BCom 2nd Year Principles Business management managerial Control Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Principles Business management managerial Control Study Material Notes in Hindi

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Managerial Control Study Material
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BCom 2nd Year Principles Business Management Leadership Study Material Notes in Hindi

प्रबन्धकीय नियन्त्रण

[Managerial Control

नियन्त्रण, प्रबन्ध का अन्तिम, परन्तु अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है। प्रत्येक व्यवसाय का संचालन पूर्व निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। प्रबन्ध पूर्व निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति एवं व्यवसाय की नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए संगठन की सहायता लेता है। संगठन क अन्तर्गत विभिन्न विभागों में अनेक कर्मचारी विभागों के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्य करत ह। किसी भी उपक्रम में एक बार पूर्व निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेत कार्य प्रारम्भ हो जाने के बाद कुछ ऐसी घटनाएँ या परिस्थितियाँ पैदा हो सकती हैं जिनके कारण पूर्व निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति न हो पाए। ऐसी दशा में उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कछ उपायों एवं समाधानों का प्रयोग किया जाना नितान्त आवश्यक हो जाता है। नियन्त्रण के माध्यम से प्रबन्ध को यह जानने में सहायता मिलती है कि व्यवसाय के समस्त कार्य पूर्व निर्धारित योजना एवं दिये गये निर्देशों तथा नियमों के अनुसार हो रहे हैं अथवा नहीं और यदि नहीं हो रहे हैं तो उसके क्या कारण हैं, उसके लिए कौन उत्तरदायी है एवं कमियों को दूर करने के लिए क्या करना चाहिए। प्राचीन काल में नियन्त्रण का प्रमुख उद्देश्य गलत कार्यों के लिए उत्तरदायी व्यक्तियों का पता लगाना एवं उनके विरूद्ध कार्यवाही करना था, परन्त वर्तमान समय में नियन्त्रण का उद्देश्य कमियों/विचलनों (Variations) के उत्पन्न होने पर उनको तत्काल सामने लाना एवं सम्बन्धित कमियों को दूर करना तथा उनकी पुनरावृत्ति रोकना भी इसमें सम्मिलित है। प्रस्तुत अध्याय में नियन्त्रण से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं की विस्तृत विवेचना की जा रही है।

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नियन्त्रण का अर्थ एवं परिभाषा

(MEANING AND DEFINITIONS OF CONTROL)

नियन्त्रण से आशय यह पता लगाने से है कि समस्त कार्य का निष्पादन पूर्व निश्चित योजना, निर्देशों, उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों के अनुरूप हो रहा है या नहीं, यदि नहीं हआ है तो उस सके क्या कारण हैं, उसके लिए कौन उत्तरदायी है एवं उसे सुधारने के लिए क्या करना चाहिए ? नियन्त्रण व्यवसाय के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पथ-प्रदर्शन और नियमन का कार्य करता है। नियन्त्रण का उद्देश्य क्रियाओं के परिणामों को यथासम्भव निश्चित किये गये लक्ष्यों के निकट रखने का आश्वासन है। नियन्त्रण की महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

मेरी कुशिंग नाइल्स के अनुसार, “किन्हीं निश्चित लक्ष्यों या लक्ष्यों के समूहों की ओर निर्देशित क्रियाओं में सन्तुलन बनाये रखना ही नियन्त्रण है।”

टैरी के अनुसार, “नियन्त्रण से तात्पर्य यह तय करना है कि क्या किया जा रहा है। अर्थात् कार्यों का मूल्यांकन करना है तथा आवश्यकता पड़ने पर उनमें सुधार करना है जिससे कि कार्यों का योजनाबद्ध निष्पादन हो सके।”2.

कोटलर के अनुसार, “नियन्त्रण वास्तव में वह प्रक्रिया है जिसमें वास्तविक परिणामों को इच्छित परिणामों के निकट लाने का प्रयास किया जाता है।”3

फेयोल के अनुसार, “नियन्त्रण से आशय यह जाँच करने से है कि क्या प्रत्येक कार्य स्वीकत योजनाओं, दिये गये निर्देशों तथा निर्धारित नियमों के अनुसार हो रहा है या नहीं। इसका उद्देश्य कार्य की दुर्बलताओं एवं त्रुटियों को सामने लाना है जिन्हें यथासमय सुधारा जा सके और भविष्य में उनकी पुनरावृत्ति को रोका जा सके।” |

कुण्ट्ज एवं औडोनेल के अनुसार, “नियन्त्रण का आशय अधीनस्थों की क्रियाओं का मापन एवं सुधार करना है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उपक्रम के लक्ष्यों और उनको प्राप्त करने के लिए बनाई गई योजनाओं को पूरा किया जा रहा है।”2

विली ई० गोट्ज के अनुसार, “प्रबन्ध नियन्त्रण से आशय घटनाओं को योजनाओं के अनुसार बनाये रखने से है।”

निष्कर्षउपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् नियन्त्रण की एक सरल एवं उपयुक्त परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती है

नियन्त्रण प्रबन्ध का वह महत्त्वपूर्ण कार्य है जो इस बात के निर्धारण से सम्बन्ध रखता है कि कार्य का निष्पादन बनाई गई योजनाओं, पूर्व निर्धारित लक्ष्यों एवं नीतियों के अनुसार हो रहा है या नहीं और यदि नही हो रहा है तो उसके क्या कारण हैं और उन्हें दूर करने के लिए क्या कदम उठाने चाहिएँ

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नियन्त्रण के लक्षण, विशेषताएँ, प्रकृति अथवा तत्त्व

(FEATURES, CHARACTERISTICS, NATURE OR ELEMENTS OF CONTROL)

1 नियन्त्रण एक प्रबन्धकीय कार्य है (Control is a Managerial Function)-नियन्त्रण करना प्रबन्धक का कार्य है न कि संस्था के अध्यक्ष का। इसके अतिरिक्त, यहाँ यह लिखना भी अनावश्यक न होगा कि प्रबन्धक के इस कार्य को प्रबन्धक की ओर से कोई भी अन्य व्यक्ति पूरा नहीं कर सकता अर्थात् स्वयं प्रबन्धक को ही यह कार्य करना पड़ता है।

2. नियन्त्रण चक्राकार प्रवाह है (Control is a Circular Movement)-नियन्त्रण का प्रारम्भ नियोजन अर्थात् उद्देश्यों के निर्धारण से होता है। ये उद्देश्य ही वे प्रमाप होते हैं जिनसे संस्था के कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन किया जाता है। मूल्याँकन के आधार पर ही प्रबन्धक आवश्यक सुधार करता है और नई योजनायें एवं प्रमाप निर्धारित करता है। इस प्रकार नियन्त्रण एक चक्राकार प्रवाह है।

3. नियन्त्रण सभी स्तरों पर लागू होता है (Control is Exercised at All Levels)नियन्त्रण सभी स्तरों पर किया जाता है। अन्तिम नियन्त्रण करने का अधिकार उच्चस्तरीय प्रबन्धक वर्ग, जिसमें संचालक मण्डल भी शामिल है, को होता है। विभागीय प्रबन्धक अपने विभागों का नियन्त्रण करते हैं, जबकि निरीक्षक तथा फोरमैन कार्य करने वाले व्यक्तियों पर नियन्त्रण करते हैं। नियन्त्रण की समस्याएँ भी प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर भिन्न-भिन्न होती हैं। उच्चस्तरीय प्रबन्धक प्रशासकीय नियन्त्रण करते हैं जो विस्तृत नीतियों, योजनाओं तथा अन्य नीति-निर्देशक तत्त्वों के आधार पर किया जाता है। मध्यवर्गीय प्रबन्धकों की नियन्त्रण की समस्या संस्था की नीतियों के क्रियान्वयन से सम्बन्धित होती हैं, जबकि निम्नवर्गीय प्रबन्धकों की नियन्त्रण की समस्या कार्य-संचालन से सम्बन्धित होती है।

4. नियन्त्रण एक गतिशील और सतत् प्रक्रिया है (It is a Dynamic and Continuous Process)-नियन्त्रण, प्रबन्ध की एक गतिशील प्रक्रिया है, क्योंकि व्यवसाय की परिवर्तित परिस्थितियों के अनसार आवश्यक परिवर्तन किए जाते हैं। साथ ही, नियन्त्रण का कार्य सदैव चलने चक्रीय कार्य है और जब तक व्यवसायिक उपक्रम चलता रहेगा उसके प्रबन्धकों को नियन्त्रण कार्य भी करते रहना होगा।

