BCom 2nd Year Procedure Assessment Return Income Permanent Account Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd Year Procedure Assessment Return Income Permanent Account Study Material Notes In Hindi

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Procedure Assessment Return
Procedure Assessment Return

BCom 2nd Year Cost Accounting Service and Operating Cost Study Material Notes In Hindi

करनिर्धारण की कार्यविधि : 2 आयविवरणी, स्थायी खाता संख्या एवं कर निर्धारण के प्रकार

(PROCEDURE OF ASSESSMENT : RETURN OF INCOME, PERMANENT ACCOUNT NUMBER AND TYPES OF ASSESSMENT

कर-निर्धारण से आशय सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष हेतु किसी करदाता की कुल आय एवं उस पर देय कर की गणना करना है। चूंकि आय-कर प्रतिवर्ष लगने वाला कर है, अत: करदाता का प्रत्येक वर्ष कर-निर्धारण किया जाता है। कर-निर्धारण की प्रक्रिया करदाता द्वारा आय का विवरण (Return of Income) प्रस्तुत करने के साथ प्रारम्भ होती है तथा करदाता द्वारा देय आय-कर के निर्धारण एवं माँग के नोटिस/कर वापसी तक चलती है। संक्षेप में, कर-निर्धारण की सम्पूर्ण प्रक्रिया को निम्नलिखित विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत विभक्त किया जा सकता है

1 आय की विवरणी (Return of Income)

2. करनिर्धारण (Assessment)

  • स्वयं कर-निर्धारण (Self Assessment)
  • नियमित कर-निर्धारण (Regular Assessment)
  • सर्वोत्तम निर्णय कर-निधारण (Best Judgment Assessment)
  • पुनः कर-निर्धारण (Re-assessment)

III. भूल सुधार (Rectification of Mistakes)

1 मॉग का नोटिस (Notice of Demand)

2. हानि की सूचना (Intimation of Loss)

Procedure Assessment Return Income

(I) आय की विवरणी (धारा 139)

(Return of Income)

आय के विवरण को ‘आय की विवरणी’ अथवा ‘आय का नक्शा’ भी कहते हैं। यह एक ऐसा विवरण है जिसमें आय के प्रत्येक शीर्षक से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, धारा 80 की कटौतियाँ, कर-दायित्व का विवरण, कर से छूटों का विवरण, घोषणा एवं इसे भरने के लिए कुछ वांछित संकेत एवं सुझाव दिये रहते हैं। यह छपे हुए फॉर्म के रूप में हिन्दी या अंग्रेजी अथवा दोनों भाषाओं में होता है। करदाता इसे आय-कर कार्यालय से प्राप्त कर सकता है अथवा बाजार से क्रय कर सकता है। आय-कर अधिनियम की धारा 139 के अनुसार आय की विवरणी से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित प्रकार हैं

1 आय की विवरणी प्रस्तुत करना (Filing or Submission of Return of Income)-धारा 139(1) के अनुसार, प्रत्येक कम्पनी एवं साझेदारी फर्म को आय का विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है चाहे उन्हें लाभ हो अथवा हानि। अन्य कोई भी व्यक्ति, जिसकी स्वयं की कुल आय अथवा उस व्यक्ति की कुल आय, जिसकी आय पर वह आय-कर देने के लिए दायी है, यदि आय अधिकतम कर-मुक्त सीमा से अधिक है तो उसके लिए आय का विवरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है। ऐसा व्यक्तिगत वर्ष की आय का विवरण निर्धारित फॉर्म में तथा निर्धारित ढंग से प्रमाणित करके आय-कर कार्यालय में देय तिथि को या इससे पूर्व निर्धारित संलग्नकों के साथ दाखिल करता है। कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 के लिए 60 वर्ष से कम आयु वाले पुरुष एवं महिला निवासी व्यक्ति (An Individual), हिन्दू अविभाजित परिवार एवं A.O.P. तथा B.O.I. के लिए कर-मुक्त आय की सीमा 2,50,000 ₹ है। 60 वर्ष या अधिक लेकिन 80 वर्ष से कम आयु वाले निवासी व्यक्ति (पुरुष एवं महिला) करदाता के लिए कर-मुक्त आय की सीमा 3 लाख र है। 80 वर्ष या अधिक आयु वाले निवासी व्यक्ति (पुरुष एवं महिला) करदाता के लिए। कर-मुक्त सीमा 5 लाख ₹ है।

कम्पनी, फर्म एवं सहकारी समिति आदि को अपनी सम्पूर्ण आय पर आय-कर चुकाना पड़ता है अर्थात् इनके लिए कर-मुक्त सीमा शून्य है।

