BCom 2nd Year Public Finance Taxable Capacity Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Public Finance Taxable Capacity Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Public Finance Taxable Capacity Study Material Notes in Hindi: Meaning and Definitions of Taxable Capacity Absolute and Relative Taxable Capacity Determinate of Taxation Capacity Importance of Concept of Taxable Capacity in India Methods of Estimating Taxable Capacity Important Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

 Taxable Capacity Study Material
Taxable Capacity Study Material

BCom 2nd Year Public Finance Effects Taxation Study material Notes in Hindi

करदान क्षमता (Taxable Capacity)

आधनिक यग में सामान्यतः सरकारों का रूप लोक-कल्याणकारी होता जा रहा है जिसके कारण सरकारों द्वारा किये जाने वाले कार्यों में भी वृद्धि होती जा रही है। सार्वजनिक कार्यों को करने के लिये। धन की आवश्यकता होती है तथा धन इकठ्ठा करने के लिये ‘कर’ एक महत्त्वपूर्ण साधन है। कर वे सम्बन्ध में सरकार को दो बातों पर विचार करना पड़ता है

(1) विभिन्न सार्वजनिक कार्यों को करने के लिये कितना कर लगाया जाये।

(2) जनता कितना ‘कर’ दे सकती है ? अत्यधिक करों के लगाने से कार्य-कुशलता तथा उत्पादन पर प्रतिकूल (बुरा) प्रभाव पड़ता है जिससे सरकार की आय भी कम हो जाती है। अतः कर लगाते समय सरकार को समाज की कर देने की क्षमता को ध्यान में रखना आवश्यक है।

Public Finance Taxable Capacity

करदान (कर देय) क्षमता का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definitions of Taxable Capacity)

करदान क्षमता, करारोपण की वह अधिकतम सीमा है। जिससे अधिक कर लगाने से कार्यक्षमता तथा उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। करदान क्षमता की भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं, मुख्य परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

सर जोशिया स्टाम्प (Sir Josian Stamp) के अनुसार, “एक देश की करदान क्षमता वह अधिकतम राशि है जो उस देश के नागरिक वास्तव में बिना दुःखी और कष्टपूर्ण जीवन बिताये और आर्थिक व्यवस्था को बहुत अधिक अस्त-व्यस्त किये बिना सरकार के व्यय हेतु भुगतान कर सकते हैं।”

प्रो० फिण्डले शिराज के अनुसार, “करदान क्षमता को उस अधिकतम राशि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसे किसी देश के नागरिक बिना असह्य कष्ट के सरकार के व्यय हेतु योगदान कर सकते हैं।”

भारतीय करारोपण जाँच आयोग के अनुसार, “आर्थिक महत्त्व की दृष्टि से समाज के विभिन्। वर्गों की करदान क्षमता से अभिप्राय करारोपण की उस मात्रा से है, जिसके बाद उत्पादन कुशलता और प्रयास शिथिल होने लगते हैं।”

एलिन्जर के अनुसार, “जब करदाताओं की जेबों से इतनी राशि निकाल ली जाती है जिसर। उत्पादन के लिये प्रोत्साहन कम हो जाता है तथा व्यर्थता को पूरा करने और बढ़ती हुई जनसंख्या में नये। श्रमिकों को काम पर लगाने के लिये आवश्यक पूँजी उपलब्ध करवाने के लिये अपर्याप्त धन बचता है, तब करदान क्षमता अपनी सीमाओं पर पहुँच जाती है।”

आर० एन० भार्गवा के अनुसार, “करारोपण की सीमा तथा व्यय की सीमा सार्वजनिक वित्त के सिद्धान्त से व्यक्त होती है तथा इसे सार्वजनिक वित्त का आदर्श कहा जाना चाहिये।”

उपर्युक्त दी गई परिभाषाओं में से कोई भी परिभाषा पूर्ण नहीं है तथा ये करदान क्षमता को कुछ भा व्यवहारिक अर्थ नहीं दे पातीं।

सर जोशिया स्टाम्प की परिभाषा में प्रयुक्त शब्द ‘बिना दखी और कष्टपूर्ण जीवन बिताये’ अथवा ‘आर्थिक संगठन को अस्त-व्यस्त किये बिना’ बहत ही अस्पष्ट हैं। इसी प्रकार प्रो० शिराज की परिभाषा भी स्पष्ट नहीं है, क्योंकि इसमें प्रयुक्त शब्द ‘बिना असह्य कष्ट के’ भी अस्पष्ट है।

