BCom 2nd Year Set off Carry Forward Losses Study Material Notes in Hindi

///

BCom 2nd Year Set off Carry Forward Losses Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd Year Set off Carry Forward Losses Study Material Notes in Hindi: Head and Source Provision  Regarding set off of Losses Manning of carry Forward of Losses Numerical Illustrations  Compulsion got Set of the Losses Submission of Return of Losses Income Tax Provisions Related to Set off and Carry Forward of Losses At a Glance Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Question :

Set off Carry Forward
Set off carrying Forward

san Francisco Personal injury attorney Dolan Law

हानियों की पूर्ति तथा उन्हें आगे ले जाना

(SET-OFF AND CARRY FORWARD OF LOSSES)

जैसा कि हम जानते हैं कि कल आय की गणना आय के पाँच भिन्न-भिन्न शीर्षकों में की जाती है। प्रत्येक शीर्षक एवं किसी शीर्षक के प्रत्येक स्रोत से आय ही प्राप्त हो, यह अनिवार्य नहीं है। अत: यदि किसी शीर्षक/स्रोत में हानि होती है तो करदाता अपने कर दायित्व को न्यूनतम करने के लिए चाहेगा कि उक्त हानि को उस गत वर्ष की अन्य आयों से अपलिखित अथवा समायोजित कर दिया जाये। यदि उक्त हानि की राशि उस गत वर्ष की कुल आयों से अधिक है तो करदाता हानि की शेष बची हुई रकम को आगामी गत वर्षों की आय से पूरा करना चाहता है। इस सम्बन्ध में आय-कर अधिनियम के प्रावधानों की विवेचना धारा 70 से धारा 80 तक की गई है।

शीर्षक एवं स्रोत

(Head and Source)

जैसा कि हम जानते हैं कि आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत आय के पाँच शीर्षक बताये गये हैं-(i) वेतन से आय, (1) मकान सम्पत्ति से आय, (iii) व्यापार अथवा पेशे के लाभ, (iv) पूँजी लाभ एवं (v) अन्य साधनों से आय। परन्तु आय के प्रत्येक शीर्षक में आय के कई स्रोत (Sources of Income) हो सकते हैं, जैसे यदि किसी व्यक्ति के चार प्रकार के व्यवसाय हैं तो ‘व्यवसाय से आय’ शीर्षक कहलायेगा तथा चार प्रकार के व्यवसाय, “चार आय के स्रोत’ माने जायेंगे। इसी प्रकार, यदि किसी गत वर्ष में कई पूँजी सम्पत्तियाँ हस्तान्तरित की जाती हैं तो ‘पुँजी लाभ’ शीर्षक तथा प्रत्येक हस्तान्तरित पूँजी सम्पत्ति आय के स्रोत माने जायेंगे। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के पास तीन मकान सम्पत्ति हैं तो तीनों मकानों की आय का शीर्षक ‘मकान सम्पत्ति से आय’ कहलायेगा एवं तीनों मकान उक्त शीर्षक के अन्तर्गत आय के तीन स्रोत माने जायेगे।

हानियों की पूर्ति का अर्थ (Meaning of Set off of Losses)-हानियों की पर्ति से आशय किसी गत वर्ष में किसी शीर्षक/स्रोत में हुई हानि को उसी गत वर्ष की आयों से अपलिखित अथवा समायोजित करने से है।

हानियों की पूर्ति से सम्बन्धित प्रावधान

(Provisions Regarding Set off of Losses)

आय-कर अधिनियम, 1961 के अन्तर्गत हानियों की पूर्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान हैं

1 किसी शीर्षक के एक स्रोत की हानि की पूर्ति उसी शीर्षक के दूसरे स्रोत की आय से करना (Set-off of Losses from One Source from Another Source Under the same Head) (धारा 70)-आय के किसी एक ही शीर्षक के अन्तर्गत विभिन्न आय स्रोत होने पर यदि किसी एक स्रोत से हानि हो तो ऐसी हानि को उसी शीर्षक के अन्य स्रोतों की आय से परा किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को “अन्तःस्रोत पूर्ति’ (Inter Source Set-off) भी कहते हैं। उदाहरणार्थ-यदि किसी करदाता के पास दो मकान सम्पत्ति हैं-प्रथम स्वयं निवास हेतु तथा द्वितीय किराये हेतु। यदि निवास हेतु प्रयोग किये जाने वाले मकान से 5.000₹ की हानि है एवं किराये पर उठाये गये मकान से 6,000 ₹ का लाभ है तो मकान सम्पत्ति शीर्षक के अन्तर्गत आय (6,000-5,000) = 1,000 ₹ की होगी। परन्तु इस नियम के निम्नलिखित अपवाद हैं(6) सट्टे के व्यापार की हानि की पूर्ति केवल सट्टे के व्यापार के लाभों से ही की जा सकती है।

पड-दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व एवं अनुरक्षण के व्यापार की हानि किसी भी अन्य आय से पूरी नहीं की जा सकती। इस हानि को केवल इसी स्रोत की आय से ही पूरा किया जा सकता है।