पुण्यार्थ ट्रस्ट आदि को आयकर विवरणी दाखिल करना-यदि ऐसी संस्था की आय धारा 11 एवं 12 के अन्तर्गत कर मुक्त राशि घटाने से पूर्व कर-योग्य सीमा से अधिक है, तो इसे देय तिथि तक अपनी आय का विवरण दाखिल करना होगा।।

राजनीतिक दल को आयकर विवरणी दाखिल करना-यदि राजनीतिक दल की आय धारा 13A के अन्तर्गत कर मुक्त राशि घटाने से पूर्व कर-योग्य सीमा से अधिक है, तो इसे देय तिथि तक अपनी आय का विवरण दाखिल करना होगा।।

हानि की विवरणी-यदि किसी व्यक्ति को गत वर्ष में व्यवसाय से हानि, सट्टा व्यवसाय से हानि, निर्दिष्ट व्यवसाय से हानि। या पूंजी लाभ शीर्षक में हानि होती है, और वह उसे आगे ले जाकर इसकी पूर्ति करना चाहता है तो उसे देय तिथि तक अपनी आय। का विवरण दाखिल करना होगा।

यदि हानि की विवरणी देय तिथि तक दाखिल नहीं की गयी, तो उक्त हानि को आगे ले जाकर पूरा नहीं किया जा सकता। परन्तु यह प्रावधान मकान-सम्पत्ति से आय शीर्षक में हानि, अशोधित ह्रास धारा 32(2)], वैज्ञानिक अनुसंधान तथा परिवार नियोजन पर अशोधित पूँजीगत व्यय के सम्बन्ध में लागू नहीं होता।

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आयकर विवरणी दाखिल करने से मुक्ति (Exemption from Furnishing a Return of Income) [धारा 139(10)]-केन्द्रीय सरकार अधिसूचना जारी करके किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग (Class of persons) को आय-विवरणी दाखिल करने से मुक्त कर सकती है। ऐसा करते समय केन्द्रीय सरकार उन दशाओं (Conditions) को भी अधिसूचित करेगी जिनके अन्तर्गत ऐसी मुक्ति प्रदान की गई है।

भारत के बाहर स्थित सम्पत्तियों के सम्बन्ध में आयविवरणी प्रस्तुत करने की अनिवार्यता (Compulsory Filing of Income-tax Return in Relation to Assets Located Outside India)-कर-निर्धारण वर्ष 2012-13 एवं आगामी वर्षों के लिए निम्नलिखित शर्तों के पूरा होने पर आय-विवरणी को अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करना होगा, भले ही उस व्यक्ति (Person) की कोई कर-योग्य आय हो अथवा नहीं

() यदि व्यक्ति (Person) भारत में निवासी है (असाधारण निवासी के अतिरिक्त). एवं

() उस व्यक्ति (Person) के पास भारत के बाहर कोई सम्पत्ति (किसी सत्ता में वित्तीय हित को सम्मिलित करते हुए) है,

अथवा भारत के बाहर स्थित किसी खाते में हस्ताक्षर करने का अधिकार है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि उपरोक्त दोनों शर्तों में Person की बात कही गई है न कि Individual की। दूसरी बात यह है कि यह प्रावधान सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष हेतु एक अनिवासी अथवा असाधारण निवासी Person की दशा में लागू नहीं होगा।

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आयकर विवरणी के फार्म (Return Form)

आय का विवरण नये आय-कर नियम 12 के अन्तर्गत वर्णित निर्धारित फर्मों में ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस नियम के अनुसार कर-निर्धारण वर्ष 2017-18 हेतु विभिन्न प्रकार के करदाताओं के लिए निर्धारित Return Forms निम्नलिखित प्रकार

1 ITR-1 (SAHAJ सहज) (Indian Individual Income Tax Return)-यह नया फॉर्म वित्त अधिनियम, 2011 के द्वारा कर-निर्धारण वर्ष 2011-12 से प्रभावी किया गया है। भिन्नता प्रदान करने के लिए यह लाल रंग में मुद्रित किया गया है। यह ऐसे व्यक्ति करदाताओं (An Individual Assessee) के लिए है जिनकी निम्नलिखित आय है-(i) वेतन या पेंशन, (ii) एक मकान सम्पत्ति से आय (परन्तु पिछले गत वर्षों की हानि आगे न लाई गई हो). (iii) अन्य साधनों से आय परन्तु लॉटरी की जीत या घुड़दौड़ के घोड़ों (Race Horses) से आय नहीं है और इस शीर्षक में हानि नहीं है।

2. ITR02-यह फॉर्म ऐसे व्यक्तियों एवं हिन्दू अविभाजित परिवार के लिए है जिनकी व्यवसाय या पेशे से आय न हो।

3. ITR2A-यह फार्म ऐसे व्यक्तियों (Individuals) एवं हिन्दु अविभाजित परिवार के लिए है जिनकी (i) व्यवसाय एवं पेशे से आय एवं (ii) पूँजी लाभ शीर्षक के अन्तर्गत आय न हो।

