BCom 1st Year Business Regulatory Framework Sale Goods Act 1930 An Introduction Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Sale Goods Act 1930 An Introduction Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Sale Goods Act 1930 An Introduction Study Material Notes in Hindi: Characteristics of Sale of Goods Sale and Agreement to Sell Distinction Between sale and Agreement of Sell Contract of Sell Distinguished from Other Classes from Contracts  How Contract to sell of Effectively or Legally Made  Examinations Question Long Answer Questions Short Answer Questions Objectives Questions

Sale Goods Act 1930
Sale Goods Act 1930

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Contracts Agency Study Material Notes in Hindi

वस्तुविक्रय अधिनियम, 1930 : एक परिचय

(Sale of Goods Act, 1930 : An Introduction)

सन् 1930 से पूर्व वस्तु-विक्रय से सम्बन्धित व्यवस्थाएँ ‘भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872’ की धाराओं 76-123 में सम्मिलित थी, परन्तु यह व्यवस्थाएँ वस्तु विक्रय अनबन्धों के सम्बन्ध में उत्पन्न बहुत से प्रश्नों पर प्रकाश नहीं डालती थी। इस कारण भारतीय संसद ने सन 1930 में इन व्यवस्थाओं को भारतीय अनुबन्ध अधिनियम से निरस्त कर दिया और उनके स्थान पर एक नवीन अधिनियम ‘वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930’ लागू किया जिसके द्वारा वस्तु-विक्रय से सम्बन्धित राजनियम को पूर्ण एवं वैज्ञानिक कर दिया गया है।।

वस्तु-विक्रय अनुबन्ध भी एक विशेष प्रकार का व्यापारिक अनबन्ध है। इस अनुबन्ध से सम्बन्धित व्यवस्थाएँ वस्तु-विक्रय अधिनियम में सम्मिलित हैं। इस अधिनियम की धारा 1 के अनुसार, यह अधिनियम वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 कहलाता है, यह जम्मू तथा कश्मीर को छोड़कर समस्त भारत में लागू होता है और यह 1 जौलाई 1930 से प्रभावी हुआ।

Sale Goods Act 1930

विक्रय अनुबन्ध की परिभाषा

(Definition of Contract of Sale)

वस्तु विक्रय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 4(1) के अनुसार, “विक्रय अनुबन्ध वह अनुबन्ध है, जिसके द्वारा विक्रेता एक निश्चित मूल्य के बदले क्रेता को, माल का स्वामित्व हस्तांतरित करता है अथवा हस्तांतरित करने का ठहराव करता है।”

वस्तु विक्रय अनुबन्ध पूर्ण (Absolute) अथवा शर्तयुक्त या सप्रतिबन्ध (Conditional) हो सकता है।

उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार वस्तु-विक्रय के दो रूप हो सकते हैं-वास्तविक विक्रय अथवा विक्रय करने का समझौता। जब किसी विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल का स्वामित्व अनुबन्ध करते ही क्रेता को हस्तांतरित हो जाता है, तो इसे विक्रय (Sale) कहते हैं। इसके विपरीत यदि माल के स्वामित्व का हस्तांतरण किसी भावी तिथि पर होना है अथवा किसी शर्त के पूरा किए जाने पर होना है, तो इसे ‘विक्रय का समझौता’ या ‘विक्रय का ठहराव’ (Agreement to sell) कहा जाता है।

उदाहरण-(i) ‘आशीष’ एक टी०वी० खरीदने के लिए ‘अंकित’ एजेंसीज की दुकान पर जाता है और एक टी० वी० पसन्द करता है, जिसे वह 16,000₹ में खरीद लेता है। इस स्थिति में टी० वी० का स्वामित्व तुरन्त हस्तांतरित हो जाता है। अतः यह विक्रय कहलाएगा।

(ii) ‘राजीव अपने खेत में उगने वाली फसल ‘संजीव’ को बेचने का अनुबन्ध करता है। इस स्थिति में खेत की उपज का स्वामित्व तभी हस्तांतरित होगा जब फसल पक कर तैयार हो जाएगी। अतः इसे विक्रय का समझौता कहेंगे. विक्रय नहीं।

