैं। इस प्रकार नेतृत्व का अर्थ एक. व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्तियों की क्रियाओं का इस प्रकार निर्देशन करना है ताकि निर्धारित लक्ष्यों को सुगमता से प्राप्त किया जा सके। नेतृत्व की महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

(1) कीथ डेविस (Keith Davis) के अनुसार, “नेतृत्व दूसरे व्यक्तियों को पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को उत्साहपूर्वक प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने की योग्यता है। यह वह मानवीय तत्त्व है जो एक समूह को एक सूत्र में बाँधे रखता है और इसे अपने लक्ष्य की ओर अभिप्रेरित करता है।”1

(2) बर्नार्ड (Chester I. Barnard) के अनुसार, “नेतृत्व किन्हीं व्यक्तियों के व्यवहार का वह गुण है जिसके द्वारा वे सामूहिक प्रयास में लगे लोगों या उनकी क्रियाओं का मार्गदर्शन करते हैं।”2.

(3) लिविंगस्टन (Livingston) के अनुसार, “नेतृत्व अन्य लोगों में किसी सामान्य उद्देश्य का अनुसरण करने की इच्छा जागृत करने की योग्यता है।”3 |

(4) जॉर्ज आर० टेरी (George R. Terry) के अनुसार, “नेतृत्व व्यक्तियों को पारस्परिक उद्देश्यों के लिए स्वैच्छिक प्रयत्न करने हेतु प्रभावित करने की योग्यता है।”4

(5) हॉज एवं जॉनसन (Hodge and Johnson) के अनुसार, “नेतृत्व मुख्य रूप से औपचारिक एवं अनौपचारिक परिस्थितियों में अन्य व्यक्तियों के व्यवहार आदि अभिवृत्तियों को रूप देने की योग्यता है।”

(6) फ्रकालन जी० मरे (Franklin G.Moore) के अनसार “नेतत्त्व अनयायियों को नेता का इच्छानुसार क्रियाएँ करने के लिए तैयार करने की योग्यता है।”

(7) कूण्टज एवं डोनेल (Koontz and o’Donnell) के अनुसार, “किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सम्प्रेषण के माध्यम द्वारा व्यक्तियों को प्रभावित कर सकने की योग्यता नेतृत्त्व कहलाती है।”2 |

(8) टेननबॉम एवं मेसारिक (Tannenbaum and Massarik) के अनुसार, “नेतृत्त्व एक अन्तर्वैयक्तिक प्रभाव है जिसका प्रयोग किसी स्थिति में सम्प्रेषण प्रक्रिया के माध्यम से किसी विशिष्ट लक्ष्य या लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।’

(9) अल्फ्रेड एवं बीटी (Alfred and Beaty) के अनुसार, “नेतृत्त्व वह गुण है जिसके द्वारा अनुयायियों के समूह से इच्छित कार्य स्वेच्छापूर्वक कराये जाते हैं।”

उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् हम यह कह सकते हैं कि नेतृत्त्व उपलब्ध परिस्थितियों में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु किए जाने वाले प्रयासों में एक व्यक्ति या एक समूह की क्रियाओं को प्रभावित करने की प्रक्रिया है। यह नेतृत्त्व प्रक्रिया, नेता का एक कार्य है। इस प्रकार नेतृत्त्व से आशय एक व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्तियों की क्रियाओं का मार्ग-दर्शन करने से है।

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नेतृत्व की प्रकृति एवं विशेषताएँ

(NATURE AND CHARACTERISTICS OF LEADERSHIP)

विभिन्न विद्वानों द्वारा नेतृत्त्व की दी गई विभिन्न परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् नेतृत्त्व की प्रकृति एवं विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

1 व्यक्तिगत योग्यता (Personal Ability)–नेतृत्त्व एक व्यक्तिगत योग्यता है और जिस व्यक्ति में यह योग्यता विद्यमान हो उसे नेता कहते हैं।

नेता अपने व्यवहार से दूसरे व्यक्तियों को प्रभावित करता है और निर्दिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उनका मार्गदर्शन करता है। बर्नार्ड का भी मानना है कि, “नेतृत्त्व किसी व्यक्ति के व्यवहार का वह गुण है जिसके द्वारा वह दूसरे व्यक्तियों का मार्गदर्शन करता है।”

2. अनुयायियों का होना (Must be Followers)-अनुयायियों का अर्थ उन व्यक्तियों से है जो नेता के आदेशों-निर्देशों का पालन करें। बिना अनुयायियों के न तो नेता की विद्यमानता के बारे में सोचा जा सकता है और न ही संस्था के पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों या लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है।

3. अनुयायियों की स्वैच्छिक सहमति (Voluntary Acceptance of Followers)-नेता को __ अपने अनुयायियों से स्वाभाविक एवं स्वैच्छिक आज्ञापालन प्राप्त होना चाहिए। यदि अनुयायी/अन्य

व्यक्ति/अधीनस्थ भय या विवशता के कारण आज्ञापालन स्वीकार करते हैं तो यह तानाशाही कहलायेगी, नेतृत्त्व नहीं। –

4. क्रियाशील सम्बन्ध (Working Relationship)-नेता और उसके अनुयायियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध निष्क्रिय न होकर कुछ निश्चित क्रियाओं का आधार होते हैं। अन्य शब्दों में नेता और अनयायियों के पारस्परिक सम्बन्ध निष्क्रिय न होकर क्रियाशील होते हैं। नेता अपने अनुयायियों को कार्य करने के लिए दिशा प्रदान करता है और उन्हें इसका अनुसरण करने के लिए प्रेरित करता है। किसी कार्य का निष्पादन करने में नेता सबसे आगे खड़ा होकर अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करता है और उनका सहयोग प्राप्त करता है।

5. सामान्य लक्षण (Common Goals) नेतृत्व की यह प्रकृति है कि नेता संस्था के सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अपने अनुयायियों के प्रयासों को निर्देशित करता है। नेता अपने अनयायियों को निर्धारित लक्ष्यों की जानकारी देता है, उन्हें लक्ष्यों को स्पष्टतया परिभाषित करता है और उनकी लक्ष्यों की प्राप्ति में आने वाली बाधाओं को दूर करने का प्रयत्न करता है।

Principles of Business Management Leadership

6. आदर्श आचरण (Examplary Conduct)–नेता अपने आचरण से ही अनुयायियों को अभावित करता है। अतः उसे अपने आचरण द्वारा अनुयायियों के समक्ष एक उच्च कोटि का आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। एक नेता जो स्वयं कार्य पर देर से आता हो, अपने अनुयायियों से ठीक समय पर आने की आशा नहीं कर सकता। नेता की कथनी (Saving) और करनी (Doing) में अन्तर नहीं हाना चाहिए। उसे अपना आचरण एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए जिसे अधीनस्थ अनुसरण कर अपनी और संस्था दोनों की प्रगति कर सकें। एल० एफ० उर्विक (L.E. Urwick) के अनुसार, “अनुयायियों को यह प्रभावित नहीं करता कि उनका नेता क्या करता है और क्या लिखता है बल्कि वह क्या है, वह कौन से कार्य करता है, वह किस प्रकार का व्यवहार करता है।

आदि तथ्य प्रभावित करते हैं।” स्पष्ट है कि अनुयायी अपने नेता का अनुसारण करते हैं, अतः आदर्श आचरण द्वारा ही वह उन्हें पर्याप्त रूप से प्रभावित कर सकता है।

7. नेतृत्त्व एक गतिशील प्रक्रिया है (Leadership is a Dynamic Process)-नेतृत्त्व एक गतिशील प्रक्रिया (Dynamic Process) है। क्रियाविहीन अवस्था में नेतृत्त्व की आवश्यकता नहीं होती। जब तक संगठन में कार्य होता है तब तक नेतृत्त्व की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। नेता को नित्य नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और उसे नये-नये व्यवहार का प्रयोग करना पड़ता है।

8. नेतृत्त्व एक चिर नवीन प्रक्रिया है (Ever New Process) नेतृत्त्व का प्रकार समूह की परिस्थिति तथा समय पर निर्भर करता है। परिस्थितियों तथा समय में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है जिसके कारण नेतृत्त्व की शैली में सदैव परिवर्तन करना पड़ता है। अत: नेतृत्त्व एक चिर नवीन प्रक्रिया (Ever New Process) है।

9.हितों की एकता (Community of Interests)-नेता और उसके अनुयायियों के मध्य हितों की एकता होनी चाहिए। किसी संगठन में नेतृत्व का कोई प्रभाव नहीं रहता, यदि नेता और उसके अनुयायी अलग-अलग उद्देश्यों के लिए प्रयास करें। किसी संगठन में प्रभावी नेतृत्व उसी समय कहा जा सकता है, जबकि नेता और अनुयायी एक ही उद्देश्य (सामान्य लक्ष्यों) की पूर्ति के लिए कार्य करें। इस सम्बन्ध में जॉर्ज आर० टेरी (George R. Terry) ने ठीक ही कहा है कि, “नेतृत्व पारस्परिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु व्यक्तियों को स्वैच्छिक प्रयत्न करने के लिए प्रभावित करने की क्रिया है।” (Leadership is the activity of influencing people to strive willingly for Mutual objectives.) सामान्य तथा व्यक्तिगत उद्देश्यों में सामंजस्य स्थापित करके नेता (नेतृत्व) दोनों की प्राप्ति सम्भव बनाता है।

10. औपचारिक एवं अनौपचारिक (Formal and Informal)-नेतृत्व औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों प्रकार का हो सकता है। यह सम्भव है कि किसी संस्था का औपचारिक नेता कोई प्रबन्धक हो, परन्तु वास्तविक नेतृत्त्व अनौपचारिक रूप से किसी अधीनस्थ कर्मचारी के पास हो।

11. यथार्थवादी दृष्टिकोण (Practical Approach)-नेतृत्व का यह लक्षण इस बात को स्पष्ट करता है कि नेता का मानव आचरण के प्रति यथार्थवादी दृष्टिकोण होना चाहिए। कोई नेता तभी सफल हो सकता है जब वह अपने अनुयायियों की समस्याओं तथा भावनाओं को समझकर उनके साथ मानवीय व्यवहार करे।

12. विभिन्न गुणों का समावेश (Combination of Various Traits)-नेता होने के लिए यह भी आवश्यक है कि नेता में उन विभिन्न गुणों का समावेश हो जो नेतृत्व करने के लिए आवश्यक होते हैं।

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नेतृत्व एवं प्रबन्ध

(LERADERSHIP AND MANAGEMENT)

सामान्यतया नेतृत्व एवं प्रबन्ध को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है, परन्तु दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं। प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्रियाओं; जैसे—नियोजन, संगठन, निर्देशन, नियुक्ति, नियन्त्रण आदि में समन्वय स्थापित करते हुए संस्था के निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना है। प्रबन्धक यह कार्य व्यावसायिक संस्था में कार्य करने वाले कर्मचारियों के सहयोग से ही कराता है। बँकि मानव उत्पादन का एक सक्रिय साधन है, अत: उनसे कार्य कराने के लिए उनके साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए तथा उन्हें अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए विभिन्न नेतृत्व प्रकार की प्रेरणाएँ भी दी जानी –हिए। इसके लिए कुशल नेतृत्त्व का होना अत्यन्त आवश्यक है। यह तो सत्य है कि प्रबन्ध के लिए नेतृत्त्व का विशेष महत्व है, लेकिन प्रबन्ध को नेतृत्त्व का पर्यायवाची नहीं माना जा सकता। नेतृत्त्व तथा प्रबन्ध में निम्नलिखित प्रमुख अन्तर हैं

1एक नेता का कार्य केवल अपने अधीनस्थ को एक निश्चित दिशा दिखाने तक सीमित रहता है. लेकिन एक प्रबन्धक को अपने अधीनस्थों का मार्गदर्शन भी करना होता है और अपने से बड़े। प्रबन्धक के निर्देशों और आदेशों का पालन भी करना होता है। साथ ही संस्था के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर अपने अधीनस्थों के प्रयत्नों को उस ओर मोड़ना है।

2. नेतृत्त्व का अर्थ है कि अधीनस्थों को निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में सार्थक ढंग से प्रेरित करना, लेकिन प्रबन्ध एक व्यापक शब्द है जिसमें उद्देश्यों की व्याख्या से लेकर, उद्देश्यों की प्राप्ति तक के लिए योजना बनाना, कर्मचारियों का संगठन बनाना, आदेश व निर्देश देना और नियन्त्रण तक सभी कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।

3. यदि एक नेता जो नियोजन तथा संगठन में निर्बल है वह अच्छा नेता होते हुए भी एक सफल प्रबन्धक नहीं हो सकता, लेकिन एक अच्छा प्रबन्धक जो नियोजन, संगठन एवं नियन्त्रण में निपुण है एक कुशल नेता होने के साथ-साथ प्रबन्धक भी हो सकता है।

4. नेतृत्त्व एक अत्यन्त असंगठित समूह के कार्यों में भी किया जा सकता है, लेकिन प्रबन्ध चलाने के लिए एक संगठित समूह का होना आवश्यक होता है।

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नेतृत्व के कार्य

(FUNCTIONS OF LEADERSHIP)

नेतृत्व का मुख्य उद्देश्य अपने अधीनस्थों/अनुयायियों का मार्गदर्शन करते हुए उपक्रम द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति करना है जिसके लिए नेता के रूप में निम्नलिखित कार्य करने पड़ते हैं

