BCom 1st Year Regulatory Framework Performance Contract Sale Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Regulatory Framework Performance Contract Sale Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Regulatory Framework Performance Contract Sale Study Material Notes in Hindi: Delivery of Goods Rule Regarding Delivery Rights of a seller  Duties of a Seller Rights of a Buyer Duties of Buyer Examinations Questions long Answer Questions Short Answer Questions ( This Post Is Most Important For BCom 1st Year Students )

Performance Contract Sale
Performance Contract Sale

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Transfer Ownership Study Material Notes in Hindi

विक्रय अनुबन्ध का निष्पादन

(Performance of Contract of Sale)

विक्रय अनुबन्ध हो जाने के पश्चात् यह आवश्यक है कि विक्रय अनुबन्ध के दोनों आधारभूत एवं महत्वपर्ण पक्षकार, क्रेता और विक्रेता वैधानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत निर्देशित अपने-अपने वचनों का निपाटन करें तथा दोनों में से किसी को भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जो वैधानिक प्रक्रियाओं एवं अधिकार सीमा के अन्तर्गत न हो। इसी क्रम में स्वयं क्रेता को सामान्य रुप से माल के मूल्य का भुगतान करना चाहिए तथा विक्रेता को माल/वस्तु की सुपुर्दगी वैधानिक रुप से देनी चाहिए। अत: इस अध्याय के अन्तर्गत मख्य रुप से क्रेता एवं विक्रेता के कर्तव्य, अधिकार तथा माल की औपचारिक सुपर्दगी तथा मूल्य के भुगतान से सम्बन्धित नियमों की विवेचना की गई है।

Regulatory Framework Performance Contract

माल की सुपुर्दगी

(Delivery of Goods)

वुस्त विक्रय अधिनियम की धारा 2(2) के अनुसार, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को माल का स्वैच्छिक रुप से भौतिक हस्तांतरण ‘सुपुर्दगी’ कहलाता है। वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 33 के अनुसार, “माल की सुपुर्दगी ऐसा कोई कार्य करके की जा सकती है जिससे माल का स्वामित्व एवं अधिकार क्रेता के हाथों में या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति के पास चला जाए।” माल की सुपुर्दगी निम्नलिखित में से किसी एक विधि के द्वारा की जा सकती है

1 वास्तविक सुपुर्दगी (Actual Delivery)- जब माल वास्तविक रुप में विक्रेता द्वारा क्रेता (या उसके अधिकृत एजेन्ट) को सौंपा जाता है तो यह वास्तविक सुपुर्दगी कहलाती है। उदाहरण के लिए, विक्रेता द्वारा ‘स्कूटर’ क्रेता को सौंप देने से माल की वास्तविक सुपुर्दगी मानी जाएगी यदि उनके बीच स्कूटर के क्रय-विक्रय का समझौता हुआ है।

2. सांकेतिक सुपुर्दगी (Symbolic Delivery)- जब माल या तो भारी वजन की प्रकृति का हो या उसकी वास्तविक सुपुर्दगी दिया जाना सम्भव न हो तो उस वस्तु को अर्जित करने के साधन’ (Means of obtaining possession of goods) सुपुर्द कर देने मात्र से ही सुपर्दगी मानी जा सकती है जैसे जिस गोदाम में माल पड़ा है उस गोदाम की चाबी क्रेता को सौंप देना या माल की जहाजी बिल्टी या रेलवे बिल्टी (bill of lading or railway receipt) क्रेता को सौंप देना ताकि वह माल पर अधिकार प्राप्त कर सके, ‘सांकेतिक सुपुर्दगी’ के उदाहरण हैं।

उल्लेखनीय है कि ‘सांकेतिक सुपुर्दगी’ वास्तविक सुपुर्दगी के ही समान मानी जाएगी चाहे ऐसी दशा में माल यथावत् स्थिति में ही रहता है एवं उसके वास्तविक अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

3. रचनात्मक सुपुर्दगी (Constructive Delivery)- जहाँ विक्रेता का माल किसी उतीय पक्षकार के अधिकार में हो, तो ऐसा तृतीय पक्षकार विक्रेता के आदेशानुसार इस प्रकार की स्वीकृति देता है कि वह माल क्रेता के निक्षेपग्रहीता के रुप में प्राप्त कर रहा है तथा क्रेता इस बात के प्रति सहमति देता है तो ऐसी सपर्दगी ‘रचनात्मक सुपुर्दगी’ (constructive delivery or delivery by attornment) मानी जाती है। सरल शब्दों में, रचनात्मक सुपुर्दगी से अभिप्राय ऐसी सुपुर्दगी से है जिसमें माल तो किसी तीसरे पक्षकार के पास होता है परन्तु वह क्रेता के पास हस्तान्तरित हुआ मान लिया जाता है। जब तक यह तीसरा पक्षकार माल को क्रेता की तरफ से रखना स्वीकार न कर ले, सपुर्दगी नहीं हो सकती। उदाहरण के लिए, जब विक्रेता माल का ‘सुपुर्दगी आदेश’ क्रेता तथा गोदाम के मालिक को (जिसके पास उसका माल रखा होता है) सौंपता है तथा वह व्यक्ति (निक्षेपग्रहीता) क्रेता के लिए माल प्राप्त करने की स्वीकृति देता है तो यह रचनात्मक सुपुर्दगी मानी जाती है।

