BCom 2nd Year Entrepreneur Small Industry Role performance Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur Small Industry Role performance Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd Year Entrepreneur Small Industry Role performance Study Material Notes in Hindi: Meaning and Definition of Small Industry Characteristics of Small Industries Need Importance or Advantages or  of Small role of small industries in India measures taken by the government for the development small industries present Position of Small Industries ( Most Important Notes for BCom 2nd year Students )

Small Industry Role performance
Small Industry Role performance

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

लघु उद्योगभूमिका एवं प्रदर्शन

(Small Industry-Role and Performance)

“केन्द्रीय सरकार लघु उद्योग क्षेत्र में ‘इन्सपेक्टर राज’ समाप्त करने की कोशिश करेगी ताकि इस क्षेत्र का विकास करने में मदद मिले।”

-स्वर्गीय राजीव गाँधी

Small Industry Role performance

शीर्षक

  • लघु उद्योग का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Small Industry)
  • लघु उद्योगों के लक्षण एवं विशेषताएँ (Characteristics of Small Industries)
  • लघु उद्योगों की आवश्यकता, महत्त्व अथवा लाभ (Need, Importance or Advantages of Small Industries) अथवा भारत के लघु उद्योगों की भूमिका (Role of Small Industries in India)
  • लघु उद्योगों के विकास के लिए सरकार द्वारा किये गये प्रयत्न (Measures Taken by the Government for the Development of Small Industries)
  • लघु उद्योगों की वर्तमान स्थिति (Present Position of Small Industries)
  • लघु उद्योगों की समस्याएँ (Problems of Small Industries)
  • लघु उद्योगों की समस्याओं का समाधान एवं विकास के लिए सुझाव (Suggestions for the Solution of Problems and Development of Small Industries)

पैमाने की दृष्टि से औद्योगिक इकाइयों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—(1) बड़े पैमाने वाली औद्योगिक इकाइयाँ तथा (2) लघु पैमाने वाली औद्योगिक इकाइयाँ। इन दोनों में (i) कुल विनियोजित पूँजी, (ii) नियुक्त श्रमिकों की संख्या, (iii) संगठन और प्रबन्ध का प्रारूप तथा (iv) बिक्री की मात्रा में अन्तर होता है। प्रस्तुत अध्याय के अन्तर्गत हम केवल लघु पैमाने वाले उद्योगों के बारे में विवेचना करेंगे।

Small Industry Role performance

लघु उद्योग का अर्थ एवं परिभाषाएं

(Meaning and Definitions of Small Industry)

लघु उद्योग का अर्थ (Meaning of Small Industry)-लघु उद्योग से आशय उस उद्योग से है जिसका संचालन समाने पर यन्त्रों के माध्यम से होता है। कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत लघ उद्योग का अर्थ है-वे औद्योगिक

याँ जिनमें विद्यत शक्ति के प्रयोग की दशा में 50 श्रमिक तक तथा बिना विद्युत् शक्ति के प्रयोग की दशा में 10 श्रमिक तक कार्यरत हैं।

लघु उद्योग की परिभाषा (Definition of Small Industry) लघु उद्योग की नवीनतम परिभाषा के अनुसार लघ उद्योगों में निम्नलिखित प्रकार के उद्योगों को सम्मिलित किया गया है।

1 अति लघ उद्योग (Tiny Small Industry) अति लघु उद्योग क्षेत्र के अन्तर्गत उन इकाइयों को सम्मिलित किया। गया है जिनमें 25 लाख रुपये तक की पूँजी का विनियोजन किया गया हो।

2. लघु (Small Industry) लघ उद्योग क्षेत्र के अन्तर्गत वे इकाइयाँ आता हाजनमवतम रुपये तक की पूँजी का विनियोजन किया गया हो।

3. सहायक लघु उद्योग इकाई (Ancillary small Industrial Unit)—वे लघु व्यवसाय जो अपने उत्पादन प्रतिशत की आपूर्ति दूसरे उद्योग को जो उनकी मूल इकाई हैं, को करते हैं, उन्हें सहायक लघु उद्योग इकाई का नाम दिया जा सकता है। सहायक लघु उद्योग अपनी मल इकाई के लिए कलपर्जे (Parts or Components), पुज जाड़ना (Assemblies), मध्यवर्ती उत्पादों का निर्माण (Intermediate Product) इत्यादि कर सकती है। मूल इकाई का आवश्यकताओं की पूर्ति करने के अतिरिक्त ये अपने स्वयं का व्यवसाय भी कर सकती हैं।

4. नियात प्रधान इकाइयाँ (Export Oriented Units or EOU) वे इकाइयाँ जो अपने उत्पाद का 50 प्रतिशत से भी अधिक भाग दूसरे देशों का निर्यात करती हैं. उन्हें निर्यात प्रधान इकाइयों (EOU) का दर्जा दिया जाता है। ये इकाइया उन सभी प्रोत्साहना जसे-निर्यात सहायता तथा अन्य अनदान (Export Subsidies and Other Concession), जो सरकार। द्वारा इन निर्यात इकाइयों को प्राप्त हैं, का लाभ उठा सकती हैं।

5. महिला उद्यमों द्वारा स्वामित्व एवं नियन्त्रित लघ स्तरीय उद्योग (Small Scale Industries Owned and Managed by Woman Entrepreneurs) महिला उद्यमियों द्वारा समर्थन प्राप्त वे लघु स्तरीय उद्योग इकाइयाँ है, जहाँ उनका स्वयं का या मिश्रित अंश पूँजी 51 प्रतिशत से कम नहीं है। ये इकाइयाँ सरकार द्वारा प्राप्त विशेष छूटों जैसे-कम ब्याज दरों पर ऋण इत्यादि का लाभ उठा सकती हैं।

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लघु उद्योगों के लक्षण एवं विशेषताएँ

(Characteristics of Small Industries)

लघु उद्योग की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1 सीमित कार्यक्षेत्र लघु उद्योगों का कार्य-क्षेत्र सीमित होता है। कई बार तो यह स्थानीय ही होता है।

2. व्यापक विपणन क्षेत्रलघु उद्योगों का विपणन क्षेत्र स्थानीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय हो सकता है।

3.विनियोजित पूँजी की सीमा का निर्धारण लघु उद्योगों में विनियोजित स्थायी पूँजी की अधिकतम सीमा भारत सरकार द्वारा निर्धारित है। यह लघुत्तर उद्योगों की दशा में 25 लाख रुपये तथा लघु उद्योगों की दशा में 5 करोड़ रुपये है। इसके अधिक होने पर सम्बन्धित उद्योग को बड़े उद्योग का दर्जा दिया जा सकता है।

4.स्वामित्व का प्रारूप यद्यपि लघु उद्योग अधिकतर एकाकी स्वामित्व अथवा साझेदारी के रूप में स्थापित किये जाते हैं, किन्त आधनिक समय में इनमें विनियोजित स्थायी पूँजी की मात्रा में वृद्धि होने से इनकी स्थापना कम्पनी के प्रारूप में भी होती है।

5.संगठन एवं प्रबन्ध का ढाँचालघु उद्योग के संगठन एवं प्रबन्ध का ढाँचा सरल होता है। इसका प्रबन्ध प्रायः किसी एक व्यक्ति के हाथों में होता है।

6.सगम स्थापनालघु उद्योग कहीं भी सरलता से स्थापित किया जा सकता है। इसे सरकारी प्रोत्साहन प्राप्त होता है।

7. उत्पादन लघु उद्योगों की उत्पादन तकनीक श्रम-प्रधान होती है। ये प्रायः सामान्य उपभोग के सामान का उत्पादन करते हैं।