आय वाले स्रोत की हानि की पूर्ति किसी भी कर-योग्य आय (Taxable Income) से नहीं की जा सकती जैसे कषि हानि की पूर्ति अन्य किसी कर-योग्य स्नातं की आय से नहीं की जा सकती। परन्तु कृषि हानि को केवल कृषि आय से पूरा किया जा सकता है। आकस्मिक आय जैसे-लॉटरी, वर्ग पहेली, घुड़-दौड़, ताश के खेल, अन्य प्रकार के खेल, जए अथवा किसी भी प्रकार की शर्त में जीतने से हुई आय का राशि से किसी भी हानि का पूरा (अपलिखित/समायोजित) नहीं किया जा सकता है। दीर्घकालीन पंजी सम्पत्ति की हानि को केवल दीर्घकालीन पूंजी सम्पत्ति के लाभ से ही पूरा किया जा सकता है। भाग AKAD में वर्णित निर्दिष्ट व्यवसाय (Specified Business) की हानि की पूर्ति केवल किसी अन्य निर्दिष्ट । व्यवसाय की आय से ही की जा सकती है।

2. अन्तः शीर्षक पूर्ति (Inter Hend Set-off) (धारा 71) यदि किसी कर-निर्धारण वर्ष में किसी शीर्षक के अन्तर्गत हानि हुई है तो उसे उसी कर निर्धारण वर्ष में अन्य शीर्षक की आयों से परा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए किसी करदाता। के मकान सम्पत्ति से आय शीर्षक में 12,000 ₹ की हानि एवं व्यापार एवं पेशे शीर्षक में 52.000₹ का लाभ हुआ हो तो 12,000। की हानि को 52,000 ₹ के लाभ में से समायोजित किया जा सकता है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि धारा 71 में हानि पूर्ति करने से पहले धारा 70 में हानि पूर्ति की जायेगी।

अपवाद

(i) धारा 70 के अपवादों में वर्णित ऐसी हानियाँ जिन्हें अपने ही शीर्षक में पूरा नहीं किया जा सकता, उनकी पूर्ति किसी अन्य शीर्षक की आय से भी नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए(अ) सट्टे के व्यापार की हानि व्यापार एवं पेशे शीर्षक के किसी अन्य स्रोत अथवा किसी भी अन्य आय से पूरी नहीं की जा सकती, केवल सट्टे के व्यापार के लाभों से ही पूरी की जा सकती है।

() निर्दिष्ट व्यवसाय की हानि की पूर्ति केवल किसी अन्य निर्दिष्ट व्यवसाय की आय से ही की जा सकती है।

() घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व तथा रख-रखाव की क्रिया से हानि, आकस्मिक आय के किसी अन्य स्रोत अथवा किसी अन्य आय से पूरी नहीं की जा सकती।

() लॉटरी की जीत, वर्ग पहेली आदि आकस्मिक आय से किसी भी हानि को पूरा नहीं किया जा सकता।

(ii) पूँजी लाभ शीर्षक की हानि किसी भी अन्य शीर्षक की कर-योग्य आय से पूरी नहीं की जा सकती।

(iii) कर-निर्धारण वर्ष 2005-06 से व्यवसाय एवं पेशे शीर्षक की हानि का समायोजन वेतन शीर्षक की आय से नहीं किया जा सकता है।

3. मकान सम्पत्ति से आय शीर्षक की हानि किसी भी अन्य शीर्षक की आय से पूरी की जा सकती है। कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 से मकान सम्पत्ति से केवल दो लाख ₹ तक की हानि ही किसी अन्य शीर्षक की आय से पूरी/पूर्ति की जा सकती है।

4.() सामान्य व्यापार की हानि की पूर्ति (Set-off of Losses of General Business) [धारा 72]-सामान्य व्यापार से आशय सट्टे के व्यापार को छोड़कर शेष सभी प्रकार के व्यापारों से है। धारा 72 के अनुसार, सामान्य व्यापार की हानि की पूर्ति करदाता के उसी गत वर्ष की अन्य किसी भी शीर्षक की आय (वेतन से आय शीर्षक को छोड़कर) से की जा सकती है, अर्थात् सामान्य व्यापार की हानि सट्टा व्यापार के लाभों से पूरी की जा सकती है परन्तु सट्टे के व्यापार की हानियाँ किसी अन्य व्यापार के लाभों से पूरी नहीं की जा सकती।

यदि कोई व्यापार या पेशा गत वर्ष में बन्द कर दिया गया है तो बन्द किये गये व्यापार या पेशे की हानि को उसी वर्ष के अथवा अगले कर-निर्धारण वर्षों के अन्य व्यापार या पेशों के लाभों से पूरा किया जा सकता है।

अवैधानिक व्यापार की हानियाँ अवैधानिक व्यापार के लाभों से ही पूरी की जा सकती हैं। अवैधानिक व्यापार की हानियों को वैधानिक व्यापार के लाभों से पूरा नहीं किया जा सकता।

4.() सट्टे के व्यापार से हानि की पूर्ति (Loss from Speculation Business)-धारा 73 के अन्तर्गत सट्टे की हानि को केवल सट्टे के लाभों से ही पूरा किया जा सकता है, इसे गैर-सट्टे के लाभों से पूरा नहीं किया जा सकता, यद्यपि सट्टे का लाभ ‘व्यापार व पेशे के लाभ’ में ही आता है।

