BCom 1st Year Proposal Acceptance Communication Revocation Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Proposal Acceptance Communication Revocation Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Proposal Acceptance Communication Revocation Study Material Notes in Hindi: Proposal of Offer  Essential Characteristics or Elements of Proposal Distinction Between Proposal and Invitation to Proposal Acceptance Legal Rules  Relating to the Acceptance Commercial proposal Acceptance Examination Question Long Answer Questions Short Answer Question :

Proposal Acceptance Communication Revocation
Proposal Acceptance Communication Revocation

BCom 1st Year Business Contract Definition Essentials Study Material notes in Hindi

प्रस्ताव एवं स्वीकृतिसंवहन एवं खण्डन

(Proposal And Acceptance Communication and Revocation)

वैध अनुबन्ध का प्रथम आवश्यक लक्षण है-पक्षकारों के मध्य ठहराव होना। ठहराव एक पक्षकार के प्रस्ताव को दूसरे पक्षकार द्वारा स्वीकार कर लिए जाने पर बनता है। अत: ठहराव की उत्पत्ति दो तत्वों-प्रस्ताव एवं स्वीकृति से होती है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम में प्रस्ताव के लिए Proposal शब्द का प्रयोग किया गया है जबकि अंग्रेजी राजनियम में इसके लिए Offer शब्द प्रयुक्त हुआ है। प्रस्तुत अध्याय में प्रस्ताव एवं स्वीकृति के सम्बन्ध में विस्तृत अध्ययन करेंगे।

Proposal Acceptance Communication Revocation

प्रस्ताव

(Proposal or Offer)

प्रस्ताव, इच्छा या विचार की अभिव्यक्ति (Expression) है। प्रस्ताव रखने वाला व्यक्ति यह इच्छा व्यक्त करता है कि वह अनुबन्ध करने का इच्छुक है, यदि दूसरा पक्ष प्रस्ताव में वर्णित शर्तों को उसी रुप में स्वीकार कर ले। प्रस्ताव एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के समक्ष किसी कार्य को करने अथवा न करने की अपनी इच्छा को प्रकट करना है। इस इच्छा को प्रकट करने का उद्देश्य दूसरे व्यक्ति की सहमति प्राप्त करना होता है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2 (a) के अनुसार, “जब एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से किसी कार्य को करने अथवा न करने के सम्बन्ध में अपनी इच्छा इस उद्देश्य से प्रकट करता है कि उस व्यक्ति की सहमति (Consent) उस कार्य को करने अथवा न करने के सम्बन्ध में प्राप्त हो. तो कहेंगे कि पहले व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के सम्मख प्रस्ताव रखा।”

पोलाक के अनुसार, “किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से स्पष्ट शर्तों के आधार पर किसी ठहराव का पक्षकार बनने की इच्छा को व्यक्त करना ‘प्रस्ताव’ कहलाता है।

एन्सन (Anson) के अनुसार, “विधितः बाध्यकारी अनुबन्ध के निर्माण करने की इच्छा को शब्दों या आचरण द्वारा प्रकट करना ही प्रस्ताव है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रस्ताव एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के सामने किसी कार्य को करने अथवा न करने की अपनी इच्छा को प्रकट करना है। इस इच्छा को प्रकट करने का उद्देश्य दूसरे व्यक्ति की सहमति (Consent) प्राप्त करना है। प्रस्ताव करने वाले व्यक्ति को ‘प्रस्तावक’ (Proposer or Offerer) कहते हैं तथा जिसके समक्ष प्रस्ताव किया जाता है उसे ‘प्रस्तावग्रहीता’ (Offeree) कहते हैं। उदाहरणार्थ, अजय विजय से कहता है कि मैं अपना स्कूटर 5,000 ₹ में बेचने को तैयार हैं। यहाँ पर अजय ने विजय के समक्ष अपना स्कूटर बेचने का प्रस्ताव किया है।

Proposal Acceptance Communication Revocation

प्रस्ताव के आवश्यक लक्षण अथवा तत्व अथवा विशेषतायें

(Essential Characteristics or Elements of Proposal)

प्रस्ताव के आवश्यक लक्षण अथवा विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1 दो पक्षों का होना (There must be two Parties)-प्रस्ताव के अन्तर्गत एक पक्षकार दूसरे

सम्मख प्रस्ताव रखता है। अत: दो पक्षकारों का होना आवश्यक है। “कोई भी पक्षकार स्वयं पक्ष प्रस्ताव नहीं रख सकता। फाकनर बनाम लोवे (Faulkener Vs. Lowe) के विवाद में व्यावसायिक नियामक ढाँचा न्यायाधीश ने अपने महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा था कि, “कोई व्यक्ति अपने स्वयं के अधिकारों के सम्बन्ध में अपने ही प्रति उत्तरदायी नहीं हो सकता।”

2. प्रस्ताव किसी कार्य को करने अथवा न करने के लिए होना-प्रस्ताव किसी कार्य को करने के सम्बन्ध में भी हो सकता है और न करने के सम्बन्ध में भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, अ, ब को अपनी साइकिल 250 ₹ में बेचने का प्रस्ताव करता है। यहाँ ‘अ’ किसी कार्य को करने का प्रस्ताव करता है। इसी प्रकार प्रस्ताव किसी कार्य को न करने के सम्बन्ध में भी हो सकता है। उदाहरण के लिए अ, ब के समक्ष यह प्रस्ताव करता है कि 500 ₹ के बदले वह ‘ब’ पर एक महीने तक वाद प्रस्तुत नहीं करेगा। यहाँ ‘अ’ किसी कार्य को न करने का प्रस्ताव करता है।

3. प्रस्तावक द्वारा दूसरे पक्षकार की सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से इच्छा का प्रकट किया जाना-प्रस्तावक दूसरे पक्षकार के समक्ष उसकी स्वीकृति पाने के उद्देश्य से ही अपनी इच्छा प्रकट करता है। यदि प्रस्ताव दूसरे पक्षकार की स्वीकृति प्राप्त करने के उद्देश्य से न किया जाय तो इसे प्रस्ताव नहीं कहेंगे क्योंकि ऐसा न करने से प्रस्ताव स्वीकृत नहीं किया जा सकता। इस प्रकार न तो यह ठहराव ही बन सकता है और न अनुबन्ध ही प्रस्ताव सम्बन्धी वैधानिक नियम (Legal Rules as to Proposal)-

प्रस्ताव के सम्बन्ध में निम्नलिखित वैधानिक नियम महत्त्वपूर्ण हैं

1 प्रस्ताव वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाना चाहिए (Intention to Create Legal Relationship)-यदि किसी प्रस्ताव में वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा का अभाव है तो ऐसे प्रस्ताव का कोई वैधानिक महत्त्व नहीं होता और वह स्वीकृत हो जाने पर भी वैध अनुबन्ध का रूप नहीं ले सकता। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति को दावत के लिए निमन्त्रण देना, साथ-साथ घूमने या पिक्चर जाने के प्रोग्राम आदि से सम्बन्धित प्रस्ताव स्वीकार कर लिए जाने पर भी किसी वैधानिक उत्तरदायित्व को उत्पन्न नहीं करते हैं, अत: प्रवर्तनीय नहीं हो सकते। इस सम्बन्ध में श्रीमती बालफोर बनाम बालफोर का विवाद महत्त्वपूर्ण है।

इस विवाद में श्री बालफोर ने जो श्रीलंका में रहते थे, अपनी पत्नी को जो इंग्लैण्ड में रहती थी, प्रतिमाह 30 पौंड भेजने का वचन दिया किन्तु वायदे की रकम न भेज सके। बाद में श्रीमती बालफोर ने इस वचन भंग के लिये न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया। न्यायालय ने इस मामले में निर्णय देते हुए कहा कि श्रीमती बालफोर इस वचन को प्रवर्तित नहीं करा सकती क्योंकि इस वचन का उद्देश्य राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय कराने का नहीं था।

2. प्रस्ताव की शर्ते निश्चित होनी चाहिए (The Terms must be Certain)-प्रस्ताव की सारी बातें निश्चित व स्पष्ट होनी चाहिएँ। अनिश्चित व अस्पष्ट प्रस्ताव राजनियम की दृष्टि से प्रस्ताव नहीं होते हैं। राम अपनी गाय श्याम को 500 ₹ में बेचने का प्रस्ताव करता है। यह प्रस्ताव स्पष्ट एवं निश्चित है। – इसके विपरीत राम, श्याम से कहे कि यदि गाय के बछड़ा हुआ तो मैं सम्भवत: तुम्हें गाय बेच दूंगा, यह अनिश्चित प्रस्ताव है।

Proposal Acceptance Communication Revocation

3. प्रस्ताव विनय के रुप में होना चाहिए (Proposal should be in the form of Request)-प्रस्ताव हमेशा विनय के रूप में किया जाना चाहिए न कि आज्ञा के रूप में। प्रस्तावक, प्रस्ताव में स्वीकृति की विधि तो निर्धारित कर सकता है परन्तु प्रस्ताव में इस प्रकार की शर्ते नहीं लगा सकता जिनके पूरा न होने पर प्रस्ताव स्वीकृत समझा जाए। उदाहरणार्थ, नरेन्द्र अपनी गाय रविन्द्र को 1.000 ₹ में बेचने का प्रस्ताव करता है तथा यह भी कहता है कि तुमने एक सप्ताह के भीतर कोई जवाब नहीं दिया तो प्रस्ताव स्वीकृत माना जाएगा। रविन्द्र कोई जवाब नहीं देता। ऐसी स्थिति में नरेन्द्र और रविन्द्र के बीच कोई अनुबन्ध हुआ नहीं माना जाएगा क्योंकि प्रस्ताव प्रार्थना के रूप में न होकर आज्ञा के रूप में था जिसके द्वारा रविन्द्र को अस्वीकृति भेजने की आज्ञा दी गई थी।

4. प्रस्ताव सामान्य अथवा विशिष्ट हो सकता है (Proposal may be General or Specific)-प्रस्ताव सामान्य अथवा विशिष्ट दोनों ही प्रकार का हो सकता है। विशिष्ट प्रस्ताव किसी विशिष्ट व्यक्ति के सामने रखा जाता है तथा केवल वही व्यक्ति उस पर स्वीकृति दे सकता है। इसके विपरीत, सामान्य प्रस्ताव खुला प्रस्ताव होता है जो सामान्य जनता के सामने रखा जाता है। सामान्य प्रस्ताव को कोई भी व्यक्ति स्वीकार कर सकता है।