8. आकार लघु उद्योगों का आकार बड़े उद्योगों की तुलना में छोटा होता है।

9. कर्मचारियों स्वामी के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध-लघु उद्योगों का आकार छोटा होने एवं कार्यरत कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण इसमें कर्मचारियों तथा स्वामी के मध्य प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित हो जाते है।

10 श्रमिकों की संख्या लघु उद्योगों की श्रेणी में आने वाले उद्योगों में शक्ति का उपयोग करने की दशा में 50 तक तथा बिना शक्ति का उपयोग करने वाली इकाइयों में 100 तक श्रमिक हो सकते हैं।

11 कटीर उद्योगों से भिन्नलघु उद्योग कुटीर उद्योगों से भिन्न होते हैं। इनका आकार तथा क्षेत्र कुटीर उद्योगों की तुलना में व्यापक होता है।

12.रजिस्ट्रेशन वांछनीयलघु उद्योगों के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य न होकर वांछनीय है, क्योंकि रजिस्टेशन कराने पर ही वे सरकारी सहायता प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं।

13.सरकारी संरक्षण एवं सुविधाएँभारत में लघु उद्योगों को सरकारी सरंक्षण एवं सुविधाएँ प्राप्त हैं। इसका कारण यह है कि इन उद्योगों को भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

14.बड़े उद्योगों के पूरक कई लघु उद्योग बड़े उद्योगों के सहायक एवं पूरक उद्योगों के रूप में कार्यरत हैं। भारत मे लघु एवं सहायक उद्योग बड़े उद्योगों के लिए आवश्यक कल-पुर्जे तैयार करते हैं।

15.श्रम की प्रधानता लघ उद्योगों में पुँजी की तुलना में श्रम की प्रधानता होती है। इसी कारण इन्हें श्रम-प्रधान उद्योग भी कहते हैं।

16.उत्पादों का आरक्षण लघु उद्योगों निर्माणी प्रकृति के होते हैं। वर्तमान में भारत सरकार ने 882 उत्पादों (वस्तओं के उत्पादन एवं निर्माण का कार्य लघु उद्योगों के लिए आरक्षित किया है।

17.आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग लघु उद्योगों की एक विशेषता यह भी है कि आधुनिक लघु उद्योग आधुनिक मशीनों । यन्त्रों, प्रविधियों एवं तकनीकों का उपयोग करने लगे हैं।

18.अन्य लक्षण–(i) सामन्यत: उपभोक्ताओं से भी लघु उद्योग का प्रत्यक्ष सम्पर्क होता है। (ii) भारत की अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। (iii) लघु उद्योग एकाधिकारी प्रवृत्ति के उन्मूलन में सहायक होते हैं। (iv) लघ उदोग स्थानीय ग्राहकों की आवश्यकताओं का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं और उन्हीं के अनुरूप उत्पादन करने पर विशेष बल देते। हैं। (v) केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारें इन्हें हर सम्भव प्रोत्साहन देने का प्रयास करती हैं। (vi) लघु उद्योग विशेष रूप में स्थानीय। संसाधनों का उपयोग करते हैं।

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लघु उद्योगों की आवश्यकता, महत्त्व अथवा लाभ

(Need, Importance or Advantages of Small Industries)

अथवा

भारत के लघु उद्योगों की भूमिका

(Role of Small Industries in India)

अविकसित, विकासशील तथा विकसिता (जैसे—जापान) सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में लघु उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। फिर भी भारत में तो प्राचीन काल से ही लघु उद्योगों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। वर्तमान में भी यह हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के शब्दों में, “भारत का मोक्ष उसके लघु एवं कुटीर उद्योगों में निहित है।” वास्तव में, भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले एवं विकासशील राष्ट्र में, जहाँ पूँजी का अभाव है और बेरोजगारी एवं गरीबी का साम्राज्य है, लघु उद्योग आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं से देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला है। आज हमारे कुल उत्पादन का महत्त्वपूर्ण 35 प्रतिशत भाग लघु उद्योगों का ही है। भारत के निर्यात व्यापार में भी लघु उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान में लघु उद्योग निर्मित माल का 45% भाग तथा देश के कुल निर्यात का 35% भाग निर्यात करते हैं। भारत में लघु उद्योगों के महत्त्व को निम्नांकित तथ्यों से और अधिक स्पष्ट किया जा सकता। है। वर्तमान में लघु उद्योग 186 लाख लोगों को पूर्णकालीन रोजगार प्रदान करते हैं। इन्हें इनके लाभों के रूप में दर्शाया जा सकता है

1.बेकारी एवं अर्द्धबेकारी को दूर करने में सहायकभारत में बेकारी एवं अर्द्ध-बेकारी की समस्या सबसे भीषण समस्या है। कृषि के पश्चात् लघु उद्योग ही ऐसा श्रम-प्रधान उद्योग है, जिसमें कम पूँजी से अधिक-से-अधिक लोगों को रोजगार । का अवसर प्रदान किया जा सकता है। लघु उद्योग देश के लाखों शिक्षित बेरोजगारों को स्वतः रोजगार का अवसर प्रदान करते। हैं। वर्तमान में लघु उद्योग लगभग 186 लाख लोगों को पूर्णकालीन रोजगार प्रदान करते हैं। लघु उद्योग बेकारी, अर्द्ध-बेकारी । और मौसमी बेकारी सभी के निवारण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

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2 स्थानीय संसाधनों का उपयोगलघु उद्योग स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने में सर्वाधिक सक्षम हैं। हमारे देश में विशाल मात्रा में प्राकृतिक साधन विभिन्न राज्यों में बिखरे पड़े हैं और उनका कशलतम उपयोग लघु उद्योगा। द्वारा ही सम्भव है। लघु उद्योगों द्वारा देश की शमाला पूजा तथा बेकार पड़ी विशाल श्रम शक्ति का समचित उपयोग किया जा। सकता है।

3.आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरणबड़े उद्योगों की दशा में धन व आर्थिक सत्ता देश के कुछ पूँजीपतियों के हाथों में केन्टित हो जाती है। इसके विपरीत, लघु उद्योगी का स्थापना एव विकास होने से धन व आर्थिक साधन देश में फैले हए लाखों व्यक्तियों एवं परिवारों के हाथों में वितरित होकर विकेन्द्रित हो जाते हैं। इस प्रकार लघु उद्योग आर्थिक सत्ता के विकेन्द्रीकरण में सहायक हैं।

4. उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिकालघु उद्योग किसी देश के राष्ट्रीय उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में लघु उद्योगों का कुल उत्पादन 6.39.024 करोड़ रुपये का (चालू मूल्यों पर) है।

5. स्वतन्त्र व्यवसाय का आधार लघु उद्योग लोगों को स्वतन्त्र व्यवसाय करने का अवसर प्रदान करते हैं। जो लोग नाकरा करना चाहत है अथवा जिन्हें नौकरी नहीं मिलती है, वे सरलता से लप उद्योगों की स्थापना करके अपनी जीविका अजित कर सकते हैं। भारत में लघु उद्योगों की निरन्तर बढती हई संख्या इसका ज्वलन्त उदाहरण है। वर्तमान में भारत में 28.6 लाख लघु इकाइयाँ कार्यरत हैं।

6. भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनुकल–भारत एक कृषि-प्रधान देश है और लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है, किन्तु कृषकों को वर्षपर्यन्त कार्य नहीं मिल पाता। इस दृष्टि से भी लघु उद्योग विशेष उपयोगी हैं। उत्तर प्रदश कुटीर उद्योग समिति के अनुसार, “बेरोजगारी के राक्षस से संघर्ष करने का एकमात्र उपाय कुटीर उद्योग तथा लघु स्तरीय उद्योगों का विकास करना है। इनके द्वारा कृषि में अकार्यशील समय में कृषकों को रोजगार दिया जा सकता है और इस प्रकार कृषि पर आधारित जनसंख्या के भार में पर्याप्त कमी की जा सकती हैं।”

7. परम्परागत प्रतिभा कला की रक्षाभारत अपनी परम्परागत प्रतिभा एवं कला के लिए विश्वविख्यात है, किन्तु कई वर्षों से इसका विनाश होता देखने में आ रहा है अतएव यदि हम चाहते हैं कि न केवल हमारी परम्परागत प्रतिभा एवं कला सुराक्षत रहे अपितु इसमें और वद्धि हो तो हमें इसको प्रोत्साहन देना होगा जोकि लघ उद्योगों के विकास द्वारा ही सम्भव है।

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8. विदेशी विनिमय की प्राप्तियूरोप तथा अमेरिका के देशों में हाल ही में हुई भारतीय कलात्मक वस्तुओं की प्रदर्शनी ने व्यापक रूप से विदेशी ग्राहकों का ध्यान आकर्षित किया है। इससे पूर्व भी हाथ की बनी हुई कलात्मक वस्तुएँ आकर्षण का केन्द्र बनी हुई थीं। यदि वैज्ञानिक ढंग से लघु उद्योगों की बनी हुई वस्तुओं का विदेशों में प्रचार किया जाए तो पर्याप्त मात्रा में हमें विदेशी विनिमय प्राप्त हो सकता है। लघु उद्योग विदेशी विनिमय में निम्न दो प्रकार से सहायता प्रदान करते हैं-प्रथम, इनके द्वारा मशीनों तथा कच्चे माल के आयात पर अपेक्षाकृत कम विदेशी विनियम व्यय करना पड़ता है। द्वितीय, इन उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं का निर्यात करने से हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

9. व्यापारचक्रों का कम प्रभावलघु उद्योगों के अन्तर्गत वस्तुओं का निर्माण माँग के आधार पर होता है, अतएव मन्दी या तेजी की समस्या अपेक्षाकृत कम उत्पन्न होती है। व्यापार चक्रों का इन अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है।

10. उपभोग्य वस्तुओं के अभाव को दूर कर सकते हैं कपड़ा, फर्नीचर, जूते, बर्तन व अनेक आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आवश्यक पूर्ति न होने के कारण बढ़ती जा रही हैं। लघु उद्योगों का विकास करके इन वस्तुओं को दूर किया जा सकता है तथा बढ़े हुए मूल्य को सामान्य स्थिति में लाया जा सकता है।

11. आय के समान वितरण में सहायक यदि भारत को आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है तो लघु उद्योगों को देश की अर्थव्यवस्था में सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। यह हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

12. आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण-जहाँ एक ओर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने के उद्योगों में धन तथा आर्थिक सत्ता मुट्ठी भर हाथों में केन्द्रित हो जाती है, जिससे आय की असमानता बढ़ती है, वहाँ दूसरी ओर, लघु उद्योगों का विकास होने से आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण होता है, समानता का वातावरण उत्पन्न होता है तथा आय के समान वितरण को प्रोत्साहन मिलता है।

13. कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता-लघु उद्योगों की स्थापना एवं संचालन में बड़े उद्योगों की तुलना में कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसके लिए हमें विदेशों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रहती है अपितु इनका विकास देश में ही किया जा सकता है।

14. बड़े उद्योग में सहायक अथवा पूरक-लघु उद्योग बड़े उद्योगों में सहायक एवं पूरक उद्योगों के रूप में कार्य कर सकते हैं। जापान इसका ज्वलन्त उदाहरण है।

15. विदेशों पर कम निर्भरतालघु उद्योगों के लिए कच्चा माल, तकनीकी ज्ञान, यन्त्र एवं उपकरण, पूँजी तथा विक्रय क्षेत्र आदि के लिए हमें विदेशों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है।

16. शीघ्र उत्पादक उद्योगलघु उद्योग अपनी स्थापना के तुरन्त पश्चात् उत्पादन करना प्रारम्भ कर देते हैं। अतएव इनको शीघ्र उत्पादक उद्योग कहते हैं।

17.
2अन्य
लाभ-(i) लघु उद्योगों में पूँजी का कुशलतम उपयोग किया जा सकता है। (ii) लघु उद्योगों में निर्मित वस्तएँ। प्राय: उत्तम, टिकाऊ एवं कलात्मक होती है। (iii) लघु उद्योगों की स्थापना से औद्योगिक विकास की गति में तीव्रता लाना सम्भव होता है। (iv) लघु उद्योगों में परिश्रम एवं प्रतिफल में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होने के कारण कठिन परिश्रम, लगन एवं निष्ठा को प्रेरणा मिलती है। (v) लघु उद्योगों का आकार छोटा होने के कारण इन पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है। (vi) लघु रोगों के माध्यम से समाजवाद लाया जा सकता है। (vii) लघु उद्योग प्रायः सम्पूर्ण देश में फैले हुए होते हैं। अतएव इन पर युद्ध एवं आन्तरिक संकटों का कुप्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ता है।

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लघु उद्योगों के विकास के लिए सरकार द्वारा किये गये प्रयत्न

(Measures Taken by the Government for the Development of Small Industries)

लघु उद्योगों के विकास के लिए किये गये सरकारी प्रयत्नों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है ।

(1) स्वतन्त्रता से पूर्व (Before Independence) अंग्रेजों के भारत में आने के पूर्व लघु उद्योगों का भारी महत्व था। इनको भारतीय राजाओं व नवाबों का संरक्षण प्राप्त था। उस समय भारत में लघु उद्योग इतनी उन्नत अवस्था याक भारत की विश्व का औद्योगिक कारखाना कहा जाता था, किन्तु भारत में अंग्रेजों के आवागमन के पश्चात ब्रिटिश सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण इन उद्योगों का पतन होना प्रारम्भ हो गया और कुछ समय पश्चात् ही ये जीर्ण अवस्था म पहुच गए। बाद में स्वर्गीय महात्मा गांधी के स्वदेशी आन्दोलन के कारण लघु उद्योगों का फिर से विकास होने लगा।। सन् 1934 में ‘ग्रामीण उद्योग संस्थान’ की स्थापना की गयी। सन् 1935 में प्रान्तों में उद्योग विभागों की स्थापना की। गयी सन् 1937 में प्रान्तों में कांग्रेस मन्त्रिमण्डल बनने से लघु उद्योगों को केवल कुछ राहत ही नहीं बल्कि उन्हें अपने विकास का भी सुअवसर मिला, लेकिन कुछ समय बाद ही मन्त्रिमण्डल के भंग हो जाने व द्वितीय महायुद्ध प्रारम्भ होने। से भारत में लघु उद्योगों का विकास अवरुद्ध हो गया।

2. स्वतन्त्रताप्राप्ति के पश्चात (After Independence) स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देश में राष्ट्रीय सरकार बनने पर लघ उद्योगों को सर्वोच्च प्राथमिकता दिये जाने की घोषणा की गयी। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार व राज्य सरकारों द्वारा लघु उद्योगों के विकास के लिए उठाये गये कदमों का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अन्तगर्त किया जा सकता है।

