BCom 1st Year Business Regulatory Framework Contracts Agency Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Contracts Agency Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Contracts Agency Study Material Notes in Hindi: Definition of Agent and Agency  Characteristics of Elements of Agency Creation of Agency or Method of Creating and Agency Doctrine of Ratifications Rules Governing Ratification or Essential Requisites of a Valid Ratifications Sub Agent Substituted Characteristics of Substituted Agent Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

Contracts Agency Study Material
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BCom 2nd Year Cost Accounting Expected Important Question Examination Notes in Hindi

एजेन्सी के अनुबन्ध

(Contracts of Agency)

हानिरक्षा, प्रत्याभूति तथा निक्षेप अनुबन्धों की भाँति एजेन्सी अनुबन्ध भी विशेष व्यापारिक अनुबन्धों। की श्रेणी में आते हैं। आधुनिक व्यावसायिक जीवन में यह असम्भव है कि एक व्यक्ति अपने सभी कार्य। स्वयं कर सके, इसलिए राजनियम उसको अपने वैध कार्यों का निष्पादन दूसरे व्यक्तियों से करने की अनुमति प्रदान करता है जो उसके प्रतिनिधि के रुप में कार्य करेंगे तथा ऐसे प्रतिनिधियों द्वारा किये गये कार्यों का वही प्रभाव पड़ता है जैसा कि उनके स्वयं नियोक्ता द्वारा करने पर होता है। वैधानिक दृष्टि से ऐसे नियुक्त किये गये व्यक्ति को एजेन्ट कहते हैं तथा नियोक्ता व प्रतिनिधि के बीच के सम्बन्ध को एजेन्सी कहते हैं।

Regulatory Framework Contracts Agency

एजेन्ट तथा एजेन्सी की परिभाषा

(Definition of Agent and Agency)

एजेन्ट से आशय-सामान्य शब्दों में वह विशिष्ट व्यक्ति, जो अपने मालिक, प्रधान या नियोक्ता की ओर से कार्य करने के लिये अथवा अन्य व्यक्तियों के साथ वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिये नियुक्त किया गया हो, एजेन्ट कहलाता है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 182 के अनुसार, “एक एजेन्ट वह व्यक्ति है जो किसी दूसरे व्यक्ति की ओर से कोई कार्य करने के लिये अथवा तृतीय पक्ष के साथ व्यवहारों में किसी दूसरे व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिये नियुक्त किया जाता है। वह व्यक्ति जिसकी ओर से ऐसा कार्य किया जाता है अथवा जिसकी ओर से इस प्रकार का प्रतिनिधित्व किया जाता है, नियोक्ता या प्रधान (Principal) कहलाता है।

स्पाइसर एवं पैगलर (Spicer and Pegler)के अनुसार, “एजेन्ट एक ऐसा विशिष्ट व्यक्ति है, जिसे प्रधान की ओर से इस विशिष्ट उद्देश्य से कि प्रधान के अन्य व्यक्तियों के साथ या तीसरे पक्षकार या पक्षकारों के साथ वैधानिक सम्बन्धों का निर्माण हो जाये, प्रतिनिधित्व करने या प्रधान (Principal) की ओर से वैधानिक कार्य करने का स्पष्ट अथवा गर्भित अधिकार प्राप्त होता है।”

एजेन्सी से आशयनियोक्ता या प्रधान द्वारा अपने वैधानिक एजेन्ट की नियुक्ति करने के परिणामस्वरुप उनके मध्य जो वैधानिक सम्बन्ध उत्पन्न होते हैं या स्थापित हो जाते हैं, ऐसे सम्बन्ध को ही एजेन्सी कहते हैं।

वारटन के अनुसार, “एजेन्सी एक ऐसा अनुबन्ध है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति कुछ निश्चित व्यावसायिक सम्बन्धों में अपनी विवेक-शक्ति से दूसरे व्यक्ति या पक्षकार का दायित्व स्वीकार करता है।”

अंग्रेजी राजनियम के अनुसार “एजेन्सी का अनुबन्ध एक ऐसा अनुबन्ध है, जिसके अन्तर्गत एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति द्वारा इस उद्देश्य से नियुक्त किया जाता है, जिससे कि नियोक्ता तथा तीसरे व्यक्ति या व्यक्तियों के बीच वैधानिक या कानूनी सम्बन्ध स्थापित किया जा सके।”

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एजेन्ट के अधिकारों का विस्तार या सीमा

(Extent of Agent’s Authority)

एजेन्ट के अधिकारों की सीमा को जानना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि इसके आधार पर ही हम जान पाते हैं कि वैधानिक दृष्टि से एक प्रधान किस सीमा तक अपने एजेन्ट के कार्यों से बाध्य होगा। किसी भी एजेन्ट के अधिकारों की सीमा आपसी अनुबन्ध द्वारा स्पष्ट या गर्भित रुप से निश्चित की जा सकती है किन्तु किसी स्पष्ट या गर्भित अनुबन्ध के अभाव में एजेन्ट के अधिकारों का विस्तार परिस्थितियों के अनुसार इस प्रकार होगा

1 सामान्य परिस्थितियों में एजेन्ट के अधिकारों का विस्तार (Extent of Agent’s Authority Normally)-धारा 188 के अनुसार यदि किसी एजेन्ट को किसी कार्य को करने का अधिकार है तो वह उस कार्य को करने के लिए सभी आवश्यक वैधानिक कार्य करने का अधिकार रखता है। जैसे किसी एजेन्ट की नियुक्ति व्यापार के संचालन हेतु की जाय तो वह व्यापार के लिए आवश्यक सभी वैधानिक कार्य कर सकता है अथवा वे सब कार्य कर सकता है जो उस व्यापार की सामान्य क्रियाओं की पूर्ति के लिए प्राय: किये जाते हैं।

उदाहरण-(i) ब लंदन में रहता है। उसने बम्बई में अपने एक ऋण को वसूल करने के लिये अ को नियुक्त किया। अ ऋण का भुगतान प्राप्त करने की प्रगति में कोई भी आवश्यक वैधानिक उपाय प्रयोग कर सकता है।

उदाहरण-(ii) अपने जहाज-निर्माण के व्यवसाय का संचालन करने के लिए अ ने ब का एजन्ट नियुक्त किया। ब व्यवसाय के संचालन हेतु लकड़ी व अन्य आवश्यक वस्तुएँ खरीद सकता है, श्रमिको को नियुक्त कर सकता है।

सामान्यतः स्पष्ट आदेशों के अभाव में एजेन्ट को नियोक्ता की ओर से ऋण लेने का अधिकार 16 8, परन्तु याद व्यापार का प्रकृति अथवा एजेन्ट के कर्तव्यों की प्रकृति ऐसी हो कि नियोक्ता के आदेशों का पालन करने अथवा अपने कर्तव्यों के निशाने की प्रगति में ऋण लेना आवश्यक हो तब ऐसी दशा में एजेन्ट का ऋण लेने का अधिकार गर्भित माना जा सकता है।

2. आपातकालीन स्थिति में एजेन्ट के अधिकार का विस्तार (Extent of Agents Authority) धारा 189 के अनुसार संकटकालीन परिस्थितियों में एक एजेन्ट अपने प्रधान को हानि से बचाने के लिए वे सभी कार्य कर सकता है जो कि एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति वैसी परिस्थितियों में अपने निजी माल को क्षति से बचाने के लिए सामान्यत: करता है। परन्तु इसके लिए आवश्यक है। संकटकालीन स्थिति वास्तविक होनी चाहिए एवं एजेन्ट इस स्थिति में नहीं था कि वह संकटकालीन स्थिति के विषय में नियोक्ता से कोई परामर्श प्राप्त कर सके। उदाहरण के लिए राम सूरत से कुछ माल अपने एजेन्ट श्याम को जयपुर भेजता है तथा लिखता है कि इसमें से आधा माल वह नरेन्द्र को दिल्ली भेज दे। जब माल जयपुर श्याम के पास पहुँचता है तो वह माल खराब होने की स्थिति में आ जाता है और वह सोचता है कि यदि माल दिल्ली नरेन्द्र के पास भेजा गया तो बिल्कुल ही बिगड़ जायेगा इसलिा श्याम जयपुर में ही उस माल को बेच देता है। यहाँ उसे यह अधिकार संकटकालीन परिस्थितियों के कारण मिला है। इसी प्रकार विक्रय के लिए नियुक्त एजेन्ट माल की मरम्मत करा सकता है यदि ऐसा करना आवश्यक हो।

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उपएजेन्ट

(Sub-Agent)

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 191 के अनुसार, “उप-एजेन्ट एक ऐसा व्यक्ति है जो एजेन्सी व्यापार में मूल एजेन्ट के द्वारा नियुक्त किया जाता है तथा उसके नियन्त्रण में कार्य करता है।” उदाहरणार्थ, ‘अ’ ने किसी कार्य के लिये ‘ब’ को अपना एजेन्ट नियुक्त किया और ‘ब’ इस कार्य के लिये ‘स’ को नियुक्त कर देता है। यहाँ पर ‘स’ उप-एजेन्ट है। उप-एजेन्ट के लिये मूल एजेन्ट प्रधान के समान होता है।

उपएजेन्ट की नियुक्ति की दशाएँ (Conditions For Appointment of Sub-agent)यदि स्पष्ट रुप से एजेन्ट को उप-एजेन्ट नियुक्त करने के अधिकार से वंचित नहीं किया गया है तो निम्नलिखित परिस्थितियों में एक एजेन्ट, उप-एजेन्ट की नियुक्ति कर सकता है

(i) जब नियोक्ता द्वारा अपने एजेन्ट को उप-एजेन्ट की नियुक्ति करने का स्पष्ट अधिकार दे दिया गया है,

(ii) जब व्यापार की प्रथा के अनुसार उप-एजेन्ट नियुक्त किया जा सकता हो,

(iii) यदि एजेन्सी व्यापार का स्वभाव इस प्रकार का है कि उप-एजेन्ट की नियुक्ति आवश्यक हो और इसकी नियुक्ति के अभाव में कार्य संचालन कठिन हो,

