BCom 2nd Year Public Finance Government Budget Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd Year Public Finance Government Budget Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd Year Public Finance Government Budget Study Material Notes In Hindi:  Definition of Budget Essential of Budget Programming and performance Budgeting Definitions Distinguish between Performance and Programme Budgeting Stages of Programme and Performance Budgeting  Limitation of Programme and Performance Budgeting  Characteristics of Zero base budgeting Pre conditions of Zero base Budgeting Important Questions Examinations Long Answer Questions Short Answer Questions :

Government Budget Study Material
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BCom 3rd Year Nature Importance Financial Money Study Material notes in hindi

सरकारी बजट [Government Budget

देश की अर्थव्यवस्था का केन्द्र सरकारी बजट है, क्योंकि सरकारी बजट से सरकार की आर्थिक क्रियाओं का पता चलता है तथा यह आर्थिक विकास का मुख्य अस्त्र है। सरकारी बजट में सार्वजनिक आय तथा व्यय का अनुमान लगाया जाता है। यह सरकार की वित्तीय योजना को बनाने में सहायता प्रदान करता है। वर्तमान में सरकारी बजट का महत्व और अधिक बढ़ गया है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में हम योजनागत बजट का निर्माण करके विकास दर को तेज करने के लिए प्रयासरत हैं। सरकारी बजट को सार्वजनिक बजट भी कहा जाता है।

बजट का अर्थ (Meaning of Budget)-बजट शब्द फ्रैंच भाषा के बजटे (Bougette) से लिया गया है जिसका अर्थ है चमड़े का छोटा थैला जिसमें वित्तमन्त्री अपने कागजात रखता है, लेकिन आजकल बजट का अर्थ थैले से नहीं बल्कि उसमें रखे महत्वपूर्ण दस्तावेजों से है। इस प्रकार बजट सरकार के आय एवं व्ययों का एक वार्षिक विवरण है। बजट विगत वर्ष एवं चालू वर्ष के वित्तीय लेखों और अगले वर्ष के आय एवं व्यय के भुगतानों का वार्षिक विवरण होता है।

Public Finance Government Budget

बजट की परिभाषा (Definitions of Budget)

सरकारी बजट एक तुलनात्म्क विवरण है जिसमें सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक व्यय को दिखाया जाता है। बजट की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

रेन स्टोन के अनुसार, “बजट एक ऐसा प्रपत्र है जिसमें सार्वजनिक आय और व्यय की स्वीकृत की हुई योजना निहित होती है।

किंग के अनुसार, “बजट एक प्रशुल्क योजना है जिसके द्वारा व्यय को आय से सन्तुलित किया जाता है।”

प्रो० टेलर के अनुसार, “बजट सरकार की मास्टर वित्तीय योजना है।”3

डबल्यू० एफ० विलोबी के अनुसार, “बजट एक रिपोर्ट, एक अनुमान एवं एक प्रस्ताव है। यह एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा वित्तीय प्रशासन की सभी विधियों को सम्बन्धित किया जाता है. उनकी तुलना की जाती है और उनमें समन्वय स्थापित किया जाता है।”

फिण्डले शिराज के अनुसार, “बजट आय एवं व्यय का विवरण है जो सरकार द्वारा अनुमानित व्यय को पूर्ण करने हेतु बनाया जाता है बजट पिछले वर्ष के आय-व्यय का अनुमान तथा घाटों को पूर्ण करने हेतु और बचत को वितरित करने हेतु प्रस्ताव होते हैं।”

गैस्टन जेजी (Gaston Jaze) के अनुसार, ” एक आधुनिक राज्य बजट समस्त लोक प्राप्तियों और व्ययों की एक भविष्यवाणी और एक अनुमान है तथा कुछ व्यय करने और प्राप्तियाँ एकत्र करने के लिए एक अधिकार है।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सरकारी बजट सार्वजनिक आय तथा व्यय का वार्षिक लेखा जोखा है जो वित्तीय वर्ष के अन्त में अगले वर्ष के लिए बनाया जाता है तथा इसके द्वारा सरकार अपने आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करती है।

Public Finance Government Budget

बजट के आवश्यक तत्त्व (Essentials of Budget)

बजट में निम्नलिखित तत्त्वों का होना आवश्यक है

1 समयावधि सामान्यतः बजट की अवधि एक साल की होती है।

2.धनराशि बजट का आधार नकद राशि होती है। परी आय तथा व्यय को रूपयों में लिखा तथा प्रयोग किया जाता है। बजट सकल राशि (Gross Income) के आधार पर तैयार किया जाता है।

3.  समग्र रूप-बजट में सभी आर्थिक क्रियाओं को प्रस्तुत किया जाता है जिससे अर्थव्यवस्था की सही जानकारी प्राप्त होती है।

4.  आय-व्यय मदों का वर्गीकरण बजट में आय तथा व्यय की मदों को दो भागों में विभाजित किया जाता है – पूँजी लेखा तथा राजस्व लेखा।

5.  वैज्ञानिक आधारबजट अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण भाग है। अतः इसके निर्माण में अत्यन्त सावधानी की आवश्यकता होती है। बजट का निर्माण निश्चित नियमों अर्थात वैज्ञानिक विधि के अनुसार होना चाहिए।