1 नियोजन एवं निर्देशन (Planning and Direction)-नेतृत्व का प्रथम कार्य है कार्य का नियोजन करना एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिए समूह के सदस्यों को मार्गदर्शन प्रदान करना है।

2. उपक्रम के प्रति निष्ठा बनाए रखना-एक कुशल नेता का प्रमुख कार्य है कि वह अपने अधीनस्थों में उपक्रम के प्रति निष्ठा बनाए रखे। यह उसी स्थिति में सम्भव हो सकता है, जबकि वह निर्णयन में, विशेषकर कर्मचारियों से सम्बन्धित निर्णयन प्रक्रिया में, संस्था के उद्देश्यों को निर्धारित करने में अधीनस्थों, कर्मचारियों को भागीदार बनाता है तथा उनकी आवश्यकताओं एवं समस्याओं का समाधान करने हेतु निरन्तर प्रयास करता रहता है।

3. अधीनस्थों का सहयोग प्राप्त करना (Securing Co-operation of Subordinates)प्रबन्धक के रूप में अधीनस्थों का सहयोग प्राप्त करना, नेतृत्व का तीसरा प्रमुख कार्य है। इसके लिए यह आवश्यक है कि वह सहकारिता की भावना को जन्म दे, कर्मचारियों में एक साथ मिलकर कार्य करने की भावना जाग्रत करे और उन्हें यह विश्वास दिलाए कि उपक्रम की सफलता उनके हित में है।

4. अभिप्रेरणा प्रदान करना (Inspiring)-नेतृत्व कर्मचारियों की अभिप्रेरणा का स्रोत है। कुशल नेतृत्त्व कर्मचारियों की भावनाओं व इच्छाओं को सन्तुष्ट करके उनमें कार्य करने की प्रेरणा उत्पन्न करता है।

5.  परामर्श देना (Suggesting)—कार्य करते समय कई बार कर्मचारी दुविधा में फंस जाते हैं एवं उनके कार्य में रूकावटें आ जाती हैं। कुशल नेता ऐसे समय में योग्य परामर्श प्रदान करके सभी बाधाओं को दूर करते हैं।

6. अनुशासन बनाए रखना (To Maintain Discipline)–नेता का एक प्रमुख कार्य अपने समूह में अनुशासन बनाए रखना भी है, क्योंकि अनुशासन के द्वारा ही वह अपने अधीनस्थों को निर्धारित नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित कर सकता है और कार्य को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए अनुशासन में निहित शक्ति का प्रयोग कर सकता है। प्रयास यह होना चाहिए कि कर्मचारियों में डर व भय के बिना स्व-अनुशासन की भावना पैदा हो।

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7. अधीनस्थों की भावनाओं एवं समस्याओं को समझना (Understood Emotions and Problems of Subordinates)—सफल नेतृत्व के लिए यह आवश्यक है कि नेता को अपने समूह के सदस्या एवं अपने अधीनस्थों की भावनाओं एवं समस्याओं को अच्छी तरह से समझना चाहिए। अधानस्थों की समस्याओं एवं भावनाओं का पूर्ण ज्ञान होने पर ही वह उनका समाधान कर सकता ह। अतः एक सफल नेता का प्रमुख कार्य अधीनस्थों की भावनाओं एवं समस्याओं को समझना है।

8. प्रभावी सम्प्रेषण की व्यवस्था करना-संगठन की गतिविधियों में सामंजस्य एवं सन्तुलन बनाए रखने के लिए और कर्मचारियों से मधुर सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रबन्धकों को उचित प्रक्रिया की व्यवस्था करनी चाहिए। इस दिशा में कुशल नेता ही इस प्रकार की सम्प्रेषण प्रक्रिया की व्यवस्था करता है जिससे अधीनस्थों एवं उसके मध्य विचारों का निरन्तर आदान-प्रदान होता रहे।

9. पारवर्तनों को लागू करना (Implements Changes)-नेता (प्रबन्धक) परिवर्तन प्रक्रिया का केन्द्र-बिन्द होता है। वह अपने अनयायियों को विश्वास में लेकर परिवर्तनों को आसानी से लाग करता है। प्रोफेसर गोरडन (Gorden) के अनुसार, “परिवर्तनों एवं अनिश्चितता की दुनिया में व्यावसायिक नेता परिवर्तन प्रक्रिया का ही महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।”

10. मध्यस्थता करना (Arbitrating)-अनेक संगठनात्मक मामलों को सुलझाने, विवादों को हल करने अथवा कर्मचारियों की असहमति को दूर करने के लिए नेतृत्त्व द्वारा मध्यस्थता की जाती है। नेता संघर्षों को दूर करके संगठन को गतिशील बनाता है।

11.प्रतिनिधित्व करना (Representing)-नेता अपने अनुयायियों व संस्था का प्रतिनिधित्व भी करता है। वह उच्चाधिकारी, बाह्य पक्षों व सरकार के समक्ष अपने अधीनस्थों व अपनी संस्था का सही चित्र प्रस्तुत करता है।

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नेतृत्व का महत्त्व

(IMPORTANCE OF LEADERSHIP)

प्रबन्ध के क्षेत्र में नेतृत्व का महत्वपूर्ण स्थान है। नेतृत्व प्रबन्ध का वह साधन है जिसके बिना संगठन निष्क्रिय रहता है। यह एक ऐसी प्रेरक शक्ति है जो मानवीय साधनों का सर्वोत्तम उपयोग सम्भव बनाती है। कुशल नेतृत्व किसी व्यावसायिक/औद्योगिक उपक्रम को अंधेरे से उजाले में ले जाता है एवं पग-पग पर उत्पन्न होने वाली कठिनाईयों पर विजय पाते हुए उसे प्रगति के मार्ग पर ले जाता है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं जिससे पता चलता है कि कुशल नेतृत्व में साधारण योग्यता वाले व्यक्तियों ने कमाल कर दिखाया, जबकि अनेक बार बुद्धिमान लोग नेतृत्व के अभाव में असफल रहे।

पीटर एफ० ड्रकर (Peter F. Drucket) का मानना है कि अधिकांश व्यावसायिक संगठनों के असफल होने का प्रमुख कारण अकुशल नेतृत्व ही है। जॉन जी० ग्लोवर (John G. Glover) के अनुसार, “अधिकांश व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के असफल होने में अकुशल नेतृत्व जितना उत्तरदायी है उतना कोई अन्य कारण उत्तरदायी नहीं है।” नेतृत्त्व का महत्व इसलिए भी अधिक है कि यह संगठनात्मक व्यवहार का एक महत्वपूर्ण सुधारक है। अत: यह ठीक ही कहा गया है कि

अभी तक इसके स्थानापन्न (Substitute) का विकास नहीं हआ है। नेतृत्व की आवश्यकता एवं ___ महत्व का हम निम्नलिखित शाषको के द्वारा और अधिक स्पष्ट कर सकते हैं

1 अभिप्रेरणा का स्रोत (Source of Motivation)–नेतृत्व कर्मचारियों की अभिप्रेरणा का स्रोत है। कुशल नेतृत्त्व अधीनस्थों की इच्छाओं, आवश्यकताओं, भावनाओं आदि को समझता है और उन्हें सन्तुष्ट करता है। इसके परिणामस्वरूप, संस्था के कर्मचारियों में कार्य करने की प्रेरणा उत्पन्न होती है।

2. सहयोग प्राप्त करने की आधारशिला (Basis of Getting Co-operation)-नेतृत्व हयोग प्राप्ति की आधारशिला है। कुशल नेता विभिन्न साधनों के माध्यम से अपने सहयोगियों और सहयोग प्राप्त करता है। वह अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार, प्रभावी सन्देशवाहन व्यवस्था, की मान्यता, शिकायतों के शीघ्र समाधान और आदर्श आचरण द्वारा अधीनस्थों का स्वैच्छिक प्राप्त करने में सफल होता है। कुशल नेतृत्व के अभाव में कर्मचारियों में द्वेष की भावना का टोता है और छोटी-छोटी बातों को लेकर आपस में विवाद उठ खडे होते हैं। संस्था के प्राप्त करने के लिए कर्मचारियों का हार्दिक सहयोग अतिआवश्यक है और यह निर्धारित केवल कुशल नेतृत्व द्वारा ही सम्भव है।

3. समन्वय में सहायक ( pful in Co-ordination) – के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देता है। वास्तव में, नेतृत्व एक समन्वयक व्यक्तियों को समूह में बनाए रखती है। यह संस्थागत एवं व्यक्तिगत उद्देश्या का इस करता है कि दोनों को ही बिना किसी विरोध के प्राप्त किया जा सके।

4.समूह में निष्ठा उत्पन्न करना (Creates Lovality to the Group)-कुशल अनुयायियों/कर्मचारियों के समूह के प्रति निष्ठा उत्पन्न करता है। इस हेतु वह उन्हें व्यक्तिगत उद्देश्या अनुयायिक काम करता है।। की तुलना में सामूहिक उद्देश्यों को प्राथमिकता प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है।

5. प्रबन्धकीय कार्यों की सफलता (Success of Managerial Functions)-व्यावसायिक प्रबन्ध के विभिन्न कार्यों; जैसे—नियोजन, संगठन, समन्वय, अभिप्रेरण, सम्प्रेषण एवं नियन्त्रण आदि का सफल क्रियान्वयन प्रभावी एवं कुशल नेतृत्व द्वारा ही सम्भव है। एक विद्वान के अनुसार, “नेतृत्व वह प्रेरक शक्ति है जो अन्य लोगों से कार्य करवाती है। कितना भी अच्छा संगठन क्यों न हो, नेतृत्त्व को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है। संगठन केवल पूरक है।”

6. सामूहिक क्रियाओं का सफलतापूर्वक संचालन (Effective Operation of Group Activities) सामूहिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं को एक सूत्र में बाँधने का कार्य नेता ही करता है। यदि वह ऐसा न करे तो समूह अव्यवस्थित हो जाता है और समूह द्वारा की गई क्रियाएँ सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति में विफल होती हैं। लक्ष्यों की पूर्ति हेतु की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं को एक सूत्र में पिरोने का कार्य केवल कुशल नेतृत्व द्वारा ही सम्भव है।

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7. संगठनात्मक व्यवहार में सुधार (Improvement in Organisational Behaviour)नेतृत्व संगठनात्मक व्यवहार का एक महत्वपूर्ण सुधारक है। इसका कारण यह है कि नेतृत्वकर्ता में प्रबन्धकीय योग्यता, मानवीय सम्बन्धों का ज्ञान एवं मस्तिष्क में लोचशीलता आदि गुण होते हैं एवं परिस्थितियों के अनुसार वह उनका उपयोग भी करता है।

8. प्रबन्ध को सामाजिक प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित करने में सहायक (Helpful in changing the Management in a Social Process)-कुशल नेतृत्व के माध्यम से प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इससे एक ओर कर्मचारी उपक्रम की प्रगति के लिए अपना सब कुछ त्याग करने हेतु तैयार रहते हैं, दूसरी तरफ प्रबन्धक भी उनको सहायता. सुविधाएं देने का प्रयत्न करता है। वास्तव में, नेतृत्वकर्ता औपचारिक सम्बन्धों को अनौपचारिक वातावरण में परिवर्तित कर देता है।

9. व्यावसायिक सफलता का आधार (Basis for Success of Business)-किसी व्यावसायिक संस्था की सफलता अथवा असफलता काफी सीमा तक नेतृत्व की प्रकृति पर निर्भर करती है। जहाँ एक ओर कुशल नेतृत्व व्यवसाय को प्रगति पर ले जाता है, वहाँ दूसरी ओर अकुशल नेतृत्व व्यवसाय को पत्तन अथवा असफलता की ओर ले जाता है। पीटर एफ० ड्रकर के अनुसार, ” व्यावसायिक नेता किसी व्यावसायिक उपक्रम का आधारभूत एवं दुर्लभ साधन है। अनेक व्यावसायिक उपक्रमों की असफलता का मूल कारण अकुशल नेतृत्व ही है।”

10. प्रबन्धकीय प्रभावशीलता में वृद्धि (Increases Managerial Effectiveness)-सम्पूर्ण संस्था के प्रभावकारी प्रबन्ध के लिए नेतृत्व एक प्राथमिकता है। प्रभावकारी नेतृत्व के अभाव में संस्था के संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं हो सकता है। प्रभावकारी नेतृत्व से ही संस्था के भौतिक संसाधनों एवं मानवीय प्रयासों का प्रभावकारी समन्वय करके संस्था के उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। रॉबर्ट अलबानीज (Robert Albanese) के अनुसार, “संगठनों में प्रभावकारी प्रबन्ध के लिए नेतृत्त्व एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है।”

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एक सफल नेता के गुण अथवा नेतृत्व के गुण

(QUALITIES OF SUCCESSFUL LEADER OR QUALITIES OF LEADERSHIP)

सफल नेतृत्व किसी भी उपक्रम की आधारशिला है। नेतृत्व की किस्म पर ही व्यवसाय की सफलता या असफलता निर्भर करती है। अत: एक नेता में कुछ गुणों का होना आवश्यक है। भिन्न-भिन्न विद्वानों ने एक नेता के लिए भिन्न-भिन्न गुणों का उल्लेख किया है। विभिन्न विद्वानों ने एक सफल नेता के लिए निम्नलिखित आवश्यक गुण बताए हैं