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(I) निगमें एवं बोर्डो की स्थापना  (Establishment of Corporations and Boards)

(i) केन्द्रय सरकार द्वारा निगमों एवं बोर्डों की स्थापना स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् केन्द्रीय सरकार ने लघु उद्योगों के विकास के लिए विभिन्न निगमों एवं बोर्डों की स्थापना की। उनमें से निम्नांकित प्रमुख हैं

1 राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, 1955

2.लघु उद्योग विकास संगठन, 1954

3. लघु उद्योग बोर्ड, 1954

4. अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड, 1952

5. अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, 1953

6. भारतीय लघु उद्योग परिषद्, 1979

7. जिला उद्योग केन्द्र, 1977

8. भारतीय साख गारण्टी निगम, 1971

9. राष्ट्रीय साहस एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान, 1983

10. भारतीय दस्तकारी विकास, 1958

11. नारियल जटा बोर्ड, 1955

12. आखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड, 1952

उपर्युक्त के अतिरिक्त विभिन्न विशिष्ट बोर्डों की स्थापना की गई है; जैसे—भारतीय दस्तकारी विकास निग्म, अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड, अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग, केन्द्रीय सिल्क बोर्ड, अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड, नारियल जटा बोर्ड आदि।

(ii) राज्य स्तरीय संगठनों की स्थापना केन्द्रीय सरकार की भाँति राज्य सरकारों ने भी राज्य स्तर पर लघु उद्योगों के विकास के लिए विभिन्न संगठनों की स्थापना की है। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य में लघु उद्योगों के विकास के लिए मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम, मध्य प्रदेश उद्योग विकास एवं विनियोग निगम आदि की स्थापना की है। ये संगठन लघु उद्योगों को कच्चा माल तकनीकी ज्ञान, प्रशिक्षण एवं विपणन आदि में सहायता प्रदान करते हैं।

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(II) वित्तीय सहायता (Financial Assistance)

लघु उद्योगों की पूँजी व अन्य वित्तीय सहायता प्रदान करने में केन्द्रीय सरकार व राज्यों सरकारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। है। आजकल इन्हें निम्न साधनों के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है

(i) रिजर्व बैंक रिजर्व बैंक ने 1 जुलाई, 1960 से लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता देने हेतु गारण्टी योजना चालू की है।

(ii)  स्टेट बैंक ऑफ इण्डियायह कच्चे एवं निर्मित माल की जमानत पर अल्पकालीन ऋण प्रदान करता है तथा । विकास एवं सुधार हेतु मध्यकालीन ऋण प्रदान करता है।

(iii) व्यापारिक एवं सहाकरी बैंक व्यापारिक तथा सहकारी बैंक भी लघु उद्योगों को ऋण प्रदान करते हैं।

(iv) राज्य वित्त निगम-राज्य वित्त निगम अपने-अपने राज्यों में लघु उद्योगों को अवधि ऋण कम व्याज व आसान शों पर ऋण अर्थात् दीर्घकालीन एवं मध्यकालीन दोनों प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं।

(v) राज्य सरकारें राज्य सरकारें भी सरकारी सहायता अधिनियम (State Aid to Industries Act) के अधान। अपने-अपने राज्यों में लघु उद्योगों को ऋण प्रदान करती हैं।

(vi) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक यह लघ उद्योगों को ऋण स्वीकृत करता है। (vii) राष्ट्रीय उद्योग निगम यह लघ उद्योगों को किस्तों पर मशीनें उपलब्ध कराता है।

(viii) भारतीय साख गारण्टी योजना यह लघु उद्योगों को बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा दिये जाने वाले ऋणों की गारण्टी देता है।

(ix) लघु उद्योग विकास कोष की स्थापना-देश में लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता देने के लिए ‘लघु उद्योग विकास’ की स्थापना की गई। लघ उद्योगों के विकास, विस्तार तथा उनके आधनिकीकरण के लिए वित्तीय सहायता देना इस कोष की जिम्मेदारी होगी। इस कोष की स्थापना भारतीय औद्योगिक विकास बैंक के सहयोग से की गई है। इस कोष के द्वारा दिये जाने वाले ऋण की सीमा सन् 2000-2001 के बजट के अनुसार 15 लाख रु. से बढ़ाकर 25 लाख रु. कर। दी गई है।

(x) सन् 2000-2001 के बजट के अन्तर्गत सूक्ष्म क्षेत्र (Tiny Sector) के लिए वित्तीय सहायता की मात्रा 1 लाख रु. से बढ़कर 5 लाख रु. कर दी गई है।

(xi) राष्ट्रीय समता कोषभारत सरकार ने लघु उद्योगों की ओर विशेष ध्यान देने हेतु राष्ट्रीय समता कोष की स्थापना की जिसमें 5 करोड़ रु. तो भारत सरकार ने दिए हैं तथा इतने ही रुपये भारतीय औद्योगिक विकास बैंक ने दिए हैं। यह नवीन लघु उद्योगों की स्थापना तथा जीर्ण एवं बीमार लघु उद्योगों की पुनस्र्थापना के लिए सहायता प्रदान करता है।

(xii) एकाकी खिड़की योजना—इस योजना के अन्तर्गत कार्यशील पूँजी ऋण प्रदान किये जाते हैं।

(xiii) लघु उद्योग विकास बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना-लघु उद्योगों की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए 25 अक्टूबर, 1989 को इस बैंक की स्थापना की गई थी।

(xiv) लघु उद्योग विकास बैंक एवं अन्य बैंक लघु उद्योगों के लिए सन् 2000-2001 के बजट के अनसार कार्यशील पूँजी एवं अवधि ऋण के रूप में 10 लाख रु. तक दे सकते हैं।

(xv) कार्यशील पूँजी ऋण की सीमा में वृद्धि-केन्द्रीय सरकार के द्वारा 1999-2000 के बजट के अनुसार लघु उद्योगों के लिए कार्यशील पूँजी ऋण की सीमा चार करोड़ रुपये से बढ़ाकर पाँच करोड़ रुपये कर दी गई है। कार्यशील पूँजी ऋण की सीमा बढ़ाने से ऋण प्रवाह में तेजी आयेगी।

(xvi) सन् 2000-2001 के बजट के अधीन लघु उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ‘साख गारण्टी योजन'(Credit Guarantee Scheme) चालू की गई है जिसके लिए बजट (2000-2001) में 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। यह योजना भी लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) के माध्यम से चालू की गई है। इसके अन्तर्गत 10 लाख रु. तक ऋण दिये जा सकेंगे।

(xvii) लघु उद्योग विकास बैंक लघु उद्योगों के तकनीकी विकास एवं आधुनिकीकरण के लिए तकनीकी विकास एवं आधनिकीकरण कोष योजना”चला रहा है। इस कोष के अन्तर्गत रियायती ब्याज दर (2% below prime rate) पर लघु उद्योगों के लिए ऋण उपलब्ध कराया जाता है। सन् 2000-2001 के बजट के अनुसार इस योजना की अवधि तीन वर्ष के लिए बढ़ा दी गयी है।

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(III) संरक्षणात्मक कदम (Protection Steps)

भारत की अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। लघु उद्योगों को संरक्षण देने का दायित्व राज्य सरकारों तथा केन्द्र द्वारा प्रशासित राज्यों (यूनियन टेरेटरीज) का है। इस बात को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकारों ने इन्हें आवश्यक संरक्षण प्रदान करने के लिए कई आवश्यक कदम उठाये हैं। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं

लघु उद्योगों के लिए वस्तुओं का आरक्षण (Reservation)-सरकार ने बड़े उद्योगों की प्रतिस्पर्धा से लघ उद्योगों को बचाने के लिए कुछ वस्तुओं का उत्पादन लघु उद्योगों के लिए आरक्षित कर दिया है। वर्तमान में आरक्षित वस्तुओं की संख्या 836 है। 12 वस्तुओं का उत्पादन हथकरघा क्षेत्र के लिए आरक्षित किया गया है।

(i) उत्पादन की छट सीमा में वद्धि केन्द्रीय सरकार ने लघु इकाइयों के लिए उत्पादन शुल्क से सम्बन्धित छुट की। सीमा 30 लाख रु. से बढ़ाकर 50 लाख रु. कर दी है।

(iii) वैधानिक संरक्षणसरकार ने उद्योग (विकास एवं नियमन) अधिनियम में आवश्यक संशोधन करके लघु उद्योगों। को वैधानिक संरक्षण प्रदान किया है।

(iii) क्लियरेंस के एकसमान दर लागू होगा-केन्द्रीय सरकार के सन् 1998-99 बजट के अनुसार 50 लाख रु.। सकराड़ रुपये के बीच क्लियरेंस के लिए 5% की एकसमान दर लागू होगी। केन्द्रीय सरकार ने सन् 1999-2000 के बजट में रियायती उत्पादन की सीमा 75 लाख रु. से बढ़ाकर 100 लाख रु. कर दी है।

(v) स्थायी पूँजी विनियोजन में वद्धि-सरकार ने सन् 2000-2001 के बजट में किये गये संशोधन के अनुसार लघ उद्योगों में स्थायी पूँजी के विनियोजन में वृद्धि करके इन्हें संरक्षण प्रदान किया है। स्थायी पूँजी के विनियोजन की सीमा क्रमशः लघु उद्योगों की दशा में 5 करोड़ रुपये तथा लघउत्तर उद्योगों में 25 लाख रुपये निर्धारित की गई है।

(vi) उपकरसरकार ने बड़े उद्योगों के उन कुछ उत्पादनों पर उप-कर लगाया है जिनका उत्पादन बहुतायत में लघु उद्योगों द्वारा किया जाता है। इससे लघ उद्योग न केवल बडे उद्योगों के सामने टिकने की स्थिति में आ जाते हैं बल्कि उनकी प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति भी बढ़ जाती है।

 (vii) औद्योगिक नीतियों द्वारा सुरक्षा-लघु उद्योगों की सुरक्षा एवं उनका विकास करने के लिए केन्द्र सरकार ने प्रत्येक औद्योगिक नीति अर्थात् सन् 1948,1956, 1977,1980 एवं 1991 में घोषित औद्योगिक नितियों में महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ की हैं।

(viii) लाइसेन्सिंग से छूट (Relaxation in Licensing) लघु उद्योगों के विकास के लिए अब तक 836 वस्तुओं के उत्पादन को लघु उद्योग क्षेत्र में लासेन्सिंग से छूट प्रदान की जा चुकी है।

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(IV) प्रेरणाएँ, रियायतें एवं अनुदान (Incentives, Concessions and Subsidy)

जैसा कि पहले वर्णन किया जा चुका है, लघु उद्योगों का विकास करने का दायित्व राज्य सरकारों तथा केन्द्र सरकार द्वारा प्रशासित राज्यों को सौंपा गया है। ये अपने क्षेत्र में स्थित लघु उद्योगों को विभिन्न प्रकार की प्रेरणाएँ, रियायतें एवं अनुदान प्रदान करते हैं। इन सुविधाओं को पाने के लिए राज्य उद्योग निदेशालय के अधीक लघु इकाई का पंजीयन होना अनिवार्य है। अब तक उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार लघु उद्योगों को प्रदान की जाने वाली प्रमुख प्रेरणाएँ, रियायतें एवं अनुदान निम्नलिखित हैं

(i) राज्य पूँजी विनियोजन अनुदान (State Capital Investment Subsidy) राज्य में लघु उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकारें प्राथमिकता के क्षेत्र में आने वाले उद्योगों के लिए राज्य पूँजी विनियोजन अनुदान प्रदान करती हैं। वर्तमान में ये सुविधाएँ उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, केरल, त्रिपुरा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू एवं कश्मीर, मेघालय तथा अण्डमान एवं निकोबार में उपलब्ध हैं।

(ii) भूमि, विकसित औद्योगिक प्लॉट,शेड एवं औद्योगिक बस्तियाँ (Land, Developet Industrial Plots, Sheds and Industrial Estates) राज्य सरकारें नवीन लघु इकाइयों की स्थापना के लिए अपने यहाँ भूमि का अधिग्रहण करती हैं। उनमें नवीन लघु इकाइयों के लिए विकसित औद्योगिक प्लॉट, शेड तथा औद्योगिक बस्तियों की स्थापना है। इन्हें नवीन लघु इकाइयों की स्थापना के लिए रियायती दरों पर देती हैं। ये सुविधाएँ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा केरल, मणिपुर, कर्नाटक, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, दमन तथा अण्डमान एवं निकोबार में दी जा रही हैं।

(iii) भूमि विकसित औघौगिक पलाँट शेड एवं औघोगिक वस्तियाँ (Infrastructural Facilities Developed) राज्य सरकारें लघु उद्योगों के विकास के लिए स्थापित औद्योगिक बस्तियों में अवस्थानिक सुविधाओं का विकास करती है, जैसेसड़क परिवहन, स्कूल, बिजली, जल-पूर्ति, चिकित्सा आदि। ये सुविधाएँ उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, केरल, हरियाणा, मणिपुर, नगालैण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, दमन, अण्डमान एवं निकोबार आदि में उपलब्ध हैं।

(iv) अनुदान (Subsidy) विभिन्न राज्य सरकारें एवं केन्द्र द्वारा प्रशासित प्रदेश सरकारें लघु उद्योगों के विकास के लिए विभिन्न प्रकार के अनुदान देती हैं जैसे—(1) ब्याज अनुदान (Interest Subsidy),(2) परिवहन अनुदान (Transport | Subsidy),(3) तकनीकी ज्ञान अनुदान (Technical Know-how Subsidy),(4) शक्ति रेखा एवं जनरेटिंग सैट अनुदान। (Power Line and Generating Sets Subsidy), (5) व्यवहार्यता अध्ययन परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में लागत अनुदान (Feasibility Study and Project Report Preparation Cost Subsidy),(6) आधुनिकीकरण/विस्तार । अनुदान (Modernisation Expansion Subsidy),(7) मार्जिन धन/बीज पूँजी अनुदान (Margin Money/Seed Capital Subsidy),(8) वायुयान किराया अनुदान (Air freight Subsidy), एवं (9) पंजीयन शुल्क अनुदान (Registration Fee Subsidy) आदि।

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(v) विपणन समर्थन  (Marketing Support) राज्य सरकारों के विभिन्न विभाग, अर्द्ध-सरकारी संगठन, स्वायत्त  अनुदान प्राप्त संस्थान, विभागीय उपक्रम आदि अपने लिए वस्तुओं का क्रय करते समय लघु उद्योगों द्वारा निर्मित प क्रय का प्राथमिकता देते हैं। ये सविधाएँ विशेषत: मणिपुर, दिल्ली, त्रिपुरा, जम्मू-कश्मीर, नागालेण्ड, करल आद राज्यों द्वारा प्रदान की गई हैं।