6. वित्तीय प्रबन्धन बजट में आय तथा व्यय का उल्लेख रहता है तथा इनके लिए अनुमान लगाये जाते हैं। इन अनुमानों का कुशल वित्तीय प्रबन्धन किया जाना चाहिए जिससे अनुमानों तथा वास्तविकता में समानता रहे।

7. व्यय समाप्ति (Lapse) नियम बजट में स्वीकृत राशि का प्रयोग यदि उस वित्तीय वर्ष में नहीं किया जाता है तो सरकार को वह राशि वापस करनी होती है। उस राशि का प्रयोग अगले वर्ष में नहीं किया जा सकता। इसे व्यय समाप्ति का नियम कहते हैं तथा यह बजट के मुख्य आवश्यक तत्त्वों में से एक है।

बजट के दस्तावेज (Document of Budget)—बजट के कुछ महत्त्वपूर्ण दस्तावेज होते हैं जिनका बजट में होना अति आवश्यक है; ये निम्नलिखित हैं

1 वार्षिक वित्तीय कथन यह बजट का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है जिसमें बजटीय वर्ष के लिए अनुमानित आय तथा व्यय की विस्तृत जानकारी होती है।

2.  सम्पूर्ण राजस्व प्राप्तियाँ इस दस्तावेज में सरकार को प्राप्त होने वाली सभी प्राप्तियाँ जिसमें पूँजी प्राप्तियाँ, आन्तरिक तथा बाह्य ऋण शामिल होते हैं।

3. सम्पूर्ण व्यय इस दस्तावेज में पूरे वित्तीय वर्ष में खर्च की जाने वाली राशि का विवरण होता है कि किस विभाग तथा मन्त्रालय को कितनी राशि दी जायेगी आदि।

4. वित्त विधेयक इस दस्तावेज में प्रस्तावित करों का विस्तृत ब्यौरा तथा वित्त विधेयक का विस्तृत विवरण होता है।

5. अनुदानों का विवरण इस दस्तावेज में विभिन्न मन्त्रालयों की निजी माँग के साथ-साथ अनुदान की राशि की माँग का भी विवरण होता है।

6. बजट का सारांश इस दस्तावेज में पूरे बजट को संक्षिप्त रूप में आँकडों और ग्राफों की सहायता से दर्शाया जाता है तथा सम्पूर्ण आगम तथा व्यय का भी संक्षिप्त विवरण होता है।

7. वित्तमन्त्री का भाषणयह सम्पूर्ण बजट प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण भाग है। वित्तमन्त्री के भाषण को दो भागों में बाँटा जा सकता है-पहले भाग में सामान्य आर्थिक परिदृश्य तथा दूसरे भाग में कर प्रस्ताव तथा प्रमुख आर्थिक नवीन प्रस्तावों का ब्यौरा होता है।

बजटक विभिन्न रूप (Various Types of Budget) : बजट के विभिन्न रूपों को मुख्यतः चार भागों में बाँटा जा सकता है ।

Public Finance Government Budget

बजट

1 सामान्य एवं आपातकालीन 2. सन्तुलित 3. पूँजीगत एवं 4. पूरक बजट अधिक्य तथा राजस्व बजट घाटे का बजट

1 सामान्य एवं आपातकालीन बजट (Normal and Emergency Budget)-जो बजट सामान्य परिस्थितियों में वार्षिक आधार पर तैयार किये जाते हैं, उन्हें साधारण बजट कहते हैं तथा जो बजट देश में आपातकालीन परिस्थितियो; जैसे-युद्ध एवं मन्दी में प्रस्तुत किए जाते हैं, उन्हें आपातकालीन बजट कहते हैं।

2.  सन्तुलित, आधिक्य एवं घाटे का बजट (Balanced, Surplus and Deficit | Budget)-सन्तुलित बजट एक आदर्श व्यवस्था होती है। इस धारणा को प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने प्रस्तत किया। इस व्यवस्था में बजट अवधि में सरकारी आय, प्राप्तियाँ और अनुमानित व्यय बराबर होते हैं।

जब सार्वजनिक व्यय की तुलना में राजस्व (आय) अधिक होता है तो उसे आधिक्य का बजट (Surplus Budget) कहते हैं। इस प्रकार के बजट की उपयोगिता मुद्रा-प्रसार की स्थिति में होती है।

घाटे का बजट उस स्थिति में होता है जब सार्वजनिक आय की तुलना में सार्वजनिक व्यय अधिक होता है। वर्तमान में घाटे के बजट की अवधारणा आम बात है, क्योंकि सरकार के बढ़ते हुए कार्यों की वजह से आय की तुलना में व्यय अधिक होते हैं। आर्थिक मन्दी की स्थिति को दूर करने में घाटे का बजट बहुत उपयोगी होता है।

3. पूँजी एवं राजस्व बजट (Capital Budget and Revenue Budget)-सार्वजनिक आय को दो भागों में बाँटा जा सकता है-पूँजीगत बजट एवं राजस्व बजट।

