BCom 1st Year Statistics Classification Tabulation Data Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Statistics Classification Tabulation Data Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Statistics Classification Tabulation Data Study Material Notes in Hindi: Classification objects or Functions of Classification Characteristics of an Ideal Classification Methods of Classification  Method of Classification  according to Qualities Quantitative  Classification  or Classification  According or Class Intervals Examination Question Long Answer Questions Short Answer Question :

Classification Tabulation Data
Classification Tabulation Data

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समंकों का वर्गीकरण तथा सारणीयन

(Classification and Tabulation of Data)

सांख्यिकीय अनुसंधान के अन्तर्गत बहुत बड़ी मात्रा में समंक एकत्रित करने पड़ते हैं किन्तु इन समकों के संकलन एवं सम्पादन के उपरान्त प्रमुख समस्या उनको ठीक से व्यवस्थित करने की होती है ताकि उन्हें आसानी से समझने योग्य बनाया जा सके । अतः संकलित सामग्री को संक्षिप्त एवं सरल तथा समझने योग्य बनाने के लिए वर्गीकरण व सारणीयन आवश्यक होता है। समंकों को प्रस्तुत करने की सही प्रक्रिया ही वर्गीकरण व सारणीयन कहलाती है।

वर्गीकरण

(Classification)

वर्गीकरण सरल करने की एक ऐसी रीति है जिसमें समग्र के अन्तर्गत आने वाले आँकड़ों को उनके गुणों, समानताओं और विशेषताओं के आधार पर अनेक स्तरों में बाँटा जाता है।

प्रो० एल० आर० कौनर के अनुसार, “वर्गीकरण तथ्यों को (वास्तविक या काल्पनिक रूप से) उनकी समानता या सादृश्यता के अनुसार समूहों या वर्गों में व्यवस्थित करने की क्रिया है और यह व्यक्तिगत इकाइयों की भिन्नता के बीच उनमें एकता की उपस्थिति व्यक्त करता है।”

प्रो० एच० सैक्राइस्ट के अनुसार, “वर्गीकरण समंकों को क्रमों और समूहों में उनकी समान विशेषताओं, जो उनको विभिन्न किन्तु सम्बन्धित भागों में विभाजित करते हैं,के आधार पर व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है ।

Statistics Classification Tabulation Data

अतः स्पष्ट है कि वर्गीकरण उस पद्धति को कहते हैं जिसके द्वारा समान गुण वाले पद एक वर्ग में रखे जाते हैं, और इस प्रकार गुणों के आधार पर एक समग्र अनेक वर्गों को जन्म देता हैं।

वर्गीकरण के मुख्य लक्षण-उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर वर्गीकरण के निम्न प्रमुख लक्षण प्रकट होते

(i) समंकों का विभिन्न वर्गों में विभाजन किया जाता है।

(ii) यह विभाजन किसी गुण या विशेषता या माप के आधार पर होता है।

(iii) यह विभाजन वास्तविक या काल्पनिक रूप में होता है।

(iv) वर्गीकरण इकाइयों की विभिन्नता में गुणों की एकता प्रदर्शित करता है।

वर्गीकरण के उद्देश्य या कार्य

(Objects or Functions of Classificaton)

संक्षेप में वर्गीकरण के निम्न उद्देश्य होते हैं

1 आंकड़ों को सरल संक्षिप्त बनाना (To make brief and simplify the data)-वर्गीकरण का प्रमुख उद्देश्य जटिल एवं अव्यवस्थित, आंकड़ों को संक्षिप्त सरल व व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करना है ताकि वे आसानी से समझ में आ सकें । उदाहरणार्थ, यदि 1000 व्यक्तियों के वेतन को अलग दिखाने के बजाय यदि कुछ वर्गों में जैसे 100-200, 200-300, 300-400 आदि में प्रस्तुत कर दिया जाये तो यह अधिक सरल व सुविधाजनक होगा।

2. समानता असमानता को स्पष्ट करना (To clarily similarities and dis-similarities)-समका का वर्गीकरण करते समय सजातीय एवं समान गुणों वाले समंक एक साथ रखे जाते हैं अत: उनकी समानता व असमानता स्पष्ट हो जाती है।

3. श्रम समय की बचत (To save labour and time)-वर्गीकत समंकों को समझने व अध्ययन करना में कम समय व श्रम लगता है जिससे उनसे निष्कर्ष शीघ्र ही निकालना संभव हो जाता है। ..

4. तुलनात्मक अध्ययन सम्भव (Comparaitive study possible)-समकों को उनके गुणों व विशेषताओं के आधार पर विभाजित करने से उनका तुलनात्मक अध्ययन संभव हो जाता है और महत्वपूर्ण तथ्यों का ज्ञान समंक देखकर ही लगाया जा सकता है।

4. सर्मकों की तर्कपर्ण व्यवस्था (Logical arrangement of data)-वर्गीकरण का एक उद्देश्य समकों की तर्कपूर्ण ऐसी व्यवस्था करना है जिससे सही निष्कर्ष कम समय में निकाले जा सकें । तर्कपूर्ण निष्कर्ष । सांख्यिकी अध्ययन के लिए अति आवश्यक हैं।

5. सारणीयन का आधार (Basis of tabulation)-समंकों को वर्गीकत करके ही उनको सारणी द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है अवर्गीकृत व अव्यवस्थित समंक सारणी के लिए निरर्थक होते हैं,अत: वर्गीकरण को सारणीयन का आधार माना जाता है।

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आदर्श वर्गीकरण की विशेषताएँ

(Characteristics of an Ideal Classification)

एक आदर्श वर्गीकरण में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ होनी चाहिएँ

1 असंदिग्धता तथा स्पष्टता (Unambignity and Clarity)-विभिन्न वर्ग या उपवर्ग इस प्रकार बनाने चाहिएँ कि किसी भी पद के लिए कोई अनिश्चितता न हो । प्रत्येक पद किसी एक ही वर्ग में आये, यह स्पष्ट होना चाहिए। यदि उसमें संदिग्धता एवं अनिश्चितता रहेगी तो वर्गीकरण का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा।

2. पूर्णता एवं व्यापकता (Comprehensiveness)-वर्गीकरण पूर्ण तथा व्यापक होना चाहिए अर्थात किसी भी गुण व विशेषता वाले समंक को न छोड़ा जाये चाहे वह कितना ही कम क्यों न हो प्रत्येक पद व इकाई किसी न किसी वर्ग या उपवर्ग में अवश्य ही आना चाहिए।

3. स्थायित्व (Stability)-वर्गीकरण स्थायी होना चाहिए जिससे तुलनात्मक अध्ययन संभव हो सके। यदि वर्गीकरण का आधार प्रत्येक अनुसंधान में बदल दिया जाता है, तो उसकी पिछले निष्कर्षों से तुलना करना कठिन व कभी-कभी असंभव हो जाता है।