उदाहरणX अपने मुनीम Y को अपने खोए हुए लड़के को ढूँढ लाने का आदेश देता है तथा ऐसा कर देने पर 500 ₹ इनाम देने का वचन देता है। यह विशिष्ट प्रस्ताव है क्योंकि इनाम पाने का अधिकारी केवल मुनीम ही है अन्य कोई व्यक्ति नहीं।

उपरोक्त उदाहरण में यदि X सार्वजनिक घोषणा करता है कि जो व्यक्ति उसके लड़के को ढूढ निकालेगा, वह उसे 500 ₹ का इनाम देगा, तो यह एक सामान्य प्रस्ताव होगा। इस प्रस्ताव को कोई भी व्यक्ति घोषणा के अनुसार कार्य करके स्वीकार कर सकता है।

सामान्य प्रस्ताव के सम्बन्ध में श्रीमती कारलिल बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल कम्पनी का विवाद काफी महत्त्वपूर्ण है।

इस विवाद में प्रतिवादी कम्पनी ने यह विज्ञापन किया कि वह ऐसे किसी भी व्यक्ति को, जो कम्पनी की स्मोक बाल (Smoke Ball) दवा का प्रयोग प्रतिदिन तीन बार दो सप्ताह तक करने पर भी इंफ्लुएंजा का शिकार होगा, 100 पौंड हर्जाना देगी। वादी ने विज्ञापन पर विश्वास कर दवा खरीदी और उसका प्रयोग विज्ञापन के निर्देशानुसार किया, पर फिर भी वह इंफ्लुएंजा की शिकार हो गई। कारलिल ने। हर्जाने के लिए मकदमा पेश किया। कम्पनी की ओर से यह तर्क दिया गया कि स्वीकृति की सूचना। कम्पनी को सीधे मिलनी चाहिए थी और कम्पनी का प्रस्ताव केवल विज्ञापन था। न्यायालय ने निर्णय दिया। कि ऐसे विवाद में प्रस्ताव की स्वीकृति की सूचना देने की कोई आवश्यकता नहीं होती, बल्कि प्रस्ताव की शर्तों की स्वीकृति और पालन की आवश्यकता होती है, अत: निर्णय कारलिल के पक्ष में हआ और उन्हें हर्जाने के 100 पौंड मिले। प्रस्ताव सर्वसाधारण के लिए था और कारलिल द्वारा गर्भित स्वीकृति थी।

5. प्रस्ताव स्पष्ट या गर्भित हो सकता है (An Offer can be Express or Implied)-जब मौखिक या लिखित रूप में स्पष्ट शब्दों में कोई प्रस्ताव रखा जाता है तो यह स्पष्ट प्रस्ताव कहलाता है। उदाहरणार्थ-अमित, सुमित को अपनी साइकिल 500 ₹ में बेचने का प्रस्ताव करता है, तो यहाँ पर अमित द्वारा स्पष्ट प्रस्ताव रखा गया है। इसके विपरीत जब पक्षकारों के आचरण या व्यवहार से कोई प्रस्ताव प्रकट होता है तो उसे गर्भित प्रस्ताव कहते हैं। उदाहरणार्थ, एक निश्चित मार्ग पर बस चलाने वाली बस कम्पनी की ओर से यह गर्भित प्रस्ताव माना जाता है कि वह निर्धारित किराए पर सवारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाएगी।

6. प्रस्ताव का संवहन होना आवश्यक है (Offer must be Communicated)-संवहन का आशय सूचना पहुँचने या जानकारी होने से है। प्रस्ताव उस व्यक्ति के पास अवश्य पहुँचना चाहिए जिसके लिए वह किया गया है। जब तक प्रस्ताव का संवहन नहीं होता वह स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

और फलस्वरूप ठहराव का रूप धारण नहीं कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति अनजाने में ही प्रस्ताव की शर्तों के अनुसार कार्य करता है तो इसे प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं माना जा सकता है क्योंकि कोई व्यक्ति उस प्रस्ताव को स्वीकार कैसे कर सकता है जिसकी उसे जानकारी ही नहीं है। उदाहरणार्थ, राजीव बिना इनाम की जानकारी के किसी मुजरिम (अपराधी) को पकड़वा देता है। बाद में जब उसे इनाम के बारे में पता चलता है तो वह इनाम की राशि की माँग करता है। ऐसी स्थिति में राजीव इनाम पाने का अधिकारी नहीं हो सकता क्योंकि उसने इनाम की जानकारी के बिना कार्य किया है। लालमन शुक्ला बनाम गौरीदत्त का केस इस नियम को अच्छी तरह से स्पष्ट करता है। गौरीदत्त ने अपने मुनीम लालमन शुक्ला को अपने भतीजे की खोज करने के लिये भेजा। मुनीम के चले जाने के पश्चात् गौरीदत्त ने भतीजे को खोज कर लाने वाले के लिए 501 ₹ का इनाम घोषित किया। लालमन, शुक्ला भतीजे को खोज कर घर ले आया। बाद में इनाम के बारे में पता चलने पर लालमन शुक्ला ने इनाम की राशि प्राप्त करने के लिए मुकदमा चलाया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि, क्योंकि लालमन शुक्ला को इनाम की जानकारी पहले से नहीं थी इसलिए उसके द्वारा इस प्रस्ताव की स्वीकृति का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।

7. प्रस्ताव से सम्बन्धित शर्तों की स्पष्ट सूचना दी जानी चाहिए (Special Conditions to the Proposal should also be Communicated)-यदि प्रस्ताव कुछ विशेष शतों के साथ किया जा रहा है तो ऐसी दशा में उन विशेष शर्तों का संवहन होना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो दूसरा पक्ष (प्रस्तावग्रहीता) उन शर्तों से बाध्य नहीं होगा भले ही उसने अनबन्ध कर लिया हो। उदाहरणार्थ, आशीष अपने कपड़े सिल्को टेलर्स के यहाँ सिलने के लिए देता है। कपड़ा प्राप्ति की रसीद पर यह लिखा है कि कपड़ा खो जाने या बदल जाने पर कपड़े की आधी राशि भुगतान की जाएगी। अतः यदि आशीष का कपड़ा खो जाता है तो वह कपड़े के मूल्य की केवल आधी राशि प्राप्त करने का ही अधिकारी होगा क्योंकि उसे प्रारम्भ में ही विशिष्ट शर्त की जानकारी दे दी गई थी। प्रायः रेलवे, बीमा कम्पनी, ट्रांसपोर्ट कम्पनी एवं जहाजी कम्पनियों की दशा में समझौते फार्म (Agreement Forms) छपे हए होते हैं जिनमें समस्त शर्तों का पूर्ण उल्लेख होता है और इन शर्तों के बारे में विशेष संकेत दिया रहता है जिससे दूसरे पक्ष का ध्यान उन शर्तों की ओर आकर्षित हो।

इस सम्बन्ध में पार्कर बनाम एस. ई. रेलवे कं. का विवाद महत्त्वपूर्ण है। पार्कर ने अपना बैग रेलवे के अमानती सामान घर में रखा। टिकट पर पीछे देखो लिखा था। टिकट के पीछे कई शर्ते लिखी हुई थी। उसमें से एक शर्त के अनुसार गुम हुए सामान के लिए रेलवे कम्पनी का दायित्व केवल 10 पौण्ड तक सीमित था। बैग गुम हो जाने पर पार्कर ने 24 पौण्ड 10 शि का वाद प्रस्तुत किया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि रेलवे कम्पनी 10 पौण्ड तक देने के लिए ही बाध्य है। ।

रायपुर परिवहन कम्पनी बनाम घनश्याम के विवाद में रायपुर परिवहन कम्पनी ने बिना किसी शर्त के घनश्याम के माल को ले जाने के लिए स्वीकृति प्रदान की। बाद में कम्पनी ने एक गश्ती-पत्र का निर्गमन किया जिसके अन्तर्गत मार्ग में माल को क्षति अथवा खोने के सम्बन्ध में अपना दायित्व सीमित करने की घोषणा की गई। न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि माल भेजने वाला इस गश्ती-पत्र की शर्त से बाध्य नहीं है क्योंकि इसकी सूचना उसे अनुबन्ध की तिथि से पूर्व नहीं दी गई थी।

Proposal Acceptance Communication Revocation

8. प्रस्ताव, प्रति प्रस्ताव से भिन्न है (There is difference between Proposal and Counter Proposal)-जब दो व्यक्ति एक दूसरे के द्वारा किए गये प्रस्तावों से अनभिज्ञ रहते हुए एक जैसे ही प्रस्ताव एक-दूसरे को करते हैं, तो उनके द्वारा किए गए प्रस्ताव ‘प्रति प्रस्ताव’ कहलाते हैं। प्रति प्रस्ताव को एक दूसरे की स्वीकृति नहीं माना जा सकता है। उदाहरण के लिए, राजेश खन्ना, दिलीपकुमार को अपनी मारुति कार 60,000 ₹ में बेचने का प्रस्ताव करता है। दिलीपकुमार उसी दिन राजेश खन्ना से उसकी कार 50,000 ₹ में खरीदने का प्रस्ताव करता है। ये प्रति प्रस्ताव हैं और वैध अनुबन्ध का निर्माण नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में किसी भी प्रस्ताव को दूसरे प्रति-प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं माना जा सकता

9. प्रस्ताव, ‘प्रस्ताव का निमन्त्रणएवं प्रस्ताव करने की इच्छाएक दूसरे से भिन्न हैं (An Offer is Different from an Invitation to offer and Intention to make a offer)-प्रस्ताव एवं प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण’ दोनों में अत्यधिक अन्तर है क्योकि प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण की दशा में एक व्यक्ति स्वयं प्रस्ताव न करके दूसरे व्यक्ति को प्रस्ताव करने के लिए आमन्त्रित करता है। अब प्रस्ताव वास्तव में उस व्यक्ति की ओर से आएगा जिसको कि आमन्त्रित किया गया था और अब निमन्त्रण देने वाले व्यक्ति की इच्छा पर होगा कि वह उसको स्वीकार करे या नहीं क्योंकि उसने प्रस्ताव न करके प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण दिया था। यदि प्रस्ताव का निमन्त्रक अब उक्त प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है तो उसे स्वीकृति कहा जाएगा और यदि स्वीकार नहीं करता तो इसके (निमन्त्रण देने वाले के) और प्रस्ताव करने वाले (जिसने निमन्त्रण स्वीकार किया है) के बीच कोई वैधानिक सम्बन्ध उत्पन्न नहीं होंगे।