वास्तव में जब तक हम सार्वजनिक व्यय पर भी विचार नहीं करते करदान क्षमता के अर्थ को स्पष्ट नहीं किया जा सकता। यदि करों से प्राप्त आय को देश में लोगों की उत्पादन शक्ति बढ़ाने के लिये व्यय किया जाता है तो करों में भी लगातार वृद्धि की जा सकती है। इसे दृष्टि में रखते हुए डॉ० भार्गव की पारभाषा सहा जान पड़ती है. क्योंकि उन्होंने करदान क्षमता पर विचार करते समय सार्वजनिक व्यय पर विचार किया है, किन्तु इस परिभाषा में भी हम करदान क्षमता की माप नहीं कर सकते।

उपर्युक्त कठिनाइयों को दृष्टि में रखते हए. कछ अर्थशास्त्रियों ने करदान क्षमता की धारणा की ही। आलोचना की है। डाल्टन के अनुसार, “ऐसी किसी मात्रा को निश्चित करना बिल्कुल असम्भव है जो किसी निश्चित समय पर किसी समुदाय की करदान क्षमता की सीमाओं का प्रतिनिधित्व कर सके।एक राष्ट्र की करदान क्षमता का पता कैसे लगाया जा सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रो० एडबिन केनन अनुसार, “किसी भी तरह नहीं।” किन्तु यह मत सही नहीं है, क्योंकि करदान क्षमता की धारणा का व्यावहारिक महत्व है, भले ही इसका माप कठिन है।

संक्षेप में, करदान-क्षमता किसी देश के लोगों की कर देने की वह मात्रा है जिसे सरकार अपनी आय के साधन के रूप में देश में उत्पादन, आर्थिक स्थायित्व और विकास की वांछित गति में अवरोध डाले बिना प्राप्त कर सकती है।

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निरपेक्ष तथा सापेक्ष करदान क्षमता

(Absolute and Relative Taxable Capacity)

निरपेक्ष करदान क्षमता (Absolute Taxable Capacity)-निरपेक्ष करदान क्षमता, जिसे पूर्ण करदान क्षमता भी कहते हैं, से यह अभिप्राय है कि कुल मिलाकर कोई समाज अथवा राष्ट्र, उत्पादन तथा कार्यकुशलता पर बिना कोई अरुचिकर प्रभाव उत्पन्न किये हुए, किस सीमा तक कर के रूप में अंशदान दे सकता है। प्रो० फिण्डले शिराज के अनुसार, “जब किसी देश के राजकोषीय ढाँचे की जाँच इस दृष्टिकोण से की जाती है कि वह देश कर के भार स्वरूप कितना बोझ उठा सकता है यह माप उस देश की निरपेक्ष करदान क्षमता का है। निरपेक्ष करदान क्षमता की धारणा को अस्पष्ट मानते हुए बहुत से अर्थशास्त्री निरपेक्ष करदान क्षमता पर विचार करने को मना करते हैं।”

डाल्टन के अनुसार, “निरपेक्ष करदान क्षमता एक कल्पना है, इससे भयानक भूल होने की सम्भावना है। स्पष्ट विचार करने के हित में अच्छा होगा यदि ‘करदान क्षमता’ को लोकवित्त के गम्भीर वाद-विवाद से निकाल दिया जाये।”

प्रो० जे० के० मेहता ने निरपेक्ष करदेय-क्षमता को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “किसी देश की निरपेक्ष करदेय-क्षमता को द्रव्य की उस अधिकतम मात्रा से मापना सम्भव है जो करों द्वारा जनता से वसूल की जाती है। यदि किसी समय विशेष पर गणना करनी हो तो निरपेक्ष करदेय-क्षमता का माप मुद्रा की वह अधिकतम मात्रा होगी जो करों द्वारा उस समयावधि में जनता से प्राप्त की जा सकती है। निरपेक्ष करदान-क्षमता का माप वह अधिकतम मात्रा होगी जिसे भावी लोक-आय के अधिक हित का ध्यान रखते हुए करों द्वारा उपलब्ध किया जा सकता है।”

सापेक्ष करदान क्षमता (Relative Taxable Capacity)-सापेक्ष करदान क्षमता का अर्थ समाज के दो विभिन्न वर्गों या क्षेत्रों की तुलनात्मक कर देय क्षमता से है। सरल शब्दों में, सापेक्ष करदान क्षमता यह स्पष्ट करती है कि दो या अधिक समुदायों (वर्गों) से कर अंशदान किस अनुपात में प्राप्त किया जाये।