कानून की दृष्टि से, जैसे ही एक पक्ष द्वारा माल के क्रय-विक्रय के लिए किया गया प्रस्ताव दूसरे पक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, उनमें वस्तु-विक्रय का अनुबन्ध स्थापित हो जाता है। माल की सुर्पुदगी अथवा मूल्य के भुगतान के लिए वे कोई भी समय निश्चित कर सकते हैं।

विक्रय अनुबन्ध के आवश्यक लक्षण

(Characteristics of a Contract of Sale of Goods)

वस्तु विक्रय अनुबन्ध की परिभाषा का विश्लेषण करने से पता चलता है कि विक्रय अनुबन्ध के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण लक्षण होते हैं

1 क्रेता तथा विक्रेता का होना (Existence of Purchaser and Seller)-अन्य अनुबन्धों की  भाँति विक्रय अनुबन्ध में भी दो पक्षकार होते हैं। विक्रय अनुबन्ध में ये पक्षकार क्रेता तथा विक्रेता कहलाते हैं। इसके लिए क्रेता तथा विक्रेता दो अलग-अलग व्यक्ति होने चाहिए, क्योंकि कोई व्यक्ति स्वयं अपना माल नहीं खरीद सकता।

2. वस्तु या माल का होना (Existence of Goods)-वस्तु-विक्रय अनुबन्ध की विषय-वस्तु ‘माल’ या ‘वस्तु’ होती है। ‘माल’ या ‘वस्तु’ में प्रत्येक प्रकार की चल सम्पत्ति (Movable Property) शामिल की जाती है।

3. मूल्य (Price)-माल का विक्रय मूल्य के बदले किया जाता है। मूल्य का आशय मौद्रिक प्रतिफल से है। यदि मूल्य मुद्रा में प्राप्त न होकर किसी अन्य वस्तु के रूप में प्राप्त होता है तो उसे ‘विक्रय’ न कहकर ‘वस्तु विनिमय’ कहेंगे। परन्तु अंशत: मुद्रा और अंशत: वस्तु से वस्तु बदलना विक्रय माना जा सकता है।

4. स्वामित्व का हस्तांतरण (Transfer of ownership)-वस्तु विक्रय अनुबन्ध में विक्रेता दाम क्रेता को अवश्य किया जाना चाहिए। हा. माल क स्वामित्वहस्तातरण तुरन्त किया जा सकता है अथवा भविष्य में करने का वचन दिया जा सकता है।

5.वैध अनुबन्ध के लक्षण (Essentials of a valid Contract)-वध वस्तु विक्रय अनुबन्ध में उन सभी लक्षणों का होना आवश्यक है जोकि एक साधारण वैध अनुबन्ध के लिए आवश्यक हैं।

6. विक्रय अनुबन्ध पूर्ण अथवा शर्तयुक्त होना (Contract of Sale Being Absolute or Conditional)-विक्रय अनुबन्ध पूर्ण हो सकता है अथवा शर्तयुक्त हो सकता है।

7. स्पष्ट अथवा गर्भित (Express or Implied)-वस्तु विक्रय अनुबन्ध स्पष्ट अथवा गर्भित हो सकता है। स्पष्ट अनुबन्ध मौखिक अथवा लिखित हो सकता है। इसके विपरीत, गर्भित अनुबन्ध पक्षकारों के आचरण से गर्भित हो सकता है।

Sale Goods Act 1930

विक्रय एवं विक्रय का ठहराव

(Sale and Agreement to Sell)

विक्रय (Sale)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 4(3) के अनुसार, “जब किसी विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल का स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तांतरित हो जाता है तो उस अनुबन्ध को ‘विक्रय कहते हैं।”

ब्लैकस्टोन (Black-Stone) के अनुसार, “किसी मूल्य के प्रतिफल में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को माल के स्वामित्व का हस्तांतरण ही ‘विक्रय’ कहलाता है।”

स्पष्ट है कि ‘विक्रय’ में माल के स्वामित्व का एक व्यक्ति से (विक्रेता से) दूसरे व्यक्ति को (क्रेता को) हस्तांतरण किया जाता है तथा दूसरा व्यक्ति इसके बदले में मूल्यवान प्रतिफल देता है।

उदाहरणअतुल विपुल को अपना स्कूटर 5,000 ₹ में बेचता है। यह ‘विक्रय’ कहलाएगा। चूंकि अतुल को 5,000 ₹ प्राप्त हो गए हैं तथा विपुल को स्कूटर मिल गया है।

