BCom 2nd year Public Private Goods Study material notes In Hindi

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BCom 2nd year Public Private Goods Study material notes In Hindi

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Goods Study material notes
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BCom 3rd Year Nature Importance Financial Money Study Material notes in hindi

सार्वजनिक बनाम निजी वस्तुएं

[Public Vs. Private Goods

राजकोषीय नीति का एक प्रमुख कार्य सार्वजनिक वस्तुओं तथा निजी वस्तुओं के मध्य सीमित तथा दुर्लभ संसाधनों का अनुकूलतम आबंटन (Optimum Allocation) करना है।

1सार्वजनिक वस्तुएँ

(Public Goods)

सार्वजनिक वस्तुएँ वे सेवाएँ एवं वस्तुएँ हैं जिन्हें समाज (देश) के नागरिकों को समान रूप से उपलब्ध कराया जाता है; जैसे-शान्ति, न्याय एवं सुरक्षा, सार्वजनिक पार्क आदि। इन वस्तुओं अथव सेवाओं से सभी नागरिक समान रूप से लाभान्वित होते हैं। समाज के किसी सदस्य द्वारा इन वस्तुओं से लाभान्वित होने पर भी समाज के शेष सदस्यों के लिए इनकी उपलब्धि में कोई कमी नहीं होती।

परिभाषाएँ (Definitions)

(i) सेम्युलसन (Samuelson) के अनुसार, “सामाजिक वस्तु एक ऐसी वस्तु है जिसका सभी लोग, सामूहिक रूप से मिलकर आनन्द प्राप्त करते हैं, जबकि किसी एक व्यक्ति के उपभोग में वृद्धि किसी अन्य व्यक्ति के उपभोग में कमी लाये बिना ही होती है।”

(ii) मसग्रेव (Musgrave) के अनुसार, “सावर्जनिक वस्तुएँ वे हैं जिनका लाभ अप्रतिद्वन्द्वी (non-rival) ढंग से उपलब्ध होता है। इस प्रकार A के लाभ में हिस्सा लेने से B के साथ कोई हस्तक्षेप नहीं होता। “2

विशेषताएँ (Characteristics)-सार्वजनिक वस्तुओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1 गैरप्रतिद्वन्द्विता (Non-rivalry)-सार्वजनिक वस्तुएँ उपभोग में गैर-प्रतिद्वन्द्वी होती हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा, पार्क, दूरदर्शन परियोजना, बाढ़ नियन्त्रण परियोजना, प्रदूषण नियन्त्रण परियोजना तथा समुद्र में प्रकाश गृह इत्यादि सार्वजनिक वस्तुओं के कुछ मुख्य उदाहरण हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा द्वारा प्रदान की गयी सुरक्षा को राष्ट्र के सभी व्यक्ति समान रूप से उपभोग करते हैं। एक नगर के सभी व्यक्ति दूरदर्शन संकेतों से लाभान्वित हो सकते हैं तथा कार्यक्रम के पूरे प्रसारण का आनन्द ले सकते हैं। यदि पार्क में कोई निःशुल्क जा सकता है, तो पार्क द्वारा प्रदान किया जाने वाला आनन्द वे सभी ले सकते हैं जो वहाँ जाते हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा, पार्क, दूरदर्शन संकेत तथा ऐसी अन्य वस्तुएँ गैर-प्रतिद्वन्दी होती हैं, क्योंकि एक व्यक्ति द्वारा उनका उपभोग अन्य व्यक्तियों द्वारा उसके उपभोग से वंचित नहीं करता है अर्थात् एक व्यक्ति द्वारा किसी गैर-प्रतिद्वन्दी वस्तु का उपभोग अन्य व्यक्तियों के उपभोग के लिए उसकी उपलब्धि। को कम नहीं करता है। परिणामस्वरूप हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक वस्तुएँ गैर-प्रतिद्वन्दी होती है।