प्रो० शिराज के अनुसार, “सापेक्ष करदेय-क्षमता यह स्पष्ट करती है कि एक राज्य दूसरे राज्य की तुलना में सामूहिक कार्यों के लिये कितना योगदान दे, अथवा कर-भार का वितरण एक संघ के अन्तर्गत विभिन्न राज्यों अथवा प्रान्तों के मध्य किस प्रकार से किया जाये।” डॉ० डाल्टन ने निरपेक्ष करदान-क्षमता की अपेक्षा सापेक्ष करदान-क्षमता को अधिक व्यावहारिक बताया था। उनके अनुसार “यदि दो देशों को सामान्य व्यय में अपना अंशदान देना हो, तो वे अपनी सापेक्ष करदेय-क्षमता की तुलना में ही अंशदान देंगे।” डाल्टन ने यह भी कहा है कि “यदि सामान्य व्यय में वृद्धि हो जाये तो द्वारा दिये जाने वाले अंशदान में भी वृद्धि होनी चाहिए और निर्धनों का अंशदान कम होना बारसामान्य व्यय में कमी होने पर इसमें भी कमी होनी चाहिए।”

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प्रो० मेहता ने सापेक्ष करदान-क्षमता के बारे में लिखा है कि “सापेक्ष करदान-क्षमता उस मावातय करती है जो एक राज्य को दूसरे राज्य की तुलना में कोई सामूहिक कर देने के लिये देनी चार और यह इस बात को तय कर देती है कि संघीय शासन के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न प्रान्तों में कर लिपोत के लाभ को किस प्रकार बाँटा जाये। सापेक्ष करदान-क्षमता की जानकारी प्राप्त करके ही एक सफल वित्त-मन्त्री यह निश्चित करता है कि किस कर को किस प्रकार लगाया जाये कि भिन्न-भिन्न राज्यों अथवा प्रान्तों के मध्य उचित भार का वितरण हो सके।”

दोनों विचारधाराओं में कौन-सी श्रेष्ठ है ?-प्रायः यह प्रश्न किया जाता है कि सापेक्ष और निरपेक्ष करदान-क्षमता में से कौन श्रेष्ठ है ? फिण्डले शिराज का कहना है कि निरपेक्ष करदान-क्षमता का महत्त्व अधिक है। अतः हमें अपना ध्यान निरपेक्ष करदान-क्षमता के अध्ययन पर केन्द्रित करना चाहिये। दूसरी ओर डॉल्टन का मत है कि सापेक्ष करदान क्षमता अधिक उपयुक्त है, क्योंकि निरपेक्ष करदान-क्षमता की माप करना कठिन है। उनके अनुसार, “सापेक्ष करदान-क्षमता एक वास्तविकता है जिसे अच्छी तरह से व्यक्त किया जा सकता है, किन्तु निरपेक्ष करदान-क्षमता एक कोरा भ्रम है जिसके कारण त्रुटियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।” वास्तव में देखा जाये तो करदान-क्षमता का विचार ही भ्रम को पैदा करने वाला है। इस सन्दर्भ में जितनी भी परिभाषाएँ दी गयी हैं उनमें परस्पर मतभेद हैं । अतः अर्थशास्त्रियों का मत है कि राज्स्व के अध्ययन में से करदान-क्षमता के विचार को निकाल देना चाहिये।

डॉ० डाल्टन अनुसार, “विचारों की अस्पष्टता को बनाये रखने के बजाय यह अच्छा होगा कि करदान-क्षमता के वाक्य को लोकवित्त के गम्भीर वाद-विवाद से बाहर निकाल देना चाहिए।” प्रो० एडास्कर ने करदान-क्षमता के स्थान पर लोकवित्त की सर्वोत्तम सीमा के विचार को प्रयुक्त करने का सुझाव दिया है। इस सर्वोत्तम सीमा के बारे में डॉ० भार्गव के अनुसार “जिस बिन्दु पर सार्वजनिक व्यय की सीमान्त उपयोगिता करारोपण के सीमान्त त्याग के बराबर हो जाये, वही करदान-क्षमता की सीमा मानी जायेगी।”

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करदान क्षमता को प्रभावित करने वाले घटक (निर्धारक तत्त्व)

(Determinants of Taxable Capacity)