पूँजीगत बजट में केवल पूँजीगत मदों को सम्मिलित किया जाता है। इसमें सार्वजनिक ऋण से प्राप्त आय को लिया जाता है जिसमें आन्तरिक एवं बाह्य ऋण, विदेशी निवेश, विदेशी अनुदान आदि महत्वपूर्ण हैं। इसके व्यय मद में ऋणों के भुगतान व राज्य सरकारों को दिये जाने वाले अग्रिम ऋण. विकास व्यय तथा गैर-विकास व्यय आदि होते हैं।

राजस्व बजट चालू व्यय एवं प्राप्ति का एक सामान्य बजट है। इसके आय पक्ष में कर तथा गैर कर स्रोतों से प्राप्त आय को रखा जाता है तथा इसके व्यय पक्ष में गैर विकास व्यय (प्रशासनिक कार्यों के संचालन हेतु व्यय) एवं विकास व्यय जिसमें सामाजिक सेवाएँ, आर्थिक सेवाएँ, विकास कार्यों हेतु अनुदान आदि पर होने वोले व्यय सम्मिलित होते हैं।

4. पूरक बजट (Supplementary Budget)-कभी-कभी देश में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं कि बजट में स्वीकृत व्यय समय से पहले ही समाप्त हो जाता है। ऐसा प्रायः प्राकृतिक आपदा, युद्ध या किसी अन्य असामान्य परिस्थिति में होता है। ऐसी स्थिति में अतिरिक्त व्यय के लिए पूरक बजट बनाकर संसद से पास करवाना पड़ता है तथा यह बजट भी सामान्य बजट की पूरी प्रक्रिया से गुजरता है।

बजट के उद्देश्य (Objectives of Budget)-बजट में आय एवं व्यय के अनुमान लगाये जाते हैं तथा इनका आधार अतीत के अनुभव तथा भविष्य का विकास होता है। बजट राजकोषीय नीतियों को लाग करने का महत्वपूर्ण साधन है। बजट के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं

1 आय-व्यय का अनुमान लगाना-बजट में सार्वजनिक आय तथा व्यय के अनुमान लगाये जाते हैं तथा आय के नये स्रोतों को खोजा जाता है। बजट का मुख्य उद्देश्य व्यय की मदों के आधार पर आय। के साधनों को खोजना है।

2.  राजकोषीय नीति का कार्यान्वयन-बजट राजकोषीय नीति का एक प्रमुख अस्त्र है।। राजकोषीय नीति के दो प्रधान उपकरण सार्वजनिक आय एवं सार्वजनिक व्यय हैं जिनके माध्यम से रोजगार में वृद्धि तथा मन्दी को दूर किया जा सकता है। बजट में आय एवं व्यय का समायोजन राजकोषीय नीति के अनुसार किया जाता है।

3. लेखा सम्बन्धी उत्तरदायित्व-बजट के मुख्य उद्देश्यों में से एक यह भी है कि सरकार किसी भी प्रकार के व्यय के लिए जनता के समक्ष उत्तरदायी होती है अतः बजट बनाकर संसद में पारित करवाया जाता है तथा व्यय करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि व्यय स्वीकृत राशि से अधिक न हो।

4. आर्थिक नीतियों की जानकारी-बजट का उद्देश्य सरकार के आर्थिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करना होता है। बजट के द्वारा ही सरकार की औद्योगिक तथा व्यावसायिक नीतियों की जानकारी प्राप्त होती है।

5. आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति-आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति का महत्वपूर्ण उपकरण बजट है। अर्थव्यवस्था की गति के अनुसार बजट बनाकर ही आर्थिक स्थायित्व लाया जा सकता है। अतः विकासशील देशों में निवेश का स्तर बढ़ाने तथा मुद्रा स्फीति को दूर करने के उद्देश्य के अनुरूप बजट बनाया जाता है। प्रो० डाल्टन के अनुसार, “बजट को आर्थिक जीवन में स्थायित्व लाने वाले प्रभाव के रूप में समझा जाना चाहिए।”

6. नियोजन सम्बन्धी उद्देश्य-बजट बनाते समय इसमें योजनाओं को सम्मिलित किया जाता है और जो योजनाएँ बनायी जाती हैं वे भी बजट का रूप ले लेती हैं, क्योंकि दोनों को ही आय एवं व्यय का ध्यान रखकर बनाया जाता है।

7. भावी विकास-समस्त आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य भावी विकास पर पर्याप्त ध्यान देना होता है तथा इस प्रकार की योजनाओं का निर्माण करना होता है कि अर्थव्यवस्था उन्नति की ओर बढ़ सके।

Public Finance Government Budget

बजट के सिद्धान्त (Principles of Budget)-बजट का स्वरूप सन्तुलित हो या असन्तुलित ? इस सम्बन्ध में दो मुख्य दृष्टिकोण हैं

