BCom 2nd Year Entrepreneur Promotion Opportunities Analysis Study Material notes In Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur Promotion Opportunities Analysis Study Material notes In Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur Promotion Opportunities Analysis Study Material notes In Hindi: Meaning and Definitions of Promotion Characteristics or Elements of promotion Establishment of a new Venture Problems Faced by an Entrepreneur at the time of Establishing of a new Opportunities Analysis Factors or sources of Opportunities Analysis Useful Questions Long Answer Question Short Answer Questions Correct Option :

Promotion Opportunities Analysis
Promotion Opportunities Analysis

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

उपक्रम का प्रवर्तन एवं अवसरों का विश्लेषण

(Promotion of A Venture and Opportunities Analysis)

“प्रवर्तन ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी उद्यम की स्थापना के विचार के उत्पन्न होने से लेकर उसकी वास्तविक स्थापना तक के समस्त कार्यों को सम्मिलित किया जाता है।”

शीर्षक

  • प्रवर्तन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Promotion)
  • प्रवर्तन के लक्षण अथवा तत्त्व (Characteristics or Elements of Promotion)
  • नवीन उपक्रम की स्थापना (Establishment of a New Venture)
  • एक नई परियोजना की स्थापना के समय उद्यमी के समक्ष समस्यायें (Problems Faced by an Entrepreneur at the time of Establishing of a New Project)
  • अवसरों का विश्लेषण (Opportunities Analysis)
  • अवसरों के विश्लेषण के घटक अथवा स्रोत (Factors or Sources of Opportunities Analysis)
  • Promotion Opportunities Analysis

प्रवर्तन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Promotion)

प्रवर्तन का अर्थ (Meaning of Promotion)

उद्यम के प्रवर्तन से आशय किसी उद्यम के प्रारम्भ से है। यह खोज की अवस्था है, इस अवस्था में उद्यमी के मस्तिष्क में किसी उद्यम की स्थापना का विचार उत्पन्न होता है, और वह अपने इस विचार को साकार रूप देने के लिए उसकी व्यापक रूप में जाँच एवं अन्वेषण (Investigation) करता है कि क्या उक्त विचार को क्रियान्वित किया जा सकता है अर्थात् क्या यह विचार वाणिज्यिक रूप में लाभप्रद है ? यदि व्यापक रूप में जाँच-पड़ताल करने के बाद वह यह निष्कर्ष निकालता है कि विचार को क्रियान्वित किया जा सकता है तो उद्यमी द्वारा उठाया जाने वाला अगला कदम उद्यम की स्थापना का होगा। अर्थात् उद्यम की स्थापना के लिए आवश्यक संसाधनों; जैसे—भूमि, यन्त्र एवं मशीनरी, भवन, कच्चा माल, सामग्री तथा श्रम शक्ति आदि को एकत्रित करना तथा उद्यम के आकार (Size) के अनुसार आवश्यक वित्त की व्यवस्था करना है। वास्तव में यह सारी प्रक्रिया अर्थात् उपक्रम की स्थापना के विचार की खोज, उसका व्यापक रूप से अन्वेषण, संसाधनों का एकत्रीकरण एवं वित्तीय व्यवस्था करना प्रवर्तन (Promotion) कहलाती है। जिस व्यक्ति के द्वारा ये क्रियाएँ की जाती हैं वह प्रवर्तक (Promoter) कहलाता है।

प्रवर्तन की परिभाषाएँ (Definitions of Promotion)

1 गुथमैन एण्ड ड्रगल (Guthmann and Dougal) के अनुसार, “प्रवर्तन उस विचारधारा के साथ आरम्भ होता है जिससे किसी व्यवसाय का विकास किया जाना है और इसका कार्य तब तक चलता रहता है जब तक कि वह व्यवसाय एक चालू संस्था के रूप में अपना कार्य पूर्ण रूप से प्रारम्भ करने के लिए तैयार नहीं हो जाता है।”

2. प्रोफेसर . एस. मीड (Prof. E.S. Mead) के अनुसार, “प्रवर्तन में चार तत्त्व निहित हैं खोज, जाँच (अन्वेषण), एकत्रीकरण तथा वित्त।”

3. डॉ. एच. . हॉगलैण्ड (H.E. Hoagland) के अनुसार, “प्रवर्तन एक विशिष्ट व्यावसायिक उपक्रम के निर्माण की प्रक्रिया है। उन सबकी क्रियाओं का योग प्रवर्तन है जो ऐसे निर्माण में भाग लेते हैं।”2

4.सी. डब्ल्यू. गर्टनबर्ग (C.W. Gerstenberg) के अनुसार, “प्रवर्तन से आशय व्यापार सम्बन्धी सुअवसरों की खोज करने और उनमें लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से पूँजी, सम्पत्ति और प्रबन्धकीय योग्यता को व्यावसायिक संस्था के रूप में संगठित करने से है।”3

निष्कर्षउपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन के पश्चात् निष्कर्षस्वरूप यह कहा जा सकता है कि “प्रवर्तन ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी उद्यम (कम्पनी) की स्थापना के विचार के उत्पन्न होने से लेकर उसकी वास्तविक के समस्त कार्यों को सम्मिलित किया जाता है।” प्रवर्तन के अन्तर्गत काननी, वित्त एवं प्रारम्भिक प्रबन्ध सम्बन्धी कार्यवाही की जाती है।

  • Promotion Opportunities Analysis

प्रवर्तन के लक्षण अथवा तत्त्व

(Characteristics or Elements of Promotion)

प्रवर्तन की उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर प्रवर्तन के निम्नलिखित लक्षण अथवा तत्व

1 प्रवर्तन का प्रारम्भ किसी उद्यम की स्थापना करने के विचार से होता है और उसे प्रारम्भ करने की स्थिति में लाने पर समाप्त हो जाता है।

2.प्रवर्तन से आशय उद्यम के प्रारम्भ से है। अतएव यह उद्यम क निर्माण की आधारभत एवं

3. प्रवर्तन सम्बन्धी विचार की उत्पत्ति किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के साहले बार की उत्पत्ति किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के मस्तिष्क में हो सकती है, जिनके मस्तिष्क में प्रवर्तन के विचार की उत्पत्ति होती है, उन्हें उद्यमी कहते हैं।

4.प्रवर्तन किसी उद्यम के निर्माण की प्रक्रिया है।

5.प्रवर्तन उधम के निर्मा का विभिन्न क्रयाओं (जैसे उद्यम के व्यवसाय की खोज, अन्वेषण (जाँच),विभिन्न संसाधनों प्रवर्तन उद्यम के निर्माण की विभिन्न क्रियाओं (जैसे—उद्यम के व्यवसाय की खोज + का एकत्रीकरण (जैसे—भूमि, भवन, यन्त्र, सामग्री, कच्चा माल, श्रम-शक्ति, बिजली, पानी आदि नशा है। जो व्यक्ति प्रवर्तन का कार्य सम्पन्न करता है, वह ‘उद्यमा’ (Entrepreneur) अथवा प्रवर्तक कहलाता है।

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नवीन उपक्रम की स्थापना

(Establishment of A New Venture),

संक्षेप में नवीन उपक्रम की स्थापना एवं विस्तार (Extension) के लिए उद्यमी को अनेक महत्वपर्णका टोता है एवं विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। सुविधा की दृष्टि से इन अवस्थाओं को अग्र प्रकार दर्शोया जा सकता है ।

  • व्यावसायिक अवसरों की खोज (Searching for Business Opportunities)
  • विचारों का विश्लेषण एवं चयन (Selection and Analysis of Ideas)
  • व्यावसायिक अवसर की जाँच (Evaluation of Business Opportunities)
  • आवश्यक संसाधनों का एकत्रीकरण (Collection of Input Requirement)
  • उपक्रम की स्थापना (Establishment of A Venture)