यद्यपि करदान क्षमता का माप करने में कठिनाई होती है, फिर भी किसी देश की सरकार के लिये यह जानना आवश्यक है कि करदान क्षमता पर किन बातों का प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः करदान क्षमता पर विभिन्न घटकों का प्रभाव पड़ता है, जो निम्न प्रकार हैं

(1) देश की राष्ट्रीय आय एवं जनसंख्या का अनुपात-करदान क्षमता पर इस बात का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है कि राष्ट्रीय आय और जनसंख्या का क्या अनुपात है। यदि राष्ट्रीय आय स्थिर रहती है। तथा जनसंख्या में वृद्धि होती है तो करदान क्षमता घट जाती है। इसके विपरीत यदि जनसंख्या स्थिर रहती है और राष्ट्रीय आय बढ़ती है तो देश की करदान क्षमता बढ़ती है। यदि देश में राष्ट्रीय आय और जनसंख्या की वृद्धि की दर समान रहती है तो करदान क्षमता स्थिर रहती है।

(2) देश की सम्पत्ति-यदि अन्य बातें समान रहें तो देश की सम्पत्ति अधिक होने पर करदान क्षमता भी अधिक होगी। यहाँ सम्पत्ति से तात्पर्य प्राकृतिक एवं शोषित सम्पत्तियों से है अर्थात् देश की सम्पत्ति का अधिक होना पर्याप्त नहीं है, अपितु सम्पूर्ण सम्पत्तियों का शोषण होना चाहिए अर्थात् सम्पत्तियों को उत्पादक होना चाहिए तभी करदान क्षमता अधिक होगी।

(3) धन का वितरण-किसी देश की करदान-क्षमता उस देश में आय एवं धन के वितरण पर भी निर्भर करती है। जिस देश में धन का वितरण जितना ही असमान होगा, वहाँ की करदान क्षमता उतनी ही अधिक होगी, क्योंकि धनिक वर्ग अधिक कर दे सकने की स्थिति में होते हैं और कर वसूली का व्यय भी कम होता है। इसके विपरीत धन का वितरण समान होने पर करदान क्षमता कम होने लगती है, किन्तु कुछ लेखक इस विचार से सहमत नहीं हैं उनका कहना है कि धन का वितरण समान होने पर देश की। करदान क्षमता अधिक होगी, क्योंकि सभी व्यक्ति अपना अंशदान कर के रूप में दे सकने में समर्थ होंगे,

(4) कर-प्रणाली-देश की कर-प्रणाली का भी देश की करदान क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। यदि अच्छी कर प्रणाली के सभी नियमों तथा सिद्धान्तों का देश की कर प्रणाली में ध्यान रखा गया है, कर प्रगतिशील है, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर में सन्तुलन है तो देश की करदान क्षमता अधिक होगी।

(5) सार्वजनिक व्यय की प्रकृति-सार्वजनिक व्यय की प्रकृति का भी देश की करदान क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। यदि सार्वजनिक व्यय, सार्वजनिक हित के लिये अधिकतम सामाजिक कल्याण के सिद्धान्त को ध्यान में रखकर किया जाता है तो स्वाभाविक है कि जनता के जीवन स्तर में सुधार होगा, रोजगार में वृद्धि होगी, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी और फलस्वरूप करदान क्षमता में वृद्धि होगी। इसके विपरीत, यदि सार्वजनिक व्यय अनुत्पादक कार्यों; जैसे-युद्ध या सेना पर किया गया तो करदान क्षमता कम हो जायेगी।

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(6) सरकार पर विश्वास-देश की सरकार के प्रति जनता का विश्वास, नागरिकता और उत्तरदायित्व की भावना तथा राष्ट्र के प्रति त्याग की भावना को जन्म देता है। जिस सरकार के ऊपर जनता का विश्वास जितना अधिक होगा, वह सरकार उतनी ही अधिक मात्रा में कर प्राप्त कर सकेगी। अतः जनता का सरकार पर विश्वास भी करदान क्षमता का एक निर्धारक तत्त्व है।

(7) आर्थिक विकास की गति-देश के आर्थिक विकास की गति भी देश की करदान क्षमता का एक महत्वपूर्ण निर्धारक तत्त्व है। यदि देश का आर्थिक विकास हो रहा है तो वहाँ के लोगों को रोजगार प्राप्त होगा, उत्पादन में वृद्धि होगी, राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी, जीवन-स्तर में सुधार होगा और करदान क्षमता में वृद्धि होगी। संक्षेप में, जो राष्ट्र विकसित होते हैं वहाँ जनता की करदान क्षमता अधिक होती है तथा जो राष्ट्र पिछड़े व अविकसित होते हैं वहाँ के नागरिकों की करदान क्षमता भी कम होती है।