प्रस्ताव तथा प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण में अन्तर

(Distinction between proposal and Invitation to propsal) ‘

प्रस्ताव’ एवं ‘प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण’ दोनों एक दूसरे से भिन्न हैं। कुछ कथन जो ऊपरी तौर से देखने में प्रस्ताव प्रतीत होते हैं, वास्तव में प्रस्ताव न होकर प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण मात्र होते हैं। ‘प्रस्ताव’ दूसरे पक्ष की स्वीकृति प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है जबकि ‘प्रस्ताव का निमन्त्रण’ दूसरे पक्षकार अथवा पक्षकारों को प्रस्ताव करने के लिए आमन्त्रित करने हेतु किया जाता है। दूसरे शब्दों में, ‘प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण’ की दशा में एक व्यक्ति स्वयं प्रस्ताव न करके दूसरे व्यक्ति को प्रस्ताव करने के लिए आमन्त्रित करता है। अब प्रस्ताव वास्तव में उस व्यक्ति की ओर से आएगा जिसको कि आमन्त्रित किया गया था और अब निमन्त्रण देने वाले व्यक्ति की इच्छा पर होगा कि वह उसको स्वीकार करे या नहीं क्योकि उसने प्रस्ताव न करके प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण दिया था। यदि प्रस्ताव का निमन्त्रक अब उक्त प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है तो उसे स्वीकृति’ कहा जाएगा और यदि स्वीकार नहीं करता तो इसके (निमन्त्रण देने वाले के) और प्रस्ताव करने वाले (जिसने निमन्त्रण स्वीकार किया है) के बीच कोई वैधानिक सम्बन्ध उत्पन्न नहीं होंगे। विभिन्न महत्त्वपूर्ण विवादों के आधार पर यह निश्चित किया जा चुका है कि निम्नलिखित कथन, विवरण एवं प्रलेख ‘प्रस्ताव’ न होकर ‘प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण’ हैं

1 टैण्डर मांगनावस्तुएँ खरीदने या बेचने के लिए या किसी काम को पूरा करने के लिए। टेण्डर मांगना, टेण्डर मांगने वाले पक्षकार की ओर से प्रस्ताव नहीं होता, बल्कि विक्रेताओं, क्रेताओं और । ठेकेदारों को प्रस्ताव करने के लिए निमन्त्रण होता है, जिसे टैण्डर मांगने वाले स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।

2. मूल्य सचियाँमल्य सचियाँ या अन्य सचियाँ छपवाना और वस्तु के ऊपर मूल्य लिखकर दुकानों पर टांगना या खिड़कियों में सजाना राजनियम की दृष्टि में वस्तुओं को बेचने का प्रस्ताव नहीं होता बल्कि खरीदने वाले व्यक्तियों के लिए प्रस्ताव करने का निमन्त्रण होता है।

3. बीमा के प्रस्तावबीमा कम्पनी द्वारा दिए गए प्रस्ताव पत्र (Proposal Form) वास्तव में बीमा करने का प्रस्ताव न होकर बीमा कराने वाले व्यक्ति को प्रस्ताव करने के लिए निमन्त्रण’ है।

4. रेलवे की समय सारणी-यह रेलगाडियों के अनुसूचित समय पर चलने का प्रस्ताव नहीं है। वरन् एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले व्यक्तियों को प्रस्ताव करने का निमन्त्रण है।

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5. प्रविवरणयदि कोई कम्पनी अपने अंश एवं ऋण-पत्र बेचने के अभिप्राय से प्रविवरण (Prospectus) का निर्गमन करती है, तो कदापि यह नहीं कहा जा सकता है कि वह कम्पनी प्रस्ताव कर रही है, बल्कि वह प्रस्ताव करने के लिए निमन्त्रण है, जिसे स्वीकार अथवा अस्वीकार करना कम्पनी पर निर्भर करता है।

6. गश्तीपत्रवस्तुओं को खरीदने अथवा बेचने के लिए जो गश्तीपत्र भेजे जाते हैं वे प्रस्ताव न होकर केवल प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण है।

7. मल्य सम्बन्धी पूछताछ का उत्तर देना-मूल्यों के सम्बन्ध में की गई पूछताछ का उत्तर देना वस्तुओं को उस मूल्य पर बेचने का प्रस्ताव नहीं है बल्कि प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण है।

उपर्युक्त विवेचन से ‘प्रस्ताव’ एवं ‘प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण’ में निम्नलिखित अन्तर स्पष्ट होते

(i) उद्देश्यप्रस्ताव का उद्देश्य प्रस्ताविति की स्वीकृति प्राप्त करना होता है, जबकि ‘प्रस्ताव के निमन्त्रण’ का उद्देश्य किसी दूसरे पक्षकार से किसी कार्य को करने अथवा नहीं करने के लिए प्रस्ताव प्राप्त करना होता है।

(ii) ठहराव का निर्माणप्रस्ताव की स्वीकृति देने से ठहराव का जन्म होता है जबकि ‘प्रस्ताव के निमन्त्रण’ को स्वीकार करने से प्रस्ताव का जन्म होता है।

(iii) दायित्वप्रस्ताव की स्वीकृति हो जाने से दोनों पक्षकारों के दायित्व उत्पन्न हो जाते हैं जबकि ‘प्रस्ताव का निमन्त्रण स्वीकार करने से किसी भी पक्षकार का दायित्व उत्पन्न नहीं होता है।

Proposal Acceptance Communication Revocation

प्रस्ताव और प्रस्ताव करने की इच्छा में अन्तर (Difference between Proposal and Intention to make a Proposal)-‘प्रस्ताव’ तथा ‘प्रस्ताव करने की इच्छा’ में बहुत अन्तर है। प्रस्ताव करने की इच्छा की घोषणा करना, वास्तव में प्रस्ताव नहीं हो सकता। अत: ऐसी घोषणा को स्वीकृत नहीं किया जा सकता। यदि कोई पक्षकार ऐसी घोषणा को स्वीकार कर भी लेता है तो वह प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं मानी जाएगी और उनके बीच किसी वैध अनुबन्ध का निर्माण नहीं होगा। उदाहरण के लिए, “मेरा विचार अपनी साइकिल 500 ₹ में बेचने का है।” यह प्रस्ताव नहीं है, बल्कि प्रस्ताव करने के अभिप्राय की घोषणा है। इसके विपरीत यदि यह कहा जाए कि “क्या आप मेरी साइकिल 500 ₹ में खरीदेंगे? तो यह वास्तव में एक ‘प्रस्ताव’ है जिसको स्वीकृत किए जाने पर ठहराव का निर्माण हो जाएगा।

केस लॉ (Case Law)-इस सम्बन्ध में हैरिस बनाम निकरसन का केस महत्त्वपूर्ण है। इस विवाद में प्रतिवादी ने यह विज्ञापन दिया कि वह अपने कुछ लकड़ी के सामान (Furniture) का विक्रय लंदन से कुछ दूरी पर नीलाम द्वारा करेगा। जब वादी लंदन से निश्चित स्थान पर गया, तो उसे मालूम । हुआ कि नीलाम वापस ले लिया गया है। इस पर वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध अनुबन्ध भंग के आधार पर वाद प्रस्तुत किया। इस पर निर्णय दिया गया कि प्रतिवादी ने विज्ञापन द्वारा केवल प्रस्ताव करने के  अभिप्राय की घोषणा की थी। अतएव वास्तव में कोई प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया गया था।

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स्वीकृति

(Acceptance)

स्वीकृति से आशय सहमति प्रदान करने से है। प्रस्ताव की स्वीकृति ठहराव का निर्माण करने के लिये तथा पक्षकारों को वैधानिक रूप से उत्तरदायी बनाने के लिये आवश्यक है। प्रस्ताव पर जब स्वीकृति मिल जाती है तभी वह अनुबन्ध बन सकता है। स्वीकृति के माध्यम से स्वीकर्ता प्रस्ताव और उसकी शर्तों पर अपनी सहमति प्रकट करता है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 2 (b) के अनुसार, “जब वह व्यक्ति जिसके सम्मुख प्रस्ताव रखा गया है अपनी सहमति प्रकट कर देता है तो प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया माना जाता है। एक प्रस्ताव जब स्वीकार कर लिया जाता है तब उसे वचन कहते हैं।” इस प्रकार की स्वीकृति बिना शर्त की वह सहमति है जो उस व्यक्ति द्वारा प्रकट की गई है जिसके सम्मुख प्रस्ताव किया गया था। स्वीकृति प्रस्तावक एवं स्वीकर्ता के मध्य वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करती है।

अतः स्पष्ट है कि स्वीकृति का आशय सहमति प्रकट करने से है। यह स्वीकृति मौखिक, लिखित अथवा सांकेतिक किसी भी रूप में हो सकती है। इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि प्रस्ताव की स्वीकृति केवल ‘हाँ’ या सकारात्मक रुप में ही हो सकती है, नकारात्मक या ‘नहीं’ के रुप में नहीं।।

स्वीकृति का प्रभाव (Effect of Acceptance)—प्रस्ताव की स्वीकृति हो जाने पर वह ववन का रुप धारण कर लेता है। ध्यान रहे कि प्रस्ताव की स्वीकृति हो जाने पर ही उसका महत्त्व होता है क्योंकि प्रस्ताव स्वीकृति प्राप्त करने के उद्देश्य से ही रखा जाता है। प्रस्ताव की स्वीकृति हो जाने पर ठहराव का जन्म हो जाता है। इस प्रकार यदि प्रस्ताव नहीं तो स्वीकृति नहीं, यदि स्वीकृति नहीं तो वचन नहीं और यदि वचन नहीं तो ठहराव होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। सहमति के अभाव में प्रस्ताव स्वत: ही समाप्त हो जायेगा। प्रस्ताव का उद्देश्य यदि वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करना था, तो ऐसे प्रस्ताव पर सहमति प्रकट करते ही सम्बन्धित पक्षकारों को एक-दूसरे के विरुद्ध कुछ वैधानिक अधिकार प्राप्त हो जाते हैं जिससे वे दोनों पक्षकार एक दूसरे को अपने-अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए बाध्य कर सकते हैं।