2. गैरअपवर्जिता (Non-excludiability)-सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग सम्बन्धी लाभों के वितरण में गैर-अपवर्जिता होती है। इससे आशय यह है कि उन लोगों को उन वस्तुओं के उपभोग से वंचित करना यदि असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है जो उन वस्तुओं के लिए भुगतान करने के इच्छुक नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए देश की सुरक्षा एक सार्वजनिक सेवा है तथा वह देश के सभी नागरिकों को प्रदान की जाती है तथा उसका लाभ सभी को समान रूप से प्राप्त होता है, चाहे किसी ने इसके लिए भुगतान किया हो या न किया हो। जिन्होंने इसके लिए भुगतान नहीं किया है, उन्हें इस लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।

सार्वजनिक वस्तुओं की यह विशेषता व्यक्तियों के लिए निःशुल्क सवारी करने (Free riding) तथा कम प्रदूषण, बेहतर पार्क, दूरदर्शन संकेत तथा प्रकाश गृह के लिए भुगतान किये बिना उनसे लाभान्वित होने के प्रयास की प्रेरणा बन जाती है। ये व्यक्ति बिना कुछ व्यय किये कुछ लाभ प्राप्त करना चाहते हैं तथा उन सार्वजनिक वस्तुओं के क्रय में दूसरों पर विश्वास करते हैं जिनके लाभ स्वतः ही वे भी प्राप्त करेंगे।

3. बाह्यताएँ (Externalities)-सार्वजनिक वस्तु की एक अन्य विशेषता उसकी बाह्यता है। इससे अभिप्राय उन आर्थिक प्रभावों से है जो इन वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन व उपभोग करने से अन्य पक्षों तथा आर्थिक इकाइयों की ओर प्रवाहित होते हैं। उदाहरण के लिए रेल यात्रा द्वारा लाभ मिलता है परन्तु धएँ के इंजन से समीप की बस्तियों को धुएँ के कारण अनेक कठिनाइयाँ सहनी पड़ती हैं। यह सामाजिक लागत है। इस प्रकार एक ही सार्वजनिक वस्तु/सेवा में एक पक्ष को लाभ होता है तो दूसरे पक्ष को हानि भी हो सकती है। इस प्रकार निजी सीमान्त लागत (लाभ) और सामाजिक सीमान्त लाभ (लाभ) में अन्तर हो जाता है।

एक सार्वजनिक वस्तु की सीमान्त लागत शून्य या लगभग शून्य होती है। इसका अर्थ यह है कि सार्वजनिक वस्तु/सेवा का लाभ उठाने वाले व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होने पर भी इसकी सीमान्त लागत में कोई विशेष वृद्धि नहीं होगी। दूसरे शब्दों में सार्वजनिक सेवा के अतिरिक्त व्यक्ति द्वारा उपयोग करने से अन्य व्यक्तियों के उपयोग में कोई कमी नहीं होगी। उदाहरण के लिए अनेक व्यक्ति रेडियो तुन सकते हैं, पार्क में टहल सकते हैं अथवा लैम्प पोस्ट की रोशनी में पढ़ सकते हैं।

इसके अतिरिक्त सार्वजनिक वस्तु की औसत लागत घटती हर्ड होती है। इसका कारण बड़ पमान की मितव्ययिताओं (Large scale economies) का प्राप्त होना है।

4. अविभाज्यता (Indivisibility)-सामाजिक वस्ताएँ अतिज्य होती है अर्थात् इन वस्तुओं को अलग-अलग नहीं अपित संयक्त रूप से ही प्राप्त किया है. परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि जो लोग पार्क के समीप रहते हैं वे लोग उन नागरिकों को अविभाज्य वस्तु से समान लाभ प्राप्त हों अधिक लाभ उठाते हैं। लोगों की तुलना में जो पार्क से दूर रहते हैं निश्चय ही अधिक लाभ उठातें हैं ।

