BCom 1st Year Regulatory Framework Types Negotiable Instruments Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Regulatory Framework Types Negotiable Instruments Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Regulatory Framework Types Negotiable Instruments Study Material Notes in Hindi: Types of Negotiable Instruments promissory note Essential Features of a Promissory note Bill of Exchange Comparison of Promissory note and bill of Exchange  Types bill of Exchange Cheque Difference Between Bills of Exchange and Cheque Crossing of Cheque Types of Crossing Examinations Questions Long Answer Questions Shot Questions Objectives Questions

Types Negotiable Instruments
Types Negotiable Instruments

BCom 3rd Year Information Technology Fundamentals of Computers Study Material Notes in hindi

विनिमय साध्य विलेखों के प्रकार

(Types of Negotiable Instruments)

विनिमय साध्य विलेख के प्रकार

(Types of Negotiable Instruments)

विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 13 के अन्तर्गत केवल तीन प्रकार के विलेख (1) विनिमय-पत्र (ii) प्रतिज्ञा-पत्र, तथा (iii) चैक का उल्लेख किया गया है। लेकिन कुछ ऐसे भी विलेख हैं, जिनको विभिन्न अधिनियमों, भारतीय न्यायालयों एवं व्यापारिक रीति-रिवाजों के आधार पर विनिमय साध्य विलेख माना जाता है। जैसे-सम्पत्ति हस्तान्तरण अधिनियम की धारा 137 के अनुसार अंश, स्कन्ध तथा ऋण-पत्र स्थानीय चलन के अनुसार विनिमय साध्य विलेख माने जाते हैं।

इसी प्रकार भारतीय कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार, अंश अधिपत्र, लाभांश अधिपत्र तथा पोर्ट-ट्रस्ट या इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट, ऋण-पत्र को भी विनिमय साध्य विलेख माना जाता है। इसके अतिरिक्त रेलवे-रसीद, जहाजी बिल्टी, डाक-वारण्ट, धारपाल का प्रमाण-पत्र आदि को भी एक सीमा तक उनके लक्षणों के आधार पर विनिमय साध्य विलेख माना जाता है। न्यायालय एक विलेख को विनिमय साध्य उस समय मानता है, जबकि वह “विनिमय साध्यता” की पूर्ति करता है। अतः विनिमय साध्य विलेख को निम्नलिखित दो महत्त्वपूर्ण शर्तों को पूरा करना होता है

(i) ऐसा विलेख व्यापारिक परम्पराओं के अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक सुपुर्दगी या पृष्ठांकन (Endorsement) पर सुपुर्दगी द्वारा हस्तान्तरणीय हो, तथा ।

(ii) सद्भावना एवं सद्विश्वास द्वारा एवं प्रतिफल देकर किसी भी व्यक्ति को उसका पूर्ण रुप से दोषरहित स्वत्व प्राप्त करने एवं उसमें वर्णित देय राशि को अपने नाम से प्राप्त करने का अधिकार हो।

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प्रतिज्ञापत्र

(Promissory Note)

विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, “प्रतिज्ञा पत्र एक लिखित विलेख है (बैंक नोट व करेसी नोट को छोड़कर), जिस पर लिखने वाले के हस्ताक्षर होते हैं तथा लिखने वाला प्रतिज्ञा करता है कि वह निश्चित व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्याक्त का अथवा विपत्र के वाहक को एक निश्चित राशि चुकायेगा।”

रिजर्व बैंक ऑफ इन्डिया एक्ट के अनुसार, रिजर्व बैंक अथवा केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति ऐसा प्रतिज्ञा-पत्र नहीं लिख सकता जो वाहक की माँग पर देय हो। परन्तु यदि प्रतिज्ञा-पत्र का कोरा पृष्ठांकन (Blank indorsement) कर दिया जाए तब वह वाहक की माँग पर देय हो जाता है।

प्रतिज्ञा पत्र में दो पक्षकार होते हैं-लेखक तथा आदाता। लेखक (maker of the note) वह होता है जो राशि चुकाने का वचन देता है तथा आदाता (payee) वह है जो इस विपत्र की राशि प्राप्त करने का अधिकारी है।

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प्रतिज्ञापत्र के आवश्यक लक्षण

(Essential Features of a Promissory Note)

1 यह लिखित होना चाहिए (It must be in writing)- प्रतिज्ञा-पत्र का लिखित होना वैधानिक रुप से आवश्यक है। राशि चुकाने का मौखिक वचन पर्याप्त नहीं है। प्रतिज्ञा-पत्र स्याही अथवा पेन्सिल से लिखा जा सकता है या टाईप भी किया जा सकता है। लेखन इस प्रकार का होना चाहिए जिसमें आसानी से परिवर्तन न किया जा सके। प्रतिज्ञा-पत्र किसी भी भाषा में लिखा जा सकता है।

2. इसमें भुगतान करने की स्पष्ट प्रतिज्ञा होनी चाहिए (It must contain an express | promise or clear undertaking to pay)- प्रतिज्ञा-पत्र में रकम चुकाने का स्पष्ट वचन होना चाहिए। विपत्र में ‘प्रतिज्ञा’ या ‘वचन’ शब्द का प्रयोग किया जाना आवश्यक नहीं है, यदि विपत्र में प्रयुक्त। किये गए शब्दों से यह स्पष्ट होता है कि लेखक रकम चुकाने का दायित्व लेता है, तो उसे प्रतिज्ञा-पत्र। माना जाएगा। ऋण की स्वीकृति मात्र को प्रतिज्ञा-पत्र नहीं माना जाता है।

(क) मैं लोकेश को 100 ₹ चुकाने का वचन देता हूँ।

(ख) मैं लोकेश का 100 ₹ का ऋणी होना स्वीकार करता हूँ और माँग करने पर रकम चुका। दूंगा।

उपरोक्त वचनों को प्रतिज्ञा-पत्र कहा जाएगा क्योंकि इनमें राशि चुकाने का स्पष्ट वचन दिया गया। है, परन्तु निम्नलिखित को प्रतिज्ञा-पत्र नहीं कहा जा सकता :

(क) वीरेन्द्र मुझे आपके 500 ₹ देने हैं। (ख) वीरेन्द्र, मैं आपके 500 ₹ चुकाने के लिए बाध्य हूँ।

(ग) वीरेन्द्र, मैं आपका 500 ₹ का ऋणी हूँ, इसे किश्तों में ब्याज सहित चुकाया जाना है।

(घ) वीरेन्द्र, मैंने आपसे 500 ₹ लिये थे, आप जब माँगेंगे तभी दे दूंगा। उपरोक्त चार उदाहरणों। में राशि चुकाने का स्पष्ट वचन या दायित्व नहीं लिया गया है अत: ये प्रतिज्ञा-पत्र नहीं हैं।

3. वचन शर्तरहित होना चाहिए (The promise must be unconditional)- रकम चुकाने का वचन निश्चित तथा शर्तरहित होना चाहिए। यदि वचन अपूर्ण है या शर्त सहित है तो उसे प्रतिज्ञा-पत्र नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार निम्नलिखित को प्रतिज्ञा-पत्र नहीं कहा जा सकता

(क) मैं 500 ₹ चुकाने का वायदा करता हूँ ‘जब मैं चुकाने की स्थिति में हूँगा’ या ‘जब मुझे सुविधा होगी।’

(ख) “मैं लता के साथ विवाह करने के पश्चात् सुरेश को 2,000 ₹ देने का वचन देता हूँ।”। इसमें विवाह सम्बन्धी शर्त अनिश्चित है।

(ग) मैं इस शर्त पर किशन को 1,000 ₹ किस्तों में चुकाने का वचन देता हूँ कि मेरी मृत्यु के बाद कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।.

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(घ) रवि की मृत्यु पर मैं महेश को 1,000 ₹ चुकाने का वचन देता हूँ बशर्ते कि यह रकम चुकाने के लिए रवि पर्याप्त धन छोड़ जाए। यद्यपि रवि की मृत्यु होना निश्चित घटना है परन्तु यह शर्त कि यदि वह पर्याप्त धन छोड़ जाए’ अनिश्चित है, अत: यह प्रतिज्ञा-पत्र नहीं कहा जा सकता।

परन्तु एक निश्चित स्थान पर या निश्चित समय के बाद या किसी ऐसी घटना के बाद जिसका घटना निश्चित है, राशि चुकाने का वचन शर्त सहित नहीं माना जाता, जैसे-“मैं रमेश की मृत्यु के एक सप्ताह बाद 1,000 ₹ देने का वचन देता हूँ”-यह वैध प्रतिज्ञा-पत्र है क्योंकि रमेश की मृत्यु अवश्य ही होनी है।

4. भुगतान की जाने वाली राशि निश्चित होनी चाहिए (The sum payable must be certain)- भुगतान की जाने वाली राशि निश्चित होनी चाहिए, उसमें किसी प्रकार की कमी या वृद्धि की सम्भावना नहीं होनी चाहिए। निम्नलिखित को राशि की अनिश्चितता के कारण प्रतिज्ञा-पत्र नहीं माना जा सकता

(क) मैं 500 ₹ तथा अन्य कोई बकाया रकम चुकाने का वचन देता हूँ। (ख) मैं सोहन को 500 ₹ तथा नियमानुसार सम्पूर्ण जुर्माने की रकम चुकाने का वचन देता हूँ।

परन्त यदि किसी रकम को निश्चित दर से ब्याज सहित चुकाने का वचन दिया जाता है तो वह राशि निश्चित मानी जाएगी। इसके विपरीत यदि ब्याज दर न दी गई हो तब राशि अनिश्चित ही मानी जाएगी।

5. लेखक निश्चित होना चाहिए (The maker must be a certain person)- प्रतिज्ञा-पत्र का लेखक निश्चित व्यक्ति होना चाहिए, जिससे कि भुगतान प्राप्त करने वालों को उसे ढूँढने में कठिनाई न हो। यदि प्रतिज्ञा-पत्र पर एक से अधिक व्यक्तियों के हस्ताक्षर हैं तो यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि उनका दायित्व संयुक्त है अथवा पृथक।

6 लेनदार अथवा आदाता निश्चित होना चाहिए (The payee must be certain)प्रतिज्ञा-पत्र के लेखक की तरह लेनदार या आदाता भी निश्चित होना चाहिए जिसे उसके नाम या पद से पहचाना जा सके। यदि आदाता का नाम अशुद्ध रुप से लिखा गया है, परन्तु उसे पहचाना जा सकता है, तब यह विपत्र वैध होगा।