सट्टा व्यापार क्या है (What is a Speculation Business?).-धारा 43(5) के अनुसार सट्टे के सौदे का अभिप्राय उस सौदे से है जिसमें किसी वस्तु, स्टॉक व शेयर की खरीद व बिक्री का अनुबन्ध समय-समय पर और आखिरकार पूरा किया जाता है किन्तु वस्तु अथवा प्रतिभूति की सुपुर्दगी ली दी नहीं जाती है।

यदि कोई करदाता सट्टे के सौदे करता है जो व्यापारिक प्रकृति का है तो ऐसे व्यापार को अन्य व्यापार से अलग माना जायेगा तथा इसे सट्टे का व्यापार कहेंगे। यदि करदाता सट्टे व गैर-सट्टे के व्यापार हेतु एक ही खाते रखता हो, तो सट्टे के व्यवहारों को गैर-सट्टा व्यवसाय से पृथक् रखना चाहिए।

5. () निर्दिष्ट व्यापार की हानि की पूर्ति (Set off of Losses of Specified Business) [धारा 73A(2)1-धारा। 35AD में वर्णित निर्दिष्ट व्यवसाय की हानि की पूर्ति केवल किसी अन्य निर्दिष्ट व्यवसाय की आय से ही की जा सकती है, अन्य किसी व्यापार के लाभों से नहीं।

6. घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व व रख-रखाव से हानि (Loss from the Activity of Owning and Maintaining Race Horses)-धारा 74(A) के अन्तर्गत करदाता द्वारा घड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व व रख-रखाव से होने वाली हानि को इसी क्रिया से होने वाले लाभों से पूरा किया जा सकता है। इसे अन्य साधनों से आय के शीर्षक में आने वाली आय की अन्य मदों से पूरा नहीं किया जा सकता है, भले ही वह आय भी इसी शीर्षक में आती हो। संक्षेप में, घड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व व रख-रखाव से। होने वाली हानि को घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व व रख-रखाव से होने वाली आय से ही पूरा किया जा सकता है।

7. पूंजी हानियों की पूर्ति (Set-off of Capital Losses) न्य अल्पकालीन पूंजी हानि की पति किसी भी पूंजीगत लाभ (अल्पकालान या (Set-off of Capital Losses)-ये हानियाँ केवल पूँजी लाभ से ही पूरी की जा सकता हा लाका पूति किसी भी पूंजीगत लाभ (अल्पकालीन या दीर्घकालीन) से की जा सकती है, परन्तु दायकालान पूजागत हानि की पूर्ति अब केवल दीर्घकालीन पँजीगत लाभ से ही की जा सकती है।

8. लाटरा, क्रॉसवर्ड पजल्स. जआ. ताश का खेल अथवा शर्त आदि की हानि की पति (Set-oft of Losses of Dussword puzzles, Gambling. Cardgame or Betting etc.)-इन स्रोतों की हानि का न ता उसालात का अन्य आयस आर न हा अन्य किसी स्त्रोत/शीर्षक की आय से पूरा किया जा सकता है अर्थात इन हानियों का प्रति किसा भा जाम से नहीं की जा सकती है।

9. व्यक्तियों के समुदाय की हानियाँ (Set-off of Losses of AOP) –यदि इनकी हानियाँ इन्हीं की आय के किसी शीर्षक का आय से पूरी नहीं की जा सकती तो इनके सदस्यों को अपनी व्यक्तिगत आय से ये हानियाँ पूरी करने का अधिकार नहा है।।

10. फर्म की हानियों की पूर्ति (Set-off of Losses on Firm)-धारा 75 के अनुसार कोई साझेदारी फर्म पनी हानियों का पूति उपयुक्त वर्णित प्रावधानों के अनुसार स्वयं ही कर सकती है. परन्त कोई भी साझेदार अपने हिस्से की हानि अपना किसा। व्यक्तिगत आय से पूरा नहीं कर सकता है क्योंकि साझेदारों को फर्म से लाभ में प्राप्त होने वाला हिस्सा उनकी व्यक्तिगत आय में। शामिल नहीं किया जाता है। संक्षेप में, किसी साझेदार को फर्म के लाभं में प्राप्त हिस्सा चूँकि साझेदार के लिए कर-मुक्त होता है, इसलिए फर्म को होने वाली हानि की पूर्ति का भी उसे अधिकार नहीं है।

हानियों को आगे ले जाने से आशय

(Meaning of Carry Forward of Losses)

यदि गत वर्ष में हुई हानि की राशि विभिन्न शीर्षकों की आयों से भी अधिक है तो ऐसी दशा में हानि के आधिक्य को गत वर्ष में पूरा नहीं किया जा सकेगा। ऐसी न पूर्ण हुई (not set off] हानि को अगले वर्षों के विभिन्न शीर्षकों की आयों में से पूरा करने के लिए आगे ले जाया जायेगा। इसी को ‘हानि को आगे ले जाना’ (Carry forward of losses) कहा जाता है। आय-कर अधिनियम के अनुसार निम्नलिखित हानियों को ही आगे ले जाया जा सकता है