(1) प्रतिष्ठित दृष्टिकोण (Classsical View)-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री आय के अनुसार व्यय में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि जिस प्रकार एक व्यक्ति को अपनी आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए उसी प्रकार सरकार को भी अपने व्यय को आय की सीमा के अन्दर ही सीमित रखना चाहिए। एडम स्मिथ के अनुसार, “प्रत्येक सीमित परिवार के आचरण में जो समझदारी है वह एक बड़े राज्य के सम्बन्ध में शायद ही मूर्खता हो सकती है। बजट में घाटे की सम्भवना से बचने के लिए बैस्टेबेल का विचार था कि सरकार को बजट में मामूली अतिरेक (Surplus) का लक्ष्य रखना चाहिए। जे० बी० से असन्तुलित बजट के कट्टर विरोधी थे उनका कहना था कि अपव्ययी सार्वजनिक व्यय के कारण ही बजट में घाटा होता है। लुट्ज़ सन्तुलित बजट को आर्थिक स्थिरता का प्रतीक मानते थे। डाल्टन भी सन्तुलित बजट के पक्षधर थे, किन्तु उनके तर्क सीमान्त सिद्धान्त पर आधारित थे।

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का सन्तुलित बजट सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित है और घाटे की स्थिति में सार्वजनिक ऋण से धन की व्यवस्था होती है। यहाँ लोक ऋण का अर्थ साधनों को निजी रोजगार से हटाकर सार्वजनिक क्षेत्र में लगाना है, क्योंकि सभी प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री इस बात में विश्वास रखते थे कि सार्वजनिक उपयोग की तुलना में निजी क्षेत्र में साधनों का अधिक उत्पादक उपयोग होता है।

सन्तुलित बजट के अर्थ के सम्बन्ध में दो विचारधाराएँ हैं। प्रथम विचारधारा के अनुसार सन्तुलित बजट वह है जिसमें आय एवं व्यय बराबर होते हैं तथा इसमें फण्डेड ऋण (वह ऋण जिसे एक वर्ष के अन्दर ही वापस कर दिया जाता है।) की आवश्यकता नहीं होती। दूसरी विचारधारा के अनुसार सन्तुलित बजट में चालू व्यय की वित्त व्यवस्था चालू राजस्व (कर राजस्व + गैर कर राजस्व) के द्वारा की जाती है तथा पूँजी व्यय के लिए उधार लिया जाता है जिससे बजट सन्तुलन में रहता है तथा संकटकालीन परिस्थिति जैसे युद्ध एवं अकाल में लोक ऋण लिये जा सकते हैं।

(2) आधुनिक धारणा (Modern View)-आधुनिक अर्थशास्त्रियों केन्स, हैन्सन, बेवरीज आदि के अनुसार बजट नीति का उद्देश्य पूर्ण रोजगार की प्राप्ति होना चाहिए, क्योंकि इस समय अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्या बेरोजगारी की है।

केन्सियन व्यवस्था में बचत की धारणा प्रतिष्ठित व्यवस्था से भिन्न है। इसमें न तो निजी क्षेत्र वे द्वारा स्वतः पूर्ण रोजगार की स्थापना होती है और न ही बचत स्वतः आयोजित विनियोग के समान हो. जाती है। इसलिए बजट में घाटा बेरोजगारी को समाप्त करने के लिए जरूरी है। बजट घाटा समग्र आय: में वृद्धि करने का मुख्य यन्त्र है जिससे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को अधिक व्यय करने के लिए प्रेरण मिल सके।

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कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग

(Programming and Performance Budgeting)

किसी भी सरकार के पास असीमित मात्रा में वित्तीय संसाधन उपलब्ध नहीं होते। अन्य आर्थिव – इकाइयों की भाँति सरकार के पास भी आवश्यकताओं की तुलना में साधनों की कमी रहती है। अत: सार्वजनिक हित में आवश्यक है कि इनका उपयोग मितव्ययिता एवं कुशलतापूर्वक किया जाये। इ’ उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, सरकार द्वारा वैकल्पिक मदों पर व्यय करते समय लागत-लाभ विश्लेषप। के द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि चयनित परियोजनाओं के वास्तविक लाभ प्रत्याशिलाभ से कम न हों। इस कसौटी के प्रयोग का मुख्य कारण यह है कि लोक व्यय के अपेक्षित ए वास्तविक निष्पादन में कुछ न कुछ असमानता सदैव बनी रहती है।

उपर्युक्त कसौटी के प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि विचाराधीन परियोजना के कार्यान्वयन के समय सारणी और उससे सम्बन्धित प्रत्येक कारण में अपेक्षित व्यय तथा अपेक्षित प्राप्तियों की संरचन (Structure) को पहले से ही निर्धारित कर लिया जाए। बजट के इस भाग को कार्यक्रम बजटिंग कहते हैं। इसका उद्देश्य निष्पादन को ईष्टतम बनाना और अपव्यय को नियन्त्रित करना है।

निष्पादन बजट (Performance Budgeting) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1949 के हूवर आयो  (Hoover Commission) ने किया था और सुझाव दिया था कि बजट पद्धति कार्यों, कार्यक्रमों और क्रियाओं पर आधारित होनी चाहिए इस पद्धति की दो प्रमुख बातें थीं