7. विपण पर लेखक के हस्ताक्षर अवश्य हान चाहिय (The instrument must be signed! hu the maker)- प्रतिज्ञा-पत्र पर लखक क हस्ताक्षर अवश्य होने चाहिये, हस्ताक्षर के बिना हाथ से लिखने पर भी उसके द्वारा हस्ताक्षर रुप या स्थान के सम्बन्ध में कोई नियम नहीं als) हो सकते हैं। हस्ताक्षर विपत्र के किसी भी भागहस्ताक्षर अंगूठा लगा कर या नाम की मोहर का ठप्पा ” हा हस्ताक्षर के सम्बन्ध में केवल यही नियम है कि हस्ताक्षरकता आधकृत प्रतिनिधि (agent) भी अपने प्रधान की ओर से हस्ताक्षर कर सकता है ।

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व्यावसायिक नियामक ढाँचा प्रतिज्ञा-पत्र वैध नहीं होता। लेखक द्वारा विपत्र स्वयं अपने हाथ से लि अवश्य किये जाने चाहिये। अधिनियम में हस्ताक्षर के प्रारुप या स्था बनाया गया है। अत: हस्ताक्षर पूर्ण या छोटे (initials) हो सकते हैं। हस्ता पर पेन्सिल या स्याही से किए जा सकते हैं। हस्ताक्षर अंगूठा लगा कर र लगाकर भी किया जा सकता है। हस्ताक्षर के सम्बन्ध में क हस्ताक्षर से पहचाना जा सके।

प्रतिज्ञा-पत्र पर अधिकृत प्रतिनिधि (agent) भा ॐ परन्तु ऐसा करने पर एजेन्ट को अपनी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए, अन्यथा वह स्वय उत्तरदायी हो जाएगा।

8. बैंक नोट एवं करेन्सी नोटों को प्रतिज्ञापत्र नहीं माना जाता (Bank note or curi ore is not a promissory note)- धारा 4 में दी गई परिभाषा के अनुसार बैंक नोट एव करन्सा नोटों को प्रतिज्ञा-पत्र नहीं माना गया है क्योंकि वे स्वयं मुद्रा हैं।

9. विविध आपचारिकताएँ (Miscellaneous formalities)- प्रतिज्ञा-पत्र पर तिथि तथा लिखने का स्थान भी लिखा हआ होना चाहिए। परन्त तिथि या स्थान न लिखे जान स यह अमान्य नहीं हो जाता। प्रतिफल सम्बन्धी वाक्यांश ‘प्राप्त मूल्य के लिए’ (for value received) भा नहीं है, परन्तु भारतीय स्टाम्प अधिनियम के अनुसार प्रतिज्ञा-पत्र पर स्टाम्प लगाना आवश्यक है।

प्रतिज्ञापत्र का नमूना

विनिमयविपत्र

(Bills of Exchange)

विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, “विनिमय-विपत्र एक शर्तरहित आज्ञा-पत्र है जिसमें लिखने वाले के हस्ताक्षर होते हैं तथा लेखक, विलेख में वर्णित निश्चित धनराशि किसी निश्चित व्यक्ति को अथवा उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति को अथवा लेख-पत्र के वाहक को भुगतान करने का आदेश देता है।”

रिजर्व बैंक या सरकार को छोडकर कोई भी व्यक्ति ऐसा विनिमय-पत्र नहीं लिख सकता जो वाहक की माँग पर देय हो।

विनिमयविपत्र के लक्षण (Characteristics of Bills of Exchange)- उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर विनिमय-विपत्र में पाये जाने वाले लक्षण इस प्रकार हैं-1. यह लिखित होना चाहिये। 2. विनिमय-विपत्र में एक निश्चित धनराशि के भुगतान करने का आदेश होता है। 3. यह शर्तरहित आदेश होता है। 4. विनिमय-विपत्र पर लेखक के हस्ताक्षर होना आवश्यक है। 5. इसका भुगतान निश्चित अवधि के बाद होता है। 6. इस पर नियमानुसार स्टाम्प भी लगाया जाता है। 7. इसका भुगतान निश्चित व्यक्ति को या उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति को या लेखपत्र के वाहक को किया जाता है।

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विनिमय विपत्र का नमूना

विनिमयविपत्र के पक्षकार (Parties to B/E)-विनिमय-विपत्र में निम्नलिखित तीन पक्षकार होते हैं

1 लेखक या आहर्ता (Drawer)- वह व्यक्ति जो विनिमय-विपत्र को लिखता है, लेखक या आहर्ता कहलाता है। यह भुगतान का आदेश देता है।

2. आहारीं या स्वीकर्ता (Drawee or Acceptor)- वह व्यक्ति जिस पर विनिमय-पत्र लिखा जाता है अर्थात् जिसे भुगतान करने की आज्ञा दी जाती है, आहार्यों कहलाता है। जब यह स्वीकृति दे देता है तो इसे ‘स्वीकर्ता’ कह देते हैं।

3. भुगतान प्राप्तकर्ता या आदाता (Payee)- वह व्यक्ति जो विनिमय-विपत्र का भुगतान प्राप्त करता है।

कभी-कभी लेखक और भुगतान प्राप्तकर्ता एक ही व्यक्ति होता है। ऐसी दशा में एक ही व्यक्ति दो पक्षकारों की स्थिति में होता है।

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विनिमयपत्र एवं प्रतिज्ञापत्र की तुलना

(Comparison of Promissory Note and Bill of Exchange)

प्रतिज्ञा-पत्र एवं विनिमय-पत्र में अन्तर के मुख्य आधार इस प्रकार हैं :

1 पक्षकार (Parties)- विनिमय-पत्र में तीन पक्षकार होते है-लेखक, देनदार तथा लेनदार, परन्तु प्रतिज्ञा-पत्र में केवल दो पक्षकार होते हैं-लेखक एवं लेनदार।

2. भुगतान की प्रकृति (Nature of payment)-विनिमय-पत्र में भुगतान करने का शर्तरहित आदेश (order) होता है, जबकि प्रतिज्ञा-पत्र में भुगतान करने का शर्तरहित वचन (promise) होता है।

3. स्वीकृति (Acceptance)- विनिमय-पत्र की स्वीकृति के लिए प्रस्तुतीकरण आवश्यक है। अत: विनिमय-पत्र में स्वीकृति एवं प्रस्तुतीकरण से सम्बन्धित नियम लागू होते हैं। प्रतिज्ञा-पत्र की स्वीकृति आवश्यक नहीं है तथा इसमें स्वीकृति एवं प्रस्तुतीकरण से सम्बन्धित नियम लागू नहीं होते।

4. दायित्व (Liability)- विनिमय-पत्र में स्वीकृति के बाद लेखक का दायित्व गौण होता है अर्थात्-वह केवल प्रतिभू के रुप में उत्तरदायी होता है और यह दायित्व तभी पन्न होता है जब स्वीकता देय धन का भुगतान करने में असमर्थ रहता है, किन्तु प्रतिज्ञा-पत्र में लेखक का दायित्व प्रमुख तथा पूर्ण रुप से होता है।

5.अनादरण की सूचना (Notice of dishonour)-विनिमय-पत्र के अनादरित होने पर (चाह । गा अस्वीकृति के कारण हुआ था या भुगतान न किये जाने के कारण) धारी (bearer) का यह

कि वह अनादरण सम्बन्धी सूचना लेखक तथा बेचानकर्ताओं (Endorsers) को दे. जबकि के अनादरित हो जाने पर इसकी सूचना देने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

6. लेखक की स्थिति (Maker’s position विनिमय-पत्र में लखक लेनदार से नहीं बल्कि स्वीकर्ता से होता है, जबकि प्रतिजा-पत्र में लेखक का साधा।

7. स्वीकृति की प्रकृति (Nature of acceptance)- एक विनिमयहो सकती है, जबकि प्रतिज्ञा-पत्र कभी भी शर्तयुक्त नहीं हो सकता।

विनिमय विपत्र के प्रकार

(Types of Bill of Exchange)

साधारणत: निम्नांकित प्रकार के विनिमय विपत्र प्रचलित है

(1) देशा विनिमय विपत्र (Inland Bills)- भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, “ऐसा विनिमय विपत्र जो भारत में लिखा गया हो तथा भारत में भुगतान योग्य ह अथवा किसी भारतवासी पर लिखा गया है. देशी विनिमय विपत्र कहलाता है।” इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि देशी बिल होने के लिए भारत में लिखा जाना अनिवार्य है। कोई भी विपत्र जो कि भारत में लिखा गया हो, भारत में ही देय हो चाहे उसका आदाता या आहर्ता विदेशी ही क्यों न हो, देशी विनिमय विपत्र कहलाएगा। इसी प्रकार कोई भी विपत्र जो भारत में लिखा गया है और किसी भारतवासी पर लिखा गया। हो तो चाहे विदेश में ही क्यों न देय हो, देशी विनिमय विपत्र ही होगा।

उदाहरण : (i) मुम्बई के एक व्यापारी ने एक विनिमय-पत्र बंगलौर के व्यापारी पर लिखा।

(ii) मुम्बई के एक व्यापारी ने जापान के एक व्यापारी पर विनिमय-पत्र लिखा, जो चण्डीगढ़ में देय है।

(iii) मुम्बई के एक व्यापारी ने एक विनिमय-पत्र गोहाटी के व्यापारी पर लिखा जिसे उसने एक व्यापारी के नाम पृष्ठांकित कर दिया।

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(2) विदेशी विनिमय विपत्र (Foreign Bills)–धारा 12 के अनुसार विदेशी विनिमय विपत्र उस विनिमय विपत्र को कहते हैं जो देशी विनिमय विपत्र न हो। ऐसे सभी विनिमय विपत्र जो भारत में लिखे या देय नहीं है, विदेशी विनिमय विपत्र कहलाते हैं। उदाहरण के लिये, लन्दन का व्यापारी मुम्बई के किसी व्यापारी के नाम बिल लिखता है तो वह विदेशी विनिमय विपत्र कहलाएगा। संक्षेप में, निम्न स्थितियों में एक विनिमय विपत्र, विदेशी विनिमय विपत्र कहलाता है :

(a) भारत के बाहर लिखा गया विनिमय विपत्र जो भारत में देय हो। (b) भारत के बाहर लिखा गया विनिमय विपत्र जो भारत के बाहर देय हो। (c) भारत के निवासी पर भारत के बाहर लिखा गया विनिमय विपत्र।