4. लोचपूर्णता (Flexibility)-वर्गीकरण इस प्रकार से किया जाये कि उसमें आवश्य तानसार नये विचारों व नई परिस्थितियों को आसानी से सम्मिलित किया जा सके । बदली हुई परिस्थितियों के साथ वर्गीकरण में भी परिवर्तन होना आवश्यक है। यदि कुछ वर्ग अप्रचलित हो गये हैं, तो उनको समाप्त किया जा सकता है जबकि कुछ नये वर्गों को सम्मिलित किया जा सकता है।

5. सजातीयता (Homogeneity)- वर्गीकरण के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ग की इकाइयाँ सजातीय होनी चाहिएँ।

6. अनुकूलता (Suitability)-वर्गीकरण अनुसंधान के अनुकूल होना चाहिए।

वर्गीकरण की रीतियाँ

(Methods of Classification)

समंकों का विभाजन उनकी विशेषताओं या गुणों के आधार पर किया जाता है। गुणों के आधार पर सांख्यिकीय तथ्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है

1 गुणात्मक वर्गीकरण (Classification according to qualities or attributes)

2. संख्यात्मक वर्गीकरण या वर्गान्तरों के अनुसार वर्गीकरण (Quantitative Classification or Classification according to class-intervals)

गुणात्मक वर्गीकरण

(Classification according to qualities)

जब एकत्रित समंकों को उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है तो उसे गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि देवनागरी कॉलेज के छात्रों को लिंग के आधार पर वर्गीकृत किया जाये तो यह गुणात्मक वर्गीकरण कहलाएगा। इसी प्रकार राष्ट्रीयता, आंखों के रंग,ईमानदारी,साक्षरता, चरित्र आदि वर्णनात्मक तथ्यों के आधार पर किया जाने वाला वर्गीकरण गुणात्मक वर्गीकरण कहलाता है । गुणात्मक वर्गीकरण भी दो प्रकार का होता है

(ii) अखण्डित अथवा सतत चर (Continuous Variables)-सतत चर वे हैं जिनका निश्चित सीमाओं के अन्र्तगत कोई भी मूल्य हो सकता है तथा उनकी बारम्बारता नहीं ट्टती है; जैसेकि-व्यक्तियों की आयु, वजन, लम्बाई आदि । उदाहरणार्थ, किसी स्कूल के विद्यार्थियों की आय सतत चर है क्योंकि यह एक निश्चित सीमा, माना 4 वर्ष से 16 वर्ष,के बीच किसी भी (वर्ष,महीना,दिन आदि) मल्य के रूप में हो सकती है।

नोटउपरोक्त तालिका में मिलान रेखायें लगाने के लिये उदाहरण में दिये गये मूल्यों को एक-एक करके देखा गया है। यहाँ पर सबसे पहला मूल्य 5 है अतः सर्वप्रथम 5 के सामने टैली चिन्ह लगाया गया है । इसके बाद 7 के सामने,फिर 9 के सामने और इसी प्रकार आगे जो भी मूल्य आते गये उनके सामने एक-एक करके टेलीचिन्ह लगा दिये गये । जब चार मिलान चिन्हों के बाद उसी मूल्य के सामने पाँचवाँ रैली चिन्ह लगाना होता है ता पाचव चिन्ह द्वारा पहले चार चिन्हों को काट देते हैं जैसे।

(ii) सतत या अखण्डित आवृत्ति वितरण (Continuous frequency distribution) वितरण वान्तर (Class interval) पर आधारित होता है। इसमें चोवर्गान्तरों में बांटा जाता है, तत्पश्चात् प्रत्येक वर्गान्तर के सामने उससे सम्बन्धित मूल्य का मिलान चिन्ह लगाकर वर्गान्तर का आ

(1) वर्ग सीमाएं (Class Limits)-प्रत्येक वर्गान्तर की दो सीमायें होती हैं-निचली सीमा और ऊपरी सीमा । प्रायः साख्यिकी में निचली सीमा को L, और ऊपरी सीमा को L से प्रकट किया जाता है ।

(2) वर्गविस्तार (Magnitude of Class-interval)- प्रत्येक वर्गान्तर की ऊपरी सीमा L, और निचली सीमा L के अन्तर को वर्ग-विस्तार कहते हैं जिसे (I) से प्रकट किया जाता है। सूत्रानुसार, I = L,-L, उपर्युक्त उदाहरण में वर्ग-विस्तार 10 है।

(3) मध्य मूल्य या मध्य बिन्दु (Mid Value or Mid Point)- यदि वर्गान्तरों की ऊपरी सीमा L, और निचली सीमा L को जोड़कर 2 से भाग दिया जाये तो मध्य बिन्दु (mid point or mid value) निकल आता है जिसे MV से प्रदिर्शत करते हैं।

सूत्रानुसार MV _ L+L2

(4) वर्गआवृत्ति (Class-frequency)- समग्र के जितने पद, जिस वर्ग में आते हैं वह उस वर्ग की आवृत्ति कहलाती है। सांख्यिकी में आवृत्ति (frequency) को (1) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। जैसेकि उपर्युक्त उदहारण में 50-60 के मध्य में मजदूरी पाने वाले 2 व्यक्ति हैं। यही इस वर्ग की आवृत्ति है। इसी प्रकार से 8,3,15,22 और 10 आदि अगले वर्गों की आवृत्तियां हैं।

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आवृत्ति बंटन या आवृत्ति वितरण

(Frequency Distribution)

सामान्यतः जब हम किसी भी प्रकार के समंकों को इकट्ठा करते हैं तो वे असंगठित होते हैं। इस असंगठित रूप में हम इनसे कोई विशेष सूचना नही ले सकते । अतः इन्हें वर्गीकृत करके निश्चित मूल्यों अथवा वर्गान्तरों के आधार पर आवृत्तियाँ (Frequency) दिखाई जाती हैं। इसी संगठित व्यवस्था को आवृत्ति बंटन या आवृत्ति वितरण कहा जाता है । यह उल्लेखनीय है कि, “सांख्यिकीय विश्लेषण में आवृत्तियों का केन्द्रीय स्थान है । इसके माध्यम से भ्रम के स्थान पर व्यवस्था विकसित हो जाती है । अर्थपूर्ण रूप में क्रमबद्ध संस्थायें हमें पूरी कहानी बता देती है तथा समग्र के सम्बन्ध में सामान्यीकरण करने के लिये रीति और प्रक्रिया के चयन में सहायता करती हैं।

आवृत्ति वितरण के तत्व (Element of frequency distribution)-आवृत्ति वितरण की रचना के लिए दो आवश्यक तत्व हैं-(1) चर तथा (2) आवृत्ति ।।

(1) चर (Variable or Variate)-उसे कहते हैं जो संख्या में मापने योग्य हो,जो मात्रा अथवा आकार में घटता-बढ़ता रहता है जैसे विद्यार्थियों के प्राप्तांक,व्यक्तियों की आयु.लम्बाई,वजन,आय,मूल्य,मजदूरी आदि । हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि विभिन्न चरों को विभिन्न इकाइयों में मापा जाता है; जैसे आयु वर्षों में, आय रुपयों में, वजन कि० ग्रा० में, लम्बाई सेमी. में, आदि । चर दो प्रकार के होते हैं-(i)खण्डित चर तथा (ii) अखण्डित अथवा सतत चर।

