BCom 1st Year Basic Problems Economy Production Possibility Curve Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Basic Problems Economy Production Possibility Curve Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Basic Problems Economy Production Possibility Curve Study Material Notes in Hindi: Basic or Central problems of an Economy Production Possibility Curve or PPC Explanation of PPC Graphical Presentation The Properties of  PPC Unemployment and PPC Curve Theoretical Questions Long Answer Questions Short Answer Questions ( Most Important Notes For BCom 1st Year Students)

Basic Problems Economy Production
Basic Problems Economy Production

BCom 1st Year Business Economics Study Material Notes in Hindi

एक अर्थव्यवस्था की आधारभूत समस्यायें और उत्पादनसम्भावना वक्र

(Basic Problems of an Economy and Production Possibility Curve)

एक अर्थव्यवस्था की आधारभूत या केन्द्रीय समस्यायें

(Basic or Central Problems of an Economy)

एक अर्थव्यवस्था की आधारभूत समस्यायें दो मुख्य तथ्यों से उत्पन्न होती हैं – आवश्यकताओं की बाहुल्यता और साधनों की दुर्लभता। यदि साधन असीमित होते तो किसी भी अर्थव्यवस्था के लिये कोई आर्थिक समस्या नहीं उत्पन्न हुई होती। वास्तविकता यह है कि मानवीय आवश्यकतायें असीमित होती हैं और उत्पादक संसाधन (जैसे भूमि और अन्य प्राकृतिक संसाधन, कच्ची सामग्री, पूँजीगत साजसज्जा, कुशल श्रमिक आदि) दुर्लभ हैं। संसाधनों की दुर्लभता की समस्या न केवल व्यक्तियों को होती है वरन् यह सम्पूर्ण समाज द्वारा भी महसूस की जाती है। अतः दुर्लभ उत्पादक संसाधनों से व्यक्तियों की सभी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता है। इससे ही चयन (अर्थात बहुत-सी आवश्यकताओं में से सन्तुष्ट की जा सकने वाली आवश्यकताओं के चयन) की मुख्य समस्या उत्पन्न होती है। दूसरे शब्दों में, आर्थिक समस्या आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिये दुर्लभ संसाधनों के इस प्रकार बँटवारे की है जिससे व्यक्तियों की अधिकतम सन्तुष्टि हो। इसे ही सामान्यतया ‘आधारभूत आर्थिक समस्या’ कहा जाता है क्योंकि समाज की समस्याओं की जड़ यही है। लैफ्टविच के शब्दों में, “आर्थिक समस्या वैकल्पिक मानवीय आवश्यकताओं के बीच दुर्लभ संसाधनों के प्रयोग और इन संसाधनों से आवश्यकताओं की जितनी पूर्णतया सम्भव हो सन्तुष्टि के उद्देश्य के लिये प्रयोग से सम्बन्धित है।”

प्रत्येक अर्थव्यवस्था – पूँजीवादी, समाजवादी और मिश्रित – को निम्नलिखित चार आधारभूत आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है –

1 क्या उत्पन्न किया जाय (What to produce)

2. कैसे उत्पन्न किया जाय (How to produce)

3. किसके लिये उत्पन्न किया जाये। (For whom to produce)

4. आर्थिक विकास के लिये क्या प्रावधान किया जाये (What provision be made for economic growth)

1 क्या उत्पन्न किया जाय (What to produce) – चूंकि संसाधन सीमित हैं, अतः प्रत्येक देश की अर्थव्यवस्था को एक आधारभूत निर्णय यह लेना होता है कि उपलब्ध सीमित संसाधनों से कौन सी वस्तुएँ और सेवाएँ तथा ये किस मात्रा में पैदा की जानी हैं। इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय बात अनिवार्यताओं और विलासिताओं के बीच तथा उपभोक्ता वस्तुओं और पूँजीगत वस्तुओं के बीच चयन करना है। यदि आर्थिक संसाधन असीमित होते तो इस प्रकार के निर्णय लेने की कोर्ड। आवश्यकता ही नहीं होती।

विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में यह समस्या विभिन्न प्रकार से हल की जाती है। एक पूँजीवादी देश में इस समस्या का समाधान मूल्य प्रक्रिया (Price Mechanism) द्वारा निकाला जाता है जो कि उपभोक्ताओं की अभिरुचि और पसंदगियाँ परिलक्षित करता है। चूँकि उत्पादकों की रुचि अपने आगमों को अधिकतम करने की होती है, अतः वे उन वस्तुओं का उत्पादन करेंगे जिनके मूल्य सापेक्षिक रूप से ऊँचे हैं। एक समाजवादी अर्थव्यवस्था में यह मामला केन्द्रीय नियोजन प्राधिकरण (Central Planning Authority) द्वारा तय किया जाता है और इसलिये केवल उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जायेगा जिन्हें यह समाज के लिये अधिकतम उपयोगी पाता है।

2. कैसे उत्पन्न किया जाय (How to produce) – ह समस्या एक वस्तु के उत्पादन के लिये तकनीक के चयन से सम्बन्धित है। इस सम्बन्ध में हमारा उद्देश्य सर्वाधिक सम्भव गुणवत्ता की वस्तुओं का अधिकतम मात्रा में न्यूनतम उत्पादन लागत पर उत्पादन करना होता है। उत्पादन की तकनीक दो प्रकार की होती है – (अ) श्रम गहन तकनीक और (ब) पूँजी गहन तकनीक। विभिन्न तकनीकों के बीच चयन उत्पादन के विभिन्न कारकों की उपलब्ध आपूर्तियों और उनके सापेक्षिक मूल्य पर निर्भर करेगा। आजकल सरकार भी अपनी राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों से तकनीक के चयन को प्रभावित करती है।

मोटे तौर पर श्रम बाहुल्य अर्थव्यवस्था में श्रम गहन तकनीक का चयन किया जाना चाहिये जबकि पूँजी बाहुल्य अर्थव्यवस्था में पूँजी गहन तकनीक का चयन करना चाहिये। चूँकि उत्पादक की रुचि उत्पादन लागत को न्यूनतम करने की होती है, अतः वे उत्पादन की उस तकनीक को अपनायेंगे और उन आदानों (inputs) का प्रयोग पसंद करेंगे जिनके मूल्य सापेक्षिक रूप से कम हों। अतः एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में श्रम लागत के अधिक होने के कारण पूँजी गहन तकनीक का चयन किया जाता है किन्तु एक समाजवादी अर्थव्यवस्था में सम्बन्धित देश के साधन बन्दोबस्ती (Factor Endowment) को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय नियोजन प्राधिकरण द्वारा इस समस्या का हल निकाला जाता है। ऐसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन की वह तकनीक प्रयुक्त की जाती है जो कि समाज के लिये अधिकतम उपयोगी हो। उदाहरण के लिये, बड़ी बेरोजगारी की स्थिति में श्रम गहन तकनीक प्रयोग की जायेगी।

3. किसके लिये उत्पन्न किया जाये (For whom to produce) – यह उत्पादन के साधनों, जिन्होंने उत्पादन में सहायता की है, के बीच राष्ट्रीय उत्पादन के वितरण की समस्या है। वितरण के दो वैकल्पिक सिद्धान्त हैं- (अ) उत्पादकता का सिद्धान्त अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को उसके राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान के बराबर आय मिलनी चाहिये और (ब) प्रत्येक से उसकी योग्यतानुसार, प्रत्येक को उसकी आवश्यकतानुसार का सिद्धान्त पूँजीवादी और समाजवादी दोनों ही अर्थव्यवस्थाओं में राष्ट्रीय आय का वितरण उत्पादकता के सिद्धान्त के अनुसार किया जाता है, यद्यपि पूँजीवादी देशों में सामान्य शिकायत पायी जाती है कि श्रमिकों को उनकी उत्पादकता से कम भुगतान किया जाता है।

