BCom 2nd Year Public Finance Effects Taxation Study material Notes in Hindi

//

BCom 2nd Year Public Finance Effects Taxation Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Year Public Finance Effects Taxation Study Material Notes in Hindi: Economic Effects of Taxation Effects on Allocation of Existing Resources: Taxation and Efficiency Supply of Money Excess Burden Doctrine Direct Tax and Redistribution of Resources Important Examination Questions Long Answer Questions Short Answers Questions ( Most Important For BCom 2nd Year Examinations )

Effects Taxation Study material
Effects Taxation Study material

BCom 2nd Year Economic Effects Public Expenditure Study Material Notes in Hindi

करारोपण के प्रभाव

(Effects of Taxation)

“समृद्ध व्यक्तियों को अपनी निरपेक्ष आय की तुलना में सापेक्ष आय की वृद्धि से अधिक सन्तुष्टि होती है। यदि सभी समृद्ध व्यक्तियों की आयों को एक साथ कम कर दिया जाए तो सन्तुष्टि का वह भाग नष्ट नहीं होता।”

वर्तमान समय में करारोपण सरकार की आय का मुख्य साधन ही नहीं, अपितु अनेक सामाजिक तथा आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन माना जाता है। प्रत्येक राज्य अर्थव्यवस्था। में आर्थिक स्थिरता, उपभोग पर नियन्त्रण, रोजगार, मुद्रा संकुचन एवं मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण तथा आर्थिक समानता आदि को प्राप्त करने के लिए राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) को सबसे महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। इसलिए डॉ० डाल्टन के अनुसार, “आर्थिक दृष्टिकोण से सबसे अच्छी कर प्रणाली वह है जो अर्थव्यवस्था पर सबसे अच्छा प्रभाव डाले या सबसे कम बुरा प्रभाव डाले।”

Public Finance Effects Taxation

श्रीमती हिक्स के अनुसार, “किसी देश की अर्थव्यवस्था पर उस देश की कर प्रणाली का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।” कीन्स ने बताया कि करारोपण का आर्थिक नीति में महत्वपूर्ण भाग होना चाहिए। इसके पश्चात् ए० पी० लर्नर ने इसका समर्थन किया और उन्होंने क्रियात्मक वित्त (Functional Finance) का दृष्टिकोण दिया। उनके अनुसार, “करारोपण की नीति निर्धारण का मुख्य उद्देश्य केवल आय में वृद्धि करना ही नहीं होना चाहिए, बल्कि आर्थिक जीवन में आर्थिक प्रभावों के द्वारा स्थिरता, मन्दी तथा तेजी पर नियन्त्रण करना होना चाहिए।”2

करारोपण के आर्थिक प्रभाव

(Economic Effects of Taxation)

Public Finance Effects Taxation

डॉ० डाल्टन ने, करारोपण के आर्थिक प्रभावों को तीन भागों में विभाजित किया है

(1) उत्पादन पर प्रभाव (Effects on Production),

(2) वितरण पर प्रभाव (Effects on Distribution),

(3) अन्य प्रभाव (Other Effects)

(1) करारोपण के उत्पादन पर प्रभाव (Effect of Taxation on Production)-डाल्टन ने करारोपण के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों को निम्न तीन उपवर्गों में विभाजित किया है

() कार्य करने, बचत करने तथा निवेश करने की योग्यता पर प्रभाव (Effect on Ability to Work, Save and Invest)-डाल्टन के अनुसार, “करारोपण से कार्य करने की क्षमता कम होती है अर्थात् यह कार्य क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।” वास्तव में करारोपण द्वारा व्यक्तिगत हाथों से सरकार की ओर क्रयशक्ति का स्थानान्तरण हो जाता है। इससे व्यक्ति की आय कम हो जाती है, उसका उपभोग घट जाता है जिससे उसके स्वास्थ्य तथा कार्य क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ठीक उसी प्रकार करारोपण के कारण व्यक्ति की बचत करने की शक्ति भी कम हो जाती है, क्योंकि उसकी आय का एक भाग उसके पास से करों के रूप में चला जाता है। दूसरे करारोपण से वस्तुओं के मल्य बढ जाते हैं जिसके कारण उपभोक्ताओं को पहले की अपेक्षा अधिक व्यय करना होता है फलतः। बचत की योग्यता पहले से कम हो जाती है। इससे देश में पूँजी संचय की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है। तथा उसका उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। डाल्टन के अनुसार, “निवेश की योग्यता निवेश के लिए उपलब्ध साधनों पर निर्भर करती है। स्पष्ट है कि यह करारोपण से घट जाती है।” यद्यपि कर व्यक्तिगत बचत को हतोत्साहित करते हैं कराधान स्वयं एक अनिवार्य बचत है जिसका प्रयोग आथिक विकास के लिए साधन एकत्र करने के लिए किया जा सकता है। इसी प्रकार सभी कर लोगों के काय करने की योग्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते। मादक वस्तओं पर लगाये गये कर उनके उपभोग का हतोत्साहित करते हैं जिससे लोगों की कार्य क्षमता कम होने से बच जाती है।

() कार्य करने, बचत करने तथा निवेश करने की इच्छा पर प्रभाव (Effect on the Desire to Work, Save and Invest)-प्रो० जे० के० मेहता के अनसार, “जब कर एक व्यक्ति पर लगाया जाता है तो उससे केवल उसकी आय कम हो जाती है. क्योंकि उसका एक अंश कर के भुगतान कर चला जाता है, बल्कि आय अर्जित करने की इच्छा भी कम हो जाने से वह और भी कम हो जाती है।

किन्तु सदैव ऐसा नहीं होता। कोई भी कर व्यक्तियों के कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा को कितना प्रभावित करेगा, यह निम्न दो बातों पर निर्भर करेगा

(1) कर का प्रकृति (Nature of Tax)-सामान्य रूप से यह कहा जाता है कि कराधान का अन्तिम उद्देश्य लोगों को कठिन श्रम करने तथा अधिक बचत करने को प्रेरित करता है। वास्तव में कुछ कर एस भी होते हैं जो इस दिशा में विनाशकारी प्रभाव डालते हैं। प्रत्यक्ष कर; जैसे—आयकर, सम्पत्ति कर परोक्ष करों की तुलना में कार्य तथा बचत करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