(Vi) नियांतअभिमखी इकाइयों के लिए विशेष सविधाएँ (Special Facilities for Export oriented Units) राज्य सरकारें निर्यात-अभिमुखी लघु औद्योगिक इकाइयों को प्रेरणा देने के लिए समय-समय पर विशिष्ट पैकेजों (Packages) की घोषणाएँ करती हैं। वर्तमान में ये सविधाएँ उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, त्रिपुरा आदि राज्यों द्वारा प्रदान की गई हैं।

(VII) कामत प्राथमिकता (Price Preference) राज्य सरकारों द्वारा अपने लिए माल का क्रय करते समय लघु श्फाश्या मानामत माल पर 15% तक की कीमत प्राथमिकता दी जाती है। राज्य सरकारों के अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमा/मण्डलों द्वारा भी अपने लिए माल का क्रय करते समय लघु इकाइयों को 15% तक की कीमत प्राथमिकता प्रदान का जाता है। वर्तमान में ये सुविधाएँ त्रिपुरा, सिक्किम, केरल, मणिपर आदि राज्यों में उपलब्ध है।

(viii) गुणवत्ता, उत्पादकता एवं प्रौद्योगिकी विकास एवं प्रदषण नियन्त्रण विधियों के लिए प्रेरणाएं (Incentives for Quality, Productivity and Technology Upgradation and Pollution Control Devices) राज्य सरकारें लघु उद्योगों को उत्पादन में गुणवत्ता, उत्पादकता एवं प्रौद्योगिकी के विकास के लिए तथा प्रदूषण को नियन्त्रित करने वाली विधियों की स्थापना के लिए विभिन्न प्रकार की प्रेरणाएँ प्रदान करती हैं। ये प्रेरणाएँ प्रमुख रूप में दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, त्रिपुरा, कर्नाटक, मेघालय, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, गुजरात, नगालैण्ड आदि राज्यों में दी जाती हैं।

(ix) भारतीय अनिवासियों को प्रेरणाएँ (Incentives to Non-Resident Indians, NRI’s) राज्य सरकारे भारतीय अनिवासियों को अपने-अपने राज्यों में नवीन लघु इकाइयों की स्थापना के लिए विभिन्न प्रकार की प्रेरणाएँ प्रदन करती हैं। ये प्रेरणाएँ प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में दी जाती हैं।

(x) महिला उद्यमियों के लिए विशेष प्रेरणाएँ (Special Incentives to Women Entrepreneurs)राज्य सरकारें महिला उद्यमियों में साहसिक प्रवृत्ति जाग्रत करने के लिए उनके द्वारा प्रबन्धित उन उपक्रमों में जहाँ पर 80% या इससे अधिक महिला श्रमिक कार्यरत हैं विशेष प्रेरणाएँ प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए, भवन एवं यन्त्रों पर 50% अनुदान किराया अनुदान, प्रबन्धकीय अनुदान, प्रशिक्षण अनुदान आदि। वर्तमान में ये प्रेरणाएँ केरल तथा त्रिपुरा राज्यों तक ही सीमित हैं।

ध्यान रहे कि उपर्युक्त प्रेरणाएँ, रियायतें एवं अनुदान सभी राज्यों एवं केन्द्र द्वारा प्रशासित प्रदेशों में एकसमान नहीं है। सहायता की प्रकृति, मात्रा एवं उनमें सम्मिलित बातें अलग-अलग राज्यों एवं प्रदेशों में अलग-अलग हैं।

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(V विवध कदम (Miscellaneous Steps)

उपर्युक्त के अतिरिक्त, राज्य सरकारों ने उद्योगों की स्थापना एवं विकास के लिए और भी कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं। उनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं

(i) प्रदर्शनियों का आयोजनजनता को लघु उद्योगों की वस्तुओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने, उनमें रुचि उत्पन्न कराने तथा विक्रय में वृद्धि करने हेतु केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारें स्थान-स्थान पर प्रदर्शनियों का आयोजन करती हैं। केन्द्रीय सरकार विदेशों में भी लघु उद्योग में निर्मित वस्तुओं की प्रदर्शनियों आयोजित करती है।

(ii) अनुसन्धान केन्द्रों की स्थापनालघु उद्योग से सम्बन्धित वस्तुओं का विकास करने एवं सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने विभिन्न स्थानों पर अनुसन्धान केन्द्रों की स्थापना की है।

(iii) आयात में छूट एवं सहायता सरकार लघु उद्योग में प्रयुक्त कच्चा माल एवं अन्य सामग्री के आयात में काफी सीमा तक छूट एवं सुविधाएँ प्रदान करती है। इनके आयात के लिए शीघ्र विदेशी मुद्रा उपलब्ध कराती है।

(iv) औद्योगिक बस्तियाँऔद्योगिक बस्तियों का निर्माण लघु इकाइयों को कारखानों के लिए उपयुक्त स्थान तथा सविधाएँ प्रदान करने की दृष्टि से किया जाता है। इस प्रकार की औद्योगिक बस्तियों में सामूहिक प्रौद्योगिकी तथा मरम्मत की सुविधाएँ तथा अन्य सेवाएँ भी प्रदान की जाती हैं।

(v) सरकारी क्रय में प्राथमिकता केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकारें दोनों अपने विभागों के लिए आवश्यक वस्तएँ एवं उधोगो से प्राथमिकता के आधार पर क्रय करती हैं। कछ वस्तुओं की खरीद तो केवल लघु उद्योगों से ही की जा। सकती है।

 (VI) आद्योगिक सहकारिता की स्थापना सरकार लघु उद्योग क्षेत्र में सहकारी संगठन को प्रोत्साहन दे रही है। सन् 1966 में औद्योगिक सहकारिताओं के राष्ट्रीय संघ की स्थापना हुई। इस संघ का उद्देश्य औद्योगिक सहकारी समितियों द्वारा उत्पादित माल के थोक व्यापार और निर्यात में सहायता देना है।

(vii) प्रशिक्षण सुविधाएँ सरकार अपने विभिन्न संगठनों के माध्यम से लघु उद्योगों में कार्यरत कर्मचारियों व उद्यमियों। का प्रशिक्षण प्रदान करती है। इस सम्बन्ध में राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम तथा लघु उद्योग विकास संगठन लघु उद्योगों के लिए। तकनीकी एवं प्रबन्धकीय प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।

(viii) रुग्ण इकाइयों के लिए सहायता सरकार लघु उद्योग क्षेत्र में विद्यमान रुग्ण इकाइयों के लिए हर सम्भव सहायता प्रदान करती है। इस सम्बन्ध में सरकार ने 16 दिसम्बर, 1985 को ‘रुग्ण उद्योग कम्पनी’ (विशेष प्रावधान) बिल भी पारित किया है।

(ix) (1) आयकर में छूटें एवं रियायतें, (2) स्थानीय करों में छूटें, (3) बिक्री-कर में छूट एवं रियायतें,(4) स्टाम्प शुल्क में छूट।

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लघु उद्योगों की वर्तमान स्थिति

(Present Position of Small Industries)

वर्तमान सरकार लघु उद्योगों के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के लिए दृढ़ संकल्प है। तत्कालीन केन्द्रीय सरकार के वित्तमन्त्री श्री यशवन्त सिन्हा के अनुसार, “लघु इकाइयों से इंस्पेक्टर राज यथा-शीघ्र समाप्त किया जायेगा तथा केन्द्रीय उत्पाद कर प्रशासन में व्यापक फेरबदल किया जायेगा।” वर्तमान में लघु इकाइयाँ मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के उत्पादन में 40% योगदान करती हैं। देश के कुल निर्यात व्यापार में इनकी हिस्सेदारी 35% है।