उल्लेखनीय है कि ‘स्वामित्व के प्रपत्रों (documents of title) की दशा में रचनात्मक स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती, उदाहरणार्थ जहाजी बिल्टी को क्रेता के पक्ष में उसका बेचान करके सुपुदंगा का कार्य किया जा सकता है।

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सुपुर्दगी से सम्बन्धित नियम

(Rules Regarding Delivery)

1 सुपुर्दगी तथा भुगतान (Delivery and Payment) (धारा 10 विक्रेता का कर्तव्य है कि माल की सुपुर्दगी दे तथा क्रेता का कर्तव्य है कि सुपर्दगी स्वीकार को तथा अनुबन्ध को शता के अनुसार conditions) हैं।

2. सहगामा निष्पत्ति (Simultaneous Performance) (धारा 32) मूल्य के बदले क्रेता को माल का सुपर्दगी देने के लिए विक्रेता को सदैव तैयार रहना चाहिए तथा सुपुर्दगी के बदले माल का मूल्य चुकाने के लिए क्रेता को इच्छक तथा तत्पर रहना चाहिए। वैसे क्रेता तथा विक्रेता अन्यथा भी सहमति दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, अ 100 टन कोयला ब को बेचता है। अ की मोटर एक समय में केवल 10 टन कोयला ले जा सकती है। इसलिए अ शेष कोयले को सुपुर्द करने की प्रगति में पहले 10 टन कोयला सपर्द करता है। ऐसी दशा में 10 टन की सुपुर्दगी देने का प्रभाव पूरे माल की सुपुर्दगी। देना है। परन्तु माल लीजिए कि अ 10 टन की सुपुर्दगी उसका मूल्य प्राप्त करने और बाद में शेष माल के सम्बन्ध में भी ऐसा करने के अभिप्राय से करता है, तो 10 टन की सुपुर्दगी पूरे माल की सुपुर्दगी का प्रभाव नहीं रखती, क्योंकि यहाँ अ का अभिप्राय शेष माल से 10 टन को पृथक् करना है।

3. क्रेता को सुपुर्दगी दी जाए (Delivery to be made to the Buyer) (धारा 33)-क्रेता को कोई ऐसा कार्य करके भी माल की सुपुर्दगी दी जा सकती है जिसके द्वारा ऐसा प्रभाव हो कि माल का अधिकार क्रेता या उसके विधिवत् अधिकृत प्रतिनिधि को चला जाए। सुपुर्दगी करने के लिए क्रेता या उसके अधिकृत प्रतिनिधि को माल की सुपुर्दगी होना नितान्त आवश्यक है। दूसरे शब्दों में, क्रेता ऐसी स्थिति में आ जाना चाहिए कि माल पर वह प्रत्यक्ष रुप से या प्रतिनिधि के माध्यम से किसी सीमा तक नियन्त्रण लागू कर सके। उदाहरण के लिए, ‘अ’ ने 50 बोरी गेहूँ का आदेश ‘ब’ को दिया तथा अपना ट्रक ‘ब’ के गोदाम पर भेज दिया। गेहूँ का ट्रक पर लदान माल की ‘अ’ को सुपुर्दगी माना जाएगा।

4. आंशिक सुपुर्दगी का प्रभाव (Effect of Partial Delivery) वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 34 के अनुसार आंशिक माल की सुपुर्दगी, सम्पूर्ण माल की सुपुर्दगी के सन्दर्भ में की गई हो तो उसका वही प्रभाव होता है, जो प्रभाव सम्पूर्ण माल की सुपुर्दगी का होता है। परन्तु यदि सम्पूर्ण माल को अलग करने के उद्देश्य से आंशिक माल की सुपुर्दगी दी गई है, तो ऐसी आंशिक सुपुर्दगी को शेष माल की सुपुर्दगी नहीं माना जा सकता अर्थात् सम्पूर्ण माल से पृथक करने के अभिप्राय से माल की आंशिक सुपुर्दगी शेष माल की सुपुर्दगी का प्रभाव नहीं रखती। सम्पूर्ण माल में से आंशिक माल पृथक् करने का अभिप्राय मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के आधार पर ज्ञात किया जायेगा।

5. क्रेता द्वारा सपुर्दगी के लिए आवेदन (Buyer should apply for Delivery)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 35 के अनुसार किसी स्पष्ट अनुबन्ध के अभाव में माल का विक्रेता तब तक सुपुर्दगी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जब तक कि क्रेता द्वारा इसके लिए आवेदन या माँग न की जाए।

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6. सुपुर्दगी का ढंग (Mode of Delivery)- वस्तु विक्रय अनुबन्ध के अनुसार माल या वस्तु की सुपुर्दगी वास्तविक या सांकेतिक अथवा रचनात्मक रुप से हो सकती है। यह सुपुर्दगी कैसे होगी, इसका निर्धारण स्वयं क्रेता व विक्रेता, दोनों संयुक्त रुप से विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत स्पष्ट या गर्भित रुप से प्रकट कर देते हैं तो सुपुर्दगी उन्हीं निर्देशों के अनुरुप होती है। यदि ऐसा विक्रय अनुबन्ध में स्पष्ट नहीं है तो माल की सुपुर्दगी सामान्य रुप से व्यापारिक प्रथा या रीति के अनुसार प्रचलित ढंग से क्रेता को की जाती है। इस प्रकार माल की सपर्दगी क्रेता एवं विक्रेता के बीच हुए अनुबन्ध में स्पष्ट होती है या व्यापारिक प्रथा के अनुसार ही माल की सुपर्दगी की जाती है।