ओर्डवे वटाड (Ordway Tead) के अनुसार एक अच्छे नेता में निम्नलिखित दस गण हान चाहए-(i) शारीरिक एवं स्नायशक्ति, (i) उद्देश्य एवं दिशा की चेतनता, (iii) उत्साह, (iv) मत्राभाव एवं स्नेह, (v) तकनीकी क्षमता, (vi) बौद्धिक चातुर्य, (vii) चरित्र निष्ठा, (viii) शिक्षण क्षमता, (ix) निर्णयन क्षमता, तथा (x) विश्वसनीयता।

जॉर्ज आर० टैरी (George R. Terry) ने नेता के केवल आठ प्रमुख गुण बताये हैंशाक्त, (ii) भावनात्मक स्थिरता. (ii) मानवीय सम्बन्धों का ज्ञान, (iv) व्यक्तिगत अभिप्रेरणा, (v) सम्प्रेषण योग्यता, (vi) शिक्षण योग्यता, (vii) सामाजिक योग्यता, (viii) तकनीकी दक्षता।

हेनरी फेयोल के अनुसार एक सफल नेता में ये गुण होने चाहिएँ1. स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्षमता, 2. योग्यता एवं मानसिक सन्तुलन, 3. नैतिक गुण, 4. ज्ञान, एवं 5. प्रबन्धकीय योग्यता। निष्कर्षतः एक सफल नेता में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ

1 साहस (Courage)-एल० एफ० उर्विक के अनुसार एक सफल नेता में साहस का गुण होना चाहिए। उनके अनुसार एक नेता जिन कार्य एवं क्रियाओं को सही मानता है, उन्हें करने का नैतिक साहस होना चाहिए, निर्णय लेने एवं उन्हें लागू कराने की दृढ़ता होनी चाहिए। नेता ही सत्यता के पथ से विचलित नहीं होता है, अपने चापलूस अनुयायियों के चंगुल में भी नहीं फँसता है।

2. आत्मविश्वास (Self-confidence)-एक सफल नेता के लिए आत्म-विश्वास का गुण होना चाहिए । यह आत्मविश्वास अन्य तथ्यों के अलावा आत्मज्ञान पर आधारित होना चाहिए। एक नेता में आत्म-विश्वास है तो वह दसरों का विश्वास जीतने में सफल हो जाता है। इस सन्दर्भ में उर्विक के अनुसार, “अनुयायियों का पूर्ण विश्वास प्राप्त करने के लिए नेता में आत्म-विश्वास होना चाहिए।”

3. योग्यता एवं तकनीकी ज्ञान (Intelligence and Technical Competence)-एक नेता में अपने अनुयायियों से अधिक योग्यता एवं तकनीकी सामर्थ्य होनी चाहिए। योग्य नेता संगठन में उत्पन्न समस्याओं को समझकर उपयुक्त हल निकाल सकता है और अनुयायियों को अच्छा मार्गदर्शन भी दे सकता है। इसके अतिरिक्त नेता में पर्याप्त तकनीकी सामर्थ्य, आर्थिक, वैधानिक एवं वित्तीय आदि क्षेत्र का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।

4. सम्प्रेषण की योग्यता (Ability of Communication)-नेता का मुख्य कार्य अपने अनुयायियों एवं दूसरे व्यक्तियों को सूचनाओं, आदेशों एवं विचारों आदि का सम्प्रेषण करना होता है। अत: उसमें अनुयायियों को मुख्यतया निर्देश देने और सामान्य जनता को आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करने की योग्यता होनी चाहिए। नेता द्वारा अनुयायियों को निर्देश देना ही पर्याप्त नहीं हैं, अपितु इनका पालन कराना भी आवश्यक है।

5. स्फूर्ति एवं सहिष्णुता (Vitality and Endurance)-एक नेता में स्फूर्ति एवं सहिष्णुता होना भी आवश्यक है। यहाँ स्फूर्ति का अर्थ चैतन्यता या सजगता से है और सहिष्णुता से आशय संकटकालीन परिस्थितियों में धैर्य से कार्य करने से है। इसलिए एक नेता को सदैव भावी परिस्थितियों से सजग रहना चाहिए तथा विपत्तियों एवं कठिनाइयों में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए।

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6. मानसिक क्षमता (Mental Capacity)-एक नेता में विकसित मानसिक क्षमता का होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त नेता का मस्तिष्क इतना लोचशील एवं सक्षम भी होना चाहिए कि वह परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार अपने विचारों में परिवर्तन कर सके इसलिए मानसिक दृष्टि से विकसित खले विचार रखने वाला नेता ही द्वेषरहित परिवर्तित परिस्थितियों के अनकल सभी स्वीकार योग्य निर्णय ले सकता है।

7.प्रेरित करने की योग्यता (Ability to Inspire)-एक नेता की अपने अनुयायियों को कार्य करने के लिए प्रेरित करने की योग्यता भी होनी चाहिए। योग्य एवं अनुभवी नेता निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनुयायियों की रुचियों, विचारों, भावनाओं एवं आवश्यकताओं आदि का अध्ययन , करके और अनुयायियों को आवश्यक मार्गदर्शन प्रदान करके कार्य हेतु प्रेरित कर सकता ह। इस प्रकार एक नेता अनुयायियों पर प्रभाव रखकर उनको प्रेरित करने में सफल होता है।।

8. मानवीय पहलू के साथ व्यवहार करने की योग्यता (Ability to Deal with Human Aspects) -एक नेता में अन्य गुणों के साथ-साथ मानवीय पहल से अच्छा व्यवहार करने का योग्यता भी होनी चाहिए। उसे अनुयायियों की रुचियों, भावनाओं, उद्देश्यों, क्षमताओं एवं कमियों आदि का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए ताकि वह अपने अनुयायियों के साथ अच्छे सम्बन्धों की स्थापना कर सके।

9. उत्तरदायित्व की भावना (Sense of Responsibility)-एक अच्छे नेता में उत्तरदायित्वों के पालन करने की भावना भी होनी चाहिए, अन्यथा वह अधिकारों का दुरुपयोग करेगा। इसके अतिरिक्त अनुयायियों को दिये गये आवश्यक निर्देशों के प्रति भी सदैव उत्तरदायी होना चाहिए।

10.स्वस्थ निर्णय लेने की क्षमता (Capacity of Sound Decision-making)-एक नेता में सुदृढ़ निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए, जिसे केवल आत्मविश्वास एवं आत्म-नियन्त्रण से प्राप्त किया जा सकता है। एक नेता को किसी समस्या के विभिन्न समाधानों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करना होता है। यह चयन (निर्णय) उसे वर्तमान एवं भावी दोनों परिस्थितियों को ध्यान में रखकर करना होता है।

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नेतृत्व की शैलियाँ

(STYLES OF LEADERSHIP)

नेतृत्व की शैली से आशय अपने कर्मचारियों के समूह के प्रति नेता के व्यवहार से है। कार्य समूहों का नेतृत्व करते हुए नेता द्वारा अपनायी गई व्यवहार विधि ही नेतृत्त्व की शैली कहलाती है। विविध समयों व परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न नेताओं द्वारा विभिन्न प्रकार से नेतृत्त्व प्रदान किया जाता है। अत: नेता के दर्शन, व्यक्तित्व, अनुभव, इच्छा और सोचने के ढंग के अनुसार ही नेतृत्त्व शैली निर्धारित होती है। नेतृत्त्व शैली अनुयायियों के प्रकार तथा सम्पूर्ण संगठन के व्यवहार, अधिकार, कार्य-उन्मुखता आदि पर भी निर्भर करती है। व्यावसायिक जगत में प्रचलित नेतृत्व शैलियों के प्रमुख प्रकार निम्नांकित हैं :

1 अभिप्रेरणा शैली (Motivational Style)-एक नेता जिन विधियों द्वारा अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करता है और उन्हें कार्य हेतु अभिप्रेरित करता है, वह अभिप्रेरणात्मक शैली कहलाती है। अनुयायियों को अभिप्रेरित करने की दो शैलियाँ हैं

() धनात्मक अभिप्रेरणात्मक शैली (Positive Motivational Style)-जब नेता अपने अनुयायियों को मौद्रिक तथा अमौद्रिक प्रेरणाएँ देकर काम करने के लिए आवश्यक निर्देश देता है तो – इसे धनात्मक अभिप्रेरण शैली कहते हैं। इस शैली में अनुयायियों को वित्तीय एवं अवित्तीय लाभ प्राप्त होने के कारण वें कार्य करने के प्रति आकष्ट होते हैं. अधिक मेहनत और लगन से कार्य करते हैं। और औद्योगिक शान्ति की स्थापना में सहायता करते हैं।

() ऋणात्मक अभिप्रेरणात्मक शैली (Negative Motivational Style)-इस प्रकार के नेतृत्त्व में बिनु भय होय न प्रीति’ का सिद्धान्त लाग होता है। इस शैली में नेता डरा-धमकाकर, दण्ड का भय दिखाकर कार्य से हराने वेतन में कमी करने और अधिक समय तक काम लेन का घमका दकर कार्य हेतु अभिप्रेरित करता है। इस विधि द्वारा अनुयायियों को कुछ समय के लिए तो अवश्य आभप्रारत किया जा सकता है. सदैव के लिए नहीं। इस शैली को अपनाने से समूह प्रसन्नता, समूह शान्ति और औद्योगिक शान्ति के वातावरण का निर्माण किया जाना सम्भव नहीं हो पाता है।

नेतृत्त्व की इन दोनों शैलियों में से कौन-सी श्रेष्ठ है, इसका स्पष्ट उत्तर देना तो सम्भव नहीं। है। सामान्यतया एक नेता दोनों विधियों का मिश्रित रूप ही काम में लाता है। सामान्यतया नेता को धनात्मक अभिप्रेरण शैली को ही प्रयोग करना चाहिए परन्तु अनियन्त्रित व असामान्य वातावरण में अपवाद के रुप में ऋणात्मक अभिप्रेरण शैली को भी प्रयोग करना चाहिए और सामान्य दशा बनते ही फिर धनात्मक अभिप्रेरण शैली उपयुक्त रहती है।

(II) शक्ति शैली (Power Style)-इस शैली के अन्तर्गत नेता अपनी शक्ति का उपयोग करता है। इस प्रकार नेता शक्ति के आधार पर ही नेतृत्त्व प्रदान करता है। शक्ति के आधार पर नेतृत्त्व की निम्न तीन शैलियाँ प्रचलित हैं

() निरंकुश शैली (Autocratic Style)-नेतृत्व की इस निरंकुश अथवा सत्तावादी (Authoritarian) शैली में सभी अधिकार नेता के पास केन्द्रित रहते हैं। नेता में अपने अधिकारों के प्रति असीम मोह रहता है और वह अपने अधिकारों का विकेन्द्रीकरण करना नहीं चाहता है। वह सभी निर्णय स्वयं ही लेता है और निर्णयन प्रक्रिया में अनुयायियों को शामिल नहीं करता है। अधीनस्थों का कार्य मात्र इतना होता है कि नेता के आदेशों का पूर्णत: अनुकरण करते हुए कार्य करें। अधीनस्थों को सुझाव आदि देने का अधिकार नहीं होता है। निरंकुश नेतृत्त्व कार्यों की सफलता का श्रेय तो स्वयं लेता है और असफलता के लिए अधीनस्थों को दोषी ठहराता है। बहुत बार तो अनुयायियों को लक्ष्यों तक का ही पता नहीं होता है और वे छोटी-छोटी बातों के लिए अपने नेता पर आश्रित रहते हैं।

विशेषताएँ–(i) इसमें नेता द्वारा अधीनस्थों को आदेश प्रदान किए जाते हैं। (ii) संगठन में नेता ही एकमात्र निर्णायक भूमिका में होता है। (iii) इसमें एकल मार्गीय सन्देशवाहन होता है अर्थात् ऊपर से नीचे की ओर। (iv) इसमें निर्विवाद आज्ञाकारिता होती है। (v) इसमें नेता का कठोर पर्यवेक्षण एवं नियन्त्रण होता है। (vi) इसमें नेतृत्त्व का ‘मैं’ (I) स्वरूप होता है। (vii) इसमें नकारात्मक अभिप्रेरणाओं पर बल दिया जाता है।

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प्रकारनिरंकुश शैली कठोर (Strict), उदार (Benevolent) और चालाक (Manipulative) तीन प्रकार की हो सकती है-(i) कठोर निरंकुश शैली (Strict Autocratic Style)-ऐसे में नेता अपने अनुयायियों से अति सख्ती से पेश आता है जिससे अनुयायी असुरक्षित, नेता की सत्ता से भयभीत और किसी प्रकार की सूचना से अवगत न रहने वाले होते हैं। कठोर नेता नकारात्मक प्रभावों पर विश्वास रखता है और आदेशों का पूर्णत: व अक्षरशः पालन चाहता है। (ii) उदार निरंकुश शैली (Benevolent Autocratic Style)-इसमें नेता का अभिप्रेरणात्मक स्वरूप धनात्मक होता है जो उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए मध्यम निरंकुशता को अपनाता है। वह कर्मचारियों के हितैषी के रूप में सत्ता का प्रयोग करके उन्हें विभिन्न प्रकार के पारितोषण प्रदान करता है। (iii) चालाक निरंकश शैली (Manipulative Autocratic Style)-इसमें नेता अपने अनुयायियों को यह महसस कराने में सफल होता है कि वे निर्णयन प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं, जबकि वह निर्णय पहले से ही लिए रहता है। वह अपने स्वार्थ में सब काम करता है और अनुयायियों को दबा करके रखता है। वास्तव में, नेता अपने चालाकीपूर्ण व्यवहार से अधीनस्थ को वस्तुस्थिति जानने ही नहीं देता है।

