BCom 1st Year Economics Short run Long run Cost Curves Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Economics Short run Long run Cost Curves Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st year Business Economics Cost Concepts Study Material Notes in Hindi

अल्पकालीन और दीर्घकालीन लागत वक्र

(Short-run and Long-run Cost Curves)

लागतों के व्यवहार का अध्ययन और उनका रेखाचित्रीय प्रदर्शन एक अति महत्वपूर्ण विषय है। यह प्रबन्ध के उत्पाद सम्बन्धी निर्णयों का लागतों पर प्रभाव के आकलन में सहायक होता है। इसके अन्तर्गत विविध प्रकार की लागतों का उत्पादन-मात्रा के साथ सम्बन्ध की व्याख्य जाती है। लागत और उत्पादन के सम्बन्ध का आशय उत्पादन-मात्रा के परिवर्तन पर लागत में परिवर्तन की स्थिति के अध्ययन से होता है। यह अध्ययन प्रबन्ध को इष्टतम उत्पादन स्तर के निर्धारण तथा अनेक प्रबन्धकीय समस्याओं के हल करने में पर्याप्त सहायक होता है। अध्ययन की दृष्टि से लागत के सिद्धान्तों को परम्परावादी और आधुनिक दो भागों में बाँटा जाता है। इन दोनों सिद्धान्तों में अन्तर लागत-वकों के स्वरूप व आकार को लेकर है।

लागतों का परम्परागत सिद्धान्त

(Traditional Theory of Costs)

लागत-मात्रा सम्बन्ध पर विचार ‘अल्पकाल’ तथा ‘दीर्घकाल’ दो दृष्टिकोण से किया जाता हैंं ।

अल्पकाल में लागत-उत्पादन मात्रा सम्बन्ध अथवा औसत लागतों का व्यवहार

(Cost-Output Relationship or Behaviour of Average Costs in the Short-run)

अल्पकाल का आशय उस अवधि से होता है जिसमें फर्म के स्थिर उपकरणों और उसके व्यवसाय के आकार (अर्थात् उत्पादन क्षमता) में परिवर्तन सम्भव नहीं होता है। अतः इस कात में उत्पादन-मात्रा में परिवर्तन उत्पादन के वर्तमान स्थिर उपकरणों की अप्रयुक्त क्षमता तक ही सम्भव होता है। इस काल में कुछ आदान कारक (input factors) स्थिर होते हैं और कुछ परिवर्तनशील। उत्पादन-मात्रा के परिवर्तन पर विभिन्न अल्पकालीन लागतों के व्यवहार को स्पष्ट करने के लिये निम्नलिखित काल्पनिक सारणी की सहायता ली गई है :

अल्पकाल में लागतों के व्यवहार का अध्ययन दो प्रकार से किया जाता है :

(i) अल्पकालीन कुल लागतें

(ii) अल्पकालीन औसत या इकाई लागतें।

अल्पकालीन कुल लागतें (Short-run Total Costs)

एक फर्म में अल्पकालीन कल लागतें निम्न प्रकार की होती हैं:

कुल स्थिर लागतें (Total Fixed Costs): अल्पकाल में कुल स्थिर लागतें उत्पादन के शून्य स्तर से लेकर अधिकतम सम्भव स्तर तक एक समान या स्थिर रहती हैं। (पृष्ठ B103 पर दी गई तालिका में कालम 2 को देखिये) इन लागतों का उत्पादन की मात्रा से कोई सम्बन्ध नहीं होता वरन इनका सम्बन्ध फर्म के उद्योग में बने रहने या समयावधि से होता है। फर्म के अल्पकाल के लिये बन्द कर देने पर भी ये लागतें बनी रहती हैं। अल्पकालीन कले स्थिर लागत रेखा X-अक्ष के समानान्तर एक पड़ी रेखा होती है। (चित्र सं० 6.1 में देखिये)

कुल परिवर्तनशील लागतें (Total Variable Costs) : अल्पकाल में कुल परिवर्तनशील लागतों का उत्पादन की मात्रा से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। उत्पादन के बन्द कर देने पर ये लागतें नहीं रहती हैं। दूसरे शब्दों में, कल परिवर्तनशील लागते शुन्य उत्पादन पर शून्य होती हैं तथा उत्पादन की मात्रा के बढ़ने पर बढ़ती हैं तथा घटने पर घटती हैं। उत्पादन बढ़ाने पर प्रारम्भ में उत्पत्ति वृद्धि नियम की क्रियाशीलता के कारण कुल परिवर्तनशील लागतें घटती दर से बढ़ती हैं, फिर उत्पत्ति समता नियम की क्रियाशीलता के कारण समान दर से तथा अन्त में उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता के कारण बढ़ती दर से बढ़ती हैं। कुल परिवर्तनशील लागतों का यह व्यवहार पृष्ठ B 103 पर दी तालिका के कालम 3 में देखा जा सकता हैं। ये शून्य उत्पादन स्तर पर शून्य हैं तथा उत्पादन-मात्रा के बढ़ने पर बढती जाती हैं। परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की क्रियाशीलता के कारण ही अल्पकाल में कुल परिवर्तनशील लागत एक सरल रेखा न होकर एक वक्र होता है जो प्रारम्भ में घटती दर से, फिर स्थिर दर से और अन्त में बढ़ती दर से उत्पादन की मात्रा बढ़ता है। चित्र 6.1 में कुल परिवर्तनशील लागत वक्र को दर्शाया गया है।

कुल लागतें (Total Costs) : किसी संस्था में उत्पादित वस्तुओं की कुल संख्या पर जो लागत आती है, उसे कुल लागत कहते हैं। प्रो० दूली के शब्दों में, “किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा को उत्पन्न करने में किये जाने वाले सभी खर्चों के योग को कुल लागत कहते हैं।” यह कुल स्थिर लागतों और कुल परिवर्तनशील लागतों का योग होती हैं। शून्य उत्पादन की स्थिति में कुल लागत और कुल स्थिर लागत बराबर होती हैं तथा उसके पश्चात् अल्पकाल में कुल लागतें कुल परिवर्तनशील लागतों का योग होती हैं। शून्य उत्पादन की स्थिति में कुल लागतों का योग स्थिर लागत बराबर होती हैं तथा इसके पश्चात् अल्पकाल में कुल लागतें कुल परिवर्तनशील लागतों के अनुसार परिवर्तित होती हैं। अल्पकाल में कुल लागत वक्र और कुल परिवर्तनशील लागत वक्र उत्पादन के प्रत्येक बिन्दु पर एक दूसरे के समानान्तर रहते हैं तथा इन दोनों वक्रों के बीच की दूरी कुल स्थिर लागत के बराबर होती है।