उदहारण :X Y के बीच 500 कलर टेलीविजन का विक्रय अनुबन्ध हुआ, जिसमें सुपुर्दगी का ढंग यह निश्चित किया गया कि 300 कलर टेलीविजन जयपर स्थित गोदाम में व 200 कलर टेलीविजन जयपुर गोल्डन ट्रांसपोर्ट कम्पनी, जयपुर के गोदाम में जाएंगे। यह सुपुर्दगी का ढंग विक्रय अनुबन्ध में ही निर्धारित किया गया है, अत: सुपर्दगी इसी ढंग से की जाएगी।

7. सुपुर्दगी का स्थान (Place of Delivery) धारा 36 (1) के अनुसार, यदि वस्तु विक्रय अनबन्ध के अन्तर्गत किए गए अनुबन्ध में यह स्पष्ट या निश्चित नहीं किया गया है कि माल या वस्तु का। सपर्दगी किस स्थान पर दी जाएगी तो ऐसी दशा में माल की सपर्दगी निम्नलिखित तरीके से दी जाएगी :

(i) माल की सुपुर्दगो का स्थान वही होगा, जहाँ विक्रय अनबन्ध के समय माल विद्यमान था।

(ii) यदि विक्रय का ठहराव किया गया है तो ऐसी दशा में माल की सपर्दगी का स्थान वहीं होगा, जहाँ कि माल विक्रय का ठहराव करते समय था।

(iii) यदि माल, ठहराव करते समय अस्तित्व में या निर्मित नहीं है अर्थात् माल का निर्माण या उत्पादन किया जाएगा तो ऐसे माल को सुपुर्दगी उसके निर्माण के स्थल पर ही की जाएगी।

8. सुपुर्दगी का समय (Time of Delivery) धारा 36 (2) के अनुसार, जब विक्रय अनुबन्ध के अति विक्रेता. क्रेता को माल भेजने के लिए बाध्य है, लेकिन अनुबन्ध में माल को भेजने का कोई निश्चित या निर्धारित नहीं किया गया है तो ऐसी दशा में विक्रेता माल को उचित समय में क्रेता को जने के लिए बाध्य है, यह उचित समय क्या होगा, यह मामले की परिस्थिति पर निर्भर करता है।

9. जब माल किसी तृतीय पक्षकार के अधिकार में हो (Goods in possession of a third धारा 36 (3) के अनुसार जब विक्रय के समय माल किसी तृतीय पक्षकार के पास है तो क्रेता माल की सपर्दगी तभी मानी जाएगी जब उक्त तीसरा पक्षकार क्रेता के प्रति यह स्वीकार करे कि वह सालको क्रेता के लिए रख रहा है। परन्तु जब स्वामित्व का हस्तान्तरण प्रपत्रों के हस्तांतरण द्वारा होना है जैसे जहाजी बिल्टी या रेलवे रसीद आदि तो हस्तांतरिती को माल का स्वामित्व हस्तांतरण हुआ मान लिया जागा चाहे माल अभी तक वाहक के हाथों में है तथा उसने क्रेता के प्रति स्वीकृति भी नहीं दर्शाई है।

10.सुपुर्दगी की माँग करने अथवा प्रस्तुत करने का समय (Hour for Demand of Tender of Delivery)- धारा 36(4) के अनुसार सुपुर्दगी की माँग अथवा माल प्रस्तुत करना निष्फल समझा जा सकता है. जब तक कि वह उचित समय के अन्दर न किया गया हो। यह उचित समय क्या है, यह एक तथ्य सम्बन्धी प्रश्न है, जो प्रत्येक मामले की परिस्थिति पर निर्भर होता है।

11. सुपुर्दगी का व्यय (Expenses of Delivery)-धारा 36 (5) के अनुसार सामान्यतया किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल को सुपुर्दगी योग्य स्थिति में लाने के लिए तथा उस माल को रखने का सम्पूर्ण खर्च या व्यय स्वयं विक्रेता को ही वहन करना होगा। ।

12. गलत मात्रा में सुपुर्दगी (Delivery of Wrong Quantity)–धारा 37 के अनुसार, विक्रेता क्रेता को अनुबन्ध के अनुसार सुपुर्दगी देने के लिए बाध्य है। यदि विक्रेता गलत मात्रा में सुपुर्दगी देता है (कम या अधिक मात्रा में) तो क्रेता माल को अस्वीकृत कर सकता है। गलत सुपुर्दगी का अध्ययन निम्न प्रकार किया जा सकता है

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(i) कम मात्रा में सुपुर्दगी (Delivery of Short Quantity)- जब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत कोई विक्रेता, क्रेता को निर्धारित मात्रा से कम मात्रा में माल की सुपुर्दगी देता है तो क्रेता को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सम्पूर्ण माल को अस्वीकार कर दे। लेकिन यदि क्रेता कम मात्रा में माल की सुपुर्दगी को स्वीकार कर लेता है तो ऐसी दशा में उसे अनुबन्ध के अन्तर्गत निर्धारित दर से माल के मूल्य का भुगतान करना होगा।

(ii) अधिक मात्रा में माल की सुपुर्दगी (Delivery of Excess Quantity) यदि विक्रेता विक्रय अनुबन्ध में निर्धारित की गई मात्रा से अधिक मात्रा में माल की सुपुर्दगी क्रेता को देता है तो क्रेता ऐसी दशा में :

