BCom 3rd Year Information Technology Fundamentals of Computers Study Material Notes in hindi (Part 2)

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BCom 3rd Year Information Technology Fundamentals of Computers Study Material Notes in Hindi (Part 2)

BCom 3rd Year Information Technology Fundamentals of Computers Study Material Notes in Hindi (Part 2) Bubble Memory Flash Memory  Secondary Memory   Magnetic Disc Data Storage Floppy Diskettes  Optical Disc Worm Disc  Other Auxillary Storage Devices Functions of Operation System (Most Important Notes For BCom 3rd Year Students )

Fundamentals of Computers
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कम्प्यूटर की आधारभत संरचना (Basic Computer Architecture) कम्प्यूटर के पार कार्य (Basic Computer Functions)-कम्प्यूटर के विभिन्न भागों की सेटिंग इस प्रकार की जाती वह किसी कार्य को करने के लिए कई प्रकार की प्रक्रियाओं की सहायता लेता है। इसे आप’इलेक्टिक के सकते हैं जो पलक झपकने जितनी देरी में जटिल गणना कर देता है। तकनीकी रूप से देखें तो कम्पयूटर तेजी से काम करने वाला इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण है, जो डेटा प्रोसेसिंग का काम करता है। अकीय गणना के कार्यों में व्यापक प्रयोग होता है, लेकिन आज कम्प्यूटर के कार्यों का दायरा बहुत विशाल हो चुका है। चित्र में दिखाया कम्प्यूटर निम्नलिखित पांच प्राथमिक कार्य तो करता ही है, चाहे इसका आधार कुछ भी हो। ये कार्य हैं

इनपुट के रूप में डेटा व निर्देशों को स्वीकारना;

डेटा स्टोर करना;

डेटा को निर्देशानुसार प्रोसेस करना;

आउटपुट के रूप में परिणाम दिखाना;

कम्प्यूटर के सभी भीतरी कार्यों को नियन्त्रित करना।

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इनपुट (Input)-यह निर्देशों और डेटा को कम्प्यूटर में डालने की प्रक्रिया है चूँकि अन्य मशीनों की भी कम्प्यूटर भी एक मशीन है, इसलिए इसे भी कच्चे माल अर्थात् डेटा की आवश्यकता होती है, जिसे कुछ निशिश प्रक्रियाओं से गुजार कर सार्थक रूप दिया जाता है। इनपुट यूनिट द्वारा कम्प्यूटर हमसे डेटा लेता है ताकि एक व्यवस्थित क्रम में उसकी प्रोसेसिंग कर सके।

 

स्टोरेज (Storage)-डेटा और निर्देशों को स्थायी रूप से सुरक्षित रखने Central Input Output Processing Data को स्टोरेज कहते हैं। प्रोसेसिंग प्रारम्भ होने Devices Devices Unit से पहले डेटा सिस्टम में प्रविष्ट किया जाता है। चूँकि CPU की गति काफी तेज होती 10 है, इसलिए इसको प्रोसेसिंग के लिए मिलने वाला डेटा भी उसी प्रकार का होना चाहिए। इसलिए प्रोसेसिंग से पहले डेटा को स्टोर Main/Internal Memory कर लिया जाता है। यह कार्य करने के लिए  स्टोरेज यूनिट को विशेष प्रकार से डिजाइन किया जाता है। इसमें डेटा और निर्देशों के संग्रहण के लिए खाली स्थान होता है।

स्टोरेज यूनिट के मुख्य कार्य निम्नानुसार हैं

प्रोसेसिंग से पहले और बाद में सारा डेटा यहीं स्टोर होता है।

प्रोसेसिंग के मध्यवर्ती परिणाम भी इसी में स्टोर होते हैं।

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प्रोसेसिंग (Processing)-कार्य के दौरान होने वाली अंकीय और तार्किक प्रक्रिया को प्रोसेसिंग कहत हैं। CPU स्टोर में यूनिट से डेटा और निर्देशों को लेता है और दिए गए निर्देशों के अनुसार उसका परिकलन कैल्कलेशन) करता है। इसके बाद डेटा पुनः स्टोर से यूनिट में भेज दिया जाता है।

