BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Negotiable Instrument Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Negotiable Instrument Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Negotiable Instrument Notes in Hindi: Meaning of Dishonour of Negotiable Instrument Difference between Dishonour By non Acceptance and Dishonour By Non Payment When Notice To Dishonour Unnecessary Protesting Examinations Questions Long Answer Questions  Short Questions Answer:

Dishonour Negotiable Instrument Notes
Dishonour Negotiable Instrument Notes

BCom 1st Year Payment Instrument Discharge Parties Liability Study Material Notes in Hindi

विनिमयसाध्य विलेख का अनादरण

(Dishonour of Negotiable Instrument)

विनिमय साध्य विलेख के अनादरण का आशय

(Meaning of Dishonour of Negotiable Instrument)

जब कोई विनिमय-साध्य विलेख स्वीकृति अथवा भुगतान प्राप्त करने के लिये प्रस्तुत किया जाता है तो यदि उस विलेख पर स्वीकृति न दी जाये अथवा आंशिक या शर्तयुक्त स्वीकृति दी जाये अथवा उस विलेख का भुगतान न किया जाये तो वह विलेख ‘अनादरित’ या ‘अप्रतिष्ठित’ माना जाता है।

विनिमय-साध्य विलेखों का अनादरण दो प्रकार से हो सकता है

1 अस्वीकृति द्वारा तथा

2. भुगतान न करने से।

किसी विनिमय विपत्र का अनादरण दोनों में से किसी भी रूप में हो सकता है, परन्तु प्रतिज्ञा-पत्र तथा चैक का अनादरण केवल भुगतान न करने से ही हो सकता है क्योकि इन दोनों पर स्वीकृति की कोई आवश्यकता नहीं होती।

1 अस्वीकृति द्वारा अनादरण (Dishonour by Non-acceptance)- केवल विनिमय-विपत्र ही ऐसा विलेख है जिसमें भुगतान से पहले देनदार की स्वीकृति प्राप्त करनी होती है। अत: स्वीकृति न मिलने पर विनिमय-विपत्र अनादृत माना जाता है जो निम्नलिखित किसी भी रूप में हो सकता है

(i) विपत्र को स्वीकृति के लिये प्रस्तुत किये जाने पर यदि ऋणी, देनदार या आहार्टी (Drawee) स्वीकृति देने से मना कर देता है या बिल की प्रस्तुति के 48 घण्टे तक स्वीकृति प्रदान नहीं करता है,

(ii) स्वीकृति शर्तयुक्त या मर्यादित (Qualified) दी गई हो,

(iii) आहार्थी अर्थात् स्वीकर्ता अनुबन्ध करने के अयोग्य हो,

(iv) स्वीकृति के लिये प्रस्तुति आवश्यक न हो और देनदार ने स्वयं स्वीकृति नहीं दी हो.

(v) स्वीकृति के लिये देनदार को प्रयत्न के बाद भी न ढूँढा जा सके,

(vi) जब आहार्थी कल्पित व्यक्ति है।

इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि यदि विनिमय पत्र में आवश्यकता पड़ने पर आदेशिती (Drawee in Case of Need) का नाम दिया हुआ है तो इसे अनादृत तब तक नहीं माना जायेगा जब तक कि आवश्यकता पड़ने पर आदेशिती ने इसे अनाद्रत नहीं कर दिया हो।

स्वीकृति न मिलने से विपत्र का अनादरण होने के कारण लेखक को देनदार के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार मिल जाता है।

2. भुगतान मिलने पर अनादरण (Dishonour by Non-payment)- एक विनिमय-साध्य विलेख निम्नलिखित परिस्थितियों में भुगतान न करने पर अनादरित समझा जाता हैं

(i) धारक द्वारा उचित रुप से भुगतान के लिये प्रस्तुत किये जाने पर भी यदि प्रतिज्ञा पत्र का लेखक, विनिमय-पत्र का स्वीकर्ता अथवा चैक का देनदार बैंक भुगतान करने से मना कर देता है।