5. बजट द्दारा वित्त प्रबन्धन financing through Budget)-सार्वजनिक वस्तुओं के सन्दर्भ में 5. बजट द्वारा वित्त प्रबन्धन (Financily Bility) लागू नहीं होताः ये वस्तुएँ सभी को समान रूप से अपवर्जन सिद्धान्त (Theory of Excludiability माध्यम से इन वस्तओं को बाजार में क्रय-विक्रय नहीं किया जा उपलब्ध होती हैं। मूल्य प्रणाली है।

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सार्वजनिक वस्तुएँ एवं उनका माँग तथा पूर्तिवक्र

सावर्जनिक वस्तु के सम्बन्ध में सार्वजनिक वस्तु की कुल मात्रा का निर्धारण सरकार द्वारा होता है उपभोक्ता को स्वीकार करना पड़ता है। सार्वजनिक वस्तुओं के लिये प्रत्येक व्यक्ति का अपना जिवक्र होता है जो यह दर्शाता है कि उपलब्ध सार्वजनिक वस्तु के लिये व्यक्ति कितनी कीमत देने को तैयार है। अतएव सार्वजनिक वस्तु की कुल माँग सभी व्यक्तियों के माँग वक्रों का लम्बीय योगफल होगा जो यह दर्शाता है कि सार्वजनिक वस्तु की एक दी हुई मात्रा के लिये लोग कितनी कीमत देने को तैयार हैं। इसे रेखाचित्र के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है।

रेखाचित्र में सामाजिक वस्तुओं के माँग तथा पूर्ति-वक्रों को निजी वस्तुओं एवं पूर्ति वक्रों की तरह दर्शाया गया है। यह काल्पनिक वक्र होगा क्योंकि व्यवहार में इसे प्राप्त करना सम्भव नहीं है। रेखाचित्र में PA तथा D3 लमशः A एवं । त्यक्तियों का माँग-वक्र है। इन वक़ो को लवीय रूप से जोड़कर बाजार भाग वक्र प्राप्त किया जाता है, जो PA +B) है। SS पूर्ति-वक्र है। माँग-वक्र LA+B) पूर्ति-वक्र को बन्दुE पर काटता है। E बिन्दु पर सन्तुलन है और यहाँ सन्तुलन स्तर या संस्थिति उत्पादन 00 है

निजी वस्तुएँ और उनका माँग तथा पूर्तिवक्र

निजी वस्तुओं के सम्बन्ध में प्रत्येक उपभोक्ता वस्तु की कीमत को दिया हुआ मानकर चलता है. और वस्तु की इतनी मात्रा क्रय करता है, जिससे उसकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर कीमत के बराबर हो जाये।

किसी दी हुई निजी वस्तु के सम्बन्ध में माँग-वक्र यह प्रदर्शित करता है कि दी हुई बाजार कीमत पर उपभोक्ता किसी वस्तु की कितनी मात्रा क्रय करने को तैयार है। चूँकि निजी वस्तुएँ विभाज्य divisible) होती हैं और इन वस्तुओं का उपभोग एक समय में सभी व्यक्ति समान मात्रा में नहीं कर सकते हैं। इसलिये निजी वस्तु की कुल माँग (बाजार माँग) विभिन्न व्यक्तियों की व्यक्तिगत माँग का क्षैतिजीय योगफल होता है।

रेखाचित्र में निजी वस्तुओं के माँग एवं पूर्ति-वक्रों को दर्शाया गया है। रेखाचित्र में A एवं B व्यक्तियों का माँग-वक्र क्रमशः DA तथा DB हैं। DA तथा DB वक्रों को क्षैतिज रूप से जोड़कर बाजारी – माँग-वक्र DAB) को प्राप्त किया गया है। SS पूर्ति-वक्र है। बाजारी माँग-वक्र RA+B) पूर्ति-वक्र SS को E बिन्दु पर काटता है जो सन्तुलन की स्थिति को दिखाता है। यहाँ E बिन्दु पर वस्तु की माँग और पूर्ति बराबर है। कीमत दोनों व्यक्तियों के लिये OP होगी जिस पर A व्यक्ति OG तथा B व्यक्ति OH वस्त की मात्रा खरीदता है। OG + OH = OK है। निजी वस्तु के सम्बन्ध में यह कुशलतम स्थिति है क्योंकि यहाँ प्रत्येक उपभोक्ता की दृष्टि से सीमान्त लाभ = सीमान्त लागत है।

