(स) रिपोर्ट सम्बन्धी मानक (Standards of Reporting)

(1) रिपोर्ट से यह स्पष्ट किया जायेगा कि वित्तीय विवरण लेखाकर्म के सामान्य स्वीकृत सिद्धान्तों के अनुरूप प्रस्तुत किये गये हैं।

(The report shall state whether the financial statements are presented in accordance with the generally accepted principles of accounting.)

यह मानक इस बात की ओर इंगित करता है कि संस्था के वित्तीय खाते सामान्य तौर पर स्वीकत लेखाकर्म सिद्धान्तों के अनुरूप तैयार किये गये हैं। जहां तक वित्तीय विवरणों के प्रारूप और विषय सामी। का सम्बन्ध है. यह भी स्पष्टतः बताता है कि विभिन्न प्रकार की सम्पत्तियों का मूल्यांकन उसके सिद्धान्तों के अनरूप किया गया है। सामान्य रूप से सर्वमान्य लेखाकर्म के सिद्धान्तों में जिनके आधार पर वार्षिक वित्तीय विवरण तैयार किये जाते हैं, ऐतिहासिक लागत सिद्धान्त, लेखाकर्म समयावधि सिद्धान्त (Accounting Period Principle), चालू संस्था का सिद्धान्त (Going Concern Principle), लेखाकर्म अस्तित्व सिद्धान्त (Accounting Entity Principle) तथा मौद्रिक सिद्धान्त (Monetary Principle) प्रमुख हैं। अंकेक्षक को यह देखना होगा कि वित्तीय विवरण बनाते समय उन सभी मान्यताओं और सिद्धान्तों का अनुकरण किया गया है जो प्रयोग में लाने चाहिए। इन मान्यताओं पर आधारित रूढ़िवादिता का सिद्धान्त (Doctrine of Conservatism), प्रकटीकरण का सिद्धान्त (Doctrine of Disclosure), भौतिकत्व (Materiality) और पूर्णता (Consistency) के सिद्धान्त भी उल्लेखनीय हैं।

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(2) रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि ऐसे सिद्धान्तों का पिछली अवधि के सन्दर्भ में वर्तमान अवधि में पूर्णरूपेण प्रयोग किया गया है।

(The report shall state whether such principles have been consistently observed in the current period in relation to the preceding period.)

यह मानक इस बात की ओर इंगित करता है कि सभी मानकों में पूर्णता का सिद्धान्त अपनाया गया है। ये मामले निम्न हैं :

(1) स्टॉक का मूल्यांकन,

(2) ह्रास की पद्धतियां, .

(3) लेखा-विवरण के आधार।

उन कार्यों के करने में वर्ष प्रतिवर्ष की वित्तीय स्थिति और परिचालक के परिणामों की महत्वपूर्ण तुलना की जा सकती है। पूर्णता का सिद्धान्त यह भी बताता है कि नवीन और सुधरी हुई तकनीकों व विशिष्ट परिस्थितियों के लिए अधिक उपयोगी सिद्धान्तों का अपनाया जाना, इन दोनों कार्यों के लिए व्यवस्था में लचीलापन रखा गया है। पिछले वर्षों का अनुभव इस वर्ष के आयोजनों का आधार यथासम्भव परिवर्तित परिस्थितियों में बन जाना चाहिए। यह इस मानक का आधारभूत पहलू है।

(3) वित्तीय विवरणों में सूचनात्मक प्रकटीकरण उचित रूप से पर्याप्त समझा जाना चाहिए जब तक कि रिपोर्ट में उसके विपरीत संकेत न हो।

(Informative disclosures in the financial statement should be regarded as reasonably adequate unless otherwise stated in the report.)