(ii) जब भुगतान के लिये विलेख का प्रस्तुतीकरण अनिवार्य नहीं है परन्त देय तिथि बीत जाने पर भी विलेख का भुगतान नहीं किया जाता है।

Regulatory Framework Dishonour Negotiable

अस्वीकृति द्वारा अनादरण तथा भुगतान करने के अनादरण में अन्तर

(Difference between dishonour by Non-acceptance and Dishonour by Non-payment)

1 अस्वीकति द्वारा अनादरण की दशा में आहायीं के विरुद्ध धारक का कोई अधिकार नहीं है। आहार्यो विनिमय-पत्र का कोई पक्षकार नहीं होता है। धारक केवल आहर्ता एवं समस्त पूर्व धारकों के विरुद्ध अधिकार रखता है।

2. भुगतान न करने पर अनादरण की दशा में धारक आहार्टी के विरुद्ध वाद प्रस्तत कर सकता है क्योंकि स्वीकृति द्वारा वह विनिमय-पत्र का पक्षकार बन जाता है।

अनादरण का प्रभाव (Effect of Dishonour)-यदि कोई विनिमय-पत्र अस्वीकृति द्वारा अथवा भुगतान न करने पर अनादरित हो जाता है, तो विपत्र का आहर्ता अर्थात् लेखक (Drawer) तथा सभी पष्ठांकनकर्ता धारक के प्रति उत्तरदायी हो जाते हैं, बशर्ते धारक ने उन्हें अनादरण की उचित रुप से सचना दी हो, लेकिन धारक, स्वीकर्ता अथवा देनदार को केवल भुगतान न करने पर ही उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

अनादरण की सूचना (Notice of dishonour)-जब किसी विलेख का अनादरण हो जाता है तो विलेख के धारक को उन सभी पक्षकारों को उसके अनादरण की सूचना देनी चाहिए, जिन्हें वह उत्तरदायी ठहराना चाहता है। इस सम्बन्ध में प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं

1.सूचना किसके द्वाराअनादरण की सूचना निम्नांकित द्वारा दी जा सकती है : (i) उसके धारक द्वारा। (ii) विलेख के प्रति उत्तरदायी किसी भी पक्षकार द्वारा। (धारा 93)

(iii) विलेख के अनादरण की सूचना प्राप्त करने वाले किसी भी पक्षकार द्वारा। उसे ऐसी सूचना तब अवश्य देनी चाहिये जब वह किसी पूर्ववर्ती पक्षकार को अपने प्रति उत्तरदायी ठहराना चाहता हो।

(iv) धारक के एजेन्ट द्वारा, यदि विलेख प्रस्तुतीकरण हेतु एजेन्ट के पास जमा किया हुआ हो।

यह उल्लेखनीय है कि किसी अजनबी (stranger) द्वारा अनादरण की दी गई सूचना व्यर्थ होती है, यदि विलेख के किसी ऐसे पक्षकार द्वारा अनादरण की सूचना दी जाती है जो विलेख के प्रति उत्तरदायी नहीं है तो भी सूचना व्यर्थ ही होगी।

यदि किसी विलेख को प्रस्तुतीकरण हेतु किसी एजेन्ट के पास जमा किया गया है तो एजेन्ट को उसके अनादरण की सूचना अपने प्रधान (Principal) को दे देनी चाहिये। वह प्रधान तब अनादरण की सूचना आगे भेजने के लिए उत्तरदायी होगा।

2.सूचना किसको?-अनादरण की सूचना निम्नांकित पक्षकारों को दी जानी चाहिये

(i) सूचना उन सभी पक्षकारों को देनी चाहिये जिन्हें विलेख का धारक अनादरण के लिए उत्तरदायी ठहराना चाहता है।

(ii) उस पक्षकार के एजेन्ट को जिसे वह उत्तरदायी ठहराना चाहता है।

(iii) जो पक्षकार अनादरण की सूचना प्राप्त करते हैं उन्हें भी उन पक्षकारों को इसकी सूचना दे देनी चाहिये जिन्हें वे स्वयं अनादरण के लिए उत्तरदायी ठहराना चाहते हैं।