गुण दोष दोषनिरंकुश शैली अनेक बार खासतौर से आपातकालीन दशाओं में सफल भी हुई है क्योंकि वह प्रबन्धकों को प्रभावी रूप से अभिप्रेरित करती है। यह शीघ्र निर्णयन की अनुमति करती है. क्योंकि एक ही व्यक्ति सम्पूर्ण समूह के बारे में निर्णय करता है। जब अधीनस्थ पहलपन में अनिच्छुक, कम योग्य और दायित्व से बचने वाले हों तो निरंकुश शैली सफल रहती है। फिर भी निम्न कारणों से निरंकुश शैली सफल नहीं हो पाती है

(i) इससे कर्मचारियों में असन्तोष, निम्न मनोबल, निराशा, संघर्ष और अकुशलता आती है। (ii) इससे प्रजातान्त्रिक मूल्यों का हनन होता है। (iii) इससे संगठन एक ही व्यक्ति पर अधिकाधिक निर्भर होता है अत: भावी नेतृत्त्व का विकास नहीं हो पाता है।

() जनतन्त्रात्मक शैली (Democratic Style)-नेतृत्व की इस अति आधुनिक और सर्वमान्य शैली को कर्मचारी उन्मुख व केन्द्रित शैली, परामर्शात्मक शैली व सहभागिता शैली की भी। संज्ञा प्रदान की गई है। एक सहभागिता पसन्द जनतन्त्रात्मक शैली वाला नेता निर्णयन प्रक्रिया को। विकेन्द्रित रखता है। वह अकेले निर्णय लेने की अपेक्षा अपने अनयायियों व अधीनस्थों के परामर्श व सझावों पर जोर देता है। नेतृत्व की यह शैली अधिकारों के प्रतिनिधायन पर आधारित है और इसमें नेता को अधिकार सत्ता से स्नेह नहीं होता है। वह अधिकाधिक व्यक्तियों को अधिकारों का प्रतिनिधायन करने में विश्वास रखता है। यह ‘प्रबन्ध में श्रमिक सहभागिता’ (Workers’ Participation in Management) की धारणा है जो औद्योगिक प्रजातन्त्र की स्थापना की एक पूर्व आवश्यकता होती है। इसमें प्रगतिशील प्रबन्धक कर्मचारियों की आवश्यकताओं, इच्छाओं और भावनाओं को महत्व प्रदान करते हुए उनके व्यवहार को सन्तोषजनक तथा सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हुए नेतृत्व करता है। कर्मचारी समूह अधिकाधिक दायित्व बोध करते हुए कार्य, कार्य दशाओं व कार्य परिस्थितियों में अपेक्षित परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करते हैं।

विशेषताएँ–(i) इसमें निर्णयन-प्रक्रिया में अधीनस्थों को सहभागिता प्रदान की जाती है। (ii) इसमें मानवीय मूल्यों को मान्यता दी जाती है। (iii) इसमें द्विमार्गीय सन्देशवाहन होने के कारण नेता और अनुयायियों में विचारों का आदान व प्रदान होता रहता है। (iv) इसमें नेतृत्व का ‘हम’ (We) स्वरूप होता है। (v) इसमें अनुयायियों के पहलपन और सृजनात्मकता को प्रोत्साहन दिया जाता है।

गुणदोष-जनतन्त्रात्मक शैली के प्रमुख लाभ इस प्रकार से हैं-i) इसमें कर्मचारी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं जिससे उनकी सन्तुष्टि, मनोबल, उत्पादकता व सहभागिता बढ़ती है। (ii) इससे संगठन में स्थायित्व उत्पन्न होता है और कर्मचारियों के सोचने के ढंग और नैतिक स्तर में वृद्धि होती है। (iii) यह शिकायतों और परिवेदनाओं की संख्या में कमी लाता है। (iv) यह निर्णयन-प्रक्रिया में सुधार लाता है। (v) यह नेतृत्त्व हेतु अनुयायियों के विकास पर बल देता है। फिर भी यह शैली पूर्णतया दोषमुक्त नहीं है। इसकी निम्नलिखित सीमाएँ होती हैं-(i) यह शैली जटिल व उलझनपूर्ण संगठनों के लिए उपयुक्त नहीं है। (ii) इसमें सभी कर्मचारी समान स्तर से अभिप्रेरित नहीं होने के कारण पूर्ण मनोबल से काम नहीं करते हैं। (iii) कभी-कभी चतुर और तिकड़मी अधिशासी सहभागिता और सर्वानुमति के नाम पर इस शैली का दुरुपयोग करके अपने विचारों, इच्छाओं व पसन्दगियों को कर्मचारियों पर लाद देते हैं।

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() निर्बाध शैली (Laissez-Faire or Free-Rein Style)–नेतृत्व की निर्बाधावादी या स्वतन्त्रतावादी शैली यह है कि नेतृत्व अनुयायियों के कार्यों में न्यूनतम अथवा न के बराबर हस्तक्षेप करता है। नेता समूह का नेतृत्त्व करने के स्थान पर समूह को स्वयं के भरोसे पर छोड़ देता है और शक्तियों का प्रयोग नहीं करता है। अनुयायी स्वयं लक्ष्य निर्धारित करते हैं और अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाते हुए लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करते हैं। समूह के सदस्य स्वयं ही प्रशिक्षित होते हैं और स्वयं ही अभिप्रेरित होते हैं और नेता तो केवल सम्पर्क कड़ी का कार्य करता है। नेता समूह के सदस्यों को आवश्यक सचनाएँ. साधन और अधिकार प्रदान करता है। निर्बाध शैली वाले नेताओं की यह धारणा होती है कि यदि अनुयायियों को अपनी इच्छानुसार कार्य करने दिया जाए तो वे अत्यधिक परिश्रम और लगन से कार्य करके इच्छित परिणाम प्राप्त करते हैं। नेता अपने अनुयायियों को क्रियाओं का सकारात्मक और नकारात्मक किसी भी रूप में मूल्यॉकन न करके वह मात्र मध्यस्थ और समन्वयक के रूप में कार्य करता है। इसे लगाम-रहित शैली भी कहते हैं।

विशेषताएँ (Characteristics)-निर्बाध या स्वतन्त्र शैली में निम्नलिखित विशेषताएँ होती

1 इसमें नेता/प्रबन्धक द्वारा न्यूनतम हस्तक्षेप होता है।

2. इसमें निर्णय लेने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है, चाहे वह व्यक्तिगत या सामूहिक हो।

3. नेता प्रबन्धक के सम्पर्क कडी एवं समन्वयकर्ता के रूप में कार्य करते हैं।

4. नेता केवल अनुयायियों को आवश्यक साधन, अधिकार एवं आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन देते हैं।

5. यह कर्मचारियों में सामूहिक हितों के प्रति उच्च समर्पण की भावना तथा श्रेष्ठ प्रेरणात्मक वातावरण पर अधिक जोर देती है।

6. इसमें अधिकारों का प्रत्यायोजन किया जाता है।

7. इसमें नेता अनुयायियों के कार्यों का पर्यवेक्षण तथा नियन्त्रण नहीं करता है।

गुण (Merits)-निर्बाध शैली के निम्नलिखित गुण या लाभ हैं

1 कर्मचारी पूर्ण निष्ठा, परिश्रम एवं लगन से कार्य करते हैं।

2. इस शैली में शीघ्र एवं श्रेष्ठ परिणामों की प्राप्ति होती है, क्योंकि अनुयायी/अधीनस्थ स्वयं लक्ष्य निर्धारित करते हैं, प्रशिक्षित होते हैं एवं अभिप्रेरित भी होते हैं।

3. कर्मचारियों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है।

4. उपक्रम तीव्रता से उन्नति करता है, क्योंकि प्रत्येक कर्मचारी की प्रतिभाओं का पूरा-पूरा उपयोग होता है।

5. अधीनस्थों को अपने व्यक्तित्व के विकास का पूर्ण अवसर मिलता है।

6. अधिकारियों को अधीनस्थों से पूर्ण सहयोग प्राप्त होता है।

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दोष (Demerits)-निर्बाध शैली के निम्नलिखित दोष हैं

1 इस शैली का बहुत अधिक उपयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि इसमें नेता के योगदान की उपेक्षा की जाती है।

2. इस शैली की स्वतन्त्रताओं का दुरुपयोग हो सकता है, क्योंकि दूसरे के लिए एक उचित वातावरण की आवश्यकता होती है।

3. अनुयायियों/अधीनस्थों के कार्यों में तालमेल बैठाना कठिन होता है।

4. नेता का महत्त्व कम हो जाता है, क्योंकि उसकी भूमिका केवल सम्पर्क कड़ी, मध्यस्थ एवं समन्वयकर्ता के रूप में होती है।

शक्ति शैलियों में सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व शैली का चुनाव

(SELECTING BEST LEADERSHIP STYLE AMONG POWER STYLES)

प्राय: यह प्रश्न पूछा जाता है कि नेतृत्व की शक्ति शैली (Power Style) के तीनों रूपों में से एक नेता को कौन-सी शैली (Style) अपनानी चाहिए, यह काफी सीमा तक नेता की इच्छा तथा परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वर्तमान प्रजातन्त्रीय युग में नेता को जनतन्त्रात्मक शैली को अपनाना चाहिए। इस स्वरूप को अपनाने से सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों का निर्माण किया जा सकता है, औद्योगिक प्रजातन्त्र को बढ़ावा दिया जा सकता है एवं अनुयायियों की कार्यक्षमता, उत्पादकता एवं मनोबल में वृद्धि की जा सकती है।

(III) पर्यवेक्षकीय शैली (Supervisory Style) नेतत्व की तीसरी शैली पर्यवेक्षकीय शैली है। नेतृत्त्व की इस शैली में प्रबन्धक किसी उद्देश्य विशेष को ध्यान में रखते हुए नेतृत्त्व करता है। इस प्रकार के नेतृत्त्व में नेता या तो कर्मचारियों को अधिक महत्त्व प्रदान करते हुए नेतृत्त्व करता है अथवा उत्पादन को अधिक महत्त्व प्रदान करते हुए नेतृत्त्व करता है। संक्षेप में, पर्यवेक्षकीय शैली को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

() कर्मचारी अभिमुखी शैली (Employee Oriented Supervisory Style)-इस शैली के अन्तर्गत नेता/प्रबन्धक अपने अनुयायियों अथवा अधीनस्थों को अधिक महत्त्व प्रदान करता है। उनके साथ वह मानवीय व्यवहार करता है, उनकी आवश्यकताओं को मान्यता देने के साथ-साथ उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा का भी ध्यान रखता है। वह कर्मचारियों की समस्याओं का भली प्रकार अध्ययन करके उनके समाधान में योगदान देता है। समूह के सभी सदस्यों में वह ‘टीम भावना’ भरता है एवं एकजुट होकर कार्य करने की अभिप्रेरणा पैदा करता है।

() उत्पादन अभिमुखी शैली (Production Oriented Style)-नेतृत्व की इस शैली में काम तथा उत्पादन को अधिक महत्त्व दिया जाता है। उत्पादन बढ़ाने की दृष्टि से सभी आवश्यक कार्य किये जाते हैं। यद्यपि इस शैली में कर्मचारियों को कुछ सुविधाएँ भी दी जाती हैं, लेकिन उनका उद्देश्य उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाना ही होता है। संक्षेप में, इस शैली के अन्तर्गत नेता यह विश्वास और धारणा लेकर नीति निर्धारित करता है कि उत्पादन की उन्नत विधियाँ अपनाने से, कर्मचारियों को निरन्तर कार्यरत रखने से और उन्हें कार्य करते रहने के निमित्त प्रेरित करने से उत्पादन उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है। इस प्रकार नेतृत्व की यह शैली केवल उत्पादन-अभिमुखी ही है, कर्मचारियों के मानवीय दृष्टिकोण पर इसमें कोई ध्यान नहीं दिया जाता। उपक्रम के दृष्टिकोण से तो उत्पादन-प्रधान नेतृत्त्व अच्छा होता है, परन्तु कर्मचारियों के दृष्टिकोण से यह बात सही नहीं है।

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नेतृत्व की विचारधाराएँ, सिद्धान्त अथवा उपागम

THEORIES, PRINCIPLES OR APPROACHES OF LEADERSHIP)

विभिन्न विद्वानों ने नेतृत्व के सम्बन्ध में अलग-अलग विचारधाराओं का विकास किया है। कुछ विद्वानों के अनुसार, “नेता पैदा होते हैं, बनाए नहीं जाते हैं।” जबकि आधुनिक विद्वानों का कहना है कि नेता जन्म भी लेते हैं और तैयार भी किये जाते हैं। नेतृत्व की प्रमुख विचारधाराएँ अग्रलिखित हैं

1 महान् व्यक्ति विचारधारा (The Greatman Theory) -यह विचारधारा इस दाष्टकाण पर आधारित है कि. “नेता. नेता ही होता है. प्रत्येक व्यक्ति नेता नहीं बन सकता, क्वानता ता पैदा होते हैं. बनाये नहीं जाते हैं।” नेताओं में वंशानुगत रूप से जन्मजात से एक महान नेता अपने यग के रचयिता होते हैं न कि वह युग उनका रचयिता होता है। जैसे-महात्मा गाँधी, माओ. अब्राहम लिंकन एवं सिकन्दर आदि।