डाल्टन के अनुसार, धनी व्यक्तियों पर उत्तराधिकार कर काम करने तथा बचत करने की इच्छा को हानि पहुँचाता है। इसके विपरीत काम करने तथा बचत करने की इच्छा पर व्यय के प्रभाव आय कर की अपेक्षा अधिक अनुकूल होते हैं। एक प्रगतिशील कर उपभोग पर किये जाने वाले व्यर्थ के खर्चों को हतोत्साहित करता है। परोक्ष कर; जैसेउत्पादन कर, बिक्री कर, सीमा कर आदि काम करने बचत करने की इच्छा पर कोई बुरा प्रभाव नहीं डालते हैं।

Public Finance Effects Taxation

करारोपण का सामान्य प्रभाव पुराने उद्योगों की अपेक्षा नवीन उद्योगों पर अधिक पड़ता है। नये

अपनी दर्बलता के कारण अधिक कर भार सहन नहीं कर पाते। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कराधान अपने तथ्यों में से केवल एक है जो कि बचत, विनियोग तथा उद्यम का निर्धारण करते हैं। जे० के० बर्ट्स के अनुसार, “यदि इस सन्दर्भ में एक सामान्य वक्तव्य दिया जाए तो इसका महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वे मूलभूत प्रेरणाएँ, जो कि गैर सरकारी अर्थव्यवस्था को गतिशील करती हैं और अर्थव्यवस्था का सम्पूर्ण ढाँचा, इन दोनों पर ही करों का केवल अपेक्षित, सीमित तथा विशेषीकृत प्रभाव पड़ता प्रतीत होता है।”

(ii) करदाताओं की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया (Psychological Reactions of the TaxPayer)-कर व्यक्ति की आय को कम करते हैं। करदाता की यह मानसिक स्थिति कठिन श्रम करने तथा बचत करने की उसकी इच्छा को प्रभावित कर सकती हैं। कर के बारे में उसकी मानसिक प्रतिक्रिया इस बात से प्रभावित होती है कि आय के लिए व्यक्ति की माँग कितनी लोचदार है। डाल्टन के अनुसार, “कराधान के प्रति किसी भी व्यक्ति की प्रतिक्रिया आय के प्रति उसकी माँग की लोच से निर्देशित होती  हैं ।

आय के प्रति माँग की लोच-आय की माँग की लोच तीन प्रकार की हो सकती है

(i) आय की बेलोचदार माँग (Inelastic Demand for Income)-आय के प्रति व्यक्ति की माँग को बेलोच तब कहा जाता है, जबकि अपनी निश्चित आय को बनाये रखने की उसकी इच्छा काफी तीव्र ‘ होती है। ऐसी माँग के प्रति कराधान प्रेरणादायी होता है और इससे कार्य करने व बचत करने की इच्छा में वृद्धि होती है।

(ii) आय की लोचदार माँग (Elastic Demand for Income)-आय के प्रति व्यक्ति की माँग को लोचदार तब कहा जाता है, जबकि व्यक्ति अपनी आय के वर्तमान स्तर को बनाये रखने के लिए अधिक उत्सूक नहीं होता और आय की इतनी मात्रा प्राप्त करने के लिए वह सख्त परिश्रम करने को तैयार नहीं होता ऐसी स्थिति में कराधान का उसके कार्य तथा बचत की इच्छा पर प्रतिकल प्रभाव पड़ेगा। इस सन्दर्भ म डाल्टन के अनुसार, “यदि आय की माँग बेलोचदार हो तो कर की दर बढ़ा दो और यदि आय की माँग लोचदार हो तो कर की दर घटा दो।”

उदासीनता वक्र रेखा द्वारा आय की लोच का व्यक्तियों की कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा पर प्रभाव का स्पष्टीकरण चित्र 12.1 में दिया गया है। चित्र के अनुसार मजदूर के पास OL घण्टे हैं और OL घण्टे काम करने पर उसे OK मजदूरी मिल सकती है। अतः KL मजदूरी रेखा है। आय कर न होने पर मजदूरी रेखा KL होगी, P बिन्दु मजदूरी का साम्य बिन्दु होगा जहाँ पर वह OM आराम और OR आय प्राप्त करता है। ऐसी दशा में प्रति घण्टा वेतन दर OM/ML है। अब यदि सरकार ON के बराबर छूट देकर शेष आय पर आय कर लेती है तो आय कर लगने से मजदूरी आय कर की मात्रा के बराबर अवश्य ही कम हो जाएगी। आय कर अदा करने के पश्चात अब मजदूर को NK आय प्राप्त होती है। अब हमारा आधार NN हो जाता है तथा नई मजदूरी रेखा KINJ हो जाती है। मजदूरी रेखा में परिवर्तन होने से श्रमिक तटस्थता वक्र IC, पर आ जाएगा और उसका नया सन्तुलन P’ होगा जहाँ पर वह ORI(ON+ NR) मजदूरी तथा OM आराम प्राप्त करेगा। दूसरे शब्दों में, मजदूर अब अधिक काम करेगा। यहाँ पर श्रमिक की आय की माँग बेलोच है।

Public Finance Effects Taxation

इसके विपरीत चित्र 12.2 में मजदूरी रेखा NK1 तटस्थता वक्र रेखा IC2 को P बिन्दु पर छूती है। दूसरे शब्दों में मजदूर OR1 मजदूरी तथा OM1 आराम चाहते हैं अर्थात् ML काम करना चाहते हैं। इस स्थिति में लोचदार आय वाले माँग श्रमिक की काम करने की इच्छा कम होती है।

संक्षेप में, यदि आय के प्रति व्यक्ति की माँग लोचदार है तो कर लगने से काम करने तथा बचत करने की उसकी प्रेरणा समाप्त हो सकती है जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके विपरीत यदि आय के प्रति व्यक्ति की माँग बेलोच है तो इससे उसकी काम करने व बचत करने की प्रेरणा पर कराधान का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(iii) आय की माँग की लोच इकाई के बराबर (Income Elasticity of Demand = 1)-आय की। ‘माँग की लोच डकाई के बराबर तब कही जाती है, जबकि कर लगने के बाद भी व्यक्ति की काम करन व बचत करने की इच्छा वैसी ही बनी रहती है। ऐसे व्यक्ति उतना ही कार्य तथा बचत करते रहते हैं जो कराधान से पूर्व करते रहे हैं।