व्यावसायिक अवसरों की खोज (Searching for Business Opportunities)

व्यवसाय के प्रवर्तन का कार्य उपयुक्त व्यावसायिक विचारों एवं अवसरों की खोज के साथ प्रारम्भ होता है। व्यवसाय के प्रवर्तन का विचार प्रवर्तक का अपना हो सकता है अथवा विभिन्न स्रोतों जैसे—दूसरे उद्यमियों की सफलता, किसी उत्पाद की माँग, परियोजना रिपोर्ट, सरकारी एजेन्सियों के द्वारा सहायता, किसी आयातित वस्तु का स्थानापन्न उत्पन्न करने का अवसर, किसी व्यापारिक मेले अथवा प्रदर्शनी से प्रेरणा एवं औद्योगिक सर्वेक्षण आदि का अध्ययन हो सकता है। यह विचार किसी नये उपक्रम के प्रारम्भ करने का अथवा वर्तमान किसी व्यवसाय को अधिग्रहण करने का हो सकता है। ध्यान रहे ऐसा विचार ठीक, तर्कसंगत (Based on Logic) एवं कार्य योग्य (Workable) होना चाहिए ताकि विनियोगों पर उचित पर्याय (Return) प्राप्त हो सके। इस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए विचार की खोज करने हेतु प्रवर्तक को कल्पनाशील एवं दूरदर्शी होना होगा। मूलत: उपक्रम की स्थापना हेतु विचारों की खोज करने में निम्न स्रोत सहायता कर सकते हैं

(i) बाजार अवलोकन (Market observation) विभिन्न उत्पादों से सम्बन्धित ज्ञान बाजार सर्वेक्षण से प्राप्त किया जा सकता है। इस जानकारी से माँग-पूर्ति का निर्धारण, भविष्य की माँग का पूर्वानुमान करने के पश्चात् कीमत रिवाज, आय स्तर, प्रतिस्पर्धा, प्रौद्योगिकी आदि में होने वाले सम्भव बदलावों का पहले से प्रावधान किया जा सकता है।

(ii) उपभोक्ता सर्वेक्षण (Consumer survey)—व्यवसाय की सफलता-असफलता उपभोक्ता पर निर्भर करती है। इसलिए उपभोवता सर्वेक्षण के द्वारा ग्राहक की पसन्द-नापसन्द, फैशन, क्रय क्षमता, व कब और कहाँ से क्रय करना पसन्द करेगा आदि के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की जाती है इसलिए उत्पाद की रूपरेखा तैयार करने से पहले ग्राहक की आवश्यकताओं पर ध्यान देना जरूरी होता है इसलिए उपभोक्ता के प्रतिवचन (Response) को जानने के लिए टैस्ट मार्केटिंग का उपयोग किया जा सकता है।

(iii) विकास की राह पर चलना (Keeping track of development)—एक दूरदर्शी उद्यमी को अपने आसपास होने वाली गतिविधियाँ जैसे व्यवसाय के विचार, नये उत्पाद तकनीक में होने वाले बदलाव, आदि की विस्तृत जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए अपने घरेलू व विदेशी बदलावों का अध्ययन जरूरी होता है। इसके अतिरिक्त अधिक लाभदायक जानकारी के लिए व्यापार मेलों तथा प्रदशर्नियों का भ्रमण भी करना चाहिए। इस तरह के आयोजनों से निम्नलिखित अवसर मिलते हैं –

  • Promotion Opportunities Analysis

(अ) सम्भावित माँग तथा उत्पाद की किस्मों एवं बाजार की प्रवृत्ति।।

(ब) विभिन्न राज्यों/देशों के क्रेताओं के लिए मंच प्रदान करना।

(स) उत्पादों व मण्डीकरण क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की स्थिति को जानना।

(द) प्रतिस्पर्धी (Competetors) उत्पादों की गुणवत्ता व मूल्य जानना।

(य) उपभोक्तओं/आयातकों/डीलरों से सम्बन्ध स्थापित करना।

(र) देश-विदेश में विक्रय बढ़ाने हेतु नये विचारों को प्रोत्साहित करना।

(iv) दूसरे राष्ट्रों का विकास (Development in other nations) अविकसित देशों के लोग सामान्यतः विकसित देशों के फैशन चलन आदि का अनुसरण करते हैं, अत: एक उद्यमी एक अच्छे व्यावसायिक विचार की खोज कर सकता है यदि वह विकसित राष्ट्रों में होने वाले हाल ही के विकासों का ध्यान रखे। कभी-कभी इस हेत उद्यमी बाहर के राष्ट्रों का भ्रमण भी करता है।

(v) सरकार (Government)-उद्यमियों को व्यावसायिक विचार की खोज करने एवं उसका मूल्यांकन करने हेतु विभिन्न संस्थाएँ सहायक हैं। राज्य औद्योगिक विकास बैंक, तकनीकी सलाह संगठन विनियोग केन्द्र निर्यात सम्वर्द्धन समिति आदि विभिन्न संस्थाएँ उद्यमियों को तकनीकी, वित्तीय-वितरण एवं अन्य व्यावसायिक सलाह एवं सहायता प्रदान करती हैं। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं, औद्योगिक नीतियों के माध्यम से विनियोग हेत प्राथमिक क्षेत्र की पहचान पृथक रूप से की हैं। व्यापार एवं उद्योग पर प्रकाशित सरकारी प्रकाशन भी नवीन व्यावसायिक विचार खोजने में सहायक हो सकते हैं। सरकार द्वारा लघु क्षेत्रों हेतु आरक्षित वस्तुएँ भी व्यवसाय हेतु शक्तिशाली सक्रिय क्षेत्रों का सूचक है।

(vi) व्यापारिक मेले (Trade fairs) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेले व्यावसायिक विचार का अच्छा स्रोत है। इन मेलों में उत्पादक एवं डीलर्स अपने उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं, जो कि अक्सर नवीन उत्पाद होते हैं। दिसम्बर 1976 में संगठित भारतीय व्यापार मेला प्राधिकरण इस सम्बन्ध में शीर्ष संस्था है, यह इन मेलों व प्रदर्शनियों का नियन्त्रण करती है। प्रगति मैदान, नई दिल्ली में समय-समय पर ऐसे मेले आयोजित होते रहते हैं। इन मेलों में उत्पादन, क्रय, सह संगठन, डीलरशिप आदि विचारों पर सौदा एवं समझौता वार्ता भी होती है।

(vii) परियोजना का सूक्ष्म निरीक्षण (Scrutinising project profiles) अनेक सरकारी तथा गैर सरकारी एजेन्सियाँ विभिन्न परियोजनाओं तथा उद्योगों का विस्तार वर्णन प्रस्तुत करती हैं जिनके द्वारा एक दूरदर्शी उद्यमी विभिन्न परियोजनाओं की तकनीकी, प्रबन्धकीय तथा बाजार की जरूरतों का पता लगा सकता है। इस तरह वह विभिन्न परियोजनाओं का गहन अध्ययन करने के पश्चात् उपयुक्त परियोजना का चयन कर सकता है। इसके लिए वह विशेषज्ञ की सहायता भी ले सकता है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त, व्यावसायिक विचारों के खोजने में अन्य साधन जैसे—नवीन आविष्कार, असन्तुष्ट माँग, अप्रयुक्त संसाधन एवं निम्न कोटि के उत्पादन इत्यादि सहायक हैं।

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विचारों का विश्लेषण एवं चयन (Idea Analysis and Selection)