(iv) यदि विलेख के किसी पूर्व पक्षकार की मृत्यु होती है तो उस पक्षकार के वैधानिक उत्तराधिकारी को अनादरण की सूचना देनी चाहिये।

(v) यदि विलेख का पूर्व पक्षकार दिवालिया हो जाता है तो उसके राजकीय प्रापक को अनादरण की सूचना दी जानी चाहिये।

किन्तु वचन-पत्र के लेखक (वचनदाता) को विनिमय-पत्र के आदेशिती या स्वीकर्ता को तथा चैक के आदेशिती को अनादरण की सूचना देना अनिवार्य नहीं होता है।

4.सूचना का रुप एवं विधिअनादरण की सूचना किसी विशेष प्रारूप में देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है, किन्तु सूचना से यह अवश्य स्पष्ट हो जाना चाहिये कि विलेख का अनादरण हो गया है। सामान्यत: ऐसी सूचना निम्नांकित रुप एवं विधि से दी जा सकती है :

(i) सूचना लिखित अथवा मौखिक रुप से दी जा सकती है। (ii) लिखित सूचना डाक द्वारा भी भेजी जा सकती है।

(ii) यद्यपि विनिमय साध्य विलेख अधिनियम में सूचना देने की कोई विधि निश्चित नहीं है, अत: किसी भी उचित विधि से सूचना दी जा सकती है।

(iv) सूचना किसी भी रुप (Form) में दी जा सकती है किन्तु उसमें निम्नलिखित बातों का समावश अवश्य होना चाहिये : (i) इस तथ्य का उल्लेख कि विलेख का अनादरण हुआ है, (ii) विलेख का विवरण, (iii) अनादरण के कारण (iv) उस व्यक्ति का नाम जिसे धारक उत्तरदायी ठहराना चाहता है

(v) सूचना पूर्ण रुप से स्पष्ट होनी चाहिये, जिसे सूचना प्राप्त करने वाला उचित अर्थों में समझ सके। (vi) अनादरण की सूचना उचित समय में दी जानी चाहिये।

5. सूचना का समयअनादरण की सचना एक उचित अवधि में दे दी जानी चाहिये। उचित चावलख का प्रकृति तथा विलेख के सम्बन्ध में प्रचलित प्रथा को ध्यान में रखकर निधारित को सकता है। किन्त. इस अवधि की गणना करते समय सार्वजनिक अवकाश की अवधि का अलग रखा जाता है (धारा 105)| विनिमय-साध्य विलेखों के अनादरण की सूचना को अवधि निधारित करने में। निम्नांकित प्रावधान ध्यान देने योग्य है :

(i) यदि विलेख का धारक तथा वह पक्षकार जिसे अनादरण की सूचना दी जानी है, वे दोनों अलग-अलग स्थानों पर व्यवसाय करते हैं या निवास करते हैं तो सूचना उचित समय में दी हुई तब मानी जाती है जबकि ऐसी सूचना अनादरण के बाद वाली डाक या अगले दिन की डाक से भेज दी जाती है।

(ii) यदि वे दोनो ही पक्षकार एक ही स्थान पर व्यवसाय करते हैं या निवास करते हैं तो अनादरण की सूचना उचित समय में तब दी हई मानी जायेगी जबकि ऐसी सूचना ऐसे समय भेज दी। जाती है ताकि वह सूचना विलेख के अनादरण के अगले दिन गन्तव्य स्थान पर पहुंच जाये। (धारा 1060

(iii) यदि कोई पक्षकार किसी विलेख के अनादरण की सूचना प्राप्त करता है तथा वह भी उपर्युक्त प्रावधानों के अनुरुप ही आगे सूचना भेज देता है, तो वह सूचना उचित समय में दी गई मानी जायेगी।

6.सूचना देने का प्रभावयदि विलेख का कोई पूर्व पक्षकार विलेख के अनादरण की सूचना पाने का अधिकारी है, किन्तु, उसे ऐसी सूचना नहीं दी जाती है तो वह पक्षकार अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है। चैक या विनिमय-पत्र का लेखक अथवा पृष्ठांकक तभी उसके प्रति क्षतिपूर्ति हेतु उत्तरदायी होता है जबकि उसे उसके अनादरण की सूचना दे दी गयी हो या प्राप्त हो गयी हो।

Regulatory Framework Dishonour Negotiable

अनादरण की सूचना देना कब अनावश्यक है ?