(d) किसी अनिवासी पर भारत में लिखा गया विनिमय विपत्र, जिसका भुगतान भारत के बाहर किया जाना हो।

(e) भारत के बाहर लिखा गया विनिमय विपत्र, जो भारत के बाहर के व्यक्ति पर लिखा गया हो।

विदेशी विनिमय विपत्रों पर प्रमाणन अनिवार्य होता है जबकि देशी विनिमय विपत्रों पर यह अनिवार्य नहीं होता है। विदेशी विनिमय विपत्र प्रायः कई प्रतियों में होते हैं किन्तु देशी विनिमय विपत्रों की कई प्रतियाँ तैयार नहीं की जाती हैं। विदेशी विनिमय विपत्रों पर टिकट दो बार लगाने पड़ते हैं, एक बार तो लिखे जाने वाले देश में और दूसरी बार भुगतान करने वाले देश में, जबकि देशी विनिमय विपत्र पर केवल एक ही बार टिकट लगाया जाता है।

(3) वाहक विलेख या धारक विलेख (Bearer Instrument)-जब किसी विलख का भुगतान। उस व्यक्ति को, जिस व्यक्ति के पास वह विलेख है, किया जाता है, तो ऐसे विलेख को वाहक विलेख कहते हैं। ‘वाहक विलेख’ को ‘धारक विलेख’ के नाम से अपने पास रखने एवं उसका देनदार पक्षका से भुगतान प्राप्त करने का वैध अधिकार रखने वाले व्यक्ति को धारक या वाहक कहते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि धारक विलेख में धारक का नाम लिखा हुआ हो, बल्कि ऐसे विलेख का भुगतान प्राप्त करने के लिए उस विलेख पर उसका कब्जा होना चाहिए। पृष्ठांकन द्वारा भी ऐसे विलेख उसके कब्जे में आ सकते हैं। भुगतान देते समय पहचान हेतु भुगतानकर्ता ऐसे विलेख के धारक से विलेख के पृष्ठ पर हस्ताक्षर करा लेता है।

उदाहरण (i) : A को अथवा धारक को भुगतान कीजिए। उदाहरण (ii): धारक को भुगतान कीजिए। ।

(4) आदेशविलेख (Order Instrument)- ऐसे विलेख, जिनका भुगतान या तो लेखक द्वारा आदेशित व्यक्ति को अथवा विलेख के मूल प्राप्तकर्ता द्वारा आदेशित व्यक्ति को किया जाए, उन्हें आदेश विलेख कहा जाता है।

उदाहरण (i): X अथवा उसके आदेशानुसार भुगतान कीजिए। उदाहरण (ii): A को भुगतान कीजिए।

(5) माँग पर देय विपत्र (Instruments Payable on Demand)-[धारा 19] : चैक का भुगतान सदैव माँग पर किया जाता है। प्रतिज्ञा-पत्र या विनिमय-पत्र में लिखे गए ‘दर्शन पर’ या प्रस्तुत करने पर शब्दों का आशय है-माँग पर भुगतान। यदि विलेख में भुगतान के समय का उल्लेख नहीं किया जाता है, तो उसका भुगतान माँग पर देय होगा। माँग पर देय विलेख को किसी भी समय भुगतान प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।

(6) मुद्दती या सामयिक विपत्र (Time Instrument)- मुद्दती विपत्र वह होते हैं जिनका भुगतान भविष्य में किसी निश्चित तिथि को किया जाना हो, जैसे 15, जून 2015 को एक बिल एक माह बाद देय लिखा जाए, तो इसे मुद्दती विपत्र कहते हैं।

परिपक्वता तिथि की गणना इनमें उल्लिखित अवधि तथा बिल के लेखन की तिथि को ध्यान में रखकर की जाती है। बिल की अवधि समाप्त होने पर 3 दिन अनुग्रह दिवस के जोड़ देने पर अन्तिम दिन भुगतान किया जाता है। उदाहरणार्थ, 15 जून को 3 माह के लिए लिखे गये बिल की भुगतान की तारीख 15 सितम्बर न होकर 18 सितम्बर होगी। व्यापारिक लेनदेनों में सावधि बिलों का प्रचलन सर्वाधिक है।

(7) प्रलेखीय एवं गैर प्रलेखीय विनिमय विपत्र (Documentary Bills and Clean Bills)जब किसी विनिमय विपत्र के साथ माल के स्वामित्व सम्बन्धी प्रमाण अथवा अन्य प्रमाण जैसे-बीजक, समुद्री बीमा पालिसी, रेलवे रसीद या जहाजी बिल्टी, आदि को संलग्न कर दिया जाये तो ऐसे विपत्र को प्रलेखीय विनिमय विपत्र कहते हैं। माल के क्रेता को ऐसे प्रमाण या प्रलेख (Documents) तभी सुपुर्द किये जाते हैं जबकि वह विनिमय विपत्र को स्वीकार कर लेता है अथवा विपत्र में लिखित रकम को भुगतान कर देता है। इसके विपरीत जब विनिमय विपत्र के साथ ऐसे कोई प्रलेख संलग्न नहीं होते तो वे गैर-प्रलेखीय बिल कहलाते हैं।

(8) व्यापारिक विनिमय विपत्र (Trade Bill of Exchange)- ऐसे विनिमय विपत्र जो शुद्ध व्यापारिक लेनदेनों के लिए लिखे जाते हैं, व्यापारिक विनिमय विपत्र कहलाते हैं। माल के क्रेता, विक्रेता अथवा मध्यस्थ बैंकर इन बिलों को लिखते और स्वीकार करते हैं। ये प्रायः मूल्यों के लिए (for value recieved) अथवा प्रतिफल स्वरुप (for consideration) लिखे जाते हैं। किसी भी देश में बिलों के कल लेन-देनों में 95% भाग व्यापारिक बिलों का होता है।

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(9) अनुग्रह विनिमय विपत्र (Accommodation Bill of Exchange)- जब विनिमय विपत्र व्यापारिक आवश्यकताओं के लिए न लिखे जाकर किसी मित्र या सहयोगी व्यापारी की वित्तीय आवश्यकताओं के लिए लिखे जाते हैं तो ऐसे विनिमय विपत्र ‘सहायतार्थ या अनुग्रह विनिमय कहलाते हैं। इन बिलों में किसी प्रकार का प्रतिफल नहीं होता है। उदाहरणार्थ, यदि गोविन्द को हजार की आवश्यकता है और वह अपने मित्र सुनील पर एक बिल लिखता है तथा सुनील उसे कर लेता है. गोविन्द इस बिल को बैंक से भुनाकर अपना काम चला लेता है तथा देय तिथि से को सनील लौटा देता है जिससे कि सुनील बैंक को बिल का भुगतान कर सके तो ऐसे । बिल को अनुग्रह विनिमय विपत्र कहेंगे।

10 अस्पष्ट विपत्र (Ambiguous instruments)-जब किसी विपत्र की भाषा पत्र या विनिमय बिल, दोनों में से किसी भी प्रकार का माना जा सकता है, प्रकार का हो कि उसे प्रतिज्ञा पत्र या विनिमय बिल, दोनों में से कहलाते है

(i) जब विनिमय बिल का लेखक (drawer) व देनदार (drawee) एक हा (ii) जब देनदार (drawee) कोई कल्पित व्यक्ति हो; तथा सदार (drawee) एक ही व्यक्ति हो, (iii) जब देनदार अनुबन्ध करने योग्य न हो। जब एजेन्ट अपने अधिकारों के अन्तर्गत प्रधान पर एक विपत्र लिखता है ।

 (11) अपूर्ण विलेख (Inchoate Instruments)-धारा 20 के अनुसार, जब एक दूसरे व्यक्ति को विधि के अनुसार स्टाम्प लगाकर तथा हस्ताक्षर करके विलेख सुपुर्द कर देता हलाका वह या तो इसे पूर्णतया खाली रखता है या उस पर अपूर्ण विनिमय साध्य विलेख के रुप में कुछ लिखकर दे देता है, तो ऐसी स्थिति में वह उसे विलेख के धारक को मल रुप में यह अधिकार दे देता है कि वह स्टाम्प लगे हुए विलेख पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति द्वारा निर्धारित किसी राशि के लिए एक विनिमय-पत्र लिख ले या पुरा कर ले. लेकिन विलेख में लिखी जाने वाली राशि स्टाम्प द्वारा निर्धारित राशि से किसी भी दशा में अधिक नहीं होनी चाहिए। इस तरह के विलेख को अपूर्ण विलेख कहा जाता है।

हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति ऐसे विलेख के सम्बन्ध में उत्तरदायी होता है। यहाँ हस्ताक्षरकर्ता केवल उतनी ही राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, जितना विलेख के अन्तर्गत भुगतान करने का अभिप्राय था। लेकिन यदि ऐसा अधूरा विलेख, जो स्टाम्पयुक्त है, किसी यथाविधिधारी को हस्तान्तरित कर दिया जाता है तो ऐसा धारी विलेख पर श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त कर लेता है तथा वह विलेख पर मूल हस्ताक्षर करने वाले तथा विलेख पर उत्तरदायी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध पूर्ण राशि के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है, चाहे हस्ताक्षर करने वाले की इच्छा विलेख के अन्तर्गत उतनी राशि का भुगतान करने की नहीं थी। इस प्रकार विलेख में हस्ताक्षरकर्ता का दायित्व निम्न तथ्यों पर निर्भर करता है:

(i) विलेख के पूर्ण होने पर ही हस्ताक्षरकर्ता का दायित्व उत्पन्न होता है।

(ii) विलेख हस्ताक्षरकर्ता द्वारा वास्तव में धारकों को सुपुर्द किया जाना चाहिए। धारक द्वारा बल-प्रवर्तन या चोरी से विलेख को प्राप्त नहीं किया जाना चाहिए।

(iii) हस्ताक्षरकर्ता द्वारा धारक को यह स्पष्ट अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह विलेख में निर्दिष्ट राशि लिखकर विलेख को पूरा कर ले।

(iv) विलेख स्टाम्पयुक्त होना चाहिए और लिखी गई अधिकतम राशि स्टाम्प द्वारा सीमित होनी चाहिए।

