BCom 2nd Year Problem justice Taxation Study material Notes In Hindi

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(iii) न्यूनतम त्याग का सिद्धान्त (Principle of Least Aggregate Sacrifice)-इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो० एजवर्थ तथा कार्बर (Carver) ने किया तथा डाल्टन, प्रो० मार्शल एवं पीगू ने इसका समर्थन किया। इस सिद्धान्त के अनसार कर की व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिये कि कर का कुल भार न्यूनतम हो। प्रत्येक करदाता का कल त्याग बराबर न होकर सीमान्त त्याग बराबर होना चाहिये। यह सिद्धान्त उपयोगिता हास नियम पर आधारित है। किसी व्यक्ति के पास मुद्रा की मात्रा जितनी अधिक बढ़ती है, उसकी सीमान्त उपयोगिता उतनी ही गिरती जाती है। इस दृष्टि से अमीर व्यक्ति द्वारा अधिक मात्रा में लगाये गये करों से उतना ही त्याग किया जाता है जितना कि निर्धन व्यक्ति द्वारा कम करों से। यदि प्रत्येक करदाता का सीमान्त त्याग बराबर है तो समाज का कुल त्याग न्यूनतम होगा। इसके लिये आवश्यक है कि कर प्रणाली प्रगतिशील (Progressive) हो अर्थात् अधिक आय वाले व्यक्तियों को कम आय वाले व्यक्तियों की तुलना में अनुपात से अधिक कर देना चाहिये। एजवर्थ के अनुसार, “न्यूनतम त्याग का सिद्धान्त करारोपण का श्रेष्ठ सिद्धान्त है। कल त्याग जितना कम होगा,समाज में कर के भार का वितरण उतना ही अच्छा होगा। राज्य का उद्देश्य मानवीय कल्याण को अधिकतम करना है। जो लोगों के न्यूनतम त्याग से ही सम्भव है। इस प्रकार यह सिद्धान्त अधिकतम सामाजिक कल्याण की धारणा पर आधारित है।

उपर्युक्त सिद्धान्त का निष्कर्ष यह है कि उच्च आय वर्ग पर प्रगतिशील दर से कर लिया जाना चाहिये तथा कर प्रणाली का उद्देश्य सम्पत्ति के वितरण में जितना अधिक सम्भव हो सके, समानता लाना होना चाहिये। प्रो० पीगू ने न्यूनतम त्याग सिद्धान्त को करारोपण का अन्तिम सिद्धान्त कहा है।

भावात्मक दृष्टिकोण की सीमाएँ (Limitations of Subjective Approach)-भावात्मक दृष्टिकोण की मुख्य सीमाओं को निम्न प्रकार से रखा जा सकता है

(1) रुचि प्रकृति में अन्तरविभिन्न व्यक्तियों की आयकर की मात्रा समान होने पर भी उन सभी के सीमान्त त्याग को बराबर करना कठिन होगा क्योंकि व्यक्ति की रुचि व प्रकृति में अन्तर पाया जाता है।

(2) आय अर्जित करने का ढंगमेहनत से अर्जित की गयी आय की उपयोगिता उत्तराधिकार में प्राप्त सम्पत्ति से अर्जित आय की उपयोगिता की तुलना में अधिक होती है, परन्तु इन बातों को भावात्मक दृष्टिकोण से भुगतान करने की योग्यता का माप करते समय ध्यान में नहीं रखा जाता है।

(3) सीमान्त उपयोगिता की गिरती दर को मापना कठिन-आय के बढ़ने के साथ-साथ उपयोगिता गिरती जाती है, परन्तु उसे मापना सम्भव नहीं हो पाता है। अतः करों में प्रगतिशीलता का सहारा लेना काल्पनिक है तथा इससे सीमान्त त्याग समान नहीं हो पाता है।

(4) सही माप सम्भव नहींत्याग एक भावात्मक दृष्टिकोण होने से उसे सही ढंग से मापना सम्भव नहीं हो पाता है। इसी प्रकार उस स्थिति को प्राप्त करना भी कठिन होता है जहाँ पर सभी व्यक्तियों का कुल त्याग न्यूनतम हो।

(II) वस्तुगत दृष्टिकोण (Objective Approach)-भावात्मक दृष्टिकोण की कठिनाइयों को । देखते हुए अमेरिकन अर्थशास्त्रियों ने करदेय क्षमता की माप हेतु वस्तुगत दृष्टिकोण को अपनाने का समर्थन किया। वस्तुगत दृष्टिकोण से कर-दान योग्यता निम्न बातों पर निर्भर करती है