(When Notice of Dishonour is Unnecessary ?)

विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 98 के अन्तर्गत उन दशाओं को स्पष्ट किया गया है, जिनमें अनादरण की सूचना देना अनावश्यक होता है, यह परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं :

1 अधिकार को त्याग देना (When Right is Dispensed).- सूचना प्राप्त करने वाला व्यक्ति या पक्षकार यदि ऐसे अधिकार का त्याग कर देता है या उसे छोड़ देता है।

2. भुगतान रुकवाना (Stop Payment)- जब आहर्ता ने स्वयं ही भुगतान को रोक दिया हो तो ऐसी दशा में उसे अनादरण की सूचना देना आवश्यक नहीं है।

3. दावा करने वाले को कोई हानि हो (No Damage to Party Filing Suit)- जब विनिमय-साध्य विलेख के पक्षकार या व्यक्ति को, सूचना न मिलने की दशा में किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होती हो।

4. सूचना पाने वाले पक्षकार का खोजबीन के पश्चात् भी मिलना (Party Not Found After Search)-जब जिस पक्षकार को सूचना दी जानी है वह उचित खोजबीन या तलाश के पश्चात् भी नहीं मिल पाता है।

5. विशेष परिस्थितियाँ (Special Circumstances)- जिस पक्षकार पर सूचना देने का वैधानिक दायित्व है और वह पक्ष ऐसी सूचना विशेष दशाओं या परिस्थितियों के कारण न दे पाया हो। जैसे-धारक या उसके एजेण्ट की मृत्यु हो जाना, दुर्घटना, या जानलेवा बीमारी का हो जाना। ।

6. स्वीकर्ता का स्वयं लेखक होना यदि स्वीकर्ता स्वयं ही लेखक है, जैसे एक फर्म अपनी शाखा पर या एक साझेदार फर्म पर बिल लिखे तो यहाँ स्वीकर्ता ही लेखक भी है। ऐसी स्थिति में अनादरण की सूचना की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

7. जब वचनपत्र अपरक्राम्य (Not negotiable) हो- यदि वचन-पत्र परक्राम्य या अन्तरणयोग्य नहीं है तो उसका पृष्ठांकन नहीं किया जा सकता है और कर भी दिया जाये, तो पृष्ठांकक के विरुद्ध कोई अधिकार नहीं होता है। अत: सूचना के अभाव का किसी पर प्रभाव नहीं पड़ता है।

8. जब दायी पक्षकार समस्त राशि चुकाने का शर्तरहित वचन देता है- यदि सूचना पाने का। अधिकार रखने वाले पक्षकार अनादरण के पश्चात सब तथ्यों की पूर्ण जानकारी करते हए विलेख को। रकम बिना शर्त चुकाने का वचन देता है तो अनादरण की सूचना की आवश्यकता नहीं रहती है।

Regulatory Framework Dishonour Negotiable

आलोकन/निकराई/टिप्पणी/नोटिंग (Noting)

सामान्य शब्दों में, आलोकन का अर्थ होता है कि जब कोई प्रतिज्ञा-पत्र या विनिमय-पत्र स्वीकृत या भगतान न होने के कारण अनादरित हो जाए, तो नोटेरी पब्लिक के यहाँ आलोकन (Noting) कराना, जिससे भविष्य में उसे प्रस्तुत करने में सुविधा हो।