(12) बनावटी विनिमयपत्र (Fictitious Bill) [धारा 42] – जब विनिमय-पत्र पर लेखक अथवा आदाता अथवा दोनों का नाम बनावटी हो, तो इसे बनावटी विनिमय-पत्र कहा जाता है। ऐसे बनावटी विनिमय-पत्र में स्वीकर्ता यथाविधिधारी के प्रति उत्तरदायी हो जाता है यदि यथाविधिधारी यह सिद्ध कर दे कि लेखक तथा प्रथम बेचानकर्ता (आदाता) के हस्ताक्षर एक ही हैं।

लेकिन यदि धारी यह जानता हो कि विनिमय-पत्र का लेखक अथवा आदाता बनावटी है तो उसे यथाविधिधारी नहीं कहा जाएगा और इस प्रकार वह विपत्र में लिखित राशि के लिए वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता।

(13) बिना तिथि के विलेख (Undated Instrument)- कोई भी विनिमय साध्य विलेख मात्र इस आधार पर अवैधानिक नहीं हो जाता कि उसमें तिथि का उल्लेख नहीं किया गया है। ऐसा विलेख, जो अन्य सभी औपचारिकताओं की पूर्ति करता हो तो इसका भुगतान प्राप्त करने की तिथि को मौखिक रुप से या अन्य प्रमाणों द्वारा सिद्ध किया जा सकता है।

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चैक

(Cheque)

चैक एक शर्तरहित आज्ञा पत्र है जो किसी विशेष बैंक पर लिखा जाता है और इसमें लिखने वाला बैंक को यह आदेश देता है कि वह माँगने पर एक निश्चित रकम एक निश्चित व्यक्ति को अथवा। उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को अथवा वाहक को दे दे।

परिभाषा (Definition)

विनिमय विपत्र-(संशोधन एवं विविध प्रावधान ) अधिनियम, 2002 द्वारा संशोधित धारा 6 के । अनुसार, “चैक एक ऐसा विनिमय-पत्र है जो किसी विनिर्दिष्ट बैंकर (बैंक) पर लिखा जाता है तथा जो माँग पर देय के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से देय नहीं बनाया जाता है और इसमें संक्षेपित या रुण्डित चक को इलेक्ट्रॉनिक छवि (electronic image of a truncated cheque) तथा इलेक्ट्रॉनिक प्रारुप का । चैक भी सम्मिलित है।”

स्पष्टीकरण सन् 2002 में संशोधित धारा 6 के साथ संलग्न स्पष्टीकरण में निम्नांकित शब्दावली की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है :

(i) इलेक्ट्रॉनिक प्रारुप में चैक (Cheque in Electronic Form)– इलेक्ट्रॉनिक प्रारुप में चेक से तात्पर्य किसी ऐसे चैक से है जो कागजी चैक की सटीक या हूबहू दर्पण छवि (exact mirror image of a paper cheque) है तथा जो किसी ऐसी सुरक्षित प्रणाली में प्रजनित (generated), लिखित या हस्ताक्षरित है जिसमें अंकीय (digital) हस्ताक्षर (जीवसांख्यिकी से या उसके बिना हस्ताक्षर) तथा विषम गुप्त या अदृश्य प्रणाली (asymmetric crypto system) के उपयोग से न्यूनतम सुरक्षा प्रमापों को । सुनिश्चित कर लिया गया है।

(ii) संक्षेपित या रुण्डित चैक (Truncated Cheque)-संक्षेपित चैक से तात्पर्य उस चैक से है जिसे समाशोधन की प्रक्रिया में समाशोधन गृह (clearing house) अथवा भुगतान देने या पाने वाले बैंक द्वारा उसके प्रेषण या अन्तरण हेतु उसकी इलेक्ट्रॉनिक छवि के प्रजनन के बाद संक्षेपित कर दिया गया है तथा जो लिखित चैक को भौतिक रुप में आगे प्रेषित करने में प्रतिस्थापित करता है।’

डॉ० हार्ट ने चैक की एक विवेकपूर्ण एवं उपयुक्त परिभाषा इस प्रकार दी है

“एक चैक लेखक द्वारा हस्ताक्षरित बैंक के नाम शर्तरहित एक ऐसा लिखित आदेश होता है जिसमें लेखक निर्दिष्ट व्यक्त को, अथवा उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति को या वाहक को, माँग करने पर, इसमें वर्णित एक निश्चित राशि के भुगतान के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य के करने का आदेश नहीं होता।”

निष्कर्ष उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि चैक एक शर्तरहित लिखित विपत्र है जिसमें लेखक किसी विशिष्ट बैंक को अपने हस्ताक्षर द्वारा एक निश्चित रकम किसी विशेष व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को या धारक को माँगने पर देने की आज्ञा देता है।

चैक की विशेषतायें या लक्षण (Characteristics of a Cheque)- चैक के अर्थ एवं परिभाषा का अध्ययन करने से निम्नलिखित विशेषताओं का पता चलता है

1 एक लिखित प्रपत्र (An Instrument in Writing)-ग्राहकों को अपने बैंक से चैक बुक मिलती है जिसमें चैकों के छपे हुये फार्म होते हैं। परन्तु यह सदैव लिखित में होता है।

2. शर्तरहित आदेश (Unconditional Order)- चैक हमेशा एक शर्तरहित आदेश होता है। इसका अर्थ यह है कि यदि चेक का लेखक किसी शर्त के पूरा होने के पश्चात् अपने द्वारा दी गई आज्ञा का पालन करने को कहता है, तो उसे चैक नहीं कहा जा सकता।

3. निश्चित बैंक (Specified Bank)- कोई व्यक्ति अपनी धनराशि जिस बैंक शाखा में जमा करता है, केवल उसी बैंक शाखा पर ही चैक लिखा जाता है अर्थात् चैक सदैव किसी बैंक विशेष पर ही लिखा जाता है।

4. निश्चित राशि (Certain Amount)- चैक सदैव निश्चित धनराशि के लिये लिखा जाता है। धनराशि का कोई सम्पूर्ण इकाई होना आवश्यक नहीं है, परन्तु अंकों तथा शब्दों में लिखी गई धनराशि में अन्तर नहीं होना चाहिये।

5. निश्चित आदाता (Certain Payee)- यदि चैक वाहक (Bearer) नहीं है तो आदाता निश्चित होना चाहिये अर्थात् भुगतान पाने वाले व्यक्ति के नाम का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिये। व्यक्ति में संस्था, कम्पनी तथा फर्म आदि को भी शामिल माना जाता है। ।

6.तिथि (Date)- चैक पर तिथि आवश्यक रूप से होनी चाहिये क्योंकि बिना तिथि के चैक का भुगतान करने के लिये बैंक का दायित्व नहीं होता।

7.माँग पर देय (Payable on Demand)-चैक में उल्लिखित राशि को केवल माँग करने पर ही प्राप्त किया जा सकता है। भुगतान प्राप्त करने के लिये चैक को बैंक के सम्मुख उपस्थित करना अनिवार्य है।

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8. लेखक के हस्ताक्षर (Signature of the Drawer)- चैक पर लेखक के हस्ताक्षर होना अनिवार्य है। बिना हस्ताक्षर चैक पर दिये गये आदेश को बैंक मानने से मना कर देता है। यदि खातेदार ने किसी अन्य व्यक्ति को चैक लिखने का अधिकार दिया हो तो ऐसा अन्य व्यक्ति भी चैक पर हस्ताक्षर करके चेक जारी कर सकता है। चेक पर लेखक के हस्ताक्षर स्याही से या अंकीय हो सकते हैं।

चैक के पक्षकार (Parties Relating to a Cheque)- चैक से सम्बन्धित निम्नलिखित पक्षकार होते हैं

1 लेखक या आहर्ता (Drawer)- जो व्यक्ति चैक लिखता है, आहर्ता या लेखक कहलाता है। चैक वही व्यक्ति लिख सकता है जिसका बैंक में खाता होता है।

2. आहर्ती (Drawee)- जिस बैंक को चैक का भुगतान करने का आदेश दिया जाता है अर्थात् जिस बैंक पर चैक लिखा जाता है, उसे आहर्ती कहते हैं।

3. प्रापक, आदाता या भुगतान प्राप्त करने वाला (Payee)- जिस व्यक्ति को चैक में लिखित धनराशि का भुगतान किया जाता है, उसे प्रापक या आदाता कहते हैं।

4. पृष्ठांकक (Endorser)- किसी अन्य व्यक्ति को चैक को पृष्ठांकित करने वाले धारक को पृष्ठांकक कहते हैं।

5. पृष्ठांकिती (Endorsee)-जिस व्यक्ति को चैक पृष्ठांकित किया जाता है, उसे पृष्ठांकिती कहते हैं। व्यापक रुप से चैक दो प्रकार के होते हैं(i) खुला चैक (Open Cheques) (ii) रेखांकित चैक (Crossed Cheques)

खुला चैकजब चैक का भुगतान धारक को उल्लिखित बैंक की खिड़की पर ही होना हो तो वह खुला चैक कहलाता है। ऐसे चैक दो प्रकार के होते हैं

() वाहक को देय (Payable to bearer)– वाहक चैक का भुगतान कोई भी व्यक्ति जो चैक बैंक में प्रस्तुत करेगा ले सकेगा। उल्लेखनीय है कि यदि वाहक चैक खो जाता है तो यह नकद धनराशि ही खोने के समान है। अत: सामान्यत: ऐसे चैक देने में सावधानी बरती जाती है।

() आदेश पर देय (Payable to order)- ऐसे चैक का भुगतान चैक में लिखे व्यक्ति या उसके आदेशित व्यक्ति को देय होता है जैसे ‘pay to Shyam Lal & Co. or order’ ऐसे चैक के खोने पर उतनी जोखिम नहीं है। कोई भी चैक पाने वाला तब तक भुगतान नहीं ले सकता जब तक वह लेखक या धारक के जाली हस्ताक्षर न बना ले। इस प्रकार के चैकों की स्थिति में बहुत बड़ी सीमा तक कपट के अवसर पकड़े जा सकते हैं। अतः चैक को सुरक्षित बनाने के लिए उनको रेखांकित करने का चलन है।

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विनिमयविपत्र और चैक में अन्तर

(Difference Between Bills of Exchange and Cheque)

चैकों का रेखांकन (Crossing of Cheque)