5. नियन्त्रण न केवल पीछे, बल्कि आगे देखने की भी प्रक्रिया है (Control is not Lgeking Back it is Looking Forward Also)-प्रबन्धक नियन्त्रण के द्वारा वास्तविक प्रगति की अपेक्षित प्रगति से तलना करके दोनों में अन्तर का पता करता है और सुधारात्मक कार्यवाही करता है।। नियन्त्रण सदैव भविष्य से सम्बन्धित होता है, क्योंकि भूतकाल की क्रियाओं पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। इसके अन्तर्गत ऐसे कदम उठाये जाते हैं जिससे पिछली गलतियाँ भविष्य में न हों। नियन्त्रण में वास्तविक कार्यों का अवलोकन किया जाता है, अतः इसे पीछे देखना कह सकते हैं, परन्तु सुधार की कार्यवाही हमेशा भविष्य के लिए की जाती है, इसलिये नियन्त्रण आगे देखना भी है।

6. नियन्त्रण में सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पहलुओं का समावेश है (Control has Both Positive and Negative Aspects)-नियन्त्रण की प्रकृति सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों प्रकार की होती है। यह स्वीकार करने योग्य कार्यों एवं क्रियाओं को तो सम्भव उपायों से प्रोत्साहित करता है तथा अस्वीकार किये जाने वाले कार्यों एवं क्रियाओं को प्रतिबन्धित एवं नियन्त्रण करता है। वस्तुतः नियन्त्रण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रबन्धक यह तय करते हैं कि किसे पारितोषिक (Reward) दिया जाए और किसे दण्ड (Punishment) दिया जाए।

7. नियन्त्रण, नियोजन पर आधारित है (Control is Based on Planning)-नियन्त्रण, नियोजन पर आधारित है, क्योंकि योजनाएँ ही नियन्त्रण के प्रमाप होती हैं। नियोजन मार्ग का निर्धारण करता है और नियन्त्रण उस मार्ग से विचलन पर नजर रखता है। प्रबन्धकीय नियोजन, सन्तुलित, समन्वित एवं स्पष्ट कार्यक्रम बनाता है, जबकि प्रबन्धकीय नियन्त्रण घटनाओं को योजनाओं के अनुरूप बनाये रखता है। नियोजन के बिना नियन्त्रण अन्धा है और नियन्त्रण के अभाव में नियोजन निरर्थक है। अत: नियोजन व नियन्त्रण एक दूसरे से अलग न होने वाले जुड़वा तत्त्व (Siamese twins) हैं।

8. नियन्त्रण का सार सुधारात्मक कार्यवाही है (The Essence of Control is Corrective Action)-वास्तविक निष्पादन के मूल्याँकन से ही नियन्त्रण नहीं होता। नियन्त्रण तभी पूर्ण होता है जब प्राप्त सूचनाओं के आधार पर गतिविधियों में सुधार हेतु आवश्यक कार्यवाही की जाये।

9. नियन्त्रण रचनात्मक है (Control is Constructive)-नियन्त्रण का उद्देश्य व्यक्तियों को फटकारना नहीं, बल्कि उनके निष्पादन को अधिक उत्तम बनाना है, ताकि योजनाओं को पूरा किया जा सके।

10. नियन्त्रण तथ्यों पर आधारित होता है (Control is Based on Facts)-नियन्त्रण व्यक्तिगत मान्यताओं एवं भावनाओं पर आधारित नहीं होता है, बल्कि यह सांख्यिकीय तथ्यों पर आधारित क्रिया है।

11. नियन्त्रण हस्तक्षेप नहीं है (Control is not Interference)-नियन्त्रण अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यों में हस्तक्षेप करना नहीं है, न ही यह उनके अधिकारों में कमी करना है। हस्तक्षेप की प्रकृति नकारात्मक होती है एवं यह कार्य में बाधा उत्पन्न कर उसकी गति को अवरूद्ध करता है। इसके विपरीत नियन्त्रण स्वीकारात्मक एवं सकारात्मक प्रकृति का होता है एवं कार्य में आने वाली बाधाओं को पहचान करके उन्हें दूर करना इसका उद्देश्य होता है जिससे कि कार्य को सुचारू रूप से किया जा सके।

12. नियन्त्रण परिणामोन्मुखी है (Control is Result-oriented)-नियन्त्रण में वह सब कुछ किया जाता है जिससे वास्तविक परिणाम उद्देश्यों/योजनाओं के अनुरूप हो सकें।

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नियन्त्रण का क्षेत्र

(CONTROL AREAS OR SCOPE)

प्रबन्धकीय नियन्त्रण का क्षेत्र काफी व्यापक है। होल्डन, फिश एवं स्मिथ के अनुसार किसी व्यावसायिक उपक्रम में प्रबन्धकीय नियन्त्रण के प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं

1.नीतियों पर नियन्त्रण (Control Over Policies)-किसी उपक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी आधारभूत नीतियाँ कहाँ तक कार्यान्वित की जा सकती हैं। इसके लिए यवसाय की नीतियों पर पर्याप्त नियन्त्रण की आवश्यकता है। नीतियों पर नियन्त्रण रखने के लिए।

नीति पुस्तिका का प्रयोग किया जाता है जिसका व्यापक प्रचार किया जाता है, ताकि प्रत्येक चारी उपक्रम की नीतियों से परिचित हो सके और उनका पूरी तरह पालन कर सके। ।

2.संगठन पर नियन्त्रण (Control Over Organisation)-प्रत्येक उपक्रम की संगठन रचना पर नियन्त्रण बनाये रखने के लिए संगठन चार्ट तथा संगठन पुस्तिका (Organisation Manual or Chart) बनायी जाती है जिनमें संगठन के विभिन्न स्तर के सम्बन्धों को दर्शाया जाता है। समय-समय पर संगठन संरचना का मूल्यांकन करके इसमें आवश्यक परिवर्तन भी किये जाते हैं।

3. कर्मचारियों पर नियन्त्रण (Control over Personnel)-सभी कर्मचारी उनको सौंपे गये कार्य को निर्धारित समय के अन्दर पूरा कर रहे हैं अथवा नहीं, यह देखना ही कर्मचारियों पर नियन्त्रण है। यह कार्य कर्मचारी या सेविवर्गीय निदेशक द्वारा किया जाता है जो कि संस्था का एक उच्चवर्गीय प्रबन्ध अधिकारी होता है।

4. मजदूरी और वेतन पर नियन्त्रण (Control Over Wages and Salaries)-नियन्त्रण के इस क्षेत्र के अन्तर्गत मजदूरी एवं वेतन, प्रशासन, कार्य, मूल्याँकन तथा ऐसी ही अन्य तकनीकों का समावेश होता है जिनकी सहायता से इन पर प्रभावशाली नियन्त्रण रखा जा सके तथा फर्जी भुगतानों को रोका जा सके।

5. लागत नियन्त्रण (Cost Control)—यह भी प्रबन्धकीय नियन्त्रण का प्रमुख क्षेत्र है। प्रत्येक व्यवसायी न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए लागतों पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है। इसके अन्तर्गत प्रमापित लागतों का निर्धारण समविच्छेद बिन्दु विश्लेषण, सीमान्त लागत तथा बजट सम्बन्धी नियन्त्रण आदि तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।

6. कार्यप्रणाली पर नियन्त्रण (Control Over Methods)—यह जानने के लिए कि संस्था का प्रत्येक कर्मचारी तथा विभाग अपना-अपना कार्य ठीक समय पर सही प्रकार से कर रहा है, कार्य-प्रणाली पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है। इसके लिए समय-समय पर प्रत्येक विभाग की कार्य-प्रणाली का विश्लेषण तथा मूल्यांकन करना आवश्यक है, ताकि अवांछित तत्त्वों को दूर किया जा सके।

7. पूँजीगत व्ययों पर नियन्त्रण (Control Over Capital Expenditure)-पूँजी व्ययों तथा उन पर होने वाले विनियोगों को नियन्त्रित करके संस्था को बहुत लाभ पहुँचाया जा सकता है। पूँजीगत व्ययों पर नियन्त्रण का कार्य एक विशेषज्ञ समिति द्वारा किया जाता है। यह समिति संस्था के लिए स्वीकृत पूँजी बजट को कार्यान्वित करने के लिए उत्तरदायी होती है। पूँजीगत व्ययों पर नियन्त्रण करने के लिए पूँजी बजट, पूँजी लागत अध्ययन, आदि तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।