सर विलियम एन्सन (Sir Willaim Anson) के अनुसार, “एक प्रस्ताव के लिए स्वीकृति का वही अर्थ होता है, जो बारुद से भरी रेलगाड़ी के लिए जलती दियासलाई का।” जिस प्रकार जलती हुई दियासलाई के बारुद से भरी रेलगाड़ी के सम्पर्क में आते ही विस्फोट हो जाता है, वैसे ही प्रस्ताव के स्वीकृत होते ही ठहराव बन जाता है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण-मोहन, सोहन से कहता है कि वह अपना मकान एक लाख ₹ में बेचना चाहता है। इस प्रस्ताव के उत्तर में सोहन कहता है कि वह उक्त मकान को एक लाख ₹ में क्रय करने के लिए तैयार है। अत: यह माना जाएगा कि सोहन ने मोहन के प्रस्ताव पर सहमति प्रकट करके प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है।

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स्वीकृति से सम्बन्धित वैधानिक नियम

(Legal Rules Relating to the Acceptance)

वैध स्वीकृति हेतु निम्नलिखित नियमों का पालन करना आवश्यक है

1 स्वीकति केवल वही व्यक्ति दे सकता है जिसके समक्ष प्रस्ताव रखा गया है (Acceptance can be Given by the Person to Whom the offer is Made)-विशिष्ट प्रस्ताव की स्वीकृति केवल वही व्यक्ति दे सकता है जिसकी सहमति के उद्देश्य से प्रस्तावक ने प्रस्ताव किया है, परन्तु सामान्य प्रस्ताव को कोई भी व्यक्ति जिसकी जानकारी में वह प्रस्ताव आ गया है, स्वीकार कर सकता है। उदाहरण के लिए नविता अपनी गाय को 500 ₹ में बेचने का प्रस्ताव सविता के समक्ष रखती है। इस प्रस्ताव की स्वीकृति केवल सविता दे सकती है, अन्य कोई व्यक्ति नहीं।

इस सम्बन्ध में बोल्टन बनाम जोन्स (Boulton Vs. Jones) का विवाद महत्त्वपूर्ण है। इस विवाद में एक व्यापारी ने अपना कारोबार अपने मैनेजर बोल्टन को बेच दिया और यह तथ्य अपने । ग्राहकों से प्रकट नहीं किया। जिस दिन यह बिक्री हुई उसी दिन दोपहर को एक ग्राहक जोन्स ने. जिसका दकान के साथ हिसाब चलता था, कारोबार के विक्रेता के व्यक्तिगत नाम से लिखा हआ कुछ वस्तओं का ऑर्डर भेजा। कारोबार के नए मालिक (बोल्टन) ने यह बताए हुए बिना कि कारोबार का स्वामी बदल गया है, ऑर्डर का माल भेज दिया। बाद में ग्राहक जोन्स द्वारा भुगतान न किए जाने पर, नए। मालिक बोल्टन ने वाद प्रस्तुत किया। न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि नया मालिक बोल्टन, जोन्स से। मल्य पाने का अधिकारी नहीं है, क्योंकि वह प्रस्ताव कारोबार के पुराने मालिक के सम्मुख रखा गया था, नए मालिक (बोल्टन) के सम्मुख नहीं। अतएव नए मालिक (बोल्टन) द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार करना महत्त्वहीन है।

2. स्वीकृति पूर्ण एवं शर्तरहित होनी चाहिए (Acceptance must be Absolute and Unconditional)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 7 (1) के अनुसार स्वीकृति पूर्ण होनी चाहिए और उसमें कोई शर्त भी नहीं होनी चाहिए। प्रस्ताव की शतों से भिन्न स्वीकृति वास्तव में स्वीकृति नहीं है और उससे पक्षकारों के मध्य वैधानिक सम्बन्ध स्थापित नहीं होते। यदि स्वीकृति पूर्णत: प्रस्ताव के अनुसार न होकर उससे भिन्न है तो वह स्वीकृति न होकर ‘प्रति-प्रस्ताव’ (Counter-proposal) बन जाती है और वह प्रति-प्रस्ताव तब तक स्वीकार नहीं होता जब तक कि मूल प्रस्तावक उसे स्वीकार न कर ले। उदाहरण के लिए ‘अ’ ने ‘ब’ को अपनी गाय 200 ₹ में बेचने का प्रस्ताव किया। ‘ब’ ने को लिखा कि वह 150₹ में गाय क्रय करने के लिए तैयार हैं। यहाँ ‘ब’ ने एक प्रति-प्रस्ताव रखा है जो ‘अ’ के द्वारा स्वीकृत होने पर ही वचन में परिवर्तित हो सकता है।

इस सम्बन्ध में जार्डन बनाम नार्टन का विवाद महत्त्वपूर्ण है। इस विवाद में नार्टन ने जार्डन की। एक घोड़ी को एक निश्चित मूल्य पर इस शर्त पर कि वह जोतने पर ठीक एवं शान्त स्वभाव की सिद्ध होगी खरीदने का प्रस्ताव किया। जार्डन ने उक्त प्रस्ताव को स्वीकार तो कर लिया किन्तु घोडी जोतने पर ठीक एवं शान्ति स्वभाव की होगी, यदि दोहरे साज के साथ घोड़ी को जोता जाएगा होने की शर्त लगा दी। निर्णय दिया गया कि जार्डन की स्वीकृति मान्य नहीं है क्योंकि उसने नार्टन का प्रस्ताव ज्यों का त्यों स्वीकार न करके उसके सम्मुख प्रति प्रस्ताव रखा है जिसे स्वीकार करना अथवा न करना नार्टन की इच्छा पर निर्भर करता है। इसलिये यह वैध स्वीकृति नहीं है।

3. स्वीकृति प्रस्तावक द्वारा निर्धारित ढंग से होनी चाहिए (Acceptance must be given according to the Mode Prescribed)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 7(2) के अनसार यदि प्रस्तावक स्वीकृति किसी नियत ढंग से चाहता है तो स्वीकृति उस नियत ढंग से ही होनी चाहिए। उदाहरणस्वरूप यदि प्रस्तावक तार द्वारा स्वीकृति चाहता है तो वह तार द्वारा ही होनी चाहिए। यदि स्वीकृति प्रस्तावक द्वारा नियत ढंग से नहीं है तो प्रस्तावक ऐसी स्वीकृति को उचित समय में रद्द कर सकता है। यदि वह उसे रद्द नहीं करता तो यह माना जाएगा कि उसने ‘स्वीकृति’ को स्वीकार कर लिया है। यदि प्रस्तावक स्वीकृति का कोई ढंग नियत नहीं करता तो स्वीकृति उचित ढंग से होनी चाहिए। ‘उचित ढंग’ क्या है, यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। सामान्यतः पत्र का उत्तर पत्र द्वारा एवं तार का उत्तर तार द्वारा देना ‘उचित ढंग’ माना जाता है।

4. स्वीकृति उचित समय के अन्दर होनी चाहिए (Acceptance must be given within a Reasonable Time)-कभी-कभी प्रस्तावक स्वीकृति के लिए समय निर्धारित कर देता है, तो स्वीकृति नियत समय के अन्दर दी जानी चाहिए। यदि कोई समय नियत नहीं किया गया है तो स्वीकृति ‘उचित समय’ के भीतर दी जानी चाहिए। ‘उचित समय क्या है, यह एक तथ्य सम्बन्धी प्रश्न है जिसका निर्धारण मामले की समस्त परिस्थितियों पर निर्भर करता है।यदि स्वीकृति निर्धारित या उचित समय के अन्दर नहीं दी गई है तो प्रस्ताव का अन्त समझ लिया जाता है और उसके बाद दी गई स्वीकृति अनुबन्ध का निर्माण नहीं करती।

5. स्वीकर्ता को प्रस्ताव की जानकारी होनी चाहिए (Acceptor must have Knowledge of Proposal)-स्वीकारक को प्रस्ताव की जानकारी होना परम आवश्यक है, अन्यथा स्वीकृति का प्रश्न ही नहीं होगा। यदि कोई कार्य प्रस्ताव को जाने बिना किया गया है, और इस कार्य की प्रकृति उस प्रस्ताव की स्वीकृति जैसी है तो वह वैध स्वीकृति नहीं मानी जाएगी। इस सम्बन्ध में लालमन शुक्ला बनाम गौरी दत्त का विवाद महत्त्वपूर्ण है। इस विवाद की विवेचना पीछे कर चुके हैं।

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6. एक बार अस्वीकृत प्रस्ताव पुनः प्रस्तुत किये बिना स्वीकृत नहीं हो सकता (Once Rejected Proposal can not be Accepted unless it is presented Again)-जब वह व्यक्ति जिसके सामने प्रस्ताव किया गया है. प्रस्ताव अस्वीकार कर दे, तो प्रस्ताव समाप्त हो जाता है। ऐसे अस्वाकृत प्रस्ताव को तब तक पुनः स्वीकार नहीं किया जा सकता जब तक कि प्रस्तावक द्वारा उक्त प्रस्ताव को पुन: प्रस्तुत न किया जाए।

7. स्वीकृति स्पष्ट अथवा गर्भित हो सकती है (Acceptance may be Express or Implied)-मौखिक अथवा लिखित शब्दों द्वारा व्यक्त की गई स्वीकृति को स्पष्ट स्वीकृति कहते हैं और आचरण द्वारा व्यक्त की गई स्वीकृति को गर्भित स्वीकृति कहते हैं। प्रस्तावक द्वारा प्रस्तुत की गई किसी भी वस्तु अथवा सेवा का लाभ स्वीकार करना भी स्वीकृति मानी जाती है। गर्भित स्वीकृति सामान्य प्रस्ताव की शतों को पूरा करके की जा सकती है। इस सम्बन्ध में कारलिल बनाम कारबोलिक स्मोक बॉल कम्पनी का विवाद महत्त्वपूर्ण है।

8. प्रस्ताव की स्वीकृति, प्रस्ताव के खण्डन अथवा समापन से पूर्व होनी चाहिए (Acceptance must be before the Expiry or Lapse of the Proposal)-प्रस्ताव की स्वीकृति प्रस्ताव के समाप्त होने से पूर्व किसी भी समय की जा सकती है, परन्तु प्रस्ताव समाप्त होने के बाद नहीं। प्रस्ताव के समाप्त होने अथवा वापस लिए जाने के बाद उसकी स्वीकृति का कोई महत्त्व नहीं होता। ।

उदाहरण के लिए ‘अ’ ‘ब’ के सम्मुख अपनी मोटरकार 25,000₹ में बेचने का प्रस्ताव करता है, बशर्ते उसकी सहमति प्रस्ताव की तिथि से एक सप्ताह के अन्दर प्राप्त हो जाय। किन्तु ब अपनी स्वीकृति प्रस्ताव की तिथि से दस दिन बाद देता है। इस परिस्थिति में अ को मोटरकार बेचने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, क्योकि स्वीकृति के लिये निर्धारित अवधि समाप्त (Lapse) हो चुकी है।