4. ITR-3-यह फॉर्म ऐसे व्यक्तियों एवं हिन्दू अविभाजित परिवार के लिए है जो किसी फर्म में साझेदार हैं, परन्तु उनकी अपने व्यवसाय या पेशे से आय नहीं है।

5. ITR-4-यह फॉर्म ऐसे व्यक्तियों एवं हिन्दू अविभाजित परिवार के लिए है जिनकी अपने व्यवसाय या पेशे से आय है।

6. ITR-4S (SUGAM सुगम) (Presumptive Business Income Tax Return)-यह नया फॉर्म भी वित्त अधिनियम, 2011 के द्वारा कर-निर्धारण वर्ष 2011-12 से प्रभावी किया गया है। यह फॉर्म भी लाल रंग में मुद्रित किया गया है। यह फॉर्म ऐसे व्यक्तियों एवं हिन्दू अविभाजित परिवार एवं फर्म (सीमित दायित्व वाली फर्म को छोड़कर) के लिए है जिनकी धारा 4AAD एवं 44AE के अन्तर्गत व्यवसाय की परिकल्पित आधार पर आय की गणना करनी है।

7. ITR-5-यह फॉर्म फर्म, व्यक्तियों का संघ (AOP) एवं व्यक्तियों का समूह (BOD के लिए है।

8. ITR-6-यह फॉर्म कम्पनी करदाताओं के लिए है। ]

9. ITR-7-यह फॉर्म पुण्यार्थ संस्थाओं, धार्मिक ट्रस्टों एवं राजनीतिक पार्टियों के लिए है।।

10. ITR-V Acknowledgement-वित्त अधिनियम, 2011 के द्वारा कर-निर्धारण वर्ष 2011-12 से प्रभावी-अब यह फार्म सभी ITR के लिए एक ही प्रारूप में कर दिया गया है।

E-Filing of Return-फर्मों, कम्पनी करदाताओं एवं उन सभी करदाताओं को जिन्हें अपने खातों का अंकेक्षण कराना अनिवार्य है तथा प्रत्येक ऐसे करदाता को जो आय-कर विभाग से कर वापसी की माँग करता है, आय-कर विवरणी को e-filing ही करना होगा। इनके अतिरिक्त अन्य करदाता अपनी आय-कर विवरणी को e-filing भी कर सकते हैं, चाहें तो निर्धारित फॉर्म को हाथ से भरकर भी दाखिल कर सकते हैं।

कर-निर्धारण वर्ष 2013-14 से उन सभी करदाताओं के लिए भी आय-कर विवरणी को e-filing करना अनिवार्य कर दिया गया है जिनकी कर-योग्य आय गत वर्ष में 5 लाख १ या अधिक है।

अपवादयदि किसी व्यक्ति की आयु गत वर्ष में 80 वर्ष या इससे अधिक है और वह ITR-1 या ITR-2 में रिटर्न दाखिल कर सकता है तो कर-योग्य आय पाँच लाख से अधिक होने पर या वापसी (Refund) होने पर भी वह हाथ से भरकर पेपर रिटर्न दाखिल कर सकता है।

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2. आय की विवरणी प्रस्तुत करने की निर्धारित तिथि (Due date for Submitting Return of Income)-विभिन्न प्रकार के करदाताओं के लिए अपनी आय का विवरण प्रस्तुत करने की निर्धारित तिथि निम्नलिखित है(अ)

(i) कम्पनी की दशा में-कर-निर्धारण वर्ष की 30 सितम्बरः

(ii) करदाता जिसे धारा 90D के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय संव्यवहार के सम्बन्ध में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है-कर-निर्धारण वर्ष की 30 नवम्बर।

(iii) कम्पनी के अतिरिक्त ऐसे करदाता जिनके खातों का अंकेक्षण इस अधिनियम अथवा किसी अन्य अधिनियम के अन्तर्गत कराना अनिवार्य है-कर-निर्धारण वर्ष की 30 सितम्बर;

(iiii) ऐसी फर्म के, कार्यशील साझेदार की दशा में, जिसके खातों का अंकेक्षण कराना अनिवार्य है-कर-निर्धारण वर्ष की 30 सितम्बर।

() अन्य किसी दशा में-कर-निर्धारण वर्ष की 31 जुलाई।

आय की विवरणी देरी से जमा करने पर फीस-यदि आय की विवरणी निर्धारित तिथि के उपरान्त देर से जमा की जाती है। तो कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 से धारा 234F के अन्तर्गत निम्नलिखित फीस जमा करनी होगी