(iv) जब नियोक्ता जानता है कि एजेन्ट, उप-एजेन्ट रखना चाहता है और वह उसे स्पष्ट रुप से ऐसा करने से मना नहीं करता,

(v) जब कार्य लिपिकीय प्रकृति (Clerical Nature) का है एवं जिसके लिये विशेष सूझ-बूझ एवं गोपनीयता की आवश्यकता न हो,

(vi) जब नियोक्ता ने उपएजेन्ट की नियुक्ति के लिये अपनी स्पष्ट सहमति दे दी हो, (vii) जब अकस्मात् कोई आपातकालीन स्थिति उत्पन्न हो गई हो।

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नियोक्ता, एजेन्ट तथा उपएजेन्ट के मध्य वैधानिक स्थिति

(Legal Position Between Principal, Agent and Sub-agent)

उप-एजेन्ट की नियुक्ति से प्रधान, एजेन्ट व उप-एजेन्ट के बीच किस प्रकार के सम्बन्ध उत्पन्न होते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उप-एजेन्ट की नियक्ति उचित है अथवा अनचित है। अत: इनकी वैधानिक स्थिति निम्नलिखित दो परिस्थितियों में अलग-अलग स्पष्ट हो सकती है

(अ) उचित ढंग से नियुक्त किये गये उप-एजेन्ट की दशा में

1 नियोक्ता या प्रधान का उत्तरदायित्व (धारा 192)- यदि उपएजेन्ट की नियुक्ति उचित एवं जाककृत रुप ई है तो ऐसी दशा में उप-एजेन्ट प्रधान (नियोक्ता) का प्रतिनिधित्व मुख्य एजन्ट का तरह ही करता है और इसलिये प्रधान, उप-एजेन्ट द्वारा किये गये कार्यों के लिये तीसरे पक्षकारों के प्रति पूर्णतया उत्तरदायी होता है।

2. मूल एजेन्ट का उत्तरदायित्वमल एजेन्ट. उप-एजेन्ट के कार्यों के लिये प्रधान के प्रति । पूर्णतया उत्तरदायों होता है। प्रधान तथा उप-एजेन्ट में कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता, अत: यदि कारोबारा के दौरान उप-एजेन्ट प्रधान के धन या माल का गबन कर लेता है तो एजेन्ट ही प्रधान के प्रति उत्तरदायी होता है। इसीलिये किसी गलती की दशा में प्रधान केवल मूल एजेन्ट के विरुद्ध ही कार्यवाही कर सकता

-एजेन्ट के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। एजेन्ट केवल प्रधान के प्रति ही उत्तरदायी नहीं होता वरन उप-एजेन्ट के प्रति भी उत्तरदायी होता है। वस्तुत: नियोक्ता एवं उप-एजेन्ट दोनों ही अपने अपने अधिकारों के लिये एजेन्ट को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं, क्योंकि ये दोनों ही एजेन्ट से अनबन्ध करते हैं और एजेन्ट के माध्यम से एक दूसरे के सम्पर्क में आते हैं। उप-एजेन्ट अपने पारिश्रामिक के लिये नियोक्ता पर वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता और न ही नियोक्ता अपना रुपया प्राप्त करने के लिये उप-एजेन्ट के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है। दोनों ही एजेन्ट के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।

3. उपएजेन्ट का उत्तरदायित्वउपएजेन्ट अपने कार्यों के लिये सामान्यत: केवल एजेन्ट के प्रति ही उत्तरदायी होता है, प्रधान के प्रति नहीं। परन्तु कपट और जानबूझकर की गई लापरवाही के लिये वह प्रधान के प्रति भी उत्तरदायी होता है। ऐसी दशा में नियोक्ता, एजेन्ट व उप-एजेन्ट दोनों के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है।

() अनाधिकृत या अनुचित रुप से नियुक्त किये गये उप-एजेन्ट की दशा में-धारा 193 के अनुसार यदि उप-एजेन्ट की नियुक्ति अनाधिकृत ढंग से की गई है तो ऐसी दशा में एक ओर तो मूल एजेन्ट, नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी है और दूसरी तरफ उप-एजेन्ट के प्रति उत्तरदायी है। उप-एजेन्ट द्वारा किये गये कार्यों के लिये तीसरे पक्षकारों के प्रति प्रधान का कोई उत्तरदायित्व नहीं होता, क्योंकि ऐसी स्थिति में उप-एजेन्ट, प्रधान का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। इसी प्रकार उप-एजेन्ट, प्रधान के प्रति बिल्कुल उत्तरदायी नहीं होता, कपट और जानबूझकर की गई लापरवाही के लिये भी नहीं। उप-एजेन्ट केवल मूल एजेन्ट के प्रति उत्तरदायी होता है।

स्थानापन्न एजेन्ट

(Substituted Agent) “

जब कोई एजेन्ट नियोक्ता से प्राप्त स्पष्ट अथवा गर्भित अधिकार के आधार पर एजेन्सी के कारोबार में किसी अन्य व्यक्ति को नियोक्ता की ओर से कार्य करने के लिये नामांकित करता है, तो ऐसा अन्य व्यक्ति ‘स्थानापन्न एजेन्ट’ कहलाता है।” स्थानापन्न एजेन्ट मूल एजेन्ट की भाँति कार्य करता है तथा सीधा नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी होता है।

उदाहरणअमित गाजियाबाद में कपिल से अपनी ऋण राशि वसूल करने के लिये सुमित को एजेन्ट के रुप में नियुक्त करता है। सुमित इस कार्य के लिये रामनाथ नाम के एक वकील को कपिल के विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही करने का आदेश देता है। यहाँ पर रामनाथ, अमित का एजेन्ट कहलायेगा न कि सुमित का अर्थात् रामनाथ को स्थानापन्न एजेन्ट कहा जायेगा।

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स्थानापन्न एजेन्ट की विशेषताएँ

(Characteristics of Substituted Agent)

1 ऐसे एजेन्ट की नियुक्ति एजेन्सी अनुबन्ध के अन्तर्गत की जाती है।

2. इसकी नियुक्ति एजेन्ट द्वारा नियोक्ता से प्राप्त स्पष्ट अथवा गर्भित अधिकार के अन्तर्गत की जाती है।

3. इसके कार्य का सम्बन्ध केवल एजेन्सी व्यवसाय के अन्तर्गत सौंपे गये भाग से ही होता है।

4. यह नियोक्ता या प्रधान की ओर से कार्य करता है।

5. मूलएजेन्ट का दायित्व केवल इसकी नियुक्ति तक ही सीमित है।

6. यह नियोक्ता के निर्देशन व नियन्त्रण में कार्य करता है।

7. नियोक्ता व स्थानापन्न एजेन्ट के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

8. स्थानापन्न एजेन्ट के द्वारा किये गये कार्यो के लिए नियोक्ता वैधानिक रुप से उत्तरदायी होता है।

स्थानापन्न एजेन्ट को नामांकित करते समय मल एजेन्ट का कर्तव्य (Agent’s Duty in Naming such Substituted Agent)-“अपने नियोक्ता के लिये स्थानापन्न एजेन्ट का चुनाव करते समय एजेन्ट को उतने ही विवेक से कार्य करना चाहिये, जितने विवेक से एक साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति अपने निजी मामले में करता, और यदि वह ऐसा करता है, तो इस प्रकार से चुने गये एजेन्ट के कार्यों के लिये अथवा उसकी असावधानियों (Negligence) के लिये वह (मूल एजेन्ट) नियोक्ता के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा।

उदाहरण रमेश अपने एजेन्ट दिनेश को अपने लिये एक जहाज खरीदने का आदेश देता है।। दिनेश एक ख्याति प्राप्त विशेषज्ञ सुरेश को जहाज खरीदने के लिये नियुक्त करता है। सुरेश ने जहाज के चुनाव में लापरवाही से कार्य किया। परिणामस्वरुप जहाज समुद्र में डूब गया। रमेश के प्रति दिनेश नहीं। सुरेश उत्तरदायी है।

उपएजेन्ट और स्थानापन्न एजेन्ट में अन्तर

(Difference Between Sub-agent and Substituted Agent)

एजेन्टों का वर्गीकरण

(Classification of Agents)

सामान्यत: एजेन्ट निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) विशिष्ट एजेन्ट (Specific Agent)- किसी विशेष कार्य को सम्पन्न कराने हेतु यदि किसी । व्यक्ति की नियुक्ति की जाए तो वह विशिष्ट एजेन्ट कहलाता है। जैसे किसी मकान को खरीदने के लिये  नियक्त एजेन्ट। कार्य विशेष की प्रगति में किये गये कार्यों के लिये ही नियोक्ता एजेन्ट के कार्यों से दायी। होता है. अन्य कार्यों से नहीं। इसके अतिरिक्त उस कार्य के समाप्त हो जाने पर जिसके लिए एजेन्ट की।

सामान्य एजेन्ट (General Agent)—यह एक ऐसा एजेन्ट है जिसको एक निश्चित सीमा के अन्दर उन समस्त कार्यों के करने का अधिकार होता है जो साधारण प्रकृति के होते हैं, उदाहरण के लिये किसी व्यापार के संचालन हेतु नियुक्त कोई व्यक्ति। यदि नियोक्ता द्वारा एजेन्ट के अधिकार सीमित कर दिये गये हैं और तृतीय पक्षकार इस तथ्य से परिचित है तो अधिकारों के बाहर किये गये कार्यों के लिये एजेन्ट स्वयं उत्तरदायी होगा, नियोक्ता नहीं।