विचारों के चयन से पूर्व उसका विस्तृत विश्लेषण किया जाता है जिसको निम्न अवस्थाओं में बाँटा गया है

(i) प्रारम्भिक मूल्यांकन एवं विचार परीक्षण (Preliminary evaluation and idea testing) व्यावसायिक विचारों की खोज के पश्चात् उनका विश्लेषण एवं परीक्षण किया जाता है। व्यावसायिक विचारों के मूल्यांकन एवं परीक्षण हेतु निम्नलिखित तथा महत्त्वपूर्ण हैं

() तकनीकी सुगमता (Technical feasibility)-तकनीकी सुगमता से आशय किसी उत्पाद का उत्पादन करने की सम्भावनाओं से है। किसी विचार की तकनीकी सुगमता का निर्णय मशीनरी एवं यन्त्र, श्रम कौशल एवं कच्चा माल तथा आवश्यक तकनीकों की उपलब्धता के आधार पर किया जाता है। विभिन्न व्यावसायिक विचारों की तकनीकी सुगमता को मापने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की सलाह एवं सहायता भी आवश्यक हो सकती है।

() वाणिज्यिक सुगमता (Commercial viability) विचारों की लाभदायकता को ज्ञात करने हेतु लागत लाभ विश्लेषण (Cost benefit analysis) की आवश्यकता होती है। प्रस्तावित परियोजना की सजीवता एवं सुअवसरों को आंकने के लिए बाजार दशाओं एवं प्रचलित स्थितियों का विस्तृत अध्यन किया जाता है। इसको परियोजना की सुगमता का अध्ययन कहते हैं। इस अध्ययन के अन्तर्गत अनेक संगणनाएँ करनी होती हैं जो कि अनुमानित विक्रय मात्रा, सम्भावित माँग, विक्रय कीमत, उत्पादन लागत, ब्रेक ईविन प्वांइट आदि से सम्बन्धित होती हैं तथा बाजार विश्लेषक एवं वित्तीय विशेषज्ञों की सेवाओं की आवश्यकता भी होती है।

(ii) विस्तृत विश्लेषण (Detailed analysis)—विचारों के प्रारम्भिक मूल्यांकन के पश्चात् उपयुक्त व आशाजनक विचार का सभी पहलुओं से सम्पूर्ण विश्लेषण किया जाता है। प्रस्तावित परियोजना की तकनीकी सुगमता एवं आर्थिक सजीवता की पूर्ण जाँच-पड़ताल की जाती है एवं उस विचार की वित्तीय व प्रबन्धकीय सुगमता का परीक्षण किया जाता है। इस अवस्था पर अनेक सूचनाओं की आवश्यकता होती है। इस अवस्था पर काफी सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इसी अवस्था के पश्चात् या तो विचार को स्वीकार कर लिया जाता है या अस्वीकार, अत: यह आवश्यक है कि उद्योग को विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा सलाह लेनी चाहिए।

व्यावसायिक विचार के मूल्यांकन के पश्चात् निष्कर्षों को प्रतिवेदन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसे सुगमता प्रतिवेदन अथवा परियोजना प्रतिवेदन के नाम से जाना जाता है। यही प्रतिवेदन परियोजना के अंतिम रूप से चुनाव में सहायता करता है तथा यह सरकारी एजेन्सियों से लाइसेंस, वित्त आदि प्राप्त करने में भी सहायता करता है।

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(iii) उच्च विचार का चयन (Idea selection) परियोजना प्रतिवेदन प्राप्त होने पर उसका विश्लेषण कर उपयुक्त विचार का चयन कर लिया जाता है। सामान्यतः विचार को अन्तिम रूप से चयन करने के लिए निम्न तथ्य विचारणीय हैं।

(i) कौन-सा उत्पाद सरलता से निर्यात किया जा सकता है ?

(ii) कौन-से उत्पाद का आयात सरकार द्वारा प्रतिबन्धित है?

(iii) कौन-से उत्पाद की माँग उसकी पूर्ति से ज्यादा है ?

(iv) क्या उत्पाद पैरेण्ट कम्पनी के लिए उत्पादित किया जाता है ?

(v) किस उत्पाद के विपणन व उत्पादन में उद्यमी अनुभव रखता है ?

(vi) कौन-सा उत्पाद कोई विशेष लाभ सुनिश्चित करता है ? यह लाभ उद्योग के स्तर, फैक्ट्री के स्थान, उत्पादन की तकनीक, आदि किसी भी कारण से हो सकता है।

(vii) कौन-सा उत्पाद देश की औद्योगिक/लाइसेन्सिंग नीति के अनुरूप है।

(viii) किस उत्पाद में उच्च लाभदायकता है?

(ix) कौन-से उत्पाद के लिए सरकारी प्रोत्साहन, अनुदान उपलब्ध है।

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3.व्यावसायिक अवसर की जाँच (Evaluation of Business Opportunities)

व्यावसायिक विचार के चयन अथवा निर्धारण करने के उपरान्त व्यावसायिक परिदृश्य अथवा वातावरण का मूल्यांकन अपरिहार्य होता है। व्यवसाय स्थापना की इस अवस्था में उद्यमी को व्यावसायिक पर्यावरणीय घटकों को ध्यान में रखना पड़ता है। व्यावसायिक परिदृश्य अनेक आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक एवं शासकीय तत्त्वों का सम्मिश्रण होता है। वर्तमान आर्थिक उदार अर्थव्यवस्थाओं में राष्ट्रीय ही नहीं वरन् अन्तर्राष्ट्रीय घटक भी उपक्रम को प्रभावित करते हैं। व्यावसायिक परिदृश्य के अनेक बाह्य घटक उद्यमी के नियन्त्रण में नहीं होते, अत: उद्यमी के द्वारा आज के जटिल, गतिशील प्रतिस्पर्धात्मक परिदृश्य में उपक्रम को स्थापित एवं संचालित करना एक महत्त्वपूर्ण कौशल है जिसके लिए उद्यमी में विभिन्न वैयक्तिक गुणों के साथ-साथ वातावरण में स्वयं को स्थापित करने के लिए एक विशिष्ट व्यूह (Strategic) का ज्ञान होना आवश्यक है। ग्राहकों, पूर्तिकर्ताओं, मध्यस्थों, प्रतिद्वन्द्वियों के मानसिक दृष्टिकोण एवं सरकारी नीतियों, आर्थिक तत्त्वों, संसाधनों के साथ-साथ प्राकृतिक एवं भौगोलिक घटकों के मध्य सामंजस्य भी स्थापित करना पड़ता है।

नव-प्रवर्तन एवं उपक्रम स्थापना में उद्यमी के द्वारा सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक एवं शासकीय परिदृश्यों के विश्लेषण एवं गहन जाँच द्वारा मुल्यांकन किया जाता है।

4. आवश्यक संसाधनों का एकत्रीकरण (Collection of Input Requirement)

उद्यमी जब परियोजना (विचार) की सुगमता व लाभदायकता के प्रति आश्वस्त हो जाता है तो वह उपक्रम को प्रारम्भ आवश्यक संसाधनों को जटाता है। उसे साझेदार/सहयोगी को ढूंढना होता है, आवश्यक वित्त की व्यवस्था करनी होती है, भूमि, भवन, मशीनरी, संयन्त्र, फर्नीचर, पेटेंट आदि खरीदने होते हैं। एवं कर्मचारी नियुक्त करने होते हैं तथा उपक्रम के आकार, स्थानीयकरण आदि से सम्बन्धित निर्णय भी लेने होते हैं। मुख्य रूप से आवश्यक आगम (संसाधन) निम्न प्रकार के हो सकते हैं