(i) यदि कुल आय 5,00,000 से अधिक नहीं है तो 1.000।

(ii) किसी अन्य दशा में : (अ) यदि विवरणी सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष में 31.12 या इससे पूर्व जमा की जाती है तो 5,000₹,

() यदि विवरणी सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष में 31.12 के पश्चात् जमा की जाती है तो 10,000 ₹।

(i) नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों की ओर से दाखिल सामूहिक आय की विवरणी (Bulk Filing of Returns of Employees by Employer) [धारा 139(1A)]-ऐसे करदाता जिसकी वेतन शीर्षक में आय है, वह अपनी आय-कर विवरणी नियोक्ता को दे सकता है और नियोक्ता देय तिथि अथवा उससे पूर्व आय विवरणी को बोर्ड द्वारा निर्धारित नियम के अनुसार दाखिल करेगा। ऐसी विवरणी को धारा 139(1) में दाखिल किया गया माना जायेगा।

(ii) अधिसूचित योजना के अन्तर्गत आयविवरणी दाखिल करना (Submission of Return of Income as per a Notified Scheme) [धारा 139(1B]-कोई व्यक्ति जो किसी अधिसूचित योजना के अनुसार धारा 139(1) के अन्तर्गत आय-विवरणी दाखिल करने को बाध्य है, स्वेच्छा से, देय तिथि तक किसी भी गत वर्ष से सम्बन्धित आय-विवरणी उक्त योजना में प्रदत्त शर्तों के अनुसार दाखिल कर सकता है। यह आय-विवरणी किसी भी रूप में अर्थात् फ्लॉपी, डिस्क, मैगनेटिक केटरीज टेप, CD-ROM अथवा अन्य कम्प्यूटर मीडिया के रूप में दाखिल की जा सकती है।

(iii) कर विवरणी तैयारकर्ता के माध्यम से आय विवरणियों को

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दाखिल करने की योजना [धारा 139(B)]

(Scheme for Submission of Returns of Income through Tax Return Preparers)

इस नई धारा 139B को 01.06.2006 से लागू किया गया है जिसके अन्तर्गत आय-विवरणी को तैयार करने हेतु कुछ विशिष्ट वर्ग/वर्गों के व्यक्तियों को सुविधा प्रदान की गयी है। इस धारा के महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित प्रकार हैं

1 बोर्ड (CBDT) किसी ऐसी योजना को अधिसूचित कर सकता है जिसके अन्तर्गत किसी विशिष्ट वर्ग द्वारा अथवा किसी वर्ग के व्यक्तियों द्वारा अपनी आय-विवरणी कर-विवरण तैयारक (Tax Return Preparer) से तैयार कराके उनके माध्यम से ही दाखिल की जा सकती है। कर-विवरण तैयारक कर-विवरण तैयार करने एवं दाखिल करने के लिए अधिकृत होताल की जा सकती है। करववरण तैयारक (Tax Rent )

प्रत्येक कर विवरणी तैयारकर्ता आय-विवरणी दाखिल करने वाले व्यक्तियों की सहायता करेगा तथा ऐसी विवरणी पर अपने हस्ताक्षर करेगा।

1 इस धारा के उद्देश्यों के लिए

() कर-विवरण तैयारक’ (Tax Return Preparer) से आशय किसी ऐसे व्यक्ति (Individual) से हैं जिस इस धारा के अन्तर्गत अधिसूचित योजना में कर-विवरण तैयार करने के लिए अधिकृत किया गया है।

() विशिष्ट वर्ग अथवा किसी वर्ग के व्यक्ति’ (Specified Classes of Persons) से तात्पर्य किसा भा एस व्यक्ति से है जो इस अधिनियम के अन्तर्गत आय-विवरण दाखिल करने को बाध्य है। इसके अन्तर्गत एक कम्पनी अथवा एक ऐसा व्यक्ति, जिसके खातों का अंकेक्षण धारा 44AB के अन्तर्गत अथवा अन्य किसी प्रचलित अधिनियम के अन्तर्गत होना अनिवार्य है, सम्मिलित नहीं है।

फार्म (Electronic form) में रिटर्न प्रस्तत करने के लिए नियम बनाना (धारा 139D)-बोई ई-फॉर्म (Electronic form) में रिटर्न प्रस्तुत करने के लिए निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में नियम बना सकता ह

(i) किस वर्ग या किन्हीं वर्गों के व्यक्तियों को Electronic form में रिटर्न दाखिल करना होगा,

(ii) किस फॉर्म तथा किस प्रकार Electronic form में रिटर्न दाखिल करना होगा,

(iii) कौन-कौन से दस्तावेज विवरण, रसीदें, प्रमाण-पत्र या अंकेक्षण रिपोर्ट रिटर्न के साथ दाखिल नहीं की जाएंगी, परन्तु कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा मांगने पर प्रस्तुत करनी होगी,