रेखांकन से अभिप्राय एक ऐसे उपकरण से है जिसके द्वारा चैकों को केवल किसी बैंक अथवा किसी निर्दिष्ट बैंक के माध्यम से देय बना दिया जाता है। (Crossing is a device by which cheques are made payable only through a bank or a particular bank) इसके द्वारा चैक का लेखक अपने बैंकर को यह आदेश देता है कि चैक का भुगतान चैक के प्रापक को बैंक के काउण्टर पर नकदी में न किया जाये वरन् चैक का भुगतान किसी बैंकर को ही किया जाये। जिस चैक पर ऐसा आदेश होता है, उसे रेखांकित चैक कहते हैं।

भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम, 1881 की धारा 123 के अनुसार, “जब किसी | चैक के मुख-पृष्ठ (Face) पर दो समानान्तर तिरछी रेखायें खींची गई हो तथा उनके बीच में एण्ड कम्पनी | (& Co.) अपरक्राम्य (Negotiable) या ‘केवल प्रापक के खाते में’ (A/c Payee only) या बैंक का नाम (Name of the Bank) आदि शब्द लिख दिया जाता है अथवा केवल दो तिरछी रेखायें खींच दी जाती हैं

तो यह क्रिया रेखांकन कहलाती है।”

विशेषतायें1. रेखांकन के लिये दो समानान्तर तिरछी रेखायें खींचना आवश्यक है, 2. दो | समानान्तर तिरछी रेखायें चैक के मुख पृष्ठ पर बायीं ओर खींचना आवश्यक है, 3. रेखांकित चैकों का भुगतान केवल बैंक के माध्यम से ही हो सकता है, 4. दो तिरछी रेखाओं के बीच में कुछ शब्द लिखे जा सकते हैं अथवा केवल दो तिरछी रेखायें ही खींच दी जाती हैं।

रेखांकन का उद्देश्य (Objects of Crossing)-रेखांकन का प्रमुख उद्देश्य चैक को सुरक्षित बनाना होता है ताकि उसके वास्तविक स्वामी को ही उसका भुगतान प्राप्त हो सके। रेखांकित चैक का भुगतान बैंक के काउण्टर पर नहीं किया जा सकता केवल भुगतान प्राप्तकर्ता के खाते में जमा करके किया जाता है अथवा किसी अन्य बैंक के माध्यम से किया जाता है। स्पष्ट है कि रेखांकित चैक का भुगतान प्राप्त करने वाले का किसी न किसी बैंक में खाता होना आवश्यक है। यदि खाता न हो, तब पहले खाता खोलना पड़ता है तभी उसके खाते में रकम जमा करके भगतान किया जाता है, अथवा वह किसी ऐसे व्यक्ति के नाम जिसका बैंक में खाता है, चैक का पृष्ठांकन करके भगतान प्राप्त कर सकता है। अत: यदि रेखांकित चैक खो जाये या चोरी चला जाये तो इससे कोई नकसान नहीं होता क्योंकि भुगतान। प्राप्त करने वाले व्यक्ति का सरलता से पता लगाया जा सकता है। संक्षेप में, चेको का रखाकना निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये किया जाता है

1 गलत या अनाधिकृत भुगतान को रोकना,

2. चैक के भुगतान के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने में सुविधा,

3.चैकों के चलन में सुरक्षा।

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रेखांकन के प्रकार

(Types of Crossing)

रेखांकन मुख्यत: निम्नलिखित दो प्रकार का होता है

1 साधारण रेखांकन (General Crossing)-जब किसी चैक के मुख पृष्ठ पर बायीं ओर दो तिरछी समान्तर रेखायें खींच दी जायें और उन रेखाओं के बीच में कोई शब्द न लिखा जाये अथवा ‘एण्ड कम्पनी’ (& Co.) ‘केवल आदाता के खाते में जमा’ (A/c Payee Only), …. , रुपये के अन्तर्गत (Under Rs……..), ‘अविनिमय-साध्य’ (Not-Negotiable) आदि शब्दों में से कोई शब्द लिखा जाये परन्तु इन रेखाओं के बीच किसी बैंक का नाम न लिखा जाये तो ऐसा रेखांकन ‘साधारण रेखांकन’ कहलाता है। स्पष्ट है कि साधारण रेखांकन में दो तिरछी समानान्तर रेखाओं का होना अनिवार्य है। रेखाओं के बीच में किसी शब्द का लिखना या न लिखना महत्त्वहीन होता है।

2. विशेष रेखांकन (Special Crossing)- भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 124 में विशेष रेखांकन को निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया गया है

“जब किसी चैक के मुखपृष्ठ पर किसी बैंक का नाम लिख दिया जाता है, चाहे उसके साथ “अपरक्राम्य” (Not Negotiable) शब्द लिखे गये हैं अथवा नहीं तो ऐसा नाम जोड़ देने (Addition) को रेखांकन समझा जायेगा और चैक विशेष रुप से रेखांकित (Crossed Specially) समझा जायेगा तथा उसे बैंक के नाम रेखांकित माना जायेगा।”

उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि विशेष रेखांकन के लिये चैक के मुखपृष्ठ पर किसी बैंक का नाम लिखा होना अनिवार्य है। यह नाम समानान्तर तिरछी रेखाओं के मध्य ही लिखा हो, यह अनिवार्य नहीं है। विशेष रेखांकित चैक का भुगतान रेखांकन में उल्लिखित बैंक अथवा उसके संग्रहकर्ता एजेन्ट बैंक के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।

1 प्रतिबन्धात्मक या आदाता (प्रापक) खाता रेखांकन (Restrictive Or Account Payee Crossing)- इसे सीमित रेखांकन भी कहते हैं। विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम में इसका कहीं भी कोई वर्णन नहीं है, परन्तु व्यापारिक समदाय में प्रचलित प्रथा के अन्तर्गत इस प्रकार के रेखांकन का काफी प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के रेखांकन में सामान्य या विशेष रेखांकन के साथ ‘केवल आदाता के खाते में’ (A/c Payee Only) शब्द अतिरिक्त रुप में लिख दिया जाता है। वास्तव में यह शब्द संग्रहकर्ता तथा भुगतानकर्ता बैंकर को यह निर्देश देते है कि चैक की रकम केवल आदाता के खाते में ही जमा की जाये, अन्य किसी व्यक्ति के खाते में नही। मूल प्रापक ने यदि ऐसे चैक का पृष्ठांकन कर दिया है तो संग्रहकर्ता बैंक को पृष्ठांकन पर ध्यान नहीं देना चाहिये और प्रापक के लिये ही चैक का संग्रह करना चाहिये। यदि संग्रहकर्ता बैंकर इस आदेश का पालन नहीं करता है, तो उसे कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं हो सकता। यद्यपि ऐसे रेखांकित चैक की हस्तान्तरणशीलता (Transferability) में कोई रुकावट नहीं होती अर्थात् ऐसे रेखांकित चैक का आगे भी पृष्ठांकन किया जा सकता है, परन्तु जिस व्यक्ति के पक्ष में ऐसे चैक का पृष्ठांकन किया जायेगा उसे चैक का भुगतान प्राप्त नहीं हो सकता। अत: ऐसे रेखांकित चैक पर किया गया पृष्ठांकन व्यावहारिक रुप से प्रभावी नहीं होता।

2. अपरक्राम्य रेखांकन (Not Negotiable Crossing)- जब चैक पर दो समानान्तर तिरछी रेखाओं के बीच ‘अपरक्राम्य’ या ‘अविनिमय-साध्य’ (Not Negotiable) शब्द लिख दिया जाता है, तो उसे ‘अपरक्राम्य रेखांकन’ कहते हैं। रेखांकन में इन शब्दों को जोड़ देने से चैक की विनिमय-साध्यता समाप्त हो जाती है परन्तु हस्तान्तरणशीलता प्रभावित नहीं होती। ‘अपरक्राम्य’ या अविनिमय-साध्य शब्द का आशय यह है कि ऐसे चैक को प्राप्त करने वाले व्यक्ति का स्वामित्व वैसा ही होगा जैसा कि हस्तान्तरणकर्ता का स्वामित्व है, भले ही उस व्यक्ति ने ऐसे चैक को प्रतिफल के बदले तथा सद्भावनापूर्वक ही क्यों न प्राप्त किया हो। स्पष्ट है कि इस प्रकार के रेखांकित चैक का हस्तान्तरिती यथाविधिधारक होने पर भी हस्तान्तरणकर्ता से अच्छा अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता एवं न ही किसी को अच्छा अधिकार दे सकता है। ऐसे रेखांकन का उद्देश्य चैक के लेखक तथा उसके मूल-आदाता को उसके खो जाने अथवा चोरी हो जाने पर अथवा उसके सम्बन्ध में किसी प्रकार की बेईमानी की स्थिति में सरक्षा प्रदान करना है। अतः ऐसा रेखांकित चेक, बेचान प्राप्त करने वाले व्यक्ति (पष्ठांकिती) को एक प्रकार की चेतावनी होती है कि वह पृष्ठांकनकर्ता के अधिकार के सम्बन्ध में भली-भाँति जांच पड़ताल कर ले। वस्तुत: ऐसे चैक केवल उन्हीं व्यक्तियों से प्राप्त करने चाहियें जिनसे पृष्ठांकिती भली-भाँति से बात से सन्तुष्ट है कि चैक पर पृष्ठांकनकर्ता का स्वामित्व दोषमुक्त है। भुगतानकर्ता बैंकर के लिये ऐसे रेखांकन का कोई महत्त्व नहीं होता और यदि संग्रहकर्ता बैंक ने भी सद्भावनापूर्वक तथा बिना किसी लापरवाही के ऐसे रेखांकित चैक का भुगतान किसी पृष्ठांकिती आदाता (Payee by Endorsement) ग्राहक के लिये प्राप्त किया है, तो वह भी अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है भले ही उक्त ग्राहक का चैक पर दोषपूर्ण स्वामित्व रहा हो।

3. दोहरा रेखांकन (Double Crossing)- दोहरे रेखांकन का आशय किसी चैक पर दो बार ‘विशेष रेखांकन’ करने से है। दूसरे शब्दों में, जब चैक के मुख पृष्ठ पर दो समानान्तर तिरछी रेखाओं के बीच में, अथवा इनके बिना किन्हीं दो बैंकों के नाम लिख दिये जाते हैं तो उसे दोहरा रेखाकन कहते हैं। विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 127 के अनुसार ऐसा रेखांकन करने की अनमति नहीं है और यदि ऐसा रेखांकन किया जाता है तो भुगतानकर्ता बैंकर ऐसे चैक का भुगतान करने से मना कर देगा। परन्तु इसका एक अपवाद भी है।