विक्रय का ठहराव (Agreement to Sell)-वस्त विक्रय अधिनियम की धारा 4 (3) के अनुसार, “जब माल के स्वामित्व का हस्तांतरण भविष्य में किसी तिथि को अथवा कुछ शर्तों को पूरा करने के बाद किया जाना है तो ऐसे अनुबन्ध को ‘विक्रय का ठहराव’ कहते हैं।

उदाहरण15 मार्च को राम, कृष्ण से अनुबन्ध करता है कि वह 23 मार्च को अपना घोड़ा उसे 8,000 ₹ में बेच देगा। इस अनुबन्ध को विक्रय का ठहराव कहेंगे क्योंकि राम कृष्ण को भविष्य में घोड़े का स्वामित्व हस्तांतरित करने के लिए सहमत हुआ है।

विक्रयअनुबन्ध अन्य प्रकार के अनुबन्धों से भिन्न

(Contract of Sale Distinguished from other classes of Contracts)

विक्रय-अनुबन्ध होने के लिए धारा 4 में बताए हुए सभी लक्षणों का होना आवश्यक है। यदि इनमें किसी भी लक्षण का अभाव होगा तो वह विक्रय-अनुबन्ध न होगा। इसलिए निम्नलिखित कुछ अन्य प्रकार के अनुबन्ध विक्रय-अनुबन्ध से भिन्न हैं

(1) विक्रय और दान (Sale and Gift) में अन्तर-विक्रय के लिए मूल्य (मुद्रा में प्रतिफल) का होना आवश्यक है। इसीलिए यदि किसी अनुबन्ध में बिना किसी प्रतिफल के वस्तुओं का स्वामित्व एक व्यक्ति से दूसरे के पास जाता है, तो उसे ‘विक्रय’ नहीं वरन् ‘दान’ कहेंगे।

(2) विक्रय और वस्तु विनिमय (Sale and Barter) में अन्तर-विक्रय का मूल्य, अर्थात् प्रतिफल मुद्रा में होना आवश्यक है। यदि माल के बदले में क्रेता मूल्य मुद्रा के अतिरिक्त अन्य किसी रीति-से, अर्थात् कुछ सामान देकर अदा करे, तो ऐसे अनुबन्ध को विक्रय का अनुबन्ध न कहकर, उसे वस्तु विनिमय कहेंगे।

(3) विक्रय और निक्षेप (Sale and Bailment) में अन्तर-निक्षेप की दशा में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को किसी विशेष आशय से इस अनुबन्ध पर माल सौंपता है कि उस आशय के पूरा होने पर निक्षेपग्रहीता सौंपा हुआ माल निक्षेपी को वापस कर देगा। अत: निक्षेप में माल का स्वामित्व निक्षेपग्रहीता के पास नहीं जाता, केवल कुछ समय के लिए ही माल मिल जाता है। विक्रय में माल का स्वामित्व क्रेता को मिल जाता है। नेता मनमाने ढंग से माल का प्रयोग कर सकता है, निक्षेपग्रहीता को। यह स्वतंत्रता नहीं होती। इस प्रकार विक्रय, निक्षेप से भिन्न है।

(4) विक्रय आर गिरवी (Sale and Pledge) में अन्तर गिरवी रखने की दशा में ऋण पाय करन क लिए कुछ समय के लिए माल में समस्त हितों का हस्तांतरण कर दिया जाता है। अत: गिरवी रखना विक्रय से भिन्न है। विक्रय में स्वामित्व का हस्तांतरण हो जाता है, गिरवी में केवल कुछ समय के लिए माल में समस्त हितों का हस्तांतरण हो जाता है।

(5) विक्रय तथा भाड़े पर खरीद के ठहराव (Sale and Hire Purchase Agreement) में अन्तर-“भाड़े पर खरीद का ठहराव” एक ऐसा अनुबन्ध है जिसके अनुसार माल का स्वामी माल को भाड़ पर देता है, और भाडे पर माल लेने वाले द्वारा कुछ भुगतानों को कर देने की शर्त पर उसको बेच। देने का दायित्व लेता है। इस प्रकार ऐसे ठहराव में दो तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं

प्रथम, यह स्वामी तथा भाडे पर लेने वाले के बीच भाड़े का एक अनुबन्ध है, और भाड़े पर लेने वाला निश्चित किस्तों में एक निश्चित धन देने का ठहराव करता है।

दूसरे, स्वामी की ओर से भाड़े पर लेने वाले को माल बेचने का एक शर्त सहित ठहराव होता है। स्वामी इस शर्त पर माल बेचने का ठहराव करता है कि भाड़े पर लेने वाला सब निश्चित किस्तों का भुगतान कर देगा। अन्तिम किस्त का भुगतान कर देने पर ही, अनुबन्ध ‘विक्रय हो जाता है, और माल या सम्पत्ति का स्वामित्व स्वामी से भाड़े पर लेने वाले को हस्तांतरित हो जाता है। जब तक सब निश्चित किस्तों का भुगतान नहीं हो जाता. स्वामित्व स्वामी का ही रहता है। प्रायः ऐसे ठहराव में यह व्यवस्था होती है कि यदि किसी भी किस्त के भुगतान में त्रुटि होगी, तो स्वामी वस्तु को वापस ले सकता है।

Sale Goods Act 1930

विक्रयअनुबन्ध वैध रूप से किस प्रकार उत्पन्न होता है?

(How Contract of Sale is Effectively or Legally Made?)

वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 3 के अनुसार यह स्पष्ट है कि भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की वह व्यवस्थाएँ जो वस्तु-विक्रय अधिनियम की व्यवस्थाओं के असंगत नहीं हैं, वस्तु-विक्रय में भी लागू होती हैं। इसलिए धारा 3 के अधीन भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के सामान्य नियमों के अनुसार तथा इस अधिनियम की धारा 4 तथा 5 के अनुसार वैध-विक्रय अनुबन्ध होने के लिए निम्नलिखित बातें होना आवश्यक है

1 एक पक्षकार की ओर से माल खरीदने अथवा बेचने के लिए प्रस्ताव होना चाहिए और दूसरे पक्षकार की ओर से इस प्रस्ताव की स्वीकृति होनी चाहिए।

2. दोनों पक्षकारों में अनुबन्ध करने की क्षमता होनी चाहिए।

3. दोनों पक्षकारों की स्वतन्त्र सहमति होनी चाहिए। 4. माल होना चाहिए, जिसके स्वामित्व का हस्तांतरण मूल्य (मुद्रा में प्रतिफल) के बदले में होना है।

4. विक्रय अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार माल की तत्काल सुपुर्दगी की जा सकती है अथवा मूल्य को तत्काल चुकता किया जा सकता है अथवा दोनों ही तत्काल किए जा सकते हैं, अथवा सुपुर्दगी अथवा भगतान दोनों किस्तों के रूप में हो सकते हैं, अथवा भुगतान एवं सुपुर्दगी दोनों भविष्य में किए जा सकते

5. किसी प्रचलित राजनियम के अधीन, विक्रय-अनुबन्ध स्पष्ट हो सकता है, गर्भित अनुबन्ध पक्षकारों के व्यवहार में गर्भित हो सकता है।

विक्रय अनुबन्ध की विषय वस्तु

(Subject-matter of Contract of Sale)

वस्तु विक्रय अनुबन्ध की विषय वस्तु ‘माल’ है। वस्त विक्रय अधिनियम की धारा 2 (7) के अनुसार, “माल से आशय प्रत्येक प्रकार की चल सम्पत्ति से है, किंतु इसमें अभियोग-योग्य दावे और मुद्रा सम्मिलित नहीं हैं। इसमें स्टाक, शेयर, खड़ी फसलें, घास एवं अन्य वस्तुएँ जो भूमि से संलग्न न हो या भूमि के अंश के रूप में हों तथा जिन्हें विक्रय से पूर्व भूमि से अलग कर दिया गया हो अथवा जिन्हें विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत भूमि से अलग करने का ठहराव कर लिया गया हो सम्मिलित हैं।”

इस प्रकार अभियोग-योग्य दावे तथा मुद्रा माल की श्रेणी में नहीं आते। यहाँ पर मद्रा से आशय चाल मद्रा से है, पुराने तथा दुर्लभ सिक्के माल की श्रेणी में सम्मिलित किए जाते हैं। माल जो अनबन्ध । की विषय वस्तु है अनुबन्ध के समय विद्यमान हो सकती है अथवा विक्रय अनुबन्ध उस माल का भी हो सकता है जो अनबन्ध के समय विद्यमान न हो। इस प्रकार माल निम्नलिखित तीन प्रकार का हो सकता