इस मानक के परिपालन के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया जाता है कि लेखाकर्म के प्रकटीकरण का सिद्धान्त एक आवश्यक मानक है, जिसके अनुरूप वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत करने में आधार बनना चाहिए। वार्षिक खाते सिद्धान्ततः ईमानदारी के साथ इस प्रकार तैयार किये जाने चाहिए कि उनमें सभी महत्वपूर्ण सूचनाओं का प्रकटीकरण और समावेश हो जाये। इस प्रकार सम्पूर्ण भौतिक सूचना वार्षिक खातों में प्रकट की गई है, कोई तथ्य छिपाया नहीं गया है और न ऐसी कोई सूचना दी गयी है जो किसी भी प्रकार से गलत धारणा बनाने में सहायक होती है। यह सब अंकेक्षक की रिपोर्ट में स्पष्ट किया जाना चाहिए।

(4) रिपोर्ट में सम्पूर्ण वित्तीय विवरणों के सम्बन्ध में या तो स्पष्ट राय प्रकट की जानी चाहिए अथवा। यह उल्लेख किया जाना चाहिए कि राय स्पष्ट रूप से नहीं दी जा सकती। जब पूर्ण राय नहीं प्रकट की जा। सकती तो उसके लिए कारण भी स्पष्ट किये जाने चाहिए। सभी मामलों में जहां वित्तीय विवरणों के साथ। अंकेक्षक का नाम जुड़ा हुआ होता है, रिपोर्ट में अंकेक्षक के जांच के स्वरूप की ओर स्पष्ट इशारा होना। चाहिए और इस दायित्व की मात्रा भी इंगित होनी चाहिए जिसे वह अपने ऊपर ले रहा है।

(‘The report shall either contain an expression of an opinion regarding the financial statements taken as a whole, or an assertion to the effect that an opinion cannot be expressed when an overall opinion cannot be expressed. The reasons therefor should be stated in all cases where an auditor’s name is associated with the financial statements. The report should contain a clear-cut indication of the character of the auditor’s examination, if any and the degree of responsibility he is taking.)

रिपोर्ट के मानकों के अन्तर्गत व्यावसायिक अंकेक्षक को यह स्पष्ट करना होता है कि किस कारण से उसका नियोक्ता सामान्यतः स्वीकृत लेखाकर्म के सिद्धान्तों के अनुरूप वार्षिक वित्तीय विवरण के आंकड़ों को प्रस्तुत करने में असफल रहा है। नियमानुसार व्यवसाय को वर्ष प्रतिवर्ष स्वस्थ परम्पराओं का अनुकरण करना चाहिए और पर्याप्त प्रकटीकरण की प्रकृति के अनुरूप सूचनाएं उपलब्ध करनी चाहिए। अंकेक्षक को इस सम्बन्ध में अपनी स्पष्ट राय देनी चाहिए और इन विवरणों में यदि किन्हीं सूचनाओं का अभाव है तो इसके कारणों पर भी प्रकाश डालना चाहिए। यह अंकेक्षक का प्रमुख दायित्व बन जाता है।

अंकेक्षक मानकों का परिपालन

उपरोक्त दस मानकों में यह सभी मापदण्ड निहित हैं जो पर्याप्त नियोजन, आन्तरिक नियन्त्रण का उचित मूल्यांकन, साक्ष्य सम्बन्धी मामलों की पर्याप्तता और उचित प्रकटीकरण की भावनाओं से सम्बन्ध रखते हैं। प्रत्येक मामले में यह तय करना कि कितना पर्याप्त है और कितना उचित है, अंकेक्षक के व्यावसायिक दायित्व, विवेक और निर्णयों पर निर्भर करता है। प्रत्येक जांच में अंकेक्षण के सम्मुख नवीन परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं जिनमें उसे विवेकपूर्ण निर्णय लेने होते हैं। यह होते हुए भी सावधानीपूर्वक तैयार किये गये अंकेक्षण मानकों की मान्यता अंकेक्षण-कार्य की गुणवत्ता में वृद्धि करने के लिए अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है ।