(i) खण्डित चर (Discrete Variables)- खण्डित चरों के मूल्य निश्चित व खण्डित होते हैं यानि इनमें विस्तार नहीं होता अपितु एक मूल्य से दूसरे मूल्य के बीच कुछ सुनिश्चित अन्तर होता है। उदाहरण के लिये, परिवार में बच्चों की संख्या 1, 2, 3, 4 होगी; आधी, चौथाई या दशमलव में नहीं। इसी तरह से जूतों के नम्बर, क्रिकेट मैच में रनों की संख्या, फुटबाल में गोल आदि खण्डित चर के स्पष्ट उदाहरण हैं।

 (ii) अखण्डित अथवा सतत चर (Continuous Variables)-सतत चर वे हैं जिनका निश्चित सीमाओं के अन्र्तगत कोई भी मूल्य हो सकता है तथा उनकी बारम्बारता नहीं ट्टती है; जैसेकि-व्यक्तियों की आयु, वजन, लम्बाई आदि । उदाहरणार्थ, किसी स्कूल के विद्यार्थियों की आय सतत चर है क्योंकि यह एक निश्चित सीमा, माना 4 वर्ष से 16 वर्ष,के बीच किसी भी (वर्ष,महीना,दिन आदि) मल्य के रूप में हो सकती है।

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आवृत्ति वितरण की रचना

(Formation of Frequency Distribution)

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि आवृत्ति-वितरण की रचना निम्न दो रूपों में की जाती है-(i) खण्डित आवृत्ति वितरण तथा (ii) अखण्डित आवृत्ति वितरण।

(1) खण्डित आवृत्ति वितरण (Discrete frequency distribution)-इस आवृत्ति वितरण में निश्चित मल्यों के आधार पर आवृत्ति तालिका का निर्माण किया जाता है । चर के सभी सम्भावित मूल्य क्रमानुसार तालिका के प्रथम कॉलम में लिख लिये जाते हैं। इसके बाद दूसरे कॉलम में मूल्य के अनुसार मिलान रेखायें (Tally marks या Tally bars) लगाते हैं। मिलान रेखायें लगाते समय अनुमेलन विधि (Four and cross method) अपनाते हैं । इस पद्धति में प्रत्येक चार सीधी मिलान रेखाओं के बाद पाँचवीं मिलान रेखा से उन चारों रेखाओं को आड़े रूप में काट देते हैं। तत्पश्चात् इन रेखाओं की गिनती के आधार पर तीसरे कॉलम में आवृत्तियों की संख्या लिख दी जाती है । इसको निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है ।

Illustration 1– ___एक कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा एक टैस्ट में प्राप्त किये गये अंकों से खण्डित आवृत्ति वितरण की रचना कीजिये।

Construct a discrete frequency distribution with the help of the following obtained marks by the students during a test in a class.

नोट-उपरोक्त तालिका में मिलान रेखायें लगाने के लिये उदाहरण में दिये गये मूल्यों को एक-एक करके देखा गया है। यहाँ पर सबसे पहला मूल्य 5 है अतः सर्वप्रथम 5 के सामने टैली चिन्ह लगाया गया है । इसके बाद 7 के सामने,फिर 9 के सामने और इसी प्रकार आगे जो भी मूल्य आते गये उनके सामने एक-एक करके टेलीचिन्ह लगा दिये गये । जब चार मिलान चिन्हों के बाद उसी मूल्य के सामने पाँचवाँ रैली चिन्ह लगाना होता है ता पाचव चिन्ह द्वारा पहले चार चिन्हों को काट देते हैं जैसे।

(ii) सतत या अखण्डित आवृत्ति वितरण (Continuous frequency distribution) वितरण वान्तर (Class interval) पर आधारित होता है। इसमें चोवर्गान्तरों में बांटा जाता है, तत्पश्चात् प्रत्येक वर्गान्तर के सामने उससे सम्बन्धित मूल्य का मिलान चिन्ह लगाकर वर्गान्तर की आवर्ति ज्ञात की जाता है ।

उपरोक्त आय के समंकों में सबसे प्रथम मूल्य 25 है अतः इसके लिये मिलान रेखा 20-25 वर्गान्तर में न लगाकर 25-30 वर्ग में लगायी जायेगी। तत्पश्चात् मूल्य 34 को 30-35 में व फिर 26 को 25-30 वर्गान्तर में रखते हुए यही प्रक्रिया अन्तिम मूल्य 44 तक निरन्तर करते हए मिलान चिन्ह लगाते जायेंगे। इसके बाद मिलान चिन्हों को गिनकर सर्वप्रथम 20-25की आवृत्ति,तदुपरान्त 25-30 व अन्य वर्गों की आवृत्ति ज्ञात कर ली जायेगी।

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वर्गान्तरों के प्रकार

(Types of Class-Intervals)

प्राय: दो प्रकार के वर्गान्तर पाये जाते हैं-अपवर्जी व समावेशी वर्गान्तर । वर्गान्तर बनाने की इन दोनों विधियों का विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है:

1 अपवर्जी विधि (Exclusive Method)-इस विधि द्वारा वर्गान्तर बनाते समय पहले वर्ग की ऊपरी सीमा (Upper limit) और उससे अगले वर्ग की निचली सीमा (Lower limit) बराबर रखते हैं; जैसे 0-10, 10-20, 20-30, 30-40 आदि । किन्तु यहाँ एक समस्या यह उत्पन्न होती है कि अन्तिम पद अर्थात् 10 को किस वर्ग में रखा जाये? इसके विषय में यह नियम है कि किसी वर्ग की उच्च सीमा वाले पद को उस वर्ग में सम्मिलित न करके अगले वर्ग में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इस आधार पर 10 रु. मजदूरी पाने वाला मजदूर 0-10 वाले वर्ग में सम्मिलित नहीं किया जायेगा बल्कि 10-20 वाले वर्ग में सम्मिलित किया जायेगा क्योंकि अपवर्जी रीति केवल वर्ग की ऊपरी सीमा 0 से 9.99 तक की इकाइयों को अपने अन्दर रख सकती है । अपवर्जी वर्गान्तरों को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है

अपवर्जी दसरा स्वरूप भी हो सकता है, इस दशा में निचली सीमा को अपवर्जी बनाया जाता है जबकि सामान्यतः ऊपरी सीमा को अपवजो बनाया जाता है । इस स्थिति में वर्ग की निचली सीमा के बराबर मूल्य इस वर्ग पालन न करके उससे पिछले वर्ग में दिखाया जाता है । उदाहरणार्थ, हम इस प्रकार से समझ सकते हैं

वर्गान्तरानुसार वर्गीकरण की समस्याएँ

(Problems in Classification According to Class-intervals)

सामग्री को वर्गान्तरों के अनुसार वर्गीकृत करते समय कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इन समस्याओं पर विस्तृत रूप से विचार किया जा रहा है।