(iv) किस Computer resource या Electronic record द्वारा Electronic form में रिटर्न दाखिल किया जा सकेगा

(iv) आय की विवरणी देर से दाखिल करना (Late Filing of Return of Income or Belated Return) [धारा 139(4)]-यदि किसी व्यक्ति ने धारा 139(1) में वर्णित निर्धारित तिथि तक अथवा धारा 142(1) में जारी किए गए नोटिस में वर्णित अवधि के अन्तर्गत अपनी आय की विवरणी दाखिल नहीं की है तो सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष की समाप्ति तक या कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा कर-निर्धारण से पूर्व, जो तिथि पहले हो तक दाखिल करनी होगी (कर-निर्धारण वर्ष 2017-18 से प्रभावी)। इस प्रकार दाखिल की गई आय की विवरणी को विलम्बित विवरणी (Belated Return) कहते हैं।

विलम्बित आय-कर विवरणी जमा करने पर करदाता को धारा 234B के अन्तर्गत सम्बन्धित अवधि का ब्याज तथा कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 से धारा 234F के अन्तर्गत 1,000२/5,000 या 10,000 ₹ जो भी लागू हो फीस जमा करनी होगी। पीछे विस्तृत विवेचना की जा चुकी है। साथ-ही-साथ धारा 139(3) के प्रावधानों के अलावा धारा 10A, 10B, 80-1A, 80-1AB, 80-1B, 80-1C,80-1D एवं 80-1E की कटौती भी नहीं प्राप्त होगी।

(v) आय का संशोधित विवरण (Revised Return of Income)-धारा 139(5) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को अपनी आय का विवरण दाखिल करने के बाद अपनी किसी भूल या गलती का आभास होता है तो वह कर-निर्धारण के पूर्ण होने से पूर्व अथवा सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष समाप्त होने तक जो भी तिथि पहले आये किसी भी समय संशोधित आय का विवरण दाखिल कर सकता है बशर्ते निम्नलिखित शर्त पूरी हो रही हों

1 प्रथम विवरण जिसके सम्बन्ध में संशोधित विवरण दाखिल किया जा रहा है धारा 139(1) में वर्णित अवधि में दाखिल कर दिया गया था।

2. गलती, अज्ञानतावश एवं सदभावनापूर्ण होनी चाहिए अर्थात् भूल जान-बूझकर नहीं की गई होआय का संशोधित विवरण प्रस्तुत करने पर पूर्व में दाखिल किया गया विवरण निरस्त हो जाता है। एक बार संशोधित विवरण प्रस्तुत करने के बाद यदि कोई त्रुटि रह जाये तो पुन: संशोधित विवरण प्रस्तुत किया जा सकता है बशर्ते कि समय सीमा समाप्त नहीं हई हो एवं उक्त अवधि में कर-निर्धारण नहीं हुआ हो। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि गलती बार-बार हुई है। परन्तु अज्ञानतावश एवं सद्भावनापूर्ण है तो विवरणी को बार-बार भी इस धारा के प्रावधान के अन्तर्गत निर्धारित समय-सीमा में संशोधित किया जा सकता है।

नोट-कर-निर्धारण वर्ष 2017-18 से विलम्बित विवरणी (Belated Return) दाखिल करने पर भी संशोधित विवरणी दाखिल की जा सकेगी।

(iv)  आय की विवरणी का दोषपूर्ण होना (Defective Return of Income) [धारा 139(9)]-यदि कर-निर्धारण अधिकारी को ऐसा लगता है कि करदाता द्वारा दाखिल की गयी आय की विवरणी दोषपूर्ण है, तो वह करदाता को ऐसी त्रुटि के बारे में सूचना देगा तथा 15 दिन की अवधि के भीतर ऐसी त्रुटि को सुधारने का अवसर प्रदान करेगा। करदाता द्वारा प्रार्थना करने पर 15 दिन की अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है। यदि निर्धारित अवधि में ऐसी गलती को नहीं सधारा जाता. तो ऐसी विवरणी। को व्यर्थ माना जायेगा और यह माना जायेगा जैसे कि करदाता ने आय का विवरण दाखिल ही न किया हो।

यदि करदाता निर्धारित 15 दिन की अवधि या बढ़ाई गई अवधि के बाद, किन्तु कर-निर्धारण होने से पूर्व दोष को सुधार देता है, तो निर्धारण अधिकारी इस देरी को माफ कर सकता है तथा विवरणी को वैध मान सकता है।

स्पष्टीकरण  यदि अग्रलिखित सभी शर्तों को पूरा नहीं किया गया है, तो दाखिल की गयी विवरणी को दोषपूर्ण माना जाता है