  1. मकान सम्पत्ति से हानि
  2. व्यवसाय अथवा पेशे की हानियाँ (सद्रा व्यापार की हानि सहित)
  3. पूजी हानियाँ
  4. घुड़दौड़ के लिए घोड़े रखने से हानि
  5. कृषि हानि

अन्य किसी भी हानि को आगे नहीं ले जाया जा सकता है। उपर्युक्त हानियों को आगे ले जाने सम्बन्धी आय-कर अधिनियम के प्रावधान निम्नानुसार है

1 मकानसम्पत्ति से हानि (Loss from House Property) (धारा 71B)-यदि ‘मकान सम्पत्ति से आय’ शीर्षक में कोई हानि है तथा ऐसी हानि को उसी कर-निर्धारण वर्ष में किसी अन्य शीर्षक की आय से पूरा नहीं किया जा सकता अथवा अन्य शीर्षक की आयों से दो लाख र की हानि की पूर्ति करने के बाद भी मकान सम्पत्ति से हानि का कुछ भाग पूर्ति होने से रह जाता है, तो ऐसी पूरी न हुई हानि की राशि को अगले 8 कर-निर्धारण वर्षों तक आगे ले जाया जा सकता है। आगे ले जाई गई मकान सम्पत्ति शीर्षक की हानि केवल मकान सम्पत्ति से आय शीर्षक की आय से ही पूरी की जा सकती है, अन्य किसी भी आय से नहीं।

2. व्यापार तथा पेशे के शीर्षक की हानि (Loss of Business and Profession Head)-व्यापार तथा पेशे शीर्षक की हानि को आगे ले जाकर निम्न प्रकार पूरा किया जा सकता है

() सामान्य व्यवसाय या पेशे से हानि (Loss from Non-speculative Business) (धारा 72) सामान्य व्यवसाय व पेशे से हानि को यदि सम्बन्धित वर्ष में धारा 70 एवं 71 के अन्तर्गत अपलिखित नहीं किया जा सका हो तो ऐसी हानियों को आगे ले जाकर अधिकतम अगले 8 कर-निर्धारण वर्षों तक केवल व्यापार तथा पेशे से आय शीर्षक से पूरा किया जा सकता है।

सामान्य व्यवसाय या पेशे से हानि के सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य महत्त्वपर्ण बिन्द

(i) जिस व्यापार की हानि है, उसका चालू रहना आवश्यक नहीं है।

(ii) सामान्य व्यापार या पेशे की हानि को व्यापार तथा पेशा शीर्षक की किसी भी आय से पूरा किया जा सकता है। इसमें सट्टा व्यवसाय की आय भी शामिल है।

(iii) व्यापार या पेशा जिसकी हानि को आगे लाया गया है, के स्वामित्व में परिवर्तन नहीं होना चाहिए। विक्रेता व्यापारी की हानि को क्रेता आगे ले जाकर अपलिखित नहीं कर सकता। परन्तु निम्नलिखित परिस्थितियों में स्वामित्व परिवर्तन पर भी हानियों को आगे ले जाकर अपलिखित किया जा सकता है

() उत्तराधिकार या वसीयत में प्राप्त व्यवसाय की दशा में:

() कम्पनियों के एकीकरण की दशा में;

() एकाकी व्यवसाय या फर्म के कम्पनी में परिवर्तन की दशा में:

() फर्म में यदि अन्त में एक ही साझेदार रह जाए।

(iv) यदि व्यवसाय धारा 33B की शर्तों के अनुसार किसी प्राकृतिक विपदा के कारण बन्द कर दिया गया है व ऐसे व्यवसाय का हानि को अपलिखित नहीं किया जा सकता है, तो ऐसी हानि को अपलिखित करने के लिए 8 वर्षों की अवधि का निर्धारण उस वर्ष से किया जाएगा जबकि व्यवसाय को पुनः प्रारम्भ या पुनर्गठित किया गया है न कि वास्तविक हानि वाले वर्ष से।

(v) यदि व्यवसाय को हानि होने के बाद बन्द कर दिया है व करदाता के पास अन्य कोई व्यवसाय नहीं है तो निश्चय ही करदाता ऐसी व्यावसायिक हानि को भविष्य में वसूल नहीं कर पाएगा। किन्तु यदि ऐसे बन्द व्यवसाय की पूर्व में कोई स्वीकृत व्यय या हानि की पुनः वसूली हो जाती है तो इसे भविष्य में जब भी प्राप्ति होगी, आय माना जाता है। इस आय में से जिस वर्ष व्यवसाय बन्द किया गया है उस वर्ष की व्यवसाय की हानि को घटाया जा सकता है, चाहे आठ वर्ष व्यतीत हो चुके हों बशर्ते ऐसी आय उसी व्यवसाय की हो जो बन्द हो चुका है।

(vi) व्यापारिक हानि की पूर्ति अशोधित ह्रास अथवा अशोधित वैज्ञानिक अनुसंधान सम्बन्धी छूट से पहले की जायेगी।