1 वर्गान्तरों की संख्या (Number of class-intervals)-वर्गान्तरों के अनुसार वर्गीकरण करते समय। प्रमुख समस्या यह उत्पन्न होती है कि कितने वर्गान्तर बनाए जायें । वर्गान्तरों की संख्या के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट नियम नहीं है। यह समंकों की प्रकृति पर निर्भर करता है । वर्गान्तरों की संख्या न तो अधिक ही हो और न बहुत कम ही हो । प्राय:5 और 20 वर्गान्तर बनाये जाते हैं।

प्रो० एच० ए० स्टजेंस के अनुसार वर्गान्तरों की संख्या ज्ञात करने का सूत्र है_n = 1 + 3.322 Log N _n = number of class-intervals N = Total Number of observations

2. वर्गान्तरों का विस्तार (Magnitude of Class-intervals)-वर्गों की संख्या ज्ञात करने के पश्चात् वर्गों का विस्तार निश्चित किया जाता है। इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी वर्गों का अन्तर समान होना चाहिए अन्यथा सूत्रों का प्रयोग कठिन हो जायेगा। वर्गान्तर निश्चित करने के लिए प्रायः सबसे अधिक मूल्य में से सबसे कम मूल्य घटाकर वर्गों की संख्या से भाग देकर वर्गान्तर ज्ञात किया जाता है ।

वर्गविस्तारों को नियमित करना

वर्गीकरण में सभी वर्गों का विस्तार समान होना चाहिए,असमान वर्गान्तरों को यथासंभव समान बना लेना समंकों का वर्गीकरण तथा सारणीयन / 91 चाहिए । व्यवहार में 2, 4, 5, 10 आदि वर्ग-विस्तार सरल और उत्तम माने जाते हैं। असमान वर्गान्तरों को नियमित करने के लिए छोटे-छोटे असमान वर्गान्तरों को जोडकर बड़े किन्तु समान वर्गान्तर बना लिए जाते हैं । जिनके सामने सम्बन्धित असमान वर्गों की आवृत्तियों का जोड लिखा जाता है। यदि असमान वर्गान्तरों वाले आवृत्ति-बंटन में बीच का कोई वर्गान्तर नहीं दिया होता तो उसकी सीमायें यथास्थान लिख कर आवृत्ति शून्य मान ली जाती है। असमान वर्गों में से सबसे अधिक विस्तार वाले वर्ग को ही आधार माना जाता है।

निम्न उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जायेगीअसमान वर्गान्तर

उक्त उदाहरण में अधिकतम वर्ग-विस्तार 5 है और ऐसे वर्गान्तर भी विद्यमान हैं जिनकी ऊपरी सीमायें 5 से विभाज्य हैं अतः 5 के विस्तार के ही वर्ग बनाये गये हैं।

3. वर्ग सीमाएँ (Limits of Class-intervals)-वर्ग सीमाओं का निर्धारण, वर्गीकरण करने वाले की इच्छा पर निर्भर करता है, फिर भी सीमाओं का निर्धारण करते समय निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिएँ

(i) सीमाएँ पूर्णांक होनी चाहिएँ अन्यथा गणन क्रिया में कठिनाई होगी।

(ii) अपवर्जी विधि से ही वर्ग सीमाएँ बनाने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि इस विधि से गणन क्रिया | आसानी से हो जाती है । वर्ग सीमाएँ बनाते समय समावेशी विधि का भी प्रयोग किया जाता है।

4. आवृत्तियों का विन्यास (Arrangement of Frequencies)- वर्गान्तरों की संख्या,वर्ग विस्तार और वर्ग सीमाओं का निर्धारण करने के बाद प्रत्येक वर्ग में आने वाले पदों की गणना करके उसकी आवृत्ति लिखनी चाहिए। इसके लिए विशेष मिलान चिन्हों (Tallies) का प्रयोग किया जाता है। मिलान चिन्हों से प्रत्येक वर्ग में आने वाले एक पद या इकाई के लिए एक रेखा (1) उस वर्ग विशेष के सामने लगा दी जाती है। पांचवीं इकाई के लिए पिछली चार रेखाओं को काटती हुई एक रेखा बायें से दायें लगा दी जाती है । इस प्रकार पांच-पांच के समूह में गणना करने से वर्गीकरण का कार्य सरल हो जाता है। तदुपरान्त इन रेखाओं को गिनकर प्राप्त आवृत्ति सम्बन्धित वर्ग के सामने लिख दी जाती है । इस प्रकार वर्गीकृत आवृत्ति बंटन की रचना सम्पन्न होती है।

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खुले सिरे वाले या विवर्तमुखी वर्ग

(Open-end Class-intervals)

कभी-कभी प्रथम वर्गान्तर की निचली सीमा तथा अन्तिम वर्ग की ऊपरी सीमा नहीं दी होती है । इस प्रकार | के वर्गों को ‘खुला वर्ग’ कहा जाता है । इस प्रकार के वर्गों को पूरा करते समय वर्ग विस्तार वही रखा जाता है जो अन्य वर्गों का होता है ।तत्पश्चात् प्रथम वर्ग की ऊपरी सीमा में से वर्ग विस्तार घटा कर निचली सीमा ज्ञात कर ली जाती है। अन्तिम वर्ग की निचली सीमा में वर्ग विस्तार जोड़कर, अन्तिम वर्ग की ऊपरी सीमा ज्ञात कर ली जाती है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि पहले वर्ग की निचली सीमा कभी ऋणात्मक नहीं हो सकती,शून्य अवश्य हो सकती है ।

संचयी आवृत्ति

(Cumulative Frequency)

आवृत्ति से हमें उन पदों की संख्या का ज्ञान प्राप्त होता है जो किसी वर्ग के अन्तर्गत पाये जाते हैं। नीचे की। गई सारणी से यह पता आसानी से लग सकता है कि उन मजदूरों की संख्या 30 है जिनकी आय 80-90 के बीच में है। किन्त यदि हम ऐसे मजदूरों की संख्या ज्ञात करना चाहें जिनकी आय 90 से कम है तो इस सारणी से पता नहीं लग सकेगा।

इस प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि उपर्युक्त आवृत्ति बंटन (Frequency Distribution) का स्वरूप परिवर्तित कर दिया जाये अर्थात् इसे संचयी आवृत्ति बंटन बना लिया जाये। सामान्यतः जब दो या दो से अधिक वर्गों की आवृत्तियाँ मिला दी जाती हैं तो उन्हें संचयी आवृत्ति कहते हैं। संचयी आवृत्ति बंटन निम्न दो प्रकार से बनाया जाता है :

1  संचयी आवृत्ति बंटन से कम‘ (Less than cumulative frequency distribution)-से कम’ आवृत्ति सारणी का निर्माण हम प्रथम वर्गान्तर की ऊपरी सीमा से प्रारम्भ करते हैं और अन्तिम वर्ग की ऊपरी सीमा तक पहंचते हैं। जैसे 40 से कम की संचयी आवत्ति में 30-40 वाले वर्ग की आवृत्ति आयेगी। इसके उपरान्त 50 से कम की संचयी आवृत्ति में 30-40 और 40-50 वाले वर्गान्तरों की आवृत्तियों का जोड़ आयेगा। इसे निम्न उदाहरण में देखा जा सकता है