आउटपट (Output)-इनपुट किए गए डेटा का जो परिणाम मिलता है उसे आउटपट कहते हैं। डया पोरोमिंग करके कम्प्यूटर ने जो आउटपुट दी है उसे पढ़ने योग्य स्थिति में लाने से पहले उस आउटपट को कम्प्यूटर में कीं रखना पड़ता है और यह काम भा स्टारज यूनिट में ही होता है। बाद में इसकी पनः प्रोसेसिंग की जा सकती है।

कंटोल (Control)-किस प्रकार उपर्युक्त कार्य किए जाएंगे और निर्देशों को किस प्रकार लाग किया जागा दस सब पर कम्प्युटर नियन्त्रण रखता है। इनपुट, प्रोसेसिंग और आउटपट पर कंटोल यनिट नियन्त्रण रखती है। यह कम्प्यूटर के अन्दर होने वाले सभी कार्यों को चरणबद्ध रूप से संपादित करता है।

कम्पूयटरसिस्टम के घटक [Components of A Computer System (CPUD]-जितने भी। हार्डवेयर हैं. वे कम्प्यूटर के घटक कहलाते हैं। इनमें CPU और उससे जुड़े माइक्रो चिप्स और सर्किट की-बोर्ड

p DVD. टेप. ऑप्टिकल आदि शामिल हैं। माउस.प्रिंटर, मॉडेम, मॉनीटर, केस और ड्राइव, फ्लॉपी, हार्ड, CD, DVD, टेप, ऑप्टिकल आदि र या PC की संज्ञा दी गई है। आपस में जुड़े कम्प्यूटर जुड़ा हर कम्प्यूटर स्वतन्त्र रूप से कार्य करता है. या वैब कैमरा, कार्ड,साउड, कलर, वीडियो आदि कम्प्यूटर के परिधीय घटकर स्कैनर, स्पीकर, डिजीटल या वैब कैमरा, कार्ड सार जोटे जाते हैं। इन्हें सयुक्त रूप स पसनल कम्प्यूटर या PC का सज्ञा दी गई है। आसस पिंटर स्कैनर और राइटर का सयुक्त रूप से उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार सिर मुख्य स्टोरेज सिस्टम, प्रिंटर, स्कैनर और राइटर का संयन से कार्य करता है, लेकिन अन्य कम्प्यूटरों व बाहरी उपकरणों तक भी उसकी पहँच होती है।

सेन्टल प्रोसेसिंग यूनिट [Central Processing Unit (CPU)]-इसे प्रोसेसर भी कहते हैं और यह करायटर का हृदय, आत्मा, मस्तिष्क अथात् सब कुछ है। इसका काम कम्प्यूटर को दिए गए प्रोगाम के को कार्यान्वित करना है और कम्प्यूटर के सभी कार्य यहीं से संपादित होते हैं। निर्देशों में दिया गया है । सोया करना है। यह मेमोरी से डेटा लेकर उसे प्रयोगकर्ता को दिखाता है, लेकिन इसकी पोसेसिंग गति इतनी तीव्र होती है कि पलक झपकते ही परिणाम मिल जाता है। आज CPT का आता और कार्यशैली अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में पूरी तरह बदल चुकी है, लेकिन इसका मुख्य कार्य आज भी पहले जैसा ही है। माइक्रो कम्प्यूटर में पूरा CPU एक छोटी सी चिप में समाया रहता है, जिसे माइक्रोप्रोसेसर कहते है। CPU की कार्यक्षमता कम्प्यूटर के शेष सर्किटों और चिप्स पर निर्भर करती है। वर्तमान में Intel Panta का CPU सर्वाधिक चलन में है तथा कई अन्य कम्पनियों के प्रोसेसर भी बाजार में उपलब्ध हैं, जो PC में लगाए जाते हैं। इसका एक उदाहरण मोटोरोला द्वारा बनाया गया चिप है, जो Apple कम्प्यूटरों में लगता है। कम्प्यूटर सिस्टम के मदरबोर्ड का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग है CPU डेटा का परिकलन और इसे प्रोसेस करने के बाद कम्प्यूटर को दिए गए निर्देशों के अनुसार परिणाम दिखाने का काम भी CPU ही करता है। प्रत्येक CPU में कंट्रोल यूनिट और Arithmetical Logic Unit आवश्यक रूप से होते है।