अल्पकालीन और दीर्घकालीन लागत वक्र

अल्पकालीन औसत लागतें (Short-run Average Costs)

इस काल में लागत-उत्पादन मात्रा के सम्बन्धों का अध्ययन औसत स्थिर लागत, औसत परिवर्तनशील लागत और औसत कुल लागत के सन्दर्भ में किया जाता है।

औसत स्थिर लागत और उत्पादन-मात्रा (Average Fixed Cost and Output) : औसत स्थिर लागत ज्ञात करने के लिये कुल स्थिर लागतों में उत्पादन-मात्रा का भाग दिया जाता है। अल्पकाल में कुल स्थिर लागत तो स्थिर रहती है किन्तु औसत स्थिर लागत उत्पादन की मात्रा की प्रत्येक वृद्धि के साथ घटती जाती है तथा उत्पादन मात्रा में गिरावट के साथ बरती जाती है। संक्षेप में, औसत स्थिर लागत और उत्पादन-मात्रा के बीच विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है तथा यह सभी प्रकार के व्यवसायों में समान रूप से लागू होता है। औसत स्थिर लागत वक्र सदैव बायें से दायें नीचे की ओर झुका हुआ रहता है।

औसत परिवर्तनशील लागत और उत्पादन मात्रा (Average Variable Cost and Output) : कुल परिवर्तनशील लागत में सम्बन्धित उत्पादन-मात्रा का भागफल औसत परिवर्तनशील लागत कहलाता है। उत्पादन में वृद्धि होने पर प्रारम्भ में औसत परिवर्तनशील लागत घटती है और फिर एक सीमा (आदर्श उत्पादन क्षमता) के पश्चात यह बढ़ने लगती है। इसका कारण यह है कि एक स्थिर संयंत्र पर जब परिवर्तनशील कारकों की अधिकाधिक इकाइयाँ लगाते जाते हैं तो प्रारम्भ में स्थिर साधनों की उत्पादन-शक्ति का अधिक अच्छी तरह से प्रयोग होने के कारण आदान कारकों (Input Factors) की कुशलता बढ़ती है जिसके फलस्वरूप औसत परिवर्तनशील लागत घटती है किन्तु संयंत्र की आदर्श उत्पादन क्षमता के पश्चात् विभिन्न कारणों से इन कारकों की कुशलता गिरने लगती है जिसके फलस्वरूप औसत परिवर्तनशील लागत बढ़ने लगती है। पृष्ट B 103 पर दी गयी सारणी के कालम 7 से स्पष्ट है कि चार इकाई तक AVC घट रही है किन्तु इसके पश्चात् यह बढ़ रही है। औसत परिवर्तनशील लागत वक्र ‘U’-आकृति लिये होता है।

औसत कुल लागत या औसत लागत (Average Total Cost or Average Cost) : औसत कुल लागत ज्ञात करने के लिये कुल लागत में कुल उत्पादन-मात्रा का भाग दिया जाता है। इसे औसत स्थिर लागत और औसत परिवर्तनशील लागत का योग करके भी ज्ञात किया जा सकता है। उत्पादन-मात्रा के बढ़ने पर प्रारम्भ में औसत कुल लागत घटती है और फिर एक सीमा के पश्चात् यह बढ़ने लगती है। चूँकि औसत कुल लागत औसत स्थिर लागत और औसत परिवर्तनशील लागत का योग होती है तथा उत्पादन के बढ़ने पर औसत स्थिर लागत लगातार घटती जाती है जबकि औसत परिवर्तनशील लागत प्रारम्भ में (लागत हास नियम की क्रियाशीलता के कारण) तो घटती है लेकिन बाद में (लागत वृद्धि नियम के क्रियाशील होने पर) बढ़ने लगती है, अतः जब तक औसत परिवर्तनशील लागत घटती है तब तक तो औसत कुल लागत भी घटेगी किन्तु जब औसत परिवर्तशील लागत बढ़ती है तो औसत कुल लागत तब तक घटती जायेगी जब तक कि औसत परिवर्तनशील लागत की वृद्धि औसत स्थिर लागत की कमी से कम होती है और जब इसकी वृद्धि औसत स्थिर लागत की कमी से अधिक हो जाती है तो औसत कुल लागत में भी वृद्धि होती जाती है। जिस उत्पादन स्तर पर औसत परिवर्तनशील लागत की वृद्धि औसत स्थिर लागत की कमी के बराबर हो, वही फर्म का इष्टतम उत्पादन-स्तर अथवा न्यूनतम लागत उत्पादन-स्तर होता है। किन्तु ध्यान रहे कि आदर्श उत्पादन स्तर पर औसत कुल लागत न्यूनतम होती है न कि औसत परिवर्तनशील लागत। इस बिन्दु पर औसत परिवर्तनशील लागत अपने न्यूनतम स्तर से अधिक होगी। इष्टतम उत्पादन-स्तर के पश्चात् उत्पादन में वृद्धि से औसत परिवर्तनशील लागत की वृद्धि औसत स्थिर लागत की गिरावट से अधिक होती है जिसके फलस्वरूप औसत कुल लागत बढ़ने लगती है। इन निष्कर्षों को पृष्ठ B 103 पर दी गयी सारणी के कालम 8 से प्रमाणित किया जा सकता है। औसत कुल लागत वक्र ‘U’-आकार का होता है।

सीमान्त लागत, औसत कुल लागत और औसत परिवर्तनशील लागत का सम्बन्ध

(Relationship between MC, ATC and AVC)

पृष्ठ B 103 पर दी हुई सारणी के विश्लेषण से स्पष्ट है कि इन लागतों के बीच निम्न सम्बन्ध पाये जाते हैं :

(1) उत्पादन में वृद्धि होने पर प्रारम्भ में औसत कुल लागत और सीमान्त लागत दोनों में कमी आती है किन्तु औसत कुल लागत की तुलना सीमान्त लागत में अधिक तेजी से गिरावट आती है। अतः जब तक औसत कुल लागत घटती रहेगी, सीमान्त लागत औसत कुल लागत से कम ही रहेगी। इसीलिये ही प्रारम्भ में ATC वक्र MC वक्र के ऊपर रहता है। पृष्ठ B 109 पर चित्र 6.2 में देखिये।

(2) जब तक सीमान्त लागत, औसत कुल लागत से कम रहती है तब तक औसत कल लागत घटती है किन्तु जब सीमान्त लागत, औसत लागत से अधिक हो जाती है तब औसत कुल लागत बढ़ने लगती है।

(3) जब औसतं कुल लागत बढ़ने लगती है तो सीमान्त लागत भी बढ़ती है किन्तु सीमान्त लागत की वृद्धि औसत कुल लागत से अधिक तीव्र होगी। यही कारण है कि औसत कुल लागत के बढ़ने पर सीमान्त लागत वक्र औसत कुल लागत वक्र के ऊपर रहता है। पृष्ठ B 109 पर चित्र संख्या 6.2 पर LT बिन्दु के बाद देखिये।