अशोधित ह्रास (Unabsorbed Depreciation)-जब किसी गतवर्ष में करदाता अपनी आय (व्यापार अथवा पेशे से आय या अन्य किसी शीर्षक की आय) से हास की पूरी कटौती नहीं ले पाता है तो ह्रास की बकाया रकम ‘अशोधित ह्रास’ कहलाती है। उदाहरण के लिए-गत वर्ष 2017-18 में करदाता आय-कर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार स्वीकृत ह्रास के रूप में 50,000₹ की छूट प्राप्त करने का अधिकारी है, लेकिन आय की अपर्याप्तता के कारण वह 16,000₹ की ही छूट ले पाता है। ऐसी स्थिति में वह हास की शेष राशि 34,000 ₹ अशोधित ह्रास के रूप में पूर्ति के लिए आगे ले जा सकता है।

अशोधित ह्रास के सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बिन्दु

(i) अशोधित ह्रास की पूर्ति सर्वप्रथम व्यापार की आय से की जाएगी।

(ii) यदि व्यापार की आय से अशोधित ह्रास की पूर्ति सम्भव नहीं है, तो चालू गत वर्ष में वेतन से आय शीर्षक को छोड़कर अन्य शीर्षक की आय से की जा सकती है।

(iii) इसके बाद भी यदि अशोधित हास की राशि बकाया रहती है, तो उसे भविष्य में पूर्ति के लिए आगे ले जा सकते हैं।

(iv) भविष्य में अशोधित ह्रास की पति वेतन से आय शीर्षक के अलावा किसी भी शीर्षक की आय से की जा सकती है।

(v) अशोधित ह्रास की पूर्ति के लिए कोई समय सीमा नहीं है।

(vi) यदि व्यापार बन्द भी हो गया है तो भी उसके अशोधित ह्रास की पूर्ति भविष्य में की जा सकती है।

अशोधित वैज्ञानिक अनुसन्धान के पूँजीगत व्यय एवं परिवार नियोजन के पूँजीगत व्यय

(Unabsorbed Capital Expenditure on Scientific Research and Family Planning)-

यदि लाभों की अपर्याप्तता के कारण करदाता वैज्ञानिक अनुसंधान के पूँजीगत व्यय तथा कम्पनी करदाता परिवार नियोजन के पूँजीगत व्यय अपलिखित न कर सका हो तो इन्हें सम्बन्धित वर्ष में अन्य आयों से अपलिखित किया जा सकता है। यदि अन्य आयों से यह पूर्णत: या अंशत: अपलिखित न हो सका हो तो ऐसे व्ययों को आगे ले जाकर अशोधित ह्रास की तरह पूर्ति की जाएगी।

आगे लाई गयी हानियों एवं कुछ अन्य व्ययों की पूर्ति करने का क्रम (Order of Set-off of Carry Forward Losses and Some Other Expenses)-व्यापारिक हानियों के अतिरिक्त अशोधित ह्रास, वैज्ञानिक अनुसन्धान कार्यों पर अशोधित पूँजीगत व्यय, परिवार नियोजन पर अशोधित व्यय यद्यपि ये व्यापार की हानियाँ नहीं हैं फिर भी इनको आगे ले जाकर अनिश्चित समय तक सर्वप्रथम व्यवसाय या पेशे के लाभों से, फिर भी हानियों के शेष रहने पर अन्य किसी भी शीर्षक की आय से (‘वेतन से आय’ शीर्षक को छोड़कर) निम्नलिखित क्रमानुसार पूर्ति की जा सकती है

(i) चालू वर्ष का ह्रास (Currentyear’s depreciation)

(ii) चालू वर्ष में वैज्ञानिक अनुसन्धान और परिवार नियोजन पर पूँजीगत व्यय (Current year capital expenditure on scientific research and family planning)

(iii) आगे लाई गई व्यापारिक या पेशे से हानियाँ (Brought forward business or profession losses)

(iv) अशोधित ह्रास (Unabsorbed depreciation)

(v) वैज्ञानिक अनुसन्धान पर अशोधित पूजी व्यय (Unabsorbed capital expenditure on scientific research)

(vi) परिवार नियोजन पर अशोधित व्यय (Unabsorbed expenditure on family planning) धारा 36(1)(ix)]

() सट्टे के व्यवसाय से हानि (Loss from Speculation Business) (धारा 73)-सट्टे के व्यापार की हानि की पति केवल सट्टे के व्यापार के लाभ से ही की जा सकती है। यदि सम्बन्धित गत वर्ष में किसी अन्य सट्टे के लाभों में से सट्टे के व्यापार की हानि की पर्ति न की जा सकी हो तो अगले चार कर-निर्धारण वर्षों तक इस हानि को आगे ले जाया जा सकता है और उसकी पर्ति सट्टे के लाभों से की जा सकती है।