कंट्रोल यूनिट (The Control Unit)-यह CPU का एक महत्वपूर्ण घटक है जो माइक्रोप्रोसेसर के निर्देशों के सेट को लागू करता है। यह मेमोरी से निर्देश लेता है और उन्हें डिकोड कर लागू करता है और आवश्यक सिग्नलों को आवश्यक प्रक्रिया सम्पन्न करने के लिए ALU में भेज देता है। कंट्रोल यूनिट या तो hard wired होते हैं या (micro programmed) कंट्रोल यूनिट का कम्प्यूटर के सभी संसाधनों पर नियन्त्रण रहता है। कमांड्स को लागू करने के CPU के निर्देश कंट्रोल यूनिट में बने होते हैं। इन निर्देशों में वह सब कुछ वर्णित होता है जो CPU को करना है। किसी भी प्रोग्राम को चलाने से पहले उसकी प्रत्येक कमांड को इस प्रकार विभाजित करना होता है कि वे CPU के निर्देश सेटों के समतुल्य हों। तभी कोई प्रोग्राम चलाने पर CPU उसे लागू करता है। प्रोग्राम चलाने से पहले CPU उसकी क्रमबद्ध जाँच करता है और उन्हें माइक्रोकोड में बदल देता है। यह प्रक्रिया बेहद जटिल प्रतीत होती है, लेकिन कम्प्यूटर इसे बहुत तेजी से सम्पन्न करता है। यह प्रति सेकेण्ड ऐसे लाखों निर्देशों को माइक्रोकोड में बदल सकता है।

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अंकगणितीय तर्क इकाई [Arithmetical Logic Unit (ALU]-डेटा और निर्देशों की वास्तविक प्रोसेसिंग इसी यूनिट में होती है। जोड, घटाना, गणा, भाग. तर्क और तलना का काम ALU में ही होता है। आवश्यकता पड़ने पर डेटा स्टोरेज से डेटा ALU में आता है। ALU इस डेटा को प्रोसेस करके वापस स्टोरेज में भेज देता है, जहाँ इसे पुनः प्रोसेस किया जा सकता है या इसे स्टोर कर लिया जाता है। चूँकि कम्प्यूटर में स्टोर समस्त डेटा संख्याओं के रूप में होता है, इसलिए प्रोसेसिंग के दौरान संख्याओं का मिलान या अन्य गणितीय प्रक्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। इसके अतिरिक्त दिए गए क्रम और इन क्रमों को बदलने के लिए कम्प्यूटर के कार्य दो भागों में विभाजित हो जाते हैं-Arithmetic और Logical| जोड़, घटाना, गणा, भाग का काम Arithmetical आर तुलनात्मक कार्य Logical के अन्तर्गत आते हैं। Logical कार्यों में यह देखा जाता है कि कोई सख्या दूसर को तुलना में बड़ी है या छोटी, या उसके समान है। प्रत्येक Logical का विपरीत भी होता है, जैसे-यदि equal to है तो Not equal to भी अवश्य होगा। कंट्रोल यूनिट द्वारा लागू किए जाने वाले निर्देशों में अधिकांशतः डेटा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का काम होता है। जैसे मेमोरी से स्टोरेज में या मेमोरी से प्रिंटर में इत्यादि। लाकन जब कंट्रोल यूनिट को ऐसा कोई निर्देश मिलता है, जो Locical या Arithmetical से सबद्ध हा ता यह उस CPU के ALU में भेज देता है। ALU में तीव्र गति से काम करने वाली मेमोरी के रजिस्टरों का समूह हाता ह जो सीधे CPU में बना होता है, जहाँ डेटा की वर्तमान में प्रोसेसिंग चल रही होती है। उदाहरणार्थ, कट्रोल यूनिट । मेमारी से दो अंकों को ALU के मेमोरी रजिस्टर पर लोड कर देता है। इसके बाद यह ALU को इन दोनों का का विभाजित (Arithmetical) करने के लिए कहता है और यह पता लगाने के लिए कहता है कि ये दोनों समान (Logical) हैं या नहीं।