(4) सीमान्त लागत के पहले घटने और बाद में बढ़ने की दशा में यह उस बिन्दु पर औसत कुल लागत के बराबर होगी जिस पर औसत कुल लागत निम्नतम हो। दूसरे शब्दों में, उस. बिन्दु पर जहाँ सीमान्त लागत औसत कुल लागत के बराबर होती है, वहाँ औसत कुल लागत न्यूनतम होती है। चित्र 6.2 से स्पष्ट है कि ऐसा LT बिन्दु पर हो रहा है।

(5) शून्य उत्पादन स्तर पर औसत परिवर्तनशील लागत शून्य होती है लेकिन सीमान्त लागत अनिश्चित (indeterminate) होती है।

(6) जब सीमान्त लागत, औसत परिवर्तनशील लागत से कम होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत घटती है तथा जब सीमान्त लागत, औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत बढ़ती है।

(7) सीमान्त लागत के निम्नतम बिन्दु पर औसत परिवर्तनशील लागत निम्नतम होती है।

(8) उत्पादन में वृद्धि पर औसत कुल लागत में वृद्धि का बिन्दु सदैव ही औसत परिवर्तनशील लागत में वृद्धि के बिन्दु से बाद में आता है। इसका कारण यह है कि जब औसत परिवर्तनशील लागत अपने निम्नतम बिन्दु पर पहुँचती है तब औसत स्थिर लागत के नीचे गिरते जाने के कारण औसत कुल लागत का निम्नतम बिन्दु बाद में आता है।

(9) जब औसत कुल लागत और औसत परिवर्तनशील लागत दोनों बढ़ने लगते हैं तो इनमें एक-दूसरे के बहुत कुछ समान आने की प्रवृत्ति पायी जाती है किन्तु ये कभी भी. एक । दूसरे के बिल्कुल बराबर नहीं आ सकते क्योंकि औसत स्थिर लागत कभी शून्य नहीं हो सकती।

अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन औसत लागत वक्रों में सम्बन्ध

(Relation between Short-run and Long-run Average Cost Curves)

1 SAC वक्र का सम्बन्ध केवल एक संयंत्र की कीमत से होता है जबकि LAC वक्र बहुत से SAC वक्रों के आधार पर बनाया जाता है।

2. यद्यपि LAC और SAC दोनों ही वक्र U-आकार के होते हैं किन्तु LAC वक्र SAC वक्र की तुलना में अधिक चपटा (flatter) तथा कम उग्र (less pronounced) होता है। दूसरे शब्दों में, दीर्घकालीन लागतें अल्पकालीन लागतों की तुलना में कम दर से घटती-बढ़ती हैं।

3. चूँकि LAC वक्र सभी SAC वक्रों को स्पर्श करता है, काटता नहीं है, अतः LAC कभी भी SAC से अधिक नहीं हो सकती है।

LAC वक्र की प्रबन्धकीय उपयोगिता

(Managerial Usefulness of LAC Curve)

प्रबन्धकीय निर्णयों में LAC वक्र की भूमिका अति महत्वपूर्ण होती है। इस वक्र के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं :

(अ) उत्पादन के सर्वोत्तम आकार के निर्धारण में सहायक : इस वक्र की सहायता से प्रबन्ध उस उत्पादन-मात्रा को निर्धारित कर सकता है जिस पर उसकी औसत उत्पादन लागत न्यूनतम हो। ऐसा LAC वक्र के निम्नतम बिन्दु पर होता है।

(ब) संयंत्र के सर्वोत्तम आकार के निर्धारण में सहायक : जब किसी फर्म में कोई संयंत्र लगाना हो अथवा किसी पुराने संयन्त्र का विस्तार करना हो तो उस समय प्रबन्ध इस वक्र की सहायता से सर्वोत्तम आकार के संयन्त्र का निर्धारण करता है। ध्यान रहे कि दीर्घकाल में एक फर्म का हित एक दिये हुये संयन्त्र से न्यूनतम लागत पर उत्पादन प्राप्त करना नहीं होता वरन् उसका हित तो नियोजित उत्पादन-मात्रा को न्यूनतम लागत पर उत्पादन करने में पूरा होता है। यद्यपि एक फर्म के लिये अधिकतम लाभप्रद उत्पादन-मात्रा उसके अनुकूलतम उत्पादन बिन्दु पर होती है किन्तु व्यवहार में उसे अपने उत्पादन को माँग के अनुरूप समायोजित करने के लिये अनुकूलतम उत्पादन स्तर से कम या अधिक उत्पादन करना पड़ता है। इस उत्पादन-मात्रा के लिये उसके समक्ष विभिन्न आकार के वैकल्पिक संयंत्र हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में LAC वक्र सर्वोत्तम आकार के संयंत्र के चुनाव में प्रबन्ध की सहायता करता है। यह चुनाव निम्न प्रकार से होगा :

(1) अनुकूलतम उत्पादन स्तर से कम उत्पादन करना : इस स्थिति में फर्म के लिये अधिक मितव्ययी यह होगा कि वह एक छोटे आकार के संयंत्र पर उसके न्यूनतम लागत बिन्दु से अधिक उत्पादन (अर्थात् संयंत्र का अति प्रयोग) न करके किसी एक बड़े संयंत्र पर उसके न्यनतम लागत बिन्दु से कम उत्पादन (अर्थात् संयंत्र का कम प्रयोग) करे। ऐसा इसलिये होता है कि अनुकूलतम उत्पादन-स्तर से पूर्व फर्म को बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतें प्राप्त होती हैं। जिससे फर्म में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है। चूँकि एक बड़े संयंत्र पर एक छोटे संयंत्र की तलना में बड़े पैमाने के उत्पादन की अधिक बचतें प्राप्त होती हैं, इसलिये बड़े संयंत्र पर औसत उत्पादन लागत छोटे संयंत्र की अपेक्षा कम आती है। इसलिये इस स्थिति में बड़े आकार का संयंत्र अधिक मितव्ययी रहता है।