(a) अनुबन्ध में निर्धारित की गई मात्रा को स्वीकार कर सकता है तथा शेष बचे हुए माल को अस्वीकार कर सकता है, अथवा ।

 (b) सम्पूर्ण माल को अस्वीकार कर सकता है लेकिन यदि क्रेता सम्पूर्ण माल को स्वीकार कर लेता हैं तो उसे सम्पूर्ण माल का मूल्य विक्रय अनुबन्ध में निर्धारित दर से भुगतान करना होगा।

13. किश्तों में सपर्दगी (Delivery of Goods in Instalments)-जब तक दोनों पक्षों में कोई । ऐसा समझौता न हुआ हो, क्रेता को किश्तों में माल लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। परन्तु दोनों पक्ष यह तय कर सकते हैं कि किश्तों में सुपुर्दगी दी व ली जाएगी। जब अनुबन्ध के अनुसार माल की सुपुर्दगी किश्तों में दी जानी है तथा प्रत्येक किश्त का मूल्य अलग-अलग चुकाया जाना है तब यह प्रश्न उठता है कि यदि विक्रेता कोई किश्त न दे या घटिया माल दे अथवा क्रेता किश्त को अस्वीकार कर दे, तो क्या सम्पूर्ण अनुबन्ध भंग माना जाएगा या एक भाग को भंग मानकर हर्जाना वसल किया जायेगा? धारा 38 (2) के अनुसार अनुबन्ध की शर्तों तथा परिस्थितियों पर इस प्रश्न का उत्तर निर्भर करता है। उदाहरण, विक्रेता को छ: किश्तों में सुपर्दगी देनी थी। चौथी किश्त की सपर्दगी निर्धारित समय के बहुत दिन बाद दी गई और क्रेता ने उसे स्वीकार कर लिया। बाद में क्रेता सपर्दगी में देर होने के अनुबन्ध को बने अनुबन्ध रद्द नहीं कर सकता, क्योंकि क्रेता ने अपने आचरण से (माल स्वीकार करके) अनुबन्ध रहने दिया।

Reuter Vs. Salea (1879) के मामले में S ने 25 टन कागज मार्च-अप्रैल के शि’ खरीदा। R ने 20 टन माल मार्च में तथा 5 टन माल सितम्बर में भेजा। निर्णय के अनुसार कुछ नहीं था कि सुपुर्दगी किश्तों में दी जाएगी। अत: S माल की सपुर्दगी किर नहीं था।

14. वाहक या घाटपाल को सुपुर्दगी (Delivery to Carrier or Wharfinger)- जब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत विक्रेता ने क्रेता को माल भेजना है तो क्रेता तक माल पँहुचाने के लिए जबवाहक को सपर्द कर दिया जाता है या सरक्षा के लिए घाटपाल को दे दिया जाता है तो यह मान लि.

को मिल गया अर्थात सपर्द हो गया। क्रेता ने किसी वाहक का नाम बताया हो या नहीं, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। विक्रेता का कर्तव्य है कि माल की प्रकृति तथा अन्य परिस्थितियों देखते हुए वह वाहक के साथ उचित अनुबन्ध करे। यदि विक्रेता ऐसा करने में कोई भल करता है माल मार्ग में खो जाता है या क्षतिग्रस्त हो जाता है तो क्रेता वाहक को दी गई सपर्दगी को सर सपर्दगी मानने से इन्कार कर सकता है अथवा ऐसी हानि के लिये विक्रेता को दोषी ठहरा सकता है। माल समद्री मार्ग से ऐसी दशाओं में भेजा जा रहा हो, जिसमें माल का बीमा कराना आवश्यक होना ऐसी दशा में विक्रेता को चाहिए कि वह क्रेता को बीमा कराने की सूचना दे। यदि विक्रेता ऐसा नहीं करता है तो मार्ग में माल की जोखिम स्वयं विक्रेता की ही मानी जाएगी। ।

15.किसी दरदराज स्थान पर माल की सुपुर्दगी (Delivery of goods at Distant Place)धारा 40 के अनुसार जब विक्रेता माल की सुपुर्दगी अन्यत्र अपने दायित्व पर करने को सहमत है (अर्थात कोई अन्य स्थान जहाँ से दूर माल बेचा गया था) तो क्रेता अन्य किसी विपरीत अनबन्ध के अभाव में इस प्रकार माल में होने वाली किसी भी प्रकार की क्षति के लिए उत्तरदायी होगा। उदाहरणार्थ, यदि विक्रेता की जोखिम पर सन्तरे नागपुर से लुधियाना भेजे जाते हैं तो साधारणतया इस यात्रा के बीच सन्तरों में होने वाली किसी भी प्रकार की क्षति के लिए क्रेता उत्तरदायी होगा। लेकिन असाधारण या असामान्य नकसान (extra-ordinary or unusual deterioration) विक्रेता द्वारा वहन किया जा सकता है।

16. माल की जाँच करने का क्रेता का अधिकार (Buyer’s Right to Examine the Goods)

(i) सुपुर्दगी से पूर्व माल की जाँच की गई हो (Not Examined before Delivery) यदि क्रेता को ऐसे माल की सुपुर्दगी दी जाती हो, जिसकी उसने पहले कभी-जाँच न की हो, तो ऐसी दशा में माल क्रेता द्वारा तब तक स्वीकार नहीं माना जाएगा, जब तक कि उसे अर्थात् क्रेता को उचित समय न मिल जाए, जिससे कि वह यह निश्चित कर सके कि माल अनुबन्ध के अनुसार है अथवा नहीं।