(i) उपभोग का स्तर,

(ii) करदाता की सम्पत्ति,

(iii) करदाता की आय

Problem justice Taxation Study 

(1) उपभोग का स्तरकरदान योग्यता उपभोग पर निर्भर करती है जो व्यक्ति जितना अधिक उपभोग पर व्यय करेगा उसकी कर देने की शक्ति उतनी ही अधिक होगी तथा जो व्यक्ति उपभोग पर जितना कम व्यय करेगा उसकी कर देने की सामर्थ्य उतनी ही कम होगी। प्रायः धनी व्यक्ति निर्धनों की अपेक्षा उपभोग पर अधिक व्यय करते हैं। अतः धनी लोगों पर ऊँची दर से कर लगाकर उनकी फिजूलखर्ची को रोका जा सकता है, परन्तु उपभोग के आधार पर करारोपण करने से निम्नांकित दोष उत्पन्न हो सकते हैं

(1) अधिक उपभोग या व्यय करने का अर्थ यह नहीं होता कि व्यक्ति अधिक कर दे सकता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जिसके परिवार के सदस्यों की संख्या दूसरे व्यक्ति की तुलना में अधिक है। का व्यय स्वाभाविक रूप से अधिक होगा। इसका अर्थ यह नहीं कि उस व्यक्ति की कर देय योग्यता भी अधिक हो।

(2) उपभोग के आधार पर करारोपण करने से उपभोग की मात्रा कम हो जायेगी। फलतः व्यक्तियों की कार्यकुशलता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा जिसके कारण उत्पादन गिर जायेगा।

(3) ऐसे करदाता को जो कंजूस है और कम खर्च करता है, परन्तु उसकी आय अधिक है, कम करचकाना पड़ेगा यद्यपि उसकी करदेय योग्यता अधिक है।

(4) एक खर्चीले व्यक्ति को अपनी करदेय योग्यता से अधिक कर चुकाना पड़ सकता है।।

(II) करदाता की सम्पत्ति-अधिक सम्पत्ति वाले व्यक्तियों की करदान क्षमता अधिक व कम सम्पत्ति वाले की कम रहती है। अधिक सम्पत्ति का होना मनुष्य की आर्थिक शक्ति का द्योतक होता है। सके अनुसार जिस मनुष्य के पास जितनी अधिक सम्पत्ति हो, उससे उतना ही अधिक कर वसूल करना पाहिए। यह कर प्रगतिशील कर की दर के आधार पर वसूल किया जाना चाहिए।

कठिनाइयाँ व त्रुटियाँ-सम्पत्ति के आधार पर करदान सामर्थ्य मानकर कर लगाने में निम्न ना कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैंन

(1) समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अधिक आय को नकदी में ही रखना पसन्द करते हैं

और उसे सम्पत्ति में लगाना नहीं चाहते तथा अपने जीवन-स्तर को ऊँचा उठा लेते हैं। ऐसी स्थिति में, , सम्पत्ति को कर देने की योग्यता का आधार मानना गलत साबित हो जाता है।

(2) कुछ व्यक्तियों के पास सम्पत्ति नहीं होती, परन्तु उनकी आय अधिक होती है। ऐसे व्यक्ति – अमितव्ययी हो सकते हैं। अतः यदि सम्पत्ति के आधार पर कर लगाया जाए तो वे व्यक्ति जिनकी आय अधिक है और अमितव्ययी हैं कर से मुक्ति पा जाएँगे। यह अनुचित होगा।

(3) सम्पत्ति के आधार पर करारोपण करने से व्यक्ति अमितव्ययी बन जाएँगे, क्योंकि सम्पत्ति एकत्रित करने पर उन्हें कर चुकाना पड़ेगा।

(4) यह आवश्यक नहीं है कि समान सम्पत्ति से समान आय प्राप्त हो। इस दृष्टि से सम्पत्ति का आधार अनुचित होगा।

