BCom 2nd Year Public Revenue Sources Classification Study Material notes In Hindi

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BCom 2nd Year Public Revenue Sources Classification Study Material notes In Hindi

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Sources Classification Study Material
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BCom 2nd Year Economic Effects Public Expenditure Study Material Notes in Hindi

लोक / सार्वजनिक आगम : स्त्रोत एवं वर्गीकरण

[Public Revenue: Sources and Classification)

“आय और पूँजी पर निर्धारित करों के अन्तर को प्रायः बिल्कुल अलग अन्तर के साथ उलझाया जाता है। जो कि क्रमशः आय और पूँजी में से दिए गए करों में होता है, परन्तु पूँजी पर निर्धारित कर आय में से दिया जा सकता है तथा विलोमशः भी। एक व्यक्ति जिसे मृत्यु शुल्क देना है, वह उसे आय में से दे सकता हैं। इस प्रकार व्यक्ति आय कर देने के लिए प्रतिभूतियाँ बेच सकता है अथवा बैंक से उधार लेकर कर दे सकता है।                         -डाल्टन

जिस प्रकार उत्पादन अर्थशास्त्र का महत्त्वपूर्ण भाग है उसी प्रकार सार्वजनिक आय का लोकवित्त में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जिस प्रकार किसी भी व्यक्ति या संस्था को अपना कार्य करने के लिए धन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार सरकार को भी अपनी आर्थिक क्रियाओं के क्रियान्वयन हेतु वित्त की आवश्यकता होती है। वर्तमान सरकार के कल्याणकारी कार्यों के लिए सरकार को अधिक धन की आवश्यकता होती है, इस कारण सार्वजनिक आय के विभिन्न नए स्रोतों की आवश्यकता को बल मिला है। वर्तमान काल में सार्वजनिक आय केवल सार्वजनिक व्ययों की पूर्तियों का साधन ही नहीं है, बल्कि अधिक जन कल्याण, आर्थिक विकास, आर्थिक स्थायित्व तथा रोजगार स्तर में वृद्धि जैसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति का एक साधन भी है।

सार्वजनिक आय का महत्त्व बढ़ने का एक और महत्त्वपूर्ण कारण है। सरकार कितनी मात्रा में आय प्राप्त करती है और यह आय किस प्रकार प्राप्त की जाती है, इसका देश के उत्पादन, वितरण, आर्थिक क्रियाओं एवं रोजगार के स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

Public Revenue Sources Classification

सार्वजनिक आय का अर्थ (Meaning of Public Revenue)-सार्वजनिक आय का प्रयोग संकुचित एवं विस्तृत दो अर्थों में किया जाता है। संकुचित अर्थ में सार्वजनिक आय के अन्तर्गत सरकार की वास्तविक आय को शामिल किया जाता है, जबकि व्यापक अर्थ में इसके अन्तर्गत सभी प्रकार की सरकारी प्राप्तियों को शामिल किया जाता है।

डॉल्टन के अनुसार, “सार्वजनिक आय को संकुचित एवं व्यापक अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है। व्यापक अर्थ में समस्त प्रकार की आय तथा प्राप्तियों को सम्मिलित किया जाता है जिसे प्रायः आगम के नाम से जानते हैं। संकुचित अर्थ में केवल वे प्राप्तियाँ शामिल की जाती हैं जो आय के नाम से जानी जाती हैं।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि सार्वजनिक आय से आशय उस आय से है। जिससे सरकार की सम्पत्ति में वृद्धि बिना दायित्व में वृद्धि किए ही हो जाती है अर्थात् जिन्हें सरकार को भविष्य में लौटाना नहीं पड़ता।

सार्वजनिक आय के स्रोत (Sources of Public Revenue)-सरकार को प्राप्त होने वाली आय को सार्वजनिक आय कहा जाता है। सार्वजनिक आय के स्रोतों को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जा सकता है जो निम्न प्रकार हैं

Public Revenue Sources Classification

सार्वजनिक आय के स्रोत

(ब) गैर कर आय                                       (अ) कर आय

(1) वाणिज्यिक आय          (ii) प्रशासनिक              (iii) उपहार तथा अनुदान

(1) फीस या शुल्क

(II) लाइसेन्स शुल्क

(III) विशेष कर निर्धारण

(IV) जमानत या सम्पत्ति जब्त करना

(V) मृतक की सम्पत्ति पर कब्जा

(अ) कर आय (Tax Revenue)-कर राज्य की आय का मुख्य साधन है जो राज्य को अनिवार्य रूप से भुगतान किया जाता है। कर को विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है :