Production Possibility Curve Study

4. आर्थिक विकास के लिये क्या प्रावधान किया जाये (What provision be made for economic growth) – आर्थिक विकास की दर बचत और विनियोग की दर पर निर्भर करती है।। वस्तुतः यह आर्थिक संसाधनों के वर्तमान और भावी प्रयोग के बीच चयन की समस्या है। दूसरे शब्दों में, देश की अर्थव्यवस्था को यह निश्चत करना होता है कि सीमित संसाधनों का कौन-सा भाग उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन पर प्रयोग करना होगा और कौन-सा भाग पूँजीगत वस्तुओं के उत्पादन और शोध एवं विकास क्रियाओं के प्रोत्साहन के लिये, जो कि उत्पादक क्षमता में प्रौद्योगिक प्रगति और विकास लायेगी। वास्तव में, पूँजी संचयन और प्रौद्योगिक प्रगति का प्रावधान कछ वर्तमान उपभोग के त्याग के लिये प्रेरित करता है किन्तु यह समाज को विकास प्रक्रिया को बढाने योग्य बनायेगा और अपने व्यक्तियों का उच्च जीवन-स्तर आश्वस्त करेगा।।

बचत की दर परिवारों की वर्तमान उपभोग की आवश्यकताओं तथा मुद्रा बाजार में प्रचलित ब्याज दर पर निर्भर करती है, जबकि विनियोग की दर विभिन्न पूँजीगत परियोजनाओं में साहसियों के लाभ के अवसरों पर निर्भर करती है। ब्याज दर के बढ़ने पर बचत की मात्रा बढ़ती है तथा लाभ के अवसरों के बढ़ने पर विनियोग बढ़ते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि एक मुक्त-बाजार अर्थव्यवस्था में मूल्य प्रणाली-बचत पर ब्याज दर और विनियोग या पूँजी निर्माण की प्रत्याय दर – ही बचतों और चिनियोग की मात्रा को विनियमित करती है और आर्थिक विकास की दर निर्धारित करती है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था द्वारा संसाधनों का वर्तमान और भविष्य के बीच बँटवारा पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में मूल्य प्रक्रिया द्वारा किया जाता है और समाजवादी अर्थव्यवस्था में अपने विकास की प्राथमिकताओं के अनुसार केन्द्रीय नियोजन प्राधिकरण द्वारा किया जाता है।

उपर्युक्त चार आधारभूत समस्याओं के अतिरिक्त दो और समस्याओं पर भी विचार करना चाहिये। ये समस्यायें हैं : संसाधनों का पूर्ण उपयोग और संसाधनों का इस प्रकार उपयोग जो कि अधिकतम सामाजिक कल्याण आश्वस्त कर सके।

उत्पादनसम्भावना वक्र (Production Possibility Curve or PPC)

प्रो० रोबिन्स की अर्थशास्त्र की परिभाषा ने साधनों के मितव्ययीकरण की समस्या को प्रत्येक आर्थिक समाज की आधारभूत समस्या के रूप में प्रकाशमय किया है। यह समस्या बहुसंख्यी उद्देश्य के सम्बन्ध में संसाधनों की दुर्लभता के कारण उत्पन्न होती है। प्रो० सेम्युलसन ने उत्पादन-सम्भावना वक्र के प्रयोग द्वारा इस समस्या को अधिक स्पष्ट किया है। उत्पादन-सम्भावना वक्र, जिसे उत्पादन-सम्भावना सीमा (Production Possibility Frontier) और रूपान्तर वक्र (Transformation Curve) भी कहा जाता है, एक ऐसा वक्र है जो वस्तुओं के दो सैटों के विभिन्न ऐसे संयोगों (combinations) को दर्शाता है जिन्हें एक अर्थव्यवस्था में दी गयी मात्रा के संसाधनों और प्रौद्योगिकी से पैदा किया जा सकता है। प्रो० सेम्युलसन के शब्दों में, “उत्पान्दन-सम्भावना वक्र वह वक्र है जो वस्तुओं और सेवाओं के युगलों की अधिकतम मात्रा प्रस्तुत करता है जिन्हें एक अर्थव्यवस्था के दिये गये संसाधनों और तकनीक से पैदा किया जा सकता है, यह मानते हुये कि सभी संसाधन पूर्णतया प्रयुक्त हैं।