इस विचारधारा के समर्थकों का कहना है कि नेतृत्व एक कला है, जिसे शिक्षा-प्रशिक्षण द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है और व्यक्तियों में जन्मजात कुशलता, महानता, कल्पना शक्ति, निर्णय शक्ति, पहलपन एवं दूरदर्शिता मिलती है जो वंशानुगत (Hereditary) चलती है। संक्षेप में, इस विचारधारा के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

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(i) कुछ लोगों को महान् नेता बनने का दैवी वरदान मिलता है। ऐसे नेता मानवता के लिए दैवीय उपहार हैं, क्योंकि इन नेताओं में दिव्य गुण एवं विशिष्टता होती है।

(ii) प्रत्येक व्यक्ति में नेता बनने एवं महानता अर्जित करने की आकांक्षा नहीं होती है।

(iii) नेता बनने, अपने अनुयायियों को प्रभावित करने एवं सफलता पाने के लिए जन्मजात, नेतृत्व-कौशल आवश्यक एवं पर्याप्त होते हैं।

(iv) नेतृत्व एवं प्रभावशीलता स्वतन्त्र चर होते हैं। परिस्थिति जन्य घटकों; जैसे—अनुयायी की प्रकृति एवं आवश्यकता, कार्य की माँग तथा सामाजिक-आर्थिक वातावरण का इन पर सामान्यतया कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

(v) यह विचारधारा इस बात को अमान्य बताती है कि किसी व्यक्ति को नेतृत्त्व करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। अत: नेतृत्व गुणों को शिक्षण-प्रशिक्षण द्वारा विकसित नहीं किया जा सकता है।

नेतृत्व की महान् व्यक्ति विचारधारा की प्रमुख आलोचनाएँ (Criticisms) निम्नलिखित हैं

(i) नेतृत्व की यह विचारधारा बहुत पुरानी है, क्योंकि नेतृत्व जन्मजात प्रतिभा नहीं है, अपितु यह एक अर्जित प्रतिभा है।

(ii) इसमें वैज्ञानिक विवेचना का अभाव है।

(iii) यह विचारधारा काल्पनिक अधिक एवं वास्तविक कम है।

(iv) आधुनिक जटिल एवं परिवर्तनशील व्यवस्था में पैदायशी नेता के खरे उतरने का सन्देह रहता है।

2. गुणमूलक विचारधारा (The Trait Theory)-ओर्डवे टीड (Ordway Tead) तथा चेस्टर आई बनार्ड (Chester I. Barnard) इस विचारधारा के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं। इन्होंने अनेक नेताओं के गुणों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला कि सफल नेताओं में कुछ विशिष्ट वैयक्तिक गुण पाए जाते हैं तथा जिन व्यक्तियों में ये विशिष्ट गुण होते हैं वे नेतृत्त्व के उच्च शिखर को प्राप्त कर लेते हैं।

विभिन्न शोध परिणामों के अनुसार एक सफल नेता में भिन्न-भिन्न गुण पाए जाते हैं, अनेक शोधकर्ताओं ने एक सफल नेता में पाए जाने वाले गुणों की सूची तैयार की है। इनमें से कुछ गुण ये हैं बद्धिमता, विद्वता, उत्तरदायित्व, सामाजिक भागीदारी, परिपक्वता, शारीरिक शक्ति, प्रशासकीय योग्यता आत्मविश्वास, उत्साह, निर्णयन क्षमता, तर्क शक्ति, सम्प्रेषण योग्यता, आत्मविश्वास आदि।

इस विचारधारा का यह भी मानना है कि उपर्युक्त सभी गुण किसी व्यक्ति में जन्म से होते हैं, इन्हें अर्जित नहीं किया जा सकता। इस प्रकार यह विचारधारा भी यह मानकर चलती है कि “नेता जसलेते हैं.बनाए नहीं जाते।” (Leader are born not made)। नेतृत्व की यह विचारधारा 1950 तक अपना विशेष महत्त्व रखती थी।

समालोचना (Evaluation)-नेतृत्त्व की गुणमूलक विचारधारा के कुछ लाभ निम्नानसार

(i) यह विचारधारा सरल एवं समझने योग्य है।

(ii) यह सभी व्यक्तिगत गुणों को महत्त्व देती है।।

(iii) इन गुणों के आधार पर अच्छे नेता (प्रबन्धक) का चनाव आसानी से किया जा सकता है।

आलोचनाएँ (Criticisms)–नेतृत्व की गुण-मूलक विचारधारा की प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) यह विचारधारा व्यक्ति के शील गुणों पर ही अधिक ध्यान देती है, परिस्थित्यात्मक घटकों (Situational Factors) की ओर कोई ध्यान नहीं देती।

(ii) यह विचारधारा यह भी स्पष्ट नहीं करती कि नेता के अनेक गणों में से कौन-से गुण अधिक महत्त्व के हैं और कौन-से कम महत्त्व के। ।

(iii) यह विचारधारा एक नेता में जो गुण होने चाहिएँ उन सभी को जन्मजात मानती है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि ये सभी जन्मजात हों, इनमें से कुछ को अर्जित भी किया जा सकता है।

 (iv) यह विचारधारा नेता के आचरण या व्यवहार को स्पष्ट तो करती है, लेकिन विश्लेषण नहीं करती।

(v) यह विचारधारा यह भी स्पष्ट नहीं करती है कि कौन-से गुण एक व्यक्ति में नेता होने के लिए आवश्यक हैं और कौन-से उसे इस पद को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।

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3. परिस्थितिमूलक विचारधारा (Situational Theory)-गुण-मूलक विचारधारा के अनुसार, “नेता पैदा होते हैं बनाए नहीं जाते।” परन्तु कुछ विद्वानों का मानना है कि नेतृत्त्व की क्षमता अर्जित की जा सकती है। नेता जन्मजात भी होते हैं एवं परिस्थितियों के अनुसार उनका निर्माण भी किया जा सकता है। इस विचारधारा के समर्थक विद्वानों का मत है कि नेता एवं प्रबन्धक में कुछ गुण; जैसे—भाषण देने की क्षमता, बुद्धिमत्ता, धैर्य, समझ, स्थायित्व एवं सत्यनिष्ठा तो होने चाहिएँ, परन्तु परीक्षा की घड़ियों में वह इन गुणों का किस प्रकार प्रयोग करता है, यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात है। दूसरे शब्दों में, परिस्थितियाँ ही किसी व्यक्ति को नेता बना देती हैं। इतिहास इसका साक्षी है। अनुकूल परिस्थितियों ने ही 1930 में जर्मनी में हिटलर को, इटली में मुसोलिनी को, अमेरिका (1930) में रूजवेल्ट को, चीन में माओ-त्से-तुंग को नेता बना दिया था। स्पष्ट है कि नेतृत्त्व की सफलता उस परिस्थिति विशेष से प्रभावित होती है, जिसमें नेता कार्य करता है। नेतृत्त्व की ‘महान्-व्यक्ति’ तथा गुणमूलक विचारधारा का मोह-भंग होने के पश्चात् विचारकों ने परिस्थितियों के अध्ययन पर ध्यान केन्द्रित किया। इस सम्बन्ध में एम० स्टॉगडिल (M. Stogdill), शार्टल, आर० जे० हाउस, एस० केर, टेननबॉम, फिडलर, विक्टर तुम, पॉल हर्से तथा ब्लेन्चार्ड आदि विचारकों ने अनेक अध्ययन किये हैं। वस्तुतः इस विचारधारा के अनुसार नेता या नेतृत्त्व की । प्रभावशीलता उन परिस्थितियों पर निर्भर करती है जिनमें नेता कार्य करता है। परिस्थितियाँ भी नेता के व्यवहार एवं शैली को प्रभावित करती हैं। यदि परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं तो उसका नेतृत्त्व प्रभावी हो जाता है, परन्तु प्रतिकूल परिस्थितियों में नेता का मार्गदर्शन व्यर्थ हो जाता है। इस विचारधारा के अनुसार नेता में परिस्थिति के साथ समायोजन करने का गुण होना अत्यन्त आवश्यक है। अत: प्रत्येक नेता को अपने वातावरण की परिस्थितियों के अनुरूप ही नेतृत्त्व शैली या प्रणाली चुननी एवं अपनानी चाहिए तभी वह सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं।

ओहियो स्टेट विश्वविद्यालयों के शोध केन्द्र ने नेतृत्त्व को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों को निम्न चार भागों में बाँटा है

(i) सांस्कृतिक वातावरण-समाज के विश्वास, मूल्य एवं मान्यताएँ।

(ii) वैयक्तिक भिन्नताएँ–अनुयायियों की अभिरुचियाँ, शारीरिक लक्षण, व्यक्तित्व, प्रेरणाएँ, आयु, शिक्षा, अनुभव आदि।

(iii) कार्य भिन्नताएँ-मानसिक स्तर, दायित्व, भूमिका, प्रशिक्षण आदि

(iv) संगठनात्मक भिन्नताएँ-आकार, स्वामित्व, क्रियाएँ, नीतियाँ, लक्ष्य।

संक्षेप में, नेतृत्व के पारिस्थितिक दृष्टिकोण (Situational Approach) की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं

(i) यह दृष्टिकोण मानता है कि “नेता दी हुई परिस्थितियों की उपज अथवा परिणाम होते

(Leaders are the product of given situations)”

दूसरे शब्दों में, “नेता परिस्थितियों से ही पैदा होता है (Leader emerges out of situations)|”

(ii) नेता, समूह तथा वातावरण के बीच निरन्तर एक अन्तर्व्यवहार चलता रहता है।

(iii) अनुयायी उस व्यक्ति को नेता मानते हैं जिसे वे अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के साधन के रूप में देखते हैं।

(iv) इस दृष्टिकोण की मान्यता है कि नेतत्व की कोई भी शैली या प्रणाली सदैव सभी पारास्थातया में उपयुक्त नहीं होती है। नेतृत्त्व की कोई भी शैली अपने आप में सर्वोत्तम नहीं होती। अतः प्रत्येक नेता को अपने वातावरण के अनुरूप ही नेतृत्त्व शैली का चयन करना चाहिए।

(v) इस दृष्टिकोण में मुख्य बल “दृष्टिगत व्यवहार”(Observed Behaviour) पर होता है, जन्मजात अथवा प्राप्त योग्यता या नेतृत्त्व की अन्त: क्षमता पर नहीं।

(vi) नेतृत्त्व की प्रकृति सदैव पारिस्थितिक होती है।

(vii) यह दृष्टिकोण बतलाता है कि प्रत्येक प्रबन्धक को बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप अपनी नेतृत्त्व शैलियों का समायोजन करना आना चाहिए। इस प्रकार शिक्षा, प्रशिक्षण एवं विकास के द्वारा व्यक्ति अपनी नेतृत्त्व भूमिका को प्रभावी बना सकता है।

(viii) भिन्न-भिन्न परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न नेतृत्व योग्यता एवं व्यवहार की माँग करती हैं।

समालोचना (Critical Analysis)-नेतृत्व की यह विचारधारा अत्यन्त यथार्थपूर्ण मानी गई है। इस विचारधारा के कुछ सकारात्मक पहलू या कुछ गुण निम्नानुसार हैं

(i) यह विचारधारा वास्तविक धरातल पर आधारित है।

(ii) यह विचारधारा परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए उचित नेतृत्त्व शैली को अपनाने का सुझाव देती है। अत: यह विचारधारा एक नेता का उचित मार्गदर्शन करती है।

(iii) यह विचारधारा नेता के गुणों का मूल्यांकन करने का आधार प्रस्तुत करती है। (iv) यह विचारधारा परिस्थिति को अपनी समग्रता (In its entirety) में देखने पर जोर देती

(v) यह विचारधारा अभिप्रेरण की प्रणाली के साथ जुड़ी है। परन्तु इस विचारधारा की कुछ कमियाँ भी हैं जो निम्नानुसार हैं

(i) यह विचारधारा इस बात को स्पष्ट नहीं करती है कि जो नेता एक परिस्थिति में योग्य है, वह दूसरी परिस्थिति में योग्य होगा अथवा नहीं।

(ii) यह विचारधारा परिस्थितियों को महत्त्वपूर्ण मानती है। परिस्थितियों के आधार पर नेता की सफलता एवं असफलता को निर्धारित किया जाता है। अतः नेता की व्यक्तिगत योग्यताओं का महत्त्व गौण हो जाता है।

(iii) यह विचारधारा प्रभावशाली नेता बनाने या विकसित करने की प्रक्रिया नहीं बताती है। अत: नेतृत्त्व विकास में इसका कोई योगदान नहीं मिलता।

परिस्थितिमूलक विचारधारा पर आधारित कुछ महत्त्वपूर्ण विचारधाराएँ

Principles Business Management Leadership

() टेनेनबॉम तथा शमिट की नेतृत्व विचारधारा

(Tannenbaum and Schmidt’s Leadership Theory)

रॉबर्ट टेनेनबॉम तथा वारेन एच० शमिट (Robert Tannenbaum and Warren H. Schmidt) ने 1958 में पारिस्थितिगत नेतृत्व सांतत्यक या पैमाना (Situational leadership continuum) विकसित किया। तत्पश्चात् सन् 1973 में उन्होंने इसमें कुछ संशोधन किया। उन्होंने इस पैमाने पर विभिन्न प्रकार के नेतृत्व व्यवहार एवं नेतृत्त्व शैलियों को स्पष्ट करने का प्रयास किया। नेतत्व सांतत्यक की अवधारणा नेतृत्व व्यवहार की अधिक उचित व्यवस्था करती है।