सार्वजनिक निजी वस्तु में अन्तर

(Distinction between Public Goods and Private Goods)

1 सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग में उपभोक्ताओं में परस्पर प्रतिद्वन्दिता नहीं होती, जबकि निजी वस्तुओं के उपभोग में प्रतिद्वन्दिता होती है।

2. सार्वजनिक वस्तुओं के सम्बन्ध में अपवर्जन का सिद्धान्त नहीं होता, जबकि निजी वस्तुओं के सम्बन्ध में यह सिद्धान्त लागू होता है।

3. सार्वजनिक वस्तुओं के सामाजिक लाभ उनके निजी लाभ से अधिक होते हैं, जबकि चिजी वस्तुओं के सामाजिक लाभ उनके निजी लाभ के बराबर होते हैं।

4. सार्वजनिक वस्तुओं का उपभोग सामूहिक स्तर पर किया जाता है, जबकि निजी वस्तुओं का उपभोग व्यक्तिगत स्तर पर किया जाता है।

5. सार्वजनिक वस्तुओं का वित्त प्रबन्धन बजट प्रणाली द्वारा किया जाता है, जबकि निजी वस्तुओं का वित्त प्रबन्धन निजी व्यक्तियों/फर्मों द्वारा ही किया जाता है।

6. सार्वजनिक तस्तु की एक ही मात्रा विभिन्न व्यक्तियों द्वारा भिन्न-भिन्न कीमतों पर उपयोग की।जाती है, जबकि निजी वस्तओं की एक ही मात्रा की कीमत विभिन्न व्यक्तियों के लिए एक समान होती

7. सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग से सभी को समान लाभ प्राप्त होता है, जबकि निजी वस्तुओं के उपभोग से सबको समान लाभ प्राप्त नहीं होता।

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III उत्कृष्ट वस्तुएँ/गुणधारित आवश्यकताएँ

(Merit Goods/Wants)

अभी तक हमने सार्वजनिक एवं निजी आवश्यकताओं का अध्ययन किया। ये आवश्यकताएँ इस अर्थ में एक सी हैं कि इनके सम्बन्ध में उपभोक्ता की प्रभुसत्ता (sovergenity) को महत्त्व दिया जाता है। इसके अतिरिक्त एक अन्य महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है जिन्हें पूर्ण रूप से उपभोक्ताओं की रुचि या सन्तुष्टि पर नहीं छोड़ा जा सकता है। इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि (पूर्ति) के लिये मिश्रित प्रणाली अपनाई जाती है।

ये आवश्यकताएँ सार्वजनिक आवश्यकताओं से इस अर्थ में भिन्न होती हैं कि इनके सम्बन्ध में अपवर्जन का सिद्धान्त लागू किया जा सकता है और इनसे मिलने वाला लाभ पूर्णतया आन्तरिक प्रकार का होता है अर्थात् इन वस्तुओं के उपभोग करने वाले व्यक्ति को इनका प्रत्यक्ष लाभ मिलता है। इन आवश्यकताओं की मुख्य विशेषता यह होती है कि इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि से आन्तरिक लाभ के अलावा बाहा लाभ (अप्रत्यक्ष लाभ) भी अधिक होते हैं। अर्थात् (वास्तव में) जो व्यक्ति इन आवश्यकताओं का उपभोग करते हैं उन्हें तो इसका लाभ मिलता ही है इसके अलावा उन लोगों को भी इसका लाभ पहुँचता है जो इनका उपभोग नहीं करते हैं।