Production Possibility Curve Study

मान्यतायें (Assumptions)

1 उत्पादन के साधनों की उपलब्ध आपूर्तियाँ स्थिर हैं, यद्यपि इन्हें एक सीमा के अन्तर्गत विभिन्न प्रयोगों में विवर्तित या पुनः आवंटित किया जा सकता है।

2. अर्थव्यवस्था संसाधनों के पूर्ण रोजगार पर संचालित हो रही है और पूर्ण उत्पादन प्राप्त कर रही है।

3. दिये संसाधनों के प्रयोग और आवंटन अधिकतम कुशल हैं।

4. विश्लेषण के दौरान प्रौद्योगिकी की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आता है।

उत्पादनसम्भावना वक्र की व्याख्या (Explanation of PPC)

उत्पादन-सम्भावना वक्र एक अर्थव्यवस्था द्वारा सामना की जा रही वैकल्पिक उत्पादन सम्भावनाओं का चित्रमय प्रदर्शन है। संसाधनों की दुर्लभता के कारण अर्थव्यवस्था को यह निश्चय करना पड़ता है कि उसके पास उपलब्ध संसाधनों से कितनी मात्रा में विभिन्न वस्तुओं और सेवायें पैदा की जायें। अपने विश्लेषण के सरलीकरण के लिये हम मान लेते हैं कि अर्थव्यवस्था केवल दो उत्पाद (मान लीजिये कि गेहूं और स्कूटर) पैदा कर रही है। गेहूँ उपभोग वस्तुओं को निर्दिष्ट करता है तथा स्कूटर पूँजीगत वस्तुओं को। अपने उपलब्ध सीमित संसाधनों के कारण अर्थव्यवस्था को यह निश्चय करना होगा कि प्रत्येक उत्पाद कितनी मात्रा में पैदा किया जाय। गेहूँ के उत्पादन में किसी वृद्धि के लिये संसाधनों का स्कूटरों के उत्पादन से विवर्तन आवश्यक होगा। इसी तरह यदि स्कूटरों का उत्पादन बढ़ाना है तो अपेक्षित संसाधन गेहूँ के उत्पादन को घटाकर प्राप्त करने होंगे। यही वास्तव में मितव्ययीकरण समस्या (Economising Problem) का सार है।

हम उपर्युक्त विचार को एक काल्पनिक तालिका की सहायता से स्पष्ट करते हैं। दिये गये संसाधनों की मात्रा और दी गयी प्रौद्योगिकी से गेहूँ और स्कूटरों के बीच विभिन्न उत्पादन सम्भावनाओं को दर्शाते हुए निम्नलिखित एक तालिका की रचना की गयी है।

Production Possibility Curve Study

यदि सभी संसाधन स्कूटरों के उत्पादन में प्रयुक्त किये जाते हैं तो यह माना गया है कि 10,000 स्कूटरों का उत्पादन हो सकेगा। दूसरी ओर यदि सभी संसाधन गेहूँ के उत्पादन में लगाये जाते हैं तो 4,000 टन गेहूँ का उत्पादन हो सकेगा। ये दो अतिशय हैं। इन दोनों के बीच अनेक अन्य उत्पादन सम्भावनायें, जैसे ब, स और द होंगी। उत्पादन सम्भावना ‘ब’ से अर्थव्यवस्था दिये गये संसाधनों से, 9,000 स्कूटर तथा 1,000 टन गेहूँ का उत्पादन कर सकती है। उत्पादन-सम्भावना में ‘स’ से अर्थव्यवस्था 7.000 स्कूटर तथा 2,000 टन गेहूँ का उत्पादन कर सकती है। इसी तरह उत्पादन-सम्भावना ‘द’ और ‘इ’ से स्कूटर और गेहूँ के उत्पादन तालिका में दर्शाये गये हैं। इस प्रकार जैसे ही हम सम्भावना ‘अ’ से सम्भावना ‘इ’ की ओर अग्रसर होते हैं, अर्थव्यवस्था स्कूटरों के उत्पादन से अपने कुछ संसाधन विवर्तित करके गेहूँ का उत्पादन बढ़ाती है। किन्तु सम्भावना ‘इ’ से ‘अ’ की ओर अग्रसर होने में समाज स्कूटरों का उत्पादन बढ़ाने के लिये गेहूं की कुछ उत्पादन मात्रा का बलिदान करती है। संक्षेप में, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि पूर्ण रोजगार के साथ और उत्पादन कुशलता से कार्य करते हुए एक अर्थव्यवस्था को किसी दूसरी वस्तु को अधिक प्राप्त करने के लिये एक वस्तु की कुछ मात्रा को छोड़ना होगा। चूंकि, आर्थिक संसाधन दुर्लभ हैं, अतः अर्थव्यवस्था दोनों वस्तुयें अधिक मात्रा में नहीं प्राप्त कर सकती है।