1 विद्यमान माल 2. भावी माल 3. संयोगिक माल।

1 विद्यमान माल (Existing Goods)-विद्यमान माल से आशय ऐसे माल से है जो कि अनुबन्ध के समय विक्रेता के स्वामित्व में हो तथा वास्तव में विद्यमान हो। विद्यमान माल दो प्रकार का हो सकता है

() निश्चित माल (Ascertained Goods)-निश्चित माल से अभिप्राय ऐसे माल से है। जिसकी अनुबन्ध के समय ही अनुबन्ध के पक्षकारों द्वारा पहचान कर ली गई है और स्पष्ट रूप से समझ लिया गया है। दूसरे शब्दों में, जब क्रेता तथा विक्रेता विशिष्ट माल के सम्बन्ध में विक्रय-अनुबन्ध करते हैं तो ऐसे विक्रय-अनुबन्ध की विषय-वस्तु को निश्चित माल की संज्ञा प्रदान की जाएगी। सामान्यतः निश्चित माल तथा विशिष्ट माल में कोई अन्तर नहीं माना जाता।

() अनिश्चित माल (Unascertained Goods)-यदि विक्रय अनुबन्ध करते समय माल को पहचाना अथवा निश्चित न किया गया हो, तो उसे ‘अनिश्चित माल’ कहते हैं। इस स्थिति में केवल माल के वर्णन द्वारा विक्रय अनुबन्ध किया जाता है।।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण-‘मोहन’ के पास दस गायें हैं। वह इनमें से ‘गोपाल’ को एक गाय के बेचने का वचन देता है और विक्रय अनुबन्ध के समय एक विशेष गाय की ओर इशारा करके बेची जाने वाली गाय को निश्चित भी कर देता है। इस प्रकार के अनुबन्ध को निश्चित (विशिष्ट) वस्तुओं के विक्रय का अनुबन्ध कहते हैं।

परन्तु उपरोक्त उदाहरण में यदि ‘मोहन’ गाय बेचने का केवल सौदा मात्र ही करता है और यह निश्चित नहीं करता कि वह कौन-सी गाय बेचने के लिए तैयार है तो यह अनिश्चित माल के विक्रय का अनुबन्ध कहलाएगा। ‘मोहन’ द्वारा बेची जाने वाली गाय के निश्चित कर देने पर और गोपाल द्वारा उसे स्वीकार कर लेने पर विक्रय अनुबन्ध निश्चित माल का बन जाएगा।

Sale Goods Act 1930

निश्चित तथा अनिश्चित माल में अन्तर

(Difference between Ascertained and Unascertained Goods)

(i) माल की पहचान का आधार (Basis of Acquaintance of Goods) निश्चित माल के विक्रय अनुबन्ध में माल की पहचान की जाती है जबकि अनिश्चित माल के सम्बन्ध में माल की पहचान नहीं होती है।

(ii) माल की प्रकृति का आधार (Basis of Nature of Goods)-निश्चित माल सदैव वर्तमान माल ही हो सकता है, भावी माल कभी भी निश्चित नहीं कहलाया जा सकता। इसके विपरीत अनिश्चित माल वर्तमान एवं भावी दोनों ही प्रकार का हो सकता है।

(iii) अनुबन्ध के रूप का आधार (Basis of form of Contract)-निश्चित माल का अनुबन्ध एक विक्रय एवं विक्रय के समझौते का अनुबन्ध है। इसके विपरीत अनिश्चित माल का अनुबन्ध विक्रय का समझौता हो सकता है, विक्रय अनुबन्ध नहीं। ।

2. भावी माल (Future Goods)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 2 (6) के अनुसार भावी माल से आशय ऐसे माल से है जो विक्रय अनुबन्ध के समय विक्रेता के पास नहीं है और अनुबन्ध के पश्चात विक्रेता उसका निर्माण करता है अथवा उत्पन्न करता है अथवा प्राप्त करता है। भावी माल का विक्रय नहीं हो सकता उसके सम्बन्ध में ‘विक्रय का ठहराव’ किया जा सकता है। जैसे-अ.ब को एक निश्चित किस्म के 50 कम्प्यूटर बनाकर 6 माह के बाद देने का विक्रय अनुबन्ध करता है यह भावी वस्तु के विक्रय का अनुबन्ध है।