आय के लिए व्यक्ति की माँग सामान्यतः बेलोच होती है। ऐसा होने के निम्नलिखित कारण हैं

(i) अधिकांश व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति में अपने तथा अपने परिवार के लिए रहन-सहन को एक । निश्चित न्यूनतम स्तर पर बनाये रखने के इच्छुक रहते हैं।

(ii) कुछ व्यक्ति चाहते हैं कि उनकी बचतों से उनके लिए अथवा उनके आश्रितों के लिए भविष्य में। एक निश्चित मात्रा में न्यूनतम आय अवश्य ही प्राप्त होनी चाहिए।

(iii) कुछ व्यक्ति समाज में शक्ति, प्रतिष्ठा, शान-शौकत तथा तड़क-भड़क बनाए रखना चाहते

(iv) कुछ व्यक्ति अपनी आय को पूर्व स्तर पर बनाए रखना चाहते हैं।

(v) कुछ व्यक्ति अपने पड़ौसियों से अधिक धनी बनना चाहते हैं। जैसा कि मिल के अनुसार, “व्यक्ति स्वयं धनी नहीं बनना चाहता, अपितु वह दूसरों की अपेक्षा अधिक धनी बनना चाहता है।”

लीवर ह्रूम के अनुसार, “आय कर की दर की प्रत्येक वृद्धि से उन प्रयत्नों में वृद्धि ह है जो आय को बढ़ाने में सफल हुए हैं, जिसमें से बढ़े हुए करों का भुगतान किया जाता है।”

करादाता की मनोवृत्ति पर उन परिस्थितियों का भी प्रभाव पड़ता है जिनमें कर व मूल किये जाते हैं। समृद्धि काल में करारोपण से काम करने, बचत करने व निवेश करने पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि अवसाद काल में करों की थोड़ी सी वृद्धि भी काम तथा बचत करने की इच्छा को घटा देती हैं ।

 () आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण पर प्रभाव (Effects on the Diversion of Economic Resources)-कर उत्पादन पर कहीं अधिक प्रेरणादायी प्रभाव डालते हैं। इसलिए यह सम्भव है कि करों के भार से मुक्ति पाने के लिए आर्थिक स्रोत वर्तमान उद्योगों में एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर अथवा वर्तमान उपयोग से भावी उपयोग की ओर स्थानान्तरित हो जाएँ। इस प्रकार साधनों का उद्योगों और व्यवसायों के बीच नवीन वितरण देश में उत्पादन के प्रकार तथा उसके स्वरूप को प्रभावित कर सकता है। यह अन्तरण उत्पादन की दृष्टि से लाभकारी एवं अलाभकारी दोनों प्रकार का हो सकता है

Public Finance Effects Taxation

(i) लाभकारी दिशापरिवर्तनउपभोग के हानिकारक पदार्थों पर लगाया गया कराधान उसके उत्पादन को हतोत्साहित करता है और फलस्वरूप इन उद्योगों में लगी पूँजी व श्रम का अन्य लाभकारी उद्योगों में हस्तान्तरण होने लगता है। इसके अतिरिक्त कर हानिकारक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करके उनके उपभोग को कम कर देते हैं जिससे नागरिकों के स्वास्थ्य व कार्यक्षमता में सुधार हो जाता है।

(ii) हानिप्रद दिशापरिवर्तनकभीकभी करों द्वारा आर्थिक स्रोतों का दिशा परिवर्तन इस प्रकार होता है कि वे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। आवश्यक पदार्थों पर लगाये जाने वाले कर साधनों का हस्तान्तरण कम आवश्यक वस्तुओं (उद्योगों) की तरफ कर देते हैं। करों से उन पदार्थों की कीमत बढ़ जाती है जिससे उनका उपभोग घट जाता है और उनके स्वास्थ्य तथा कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ये कर सामाजिक दृष्टि से वांछनीय नहीं माने जाते हैं।

(iii) वर्तमान से भावी और भावी से वर्तमान उपयोगों की ओर दिशा-परिवर्तन-उपभोग को निरुत्साहित करने वाले कर बचतों को प्रोत्साहित करते हैं। इन करों द्वारा आर्थिक स्रोत वर्तमान उपयोगों से हटाकर भावी उपयोगों पर दिशा-परिवर्तन कर दिये जाते हैं। ये परिवर्तन समाज की उत्पादन शक्ति को बढ़ाते हैं। बिक्री कर, व्यय कर और क्रय कर ऐसे ही करों के उदाहरण हैं।

इसके विपरीत जो कर बचतों को हतोत्साहित करते हैं, वे साधनों को भावी उपयोग से हटाकर वर्तमान उपयोगों की ओर दिशा-परिवर्तित करते हैं और इस प्रकार उत्पादन पर बुरा

(iv) एक स्थान से दूसरे स्थान को दिशापरिवर्तनकर आर्थिक साधनों को एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरित कर देते हैं। संघीय शासन व्यवस्था में साधनों का अन्तरण उस राज्य से जहाँ करों का भार अधिक है, उस राज्य की ओर हो सकता है, जहाँ करो का भार इतना अधिक नहीं है।

ऐसे कर जिनसे साधनों का स्थानान्तरण नहीं होता-कुछ कर ऐसे भी हैं जो साधनों का स्थानान्तरण बिल्कुल नहीं करते; जैसे—एकाधिकार कर, आकस्मिक लाभ पर कर तथा भूमि की स्थिति पर कर।