1 प्रत्येक शीर्षक की आय की गणना, सकल कुल आय एवं कुल आय की गणना से सम्बन्धित स्तम्भ (Columns), विवरण (Statements) एवं संलग्नक (Annexures) ठीक प्रकार से भरे गये हैं।

2. आय के विवरण में दर्शायी गयी आय के आधार पर देय कर की गणना का विवरण भी लगा हुआ है।

3. आवश्यक होने पर धारा 44AB में वर्णित ‘अंकेक्षण रिपोर्ट’ भी आय-विवरणी के साथ संलग्न की गई है।

4. उद्गम स्थान पर काटे गए कर, अग्रिम कर के भुगतान तथा स्व-कर निर्धारण के समय चुकाए गए कर के भुगतान का प्रमाण संलग्न हो (1 अप्रैल, 2005 से उद्गम स्थान पर काटे गये कर का प्रमाण संलग्न करना आवश्यक नहीं है।); 5. यदि करदाता अपना हिसाब-किताब नियमित रूप से रखता है एवं आय के विवरण के साथ निर्माण खाता, व्यापार खाता, लाभ-हानि खाता अथवा आय-व्यय खाता तथा चिट्ठा तथा एकाकी व्यापार अथवा पेशे की दशा में मालिक का व्यक्तिगत खाता, फर्म की दशा में साझेदारों के व्यक्तिगत खातों की प्रतिलिपियाँ संलग्न की गई हों;

5. यदि करदाता हिसाब-किताब को नियमित पुस्तकें नहीं रखता है, तो आय के विवरण के साथ विक्रय की राशि या सकल प्राप्ति, सकल लाभ, शुद्ध लाभ, अन्तिम रहतिया, देनदार, लेनदार, रोकड़ शेष आदि की सूचनाएं लगाई जानी चाहिए। साथ ही लाभ ज्ञात करने के आधार को भी प्रकट करना चाहिए। ।

6. यदि करदाता द्वारा लेखा पुस्तकों का अंकेक्षण करा लिया गया है तो अंकेक्षित लाभ-हानि खाते अथवा चिट्टे की प्रति एवं अंकेक्षक की रिपोर्ट की प्रति भी आय-विवरणी के साथ संलग्न होनी चाहिए। यदि कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 233B के अन्तर्गत कम्पनी के लागत लेखों का अंकेक्षण भी कराया गया है, तो लागत अंकेक्षण रिपोर्ट की प्रति भी संलग्न होनी चाहिए।

विवरणी पर हस्ताक्षर (Signature on Return) [धारा 140]-आय के विवरण पर निम्नलिखित व्यक्ति हस्ताक्षर करेंगे तथा उसे सत्यापित करेंगे

(i) व्यक्तिसामान्य रूप से व्यक्ति (Individual) की दशा में स्वयं के द्वारा, यदि व्यक्ति भारत के बाहर गया हो, तो उसके द्वारा इस सम्बन्ध में अधिकृत व्यक्ति द्वारा, यदि व्यक्ति का मस्तिष्क ठीक नहीं है, तो उसके संरक्षक द्वारा या

अन्य विशेष परिस्थिति में उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किये जाएंगे।

(i) हिन्दू अविभाजित परिवार-कर्ता द्वारा या विशेष परिस्थिति में परिवार के किसी वयस्क सदस्य द्वारा।

(iii) कम्पनी-प्रबन्ध संचालक द्वारा विशेष परिस्थितियों में अन्य संचालक, अधिकृत व्यक्ति, निस्तारक या प्रमुख अधिकारी द्वारा।

(iv) फर्मप्रबन्धक साझेदार द्वारा या अन्य किसी भी वयस्क साझेदार द्वारा।

(v) सीमित दायित्व वाली फर्म (LLP)-मनोनीत (Designated) साझेदार द्वारा अथवा अन्य किसी साझेदार द्वारा।

(vi) स्थानीय सत्ता–प्रमुख अधिकारी द्वारा।

(vii) राजनीतिक दल-मुख्य प्रशासनिक अधिकारी द्वारा।।

(viii) अन्य दशा में सक्षम या अधिकृत व्यक्ति।

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स्थायी खाता संख्या [धारा 139A]

(Permanent Account Number, i.e., PAN)