नोटिंग, वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत नोटेरी पब्लिक धारक के आग्रह पर इस तथ्य को प्रमाणित करके विलेख पर अंकित करता है कि किसी विलेख का किस प्रकार अनादरण हो गया है। दूसरे शब्दों में नोटिंग एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत कोई धारक अपने किसी विलेख के अनादरण के तथ्य को नोटेरी पब्लिक से उस विलेख पर प्रमाणित रुप से यह अंकित करवाता है कि किस प्रकार उसके विलेख का अनादरण हुआ है। इस प्रकार नोटिंग किसी विलेख के अनादरण का प्रमाणित साक्ष्य है।

आवश्यकता (Necessity)- नोटिंग करवा लेने से विलेख का धारक विलेख के अनादरण के लिए उत्तरदायी व्यक्तियों के विरुद्ध आवश्यक वैधानिक कार्यवाही आसानी से कर सकता है। नोटिंग को विलेख के अनादरण के प्रमाण के रुप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है।

आलोकन का मुख्य उद्देश्य विलेख के अनादरित होने के तथ्य को प्रमाणित करवाना होता है। आलोकन (Noting) अनादरित होने के पश्चात उचित समय के भीतर होना आवश्यक होता है। आलोकन के लिए निम्नलिखित बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं :

1 अनादरण की तिथि,

2. अनादरण का कारण,

3. स्पष्ट अनादरण न होने की दशा में उस कारण को स्पष्ट किया जाये जिस कारण से धारक उसे अनादरित मानता है,

4. नोटरी पब्लिक का शुल्क,

5. नोटेरी पब्लिक के हस्ताक्षर, एवं

6. नोटेरी पब्लिक के रजिस्टर की सन्दर्भ संख्या। (धारा 99)

इस प्रकार नोटेरी पब्लिक से उचित समय-सीमा के भीतर अनादरित विलेख का आलोकन एवं प्रमाणन (Protesting) करवा लेना चाहिए। यद्यपि किसी अनादरित विलेख का आलोकन एवं प्रमाणन (Protesting) करवाया जाना अनिवार्य नहीं है लेकिन विदेशी विलेखों का आलोकन एवं प्रमाणन करवाना उस स्थिति में अनिवार्य होता है, यदि जिस देश में वे लिखे गए हों उस देश के कानून के अनुसार अनादृत विलेख का आलोकन व प्रमाणन अनिवार्य घोषित किया गया हो। यद्यपि अपने आप में आलोकन का कोई वैधानिक प्रभाव नहीं है, फिर भी इसके कुछ लाभ हैं। यदि उचित समय के भीतर आलोकन करवा लिया गया है तो उसके पश्चात् इसका प्रमाणन भी कराया जा सकता है। एक विलेख पर भुगतान के लिए स्वीकृति प्राप्त करने के लिए मात्र आलोकन ही पर्याप्त होता है।

आलोकन के लाभ (Merits of Noting) आलोकन से निम्नलिखित लाभ की प्राप्ति होती

1 सरकार द्वारा विदेशी विलेखों एंव विनिमय-पत्र व प्रतिज्ञा-पत्रों के आलोकन हेतु नियमबद्ध आलोकन की सुविधा प्राप्त होती है।

2. धारक को उचित कार्यवाही करने में सरकारी सम्मति की सुविधा प्राप्त होना।

3. विलेख के खो जाने की दशा में आलोकन रजिस्टर विलेख के अस्तित्व का अकाट्य प्रमाण।

4. मूल पत्र के भूल जाने पर कार्यालय से विलेख की प्रतिलिपि प्राप्त की जा सकती है।

5. सम्बन्धित पक्षकारों को व्यवहारों की वैधानिक सुरक्षा की प्राप्ति। ।

आलोकन की विधि (Method of Noting) सामान्यत: प्रत्येक नगर में राज्य सरकार के द्वारा नोटेरी पब्लिक नियुक्त किया जाता है। यह कार्य किसी न्यायाधीश अथवा जिला कलेक्टर अथवा अन्य किसी राजकीय अधिकारी को सौंपा जाता है।