(8) आय की स्थिरता-देशवासियों की करदान क्षमता उनकी आय की स्थिरता पर भी निर्भर करती है। यदि किसी देश के निवासियों की आय स्थिर हो तो वहाँ करदान क्षमता अधिक होगी, अन्यथा कम होगी। इसलिये कृषि प्रधान देशों की करदान क्षमता, उद्योग प्रधान देशों की तुलना में कम होती है, क्योंकि कृषि से होने वाली आय अनिश्चित होती है।

(9) मौद्रिक दशाएँ-मुद्रा-स्फीति की दशा में नागरिकों की करदान क्षमता बढ़ जाती है। इसके विपरीत मन्दीकाल के निराशाजनक वातावरण में लोगों की करदान क्षमता कम हो जाती है और कर-भार अखरता है।

(10) करारोपण का उद्देश्य-करदान क्षमता इस बात पर भी निर्भर करती है कि करों द्वारा प्राप्त आय को किस उद्देश्य के लिये व्यय किया जा रहा है। यदि इस आय को उत्पादक और कल्याणकारी कार्यों पर व्यय किया जाता है तो करदान क्षमता अधिक होती है, क्योंकि लोग कर देने को प्रोत्साहित होते हैं। इसके विपरीत, यदि करों से प्राप्त आय को अनुत्पादक कार्यों और नौकरशाही पर अनाप-शनाप ढंग से व्यय किया जाता है तो इसका करदान क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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करदान क्षमता की धारणा का महत्त्व

(Importance of the Concept of Taxable Capacity)

कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार कर देय क्षमता का कोई भी महत्व नहीं है, क्योंकि इसे न तो ठीक प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है और इसका सही मापन भी आसान नहीं है। दूसरी ओर कुछ अर्थशास्त्री इसे महत्वपूर्ण समझते हैं, क्योंकि देश की वित्त-व्यवस्था के सफल संचालन के लिये करदान क्षमता की जानकारी होना आवश्यक है। संक्षेप में, करदान क्षमता के महत्व को निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है

(1) कर प्रणाली को सुदृढ़ता-करदान क्षमता की उचित जानकारी से देश की कर प्रणाली को सुदृढ़ बनाया जा सकता है, क्योंकि यदि अनुकूलतम करदान क्षमता से कम कर लगाये जाते हैं तो सरकार के पास देश की आवश्यकता के अनुकूल संसाधन एकत्रित नहीं हो पाते और यदि अधिक कर लगाये जाते हैं तो जनता में असन्तोष उत्पन्न होता है और करों की चोरी की सम्भावना बढ़ जाती है। करदान क्षमता का ज्ञान अनावश्यक करारोपण पर रोक लगाता है।

(2) आर्थिक नियोजन में महत्त्व-करदान क्षमता की जानकारी के आधार पर आर्थिक नियोजन के लिये विभिन्न वित्तीय साधनों के जटाने में सहायता मिलती है।

स्वाति प्रकाशन

 (3) संघीय वित्त-व्यवस्था में महत्व-संघीय वित्त-व्यवस्था में भी करदान क्षमता की धारणा । महत्व है। इसके आधार पर केन्द्रीय और राज्य सरकारों के मध्य अनेक आर्थिक एवं वित्तीय समका समाधान किया जा सकता है।

(4) युद्धकालीन वित्त जुटाने में सहायता-सामान्य परिस्थितियों में सरकार पूर्ण करदान क्षमता से कम कर लगाकर आवश्यक वित्तीय साधनों को जुटा सकती है, लेकिन युद्ध काल में अधिक वित्त की आवश्यकता होने के कारण जनता की पूर्ण अथवा निरपेक्ष करदान क्षमता की जानकारी आवश्यक है।

(5) न्यायपूर्ण वितरण-करदान क्षमता की जानकारी होने पर कर भार का न्यायपूर्ण वितरण सम्भव है।

(6) आर्थिक आधिक्य का आर्थिक विकास के लिये उपयोग-करदान क्षमता की सहायता से देश में सम्भाव्य आर्थिक अतिरेक (Potential Economic Surplus) का पता लगाकर उसे आर्थिक विकास के लिये उपयोग किया जा सकता है।

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करदान क्षमता का अनुमान लगाने की विधियाँ