टेलर के अनुसार,कर सरकार को दिया गया अनिवार्य भुगतान है जो कि करदाता द्वारा बिना प्रत्यक्ष लाभ प्राप्ति की आशा के दिए जाते हैं।

प्रो० ब्यूहलर के अनुसार, “यह एक अनिवार्य अंशदान है, यद्यपि इसे इच्छापूर्वक भी भुगतान किया जा सकता है, लेकिन यह कानूनी अपराधों का दण्डस्वरूप नहीं है।

सेलिगमैन के अनुसार, “कर जनता द्वारा सरकार को किया गया एक अनिवार्य अंशदान है जो सामान्य जनता के हित पर व्यय करने हेतु लगाया जाता है और किसी को विशेष लाभ प्रदान नहीं किए जाते हैं।

डाल्टन के अनुसार,कर सार्वजनिक सत्ता द्वारा लगाया गया एक अनिवार्य अंशदान है, चाहे उसके बदले में करदाता को उतनी सेवाएँ प्रदान की जाएँ या नहीं और इसे किसी कानूनी सजा के रूप में नहीं लगाया जाता।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि, “कर एक ऐसा अनिवार्य भुगतान है जो जनता के हितों पर होने वाले व्यय की पूर्ति के लिए लिया जाता है और जिसके बदले करदाता को प्रत्यक्ष रूप से कोई वस्तु अथवा सेवा नहीं मिलती है।”

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कर की मुख्य विशेषताएँ (Main Characteristics of Tax)-कर की विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर कर की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

(i) अनिवार्य अंशदान (Compulsory Contribution)-कर एक अनिवार्य भुगतान माना जाता है। कर का भुगतान न करने पर व्यक्ति को सजा दी जा सकती है भले ही किसी भी व्यक्ति को इससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोई लाभ प्राप्त हो या न हो।

(ii) करों से प्राप्त आय सबके हित में व्यय की जाती है-देश का प्रत्येक नागरिक कई प्रकार से सरकार पर निर्भर रहता है और बिना सरकार की सहायता के उसे कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। सरकार का उद्देश्य समाज कल्याण में वृद्धि करना है। सार्वजनिक कल्याण में वृद्धि करने के उद्देश्य से सरकार धनी वर्ग से आय प्राप्त करके उसे निर्धन वर्ग पर व्यय करती है।

(iii) कर के बदले विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता-कर का सरकारी व्यय से प्राप्त लाभ से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता। कर देने वाला व्यक्ति सरकार से उसी अनुपात में कोई लाभ प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। प्रो० टॉजिंग के अनुसार, “अन्य स्रोतों की तुलना में कर का सार यही है कि सार्वजनिक अधिकार एवं करदाता के मध्य कोई प्रत्यक्ष जैसे को तैसा व्यवहार का अभाव पाया जाता हैं ।

(ब) गैर-कर आय स्रोत (Non-tax Revenue)-आय के ऐसे भी स्रोत हैं जो कर की श्रेणी में नहीं आते, उन्हें गैर-कर राजस्व कहते हैं। इन्हें मुख्यतः तीन भागों में रखा जा सकता है

(1) वाणिज्यिक आय (Commercial Revenue)-शान्ति, सुरक्षा एवं व्यवस्था के अतिरिक्त आजकल राज्य अनेक तरह के व्यापारिक एवं औद्योगिक कार्य भी करता है। जैसे-परिवहन, विद्युत, जल, डाक आदि जनोपयोगी सेवाएँ प्रदान करना, विभिन्न प्रकार के उद्योगों का संचालन करना और इनसे उत्पादित वस्तुओं को बेचना। इन क्रियाओं से कीमतों के रूप में सरकार को कुछ आय प्राप्त होती है। यह कीमत ही वाणिज्यिक आय कहलाती है। वर्तमान में यह आय का मुख्य स्रोत बनता जा रहा है। प्रो० टेलर के अनुसार, “वाणिज्यिक आय वे आमदनियाँ हैं जो कि सरकार को अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत के रूप में प्राप्त होती हैं।इस प्रकार के साधनों में जैसे को तैसा (quid pro quo) का सम्बन्ध रहता है।

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वाणिज्यिक आय की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं

(I) भुगतान की राशि और उसके बदले में प्राप्त वस्तु की लागत या लाभ के मध्य एक निश्चित सम्बन्ध होता है।

(II) कीमत का भुगतान करने वाले व्यक्ति को उस कीमत के बदले प्रत्यक्ष रूप से कोई वस्तु या सेवा प्राप्त होती है।