(3) अव्यापारिक एजेन्ट (Non-mercantile Agent) नियोक्ता के अधिकार एवं कर्तव्यों के सम्बन्ध में कार्य करने वाला व्यक्ति अव्यापारिक एजेन्ट होता है अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो नियोक्ता के लिये व्यापार से सम्बन्धित कार्य न करता हो, इस श्रेणी में आते हैं। जैसे कानूनी एजेन्ट जो अपने नियोक्ता को आवश्यक कानूनी सलाह देते हैं, प्राभिकर्ता (Attorney), अभिवक्ता (Pleader), अव्यापारिक एजेन्ट ही होते हैं। पत्नी भी अपने पति की अव्यापारिक एजेन्ट है।

(4) व्यापारिक एजेन्ट (Mercantile Agent)-ऐसा व्यक्ति जो व्यापारिक व्यवहारों में नियोक्ता का प्रतिनिधित्व करने के लिये नियुक्त किया जाये, व्यापारिक एजेन्ट होता है। व्यापारिक एजेन्ट मुख्यत: निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(i) आढ़तिया (Factor) आढ़तिया एक ऐसा व्यक्ति है जिसके अधिकार में माल सौंप दिया जाता है। वह अपने नाम में ही माल बेचता है। यदि आवश्यकता हो तो क्रेता के विरुद्ध स्वयं अपने नाम में वाद प्रस्तुत कर सकता है, सारा उत्तरदायित्व इस सम्बन्ध में इसी का होता है। विक्रय समाप्ति के पश्चात् विक्रय के रुप में प्राप्त धनराशि में से अपना कमीशन काट कर शेष धन विक्रेता के सुपुर्द कर देता है। यदि माल के अधिकार पत्र नियोक्ता की सहमति से इसके पास हैं तो यह बिना नियोक्ता की सहमति के माल को गिरवी रख सकता है एवं नियोक्ता से प्राप्त होने वाली किसी बकाया राशि के लिए यह माल पर पूर्वाधिकार भी रखता है।

(ii) दलाल (Broker) यह ऐसा व्यक्ति है जिसे माल के अधिकार-पत्र नहीं दिये जाते। यह केवल नियोक्ता एवं तृतीय पक्ष के बीच अनुबन्ध की एक कड़ी (Chain) मात्र ही है। यह नियोक्ता | के नाम में ही उसकी ओर से कार्य करता है। अपने कार्य हेतु पारिश्रमिक प्राप्त करने का इसे | अधिकार है। इसे नियोक्ता के माल पर पूर्वाधिकार प्राप्त नहीं होता। अत: दलाल से आशय ऐसे व्यक्ति | से है जिसकी नियुक्ति निश्चित कमीशन के बदले व्यापार एवं वाणिज्य के सम्बन्ध में अनुबन्ध कराने के लिए की जाती है।

(iii) कमीशन एजेन्ट (Commission Agent)—यह दूसरों के लिये कमीशन के आधार पर माल का क्रय-विक्रय करता है। यह नियोक्ता की हैसियत से माल क्रय करके अपने नियोक्ता के पास भेज देता है। यह नियोक्ता के माल को बिना उसकी सहमति लिये गिरवी नहीं रख सकता। इसका मुख्य उद्देश्य अपने नियोक्ता को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाना है।

(iv) परिशोध एजेन्ट (Del-credere Agent)-इसकी नियुक्ति माल बेचने हेतु की जाती है। ऐसा एजेन्ट एक अतिरिक्त कमीशन के प्रतिफल में उधार विक्रय का समस्त उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लेता है। यह अतिरिक्त कमीशन ही Del-credere Commission कहलाता है एवं इसी कारण इसको परिशोध एजेन्ट कहते हैं। इस प्रकार वह अपने नियोक्ता को इस बात का वचन देता है कि उसके द्वारा सम्पन्न उधार विक्रय का धन यदि नहीं मिला तो उसकी क्षतिपूर्ति वह स्वयं करेगा। उधार विक्रय के परिशोध (भुगतान) का उत्तरदायित्व यह अतिरिक्त कमीशन के बदले लेकर नियोक्ता की जोखिम को कम कर देता है।

(v) नीलामकर्ता (Auctioneer) वह व्यक्ति जिसे जनता में नीलाम द्वारा विक्रय का अधिकार दिया जाए, नीलामकर्ता कहलाता है। माल को सबसे अधिक बोली बोलने वाले व्यक्ति को बेचा जाता है।

और प्राप्त धन में से अपना कमीशन काटकर वह शेष धन नियोक्ता के सुपुर्द कर देता है। इस पारिश्रमिक प्राप्त करने के लिये माल का पूर्वाधिकार भी प्राप्त है।।

(vi) बैंकर (Banker) बैंकर अपने ग्राहक का एजेन्ट होता है, जो उसकी ओर से लेन-दन का कार्य करता है। वह ग्राहक की ओर से लाभांश प्राप्त करता है प्रतिभतियों को खरीदता-बेचता है, ब्याज एवं लाभ को एकत्रित करता है, ग्राहक की ओर से चैक बिल हण्डी आदि को वसूल करता है एवं चुकाता है।

(VII) आभगोपक (Underwriter) ऐसा व्यक्ति जो निश्चित कमीशन के बदले एक नितिन ” अश विक्रय की गारन्टी देता है. अभिगोपक कहलाता है। गारन्टी से कम मात्रा में अंशों के विका हान की दशा में वह स्वयं ही बचे हुए अंश खरीद लेता है।

इसके अतिरिक्त आयात-निर्यात करने वाले, स्टॉक-ब्रोकर्स (Stock-Brokers), व्यादेशक (Indenter) आदि भी व्यापारिक एजेन्ट के उदाहरण हैं।

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नियोक्ता के प्रति एजेन्ट के कर्तव्य

(Duties of an Agent to his Principal)

एजेन्ट अपने नियोक्ता का प्रतिनिधित्व करता है, अत: उसे एजेन्सी के कार्य को पूर्ण सावधानी । चतुरता, ईमानदारी एवं निष्ठापूर्वक करना चाहिये। सदैव नियोक्ता के हित को प्राथमिकता देनी चाहिये पण उसी प्रकार कार्य करना चाहिये जितना कि समान परिस्थितियों में कोई व्यक्ति स्वयं के लिये करता है। संक्षेप में, नियोक्ता के प्रति एजेन्ट के मुख्य कर्तव्य निम्नलिखित प्रकार हैं

1 प्रधान के आदेशानुसार कार्य करना (धारा 211) (To Work According to Principal’s Instructions)- एजेन्ट का मूल कर्तव्य है कि वह नियोक्ता के आदेशानुसार कार्य करे। स्पष्ट आदेश के अभाव में एजेन्ट को क्षेत्र तथा व्यापार विशेष में प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार कार्य करना चाहिये। यदि एजेन्ट ऐसा नहीं करता और इससे प्रधान को कुछ हानि होती है, तो एजेन्ट को उसकी क्षतिपर्ति करनी होगी और यदि उसे कोई लाभ होता है, तो उसका हिसाब-किताब नियोक्ता को देना होगा। उदाहरणार्थ, एजेन्ट ने प्रधान के लिये माल खरीद कर एक गोदाम में रख दिया। प्रधान ने एजेन्ट को माल का बीमा करवाने का स्पष्ट आदेश दे रखा था, परन्तु एजेन्ट ने बीमा नहीं कराया। माल नष्ट हो जाने पर एजेन्ट माल के मूल्य के लिये प्रधान के प्रति उत्तरदायी माना जायेगा।

2. उचित कौशल एवं परिश्रम से कार्य करना (धारा 212) (To Work with Reasonable Skill and Deligence)- एजेन्ट को एजेन्सी का कारोबार उतनी ही चतुराई, कौशल एवं परिश्रम से करना चाहिये जितना कि उस प्रकार का व्यापार करने वाले व्यक्तियों से सामान्यतः अपेक्षित है। एजेन्ट अपनी लापरवाही, अयोग्यता, उपेक्षा या दुराचरण से होने वाली प्रत्यक्ष हानियों की क्षतिपूर्ति हेतु उत्तरदायी होगा, परन्तु वह अप्रत्यक्ष अथवा दूर के कारणों से उत्पन्न होने वाली हानियों के लिये उत्तरदायी नहीं होगा। उदाहरणार्थ, अशोक को अपने प्रधान मोहन की ओर से उधार माल बेचने का अधिकार है। अशोक, रोहित को उसकी आर्थिक स्थिति के बारे में पूछताछ किये बिना उधार माल बेच देता है। माल खरीदते समय ही रोहित दिवालिया था। ऐसी दशा में मोहन को हुई हानि के लिये अशोक उत्तरदायी होगा।

3. उचित रुप में हिसाबकिताब रखना एवं प्रधान को प्रस्तुत करना (धारा 213) (To Keep and Render Proper Accounts)–एजेन्ट का यह महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह एजेन्सी सम्बन्धी समस्त लेन-देनों का सही-सही हिसाब रखे और जिस समय भी प्रधान हिसाब माँगे उसका सम्पूर्ण हिसाब दे दे। ।

4. कठिनाई के समय प्रधान से सम्पर्क करना (धारा 214) (To Communicate with Principal in Cases of Difficulty)- एजेन्ट का यह कर्तव्य है कि कठिनाई के समय वह प्रधान से सम्पर्क स्थापित करके आवश्यक आदेश प्राप्त करने का प्रयत्न करे। यदि प्रधान से सम्पर्क करना। असम्भव हो तो उसे साधारण विवेक वाले व्यक्ति के समान पूर्ण सदभावना से प्रधान के हितों की रक्षा के लिये कार्य करना चाहिये अन्यथा वह प्रधान को हुई हानि के लिये उत्तरदायी होगा।