9. मौन रहना गर्भित स्वीकृति नहीं (Mere silence does not amount to implied acceptance)-किसी प्रस्ताव पर मौन धारण कर लेना स्वीकृति नहीं है, क्योंकि मौन का अर्थ स्वीकृति अथवा अस्वीकृति दोनो हो सकता है और यह प्रस्तावक के वश के बाहर की बात है कि वह यह जान सके कि स्वीकारक (Acceptor) के मन में स्वीकृति है अथवा अस्वीकृति। अतएव प्रत्येक स्वीकृति के लिए यह आवश्यक है कि उसकी पुष्टि शब्दों या आचरण द्वारा की गई हो। इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी पक्षकार प्रस्ताव द्वारा दूसरे पक्षकार पर यह उत्तरदायित्व नहीं थोप सकता है कि वह या तो प्रस्ताव को अस्वीकृत करे अन्यथा उसके मौन का अर्थ स्वीकृति होगा। अत: प्रस्ताव के प्राप्त होने पर यदि प्रस्तावग्रहीता मौन रहता है अथवा उत्तर नहीं देता है, तो उसे गर्भित स्वीकृति नहीं माना जा सकता। उदाहरण के लिए, अ, ब के समक्ष अपनी साईकिल 250 ₹ में बेचने का प्रस्ताव रखता है और साथ में यह भी लिख देता है कि यदि 10 दिन के अन्दर आपका उत्तर प्राप्त नहीं हुआ तो यह माना जायेगा कि प्रस्ताव आपको स्वीकार है, ब मौन रहता है और उत्तर नहीं देता है। यहाँ ब का मौन स्वीकृति नहीं है।

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इस सम्बन्ध में फेल्थम बनाम बीण्डले का विवाद महत्त्वपूर्ण है। वादी फेल्थम ने अपने भतीजे के घोड़े को 30 पौण्ड में खरीदने का प्रस्ताव पत्र द्वारा किया और यह भी लिखा कि “यदि मुझको इस सम्बन्ध में कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ तो यह समझा जायेगा कि घोड़ा मेरा हो गया।” दूसरे पक्ष द्वारा कुछ भी उत्तर नहीं दिया गया, पर भतीजे ने प्रतिवादी (बोण्डले जो कि नीलामकर्ता है) से कहा कि वह घोड़े को अलग रख दे, क्योकि यह मेरे चाचा के हाथ बिकने को है। किन्तु प्रतिवादी ने गलती से वह घोड़ा बेच दिया। इस पर वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि भतीजे ने वादी को घोड़ा बेचने का वचन नहीं दिया था अत: प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं हुई। यह न तो ठहराव ही है और न अनुबन्ध ही।

10. स्वीकृति का संवहन होना आवश्यक है (Acceptance must be Communicated)-प्रस्ताव की भाँति स्वीकृति की सूचना देना भी आवश्यक है। स्वीकृति की सूचना निर्धारित या उचित विधि द्वारा प्रस्तावक अथवा उसके अधिकृत प्रतिनिधि को दी जानी चाहिए। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि विशिष्ट प्रस्ताव की स्वीकृति का संवहन होना अनिवार्य है, परन्तु सामान्य प्रस्ताव की स्वीकृति का संवहन होना अनिवार्य नहीं है। वस्तुत: अधिकतर सामान्य प्रस्ताव की शर्तों को पूर्ण करना ही स्वीकृति माना जाता है। इस सम्बन्ध में कारलिल बनाम कारबोलिक स्मोक बॉल कम्पनी के केस में दिया गया निर्णय सुसंगत (Relevant) है। स्वीकृति का संवहन स्पष्ट शब्दों अथवा आचरण द्वारा किया जा सकता है परन्तु मानसिक स्वीकृति जिसे शब्दों या आचरण द्वारा प्रस्तावक के समक्ष प्रकट न किया जाए स्वीकृति नहीं मानी जा सकती। केवल मस्तिष्क में सोचा गया विचार जिसका संवहन नहीं किया गया है, स्वीकृति नहीं माना जा सकता। उदाहरणार्थ, ‘अ’, ‘ब’ की साइकिल 500 ₹ में खरीदने का प्रस्ताव करता है। ‘ब’ शब्दों द्वारा कोई स्वीकृति न देकर केवल अपनी साइकिल ‘अ’ के पास भेजकर अपने आचरण द्वारा ‘अ’ के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है या स्पष्ट शब्दों द्वारा ‘अ’ को सूचित करे कि वह उक्त साइकिल ‘अ’ को बेचने के लिए सहमत है। यदि ‘ब’, ‘अ’ को साइकिल बेचने का अपने मन में तो निश्चय कर लेता है, परन्तु न तो ‘अ’ को सूचित करता है और न ही साइकिल को ‘अ’ के पास भेजता है तो उसे स्वीकृति नहीं माना जा सकता। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित विवाद उल्लेखनीय है

ब्रोग्डेन बनाम मेट्रोपोलिटन रेलवे कम्पनी के विवाद में रेलवे कम्पनी के प्रबन्धक के पास कोयले की सप्लाई के सम्बन्ध में एक समझौते का मसौदा (Draft of Agreement) उसकी स्वीकृति हेतु भेजा गया। प्रबन्धक ने उस पर ‘स्वीकृति’ शब्द लिखकर अपनी मेज की दराज में रख दिया। बाद में वह उसे पूर्तिकर्ता के पास भेजना भूल गया। न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि यह स्वीकृति मान्य नहीं है क्योंकि उसका संवहन नहीं हुआ है।

11. स्वीकृति अधिकृत पक्षकार द्वारा दी जानी चाहिए (The Acceptance must be given by Authorised Person)—वैध स्वीकृति के लिये आवश्यक है कि स्वीकृति या तो स्वयं स्वीकर्ता द्वारा या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति के द्वारा दी जानी चाहिए। अनाधिकृत व्यक्ति या पक्षकार से स्वीकृति की सूचना वैधानिक दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखती है।

पावेल बनाम ली के केस में वादी एक स्कूल के हैडमास्टर के पद के लिए उम्मीदवार था। चयन समिति ने वादी को नियुक्त करने का प्रस्ताव पास कर दिया परन्तु वादी को उसकी नियुक्ति की सूचना नहीं दी। चयन समिति के एक सदस्य ने अनौपचारिक रूप से वादी को उसकी नियुक्ति के बारे में बता दिया। बाद में चयन समिति ने किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करने का फैसला कर लिया। वादी ने हर्जाने के लिए दावा कर दिया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि क्योकि नियुक्ति की सूचना अधिकृत तरीके से वादी को नहीं दी गई थी, अत: कोई अनुबन्ध नहीं हुआ और हर्जाने का प्रश्न ही नहीं उठता।

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प्रस्ताव एवं स्वीकृति का संवहन

(Communication of Proposal and Acceptance)

प्रस्ताव एवं स्वीकृति तभी वैध माने जाते हैं जब उनकी सूचना दूसरे पक्ष को दे दी जाती है। प्रस्ताव की सूचना मिले बिना स्वीकृति महत्वहीन है तथा स्वीकृति की इच्छा दिल में रखना और प्रकट न करना भी महत्वहीन है। जब प्रस्तावक एवं स्वीकर्ता आमने-सामने हों तो संवहन की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती। परन्तु जब दोनों पक्ष एक दूसरे से दूर हैं तथा वे डाक के माध्यम से समझौते करते हैं तब यह प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है कि प्रस्ताव एवं स्वीकृति का संवहन कब पूर्ण माना जाए? इस सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम हैं

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प्रस्ताव का संवहन (Communication of Proposal)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, “प्रस्ताव का संवहन या सूचना तब पूर्ण मानी जाती है जब इसकी जानकारी उस पक्ष को हो जाए जिसके लिए प्रस्ताव किया गया था।” जैसे राम, श्याम को एक पत्र द्वारा अपना मकान 80,000 ₹ में बेचने का प्रस्ताव करता है। इस प्रस्ताव का संवहन उस समय पूर्ण माना जाएगा जब प्रस्ताव का पत्र श्याम को मिल जाए।

स्वीकृति का संवहन (Communication of Acceptance)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 4 के अनुसार स्वीकृति के संवहन के सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम है

() प्रस्तावक के विरुद्ध (As Against Proposer)-स्वीकृति का संवहन प्रस्तावक के विरुद्ध (अर्थात् प्रस्तावक को बाध्य करने के लिए) उस समय पूरा माना जाएगा जबकि स्वीकर्ता ने स्वीकृति को प्रेषित कर दिया है तथा इस स्वीकृति को वापस लेना उसकी शक्ति के बाहर हो गया है। दूसरे शब्दों में, स्वीकृति पत्र डाक में छोड़ दिया जाता है, जिससे कि फिर स्वीकृति-पत्र वापस लेना उसकी (स्वीकर्ता) शक्ति के बाहर हो जाता है।

() स्वीकारक के विरुद्ध (As Against Acceptor)-स्वीकृति का संवहन स्वीकारक के विरुद्ध (स्वीकर्ता को बाध्य करने के लिए) उस समय पूरा माना जाएगा जब स्वीकृति-पत्र वास्तव में प्रस्तावक की जानकारी में आ जाता है। दूसरे शब्दों में, जब स्वीकृति-पत्र वास्तव में प्रस्तावक के पास पहुँच जाता है। उदाहरणार्थ, विजय डाक द्वारा पत्र भेजकर, अजय के प्रस्ताव को स्वीकार करता है। अजय के विरुद्ध स्वीकृति का संवहन तब पूर्ण हुआ समझा जाएगा जबकि विजय ने स्वीकृति पत्र को डाकखाने में अजय के पास पहुँचने के लिए डाल दिया हो। विजय के विरुद्ध स्वीकृति का संवहन तब पर्ण होगा जबकि अजय को विजय का स्वीकृति-पत्र प्राप्त हो जाएगा।

स्वीकृति के संवहन से सम्बन्धित अन्य महत्त्वपूर्ण बातें अथवा विषयस्वीकृति के संवहन के सम्बन्ध में विभिन्न निर्णयों के आधार पर निम्नलिखित बातें महत्त्वपूर्ण हैं