जब कोई प्रतिज्ञा-पत्र या विनिमय पत्र अनादरित हो जाता है तो ऐसी दशा में धारक इसे नोटेरी पब्लिक के पास ले जाता है। नोटेरी पब्लिक इस विलेख से सम्बन्धित पक्षकार के समक्ष पुन: स्वीकृति या भुगतान के लिए प्रस्तुत करता है तथा विलेख का अनादरण हो जाने पर उसके अनादरित होने को प्रमाणित करता है।

अपनी टिप्पणी वह विलेख पर या विलेख के साथ संलग्न कागज या पर्ची पर दे सकता है तथा उसके धारा 99 में वांछित बातों को स्पष्ट रुप से लिख सकता है या उल्लेख कर सकता है।

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प्रकाशन प्रमाणन/सिकराई/प्रसाक्ष्य/प्रोटेस्टिंग

(Protesting)

अर्थ (Meaning प्रमाणन वह व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत कोई भी धारक नोटेरी पब्लिक अपन विलेख के अनादरण का नोटिंग करवाने के साथ-साथ उसके अनादरण का आपचारिक प्रमाण भी प्राप्त कर सकता है। नोटेरी पब्लिक विलेख के अनादरण का जो प्रमाण-पत्र जारी करता है उसे ही प्रोटेस्ट या प्रसाक्ष्य कहते हैं।

दूसरे शब्दों में, प्रोटेस्ट नोटेरी पब्लिक द्वारा जारी किया गया प्रमाणपत्र है जिसमें अनादति विलेख पर लिखे हए इस तथ्य को प्रमाणित किया जाता है कि विलेख का अनादरण हो गया है।

प्रमाणन की विषयसामग्री (Contents of Protest)-नोटेरी पब्लिक द्वारा दिये जाने वाले प्रमाण-पत्र में निम्नलिखित विवरण का उल्लेख किया जाना चाहिए :

1 मूल विलेख या उसकी छायाप्रति या पूर्ण प्रतिलिपि।

2. उस व्यक्ति या पक्षकार का नाम, जिसके लिए तथा जिसके विरुद्ध विलेख के अनादरण प्रमाणन किया गया है।

3. इस आशय या उद्देश्य का विवरण देना जिसमें नोटरी पब्लिक ने सम्बन्धित व्यक्ति से विलेन के भुगतान या स्वीकृति अथवा अच्छी प्रतिभूति की मांग की हो लेकिन देनदार द्वारा माँग को अस्वीकार कर दिया गया या कोई उत्तर नहीं दिया या मिला नहीं।

4.अनादरण करने की तिथि, समय तथा स्थान।

5. अनादरण के होने पर अच्छी प्रतिभूति की माँग की गयी तथा उसको अस्वीकार करने का समय एवं स्थान।

6. नोटेरी पब्लिक का पारिश्रमिक।

7. नोटेरी पब्लिक के हस्ताक्षर।

8. यदि किसी व्यक्ति ने विलेख को प्रतिष्ठा के लिए स्वीकृत किया है अथवा उसका भुगतान किया है तो उसका नाम तथा उन व्यक्तियों के नाम, जिनके पक्ष में ऐसी स्वीकृति अथवा भुगतान किया गया है तथा स्वीकृति अथवा भुगतान करने के ढंग आदि का विवरण।

बेहतर प्रतिभूति के लिए प्रमाणन (Protest for better security)- कभी-कभी किसी विनिमय-पत्र के परिपक्व होने से पहले ही उसका स्वीक” दिवालिया हो जाता है अथवा उसकी अन्य किसी कारण से साख गिर जाती है तो ऐसी स्थिति में विपत्र का धारक उचित समय में नोटेरी पब्लिक के माध्यम से विपत्र के स्वीकर्ता से श्रेष्ठ प्रतिभूति की माँग कर सकता है। यदि स्वीकर्ता इस मांग को अस्वीकार कर देता है, तो धारक इस तथ्य का आलोकन तथा प्रमाणन करा सकता है। ऐसे प्रमाणन को ही ‘श्रेष्ठ प्रतिभूति के लिए प्रमाणन’ कहते हैं।