सांख्यिकीय श्रेणियाँ

(Statistical Series)

सांख्यिकीय श्रेणियाँ तथ्यों अथवा पदों का व्यवस्थित एवं तर्कपूर्ण क्रम होती हैं। कॉनर ने सांख्यिकीय श्रेणी को इस प्रकार परिभाषित किया है, “यदि चल मूल्यों को साथ-साथ इस प्रकार अनुविन्यासित किया जाये कि एक का मापनीय अन्तर दूसरे के मापनीय अन्तर का सहगामी हो तो इस प्रकार उपलब्ध क्रम को सांख्यिकीय श्रेणी कहा जाता है। ”

इस प्रकार सांख्यिकीय श्रेणियाँ, अंकों का एक ऐसा तार्किक विन्यास है जिसमें समान लक्षणों वाले या प्रतिकूल लक्षणों वाले परन्तु क्षेत्रीय अंक एक साथ रखे जाते हैं। सांख्यिकीय श्रेणियों के प्रकार :

सांख्यिकीय श्रेणियाँ निम्न प्रकार की होती हैं

() गुण के आधार पर

(1) कारानुसार श्रेणी (Time Series)

(2) स्थानानुसार श्रेणी (Spatial Series)

(3) परिस्थितिनुसार श्रेणी (Condition Series)

() रचना के आधार पर

(1) व्यक्तिगत श्रेणी (Individual Series)

(2) खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी (Discrete Series)

(3) अखण्डित तथा अविच्छिन्न श्रेणी (Continuous Series)

() गुण के आधार पर

1 कालनुसार श्रेणी (Time Series)-इस प्रकार की श्रेणी में वर्गीकरण समय के आधार पर होता है। जब वर्गीकरण वर्ष,माह, सप्ताह, दिन आदि के आधार पर किया जाता है तो उस समंक श्रेणी को काल श्रेणी या ऐतिहासिक श्रेणी कहते हैं। उदाहरणार्थ

वर्ष                  2000   2001 2002  2003  2004

मूल्य निर्देशांक  140    150  165   175   187

2. स्थानानुसार श्रेणी (Spatial Series)-जब समंकों का वर्गीकरण भौगोलिक आधार तथा स्थान के आधार पर किया जाता है तो उससे जो श्रेणी प्राप्त होती है उसे भौगोलिक श्रेणी कहते हैं; जैसे प्रान्तों के आधार पर प्रति व्यक्ति की आय का विवरण,संसार के विभिन्न देशों की आय इत्यादि।

खण्डित तथा अखण्डित श्रेणियों का अन्तर

खण्डित तथा अखण्डित समंक श्रेणियों में बहुत अन्तर है। प्रथम-दोनों का स्वरूप भिन्न है । खण्डित श्रेणी में इकाइयों का मूल्य और तत्सम्बन्धी आवृत्ति दी होती है जबकि अखंडित श्रेणी में वर्गान्तर तथा आवृत्तियाँ लिखी जाती हैं। दूसरे-दोनों में माप का अन्तर है । खंडित श्रेणी में यथार्थ माप होते हैं जो अधिकतर पूर्णांक के रूप में होते हैं। इसके विपरीत, अखंडित श्रेणी में यथार्थ माप नहीं होते । तीसरे-खंडित श्रेणी में मूल्यों में कुछ निश्चित अन्तर या विछिन्नता का तत्व होता है, इसके विपरीत अखंडित श्रेणी में कोई विच्छिन्नता नहीं होती। चौथे-व्यक्ति, दुर्घटना,बच्चों की संख्या आदि से सम्बन्धित समंक खंडित माला के रूप में होते हैं,जबकि ऊंचाई, भार,आय,मजदूरी,आयु आदि अखंडित श्रेणी में प्रस्तुत किये जाते हैं।

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सारणीयन

(Tabulation)
वर्गीकृत समंकों को सुव्यवस्थित एवं आकर्षक विधि से प्रस्तुत करने के ढंग को सारणीयन कहते हैं। संकलित समंक को सही ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए ताकि उसको आसानी से समझा जा सके विभिन्न विद्वानों ने इसे निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है

प्रो० बाउले के अनुसार, “सारणीयन संकलित समंकों, जो किसी भी रूप में संकलित किये गये हों और सांख्यिकी द्वारा प्राप्त अन्तिम तर्कयुक्त परिणामों के बीच की क्रिया है।”

कॉनर के अनुसार, “सारणीयन किसी विचाराधीन समस्या को स्पष्ट करने के उद्देश्य से किया जाने वाला। सांख्यिकीय तथ्यों का क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित प्रस्तुतीकरण है।”

मास्ट के अनुसार, “सारणियाँ वर्गीकरण द्वारा किये गये विश्लेषण को स्थायी रूप में लेखबद्ध करने तथा तलनीय वस्तुओं को परस्पर निकटता की उचित स्थिति में रख्नने का साधन है।”

सारणीयन के उद्देश्य

(Objects of Tabulation)

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से सारणीयन के निम्न उद्देश्य प्रकट होते हैं

(i) सुव्यवस्थित प्रस्तुतीकरणसारणी बनाने का प्रमुख उद्देश्य वर्गीकृत सामग्री को नियमित एवं सुव्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करना है ताकि सामग्री की समस्त विशेषताएँ व गुण प्रकट हो जायें।

(ii) संक्षिप्त स्थायी रूपअव्यवस्थित आँकड़ों को कम से कम स्थान में संक्षिप्त एवं स्थायी रूप में सारणियों द्वारा प्रकट किया जाता है, जिससे विस्तत सचना एक ही दष्टि में उपलब्ध हो सके।

(iii) समस्या का स्पष्टीकरण समंकों को सारणियों के रूप में प्रस्तुत करने से समस्या सरल व स्पष्ट हो जाती है।

(iv) तुलना की सुविधासारणीयन की सहायता से तुलनीय तथ्यों की सरलता से तुलना की जा सकती है, क्योंकि तुलना योग्य सामग्री को पास-पास के खानों या पंक्तियों में रखा जाता है।

सारणीयन के लाभ या महत्व

(Advantages or Importance of Tabulation)

आज के युग में सारणीयन का विशेष महत्व है। इसके द्वारा जटिल, अव्यवस्थित, विस्तृत एवं अतुलनीय सामग्री को सरल,व्यवस्थित, संक्षिप्त एवं परस्पर तुलनीय स्थिति में प्रकट कर सकते हैं। संक्षेप में इस क्रिया का महत्व उसके निम्नलिखित लाभों के कारण है

(i) सरलतासारणीयन से आवश्यक सूचना आसानी से याद रखी जा सकती है। सारणियों में प्रस्तुत समंकों को दोनों ओर से सरलतापूर्वक पढ़ा जा सकता है । इसके अतिरिक्त सारणियों से समंक सम्बन्धी गणन क्रियायें; जैसे जोड़ना,घटाना आदि सरल हो जाती हैं और अशुद्धियों का आसानी से पता चल जाता है।

(ii) समय स्थान की बचत -सारणी में सामग्री प्रस्तुत करने से समय व स्थान की बचत होती है क्योंकि न्यूनतम स्थान पर अधिकतम सामग्री प्रस्तुत की जा सकती है।