1 टेलीफोन पर स्वीकृति का संवहन-टेलीफोन पर स्वीकृति के सम्बन्ध में अनुबन्ध अधिनियम में कोई उल्लेख नहीं है। अतएव इसमें भी वही नियम लागू होते हैं जो पक्षकारों द्वारा एक दूसरे के आमने-सामने किये गये अनुबन्धों पर लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, दो व्यक्ति टेलीफोन पर अनुबन्ध करते हैं। एक व्यक्ति टेलीफोन पर प्रस्ताव करता है और प्रस्ताव के उत्तर के बीच में ही अचानक रेलीफोन की लाइन कट जाती है जिससे वह स्वीकृति के शब्दों को सन नहीं पाता है। ऐसी स्थिति में यह।

स्वीकति नहीं मानी जायेगी और इस प्रकार अनुबन्ध का निर्माण नहीं होगा। इस सम्बन्ध में भगवानदास गोवर्द्धनदास केडिया बनाम गिरधारीलाल परषोत्तमदास एण्ड कम्पनी (1966) का विवाद उल्लेखनीय है। इसमें बहुमत से यह निर्णय दिया गया था कि टेलीफोन पर किये गये अनुबन्ध पक्षकारों द्वारा आमने-सामने रहकर किये गये अनुबन्ध के समान हैं किन्तु यह आवश्यक है कि टेलीफोन पर की गई बातें दोनों पक्षकारों ने उचित ढंग से सही सही सुनी हों।

2. टेलेक्स (Telex) पर स्वीकृति का संवहन-टेलेक्स पर किये गये प्रस्ताव की स्वीकृति का संवहन उस समय पूरा हुआ माना जाता है जबकि वह टेलेक्स पर आ जाती है।

3. डाक से स्वीकृति के सम्बन्ध में-यदि स्वीकृति पत्र स्वीकर्ता द्वारा डाक से भेजा जाता है तो ज्योंही स्वीकृति-पत्र डाक में दिया जाता है वैसे ही स्वीकर्ता की ओर से प्रस्ताव की स्वीकृति का संवहन पूरा हुआ मान लिया जाता है। इस दशा में यह मान लिया जाता है कि डाकघर प्रस्तावक के एजेन्ट के रुप में कार्य कर रहा है।

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इस सम्बन्ध में यह महत्त्वपूर्ण है कि चाहे वह स्वीकृति पत्र डाक में डाल देने के बाद प्रस्तावक के पास पहुंचे या नहीं पहुँचे। अत: डाक में डालते ही स्वीकृति का संवहन पूर्ण हो जाता है और अनुबन्ध की उत्पत्ति हो जाती है, परन्तु प्रस्तावक को बाध्य करने के लिये यह सिद्ध करना आवश्यक है कि स्वीकृति-पत्र डाक में डाला गया था।

इस सम्बन्ध में रामदास चक्रवर्ती बनाम कॉटन जिनिंग कम्पनी लि., इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मामला विशेष उल्लेखनीय है।

इस मामले में प्रतिवादी कम्पनी ने अंशों का एक आबंटन पत्र उचित समय के भीतर डाक द्वारा भेज दिया लेकिन वादी को वह आबंटन पत्र कभी नहीं मिला। न्यायालय ने इस सम्बन्ध में निर्णय देते हुए कहा कि, आबंटन की सूचना, जो प्रार्थना-पत्र की स्वीकृति है, उसी दिन से प्रभावी हो जाती है, जिस दिन वह डाक में डाल दी जाती है और सम्पूर्ण अनुबन्ध उत्पन्न हो जाता है। लेकिन इस मामले में कम्पनी पत्र भेजने का प्रमाणिक सबूत प्रस्तुत नहीं कर सकी, अत: वादी को वैधानिक रुप से बाध्य नहीं किया जा सका।

4. स्वीकृति पत्र देरी से प्राप्त होना (Late Receipt of Letter of Acceptance) यदि स्वीकर्ता पत्र पर सही-सही पता लिखता है और उसे डाक में डाल देता है, लेकिन प्रस्तावक को स्वीकृति-पत्र देरी से प्राप्त होता है तो स्वीकृति का संवहन पूरा हुआ मान लिया जाता है। इस सम्बन्ध में डनलप बनाम हिंगिस का मामला विशेष उल्लेखनीय है।

इस मामले में डनलप ने 2 मार्च को 2,000 टन कच्चा लोहा एक निश्चित मूल्य पर हिंगिस को विक्रय करने का प्रस्ताव डाक द्वारा किया, जो हिंगिस को 5 मार्च को प्राप्त हो गया। हिंगिस ने उसी दिन अर्थात् 5 मार्च को ही उस प्रस्ताव की स्वीकृति डाक में डाल दी। लेकिन इसी दौरान मौसम खराब हो जाने के कारण पत्र 15 अप्रैल को डनलप को प्राप्त हुआ। इस बीच कच्चे लोहे की कीमत में वृद्धि हो जाने के कारण डनलप ने कच्चा लोहा बेचने से मना कर दिया। न्यायालय ने इस मामले में निर्णय दिया कि अनुबन्ध हो चुका है अत: डनलप कच्चा लोहा बेचने के लिये वैधानिक रुप से बाध्य है. चाहे उसे स्वीकृति-पत्र देर से ही क्यों न मिला हो। ।

इस सम्बन्ध में यह भी महत्त्वपूर्ण है कि जब स्वीकर्ता सही-सही पता लिखकर डाक में डाल देता है तो वह उसी समय वचन के रुप में परिणत हो जाता है, चाहे वह स्वीकृति-पत्र प्रस्तावक के पास कभी नहीं पहुँचता है या उसके पहुँचने में बहुत विलम्ब होता है।

5. गलत पता लिखने की स्थिति में (On Writing Wrong Address)—यदि प्रस्ताव को स्वीकार करने वाले पक्षकार ने स्वयं की गलती से स्वीकृति-पत्र पर गलत पता लिख दिया है, जिसके परिणामस्वरुप वह स्वीकृति-पत्र प्रस्तावक को प्राप्त नहीं होता है, तो प्रस्तावक इस तरह से दी गई। स्वीकृति के लिये वैधानिक रुप से बाध्य नहीं होगा। इसके विपरीत यदि स्वयं प्रस्तावक ने ही गलत पता दिया है और स्वीकर्ता उसी पते पर स्वीकृति पत्र भेजता है, तो इस प्रकार भेजी गयी स्वीकृति वैधानिक रुप से मान्य होगी।

6. एजेन्ट की दशा में स्वीकृति का संवहन-यदि किसी व्यक्ति ने अपना प्रस्ताव अपने एजेन्ट के माध्यम से प्रस्तुत किया है और स्वीकर्ता अपनी स्वीकृति उसी एजेन्ट को दे देता है. तो ऐसी दशा में प्रस्तावक के विरुद्ध स्वीकृति का संवहन पूरा हुआ माना जायेगा।

7. अनुबन्ध का स्थानअनुबन्ध में उसके स्थान का अत्यन्त महत्त्व होता है क्योंकि उसी के आधार पर न्यायालय के कार्यक्षेत्र का निर्धारण होता है। इस सम्बन्ध में स्थान का निर्धारण निम्न प्रकार होगा-(i) यदि प्रस्ताव तथा स्वीकृति दोनों किसी विशिष्ट स्थान पर हुई हैं तो वही स्थान अनुबन्ध का। स्थान होगा। (ii) टेलीफोन व टेलेक्स पर स्वीकृति की दिशा में प्रस्तावक का स्थान अनुबन्ध का स्थान होगा। (iii) डाक व तार द्वारा स्वीकृति देने की दशा में स्वीकर्ता का स्थान अनुबन्ध का स्थान होगा।

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प्रस्ताव एवं स्वीकृति का खण्डन

(Revocation of Proposals and Acceptances)

खण्डन का तात्पर्य किसी पक्षकार द्वारा दिए गए वचन को वापस लेने’ या ‘रद्द करने से है। प्रस्तावक अपने प्रस्ताव को तथा स्वीकर्ता अपनी स्वीकृति को वापस लेकर प्रस्ताव या स्वीकृति का खण्डन कर सकते हैं। व्यवहार में ऐसी अनेक स्थितियाँ आती हैं जब प्रस्तावक अपने प्रस्ताव को या स्वीकर्ता अपनी स्वीकृति को वापस लेना चाहता है। प्रश्न यह है कि प्रस्ताव और स्वीकृति का खण्डन कब तक किया जा सकता है।

प्रस्ताव का खण्डन (Revocation of Proposal)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, “प्रस्ताव का खण्डन प्रस्तावक के विरुद्ध स्वीकृति का संवहन पूरा होने के पहले किसी भी समय किया जा सकता है परन्तु बाद में नहीं।”

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण-अ अपना मकान बेचने का प्रस्ताव पत्र द्वारा ब के पास भेजता है। ब पत्र द्वारा अ के प्रस्ताव को स्वीकार करता है। अ अपने प्रस्ताव का खण्डन ब द्वारा स्वीकृति डाक में डालने से पहले किसी भी समय कर सकता है, परन्तु बाद में नहीं। स्वीकृति पत्र डाक में डाल देने के बाद अ के विरुद्ध ब की स्वीकृति पूर्ण हो जाती है, अतः अ अपने प्रस्ताव को वापस नहीं ले सकता अर्थात् अ अपने प्रस्ताव का खण्डन नहीं कर सकता।

प्रस्ताव के खण्डन की रीतियाँ (Modes of Revocation of an offer)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 6 के अनुसार निम्नलिखित रीतियों से प्रस्ताव का अन्त अथवा खण्डन हो जाता है

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1 प्रस्तावक द्वारा दूसरे पक्षकार को खण्डन की सूचना देकर (By Notice of Revocation)-धारा 5 की व्यवस्थाओं के अनुसार प्रस्ताव का खण्डन प्रस्तावक के विरुद्ध स्वीकृति का संवहन पूर्ण होने से पूर्व किसी भी समय किया जा सकता है किंतु बाद में नहीं। ऐसा खण्डन स्पष्ट शब्दों द्वारा, पत्र या तार अथवा आचरण द्वारा भी हो सकता है। भारतीय राजनियम के अनुसार यह आवश्यक है कि खण्डन की सूचना प्रस्तावक या उसके अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा दी जाए। इंग्लिश राजनियम के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति से भी वचनग्रहीता को यदि प्रस्ताव के खण्डन की सूचना मिल जाती है तो भी खण्डन पूरा हो जाता है।