3. संयोगिक माल (Contingent goods)-संयोगिक माल से आशय ऐसे माल से है जिसको विक्रेता द्वारा प्राप्त करना किसी घटना के होने या न होने पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए ‘अ”ब’ से अनुबन्ध करता है कि एक विशिष्ट जहाज में लंदन से आने वाले गेहूँ में से 100 कुन्तल गेहं उसको देगा। यह विक्रय तभी हो पाएगा जब जहाज माल सहित सुरक्षित पहुंच जाएगा। यदि जहाज माल सहित सुरक्षित नहीं पहुंचा तो विक्रय अनुबन्ध कार्यान्वित नहीं कराया जा सकता।

माल का नष्ट होना

(Destruction of Subject-matter)

निश्चित (विशिष्ट) माल के विक्रय अनुबन्ध के पूर्व अथवा विक्रय अनुबन्ध के बाद नष्ट हो जाने की स्थिति में अनुबन्ध पर पड़ने वाले प्रभाव का विवरण निम्नलिखित प्रकार हैविशिष्ट माल का विक्रय अनुबन्ध के पहले नष्ट होना है ।

2. माल का विक्रय के पर्व किन्तु विक्रय के ठहराव के बाद नष्ट होना (Perishing of Specific goods before sale but after agreement to sell)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 8 के अनुसार जब किसी विशिष्ट माल के विक्रय का ठहराव किया गया है, और उसके बाद क्रेता को स्वामित्व हस्तांतरित होने से पहले माल विक्रेता अथवा क्रेता की ओर से बिना किसी त्रुटि के ही नष्ट हो जाता है अथवा इतना खराब हो जाता है कि अपने उस वर्णन से जो कि ठहराव में दिया गया था मेल नहीं खाता है, तो ऐसी दशा में भी अनुबन्ध व्यर्थ हो जाता है।

ऐसी दशा में ठहराव को व्यर्थ मानने के लिए निम्नांकित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है(i) उस विशिष्ट माल की क्षति होनी चाहिए, जिसके सम्बन्ध में ‘विक्रय-ठहराव’ किया गया है। (iii) हानि निश्चित होनी चाहिए। (iii) हानि दोनों पक्षकारों में से किसी की भी त्रुटि के कारण नहीं होनी चाहिए। (iv) हानि माल का स्वामित्व क्रेता के पास हस्तांतरित होने से पूर्व होनी चाहिए।

मूल्य

(Price)

वस्तु विक्रय अनुबन्ध के लिए यह आवश्यक है कि माल का हस्तांतरण एक मूल्य के बदले होना चाहिए। मूल्य का आशय मुद्रा में प्रतिफल से है। इस प्रकार माल के विक्रय के लिए प्रतिफल अवश्य होना चाहिए, और यह प्रतिफल मुद्रा में ही होना चाहिए। यदि माल का हस्तांतरण बिना किसी प्रतिफल के होगा तो वह दान/उपहार (Gift) कहलाएगा। इस प्रकार यदि प्रतिफल मुद्रा में न होकर किसी अन्य वस्तु में होगा, तो वह ‘वस्तु विनिमय’ कहलाएगा। मुद्रा वास्तव में विक्रय के समय दी जा सकती है या उसके लिए वचन दिया जा सकता है। यह इस बात पर निर्भर होगा कि व्यवहार नकद या उधार किया गया है।

मूल्य का निर्धारण

(Ascertainment of Price)

वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 9 व 10 के अनुसार, विक्रय अनुबन्ध में मूल्य निर्धारण के लिए निम्नलिखित नियम हैं

1 मूल्य अनुबन्ध द्वारा निश्चित हो सकता है-विक्रय अनुबन्ध में मूल्य अनुबन्ध द्वारा निश्चित किया जा सकता है। अनुबन्ध के पक्षकार वस्तु का मूल्य कुछ भी निश्चित कर सकते हैं और न्यायालय इस बात की जाँच नहीं करेगा की मूल्य पर्याप्त है या नहीं।