यदि यह सभी मानक सामान्य रूप से स्वीकार किये जाते हैं तो यह मान लिया जायेगा कि प्रत्येक निष्पक्ष अंकेक्षक इस गुणवत्ता को मानता है, जो व्यवसाय के अन्य सदस्यों के द्वारा अपनायी जानी चाहिए जैसी कि उनसे अपेक्षा की जाती है। इसका अर्थ यह है कि एक अंकेक्षक के द्वारा निकाले हुए निष्कर्ष बहुत कुछ वैसे ही होंगे जैसे कि दूसरों के द्वारा निकाले जायेंगे, जबकि लेखाकर्म के आंकड़ों को दोनों के सम्मुख समान रूप से प्रस्तुत किया जायेगा।

अंकेक्षण मानकों का विकास निष्पक्ष अंकेक्षण के व्यवसाय के लिए उच्च स्तर बनाये रखने की दृष्टि से किया गया है और यह मानक उनके इस नैतिक दायित्व में पर्याप्त रूप में सहायक सिद्ध हो गये हैं।

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स्वतन्त्रता : सर्वाधिक महत्वपर्ण अंकेक्षण मानक

(INDEPENDENCE : MOST IMPORTANT AUDITING STANDARD)

निष्पक्ष अंकेक्षक की राय जो वह कम्पनी के वित्तीय विवरण के सम्बन्ध में प्रकट करता है तब तक अर्थहीन है जब तक कि अंकेक्षक स्वयं वास्तव में स्वतन्त्र नहीं है। परिणामस्वरूप अंकेक्षण मानक जिसके अन्तर्गत अंकेक्षक को अपनी स्वतन्त्र राय देने के लिए छूट दी जाती है, अत्यन्त ही महत्वपूर्ण मानक बन जाता है। यदि अंकेक्षक कम्पनी में अंशधारी है अथवा संचालक मण्डल में संचालक है तो वह अपने कार्यों के निष्पादन में स्वतन्त्र नहीं हो सकता है। उसे अपना कार्य निष्पक्षता के साथ इस प्रकार सम्पन्न करना चाहिए कि उसकी स्वतन्त्रता पर कोई भी बाहरी व्यक्ति सन्देह नहीं कर सके। यह कार्य वह अपनी जांच में पर्ण स्वतन्त्र होने पर ही पूर्ण कर सकता है।

कभी-कभी यह कहा जाता है कि अंकेक्षक को अपनी स्वतन्त्रता बनाये रखने में यह कठिनाई आती है कि वह कम्पनी के प्रबन्ध के द्वारा नियुक्त किया जाता है और उन्हीं के द्वारा उसे पारिश्रमिक दिया जाता है। कभी-कभी प्रबन्ध के लिए वह वित्तीय परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है। इन परिस्थितियों में उसे विवश होकर प्रबन्ध के प्रति सहानुभूति रखनी होती है। अतः वह स्वतन्त्र नहीं रह सकता। वास्तव में ये बातें उसको निष्पक्ष राय प्रकट करने में बाधक नहीं बननी चाहिए। वित्तीय परामर्श देना और खातों का अंकेक्षा करना दोनों अलग-अलग पहलू है। वित्तीय परामर्श देने में वह अंकेक्षक नहीं है वरन परामर्शदाता है।

प्रबन्ध और अंकेक्षक के सीधे सम्पर्क से कभी-कभी यह सन्देह उत्पन्न हो जाता है कि अंकेक्षक प्रबन्धक के हित में कार्य करेगा और वह अंशधारी, लेनदार, कर्मचारी और अन्य पक्षों के हितों की उपेक्षा करेगा। ऐसा है तो उसकी रिपोर्ट की विश्वसनीयता समाप्त हो जायेगी।

संरक्षण के लिए नियुक्त किया जाता है और इस कारण उसका यह पनीत कर्तव्य है कि कम्पनी के क्रियाकलाप की समीक्षा उनके हितों को ध्यान में रखते हए करे ताकि अपनी रिपोर्ट स्वतन्त्र रूप से दे सके। स्वामियों का हित संरक्षण ही उसका एकमात्र दायित्व है।