2. अवधि समाप्त हो जाने पर (By Lapse of Time)-यदि प्रस्ताव में स्वीकृति के लिए कोई समय निर्धारित किया गया है तो उस निर्धारित समय के अन्दर ही प्रस्ताव की स्वीकृति वैध मानी जाएगी। उस निर्धारित समय के उपरान्त प्रस्ताव खण्डित माना जाता है।

यदि प्रस्ताव पर स्वीकृति के लिए कोई समय निर्धारित नहीं किया गया है तो उचित अवधि के बीत जाने पर प्रस्ताव का खण्डन हो जाता है। अब प्रश्न यह उठता है कि उचित समय क्या है? यह प्रस्ताव की प्रकृति, उसकी शर्तों एवं अन्य समस्त परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

3. स्वीकर्ता द्वारा किसी पूर्व निर्धारित शर्त को पूरा करने पर (By Non-fulfilment of any Pre-condition)-यदि प्रस्ताव के अनुसार स्वीकर्ता को स्वीकृति देने से पहले किसी शर्त को पूरा करना आवश्यक है तो ऐसी शर्त पूरी न करने की दशा में प्रस्ताव का खण्डन हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि प्रस्तावक ने स्वीकृति के साथ कुछ अग्रिम धनराशि भेजने के लिए कहा हो और स्वीकर्ता पेशगी रकम नहीं। भेजता है तो स्वीकृति को वैध नहीं माना जा सकता और प्रस्ताव को खण्डित माना जाएगा।

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4. प्रस्तावक की मृत्यु या पागल हो जाने पर (By Death or Insanity of the Proposer)-जब प्रस्तावक की मृत्यु हो जाती है या वह पागल हो जाता है और इस बात की जानकारी। स्वीकर्ता को स्वीकृति देने के पहले ही हो जाती है तो ऐसी दशा में प्रस्ताव का खण्डन हो जाता है।। इसके विपरीत यदि स्वीकर्ता प्रस्तावक की मृत्यु या पागल होने की जानकारी मिलने से पूर्व ही स्वीकृति । प्रदान कर देता हे तो ऐसी स्वीकृति वैध होगी अर्थात् प्रस्तावक का कानूनी प्रतिनिधि प्रस्ताव को पूरा करने के लिए बाध्य होगा।

5. प्रति प्रस्ताव करने पर (By Counter Offer)-जब मूल प्रस्ताव के प्रत्यत्तर में स्वीकर्ता अपनी ओर से अन्य प्रस्ताव रखता है तो ऐसी दशा में मूल प्रस्ताव का खण्डन हो जाता है। उदाहरण के लिए ‘अ’ अपनी कार 50,000 ₹ में बेचने का प्रस्ताव ‘ब’ के समक्ष रखता है। ‘ब’ पत्र द्वारा कार को 135.000 ₹ में खरीदने की सूचना देता है। यहाँ पर 50,000 ₹ में कार बेचने का मूल प्रस्ताव खण्डित माना जाएगा।

6. निर्धारित ढंग से स्वीकृति दिए जाने पर (Acceptance is not given in the Prescribed Manner)-यदि प्रस्ताव में स्वीकृति का कोई तरीका निर्धारित किया गया है और स्वीकृति उस निर्धारित तरीके से नहीं दी गई है तो प्रस्ताव खण्डित माना जाएगा। लेकिन ऐसा तभी होगा जब प्रस्तावक द्वारा उचित समय के अन्दर स्वीकर्ता को इस बात की सूचना दे दी गई हो। यदि प्रस्तावक स्वयं इस बात पर मौन रहता है तो यह माना जाएगा कि प्रस्तावक द्वारा स्वीकृति को मान लिया गया है।

स्वीकृति का खण्डन (Revocation of Acceptance) भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारों 5 के अनुसार, “स्वीकृति का खण्डन, स्वीकर्ता के विरुद्ध स्वीकृति का संवहन पूरा होने से पहले किसी | भी समय किया जा सकता है, परन्तु बाद में नहीं।” इसका अर्थ यह है कि जैसे ही स्वीकृति-पत्र, प्रस्तावक को प्राप्त हो जाता है, स्वीकर्ता, स्वीकृति से बाध्य हो जाता है अर्थात् स्वीकृति का खण्डन नहीं कर सकता। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि यदि स्वीकर्ता, स्वीकृति पत्र डाक में डालने के पश्चात् तार (Telegram) द्वारा स्वीकृति का खण्डन करता है तो ऐसी दशा में यदि-(1) प्रस्तावक को पहले स्वीकृति पत्र प्राप्त होता है एवं बाद में स्वीकृति के खण्डन का तार प्राप्त होता है, तो स्वीकृति का खण्डन नहीं हो सकता। (ii) प्रस्तावक को पहले स्वीकृति के खण्डन का तार प्राप्त होता है एवं बाद में स्वीकृति पत्र, तो स्वीकृति का खण्डन माना जाएगा। (iii) प्रस्तावक को स्वीकृति पत्र एवं स्वीकृति के खण्डन का तार संयोगवश दोनों एक साथ प्राप्त होते हैं, तो भी स्वीकृति का खण्डन ही माना जाएगा क्योंकि सामान्यतया | कोई भी व्यक्ति पत्र की अपेक्षा तार को पहले पढ़ता है।

व्यावहारिक रूप में वर्तमान परिवेश में तार का प्रचलन न के बराबर है, अतः स्वीकृति पत्र डाक 1 में डालने के बाद प्रस्तावक के पास पहुँचने से पहले कभी भी स्वीकर्ता लैण्डलाइन टेलीफोन द्वारा या मोबाइल द्वारा स्वीकृति का खण्डन कर सकता है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण-अ अपना मकान बेचने का प्रस्ताव पत्र द्वारा ब के पास भेजता है। । ‘ब’, ‘अ’ का प्रस्ताव साधारण पोस्टकार्ड द्वारा स्वीकृत करके, उसे डाक में छोड़ देता है, बाद में वह उसी दिन तार द्वारा उसे अस्वीकृत कर देता है। ‘अ’ को पोस्टकार्ड से पहले तार मिल जाता है। यह स्वीकृति का खण्डन माना जायेगा। किन्तु यदि यहाँ पर किसी कारणवश पहले पोस्टकार्ड पहुँचता है तथा बाद में तार, तो स्वीकृति का खण्डन नहीं हो सकता।

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स्वीकृति खण्डन के सम्बन्ध में भारतीय राजनियम एवं अंग्रेजी राजनियम में अन्तर-भारतीय राजनियम के अनुसार स्वीकृति का खण्डन स्वीकर्ता के विरुद्ध स्वीकृति का संवहन पूरा होने से पहले किसी भी समय किया जा सकता है, परन्तु बाद में नहीं। स्पष्ट है कि भारतीय राजनियम स्वीकर्ता को अपनी स्वीकृति का खण्डन करने की आज्ञा प्रदान करता है। इसके विपरीत अंग्रेजी राजनियम के अन्तर्गत स्वीकृति का खण्डन हो ही नहीं सकता अर्थात् अंग्रेजी राजनियम स्वीकर्ता को अपनी स्वीकृति का खण्डन करने की आज्ञा प्रदान नहीं करता। अंग्रेजी राजनियम के अनुसार जैसे ही स्वीकृति-पत्र उचित रूप से डाक में डाल दिया जाता है वैसे ही अनुबन्ध पूरा हो जाता है एवं स्वीकृति का खण्डन नहीं किया जा सकता।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 प्रस्ताव’, ‘प्रस्ताव करने के निमन्त्रण’ तथा ‘प्रस्ताव करने के विचार’ तीनों में उदाहरण सहित अन्तर स्पष्ट करें।

Differentiate between ‘Proposal’, ‘An invitation to Proposal’, and ‘Intention to make Proposal’. Give examples.

2. प्रस्ताव क्या है? वैध प्रस्ताव के आवश्यक तत्व क्या हैं?

What is offer? What are the essentials of a valid offer?

3. स्वीकृति क्या है? प्रस्ताव को स्वीकृति में परिवर्तित करने के लिए किन शर्तों को पूर्ण करना आवश्यक है?

What is acceptance? In order to convert an offer into acceptance, what conditions have to be fulfilled?

4. केवल मानसिक स्वीकृति जो शब्दों अथवा आचरण द्वारा प्रमाणित न हो, राजनियम की दृष्टि में स्वीकृति नहीं है।” विवेचन कीजिए।

A mere mental assent not evidenced by words or conduct does not constitute acceptance.” Elaborate the statement.

5. वैधानिक प्रस्ताव कौन कर सकता है? प्रस्ताव कौन स्वीकार कर सकता है? प्रस्ताव की स्वीकृति एवं खण्डन कब प्रभावी होगी?

Who can make a valid offer? Who can accept an offer? When the acceptance or revocation of an offer is effective?

6. उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि कब पत्र द्वारा प्रस्ताव एवं स्वीकृति की रचना एवं खण्डन होताहै?

Discuss the rules relating to offer, acceptance and revocation with suitable Examples.

7. प्रस्ताव एवं स्वीकृति पक्षकारों को समीप लाते हैं लेकिन राजनियम को उनके दायित्वों की उत्पत्ति करने के अभिप्राय का और अधिक प्रमाण चाहिए।” विवेचना कीजिए?

The offer and the acceptance bring the parties together, but the law requires some further evidence of their intention to create an obligation.” Comment.

8. विभिन्न प्रकार के प्रस्तावों की विवेचना कीजिए। प्रस्ताव की स्वीकृति किस प्रकार हो सकती है? व्याख्या कीजिए।

Discuss various types of offers. How an offer can be accepted? Explain.

9. क्या निम्नलिखित को प्रस्ताव माना जा सकता है?

(i) नीलामी द्वारा विक्रय की सूचना

(ii) निविदा के लिए आमंत्रण

(iii) मूल्य सूची का निर्गमन

(iv) विज्ञापन द्वारा नौकरी के लिए आवेदन पत्रों का आमंत्रण

Do the following constitute offer?

(a) Notice of sale by auction

(b) Invitation of tender

(c) Issue of price list

(d) Invitation of application for service by advertisement

10. स्वीकृति से क्या आशय है? स्वीकृति सम्बन्धी वैधानिक नियमों की व्याख्या कीजिए।

What is meant by Acceptance? Explain the statutory laws relating to acceptance.

11. ‘प्रस्ताव’ और ‘स्वीकृति’ शब्दों को परिभाषित कीजिए। वैध प्रस्ताव सम्बन्धी नियमों की उदाहरणों सहित विवेचना कीजिए।

Define the terms ‘Proposal’ and ‘Acceptance’. Explain with illustrations the rules regarding valid proposal.