लघु उद्योगों की समस्याएँ

(Problems of Small Industries)

यद्यपि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा लघु उद्योगों के विकासार्थ व्यापक पग उठाये गये हैं, किन्तु फिर भी इन उद्योगों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जोकि इनकी प्रगति में बाधक हैं। इनमें से प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1 विकास की धीमी गतियद्यपि 1960 में प्रकाशित लघु उद्योगों के प्रतिवेदन पर जापानी विशेषज्ञों के दल ने भारत सरकार की वर्तमान नीति पर सन्तोष व्यक्त किया था और कहा था स्वतन्त्रता के पश्चात् वास्तव में लघु उद्योगों का विकास हुआ है, तथापि जिस गति से इनका विकास होना चाहिए था, उस गति से यह नहीं हो सका।

2. बन्द अथवा बोगस लघु उद्योगों की समस्या–वर्तमान में देश के एक-तिहाई लघु उद्योग या बन्द हो गये हैं या फिर उनके अस्तित्व का ही पता नहीं चल पा रहा है जिन्हें कुछ लोग ‘बोगस उद्योग’ की संज्ञा देते हैं। बोगस उद्योग वास्तव में वे हैं जो कच्चा माल प्राप्त तो करते हैं, किन्तु स्वयं उसका उपयोग न कर उसे चोर बाजार में बेच देते हैं।

3. रुग्ण अथवा बीमार इकाइयों की समस्या-करोड़ों रुपये के पूँजी निवेश और विभिन्न प्रकार की सरकारी सुविधाएँ प्राप्त होने के बावजूद देश में लघु उद्योग क्षेत्र की अधिसंख्य इकाइयाँ बीमार एवं जर्जर स्थिति में हैं। इकाइयों के बीमार होने का जो सरकारी मापदण्ड है, उसके अनुसार लगभग 25 प्रतिशत लघु उद्योग इकाइयाँ बीमार हैं, परन्तु गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार 40 प्रतिशत से 45 प्रतिशत तक लघु इकाइयाँ बीमार हैं।

4. वित्त की समस्या वित्त किसी भी उद्योग का ‘जीवन रक्त’ है। अतएव प्रत्येक उद्योग के लिए स्थायी तथा कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इनके सीमित साधनों के कारण उन्हें विशेषतः कार्यशील पूँजी की कमी का सामना करना पड़ता है। व्यापारिक बैंकों से ऋण लेने पर उन्हें अनेक वैधानिक कार्यवाहियों एवं औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है और तत्पश्चात् समय-समय पर अनेक रिटर्न भी भेजने पड़ते हैं। अतएव लघु उद्योगों के स्वामी परेशान होकर अनेक बार बैंकों का व अन्य वित्तीय संस्थानों का सहारा छोड़कर देशी साहूकारों पर निर्भर हो जाते हैं और उनके चंगुल में बुरी तरह से फंस जाते हैं जिसके कारण कभी-कभी लघु उद्योग उनके हाथों से भी निकल जाते हैं।

5.अनुकूलतम आकार की समस्या उद्योग चाहे छोटा हो अथवा बड़ा, उसका आकार अनकलतम होना चाहिए।। अनुकूलतम आकार होने से विद्यमान साधनों तथा क्षमता का पूर्ण उपयोग करना सम्भव हो जाता है, किन्तु हमारे लघु उद्योगों के समक्ष अनुकूलतम आकार की गम्भीर समस्या विद्यमान है।

6. श्रम समस्या हमारे लघु उद्योग श्रम समस्याओं से भी ग्रसित हैं, यद्यपि इनकी श्रम समस्याएँ बड़े उद्योगों से भिन्न हैं। लघु उद्योगों में प्रायः अस्थायी श्रमिक अधिक होते हैं। वे अपेक्षाकृत अनुपस्थित अधिक रहते हैं और चाहे जब उद्योग छोड़कर चले जाते हैं।

7. नवीन प्रविधियों के प्रति रुचि का अभाव योजना आयोग ने स्वयं स्वीकार किया है कि नवीन प्रविधियों के प्रति भारतीय लघु उद्योगों एवं शिल्पकारों का दृष्टिकोण सहानुभूतिपूर्ण नहीं है। ।

8. कच्चे माल का अभाव-लघु उद्योगों की स्थापना एवं विकास के लिए आवश्यक कच्चा माल अत्यन्त कठिनाई तथा विलम्ब के बाद प्राप्त हो पाता है। इन उद्योगों के विकास में बाधाओं के निम्न पहलू हैं—(i) थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कच्चा माल क्रय करने से इन्हें अधिक मूल्य देना पड़ता है। (ii) वित्तीय संकट तथा थोड़ी मात्रा में कच्चा माल खरीदने के लिए इन्हें घटिया किस्म का कच्चा माल मिल जाता है। (iii) आयातित कच्चे माल के सम्बन्ध में लघु उद्योगों के समक्ष सरकारी भ्रष्टाचार की प्रमुख कठिनाई रहती है। (iv) सरकार द्वारा आवंटित कच्चे माल को लघु उद्योग सरकारी लालफीताशाही तथा वित्तीय संकट के कारण समय पर उठा नहीं पाते हैं जिसके कारण उस कोटे को रद्द कर दिया जाता है अथवा चोर बाजार में बिक जाता है।

9. ऊँची लागत व्यययद्यपि लघु तथा कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित कलात्मक वस्तुओं की बिक्री हेतु केन्द्रीय व राज्य सरकारों द्वारा सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु अधिकांश वस्तुओं की ऊँची उत्पादन लागत तथा अत्यधिक ऊँची कीमतों ने इन्हें सामान्य जनता के उपयोग की वस्तुओं की अपेक्षा धनिक वर्ग की कोठियों तथा भव्य प्रासादों में विलासिता प्रदर्शन की वस्तुएँ बना दिया है।

10. औद्योगिक बस्तियों के निर्माण की धीमी गति लघु उद्योगों के लिए औद्योगिक बस्तियों की निर्माण कार्य बहुत धीमा है। फिर अनेक बस्तियों में इकाइयों के विस्तार की गुंजाइश नहीं है। उद्योगपतियों को शेड प्राप्त होने से पूर्व काफी प्रतीक्षा करनी पड़ती है, फिर कुछ औद्योगिक बस्तियों में परिवहन की समुचित व्यवस्था नहीं है।

11. विपणन सम्बन्धी कठिनाइयाँ लघु उद्योगों में विपणन की समस्या एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। जनता की रुचियों में परिवर्तन, बड़े उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पाद से प्रतियोगिता, विज्ञापन एवं प्रचार के सीमित साधनों आदि के कारण उन्हें अपने उत्पाद को बेचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अभी हाल में इण्डियन चेम्बर ऑफ कॉमर्स द्वारा किये गये सर्वेक्षण के अनुसार 74% लघु उद्योग विपणन की समस्याओं से ग्रसित हैं।

12. बड़े उद्योगों से प्रतियोगिताकुटीर एवं लघु उद्योगों को बड़े उद्योगों द्वारा निर्मित सस्ते माल की प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है जोकि इनको बहुत महँगा पड़ता है।

13. प्रबन्धकीय योग्यता का अभाव-इनकी स्थापना प्रायः छोटे-छोटे उद्यमियों द्वारा की जाती है जिनमें प्रबन्धकीय योग्यता का अभाव होता है जिसका प्रतिकूल प्रभाव इन उद्योगों की कुशलता पर पड़ता है।