गुण आधारित वस्तुओं के उदाहरण के लिये शिक्षा को लिया जा सकता है-जो व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करते हैं, उन्हें तो लाभ मिलता ही है। साथ ही समाज को भी इससे लाभ पहुँचता है। शिक्षित लोगों से वातावरण सभ्य बनता है! एक व्यक्ति शिक्षित होने से उसके कई परिचित उससे लाभ प्राप्त करते हैं। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्र का रहने वाला एक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो उसके शिक्षित हो जाने से उसके ज्ञान से उस क्षेत्र के वे व्यक्ति लाभान्वित होते हैं जो शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। एक अन्य महत्त्वपूर्ण उदाहरण गुण आधारित वस्तुओं का लिया जा सकता है वह है-चेचक के टीके लगवाने का। चेचक का टीका लगवाने से मात्र वे ही बच्चे स्वास्थ्य लाभ प्राप्त नहीं करते जिनको टीके लगाये जाते हैं वरन इनसे पूरे समाज को लाभ पहुँचता है क्योंकि इससे पूरे समाज में स्वास्थ्य के वातावरण की संसृष्टि, होती है।

इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मसग्रेव ने किया था। सामाजिक दृष्टि से इन आवश्यकताओं का अत्यधिक महत्त्व होने के कारण इन्हें गुणधारित आवश्यकताएँ कहा गया है। कल्याणकारी राज्य की स्थापना के उद्देश्य को स्वीकार करते हुए अनेकानेक सरकारें इन आवश्यकताओं की पूर्ति पर अधिक बल देने लगी हैं। शिक्षा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताएँ गुणधारित आवश्यकताएँ हैं। ऐसे सार्वजनिक माल (Public Goods) जो इन गुणधारित आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, समाज की कार्यकुशलता को बढ़ाते हैं। ऐसी गुणधारित आवश्यकताओं की तुष्टि बाजार में माँग और पूर्ति की स्वतन्त्र क्रीड़ा पर । छोड़ दी जाये तो बच्चों की शिक्षा की लागत उनके अभिभावकों को वहन करनी होगी। ऐसी स्थिति में। निर्धन एवं मेधावी छात्र शिक्षा से वंचित रह सकते हैं। इसकी क्षति केवल उन बच्चों को ही नहीं सहन करनी पड़ेगी, जो शिक्षा से वंचित रह गये हैं, बल्कि देश को भी सहन करनी पड़ेगी, क्योंकि भावी नागरिकों की कार्यकुशलता घट जायेगी। समान रूप से यदि स्वास्थ्य सेवाओं की पूर्ति भी बाजार पर छोड़। दी जाये तो अनेक मूल्यवान जीवन समाप्त हो सकते हैं और सामान्य स्वास्थ्य स्तर तथा उत्पादकीय कार्यक्षमता गिर सकती है। अतः ऐसी आवश्यकताओं की पूर्ति का उत्तरदायित्व प्रायः सरकार के पास ही रहता है।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. सार्वजनिक वस्तुओं से क्या आशय है। इनकी प्रमुख विशेषताएँ बताइये तथा माँग एवं पूर्ति वक्रों की सहायता से इनकी अनुकूलतम स्थिति को स्पष्ट कीजिये।।

What is meant by Public Goods ? State their main characteristics and also explain their optimum position with the help of demand and supply curves.

प्रश्न 2. निजी वस्तुओं से क्या आशय है ? इनकी प्रमुख विशेषताएँ बताइये तथा सार्वजनिक व निजी वस्तुओं में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

What is meant by Private Goods ? Explain their main characteristics. Distinguish between public goods and private goods.

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. सार्वजनिक वस्तुओं से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by public goods ?

प्रश्न 2. निजी वस्तुओं से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by private goods ?

प्रश्न 3. गैर-प्रतिद्वन्द्विता से क्या आशय है ?

What is meant by non-rivalry ?

प्रश्न 4. निजी वस्तु के सन्दर्भ में अपवर्जन सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।

Explain the principal of exclusion in reference to private goods.

प्रश्न 5. सार्वजनिक व निजी वस्तुओं में अन्तर बताइये

State the difference between public goods and private goods.

प्रश्न 6. उत्कृष्ट वस्तुएँ/गुणधारित आवश्यकतओं से क्या आशय है ?

What is meant by Merit goods/wants.

 

chetansati

Admin

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