12. प्रस्ताव और स्वीकृति का संवहन कब पूरा होता है? कब और कैसे प्रस्ताव का खण्डन किया जाना है?

When is a communication of an offer and acceptance complete? How and when an offer be revoked?

13. प्रस्ताव तथा स्वीकृति की व्याख्या कीजिए। प्रस्ताव तथा स्वीकृति का संवहन कब पूरा होता है? कब और कैसे किसी प्रस्ताव का खण्डन किया जा सकता है?

Explain the offer and acceptance. When is the communication of an offer and acceptance complete? How and when can an offer be revoked?

14. प्रस्ताव के बारे में आप क्या जानते हैं? प्रस्ताव के लिए निमन्त्रण से यह किस प्रकार भिन्न है? उदाहरण सहित लिखिए।

What do you know about the Proposal? How does it differ from invitation to offer?!

Illustrate your answer.

15. प्रस्ताव की शर्तों को पूरा करना प्रस्ताव की स्वीकृति माना जाता है।” इस कथन की विवेचना

कीजिए।

Performance of the condition of a proposal amounts to acceptance of the proposal.” Comment

16. प्रस्ताव शब्द से आप क्या समझते हैं? एक प्रस्ताव का अन्त कैसे होता है? उदाहरण सहित समझाइए।

What do you understand by the term ‘offer? How can an offer be revoked? Illustrate with examples.

Proposal Acceptance Communication Revocation

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 प्रस्ताव क्या है? सामान्य तथा विशिष्ट प्रस्ताव में अन्तर कीजिए।

What is offer? Distinguish between General Offer and Specific Offer.

2. प्रस्ताव एवं प्रस्ताव के निमन्त्रण में अन्तर कीजिए।

Differentiate between ‘offer’ and ‘Invitation to offer.’

3. ‘प्रस्ताव’ और ‘स्वीकृति’ को समझाइए।

Explain the terms offer’ and ‘acceptance’.

4. केवल मानसिक स्वीकृति’ जो शब्दों या आचरण द्वारा प्रमाणित नहीं की गई है, राजनियम की दृष्टि से स्वीकृति नहीं है।’ विवेचना कीजिए।

“A mere mental acceptance not evidenced by words or conduct is, in the eye of law, no acceptance.” Comment.

5. प्रस्ताव कौन स्वीकार कर सकता है?

Who can accept an offer?

6. क्या स्वीकर्ता का मौन प्रस्ताव की स्वीकृति माना जाएगा?

Is the silence of an officer constitute an acceptance of an offer?

7. प्रस्ताव का संवहन कब पूर्ण होता है?

When communication of an offer is complete?

8. स्वीकृति का संवहन स्वीकर्ता के लिए कब पूर्ण होता है?

When communication of acceptance as regards acceptor is complete?

9. स्वीकृति का संवहन प्रस्तावक के लिए कब पूर्ण होता है।

When communication of acceptance as regards offecer is complete?

10. प्रस्ताव का खण्डन कब तक किया जा सकता है?

Up to what time the revocation of an offer can be done?

11. निर्धारित विधि द्वारा प्रस्ताव स्वीकार न करने पर क्या होता है?

What happens when the offer is not accepted in the prescribed manner?

Proposal Acceptance Communication Revocation

व्यावहारिक समस्याएँ

(Practical Problems)

PP1. ‘अ’ विज्ञापन द्वारा 500 ₹ के पुरस्कार की घोषणा करता है कि जो व्यक्ति उसके खोये हुए कुत्ते को लौटा दे। ‘ब’ पुरस्कार के विज्ञापन की घोषणा सुने बिना ही कुत्ते को प्राप्त कर ‘अ’ के पास ले आता है। क्या ‘ब’ पुरस्कार पाने का अधिकारी है?

A offers by advertisement a reward of₹500 to anyone who returns his lost dog. B finding the dog, brings it to A without having heard of the offer of reward. Is B entitled to the reward?

उत्तरभारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 4 के अनुसार प्रस्ताव का संवहन अवश्य हो जाना चाहिए, दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रस्ताव की जानकारी उस व्यक्ति को अवश्य हो जानी

चाहिए जिसके लिए कि प्रस्ताव किया गया है। यह नियम विशेष व सामान्य दोनों प्रकार के प्रस्तावों पर | पूर्ण रुप से लागू होता है। प्रस्तुत समस्या इसी नियम पर आधारित है। यहाँ पर अ ने एक सामान्य प्रस्ताव | रखा है कि जो कोई उसका खोया हुआ कुत्ता वापस कर देगा उसको 500₹ का इनाम दिया जायेगा। ब

जो कि कुत्ते को लाता है इनाम पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि उस समय तक उसे इनाम रुपी प्रस्ताव की कोई जानकारी नहीं थी। इस सम्बन्ध में लालमन शुक्ला बनाम गौरी दत्त (Lalman Shukla Vs. Gauri Dutt) का विवाद महत्त्वपूर्ण है।

PP2. A, B को लिखता है कि वह उसकी कार एक निश्चित मूल्य पर क्रय करने हेतु सहमति रखता है तथा उसमें यह भी जोड़ देता है कि यदि उसने (B ने) पत्र का जवाब नहीं दिया तो वह (A) यह समझेगा कि प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है।

A wrote to B offering to purchase his car for a particular price and also added that in the event of B not replying to him, A will consider that proposal to have been accepted.

उत्तरA और B के बीच कोई निष्कर्षित अनुबन्ध नहीं है, क्योंकि यह एक वैध प्रस्ताव नहीं था। वैध प्रस्ताव का एक महत्त्वपूर्ण तत्व यह है कि प्रस्ताव के साथ ऐसी कोई शर्त नहीं जोड़ी जा सकती, जिसका पालन न करने का अर्थ प्रस्ताव की स्वीकृति हो।

PP3. P ने एक स्थानीय कालेज में प्रधानाचार्य पद के लिये प्रार्थना-पत्र दिया और ‘चयन-समिति’ ने P की नियुक्ति को एक संकल्प (प्रस्ताव) पारित किया। नियुक्ति की सूचना नियमित रुप से संवहित नहीं की गयी, बल्कि बैठक के बाद व्यक्तिगत रुप से ‘चयन-समिति’ के एक सदस्य ने P को उसकी नियुक्ति की सूचना दी। बाद में P की नियुक्ति का संकल्प रद्द कर दिया गया। P ने प्रधानाचार्य पद के लिए दावा प्रस्तुत किया। क्या वह सफल होगा? ।

P applied for the principalship of a local college and the Governing Body passed a resolution appointing him. The appointment was not formally communicated to him but one of the members privately told him of his selection after the meeting. The resolution was subsequently rescinded. P claimed the post of principal. Will he succeed?

उत्तरनहीं, इस वाद के तथ्य पावेल बनाम ली के वाद के समान हैं।

PP4. D ने पत्र के माध्यम से E के समक्ष कुछ वस्तुएं 400₹ में बेचने का प्रस्ताव रखा तथा पत्र में यह भी लिखा कि वह (E) पत्र का जवाब पत्र के माध्यम से ही दे। पत्र-प्राप्ति के पश्चात् E ने D के पत्र का जवाब स्वीकृति-पत्र द्वारा दिया जो D के पास कभी नहीं पहुँचा तथा उसने 3 दिनों तक E के पत्र का इन्तजार करने के बाद उस माल का विक्रय F को कर दिया। क्या E को D के विरुद्ध कोई उपचार प्राप्त हैं

Proposal Acceptance Communication Revocation

writes to E a letter offering to sell E certain goods for ₹400 and asking E to reply by post. On receipt of the letter, E writes a reply accepting D’s offer and posts it. The letter never reaches to D, who after waiting for three days sells the goods to F. Has E any remedy against D?

उत्तर-हाँ, E को D के विरुद्ध उपचार प्राप्त है। D स्वीकृति से उस समय से बाध्य है, जिस समय स्वीकृति-पत्र को E द्वारा डाक में छोड़ा गया था, भले ही वह पत्र उसे प्राप्त नहीं हुआ, बशर्ते पत्र पर सही पता लिखा हो, उचित मूल्य के टिकट लगे हों तथा उसे वास्तव में डाक में छोड़ा गया हो।

PP5. A ने पत्र द्वारा B के समक्ष एक प्रस्ताव रखा। पत्र पहुंचने से पूर्व ही B की मृत्यु हो गई। B के पुत्र ने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। क्या A स्वीकृति से बाध्य है ?

A made a proposal to B by a post. B died before the letter reached him. B’s son accepted the proposal. Is A bound by the acceptance?

उत्तरA स्वीकृति से बाध्य नहीं है क्योंकि प्रस्ताव की स्वीकृति से पूर्व ही प्रस्ताविती की मृत्यु हो चुकी थी जिसके परिणामस्वरुप प्रस्ताव समाप्त हो गया था। अत: उसका उत्तराधिकारी उसकी ओर से प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकता।

PP6. एक दवा विक्रेता ने यह विज्ञापन दिया था कि यदि किसी व्यक्ति को उसके द्वारा सुझाई गई दवा का प्रयोग करने के बाद भी जुकाम हुआ तो वह उसे 100 ₹ ईनाम देगा, बशर्ते दवा का प्रयोग दवा के साथ दिये गये निर्देशों के मुताबिक किया गया हो। X और Y, दोनों ने उस दवा को खरीदकर इस्तेमाल किया किन्तु उन्हें जुकाम हो गया। X ने उक्त विज्ञापन देखा था किन्तु Y ने नहीं। क्या वे दोनों या दोनों में से कोई एक उस दवा विक्रेता से 100 ₹ प्राप्त कर सकता है?

A chemist advertised that he would pay a reward of * 100 to anyone who contracted influenza after using a prescription supplied by him if used according to the directions supplied with it. X and Y both purchased the prescription and used it, and contracted influenza, X has seen the advertisement but Y has not. Can they or either of them recover ₹ 100 from the chemist?

उत्तर-केवल X 100 ₹ प्राप्त कर सकता है। इस वाद के तथ्य Carlill Vs. Carbolic Smoke Ball Co. के समान हैं। Y उक्त राशि की वसूली तभी कर सकता है यदि या तो उसे उक्त प्रस्ताव की जानकारी विज्ञापन से प्राप्त हुई हो या फिर X से। स्वीकृति-प्रस्ताव की अज्ञानता से नहीं हो सकती।

Proposal Acceptance Communication Revocation

chetansati

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