(अ) व्यय बजट को मदों के बजाय कार्यों पर आधारित किया जाए

(ब) कार्यों के कुशल निष्पादन के लिए कार्य-लागत की माप की जाए।

संक्षेप में, निष्पादन बजटिंग सरकारी बजट तैयार करने की वह विधि है जिसमें बजट सम्मिलित होने वाली प्रत्येक मद किसी आर्थिक क्रिया को व्यक्त करती है। यह कार्यों, उद्देश्यों और कार्यकलापों के रूप में वर्गीकरण करने की एक प्रणाली है। इसका उद्देश्य बजट में नियोजन, वित्तीय आय औं उसके भौतिक परिणाम की प्राप्ति के बीच समन्वय बनाये रखना है।

Public Finance Government Budget

परिभाषाएँ (Definitions)

(i) अमेरिका के एक बजट प्रतिवेदन के अनुसार, “निष्पादन बजट वह है जो सरकार के उन उद्देश्यों, जिनके लिए कोषों की माँग की जाती है को पूरा करने की प्रस्तावित लागत और प्रत्येव परियोजना के अन्तर्गत पूरे किये जाने वाले कार्य का मूल्यांकन करने सम्बन्धी परिमाणात्मक आँकर का वर्णन प्रस्तुत करता है।

(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ नियमावली के अनुसार, “यह बजट प्रकिया के प्रबन्ध सम्बन्धी बातों बल देता है तथा ऐसा करते समय यह बजट के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आर्थिक, वित्तीय तथा भौतिक पहलूओं पर प्रकाश डालता है।

(iii) एम० जे० के० थावराज के अनुसार, “सार रूप में कार्यक्रम बजटिंग दीर्घकालीन उद्देश्यों कपकाश में सम्पूर्ण कार्यक्रम प्रबन्ध की आवश्यकता पर बल देता है। दूसरी ओर निष्पादन बजटिंग हो का मल तत्त्व हैकिसी वर्ष सम्पादित कार्य की मात्रा तथा इसकी लागत के आधार पर आन्तरिक व प्रबन्ध में सुधार।

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निष्पादन एवं कार्यक्रम बजट निर्माण में अन्तर

(Distinguish between Performance and Programme Budgeting)

प्रो० जे० बुर्खहैड ने कार्यक्रम एवं निष्पादन की दोनों प्रणालियों में भेद करने का प्रयास किया – है-“निष्पादन बजट निर्माण की कोई संक्षिप्त परिभाषा नहीं है, प्रत्येक क्षेत्र जो इसका कार्यान्वयन क करता है, उसके लिए इसका अर्थ अलग ही होता है। विशेष रूप में कार्यक्रम बजट और निष्पादन बजट तः निर्माण की समानार्थक शब्द बनाने की प्रवृत्ति है जिससे बहुत-सी पारिभाषिक अस्पष्टता उत्पन्न हुई है। कार्यक्रम और निष्पादन को उनके समय आयामों के अनुसार भिन्न किया जा सकता है। बजट निर्माण कार्यक्रमों की प्रवृत्ति दूरदर्शी है जो एक सरकार की सामाजिक एवं आर्थिक नीतियों का प्रक्षेपण होता है। निष्पादन आवश्यक रूप में भूतकाल पर अथवा पूर्व निष्पत्ति पर आधारित होता है।”3| प संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यक्रम एवं निष्पादन बजट निर्माण सम्बन्धी नियम पुस्तिका में दोनों के

मध्य निन्न अन्तर किया है-“कार्यक्रम बजट निर्माण में मुख्य बल बजट वर्गीकरण पर दिया गया है * जिसमें कार्य, कार्यक्रम तथा उनके उपविभाजन प्रत्येक एजेन्सी के लिए स्थापित किये गये हैं तथा यह शुद्ध एवं अर्थपूर्ण वित्तीय आँकड़ों से सम्बन्धित किये गये हैं। निष्पादन बजट निर्माण अधिक परिष्कृत प्रबन्धन उपकरणों के विकास को अलिप्त करता है; जैसे-इकाई लागते, कार्य माप और निष्पादन मापक।”

मान्यताएँ (Assumptions)-कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग प्रणाली निम्न मान्यताओं पर र आधारित हैं

1 बजट के उद्देश्यों तथा उनकी अभिव्यक्ति स्पष्ट है तथा इस सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी उपलब्ध

2. साधनों की उपलब्धता तथा उपयोग के बारे में पूर्ण जानकारी है।

3. वर्तमान कार्यक्रमों के निष्पादन का मूल्याँकन सम्भव है।

4. उद्देश्यों को प्राप्त करने के वैकल्पिक तरीके उपलब्ध हैं तथा उनका विश्लेषण करना सम्भव है।

5. भावी परियोजनाओं का निर्माण किया जाता है और उनमें आवश्यकता के अनुरूप परिवर्तन करना सम्भव है।

6. निर्णय क्रम-बद्ध ढंग से लिये जा सकते हैं।

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कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग की अवस्थाएँ

(Stages of Programme and Performance Budgeting)

कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग की निम्न पाँच अवस्थाएँ हैं

1 राजकोषीय उपायों एवं नीतियों के विभिन्न लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की स्पष्ट अभिव्यक्ति।

2. उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी वैकल्पिक कार्यक्रमों की पहचान।