(Methods of Estimating Taxable Capacity) _

प्रो० फिण्डले शिराज (Prof. Findlay Shirras) ने करदान क्षमता को मापने हेतु निम्नलिखित । विधियों का सुझाव दिया है

(क) व्यक्तिगत आय विधि (The Personal Income Method)-इस विधि को कुल आय विधि भी कहते हैं यह व्यक्तियों की आय-कर रिटर्नो के विश्लेषण, मृत्यु शुल्कों से प्राप्त आय और अन्य सम्पत्ति करों पर आधारित है। अन्य बातें समान रहने पर यदि राष्ट्रीय आय बढ़ती है तो करदान क्षमता भी बढ़ेगी तथा राष्ट्रीय आय के घटने से करदान क्षमता भी घटेगी। इसमें सम्मिलित हैं

(i) रोजगार से आय, (ii) भूमि और भवनों से आय, (iii) व्यवसाय से आय और व्यापार से लाभ, (iv) भूमि से आय, और (v) अर्जित ब्याज।

(ख) उत्पादन विधि (The Production Method)-इस विधि में संलिप्त हैं विभिन्न साधनों से एवं स्रोतों/मुद्रा के रूप में शुद्ध उत्पादों का कुल जोड़। इसका अर्थ है कि कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र आदि से प्राप्त निबल उत्पाद, राष्ट्रीय आय के माप के लिये मुद्रा के रूप में गिना जाता है। अन्य बातें समान रहने पर यदि उत्पादन बढ़ता है तो करदान क्षमता भी उसके अनुसार बढ़ेगी तथा प्रतिकूल स्थिति में प्रतिकूल परिणाम होंगे।

यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि आय एवं उत्पादन की दोनों विधियाँ कई कठिनाइयों का सामना करती हैं। इसलिये यह सुझाव दिया जाता है कि दोनों विधियों का अनुसरण किया जाये जहाँ जो उचित बैठती हो।

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अल्पविकसित देशों में निम्न करदान क्षमता के कारण

(Causes of Low Taxable Capacity in Developing Countries)

करदान क्षमता स्पष्ट रूप में प्रति व्यक्ति आय से सम्बन्धित होती है तथा अल्पविकसित देशों में प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है इसलिये इन देशों में करदान क्षमता का विकसित देशों की तलना में नीचा होना प्रायः निश्चित ही होता है।

भारत के एक अल्पविकसित देश होने के कारण इसकी करदान क्षमता की सम्भाव्यता बहुत नीची है। काफी समय से प्रति व्यक्ति आय में कोई महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ है। भारत में आय पर कुल कर लगभग 10 प्रतिशत है, जबकि इंग्लैण्ड और जर्मनी जैसे विकसित देशों में कालिन क्लार्क (Colin Clark) के अनुसार यह 25 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक है। इसका अर्थ है कि भारत में अपनी कर सम्भावना का सन्दोहन नहीं किया, इसलिये कर दरों के राष्ट्रीयकरण और कर संरचना के पुनर्गठन द्वारा कर प्रणाली का गहरा तथा विस्तृत करके कर-उत्पादन की सम्भावनाओं में पर्याप्त वृद्धि की जा सकती है।

भारत जैसे विकासशील देश में करदान क्षमता के निम्न स्तर होने के विभिन्न कारण निम्नलिखित ।

1 नीचा जीवन-स्तर (Low Standard of Living)-करदान क्षमता के निम्न स्तर का मुख्य कारण यह है कि यहाँ पर अधिकांश लोगों का जीवन-स्तर बहुत नीचा है, क्योंकि यहाँ प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है। लगभग 24 प्रतिशत लोग निर्धनता की रेखा से नीचे रहते हैं, वह जीवन-स्तर को ऊंचा कसा उठा सकते हैं ? ऐसी स्थिति में और अधिक कर लगाने की सम्भावनाएँ बहुत कम होती हैं। यदि समाज के । इन वर्गों पर कर भार बढ़ाया जाता है तो इससे उनके उपभोग पर प्रतिकल प्रभाव पड़ेगा जिसके परिणामस्वरूप लोगों के दुखों एवं पीड़ाओं में विस्तार होगा। संक्षेप में आय का निम्न स्तर, निम्न जीवनस्तर के लिये जिम्मेदार है जिसके कारण कर राजस्व भी नीचा ही रहता है।