8. उत्पादन पर नियन्त्रण (Control Over Production)-उत्पादन किसी भी व्यवसाय के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कार्य है। उत्पादन पर नियन्त्रण हेतु बाजार की आवश्यकताओं का विश्लेषण करके उन्हें श्रेष्ठतम विधि से पूरा करने के लिए उत्पादित वस्तुओं में सुधार के लिए सुझाव दिये जाते हैं। वस्तुओं की किस्म नियन्त्रण का कार्य भी इसके अन्तर्गत किया जाता है।

9. सामग्री नियन्त्रण (Material Control)-सामग्री नियन्त्रण में सामग्री की खरीद, परिवहन, भण्डारण, सामग्री की किस्म नियन्त्रण व निगमन आदि क्रियाएँ की जाती हैं।

10. शोध एवं विकास पर नियन्त्रण (Control Over Research and Development) नवान अनुसन्धान तथा विकास कार्य पर नियन्त्रण रखने के लिए शोधकर्ताओं का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए। संस्था में किये जाने वाले अनुसन्धान कार्य के लिए पृथक् से बजट भी बनाया जा सकता है तथा प्रत्येक शोध परियोजना का विश्लेषण एवं मूल्याँकन भी किया जा सकता

11. समग्र नियन्त्रण (Over All Control)-समग्र नियन्त्रण हेतु संस्था के लिए एक विस्तृत जना बनानी चाहिए। इस विस्तृत योजना (Master Plan) में प्रत्येक विभाग की उपयोजनाएँ भी बनायी जाती हैं। संस्था की गतिविधियों पर व्यापक नियन्त्रण बनाये रखने के लिए नियोजन तथा बजट सम्बन्धी नियन्त्रण का प्रयोग किया जाता है।

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प्रबन्धकीय नियन्त्रण प्रक्रिया

MANAGERIAL CONTROL PROCESS)

नियन्त्रण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें कार्य करने के लिए उपयुक्त निष्पादन के प्रमाप (Standards of Performance) स्थापित किये जाते हैं। वास्तविक कार्य की प्रगति की तुलना निर्धारित निष्पादन के प्रमापों से की जाती है तथा यदि उनमें किसी प्रकार का कोई विचलन पाया जाता है तो उसे दूर करने के लिए सधारात्मक कार्यवाही की जाती है। प्रबन्धशास्त्र के विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न चरणों का वर्णन किया है। निष्कर्ष. रूप में नियन्त्रण प्रक्रिया के निम्नलिखित चार तत्त्व (चरण) बतलाये जा सकते हैं

1 लक्ष्यों एवं प्रमापों का निर्धारण,

2. वास्तविक निष्पादनों का मापन करना,

3. निष्पादनों की प्रमापों से तुलना,

4. सुधारात्मक कार्यवाही करना।

1 लक्ष्यों एवं प्रमापों का निर्धारण (Establishment of Goals and Standards) नियन्त्रण प्रक्रिया का पहला चरण लक्ष्यों, प्रमापों, नीतियों, योजनाओं, मान्यताओं अथवा किन्हीं ऐसे प्रमापों का निर्धारण करना है जिनके आधार पर किसी कर्मचारी के कार्य को मापा जा सके। सरल शब्दों में, प्रमाप निश्चित करने से हमारा अभिप्राय यह निश्चित करना है कि एक कार्य विशेष से हम किस परिणाम (Result) की आशा एवं अपेक्षा करते हैं। कोई भी कार्य सही ढंग से हो रहा है या नहीं, इस बात की जानकारी उस समय तक नहीं हो सकती जब तक कि प्रमापों को निर्धारित नहीं कर दिया जाता है। प्रमापों के निर्धारण के सम्बन्ध में यह बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि प्रमाप बहुत अधिक ऊँचे अथवा बहुत अधिक नीचे नहीं रखे जाने चाहिएँ। प्रमापों का निर्धारण उपक्रम के आकार, स्थिति, क्षमता आदि को ध्यान में रखकर ही किया जाना चाहिए। संक्षेप में, प्रमापों के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि ये प्रमाप ऐसे हों, ताकि एक सामान्य (औसत) व्यक्ति अपने प्रयासों के द्वारा इनको प्राप्त कर सके।

प्रमापों के प्रकार (Types of Standards)—नियन्त्रण की सुविधा के लिए प्रमापों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है

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(1) भौतिक और मौद्रिक प्रमाप (Physical and Monetary Standards)

(अ) भौतिक प्रमाप-भौतिक प्रमाप वे होते हैं जिन्हें भौतिक इकाईयों में; जैसे—प्रति घण्टा, प्रति इकाई या अन्य किसी इसी प्रकार की भौतिक इकाईयों में व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, यह कहा जा सकता है कि एक मशीन प्रतिदिन कितना काम करेगी या कोई निश्चित कार्य कितने घण्टे या कितने दिन में पूरा किया जायेगा।

() मौद्रिक प्रमापमौद्रिक प्रमाप वे होते हैं जो मुद्रा में व्यक्त किए जाते हैं; जैसे—किसी मशीन के प्रति घण्टा काम करने की लागत क्या होगी या प्रति इकाई कच्ची सामग्री की क्या लागत होगी या प्रति इकाई मजदूरी पर कितना व्यय होगा आदि

(2) मूर्त और अमूर्त मापदण्ड (Tangible and Intangible Standards)

() मूर्त मापदण्ड-मूर्त मापदण्डों के अन्तर्गत वे मापदण्ड आते हैं जिन्हें निश्चित इकाइयों में व्यक्त किया जा सके; जैसे-प्रतिदिन उत्पादन लागत या उत्पादन की मात्रा आदि। अतः मूर्त मापदण्डों में वे सभी भौतिक एवं मौद्रिक मापदण्ड आते हैं जिन्हें स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जा सकता है।

() अमर्त मापदण्डअमर्त मापदण्डों के अन्तर्गत वे मापदण्ड आते हैं जिन्हें निशिचत एवं स्पष्ट रूप से इकाईयों में व्यक्त नहीं किया जा सकता; जैसे- श्रमिकों का मनोबल बढ़ाना, संस्था की। प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि करना आदि। ये ऐसे मापदण्ड हैं जिन्हें मापा नहीं जा सकता, बल्कि जिनका केवल अनुभव ही किया जा सकता है।

प्रबन्धकीय नियन्त्रण अमूर्त मापदण्डों की अपेक्षा मूर्त मापदण्ड अधिक स्पष्ट, निश्चित एवं मापने योग्य होते हैं, इसलिए मूर्त मापदण्डों का अधिक प्रयोग किया जाता है।

(3) आयगत एवं पूँजीगत मापदण्ड (Revenue and Capital Standards)

() आयगत मापदण्ड (Revenue Standards)-इसके अन्तर्गत वे मापदण्ड आते हैं। जिन्हें बिक्री के मूल्य के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। जैसे-दिल्ली में प्रति व्यक्ति बिक्री का मापदण्ड या प्रति व्यक्ति औसत बिक्री या किसी ट्रान्सपोर्ट कम्पनी की प्रति यात्री प्रति किलोमीटर आय आदि।

() पूँजीगत मापदण्ड (Capital Standards)-आयगत मापदण्डों के विपरीत पूँजीगत मापदण्ड वे होते हैं जो पूँजीगत व्ययों के अनुपात के रूप में प्रकट किये जाते हैं; जैसे-चालू अनुपात (Current ratio), ऋण और स्वामित्व पूँजी का अनुपात (Debts equity ratio) आदि।

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2. वास्तविक निष्पादनों का मापन करना (Measurement of Actual Performance)प्रमाप निर्धारित करने के पश्चात नियन्त्रण प्रक्रिया के अन्तर्गत उठाया जाने वाला दूसरा कदम वास्तविक निष्पादनों का मापन करना है। वास्तविक निष्पादनों के मापन का कार्य निम्नलिखित विधियों से किया जा सकता है

(i) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अवलोकन एवं निरीक्षण द्वारा (By Direct Personal Observation and Inspection),