3. विभिन्न परियोजनाओं, कार्यक्रमों तथा योजनाओं का लागत तकनीक अथवा प्रणाली विश्लेषण द्वारा मात्रात्मक रूप में विश्लेषण।

4. विभिन्न संगठनों/विभागों की सहायता से बजट का प्रभावी क्रियान्वयन।

5. उद्देश्यों के अनुरूप कार्यक्रमों का मूल्याँकन

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कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग के गुण/सीमाएँ

(Merits/Limitations of Programme and Performance Budgeting)

गुण (Merits)-

कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं

1.इस प्रणाली के माध्यम से वित्तीय व्यय तथा उन व्ययों से उत्पन्न भौतिक परिणामों की प्राप्ति के मध्य निकट का सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। अतः सार्वजनिक व्यय पर नियन्त्रण करना सरल हो जाता है।

2. इसकी सहायता से यह जाना जा सकता है कि जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए धन व्यय किया गया है, उन उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सका है अथवा नहीं।

3.  लागत-लाभ विश्लेषण की सहायता से कोषों के वितरण के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना सरल है।

4. यह देश तथा प्रान्त की कार्यकारिणी एवं विधान मण्डल को वैज्ञानिक मार्गदर्शन उपलब्ध करवाने का प्रयास करता है।

5. यह लेखा परीक्षण के कार्य को अधिक उपयोगी बनाता है।

सीमाएँ (Limitations)-

कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग की प्रमख सीमाएँ निम्नलिखित हैं

1 यह मूल्य निर्णयों के उद्देश्यों एवं प्राथमिकताओं को परिभाषित करने में असमर्थ है।

2. यह बजटीय तकनीकों में नव-प्रर्वतकों को पर्याप्त क्षेत्र उपलब्ध नहीं करवाता।

3. इसके निर्णय राजनीतिक कुशलता की अपेक्षा आर्थिक कुशलता पर आधारित होते हैं, जबकि मात्रात्मक अनुमान के लिए राजनीतिक विचारों को जानना आवश्यक होता है।

4.अनेक मदों जैसे-कानून व व्यवस्था, विदेशी सम्बन्ध आदि में निष्पादन की माप असम्भव है।

5. वैकल्पिक तरीके अत्यधिक व्यापक हो सकते हैं जिन पर निर्णय लेना कठिन है।

6. यह विभिन्न योजनाओं की वास्तविक लागतों और लाभों को मापने के लिये सही सूच उपलब्ध नहीं करवाता।

संक्षेप में, कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग प्रणाली के अपने दोष हैं, मुख्य रूप से यह प्रणाली सभी राजनीतिक समस्याओं के लिए सही समाधान उपलब्ध करवाने में असफल है।

शन्य आधारित बजट व्यवस्था

(Zero Based Budgeting)

शन्य आधारित बजट व्यवस्था इस मान्यता पर आधारित है कि कोई भी व्यय मद (Item of  Expenditure) आवश्यक (अनिवार्य) नहीं होती। शून्य आधारित बजट का निर्माण करते समय व्यय के वर्तमान स्तर को आधार न मानकर शून्य को आधार माना जाता है और इस आधार पर वित्त मन्त्री अपनी बजट की माँगों को प्रस्तुत करता है। इस प्रकार यह मान लिया जाता है कि गत वर्ष बजट शुन्य था। अतः विभिन्न मदों में चालू वर्ष में व्यय राशि का निर्धारण किया जाता हैं। संक्षेप में यह व्यवस्था कार्यक्रम प्रेरित व निर्णय प्रेरित है।

परिभाषाएँ

(Definitions)

शून्य आधारित बजटिंग की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(i) पीटर पायेरर के अनुसार, “शून्य आधारित बजटिंग एक संचालित नियोजन एवं बजटिंग प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक प्रबन्धक (वित्तमन्त्री) को अपने सम्पूर्ण बजट प्रस्तावों का औचित्य शून्य से बताना होता है और प्रत्येक प्रबन्धक (वित्तमन्त्री) पर साक्ष्य का भार डाल दिया जाता है। ये पैकेज विभाग/देश/क्षेत्र की विद्यमान या प्रस्तावित क्रियाओं को पूर्ण करते हैं।”

(ii) जिमी कार्टर के अनुसार, “शून्य आधारित बजटिंग में बजट को इकाइयों में रखा जाता है जिसे निर्णय पैकेजकहा जाता है जो प्रत्येक स्तर के प्रबन्धक द्वारा तैयार किये जाते हैं। यह पैकेज विभाग की वर्तमान या प्रस्तावित क्रियाओं को पूर्ण करते हैं।”

शून्य आधारित बजटिंग में समस्त प्रस्तावित मदों में से केवल उसको चुना जाता है जिन्हें लागत-लाभ विश्लेषण के आधार पर उचित ठहराया गया हो तथा इसी विश्लेषण के आधार पर प्रत्येक चयनित मद की व्यय सीमा निर्धारित की जाती है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक साधनों के अपव्यय को पूरी तरह समाप्त कर देना है। यह पद्धति लेखा-निरीक्षण से इस बात में भिन्न है कि लेखा-निरीक्षण में व्ययों की जाँच व्ययोपरान्त की जाती है, जबकि शून्य आधारित बजटिंग व्यवस्था में व्यय से पूर्व ही मदों के चुनाव और उनकी व्यय सीमाएँ निर्धारण करने की प्रक्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं।