अतः अंकेक्षण की ईमानदारी और निष्पक्षता पर अंकेक्षण-व्यवसाय पूर्णरूप से आधारित है। यदि वह प्रबन्ध के लिए प्रवक्ता का कार्य करता है तो वह अपने व्यावसायिक दायित्व को भूल जाता है और इस प्रकार वह निष्पक्ष नहीं रह सकता है। ऐसी परिस्थितियों में उसकी रिपोर्ट की विश्वसनीयता समाप्त हो सकती है जो अंकेक्षण-व्यवसाय के लिए सदैव घातक सिद्ध हो सकती है।

लेखाकर्म मानक व अंकेक्षक (Accounting Standards and Auditing)

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टैण्टस ऑफ इण्डिया (Institute of Chartered Accountants of India) इस आवश्यकता को पहचान कर कि भारत में प्रयोग में आ रही लेखाकर्म की नीतियों तथा व्यवहारों में अत्यधिक भिन्नता है, 21 अप्रैल, 1977 को एक एकाउण्टेन्सी स्टैण्डर्ड्स बोर्ड (Accountancy Standards Board) की स्थापना की जिसका प्रमुख कार्य लेखाकर्म मानक (Accounting Standards) तैयार करना था। इन मानकों के बनाने में बोर्ड को वर्तमान व्यवसाय वातावरण, प्रयोग में आ रहे सन्नियम,रीतियों (Customs). आदि पर विचार कर लेना होगा।

इन्स्टीट्यूट लेखाकर्म मानकों (Accounting Standards) का निर्गमन करेगी जिनका परिपालन औद्योगिक तथा व्यावसायिक संस्थानों के द्वारा जनता के लिए सामान्य उद्देशीय वित्तीय विवरणों (General Purpose Financial Statements) के प्रस्तुतीकरण में किया जायेगा, सामान्य उद्देशीय वित्तीय विवरण में चिट्ठा, लाभ व हानि का विवरण-पत्र तथा अन्य विवरण सम्मिलित होंगे जो अंशधारियों, सदस्यों, लेनदारों, कर्मचारियों तथा जनसाधारण के प्रयोग के लिए निर्गमित किये जायेंगे। संस्थान के प्रबन्ध का दायित्व इन वित्तीय विवरणों को तैयार करना तथा प्रस्तुतीकरण करना है और अंकेक्षक का दायित्व इन पर अपनी राय बनाकर रिपोर्ट देना है।

एकाउण्टिंग स्टैण्डर्डस बोर्ड (ASB) उन प्रमुख क्षेत्रों का निर्धारण करेगा जिनमें लेखाकर्म मानकों (Accounting Standards) के बनाने व लागू करने की आवश्यकता है। इन मानकों के बनाने का मुख्य आधार लेखाकर्म के सिद्धान्त (Principles of Accounting) होंगे जिसके लिए सम्बन्धित मानक (Standard) में स्पष्टीकरण दिया जायेगा। संक्षेप में कुछ मानक निम्न हैं :

AS-1                                   लेखाकर्म नीतियों का प्रकटीकरण

(DISCLOSURE OF ACCOUNTING POLICIES)

 इस मानक में उन महत्वपूर्ण लेखाकर्म नीतियों का प्रकटीकरण किया गया है जिनका अनुकरण वित्तीय विवरणों के बनाने तथा प्रस्तुतीकरण में किया जाना चाहिए।

AS-2                                           माल का मूल्यांकन

(VALUATION OF INVENTORIES)

यह मानक वित्तीय विवरणों के लिए सामान या माल के मूल्यांकन के सिद्धान्तों को प्रतिपादित करता

AS-3                                       वित्तीय स्थिति में परिवर्तन

(CHANGE IN FINANCIAL POSITION)

यह मानक वित्तीय विवरण (Financial Statement) को स्पष्ट करता है जो एक निर्धारित अवधि के लिए एक संस्थान के कोषों (Funds) के स्रोतों तथा प्रयोगों का सारांश देते हैं। यह वित्तीय विवरण ‘फण्ड-बहाव विवरण’ (Funds-flow Statement) अथवा ‘फण्डों के स्रोत (साधन) व प्रयोग के विवरण’ (Statement | of Sources and Application of Funds) के नाम से भी जाना जाता है।