(ii) प्रशासनिक आय (Administrative Revenue)-सरकार के प्रशासनिक कार्यों के कारण उत्पन्न आय को प्रशासनिक आय कहा जाता है। इसके अन्तर्गत शुल्क या फीस, लाइसेन्स फीस, जुर्माने, सम्पत्ति जब्त करने और उत्तराधिकारी के अभाव में सम्पत्ति पर अधिकार करने आदि से होने वाली प्राप्तियाँ तथा विशेष कर निर्धारण आदि आते हैं। इस आय का मुख्य वर्गीकरण निम्नलिखित है

(1) फीस या शुल्क (Fees)-शुल्क या फीस एक ऐसी अदायगी है जो कि उन प्रशासनिक सेवाओं की लागत को पूरा करने के लिए सरकार को दी जाती है जो सरकार द्वारा सम्पूर्ण जनता के हितों के लिये सम्पन्न की जाती है, किन्तु जो व्यक्तियों को विशेष लाभ प्रदान करती है।

प्रो० सैलिगमैन के अनुसार, “फीस वह भुगतान है जो कि प्रारम्भिक रूप में सार्वजनिक हित में, लेकिन फीस देने वाले व्यक्ति को विशेष लाभ प्रदान करते हुए, सरकार द्वारा प्रदान की गयी बार-बार उत्पन्न होने वाली प्रत्येक सेवा की लागत को पूर्ण करने हेतु दिया जाता है।

प्रो० मेहता व अग्रवाल के अनुसार, “शुल्क एक कर है जो कि राज्य द्वारा उत्पादित सेवाओं एवं वस्तुओं के उपभोग को नियन्त्रित एवं हतोत्साहित करने के लिए लिया जाता है।” फीस में जैसे को तैसा का सम्बन्ध होता है। यह निजी व्यक्तियों द्वारा स्वेच्छापूर्वक दी जाती है।

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फीस की विशेषताएँ-फीस की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं

(i) जैसे को तैसा सम्बन्ध-शुल्क में जैसे को तैसा सम्बन्ध होता है, क्योंकि इसका भुगतान प्राप्त सेवा के बदले में किया जाता है।

(ii) प्रशासनिक नियन्त्रण-शुल्क के बदले में दी जाने वाली सेवाएँ कभी-कभी प्रशासनिक नियन्त्रण हेतु भी की जाती हैं।

(iii) विशिष्ट लाभ-शुल्क दाता को सदैव विशेष लाभ प्राप्त होता है, लेकिन साथ ही साथ सार्वजनिक लाभ के उद्देश्य की भी पूर्ति की जाती है।

कर तथा फीस की तुलना (Comparison between Tax and Fees) कर तथा शुल्क में कुछ समानताएँ तथा कुछ असमानताएँ होती हैं।

(1) समानताएँ-कर तथा शुल्क में निम्न समानताएँ होती हैं

(i) कर और शुल्क सार्वजनिक लाभ के उद्देश्य से लगाए जाते हैं।

(ii) कर तथा शुल्क दोनों ही अनिवार्य प्रकृति के हैं।

(iii) शुल्क तथा कर दोनों का प्राप्त किए जाने वाले लाभ से कोई आनुपातिक सम्बन्ध नहीं होता।

(II) असमानताएँ-कर तथा शुल्क में निम्न असमानताएँ होती हैं

(i) कर एक अनिवार्य अंशदान है, जबकि शुल्क ऐच्छिक होता है।

(ii) शुल्क का सम्बन्ध विशेष लाभ से होता है, जबकि कर का इससे कोई सम्बन्ध नहीं होता।

(iii) शुल्क की राशि लगभग उसकी सेवा लागत के बराबर होती है, जबकि कर के साथ ऐसा नहीं होता।

लाइसेन्स शुल्क (Licence Fee)-शुल्क तथा लाइसेन्स दोनों की प्रकृति लगभग समान है, तथापि कुछ लेखकों ने इनमें अन्तर किया है। इनके अनुसार लाइसेन्स शुल्क किसी सेवा के लिए तब लिया जाता है जब सरकारी कर्मचारी कोई सेवा तो प्रदान नहीं करता, अपितु किसी व्यक्ति को कोई विशेष अधिकार या अनुमति दे देता है। लुटज के अनुसार, “लाइसेन्स शुल्क उस स्थिति में अदा किया जाता है, जबकि सरकारी सत्ता से यह प्रार्थना की जाती है कि वह कोई अधिक स्पष्ट तथा निश्चित किस्म की सेवा प्रदान करने की बजाय एक अनुमति अथवा विशेषाधिकार प्रदान कर दे।मोटर वाहनों का रजिस्ट्रेशन शुल्क, मोटरें चलाने के लिए परमिट की अदायगी और बन्दूक या रिवाल्वर रखने का लाइसेन्स शुल्क के कुछ उदाहरण हैं।