नोट-जिस सट्टेबाजी के व्यवसाय में हानि हई है. उस हानि का समायोजन करने का व्यवसायम हानि हुई है, उस हानि का समायोजन करने के लिये यह जरूरी नहीं है कि उस व्यवसाय का आग क वाम जारी रखा जाये। (स) निर्दिष्ट व्यवसाय की हानि (Loss from Specified Business)-धारा 35AD म वाणताना हानि जो उसी वर्ष किसी अन्य निर्दिष्ट व्यवसाय के लाभों से पूरी न हो सके तो ऐसी पूरी न हुई हानि को आगामी वर्षों में किसाभा निर्दिष्ट व्यवसाय के लाभों से पूरा किया जा सकता है। ऐसी हानि को आगे ले जाकर पूरा करने के सम्बन्ध में कोई समय सामा। निर्धारित नहीं है।

3. पूंजी लाभ शीर्षक से हानि (Loss from Capital Gain Head) (धारा 74)-पूँजी लाभ शीर्षक (दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन) के अन्तर्गत हुई हानि की सम्बन्धित गत वर्ष के बाद के आठ गत वर्षों तक पृथक-पृथक् रूप से आगे ले जाकर दीर्घकालीन हानि की पूर्ति दीर्घकालीन लाभ से जबकि अल्पकालीन हानि की पर्ति दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन दोनों ही प्रकार का पूँजी लाभ से की जा सकती है।

4. घुड़दौड़ के घोड़े रखने से हानि (धारा ) यदि कोई करदाता घड़दौड़ के घोड़ों का स्वामी है और ऐसे घोड़े रखने से उसे यदि हानि होती है जिसकी पूर्ति उसी स्रोत से नहीं होती है तो ऐसी हानि को आगे ले जाकर इनकी पूर्ति इसी मद का। आय से की जा सकती है। जिस वर्ष यह हानि होती है उसके बाद के 4 वर्षों तक यह हानि आगे ले जायी जा सकती है।

नोट-यदि घुड़दौड़ के लिए रखे गये घोड़ों पर कोई पूँजीगत व्यय किया गया है तो इसे हानि मानकर आगे नहीं ले जाया जा सकता है।

4 A. कृषि हानि-यदि सम्बन्धित गत वर्ष में किसी कृषि हानि की पर्ति अन्य किसी कृषि आय से न की जा सकी हो तो। अगले आठ कर-निर्धारण वर्षों तक उक्त कृषि हानि को आगे ले जाकर कृषि आय से पूरा किया जा सकता है।

5. एकीकरण, अविलयन आदि की दशाओं में संचित हानि एवं अशोधित ह्रास की पूति (Provisions relating to carry forward and set-off of accumulated loss and unabsorbed depreciation allowance in amalgamation or demerger, etc.) [धारा 72A]-यदि किसी ऐसी कम्पनी का एकीकरण जो औद्योगिक उद्यम अथवा जहाज अथवा होटल की स्वामी हे, किसी दूसरी कम्पनी में किया जाता है अथवा बैकिंग नियमन अधिनियम, 1949 की धारा 5(c) में वर्णित बैंकिग कम्पनी का एकीकरण विशिष्ट बैंक में किया जाता है अथवा किसी सार्वजनिक क्षेत्र की वायुयान संचालित करने वाली कम्पनी का एकीकरण किसी अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की वायुयान संचालन का व्यवसाय करने वाली कम्पनी में किया जाता है तो एकीकृत होने वाली कम्पनी की संचित हानियाँ तथा अशोधित हास एकीकरण करने वाली कम्पनी की उस गत वर्ष की हानि एवं अशोधित ह्रास छूट माने जायेंगे जिस गत वर्ष में एकीकरण हुआ था तथा हानियों की पूर्ति तथा आगे ले जाने एवं ह्रास छूट सम्बन्धी अधिनियम की अन्य व्यवस्थाएँ उसी के अनुसार लागू होगी।

6. फर्म की हानियाँ (Losses of Firms) (धारा 75)-फर्म की आय पर केवल फर्म कर चुकाने के लिए उत्तरदायी है. फर्म की आय में साझेदारों का हिस्सा उनकी व्यक्तिगत आय में शामिल नहीं किया जाता है। अत: हानि की दशा में हानियों की पर्ति और उन्हें आगे ले जाने का अधिकार फर्म को होगा, साझेदारों को नहीं। साझेदारी फर्म की हानियों की पूर्ति और उनके आगे ले जाने के लिए सामान्य प्रावधान लागू होंगे।

6. फर्म के संगठन में परिवर्तन होने की दशा में हानियाँ (Losses Due to Change in Constitution of Firm’s Organisation) [धारा 78(1)]-निम्नलिखित में से किसी भी परिस्थिति में एक फर्म के संगठन में परिवर्तन हआ माना जायेगा फर्म के किसी एक या अधिक साझेदारों की मृत्यु अथवा अवकाश ग्रहण हो जाने पर. (ii) फर्म के एक या अधिक साझेदारों के दिवालिया हो जाने पर,

(iii) फर्म में एक या अधिक साझेदारों का प्रवेश होने पर,

(iv) साझेदारों के लाभ-विभाजन के अनुपात में परिवर्तन होने पर।।

भाग 18/11 के अनुसार, यदि किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण अथवा मृत्यु के कारण फर्म के संगठन में परिवर्तन होता है। वानिवत अथवा मृतक साझेदार के हानि के ऐसे भाग को जो उसके (साझेदार के) लाभ के भाग से अधिक है. आगे नहीं ले जा सकती। संक्षेप में, फर्म सेवा निवृत या मृतक साझेदार के हानि के भाग को आगे नहीं ले जा सकती।

