Bcom 2nd year cost accounting Reconcilliation of cost accounts with financial accounts study material notes in hindi

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Bcom 2nd year cost accounting Reconcilliation of cost accounts with financial accounts study material notes in hindi

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लागत लेखों का वित्तीय लेखों से मिलान

(Reconciliation of Cost Accounts with

Financial Accounts)

प्राय: एक निर्माणी संस्था द्वारा लागत एवं वित्तीय व्यवहारों के लेखांकन हेतु एकीकृत लेखा पद्धति (Integrated Accounting System) अथवा पृथक् लेखा पद्धति (Separate Accounting System) को अपनाया जाता है। एकीकृत लेखा पद्धात क अन्तर्गत लागत एवं वित्तीय सम्बन्धी दोनों ही प्रकार के लेखों के लिये एक ही लेखा पुस्तकें रखी जाती है अत: इस पद्धति के अन्तर्गत लागत लेखों व वित्तीय लेखों के मिलान की आवश्यकता नहीं होती। परन्तु जिन संस्थाओं में लागत एवं वत्ताय मदा का लेखा करने हेत अलग-अलग पस्तकें रखी जाती है. वहाँ उनके मिलान का आवश्यकता अनुभव होना। स्वाभाविक ही है। यद्यपि दोनों लेखा पुस्तकें एक ही आधार पर समान मौलिक प्रपत्रों की सहायता से तैयार की जाती हैं। अत: दाना लखा पुस्तकों द्वारा प्रदर्शित किये जाने वाले परिणामों में स्वाभाविक रूप से समानता होनी चाहिए, किन्तु सामान्यत: ऐसा नहा हाता और लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ, वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ से भिन्न होता है। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि लागत लेखों और वित्तीय लेखों का परस्पर मिलान किया जाये और इस बात का पता लगाया जाये कि दोनों पद्धतियों द्वारा प्रदर्शित परिणामों में भिन्नता का कारण दोनों पुस्तकों में अपनाई गई अलग-अलग नीतियाँ हैं या अन्य कारण। मिलान को आवश्यकता पर जोर देते हुए वाल्टर डब्ल्यू० विग ने कहा है, “यद्यपि बहुत-सी दशाओं में लागत लेखे व वित्तीय लेखे पूर्णतया अलग-अलग रखे जाते हैं तथापि यह अत्यावश्यक है कि उन्हें एक-दूसरे से मिलान के योग्य बनाया जायायदि ऐसा करना सम्भव नहीं है तो लागत लेखों की सत्यता पर कम ही विश्वास किया जा सकेगा।

हेल्डन के अनुसार, “जहाँ लेखे एकीकृत लेखा पद्धति पर रखे जाते हैं, वहाँ लागत लेखे एवं वित्तीय लेखे अलग-अलग नहीं रखे जाते हैं, फलस्वरूप समाधान.की समस्या उपस्थित नहीं होती है। परन्तु जहाँ वित्तीय लेख तथा लागत लेखे दोनों रखे जाते हैं,लेखों का समाधान (मिलान) करना आवश्यक हो जाता है।”

लागत लेखों एवं वित्तीय लेखों के मिलान की आवश्यकता (Need for Reconciliation)-लागत लेखों एवं वित्तीय लेखों के मिलान की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है

  1. दोनों लेखों की शुद्धता ज्ञात करने के लिए दोनों लेखों द्वारा दर्शाये गये परिणामों का मिलान करना आवश्यक है।
  2. दोनों लेखों का मिलान करने से दोनों लेखों के परिणामों में अन्तर के कारणों का ज्ञान हो जाता है।
  3. वित्तीय लेखा तथा लागत लेखा विभागों की गतिविधियों के बीच अच्छा सहयोग एवं समन्वय स्थापित हो जाता है।

लागत लेखों एवं वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों में अन्तर के कारण

(Reasons of Difference Between the Results of

Cost Accounts and Financial Accounts)

लागत लेखों एवं वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों में भिन्नता के प्रमुख कारण निम्नलिखित है

(1) प्रत्यक्ष व्ययों में अन्तर (Difference in Direct Expenses) सामान्यतः प्रत्यक्ष व्ययों के कारण दोनों लेखों द्वारा प्रदर्शित परिणामों में अन्तर नहीं होता क्योंकि प्रत्यक्ष व्ययों का लेखा दोनों पुस्तकों में वास्तविक राशि पर ही किया जाता है। परन्तु कभी-कभी दोनों लेखा पुस्तकों में इनकी राशि अलग-अलग लिखी जाती है जिसके कारण दोनों लेखा पुस्तकों द्वारा प्रदर्शित परिणामों में भिन्नता आ जाती है।