(ii) नियमित प्रतिवेदनों द्वारा (By Direct Reports),

(iii) सर्वेक्षण द्वारा (By Survey),

(iv) सांख्यिकीय एवं गणितीय विधियों द्वारा (By Statistical and Mathematical methods)

वास्तविक निष्पादनों का मापन करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-(1) वास्तविक निष्पादन के आँकड़ें यथासम्भव सही होने चाहिएँ। (2) कार्य-निष्पादन के आँकड़ें नियमित रूप से तथा निरन्तर तैयार किये जाने चाहिएँ। (3) निष्पादन मापन हेतु प्रमाप वैसे ही होने चाहिएँ जैसे कि कार्य-प्रमाप तय करने के लिए प्रयोग किये गये हैं। (4) जहाँ तक हो सके प्रगति का मापन पूर्वापेक्षी अर्थात् पहले से यह आभास देने वाला होना चाहिए कि आगे क्या होने जा रहा है जिससे विचलन होने से पहले ही इसका संकेत मिल जाए एवं उनके कारणों को दूर किया जा सके। (5) व्यक्तिगत गुणों का मापन व्यक्तिगत अवलोकन द्वारा सफलता से किया जा सकता है।

निष्पादनों की प्रमापों से तुलना (Comparison of Performance with Standards)नियन्त्रण प्रक्रिया का तीसरा चरण वास्तविक निष्पादनों की निर्धारित प्रमापों से तुलना करके विचलनों को ज्ञात करना है। हेनरी फोर्ड के अनुसार, “एक ही तरह की दो मशीनों का एक ही पुर्जा एक ही तरह का नहीं होता।” अत: विभिन्नता होना प्रकृति का नियम है। देखने की आवश्यकता यह है कि यह विचलन अथवा अन्तर कितना है। यह विचलन महत्त्वहीन हो सकता है, स्वीकृत सीमा के अन्दर हो सकता है अथवा बाहर भी हो सकता है। यदि विचलन स्वीकृत सीमा के अन्दर न हो अर्थात बाहर हा ता यह प्रमाप का अपवाद माना जाता है और उसे पृथक कर दिया जाना चाहिए। जो अपवाद सामने आये उनके कारणों की खोज करनी चाहिए। विचलन के कारणों की खोज करना इसलिये आवश्यक है, क्योंकि कारणों की जानकारी के अभाव में सुधारात्मक कदम उठाना कठिन होता है,

विचलन के कारणों को ज्ञात करना एक जटिल कार्य है। इसमें इस तथ्य का पता लगाया जाता ९. लता आखिर योजना बनाने में की गई है अथवा उस योजना को क्रियान्वित करन म का गइ है। जांचकर्ता को इस सन्दर्भ में निम्नलिखित बातों को और ज्ञात करना चाहिए-(i) विचलन का कारण स्थायी है या अस्थायी, बढ़ रहा है या घट रहा है? ) विचलन का प्रभाव क्या है ? (iii) विचलन का आकार क्या है ? (iv) मल्याँकन के द्वारा प्रभावों में सुधार किस प्रकार किया जा सकता हैं ।

सुधारात्मक कार्यवाही (Corrective Action) नियन्त्रण प्रक्रिया का अन्तिम चरण मक कार्य करना है। यदि वास्तविक निष्पादन एवं प्रमापों के मध्य विचलन एक निश्चित सामा स अधिक हो, तो सुधारात्मक कार्यवाही करना अपरिहार्य हो जाता है, सुधार सम्बन्धी कुछ निर्णय एस हो सकते हैं जो बिगड़े हए कार्य को सधार दें। इन्हें “सुधारात्मक कार्य” की संज्ञा दी जा सकता है, किन्तु कुछ सवार में ही निहित है। जॉर्ज टैरी के कार्य ऐसा हो जिस बाद वह नियोजन, और इसकी कोई उपयोगिताया जा सके, एवं सुधारा प्रभावित करता है

किन्तु कुछ सुधार ऐसे भी हो सकते हैं जो भविष्य के लिए उत्तम हों। नियन्त्रण का सारा ‘सार’ सुधारात्मक कार्यवाही में ही निहित है। जॉर्ज टैरी के अनुसार, “सुधार के बिना नियन्त्रण शून्यवत् है और इसकी कोई उपयोगिता नहीं है।” सधारात्मक कार्य ऐसा हो जिसे सम्पूर्ण उपक्रम को प्रभावित किये बिना ही सम्पन्न किया जा सके. एवं सुधारा जा सके। किन्तु यदि वह नियोजन, सगठन, समन्वय तथा अभिप्रेरण आदि प्रबन्ध के कार्यों को प्रभावित करता है तो ऐसी स्थिति में। आपसी विचार-विमर्श के पश्चात ही सुधारात्मक कार्य किया जाना चाहिए।

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नियन्त्रण प्रक्रिया नियन्त्रण की आवश्यकता एवं महत्त्व

(NEED AND IMPORTANCE OF CONTROL)

नियन्त्रण की आवश्यकता और महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

(1) कुशलता में वृद्धि (Increase in Efficiency)—नियन्त्रण के फलस्वरूप कर्मचारी निश्चित अवधि में निर्धारित कार्य निश्चित विधि से सम्पन्न कर लेते हैं और नियन्त्रण से ही उनके कार्यों का सही मूल्यांकन किया जाता है। फलस्वरूप कर्मचारियों की कार्यकुशलता में बढ़ोतरी होती है एवं संस्था की प्रगति में यह सहायक होता है।

(2) समन्वय में सहायक (Helps in Co-ordination) समन्वय प्रबन्ध का सार है। प्रबन्ध का कार्य विभिन्न व्यक्तियों के क्रियाकलापों में समन्वय स्थापित करना है, ताकि उपक्रम द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके। समन्वय की सार्थकता कुशल नियन्त्रण पर ही आधारित होती है। नियन्त्रण द्वारा ही प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित किया जाता है जिससे कि संस्था सुचारू ढंग से चलती रहती है।

(3) अभिप्रेरणा का साधन (A Tool of Motivation) नियन्त्रण के माध्यम से प्रबन्धक कुशल तथा अकुशल कर्मचारियों की पहचान सफलतापूर्वक कर सकता है। कार्य की मात्रा तथा प्रमाप निर्धारित करके नियन्त्रण करने की प्रक्रिया कर्मचारियों को कुशलतापूर्वक काम करने के लिए। अभिप्रेरित करती है। सौहार्दपूर्ण वातावरण अच्छे नियन्त्रण का ही परिणाम होता है। इसी के कारण संगठन में अच्छे मानवीय सम्बन्ध विकसित होते हैं जो अभिप्रेरण के लिए मूल मन्त्र का काम करता है। नियन्त्रण की प्रभावी व्यवस्था कुशल कर्मचारियों को अभिप्रेरित करती रहती है।

(4) प्रतिनिधायन प्रक्रिया में सहायक (Helps in Delegation Process)-नियन्त्रण क्रिया के । द्वारा प्रबन्धक यह देखते हैं कि उनके अधीनस्थ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार से कर रहे हैं अथवा नहीं। अत: प्रतिनिधायन प्रक्रिया में नियन्त्रण अत्यन्त आवश्यक सिद्ध होता है।

(5) जोखिम से सुरक्षा (Risk Security)-नियन्त्रण क्रिया के अन्तर्गत प्रत्येक क्रिया का प्रबन्धकीय नियन्त्रण पनरावलोकन किया जाता है तत्पश्चात सधारातमक कार्यवाही किया जाता है तत्पश्चात् सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है। इसके माध्यम से प्रबन्धका को होने वाली जोखिमों से सुरक्षा प्राप्त हो जाती है।

(6) विकन्द्राकरण में सहायता (Helpful in Decentralisation) नियन्त्रण का सुदृढ़ व्यवस्था प्रबन्ध को अपनी जिम्मेदारी बाँटने में सहायता देती है, वह अपने कार्यक्षेत्र में काम अपने अधीनस्थों को ठीक से सौंप देता है। यदि वे अपना काम सफलता के साथ नहीं कर पाते हैं तो उनका जिम्मेदारी तय की जाती है और आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है। उत्तरदायित्व निश्चित करने और सुधारात्मक कार्यवाही के निर्धारण में नियन्त्रण की सम्पूर्ण प्रक्रिया शामिल है।