AS-4                  चिट्ठे की तिथि के पश्चात् होने वाली घटनाएं व आकस्मिकताएं

(CONTINGENCIES AND EVENTS OCCURRING AFTER THE BALANCE SHEET DATE)

यह मानक उन आकस्मिकताओं तथा घटनाओं का वर्णन देता है जो चिट्टे (Balance Sheet) की तिथि। के पश्चात् घटित होती हैं।

AS-5                   लेखाकर्म नीतियों में अवधि-पूर्व व असामान्य मदें तथा परिवर्तन

     (PRIOR PERIOD AND EXTRAORDINARY ITEMS AND CHANGES IN ACCOUNTING POLICIES)

लेखाकर्म नीतियों में परिवर्तनों एवं अवधि-पूर्व व असामान्य मदों को वित्तीय विवरणों में किस प्रकार लिखा जाना चाहिए. इस सिद्धान्त की व्याख्या व विवेचना AS 5 के मानक में की गयी है। AS-6

हास लेखांकन

(DEPRECIATION ACCOUNTING)

यह मानक ‘हास लेखांकन’ हास के लिए लेखा करने तथा उसके सम्बन्ध में प्रकटीकरण की आवश्यकताओं के विषय में सिद्धान्त की व्याख्या करता है।

यह मानक सभी हास-योग्य सम्पत्तियों के लिए लागू होता है। निम्न मदों को छोड़ दिया जाता है जिनके लिए विशेष आयोजन किये जाते हैं :

(i) वन-सम्पदा, बागवानी, आदि,

(ii) क्षयी सम्पत्तियां,

(iii) विकास तथा अनुसन्धान पर व्यय,

(iv) ख्याति,

(v) पशुधन (Live-stock)।

AS-7                                           निर्माणी प्रसंविदों के लेखाकर्म

(ACCOUNTING FOR CONSTRUCTION CONTRACTS)

यह मानक ठेकेदारों के वित्तीय विवरणों में निर्माणी प्रसंविदों के लेखा तैयार करने की व्यवस्था की विवेचना करता है। जो संस्थान ठेकेदारी का कार्य करते हैं और जिनके वित्तीय विवरणों में निर्माण कार्य से सम्बन्धित विवरणों के लेखे किये जाते हैं, उनके लिए यह मानक सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है।

AS-8                                           शोध व विकास के लेखांकन

(ACCOUNTING FOR RESEARCH AND DEVELOPMENT)

यह मानक शोध व विकास की लागतों के सम्बन्ध में वित्तीय विवरणों में दी गयी विवेचना को स्पष्ट करता है। निम्न विशेष कार्यों के लेखों के लिए यह मानक लागू नहीं होता है :

(i) प्रसंविदों के अन्तर्गत अन्य के लिए चलायी जाने वाली शोध व विकास क्रियाएं,

(ii) तेल, गैस व खनिज-संग्रह के लिए खोज,

(iii) निर्माणी अवस्था में संस्थाओं की शोध व विकास सम्बन्धी क्रियाएं।

AS-9                                              आय की पहचान

 (REVENUE RECOGNITION)

यह लेखांकन मानक अनिवार्य रूप का है। सन् 1991 से अनिवार्य रूप से लागू कर दिया है। यह मानक मुख्य तौर से कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत स्थापित सभी कम्पनियों पर लागू होता है।

AS-10                                   स्थायी सम्पत्तियों का लेखांकन

(ACCOUNTING OF FIXED ASSET)

यह लेखांकन मानक उन सभी कम्पनियों एवं संस्थाओं पर लागू होता है, जिनका पंजीकरण कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत हुआ है। यह नियम सभी संस्थाओं पर लागू होता है।

AS.11                       विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन के प्रभाव का मल्यांकन