जिस प्रकार डाक विभाग द्वारा विभिन्न स्थानों की सरल एवं निश्चित पहचान के लिए पिन कोड नम्बर की व्यवस्था की गई है, उसी प्रकार आय-कर विभाग पूरे देश के विभिन्न करदाताओं की अलग-अलग (निश्चित) पहचान के लिए प्रत्येक करदाता को 10 अक्षर-संख्याओं (Alphanumeric) वाला एक विशिष्ट खाता नम्बर (उदाहरणार्थ, ABFPG 1612G) आबंटित करता है, जिसे स्थायी खाता संख्या (संक्षेप में PAN) कहते हैं। यह करदाता के फोटोयुक्त लेमिनेटिड कार्ड के रूप में जारी किया जाता है। जिस करदाता को स्थायी खाता संख्या (PAN) आबंटित हो जाता है उसे आय-कर विभाग के साथ पत्र-व्यवहार करते समय या आय के विवरण, चालान एवं अन्य प्रलेखों में आबंटित ‘स्थायी खाता संख्या का उल्लेख अनिवार्य रूप से करना होता है। संक्षेप में, स्थायी खाता संख्या (PAN) से आशय उस संख्या से है जो आय-कर विभाग द्वारा किसी व्यक्ति को उसकी आय-कर विभाग में पहचान के लिए आबंटित की गई है।

स्थायी खाता संख्या (PAN) आबंटित कराने की बाध्यता (Mandatory Conditions to get the Permanent Account Number)-निम्नलिखित स्थितियों में प्रत्येक व्यक्ति को आय-कर विभाग से स्थायी खाता संख्या (PAN) आबंटित कराना आवश्यक है

1 यदि उसकी कुल आय या अन्य किसी व्यक्ति की आय जिसके सम्बन्ध में वह करदाता हो, गत वर्ष में अधिकतम कर मुक्त सीमा से अधिक हो जाती है;

2. यदि वह व्यापार करता है और उसकी बिक्री, सकल प्राप्तियाँ गत वर्ष 5,00,000 ₹ से अधिक हो गई है या होने की सम्भावना है।

3. यदि उसे धारा 139(4A) में विवरणी प्रस्तुत करनी है;

4. यदि वह आयातक या निर्यातक है, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty) के अन्तर्गत करदाता है,

सेवाशुल्क (Service-tax) के अन्तर्गत करदाता है अथवा केन्द्रीय विक्रय-कर अधिनियम या राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश में वहाँ के मूल्य वर्धित कर (VAT) अधिनियम के अन्तर्गत करदाता है।

5. वह किसी ऐसी राशि या आय प्राप्त करने का अधिकारी है जिस पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती होती है। नोटस्थायी खाता संख्या का आबंटन कराने हेतु निर्धारित अवधि में फॉर्म संख्या 49A में आवेदन करना होगा।

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स्थायी खाता संख्या के उल्लेख की अनिवार्यता से सम्बन्धित व्यवहार

(Transactions for Which PAN have to be Disclosed is Mandatory)

आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवहारों के प्रलेखों पर PAN का उल्लेख करना आवश्यक है

1 किसी भी अचल सम्पत्ति, जिसका मूल्य 10 लाख से अधिक हो, के क्रय या विक्रय पर;

2. किसी भी मोटर वाहन (दुपहिया को छोड़कर) के क्रय या विक्रय पर;

3. बैंक में 50,000 से अधिक राशि को स्थायी जमा खाते में एक निश्चित अवधि के लिए जमा करने पर, बैंक में खाता खोलने पर, एक दिन में 50,000 ₹ से अधिक राशि नकद जमा कराने पर, एक दिन में नकदी में 50,000 ₹ से अधिक राशि का ड्राफ्ट, Pay Orders अथवा बैंकर चैक्स बनवाने पर;

4. डाकघर बचत बैंक खाते में 50.000 ₹ से अधिक की राशि जमा करने पर;

5. एक लाख २. से अधिक राशि की प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय का अनुबन्ध करने पर

6. Demat Account खोलने पर;

7. ऐसे किसी होटल का बिल चुकाने पर जिसके बिल की राशि पचास हजार ₹ से अधिक होः

8. एक बार में पचास हजार ₹ से अधिक का विदेश यात्रा हेतु नकद भुगतान (निर्धारित पड़ोसी देश एवं तीर्थ स्थलों को छोड़कर);

9. किसी बैंक, बैंकिंग कम्पनी, अन्य कम्पनी या संस्था को क्रेडिट कार्ड जारी करने के लिए प्रार्थना-पत्र देना;

9. यूनिट्स खरीदने के लिए किसी आपसी कोष को 50,000 ₹ से अधिक का भुगतान करना;

10. किसी कम्पनी द्वारा जारी किए गए अंशों को खरीदने के लिए एक लाख से अधिक का भुगतान करना;

11. किसी कम्पनी या संस्था द्वारा जारी किए गए ऋणपत्र या बॉण्ड खरीदने के लिए पचास हजार से अधिक राशि का भुगतान करना;

12. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी बॉण्ड खरीदने के लिए 50,000₹ से अधिक राशि का भुगतान करना; 14. एक वर्ष में जीवन बीमा प्रीमियम के रूप में 50,000 ₹ से अधिक राशि का भुगतान करनाः 15. उपरोक्त वर्णित (1) से (14) को छोडकर किसी भी माल या सेवाओं का क्रय-विक्रय-प्रति संव्यवहार (transaction) दो लाख ₹ से अधिक हो।

उद्गम स्थान पर कर की कटौती के सम्बन्ध में PAN के उल्लेख की अनिवार्यता

1 ऐसे व्यक्ति को जिसे उद्गम स्थान पर कर की कटौती करके भुगतान मिलता है, अपना PAN भुगतान करने वाले व्यक्ति को बताना होगा।

2. उद्गम स्थान पर कर की कटौती करने वाले व्यक्ति को निम्न प्रलेखों पर राशि प्राप्त करने वाले व्यक्ति का PAN लिखना होगा(i) कर्मचारी को वेतन के बदले दिए गए अनुलाभ या लाभ और उसके मूल्य के सम्बन्ध में जारी विवरण (Statement), (ii) उद्गम स्थान पर कर कटौती का प्रमाण-पत्र.. (iii) आय-कर प्राधिकारी को उद्गम स्थान पर कर कटौती से सम्बन्धित दिए जाने वाले रिटर्न । (iv) उद्गम स्थान पर कर कटौती से सम्बन्धित दिए जाने वाले तिमाही विवरण।

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आधार नम्बर उद्भुत करना

(Quoting of Aadhaar Number)

01.07.2017 को या इसके पश्चात् प्रत्येक व्यक्ति (Person) को निम्नलिखित पर अपना आधार नम्बर उद्धृत (Quote) करना होगा

(i) स्थायी खाता संख्या (PAN) आबंटित करने हेतु दिये जाने वाले आवेदन पत्र में,

(ii) अपनी आय-विवरणी (Return of Income) जमा करने पर।

यदि किसी व्यक्ति के पास आधार नम्बर नहीं है तो उसे इसके लिए आवेदन-पत्र देना होगा। आवेदन-पत्र देने पर उसे जो नामांकन संख्या (Enrolment ID नम्बर) दी जाएगी उसे लिखना होगा।

कर संग्रह के सम्बन्ध में PAN के उल्लेख की अनिवार्यता

1 प्रत्येक क्रेता, अनुज्ञप्तिधारी (licensee) या पट्टेदार को उस व्यक्ति को अपना PAN बताना होगा, जिसे उद्गम स्थान पर कर एकत्रित करना है।

2. ऐसे व्यक्ति को जो क्रेता, अनुज्ञप्तिधारी या पट्टेदार से आय-कर एकत्रित करता है, निम्नलिखित प्रलेखों पर क्रेता,

अनुज्ञप्तिधारी या पट्टेदार का PAN लिखना होगा() ऐसा प्रमाण-पत्रे जो वह क्रेता या अनुज्ञप्तिधारी या पट्टेदार को जारी करता है,

(ii) आय-कर प्राधिकारी को कर एकत्रित करने के सम्बन्ध में दिए जाने वाले रिटर्न,

(iii) उद्गम स्थान पर कर एकत्रित करने से सम्बन्धित दिए जाने वाले तिमाही विवरण।

कर निर्धारण वर्ष 2006-07 से अनिवासी करदाताओं को भी स्थायी खाता संख्या PAN का उल्लेख करना अनिवार्य कर दिया गया है, परन्तु अनलिखित अनिवासी करदाताओं पर यह नियम लागू नहीं होगा

(i) धारा 115AC(4) के अन्तर्गत अनिवासी।

(ii) धारा 115BBA(2) के अन्तर्गत अनिवासी।

(iii) धारा 115G के अन्तर्गत अनिवासी।

यदि किसी व्यक्ति को किन्हीं कारणों से स्थायी खाता संख्या आबंटित नहीं हुआ है और उपरोक्त वर्णित व्यवहार करते हैं तो उन्हें फॉर्म नं० 60 में घोषणा करनी होगी तथा जिस व्यक्ति की केवल कृषि मद से ही आय है (अन्य कोई करयोग्य आय नहीं है) उन्हें फॉर्म नं061 में घोषणा करनी होगी।

अर्थ दण्ड (धारा 272A) यदि कोई व्यक्ति बिना पर्याप्त कारण के निर्धारित समय के अन्दर स्थायी खाता संख्या के आबंटन के लिए प्रार्थना-पत्र नहीं देता है अथवा अपने प्रपत्रों, आदि पर स्थायी खाता संख्या नहीं लिखता है तो उस पर 10,000₹ अर्थ-दण्ड लगाया जायेगा।

Procedure Assessment Return Income

chetansati

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