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ऐसे शुल्क का उद्देश्य कभी-कभी विभिन्न प्रकार की क्रियाओं एवं गतिविधियों का नियमन एवं नियन्त्रण करना भी होता है। उदाहरण के लिए, शराब बेचने का लाइसेन्स देकर सरकार शराब की बिक्री का नियमन करती है। यदि कोई व्यक्ति लाइसेन्स शुल्क का भुगतान न करे तो वह उन क्रियाओं को नहीं कर सकता जिनको करने का उसे पहले अधिकार प्राप्त था।

III. विशेष कर निर्धारण (Special Assessment)-यदि सार्वजनिक कार्यों से किसी व्यक्ति की सम्पत्ति का मूल्य बढ़ जाए तो ऐसी मूल्य-वृद्धि दर को अनुपार्जित वृद्धि कहेंगे। यदि सरकार इस वृद्धि पर कर लगा दे तो उसे विशेष कर निर्धारिण कहेंगे।

प्रो० सैलिगमैन के अनुसार, “विशेष कर एक अनिवार्य अंशदान है जो प्राप्त हुए विशेष लाभों के अनपात में लगाया जाता है, ताकि जनहित में सम्पत्ति पर विशेष सुधार करने की लागतें पूर्ण हो जाएँ।“2 ऐसा विशेष कर-निर्धारण सामान्यतः सम्पत्ति के मूल्य में होने वाली वृद्धि के अनुपात में ही किया जाता है। इस सम्बन्ध में टेलर के अनुसार “विशेष निर्धारण ऐसे सुधार से लाभान्वित सम्पत्ति पर ही लगाए जाते हैं जो कर-निर्धारण की मात्रा या लागत के अनुपात में निर्धारित की जाती हैं।प्रो० सेलिगमैन के अनुसार विशेष कर निर्धारण में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं

(i) यह विशेष उद्देश्य के लिए लगाया जाता है।

(ii) इसमें सरकारी सेवा से मिलने वाले विशिष्ट लाभ को मापा जा सकता है।

(iii) विशेष कर निर्धारण लाभ के अनुपात में होते हैं।

(iv) ये विशिष्ट स्थानीय सुधारों के लिए लगाए जाते हैं।

IV.जमानत या सम्पत्ति आदि जब्त करना-जमानत या सम्पत्ति को जब्त करने से आशय उन जर्मानों से होता है, जो देश के नागरिकों द्वारा सरकार द्वारा बनाए गए नियमों को तोड़ने पर लगाए जाते । है। इसको लगाने का उद्देश्य नागरिकों को कानून तोड़ने से रोकना है। यह राजकीय आय का कोई महत्वपूर्ण स्रोत नहीं है। डॉ० डाल्टन के अनुसार, “करों की तुलना में जुर्माने का उद्देश्य आय प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि अपराधियों को दण्ड देकर समाज में होने वाली बुराइयों को दूर करना या रोकना होता है।”

(V) मृतक की सम्पत्ति पर कब्जा-किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु पर जो कानूनी उत्तराधिकारी नियुक्त किए बिना अथवा वसीयत लिखे बिना ही मर गया हो, उसकी बैंक में जमा धनाराशियाँ तथा अन्य सम्पत्तियाँ सरकार के अधिकार में चली जाती हैं। यह भी सरकारी आय का कोई महत्त्वपूर्ण स्रोत नहीं है।

(VI) उपहार तथा अनुदान (Gifts and Grants)-उपहार वे ऐच्छिक अंशदान हैं, जो निजी व्यक्तियों अथवा गैर सरकारी दाताओं द्वारा विशिष्ट कार्यों के लिए सरकार को दिए जाते हैं। जैसे-युद्ध या किसी अन्य संकट काल में सहायता कोष अथवा प्रतिरक्षा कोष। अनुदानों की स्थिति में दाता सरकार अन्य किसी स्तर पर सरकारी कार्यों को सम्पन्न करने के लिए वित्तीय सहायता देती है। अनुदान का उद्देश्य वित्तीय अभाव को पूरा करने के साथ-साथ राज्य के विभिन्न अंगों में सामंजस्य स्थापित करना तथा उनका उचित नियमन तथा निर्देशन करना भी होता है। ये अनुदान शर्तरहित भी हो सकते हैं अथवा केवल कुछ विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करने के लिए भी दिए जा सकते हैं। अल्पविकसित देशों के विकास के लिए ऐसे अनुदान बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। किन्तु विदेशी अनुदान सदा अनिश्चित होते हैं और अधिकांशतया सशर्त होते हैं। इससे प्रायः अन्तर्राष्ट्रीय कठिनाईयाँ व उलझनें पैदा हो जाती हैं।