(iii) तुलनात्मक अध्ययन – सारणी द्वारा समान व एक ही गुण वाले समस्त समंकों को एक ही स्थान पर प्रदर्शित करके उनकी तुलना को सम्भव बनाया जा सकता है।

(iv) समंकों के निर्वचन, गणना व प्रदर्शन में सहायक -सारणीयन किये गये समंक का निर्वचन व गणना; जैसे माध्य, विचलन, सहसम्बन्ध आदि निकालना आसान है । सारणीयन द्वारा समंकों को चित्रों व रेखाचित्रों की अपेक्षा सरलतम ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।

सारणीयन की सीमाएँ

(Limitations of Tabulation)

सारणीयन की कुछ सीमाएँ हैं जो निम्नलिखित हैं

(i) सारणी में केवल समंक ही होते हैं, विवरण नहीं । गुणात्मक तथ्यों को सारणियों में प्रस्तुत करना संभव नहीं होता।

(ii) सारणीयन सामान्य व्यक्ति की समझ के बाहर है । यह केवल उन्हीं लोगों की समझ में आ सकता है जिनमें उनके समझने का विशेष ज्ञान है।

वर्गीकरण सारणीयन में अन्तर

(Difference between Classification and Tabulation)

वर्गीकरण तथा सारणीयन दोनों ही सांख्यिकी की महत्वपूर्ण क्रियाएँ हैं जिनसे संग्रहीत समंकों को संक्षिप्त व व्यवस्थित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है। परन्तु दोनों में अन्तर है। प्रथम, दोनों का क्रम भिन्न है। पहले आँकड़ों को वर्गीकृत किया जाता है तथा उसके बाद उन्हें सारणियों में प्रस्तुत किया जाता है, अतः वर्गीकरण सारणीयन का आधार है । दूसरे, वर्गीकरण में संकलित समंकों को उनके समान व असमान गुणों के आधार पर वर्गों में बाँटा जाता है, जबकि सारणीयन में उन वर्गीकृत तथ्यों को खानों और पक्तियों में प्रस्तुत किया जाता है ।

वर्गीकरण का यंत्रात्मक भाग है। तीसरे, वर्गीकरण सांख्यिकीय विश्लेषण की एक विधि है जबकि समंकों के प्रस्तुतीकरण की रीति है। वर्गीकरण की क्रिया में समंकों को वर्गों, उपवर्गों में बाँटा जाता है। जबकि सारणीयन में उन्हें स्थायी रूप में उपयुक्त शीर्षकों व उप-शीर्षकों के अन्तर्गत प्रस्तुत किया जाता है।

सारणी के मुख्य भाग

(Main Parts of a Table)

एक सारणी के निम्नलिखित प्रमुख भाग होते हैं

1.सारणी संख्या (Table Number)-सारणी में सर्वप्रथम सारणी संख्या लिखी जाती है। इससे सारणी का विवरण देने या अन्य कहीं उल्लेख करने में सहायता मिलती है । इसको सारणी के केन्द्र में (centre) में। अंकित किया जाना चाहिये।

2. सारणी शीर्षक (Title)-सबसे पहले सारणी का शीर्षक होता है जिससे समंकों की प्रकृति क्षेत्र समय आदि के बारे में एक ही दृष्टि में सूचना मिल सके । शीर्षक मोटे अक्षरों में होना चाहिए, ताकि तुरन्त ही पाठकों का ध्यान आकर्षित हो।

3. उपशीर्षक एवं अनुशीर्षक (Captions and Stubs)-उदग्र खानों के उपशीर्षक तथा क्षैतिज पंक्तियों के अनुशीर्षक स्पष्ट व संक्षिप्त होने चाहियें तथा उनमें प्रयुक्त सांख्यिकीय-एकक का भी उल्लेख होना चाहिए। प्रत्येक सारणी में खानों व पंक्तियों में प्रविष्ट समंकों के जोड़ की भी व्यवस्था होती है।

3. रेखाएँ खींचना तथा रिक्त स्थान छोड़ना (Ruling and Spacing)-सारणी का आकर्षण बहुत कुछ उचित रेखा खींचने तथा उपयुक्त रिक्त स्थान छोड़ने पर निर्भर करता है । सारणी में समंक लिखने से पूर्व नमूने के रूप में सारणी का ढाँचा बना लेना उचित है।

4. पदों का क्रम (Arrangement of Items)-सारणी के प्रारूप में खानों व पंक्तियों को उचित ढंग से क्रमबद्ध करके उनमें विभिन्न समंकों को यथोचित ढंग से लिख दिया जाता है । तुलनीय समंकों को निकटवर्ती खानों में रखा जाता है । पदों का क्रम आवश्यकतानुसार वर्णमाला,समय,महत्व, आकार,रीति-रिवाज,स्थानीय या भौगोलिक आधार पर रखा जाता है।

5. टिप्पणियाँ (Foot Notes) –सारणी में कभी-कभी कुछ प्रविष्ट समंकों या शब्दों को अधिक स्पष्ट करने के लिए सारणी के नीचे एक संक्षिप्त व्याख्यात्मक टिप्पणी दी जा सकती है।

6. आँकड़ों का स्रोत (Source of Data)-प्रत्येक सारणी के अन्त में यथासंभव समंकों के संदर्भ व उद्गम स्थान दिये जाते हैं।

7. तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study)-हमें जिन समंकों की तुलना करनी हो वे समंक पास-पास ही रखने चाहिएँ जिससे कार्य आसानी से सम्पन्न हो जाये।

8. योग (Total)-सारणी में प्रयोग किये जाने वाले समंकों के योग व अन्तर्योग की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिए कि खानों व पंक्तियों के योग की जाँच स्वत: ही हो जाये।

सारणी के प्रमुख अंक निम्न प्रारूप से स्पष्ट हो जाते हैं

उद्देश्य के अनुसार उद्देश्य के अनुसार सारणी दो प्रकार की हो सकती है:

1 सामान्य उद्देश्य वाली सारणी (General Purpose or Reference Table)-क्राक्सटन तथा काउडन के अनुसार, “सामान्य उद्देश्य वाली सारणी का सबसे पहला और सामान्यतः एकमात्र उद्देश्य समंकों को इस प्रकार रखना होता है कि व्यक्तिगत पद पाठक द्वारा शीघ्र ढूँढे जा सकें।” सामान्य उद्देश्य वाली सारणी प्रायः प्रकाशित प्रतिवेदनों के अन्त में दी हुई होती है। इसका मुख्य उद्देश्य समंकों को इस प्रकार रखना होता है कि व्यक्तिगत पद पाठक शीघ्र ढूँढ सकें।

2. विशेष उद्देश्य वाली या संक्षिप्त सारणी (Special Purpose or Summary Table)-कई सामान्य सारणियों को समायोजित करके जब कोई सारणी बनाई जाती है तो उसे विशेष उद्देश्य वाली अथवा संक्षिप्त सारणी या साराँश कहते हैं।