2. करारोपण के वितरण पर प्रभाव (Effects of Taxation on Distribution)-वर्तमान समय में अर्थशास्त्री यह स्वीकार करते हैं कि करारोपण का उद्देश्य आय के वितरण की असमानता को कम या दूर। करना है। प्रत्येक लोकतान्त्रिक राज्य का यह एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है, क्योंकियदि राष्ट्रीय लाभाँश में कमी आए तो धन के वितरण में प्रत्येक सुधार सामूहिक जन कल्याण को प्रोत्साहित करेगा।” अतः ‘वितरण इस ढंग से किया जाना चाहिए कि उससे सामाजिक कल्याण में वन्दि हो सके। डॉ० डाल्टन के अनुसार, “आर्थिक दष्टिकोण से आदर्श वितरण वही है जिसके फलस्वरूप दिये गए उत्पादन से आधकतम आर्थिक कल्याण उत्पन्न होता है।प्रो० पीग के अनुसार, “यदि राष्ट्रीय लाभाँश की मार में कमी आये तो धन के वितरण में प्रत्येक ऐसा सुधार, जिससे इस लाभाँश में से निधनों के पास जाने वाली मात्रा बढ़ जाती है, सामूहिक जन कल्याण को बढ़ा देगा।” बैस्टबैल के अनुसार, “करों का। प्रयोग धन की असमानता को दूर करने के विरूद्ध एक शक्तिशाली भावना है।”

समाज के विभिन्न वर्गों पर आय तथा धन के वितरण पर करारोपण के प्रभाव निम्नलिखित दो तत्त्वों पर निर्भर करते हैं

Public Finance Effects Taxation

कराधान की प्रकृति अथवा कर की दरें (Nature of Taxation or Tax Rates)-किसी कर प्रणाली के अन्तर्गत कराधान की प्रक्रति प्रगतिशील (Progressive), आनुपातिक (Proportional) अथवा प्रतिगामी (Regressve) हो सकती है। आनुपातिक कर प्रणाली में सभी करदाता अपनी आय का एक समान अनुपात ही कर के रूप में देते हैं। कर प्रणाली प्रगतिशील तब होती है, जबकि करदाता अपनी। आय में वृद्धि से अधिक अनुपात में कर अदा करते हैं और प्रतिगामी तब होती है, जबकि करदाता आय में वृद्धि की अपेक्षा कम अनुपात में कर देते हैं।

अत्यधिक प्रगतिशील कर प्रणाली आय तथा धन के वितरण में पायी जाने वाली असमानताओं को काफी कम करती है। वास्तव में कर अदा करने की सामर्थ्य का सिद्धान्त प्रगतिशील कर प्रणाली पर ही आधारित है। व्यक्ति की आय जितनी अधिक होती है उसकी कर देने की सामर्थ्य भी उतनी ही अधिक होती है। प्रो० जे० के मेहता के अनुसार, “कराधान के समान वितरण की दृष्टि से प्रगतिशील कर, आनुपातिक अथवा प्रतिगामी करों से श्रेष्ठ होते हैं।

न्यायपूर्ण वितरण की दृष्टि से प्रगतिशील कर प्रणाली का गठन ऐसे ढंग से किया जाना चाहिए कि उत्पादन पर उसका कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। कर लगाते समय परिवार के आकार तथा आय की प्रक्रति को भी ध्यान में रखना चाहिए।

परोक्ष कर एवं वितरण (Indirect Taxes and Distribution)-परोक्ष कर सामान्यतया प्रतिगामी प्रकृति के होते हैं। ये धन के वितरण में असमानताएँ बढ़ाते हैं। इसका कारण यह है कि धनी लोगों के मुकाबले निर्धन व्यक्ति ही सामान्य वस्तुएँ अधिक मात्रा में उपभोग करते हैं और उनका भार निर्धनों पर ही अधिक पड़ता है। यद्यपि परोक्ष करों को भी प्रगतिशील बनाया जा सकता है और अनिवार्य आवश्यकता की वस्तुओं को कर मुक्त करके विलासिता की वस्तुओं अथवा उच्च कोटि की वस्तुओं पर ऊँची दरों से कर लगाया जा सकता है। यदि अनिवार्य आवश्यकताओं तथा सामान्य उपभोग की वस्तुओं को करों से मुक्त कर दिया जाये, तो करों की प्रतिगामिता को थोड़ी बहुत मात्रा में घटाया जा सकता है।

प्रत्यक्ष कर तथा वितरण (Direct Taxes and Distribution)-वे सभी कर जो अदा करने की सामर्थ्य तथा प्रगतिशीलता के सिद्धान्त पर आधारित होते हैं, देश में आय व धन के वितरण की विषमताओं को कम कर सकते हैं। जिन करों को सरलता से प्रगतिशील बनाया जा सकता है, वे हैं-आय कर, सम्पत्ति कर तथा उत्तराधिकार कर।।

आय कर (Income Tax)-आय कर को क्रमबद्धी दरें (Graduated rates) लाग करके प्रगतिशील बनाया जा सकता है। इससे न केवल करारोपण में समता व न्याय प्राप्त होगा, बल्कि आय की असमानताएँ कम होंगी। इसके अतिरिक्त सामान्य प्रगतिशील आय कर के साथ-साथ अत्यन्त ऊँची आय पर अतिरिक्त कर (Additional Tax) भी लगाये जाने चाहिए तथा एक निश्चित स्तर से नीचे की आय पर छूट मिलनी चाहिए। इसके अतिरिक्त अनुपार्जित आय (Unearned Income) पर ऊँची दरों से कर लगना चाहिए।

सम्पत्ति कर (Property Tax)-सम्पत्ति कर को प्रगतिशील बनाने पर धनिकों के पास सम्पत्ति की ‘मात्रा कम होने लगेगी। इससे आय व धन के वितरण की विषमताएँ कम होंगी। प्रगतिशील अनावर्ती पूँजी कर भी आय और धन के वितरण की विषमताओं को कम करेगा।

उत्तराधिकार कर (Inheritance Taxes)-प्रगतिशील उत्तराधिकार कर आय और धन के वितरण की विषमताओं को कम करने में सहायक होंगे जोकि संचित धन तथा सम्पत्ति द्वारा कमाई गई। आय के कारण उत्पन्न हो जाती हैं।

यहाँ पर उल्लेखनीय है कि प्रत्यक्ष कर आय तथा धन की असमानताओं को कम करने में केवल। तभी सहायक हो सकते हैं, जबकि वे प्रगतिशील प्रकृति के हों।