(5) सम्पत्ति का मूल्यांकन करना सरल नहीं होता।

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(iii) व्यक्ति की आय (Individual Income)-आय को कर का आधार मानते हुए करारोपण किया जा सकता है। कुछ विद्वानों का मत है कि जिस व्यक्ति की आय अधिक हो उससे अधिक कर तथा जिसकी आय कम हो उससे कम कर वसूल किया जाना चाहिए। आय का आधार निम्न कारणों से उपयुक्त नहीं माना जाता हैं ।

(1) यह हो सकता है कि दो व्यक्तियों की आय समान हो, परन्तु एक व्यक्ति के परिवार में सदस्यों की अधिक संख्या होने के कारण उसका पारिवारिक उत्तरदायित्व दूसरे छोटे परिवार वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक हो।

(2) कुछ व्यक्तियों की आय अनार्जित होती है अर्थात् वे पैतृक सम्पत्ति से आय प्राप्त करते हैं और कुछ व्यक्तियों को आय उनके कठोर परिश्रम के कारण प्राप्त होती है। इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों के लिए कर की दर समान नहीं हो सकती है अतः आय का आधार उचित नहीं माना जाता है।

लॉर्ड स्टाम्प के अनुसार, अन्य आधारों की तुलना में आय का आधार कर देने की योग्यता का एक सर्वोत्तम प्रमाण माना जाना चाहिए, यदि करारोपण करते समय निम्न बातों पर ध्यान दिया जाये

() अतिरिक्त आय-कुल आय में अतिरिक्त आय को भी सम्मिलित करना चाहिए तथा उस अतिरिक्त आय पर ऊँची दर से कर लगाया जाना चाहिए। इससे व्यक्ति की करदेय क्षमता पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

() आय के साधन-आय-कर निर्धारित करते समय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि उसे वह आय निजी प्रयत्नों से प्राप्त हई है या उत्तराधिकार में प्राप्त सम्पत्ति से हुई है। निजी प्रयत्नों से प्राप्त आय पर कम दर से करारोपण किया जाना उचित माना जाता है।

() आय प्राप्त होने परकरदाता से आय प्राप्त होने पर ही कर लगाया जाना चाहिए, अन्यथा उसे अपार कष्ट सहना पड़ेगा। इसके लिए यह आवश्यक होगा कि व्यक्ति से आय-प्राप्ति के साथ ही कर वसूल कर लिया जाये।

() हास का प्रबन्धस्थायी सम्पत्ति से जो आय प्राप्त होती है, उसमें हास का भी उचित प्रबन्ध किया जाना चाहिए और शेष आय पर ही कर लगाया जाना उचित होगा।

() परिवार के सदस्यों की संख्या-करारोपण करते समय व्यक्ति के परिवार के सदस्यों की संख्या को भी ध्यान में रखना चाहिये। यदि किसी परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक है तो इस पर कम कर लगाया जाना चाहिये।

() न्यूनतम छूटकरारोपण करते समय जीवन-निर्वाह के लिये न्यूनतम छूट का प्रबन्ध अवश्य किया जाना चाहिये। इससे कम आय वाले वर्ग के व्यक्तियों को छोड़ दिया जाता है।

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(6) आधुनिक मतअधिकतम सामाजिक कल्याण

(Present Views-Maximum Welfare Principle)

आधुनिक लेखकों ने कर भार के उचित वितरण के लिये न्याय के सिद्धान्त पर कल्याण को प्राथमिकता प्रदान की है। व्यक्तियों के विभिन्न उपभोग पर आय का वितरण इस ढंग से होना चाहिये कि उनका कल्याण अधिकतम हो। अतः जब व्यक्तियों की आय समान होती है तो उनका कल्याण भी अधिकतम होता है। करारोपण नीति को समान सीमान्त त्याग पर निर्भर करके भी अधिकतम कल्याण प्राप्त हो सकता है। इस सिद्धान्त के महत्व का सही आँकलन तभी सम्भव हो सकता है, जब हम लोक वित्त के विभिन्न अंगों के प्रति प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के विचारों को याद करें। पीगू का विचार है कि कर-प्रणाली को न्यूनतम औसत त्याग पर आधारित करके ही अधिकतम कल्याण सम्भव किया जा सकता है। मार्शल एवं सिजविक ने ‘समान त्याग’ सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था जिसे पीगू ने स्वीकार नहीं किया। पीगू ने बताया कि करों का विभाजन इस प्रकार करना चाहिये कि सभी करदाताओं के लिये भुगतान करने वाले द्रव्य की सीमान्त उपयोगिता समान हो। पीगू एवं डाल्टन ने बजट नीति से सम्बन्धित सीमान्त सन्तोष व सीमान्त त्याग पर आधारित दो सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है