रेखाचित्रीय प्रदर्शन (Graphical Presentation)

उपर्युक्त तालिका में दर्शायी गयी वैकल्पिक उत्पादन-सम्भावनाओं का रेखाचित्रीय प्रदर्शन नीचे दिये गये चित्र में दर्शाया गया है :

इस रेखाचित्र में हमने गेहूँ के उत्पादन को X- अक्ष पर और स्कूटरों के उत्पादन को Y- अक्षा पर दर्शाया है। उपर्युक्त तालिका के समंकों को रेखाचित्र पर प्रांकित करके तथा विभिन्न बिन्दुओं को। मिलाकर AE वक्र प्राप्त किया गया है। यह AE वक्र ही उत्पादन-सम्भावना वक्र कहलाता है। यह दो वस्तुओं के ऐसे विभिन्न संयोगों को दर्शाता है जिन्हें एक अर्थव्यवस्था संसाधनों की दी गयी मात्रा और दी गयी

प्रौद्योगिकी और उत्पादन कुशलता से कार्य करते हुए पैदा कर सकती है। उत्पादन-सम्भावना वक्र – को रूपान्तरण वक्र (Transformation Curve) भी कहा जाता है क्योंकि एक विकल्प से दूसरे विकल्प की ओर गतिशील होने में हम संसाधनों को एक वस्तु के उत्पादन से दूसरे वस्तु के उत्पादन के लिये विवर्तित करके एक वस्तु को दूसरी वस्तु में रूपान्तरित करते हैं।

दिये गये संसाधनों के पूर्ण प्रयुक्त और कुशलतापूर्वक प्रयोग किये जाने पर उत्पादित दो वस्तुओं के संयोग उत्पादन-सम्भावना वक्र AE पर कहीं भी हो 0 1 2 3 4 5 सकते हैं, किन्तु इसके अन्दर या बाहर नहीं हो सकते। Wheat (thousand tons) वक्र के अन्दर का कोई बिन्दु (जैसे हमारे रेखाचित्र में U बिन्दु) आर्थिक अकुशलता इंकित करता है अर्थात् संसाधन पूर्णतया सर्वोत्तम ज्ञात तरीके में नहीं प्रयुक्त किये जा रहे हैं तथा वक्र के बाहर कोई बिन्दु (जैसे हमारे रेखाचित्र में H बिन्दु) अर्थव्यवस्था की क्षमता के बाहर होगा, अतः ऐसे संयोग अप्राप्य (unattainable) हैं।

उत्पादनसम्भावना वक्र की विशेषतायें (The Properties of PPC)

1 उत्पादनसम्भावना वक्र का ढाल नीचे की ओर होता है (PPC slopes downward) – इस वक्र का ढाल बायें से दायें नीचे की ओर होता है। ऐसा इसलिये होता है कि संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिये दोनों वस्तुओं का उत्पादन एक साथ नहीं बढ़ाया जा सकता है। अतः एक अर्थव्यवस्था को एक वस्तु को कुछ और प्राप्त करने के लिये दूसरी वस्तु की कुछ मात्रायें कम करनी होंगी।