(7) उत्पादन लागत में कमी (Reduction in Production Cost)-नियन्त्रण प्रमापा के अनुसार कार्य सम्पन्न करके व्यावसायिक कुशलता प्राप्त की जा सकती है। परिणामस्वरूप उत्पादन लागतों में भी कमी आती है। नियन्त्रण का प्रमुख उद्देश्य संस्था की कार्यकुशलता में वृद्धि करना तथा वांछित लक्ष्यों की ओर प्रयासों को सक्रिय करना है।

(8) भविष्य के नियोजन में सहायता (Helpful in Future Planning)-नियन्त्रण संस्था की प्रगति तथा योजना की सफलता के बारे में प्रबन्धकों को इतनी महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध कराता है कि वे इसके आधार पर भविष्य में और भी अधिक व्यावहारिक तथा सुदृढ़ योजनाएँ बना सकते हैं।

(9) अनुशासन की स्थापना (Establishment of Discipline) नियन्त्रण की अनुपस्थिति में कर्मचारियों में नैतिक साहस घट जाता है, क्योंकि उनको अपने भविष्य का पता नहीं होता। यही नहीं, बड़े व्यापार गृहों में कर्मचारियों की सपर्दगी में बड़ी मात्रा में नकदी, कच्चा माल और बहुमूल्य रहस्य रहते हैं। नियन्त्रण के अभाव में इस बात की प्रबल सम्भावना रहती हैं कि वे प्रलोभन में आ जायेंगे।

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नियन्त्रण की सीमाएँ

(LIMITATIONS OF CONTROL

(1) प्रमाप निर्धारण में कठिनाई (Difficulty in Determining Standard) नियन्त्रण के लिए प्रमापों का निर्धारण एक पूर्व अनिवार्यता है, परन्तु कई परिस्थितियों में प्रमापों का निर्धारण पूर्णतया अव्यवहारिक होता है। परिणामस्वरूप उन मामलों में नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। बहुधा श्रमिक नियन्त्रण प्रक्रिया को इसलिए नहीं स्वीकार करते हैं, क्योंकि मानक ही तार्किक आधार पर तय नहीं किए जाते हैं।

(2) अत्यधिक व्यय (Heavy Expenditure)-नियन्त्रण प्रणाली अत्यन्त व्ययपूर्ण प्रणाली है। कई बार नियन्त्रण तथा विचलनों को ज्ञात करने की प्रक्रिया इतनी व्यय साध्य होती है कि संस्था उतना खर्च करने में असमर्थ होती है। जहाँ तक आधुनिक नियन्त्रण प्रणाली का प्रश्न है कि उन पर किया जाने वाला प्रारम्भिक व्यय इतना अधिक होता है कि एक औसत आकार वाली औद्योगिक अथवा व्यावसायिक इकाई के लिए उसे लागू करना आर्थिक दृष्टि से दुरूह एवं असम्भव जैसा हो जाता है।

(3) अधीनस्थों द्वारा विरोध (Opposition by Subordinates) प्रायः नियन्त्रण प्रणाली का विरोध सबसे ज्यादा अधीनस्थों द्वारा ही किया जाता है, क्योंकि इसके अन्तर्गत मानवीय विचारों एवं कार्यों में हस्तक्षेप किया जाता है, जिसे कर्मचारी सहन नहीं कर पाते। नियन्त्रण के कारण जब कर्मचारियों पर कार्यभार अधिक हो जाता है तो उनका मनोबल गिर जाता है जिससे उनकी कार्यकुशलता एवं उत्पादकता भी कुप्रभावित होती है।

(4) सुधारात्मक कार्यवाही असम्भव (Impossible in Adopting Corrective Measures)-कई बार दोषों व विचलनों का पता चल जाता है, परन्तु संगठनात्मक संरचना की कठिनाई के कारण उनको सुधारना असम्भव हो जाता है और नियन्त्रण प्रभावी नहीं हो पाता।।

(5) व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनाई (Difficulty in the Determination of Individual Responsibility)—प्रबन्धकीय नियन्त्रण की एक मुख्य सीमा यह है कि कभी-कभी विचलनों का पचलनों का ज्ञान हो जाने पर भी व्यक्तिगत उत्तरदायित्वों को निर्धारित करना बड़ा कठिन होता है।। स-हड़ताल की दशा में व्यक्तिगत उत्तरदायित्व के निर्धारण में कठिनाई होती है।

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प्रभावशाली नियन्त्रण प्रणाली के आवश्यक तत्त्व

(ESSENTIALS OF AN EFFECTIVE CONTROL SYSTEM)

अथवा

एक यथेष्ट नियन्त्रण व्यवस्था के लिए आवश्यक बातें

(REQUISITIES OF AN ADEQUATE CONTROL SYSTEM)

वांछित परिणामों एवं पर्व-निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक संस्था में एक अच्छा एवं प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली होना आवश्यक है। प्रत्येक दूरदर्शी एवं जागरूक प्रबन्धक अपने उपक्रम म सदेव एक प्रभावशाली नियन्त्रण व्यवस्था स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील रहता है, ताकि सम्पूर्ण कार्य निर्धारित योजनानसार सम्पन्न हो सके। संक्षेप में, एक प्रभावशाली नियन्त्रण में निम्नलिखित बातों का समावेश होना चाहिए

1.उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की स्पष्ट व्याख्या (Well Defined Objectives and Goals) अमावा नियन्त्रण का स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि व्यावसायिक उपक्रम द्वारा निधारित उद्देश्यों एवं लक्ष्या का स्पष्ट एवं पूर्ण व्याख्या की जाए, ताकि उनकी प्राप्ति के लिए आवश्यक कदम सरलता से उठाए जा सकें।

2. सरलता (Simplicity)-नियन्त्रण प्रणाली सरल होनी चाहिए, ताकि सभी सम्बन्धित व्यक्ति इसे आसानी से समझ सकें और प्रबन्धक इसे सुगमता से लागू कर सकें।

3. उपयुक्तता (Suitability)—नियन्त्रण पद्धति संगठन की विभिन्न आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त होनी चाहिए अर्थात नियन्त्रण प्रणाली में संगठन की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता होनी चाहिए।

4.लोचशीलता (Flexibility) परिवर्तन प्रकृति का नियम है। वस्तुतः व्यवसाय की योजनाएँ भी परिस्थितियों में परिवर्तन होने के कारण बदलती रहती हैं। अत: नियन्त्रण व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें। थियोहैमन के अनुसार, “एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली गतिशील व्यावसायिक जगत के निरन्तर बदलते हुए स्वरूप के अनुरूप रहनी चाहिए।”

5. मितव्ययी (Economical)—नियन्त्रण प्रणाली मितव्ययी होनी चाहिए अर्थात् नियन्त्रण पर किये जाने वाले व्ययों की तुलना में उससे प्राप्त होने वाले लाभ सदैव अधिक होने चाहिएँ। अत: छोटे व्यवसायों को एक साधारण नियन्त्रण व्यवस्था अपनानी चाहिए, जबकि बड़े व्यवसायी नियन्त्रण की विस्तार पद्धति भी अपना सकते हैं।

6. निष्पक्षता (Objectivity) नियन्त्रण प्रणाली में पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, अन्यथा न केवल यह कम विश्वसनीय बन जाएगी, बल्कि इसके परिणाम भी अधिक हानिकारक होंगे। नियन्त्रण प्रणाली पक्षपातपूर्ण होने पर कर्मचारियों के मनोबल एवं कार्यक्षमता/कार्य के प्रति उत्साह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नियन्त्रण प्रणाली में निष्पक्षता लाने के लिए यह आवश्यक है कि कार्य के मापदण्ड/प्रमाप वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित हों। कार्य का मूल्याँकन भी निष्पक्ष होना चाहिए और मानव तत्त्व को महत्त्व दिया जाना चाहिए। यह तभी सम्भव है जब नियन्त्रण प्रक्रिया के निर्धारिण में सभी सम्बन्धित व्यक्तियों को शामिल किया जाए।

7. महत्त्वपूर्ण नियन्त्रण बिन्दुओं पर अधिक ध्यान (Focus on Critical and Strategic Points)-नियन्त्रण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक है कि उपक्रम के केवल महत्त्वपूर्ण नियन्त्रण बिन्दुओं पर अधिक ध्यान दिया जाए। महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं से आशय उन बिन्दुआ से है जहाँ पर कि त्रुटियों के उत्पन्न होने की अपेक्षाकृत अधिक सम्भावना रहती है। यदि इन बिन्दुओं पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित कर लिया जाए तो फिर त्रुटियों के होने की सम्भावना लगभग समाप्त हो जाती है।