शिराज का मत है कि “सरकार को प्राप्त होने वाले उपहार दुर्भाग्य से कम व कभी-कभी ही प्राप्त होते हैं।“2 उपहार तथा अनुदान पूर्णतया ऐच्छिक प्रकृति के होते हैं और इनको देने वाला व्यक्ति बदले में किसी भी प्रत्यक्ष लाभ की आशा नहीं करता।

संक्षेप में सार्वजनिक आय के विभिन्न स्रोतों में सबसे अधिक महत्त्व कर का है, किन्तु आजकल व्यावसायिक व प्रशासनिक आयों में भी वृद्धि होती जा रही है।

सार्वजनिक आय का वर्गीकरण (Classification of Public Revenue) _विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने सार्वजनिक आय का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया है। इन विभिन्न आधारों के कारण आय के वर्गीकरण में बहुत-सी कठिनाइयाँ उपस्थित हो गयीं। इसी समस्या के सन्दर्भ में प्रो० सेलिगमैन का कथन है कि, “राजस्व में जिन प्रश्नों को हल नहीं किया जा सका है उनमें से कार प्रश्न ही ऐसे होंगे जो सार्वजनिक आय का विभिन्न प्रकारों में वर्गीकरण के प्रश्नों से कठिन बाल्टन के अनुसार, “सार्वजनिक आय के स्रोतों का वास्तव में वर्गीकरण किया जा सकता है. अनेक भेद पूर्णतया स्पष्ट नहीं हैं और अन्य स्थानों की वर्गीकरण की खोज को स्वयं परन्तु उसके वर्गीकरण की प्राप्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।” सार्वजनिक आय के प्रमुख वर्गीकरण निम्न प्रकार हैं ।

Public Revenue Sources Classification

1 एडम सस्मिथ का वर्गीकरण (Adam Smith’s Classification)-एडम स्मिथ ने सार्वजनिक आय को दो भागों में विभाजित किया है

(i)  नागरिकों से प्राप्त आय (Revenue from Public Assets)-इस वर्ग में जनता से प्राप्त कर फीस तथा जुर्माना आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(ii)  राजकीय सम्पत्ति से प्राप्त आय (Revenue from State Assets)-इस वर्ग में सरका उद्योगों, बागानों, खानों, भूमि तथा सरकारी सम्पत्ति से प्राप्त होने वाली आय को सम्मिलित किया जाता हैं ।

आलोचना-एडम स्मिथ द्वारा दिए गए वर्गीकरण के मुख्य दोष निम्न हैं

(त) यह वर्गीकरण आधुनिक राज्यों के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करता, क्योंकि इसमें कर आय को विशेष महत्त्व दिया गया है, जबकि आधुनिक काल में गैर कर आय के साधन भी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।।

(ii) सार्वजनिक आय का यह वर्गीकरण पर्याप्त नहीं माना जाता जिसके कारण इसी वर्गीकरण पर निर्भर नहीं रहा जा सकता।

2. एडम्स का वर्गीकरण (Adam’s Classification)-प्रो० एच० डी० एडम्स ने सार्वजनिक आय को तीन भागों में वर्गीकृत किया है

(i) प्रत्यक्ष आय (Direct Revenue)-इसमें सार्वजनिक क्षेत्रों से प्राप्त आय आती है। इस वा में सार्वजनिक उद्योग, हर्जाने, लोक क्षेत्र से आय एवं उपहारों को सम्मिलित किया जाता है।

(ii) व्युत्पादित आय (Derivative Revenue)-इस वर्ग में कर शुल्क, जुर्माने एवं दण्ड आदि को सम्मिलित किया जाता है। करों में भी प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, व्यक्तिगत एवं सम्पत्ति आदि पर कर को सम्मिलित करते हैं।

(iii) प्रत्याशित आय (Anticipatory Revenue)-इस वर्ग में सरकार के विभिन्न प्रकार के साख विपत्रों तथा कोषागार विपत्रों से प्राप्त आय को सम्मिलित किया जाता है।

आलोचना-एडम्स द्वारा प्रतिपादित इस वर्गीकरण की मुख्य आलोचनाएँ निम्नवत् हैं

(i) यह वर्गीकरण काफी सीमित एवं संकुचित है।

(ii) इसमें व्यापारिक कार्यों की आय को प्रशासनिक कार्यों की आय में शामिल करके प्रत्यक्ष आय को अधिक विस्तृत कर दिया गया है।

(iii) व्यापारिक आय तथा प्रशासनिक आय सर्वथा भिन्न हैं-जबकि एडम्स ने इन्हें एक ही वर्ग में रखा है।