 (2) अनुकूलतम उत्पादन स्तर से अधिक उत्पादन करना : इस स्थिति में फर्म के लिये एक बड़े संयंत्र के उसके न्यूनतम लागत बिन्दु से कम उत्पादन करने (अर्थात् संयंत्र के कम प्रयोग) के स्थान पर एक कुछ छोटे संयंत्र का उसके न्यूनतम लागत बिन्दु से अधिक उत्पादन (अर्थात् संयंत्र का अति प्रयोग) अधिक मितव्ययी होगा। ऐसा इसलिये होता है कि अनुकूलतम उत्पादन स्तर के पश्चात् बड़े पैमाने के उद्योग के अपव्यय बढ़ जाते हैं और फर्म में उत्पत्ति हास नियम लाग हो जाता है। चूँकि एक छोटे आकार के संयंत्र पर अपव्यय बड़े आकार के संयंत्र की तुलना में कम होते हैं, इसलिये इस स्थिति में छोटे आकार के संयंत्र की औसत उत्पादन लागत बड़े आकार के संयंत्र की तुलना में कम रहती है और वह अधिक मितव्ययी रहता है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण : बराबर Y में दिये चित्र 6.5 में फर्म को .A, B, C AID और D क्रमशः बढ़ते हुए आकार के चार .. संयंत्रों के बीच सर्वश्रेष्ठ संयंत्र का चुनाव : करना है। इन संयंत्रों के SAC वक्र क्रमशः AAI, BB1, CC, और DD, हैं। इन 8 वक्रों से स्पर्श करता हुआ खींचा गया वक्र LAC वक्र है। चित्र में फर्म की दीर्घकालीन । न्यूनतम औसत लागत PQ है। अतः 0Q फर्म का अनुकूलतम उत्पादन स्तर हुआ।

यद्यपि फर्म के लिये यही उत्पादन मात्रा (अर्थात् 00) सर्वोत्तम है किन्तु यदि फर्म के उत्पाद की बाजार में माँग अनुकूलतम उत्पादन स्तर OQ से कम होने के कारण उसे अपना उत्पादन घटाकर OQ करना पड़ता है तो इस स्थिति में फर्म के लिये A और B दो वैकल्पिक संयंत्र हैं। यहाँ पर फर्म के लिये A संयंत्र के अति प्रयोग के स्थान पर B संयंत्र का कम प्रयोग अधिक मितव्ययी रहेगा। जैसा कि उपर्युक्त चित्र से स्पष्ट है कि A संयंत्र पर OQ, उत्पादन-मात्रा की औसत लागत SQ है जबकि B संयंत्र पर यह SQ. है। चूंकि SQL से SQ. कम है, अतः इस उत्पादन-मात्रा के लिये B संयंत्र अधिक मितव्ययी होगा, यद्यपि इस संयंत्र की न्यूनतम उत्पादन लागत OQ, मात्रा से कुछ अधिक उत्पादन करने पर आती है।

इसी तरह यदि फर्म को उत्पादन OQ से बढ़ाकर OQ2 करना पड़ता है तो उसके लिये इस उत्पादन मात्रा के लिये उपलब्ध C और D संयंत्रों में से D संयंत्र के कम प्रयोग के स्थान पर C संयंत्र का अति प्रयोग अधिक मितव्ययी होगा। उपरोक्त चित्र में C संयंत्र पर OQ, मात्रा की औसत उत्पादन लागत TQ2 है जबकि D संयंत्र पर इस मात्रा की औसत उत्पादन लागत T,Q, है। चूंकि TQ, से TIQ, अधिक है। अतः इस स्थिति में C संयंत्र का अति प्रयोग अधिक मितव्ययी रहेगा।

संक्षेप में, दीर्घकालीन अनुकूलतम (अथवा इष्टतम) स्तर से कम उत्पादन के लिये यह अधिक लाभदायक होगा कि कुछ बड़े संयंत्र को उस उत्पादन क्षमता से कम प्रयोग किया जाय जिस पर उत्पादन न्यूनतम लागत पर होता है। इसके विपरीत दीर्घकालीन इष्टतम स्तर से

अधिक उत्पादन के लिये यह लाभदायक होगा कि एक छोटे संयंत्र को अधिक क्षमता पर प्रयोग किया जाये।

दीर्घकालीन औसत लागत वक्र को नियोजन वक्र कहे जाने के कारण

(Reasons of Calling LAC Curve a Planning Curve)

LAC वक्र को एक नियोजन वक्र भी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि यह वक्र प्रबन्ध को संयंत्र के सर्वोत्तम आकार के नियोजन में सहायता करता है। यह वक्र उत्पादन तथा। लागत सम्बन्धी भविष्य की सर्वश्रेष्ठ सम्भावनायें प्रदर्शित करता है। यदि फर्म का सम्भावित । उत्पादन उसके दीर्घकालीन इष्टतम स्तर के समान है तो फर्म न्यूनतम उत्पादन लागत बिन्दु वाले संयंत्र को ही चुनेगी किन्तु यदि सम्भावित उत्पादन उसके दीर्घकालीन इष्टतम स्तर से कम है तो वह छोटे व बड़े दो वैकल्पिक संयंत्रों में से एक बड़े संयंत्र को चुनेगी। इसके विपरीत यदि सम्भावित उत्पादन दीर्घकालीन इष्टतम स्तर से अधिक है तो वह दो वैकल्पिक संयंत्रों में से एक छोटे संयंत्र को चुनेगी। इस प्रकार LAC वक्र संयंत्र के सर्वोत्तम आकार के नियोजन में प्रबन्ध की सहायता करता है। इसीलिये इसे नियोजन वक्र कहते हैं।

 (II) दीर्घकालीन सीमान्त लागत और लागत वक्र

(Long-run Marginal Cost and Cost Curve)

दीर्घकाल में सभी लागतें परिवर्तनशील होती हैं। अतः दीर्घकाल में सीमान्त लागत से अभिप्राय उस वृद्धि से होता है जो एक इकाई अधिक उत्पन्न करने से कुल लागत में होता है। सीमान्त लागत रेखा अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। अतः इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना अधिक महत्वपूर्ण है। LMC रेखा LTC रेखा से सीधे तौर पर प्राप्त की जा सकती है क्योंकि किसी उत्पादन मात्रा पर LMC रेखा उत्पादन की उस मात्रा पर TC रेखा के ढाल (slope) के बराबर होती है। इसके अतिरिक्त LMC रेखा LAC रेखा से भी प्राप्त की जा सकती है। दीर्घकाल में भी दीर्घकालीन सीमान्त लागत और दीर्घकालीन औसत लागत में वही सम्बन्ध होता है जो अल्पकाल में अल्पकालीन सीमान्त लागत और अल्पकालीन औसत लागत में होता है।