कर की प्रगतिशीलता (आरोहण) की माप (Measurement of Tax Progression)-कर की पातिशीलता अथवा क्रमबद्धन को मापने के लिए डाल्टन ने निम्नलिखित गणितीय सत्र दिया है

वितरण बनाम उत्पादन (Distribution Vs. Production)-उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि समान वितरण की अवस्था को लाने के लिए तीव्र प्रगतिशील कर प्रणाली को व्यवहार में अपनाना आवश्यक है, किन्तु अत्यधिक प्रगतिशील करारोपण उत्पादन को हतोत्साहित करते हैं अर्थात इससे उत्पादन घटता है। ऐसी स्थिति में वितरण की समानता का अर्थ धन के समान वितरण का नहीं, अपितु गरीबी का समान वितरण होगा। इसलिए वितरण सम्बन्धी अध्ययन के समय हम उत्पादन सम्बन्धी पहलूओं की उपेक्षा नहीं कर सकते। साथ ही प्रगतिशील कर उत्पादन पर सदैव प्रतिकूल प्रभाव ही डालें, ऐसी बात भी नहीं है। अतः उत्पादन और वितरण दोनों रद्देश्यों के बीच पारस्परिक सामंजस्य की स्थापना आवश्यक है। संक्षेप में, करारोपण की ऐसी नीति अपनायी जानी चाहिए जो कि एक ओर उत्पादन के मार्ग में कोई बाधा न डाले और दूसरी ओर धन के वितरण की असमानताओं को दूर करने में भी सहायक हो।

(3) कराधान के अन्य प्रभाव (Other Effects of Taxation)-कराधान के कुछ अन्य प्रभाव निम्न प्रकार हैं

(i) करारोपण एवं रोजगार (Taxation and Employment)-कीन्स के अनुसार, उपभोग प्रवृत्ति बढ़ने पर वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है जिससे रोजगार का स्तर बढ़ जायेगा। परन्तु करारोपण लोगों के हाथ में विद्यमान क्रय-शक्ति को कम करता है और इस प्रकार उनका व्यय कम हो जाता है। उपभोग में कमी होने से प्रभावी माँग घट जाती है, परिणामस्वरूप आर्थिक क्रियाओं व रोजगार का स्तर भी गिर जाता है। डॉ० डाल्टन के अनुसार, “यह सम्भव है कि करारोपण में बड़े आकस्मिक परिवर्तन श्रमिकों को बड़े पैमाने पर हटाकर बेरोजगारी में वृद्धि कर सकते हैं।

अतः करारोपण रोजगार को कम करता है।

परन्तु इस समस्या का दूसरा पहलू भी है। करारोपण से प्राप्त आय को उत्पादक कार्यों में लगाकर रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। हाल्टन के अनुसार, “कभीकभी यह कहा जाता है कि करारोपण विशेष रूप से यदि यह धनी वर्ग पर है, बेरोजगारी बढ़ाता है, परन्तु बहुत से व्यक्ति जो ऐसा विचार रखते हैं, यह समझ लेते हैं कि करारोपण से एकत्रित धन थैली में भर कर रख लिया जाता है अथवा समुद्र में फेंक दिया जाता है।” परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता।

(ii) करारोपण एवं आर्थिक स्थिरता (Taxation and Economic Stability)-राजस्व का मुख्य लक्ष्य आर्थिक क्रियाओं व रोजगार के स्तरों में स्थायित्व बनाये रखना है। प्रो० लर्नर के अनुसार, “करारोपण नीति निर्धारण का प्रमुख उद्देश्य केवल आय प्राप्त करना नहीं होना चाहिए वरन् आर्थिक प्रभाव पैदा करना विशेषकर आर्थिक जीवन में स्थिरता लाना तथा तेजी एवं मन्दी को रोकना होना चाहिए।”

करारोपण तथा मुद्रास्फीति (Taxation and Inflation)-मुद्रास्फीति काल में कराधान का पपलाना का उद्धेश्य लागे के हाथों में क्रय-शक्ति को कम करना होता है। अतः नये कर लगाने तथा प्रचलित करों की दरों में वृद्धि करने से उपभोग पर रोक लगती है जिससे समर्थ माँग (Effective Demand) स्तर गिरता ह उसस कीमतों में स्थिरता लाने में मदद मिलती है। इसके अतिरिक्त कर क्रय-शक्ति को लागे से सरकार की ओर स्थानान्तरित करते हैं जिसका यदि समुचित रूप से उत्पादन कार्यों के लिए उपयो। किया जाए तो आर्थिक क्रियाओं व रोजगार का स्तर ऊँचा उठता है और वस्तुओं तथा सेवाओं की पति है। वांछित वृद्धि होने से बढ़ती हुई कीमतें रुकने लगती हैं। कुछ कर छूटे (Tax-exemptions) बचत तथा। निवेश को प्रोत्साहित करके उत्पादन बढ़ाने में सहायक हो सकती हैं। ।

करारोपण तथा मन्दी (Taxation and Depression)-मन्दी की स्थिति में प्रभावी माँग कम रहते के कारण करों की मात्रा तथा दरों में कमी करने के आर्थिक क्रियाओं व रोजगार के स्तर पर अनकल प्रभाव पड़ सकते हैं और करों द्वारा एकत्रित सरकारी आय को सड़कों जैसी जनोपयोगी सेवाओं के निर्माण पर व्यय किया जा सकता है जिससे कि वस्तुओं व सेवाओं की प्रभावी माँग में वृद्धि की जाए और ऐसा करने के लिए निर्धनों पर कराधान के भार को कम किया जाना चाहिए। घाटे का बजट (Deficiti Budget) बनाकर भी इन लोगों की क्रय-शक्ति में वृद्धि की जा सकती है।

(iii) कराधान के नियामकीय प्रभाव (Regulatory Effects of Taxation)-कराधान का उपयोग उत्पादन तथा उपभोग के नियमन के एक साधन के रूप में भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कुछ वस्तुओं के उत्पादन को करों से मुक्त करके और कुछ अन्य वस्तुओं के उत्पान पर भारी कर लगाकर उत्पादन की प्रकृति तथा मात्रा को नियमित किया जा सकता है। कुछ वस्तुओं के उत्पादन तथा प्रयोग पर कर लगाकर उपभोग को नियन्त्रित किया जा सकता है। इसी प्रकार आयात तथा निर्यात कर देश के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को नियन्त्रित कर सकते हैं।