प्रमाणन की सूचना (Notice of Protest)-जब वैधानिक रुप से प्रमाणन की सूचना देना आवश्यक हो तो ऐसी दशा में उसकी सूचना अनादरण की सूचना के स्थान पर दी जानी आवश्यक है। प्रमाणन की सूचना अनादरण की सूचना के समान तथा उसी प्रकार के नियमों के अन्तर्गत दी जाती है। यह सूचना नोटेरी पब्लिक द्वारा भी दी जा सकती है।

प्रमाणन का स्थान (Place of Protest)-यदि कोई विलेख देनदार के निवास स्थान के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर भुगतान करने के लिए लिखा गया है तथा उस स्थान पर वह अस्वीकृति द्वारा अनादरित हो जाता है, तो ऐसी दशा में भुगतान नहीं होने के आधार पर उस विलेख का प्रमाणन भुगतान के लिए निर्देशित स्थान पर ही हो सकता है।

विदेशी विनिमय पत्रों का प्रमाणन (Protest for Foreign Bill)-जिस देश में विनिमय पत्र को लिखा गया है, यदि उस देश के कानून या अधिनियम के द्वारा प्रमाणन कराया जाना आवश्यक या अनिवार्य हो तो विदेशी विनिमय-पत्र के अनादरित हो जाने पर उसका प्रमाणन आवश्यक रुप से करवाया जाना चाहिए।

प्रमाणन की तिथि (Date of Protest)-जब किसी विनिमय-पत्र अथवा प्रतिज्ञा-पत्र का प्रमाणन। एक निश्चित समयावधि के भीतर होना आवश्यक हो तो उस विलेख का आलोकन उस निश्चित। समयावधि में हो जाना उचित एवं पर्याप्त होगा, क्योंकि प्रमाणन का सम्बन्ध आलोकन की तिथि से हो होता है। प्रमाणन बाद में प्राप्त किया जा सकता है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1.अस्वीकृति तथा भुगतान नहीं होने से अनादरण से क्या आशय है ? उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिये जिनमें अनादरण की सूचना अनावश्यक है? .

What is meant by dishonour by non-acceptance and dishonour by non-payment? State the circumstances in which notice of dishonour is unnecessary.

2. बताइये कि परक्राम्य प्रपत्र अधिनियम, 1881 के प्रावधानों के अन्तर्गत एक परक्राम्य प्रपत्र के अनादरण की सूचना किसके द्वारा तथा किसे दी जायेगी। अधिनियम के अन्तर्गत ऐसी सूचना देने हेतु अपनायी जाने वाली विधि भी बताइये।

State, by and to whom, a notice of dishonour of a negotiable instrument be given under the provisions of the Negotiable Instruments Act, 1881. State also the mode to be followed for giving such notice under the Act.

3. विपत्र अनादरित हो जाने पर धारक का क्या कर्तव्य है? अनादरण की सूचना देना कब आवश्यक नहीं होता?

What are the duties of a holder when a negotiable instrument is dishonoured? When is the notice of dishonour not necessary?

4. विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम, 1881 के उन प्रावधानों की व्याख्या कीजिये जो एक विनिमय-विपत्र के स्वीकर्ता द्वारा अनादर करने पर ‘निकराई’ (Noting) एवं ‘सिकराई'(Protesting) से सम्बन्धित हैं।

Explain the provisions of the Negotiable Instruments Act, 1881, relating to ‘Noting’ and Protesting’ of a Bill of Exchange, which has been dishonoured by the acceptor.

5. विनिमय-पत्र के अनादरण की सूचना क्या होती है ? यह सूचना किसके द्वारा तथा किसको दी जानी चाहिये ? ऐसी सूचना न देने के क्या परिणाम होते है ?

What is a notice of dishonour of a bill of exchange, To and by whom is such notice given ? What is the consequences of a failure to give such notice?