2. गैर-मौद्रिक क्षेत्र (Non-monetised Sector)-नीची करदान क्षमता के लिये जिम्मेदार एक और तत्त्व है-गैर मौद्रिक क्षेत्र, दूसरे शब्दों में ग्रामीण जीविका क्षेत्र का 2/3 भाग वस्तु के विनिमय में अलिप्त है। उत्पादन का पर्याप्त भाग बाजार में नहीं आता जिसका किसान स्वयं उपभोग कर लेते हैं अथवा इससे वस्तुओं एवं मजदूरी का भुगतान भी कर दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार लगभग 35 | प्रतिशत उपभोग मौद्रिक अर्थव्यवस्था के कार्यक्षेत्र से बाहर होता है। इस प्रकार के नगद रहित व्यवहारों (गैर मौद्रिक क्षेत्र) पर बिक्री कर आदि नहीं लगते तथा लोगों की करदान क्षमता न्यून स्तर पर ही रहती

3. बढ़ती हुई जनसंख्या (Rising Population)-बढ़ती हुई जनसंख्या एक बाधक का कार्य करती है जिससे व्यक्तियों की करदान क्षमता निम्न रहती है। जनसंख्या की वद्धि के कारण हैं-घटती हर्ड मृत्यु दर, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ, महामारियों पर प्रभावी नियन्त्रण, परिवार नियोजन कार्यक्रमों को अपनाना तथा सामान्य सुधार आदि। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि से व्यक्तियों की क्रय-शक्ति कम होती है। जिससे करदान क्षमता घटती है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की कम मात्रा (Low Volume of International Trade)-विदेशी व्यापार, करारोपण के लिये अच्छे अवसर प्रदान करता है, परन्तु दुर्भाग्य से भारत की राष्ट्रीय आय में विदेशी व्यापार का अनुपात विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। इसलिये इससे करारोपण का क्षेत्र सीमित होता है, क्योंकि व्यापारिक क्षेत्र छोटा है तथा इस क्षेत्र से राजस्व को अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।

5. अन्य कारण (Other Reasons)-अन्य कारण; जैसे-बैंक सुविधाओं का अभाव, शिक्षा और प्रशिक्षण की उत्तम सुविधाओं का अभाव भी कम कर राजस्व के लिये उत्तरदायी है। कर वंचना एक सामान्य लक्षण है। इसके अतिरिक्त भारतीय अर्थव्यवस्था लघु स्तरीय उत्पादों और विनिर्माताओं से परिपूर्ण है जिनकी करदान क्षमता कम होती है। कर प्रशासन अकुशल, अपर्याप्त एवं भ्रष्टाचारी है। इसलिये यहाँ करारापेण का क्षेत्र सीमित है।

भारत में करदान क्षमता

(Taxable Capacity in India)

भारत में करदान क्षमता के विषय में अत्यधिक वाद-विवाद है। कुछ विचारकों का मत है कि भारत में करदान क्षमता अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है और कुछ विचारकों का मत है कि भारत में करदान क्षमता अभी अपनी अधिकतम सीमा तक नहीं पहुँच पायी है और अतिरिक्त करारोपण की अभी पर्याप्त गुंजाइश है।

करदान क्षमता में वृद्धि सम्भव नहीं-प्रसिद्ध कानून विशेषज्ञ पालखीवाला के अनुसार, “भारत विश्व के उन देशों में से है, जहाँ कर का भार सबसे अधिक है। इस विचारधारा के समर्थन में मुख्य तर्क इस प्रकार हैं

(i) देश में जनसंख्या वृद्धि, उत्पादन वृद्धि से अधिक है, जिससे प्रति व्यक्ति आय और करदान क्षमता कम होती जा रही है।

(ii) जनता द्वारा अधिकांश करों का प्रायः विरोध किया जाता है।

(iii) राष्ट्रीय आय का क्रषि जैसे अनिश्चित व्यवसाय पर अधिक निर्भर होने के कारण आय में अस्थिरता है, जिसका करदान क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ा है।

(iv) भारत में सरकारी व्यय का अधिकांश भाग सुरक्षा, नागरिक प्रशासन व गैर-विकास मदों पर व्यय किया जाता है जिससे लोगों पर कर का भार तो बढ़ा है, लेकिन उनकी करदान क्षमता घटती है।

(v) देश में प्रचलित कर-प्रणाली अव्यवस्थित एवं अन्यायपूर्ण है जिससे करों की चोरी एक राष्ट्रीय दिनचर्या का रूप ले चुकी है।

करदान क्षमता में वृद्धि सम्भव है ?