(ii) जाँच करने को उचित समय (Right Time to Examine)- ब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत विक्रेता क्रेता को माल की सुपुर्दगी देता है तो क्रेता द्वारा निवेदन करने पर विक्रेता उसे माल की जाँच करने के लिए उचित समय प्रदान करने के लिए बाध्य होता है, जिससे कि क्रेता यह देख सके कि माल अनुबन्ध के अनुसार है या नहीं।

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उपरोक्त धारा के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि यदि विक्रेता, क्रेता को माल की जाँच करने का उचित समय नहीं देता है तो ऐसी दशा में क्रेता माल की सुपुर्दगी लेने से इन्कार कर सकता है। लेकिन इसके विपरीत यदि विक्रेता, क्रेता को माल की जाँच करने का उचित समय देता है और इसके बाद भी क्रेता माल की जाँच नहीं कर पाता है तो ऐसी दशा में माल में किसी प्रकार की कमी होने पर भी क्रेता अनुबन्ध को निरस्त (समाप्त) नहीं कर सकता है।

17. क्रेता द्वारा स्वीकृति (Acceptance by Buyer)-धारा 42 के अनुसार, क्रेता द्वारा माल को स्वीकृत माना जाता है

(i) उसने विक्रेता को अपनी स्वीकृति दे दी हो;

(ii) जब माल को उसने प्राप्त कर लिया हो तथा उसको कुछ इस प्रकार प्रयोग में लिया हो जो विक्रेता के स्वामित्व पर असंगति उत्पन्न करता हो जैसे माल का पुन: विक्रय करना या गिरवी रख देना।

(iii) उचित समय के समाप्त होने पर, उसने बिना विक्रेता को यह बताए हुए कि माल उसने अस्वीकार कर दिया है, माल को अपने पास रोके रखता है।।

Hardy & Co.Vs. Hillerns & Fowler (1923) के मामले में क्रेता ने गेहूँ की सुपर्दगी ले ली तथा बिना उसकी जाँच किए उसके एक भाग की पुन: बिक्री (resale) कर दी। बाद में उसको ज्ञात हुआ कि गेहूं अनुबन्धित किस्म का नहीं था, अत: उसने उसे अस्वीकार करना चाहा। निर्णय के अनुसार वह अस्वीकृति का अधिकार (right of rejection) खो चुका था क्योंकि वह उसके एक भाग का सौदा करके विक्रेता के अधिकारों के असंगत कार्य कर चुका था। अत: उसने अस्वीकृति के अधिकार का स्वयं परित्याग कर दिया था।

18. क्रेता अस्वीकृत माल को वापिस करने के लिए बाध्य नहीं है (Buyer is not bound to Rejected Goods)–धारा 43 के अनुसार, जब तक अन्यथा सहमति न की गई हो, जब को सौंपा जा चुका हो तथा उसने उसे स्वीकार करने के लिए मना कर दिया हो (जिसका अधिकार था) तो उस माल को विक्रेता को लौटाने का उसका कर्तव्य नहीं है। उसके लिए यही पर्याप्त होगा कि वह अपनी अस्वीकृति की सूचना विक्रेता को भेज दे।

19. 1 साल की सपर्दगी को मना करना या अवहेलना करने पर क्रेता का दायित्व (Liability of Buver for Neglecting or Refusing Delivery of Goods)-धारा 44 के अनुसार जब विक्रेता की सपर्दगी देने के लिए तत्पर तथा तैयार है तथा वह क्रेता से इस बारे में प्रार्थना करता है परन्त देवा प्रार्थना के पश्चात् भी माल की सुपुर्दगी उचित समय के अन्दर नहीं लेता तो वह विक्रेता के प्रति दायी होगा-(i) इस प्रकार सुपुर्दगी न लेने से हुई क्षति तथा (ii) माल की उचित सुरक्षा तथा रखरखाव Safe Custody and care) के लिए उचित प्रभार के प्रति। लेकिन यह धारा किसी प्रकार से भी विक्रेता के अधिकारों पर प्रभाव नहीं डालती जहाँ क्रेता को अस्वीकृति या अवमानना को अनुबन्ध भंग के रुप में लिया जाता हो।

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विक्रेता के अधिकार

(Rights of a Seller)

वस्तु विक्रय अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत एक विक्रेता के निम्नलिखित अधिकार हैं :

1 मुल्य प्राप्त करने का अधिकार (Right to Receive Price)- जब विक्रेता द्वारा क्रेता को । विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल की सुपुर्दगी दी जाती है तो ऐसी दशा में विक्रेता को सुपुर्द किए गए माल का मूल्य प्राप्त करने का अधिकार है। इस प्रकार माल की सुपुर्दगी देना एवं मूल्य प्राप्त करना, दोनों

2. मूल्य के लिए वाद प्रस्तुत करना (To File Suit for Price)– वस्तु विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत जब माल का स्वामित्व क्रेता को हस्तान्तरित हो गया हो तथा क्रेता अनुबन्ध की शर्तों के अन्तर्गत मूल्य के भुगतान करने में यदि कोई त्रुटि करता है या अस्वीकार करता है तो ऐसी दशा में विक्रेता को क्रेता के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने का अधिकार होता है।