टेनेनबॉम तथा शमिट ने नेतृत्व सातत्यक या पैमाने (Leadership continuum) के दो चरम छोरों (Extreme ends) पर नेतृत्त्व की दो परस्पर विपरीत शैलियों को दर्शाया है। एकदम बायीं ओर के छोर पर अत्यन्त अधिकारी-केन्द्रित नेतृत्व (Highly boss-centred leadership) शैली को दर्शाया है। इसे प्रबन्धक-सत्ता प्रभाव क्षेत्र माना गया है । इसके एकदम दायीं ओर के छोर पर।

अत्यन्त अधीनस्थकेन्द्रित नेतत्व (Highly subordinate-centred leadership) 9 इसे गैर-प्रबन्धक सत्ता क्षेत्र माना गया है। इन दोनों छोरों के बीच नेतृत्त्व की अन्य अनेक शालया कल्पना की गई है तथा पाँच अन्य शैलियों को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है।

सातत्यक या पैमाने के एकदम बायीं ओर के छोर पर अत्यन्त अधिकारी-केन्द्रित नेतृत्व शैली को दर्शाने का आशय यह है कि ऐसा नेता या नायक सभी अधिकार अपने ही हाथ में केन्द्रित रखता है। ऐसा नेता निरंकुश या तानाशाह प्रवृत्ति का होता है। ऐसा नेता अपने अधीनस्थों पर सत्ता का अत्यधिक प्रयोग करता है और अधीनस्थों को कोई अधिकार नहीं देता है।

सांतत्यक या पैमाने के एकदम दायीं ओर के छोर पर अत्यन्त अधीनस्थ-केन्द्रित नेतृत्व शैली को दर्शाने से आशय है कि ऐसा नेता प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर पूर्णत: विश्वास करता है। ऐसा नेता या नायक अपने अधीनस्थों को सत्ता का पूर्ण विकेन्द्रीकरण कर शासन करता है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि इस पैमाने के दोनों ही चरम छोरों (Extreme ends) पर दो विपरीत प्रकार की चरम नेतृत्त्व शैलियों को दर्शाया गया है। ज्यों-ज्यों इस पैमाने के बायें छोर से दायें छोर की ओर बढ़ते हैं तो अधीनस्थों की स्वतन्त्रता बढ़ती जाती है तथा नेता की अधिकार सत्ता घटती जाती है। इसके विपरीत, यदि दायें छोर से बायें छोर की तरफ बढ़ते हैं तो अधीनस्थों की स्वतन्त्रता घटती हुई दिखाई देती है तथा नेता की अधिकार-सत्ता बढ़ती हुई दिखाई पड़ती है। इन दोनों ही चरम छोरों के बीच (अधिकार सत्ता के बढ़ने-घटने के कारण ही) अन्य अनेक नेतृत्त्व शैलियों की कल्पना की गई है तथा अन्य पाँच नेतृत्त्व शैलियों का स्पष्ट उल्लेख भी किया है। इस प्रकार इस सांतत्यक या पैमाने पर कुल सात नेतृत्त्व शैलियों एवं उनमें नेता के व्यवहार को दर्शाया गया है जिनका संक्षिप्त विवरण (बायीं ओर से दायीं ओर जाने की स्थिति में) निम्नानुसार है

(i) प्रबन्धक निर्णय लेता है तथा घोषणा करता है—एकदम बायीं ओर के चरम छोर की स्थिति में नेता स्वयं निर्णय लेता है तथा अधीनस्थों को उन निर्णयों से सूचित करता है। अधीनस्थ उन सभी निर्णयों को यथावत् क्रियान्वित करने हेतु बाध्य होते हैं, क्योंकि नेता पूर्णत: निरंकुश एवं तानाशाह है।

(ii) प्रबन्धक निर्णयों को स्वीकार करवाता है—नेतृत्त्व की दूसरी स्थिति में नेता (प्रबन्धक) स्वयं निर्णय लेता है तथा अधीनस्थों से उन निर्णयों को स्वीकार करवाता है या उन्हें स्वीकार करने हेतु बाध्य करता है।

(iii) प्रबन्धक विचार प्रस्तुत करता है तथा प्रश्न आमन्त्रित करता है-इस प्रकार की नेतत्त्व शैली में नेता (प्रबन्धक) निर्णय कर लेते हैं तथा वे उनके सम्बन्ध में अधीनस्थों से प्रश्न आमन्त्रित करते हैं। दूसरे शब्दों में नेता निर्णय लेने के बाद अधीनस्थों से प्रश्न या सन्देह आमन्त्रित करता है। नेता उन प्रश्नों या सन्देह का समुचित उत्तर या समाधान देता है और अधीनस्थों को उन निर्णयों को क्रियान्वित करना होता है।

(iv) प्रबन्धक संशोधनयोग्य अन्तरिम निर्णय (tentative decisions) प्रस्तुत करता है-इस स्थिति में नेता (प्रबन्धक) कोई निर्णय इस सोच के साथ ले लेता है कि आवश्यकता पड़ने पर उसमें संशोधन कर लिया जायेगा। ऐसे नेता अधीनस्थों के समक्ष अपना निर्णय प्रस्तुत करते हैं। तथा अधीनस्थों से उस पर उनके विचार आमन्त्रित करता है। तत्पश्चात् उन विचारों को ध्यान में रखकर नेता उस निर्णय की समीक्षा करता है तथा आवश्यकता हो तो उसमें आवश्यक संशोधन कर लेता है। .

(v) प्रबन्धक समस्याएँ रखता है, अधीनस्थों से सुझाव माँगता है तथा निर्णय लेता ‘ है-बायें छोर से दायें छोर की ओर बढ़ते समय नेतृत्त्व की शैली ऐसी दिखायी है जिसमें नेता

(प्रबन्धक) अपनी समस्याएँ अधीनस्थों के समक्ष रखकर उनसे उसके समाधान हेतु सुझाव माँगता है। तत्पश्चात् वह नेता उन सुझावों को ध्यान में रखकर स्वयं उचित निर्णय कर लेता है।

(vi) प्रबन्धक द्वारा निर्णय की सीमाएँ निर्धारित की जाती हैं तथा अधीनस्थ निर्णय लेते है-इस प्रकार की नेतृत्त्व शैली में नेता (प्रबन्धक) निर्णय की सीमाएँ (नीतियाँ, नियम बजट आदि) ‘अधीनस्थों को स्पष्ट कर देते हैं तथा अधीनस्थों को निर्णय करने हेतु कहा जाता है। तब अधीनस्थ उन सीमाओं के भीतर स्वयं निर्णय करते हैं। इस प्रकार इस शैली के नेतृत्व में प्रजातान्त्रिक मूल्यों की छाप दिखने लगती है।

(vii) प्रबन्धक एवं अधीनस्थ संयुक्त रूप से निर्णय करते हैं-सांतत्यक के एकदम चरम दायो सीमा तक पहुँचने पर एक ऐसी नेतत्व शैली प्रकट होती है जिसमें नेता (प्रबन्धक) द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर नेता एवं अधीनस्थ दोनों मिलकर संयुक्त रूप से निर्णय करते हैं।

इस प्रकार टेनेनबॉम तथा शमिट ने नेतत्त्व की इन सात शैलियों की स्पष्ट कल्पना की और उन्हें सांतत्यक पर दर्शाया. किन्त उन्होंने कभी भी यह नहीं सझाया कि इनमें से कौन-सी नेतृत्त्व शैली अपनानी चाहिए। इसके विपरीत. उन्होंने यही कहा कि नेतृत्व की कोई भी शैली सदैव अच्छी या बुरी नहीं होती है। नेतत्त्व की कौन-सी शैली अच्छी या बुरी है, यह उस समय की परिस्थितियाँ ही निर्धारित करती हैं। अत: उनका सझाव है कि नेतत्त्व शैली का चयन किसी समय विशेष पर विद्यमान परिस्थितियों एवं शक्तियों (Situations and forces) को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए। उनके अनुसार सामान्यत: निम्नांकित परिस्थितियों या शक्तियों के प्रभाव को ध्यान में रखकर किसी विशिष्ट नेतृत्व शैली का चयन करना चाहिए

1 नेता के व्यक्तित्व में व्याप्त शक्तियाँ-नेता को अपने व्यक्तित्व में व्याप्त या कार्यरत शक्तियों (Forces) को ध्यान में रखकर नेतृत्व शैली का चयन करना चाहिए। उदाहरणार्थ : नेता की शिक्षा, ज्ञान, अनुभव, नैतिक मूल्य, अधीनस्थों पर भरोसा करने की आदत आदि नेता में व्याप्त शक्तियाँ हैं। नेता को अपनी इन शक्तियों को ध्यान में रखकर नेतृत्व शैली का चयन करना चाहिए।

2. अधीनस्थों में व्याप्त शक्तियाँ अधीनस्थों में भी कुछ शक्तियाँ व्याप्त होती हैं; जैसे—उनकी पृष्ठभूमि, शिक्षा, अनुभव, नैतिक-सामाजिक मूल्य, उत्तरदायित्व स्वीकार करने की इच्छा आदि। नेता का इन्हें भी ध्यान में रखकर नेतृत्त्व शैली का चयन करना चाहिए।

3. परिस्थिति में व्याप्त शक्तियाँ-किसी समय विशेष की परिस्थिति में भी कुछ शक्तियाँ व्याप्त होती हैं एवं सक्रिय रहती हैं। उदाहरणार्थ, संस्था का आकार एवं जटिलता; संस्था के लक्ष्य एवं उसकी संगठन संरचना संस्था के सामाजिक-नैतिक मूल्य; संस्था की परम्पराएँ; संस्था के कार्य की प्रकृति एवं उसमें प्रयुक्त प्रौद्योगिकी आदि। इन सबको भी नेतत्व शैली के चयन में ध्यान रखना चाहिए।

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4. संगठनात्मक एवं सामाजिकीय वातावरण की शक्तियाँ टेनेनबॉम तथा शमिट ने। सन् 1973 में जब अपने नेतृत्व सांतत्यक या पैमाने का संशोधन किया तो उन्होंने सर्वाधिक महत्त्व संगठनात्मक वातावरण एवं सामाजिकीय वातावरण को दिया। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि ये दोनों वातावरण भी नेतृत्व की शैली को गम्भीर रूप से प्रभावित करते हैं। इन वातावरण के घटकों में इन्होंने उपभोक्ता आन्दोलन, श्रम आन्दोलन आदि को सम्मिलित किया और स्वीकार किया। कि ये नेतृत्त्व की शैली को गम्भीर रूप से प्रभावित करते हैं। ये वातावरण की सभी शक्तिया। नेता/प्रबन्धकों के अधिकारों को चुनौती देते हैं तथा उन्हें सही प्रकार से निर्णय करने तथा अधीनस्थों के साथ सही ढंग से व्यवहार करने हेतु बाध्य करते हैं। ।

इस प्रकार स्पष्ट है कि टेनेनबॉम तथा शमिट ने किसी नेतृत्व शैली को अपनाने का सुझाव नहीं दिया, बल्कि परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त नेतृत्व शैली अपनाने पर बल दिया।

() फीडलर की आकस्मिकता विचारधारा (Contingency Theory)-नेतृत्व की परिस्थिति मूलक विचारधारा से यह निष्कर्ष निकलता है कि नेतृत्व की कोई भी शैली (Style) सभी परिस्थितियों में सफल नहीं हो सकती। इस दृष्टिकोण के आधार पर वाशिंगटन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फीडलर (Feidler) ने आकस्मिकता की विचारधारा का सुझाव दिया। फीडलर के अनुसार नेतृत्व की प्रभावशीलता न केवल नेता के व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर करती है, बल्कि संगठन में नेतृत्व के बने वातावरण पर भी बहुत कुछ निर्भर करती है। समुदाय की कार्य सफलता नेतृत्त्व शैली और नेता के लिए सामूहिक परिस्थिति के अनुकूल स्थिति के उचित मिलान पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में नेतृत्व एक प्रक्रिया है जिसमें नेता के प्रभाव का प्रयोग करने की योग्यता, सामूहिक कार्यगत परिस्थितियों में निर्भर होता है तथा नेता की अपनी शैली, व्यक्तिगत और दृष्टि समूह को क्रियाशील रखती है। इस दृष्टि से हमें नेता की शैली और विभिन्न स्थिति की जानकारी होनी चाहिए।

फीडलर ने नेतृत्व की शैलियों को दो वर्गों में बाँटा है-उत्पादन-प्रेरित शैली तथा मानवीय सम्बन्ध प्रेरित शैली। उत्पादन प्रेरित शैली के अन्तर्गत अधीनस्थों के काम का संरक्षण व निर्देशन इस प्रकार से किया जाता है जिससे कार्य तथा उत्पादन को अधिक महत्त्व मिलता है, जबकि मानवीय सम्बन्ध प्रेरित शैली में मानवीय व्यवहार पर अधिक ध्यान दिया जाता है। प्रबन्धक कर्मचारियों को अभिप्रेरित करता है तथा उनका सहयोग और विश्वास प्राप्त करता है।