इस विधि में प्रत्येक मद को नई मद मानते हुए उसका नये सिरे से मूल्याँकन किया जाता है। यह प्रणाली अत्यधिक व्यवहारिक, औचित्यपूर्ण तथा परिणामोन्मुखी है, क्योंकि यह व्यय किये जाने वाले प्रत्येक मद के औचित्य पर बल देती है तथा किसी भी क्रिया के लिए कोई आधार या न्यूनतम व्यय स्वीकार नहीं करती। इस प्रणाली के अन्तर्गत योजनाओं, कार्यक्रमों तथा क्रियाकलापों को तीव्र गति से लागू करने, परिणामों का प्रभावी ढंग से मूल्यांकन करने तथा सभी मानवीय कौशल तथा अन्तवैयक्तिक सम्बन्धों को विकसित करने पर बल दिया जाता है।

सर्वप्रथम 1924 में हिल्टन यंग ने अपने लेख में ‘शून्य आधारित बजट’ का उल्लेख किया था। 1902 में अमेरिकी कृषि विभाग ने इस पद्धति को अपनाया। 1977 में जिमी कार्टर ने इसे संशोधित रूप में अपनी संघीय सरकार में अपनाया। 1985-86 में भारत सरकार ने इसे सैद्धान्तिक रूप से स्वीकार कर लिया।

शून्य आधारित बजट की विशेषताएँ

(Characteristics of Zero Base Budgeting)

शून्य आधारित बजट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1 साधनों के विभिन्न मदों पर आबंटन तथा निष्पादन के विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रमों की जाँच की जाती है।

2. प्रत्येक विभाग के लिए उद्देश्यों/लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है।

3. प्रत्येक विभाग की क्रियाओं के निर्णय पैकेज के रूप में रूपान्तरित किये जाते हैं।

4. निर्णय पैकेज का मूल्याँकन किया जाता है।

शून्य आधारित बजट की पूर्व शर्ते

(Pre-conditions of Zero Base Budgeting)

शून्य आधारित बजट व्यवस्था की सफलता के लिए निम्न शर्तों का पूरा होना आवश्यक है

1 सम्बन्धित विभाग कागजी कार्यवाही व उसकी विस्तृत व्याख्या करनें में सक्षम हो ।

2. सभी सम्बद्ध अपेक्षित सूचनाएँ उपलब्ध हों।

3. सूचनाओं में लागत समंक सम्मिलित हों।

4. कार्यों में प्राथमिकता क्रम का निर्धारण ठीक प्रकार से हो।।

शून्य आधारित बजट प्रक्रिया के चरण/अवस्थाएँ

(Steps/Stages in Zero Based Budgeting Process)

शून्य आधारित बजट व्यवस्था एक दृष्टिकोण है जिसे प्रत्येक विभाग की आवश्यकताओं के अनुकूल ढालना आवश्यक होता है। इस प्रक्रिया के प्रमुख चरण/अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं

1 उद्देश्यों/लक्ष्यों का निर्धारण एवं मूल्यांकन करना।

2. निर्णय करने वाली इकाइयों की पहचान करना।

3. निर्णय समूह में शामिल प्रत्येक इकाई का विश्लेषण करना।

4. संगठन की विभिन्न क्रियाओं का व्यापक विश्लेषण करना।

5. सभी निर्णयन समूहों का मुल्याँकन एवं श्रेणीकरण करना।

6. विस्तृत परिचालन बजट तैयार करना जिसमें वह निर्णय समूह प्रतिबिम्बित हो जिसको बजट व्यय में स्वीकृति दी गई है।

7. आवश्यक आदाओं के क्रय के लिए उच्चाधिकारी को प्रस्ताव भेजे जाते हैं।

8. प्रस्तावों को अन्तिम रूप दिया जाता है।

शून्य आधारित बजट के सिद्धान्त

(Principles of Zero Based Budgeting)

शुन्य आधारित बजट के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

1 क्या हमें खर्च करना चाहिए ? (Should we Spend)-इस व्यवस्था में किसी विभाग को किसी मद पर कुछ भी व्यय प्रस्तावित करने से पूर्व शून्य आधार से इच्छित व्यय के स्तर के औचित्य को सिद्ध करना आवश्यक होता है। इसके समर्थन में जो लिखित विश्लेषणपरक प्रलेख प्रस्तुत किया जाता है, उसे निर्णय पैकेज कहा जाता है।

2. हमें कितना खर्च करना चाहिए ? (How much to Spend ?)-इस प्रश्न का उत्तर प्रत्येक विभाग को लागत-लाभ विश्लेषण (Cost Benefit Analysis) के आधार पर देना होता है। इस सम्बन्ध में, लागत लाभ विश्लेषण के आधार पर ही प्रत्येक विभाग की जवाबदेही तय होती है। इसका उद्देश्य किसी भी मद पर अनावश्यक व्यय को रोकना है।