() मौलिकता के अनुसार सारणी

1 मौलिक सारणी (Original Table)-इस प्रकार की सारणी में समंकों को मौलिक रूप में रखा जाता है। जब प्राथमिक समंकों की सहायता से नये सिरे से सारणी बनायी जाती है तो उसे मौलिक सारणी कहते हैं।

2. व्यत्पन्न सारणी (Derivative Table)-मोलिक सारणी के विपरीत व्युत्पन्न सारणी में समंकों के माध्यम,प्रतिशत, अनुपात आदि को प्रस्तुत किया जाता है।

() रचना के अनुसार सारणी

1 सरल सारणी (Simple Table)-जब समंकों की किसी एक विशेषता अथवा गुण के आधार पर सारणी बनायी जाती है तो उसे सरल सारणी कहते हैं । इस सारणी का नमूना इस प्रकार है

2. जटिल सारणी (Complex Table) जब समंकों के एक से अधिक गण अथवा विशेषताओं के आधार पर सारणी बनायी जाती है तो उसे जटिल सारणी कहते हैं। जटिल सारणी को निम्न तीन भागों में विभाजित किया जाता है

(i) द्विगुण सारणी (Two Way Table or Double Til जब समंकों की दो विशेषताओं के आधार पर सारणी बनायी जाती है तो उसे द्विगुण सारणी कहते हैं जैसे निम्न सारणी विद्यार्थियों का, अथशास्त्र में हैं ।

सारणीयन की विधियाँ

(Methods of Tabulation)

सामान्यतया सारणी बनाने की निम्न दो विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं

1 हाथ के द्वारा (By hand)-जब अनुसंधान का क्षेत्र छोटा होता है अथवा अवलोकनों की संख्या कम रहती है तो हाथ द्वारा सारणीयन ही उपयुक्त समझा जाता है।

2. यान्त्रिक सारणायन (Mechanical Tabulation)-किसी बडे अनसंधान में जहाँ सामग्री अधिक होती है वहाँ हाथ द्वारा सारणीयन में बहुत समय व श्रम लगता है। ऐसे स्थानों पर मशीनों का प्रयोग श्रेयष्कर रहता है। इस विधि में निम्न क्रियाएँ करनी पड़ती हैं

(i) संकेतांकों में बदलना (Codification)-प्रश्नावलियों व अनुसचियों में उपलब्ध सूचनाओं को निश्चित संकेतांकों में बदला जाता है। जैसे साक्षर व निरक्षर के लिए कोई दो संकेतांक 2 व 3 दिया जा सकता है।

(iii) संकेतांकों को कार्डो पर लिखना (Transcription of Codes on Cards)-सकताका का निर्धारित करने के पश्चात् उन्हें सारणीयन कार्डों पर उतारा जाता है। यह कार्य एक विशेष प्रकार की मशीन द्वारा किया जाता है । प्रत्येक कार्ड पर 0 से 9 तक अंक होते हैं। सम्बन्धित अंकों को पंच से काटकर छेद दिया जाता है; जैसे उपर्युक्त उदाहरण में साक्षर के कार्ड को 2 व निरक्षर के कार्ड को 3 अंक पर छेद दिया जायेगा।

(iii) परीक्षण (Verification)-इसके बाद कार्डों पर किये गये छेद की जाँच की जाती है कि वह ठीक स्थान पर हुआ है या नहीं।

(iv) कार्डों को छाँटना (Sorting)-संकेतांक छिद्रित कार्डों को एक विशेष प्रकार के बिजली के छाँटने वाले यंत्र में डालकर अलग-अलग कर लिया जाता है।

(v) सारणीयन (Tabulation) इस क्रिया के बाद अलग हुए कार्डों की गणना करके सारणीयन यंत्रों द्वारा सारणीयन कार्य सम्पन्न किया जाता है।

लाभ-यांत्रिक सारणीयन से निम्न लाभ हैं(i) सारणीयन में समय की बचत होती है। (ii) उच्च मात्रा की शुद्धता संभव होती है। (iii) सारणीयन सुव्यवस्थित व मितव्ययी होता है। (iv) अशुद्धियों की जाँच शीघ्रता से की जा सकती है।

द्विचर आवृत्ति सारणी

(Bivariate Frequency Table)

समान पदों की संख्या को दो चर-मूल्यों के माप के आधार पर एक ही आवृत्ति सारणी में प्रस्तुत करने के द्विचर द्विमखी आवत्ति सारणी (bivariate or two directional frequency table) क । उदाहरण के लिये, 20 विद्यार्थियों के ‘सांख्यिकी और अर्थशास्त्र’ में प्राप्तांकों का एक ही आवृत्ति वितरण में प्रस्तुतीकरण द्विचर आवृत्ति सारणी है।

रचना विधि-इसकी रचना विधि निम्न प्रकार है

सर्वप्रथम दोनों चरों के वर्गान्तर निश्चित किये जायेंगे, आवश्यक नहीं कि वर्गान्तर बराबर हों क्योंकि परिस्थिति अनुसार यह चर मूल्यों पर निर्भर करेगा।

एक चर के वर्गान्तर स्तम्भ (Column) में और दूसरे चर के वर्गान्तर पंक्ति (row) में आवश्यकतानुसार लिखे जायेंगे।

अन्तिम पंक्ति और अन्तिम स्तम्भ कुल आवृत्तियों के लिये होते हैं।

प्रत्येक पद के पहले चर के माप वाले वर्गान्तर (पंक्ति) के सामने उसके दूसरे चर के माप वाले वर्गान्तर (स्तम्भ) के नीचे वाले उभयनिष्ठ कोष्ठक (Common Cell में एक मिलान चिन्ह (Tally bar)खींच दी जायेगी । इसी प्रकार सभी पदों के द्विचर-मूल्यों को तत्सम्बन्धी कोष्ठकों में मिलान चिन्हों द्वारा दिखाया जायेगा।

तत्पश्चात् मिलान चिन्हों की गिनती करके उनकी संख्या लिख दी जायेगी। ये कोष्ठक आवृत्तियाँ (cell frequencies) कहलाती हैं।

अन्त में स्तम्भानुसार (Column-wise) और पंक्ति अनसार (row-wise) कोष्ठकों के योग किय जाते हैं और उन्हें अन्तिम स्तम्भ और पंक्ति में लिख दिया जाता है। फिर इनका महायोग लिखा जाता है ।

सांख्यिकीय सारणी की रचना के नियम

(Rules for Construction of Statistical Table)

ख्यिकीय सारणी का निर्माण करते समय निम्नलिखित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए

1 प्रत्येक सारणी का संक्षिप्त, स्पष्ट एवं पूर्ण शीर्षक होना चाहिए जिसमें सारणी का उद्देश्य, एक ही दृष्टि में

2. सारणी के उद्देश्य एवं समग्र के आकार को ध्यान में रखते हुए खानों व पंक्तियों की संख्या निर्धारित करनी चाहिए तथा प्रत्येक खाने का उपशीर्षक भी देना चाहिए।