(i) सूचनाएं (Intelligence)-आज के जटिल व्यावसायिक वातावरण में उद्यमी को सर्वप्रथम निम्न सूचनाएं एकत्रित करनी होती हैं-(i) उत्पाद/सेवा हेतु माँग का आकार एवं प्रकृति। (ii) पूर्ति की मात्रा एवं स्रोत। (iii) कच्चे माल का स्रोत । (iv) कीमत लागत मात्रा सम्बन्ध । (v) आवश्यक कर्मचारियों की संख्या एवं प्रकार का स्रोत । (vi) तकनीकी, संयन्त्र एवं मशीनरी के पूर्तिकर्ता एवं प्रकार। (vii) उद्यम हेतु आवश्यक कोषों का स्रोत। (viii) प्रतिस्पर्धा की प्रकृति एवं डिग्री।

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प्रत्येक उद्यमी को प्रबन्ध सूचना व्यवस्था (Management information system)-विकसित करना होता है। कम्प्यूटर का प्रयोग इसको (M.I.S. को) प्रभावी बनाने में अत्यन्त सहायक है।

(i) वित्त (Finance)-वित्त किसी भी व्यवसाय के जीवन रक्त के समान होता है एवं यही व्यवसाय को सुदृढ़ बनाता है। यह वित्त व्यवसाय में स्थायी सम्पत्तियों तथा चालू सम्पत्तियों के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार व्यवसाय में लगे वित्त को व्यवसाय की पूँजी कहते हैं। स्थायी सम्पत्तियों में लगा वित्त ‘स्थायी पँजी’ एवं चाल सम्पत्तियों में लगा वित्त ‘कार्यशील पूँजी’ कहलाती है। व्यवसाय हेतु आवश्यक कोषों का अनुमान लगाने के बाद उद्यमी को उसके स्रोतों को ढंढना होता है एवं विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले वित्त का अनुपात भी सुनिश्चित करना होता है जिसे ‘पूँजी संरचना’ कहते हैं, तत्पश्चात् वह वित्त को प्राप्त करता है।

 (1) सैविवर्ग (Personnel) उपक्रम हेतु विभिन्न सूचनाओं एवं वित्त की व्यवस्था के पश्चात परम आवश्यक कार्य। संस्था हेतु कर्मचारियों का चयन है कर्मचारी संस्था की न हासित होने वाली सम्पत्ति होती है। अत: इनके सम्बन्ध में उधमी को निम्न निर्णय लेने होते हैं-(i) प्रबन्ध, तकनीकी एवं कर्मचारियों की आवश्यक संस्था। ii) उनकी आवश्यकतानुसार योग्यता व अनुभव। (iii) भर्ती के स्रोत। (iv) चयन विधि व प्राप्तियाँ। (v) प्रशिक्षण विधि (चयनित कर्मचारियों हेतु) । (vi) निष्पादन मूल्याकन हेतु व्यवस्था। एवं (vii) सुरक्षा, कल्याण, स्वास्थ्य हेतु प्रदान की जाने वाली सुविधाएं।।

5. उपक्रम की स्थापना (Establishment of A Venture)

उपक्रम की स्थापना के सम्बन्ध में उपर्यक्त कार्यवाही पूर्ण हो जाने व आवश्यक संसाधनों के एकत्रित हो जाने के पश्चात् उपक्रम का कार्यशील ढाँचा तैयार करने की कार्यवाही की जाती है। यह कार्यवाही दो भागों में हो सकती है-(i) संगठन सरचना, एवं (ii) व्यावसायिक नियोजन।

(i) संगठन संरचना (Organisation structure) सर्वप्रथम उपक्रम को स्थापित करने के लिए वैधानिक ढाँचे की रचना करते हैं। उद्यमी अपने द्वारा चयनित व्यावसायिक विचार आवश्यकता के अनुरूप उपक्रम का संगठन करते हैं। व्यावसायिक विचार या लक्ष्य के अनुसार उपक्रम छोटे आकार, अति छोटे आकार अथवा वृहद् आकार का हो सकता है जिसको सुनिश्चित करके उपक्रम एकल स्वामित्व, साझेदारी संगठन, संयक्त पँजी वाली कम्पनी अथवा सहकारी संगठन के रूप में वैज्ञानिक कार्यवाही को पूर्ण कर, स्थापित किया जा सकता है।

(ii) व्यावसायिक नियोजन (Business planning) उपक्रम के वैधानिक रूप में स्थापित हो जाने के पश्चात् उपक्रम स्थापना के कार्य को पूर्ण करने के लिए उसको कार्यशील रूप प्रदान किया जाता है जिसके लिए उद्यमी को व्यवसाय के अनेक पहलुओं के सम्बन्ध में समग्र योजनाएं बनानी पड़ती हैं। व्यवसाय की समग्र योजनाओं के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं

(a) उत्पाद नियोजन (Product planning)—प्रस्तावित वस्तु के सम्बन्ध में योजना बनाते समय निम्नांकित बातों को ध्यान में रखा जाता है—(i) उद्यमी को यह पता लगाने का प्रयन्त करना चाहिए कि लोगों की आवश्यकता क्या है एवं उस आवश्यकता की पूर्ति हेतु उत्पाद को डिजाइन करना चाहिए। (ii) विशिष्ट उत्पाद के सभी सम्भावित परिणामों पर विचार करें। (iii) उस उत्पाद के सुधार के तरीकों पर विचार करें। आप विविध विचारों एवं परिकल्पनाओं को एकत्र करते हुए उनके विषय में अपने मित्रों एवं परिचितों से चर्चा कर सकते हैं। (v) उन कारणों के विषय में सोचें कि ग्राहक क्यों इस उत्पाद का प्रतिरोध करेंगे। (v) एक मितव्ययी उत्पादन पद्धति अपनाएं। (vi) यह सुनिश्चित करें कि आपका उत्पाद, प्रौद्योगिकी के सन्दर्भ में नवीनतम है। (vii) उसकी पैकिंग, ब्राण्ड, नाम एवं अन्य सम्बन्धित तथ्यों की योजना बना लें।

(b) उत्पादन नियोजन (Product planning)—अपनी निर्माण इकाई स्थापित कर लेने के बाद, उत्पाद की डिजाइन, अन्य सम्बन्धित तत्त्वों की योजना बन जाने के पश्चात् उत्पादन के सम्बन्ध में योजना तैयार करनी होती है जिसमें उद्यमी का प्रमुख उद्देश्य अपनी इकाई को इष्टतम क्षमता स्तर पर संचालित करना होता है, जिसके लिए उद्यमी को–(i) एक विशिष्ट अवधि जैसे आगामी एक माह के लिए उत्पादन की एक विस्तृत योजना तैयार करनी चाहिए। (ii) कार्य का परिचालन करने के लिए निर्धारित तिथियों पर निर्देश जारी करने चाहिए। (iii) उत्पादन की विभिन्न मदों की समय तालिका तैयार करनी चाहिए। (iv) अब उद्यमी इन गतिविधियों का विस्तारपूर्वक परीक्षण करते हैं। उत्पादन की अनुसूची तैयार करने के पश्चात् कौन-सा आर्डर किस मशीन पर और कब क्रियान्वित होता है इससे सम्बन्धित विस्तृत जानकारी अब उद्यमी के पास होती है। यह विवरण कार्यआदेश फार्म पर भरकर उद्यमी अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप बना लेता है। (v) एक अनुसरण कार्यवाही के द्वारा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह कार्य योजना के अनुरूप निष्पादित किये जा रहे हैं।