8. विचलनों का शीघ्र प्रतिवेदन (Quick Reporting of Deviations)-प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली के अन्तर्गत प्रमापों की तुलना में उत्पन्न विचलनों की जानकारी प्रबन्धक को तुरन्त ही मिल जाती है अर्थात् जैसे ही विचलन उत्पन्न होता है, वैसे ही उसकी जानकारी प्रबन्धक को मिल जाती है, ताकि समय पर सुधारात्मक कार्यवाही की जा सके। सुधारात्मक कार्यवाही किये जाने का समय निकल जाने के पश्चात् विचलनों की मिलने वाली सूचनाओं का केवल कागजी महत्त्व रह जाता है।

9. सुधारात्मक कार्य करना (Corrective Action)-एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली केवल विचलनों एवं उनके कारणों को ही बतलाने वाली नहीं होनी चाहिए, वरन यह भी बतलाये कि विचलनों को दूर करने के लिए क्या सुधारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं। यदि किसी नियन्त्रण। प्रणाली में त्रुटियों अथवा विचलनों को दूर करने का प्रावधान नहीं है तो उसे प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली नहीं कहा जा सकता।

10. प्रत्यक्ष नियन्त्रण व्यवस्था (Direct Control System)-जहाँ तक सम्भव हो, नियन्त्रण प्रणाली में नियन्त्रक (Controller) एवं नियन्त्रित (Controlled) व्यक्ति के बीच सीधा सम्बन्ध होना चाहिए। अनावश्यक मध्यवर्ती व्यक्तियों के कारण नियन्त्रण में विलम्ब होता है और विलम्ब, नियन्त्रण का सबसे बड़ा शत्रु है। प्रत्यक्ष नियन्त्रण व्यवस्था तीव्रगामी एवं मितव्ययी होती है।

11. मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित (Based on Human Approach)—नियन्त्रण प्रक्रिया का निर्धारण करते समय इस बात को भी ध्यान में रखा जाए कि अपनाई जाने वाली नियन्त्रण प्रणाली नियन्त्रित व्यक्ति की भावनाओं तथा सम्मान को ठेस पहुँचाने वाली न हो। कभी-कभी तकनीकी दृष्टि से अच्छी नियन्त्रण प्रक्रियाएँ मानवीय मूल्यों पर उचित ध्यान न दिए जाने के कारण ही असफल हो जाती हैं।

12. अपवादों पर जोर (Emphasis on Exceptions)-एक प्रभावी नियन्त्रण प्रणाली पूर्व-निर्धारित सीमाओं के अन्तर्गत होने वाले विचलनों पर विचार नहीं करती है, वह केवल अपवाद स्वरूप विचलनों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करती है, ताकि समय, श्रम व धन बर्बाद न हो।

13. भविष्योन्मुखी (Future-directed) एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली भविष्य की ओर निर्देशित होनी चाहिए। एक अच्छी नियन्त्रण प्रणाली विचलनों का पूर्वानुमान करके उन्हें उत्पन्न होने के पूर्व ही ठीक कर लेती है। यह पूर्वाभासी दृष्टिकोण (Anticipatory Approach) को अपनाती है।

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नियन्त्रण की तकनीकें अथवा उपकरण

(Techniques or Tools of Control)

नियन्त्रण की तकनीकों, उपकरणों अथवा प्रणालियों से आशय उन माध्यमों से है जिनके द्वारा नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। आधुनिक प्रबन्धक अपने उपक्रम की क्रियाओं पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने के लिये नियन्त्रण की विभिन्न प्रणालियों का उपयोग करते हैं। अध्ययन में सविधा की दृष्टि से नियन्त्रण की तकनीकों को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

(I) नियन्त्रण की परम्परागत तकनीकें (Traditional Techniques of Control),

(II) नियन्त्रण की आधुनिक तकनीकें (Modern Techniques of Control)

(I) नियन्त्रण की परम्परागत तकनीकें (Traditional Technique of Control)-नियन्त्रण की परम्परागत अथवा सामान्य तकनीकों से आशय ऐसी तकनीकों से है जिनका उपयोग प्रबन्धकों द्वारा परम्परागत ढंग अथवा सामान्य ढंग से होता चला आ रहा है। इसमें निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है

(1) अवलोकन द्वारा नियन्त्रण (Control by Observation)-उपक्रम में कार्यरत व्यक्तियों के कार्यों का प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन कर उन पर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत अधिकारी अपने अधीनस्थों से प्रत्यक्ष रूप में सम्बन्ध स्थापित करके उनकी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करते हैं। नियन्त्रण की इस विधि का उपयोग अधिकतर फौज में, पुलिस में तथा व्यावसायिक संस्थाओं में निम्न स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा किया जाता है।

(2) उदाहरण द्वारा नियन्त्रण (Control by Example)-एक पुरानी कहावत है कि “कहने स करना भला” (“Example is better than precepts”) इसके अनुसार यदि एक उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थों की क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करना चाहता है तो उसे अपने आचरण एवं वहार का एक सुन्दर अर्थात् आदर्श उदाहरण अपने अधीनस्थों के सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिये।

उदाहरण के लिये, सही समय पर कार्यालय में प्रवेश करना आदि। उनका आचरण अधीनस्था क लिये एक आदर्श बन जाता है जिसका वे अनसरण करते हैं। इस प्रकार यह भी नियन्त्रण की एक विधि है।

(3) अभिप्रेरण द्वारा नियन्त्रण (Control by Motivation)-कर्मचारिया. करके भी उनकी क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। यह एक प्रकार से स्व-नियन्त्रण का सहा प्रकार से कर्मचारियों को अभिप्रेरित करके वांछित परिणामों की प्राप्ति की जा सकता हा जब कर्मचारी अभिप्रेरित रहते हैं तो वे आपस में स्वत: सहयोग करते हैं जिससे स्वत: नियन्त्रण स्थापित हो जाता है।

(4) नीतियों द्वारा नियन्त्रण (Control by Policies)-नीतियाँ वे सामान्य विवरण एवं मागदशक सिद्धान्त हैं जो संगठन द्वारा अपने दैनिक कार्यों के निष्पादन में प्रयोग में लायी जाती हैं। इस प्रकार नीतियों के आधार पर भविष्य में क्या करना है. इसका पहले से ही निर्धारण करना सम्भव हो जाता है। परिणामस्वरूप उपक्रम के कार्यों के निष्पादन में सफलता मिलती है तथा विचलनों पर रोक लगाकर नियन्त्रण में सहायता मिलती है।

(5) अभिलेखों एवं प्रतिवेदनों द्वारा नियन्त्रण (Control by Records and Reports)-संगठन के अभिलेखों एवं प्रतिवेदनों के माध्यम से प्रमापों की वास्तविक निष्पादन से तुलना करके विचलनों को रोका जा सकता है। इसी प्रकार विशेष समस्याओं पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिये प्रबन्ध परामर्शदाताओं अथवा विशेषज्ञों द्वारा विशेष रिपोर्ट भी तैयार करायी जाती है। अभिलेख एवं प्रतिवेदन द्वारा नियन्त्रण तभी सम्भव है, जब ये सरल, पर्याप्त एवं उपयुक्त सूचनाओं से परिपूर्ण हो, अन्यथा प्रभावी नियन्त्रण स्थापित नहीं किया जा सकता है और आसानी से समझना भी कठिन हो जायेगा।

(6) संगठन चार्ट्स एवं पुस्तिकाएँ (Organization Charts and Manuals)-संगठन चार्ट्स में अधिकारियों एवं प्रबन्धकों के मध्य आपसी सम्बन्धों एवं कार्य समूहों का स्पष्टीकरण होता है। जिससे उनके अधिकारों, दायित्व एवं कर्त्तव्यों आदि का पता लगाया जा सकता है। इसी प्रकार संगठन पुस्तिका में नीतियाँ, कार्यप्रणालियाँ एवं नियमों आदि का वर्णन होता है। फलतः सुगमतापूर्ण नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है।