LMC रेखा की रचना SMC रेखाओं से की जाती है। SMO, THE SMC, LMC. से स्पष्ट किया गया है। चित्र में तीन संयंत्रों से सम्बन्धित तीन अल्पकालीन लागत वक्र क्रमशः SAC, SAC, तथा SAC, तथा तत्सम्बन्धी SMC वक्र SMC, SMC, तथा SMC, हैं। LMC वक्र की रचना SMC वक्रों से की जाती है। यह SMC वक्रों के स्पर्शता के बिन्दुओं से X-अक्ष पर खींची गई लम्बवत रेखाओं के काटने के बिन्दुओं को मिलाने से की जाती है। चित्र में अल्पकालीन लागत वक्रों को स्पर्श करता हुआ दीर्घकालीन औसत लागत वक्र LAC है जोकि SAC1, SAC, और SAC को क्रमशः A, E और C बिन्दुओं पर स्पर्श करता है। दीर्घकालीन उत्पादन नियोजन में ये बिन्दु ही उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर उत्पादन की मात्रा निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिये यदि हम इन स्पर्श बिन्दुओं से X-अक्ष पर लम्ब डालते हैं तो इनसे सम्बन्धित उत्पादन मात्रायें क्रमशः OQ1, OQ2 तथा OQ3 हैं। AQA लम्ब SMC को M बिन्दु पर काटता है। इसका आशय यह हुआ कि OQ, उत्पादन मात्रा के लिये LMC, MQहै। यदि उत्पादन की मात्रा बढ़कर OQ हो जाती है तो LMC, EQ, होगी। इसी तरह OQ उत्पादन मात्रा के लिये LMC. NO. होगी। M, E और N बिन्दुओं को मिलान से बना वक्र LMC वक्र होगा जो कि दीर्घकाल में सीमान्त लागत का व्यवहार दर्शाता है। SMC वक्रों की तरह LMC वक्र भी U-आकार का ही होता है। LAC वक्र के SAC वक्र की स्पर्शता के बिन्दु की उत्पादन मात्रा पर LMC और SMC एक दूसरे के बराबर होते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि LMC वक्र LAC. वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर काटता है। दूसरे शब्दों में, अनुकूलतम उत्पादन स्तर पर (अर्थात चित्र में E बिन्दु पर) LAC, LMC, SAC और SMC सभी एक-दूसरे के बराबर होती हैं।

LAC और LMC में वही सम्बन्ध होता है जो कि AC और MC में होता है। LMC वक्र LAC वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर काटता है। दूसरे शब्दों में, जब LAC गिरता हुआ है तब LMC < LAC; जब LAC चढ़ता हुआ है तब LMC > LAC तथा जब LAC न्यूनतम है तब LMC = LACI

लागतों का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Costs) (Dramme

लागतों के परम्परागत सिद्धान्त की यह मान्यता है कि प्रत्येक संयंत्र उत्पादन के केवल एक अकेले स्तर पर ही अनुकूलतम होता है तथा इस स्तर से कम या अधिक उत्पादन पर प्रति इकाई औसत लागत बढ़ जाती है। यदि वस्तु की माँग बढ़ती है तो बढ़ी हुई माँग को नीची लागत पर पूरा करने के लिये दीर्घकाल में एक बड़े आकार का नया संयंत्र लगाया जा सकता है किन्तु यह संयंत्र भी केवल एक निश्चित उत्पादन स्तर के लिये ही अनुकूलतम होगा। इस प्रकार परम्परागत लागत सिद्धान्त संयंत्रों की लोचहीनता की मान्यता पर आधारित है। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने परम्परागत सिद्धान्त की इस प्रकार की मान्यता पर सैद्धान्तिक और आनुभाविक दोनों ही आधारों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। उनका मानना है कि अनेक कारणों से फर्म के संयंत्र में निर्मित संचित क्षमता (built-in reserve capacity) रखना आवश्यक हो गया है तथा जिसके फलस्वरूप लागत वक्रों की आकृतियाँ भी बदल जाती हैं।

लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत अल्पकालीन लागत वक्र

(Short-run Cost Curves Under Modern Theory of Costs)

परम्परागत सिद्धान्त की भाँति अल्पकालीन औसत लागत को औसत स्थिर लागत और औसत परिवर्तनशील लागत दो भागों में विभाजित किया जाता है।

औसत स्थिर लागत वक्र (Average Fixed Cost Curve or AFC Curve) संचित क्षमता की दशा में औसत स्थिर वान लागत वक्र अधोमुखी ढाल वाला (downward sloping) होता है. जैसा कि दर्शाया गया है। तथापि फर्म जमा Outbute के बृहत्तम क्षमता संयंत्र द्वारा निर्धारित उत्पादन के अल्पकालीन विस्तार की एक निरपेक्ष सीमा रहती है (चित्र में B परिसीमा)। फर्म के पास लघु आकार की मशीनरी के। विस्तार की सीमा चित्र में A परिसीमा द्वारा दर्शायी गयी है। अल्पकाल में एक फर्म अधिक। श्रम घण्टे काम कराकर मशीनरी क्षमता का B परिसीमा तक विस्तार कर सकती है जिसे परिसीमा A और B के बीच खण्डित रेखा द्वारा दर्शाया गया है। यह विस्तार एक अतिरिक्त छोटी मशीन खरीदकर भी किया जा सकता है किन्तु उस स्थिति में AFC वक्र ऊपर उठकर । बिन्द पर पहँचकर फिर गिरेगा जैसा कि चित्र में cd वक्र द्वारा दर्शाया गया है। अत: एक । सजग और समझदार व्यवसायी आज की आवश्यकता के लिये न्यूनतम लागत पर उत्पादन देने वाले संयंत्र के स्थान पर ऐसा संयंत्र क्रय करना चाहेगा जिसमें वर्तमान आवश्यकतान उत्पादन के न्यूनतम लागत पर उत्पादन के साथ-साथ भावी उत्पादन-विस्तार की अधिकतम सम्भव लोच भी हो।

औसत परिवर्तनशील लागत वक्र (Average Variable Cost Curve or AVC Curve) जॉर्ज स्टिगलर के अनुसार AVC वक्र U-आकृति वाला न होकर एक प्लेट जैसी आकृति वाला (saucer-shaped) होता है जिसमें उत्पादन के एक क्षेत्र में समतल प्रसार (flat stretch) किया जा सकता है। AVC वक्र का यह समतल प्रसार संयंत्र की निर्मित संचित क्षमता (built-in reserve capacity) दर्शाता है। संचित क्षमता का आशय यह है कि फर्म के उत्पादन विस्तार की दशा में इस क्षेत्र के अन्तर्गत AVC स्थिर रहेगी।