कर के आर्थिक प्रभाव से तात्पर्य आय में हए उन परिवर्तनों से है जो समायोजन प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप होते है। मसग्रेव ने इन्हें ‘अवशिष्ट’ की संज्ञा दी है। इसके अन्तर्गत उत्पत्ति एवं वितरण सम्बन्धी परिवर्तन भी शामिल किये जाते हैं। मख्यतः तीन आर्थिक प्रभावों का विस्तृत वितरण निम्नलिखित हैं

Public Finance Effects Taxation

1 वर्तमान साधनों के आबंटन पर प्रभाव : करारोपण एवं कार्य कुशलता

(Effects on Allocation of Existing Resources : Taxation and Efficiency)

निजी क्षेत्र में साधनों का आदर्श वितरण उस समय होता है जब पूर्ण प्रतियोगिता विद्यमान रहती है। एवं वस्तु की कीमत सीमान्त लागत के बराबर होती है, साधन की सीमान्त शुद्ध उत्पत्ति इसकी कीमत के बराबर होती है तथा निजी एवं सामाजिक लाभ एवं लागत समान होते हैं।

अतिरिक्त भार का सिद्धान्त (Excess Burden Doctrine)

सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि उत्पादन के साधनों के आबंटन के पर प्रत्यक्ष करों की तुलना में परोक्ष करों का अधिक होता है। इस तर्क के पक्ष में यह कहा जाता है कि परोक्ष कर विभिन्न वस्तुओं के मध्य उपभोक्ताओं के चयन को विक्रत कर देते हैं और इस प्रकार व्यक्तिगत कर दाता एवं समाज पर एक अतिरिक्त भार पड़ता है, जबकि प्रत्यक्ष कर ऐसा कोई भार नहीं डालता। दूसरे शब्दों में, प्रत्यक्ष कर का केवल आय प्रभाव पड़ता है, जबकि परोक्ष कर का आय प्रभाव के अतिरिक्त प्रतिस्थापन प्रभाव भी पड़ता है। उस स्थानापन्न प्रभाव का कारण यह है कि परोक्ष कर के कारण सापेक्ष कीमतों में परिवर्तन होता है। जिससे उपभोक्ता का चयन-अनुपात बदल जाता है। इससे पूर्व उपभोक्ता साम्य स्थिति में था। इस प्रकार का कोई परिवर्तन प्रत्यक्ष कर के कारण नहीं होता है. क्योंकि यह कर सापेक्ष कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं लाता।

मार्शल का मत है कि करदाताओं पर अतिरिक्ति भार का कारण है-कर युक्त वस्तु तथा अन्य वस्तुओं के प्रति उपभोक्ताओं के चयन की विकृति, हाँ, वस्तु की माँग की लोच के अनुसार अतिरिक्त भार की मात्रा में परिवर्तन हो जाता है। पूर्णतया लोचदार माँग की स्थिति में सर्वाधिक अतिरिक्त भार पड़ता है, जबकि शून्य लोच की स्थिति में अतिरिक्त भार शून्य हो जाता है।

गुणात्मक उपयोगिता के आधार पर जोसेफ तथा हिक्स ने यह सिद्ध किया है कि आय कर जैसा ‘ प्रत्यक्ष कर उत्पाद कर जैसे परोक्ष करों से श्रेष्ठ है, क्योंकि वह विभिन्न वस्तुओं के मध्य उपभोक्ताओं को अधिक कल्याण देता है अतः आय कर श्रेष्ठ है। इसका अर्थ है कि परोक्ष करों के कारण साधनों का जो ‘पनः वितरण होता है, वह उपभोक्ता की दृष्टि से हीन होता है। यह निष्कर्ष निम्न दो मान्यताओं पर आधारित है

(i) अम की पूर्ति बेलोचदार है।

(ii) प्रारम्भिक स्थिति आदर्श स्थिति है।

Public Finance Effects Taxation

श्रम की पूर्ति (Supply of Money)

कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अतिरिक्ति भार की समस्या केवल परोक्ष करों के सम्बन्ध में ही नहीं उठती आय कर भी तटस्थ नहीं होता, क्योंकि यह श्रम तथा अवकाश के मध्य चयन को प्रभावित करता है। यह अवकाश की कीमत को घटाकर तथा श्रम की लागत में वृद्धि करके साधनों के आबंटन को प्रभावित करता है। हेन्डरसन इस बात को सही नहीं मानते, क्योंकि वे यह नहीं समझ सके कि एक ओर आय कर वस्तुओं की माँग तथा दूसरी ओर वस्तुओं की कीमत एवं अवकाश की माँग के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है। लिटिल ने पहली बार इस सम्बन्ध की स्पष्ट जाँच की। माना उपभोक्ता X, Y और L तीन वस्तुओं के मध्य चयन करने में स्वतन्त्र हैं। यहाँ पर x और Y वस्तुएँ तथा L अवकाश है। माना आय कर (T)L की बिक्री पर परोक्ष कर है। यदि उपभोक्ता चाहे तो वह L की मात्रा घटाकर x

और Y की अधिक मात्रा प्राप्त कर सकता है, वह Y की मात्रा को कम करके x तथा L की अधिक मात्रा प्राप्त कर सकता है। व्यक्तिकर के सम्बन्ध में उपभोक्ता के चयन को केवल आय प्रभाव प्रभावित करता है, प्रतिस्थापन प्रभाव नहीं। अब यदि x, Y अथवा L पर कर लगाया जाए तो विकृति प्रभाव पड़ेगा। मूल रूप से दोनों ही करों द्वारा दो प्रकार की विकृति होती है