(c) वित्तीय नियोजन (Financial planning)—वित्तीय नियोजन का आशय उन सम्पत्तियों के प्रकार सम्बन्धी निर्णय लेने एवं इन सम्पत्तियों में निवेश की सीमा से है, जिसमें वित्तीय संसाधन निवेशित होने हैं इसमें इस बात का निर्धारण किया जाता है कि उद्यमी निजी पँजी के रूप में कितनी राशि निवेशित करने की स्थिति में होंगे एवं बाहरी स्रोतों से आप कितना धन उधार लेने की स्थिति में होंगे। सामान्यतया उद्यमी को इस प्रकार का कदम उठाना होता है कि वह कुल फण्ड में से कम-से-कम पँजी निवेशित करे व अधिकतम सामान उधार ले ले।

(d) फण्ड नियोजन (Fund planning) वित्त के एकत्रीकरण के पश्चात् उद्यमी का अगला महत्त्वपूर्ण कार्य कोषों काबदिमत्तापर्वक सदपयोग करना होता है। आधुनिक उद्यमी को फण्ड निवेश के विषय में वैज्ञानिक ढंग से सोचना होता है।

समय में उपलब्ध कोषों का सदुपयोग करने हेतु उद्यमी को निम्न प्रश्नों पर विचार करना चाहिए (i) व्यवसाय में कितना धन होना चाहिए ? (ii) सम्पत्ति किस रूप में चाहिए ? एवं (iii) अल्पावधि की सूचना अतिरिक्त धनराशि किस प्रकार एकत्र करनी चाहिए ?

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इन प्रश्नों के लिए उद्यम के आकार एवं प्रौद्योगिकी का ज्ञान तथा धन एकत्रीकरण एवं व्यय सम्बन्धी जानकारी आवश्यक होती है।

(e) लाभ नियोजन (Profit planning)-लाभ नियोजन उत्पादन लाइन के चयन में मूल निर्धारण, लागत तथा उत्पादन परिमाण की ओर संकेत करता है अतएव लाभ नियोजन निवेश एवं वित्त सम्बन्धी निर्णय की एक पूर्वापेक्षा है।

(f) विपणन नियोजन (Marketing plannig)–विपणन नियोजन उपक्रम के समग्र नियोजन का भाग है इसके अन्तर्गत निम्नलिखित पहलुओं के सम्बन्ध में निर्णय लेने होते हैं

() कीमत नियोजन (Price planning) जब उद्यमी प्रथम बार मूल्य निर्धारण करते हैं तब उनके लिए यह एक समस्या के समान होती है। मूल्य सम्बन्धी निर्णय लेने के पूर्व उद्यमियों को निम्न विचार बिन्दुओं की समीक्षा करना लाभप्रद होगा(i) उत्पादन की सम्भावी माँग; (ii) माँग के सन्दर्भ में मूल्य (माँग के लचीलेपन के अनुसार); (iii) लाभ स्तर की प्राप्ति में लिया गया समय; (iv) प्रचार की नीति एवं प्रचार हेतु किए गए व्ययः (v) वितरण पद्धति एवं उसके लिए किए गए व्यय; (vi) लक्ष्य समूह एवं उनकी क्रय शक्ति।

उत्पादन की मूल्य निर्धारण नीति उद्यमी के लक्ष्यों पर निर्भर करती है अतः उद्यमी को इस पर भी विचार करना चाहिए। सामान्यतः किसी उत्पाद के मूल्य निर्धारण सम्बन्धी निर्णय लेने में निम्नलिखित विधि का प्रयोग किया जाता है।

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उत्पादन कीमत निर्धारण (Production Price Determination)

1 सामग्री की प्रत्यक्ष लागत

2. श्रम की प्रत्यक्ष लागत

3. प्रत्यक्ष खर्चे

4. सामग्री की अप्रत्यक्ष लागत

5. श्रम की अप्रत्यक्ष लागत

6. अप्रत्यक्ष खर्चे

कुल लागत

+ लाभ

+ कर

मूल्य

उत्पाद के मूल्य की संगणना करते समय उन खर्चों पर जो अभी प्रकट नहीं हैं, भी विचार किया जाना चाहिए।

() वितरण नियोजन (Distribution planning)-उत्पाद के वितरण हेतु उपयुक्त माध्यम का चुनाव करते समय उद्यमी को निम्न पर विचार करना चाहिए

(i) किसी उत्पाद के लिए विस्तारित नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जबकि कुछ महंगे अथवा अन्य उत्पादों के लिए सीमित नेटवर्क की आवश्यकता होती है। अत: यह ध्यान देना चाहिए कि किस प्रकार का मार्केट कवरेज अपेक्षित है।

(ii) वितरण पद्धति अधिकतम बाजार पहुँच के साथ एवं मितव्ययी होनी चाहिए।

(iii) वितरण चेन व माध्यम उत्पादों के प्रकार पर भी निर्भर करते हैं। यदि उत्पाद निम्न मूल्य का सामान्य उपभोक्ता वाला है तो वितरण के अनेक माध्यम होते हैं, किन्तु बड़े उत्पादों, तकनीकी उत्पादों एवं नाशवान उत्पादों के लिए यह चेन काफी छोटी है। नवीन उत्पाद के सम्बन्ध में उद्यमी को छोटी चेन का ही उपयोग करना चाहिए, कयोंकि स्टॉकिस्ट व फुटकर विक्रेता स्टॉक करने में अधिक उत्साह नहीं दिखाते हैं।

(iv) वितरण की चेन जितनी छोटी होती है उतना ही बेहतर नियन्त्रण होता है, अतः वितरण की चेन उद्यमी द्वारा वांछित नियन्त्रण के अनुरूप होनी चाहिए।

() विक्रय संवर्द्धन (Sales Promotion) वस्तुओं के सफल विक्रय के लिए कशल विक्रेताओं की भता करना। चाहिए तथा सम्वर्द्धन के विभिन्न माध्यमों (Tools) जैसे विज्ञापन एवं बिक्री बढाने के अन्य उपायों पर विचार करना चाहिए। कसा विज्ञापन को प्रभावी बनाने के लिए निम्न तीन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए : (अ) सम्भावी ग्राहकों को आकर्षित करने हेतु दमदार शीर्षक, (ब) उत्पाद या उसके प्रयोग का एक आकर्षक चित्र, एवं (स) किसी व्यक्ति में क्रय करने की चाहत उत्पन्न करने के लिए एक प्रभावी सन्देश। इसके अतिरिक्त विज्ञापन माध्यम, बजट एवं समयावधि आदि पर भी विचार करना चाहिए। उपर्युक्त घटकों के अतिरिक्त वस्तु के पैकेजिंग, नाम, ब्राण्ड आदि निर्धारण पर भी विचार किया जाता है। विपणन योजना बनाते समय उद्यमी को ग्राहकों की क्रय शक्ति, उनकी स्थिति व विशिष्ट आदतों एवं उनके क्रय व्यवहार आदि पर भी ध्यान देना चाहिए। __संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि उद्यमी को किसी उपक्रम की स्थापना से पूर्व उसके सभी पहलुओं का उचित रूप । से ज्ञान प्राप्त कर लेने के पश्चात् ही व्यवसाय की स्थापना करनी चाहिए, ताकि वह राष्ट्रीय विकास की उत्तरोरत्तर प्रगति का एक अंग बनकर अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक हो।

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एक नयी परियोजना की स्थापना के समय उद्यमी के समक्ष समस्यायें

(Problems Faced by an Entrepreneur at the time of Establishing a New Project)

एक नई परियोजना स्थापित करने से पहले और इसके दौरान उद्यमी को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जोकि निम्नलिखित हैं