2. मल्य किसी निश्चित रीति द्वारा बाद में निश्चित होने के लिए छोड़ा जा सकता है-मल्य अनबन्ध करते समय निश्चित न करके बाद में किसी निश्चित रीति के अनुसार तय करने के लिए छोड़ा जा सकता है जैसे-जो मूल्य अन्य क्रेता देंगे, वहीं दिया जाएगा।

3. मल्य पक्षकारों के पारस्परिक व्यवहार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है यदि मल्य अनुबन्ध द्वारा निश्चित नहीं हुआ है और न ही उसमें मूल्य निश्चित करने की कोई स्पष्ट विधि दी गई है तो मल्य पक्षकारों के पारस्परिक व्यवहार द्वारा निश्चित किया जाएगा।

4. उचित मल्य देनायदि मूल्य का निर्धारण उपर्युक्त किसी भी प्रकार से निश्चित नहीं किया गया है तो क्रेता. विक्रेता को उचित मूल्य का भुगतान करेगा। उचित मूल्य क्या है, यह एक तथ्य सम्बन्धी प्रश्न है, जो प्रत्येक प्रकरण की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। ।

5. तृतीय पक्षकार द्वारा मूल्य का निर्धारण-जब वस्तु विक्रय का ठहराव इस शर्त पर हआ है कि मल्य तीसरे पक्षकार द्वारा निश्चित किया जाएगा किन्तु तीसरा पक्षकार मूल्य निश्चित नहीं कर सकता ‘अथवा नहीं करता तो ठहराव व्यर्थ होगा। किन्तु यदि वस्तु अथवा उसका कोई भाग क्रेता को सपर्ट कर दिया गया है और उसके द्वारा विनियोजित किया जा चुका है तो वह उसका उचित मल्य देगा।।

मूल्य भुगतान की विधि

(Mode of Payment)

क्रेता को चाहिए कि क्रय की गई वस्त का मल्य, देश की चालू मुद्रा में भुगतान करा अपने देश में चालू मुद्रा के अतिरिक्त अन्य किसी रूप में मुल्य स्वीकार करने के लिए बाध्य नहा किया जा सकता है। अत: विक्रेता चैक द्वारा भुगतान स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जब तक कि इसके विपरीत कोई स्पष्ट या गर्भित ठहराव न हो।

यदि मूल्य निश्चित हो जाने के बाद किन्त क्रेता को माल की सपर्दगी देने से पूर्व राजकीय कराम वृद्धि या कमी हो जाती है तो विक्रेता विक्रय मूल्य को करों की कमी या वृद्धि की सीमा तक क्रमश: घटा या बढ़ा सकता है। इसी प्रकार अग्रिम प्राप्त राशि का भी समायोजन किया जाता है।

Sale Goods Act 1930

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 वस्तु विक्रय अनुबन्ध से आप क्या समझते हैं? विक्रय तथा विक्रय के ठहराव में अन्तर बताइए। विक्रय का ठहराव कब विक्रय हो जाता है?

What do you mean by contract of Sale? Distinguish between Sale and an Agreement to Sell. When does an agreement to sell become Sale?

2. वस्तु विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत ‘माल’ शब्द की परिभाषा किस प्रकार दी गई है? माल के नष्ट होने का विक्रय अनुबन्ध पर क्या प्रभाव पड़ता है?

In which way the term ‘goods’ have been defined under Sales of Goods Act? What is the effect of destruction of goods under Sales of Goods Act?

3. माल विक्रय अनुबन्ध को परिभाषित कीजिए। इसके आवश्यक लक्षणों का वर्णन कीजिए।

Define a contract of Sales of Goods. State its essential characteristics.

4. शब्द ‘माल’ को परिभाषित कीजिए। विभिन्न प्रकार के माल का विवेचन कीजिए।

Define the term ‘Goods’. Discuss the different types of goods.

5. मूल्य किसे कहते हैं? मूल्य निर्धारण सम्बन्धी नियमों की विवेचना कीजिए।

What is meant by Price? Discuss the rules as the ascertainments of prices.