प्रथम स्थिति : माना L पर कर लगाया जाता है

L, Y जोड़े के लिए S = T

X, Y जोड़े के लिए S=T

X, L जोड़े के लिए S T

द्वितीय स्थिति : आय कर अर्थात L पर भार

X, Y जोड़े के लिए S = T

X, L जोड़े के लिए S+T

Y, L जोड़े के लिए S T

जहाँ S = प्रतिस्थापन दर, T = रूपान्तरण की सीमान्त दर

इस प्रकार लिटिल के अनुसार, प्रत्यक्ष एवं परोक्ष कर एक ही प्रकार के हैं। माना किसी प्रकार के कर लगने के पूर्व साधनों का आदर्श आबंटन होता है। ऐसी स्थिति पूर्ण प्रतियागिता म पाइ जात कीमत = सीमान्त उपयोगिता; मजदूरी = सीमान्त आगम, उत्पाद और तटस्थता वक्र की भाषा में, उपभोक्ता की प्रतिस्थापन की सीमान्त दर = उत्पादकों की रूपान्तरण की सीमान्त दर। अतिरिक्त भार का सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि कर की अनुपस्थिति में साधनों का आदर्श आबंटन होता है। परोक्ष कर आबंटन में सुधार लाता है, जबकि प्रत्यक्ष कर (आय कर) वस्तुओं की सापेक्षिक कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं लाता। अतः प्रत्यक्ष कर की तुलना में परोक्ष करों को श्रेष्ठ माना जाता है। पूर्ण प्रतियोगिता के अतिरिक्त सभी स्थितियों में परोक्ष कर ही श्रेष्ठ होंगे। इसी प्रकार यदि सामाजिक लागत एवं लाभ निजी लागत एवं लाभ से भिन्न हों तो आबंटन आदर्श नहीं रहेगा। इस स्थिति में भी परोक्ष कर ही श्रेष्ठ होगा।

प्रत्यक्ष कर एवं साधनों का पुनर्वितरण (Direct Tax and Redistribution of Resources)

माना कर के पूर्व व्यक्ति एवं समाज दोनों की दृष्टि से साधनों का आदर्श आबंटन विद्यमान है। सामान्यतः यह माना जाता है कि साधनों के आबंटन के सम्बन्ध में आयकर तटस्थ रहता है, किन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं होता। वास्तव में आयकर में कुछ अपूर्णताएँ आ जाती हैं

(i) यह सम्भव है कि आय कर सभी प्रकार की आय पर न लगाया जाए अथवा आय कर के सम्बन्ध में दोहराव हो जाए।

(ii) आय के विभिन्न स्लैबों पर आय कर की दर भिन्न-भिन्न हो सकती है।

आय कर की इन अपूर्णताओं के कारण उपभोक्ताओं की माँग की संरचना में परिवर्तन हो जाता है।इस परिवर्तन के फलस्वरूप साधनों का भी पुनर्वितरण हो जाएगा। प्रेस्ट के अनुसारकुछ आय करों के कारण साधनों का और इस तरह उत्पत्ति का अनुकूलतम स्थिति में स्थानान्तरण होता है।

परोक्ष कर तथा साधनों का पुनर्वितरण (Indirect Taxes and Re-distribution : Resources)-माना कर के पूर्व व्यक्ति एवं समाज दोनों की दृष्टि से साधनों का वर्तमान आबंटन सर्वोत्तम है। अब माना अनेक परोक्ष कर अनेक प्रकार से लगाये जा सकते हैं, परन्तु परोक्ष करों का चयन करते  समय इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस स्थिति में न्यूनतम परिवर्तन आए। इस दृष्टि से परोक्ष करों को उन वस्तुओं पर लगाना चाहिए जिनकी माँग या तो पूर्णतया बेलोचदार है अथवा।

तुलनात्मक रूप से अधिक बेलोचदार है।

अब माना सभी वस्तुओं की माँग की लोच समान है, किन्तु पूर्ति की लोच भिन्न है तो कर बेलोच पूर्ति की वस्तु पर लगाया जाना चाहिए। इसका कारण यह है कि पूर्ति जितनी अधिक बेलोचदार होगी, उत्पादन के साधनों का एक उद्योग से दूसरे उद्योग में उतना ही कम स्थानान्तरण होगा।

प्रशासनिक एवं अनुपालन लागत (Administrative and Compliance Costs)-कर व्यवस्था के संचालन में आई प्रत्यक्ष लागतों को प्रशासनिक एवं अनुपालन लागत कहा जाता है। प्रशासनिक लागत से तात्पर्य उस लागत से होता है जो सरकार को कर वसूल करने पर खर्च करनी पड़ती है जैसे—मजदूरी, वेतन, आवास व्यय आदि। प्रयास यह किया जाता है कि यह लागत न्यूनतम आए। अनुपालन लागत से तात्पर्य उस व्यय से है जो निजी क्षेत्र को किसी कर व्यवस्था की आवश्यकता को पूरा करने के लिए खर्च करना पड़ता है। स्टेनफोर्ड ने इसे करारोपण की छिपी लागत (Hidden cost of taxation) कहा है। साधनों की पूर्ति पर प्रभाव : करारोपण एवं प्रेरणाएँ

माना केवल दो साधन श्रम और पूँजी हैं।

Public Finance Effects Taxation

(1) श्रम की पूर्ति पर प्रभाव (Effect on Supply of Labour)-जनसंख्या के दिये होने पर श्रमिकों की पूर्ति श्रम के उपयोग की मात्रा पर निर्भर करती है। श्रम एवं अवकाश के मध्य समय का आदर्श वितरण उस बिन्द पर होगा जहाँ पर मजदूरी आय एवं अवकाश की सीमान्त दर के बराबर होगी। यह स्थिति ही अधिकतम सन्तोष की स्थिति होगी, किन्तु विभिन्न करों के लगाने पर इस स्थिति में परिवर्तन हो जायेगा।