3.बेस्टेबल का वर्गीकरण (Bastabel’s Classification)-बेस्टेबल ने सार्वजनिक आय को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है ।

(i) सत्ता से प्राप्त आय (Revenue from Administration)-वह आय जो सरकार अपनी सत्ता । के कारण प्राप्त करती है उसे इस वर्ग में सम्मिलित किया जाता है। जैसे-करों से प्राप्त आय।

(ii) वस्तुओं एवं सेवाओं से प्राप्त आय (Revenue from Commodities and Services)-इस। वर्ग में उस आय को सम्मिलित किया जाता है जो सरकार को एक सर्वमान्य बड़ी इकाई होने के कारण, वस्तुओं और सेवाओं के प्रदान करने से प्राप्त होती है।

आलोचना-बेस्टेबल के वर्गीकरण की मुख्य आलोचनाएँ निम्न हैं

(ii) यह वर्गीकरण बहुत-ही सीमित तथा संकीर्ण है।

(iii) यह अवैज्ञानिक वर्गीकरण है, क्योंकि इसमें आय के वर्गीकरण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं।

4.प्रो० सैलिगमैन का वर्गीकरण (Prof. Selligmen’s Classification)-प्रो० सैलिगमैन ने सार्वजनिक आय को तीन वर्गों में विभाजित किया है :

(1) अनिवार्य आय (Compulsory Revenue)-इस वर्ग के अन्तर्गत उस आय को सम्मिलित। किया जाता है जिसे जनता द्वारा अनिवार्य रूप से दिया जाता है। इस प्रकार की आय को तीन भागों में। विभक्त किया जा सकता है

(1) सार्वजनिक सम्पत्तियों से आय: जैसे-भूमि, जंगल आदि से।

(II) कर अधिकार से आय; जैसे-कर, शुल्क, विशेष निर्धारण आदि।।

(III)  दण्ड अधिकार से प्राप्त आय।

(D निःशुल्क आय (Gratitutous Revenue)-इस वर्ग में सरकार को दान तथा उपहार में प्राप्त काय को रखा जाता है। यह स्वेच्छा से दिया जाता है इसके लिए सरकार किसी पर भी किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डालती।

(iii) अनुबन्धीय आय (Contractual Revenue)-इस आय को कीमत के नाम से जाना जाता है। इस वर्ग में ऐसी आय को सम्मिलित किया जाता है जो सरकार को अपनी व्यावसायिक क्रियाओं से प्राप्त होती हैं। जैसे-रेल, डाक-तार तथा विभिन्न सरकारी उद्यमों से प्राप्त होने वाली आय।

आलोचना-सैलिगमैन द्वारा दिए गए वर्गीकरण की निम्न आलोचना है

(i) इस वर्गीकरण का आधार वैज्ञानिक नहीं है। (

ii) यह वर्गीकरण स्पष्ट नहीं है।

5. डॉ० डाल्टन का वर्गीकरण (Dr. Dalton’s Classification)-डॉ० डाल्टन ने सार्वजनिक आगम के स्रोतों के आधार पर लोक आय को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया है

(i) कर, (ii) ऋण, (iii) सार्वजनिक सम्पत्ति से प्राप्त आय, (iv) सार्वजनिक उपक्रमों से प्राप्त आय, (v) फीस एवं अन्य भुगतान, (vi) प्रेस से प्राप्त आय, (vii) स्वेच्छा से दिए गए उपहार, (viii) विशेष निर्धारण से प्राप्त आय, (ix) स्वेच्छा से दिए गए सार्वजनिक ऋण, (x) सार्वजनिक उद्योगों की आय, (xii) न्यायालय द्वारा लगाए गए दण्ड।

आलोचना-(i) डाल्टन का वर्गीकरण विस्तृत होते हुए भी स्पष्ट नहीं है। (ii) सार्वजनिक ऋण आय का स्रोत नहीं है।

6. लुट्ज का वर्गीकरण (Lutz’s Classification) लुट्ज़ ने सार्वजनिक आय को निम्न छः भागों में विभक्त किया है

(i) सार्वजनिक ऋण, (ii) करारोपण, (iii) प्रशासानात्मक आय, (iv) बहीखाते का हस्तान्तरण, (v) व्यापारिक संस्थाओं से आय, (vi) आर्थिक सहायता एवं अनुदान।

आलोचना-लुट्ज के वर्गीकरण की आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) लुट्ज ने इस वर्गीकरण में ऋणों को सम्मिलित किया, जबकि ऋण आय का स्रोत नहीं होते वे अदायगियाँ हैं।

(ii) यह वर्गीकरण बहुत सीमित है।

7. टेलर का वर्गीकरण (Tayler’s Classification)-टेलर ने सार्वजनिक आय के साधनों को चार वर्गों में विभाजित किया है जो निम्नलिखित हैं