5. निजी हिसाब में व्यवहार करना (धारा 215 एवं 216) (Not to Deal on his own Account)– एजेन्ट व नियोक्ता का सम्बन्ध विश्वासाश्रित सम्बन्ध है, अतः एजेन्ट को बिना नियोक्ता की अनुमति लिये एवं ऐसी समस्त महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी उसे कराये बिना जिनका कि उसे ज्ञान। है. एजेन्सी के व्यवसाय में अपने स्वयं के हिसाब में कोई व्यवहार नहीं करना चाहिये। यदि एजेन्ट प्रधान। को बिना बताये या प्रधान से महत्त्वपूर्ण तथ्य छिपाकर अपने नाम से कोई कार्य करता है. तो प्रधान का। यह अधिकार होगा कि वह एजेन्ट से उस सम्पूर्ण लाभ को वसूल कर ले जोकि उसने (एजेन्ट ने) कमाया है और यदि कोई हानि हुई है तो प्रधान उस हानि को परी करने के लिये उत्तरदायी न होगा। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि एजेन्ट अपने निजी नाम में कोई व्यवहार करता है तो प्रधान उस सौद या व्यवहार को रद्द कर सकता है। उदाहरणार्थ, अतुल किसी एक विशिष्ट मकान को खरीदने के लिय संदीप को अपने एजेन्ट के रुप में नियुक्त करता है। संदीप, अतुल से कहता है कि वह मकान नहीं खरीदा जा सकता और उस मकान को स्वयं अपने लिये और उस मकान को स्वय अपने लिये खरीद लेता है। इस बात का पता चलने पर अतल, संदीप से वह मकान उसी मूल्य पर हस्तान्तरित करा सकता है

6. प्रधान के लिये प्राप्त राशि प्रधान को देना (To Pay Sums Received on Behalf of the pain एजेन्ट का यह कर्तव्य है कि उसने जो भी धन प्रधान के लिये प्राप्त किया है. उसमें से स्वयं को देय राशि काटकर शेष रकम का भुगतान प्रधान को कर दे।

7. अपने अधिकार का हस्तान्तरण करना (Not to Delegate Authority)- प्रत्येक एजेन्ट को अपने कर्तव्यों का स्वयं ही निर्वाह करना चाहिये एवं अपने अधिकार किसी अन्य व्यक्ति को हस्तान्तरित नहीं करने चाहिये, जब तक कि उसे ऐसा करने का स्पष्ट अधिकार नियोक्ता द्वारा प्रदान नहीं कर दिया गया हो अथवा व्यापार की सामान्य प्रथानुसार ऐसा हस्तान्तरण किया जा सकता हो।

8. प्राप्त सूचना का नियोक्ता के विरुद्ध प्रयोग करना (Not to Use Information Against Principal)– एजेन्सी का कार्य करते समय प्राय: एजेन्ट को नियोक्ता से सम्बन्धित अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती हैं। एजेन्ट का कर्तव्य है कि वह ऐसी सूचनाओं को नियोक्ता के हितों के विरुद्ध प्रयोग न करे।

9.नियोक्ता के माल पर कोई विपरीत अधिकार स्थापित करना (Not to Set up Adverse Title)- एजेन्सी के अन्तर्गत नियोक्ता से प्राप्त माल पर एजेन्ट को अपना या किसी अन्य पक्ष का अधिकार स्थापित नहीं होने देना चाहिये।

10. गुप्त लाभ प्राप्त करना (Not to Enjoy Secret Profits)- एजेन्सी एक सद्विश्वास का अनुबन्ध है। अत: एजेन्ट को एजेन्सी के कारोबार से अपने पारिश्रमिक के अलावा, बिना प्रधान की सहमति के, अन्य किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं करना चाहिये। यदि एजेन्सी के कारोबार के दौरान उसे कुछ गुप्त लाभ प्राप्त होता है तो उसका यह कर्तव्य है कि वह उस लाभ को प्रधान को समर्पित कर दे। उदाहरणार्थ, ‘अ’ ने ‘ब’ को एक सम्पत्ति बेचने के लिये एजेन्ट नियुक्त किया जिसके लिये 400 ₹ कमीशन निश्चित हुआ। ‘ब’ ने क्रेता से भी गुप्त रुप से 100 ₹ कमीशन के ले लिये। ‘ब’ यह 100 ₹ ‘अ’ को देने के लिये बाध्य है।

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नियोक्ता के विरुद्ध एजेन्ट के अधिकार

(Rights of Agent Against the Principal)

नियोक्ता के विरुद्ध एजेन्ट को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं—

1 पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार (Right to Receive Remuneration)- एजेन्ट को अपने द्वारा किये गये कार्य के लिये प्रधान से निर्धारित पारिश्रमिक अथवा पारिश्रमिक निश्चित न किये जाने की दशा में उचित पारिश्रमिक प्राप्त करने का अधिकार है, परन्तु दुराचरण का दोषी होने की दशा में दराचरण से सम्बन्धित भाग के लिये उसे कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जायेगा। धारा 219 के अनुसार किसी विशेष अनुबन्ध के अभाव में एजेन्ट अपने कार्य के लिये तभी पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है जब उसने उस काम को पूरा कर दिया हो जिसके लिये उसे नियुक्त किया गया था। उदाहरणार्थ-(i) अतुल, संदीप को एक मकान की बिक्री के लिये 5% कमीशन पर एजेन्ट नियुक्त करता है। संदीप एक क्रेता रोहित को मकान क्रय करने के लिये तैयार कर लेता है, परन्तु इसी बीच अतुल यह मकान विपुल को बेच देता है। संदीप को सौंपा गया काम उसके द्वारा पूर्ण कर दिया गया है, अत: वह पारिश्रमिक पाने का

अधिकारी है। (ii) ‘अ’ने ‘ब’ से अपने 500 ₹ प्राप्त करने के लिये ‘स’ को एजेन्ट नियुक्त किया, परन्तु ‘स’ के दुराचरण के कारण रुपया वसूल न हो सका। ‘स’ कोई पारिश्रमिक पाने का अधिकारी नहीं है।

2. प्रधान के लिये प्राप्त धन को रोकने का अधिकार (Right to Retain Money)- यदि एजेन्ट ने अग्रिम के रुप में कुछ धन प्रधान को दिया है या उसने एजेन्सी के लिये कुछ धन व्यय किया है, तो जब तक उसे यह राशि प्राप्त नहीं हो जाती वह प्रधान के लिये प्राप्त धन में से उतनी रकम रोक सकता है। यह अधिकार एजेन्ट के पारिश्रमिक के सम्बन्ध में भी लाग होता है।

3. ग्रहणाधिकार (Right of Lien)- किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में एजेन्ट को अधिकार है कि जब तक उसे अपना पारिश्रमिक तथा अन्य खर्चों का भगतान न मिल जाये, वह प्रधान का माल, चल-अचल सम्पत्ति, प्रपत्र आदि रोक कर रख सकता है। एजेन्ट को विशिष्ट पूर्वाधिकार (Particular Lien) ही दिया गया है अर्थात् वह केवल वही सम्पत्ति रोक सकता है जिसके सम्बन्ध में उसे प्रधान से कुछ राशि प्राप्त करनी है।

4. माल को मार्ग में रोकने का अधिकार (Richt of stoppage of Goods in Transit)एजेन्ट ने यदि अपने धन से नियोक्ता के लिये माल खरीदा है अथवा माल के मूल्य के लिये अपना व्यक्तिगत दायित्व दिया है तो एजेन्ट अपने नियोक्ता के विरुद्ध एक अदत्त विक्रेता के रुप में होता है और

इसी कारण उसे, वाहक को नियोक्ता के पास पहुँचाने के लिये दिये गये माल को, मार्ग में ही रोकने का अधिकार होता है।

5. क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार (Right of Indemnification)-निम्नांकित दशाओं में एक एजेन्ट को नियोक्ता से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है

() वैध कार्यों के सम्बन्ध में हुई हानि- यदि एजेन्सी के संचालन में वैध कार्यों के करने के परिणामस्वरुप एजेन्ट को कोई हानि होती है तो वह प्रधान से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी होता है। उदाहरणार्थ, अतुल अपने प्रधान विपूल के आदेश पर संदीप से कुछ माल खरीदने का अनुबन्ध करता है। बाद में विपुल माल लेने से इन्कार कर देता है। संदीप अतुल पर दावा करके हर्जाना व अन्य खर्च वसूल कर लेता है। अतुल यह राशि अपने प्रधान विपुल से वसूल कर सकता है।

() सद्भावना से कार्य करने पर हुई हानि की पूर्ति कराने का अधिकार- यदि एजेन्ट, ने पूर्ण सद्भावना से कार्य किया है और उन कार्यों के परिणामस्वरुप उसे कुछ क्षति उठानी पड़ी है तो वह नियोक्ता से ऐसी क्षति की क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकता है, परन्तु इसके लिये यह आवश्यक है कि कार्य नियोक्ता के लिये एजेन्ट द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत किया गया हो। उदाहरणार्थ, अतुल अपनी कुछ वस्तुयें बिकवाने के लिये विपुल को अपना एजेन्ट नियुक्त करता है। विपुल को अतुल के दोषपूर्ण अधिकार के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी। विपुल माल की बिक्री करके बिक्री का धन अतुल को सौंप देता है। बाद में वस्तुओं का वास्तविक स्वामी ‘संदीप’, ‘विपुल’ पर दावा करके उससे वस्तुओं का मूल्य वसूल कर लेता है। यहाँ पर अतुल क्षतिपूर्ति करने के लिये बाध्य है।

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि यदि एजेन्ट द्वारा किये जाने वाला कार्य अवैध या आपराधिक प्रकृति का है, तो एजेन्ट ऐसे कार्यों के परिणामस्वरुप हुई हानि के लिये प्रधान को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकता।

() प्रधान की लापरवाही के कारण हुई हानि की पूर्ति कराने का अधिकार- यदि एजेन्ट को नियोक्ता की लापरवाही अथवा चतुराई के अभाव के कारण कुछ हानि होती है तो वह ऐसी हानि की रकम को नियोक्ता से प्राप्त कर सकता है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ एक मकान बनाने के लिये ‘ब’ को मिस्त्री अथवा बेलदार के रुप में नियुक्त करता है और स्वयं मचान बनाकर मकान तैयार करता है। मचान कुशलता से न बनाये जाने के कारण ‘ब’ को चोट लग जाती है। यहाँ ‘ब’ ‘अ’ से क्षतिपूर्ति कराने का अधिकारी है।