(1) उचित प्रौद्योगिकी का चयन (Selection of appropriate technology)-उद्यमी के समक्ष उचित प्रौद्योगिकी का चुनाव एक मुख्य समस्या है। उच्च विकसित देशों में प्रयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकी विकासशील देशों में व्यापक स्थिति के अनुकूल नहीं होती है। एक उन्नत अर्थव्यवस्था जहाँ पर पूँजी की प्रचुरता व श्रमिकों की कमी है, अधिक प्रारम्भिक निवेश पर केन्द्रित है। जबकि एक विकासशील अर्थव्यवस्था इतना बड़ा निवेश वहन नहीं कर सकती है। अतः एक उद्यमी के सामने प्रौद्योगिकी चुनाव की समस्या रहती है, और उसे समस्त पहलुओं जैसे, अनुसंधान तथा विकास उत्पादन, मण्डीकरण, विक्रय तथा विक्रय पश्चात् सेवाएँ आदि अध्ययन करने के बाद ही इसका चुनाव करना चाहिए।

(2) साधनों का एकत्रीकरण (Resource mobilisation)-परियोजना की विशालता और जटिलता के कारण एक उद्यमी को परियोजना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रत्येक पूँजीगत साधनों को उपलब्ध कराना कठिन है। विकासशील देशों में आय कम होने के कारण बचतों को निवेश करने के लिए सीमित विकल्प होते हैं, क्योंकि देश का पूँजी बाजार विकसित नहीं होता, अतः आवश्यक धन उत्पन्न या प्राप्त करना बहुत मुश्किल कार्य से है।

(3) बाहरी बचतें (External economies)—उद्यम के समक्ष एक अन्य समस्या बाहरी बचतों की उपलब्धता का न होना है। पश्चिमी देशों के उद्योग अपनी कार्यक्षमता के लिए अन्य उद्योगों पर निर्भर करते हैं। इस कारण यह उद्योग कच्चा माल हिस्से और औजारों की उपलब्धता का पता पहले ही लगा लेते हैं। ये उद्योग इन सब जरूरतों के लिए दूसरों से मदद लेते हैं क्योंकि वहाँ पर उद्योग व अर्थव्यवस्था एवं तकनीकी व सभ्याचारी समूह है, न कि प्रौद्योगिकी के अलग भाग का समूह है।

(4) प्रशिक्षित जनशक्ति की पूर्ति (Supply of trained manpower) विकासशील देशों में जनशक्ति तो प्रचुर मात्रा में है, परन्तु प्रशिक्षित जनशक्ति की कमी है इस कारण से विभिन्न कार्यों के लिए विशेषज्ञों की तलाश एक जटिल कार्य है।

(5) सरकारी नियम (Govt. regulation) उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त एक उद्यमी को विभिन्न प्रकार के सरकारी दिशा-निर्देशों, लाइसेंस प्रणाली, आयात-निर्यात सीमाओं, कीमत नियन्त्रण, विस्तार की सीमा, विविधता तथा कई अन्य औपचारिकताओं का सामना करना पड़ता है।

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अवसरों का विश्लेषण

(Opportunities Analysis)

अवसर से आशय (Meaning of an opportunity)–संयोग स्थिति से लाभ उठाने का नाम ही ‘अवसर’ हैं अल्पकालीन एवं अस्थायी दोनों प्रकार का होता है। कुछ लोग अवसर का लाभ उठा लेते हैं तो कुछ लोग अवसर निकल जाने पर हाथ मलते रह जाते हैं। उदाहरण के लिए, सरकार देश में वनस्पति ऑयल का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरणा देने का। जाती है। अवसर का लाभ उठाकर आप तुरन्त वनस्पति ऑयल निर्मित करने के कारखाने की स्थापना करके अच्छा।

लाभ कमा सकते हैं। कभी-कभी सरकार निर्यात में वृद्धि करने के लिए उसके लिए विशिष्ट प्रेरणा देती है। समझदार व्यक्ति इस कार का लाभ उठाने के लिए वस्तुओं का निर्यात करने के उद्देश्य से निर्यात इकाई की स्थापना कर सकता है। इसी प्रकार एक सक्ति किसी समस्या का समाधान करने के लिए अवसर का लाभ उठा सकता है। उदाहरण के लिए, आप अंशों के खरीदने बेचने का कारोबार करते हैं। आपके पास 220 रु. प्रति अंश की दर से खरीदे हुए टाटा स्टील कम्पनी के एक हजार अंश बाबाद में रेट घटकर 140 रु. प्रति अंश हो जाता है। आपके सम्मुख यह समस्या है है कि आप इस 80,000 रु. के घाटे का सामना केसे करेंगे? अचानक अमरीका द्वारा स्टील के आयात से प्रतिबन्ध हटा लेने के कारण भारत से भारी मात्रा में अमरीका का स्टील का निर्यात प्रारम्भ हो जाता है परिणामस्वरूप टाटा स्टील कम्पनी के अंशों का रेट 140 रु. प्रति अंश से बढ़कर 300 रु. पति अंश हो जाता है। आप तुरन्त अंश बाजार में 1,000 अंश दर 300 रु.प्रति अंश पर बेच देते हैं। इस प्रकार आपका न केवल 80,000 रु. का घाटा पूरा हो गया अपितु आपने 80,000 रु. का लाभ भी कमा लिया।

सामान्यतः अवसर दो प्रकार के होते हैं-() पर्यावरण में विद्यमान अवसर, जैसे-कागज निर्मित करने का कारखाना स्थापित करना, जूते को कारखाना स्थापित करना एवं उसका निर्यात करना आदि। (ii) निर्मित अवसर (Created Opportunities), जैसे—टेलीविजन, कम्प्यूटर, सोफ्टवेयर तथा नई-नई बीमारियों (जैसे—एड्स की दवा, डाइबिटीज की दवा, ब्लड प्रेशर की दवा) आदि के क्षेत्र में विशाल पैमाने पर अनुसन्धान एवं अन्वेषण होने के कारण बड़ी मात्रा में उद्यमियों को कारोबार प्रारम्भ करने का अवसर प्राप्त होना, जैसे—निर्माण करना, मरम्मत करना, एसेम्बलिंग (Assembling) करना, प्रचार करना, देश तथा विदेश में विपणन करना आदि।

अवसरों के विश्लेषण से आशय (Meaning of Opportunities Analysis) _

किसी भी परियोजना का प्रारम्भ उसमें उपलब्ध अवसरों के विश्लेषण से होता है। आँख बन्द करके कुएँ में कूद पड़ना कोई बुद्धिमत्ता नहीं है। अवसरों के विश्लेषण से आशय किसी परियोजना के विचार के गुणों, दोषों, जोखिमों, बाधाओं एवं कमियों आदि का व्यापक रूप में मूल्यांकन करना है। इस चरण में उद्यमी नये विचारों, नये अवसरों, नये अन्वेषणों व नई अवधारणाओं । की पहचान करता है। किसी परियोजना को व्यावहारिक रूप देने से इसे किन-किन बाधाओं, रुकावटों एवं जोखिमों का सामना – करना पड़ेगा, प्रतियोगिता की स्थिति कैसी है, संसाधनों का एकत्रीकरण केसे होगा, बाजार का क्षेत्र किस प्रकार का है—आन्तरिक ल बाजार, विदेशी बाजार अथवा दोनों प्रकार के बाजार खुले होना, तकनीकी ज्ञान कैसे प्राप्त किया जायेगा, सरकारी नीति कैसी लत है अर्थात् प्रोत्साहित करने की अथवा हतोत्साहित करने की, कितनी मात्रा में धन विनियोजन करना होगा और यह धन किन स्रोतों से प्राप्त किया जायेगा आदि। उपक्रम का आकार कैसा होगा अर्थात् लघु अथवा बड़े आकार वाला, परियोजना की स्थापना कहाँ करना लाभप्रद होगा आदि।