(i) कर (Tax Revenue)-इसमें सरकार द्वारा लगाए गए विभिन्न करों से प्राप्त आय को सम्मिलिति किया जाता है।

(ii) व्यावसायिक आय (Commercial Revenue)-इस वर्ग में सरकार द्वारा चलायी जाने वाली व्यापारिक संस्थाओं से प्राप्त आय को सम्मिलित किया जाता है। जैसे-सार्वजनिक उपक्रमों के लाभांश, बिजली, रेल, संचार आदि से प्राप्त आय।

(iii) प्रशासनिक आय (Administrative Revenue)-इस वर्ग के अन्तर्गत न्यायालय फीस, लाइसेंस फीस, जर्माने, विशेष निर्धारण तथा लावारिस सम्पत्ति के अधिग्रहण से प्राप्त आय को सम्मिलित किया जाता है।

(iv) अनुदान एवं उपहार (Grants and Gifts)-उपहार तथा अनुदान के रूप में मिली हई आय का इस वर्ग में रखा जाता है। यह उपहार प्रायः केन्द्र तथा राज्य सरकारों को दिए जाते हैं।

आलोचना-टेलर के वर्गीकरण के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं(i) इस वर्गीकरण में सार्वजनिक आय के विभाजन का आधार अनुचित है। (ii) यह वर्गीकरण अनिश्चित है।

8. जे० के० मेहता का वर्गीकरण (J. K. Mehta’s Classification)-भारतीय अर्थशास्त्री पो मेहता ने सार्वजनिक आय को तीन भागों में बाँटा है

(1) कर (Tax)-प्रो० मेहता ने करों के अन्तर्गत उन सभी वसूलियों को सम्मिलित किया है सरकारी वित्तीय व्यवस्था के लिए होती हैं।

(ii) शुल्क (Fees) शुल्क एक अनिवार्य अंशदान है जो सरकार को सेवा की कुल लागत अथकी उसके एक भाग को पूरा करने के लिए दिया जाता है। शुल्क देने वाले का, शुल्क से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है ।

(iii) इयूटी (Duty) इसका मुख्य उद्देश्य आय प्राप्त करना नहीं होता, वरन् ऐसी वस्तओं उपभोग को कम करना होता है जिनसे समाज को हानि होती है। यह इयूटी मादक आर नशीली वस्तुओं पर रोक लगाने के उद्देश्य से लगाई जाती है।

आलोचना-मेहता के वर्गीकरण के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं(i) मेहता का यह वर्गीकरण काफी संकुचित एवं अव्यवहारिक है। (ii) इस वर्गीकरण का आधार स्पष्ट न होने से इसे उचित नहीं माना जाता है। (iii) यह वर्गीकरण दोषपूर्ण है तथा वर्तमान व्यवस्था में यह लागू नहीं होता।

फिण्डले शिराज का वर्गीकरण (Findlay Shirras’ Classification)-प्रो० फिनले शिराज ने सार्वजनिक आय को दो प्रकार से वर्गीकृत किया है

(0 करों से प्राप्त आय (Tax Revenue)-इस वर्ग में कर, विशेष कर निर्धारण एवं फीस से प्राप्त आय सम्मिलित होती है।

(1) गैर-कर आय (Non-tax Revenue)-करों के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से प्राप्त होने वाली आय को गैर-कर आय में शामिल किया जाता है। जैसे-सार्वजनिक उद्योग, रेलवे, सामाजिक सेवाओं, ऋण पर ब्याज तथा अन्य गैर-कर स्रोतों से प्राप्त आय आदि।

आलोचना-उपयुक्त वर्गीकरण विस्तृत एवं सरल है। किन्तु यह इन आय स्रोतों के उपवर्गों की उपेक्षा करता है।

10. रिजर्व बैंक का वर्गीकरण (Reserve Bank’s Classification) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने सार्वजनिक आय का वर्गीकरण मुख्य रूप से दो वर्गों में किया है तथा बाद में इसके उपवर्ग किए हैं। यह वर्गीकरण इस प्रकार है

(i) कर आय (Tax Revenue)-इस वर्ग के अन्तर्गत करों से प्राप्त आय सम्मिलित की जाती है। इसके दो उपवर्ग है

(अ) प्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय (Revenue from Direct Taxes)—वह आय जो प्रत्यक्ष करों को लगाने के परिणामस्वरूप प्राप्त होती हैं, इस उपवर्ग में सम्मिलित की जाती हैं। जैसे-आयकर, सम्पत्ति कर, निगम कर आदि।