(7) अनुशासनात्मक कार्यवाही द्वारा नियन्त्रण (Control by Disciplinary Action)-नियन्त्रण की यह विधि एक ऋणात्मक विधि है जिसके अन्तर्गत यदि कोई अधीनस्थ गलत कार्य करता है तो उसे दण्ड दिया जाता है, ताकि वह भविष्य में इन गलतियों की पुनरावृत्ति न करे।

(8) लिखित निर्देशों द्वारा नियन्त्रण (Control by Written Instructions)-नियन्त्रण की इस विधि के अन्तर्गत कार्यरत कर्मचारियों को कार्य करने के सम्बन्ध में आवश्यक आदेश एवं निर्देश लिखित रूप में दिये जाते हैं जिनका कि वे पालन करते हैं। ये आदेश एवं निर्देश जितने अधिक व्यापक एवं स्पष्ट होंगे, कर्मचारी उनका उतने ही अधिक प्रभावी ढंग से पालन करेंगे।

(9) अंकेक्षण (Auditing)-वित्तीय लेखों की जाँच करने के लिये अंकेक्षण तकनीक का भी उपयोग किया जाता है। अंकेक्षण आन्तरिक एवं बाह्य दो प्रकार का होता है। इनमें गलतियों का पता लगाकर पुनरावृत्ति को रोका जाता है जिससे बेईमानी का भय मिट जाता हैं। आजकल अंकेक्षण का सम्बन्ध योग्यता प्रबन्ध की किस्म, उत्पादकता एवं साधनों की प्रभावशीलता से भी होता है।। परिणामस्वरूप कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है और साथ ही गलतियों तथा कपटों को भी समाप्त किया जा सकता है।

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(II) नियन्त्रण की आधुनिक प्रणालियाँ (Modern System of Control)

नियन्त्रण की आधुनिक प्रणालियों से आशय उन प्रणालियों से है जिनका उपयोग आधनिक । प्रबन्धकों द्वारा उपक्रम अथवा संगठन की क्रियाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिये आजकल किया जाता है। नियन्त्रण की आधुनिक प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं

1 बजटरी नियन्त्रण (Rgetary Control)—थियोहैमन ने कहा कि, “बजट नियन्त्रण का सर्वाधिक प्रभावी यन्त्र है।” इसलिये आधुनिक जगत में बजट को एक महत्त्वपूर्ण नियन्त्रण के साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह अनुमानित आय-व्यय का एक प्रलेख होता है जिससे वास्तविक कार्यों का मूल्यांकन करके नियन्त्रण किया जाता है।

साधारण शब्दों में बजट नियन्त्रण, बजट अनमानों तथा वास्तविक परिणामों से तुलना करने की प्रक्रिया को कहते हैं। इस प्रक्रिया का उद्देश्य बजट अनुमानों तथा वास्तविक कार्य-निष्पादन के बीच विचलनों का पता लगाना तथा उनके कारणों को दर करना है। वास्तव में, बजट निर्माण का उद्देश्य ही बजट नियन्त्रण होता है। बिना बजट नियन्त्रण के बजट बनाना व्यर्थ होता है।

बजट नियन्त्रण के माध्यम से प्रबन्ध का उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं के ऊपर व्यापक नियन्त्रण स्थापित हो जाता है। वास्तविक उपलब्धियों की निर्धारित लक्ष्यों से तुलना करके अन्तर का पता लगाया जाता है तथा उसके उपरान्त उसके कारणों का पता लगाकर सुधारात्मक कार्यवाही करके इसके अन्तर को समाप्त कर दिया जाता है।

2. अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis)-अनुपात विश्लेषण समंकों के आधार पर नियन्त्रण करने की एक तकनीक है। इस तकनीक में संस्था के विभिन्न विवरणों (विशेषतः वित्तीय विवरणों एवं लेखों) से प्राप्त समंकों के बीच पाये जाने वाले सम्बन्ध को परिमाणात्मक रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। समंकों के बीच इस परिमाणात्मक सम्बन्ध को ही अनुपात कहते हैं। प्रबन्धक वित्तीय एवं लेखांकन विवरणों से वित्तीय एवं लेखांकन अनुपात की गणना करते हैं तथा प्रमापित अनुपात से तुलना करते हैं। इसी तुलना से प्राप्त निष्कर्ष से संस्था के कार्यकलापों एवं लागतों का नियन्त्रण करते हैं। सामान्यतः प्रत्येक संस्था में चालू अनुपात (current ratio), तरलता अनुपात (liquid ratio), ऋण-समता अनुपात (Debt-equity ratio), शोधन क्षमता अनुपात (solvency ratio), पूँजी आय अनुपात (Return on capital ratio), प्रति अंश आय अनुपात (Earning per share ratio) आदि ज्ञात किये जाते हैं और संस्था की क्रियाओं को नियन्त्रित करने में उपयोग किया जाता है।

3. प्रमाप लागत लेखांकन (Standard costing)-लागत नियन्त्रण के लिये प्रमाप लागत लेखांकन एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है। इसमें श्रम, कच्चे माल, उपरिव्यय (overhead expenses) इत्यादि सभी के प्रमाप पहले से ही निर्धारित कर दिये जाते हैं। तत्पश्चात् इन प्रमापित लागतों से वास्तविक लागतों की तुलना करके उनके विचलनों को ज्ञात किया जाता है। विचलनों के ज्ञात होने के साथ ही उन विचलनों के कारणों को भी ज्ञात किया जाता है। तब उचित कार्यवाही करके प्रबन्धक उन विचलनों को दूर करने के उपाय करता है। इस प्रकार प्रमाप लागत लेखांकन के द्वारा अकुशलता एवं अपव्यय का पता लगाकर उसे रोका जा सकता है तथा लागत को प्रभावी ढंग से नियन्त्रित किया जा सकता है।

(4) किस्म नियन्त्रण (Quality Control)-किस्म नियन्त्रण का अर्थ उत्पादन किये जाने वाले माल या वस्तुओं की किस्म को नियन्त्रित करने से लिया जाता है। इस नियन्त्रण का उद्देश्य निर्धारित किस्म, रूप, रंग, आकार, डिजाइन, परिधि आदि के अनुसार उत्पादों का निर्माण करना होता है। किस्म नियन्त्रण वस्तुतः नियन्त्रण की वह तकनीक होती है जो यह सम्भव बनाती है कि वांछित माल ही ग्राहकों तक पहुंच रहा है। किस्म नियन्त्रण के लिये निरीक्षण की आवश्यकता होती है ऐसा निरीक्षण कच्चे माल के निरीक्षण से लगाकर पक्के माल तक के निरीक्षण तक विस्तृत रहता है। आधुनिक समय में सांख्यिकीय नियन्त्रण विधियों को अपनाकर ऐसा नियन्त्रण किया जाता है।

(5) सामग्री नियन्त्रण (Inventory Control)-सामग्री नियन्त्रण वह तकनीक है जिसके माध्यम से कच्चे माल आदि की पूर्ति को आवश्यकतानुसार बनाए रखा जाता है। सामग्री अधिक भी नहीं रखी जानी चाहिए और न कम ही। दोनों ही दशाओं में नुकसान होता है। अतः इस विधि के द्वारा स्टाक को पर्याप्त मात्रा में रखा जाता है जिससे कि न तो पूँजी फँसी रहे और न कार्य बन्द रह सके। सामग्री नियन्त्रण हेत बिन कार्ड क्रयादेश बिन्दओं का निर्धारण, स्टॉक लेवल का निर्धारण तथा ‘ए। बी सी नियन्त्रण विधियों को अपनाया जाता है।

(6) समविच्छेद विश्लेषण (Break-even Analysis)-विभिन्न उत्पादन स्तरों की लागत, 1 से प्राप्त आगम, लाभ तथा हानियों के सम्बन्धों को दर्शाने के लिये इस विश्लेषण का प्रयोग जाता है। सम-विच्छेद बिन्द वह होता है. जिस पर लागत एवं आगम समान होती है अर्थात् इस बिन्दु पर न लाभ होता है और न हानि होती है। यह बिन्द लागत, उत्पादन एवं विक्रय नियन्त्रण म सहायता करता है क्योंकि प्रबन्धकों द्वारा यह निर्णय लेने में सविधा एवं आसानी रहती है कि सम्पूर्ण। लागत का पूरा करने के लिये किसी वस्त की कल कितनी मात्रा बेचनी होगी और इससे संस्था को कितना लाभ होगा?