फीडलर ने नेतृत्व की परिस्थितियों को प्रभावित करने वाले निम्न तीन तत्त्व बताए हैं

1 पद की शक्ति (Position Power)-पद की शक्ति नेता को उस पद पर आसीन होने के कारण संगठनात्मक अधिकार के अन्तर्गत प्राप्त होती है। इस शक्ति के आधार पर एक नेता अपने अनुयायियों को निश्चित निर्देशों के अनुसार कार्य करने के लिए विवश एवं बाध्य कर सकता है।

2. कार्य संरचना (Task Structure)-फीडलर के अनुसार कार्य संरचना सुनिश्चित अथवा अनिश्चित हो सकती है। सुनिश्चित कार्य संरचना में कार्य का वर्गीकरण व विभाजन स्पष्ट तथा आसानी से होता है, जबकि अनिश्चित कार्य संरचना में कार्य का वर्गीकरण स्पष्ट नहीं होता, जिसके कारण किसी निश्चित व्यक्ति को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

5. नेतासदस्य सम्बन्ध (Leader-member Relations)-नेता-सदस्य सम्बन्ध का आशय यह है कि नेता को अनुयायियों द्वारा किस सीमा तक स्वीकार किया जाता है तथा वे नेता के प्रति कितनी निष्ठा रखते हैं। यह तत्त्व परिस्थिति को प्रभावित करता है और कार्यशैली पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

एक नेता के लिए परिस्थिति तब अनुकूल होती है जब ये तीनों घटक उच्च सीमा में होते हैं अर्थात् जब नेता व अनुयायियों के सम्बन्ध अच्छे होते हैं, कार्य-संरचना पूर्णत: परिभाषित होती है तथा जब नेता की पद सत्ता सुदृढ़ होती है। इसके विपरीत जब ये तीनों घटक निम्न (Low) होते हैं तो नेता के लिए परिस्थिति अनुकूल नहीं होती है।

संक्षेप में, यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि सफल नेतृत्त्व तीन घटकों-नेता, स्थिति तथा अनुयायी के सुमेल (Match) पर निर्भर करता है। फीडलर के अनुसार कोई प्रबन्धक इस सुमेल को निम्न प्रकार बना सकता है

अपनी नेतृत्व शैली को समझ कर, GD परिस्थिति का विश्लेषण करके, तथा dil) अपनी नेतृत्त्व शैली को परिस्थिति के अनुरूप ढाल कर

(अ) अपनी शैली को परिस्थिति में जोड़कर; अथवा

(ब) परिस्थिति में अपनी शैली के अनरूप परिवर्तन करके।

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5. अनुयायी विचारधारा (The Follower Theory) नेतृत्त्व की अनुयायी विचारधारा के प्रतिपादक एफ० एच० सेन्सफोर्ड हैं। आपने नेतत्त्व की गुण-मूलक एवं परिस्थिति मूलक विचारधाराआ क दोषों को दर करने हेत इस विचारधारा का विकास किया। इनका मान्यता हाक नेता के लिए अनुयायियों का होना आवश्यक है और अनुयायियों के बिना इनका अस्तित्व भी नहीं होता है। जो व्यक्ति अनुयायियों की आवश्यकताओं (जीवन-निर्वाह, सुरक्षात्मक, सामाजिक, अहकारी एवं आत्मविश्वास आदि) की पूर्ति में सर्वाधिक रुचि लेता है, उनको सहयोग करता है, अनुयायी उसी व्यक्ति को अपना नेता मान लेते हैं, लेकिन नेतृत्त्व की यह विचारधारा व्यावसायिक प्रबन्ध के क्षेत्र में लागू नहीं हो सकती, क्योंकि व्यावसायिक उपक्रमों के अन्तर्गत प्रबन्धक के रूप में नेता तो चुनकर आता है। हाँ, यह बात जरूर है कि बाद में वह अपने व्यवहार से कर्मचारियों का अधिकारी ही न बना रहकर उनका सच्चा नेता एवं हितैषी भी बन जाता है। ___संक्षेप में, किसी नेता की नेतृत्त्व क्षमता के मूल्यांकन का आधार उसके अनुयायियों के आचरण का अध्ययन एवं विश्लेषण होना चाहिए तभी वह उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सफल होगा।

6. पथलक्ष्य नेतृत्व विचारधारा (Path-Goal Leadership Theory)-इस नेतृत्त्व विचारधारा का विकास रॉबर्ट हाउस तथा मिचेल (Roburt House and Mitchell) ने किया है।

पथ-लक्ष्य नेतृत्व विचारधारा का सार यह है कि यह नेता का कार्य होता है कि वह अपने अनुयायियों की उनके लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करे तथा यह सुनिश्चित करने में आवश्यक निर्देशन एवं समर्थन दे कि उनके लक्ष्य संगठन के समग्र उद्देश्यों के अनुरूप ही हैं। वस्तुतः यह विचारधारा बताती है कि प्रभावशाली नेता अपने अनुयायियों को अपने लक्ष्य सहायक होते हैं तथा उनके मार्ग में आने वाली कठिनाइयों व अवरोधों को दूर करते हैं। यह विचारधारा अधीनस्थों के अभिप्रेरण, सन्तुष्टि एवं निष्पादन पर नेता व्यवहार के प्रभाव को स्पष्ट करती है।

इस विचारधारा के अनुसार एक नेता का व्यवहार उसके अधीनस्थों को उसी सीमा तक स्वीकार्य होता है जहाँ तक वे उस व्यवहार को अपनी सन्तुष्टि के तत्काल स्रोत अथवा भावी सन्तुष्टि के एक साधन के रूप में देखते हैं। दूसरे शब्दों में, एक नेता का व्यवहार उसी सीमा तक अभिप्रेरणात्मक (Motivational) होता है

() जहाँ तक यह अधीनस्थों की आवश्यकता सन्तुष्टि को प्रभावी निष्पादन पर अवलम्बित (Contingent) करता है, तथा

() जहाँ तक यह प्रभावी निष्पादन के लिए आवश्यक शिक्षण, निर्देशन, सहायता एवं पुरस्कार प्रदान करता है।

इस सम्बन्ध में रॉबर्ट हाउस ने निम्नलिखित चार प्रकार के नेतृत्व व्यवहार (शैलियों) का निर्धारण किया था

(i) निर्देशात्मक नेतृत्व (Directive Leadership)—इसमें नेता कर्मचारियों को बताता है कि उन्हें क्या कार्य करना है, उनके कार्य का समय, दंग, विशिष्ट निर्देश, अपेक्षित परिणाम आदि का निर्धारण करता है। इसमें अधीनस्थों को कोई सहभागिता नहीं दी जाती है।

(ii) समर्थनकारी नेतृत्व (Supportive Leadership)-इस नेतृत्त्व व्यवहार में नेता मित्रवत, मिलनसार एवं पहुँच-योग्य (Approachable) होता है तथा मानवीय सम्बन्धों पर ध्यान देता है।

(iii) सहभागी नेतृत्व (Participative Leadership)-इसमें नेता अधीनस्थों से सुझाव माँगता है तथा उनका उपयोग करता है, किन्तु फिर भी वह निर्णय स्वयं ही लेता है।

 (iv) उपलब्धिअभिमती नेतत्व (Achievement-Oriented Leadership) अधीनस्थों के लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करता है तथा इनकी प्राप्ति तथा श्रेष्ठ निष्पादन हतु वह अधीनस्थों में पूर्ण विश्वास व्यक्त करता है।

यह विचारधारा बतलाती है कि उपर्यक्त विभिन्न नेतत्व शैलियों को एक ही नेता विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग में ला सकता है। अपनी शैली का चयन करने के पूर्व वह दो पारिस्थितिक घटकों (अ) अधीनस्थों के वैयक्तिक लक्षण, तथा (ब) वातावरणीय दबाव एवं मांगों पर विचार कर सकता है।

उपर्युक्त पारिस्थितिक घटकों के अधीन चार नेतत्व शैलियों में से किसी एक का चयन करके नेता अधीनस्थों के अवबोध को प्रभावित करते हुए उन्हें अभिप्रेरित करता है जो अन्तत: भूमिका स्पष्टता, लक्ष्य प्रत्याशा, सन्तुष्टि एवं निष्पादन को जन्म देता है।

इस प्रक्रिया को नेता निम्न प्रकार पूरा करता है(i) परिणामों के लिए अधीनस्थों की आवश्यकताओं को पहचानना तथा उन्हें जाग्रत करना। (ii) कार्य-लक्ष्य प्राप्ति के लिए अधीनस्थों को सहयोग देना। (iii) शिक्षण एवं निर्देशन के द्वारा लक्ष्यों तक पहुँचने के पथ को सुगम करना। (iv) अपनी प्रत्याशाओं के स्पष्टीकरण में अधीनस्थों की सहायता करना। (v) निराशा पैदा करने वाले अवरोधों को दूर करना। (vi) प्रभावशाली निष्पादन के अधीन वैयक्तिक सन्तुष्टि के अवसरों में वृद्धि करना।

उपर्युक्त कार्यों को करके नेता अधीनस्थों के लक्ष्यों तक पहुँचने के मार्ग को सुगम बनाता है, लेकिन इस पथ-लक्ष्य सुविधाकरण की प्रक्रिया में नेता पारिस्थितिक घटकों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त नेतृत्व शैली का चयन करता है।

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7. व्यवहारवादी विचारधारा (The Behavioural Theory)-नेतृत्व की इस विचारधारा के प्रवर्तक रे० ए० किलियन (Ray A. Killian) हैं। यह विचारधारा इस मान्यता पर आधारित है कि नेतृत्व का अध्ययन, ‘नेता करता है’ के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि ‘नेता क्या है’ के आधार पर। अन्य शब्दों में इस विचारधारा का सम्बन्ध नेता के व्यवहार से है न कि व्यक्तिगत गुणों से।

रे० ए० किलियन के अनुसार, “एक नेता मूल रूप से चाहे निर्णय लेने वाला हो, समस्याओं का समाधान करने वाला हो, परामर्शदाता हो, सूचना प्रदान करने वाला हो या नियोजक हो उसे अपने अनुयायियों के समक्ष आदर्श आचरण प्रस्तुत करना चाहिए। आदर्श आचरण अर्थात् अच्छे व्यवहार के अभाव में वह कभी भी सफल नेता नहीं बन सकता। इस प्रकार यह विचारधारा नेता के आचरण या व्यवहार को सबसे अधिक महत्त्व देती है। यदि नेता स्वयं अनुशासन में नहीं रहता और वह अपने अनुयायियों से अनुशासन में रहने की आशा करता है तो उसकी यह आशा व्यर्थ है। उदाहरणार्थ, यदि एक व्यक्ति स्वयं शराबी है और वह अपने अनुयायियों से यह आशा करे कि वे शराब का सेवन न करें तो उसकी यह आशा निराधार होगी।” व्यवहारवादी विचारधारा के अन्तर्गत लिकर्ट तथा ब्लैके एवं मॉटन की नेतृत्व विचारधाराएँ उल्लेखनीय हैं।

8. लिकर्ट की प्रबन्ध प्रणाली (Management System of Likert)-रैन्सिस लिकर्ट (Renisis Likert) ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मिशीगन विश्वविद्यालय में तीन दशकों तक नेतृत्व शैलियों पर व्यापक शोध अध्ययन किए। इन शोध अध्ययनों के आधार पर उन्होंने नेतृत्व की चार शैलियों/प्रणालियों का विकास किया। इन चारों शैलियों में नेताओं के व्यवहार के विभिन्न । पहलुओं की जानकारी मिल जाती है। उनके द्वारा विकसित चारों नेतृत्व प्रणालियाँ/शैलियाँ निम्नानुसार।

प्रणाली 1 : शोषणकारी-निरंकुश नेतृत्व। प्रणाली 2 : हितकारी या शुभ चिन्तक निरंकुश नेतृत्व। प्रणाली 3 : परामर्शदायी नेतृत्व। प्रणाली 4 : सहभागी सामूहिक नेतृत्व।

प्रणाली 1 : शोषणकारीनिरंकश नेतृत्व (System 1 : Exploitative-authoritative Leadership)–लिकर्ट ने नेतृत्व की प्रथम प्रणाली या शैली को शोषणकारी-निरंकुश या अधिनायकवादी नेतृत्व कहकर पुकारा है। ऐसे नेता या नायक अत्यधिक निरंकुश होते हैं। उन्हें अपने अधीनस्थों पर बहुत ही कम भरोसा एवं विश्वास होता है। वे अपने अधीनस्थों से कार्य करवाने हेतु भय एवं दण्ड का सहारा लेते हैं। वे कभी-कभी ही अपने अधीनस्थों की प्रशंसा करते हैं या उन्हें पुरस्कार देते हैं। वे सभी निर्णय स्वयं ही लेते हैं। प्रशासन व्यवस्था में सन्देशवाहन की प्रकृति ऊपर से नीचे की ओर अत्यधिक औपचारिक होती है तथा वे कभी-कभी ही अधीनस्थों की बात सुन लेते हैं। फलतः ऐसे नेताओं/प्रबन्धकों के नेतृत्त्व में उत्पादकता बहुत ही सामान्य स्तर की होती है।