2. उत्पादनसम्भावना वक्र मूल बिन्दु की ओर नतोदर होता है (PPC is concave to the origin) – यह वक्र मूल बिन्दु की ओर नतोदर (अर्थात् उदराकार) होता है क्योंकि एक वस्तु के संसाधनों को दूसरी वस्तु के लिये विवर्तन पर सीमान्त अवसर लागत बढ़ती जाती है। यह बढ़ती हुई अवसर लागत के नियम की क्रियाशीलता के कारण होता है। अवसर लागत को अगले सर्वोत्तम विकल्प के मूल्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। उत्पादन-सम्भावना वक्र के संदर्भ में चूंकि केवल दो वस्तुएँ ही होती हैं, अतः एक वस्तु के पैदा करने की अवसर लागत दूसरी वस्तु के किये गये त्याग के शब्दों में होती है। पृष्ठ 4.4 पर दी गई तालिका को देखने से यह स्पष्ट होता है कि जैसे ही हम सम्भावना ‘अ’ से सम्भावना ‘ब’ की ओर चलते हैं तो हमें 1,000 टन गेहूँ प्राप्त करने के लिये 1,000 स्कूटरों को त्यागना होता है। इसका आशय यह हुआ कि प्रथम 1,000 टन गेहूँ की अवसर लागत 1,000 स्कूटर है। किन्तु गेहूँ के उत्पादन को बढ़ाने के लिये जैसे ही हम ‘ब’ से ‘स’। की ओर चलते हैं तो हमें 1,000 टन अतिरिक्त गेहूँ पैदा करने के लिये 2,000 स्कूटरों का और त्याग करना पड़ेगा। अतः ‘ब’ से ‘स’ की ओर जाने में 1,000 टन गेहूँ की अवसर लागत 2,000 स्कूटर होगी। इसी तरह जब हम ‘स’ से ‘द’ की ओर तथा ‘द’ से ‘इ’ की ओर चलते हैं तो अतिरिक्त 1,000 टन गेहूँ प्राप्त करने की अवसर लागत क्रमशः 3,000 स्कूटर और 4,000 स्कूटर होगी। बढ़ती हुई अवसर लागत का यह नियम ही उत्पादन-सम्भावना वक्र को मूल बिन्दु की ओर नतोदर (Concave) बनाता है।

उत्पादनसम्भावना वक्र के प्रयोग (Uses of PPC)- उत्पादन-सम्भावना वक्र निम्नलिखित तीन मुख्य आर्थिक विचार बतलाता है :

1 संसाधनों की दुर्लभता (Scarcity of Resources) – उत्पादन-सम्भावना वक्र की सीमा द्वारा संसाधनों की दुर्लभता निर्दिष्ट होती है जिसके आगे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन सम्भव नहीं। अतः अर्थव्यवस्था को या तो उत्पादन-सम्भावना वक्र पर और या इसके अन्दर ही चलना होगा।

2. एक विवश चयन (A Constraiced Choice) – चूँकि संसाधन पूर्णतया लगे हुए और कुशलतापूर्वक प्रयुक्त हैं और प्रौद्योगिकी वही रहती है, अतः एक अर्थव्यवस्था को ही यह चयन करना होता है कि उत्पादन-सम्भावना वक्र के किस बिन्दु पर इसे वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिये संचालित करना चाहिये।

3. अवसर लागत का विचार (Concept of Oportunity Cost) – उत्पादन सम्भावना वक्र अवसर लागत का विचार इंकित करता है जो यह दर्शाता है कि एक उत्पाद अधिक प्राप्त करने के लिये अर्थव्यवस्था को दूसरे उत्पाद की कुछ इकाइयों का त्याग करना होगा।

बेरोजगारी और उत्पादनसम्भावना वक्र (Unemployment and PPC Curve)