() निर्धारित समय से पूर्व एजेन्सी समाप्त होने पर क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार-धारा 205 के अनुसार यदि नियोक्ता बिना उचित कारण के निर्धारित समय से पूर्व एजेन्सी समाप्त कर देता है तो इससे होने वाली हानि के लिये एजेन्ट उससे क्षतिपूर्ति कराने का अधिकारी है।

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एजेन्ट का तृतीय पक्ष के प्रति व्यक्तिगत दायित्व

(Personal Liability of Agent against Third Party)

सामान्य नियम यह है कि यदि कोई एजेन्ट तीसरे पक्षकार को अपने प्रधान का नाम बताकर कोई अनुबन्ध करता है तो वह तीसरे पक्षकारों के प्रति व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 230 में स्पष्ट आदेश है कि किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में नियोक्ता के लिये किये गये अनुबन्धों को न तो एजेन्ट स्वयं लाग (Enforce) ही करा सकता है और न कैसा ही वह ऐसे अनुबन्धों के लिये व्यक्तिगत रुप से बाध्य होगा। वस्ततः एजेन्ट तो केवल मात्र अपने प्रधान और तीसरे पक्ष के बीच वैधानिक सम्बन्ध की स्थापना करता है। इसीलिये एक एजेन्ट द्वारा किया गया। कार्य उसके नियोक्ता का कार्य माना जाता है।

उदाहरणार्थ ‘अ’, ‘ब’ का एजेन्ट है और वह ‘स’ के साथ ‘ब’ का मकान बेचने का अनुबन्ध करता है। बाद में ‘स’ मकान नहीं खरीदता है तो ‘अ’, ‘स’ पर स्वयं वाद प्रस्तत नहीं कर सकता और न । उसके ऊपर ही व्यक्तिगत रुप से दावा किया जा सकता है।

अपवाद निम्नलिखित परिस्थितियों में एक एजेन्ट को व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है अर्थात् वह स्वयं दूसरों के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है और उसके विरुद्ध भी अन्य पक्षों । द्वारा वाद प्रस्तुत किया जा सकता है

1 जब स्पष्ट रुप से ऐसा अनुबन्ध किया गया हो (When the Contract Expressly Provides)- यदि तृतीय पक्षकार प्रधान को अच्छी तरह नहीं जानते और वे अनुबन्ध करते समय ही यह स्पष्ट कर देते हैं कि अनुबन्ध भंग होने की दशा म व एजेन्ट को ही उत्तरदायी इस बात के लिये सहमत हो जाता है, तो एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी हो जाता है। कभी-कभी गर्भित रुप से भी एजेन्ट व्यक्तिगत दायित्व स्वीकार कर लेता है।

2. विदेशी प्रधान के लिये कार्य करने पर (Acting for a Foreigner Principal)- जब एजेन्ट किसी विदेशी प्रधान के लिये क्रय-विक्रय करता है तो अनबन्ध के निष्पादन के लिये एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है। इस नियम की मान्यता यह है कि अनुबन्ध तीसरे पक्षकार द्वारा एजेन्ट की साख पर किया गया है, विदेशी प्रधान की साख पर नहीं।

3. अप्रकट प्रधान के लिये कार्य करने पर (Acting for Undisclosed Principal)- यदि एजेन्ट अपने प्रधान का नाम प्रकट नहीं करता और न ही तीसरे पक्षकार को नियोक्ता के नाम की जानकारी है तथा न ही प्रधान का नाम जानने के लिये पर्याप्त साधन उपलब्ध हों, तो ऐसी दशा में किये गये व्यवहार के लिये एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होगा।

4.नियोक्ता पर वाद प्रस्तुत किये जा सकने पर (Acting for a Principal who cannot be Sued)- जब एजेन्ट ने प्रधान का नाम तो प्रकट कर दिया हो परन्तु प्रधान के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती हो, तो एजेन्ट तीसरे पक्षकारों के प्रति व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है। उदाहरणार्थ, किसी अवयस्क या विदेशी राजदूत के लिये कार्य करने पर एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है क्योकि अवयस्क एवं विदेशी राजदूत पर अनुबन्ध करने के अयोग्य होने के कारण वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।

5. विनिमयसाध्य विलेखों पर स्वयं हस्ताक्षर करने पर (By Signing a Negotiable Instrument in his own Name)- जब कोई एजेन्ट किसी विनिमय साध्य विलेख जैसे विनिमय-पत्र, प्रतिज्ञा-पत्र, चैक आदि पर बिना यह स्पष्ट किये हुये कि वह एजेन्ट है, अपने नाम से हस्ताक्षर करता है तो एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है।

6. अधिकार क्षेत्र से बाहर के कार्यों के लिये (When the Agent Exceeds his Authority)- जब कोई एजेन्ट अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर कार्य करता है और प्रधान उन कार्यों की पुष्टि नहीं करता, तो एजेन्ट तीसरे पक्षकारों के प्रति व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है।

7.जब एजेन्ट का एजेन्सी में हित हो (When Agency is Coupled with Interest)-जब एजेन्ट का एजेन्सी के कार्य में अपना कुछ हित होता है तो उस हित की सीमा तक वह स्वयं बाध्य होता है तथा अन्य पक्षों को भी बाध्य कर सकता है।

8. अस्तित्वहीन प्रधान के लिये कार्य करने पर (Acting for Non-existing Principal)जब एजेन्ट किसी ऐसे प्रधान के लिये कार्य करता है जिसका अस्तित्व ही नहीं है, तो एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है। ऐसी स्थिति में यह माना जाता है कि एजेन्ट ने स्वयं अपने लिये कार्य किया है। कम्पनी के समामेलन से पूर्व प्रवर्तकों द्वारा किये गये अनुबन्धों के लिये कम्पनी नहीं बल्कि प्रवर्तक स्वयं उत्तरदायी होते हैं।

9. मिथ्यावर्णन अथवा कपटपूर्ण कार्य के लिये (For Misrepresentation and Fraud)जब एजेन्ट कपट अथवा मिथ्यावर्णन का दोषी ठहराया जाता है तो उसका प्रधान उसके द्वारा किये गये कार्यों के लिये उत्तरदायी नहीं होगा, वरन् एजेन्ट ही व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होगा।

10. व्यापारिक रीतिरिवाज अथवा प्रथा के आधार पर होता है तो किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में उसका व्यक्तिगत दायित्व व्यापारिक रीति-रिवाज तथा प्रथा के अनुसार होगा।

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एजेन्ट के प्रति नियोक्ता के कर्तव्य

(Duties of Principal to his Agent)

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत एक एजेन्ट के जो अधिकार हैं वही सब नियोक्ता के कर्तव्य हैं। इस आधार पर नियोक्ता के निम्नांकित कर्तव्य होते हैं

1 एजेन्ट को पारिश्रमिक व अन्य उचित व्ययों का भुगतान करना।

2. समस्त वैध कार्यों के परिणामों से एजेन्ट की हानिरक्षा करना।

3. एजेन्ट द्वारा सद्भाव से किये गये समस्त कार्यों के परिणामों से रक्षा करना, दण्डनीय कार्यों के परिणामों को छोड़कर।

4. नियोक्ता की गलती अथवा विवेक की कमी के कारण एजेन्ट को होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति करना।

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एजेन्ट के विरुद्ध प्रधान के अधिकार

(Rights of Principal against Agent)

एजेन्ट के प्रति प्रधान के वे ही अधिकार हैं जो एजेन्ट के उसके प्रति कर्तव्य हैं। संक्षेप में, प्रधान के अधिकार निम्नांकित हैं

एजेन्ट से आदेशानुसार कार्य करवाना। 2. लापरवाही तथा असावधानी से कार्य करने पर क्षतिपूर्ति प्राप्त करना। 3. हिसाब माँगना। 4. गुप्त लाभों को प्राप्त करना। 5. नियोक्ता की ओर से एजेन्ट द्वारा प्राप्त राशि को वसूल करना। 6. एजेन्ट के अनाधिकृत कार्यों को अस्वीकार करना या स्वीकार करना। 7. एजेन्ट के अधिकारों को बढ़ाना या घटाना या समाप्त करना। 8. एजेन्ट द्वारा दुराचरण करने पर पारिश्रमिक देने से इन्कार करना।

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तीसरे पक्षकार के प्रति नियोक्ता का दायित्व

(Responsibility of Principal towards Third Parties)

सामान्यतया एक नियोक्ता अपने एजेन्ट के उन कार्यों के लिए तीसरे पक्षकारों के प्रति उत्तरदायी होता है जोकि उसने अपने अधिकार के अधीन किया है या नियोक्ता की सहमति से किये हैं। एक नियोक्ता के तीसरे पक्षकार के प्रति निम्नलिखित दायित्व हैं

एजेन्ट के अधिकृत कार्यों के प्रवर्तन एवं परिणाम के लिए दायित्व-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 226 के अनुसार एजेन्ट द्वारा किये गये अनुबन्धों तथा कार्यों से उत्पन्न दायित्वों को ठीक उसी प्रकार प्रवर्तित कराया जा सकेगा और उनके वे ही परिणाम होंगे जैसे कि वे अनुबन्ध तथा कार्य स्वयं प्रधान (नियोक्ता) द्वारा किये गये हों। उदाहरण के लिए ‘अ’ को यह मालूम है कि ‘ब’ वस्तु बेचने के लिए एजेन्ट है मगर उसे ‘ब’ के नियोक्ता की जानकारी नहीं है फिर भी ‘अ’ ‘ब’ से माल खरीद लेता है। ‘ब’ के नियोक्ता को ‘अ’ से माल का मूल्य माँगने का अधिकार है तथा इसी प्रकार नियोक्ता द्वारा अनुबन्ध खण्डन की दशा में ‘अ’ को नियोक्ता के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।