(i) व्यक्ति कर लगाने पर व्यक्ति की व्यय योग्य आय में एक स्थित मात्रा में कमी हो जाती है। चूँकि व्यक्ति कर के अन्तर्गत कर भुगतान आय पर निर्भर नहीं करता, अतः इस कर का केवल आय-प्रभाव पड़ता है और आय घट जाती है। यदि आय श्रेष्ठ वस्तु है तो व्यक्ति या तो पूर्व की मात्रा में ही श्रम करेगा या अधिक मात्रा में। व्यक्ति कर तथा आनुपातिक आय कर में मूलभूत अन्तर स्थानापन्न प्रभाव को लेकर है। व्यक्ति कर का आय प्रभाव पड़ता है। अतः यह आनुपातिक आय कर के समान है, किन्तु आय कर का स्थानापन्न प्रभाव भी पड़ता है, क्योंकि अन्य वस्तुओं की तुलना में अवकाश की कीमत में परिवर्तन हो जाता है। ऐसा प्रभाव व्यक्ति कर की स्थिति में नहीं पड़ता है। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि अनेक श्रमिकों का काम करने के घण्टों पर सीमित नियन्त्रण होता है और वे पूर्व की भाँति ही काम करते रहते हैं।

कर के प्रति श्रमिकों की प्रतिक्रिया मजदूरी में कटौती की प्रतिक्रिया के समान नहीं होती। आय कर व्यक्ति के काम के घण्टे में कमी ला सकता है, किन्तु वह मजदूरी की सामान्य कटौती की स्थिति में ऐसा नहीं करेगा।

(ii) प्रगतिशील आय कर के कारण स्थानापन्न प्रभाव और अधिक शक्तिशाली हो जाता है। इसलिए आनुपातिक आय कर की अपेक्षा प्रगतिशील कर की स्थिति में श्रमिक और कम काम करता है।। इसका कारण यह है कि अतिरिक्त आय प्राप्त करने के लिए उसे क्रमशः अधिक अवकाश का त्याग करना। पडता है तथा कर के भुगतान के पश्चात् जो आय बच जाती है, वह घटती जाती है। अतः व्यक्ति के काम करने की इच्छा कम हो जाती है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि आनुपातिक आय कर का भार निम्न एव मध्यम वर्म के लोगों पर अधिक पड़ता है, जबकि प्रगतिशील आय कर का भार धनी वर्ग पर अधिक पडता है। अतः विभिन्न वर्गों की प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न होगी।

(iii) माना परोक्ष कर उपभोग वस्तु तथा उत्पादन वस्तु दोनों पर ही लगाया जाता है, आय कर के गावर ही परोक्ष कर भी प्रगतिशील है तथा कर की सीमान्त एवं औसत दर समान है। ऐसी दशा में पारम्परिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार आय एवं परोक्ष करों का प्रभाव श्रम की पूर्ति पर एक समान पड़ता है, किन आज इस विचार को मान्यता नहीं मिलती, क्योंकि यह माना जाता है कि सामान्य आय कर का विकल्प केवल अवकाश है। अतः आय कर के कारण लोग अधिक अवकाश लेते हैं और कम काम करते है। फलतः श्रम की पूर्ति घट जाती है। यदि परोक्ष कर सभी वस्तओं पर न लगाया जाए तो लोगों के पास आय और अवकाश के अतिरिक्त एक और विकल्प उपलब्ध हो जाता है और लोग इन कर मुक्त वस्तुओं का अधिक उपभोग कर सकते हैं। अतः परोक्ष कर उन वस्तओं पर लगाया जाना चाहिए जिनकी मांग अवकाश की माँग की पूरक है, ताकि कर वाली वस्तु एवं अवकाश दोनों के उपभोग में कमी हो और उन वस्तुओं को आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए जो अवकाश की स्थानापन्न हैं।

बचत का पूर्ति पर प्रभाव (Effect on Supply of Saving) काल्डोर के अनुसार बचत की आपूर्ति की दृष्टि से व्यय कर आय कर की तुलना में श्रेष्ठ है, क्योंकि बचत व्यय कर से मुक्त रहती है। अतः यह लोगों को अधिक बचत करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। बचत की मात्रा बचत की ब्याज लोच पर निर्भर करेगी। परम्परागत अर्थशास्त्रियों ने बचत की मात्रा को बचत दर से सम्बन्धित किया था, किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार बचत और ब्याज दर के मध्य सम्बन्ध अत्यन्त जटिल और अनिश्चित है। इसके अतिरिक्त ब्याज दर के प्रति व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं; ब्याज की समान दर पर कुछ लोग अधिक बचत कर सकते हैं और कुछ कम। यह भी निश्चित है कि कम कर या तो विनियोग को प्रोत्साहित करेगा अथवा श्रम को। दोनों ही दशाओं में उत्पादन में वृद्धि होगी और कुल बचत बढ़ जायेगी, किन्तु प्रेस्ट इस तर्क से सहमत नहीं हैं।

Public Finance Effects Taxation

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. करारोपण के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।

Explain the effects of taxation on production.

प्रश्न 2. करारोपण के वितरण और आर्थिक स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव को स्पष्ट कीजिये।

Explain the effects of taxation on Distribution and Economic Stability.

प्रश्न 3. “आर्थिक दृष्टिकोण से करारोपण की सर्वोत्तम पद्धति वह है जिसके आर्थिक प्रभाव सबसे अच्छे या कम से कम बुरे हों।” (डाल्टन) इस कथन को समझाइये।

The best system of taxation from the economic point of view is that which has the best or the least economic effects.” (Dalton) Discuss the statement.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. करारोपण कार्य करने, बचत करने तथा निवेश करने की योग्यता को किस प्रकार प्रभावित करता है ?

How taxation affects ability to work, save and invest?

प्रश्न 2. करारोपण कार्य करने, बचत करने तथा निवेश करने की इच्छा पर क्या प्रभाव डालता है?

What is the effect of taxation on the ability to work, save and invest.

प्रश्न 3. आय के प्रति माँग की लोच व्यक्तियों की कार्य करने की इच्छा को किस प्रकार प्रभावित करती है?

How elasticity of demand regarding income affects the will to work?

प्रश्न 4. वितरण पर करारोपण का प्रभाव बताइये। Discuss the effects of taxation on distribution.

प्रश्न 5. करारोपण का आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण पर प्रभाव को स्पष्ट कीजिये।

Explain the effects of taxation on the diversion of economic resources.

प्रश्न 6. “करारोपण का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता बनाये रखना है।” समझाइये।

“Main objective of taxation is to maintain economic stability.” Explain.

Public Finance Effects Taxation

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd year Incidence Taxation shifting Tax Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 2nd Year Public Finance Taxable Capacity Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 2nd year Public Finance