(2) उपरिव्ययों में अन्तर (Difference in Overheads)-वित्तीय लेखों में उपरिव्ययों (अप्रत्यक्ष व्ययों) की वास्तविक । रकमें लिखी जाती है जबकि लागत लेखों में उपरिव्ययों का अवशोषण विगत अनुभव के आधार पर अनुमानित मूल्यों पर किया । जाता है। अत: दोनों लेखों के परिणामों में भिन्नता आ जाती है। ___ लागत लेखों के परिणामों पर अन्तर का प्रभाव-यदि किसी उपरिव्यय की रकम लागत लेखों में कम तथा वित्तीय लेखों में अधिक लिखी गई है तो लागत लेखों में तुलनात्मक रूप से जितनी रकम कम लिखी गई होगी उतनी रकम से लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ अधिक हो जायेगा। इसके विपरीत, यदि वित्तीय पुस्तकों की तुलना में लागत पुस्तकों में किसी उपरिव्यय की रकम अधिक लिखी गई है तो उपरिव्यय के सम्बन्ध में तुलनात्मक रूप से अधिक लिखी गई रकम से लागत। लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ कम हो जायेगा।

(3) कुछ मदों का लागत लेखों में सम्मिलित न होना (Items Excluded from Cost Accounts)-कुछ मद एसा। होती है जो विशुद्ध रूप से वित्तीय प्रकृति की होती हैं, ऐसी मदों का लेखा केवल वित्तीय लेखों मे किया जाता है लेकिन उन्ह ।

लागत लेखों का वित्तीय लेखों से मिलान

लागत लेखों में नहीं लिखा जाता क्योंकि उनका लागत से कोई सम्बन्ध नहीं होता। इस कारण दोनों लेखों द्वारा प्रदर्शित । परिणामों में अन्तर आ जाता है। ऐसी मदों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) व्यय की मदें (Items of Expenditure);

(ब) लाभ नियोजन की मदें (Items of Appropriation of Profit); तथा

(स) आय की मदे (iterns of Income)।

(अ) व्यय का मर्द (Items of Expenditure)-कुछ व्यय एवं हानियाँ वित्तीय प्रकृति की होने के कारण वित्तीय लखा माता शामिल का जाता हलाकन उन्ह लागत लेखों में नहीं लिखा जाता इस प्रकार के व्ययों एवं हानियों से सम्बन्धित प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित है

(1) ख्याति, प्रारम्भिक व्यय तथा अभिगोपन कमीशन अपलिखित करना, (ii) अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर व्यय, . (iii) दान, (iv) पूंजीगत व्यय एवं हानियाँ, (v) जुर्माना एवं अर्थदण्ड, (vi) पूँजी पर दिया गया ब्याज, (vii) ऋणपत्रों पर ब्याज, (viii) असाधारण व्यय जैसे, मन्दी काल में किये जाने वाले असाधारण व्यय, व्यापार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हटाने के व्यय, आदि, (ix) यन्त्रों के अप्रचलन के कारण होने वाली हानियाँ।

(ब) लाभ नियोजन की मदें (Items of Appropriation of Profit)-ऐसी मदें जिनके लिये संस्था द्वारा अर्जित लाभ का प्रयोग किया गया है, लाभ नियोजन की मदें कहलाती है। ऐसी मदों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित है

(1) आय कर एवं अधि कर; (ii) अंशधारियों को दिया जाने वाला लाभांश; (iii) लाभों में से कोषों का निर्माण जैसे, सामान्य संचय, सिंकिंग फण्ड, आदि; (iv) बोनस, आदि।

लागत लेखों के परिणामों पर प्रभाव-लाभ नियोजन की मदें तथा ऐसे व्यय एवं हानियाँ जिन्हें केवल वित्तीय लेखों में लिखा गया है, लागत लेखों में नहीं तो ऐसी मदों की रकम से वित्तीय लेखों की तुलना में लागत लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ अधिक हो जाता है।

(स) आय की मदें (Items of Income)-वित्तीय प्रकृति के व्ययों एवं हानियों की तरह ही अनेक प्राप्तियाँ एवं लाभ भी ऐसे होते हैं कि जिन्हें वित्तीय लेखों में तो लिखा जाता है परन्तु लागत से सम्बन्धित न होने के कारण लागत लेखों में सम्मिलित नहीं किया जाता है। इन आयों के वित्तीय लेखों में लिखे जाने से वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ, लागत लेखों की अपेक्षा बढ़ जाता है। इस प्रकार की मदों के कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं

(i) अंशों के हस्तान्तरण पर प्राप्त शुल्क, (ii) विनियोगों पर प्राप्त व्याज, (iii) प्राप्त बैंक ब्याज, (iv) प्राप्त लाभांश, (v) प्राप्त किराया, प्राप्त दलाली, आदि, (vi) असाधारण लाभा

लागत लेखों के परिणामों पर प्रभाव-जब आय एवं लाभ की कुछ मदों को केवल वित्तीय लेखों में ही शामिल किया। जाता है तो इन आयों के वित्तीय लेखों में लिखे जाने से वित्तीय लेखों द्वारा प्रदर्शित लाभ, लागत लेखों की अपेक्षा बढ़ जाता है।

(4) कुछ मदों का वित्तीय लेखों में सम्मिलित न किया जाना (Items Excluded from Financial Accounts)-कुछ व्यय ऐसे होते हैं जिनका लेखा लागत लेखों में तो किया जाता है क्योंकि वे व्यय उत्पादन से सम्बन्धित होते हैं। परन्तु वास्तव में उनका भुगतान न होने के कारण उन्हें वित्तीय लेखों में नहीं लिखा जाता। जैसे, निजी भवन का किराया, स्वयं प्रबन्धक के रूप में कार्य करने पर अनुमानित प्रबन्धक पारिश्रमिक को लागत में सम्मिलित करना। इस प्रकार कुछ व्ययों को वित्तीय लेखों में सम्मिलित न करने के कारण भी दोनों लेखों के परिणामों में अन्तर हो जाता है।

लागत लेखों के परिणामों पर प्रभाव-ऐसे व्यय जिन्हें केवल लागत पुस्तकों में लिखा गया है परन्तु वित्तीय पुस्तकों में नहीं, उनकी राशि से लागत लेखों का लाभ वित्तीय लेखों की अपेक्षा कम हो जाता है।

(5) हास अपलिखित करने की विधियों में अन्तर (Difference in Methods of Charging Depreciation)-हास । अपलिखित करने की विभिन्न विधियाँ हैं और सामान्यतः प्रत्येक विधि द्वारा चार्ज किये जाने वाले हास की राशि भी अलग-अलग आती है। कभी-कभी दोनों लेखों में हास निकालने की अलग-अलग विधियाँ अपनाई जाती है जिससे ह्रास की राशि में अन्तर होने के कारण दोनों के परिणामों में अन्तर हो जाता है।

लागत लेखों के परिणामों पर प्रभाव-यदि वित्तीय पुस्तकों की तलना में लागत लेखों में हास की रकम अधिक चार्ज की गई हो तो अन्तर की राशि से लागत लेखों का लाभ कम हो जायेगा। इसके विपरीत, यदि वित्तीय पुस्तकों की तुलना में लागत लेखों में ह्रास की रकम कम चार्ज की गई हो तो अन्तर की राशि से लागत लेखों का लाभ बढ़ जायेगा।

(6) स्कन्ध के मूल्यांकन में अन्तर (Difference in Stock Valuation)-लागत लेखों में अन्तिम स्कन्ध का मूल्यांकन सदव लागत मूल्य पर ही (लीफो, फीफो, हीफो, औसत मूल्य पद्धति, आदि विभिन्न पद्धतियों से) किया जाता है, जबकि वित्तीय लेखों में स्कन्ध का मल्यांकन लागत मल्य और बाजार मूल्य दोनों में से जो भी कम हो उस पर किया जाता है। इस प्रकार दोनों लेखों में प्रारम्भिक एवं अन्तिम स्कन्ध का मल्य अलग-अलग होने के कारण उनके द्वारा प्रदर्शित परिणामों में भिन्नता आ जाती है।

लागत लेखा के परिणामों पर प्रभाव– यदि प्रारम्भिक रहतिये का मल्यांकन वित्तीय लेखों की तुलना में लागत पुस्तका म कम मूल्य पर किया गया हो तो अन्तर की राशि से लागत लेखों का लाभ बढ़ जायेगा। इसके विपरीत, यदि लागत लखाम आराम्भक रहातय का मूल्य वित्तीय लेखों की अपेक्षा अधिक हो तो अन्तर की राशि से लागत लेखों का लाभ कम हा जायगा ।

(1) यदि लागत लेखों में अन्तिम रहतिये का मल्य वित्तीय लेखों की अपेक्षा कम लगाया गया हो तो लागत लेखों का लाभ वित्तीय लेखों की तुलना में कम हो जाता है जबकि यदि अन्तिम स्कन्ध का मल्यांकन वित्तीय लखा काला लखा में अधिक कीमत पर किया गया हो तो वित्तीय लेखों के लाभ की तुलना में लागत लेखों का लाभ बढ़ जायेगा।

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