प्रणाली 2: हितकारी या शुभचिन्तक निरंकुश नेतृत्व (System 2 : Benevolent Autocratic Leadership)-इस प्रणाली में भी प्रबन्धक मुख्यत: निरकुंश ही होता है। प्रबन्धक अपने अधीनस्थों पर केवल उतना ही विश्वास करता है जितना एक मालिक अपने नौकर पर करता है। इस शैली को अपनाने वाले प्रबन्धक सभी निर्णय स्वयं ही करते हैं, किन्तु अधीनस्थों को उन निर्णयों के क्रियान्वयन में थोडी स्वतन्त्रता दी जाती है। ऐसे नेता अपने अधीनस्थों को आवश्यकतानुसार पुरस्कार या दण्ड देकर अथवा भय दिखाकर कार्य करने हेतु अभिप्रेरित करते हैं। ऐसे नेता अपने अधीनस्थों से कभी-कभी कुछ सुझाव भी माँगते हैं तथा उन्हें अपनी बात कहने का अवसर भी देते हैं। ऐसे नेतृत्व के अधीन उत्पादकता सामान्यतः मध्यम प्रकार की ही देखी जाती है।

प्रणाली 3: परामर्शकारी नेतृत्व (System 3 : Consultative Leadership)-इस प्रकार की नेतृत्व शैली अपनाने वाले नेता/प्रबन्धक अपने अधीनस्थों पर थोड़ा विश्वास एवं भरोसा अवश्य करते हैं, परन्तु पूर्ण विश्वास नहीं करते हैं। ऐसे नेता नीतिगत निर्णय करने से पूर्व अपने अधीनस्थों से परामर्श करते हैं, तत्पश्चात् वे स्वयं ऐसे निर्णय करते हैं, किन्तु दैनिक कार्यों के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय करने हेतु स्वतन्त्र होते हैं। नेता समय-समय पर महत्त्वपूर्ण मामलों पर अधीनस्थों से सलाह करते रहते हैं, तथा सुझाव माँगते रहते हैं। इस प्रकार ऐसे नेतृत्त्व के अधीन संचार की द्वि-मार्गी व्यवस्था बन जाती है। ऐसे प्रबन्धक अपने अधीनस्थों को कार्य हेतु अभिप्रेरित करने के लिए पुरस्कार देते हैं किन्तु कभी-कभार दण्ड भी देते हैं या भय दिखाते हैं। ऐसे नेताओं के अधीन उत्पादकता औसत स्तर की होती है।

प्रणाली 4 : सहभागी समूह नेतृत्व (System 4 : Participative Group Leadership)नेतृत्त्व की इस प्रणाली/शैली को अपनाने वाले प्रबन्धक/नेता अपने अधीनस्थों में पूर्ण विश्वास एवं भरोसा रखते हैं। वे अपनी संस्था के सभी सदस्यों के बीच संचार की खुली-द्वार नीति (Open-door communication policy) अपनाते हैं। फलत: संस्था के सभी अधिकारी एवं अधीनस्थ आपस में व्यापक रूप से संदेशों एवं विचारों का आदान-प्रदान करते हैं। ऐसा नेता अपने अधीनस्थों के विचारों एवं सुझावों को प्राप्त करने एवं उपयोग करने पर विश्वास करते हैं।

ऐसे नेतृत्व के अधीन संस्था के सभी सदस्य संस्था के उद्देश्यों एवं नीतियों के निर्धारण में भूमिका निभाते हैं। वे अपने कार्य के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय करते हैं। ऐसा नेता अपने अधीनस्थों के कार्यों एवं परिणामों का अनेक आधारों पर मूल्यांकन कर उचित पुरस्कार (Reward) देते हैं। _ निष्कर्ष : लिकर्ट ने अपने निष्कर्ष में प्रणाली 4 : सहभागी समूह नेतृत्व का प्रबल समर्थन किया है। लिकर्ट ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि सहभागी समूह नेतृत्त्व को अपनाने वाले प्रबन्धक ही सर्वाधिक प्रभावशाली नेतृत्त्व प्रदान करने में सफल हुए हैं और इस प्रणाली को लागू करने वाले उपक्रम लक्ष्य निर्धारित करने तथा उन्हें प्राप्त करने में अन्य की तुलना में अधिक प्रभावपूर्ण एवं सफल सिद्ध हुए हैं। इस प्रणाली में सहयोगात्मक सम्बन्ध उत्पादकता तथा कार्य सन्तष्टि बढ़ाने में सहायक होते हैं। इनसे प्रत्येक कर्मचारी को अपने महत्त्व तथा आदर का अहसास होता है। इस प्रणाली में कर्मचारियों को आत्म-विकास का अवसर मिलता है।

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नेताओं के प्रकार

(TYPES OF LEADERS)

प्रबन्ध के विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न आधारों पर नेताओं का वर्गीकरण किया हा सद में, नेताओं के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं

1.निरंकुश नेता (Authoritarian or Autocratic Leader) इसे तानाशाह नेता भी कहते हैं। यह नेता सभी अधिकारों को अपने पास केन्द्रित रखता है तथा सारे निर्णय स्वयं ही लेता है। यह अनुयायियों को निर्णयन प्रक्रिया में शामिल नहीं करता. वरन उन्हें निर्णयों के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक निर्देश देता है। यह अपने अनुयायियों को लक्ष्यों की जानकारी भी नहीं देता है, अत: वे पूर्णत: नेता पर आश्रित रहते हैं। निरंकुश नेता यह मानकर चलता है कि व्यक्ति स्वभाव से हा। आलसी होते हैं तथा उत्तरदायित्वों से बचना चाहते हैं।

2. जनतन्त्रीय नेता (Democratic Leader) यह नेता लक्ष्यों व नीतियों के निर्धारिण में अपने कर्मचारियों को शामिल करता है। यह अधिकांश निर्णय अपने कर्मचारियों के साथ विचार-विमर्श करके लेता है। यह समस्त समूह के सुझाव आमन्त्रित करके ही कार्य-पद्धतियों का निर्धारण करता

3. निर्वाधवादी नेता (Laissez-faire Leader)-निर्बाधकारी नेता अनुयायियों को पूर्ण कार्य स्वतन्त्रता देने में विश्वास करता है। वह निर्देशन में ज्यादा उत्सुक नहीं होता तथा अनुयायियों को अपने भरोसे पर छोड़ देता है। यह अनुयायियों को स्वयं अपने लक्ष्य निर्धारित करने तथा आवश्यक निर्णय लेने की स्वतन्त्रता देता है। नेता उन्हें आवश्यक अधिकार एवं सूचनायें प्रदान करता है। वह केवल एक सम्पर्क-कड़ी का कार्य करता है। वह अनुयायियों की क्रियाओं का मूल्याँकन नहीं करता है। इस नेता की यह धारणा होती है कि कार्य स्वतन्त्रता से कर्मचारियों में दायित्व-बोध उत्पन्न होता है तथा अच्छे परिणामों की प्राप्ति होती है।

4. व्यक्तिगत नेता (Personal Leader)—यह नेता व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर नेतृत्त्व की स्थापना करता है। यह नेता व्यक्तिगत रूप से अनुयायियों को निर्देश देता है तथा व्यक्तिगत प्रभाव से ही उनका पालन करवाता है।

4. अव्यक्तिगत नेता (Impersonal Leader)-इस प्रकार का नेतृत्त्व वहाँ स्थापित किया जाता है जहाँ कर्मचारी अधिक संख्या में कार्य करते हैं तथा नेता के लिए यह सम्भव नहीं होता है कि वह प्रत्येक कर्मचारी से व्यक्तिगत सम्पर्क कर सके। ऐसा नेता अधिक व्यस्त होता है, अत: वह अव्यक्तिगत रूप से ही अपने नेतृत्त्व की स्थापना करता है।

5. क्रियात्मक नेता (Functional Leader)-क्रियात्मक नेता अपनी योग्यता एवं ज्ञान के आधार पर अपने अनुयायियों का विश्वास प्राप्त कर लेता है। वह जटिल विषयों के सम्बन्ध में अपने अनुयायियों को आवश्यक निर्देश देता है। वह अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर जटिल परिस्थितियों में भी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अनुयायियों को आवश्यक परामर्श देता है।

6. औपचारिक अथवा संस्थात्मक नेता (Formal or Institutional Leader)-औपचारिक नेता अपने पद के प्रभाव के कारण उच्च स्थिति में होता है। उच्च पद के कारण ही उसके पास आदेश देने, महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने, आज्ञा पालन करवाने की असीम शक्ति होती है। ये नेता पद के कारण ही सम्मान प्राप्त करते हैं। इनके अपने अनुयायियों के साथ औपचारिक सम्बन्ध होते हैं।

7. अनौपचारिक नेता (Informal Leader)—यह समूह का स्वाभाविक एवं वास्तविक नेता होता है। कुछ व्यक्ति संगठन में, यद्यपि उनके पास कोई औपचारिक पद या सत्ता नहीं होती है, अपने ज्ञान, व्यक्तिगत सम्बन्धों, सन्दर्भो अथवा अन्य असाधारण प्रतिभा के कारण अपना नेतृत्व कायम कर लेते हैं।

8. बौद्धिक नेता (Intellectual Leader)-बौद्धिक नेता वे नेता होते हैं जो अपनी बुद्धि, ज्ञान, आत्मविश्वास, धैर्य, व्यवहार, आदि के द्वारा अपने अनुयायियों का स्वैच्छिक सहयोग, विश्वास, वफादारी एवं निर्देशों का स्वपालन प्राप्त करने में सफल होते हैं।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. नेतृत्व से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं एवं शैलियों की विवेचना कीजिये।

What do you understand by leadership ? Discuss its characteristics and styles.

प्रश्न 2. “नेतत्व से आशय अगुआई करना, संचालन करना, आदेश देना एवं अन्य व्यक्तियों से श्रेष्ठ होना तथा लब्ध-प्रतिष्ठित होना है।” व्याख्या कीजिये तथा नेतृत्व की विभिन्न शैलियों की विवेचना कीजिये।

“Leading means to lead, to direct, to hold commnad and to excel over others and to be in prominence.” Explain and discuss the various styles of leadership.

प्रश्न 3. नेतृत्व की प्रमुख विचारधाराओं (सिद्धान्तों) का सविस्तार वर्णन कीजिये।

Discuss in detail the main theories of Leadership.

प्रश्न 4. नेतृत्व की अवधारणा क्या है? इसके विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।

What is the concept of leadership ? Explain its different theories.

प्रश्न 5.व्यवसाय में नेतृत्व से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छे व्यावसायिक नेता में क्या गुण होने चाहिये।

What do you understand by leadership in business? What should be the qualities of a good business leader ?

प्रश्न 6. नेतृत्व से आप क्या समझते हैं ? नेतृत्व के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिये।

What do you mean by leadership ? Describe briefly the various leadership styles.

प्रश्न 7. नेतृत्व को परिभाषित कीजिये। प्रबन्ध में इसका क्या महत्व है ? एक अच्छे नेता के गुणों की व्याख्या कीजिये।

Define Leadership. What is its importance in management ? Describe the merits of a good leader.

प्रश्न 8. नेतृत्व से आप क्या समझते हैं ? नेतृत्व के कार्यों का वर्णन कीजिये।

What do you understand by Leadership ? Describe the functions of leadership.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. “नेतृत्व परिस्थित्यात्मक है।” स्पष्ट कीजिये।

Leadership is situational.” Discuss.

प्रश्न 2. नेतृत्व से आप क्या समझते हैं ? यह प्रबन्धकीय कौशल से किस प्रकार भिन्न है ?

What do you mean by leadership ? How is it different from managership?

प्रश्न 3. नेतृत्व की आवश्यकता एवं महत्त्व को समझाइये।

Explain the need and importance of leadership.

प्रश्न 4. नेतृत्व के आशय एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिये।

Explain the meaning and importance of leadership.

प्रश्न 5. एक सफल (अच्छे) नेता के आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिये।

Describe the essential qualities of a successful (good) leader.

प्रश्न 6. व्यवसाय में नेतृत्व से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by leadership in business?

प्रश्न 7. “एक अच्छा नेता जरूरी नहीं कि वह एक अच्छा प्रबन्धक हो।’ टिप्पणी कीजिये। ”

A good leader is not necessarily a good manager.” Comment.

प्रश्न 8. नेतृत्व की प्रजातान्त्रिक शैली की विवेचना कीजिये।

Describe democratic style of leadership.

प्रश्न 9. नेतृत्व के स्वरूप से क्या तात्पर्य है?

What is meant by Leadership styles?

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1 बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं’ या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False’

(i) नेतृत्व के सभी गुण जन्मजात होते हैं।

All the leadership qualities are by birth.

(ii) सभी प्रबन्धक नेता होते हैं।

All managers are leaders.

(iii) नेतृत्व की निरंकुश शैली में अनुयायियों से विचार विमर्श करके नीतियों का निर्धारण किया जाता है।

In autocratic leadership style all policies are determined by consulting with subordinates.

(iv) लिकर्ट की चार प्रबन्ध प्रणालियाँ हैं।

Likert’s has suggested four management systems.

उत्तर-(i) गलत (ii) सही (ii) गलत (iv) सही

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2. सही उत्तर चुनिये (Select the correct answer)

(i) नेतृत्व का स्वरूप निम्न में से कौन सा नहीं है?

Which of these is not a leadership style?

() अभिप्रेरक (Motivational)

() शक्ति (Power)

() पर्यवेक्षीय (Supervisory)

() प्रबन्धकीय प्रोत्साहन (Managerial support)

(ii) नेतृत्व की शैली जो उसके समूह से परामर्श पर आधारित होती है, कहलाती है

The leadership style which is based on consultations with his group is called :

() निरंकुश शैली (Autocratic style)

() निर्बाध शैली (Free-rein style)

() जनतन्त्रात्मक शैली (Democratic style)

उत्तर-(i) (द) (ii) (स)

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chetansati

Admin

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