8. फर्म के उतराधिकार के परिवर्तन की दशा में हानि को आगे ले जाना (Carry-forward of Losses in Case of 8. फर्म के उत्तराधिकार के परिवर्तन की दशा में हानि Change in the Succession of Firm)-धारा 78(2) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी व्यास के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी व्यापार अथवा पेशे में संलग्न है तथा किसी दूसरे व्यक्ति के व्यापार अथवा पेशे का उत्तराधिकारी के व्यापार अथवा पेश का उत्तराधिकारा (successor) बन जाता है जोकि वंशानुगत नहीं है तो वह उत्तराधिकारी पर्व व्यक्ति के स्वामित्व की अवधि की हानियों को आगे नहीं ले जा सकता।

अपवाद (Exception)-यदि किसी फम के उत्तराधिकार में वंशानुगत परिवर्तन होता है तो उत्तराधिकार में वंशानुगत परिवर्तन होता है, तो उत्तराधिकारी फर्म की ऐसी हानियों को आगे ले जाया जा सकता है जो उत्तराधिकार से पूर्व की है।

9. कुछ कम्पनियों की हानियों की पूर्ति तथा उन्हें आगे ले जाना (Set-off and Carry Forward Losses of Certain Companies) (धारा 79) यदि किसी ऐसी कम्पनी के अंशधारियों में गत वर्ष में परिवर्तन हो जाए जिसमें जनता का सारवान हित । न हो, तो ऐसी कम्पनी के द्वारा गत वर्ष से पूर्व किसी वर्ष में उठाई गई हानि को आगे ले जाकर गत वर्ष की आय से पूरा करने का। आधिकार नहीं है जब तक कि गत वर्ष के अन्तिम दिन उस कम्पनी का कम-से-कम 51 प्रतिशत मताधिकार उन्हीं व्यक्तियों के पास न । हो।

यदि गत वर्ष में किसी अंशधारी की मत्य हो जाने से मतदान के अधिकार में परिवर्तन हुआ हो अथवा किसी रिश्तेदार को। उपहार के रूप में अंशों का हस्तान्तरण हुआ हो तो धारा 79 के उपरोक्त प्रावधान लागू नहीं होंगे।

हानियों को अपलिखित करने की अनिवार्यता

(Compulsion to Set-off the Losses)

करदाता को उपर्युक्त वर्णित नियमों के आधार पर हानियों को अनिवार्य रूप से अपलिखित करना होगा। यदि वह आय होते हुए भी हानियों को अपलिखित नहीं करता है तो वह हानियों को उपलब्ध लाभों की सीमा तक अपलिखित करने के अधिकार को खो देगा।

हानियों का विवरण दाखिल (जमा अथवा पेश) करना

(Submission of Return of Losses)

करदाता हानियों को तभी आगे ले जाकर अपलिखित कर सकता है जब उसने हानि का विवरण धारा 139(1) के अन्तर्गत निर्धारित तिथि तक दाखिल (जमा) (Submit) कर दिया हो व इसे कर-निर्धारण अधिकारी द्वारा निर्धारित (assessed) या स्वीकार कर लिया गया हो।

निम्नलिखित परिस्थितियों में निर्धारित समय-सीमा में हानि का विवरण जमा करने की आवश्यकता नहीं होती है, अर्थात् यदि करदाता समय-सीमा के पश्चात् भी हानि विवरण प्रस्तुत करता है तो भी वह उसे आगे ले जा सकता है

1 मकान सम्पत्ति से हानि,

2. अशोधित हास।

हानियों की पूर्ति एवं उन्हें आगे ले जाने से सम्बन्धित आयकर प्रावधान एक दृष्टि में

(Income-tax Provisions Related to Set-off and Carry Forward of Losses At a Glance)

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(EXPECTED IMPORTANT QUESTIONS FOR EXAMINATION)

(Long Answer Theoretical Questions)

1 किसी भी शीर्षक की चाल वर्ष की हानि अन्य किसी शीर्षक की आय से परी की जा सकती है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए एवं इसके अपवाद बताइए।

Loss under one head of income can be set-off against the income under other heads during the same assessment year.” Explain the statement and state the exceptions.

2. कुल आय की गणना करने में हानियों की पूर्ति सम्बन्धी प्रावधानों की व्याख्या कीजिए।

Explain the provisions regarding set-off of the losses while computing the total income.

3. हानियों की पूर्ति से आप क्या समझते हैं ? हानियों की पर्ति से सम्बन्धित आय-कर अधिनियम, 1961 के प्रावधान समझाइए।

What do you understand by set-off of losses ? Discuss the provisions of set-off of losses as given in Income-tax Act, 1961.

4. हानियों के अपलेखन एवं उन्हें आगे ले जाने सम्बन्धी आय-कर अधिनियम के प्रावधानों का वर्णन कीजिए।

Discuss the provisions of Income tax Act relating to set-off and carry forward of losses.