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अवसरों के विश्लेषण के घटक

(Factors of Opportunities Analysis),

अथवा

अवसरों के विश्लेषण के स्रोत

(Source of Opportunities Analysis),

अवसरों के विश्लेषण में निम्नलिखित घटकों अथवा स्रोतों को सम्मिलित करते हैं

  • बाजार एवं माँग विश्लेषण (Market and Demand Analysis),
  • संसाधन विश्लेषण (Resources Analysis),
  • तकनीकी विश्लेषण (Technical Analysis), वित्तीय विश्लेषण (Financial Analysis),
  • व्यावसायिक पर्यावरण विश्लेषण (Business Environment Analysis),
  • संयन्त्र स्थान एवं अभिन्यास विश्लेषण (Plant Location and Layout Analysis
  • मुल्यांकन विश्लेषण (Appraisal Analysis)

1.बाजार एवं माँग विश्लेषण (Market and demand analysis) आज एक व्यावसायिक इकाई की सफलता उसके उत्पादन की मात्रा पर नहीं अपितु इस बात पर निर्भर करती है कि आज के इस प्रतिस्पर्द्धाजनक युग में वह कितनी मात्रा में माल का विक्रय कर सकती है। व्यावसायिक इकाई माल का उत्पादन स्वयं के उपयोग अथवा उपभोग के लिए नहीं अपितु बाजार में बेचने के लिए करती है, ताकि ग्राहकों को सन्तुष्टि प्रदान करते हुए उचित लाभ कमाया जा सके। एक व्यावसायिक इकाई के उत्पाद की माँग बाजार में जितनी अधिक होगी, वह इकाई उतनी ही तीव्र गति से प्रगति के पथ पर अग्रसर होगी एवं लाभ कमायेगी। इसी कारण आधुनिक उद्यमी उत्पादों का निर्माण नहीं करते हैं वरन् मॉग का निर्माण करते हैं। आज उत्पादों की माँग उत्पन्न करना एवं उनका विक्रय करना सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। इसी कारण कहा जाता है कि बाजार एवं माँग विश्लेषण अवसर विश्लेषण का प्रारम्भिक बिन्दु है। किसी व्यावसायिक इकाई का आकार एवं उसमें प्रयुक्त प्रौद्योगिकी बहुत कुछ सीमा तक उसके बाजार के क्षेत्र एवं ग्राहकों की माँग पर निर्भर करती है। इसका ज्वलन्त उदाहरण रिलायन्स कम्पनी है। शुरू में इस कम्पनी का आकार बहुत छोटा था, किन्तु जैसे-जैसे इसके द्वारा निर्मित माल की माँग में वृद्धि होती गई एवं बाजार का क्षेत्र व्यापक होता गया, वैसे-वैसे इसका आकार भी बढ़ता गया। आज यह निजी क्षेत्र की भारत की सबसे बड़ी कम्पनी है। बाजार एवं माँग विश्लेषण में निम्नलिखित सूचनाओं का संकलन एवं विश्लेषण किया जाता है : (i) भूतकाल एवं वर्तमान में उत्पादन का विश्लेषण। (ii) वितरण एवं विक्रय वाहिकाएँ एवं संवर्द्धन। (iii) पूर्ति के वर्तमान स्रोत एवं विद्यमान प्रतिस्पर्धा। (iv) वर्तमान एवं भावी माँग का अनुमान। (v) उपभोक्ताओं की रुचियों, पसन्दों एवं आवश्यकताओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन। (vi) निर्यात सम्भावनाएँ, (vii) माँग पर सरकारी नीति, मूल्य परिवर्तनों तथा आर्थिक एवं सामाजिक घटकों का प्रभाव। (viii) माँग वृद्धि एवं उसमें ह्रास की सम्भावनाएँ।

निष्कर्षबाजार एवं माँग के आधार पर व्यावसायिक इकाई अथवा परियोजना का औचित्य।

(2) संसाधन विश्लेषण (Resources analysis)-अवसर विश्लेषण के अन्तर्गत उठाया जाने वाला अगला कदम व्यावसायिक इकाई अथवा उद्यम की स्थापना के लिए संसाधनों का विश्लेषण है अर्थात् उसके लिए पर्याप्त मात्रा में संसाधन उपलब्ध हैं या नहीं, यदि उपलब्ध नहीं हैं तो अवसर विश्लेषण की प्रक्रिया तुरन्त प्रभाव से समाप्त हुई मानी जानी चाहिए। इसके विपरीत यदि संसाधन उपलब्ध हैं तो उनके स्रोत कहाँ पर स्थित हैं और उन्हें केसे प्राप्त किया जायेगा? संसाधनों में सामान्यत: हम निम्नलिखित घटकों को सम्मिलित करते हैं—(i) भूमि, (ii) भवन, (iii) कच्चा माल, (iv) अर्द्ध-निर्मित माल, (v) यन्त्र, (vi) प्रौद्योगिकी, (vii) सामग्री, (viii) वित्तीय स्रोत, (ix) मानव-शक्ति, तथा (x) स्थान एवं अभिन्यास जहाँ पर संयन्त्र की स्थापना की जानी हैं ।

(3) तकनीकी विश्लेषण (Technical analysis)—अवसर विश्लेषण के अन्तर्गत उठाया जाने वाला तीसरा कदम परियोजना को स्थापित करने के लिए तकनीकी सम्भावनाओं का विश्लेषण करना है। यदि तकनीकी विश्लेषण से यह पता लगता है कि तकनीकी दृष्टि से उसे स्थापित करना सम्भव नहीं है तो परियोजना की स्थापना के विचार को तत्काल समाप्त कर देना चाहिए। उदाहरण के लिए, राम का विचार दिल्ली में कम्प्यूटर बनाने का कारखाना स्थापित करने का है, किन्तु इसके लिए यन्त्र एवं विशेषज्ञों का आयात जर्मनी से करना होगा। भारत सरकार ने जर्मनी से इनके आयात पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। ऐसी स्थिति में इस परियोजना पर आगे विचार करने का प्रश्न ही नहीं उठता। सामान्यतः किसी निर्माणी इकाई की स्थापना के लिए पहले तकनीकी क्रियान्विति प्रतिवेदन किसी विशेषज्ञ से तैयार कराया जाता है, जिसमें विभिन्न तकनीकी विकल्पों, यन्त्र की किस्म एवं आकार, उत्पादन विधि, परियोजना के आकार आदि के बारे में व्यापक सूचना दी गई होती है। सामान्यत: तकनीकी विश्लेषण में निम्नलिखित बिन्दुओं को सम्मिलित किया जाता है—(1) उत्पादित माल या सेवा का विवरण; (ii) उत्पादन संयन्त्र की स्थापना का स्थान और उस विशिष्ट क्षेत्र में उसकी स्थापना का औचित्य; (iii) संयन्त्र का आकार एवं उत्पादन अनुसूची; (iv) संयन्त्र अभिन्यास: (v) उत्पादन तकनीक,प्रौद्योगिकी,प्रक्रिया एवं विधि; (vi) तकनीकी,कुशलता एवं अकुशल श्रम-शक्ति की उपलब्धता; (vii) यन्त्र उपकरण एवं औजार; (viii) शक्ति—प्रकार एवं उपयोग: (ix) संयन्त्र क्षमता: परिवर्तन आदि का अनुमान: (x) परियोजना बालिकाएँ संरचनाएँ एवं कार्य-अनुसूचियाँ; (xi) अतिक्षय (Wastage) के उपयोग एवं उसे ठिकाने लगाने की विधि: एवं (xii) निर्माण प्रक्रिया का अन्य कोई पहलू।