(ACCOUNTING FOR THE EFFECT OF CHANGES IN FOREIGN EXCHANGE RATE)

यह लेखांकन सभी कम्पनियों पर लागू होता है, जो किसी भी रूप से विदेशी विनिमय का सहारा लेती है। इसके अन्दर अंकेक्षक मुद्रा की तुलना आदि को देखता है तथा प्रमाणित करता है।

AS-12                                    सरकारी अनुदान का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR GOVERNMENT GRANT)

 वर्ष 1984 से यह मानक पूर्ण रूप से अनिवार्य है। इसके अन्तर्गत अंकेक्षक इस बात को देखता है। कि जिस उद्देश्य से सरकारी अनुदान प्राप्त हुआ है वह पूरे होते हैं या नहीं।।

AS-13                                       निवेश के लिए लेखांकन

(ACCOUNTING FOR INVESTMENT)

यह मानक 1985 से लाग है। इसमें अंकेक्षक द्वारा निवेश के सभी तथ्यों का निरीक्षण किया जाता है तथा उसे प्रमाणित किया जाता है।

AS-14                                         एकीकरण लेखांकन

(AMALGAMATION ACCOUNTING)

 यह लेखांकन मानक अनिवार्य प्रकृति का है। इसके अंतर्गत अंकेक्षक द्वारा एकीकरण के समय में क्रय प्रतिफल, ख्याति आदि के मूल्यांकन को देखा जाता है।

AS-15                                      सेवानिवत लाभ का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR RETIREMENT BENEFIT)

 यह लेखांकन मानक वर्ष 1995 से लागू है। इसमें अंकेक्षक यह प्रमाणित करता है कि संस्था कहां तक अधिनियमों का पालन कर रही है तथा कितना लाभ प्राप्त हो रहा है

AS-16                                         उधार लागत लेखांकन

(ACCOUNTING FOR BORROWING COSTS)

यह लेखांकन मानक वर्ष 2000 से लागू है। इसमें अंकेक्षक यह देखता है कि संस्था में कितना हिस्सा उधार है और उसकी लागत क्या है ?

AS-17                                          खण्ड प्रतिवेदन का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR LEGMENT REPORTING)

यह लेखांकन वर्ष 2001 से ही लागू किया गया है। इसके अन्तर्गत वे सभी कम्पनियां आती हैं जिनका वार्षिक व्यापार 50 करोड़ से अधिक का है।

AS-18                                        सम्बन्धित पक्षों का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR RELATED PROPERTIES)

इसके अन्तर्गत अंकेक्षक यह देखता है कि किन तथ्यों या लेन-देनों का प्रभाव वित्तीय विवरण पर पड़ता है। यह एक अनिवार्य लेखांकन मानक है जो वर्ष 2001 से लागू है।

AS-19                                             पट्टा का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR LEAGE)

यह मानक वर्ष 2001 से अनिवार्य रूप से लागू है। इसके अन्तर्गत अंकेक्षक कम्पनी या संस्था द्वारा अगर कोई पट्टा किया है, तो उसको देखता है तथा प्रमाणित करता है।

AS-20                                   प्रति अंश प्रतिफल का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR EARNING PER SHARE)

इस लेखांकन मानक द्वारा कम्पनी की प्रति अंश अर्जन की क्षमता को देखा जाता है। यह मानक 2002 से लागू है।

AS-21                                           मिश्रित वित्तीय विवरणों का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR CONSOLIDATED FINANCIAL STATEMENT)

इस मानक के अन्दर सूत्रधारी कम्पनी और सहायक कम्पनी के मिश्रित चिटठे की जानकारी देना शामिल है।

As-22                                            आयकर लेखांकन

(INCOME TAX ACCOUNTING)

यह लेखांकन मानक 2002 से लागू है। इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि संस्था का टैक्स ऑडिट हुआ है या नहीं। इसे प्रमाणित भी किया जाता है। यह लेखांकन मानक अनिवार्य है।

AS-23                  सहायक में विनियोग का मिश्रित वित्तीय विवरण का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR INVESTMENT IN ASSOCIATES OF CONSOLIDATED FINANCIAL