(ब) अप्रत्यक्ष करों से प्राप्त आय (Revenue from Indirect Taxes)-इस उपवर्ग में उस आय का समावेश होता है जो परोक्ष करों से प्राप्त होती हैं। जैसे-विक्रय कर, मनोरंजन कर आदि।।

(ii) गैर-कर आय (Non-tax Revenue)-इस वर्ग के अन्तर्गत निम्न उपवर्ग आयों को सम्मिलित किया जाता है

(अ) सम्पत्ति से प्राप्त आय (Revenue from Public Property)-सार्वजनिक सम्पत्ति से प्राप्त होने वाली आय को इस उपवर्ग में रखा जाता है। जैसे-सरकारी भूमि, वनों आदि से प्राप्त आय।

(ब) वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय से प्राप्त आय (Revenue from Sale of Goods and Services)-यह आय सरकार को वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमत के रूप में प्राप्त होती हैं। इस वर्ग में सार्वजनिक उद्योगों की वस्तुओं के विक्रय, ऋणों पर ब्याज, शिक्षा एवं चिकित्सा शुल्क आदि से प्राप्त आय शामिल हैं।

(स) अनुदान से प्राप्त आय (Revenue from Grants)-अनुदान एक सरकार द्वारा दूसरी सरकार को वित्तीय सहायता के रूप में दिया जाता है।

(द) उपहार से प्राप्त आय (Revenue from Gifts)-इस उपवर्ग में ऐसे ऐचिठक अंशदानों का। सम्मिलित किया जाता है जो सरकार को व्यक्तियों एवं संस्थाओ से प्राप्त होते हैं।

उपर्युक्त वर्गीकरण के आधार पर कहा जा सकता है कि विभिन्न वर्गीकरणों में कई समानताएँ है। सरल शीर्षकों में भेद हैं। प्रो० टेलर ने जिस आय को वाणिज्यिक आय कहा है, उसे ही डाल्टन ने कीमतो से प्राप्त आय कहा है। फिर भी जहाँ तक वर्गीकरण में पूर्णता और वैज्ञानिकता का प्रश्न है, रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया का वर्गीकरण अधिक उचित है।

Public Revenue Sources Classification

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. आधुनिक अर्थव्यवस्था में आय के गैर-कर साधनों के महत्त्व की व्याख्या कीजिये। भारतीय लोक आगम का उदाहरण देकर अपना उत्तर स्पष्ट कीजिये।

Examine the place occupied by Non-tax sources of revenue in modern system. Illustrate your answer with Indian example.

प्रश्न 2. लोक आगम के प्रमुख साधन क्या हैं ? विस्तार से समझाइये।

What are the principal sources of public revenue ? Explain clearly.

प्रश्न 3. “सार्वजनिक आय के स्रोतों का वर्गीकरण किया जा सकता है, परन्तु उनके बहुत से भेद पूर्णतया प्रत्यक्ष नहीं हैं और अन्य स्थानों के वर्गीकरण की खोज स्वयं वर्गीकरण की प्राप्ति से अधिक ज्ञानप्रद है।” (डाल्टन) विभिन्न वर्गीकरणों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट कीजिये।।

“The sources of public income may, indeed, be classified, but that many of the distinctions involved are not clear cut and that here as elsewhere, the search for a classification is more instructive than the classification when found.” (Dalton) Critically examine.

प्रश्न 4. सार्वजनिक आय (लोक आगम) से क्या आशय है ? इसके विभिन्न वर्गीकरणों की व्याख्या कीजिये।

What is meant by Public Revenue ? Explain the different classification of Public Revenue.

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. डाल्टन द्वारा सार्वजनिक आय के वर्गीकरण को समझाइये।

Discuss the classification of public revenue explained by Dalton.

प्रश्न 2. सैलिगमैन के सार्वजनिक आय की मुख्य बातें क्या हैं ?

What are main points of public revenue according to Seligman.

प्रश्न 3. कर की किन्हीं दो विशेषताओं को बताइये।

State two characteristics of tax.

प्रश्न 4. व्यावसायिक आय-प्राप्ति के किन्हीं दो कारणों को बताइये।

State two main reasons of commercial income.

प्रश्न 5. सार्वजनिक आय के स्रोतों को संक्षेप में बताइये।

Briefly explain the sources of public revenue.

प्रश्न 6. कर तथा शुल्क में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

Distinguish between tax and fees.

प्रश्न 7. विशेष कर निर्धारण से क्या आशय है ?

What is meant by special assessment?

प्रश्न 8. कर को परिभाषित कीजिये। इसके किन्हीं दो उद्देश्यों को बताइये।।

Define tax and discuss any two objectives of taxation.

Public Revenue Sources Classification

chetansati

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