धारा 125 के अनुसार विशेष रेखांकित चैक में निर्दिष्ट बैंक चैक का संग्रह करने के लिये अपने एजेन्ट के रुप में उक्त चैक को किसी दूसरे बैंक के नाम पुन: रेखांकित कर सकता है। परन्तु ऐसे रेखांकन में पुनः रेखांकित करने वाले बैंक को यह स्पष्ट करना अनिवार्य है कि दूसरे बैंक के नाम किया गया रेखांकन एजेन्ट के रुप में भुगतान का संग्रह करने के लिये ही किया गया है। यदि रेखांकन में ‘Agent for Collection’ शब्द का उपयोग नहीं किया जाये तो भुगतानकर्ता बैंक ऐसे रेखांकित चैक को वापिस लौटा देगा।

एक बैंक, जिसके नाम में विशेष रेखांकन किया गया है, किसी दूसरे बैंक को ‘संग्रह के लिये एजेन्ट’ प्रायः तभी नियुक्त करता है जब या तो पहले बैंक की कोई भी शाखा उस स्थान पर नहीं होती है जिस स्थान पर कि चैक देय होता है या वह अपनी किसी व्यावसायिक सुविधा, इत्यादि के कारण उस चैक का संग्रह दूसरे बैंक से कराना चाहता है।

यदि किसी चैक को एक ही बैंक की दो शाखाओं के पक्ष में रेखांकित किया जाता है तो यह दोहरा रेखांकन नहीं माना जायेगा और ऐसी दशा में एजेन्ट शब्द लिखने की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि दोनों शाखायें एक ही बैंक की हैं।

चैक का रेखांकन कौन कर सकता है?

(Who can Cross a Cheque?)

विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 125 के अनुसार एक चैक के रेखांकन का अधिकार निम्नलिखित को उपलब्ध है

1 आहर्ता (Drawer)- चैक का आहर्ता (लेखक) चैक लिखते समय ही चैक का साधारण या विशेष रेखांकन कर सकता है।

2.धारक (Holder)- (i) यदि चैक का रेखांकन नहीं हुआ है तब धारक उस पर साधारण या विशेष रेखांकन कर सकता है। (ii) यदि चैक साधारण रेखांकित है तब धारक उस पर विशेष रेखांकन कर सकता है। (iii) यदि चैक पर साधारण या विशेष रेखांकन है तब धारक उसमें ‘अपरक्राम्य’ (Not Negotiable) शब्द जोड़ सकता है।

3. बैंकर (Banker)- यदि चैक पर विशेष रेखांकन है तब वह बैंक जिसके पक्ष में चैक रेखांकित हैं, उस पर पुन: दूसरे बैंक का नाम अपने एजेन्ट के रुप में संग्रह कराने के लिये लिख कर दोबारा विशेष रेखांकन कर सकता है।

रेखांकन का प्रभाव (Effect of Crossing)- रेखांकित चैक के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं

रेखांकित चैक का भुगतान कभी भी बैंक के काउण्टर पर नकदी में नही हो सकता भले ही चैक का आदाता (Payee), भुगतानकर्ता बैंकर का ग्राहक ही क्यों न हो। ऐसे चैक का भुगतान आदाता के खाने में या किसी बैंक को ही क्रेडिट करके दिया जा सकता है। नकदी में भुगतान करने पर बैंक उसके लिये उत्तरदायी होगा।

रेखांकित चैक के प्रति बैंकर का दायित्व

(Liability of Banker Towards Crossed Cheque)

यदि भुगतानकर्ता बैंकर रेखांकन में निर्दिष्ट निर्देशों के अनुसार भुगतान नहीं करता है तो वह चैक के वास्तविक स्वामी तथा चैक के लेखक के प्रति उत्तरदायी होता है। भुगतानकर्ता बैंकर चैक के वास्तविक स्वामी के प्रति उस क्षति के लिये उत्तरदायी होगा जो उसे गलत भुगतान के कारण उठानी पड़ी हो। ऐसी दशा में बैंकर गलत भुगतान की गई रकम को अपने ग्राहक अर्थात चैक के लेखक के खाते में भी डेबिट नहीं लिख सकता क्योकि ऐसे भुगतान को लेखक के आदेशानुसार भुगतान नहीं माना जा सकता।

जहाँ तक संग्रहकर्ता बैंकर का प्रश्न है, यदि संग्रहकर्ता बैंकर अपने ग्राहक के किसी रेखांकित चैक का भुगतान सविश्वास तथा सावधानीपूर्वक प्राप्त करता है तो ऐसे संग्रहण के लिये वह चैक के वास्तविक स्वामी के प्रति उत्तरदायी नहीं माना जाता है।

रेखांकन का मिटाना (Obliteration of Crossing)- यदि चैक के धारक द्वारा चैक पर किये गये रेखांकन को इस प्रकार मिटा दिया जाता है जिससे यह प्रतीत नहीं होता है कि चैक पर रेखांकन किया गया था और धारक इस चैक को बैंक की खिड़की पर प्रस्तुत कर बैंकर से उसका नकद भुगतान प्राप्त कर लेता है तब बैंकर को धारा 189 के अन्तर्गत संरक्षण प्राप्त होता है। ऐसे चैक का नकद भुगतान कर देने पर भी बैंकर पर कोई जोखिम नहीं आती और भुगतानकर्ता बैंक उस चैक के दायित्व से मुक्त हो जाता है।

रेखांकन को रह (निरस्त ) करना या खोलना (Cancellation or Opening of Crossing)जब चैक का रेखांकन समाप्त कर दिया जाता है तो उसे रेखांकन का निरस्तीकरण या खोलना’ कहते हैं। रेखांकन को रद्द करने का अधिकार चैक के लेखक (आहर्ता) को ही है। रेखांकन को निरस्त करने के लिये चैक लिखने वाला रेखांकन को काटकर उस स्थान पर ‘Pay Cash’ शब्द लिखकर अपने पूर्ण हस्ताक्षर कर देता है। रेखांकन निरस्त कर देने से उक्त चैक एक खुला चैक (Open Cheque) बन जाता है और उसका बैंक के काउण्टर पर नकद भुगतान प्राप्त किया जा सकता है। चैक के रेखांकन को निरस्त करना एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है, अत: भुगतानकर्ता बैंक को निस्तीकरण के सम्बन्ध में लेखक के हस्ताक्षर की वास्तविकता एवं विधि मान्यता सम्बन्धी जाँच करने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिये। यदि चैक का धारक, चैक के लेखक के जाली हस्ताक्षर बनाकर रेखांकन को निरस्त करके बैंक से नकद भुगतान प्राप्त कर लेता है तो बैंकर उक्त चैक के वास्तविक स्वामी के प्रति उत्तरदायी होगा।

विनिमय साध्य विलेख की परिपक्वता धारा 22 – 25]

(Maturity of Negotiable Instrument) [Section 22 – 25]|

परिभाषा (Definition)

किसी प्रतिज्ञा-पत्र अथवा विनिमय पत्र की परिपक्वता से तात्पर्य उस तिथि से है. जिस पर वह देय होता है।”

कोई भी प्रतिज्ञा-पत्र या विनिमय-पत्र या तो माँग पर देय होता है अथवा एक निश्चित तिथि पर अथवा एक निश्चित अवधि के पश्चात्। मॉग पर देय विलेख का भुगतान माँग करने के साथ और एक निश्चित तिथि को देय विलेख का भुगतान उस निश्चित तिथि को करना आवश्यक होता है और ऐसे विलेख में परिपक्वता का प्रश्न ही नहीं उठता है। लेकिन ऐसा विलेख, जो एक निश्चित तिथि के पश्चात् अथवा किसी निश्चित घटना के पश्चात् देय होता है तो उसके सम्बन्ध में परिपक्वता का नियम लाग होता है। चैक के सम्बन्ध में परिपक्वता का नियम लागू नहीं होता है क्योकि चैक सदैव माँग पर देय होता है।

परिपक्वता से सम्बन्धित नियम

(Rules regarding Maturity)

1 अनुग्रह दिवस (Days of Grace)- जब विनिमय-पत्र अथवा प्रतिज्ञा-पत्र दर्शन या प्रस्तुति या मॉग पर देय हो तो उनकी परिपक्वता की तिथि की गणना करने के लिए उसकी भुगतान की तिथि मे तीन दिन और जोड़ दिए जाते हैं। इन तीन दिनों को ही हम अनुग्रह दिन (Days of grace) कर णागत हा प्रत्यक प्रतिज्ञा-पत्र का लेखक तथा विनिमय-पत्र का स्वीकर्ता इनका अधिकारी होता है।

2. किश्तों में देय विलेख (Instrument Payable in Instalments)- जब विलख किश्ता म दय हा तो ऐसी दशा में प्रत्येक किश्त की देय तिथि में तीन दिन अनुग्रह के जोड़ने के पश्चात् परिपक्वता तिथि आएगी। इसके विपरीत यदि किश्त माँग पर देय है तो भुगतान की तिथि में अनुग्रह दिवस नहीं जोड़े जायेंगे।

3. तिथि के बाद या स्वीकृति के पश्चात कुछ माह बाद देय विलेख (Maturity of Bill or Promissory Note Payable so many Months after Date)-ऐसे विलेख की परिपक्वता तिथि की गणना करने के लिए, जो उसकी तिथि से कछ माह बाद अथवा उसकी स्वीकृति के पश्चात् कुछ। माह बाद देय होता है, उसकी अवधि माह के उस दिन समाप्त हई मानी जाएगी, जो उस दिन से मिलता है, जिस दिन विलेख को लिखा गया था अथवा प्रस्तुत किया गया था। परन्तु जिस माह में देय तिथि पड़ेगी, यदि उस माह में ऐसी मेल खाती हुई तिथि न पड़े तो ऐसी दशा में उस माह के आखिरी दिन (तिथि) को ही देय तिथि माना जाएगा।

विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 23 के अन्तर्गत निम्नलिखित उदाहरण दिए गए हैं

(A) 30 जनवरी, 2016 को लिखा गया एक विनिमय साध्य विलेख तिथि से एक माह पश्चात् देय है तो ऐसे विलेख का भुगतान फरवरी 2016 की अन्तिम तिथि 29 फरवरी में तीन अनुग्रह दिवस के जोड़ने के पश्चात् अर्थात् 3 मार्च, 2016 को देय होगा क्योंकि फरवरी में 30 तारीख नहीं होती है।