STATEMENT) इस लेखांकन मानक में संस्था ने जो भी निवेश या विनियोग अपनी किसी भी सहायक कम्पनी से किया होता है, उसे दर्शाया जाता है।

AS-24                                    स्थगन क्रियाओं का लेखांकन

(ACCOUNTING OF DISCOUNTING OPERATION)

इस लेखांकन मानक के अन्तर्गत संस्था इस बाद को स्पष्ट करती है कि संस्था की कार्य-कलाप के बंद होने की स्थिति इच्छुक व्यक्ति तक प्रकट कर दी गई है।

AS-25                               आन्तरिक वित्तीय प्रतिवेदन का लेखांकन

(ACCOUNTING FOR INTER-FINANCIAL REPORTING)

इस लेखांकन मानक के अन्तर्गत संस्था के आन्तरिक वित्त प्रबन्ध तथा व्याख्या का स्पष्टीकरण किया जाता है।

लेखाकर्म मानक व अंकेक्षक

प्रायः ये सभी मानक स्वभावतः सिफारिश (recommendation) के रूप में इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स ने निर्गमित किये हैं। इन मानकों की अपने-अपने क्षेत्र में लागू होने के लिए उपयोगिता तो है। ही और उनको विभिन्न औद्योगिक व व्यावसायिक संस्थानों पर उनके विवेक व उपयोग के अनुसार लागू करने के लिए छोड़ दिया गया है।

इन्स्टीटयूट के सदस्यों का यह कर्तव्य हो जाता है कि उनकी अंकेक्षण रिपोर्टों में जिन वित्तीय विवरणों (Financial Statements) की समीक्षा की गयी है उनमें इन मानकों को ठीक प्रकार से क्रियान्वित किया गया है। यदि कहीं इन मानकों की अवहेलना या उपेक्षा की गयी है तो यह भी उनका कर्तव्य हो जाता है कि अपनी रिपोर्टों में इस बात का पर्याप्त रूप से प्रकटीकरण किया जाना चाहिए ताकि इन रिपोर्टों के पढ़ने वाले और प्रयोग करने वाले सही रूप में संस्थाओं के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकें और संस्थाओं की सही वित्तीय स्थिति का ज्ञान उनको हो सके।

अंकेक्षक इन्स्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स का प्रभावशाली व सक्रिय सदस्य होता है और इन्स्टीटयूट यह मानते हुए कि ये मानक प्रारम्भ में केवल औपचारिक सिफारिश के रूप में प्रयोग किये जाने हैं. धीरे-धीरे इनके प्रयोग करने वालों में व्यापक प्रचार के माध्यम से इनकी उपयोगिता को स्पष्ट करने का प्रयत्न करेगी। जब इनका परिपालन सही व पूर्णरूपेण होने लगेगा तो सदस्यों का यह दायित्व होगा कि वे अंकेक्षक के नाते इन मानकों की सही व्याख्या को,समझकर इनका परिपालन पूर्णरूपेण एवं सन्तोषजनक दृष्टि से करने के कर्तव्य को ईमानदारी व सतर्कता से निभायें। यह ही अपेक्षा अंकेक्षक से की जा सकती है।

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प्रश्न

1 अंकेक्षक मानक किसे कहते हैं ? व्यावसायिक अंकेक्षक के लिए उनका क्या मुल्य है?

What are auditing standards? What is their value to a professional auditor?

2. अंकेक्षण में मानकों का महत्व एवं आवश्यकता क्या है?

What is the need for and importance of standards in auditing?

3. अंकेक्षण मानकों के अन्तर्गत उनका अर्थ समझाते हुए अंकेक्षक के दायित्व की समीक्षा कीजिए।

Examine an auditor’s responsibility in the light of the implications of auditing standards.

4. लेखाकर्म मानकों के सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्य समझाइए।

Discuss the duty of an auditor in relation to the Accounting Standards.

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chetansati

Admin

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