14. अन्य समस्याएँ (i) परिवहन सुविधाओं का अभाव, (ii) पर्याप्त सूचनाओं एवं परामर्श का अभाव, (iii) मध्यस्थों द्वारा शोषण किया जाना, (iv) पर्याप्त शक्ति के साधनों का अभाव।

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लघु उद्योगों की समस्याओं का समाधान एवं विकास के लिए सुझाव

(Suggestions for the Solution of Problems and Development of Small Industries)

वर्तमान परिस्थितियों में लघु उद्योगों की समस्याओं का समाधान करने तथा उनके विकास के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं

1 कच्चे माल पूँजी की आपूर्ति कच्चे माल एवं पूँजी की सामयिक पूर्ति हेतु राज्य सरकारें, वित्तीय संस्थान तथा जिला उद्योग केन्द्र उत्तरदायित्व लें। 25 अक्टूबर, 1989 को स्थापित लघु उद्योग विकास बैंक ऑफ इण्डिया वित्तीय कमी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

2. उत्पादन लागत में कमी उत्पादन लागत में कमी करने के लिए दो सुझाव दिये जा सकते हैं—(अ) जिन उद्योगों में कच्चा माल मिलों से प्राप्त होता है, उन पर से उत्पादन कर समाप्त कर दिया जाए। (ब) औद्योगिक इकाइयों के विवेकपूर्ण प्रबन्ध की व्यवस्था की जाए।

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उपयोगी प्रश्न (Useful Questions).

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 एक लघु औद्योगिक उपक्रम को परिभाषित कीजि गिक उपक्रम को परिभाषित कीजिए। औद्योगिक विकास में इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।

Denne a small Industrial Undertaking. Describe its importance in industrial development

2. इसकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। भारत की अर्थव्यवस्था में इनका क्या महत्त्व है?

What is a Small unit? Explain their characteristics. What is their importance in the Indian economy?

3. लघु उधोगिको पारिभाषित कीजिए और भारत में लघ उद्योग के सम्बन्ध में शासकीय प्रयासा का उल्लखाका industry in India. dustry and explain the government measures regarding the development of small

4. लधु उघोग से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख विशेषाताएँ लिखिए। सरकार की लघु उद्योग सम्बन्धी नीति का परीक्षण कीजिए।

do you mean by Small Business ? Write its main characteristics. Explain the government policy of small business.

5. लघु उद्योगों की समस्याओं की विवेचना कीजिए और उन्हें हल करने के लिए सुझाव दीजिए।

Discuss the problems of small industries and suggest measures to solve them.

6. लघु उद्योग से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ समझाइये।

What is meant by small industry ? Discuss its main features.

7. भारत में लघु आकार वाले उद्योगों की कौन-कौन सी समस्याएँ हैं ? लघु उद्योग बेकारी दूर करने में कहाँ तक सहायत हो सकते हैं ?

What are the problems of small-scale industries? How can the small-scale industries be helpful in removing unemployment?

8. लघु उद्योग के सम्बन्ध में सरकारी नीति की विवेचना कीजिए।

Discuss government policy regarding small industries.

9. भारत की अर्थव्यवस्था में लघु उद्योग का क्या महत्त्व है ?

What is the importance of small-scale industry in the Indian economy?

10. लघु आकार से क्या आशय है ? इसकी विशेषताएँ तथा समस्याएँ बताइए।

What is meant by Small Scale Industry? Explain its characteristics and problems.

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1 हमारे दश में लघु इकाइयों के प्रोत्साहन हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदमों का वर्णन कीजिए।

Describe the steps taken by the Government to promote the small units in our country.

2. लघु इकाइयों के प्रबन्ध की प्रमुख समस्याओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Describe in brief the main problems of the management of small units.

3. भारत की अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का महत्त्व बताइए। (कोई पाँच बिन्दु)

Explain the importance of small industries in Indian economy. (Any five points

4. भारत में लघु उद्योगों के विकास के लिए कोई पाँच सुझाव दीजिए।

Give any five suggestions for the development of small industries in India.

5. लघु उद्योगों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

Explain main characteristics of small industries.

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III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

1 लघु उद्योग का अर्थ बताइए।

Explain the meaning of small industry.

2. लघु उद्योग कसे कहते हैं ?

What is small industries?

3. अति लघु उद्योगों से आप क्या समझते हैं?

What do you mean by tiny industries?

4. लघु उद्योगों की किन्हीं चार विशेषताओं को बताइए।

State any four characteristics of small industries.

5. भारत में लघु उद्योगों की भूमिका को संक्षेप में बताइए।

State, in brief, role of small industries in India.

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

सही उत्तर चुनिए (Select the Correct Answer)

(i) भारत में लघु उद्योगों का पंजीयन कराना है

(अ) ऐच्छिक

(ब) आवश्यक

(स) अनिवार्य

(द) इसमें से कोई नहीं।

In India registration of small industries is

(a) Voluntary

(b) Necessary

(c) Compulsory

(d) None of these.

(ii) लघु उद्योग में विनियोजन सीमा है

(अ) 3 करोड़ रु.

(ब) 4 करोड़ रु.

(स) 5 करोड़ रु.

(द) 6 करोड़ रु.।

Investment limit in small industry is

(a) Rs. 3 crore

(b) Rs. 4 crore

(c) Rs. 5 crore

(d) Rs. 6 crore

(iii) लघु उपक्रमों के प्रति राज्य सरकारों का दृष्टिकोण है

(अ) सकारात्मक

(ब) नकारात्मक

(स) उदासीन

(द) इसमें से कोई नहीं।

The attitude of state government toward small units is

(a) Positive

(b) Negative

(c) Indifferent

(d) None of these

(iv) लघु उद्योग विषय है

(अ) स्थानीय सरकार का

(ब) केन्द्र सरकार का

(स) राज्य सरकार का

(द) इन सभी का।

Small industry is the subject of

(a) Local Government

(b) Central Government

(c) State Government

(d) All of these.

(v) भारत की बेकारी की समस्या का समाधान निहित है

(अ) लघु उद्योग

(ब) कुटीर उद्योग

(स) बड़े उद्योग

(द) उनमें से कोई नहीं।

Solution to the unemployment problem in Indian lies in

(a) Small Industries

(b) Cottage industries

(c) Large industries

(d) None of these

(vi) राज्य सरकारें लघु उद्योगों को अनुदान देती हैं

(अ) ब्याज के भुगतान पर

(ब) तकनीकी ज्ञान पर

(स) परिवहन पर

(द) इन सभी का।

State governments provide subsidies to small industries on

(a) Payment of interest

(b) On technical know-how

(c) On transport

(d) On all these.

[उत्तर-(i) (ब), (ii) (ब), (iii) (अ), (iv) (स), (v) (अ), (vi) (द)।]

2. इंगित करें कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं या ‘गलत’

(Indicate Whether the Following Statements are “True or ‘False’)

(i) भारत में लघु उद्योगों का पंजीयन कराना अनिवार्य है।

Registration of small industries is compulsory in India.

(ii) लघु उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था पर भार है।

Small industries are burden on Indian economy.

(iii) बेकारी जैसी गम्भीर समस्या का निदान लघु उद्योगों के विकास में निहित है।

The solution to serious problems like unemployment lies in the development of small industries.

(iv) लघु उद्योग राज्य सरकारों का विषय है।

The small industry is the subject of the state governments.

(v) लघ इकाइयों के प्रति राज्य सरकार का नकारात्मक दष्टिकोण है।

State Government have negative attitude towards small units.

[उत्तर-(i) गलत, (ii) गलत, (iii) सही, (iv) सही, (v) गलत।।

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chetansati

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