6. आलोकन तथा प्रमाणन क्या है ? इनसे सम्बन्धित प्रावधानों को बताइए।

What is ‘Noting’ and ‘Protesting’ ? Explain the provisions relating to noting and protesting.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 अस्वीकृति द्वारा विलेख के अनादरण से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by the dishonour of instrument by non-acceptance?

2. भुगतान न होने से विलेख के अनादरण से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by the dishonour of instruments by non-payment?

3. नोटिंग से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by noting?

4. प्रोटेस्ट से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by a protest?

5. कोई विलेख अस्वीकृति से अनादरित हुआ कब माना जाता है ?

When is an instrument said to be dishonoured by non-acceptance?

6. भुगतान न होने से विलेख का अनादरण कब हुआ माना जाता है ?

When is an instrument is said to be dishonoured by non-payment?

7. नोटिंग तथा प्रोटेस्ट में अन्तर बताइये।

Distinguish between noting and protest.

8. अनादरण की सूचना कौन दे सकता हैं ?

Who should give notice of dishonour?

9. अनादरण की सूचना किसे दी जानी चाहिए?

To whom notice of dishonour is to be given?

10. अनादरण की सूचना न भेजने के क्या परिणाम होते हैं ?

What are the consequences of not sending a notice of dishonour?

11.. श्रेष्ठ सुरक्षा हेतु प्रमाणन क्या है ?

What is protest for better security ?

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1 विनिमय विपत्र का अनादरण होता है :

(A bill of exchange is dishonoured by) :

(अ) अस्वीकृति द्वारा (Non-acceptance)

(ब) भुगतान न करके (Non-payment)

(स) अ व ब दोनों के द्वारा (Both (a) and (b) above) (1)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

2. एक प्रतिज्ञा-पत्र एवं चैक का अनादरण होता है—

(A Promissory Note and cheque is dishonoured by):

(अ) अस्वीकृति द्वारा (Non-acceptance)

(ब) भुगतान न करके (Non-payment) (1)

(स) अ व ब दोनों के द्वारा (Both (a) and (b) above)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

3. विनिमय-विपत्र अस्वीकृति द्वारा अनादृत किया जाता है, जब ऋणी-

(A bill of exchange is dishonoured by non-acceptance when dobtor) :

(अ) प्रस्तुतीकरण पर 48 घण्टे के बाद स्वीकृति देता है  (Give acceptance after 48 hours of . presentment)

(ब) अनुबन्ध करने के अयोग्य हो (Disqualified for contract)

(स) शर्तपूर्ण स्वीकृति देता है (Give conditional acceptance)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above) (1)

4.बैंक अपने ग्राहक का चैक अनादृत कर सकता है जब-

(Bank can dishonour the cheque of customer when):

(अ) ग्राहक भुगतान रोक देता है (Customer countermand the cheque)

(ब) ग्राहक दिवालिया हो जाता है (Customer becomes insolvent)

5. ग्राहक के विरुद्ध कुर्की का आदेश हो जाता है

(There is a decree against the customer)

(द) ग्राहक के खाते में पर्याप्त राशि शेष न हो (When sufficient balance is not there)()

6. जब बैंक चैक का गलत अनादरण कर देता है तो वह दायी होता है-

(When the bank dishonours the cheque wrongfully then he is liable to):

(अ) धारक के प्रति (Holder)

(ब) मूल प्राप्तकर्ता के प्रति (Original payee)

(स) लेखक के प्रति (Drawer) (1)

(द) बेचानकर्ता के प्रति (Endorser)

7. पर्याप्त धन होने पर भी यदि बैंक ग्राहक के चैक का अनादरण करता है तो वह उत्तरदायी होता-

(If the banker dishonour the cheque with sufficient amount in the account then it is liable to):

(अ) लेखक की क्षतिपूर्ति के लिए (Damages to the drawer) (1)

(ब) धारा 138 के अन्तर्गत आपराधिक उत्तरदायित्व (Criminal liability under section 138 )

(स) सूची से हटाये जाने के लिए उत्तरदायी (Liablility for excluding from the list)

(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं (None of the above)

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chetansati

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