वित्तीय विश्लेषण (Financial analysis) डॉ.सी. पी.श्रीवास्तव (Dr.C.P.Shrivastava) के अनुसार, योग के लिए तेल, हड्डियों का सार, नाड़ियों का रक्त और सभी व्यवसायों की आत्मा है।”

विख्यात अर्थशास्त्री प्रो. मार्शल (Prof. Marshall) के अनुसार, “आधुनिक युग में वित्त वह धरी है जिसके चारों ओर आर्थिक संचार घूमता है यदि देखा जाये तो उद्योग अथवा व्यवसाय की कोई भी परियोजना वित्त के अभाव में अधरी है। इस सन्दर्भ

जोशाक का निम्न कथन सामयिक एवं उपयुक्त है कि “वर्तमान युग में हम पूँजीकरण व पँजीवाद को

और आर्थिक संसार घूमता है।” यदि देखा जाये तो उद्योग इस सन्दर्भ में के. के. जोशाक का निम्न व

वोट प्राप्त करने का साधन मात्र कहकर भले ही तुकरा दें, परन्तु कोई भी विवेकशील व्यक्ति इस बात को अस्वीकार नहीं कर सकता कि वर्तमान आर्थिक एवं औद्योगिक विकास की आधारशिला पूँजी ही है।” वस्तुतः वित्त आधुनिक उद्योग एवं व्यवसाय का जीवन रक्त है। बिना वित्त के किसी उद्योग अथवा व्यवसाय की कल्पना तक नहीं की जा सकती।

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वित्तीय विश्लेषण एक व्यापक शब्द है जिसके अन्तर्गत किसी परियोजना की लाभदेयता एवं वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता को ज्ञात किया जाता है जिनकी आवश्यकता परियोजना की लागत, कच्चे माल की लागत, तकनीकी लागत, विपणन लागत, संचालन व्यय आदि के भुगतान करने के लिए होती है। सामान्यतः वित्तीय विश्लेषण में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है—(1) परियोजना की कुल लागत जि भवन, यन्त्र, कच्चा माल, नकद प्रवाह आदि सम्मिलित हैं; (ii) स्थायी एवं कार्यशील पँजी की आवश्यकताएं एवं स्रोत; (iii) अनुमानित बिक्री, साख की अवधि, आय, लाभ, ब्याज, विनियोगों पर प्रत्याय आदि; (iv) सरकार से प्राप्त होने वाली वित्तीय रियायतें एवं सहायता: (v) सार्वजनिक उद्यमों की दशा में सामाजिक लाभ विश्लेषण; एवं (vi) विनियोग पर प्रत्याय।

निष्कर्ष-यदि उपर्युक्त वित्तीय विश्लेषण के परिणाम सकारात्मक हों तो उद्यमी अपनी परियोजना को वित्तीय संस्थाओं को वित्त की व्यवस्था करने के लिए सौंप सकता है।

(5) व्यावसायिक पर्यावरण विश्लेषण (Business environment analysis)—एक उद्यमी सदैव नये-नये व्यावसायिक अवसरों की खोज में रहता है किन्तु यह कार्य सरल नहीं है। किसी भी नवीन उद्यम की स्थापना करने से पूर्व उस क्षेत्र के व्यावसायिक पर्यावरण का विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। व्यावसायिक पर्यावरण विश्लेषण को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं—(i) औद्योगिक नीति; (ii) लाइसेन्सिंग नीति; (iii) औद्योगिक (विकास एवं विनिमय) अधिनियम (iv) पूँजी निर्गमन (नियन्त्रण) अधिनियम; (v) मूल्य नियन्त्रण नीति; (vi) किस्म नियन्त्रण; (vii) आवश्यक वस्तु अधिनियम; (viii) आयात-निर्यात अधिनियम; (ix) वितरण प्रणाली; (x) एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम; (xi) लघु उद्योग की दशा में सरकार द्वारा प्रदान की गई सुविधाएँ, रियायतें, अनुदान एवं प्रेरणाएँ; (xii) नवाचार का पर्यावरण एवं इसका विकास करने के लिए उपलब्ध सरकारी सुविधाएँ आदि; (xiii) औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित की जाने वाली इकाइयों को प्रदत्त छुट, क्षेत्रों में रियायतें एवं अन्य प्रेरणाएँ; (xiv) निर्यात-प्रधान इकाइयों के लिए प्रेरणाएँ: (xv) विद्यमान उद्योगों की स्थिति एवं उनकी लाभदेयता; (xvi) आर्थिक एवं सामाजिक प्रवृत्तियाँ; (xvii) सरकारी योजनाओं में उद्योग का महत्त्व एवं सरकारी मार्गदर्शिकाएँ; एवं (xviii) कर भार मूल्यांकन।

(6) संयन्त्र स्थान एवं अभिन्यास विश्लेषण (Plant locationand layout analysis)—संयन्त्र स्थान विश्लेषण का उद्देश्य यह ज्ञात करना है कि संयन्त्र की स्थापना किस स्थान पर की जायेगी। यह निर्णय कई घटकों पर निर्भर करता है, जैसेकच्चे माल की उपलब्धता, श्रम, ईंधन, जल, शक्ति, परिवहन, संचार, बैंक, बाजार की निकटता, सहायक उद्योगों की स्थिति आदि। सामान्यतः प्रत्येक राज्य में उद्योग-धन्धों की स्थापना के लिए सरकार द्वारा औद्योगिक बस्तियों की स्थापना की जाती है जिसमें सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की छूटें एवं रियायतें प्रदान की जाती हैं, जैसे—सस्ती भूमि, सस्ती बिजली, करों में छूट, प्रारम्भ में सरकार द्वारा उत्पाद के क्रय की गारण्टी, प्रशिक्षण की सुविधाएँ, कच्चे माल के आयात की सुविधाएँ, वित्तीय अनुदान आदि। उद्यमी को संयन्त्र के स्थान पर चयन करते समय इन सुविधाओं को ध्यान में रखकर ही निर्णय लेना चाहिए। ___ संयन्त्र अभिन्यास विश्लेषण के अन्तर्गत हम संयन्त्र अभिन्यास यन्त्रों, प्रविधियों, प्रक्रियाओं एवं अन्य सेवाओं को सम्मिलित करते हैं। उद्यमी को अपने उद्यम का श्रेष्ठ अभिन्यास तैयार करना चाहिए, ताकि न्यूनतम लागत एवं अपव्ययों पर प्रभावी नियन्त्रण के साथ अधिकतम एवं श्रेष्ठ उत्पादन किया जा सके। यदि संयन्त्र अभिन्यास विश्लेषण पर उचित ढंग से विचार नहीं किया गया तो उद्यम की कुशलता में कमी आयेगी, प्रति इकाई लागत में वृद्धि होगी, उत्पादन की किस्म में गिरावट आयेगी, उत्पादन की मात्रा गिर जायेगी तथा तुलनात्मक दृष्टि से उत्पादन प्रक्रिया प्रारम्भ करने में अधिक समय लगेगा।

(7) मूल्यांकन विश्लेषण (Evaluation analysis)-अवसरों के विश्लेषण का अन्तिम चरण मूल्यांकन विश्लेषण है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है—(i) परियोजना के विभिन्न पहलुओं का मूल्याकन (ii) लाभदेयता का मूल्यांकन; (iii) सामाजिक (राष्ट्रीय) लाभदेयता का विश्लेषण परियोजना की लागत का मूल्यांकन एवं लागत की तलना में लाभों का मूल्यांकन; (v) आवश्यक संसाधनों की उपलशिका मल्यांकनः एवं (vi) अन्य बाहरी प्रभावो। का मूल्यांकन।

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