5. हानियों की पूर्ति एवं उन्हें आगे ले जाने” से आप क्या समझते हैं ? सट्टे से हानि सम्बन्धी प्रावधानों को बताइये।

What do you mean by “set-off and carry forward of losses” ? State provisions relating to speculation losses.

6. कौन-कौन-सी हानियों को आगे ले जाया जाता है ? हानियों को आगे ले जाने एवं उनकी पूर्ति करने के प्रावधान बताइए।

Which losses can be carried forward ? Discuss the provisions of carried-forward and set-off of the losses.

7. अल्पकालीन और दीर्घकालीन पूँजी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में होने वाली हानियों के समायोजन तथा आगे ले जाने से सम्बन्धित आय-कर अधिनियम के प्रावधानों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

Discuss in detail the provisions of Income-tax Act regarding set-off and carry forward of losses relating to short-term and long-term capital assets.

8. निम्नलिखित हानियों की पूर्ति के सम्बन्ध में क्या प्रावधान है

What are the provisions regarding set-off of the following losses:

(i) दीर्घकालीन पूंजी हानियाँ (Long term capital losses),

(ii) अल्पकालीन पूँजी हानियाँ (Short term capital losses),

(iii) सट्टे की हानियाँ (Speculation losses),

(iv) लॉटरी तथा ताश के खेल का हानिया (Losses of lottery and card games)

9. कहानियों की पूर्ति एवं उन्हें आगे ले जाने से आप क्या समझते हैं? हानियों की पूर्ति एवं उन्हें आगे ले जाने से सम्बन्धित भारतीय आय-कर अधिनियम, 1961 के प्रावधान बताइए।

What do you understand by set-off and carry forward of losses? Explain the provisions of set-off and carry forward of losses as given in Income-tax Act, 1961.

10. भारतीय आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित हानियों की पूर्ति एवं आगे ले जाने से सम्बन्धित प्रावधानों का वर्णन कीजिए

Describe the provisions of Indian Income-tax Act relating to set-off and carry forward of the following losses:

() सट्टा व्यापार की हानिया (Losses from speculation business),

() गैर-सट्टा व्यापार को हानिया (Losses from non speculation business),

() फर्म की हानियाँ (Losses of firm),

() पूजी लाभ’ शीर्षक की हानियाँ (Losses under the head ‘Capital Gains)

लघु उत्तरीय सैद्धान्तिक प्रश्न

(Short Answer Theoretical Questions)

1 पूँजीगत हानियों की पूर्ति एवं उन्हें आगे ले जाने से सम्बन्धित आय-कर अधिनियम के प्रावधानों को समझाइए।

Explain the provisions of Income-tax Act for set-off and carry forward of capital losses.

2. मकान सम्पत्ति शीर्षक की हानियों की पूर्ति एवं आगे ले जाने सम्बन्धी प्रावधान समझाइए।

Explain the provisions regarding set-off and carry forward of losses under the head house property.

3. बन्द हुए व्यापार की हानि को कितने वर्षों तक तथा किस प्रकार आगे ले जाकर पूर्ति की जा सकती है ?

For how many years and how losses of a discontinued business can be carried forward and set-off?

4. आय के एक स्रोत से हानि की पूर्ति उसी शीर्षक में किसी अन्य स्रोत की आय से करना” इस नियम के अपवाद बताइए।

What are the exceptions of the rule that loss from a source of income can be set-off against income from any other sources under the same head of income”?

5. आय के एक शीर्षक की हानि दूसरे शीर्षक की आय से पूरी करना” इस नियम के अपवाद बताइए।

What are the exceptions of the rule that “loss from a head of income can be set-off against the income of another head” ?

6. अन्य साधनों से आय” शीर्षक के अन्तर्गत हानियों को आगे ले जाने के प्रावधानों को समझाइए।

Explain the provisions regarding carry-forward of losses under the head “Income from other Sources”.

7. यदि करदाता एक साथ कई हानियों को घटाने की माँग करता है तो उन हानियों को घटाने का क्या क्रम होगा? समझाइए।

If an assesses claims several loss together, what would be sequence to deduct those losses ? Explain.

8. अशोधित ह्रास का क्या आशय है और उसे आगे ले जाने सम्बन्धी नियम क्या हैं ?

What is the meaning of Unabsorbed Depreciation and what are the rules regarding carry forward of Unabsorbed Depreciation ?

अति लघु उत्तरीय सैद्धान्तिक प्रश्न

(Very Short Answer Theoretical Questions)

1 हानियों की पूर्ति से क्या आशय है ?

What do you mean by set-off of losses?

2. आय के स्रोत से आपका क्या आशय है ?

What do you mean by source of income?

3. हानियों के अन्तर-स्रोत समायोजन को समझाइए।

Explain inter-source adjustment of losses.

4. हानियों के अन्तर-शीर्षक समायोजन को समझाइए।

Explain inter-head adjustment of losses.

5. आय के स्रोत एवं आय के शीर्षक में अन्तर बताइये।

Distinguish between source of income and head of income.

 

 

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd Year Deemed Income Clubbing Aggregation Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 2nd year Deductions Gross Total Income Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 2nd Year Income Tax Law Accounts Notes