चित्र सं० 6.8 से स्पष्ट है कि स्थिर साधन के अच्छे उपयोग, कच्ची सामग्री के क्षय में कमी और श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण के कारण परिवर्तनशील साधन के की उत्पादकता में वृद्धि के फलस्वरूप AVC वक्र उत्पादन विस्तार की प्रारम्भिक अवस्था में (चित्र में OQ, मात्रा तक) गिरता है; इसके पश्चात् उत्पादन की संचित क्षमता तक यह समतल रहता है तथा इस सीमा के पश्चात् उत्पादन विस्तार की स्थिति में यह वक्र ऊपर को चढ़ता है। ऐसा लम्बे कार्य घण्टे, स्थिर साधनों के अति प्रयोग, अधिक अधि-समय कार्य भुगतान, संसाधनों के क्षय, मशीनरी के लम्बे समय तक लगातार प्रयोग के कारण मशीनरी का बार-बार ध्वस्त होना आदि कारणों से परिवर्तनशील साधन की ह्रासमान सीमान्त उत्पादकता का परिणाम है। चित्र में प्रदर्शित QAQ, संचित क्षमता (Reserve Capacity) फर्म की परिचालन या उत्पादक क्षमता को लोच प्रदान करती है। अतः एक अकेले उत्पादन स्तर के स्थान पर इसमें उत्पादन का एक बड़ा क्षेत्र रहता है. जिसमें उत्पादन अनुकूलतम रहता है। इस पूरे क्षेत्र में AVC समान रहती है तथा सामान्यतया संयंत्र का उपयोग इसी क्षेत्र में होता है।

औसत लागत वक्र (Average Cost Curve or AC Curve) औसत लागत वक्र की रचना उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर AFC और AVC को जोड़कर की जाती है। प्रारम्भ में AVC तथा AFC दोनों गिरते हैं, अतः इस अवस्था में  (चित्र 6.9 में OQ, उत्पादन स्तर तक) AC वक्र तेजी से गिरता है। OQ, और OQ. उत्पादन स्तर के बीच संचित क्षमता के कारण AVC वक्र स्थिर रहता है किन्तु AFC वक्र में। लगातार गिरावट रहती है। अतः इस क्षेत्र में AC वक्र गिरता है किन्तु यहाँ गिरावट की गति धीमी होती है। संचित क्षमता (00) के बाद भी AC चक्र में गिरावट बनी रहेगी बशर्ते कि AFC की गिरावट AVC की वृद्धि से अधिक है। चित्र में यह 00, उत्पादन स्तर तक है। OQ, मात्रा की अनितम इकाई के लिये AVC की वृद्धि AFC की गिरावट के बराबर है, अतः यह AC वक्र का न्यूनतम लागत बिन्दु होगा। इस बिन्दु के पश्चात् AVC वक्र की चढ़त AFC की गिरावट से अधिक है, अतः इस बिन्द के पश्चात AC वक्र ऊपर को चढ़ेगा। ध्यान रहे कि परम्परागत सिद्धान्त की भाँति आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत भी AC वक्र का। न्यूनतम बिन्दु AVC वक्र के न्यूनतम बिन्दु की दायीं ओर है।

सीमान्त लागत वक्र पहले AVC वक्र और फिर AC वक्र को उनके न्यूनतम बिन्दुओं पर काटता है। जब तक MC वक्र AVC वक्र और AC वक्र के नीचे रहता है तब तक यह वक्र इन्हें नीचे की ओर खींचता है। जब MC वक्र AVC वक्र और AC वक्र के ऊपर होता है तो यह उन्हें ऊपर की ओर खींचता है। AVC वक्र के समतल प्रसार के सम्पूर्ण उत्पादन क्षेत्र में MC वक्र AVC वक्र से मिल जाता है अर्थात् इस पूरे क्षेत्र में AVC और MC बराबर होते हैं। AVC वक्र के समतल भाग के पश्चात MC वक्र AC वक्र को नीचे से उसके न्यूनतम बिन्दु M पर काटता हुआ ऊपर चढ़ता जाता है।

AFC वक्र के लगातार गिरते जाने के कारण AVC वक्र और AC वक्र के बीच दूरी कम होती जाती है किन्तु AVC वक्र कभी भी AC वक्र से मिल नहीं सकता क्योंकि AFC हमेशा धनात्मक रहती है।

लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत दीर्घकालीन औसत लागत वक्र

(Long-run Average Cost Curves Under Modern Theory of Costs)

आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि व्यवसाय जगत में प्राविधिक उन्नति के कारण LAC वक्र U-आकृति का नहीं होता। उनके अनुसार LAC वक्र की आकृति निम्नलिखित में से कोई भी हो सकती है :

एका जापान नाचात व्यावसायिक अर्थशास्त्र 20

(1) एल-आकृति वाला दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (L-Shaped LAC Curve): धुनिक अर्थशास्त्रियों के अनसार LAC वक्र एल-आकति का होता है। वक्र के एल-आकति का आशय यह है कि उत्पादन के बहुत बड़े पैमाने पर भी यह ऊपर की ओर नहीं चढ़ता। आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि आधुनिक औद्योगिक जगत में सामान्यतया परिचालित उत्पादन स्तर पर नई-नई प्रविधियों की खोज के कारण बड़े पैमाने की अमितव्ययिताओं के उदय होने की मान्यता अवास्तविक है। वे यह भी मानते हैं कि LAC वक्र विभिन्न SAC वक्रों का आवरण नहीं होता वरन संयंत्र के सामान्य उपयोग की दशा में यह उन्हें काटता है।

आधुनिक अर्थशास्त्री मानते हैं कि दीर्घकालीन औसत लागत उत्पादन और प्रबन्धकीय लागतों को सम्मिश्रण है। उत्पादन स्तर के बढ़ने के साथ-साथ बड़े पैमाने की तकनीकी बचतों के कारण प्रारम्भ में उत्पादन लागतें तेजी से और बाद में धीरे-धीरे गिरती हैं। परिचालन के उच्च स्तर पर पैमाने की घटती बचतों की समस्या को तेजी से तकनीकी परिवर्तनों के आधुनिक संसार में नई तकनीकों की खोज द्वारा हल करना अब कठिन नहीं रह बड़े पैमाने के उत्पादन पर उत्पादन लागतें लगातार गिरती जाती हैं और ये पैमाने की प्रबन्धकीय लागतों में वृद्धि को समंजित (set off) कर देती हैं। अतः पैमाने के बड़े विस्तार पर भी LAC वक्र स्थिर बना रहता है। चित्र 6.10 से स्पष्ट है कि न्यूनतम अनुकूल पैमाना 4 L-Shaped LAC Curve (minimum optimal scale) OQ तक LAC वक्र लगातार गिरता है तथा इसके बाद का

LAC = LMCC बड़े पैमाने की मितव्ययिताओं और अमितव्ययिताओं के संतुलन के कारण यह स्थिर हो जाता है। अनुकूलतम उत्पादन स्तर तक .. LMC वक्र LAC वक्र के नीचे रहता है और इसके बाद उत्पादन के उच्च स्तरों के लिये यह प्लेटनुमा दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (Saucer-Shaped LAC Curve): आधुनिक अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग यह मानता है कि उत्पादन में बहुत बड़ी मात्रा की वृद्धि के