(B) 30 अगस्त, 2016 को लिखित एक विनिमय साध्य विलेख ‘विलेख तिथि’ के तीन माह पश्चात् देय है तो वह 30 नवम्बर + 3 दिन अर्थात् 3 दिसम्बर, 2016 को देय होगा।

(C) 31 अगस्त, 2016 को लिखित एक विनिमय विपत्र विलेख तिथि के तीन माह बाद देय है तो यह भी 3 दिसम्बर, 2016 को देय होगा क्योंकि नवम्बर में 31 तारीख नहीं होती है। अत: 30 नवम्बर + 3 दिन अर्थात् 3 दिसम्बर 2016 को देय होगा।

4. तिथि की गणना (Calculation of Date)- परिपक्वता की तिथि की गणना अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार की जाती है, देशी महीनों अथवा तिथियों के आधार पर नहीं की जाती है।

5. प्रतिष्ठा के लिए विनिमयपत्र (A Bill of Exchange for Honour)- यदि कोई विनिमय-पत्र प्रतिष्ठा के लिए स्वीकार किया गया है तो उसकी अवधि इस प्रकार की स्वीकृति की तिथि से गणना की जाएगी, न कि उस दिन से, जिस दिन अस्वीकृति के लिए उसका नोटिंग (Noting) कराया गया है।

6. विशेष दशा में गणना (Calculating Maturity in Specific Condition)- किसी ऐसे विलेख की परिपक्वता की तिथि की गणना, जो उसकी तिथि के पश्चात् अथवा उसकी स्वीकृति के उपरान्त अथवा किसी घटना के पश्चात् कुछ दिवस के व्यतीत हो जाने पर देय है, उस तिथि को छोड़कर की जाएगी, जिस दिन विलेख लिखा अथवा स्वीकार किया गया है।

7. परिपक्वता की तिथि पर सार्वजनिक अवकाश होने पर (When Day of Maturity is a Public Holiday)- यदि विलेख के परिपक्वता के दिन सार्वजनिक अवकाश हो तो उसके एक दिन पूर्व कार्य दिवस (Working day) को देय होगा। इस प्रकार यदि कोई विलेख रविवार के दिन देय है। तो वह शनिवार के दिन देय होगा, न कि सोमवार के दिन।

8. सार्वजनिक अवकाश (Explanation of Public Holiday) [धारा 25] – भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम के अनुसार, सार्वजनिक अवकाश के अन्तर्गत प्रत्येक रविवार एवं ऐसा कोई भी दिन, जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के द्वारा सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है।

उचित रुप से भुगतान या यथाविधि भुगतान

(Payment in Due Course)

आशयउचित रीति से भुगतान का अभिप्राय उस भुगतान से है जो लेख-पत्र की स्पष्ट अवधि के अनुसार सद्भावना तथा बिना लापरवाही किए लेख-पत्र का अधिकार रखने वाले किसी भी व्यक्ति को ऐसी परिस्थितियों में किया जाये जिससे यह सन्देह न हो कि वह व्यक्ति भुगतान पाने का अधिकारी नहीं है।

उपर्यक्त परिभाषा के अनुसार उचित रीति से किया गया भुगतान तभी माना जायेगा जबकि निम्नलिखित बातें पूरी होती हों

(1) स्पष्ट अवधि के अनुसार भुगतान होना चाहिए (Payment must be in accordance with the apparent tenor of Instrument)- भुगतान के लिए यह आवश्यक है कि वह स्पष्ट अवधि के अनुसार हो। यदि भुगतान परिपक्वता (Maturity) से पहले कर दिया जाये, तो वह उचित रीति । से भुगतान नहीं माना जा सकता।

(2) भुगतान सद्भावना से होना चाहिए (Payment must be in good faith)- भुगतान पूर्ण सद्भावना के साथ किया जाना चाहिए, अर्थात् इस विश्वास के साथ किया जाना चाहिए कि भुगतान माँगने वाला ही वास्तव में उसे पाने का अधिकारी है। ।

(3) भुगतान बिना लापरवाही के होना चाहिए (Payment must be made without Negligence)- यदि भुगतान में किसी भी प्रकार की लापरवाही हो, तो वह उचित रीति से भुगतान नहीं माना जायेगा।

(4) भुगतान उसी व्यक्ति को किया जाना चाहिए जिसके पास (Possession) लेख-पत्र हो।

(5) भुगतान केवल मुद्रा में ही किया जाना चाहिए- दूसरा पक्षकार देश की मुद्रा के अतिरिक्त किसी अन्य तरीके से भुगतान स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं है।

(6) सन्देह का अभाव- भुगतान ऐसी परिस्थितियों में किया जाना चाहिए जिससे यह सन्देह उत्पन्न न होता हो कि वह व्यक्ति भुगतान पाने का अधिकारी नहीं है।

बैंक ड्राफ्ट

(Bank draft or Demand draft)

बैंक ड्राफ्ट एक मान्य विनिमयसाध्य विलेख है। इसे विनिमय-पत्र (B/E) की श्रेणी में रखा गया है। अत: बैंक ड्राफ्ट वह विनिमय-पत्र है जो किसी बैंक की एक शाखा द्वारा अपनी किसी दूसरी शाखा (अथवा किसी दूसरे बैंक की शाखा) को लिखा जाता है जिसमें लेखक शाखा (Drawer branch) किसी दूसरी शाखा को यह आदेश देती है कि वह इसमें उल्लिखित धनराशि का इसमें उल्लिखित व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को माँगने पर भुगतान कर दे।

बैंक ड्राफ्ट तब जारी किया जाता है जबकि ग्राहक बैंक में नकद राशि जमा करवाता है या अपने खाते से बैंक को धनराशि हस्तांतरित करता है। बैंक ड्राफ्ट बनाने के बदले बैंक कुछ शुल्क भी वसूल करता है। बैंक ड्राफ्ट के प्रमुख लक्षण निम्नानुसार हैं

(i) यह किसी बैंक द्वारा अपनी ही अथवा किसी भी बैंक की किसी भी शाखा पर लिखा हुआ होता है।

(ii) यह भी एक प्रकार का विनिमय-विपत्र है

(iii) यह बैंक ड्राफ्ट सदैव आदेशित (Order) होता है, वाहक (Bearer) नहीं हो सकता है।

(iv) यह सदैव माँग पर देय होता है किन्तु वाहक को माँग पर देय नहीं हो सकता है।

(v) ड्राफ्ट क्रय करने वाले तथा ड्राफ्ट जारी करने वाले बैंक के बीच केवल ऋणदाता एवं ऋणी (Debtor and Creditor) का सम्बन्ध होता है।

(vi) ड्राफ्ट का क्रेता ड्राफ्ट जारी करने वाले बैंक को ड्राफ्ट लौटाकर इसे निरस्त करवा सकता है तथा अपनी धनराशि पुन: प्राप्त कर सकता है।

(vii) बैंक ड्राफ्ट का क्रेता आदाता (Payee) को ड्राफ्ट दे देने के बाद ड्राफ्ट का भुगतान तभी रुकवा (Countermand) सकता है जबकि बैंक ने उसका भुगतान नहीं किया हो तथा आदाता ने इस हेतु अपनी सहमति दे दी हो।

यह स्पष्ट है कि चैक तथा बैंक ड्राफ्ट दोनों ही विनिमय-पत्रों की श्रेणी में आते हैं। किन्त चैक एवं ड्राफ्ट दोनों में कुछ आधारभूत अन्तर हैं जो निम्नानुसार हैं

1 जारी करनाचैक किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने बैंक पर जारी किया जा सकता है जबकि बैंक ड्राफ्ट किसी बैंक द्वारा अपनी या किसी दूसरे बैंक की शाखा पर जारी किया जाता है।

2.धनराशि का भुगतान या अन्तरण- चेक जारी करने से पूर्व बैंक में धनराशि जमा करवाना या धनराशि अन्तरित करना अनिवार्य नहीं है। बैंक खाते में धनराशि चैक जारी करने से पहले या बाद में चैक प्रस्तत होने से पूर्व जमा या अन्तरित की जा सकती है। किन्त. बैंक डाफ्ट बनवाने हेत बैंक में धन अग्रिम जमा कराना या अन्तरित करना पड़ता है।

3. शुल्कचैक जारी करते समय कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है जबकि बैंक से बैंक ड्राफ्ट क्रय करने पर कुछ शुल्क भी देना पड़ता है।

4. वाहक को देयचैक वाहक को देय हो सकता है जबकि बैंक ड्राफ्ट वाहक को देय नहीं हो सकता। यह केवल आदेशानुसार देय होता है।

5. भुगतान रोकने का आदेश– आदाता को चैक जारी करने के बाद उसके भुगतान रोकने का बैंक को आदेश दिया जा सकता है, किन्त, बैंक डाफ्ट आदाता को देने के बाद आदाता की सम्मति के बिना बैंक ड्राफ्ट के भुगतान को रोकने का आदेश नहीं दिया जा सकता है।

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हुण्डी

(Hundi)

हुण्डी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की ‘हुण्ड धातु से हुई है जिसका अर्थ है ‘संग्रह करना’। अतः द्रव्य का संग्रह करने वाले पत्र को हुण्डी कहते हैं। भारत में हुण्डियों का प्रचलन अति प्राचीन काल से है। महाभारत और मध्ययुग में हुण्डी के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। प्राचीन काल में हुण्डी को भुगतान की उगाही (ToCollect the Payment) करने के कार्य में लाया जाता था।

हुण्डी एक भारतीय साख पत्र है और इसका देश के प्रत्येक कोने में प्रचलन है। यही कारण है कि हुण्डी लिखने की कोई एक भाषा नहीं होती बल्कि सभी प्रान्तीय भाषाओं में हुण्डियाँ लिखी जाती हैं। उड़िया, गुजराती, कन्नड़, तमिल, मराठी, आदि विभिन्न भाषाओं में हुण्डियाँ देखने को मिलती हैं। इस प्रकार हुण्डियाँ साधारणतः स्थानीय भाषाओं में और क्षेत्रीय रीति-रिवाज के आधार पर लिखी जाती हैं।

जिस प्रकार चैक बैंक का साख पत्र होता है, उसी प्रकार हुण्डी देशी बैंकर का साख पत्र होती है। सरल व संक्षिप्त शब्दों में इसको इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है