3. अस्वीकृति पर क्षतिपूर्ति के लिए वाद (To File Suit for Damages due to Non-acceptance)- जब क्रेता द्वारा माल को अस्वीकार करने या उसके मूल्य का भुगतान करने में किसी भी प्रकार की त्रुटि की जाती है तो ऐसी दशा में विक्रेता को क्रेता पर ऐसी अस्वीकृति से उत्पन्न होने वाली क्षति/हानि की पूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त होता है। (धारा 56)

4. ब्याज प्राप्त करने का अधिकार (Right to Get the Interest)- यदि क्रेता द्वारा विक्रेता को माल का मूल्य उचित समय या निश्चित तिथि पर नहीं चुकाया जाता हैं तो ऐसी दशा में विक्रेता को उस पर क्षतिपूर्ति के रुप में नियमानुसार या बाजार की रीति के अनुसार ब्याज प्राप्त करने का अधिकार होता है।

5. माल के विरुद्ध अधिकार (Right Against Goods)- जब वस्तु विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत विक्रेता ने माल उधार विक्रय नहीं किया है या उधार विक्रय किया गया है, लेकिन विनिमय साध्य विलेख को क्रेता द्वारा अस्वीकार कर दिया गया है तो ऐसी दशा में विक्रेता को माल के विरुद्ध-(i) ग्रहणाधिकार, (ii) माल को मार्ग में रोकने का अधिकार, तथा (iii) माल के पुन: विक्रय का अधिकार प्राप्त होता है।

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विक्रेता के कर्तव्य

(Duties of A Seller)

1 माल की सुपुर्दगी देना (To deliver the goods)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 3 अनुसार, विक्रेता का यह कर्तव्य है कि विक्रय अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार माल की सुपुदगी धारा 32 के अनुसार किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में क्रेता द्वारा माल की सुपुदा १ क्रेता द्वारा मूल्य का भुगतान करना-ये दोनों पारस्परिक वचन होते हैं जिनका निष्पादन किया जाना चाहिए। अतएव सुपुर्दगी देने को विक्रेता का दायित्व उसी समय उत्पन्न । मूल्य देने के लिए प्रस्तुत तथा इच्छुक हो।

2. वाहक के साथ अनुबन्ध करना (To make Contract with the Carrier of Goods)धारा 39 (2) के अनुसार, किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में या स्वयं क्रेता के कुछ अन्य आदेश न । होने की दशा में विक्रेता यदि माल की सुपुर्दगी किसी वाहक को क्रेता के पास पहुँचाने के लिए सपर्ट। करता है तो उसका यह प्राथमिक कर्तव्य होता है कि माल की प्रकृति/ स्वभाव तथा अन्य परिस्थितियों। दशाओं को ध्यान में रखते हुए, वाहक के साथ आवश्यकतानुसार उचित अनुबन्ध करे। यदि माल मार्ग में। चोरी हो जाता है या खो जाए या नष्ट हो जाए, तो ऐसी दशा में विक्रेता उत्तरदायी होगा। (धारा 3929

3. बीमा हेत क्रेता को सूचना देना (To inform buyer for marine Insurance)-धारा 39(3) के अनुसार, किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में, यदि माल को क्रेता तक पुहँचाने के लिए समट । मार्ग से गुजरना हो तथा परिस्थितियाँ ऐसी हों जिनमें माल का साधारणतया बीमा कराया जाता हो. तो। विक्रेता का यह कर्तव्य है कि क्रेता को ऐसी सूचना दे ताकि वह उसका बीमा करा सके और यदि विक्रेता ऐसा नहीं करता है, तो रास्ते में माल उसकी जोखिम पर रहेगा।

4. माल की उचित जाँच करने का अवसर देना (To Give Opportunity to Examine the Goods)-धारा 41(1) के अनुसार, वस्तु विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत जब विक्रेता, क्रेता को माल की सुपुर्दगी देता है तो सुपुर्दगी से पूर्व क्रेता को उस माल की जाँच करने का उचित अवसर देना चाहिए। यदि विक्रेता जाँच करने का उचित अवसर क्रेता को नहीं देता है तो ऐसी दशा में क्रेता द्वारा ऐसे माल को स्वीकार नहीं माना जाएगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि विक्रेता द्वारा क्रेता को माल की जाँच करने एवं माल अनुबन्ध के अनुसार ही है अथवा नहीं, यह देखने व जाँच करने का उचित अवसर नियमानुसार दिया जाना चाहिए।

5. स्पष्ट एवं गर्भित शर्त एवं आश्वासन (Express and Implied Condition and Warranty) वस्तु विक्रय अनुबन्ध अधिनियम के अन्तर्गत यह स्पष्ट प्रावधान है कि विक्रेता द्वारा अनुबन्ध के अधीन सभी स्पष्ट एवं गर्भित शर्तों एवं आश्वासनों की पालना आवश्यक रुप से करनी चाहिए।

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क्रेता के अधिकार

(Rights of a Buyer)

वस्तु विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत एक क्रेता के निम्नलिखित अधिकार होते हैं :

1 माल की सुपुर्दगी लेने का अधिकार (Right to Receive Delivery)- धारा 31 के अनुसार वस्तु विक्रय के अनुबन्ध में अनुबन्ध निष्पादन में दो ही महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं, माल की सपर्दगी एवं भुगतान। अत: क्रेता को विक्रय अनुबन्ध में माल की सुपुर्दगी लेने का महत्त्वपूर्ण एवं आधारभूत अधिकार अधिनियम द्वारा प्राप्त होता है।