1 एजेन्ट के अंशत: अधिकृत कार्यों के लिए दायित्व- यदि कोई एजेन्ट अपने अधिकारों से बाहर कार्य करता है और उसके ऐसे अनाधिकृत कार्य को अधिकृत कार्य से अलग किया जा सकता है तो प्रधान तीसरे पक्षकार के प्रति केवल अधिकृत कार्यों के लिए उत्तरदायी होगा। तीसरा पक्षकार उस अतिरिक्त अनाधिकृत कार्य के लिए प्रधान को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकता। उदाहरण के लिए राम एक जहाज तथा उस जहाज पर लदे हुए माल का स्वामी है। वह मोहन को जहाज का 25,000 ₹ का बीमा करवा लेने का अधिकार देता है। मोहन जहाज का बीमा करवा लेता है साथ ही वह जहाज में लदे माल का भी 25,000 ₹ का बीमा करवा लेता है। यहाँ पर राम केवल जहाज के बीमा का प्रीमियम देने के लिए बाध्य है माल की पॉलिसी के लिए नहीं।

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2. एजेन्ट का अनाधिकृत कार्य अलग करने योग्य होने पर प्रधान दायी नहीं होगायदि कोई एजेन्ट अपने अधिकारों से बाहर कोई कार्य करता है और उस अनाधिकृत कार्य को अलग नहीं किया जा सकता तो प्रधान (नियोक्ता) इस सम्पूर्ण व्यवहार को मानने के लिए बाध्य नहीं है। उदाहरण के लिए ‘अ’ ‘ब’ को 100 भेड़ें खरीदने के लिए एजेन्ट नियुक्त करता है। ‘ब’ 100 भेड़ें तथा 20 मेमने 10,000 ₹ में खरीद लेता है। यहाँ ‘अ’ को इस कार्य को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है क्योंकि भेडों तथा मेंमनों के मूल्य को अलग करने का कोई निश्चित आधार नहीं है।

3. एजेन्ट को दी गयी सूचना का प्रभाव-धारा 229 के अनसार एजेन्ट को दी गई अथवा एजेन्ट द्वारा प्राप्त की गई सूचना नियोक्ता तथा तीसरे पक्षकार के बीच उसी प्रकार के वैधानिक दायित्व उत्पन्न करती है जैसे कि सूचना नियोक्ता को दी गयी है बशर्ते यह सचना एजेन्सी के सामान्य व्यवहार के क्रम में दी गयी हो। उदाहरण के लिए राम, श्याम को मोहन से ऐसी वस्तुएँ खरीदने के लिए नियक्त करता है। जिनका मोहन प्रत्यक्ष स्वामी है। श्याम उसे खरीद लेता है। विक्रय के व्यवहार की प्रगति में श्याम को यह ज्ञात होता है कि वस्तु का स्वामी मोहन न होकर सोहन है। राम इस तथ्य से अनभिज्ञ है। मोहन को एक ऋण का भुगतान राम को करना है लेकिन राम इन वस्तुओं के मूल्य को अपने ऋण के भगतान में समायोजित नहीं कर सकता। उसे सोहन को मूल्य का भुगतान करना पड़ेगा

4. एजेन्ट को दी मनों के मूल्य को अलग कर स्वाकार करने के लिए बाध्यएजेन्ट के अनाधिकृत कार्य को अधिकृत करने का विश्वास दिलाने पर प्रधान का यित्व-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 237 के अनुसार यदि कोई एजेन्ट अपने अधिकारों से बाहर कोई ठहराव प्रधान की ओर से कर लेता है और प्रधान अपने शब्दों या आचरण से तीसरे पक्षकारों को यह विश्वास दिलाता है कि उसके अनाधिकृत कार्यों के लिए वह स्वयं उत्तरदायी है तो वह उन सभी कार्यों के लिए उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकता है।

5. एजेन्ट के कपट अथवा मिथ्या वर्णन के लिए दायित्व-यदि कोई एजेन्ट, एजेन्सी के व्यवसाय के सामान्य व्यवहार में कोई कपट अथवा मिथ्या वर्णन करता है तो उसके लिए प्रधान तीसरे पक्षकारों के प्रति उत्तरदायी होता है। किन्तु यदि एजेन्ट ने मिथ्या वर्णन या कपट अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर के कार्यों के लिए किया है तो उसके लिये प्रधान उत्तरदायी नहीं होगा। उदाहरण के लिए ‘अ’ ‘ब’ की वस्तुएँ बेचने के लिए उसका एजेन्ट है। ‘अ’, ‘स’ को मिथ्या वर्णन द्वारा ऐसी वस्तुएँ खरीदने के लिए प्रेरित करता है जिसका उसे ‘ब’ ने कोई अधिकार नहीं दिया है। यहाँ स की इच्छा पर अनुबन्ध व्यर्थनीय है लेकिन नियोक्ता उसके इस कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।

6. दण्डनीय अपराध के लिए दायित्व-यदि कोई एजेन्ट अपने अधिकारों के अन्तर्गत कार्य करते हुए तीसरे पक्षकार के शरीर या सम्पत्ति को हानि पहुंचाता है तो प्रधान तीसरे पक्षकार के प्रति उत्तरदायी होगा। साथ ही एजेन्ट भी उसके लिए उत्तरदायी होगा।

8.संकट काल के कार्यों के लिए दायित्व-यदि एजेन्ट ने संकटकाल में कोई भी कार्य किया है तो उन सभी कार्यों के लिए प्रधान तीसरे पक्षकार के प्रति व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है बशर्ते एजेन्ट ने उतनी ही सूझ बूझ से वे कार्य किये हों जितनी एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति करता।

9. एजेन्ट की स्वीकृति के लिए दायित्व-यदि एजेन्ट ने तीसरे पक्षकारों के समक्ष अपनी त्रुटि को स्वीकार कर लिया है तो नियोक्ता उसके इस कार्य के लिए बाध्य हो जाता है। उदाहरण के लिए एक रेल यात्रा में एक यात्री का सामान कुली लेकर भाग जाता है। स्टेशन मास्टर ने पुलिस को यह रिपोर्ट लिखवाई कि रेलवे का एक कुली सामान चुराकर भाग गया है। इसमें यह निर्णय हुआ कि रेलवे कम्पनी यात्री का सामान खो जाने के प्रति उत्तरदायी है क्योंकि रेलवे के एजेन्ट अर्थात स्टेशन मास्टर ने अपनी रिपोर्ट द्वारा उक्त दोष को स्वीकार किया है।

10. एजेन्ट के गलत कार्यों के लिए दायित्व-यदि कोई एजेन्ट, एजेन्सी के व्यवसाय में कोई गलत कार्य करता है तो भी प्रधान को उसके लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकेगा।

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एजेन्सी की समाप्ति

(Termination of Agency)

जिस प्रकार एजेन्सी की स्थापना की जाती है उसी प्रकार एजेन्सी समाप्त भी हो सकती है। एजेन्सी, एजेन्ट और प्रधान के बीच एक वैधानिक सम्बन्ध स्थापित करने की रीति है, जिसे आपसी सम्बन्धों अथवा अधिनियम के अधीन समाप्त किया जा सकता है । भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 201 के अनुसार एजेन्सी की समाप्ति निम्नलिखित प्रकार की जा सकती है

1 एजेन्सी अनुबन्ध के निष्पादन द्वारा (By Performance of the Contract of Agency)-जब एजेन्ट को किसी विशेष कार्य के लिए नियुक्त किया गया है तो उस कार्य के पूर्ण हो जाने पर स्वतः ही एजेन्सी की समाप्ति हो जाती है। उदाहरणार्थ,’अ’ ने अपना मकान बेचने के लिये ‘ब को एजेन्ट नियक्त किया तो मकान का विक्रय होने पर एजेन्सी स्वत: ही समाप्त हो जायेगी।

2. पक्षकारों के ठहराव द्वारा (By Mutual Agreement Between the Parties)-ठहराव द्वारा एजेन्सी उत्पन्न होती है और ठहराव द्वारा ही समाप्त की जा सकती है। नियोक्ता एवं एजेन्ट का पारस्परिक सहमति से किसी भी समय एवं किसी भी अवस्था में एजेन्सी को समाप्त किया जा सकता ह। ऐसा करने में किसी प्रकार की वैधानिक अड़चनें भी नहीं हैं।

3. एजेन्सी की अवधि समाप्त हो जाने पर (By Exniroof Time)-जब एजन्ट का। एक निश्चित अवधि के लिये की गई हो तो अवधि व्यतीत होने पर एजेन्सी समाप्त हा जाता कार्य अभी पूरा न हुआ हो।

4. विषयवस्तु के नष्ट होने पर (By Dastriction of the Subject matte विषय-वस्तु के लिये एजेन्सी स्थापित की गई हो नष्ट हो जाने पर एजेन्सी स्वत: ही समाप्त हा जाती है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ ‘ब’ को अपना घोडा बेचने के लिये नियुक्त करता है। घोड़ पर एजेन्सी का भी अन्त हो जायेगा।

5. प्रधान के दिवालिया हो जाने पर BV Insolvency of the Principal)-प्रधान के दिवालिया घोषित हो जाने पर वह अनुबन्ध करने धाषित हो जाने पर वह अनबन्ध करने के योग्य नही रह जाता, अत: एजेन्सी समाप्त हो जाती हा सामान्यत: एजेन्ट के दिवालिया होने की दशा में एजेन्सी समाप्त नहीं होता।

6. प्रधान या एजेन्ट की मत्य या पागल हो जाने पर (By Death or Insanity of either the principal or Agent)-प्रधान या एजेन्ट की मृत्य हो जाने पर, या दोनों में से किसी एक के पागल हान पर, एजेन्सी समाप्त हो जाती है। प्रधान की मत्य की सूचना मिलने से पहले के कार्यों के लिये प्रधान के उत्तराधिकारी उत्तरदायी होते हैं।