“हुण्डी एक ऐसा भारतीय साख पत्र है जिसका लिखने वाला किसी व्यक्ति को आज्ञा देता है कि वह एक निश्चित धनराशि किसी दूसरे निश्चित व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुसार अथवा हुण्डी के वाहक को दे दे।”

हुण्डी की वैधानिक स्थिति (Legal Position of Hundi)-विनिमय साध्य लेखपत्र अधिनियम 1881 में हुण्डियों को विनिमय साध्य लेखपत्रों में स्पष्टत: सम्मिलित नहीं किया गया है, किन्तु परम्परा एवं प्रचलन के आधार पर इन्हें भी विनिमय साध्य लेखपत्र ही माना जाता है।

कुछ बातों में यह विनिमय साध्य लेखपत्रों से भिन्न भी है क्योंकि स्थानीय रीति-रिवाज और व्यापारिक परम्पराओं के आधार पर ही इनका नियन्त्रण होता है।

भारतीय केन्द्रीय बैंकिंग जाँच समिति, 1931 ने हुण्डियों की वैधानिक स्थिति स्पष्ट करते हुए लिखा था कि, “हुण्डी की कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है। इसका नियन्त्रण स्थानीय विभिन्न स्थानों पर प्रचलित प्रथाओं तथा रीति-रिवाजों द्वारा होता है और जहाँ पर कोई प्रथा विद्यमान न हो वहाँ यह विनिमय विपत्र की तरह प्रयुक्त होती है और उन पर भारतीय विनिमय साध्य विलेख अधिनियम लागू होता है।”

स्पष्ट एवं सारगर्भित शब्दों में हुण्डी एक भारतीय साख पत्र है जिसका प्रयोग ऋण देने, भुगतान करने तथा धन का स्थानान्तरण करने के लिए किया जाता है। विनिमय पत्र के समान ही इस पर मद्रांक लगाया जाता है, स्वीकृति प्रदान की जाती है तथा इसका पृष्ठांकन किया जाता है।

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हुण्डियों के भेद

(Kinds of Hundies)

1 दर्शनी हुण्डी (Darshani Hundi)-दर्शनी हण्डी उसे कहते हैं जो दर्शाने पर देय हो। ऐसी हुण्डी मांगपत्र के समान होती है। ऐसी हुण्डी को प्राप्त करने के पश्चात् धारक का यह कर्तव्य होता है कि वह उचित समय के भीतर भुगतान के लिए प्रस्तुत करे। ऐसी हुण्डी पर मुद्रांक लगाने की आवश्यकता नहीं होती। इस हुण्डी का प्रयोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर ऋण भेजने, व्यापारिक कार्यों के लिए यात्रा पर जाने वाले व्यक्तियों तथा सुदृढ़ साख क्षमता वाले माल के क्रेताओं के लिए होता है।

2. मुद्दती या मियादी हुण्डी (Muddati or Miadi Hundi)- मुद्दती या मियादी हुण्डी वह है जो एक समय के बाद देय होती हैं। इसका भुगतान हुण्डी में लिखी हई तारीख अथवा मिति के बाद अवधि के पूर्ण होने पर किया जाता है, इसे ‘मिति हुण्डी’ भी कहा जाता है। यह सावधि बिलों की भाँति होती है। इसका प्रयोग भारतीय व्यापारियों द्वारा व्यापार तथा वाणिज्य, आदि की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।

3. नामजोग हुण्डी (Namjog Hundi)- यह एक ऐसी हुण्डी है जिसका भुगतान हुण्डी में लिखित व्यक्ति को ही किया जाता है अर्थात् इस हुण्डी में ‘आदाता’ का नाम उल्लिखित रहता है, ये एक प्रकार से आदेश चैक की भाँति होती है।

4.धनीजोग हुण्डी (Dhanijog Hundi)- यह एक ऐसी हण्डी है जिसका भुगतान हुण्डी के धनी या धारक या वाहक को कर दिया जाता है। यह हण्डी एक वाहक चैक की भाँति है इसे ‘देखनहार हण्डी’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसका भुगतान दिखाने वाले को ही प्राप्त होता है।

5. शाहजोग हुण्डी (Shahjog Hundi)- यह एक ऐसी हुण्डी है जिसका भुगतान शाह को ही किया जाता है। शाह उसे कहते हैं जिसकी साख तथा प्रतिष्ठा बाजार में बहुत अच्छी हो। वास्तव में ‘शाह। वह व्यक्ति, फर्म, बैंक अथवा कम्पनी है जिसका नाम उस सूची में लिखा गया है जो किसी स्थानीय बोर्ड के द्वारा समय-समय पर प्रकाशित की जाती है। ऐसी हण्डी एक रेखांकित चैक की तरह होती है, ऐसी हण्डी को प्रचलित करने का मुख्य ध्येय हण्डी में होने वाली जालसाजी को रोकना है क्योकि इसका भुगतान केवल शाह को ही किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति शाह के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति को इसका भुगतान कर देता है तो उसका दायित्व समाप्त नहीं होता।

6. फरमानजोग हुण्डी (Farmanjog Hundi)- फरमानजोग हुण्डी वह है जिसका भुगतान लिखित व्यक्ति को अथवा उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति को ही किया जाता है। फरमानजोग हुण्डी एक आदेश लेखपत्र के समान होती है।

7. जवाबी हुण्डी (Jawabee Hundi)- यह एक ऐसी हुण्डी होती है जिसका प्रयोग बैंक के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान को धन भेजने के लिए किया जाता है। इसे जवाबी हुण्डी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें धन पाने वाला धन को भेजने वाले को धन के पाने का जवाब देता है।

8. जोखिमी हुण्डी (Jokhimi Hundi)- यह एक ऐसी हुण्डी है जिसके द्वारा माल का विक्रेता क्रेता को यह आदेश देता है कि वह हुण्डी के धारक को माल का मूल्य चुका दे। माल को प्राप्त करने से पूर्व क्रेता ऐसी हुण्डी पर अपनी स्वीकृति इस शर्त के साथ प्रदान करता है कि माल प्राप्त होने पर हुण्डी का भुगतान कर दिया जायेगा। इस प्रकार माल के सुरक्षित पहुँचने पर ही क्रेता हुण्डी का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। यह हुण्डी एक तरह से बीमा पालिसी का भी कार्य करती है।

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विनिमयविपत्र तथा हुण्डी में अन्तर

(Difference Between Bills of Exchange And Hundi)

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीघे उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1. विनिमय-पत्र क्या है? यह प्रतिज्ञा-पत्र तथा चैक से किस प्रकार भिन्न है? |

What is a bill of exchange ? How does it differ from a promissory note and a cheque?

2. विनिमय-विपत्र किसे कहते हैं ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ एवं प्रकार बताइए।

What is a bill of exchange ? Describe its features and types.

3. प्रतिज्ञा-पत्र की परिभाषा दीजिए। इसकी विशेषताएँ बताइए तथा प्रतिज्ञा-पत्र एवं विनिमय-पत्र में अन्तर कीजिए।

Define promissory note. Discuss its characteristics and distinguish between promissory note and bill of exchange.

4. चैक की परिभाषा दीजिए तथा इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए। चैक और विनिमय-पत्र में अन्तर कीजिए।

Define cheque and explain its characteristics. Distinguish between cheque and bill of exchange.

5. विनिमय-पत्र किसे कहते हैं ? विनिमय पत्र तथा प्रतिज्ञा पत्र में अन्तर कीजिए।

What is a bill of exchange? Distinguish between a bill of exchange and a promissory note.

6. एक विनिमय-पत्र कब परिपक्व माना जाता है ? परिपक्वता के सम्बन्ध में नियमों को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

When a bill of exchange considered mature ? Explain and illustrate the rules regarding maturity of a negotiable instrument.

7. यथाविधि भुगतान से क्या आशय है ? इसके आवश्यक लक्षण क्या हैं ?

What is meant by payment in due course? What are its essentials?

8. हुण्डी क्या होती है ? विभिन्न प्रकार की हुण्डियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

What is Hundi ? Explain in brief the different types of Hundies.

9. बैंक ड्राफ्ट या माँग विपत्र को परिभाषित कीजिए। बैंक ड्राफ्ट एवं चैक में क्या समानताएँ व अन्तर

Define Bank Draft or Demand Draft. What are the similarities and differences between the bank draft and cheque ?

10. चैकों का रेखांकन शब्द से क्या अभिप्राय है? रेखांकन के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?

What is meant by the term “crossing a cheque? What are the various types of crossing?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 प्रतिज्ञा-पत्र को परिभाषित कीजिए ?

Define Promissory note.

2. प्रतिज्ञा-पत्र के आवश्यक लक्षण बताइए।

Discuss the essential features of the promissory notes.

3. विनिमय-पत्र को परिभाषित कीजिए।

Define bill of exchange.

4. प्रतिज्ञा-पत्र तथा विनिमय-पत्र में अन्तर कीजिए।

Distinguish between a promissory note and the between promissory note and bill of exchange.

5. विनिमय-पत्र का नमूना दीजिए।

Give the specimen of bill of exchange.

6. विनिमय-पत्र के पक्षकार बताइए।

Write the parties of a bill of exchange.

7. चैक क्या है?

What is cheque?

8. चैक तथा विनिमय-पत्र में अन्तर कीजिए।

Distinguish between a cheque and a bill of exchange.

9. विदेशी विलेख को परिभाषित कीजिए।

Define foreign instrument.

10. अपूर्ण विलेख क्या है?

What is an Inchoate instrument?

11. अनुग्रह विलेख क्या है ?

What is Accommodation Bill?

12. अनुग्रह दिवस क्या है ?

What is the grace of days?

13. बनावटी विनिमय-पत्र क्या होती है ?

What is the fictitious bill?

14 आदेश विलेख को समझाइए।

Explain the order instrument.

15. यथाविधि भुगतान को समझाइए।

Explain the payment in due course.

16. हुण्डी से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by Hundies?

17. संदिग्ध विलेख को समझाइए।

Explain the Ambiguous Bill.

18. परिपक्वता तिथि की गणना से सम्बन्धित नियम क्या हैं ?

What are the rules for the calculation of the date of maturity?

19. चैक का रेखांकन क्या है ? रेखांकन क्यों किया जाता है ?

What is crossing of cheque ? Why crossing is done?

20. चैक के रेखांकन के प्रकार बताइए।

Give the kinds of cheque crossing.

21. चैक के निर्गमन के बाद उसका रेखांकन कौन कर सकता है?

Who can cross a cheque after issue?

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