2.गलत मात्रा में सुपुर्दगी होने पर (In case of Delivery in Wrong Quantity)-धारा 37 के अनुसार वस्तु विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत यदि विक्रेता निर्धारित मात्रा से कम या अधिक माल की सुपुर्दगी क्रेता को कर देता है तो ऐसी दशा में क्रेता को यह अधिकार होता है कि वह चाहे तो उसे स्वीकार करे या अस्वीकार कर दे।

3. माल की जाँच करने का अधिकार (Buyer’s Right of Examining the Goods)-धारा 41 के अनुसार वस्तु विक्रय अधिनियम में यह निहित शर्त है कि क्रेता जो माल क्रय करता है उसे वह अच्छी तरह देखभाल या उचित जाँच करके ही वह उस माल को स्वीकार करे अर्थात् माल को स्वीकार करने से पूर्व उसकी जाँच करने का अधिकार प्राप्त होता है।

4. अस्वीकृत माल को वापस करने के लिए बाध्य नहीं (Buyer not bound to return rejected goods)-धारा 43 के अनुसार किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में, जहाँ क्रेता को माल की सपुर्दगी दी जाती है और वह उसे अस्वीकृत करने का अधिकार रखते हुए उसे अस्वीकार कर देता है, तो वह माल विक्रेता को वापस करने के लिए बाध्य नहीं है। यहाँ पर क्रेता द्वारा विक्रेता को केवल अस्वीकृति की सूचना देना पर्याप्त है।

5. सुपुर्दगी प्राप्त होने पर क्षतिपूर्ति का अधिकार (Damages for non delivery)-धारा। .57 के अनुसार जहाँ विक्रेता माल की सुपुर्दगी देने में उपेक्षा अथवा इन्कार करता है, तो क्रेता क्षतिपूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है।

6. आश्वासन भंग की दशा में उपचार (Remedy दशाम उपचार (Remedy for Breach of Warranty)-धारा 59 का अनुसार वस्तु विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत जब विक्रेता ने किसी आश्वासन को भंग किया है या किसी शर्त के भंग को आश्वासन का भंग माना गया हो तो ऐसी दशा में क्रेता को, विक्रेता से उचित क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होता है।

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क्रेता के कर्तव्य

(Duties of Buyer)

1.मूल्य का भुगतान करना (To Pay the Price)-विक्रय अनुबन्ध के निष्पादन के लिए क्रेता का यह आधारभूत एवं महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि विक्रेता से प्राप्त माल की सुपुर्दगी के बदले या प्रतिफल स्वरुप उसे उस माल के मूल्य के भुगतान को सुरक्षित करे।

धारा 32 के अनुसार विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल की सुपुर्दगी एवं भुगतान, दोनों पारस्परिक वचन होते हैं, जिनका निष्पादन साथ-साथ होता है।

2. सुपुर्दगी की मांग करना (To Apply for Delivery) धारा 35 के अनुसार किसी स्पष्ट अनबन्ध के अभाव में क्रेता का यह कर्तव्य होता है कि वह विक्रेता से माल की सुपुर्दगी देने की मांग करे।

3.गलत मात्रा में सुपुर्दगी की स्थिति (In case of delivery of Wrong Quantity)-धारा 37 के अनुसार यदि क्रेता को विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत दी गई मात्रा से भिन्न मात्रा में माल की सपर्दगी दे दी जाती है तो ऐसी दशा में क्रेता विक्रय अनुबन्ध में दी गई मात्रा के अतिरिक्त माल की सपर्दगी लेने से इन्कार कर सकता है. लेकिन यदि क्रेता उस माल को स्वीकार कर लेता है तो अनुबन्ध में निश्चित दर से भुगतान करने का उसका कर्तव्य होगा।

4.मार्ग में माल खराब होने की जोखिम को वहन करना (To Take Risk of Deterioration in Transit)- धारा 40 के अनुसार वस्तु विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत यदि क्रेता अपनी जोखिम पर माल की सुपुर्दगी देने की सहमति प्रदान करता है, जहाँ कि माल विक्रय के अनुबन्ध के समय है, तो मार्ग में हुई सामान्य हानि या क्षति को वहन करने का कर्तव्य क्रेता का ही होगा।

5.सुपुर्दगी लेने में उपेक्षा से हुई हानि (Liability of Buyer for neglecting or refusing Delivery of Goods)-धारा 44 के अनुसार जब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत विक्रेता क्रेता को माल की सुपुर्दगी देने के लिए तत्पर है एवं इच्छुक है और विक्रेता इसके लिए क्रेता को प्रार्थना करता है और क्रेता ऐसी प्रार्थना के बाद भी उचित समय में माल की सुपुर्दगी नहीं लेता है तो क्रेता सुपुर्दगी लेने से उपेक्षा अथवा इन्कार के परिणामस्वरुप होने वाली हानि के लिए उत्तरदायी होगा।

Regulatory Framework Performance Contract

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 विक्रय अनुबन्ध के निष्पादन के सम्बन्ध में क्रेता तथा विक्रेता, दोनों के अधिकारों एवं कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।

Describe the rights and duties of the buyer and seller in connection to the performance of Contract of Sale.

2. वस्तु विक्रय अनुबन्ध में सुपुर्दगी की परिभाषा दीजिए तथा सुपुर्दगी से सम्बन्धित नियमों की व्याख्याकीजिए।

Define delivery under the Sales of Goods Act and state rules regarding delivery.