7. एजेन्सी के अनबन्ध के निष्पादन के असम्भव हो जाने पर (By Impossibility to Complete Agency Business) किसी सरकारी कानून के द्वारा प्रतिबन्ध लगा देने पर अथवा किसी अन्य कारण से जब एजेन्सी कार्य का निष्पादन करना भविष्य में असम्भव हो जाये, तो ऐसी दशा में एजेन्सी समाप्त हो जाती है।

8. एजेन्ट द्वारा एजेन्सी का परित्याग करने पर (By Agent Renouncing Agency Business)-जब एजेन्ट की इच्छा कार्य करने की ना हो तो वह प्रधान को उचित नोटिस देकर एजेन्सी का परित्याग कर सकता है। यदि एजेन्सी निश्चित अवधि के लिये है और एजेन्ट उस अवधि से पूर्व बिना उचित कारण के परित्याग करता है तो उसे प्रधान की क्षतिपूर्ति करनी होगी।

9. प्रधान द्वारा खण्डन करने पर (By Principal Revoking his Authority)-प्रधान सूचना देकर किसी भी समय एजेन्ट को दिये गये अधिकारों को समाप्त कर सकता है, परन्तु एजेन्ट द्वारा अपने अधिकारों का उपयोग किये जाने से पहले ही खण्डन किया जाना चाहिये। यदि एजेन्ट ने प्राप्त अधिकार का उपयोग करके कोई दायित्व ले लिया है तो प्रधान एजेन्सी को समाप्त नहीं कर सकता।

10. नियोक्ता अथवा एजेन्ट विदेशी शत्रु बनने पर (By Principal or Agent Becoming Alien Enemy)-यदि नियोक्ता तथा एजेन्ट अलग-अलग देशों के निवासी हैं तथा दोनों देश एक-दूसरे को शत्रु घोषित कर देते हैं, तो ऐसी दशा में एजेन्सी की समाप्ति मान ली जाती है।

11. कम्पनी के समापन पर (By Winding up of a Company)-यदि नियोक्ता अथवा एजेन्ट एक संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी के रुप में है, तो उस कम्पनी की समाप्ति पर एजेन्सी का अन्त हो जाता है। परिस्थितियाँ-जब एजेन्सी अनुबन्ध को खण्डित नहीं किया जा सकता (Cases-When principal can not Revoke the Agency) अथवा अखण्डनीय एजेन्सी (Irrevocable Agency) निम्नलिखित परिस्थितियों में एजेन्सी समाप्त नहीं हो सकती

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12. हित सहित एजेन्सी (Agency Coupled with Interest)-जब किसी एजेन्सी की विषय-वस्तु में एजेन्ट का कोई निजी हित या स्वार्थ होता है, तो इसे ‘हित सहित एजेन्सी’ कहते हैं और किसी स्पष्ट अनुबन्ध के अभाव में प्रधान ऐसी एजेन्सी को समाप्त नहीं कर सकता। एजेन्सी को हित सहित तभी माना जायेगा जब एजेन्ट का विषय-वस्तु में कोई ठोस हित विद्यमान हो, केवल पारिश्रमिक प्राप्त करने के अधिकार को हित सहित एजेन्सी नहीं माना जा सकता। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि एजेन्ट का यह हित एजेन्सी अनुबन्ध करते समय विद्यमान होना चाहिये, बाद में उत्पन्न हुये हित का समायोजन करने के अधिकार को हित सहित एजेन्सी नहीं कहा जा सकता। उदाहरणार्थ, ‘अ’, ‘ब’ को अपनी भूमि बेचने का तथा प्राप्त राशि में से अपने ऋण के भगतान पाने का अधिकार देता है। ‘अ’ और ‘ब’ के इस अधिकार का खण्डन नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें ‘ब’का हित सम्मिलित है। प्रधान की मत्य या पागल या दिवालिया हो जाने पर भी हित सहित एजेन्सी समाप्त नहीं होती।

2.जब एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी बन चुका हो (Where the Agent has Become Personally Liable) यदि किसी एजेन्सी व्यवहार के सम्बन्ध में एजेन्ट ने अपने नाम से तीसरे पक्षकारों के साथ अनुबन्ध करके अपने आपको व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी बना लिया हो, तो नियोक्ता एजेन्सी अनुबन्ध का खण्डन नहीं कर सकता।

3. जब एजेन्ट द्वारा अपने अधिकार को आंशिक रुप से पहले ही प्रयोग किया जा चका हो (Partly Authority Exercised by the Agent)-यदि एजेन्ट पहले ही अपने अधिकार का आंशिक रुप से प्रयोग कर चुका है तो ऐसी दशा में भी एजेन्सो को समाप्त नहीं किया जा सकता। विशेषकर उन दायित्वों को समाप्त नहीं कर सकता जो एजेन्ट द्वारा किये जा चुके कार्यों के फलस्वरुप उत्पन्न हैं।

उदाहरणार्थ, ‘कपिल’ने ‘अंशुल’को 500 बोरी चावल बेचने के लिये एजेन्ट नियुक्त किया। गल’ने 200 बोरी चावल बेच दिया। इस बीच ‘कपिल’ने एजेन्सी का खण्डन कर दिया। इस खण्डन 11200 बोरी बेचे जा चुके चावल के सौदों पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

जेन्सी की समाप्ति कब से मानी जाती है? (When Termination of Agency Takes Freet एजेन्ट के अधिकार की समाप्ति उस समय से मानी जायेगी जबकि एजेन्सी के समाप्त होने की सचना एजेन्ट को मिल जाती है। तीसरे पक्षों के लिये भी एजेन्सी उसी समय समाप्त होती है जब उन्हें इसकी सचना मिल जाती है। इसीलिये यह कहा जाता है कि जब भी एजेन्ट के अधिकारों को समाप्त किया जाये तो इसकी सार्वजनिक सूचना अवश्य देनी चाहिये। यदि एजेन्सी के खण्डन की सूचना एजेन्ट को मिलने के बाद परन्तु तृतीय पक्ष को मिलने से पहले एजेन्ट किसी अन्य पक्ष से कोई अनबन्ध कर लेता है तथा अन्य पक्ष सद्विश्वास से काम करता है, तो प्रधान तीसरे पक्षकारों के प्रति पूर्णतया उत्तरदायी होगा। एजेन्ट के अधिकार की समाप्ति पर उसके द्वारा नियुक्त सभी उप-एजेन्टों के अधिकार भी समाप्त हो जाते हैं।

अप्रकट प्रधान की दशा में एजेन्सी के प्रभाव (Effects of Agency in case of Undisclosed Principal) यदि कोई एजेन्ट किसी ऐसे व्यक्ति से अनुबन्ध करता है जो न तो उसके एजेन्ट होने के बारे में जानता है और न उसके एजेन्ट होने का सन्देह ही करता है तो ऐसे एजेन्ट का प्रधान, अप्रकट प्रधान कहलाता है। दूसरे शब्दों में, एजेन्ट तृतीय पक्षकारों के साथ अनुबन्ध करते समय अपने शब्दों तथा आचरण से प्रकट करता है कि वह स्वयं प्रधान है तथा किसी भी व्यक्ति का एजेन्ट नहीं है तथा तृतीय पक्षकारों को भी यही विश्वास तथा जानकारी है कि वही वास्तव में प्रधान है तो ऐसे एजेन्ट का प्रधान “अप्रकट”अथवा “गुमनाम’ प्रधान कहलाता है। अप्रकट प्रधान की दशा में प्रधान, एजेन्ट तथा तृतीय पक्षकारों के अधिकार तथा दायित्व निम्नलिखित होंगे

1 प्रधान का अधिकारप्रधान तीसरे पक्षकारों से अनुबन्ध के निष्पादन की माँग कर सकता है किन्तु तृतीय पक्षकारों को भी प्रधान के विरुद्ध वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे जो कि एक एजेन्ट के स्वयं प्रधान होने पर उसके विरुद्ध प्राप्त हो सकते थे।

2. तृतीय पक्षकारों द्वारा अनुबन्ध पूरा करने से इन्कार करनायदि कोई अप्रकट प्रधान अपने आपको अनुबन्ध समाप्त होने से पहले ही प्रकट कर देता है, तो तीसरा पक्षकार चाहे तो अनुबन्ध को पूरा करने से इन्कार कर सकता है, किन्तु यदि तृतीय पक्षकार अनुबन्ध को पूरा करने से इन्कार करता है तो उसे यह सिद्ध करना पड़ेगा कि यदि उसे यह ज्ञात होता कि एजेन्ट स्वयं प्रधान नहीं है तो वह कभी भी अनुबन्ध नहीं करता।

3. अनुबन्ध के निष्पादन की माँग का अधिकारयदि अप्रकट प्रधान अनुबन्ध के निष्पादन की माँग करता है तो ऐसा निष्पादन तभी करवा सकता है जबकि प्रधान तृतीय पक्षकार को वे सभी अधिकार दे दे जो तृतीय पक्षकार को एजेन्ट के विरुद्ध प्राप्त हुए थे। ऐसा होने पर ही तृतीय पक्षकार भी ऐसे (अप्रकट) प्रधान को उसी प्रकार दायी ठहरा सकेगा जिस प्रकार वह अप्रकट प्रधान के एजेन्ट को दायी ठहरा सकता है।

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(धारा 232) बनावटी एजेन्ट की दशा में एजेन्सी का प्रभाव

(Effects of Agency in case of Pretended Agent)