6. माल के विक्रय हेतु किए गए अनुबन्ध पर माल के नष्ट होने का निम्नलिखित परिस्थितियों में क्या प्रभाव पड़ता है

What is the effect of destruction of goods on the contract for the sale of goods in the following cases :

(i) जब अनुबन्ध करने से पूर्व हो माल नष्ट हो गया हो, तथा

When the goods are destroyed before making the contract, and

(ii) जब विक्रय के ठहराव के पश्चात् किन्तु विक्रय के प्रभावी होने से पूर्व माल नष्ट हो गया हो।

When the goods are destroyed after an agreement to sell but before the sale is affected.

Sale Goods Act 1930

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 विक्रय अनुबन्ध का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

Explain the meaning of Contract of Sale.

2. विक्रय तथा विक्रय के ठहराव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Explain the difference between Sale and Agreement to Sell.

3. विक्रय अनुबन्ध के मुख्य लक्षण बताइए।

Explain the main characteristics of Contract of Sale.

4. निश्चित तथा अनिश्चित माल में अन्तर बताइए।

State the difference between Ascertained and Unascertained Goods.

5. विक्रय तथा भाड़े पर खरीद के ठहराव में अन्तर बताइए।

Explain the difference between Sale and Purchase on the Hire Purchases agreement.

6. माल के विभिन्न प्रकार का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Briefly describe the various kinds of goods.

7. वस्तु विक्रय अनुबन्ध के निर्माण में किन तत्वों का होना आवश्यक है?

What are the essential elements in the formation of the Contract of Sale?

8. विक्रय एवं निक्षेप में अन्तर बताइए।

Explain the difference between Sale and Bailment.

9. विक्रय एवं दान में अन्तर बताइए।

Explain the difference between Sale and Donation.

10. वस्तु विक्रय अनुबन्ध में मूल्य निर्धारण की विधि समझाइए।

State the modes of ascertainment of price under the Contract of Sale.

11. विक्रय का ठहराव कब विक्रय हो जाता है?

When does an agreement to sell become a Sale?

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer) :

1 वस्तु विक्रय अधिनियम लागू हुआ-

(The Sales of Goods Act is enforced in):

(अ) 1970

(ब) 1932

(स) 1930 (1)

(द) 1940

2. विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल हो सकता है-

(Which of the following falls under goods in contract of sale):

(अ) कार (Car) (1)

(ब) दुकान (Shop)

(स) मकान (House)

(द) उपरोक्त सभी (All above)

3. विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल में सम्मिलित है-

(Goods under contract of sale include):

(क) विशिष्ट माल (Specified goods) (ब) निश्चित माल (Ascertained goods) (स) अनिश्चित माल (Unascertained goods) (द) उपरोक्त सभी (All above) (1)

4. विक्रय समझौते का अर्थ ऐसे समझौते से है जिसमें-

(Agreement to sell is an agreement wherein):

(अ) माल का हस्तांतरण भविष्य में होता है

(The goods are transferred in future) ”

(ब) माल का हस्तांतरण वर्तमान में होता है (The goods are transferred immediately)

(स) माल का हस्तांतरण नहीं होता (The goods are not transferred)

(द) उपरोक्त सभी (All the above)

5. वैध विक्रय के अनुबन्ध में कौन सा लक्षण सम्मिलित है-

(Which element is the part of a contract of a valid sale):

(अ) दो पक्षकार (Two parties)

(ब) पक्षकारों की योग्यता (Capacity of parties)

(स) माल के स्वत्व का हस्तांतरण (Transfer of ownership in goods)

(द) उपरोक्त सभी (All the above)(1)

6. ऐसा विक्रय अनुबन्ध जिसमें माल का हस्तांतरण पूर्ण भुगतान एवं समझौते के निष्पादन पर होगा क्या कहेंगे-

(What will be the nature of a contract in which goods are transferred after full payment and performance of agreement) :

(अ) विक्रय (Sale)

(ब) विक्रय का समझौता (Agreement to sell)

(स) किराया क्रय समझौता (Hire purchase agreement)

(द) अनुमोदन पर विक्रय (Sale on approval)

7. मोहन एक लाख र मूल्य की अपनी कार दलाल को एक नई कार के बदले में देने को तैयार होता। है और अन्तर मूल्य नकद देता है-

(Mohan agrees to give his car for ₹ 1,00,000 to al broker in exchange for another car after the payment of difference in price.)

(अ) यह विक्रय अनुबन्ध हुआ (It is contract of sale)(1)

(ब) वस्तु विनिमय (Barter)

(स) विनिमय (Exchange)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

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