3. जिस सारणी में मौलिक और व्युत्पन्न समंक जैसे प्रतिशत, औसत इत्यादि साथ-साथ दिये जा रहे हों उन्हें यासंभव पास-पास ही रखना चाहिए जिसस उनकी तुलना आसानी से की जा सके। के माप की इकाई को उनके खानों के ऊपर अवश्य लिख देना चाहिए।

4. समंकों के मापक

5. यदि द्वितीय समंकों का प्रयोग किया गया है।

6. यदि कोई सूचना समंकों के सम्बन्ध में रह गई हो तो उसे सारणी के अन्त में एक टिप्पणी के रूप में लिखना चाहिए।

7. यदि कुछ समंकों को विशेष महत्व देना हो तो उनको मोटे या टेढे अंकों में लिखा जा सकता है।

8. सारणी बनाने से पहले जहाँ तक संभव हो समंकों का उपसादन (Approximation) कर लना चाहिए।

9. जहाँ तक संभव हो सके, इकाई के नीचे इकाई व दहाई के नीचे दहाई लिखनी चाहिए।

10. यह आवश्यक है कि सारणी आकर्षक हो तथा उसका आकार उपलब्ध स्थान के अनुकूल हो ।

संक्षेप में,सारणीयन की क्रिया सरल नहीं है। हैरी जरोम के अनुसार, “एक उच्च कोटि की सारणी तैयार करने के लिए सांख्यिक को यह स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए कि किन तथ्यों को प्रस्तुत करना है, किन विषमताओं को महत्व देना है और किन-किन बातों पर अत्यधिक बल देना है। एक उत्तम सांख्यिकीय सारणी निपुणता व प्रविधि की विजय है और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत अधिकतम सूचना तथा स्थान की मितव्ययिता की सर्वोत्कृष्ट कृति है।”

निःसन्देह एक उत्तम सारणी का निर्माण सांख्यिक की निपुणता.विवेक शक्ति व अनुभव पर निर्भर होता है, जैसा कि डा० बाउले ने कहा है, “संकलन तथा सारणीयन में सामान्य विवेक की प्रमुख आवश्यकता है और अनुभव प्रमुख शिक्षक है

सैद्धान्तिक प्रश्न

1 वर्गीकरण की परिभाषा दीजिए। उपयुक्त उदाहरण देते हए समंकों के वर्गीकरण के उद्देश्य और रीतियों को स्पष्ट कीजिए।

Define classification. Explain the purpose and methods of classification of data giving suitable examples.

2. आँकड़ों के वर्गीकरण के क्या उद्देश्य हैं? वर्गीकरण के विभिन्न तरीकों की व्याख्या कीजिए।

What are the objects of classification of data ? Discuss the different methods of classification.

3. वर्गीकरण के क्या उद्देश्य हैं? वर्गान्तर के विस्तार तथा उसकी ऊपरी एवं निचली सीमाओं के निर्धारण की विधि की व्याख्या कीजिए।

What are the objects of classification? Explain the method of determining the magnitude, the upper and lower limits of the class interval.

4. वर्गीकरण एवं सारणीयन की परिभाषा दीजिए और सांख्यिकीय अध्ययन में उनका महत्व बताइए।

Define classification and tabulation and show their importance in statistical studies.

5. समंकों के वर्गीकरण करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगे? वर्णन कीजिए।

Discuss what considerations shall you have in determining the classification of data?

6. सारणी के विभिन्न अंग कौन-कौन-से हैं? अपने समंकों को सारणीबद्ध करने में आप क्या सावधानी व्यवहार में लायेंगे?

What are the different parts of a table?  Explain the main precautions you will take in tabulating your data.

7. समावेशी तथा अपवर्जी वर्गान्तरों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Write short notes on inclusive and exclusive class-intervals.

8. “संग्रहण और सारणीयन में सामान्य विवेक प्रमुख आवश्यकता है और अनुभव प्रमुख शिक्षक है ।” स्पष्ट कीजिए।

In collection and tabulation common sense is the chief requisite and experience is the chief teacher.” Elucidate.

25. निम्न सूचना को सारणीबद्ध कीजिए

‘एक कॉलिज द्वारा आयोजित पर्यटन में 80 व्यक्तियों ने भाग लिया जिनमें से प्रत्येक ने औसत रूप से 15.50 रु० का भुगतान किया। इनमें से 60 छात्र थे और प्रत्येक ने 16 रु० चन्दा दिया। अध्यापकों से अधिक दर से चन्दा वसूल किया गया। नौकरों (पुरुष) की संख्या 6 थी. और उनसे कोई चन्दा नहीं लिया गया। स्त्रियों की संख्या कुल पर्यटकों की संख्या का 20 प्रतिशत थी। जिनमें से एक अध्यापिका थीं। Tabulate the following: In a trip organized by a college, there were 80 persons each of whom paid Rs. 15.50 on an average. There were 60 students each of whom paid Rs. 16. Members of the teaching staff were charged at a higher rate. The number of servants was 6 (all males) and they were not charged anything. The number of ladies was 20% of the total of which one was a lady staff member.

26. निम्न तथ्यों को सारणी के रूप में दिखाइये

रामगढ़ गाँव की जनसंख्या 500 है जिसमें से 300 मर्द और 200 औरते हैं। 300 मर्दो में 200 विवाहित हैं तथा शेष अविवाहित । विवाहित मर्दो में 20% शिक्षित हैं,अविवाहित मर्दो में 90% शिक्षित हैं औरतों में 80% अशिक्षित हैं । शिक्षित औरतों में 10% विवाहित हैं। अशिक्षित औरतों में 90% विवाहित हैं।

Show the following data in tabular form – The pouplation of Ram Garh is 500, out of which 300 are males and 200 females. Out of 300 males, 200 are married and remaining unmarried. 20% are literate out of married males, 90% are literate out of unmarried males. 80% are illiterate in females, 10% are married out of literatre females, 90% are married out of illiterate females.

27. सांख्यिकीय समंकों के सारणी रूप में प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य की व्याख्या कीजिये जनसंख्या वितरण को सम्प्रदाय,आयु,यौन और विवाहित स्थिति के अनुसार प्रदर्शित करने के लिये सारणी की रचना कीजिये।

Explain the objects of presentation of statistical data in tabular form. Construct a table showing the population distribution according to religion, age, sex and marital status.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answered Questions)

28. वर्गीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसके उद्देश्य स्पष्ट कीजिये।

What do you mean by classification? Explain the objectives of classification,

29. वर्गीकरण की विभिन्न रीतियों को स्पष्ट कीजिए।

Explain the various methods of classification.

30. रचना के आधार पर समंक श्रेणियों की विवेचना कीजिए।

Describe the statistical series on the basis of structure.

31. समावेशी तथा अपवर्जी वर्गान्तरों में अन्तर बताइये।

Distinguish between inclusive and exclusive class-intervals.

32. सारणीयन से क्या आशय है ? यह वर्गीकरण से किस प्रकार भिन्न है ?

What is tabulation? How it differs from classification?

33. निम्नलिखित प्राप्तांकों को आवृत्ति वितरण के रूप में प्रस्तुत कीजिए

Present the following scores in the form of frequency distribution: 5,7,

Statistics Classification Tabulation Data

chetansati

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