जब एक अर्थव्यवस्था उत्पादन-सम्भावना वक्र के किसी भी बिन्दु पर उत्पादन करती है तो इसका आशय यह है कि कोई भी संसाधन खाली नहीं है और इनका कुशलतापूर्वक प्रयोग किया जा रहा है। किन्तु यदि अर्थव्यवस्था उत्पादन-सम्भावना वक्र के अन्दर संचालित है तो इसका आशय यह है कि संसाधनों में बेरोजगारी या अल्प-रोजगारी है और/अथवा संसाधनों के प्रयोग में अकुशलता है। इस स्थिति में एक वस्तु का दूसरी वस्तु के उत्पादन की मात्रा में कमी किये बिना ही अधिक उत्पादन सम्भव है अथवा दोनों ही वस्तुएँ अधिक मात्रा में उत्पादित की जा सकती हैं।

आर्थिक विकास और उत्पादनसम्भावना वक्र में विवर्तन (Economic Growth and Shift in PPC) – अर्थव्यवस्था में प्रगति या विकास की सदैव ही गुंजाइश होती है। आर्थिक विकास उत्पादन-सम्भावना वक्र को 1 प्रभावित करता है। अतः यदि प्राकृतिक और /अथवा मानवीय संसाधनों की पूर्ति बढ़ती है अथवा प्रौद्योगिकी में सुधार आता है तो उत्पादन-सम्भावना वक्र दायीं ओर बाहर विवर्तित हो सकता है, जैसा कि बराबर मेंदिये गये चित्र में दर्शाया गया है। इस प्रकार के विवर्तन पर अर्थव्यवस्था एक और/अथवा दो वस्तुओं का अधिक मात्रा में उत्पादन कर सकती है। इस रेखाचित्र में देश के आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप उत्पादन-सम्भावना वक्र में विवर्तन दर्शाया गया है।

 

मूल उत्पादन-सम्भावना वक्र P-P द्वारा दिखलाया गया है। आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप उत्पादन-सम्भावना वक्र P-P विवर्तित होकर PI-P, वक्र हो जाता है। इस नये वक्र पर अर्थव्यवस्था वस्तुओं का उत्पादन P-P वक्र से अधिक कर सकती है। दूसरे शब्दों में, आर्थिक विकास से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन बढ़ेगा।

Production Possibility Curve Study

सैद्धान्तिक प्रश्न

(Theoretical Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 एक अर्थव्यवस्था की आधारभूत समस्यायें क्या हैं ? रोबिन्स के अनुसार मूल आर्थिक समस्या क्या है ?

What are the basic problems of an economy? What according to Robbins is the fundamental economic problem ?

2. उत्पादन-सम्भावना वक्र क्या हैं ? इसकी मान्यतायें क्या है ? यह मूल बिन्दु की ओर क्यों नतोदर होता है ?

What is production possibility curve ? What are its assumptions ? Why it is concave towards the origin?

3. उत्पादन-सम्भावना वक्र क्या है? उत्पादन-सम्भावना वक्र की सहायता से बढ़ती हुई अवसर लागत के नियम को समझाइये।

What is PPC ? Explain the law of increasing opportunity cost with the help of PPC.

4. उत्पादन-सम्भावना वक्र को समझाइये और इसके प्रयोग दीजिये।

Explain production-possibility curve and give its uses.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 एक अर्थव्यवस्था की आधारभूत समस्यायें क्या हैं ?

What are the basic problems of an economy?

2. उत्पादन-सम्भावना वक्र क्या है?

What is production possibility curve?

3. उत्पादन-सम्भावना वक्र की मान्यतायें क्या है?

What are the assumptions production-possibility curve ?

4. उत्पादन-सम्भावना वक्र की विशेषतायें क्या हैं?

What are the properties of production-possibility curve?

5. उत्पादन-सम्भावना वक्र मूल बिन्दु की ओर क्यों नतोदर होता है ? |

Why production-possibility curve is concave towards the origin?

6. उत्पादन-सम्भावना वक्र के प्रयोग दीजिये।

Give the uses of production-possibility curve.

Production Possibility Curve Study

chetansati

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