3. वस्तु विक्रय अनुबन्ध में सुपुर्दगी से क्या आशय है? सुपुर्दगी तथा मूल्य के भुगतान सम्बन्धी नियम बताइए।

What is meant by the term ‘Delivery’ under the Sale of Goods Act ? State Law relating to delivery and payment of price.

4. माल की सुपुर्दगी से क्या समझते हैं ? सुपुर्दगी के विभिन्न ढंग क्या हैं ? माल की गलत सुपुर्दगी की दशा में उत्पन्न होने वाले वैधानिक परिणामों की विवेचना कीजिए।

What do you understand by the term ‘Delivery’? What are the various methods of Delivery? Discuss the legal consequences in the case of wrong delivery of goods.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 माल के सुपुर्दगी योग्य स्थिति में होने से क्या आशय है?

What is meant by Goods in Deliverable State?

2. “भुगतान तथा सुपुर्दगी एक साथ पूरी होने वाली शर्त हैं।” स्पष्ट कीजिए।

“Payment and delivery are concurrent conditions.” Explain.

3. “वाहक को सुपुर्दगी क्रेता को सुपुर्दगी होती है।” स्पष्ट कीजिए।

“Delivery to carrier is delivery to the buyer.”‘ Explain.

4. “सुपुर्दगी का आशय माल की स्वीकृति नहीं है।” ”

Delivery does not mean acceptance of goods.” Explain.

5. सुपुर्दगी के प्रकार पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।

Write a short note on kinds of Delivery of Goods.

6. मूल्य निर्धारण से क्या आशय है ?

What is meant by ascertainment of Price?

7. वाहक या घाटपाल को वस्तु की सुपुर्दगी का क्या प्रभाव होता है ?

What is the effect of delivery of goods to the carrier or wharfinger?

8. माल की सुपुर्दगी के व्यय किसे वहन करने पड़ते हैं ?

Who is to bear expenses of Delivery of Goods?

9. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :

Write short note on :

(i) सुपुर्दगी का स्थान (Place of Delivery)

(ii) सुपुर्दगी का समय (Time of Delivery)

10. सुपुर्दगी लेने में लापरवाही या इन्कार करने पर क्रेता का दायित्व क्या है ?

What is the Liability of Buyer for neglecting or refusing Delivery of Goods?

11. संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए : Write short notes on :

(i) रचनात्मक सुपुर्दगी (Constructive Delivery)

(ii) सांकेतिक सुपुर्दगी (Symbolic Delivery)

12. जब क्रेता को गलत मात्रा में माल की सुपुर्दगी दे दी जाती है तो उसे क्या अधिकार प्राप्त है?

What are the remedies available to the buyer when goods in the wrong quantity are delivered to him?

13. क्या विक्रेता, क्रेता को माल की जाँच हेतु उचित अवसर देने के लिए बाध्य है ?

Is the seller bound to afford the buyer a reasonable opportunity to examine the goods?

15. क्या क्रेता किश्तों में माल की सुपुर्दगी हेतु बाध्य है ?

Is a buyer bound to accept delivery of goods in Instalments?

16. यह कब समझा जाएगा कि क्रेता ने माल को स्वीकार कर लिया है ?

When can a buyer of goods be said to have accepted them?

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1 विक्रेता के विरुद्ध क्रेता के अधिकार हैं-

(The buyer’s right against the seller is):

(अ) सुपुर्दगी स्वीकार करना (Accept the delivery)

(ब) सुपुर्दगी रद्द करना (Reject the delivery)

(स) माल का परीक्षण करना (Examine the goods)

(द) उपरोक्त सभी (All the above) (1)

2. वैध विक्रय संविदे में सुपुर्दगी की निम्न विधियां प्रभावी मानी जाती है

(In a valid contract of sale the following are valid modes of delivery):

(अ) वास्तविक सुपुर्दगी (Actual delivery)

(ब) सांकेतिक सुपुर्दगी (Symbolic delivery)

(स) रचनात्मक सुपुर्दगी (Constructive delivery)

(द) उपरोक्त सभी (All the above) (1)

3. विक्रेता द्वारा क्रेता को उस गोदाम की चाबी देने जिसमें माल रखा है का अर्थ है-

(When the seller gives the keys of godown where goods are kept to buyer means) :

(अ) वास्तविक सुपुर्दगी (Actual delivery)

(ब) सांकेतिक सुपुर्दगी (Symbolic delivery) (1)

(स) आंशिक सुपुर्दगी (Partial delivery)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

4. यदि क्रेता, माल अधिक या कम मात्रा में होने के कारण सम्पूर्ण माल रद्द कर देता है तो इसका तात्पर्य हुआ कि संविदा-

(If the buyer rejects the whole goods either because of short supply or excess supply then):

(अ) अस्तित्व में है (Contract exists) (1)

(ब) समाप्त हो गया (Contract terminated)

(स) शून्य (Void)

(द) अवैध (Invalid)

5. जब माल विक्रेता द्वारा माल वाहक या घाटपाल को सुपुर्द किया जाता है तो ऐसी सुपुर्दगी को हम क्या मानेगें—

(When the seller delivers the goods to the carrier or wharfinger then such delivery is deemed) :

(अ) अवैध एवं अप्रभावी (Invalid and ineffective)

(ब) वैध एवं प्रभावी (Valid and effective) (1)

(स) शर्तपूर्ण (Conditional)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

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chetansati

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