जब कोई व्यक्ति किसी तृतीय पक्षकार के सामने झूठ-मूठ ही अपने आपको किसी दूसरे व्यक्ति का एजेन्ट बताता है और उस तीसरे पक्षकार को अनुबन्ध करने के लिए प्रेरित करता है तो उसे बनावटी एजेन्ट कहते हैं। ऐसे एजेन्ट का कोई प्रधान नहीं होता है, किन्तु वह झुठ बोलकर अपने आपको एजेन्ट बनाने का प्रयास करता है। यह ध्यान रहे कि इस स्थिति से वह व्यक्ति ही अपने-आपको एजेन्ट बताता हन कि कोई दूसरा व्यक्ति उसे झूठ-मूठ एजेन्ट के रुप में स्वीकार करता है। बनावटी एजेन्ट के द्वारा किये गए कार्यों के सम्बन्ध में निम्नलिखित अधिकार एवं दायित्व होते हैं

1.पुष्टिकरण के अभाव में दायित्व-यदि बनावटी एजेन्ट का कथित प्रधान उसके द्वारा किय गय अनुबन्धा को पुष्टि (Ratify) नहीं करता है तो ऐसा एजेन्ट स्वयं तीसरे पक्षकार के प्रति उत्तरदायी होता है।

2. पुष्टिकरण करने पर प्रधान का दायित्व-उपर्युक्त नियम का दूसरे दृष्टिकोण से अध्ययन करें तो यह स्पष्ट होता है कि यदि बनावटी एजेन्ट का कथित प्रधान उसके द्वारा किये गये कार्यों की पुष्टि कर देता है तो वह प्रधान ही उन सभी कार्यों के लिए ततीय पक्षकारों के प्रति उत्तरदायी होगा।

3. निष्पादन की मांग नहीं कर सकता-एक बनावटी एजेन्ट तृतीय पक्षकार से अनुबन्ध के निष्पादन की माँग नहीं कर सकता है, किन्तु ततीय पक्षकार ऐसे एजेन्ट से अनुबन्ध के निष्पादन की माँग कर सकते हैं। इंगलैण्ड में बनावटी एजेन्ट भी अनुबन्ध के निष्पादन की माँग कर सकता है।

4. वास्तविक क्षति की पर्तिधारा 235 के प्रावधानों के अनुसार एजेन्ट तृतीय पक्षकार की केवल उस हानि तथा क्षतिपूर्ति के लिए बाध्य किया जा सकता है जो तृतीय पक्षकार को हुई है। अनुबन्ध भंग के कारण सम्भावित हानि को परा करने के लिए ऐसे एजेन्ट को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दोर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 एजेन्सी की परिभाषा दीजिए। यह किस प्रकार स्थापित होती है और इसकी समाप्ति किस प्रकार होती है?

Define Agency. How it is created and terminated?

2. एजेन्सी क्या है? एजेन्सी की स्थापना की रीतियों को स्पष्ट कीजिये।

What is an Agency? Explain the methods of creating an agency.

3. एजेन्सी सृजन की विभिन्न विधियों को समझाइए। क्या एजेन्सी की स्थापना के लिये प्रतिफल आवश्यक है?

Explain the methods of creating an agency. Is consideration necessary for the establishment of the agency?

4. एजेन्ट कौन होता है? यह नौकर से किस प्रकार भिन्न है? क्या एक नाबालिग एजेन्ट हो सकता है या नियुक्त कर सकता है?

Who is an agent? How he differ from a servant? Whether a minor can become or appoint an agent?

5. एक व्यक्ति जो एक एजेन्ट द्वारा कार्य करता है, स्वयं कार्य करता है।” विवेचना कीजिए।

“An act of the agent is the act of the principal”. Explain.

6. अपने प्रधान के नाम से किये गए अनुबन्धों के प्रति एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से कब उत्तरदायी

When the agent is personally liable for the contract done in the name of the principal?

7. एजेन्सी समाप्त करने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिये। एजेन्सी किन दशाओं में समाप्त नहीं की जा सकती?

State various methods of terminating an agency. When is an agency irrevocable?

8. एजेन्सी की स्थापना की रीतियों को स्पष्ट कीजिये। एक एजेन्ट के अधिकार के क्षेत्र और सीमा का उदाहरण सहित विवेचन कीजिये।

Explain the method of creating an agency. Discuss with examples, scope and extent of agent’s authority.

9 पुष्टिकरण से क्या आशय हे? एक वेध पुष्टिकरण के आवश्यक तत्वों की व्याख्या कीजिए।

What is meant by ratification? Explain the essential of a valid ratification.

10 उप-एजेन्ट और स्थानापन्न एजेन्ट में अन्तर बताइये। नियोक्ता व तीसरे पक्षकारों से उनका सम्बन्ध बताइये।

Distinguish between a ‘Sub-agent and a Substituted Agent’. Point out their relations with the ‘Principal’ and the ‘Third Party

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11. एक प्रतिनिधि अपना कार्य दूसरों को नहीं सौंप सकता।’ एजेन्सी अनुबन्ध का विशेष निर्देश करते हुए इस सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये।

“A delegatus non potest delegare.” Discuss this maxim with special reference to agency contracts.

12. नियोक्ता की ओर से किये गये व्यवहारों के लिए एजेन्ट व्यक्तिगत रुप से कब वाद प्रस्तुत कर सकता है तथा किन परिस्थितियों में उस पर व्यक्तिगत रुप से वाद प्रस्तुत किया जा सकता है?

When can an agent sue or be sued personally on contracts entered into by him on behalf of his principal?

13. वे कौन-से विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा एजेन्सी का निर्माण किया जा सकता है? क्या एक

(i) एजेन्ट नियुक्त कर सकता है, या

(ii) स्वयं एजेन्ट नियुक्त किया जा सकता है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिये।

What are the different ways in which an agency may be created? Can a minor

(i) appoint an agent or

(ii) be appointed as an agent? Give reason in support of your answer.

14. उप-एजेन्ट की परिभाषा दीजिये। एक एजेन्ट उप-एजेन्ट की नियुक्ति कब कर सकता है?

Define a sub-agent. When can an agent appoint a sub-agent?

15. हित सहित एजेन्सी को समाप्त नहीं किया जा सकता है।” इस कथन की टीका कीजिये।

“An agency coupled with interest is irrevocable.” Comment.

16. एजेन्सी की परिभाषा दीजिये और एजेन्ट के अपने नियोक्ता के प्रति अधिकार और कर्तव्य समझाइये।

Define Agency and explain the rights and duties of an agent towards his principal.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 एजेन्सी क्या है? क्या एजेन्सी की स्थापना के लिये प्रतिफल आवश्यक है?

What is Agency? Is consideration necessary for the creation of an agency?

2. एजेन्ट कौन बन सकता है?

Who can be an Agent?

3. उप-एजेन्ट तथा स्थानापन्न एजेन्ट में अन्तर बताइए।

Distinguish between Sub-agent and Substituted Agent.

4. पुष्टिकरण का सिद्धान्त क्या है?

What is the doctrine of Ratification?

5. आवश्यकता द्वारा एजेन्सी क्या है?

What is the agency by necessity?

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6. हित सहित एजेन्सी क्या है?

What is agency coupled with interest?

7. एजेन्सी के आवश्यक तत्व क्या हैं?

What are the essential elements of agency?

8. नियोक्ता के प्रति एजेन्ट के कर्त्तव्य बताइए।

Explain the duties of agent towards principal.

9. गत्यावरोध द्वारा एजेन्सी क्या है?

What is the agency by estoppel?

10. अप्रकट नियोक्ता से क्या आशय है?

What is meant by the undisclosed principal?

11. “एजेन्ट के कार्यों के लिये नियोक्ता उत्तरदायी होता है।” स्पष्ट कीजिए।

A principal is liable for the acts of the Agent.” Explain

12. गर्भित अधिकार द्वारा एजेन्सी क्या है?

What is the agency by Implied Authority

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व्यवहारिक सम्सयाएं

(Practical Problems )

PP1. X की पत्नी Z, X की जानकारी व सहमति के बगैर उसके पुस्तकालय का फर्नीचर व पुस्तकें A को गिरवी रखकर (a) गहने तथा (b) जीवन निर्वाह हेतु खाने-पीने की वस्तुएँ प्राप्त करती है? A के क्या अधिकार हैं ?

Z, the wife of X pledges with A, the furniture and the books in the library belonging to her husband for the prices of (a) jewellery (b) food necessary for her maintenance without X’s knowledge and consent, What are the rights of A?

उत्तर-जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु X की पत्नी Z, X द्वारा अधिकृत किये बिना भी उसके एजेन्ट के रुप में कार्य कर सकती है। यह आवश्यकता द्वारा एजेन्सी होगी किन्तु यह नियम गहनों के सम्बन्ध में लागू नहीं होगा।

PP2. A 100 गाँठ रुई बेचने का अनुबन्ध B के साथ करता है तथा इसके बाद उसे खोज से पता चलता है कि B, C के एजेन्ट के रुप में कार्य कर रहा था। A किसके विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है और क्यों?

A enters into a contract with B to sell him 100 bales of cotton and afterwards discovers that B was acting as an agent for C. Who can be sued by A and why?

उत्तरA चाहे तो B या C या दोनों के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है। धारा 233 के अनुसार जब तृतीय पक्षकार को अप्रकट-नियोक्ता का पता चल जाता है, तो वह या तो एजेन्ट के विरुद्ध या नियोक्ता के विरुद्ध अथवा दोनों के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है। नियोक्ता व एजेन्ट का दायित्व संयुक्त व व्यक्तिगत है।

PP3. A, अधिकृत किए बगैर ही B हेतु वस्तुएँ क्रय कर लेता है। इसके बाद B उन वस्तुओं का विक्रय अपने खाते में कर देता है। क्या B का यह व्यवहार गर्भित रुप से यह प्रदर्शित करता है कि उसने A के कार्य का पुष्टिकरण कर दिया है?

A without authority buys goods for B. Afterwards B sells them to C on his own account. Does B’s conduct simply ratification of A’s act?

उत्तर-हाँ, B का व्यवहार A के कार्य का गर्भित पुष्टिकरण करता है।

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chetansati

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