इस विचारधारा के समर्थकों का मत है कि भारत में अभी तक करदान क्षमता अपनी उच्चतम सीमा पर नहीं पहुँची है, और अतिरिक्त करारोपण की पर्याप्त गुंजाइश है। डॉ० पी० एस० लोकनाथन के अनुसार, “भारत में करदान क्षमता की सीमा नहीं आयी है तथा भारतीय अर्थव्यवस्था अतिरिक्त करें को सहन कर सकती है।” इस विचारधारा के पक्ष में प्रायः निम्नलिखित तर्क दिये जाते हैं

(i) भारत में राष्ट्रीय आय में करों का भाग अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम है।

(ii) नियोजित विकास के कारण आय एवं रोजगार में पर्याप्त वृद्धि हुई है।

(iii) कल्याण एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के कारण लोगों की उत्पादन शक्ति में पर्याप्त वद्धि हुई है।

(iv) आय एवं धन के वितरण की असमानताएँ कम हुई हैं।

(v) लोगों के जीवन-स्तर में वृद्धि हुई है।

(vi) देश में मौद्रिक व्यवस्था का विस्तार हो रहा है।

करारोपण जाँच समिति के अनुसार भारत में अभी और अधिक कर लगाने की सम्भावना है, क्योंकि देश की राष्ट्रीय आय में करों के द्वारा प्राप्त आय का अनुपात अभी भी बहुत कम है। डॉ० लोकनाथन ने भी धनिकों पर अधिक कर लगाने की सिफारिश की है।

निष्कर्ष-निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि भारत में धनी वर्ग के लोगों पर कर-भार कम है एवं निर्धन वर्ग पर कर-भार करदान क्षमता से अधिक है। अतः जनता पर कर-भार डालने से पूर्व यह आवश्यक है कि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करने के लिये उत्पादक योजनाएँ अपनायी जाएँ, वस्तुओं के मूल्यों को नियन्त्रित किया जाये, जनता की अशिक्षा एवं व्यापक सामाजिक बुराइयों को दूर किया जाये तथा देश की श्रम शक्ति का उपयोग उचित उत्पादन कार्यों में किया जाये।

संक्षेप में, हमारी राय में भारत में उस समय तक नये कर नहीं लगाये जाने चाहिएँ जब तक कि देश में बेरोजगारी दूर न हो और प्रति-व्यक्ति वास्तविक आय का स्तर ऊँचा न हो जाये।

Public Finance Taxable Capacity

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. करदान क्षमता से आप क्या समझते हैं ? इसे प्रभावित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिये। What do you understand by Taxable capacity ? Discuss the factors affecting to it.

प्रश्न 2. “एक देश की करदान क्षमता वह अधिकतम राशि है जो उस देश के नागरिक वास्तव में बिना दुःखी और कष्टपूर्ण जीवन बिताये और आर्थिक संगठन को अधिक अस्त-व्यस्त किये सरकार के व्यय हेतु भुगतान कर सकते हैं।” व्याख्या कीजिये।

“Taxable capacity is the maximum amount which the citizens can pay to the public authorities without having a really unhappy and down-troden existence and without dislocating the economic organisation too much.” Discuss.

प्रश्न 3. निरपेक्ष तथा सापेक्ष करदान क्षमता से आप क्या समझते हैं ? करदान क्षमता को प्रभावित करने वाले घटकों की विवेचना कीजिये।

What do you understand by Absolute and Relative Taxable Capacity ? Discuss the factors affecting taxable capacity.

प्रश्न 4. करदेय क्षमता की संकल्पना की विवेचना कीजिये। अल्पविकसित देशों में निम्न करदान क्षमता के कारण बताइये।

Discuss the concept of taxable capacity. State the causes of low taxable capacity in developing countries like India.

Public Finance Taxable Capacity

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. करदान क्षमता से क्या आशय है ? What is meant by taxable capacity ?

प्रश्न 2. निरपेक्ष करदान क्षमता तथा सापेक्ष करदान क्षमता में अन्तर कीजिये।

Distinguish between absolute taxable capacity and relative taxable capacity.

प्रश्न 3. करदान क्षमता को प्रभावित करने वाले चार प्रमुख तत्व बताइये।

Explain any four determinants of taxable capacity.

प्रश्न 4. क्या भारत में करदान क्षमता की सीमा आ चुकी है ?

Whether India reached the limit of taxable capacity?

 प्रश्न 5. करदान क्षमता का अनुमान लगाने की विधियाँ बताइये।

Explain the methods of estimating taxable capacity.

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chetansati

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