(i) सरकार को विभिन्न मदों पर अपनी आय इस प्रकार व्यय करनी चाहिये कि प्रत्येक मद पर व्यय की गयी राशि से प्राप्त सीमान्त सन्तोष लगभग बराबर हो।

(i) सार्वजनिक व्यय उस सीमा तक बढ़ाते रहना चाहिये जब तक कि इस व्यय से उत्पन्न होने वाला सन्तोष राज्य द्वारा लगाये गये करों से उत्पन्न होने वाले असन्तोष के बराबर न हो जाये। बजट नीति द्वारा सामाजिक कल्याण को अधिकतम करना ही उपयुक्त रहता है। मसग्रेव के अनुसार, “करों के आबंटन में न्यूनतम त्याग सिद्धान्त, सार्वजनिक व्यय के निर्धारण के अधिकतम लाभ सिद्धान्त से मेल खाता है और यह दोनों ही बजट नियोजन के सामान्य सिद्धान्त में पाये जाते हैं।”

(7) तटस्थता सिद्धान्त (Principle of Neutrality)

इस सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों पर इस प्रकार कर लगाया जाना चाहिये कि करदाता की आर्थिक स्थिति तटस्थ बनी रहे तथा आय की असमानताएँ उसी रूप में विद्यमान रहें। प्रो० पीगू का मत है कि शासन का उद्देश्य केवल कर वसूल करना है और आय की असमानताओं को कम करने के प्रति तटस्थ रहना है। इसमें केवल वर्तमान त्यागों को ही दृष्टि में रखा गया है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. ‘कराधान में न्याय की समस्या’ क्या है ? इस सन्दर्भ में करदेय योग्यता के सिद्धान्तों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

What is the Problem of Justice in Taxation’? In this connection examine critically the principle of ability to pay

प्रश्न 2.”आर्थिक दृष्टिकोण से करदान की सर्वोतम प्रथा वह है जिसका आर्थिक परिणाम सर्वोत्तम हो या जिसके दुष्परिणाम कम से कम हो।” (डाल्टन) विवेचना कीजिये।

“The best system of taxation from the economic points of view, is that which has the best or the least bad economic effects.” (Dalton) Discuss.

प्रश्न 3. कराधान सिद्धान्तों में करदान योग्यता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये। आय किस सीमा तक करदान योग्यता का सन्तोषजनक माप है ?

Explain the principle of taxable capacity in the principles of taxation. How far income is the satisfactory measurement of taxable capacity?

प्रश्न 4. “कर पद्धति को इस ढंग से व्यवस्थित किया जाना चाहिये कि उससे कुल प्रत्यक्ष वास्तविक भार न्यूनतम हो।” (डाल्टन) समानता की दृष्टि से करारोपण में कर भार वितरण की समस्या की विवेचना कीजिये।

“The tax system should be so arranged as to make the total direct burden as small as possible.” (Dalton) Discuss the problem of distribution of the burden of taxation from the point of view of equity.

प्रश्न 5. ‘न्यूनतम कुल त्याग’ के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये। इससे किस प्रकार प्रगतिशील करारोपण को प्राप्त किया जा सकता है ?

Explain the principle of ‘Least aggregate sacrifice’ and show how it leads to progressive taxation.

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. सेवा लागत के सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।

Explain the cost of service theory.

प्रश्न 2. डी मार्को के आय सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।

Explain the Income theory of De Marco.

प्रश्न 3. करदेय योग्यता सिद्धान्त में भावात्मक दृष्टिकोण को समझाइये।

Clear the subjective approach to the ability to pay tax.

प्रश्न 4. भावात्मक दृष्टिकोण की सीमाएँ बताइये।

Explain the limitations of the subjective approach.

प्रश्न 5. अधिकतम कल्याण सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।

Explain the maximum welfare principle.

प्रश्न 6. करभार वितरण के तटस्थता सिद्धान्त को संक्षेप में बताइये।

Briefly explain the principle of neutrality in the distribution of tax burden.

प्रश्न 7. करदान योग्यता के सम्बन्ध में लॉर्ड स्टाम्प के विचार स्पष्ट कीजिये।

Explain the views of Lord Stamp regarding the ability to pay tax.

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chetansati

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