(7) प्रबन्ध सूचना प्रणाली (Management Information System)-संगठन में सूचना। प्रणाली की व्यवस्था की जानी चाहिये जिससे प्रबन्धकों को आवश्यक सूचना नियमित रूप से एवं तीव्र गति से प्राप्त होती रहे। समय से महत्वपर्ण सचनाओं की प्राप्ति होने पर प्रबन्ध नियन्त्रण प्रणाली को प्रभावी बना सकता है।

(8) नियन्त्रण की अन्य आधुनिक प्रणालियाँ (Other Modern Systems of Control)-उपर्युक्त के अतिरिक्त नियन्त्रण की निम्न आधुनिक प्रणालियों का भी उपयोग किया जा सकता है-(i) पर्ट तथा सी. पी. एम. द्वारा नियन्त्रण (Control by PERT and C.P.M.); (ii) चाट्स एवं मेन्युअल्स द्वारा नियन्त्रण (Control by Charts and Manuals); (iii) नियन्त्रण विभाग द्वारा नियन्त्रण (Control by Control Department); (iv) अनुपात-विश्लेषण द्वारा नियन्त्रण (Control by Ratio-Analysis); (v) सूचना, सिम्यूलेशन, इलैक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग आदि द्वारा नियन्त्रण।

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परीक्षा हेत सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. नियन्त्रण से आप क्या समझते हैं ? नियन्त्रण की प्रकृति एवं महत्त्व की व्याख्या कीजिये।

What do you mean by control ? Explain the nature and importance of control.

प्रश्न 2. “नियन्त्रण एक आधारभूत प्रबन्धकीय कार्य है जो योजनाओं के अनुसार कार्य को सम्भव बनाता है।” इस कथन का विश्लेषण कीजिये तथा नियन्त्रण कार्य में निहित आवश्यक कदमों की रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।

“Control is a fundamental management function that ensures work accomplishment according to plans.” Analyse this statement and outline the essential steps involved in the control function.

प्रश्न 3. “एक प्रभावशाली नियन्त्रण प्रतिबन्धात्मक न होकर सुधारात्मक ही होना चाहिये।” समझाइये एवं नियन्त्रण की प्रक्रिया की व्याख्या कीजिये।

“An effective control should be corrective and not preventive.” Explain and state the process of control.

प्रश्न 4. “नियन्त्रण की परिभाषा दीजिये।” नियन्त्रण के प्रमुख तत्व क्या हैं ? यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? Define the term contorl. What are the elements of control ? How can it be secured?

प्रश्न 5. नियन्त्रण के विभिन्न चरणों तथा प्रभावी नियन्त्रण के लिये आवश्यक बातों को बताइये।

Discuss steps of controlling and state various pre-requisites for effective control.

प्रश्न 6. नियन्त्रण से क्या आशय है ? इसका महत्त्व तथा नियन्त्रण प्रक्रिया के आवश्यक चरण बताइये।

What is meant by controlling ? Discuss its importance and essentials of effective control system.

प्रश्न 7. नियन्त्रण को साटो तथा नियन्त्रण की विभिन्न तकनीकों को संक्षेप में समझाइये।

Discuss control and describe in brief the different techniques of control.

प्रश्न 8. नियन्त्रण की परम्परागत एवं आधुनिक तकनीकों का संक्षेप में वर्णन कीजिये। Describe in brief traditional and modern techniques of control.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. नियन्त्रण के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।

Discuss the main principles of control.

प्रश्न 2. “नियोजन आगे देखना है और नियन्त्रण पीछे देखना है।” टिप्पणी कीजिये।

“Planning is looking ahead and control is looking back.” Comment,

प्रश्न 3. नियन्त्रण प्रक्रिया में मौलिक चरण क्या होते हैं ? समझाइये।

What are the basic steps in the process of controlling? Explain

प्रश्न 4. नियन्त्रण प्रक्रिया में शामिल मलभूत तत्वों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।

Briefly explain the basic steps involved in the process of control.

प्रश्न 5. नियन्त्रण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।

Describe the process of control.

प्रश्न 6. “नियोजन नियन्त्रण के बिना निरर्थक है और नियन्त्रण नियोजन के बिना निरुद्देश्य।” उक्त कथन की आलोचनात्मक विवेचना कीजिये।

“Planning is meaningless without control and control is aimless without planning.” Examine critically.

प्रश्न 7. नियन्त्रण को परिभाषित कीजिये। नियन्त्रण की विशेषतायें एवं क्षेत्र की विवेचना कीजिये।

Define control. Narrate the characteristics and scope of control.

प्रश्न 8. “यदि आप सभी चीजों को नियन्त्रित करना प्रारम्भ करें, तो आप किसी भी चीज पर नियन्त्रण नहीं” पर समाप्त करेंगे। समीक्षा कीजिये।

“If you start controlling everything, you will end up controlling nothing.” Comment.

प्रश्न 9. नियन्त्रण के विस्तार पर टिप्पणी लिखिये।\ Write a short note on span of control.

(प्रश्न 10. “नियन्त्रण प्रक्रिया के तीन तत्व हैं-प्रमापों का निर्धारण, निष्पत्ति का मूल्याँकन तथा सुधार क्रिया।” व्याख्या कीजिये।

“The process of control has three elements viz., setting of standards, appraisal of performance and correctly action.” Explain.

प्रश्न 11. कार्य से पूर्व नियन्त्रण एवं कार्योपरान्त नियन्त्रण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

Distinguish between pre-control and post-control.

प्रश्न 12. नियन्त्रण में चयनशीलता को बताइये।

Discuss selectivity in control.

प्रश्न 13. नियन्त्रण उपकरण के रूप में प्रबन्ध सूचना प्रणाली की विवेचना कीजिये।

Discuss management information system as a control tool.

प्रश्न 14. “नियोजन और नियन्त्रण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” समीक्षा कीजिये।

Planning and control are two sides of the same coin.” Comment.

प्रश्न 15. प्रभावशाली नियन्त्रण पद्धति से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by effective control system?

प्रश्न 16. प्रभावशाली नियन्त्रण व्यवस्था की विशेषताएँ बताइये।

Explain the essential characteristics of an effective control system.

प्रश्न 17. नियन्त्रण की आधुनिक तकनीकों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।

Describe in brief the modern techniques of control.

प्रश्न 18. प्रबन्धकीय नियन्त्रण की अवधारणा को समझाइये।

Explain the concept of managerial control.

प्रश्न 19. नियन्त्रण की विभिन्न तकनीकों का उल्लेख कीजिये।

Discuss different techniques of control.

प्रश्न 20. प्रबन्धकीय नियन्त्रण की परम्परावादी तकनीकें कौन-कौन सी हैं ?

What are different traditional techniques of managerial control ?

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बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं’ या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False’

(i) नियन्त्रण प्रबन्ध का एक सहायक कार्य है।

Control is a subsidiary function of management.

(ii) नियन्त्रण भविष्य के लिये होता है।

Control is forward looking.

(iii) नियन्त्रण सभी प्रबन्धकीय स्तरों पर लागू होता है।

Control is applicable on all managerial levels.

(iv) नियन्त्रण प्रकिया में सर्वप्रथम लक्ष्यों तथा प्रमापों का निर्धारण किया जाता है।

In the control process, first of all, goals and standards are established.

(v) सुधार के बिना नियन्त्रण शून्यवत् है और इसकी कोई उपादेयता नहीं है।

उत्तर-(i) गलत (ii) सही (iii) सही (iv) सही (v) सही

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2. सही उत्तर चुनिये

(Select the correct answer)

(i) नियन्त्रण प्रबन्धकीय कार्य है।

Control is a managerial function :

(अ) अनिवार्य (Compulsory)

(ब) आवश्यक (Necessary)

(स) ऐच्छिक (Voluntary)

(द) इनमें से कोई नहीं (None of these)

(ii) नियन्त्रण किया जाता है :

Managerial control is done :

(अ) निम्न प्रबन्धकों द्वारा (By lower level managers)

(ब) मध्यम स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा (By middle level managers)

(स) उच्चतम स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा (By Top level managers)

(द) सभी स्तरीय प्रबन्धकों द्वारा (By all level managers)

उत्तर-(i) (अ) (ii) (द)

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chetansati

Admin

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