3.हमें कहाँ व्यय करना चाहिए ? (Where should we Spend)-सेवाएँ प्रतियोगी होती हैं। शून्य आधारित बजट प्रणाली में हमें प्रतियोगी सेवाओं के बीच प्राथमिकताएँ निर्धारित करनी होती हैं। प्राथमिकता क्रम का निर्धारण सेवाओं के महत्त्व की दृष्टि से किया जाता है।

शुन्य आधारित बजट के लाभ

(Benefits of Zero Based Budgeting)

शून्य आधारित बजट के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

1 यह वास्तविकता के अधिक निकट है, क्योंकि इसमें प्राथमिकताओं, उद्देश्यों व लक्ष्यों का व्यापक अध्ययन करने के पश्चात् ही लागत तत्त्वों का अधिक अच्छे ढंग से विश्लेषण किया जा सकता है।

2. अलाभकारी व्ययों को शून्य आधारित बजट के माध्यम से कम अथवा समाप्त किया जा सकता

3. लागते का सही आँकलन सम्भव है।

4. निम्न प्राथमिकता वाले कार्यक्रमों को कम किया/हटाया जा सकता है।

5. अधिकारियों द्वारा प्रबन्ध प्रक्रिया में भाग लेने के कारण सम्प्रेषण (Communication) सरल हो जाता है।

6. एक ही उपक्रम के अन्तर्गत संसाधनों के आबंटन में बदलाव लाकर उच्च प्रभाव वाले कार्यक्रमों के लिए अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराये जा सकते हैं।

7. विभिन्न मदों में सार्वजनिक व्यय के लाभों को अनुकूलतम बनाया जा सकता है।

8. सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की क्रियात्मक कार्यक्षमता (Operational Efficiency) में वृद्धि की जा सकती है।

शून्य आधारित बजट की सीमाएँ/अवगुण

(Limitations/Demerits of Zero Based Budgeting)

1 शून्य आधारित बजट पद्धति लागत-लाभ विश्लेषण पर आधारित है जिसे सार्वजनिक सेवाओं (Public utility services) पर लागू नहीं किया जा सकता।

2. थोड़ी सी भी असावधानी होने पर इस बजटिंग का क्रियान्वयन कठिन हो जाता है।

3. कार्यों का विश्लेषण एवं मूल्याँकन करने में काफी अधिक समय लग जाता है।

4. यह पद्धति आयगत प्राप्तियों (Revenue receipts) की मदों के मूल्याँकन में अधिक उपयोगी नहीं है।

5. समय-समय पर इस पद्धति में सुधार करना आवश्यक होता है।

6. इस पद्धति को राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राज्य सभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायधीशों पर लागू नहीं किया जा सकता। नौकरशाही (Bureaucracy) भी इसका विरोध करती है।

भारत में शून्य आधारित बजट प्रणाली

(Zero Based Budget System in India)

भारत में शून्य आधारित बजट प्रक्रिया का प्रारम्भ सार्वजनिक क्षेत्र के एक प्रमुख शोध संस्थान ‘Council of Scientific and Industrial Research’ द्वारा किया गया। केन्द्र सरकार के सभी मन्त्रालयों तथा विभागों में लागू करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा इसे बजट वर्ष 1987-88 से लागू करने का निर्णय लिया गया। अपने व्ययों को कम करने के लिए महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश तथा अन्य अनेक राज्यों ने इस पद्धति को 1987-88 से ही लागू करने का फैसला किया। मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकारों ने इस प्रणाली को 1995-96 से अपने सभी विभागों में सख्ती से अपनाया। सन् 2000-01 के बजट में यशवन्त राय सिन्हा ने शून्य आधारित बजट प्रणाली के प्रयोग का संकेत दिया। इसका उद्देश्य अनुपयोगी योजनाओं को समाप्त करना था।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. बजट को परिभाषित कीजिये तथा इसके आवश्यक तत्व बताइये। बजट के प्रमुख उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।

Define budget and its essential. Discuss the main objectives of budget.

प्रश्न 2. बजट से आप क्या समझते हैं ? कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग (PBB) को स्पष्ट कीजिये।

What do you understand by budget ?

Explain programming and performance budgeting.

प्रश्न 3. बजट को परिभाषित कीजिये तथा शून्य आधारित बजट व्यवस्था (ZBB) को विस्तार से समझाइये।

Define budget. Explain clearly Zero Based Budgeting.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. बजट के प्रमुख दस्तावेजों को बताइये। State the main documents of budget.

प्रश्न 2. बजट के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिये। Describe the various types of budget.

प्रश्न 3. बजट के सम्बन्ध में प्रतिष्ठित तथा आधुनिक दृष्टिकोण क्या है ?

Explain the classical view and modern view regarding budget.

प्रश्न 4. निष्पादन बजट से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by performance budget ?

प्रश्न 5. निष्पादन बजट के गुण एवं दोष बताइये।

Discuss the merits and demerits of the performance budget.

प्रश्न 6. शून्य आधारित बजट से क्या आशय है ?

What is meant by Zero Based Budgeting (ZBB) ?

chetansati

Admin

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