Saucer – Shaped LAC Curve बाद बड़े पैमाने के अपव्ययों के कारण वक्र चढ़ने लगता है। इस प्रकार यह वक्र एक प्लेट जैसी आकृति का हो जाता है जो प्रारम्भ में फू गिरता है, फिर स्थिर रहता है और अन्त में OLMCI ऊपर चढ़ने लगता है जैसा कि चित्र 6.11 में लगीनगाल दर्शाया गया है। इस स्थिति में LMC वक्र और DROIRONAMOU) LAC वक्र में वही सम्बन्ध पाया जाता है

 (1) एल-आकृति वाला दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (L-Shaped LAC Curve): आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनसार LAC वक्र एल-आकति का होता है। वक्र के एल-आकति का आशय यह है कि उत्पादन के बहुत बड़े पैमाने पर भी यह ऊपर की ओर नहीं चढ़ता। आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि आधुनिक औद्योगिक जगत में सामान्यतया परिचालित उत्पादन स्तर पर नई-नई प्रविधियों की खोज के कारण बड़े पैमाने की अमितव्ययिताओं के उदय होने की मान्यता अवास्तविक है। वे यह भी मानते हैं कि LAC वक्र विभिन्न SAC वक्रों का आवरण नहीं होता वरन संयंत्र के सामान्य उपयोग की दशा में यह उन्हें काटता है।

आधुनिक अर्थशास्त्री मानते हैं कि दीर्घकालीन औसत लागत उत्पादन और प्रबन्धकीय लागतों को सम्मिश्रण है। उत्पादन स्तर के बढ़ने के साथ-साथ बड़े पैमाने की तकनीकी बचतों के कारण प्रारम्भ में उत्पादन लागतें तेजी से और बाद में धीरे-धीरे गिरती हैं। परिचालन के उच्च स्तर पर पैमाने की घटती बचतों की समस्या को तेजी से तकनीकी परिवर्तनों के आधुनिक संसार में नई तकनीकों की खोज द्वारा हल करना अब कठिन नहीं रह बड़े पैमाने के उत्पादन पर उत्पादन लागतें लगातार गिरती जाती हैं और ये पैमाने की प्रबन्धकीय लागतों में वृद्धि को समंजित (set off) कर देती हैं। अतः पैमाने के बड़े विस्तार पर भी LAC वक्र स्थिर बना रहता है। चित्र 6.10 से स्पष्ट है कि न्यूनतम अनुकूल पैमाना 4 L-Shaped LAC Curve (minimum optimal scale) OQ तक LAC वक्र लगातार गिरता है तथा इसके बाद का बड़े पैमाने की मितव्ययिताओं और अमितव्ययिताओं के संतुलन के कारण यह स्थिर हो जाता है। अनुकूलतम उत्पादन स्तर तक .. LMC वक्र LAC वक्र के नीचे रहता है और इसके बाद उत्पादन के उच्च स्तरों के लिये वक्र में मिल जाता है।

 (2) प्लेटनुमा दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (Saucer-Shaped LAC Curve): आधुनिक अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग यह मानता है कि उत्पादन में बहुत बड़ी मात्रा की वृद्धि के बाद बड़े पैमाने के अपव्ययों के कारण  वक्र चढ़ने लगता है। इस प्रकार यह वक्र एक प्लेट जैसी आकृति का हो जाता है जो प्रारम्भ में फू गिरता है, फिर स्थिर रहता है और अन्त में OLMCI ऊपर चढ़ने लगता है जैसा कि चित्र 6.11 में लगीनगाल दर्शाया गया है। इस स्थिति में LMC वक्र और DROIRONAMOU) LAC वक्र में वही सम्बन्ध पाया जाता

सैद्धान्तिक प्रश्न

(Theoretical Questions)

दीघे उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 लागत और उत्पादन का सम्बन्ध स्पष्ट रूप से समझाइये।

Explain clearly the relation of cost to output.

2. लागत-उत्पादन सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं ? अल्पकाल एवं दीर्घकाल में लागत-उत्पादन सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।

What do you understand by cost-output relationship ? Explain the cost output relationship in short-run and long-run.

3. अल्पकाल में लागत-उत्पादन सम्बन्धों की विवेचना कीजिये और प्रबन्ध के लिये इसका महत्व समझाइये।

Discuss cost-output relationship in the short-run and explain its importance to management.

4. अल्पकाल में लागत एवं उत्पादन सम्बन्धों पर प्रकाश डालिये।

Explain the cost and output relation during short-run.

5. सीमान्त लागत, औसत कुल लागत और औसत परिवर्तनशील लागत का सम्बन्ध बताइये।

Explain the relationship between marginal cost, average total cost and average variable cost.

6. औसत और सीमान्त लागत की अवधारणाओं की उपयुक्त चित्रों सहित व्याख्या दीजिये।

Explain the concepts of average and marginal costs with suitable diagrams.

7. अल्पकाल तथा दीर्घकाल में औसत लागत वक्र के व्यवहार की विवेचना कीजिये। चित्रों की सहायता से इसके आकार में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिये।

Explain the behaviour of Average Cost Curve in the short-run and longrun. Explain with the help of figures the changes in its shape.

8. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये तथा व्यावसायिक निर्णयों में इसकी उपादेयता का विवेचन कीजिये। इसे नियोजन वक्र भी क्यों कहा जाता है?

State the salient features of Long-run Average Cost Curve and discuss its usefulness in managerial decision making. Why is it also known as planning curve ? ”

9. दीर्घकालीन इष्टतम स्तर से कम के उत्पादन के लिये यह अधिक लाभदायक होगा कि कुछ बड़े संयंत्र को उस उत्पादन क्षमता से कम प्रयोग किया जाये जिस पर उत्पादन न्यूनतम लागत पर होता है। इसके विपरीत दीर्घकालीन इष्टतम स्तर से अधिक उत्पादन के लिये यह लाभदायक होगा कि एक छोटे संयंत्र को अधिक क्षमता पर प्रयोग किया जाये।” इस कथन की ग्राफ के साथ व्याख्या कीजिये।

For the output less than the long-term optimum level, it is more economical to underuse a slightly larger plant operating at less than its minimum cost output. Conversely, at output beyond the optimum level, it is more economical to overuse a slightly smaller plant.” Explain the proposition and illustrate it graphically.

10. दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र के व्युत्पादन का वर्णन करो। यह दीर्घकालीन औसत लागत वक्र से कैसे सम्बन्धित है ?

Discuss the derivation of long-run marginal cost curve. How is it related to LAC curve ?

11. लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत विभिन्न अल्पकालीन लागत वक्रों के बीच सम्बन्ध को समझाइये।

Explain the relationship between various short-run cost curves under modern theory of costs.

12. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र आवश्यक रूप से U-आकृति का क्यों नहीं होता। लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत एल-आकृति और उल्टा-जे आकृति वाले दीर्घकालीन औसत लागत वक्रों की सम्भावना की व्याख्या करो।

Why is a LAC curve not necessarily U-shaped ? Explain the possibility of L-shaped and inverted J-shaped LAC curves under the modern theory of costs.

13. प्लेटनुमा औसत परिवर्तनशील लागत वक्र से आप क्या समझते हैं ? इसके क्या कारण हैं ?

What do you mean by saucer-shaped AVC curve ? What are its reasons ?

14. लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत दीर्घकालीन औसत लागत वक्र की विभिन्न आकृतियों को चित्र द्वारा समझाइये।

Explain the different shapes of LAC curve under modern theory of costs.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions) –

उत्तर 100 से 120 शब्दों के बीच होना चाहिये।

The answer should be between 100 to 120 words.

1 अल्पकालीन औसत लागतों का उत्पादन-मात्रा से सम्बन्ध बताइये।

Explain the relation of short-run average costs to output.

2. अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र का औसत कुल लागत और औसत परिवर्तनशील लागत वक्रों से सम्बन्ध बताइये।

Explain the relation of marginal cost curve to average total cost and average variable cost curves.

3. अल्पकालीन लागत विश्लेषण का प्रबन्धकीय महत्व क्या है ?

What is the managerial usefulness of short-run cost analysis.

4. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र की विशेषतायें बतलाइये।।

Discuss the characteristics of LAC curve.

5. प्रबन्धकीय निर्णयों में दीर्घकालीन औसत लागत वक्र की उपादेयता का विवेचन कीजिये।

Discuss the usefulness of Long-run Average Cost Curve in managerial decision making

6. अल्पकालीन और दीर्घकालीन औसत लागत वक्रों में सम्बन्ध बतलाइये।

Discuss the relation of short-run and long-run average cost curves.

7. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र को नियोजन वक्र क्यों कहा जाता है ?

Why LAC curve is called a planning curve ?

8. दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र का दीर्घकालीन औसत लागत वक्र, अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र और अल्पकालीन औसत लागत वक्र से सम्बन्ध स्पष्ट करो।

Explain the relation of LMC curve to LAC curve and SMC and SAC curves..

9. लागतों के आधुनिक सिद्धान्त की कोई भी दो विशिष्टता समझाइये।

Explain any two distinctive features of modern theory of costs.

10. लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत औसत परिवर्तनशील लागत वक्र और परम्परागत सिद्धान्त के अन्तर्गत औसत परिवर्तनशील लागत वक्र में क्या अन्तर है ?

What is the difference between AVC curve under modern theory of costs and AVC curve under traditional theory?

11. लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत दीर्घकालीन औसत लागत वक्र को L-आकृति वाला क्यों कहा गया है ?

Why LAC curve is said to be L-shaped curve under modern theory of costs?

12.U-आकृति के लागत वक्र से आप क्या समझते हैं ? इसका परिवर्तनशील अनुपातों के नियम से क्या सम्बन्ध है?

What do you mean by U-shaped cost curve ? How is it related with the law of variable proportions ?

13. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र को प्लेटनुमा क्यों कहा गया है ?

Why LAC curve is said to be saucer-shaped ?

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Questions)

(अ) एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिये।

Answer in one word or one sentence.

1 U-आकृति के तीन औसत लागत वक्रों के नाम गिनाइये।

Name the three U-shaped average cost curves.

2. उत्पादन के विस्तार पर औसत परिवर्तनशील लागतः वक्र और औसत कुल लागत वक्र में । से किसका परावर्तन बिन्दु पहले आता है ?

On increase in output in the short-run, whose turning point, whether of AVC curve or ATC curve, comes first ?

3. किस औसत लागत वक्र की आकृति आयताकार अधीन्द्र होती है?लागत निजत्वमा

Which average cost curve is of rectangular hyperbola shape ?i sad

4. औसत स्थिर लागत वक्र को आयताकार अधीन्द्र क्यों कहा जाता है ? जाला

Why AFC curve is said to be of rectangular hyperbola ? oh ozic

5. किस औसत लागत वक्र को ‘नियोजन वन’ कहा जाता है ? जता चल

Which average cost curve is called as planning curve ?usliamoria

6. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र और अल्पकालीन औसत लागत वक्र में से कौन अधिक चपटा होता है?

Out of LAC curve and SAC curve which is flatter. Jeg steed!

7. दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र किन औसत लागत वक्रों के न्यूनतम लागत बिन्दुओं से होकर गुजरता है ?

LMC curve passes through the minimum cost points of which average cost curves?

8. उल्टा जे-आकार वाला दीर्घकालीन औसत लागत वक्र का विचार किस अर्थशास्त्री का है ?

Who has given the concept of inverted J-shaped LAC curve ? 20

9. प्लेटनुमा आकृति वाले औसत परिवर्तनशील लागत वक्र का विचार किसका है ? ME

Who has given the concept of saucer-shaped AVC curve ?s nisi

10. लागतों के आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार औसत परिवर्तनशील लागत वक्र की आकृति कैसी होती है ?

What is the shape of AVC curve according to the modern theory of costs.

11. किसी वस्तु की 10 इकाइयों को बनाने की औसत लागत 15 रु० है जिसमें से 50% स्थिर लागत है। उस वस्तु की 20 इकाइयाँ बनाने की स्थिर लागत क्या होगी?

The average cost of manufacture of 10 units of a product is Rs. 15, out of which 50% is fixed. What will be the fixed cost of producing 20 units of that product? .

12. उत्पादन के बढ़ने पर LAC वक्र के गिरने का क्या मुख्य कारण है ?

What is main cause of falling LAC curve on increase in output.

13. जब AC वक्र गिरता हुआ हो तो सीमान्त लागत उससे कम होती है या अधिक।

When AC curve is falling, whether MC will be less or more than it.

[उत्तरमाला : 1. (i) औसत परिवर्तनशील लागत वक्र, (ii) औसत कुल लागत वक्र 2. सीमान्त लागत वक्र 3. औसत स्थिर लागत वक्र 4. प्रत्येक उत्पादन स्तर पर कुल स्थिर व्यय के आयत का क्षेत्रफल (अर्थात् AFC x Q) समान होता है। 5. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र 6. दीर्घकालीन औसत लागत वक्र 7. औसत परिवर्तनशील लागत वक्र औसत कुल लागत वक्र 8. P.W.S. Andrew 9. जॉर्ज स्टिगलर 10. प्लेटनुमा 11. और Rs. 75, 12. पैमाने की बचतें 13. कम Less

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