स्टोरेज उपकरण (Storage Devices) कम्प्यूटर को चलाने हेतु आवश्यक निर्देश CPU में होते हैं, लेकिन इसमें प्रोग्राम्स और डेटा को स्थायी से रखने की क्षमता नहीं होती। जैसे मानव मस्तिष्क कब और क्या करना है, का निर्धारण करता है, इसी प्रकार कम्प्यूटर को भी ऐसा स्थान चाहिए होता है, जो समय-समय पर प्रोसेसिंग कार्य करने में सहायता करे, प्रोग्राम्सकी। स्टोर करके रखे तथा डेटा को मनचाहे रूप में कार्य करने के लिए उपलब्ध कराए। इस स्थान को मेमोरी या स्टोरेज कहते हैं।

मेमोरी के प्रकार (Types of Memory )-कार्य की प्रकृति के आधार पर मेमोरी कई प्रकार की। होती हैं।

(1) प्राथमिक मेमोरी (Primary Memory)-कम्प्यूटर में मेमोरी आई. सी. के रूप में होती है।। कम्प्यूटर की इस प्राथमिक मेमोरी को दो भागों में बाँटा जा सकता है

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(i) रैंडम एक्सेस मेमोरी [Random-Access-Memory (RAMD]-यह कम्प्यूटर में लगी वह चिप। है जो इसकी क्षमता बढ़ाने के लिए डायनैमिक डेटा को अस्थायी रूप से स्टोर करती है। RAM का कार्य उन प्रोग्रामों और डेटा को पकड़कर रखने का है. जिन पर काम चल रहा होता है। इसे रैंडम एक्सेस मेमोरी इसलिए। कहते हैं, क्योंकि इसका कोई एडेस नहीं होता और यह बिना समय गंवाए किसी भी लोकेशन पर पहुँच जाती है। कभी भी इस तक पहुँचा जा सकता है और किसी भी लोकेशन से अंक हटाए या डाले जा सकते हैं। यह जितनी तेज होती है, इसकी कीमत भी उसी के अनुसार होती है।

RAM एक Volatile (चपल) मेमोरी है अर्थात् इसमें स्टोर सूचना विद्युत आपूर्ति बन्द होते ही समाप्त हो जाती है। यह हार्ड डिस्क और फ्लैश मेमोरी से भिन्न है, जिनके लिए विद्यत आपूर्ति से कोई अन्तर नहीं पड़ता। जब कम्प्यूटर को भली प्रकार बन्द किया जाता है तो RAM में मौजूद समस्त डेटा हार्ड ड्राइव या फ्लैश ड्राइव जैसे स्थायी स्टोरेज में चला जाता है। अगली बार सिस्टम बूट करते समय RAM में प्रोग्राम और प्रयोग की जाने वाली फाइलें खोलने पर अपने आप लोड हो जाती हैं। RAM में डेटा स्टोर होने की विधि के आधार पर भी इसे दो भागों में बाँटा जाता है-डायनैमिक RAM और स्टैटिक RAM | RAM की गति, कीमत और कार्य की प्रकृति के अनुसार इसे लगाया जाता है।

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डायनैमिक RAM (Dynamic RAM)-इसे DRAM कहते हैं और यह सर्वाधिक प्रचलित मुख्य मेमोरी है। इसे डायनैमिक इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसका प्रत्येक सेल तुरन्त चार्ज रहित हो जाता है और प्रति सेकेण्ड कई सौ बार रिफ्रेश होकर डेटा को सुरक्षित रखता है। नीचे डेस्कटॉप कम्प्यूटरों में साधारणतया प्रयोग होने वाली DRAM की जानकारी दी जा रही है (पुराने से नए तक)।

फास्ट पेज मोड (FPM) यह DRAM का एक पुराना रूप है। यह अपने समय में काफी प्रचलित थी, क्योंकि यह DRAM से कुछ तेज थी। मेमोरी का यह रूप 486 और प्रारम्भिक पेंटियम कम्प्यूटरों में SIMM पर । लगा होता था।

सिंक्रोनस DRAM(SDRAM) CPU को नियन्त्रित करने वाली क्लॉक स्पीड से सामंजस्य बैठाकर। उसी गति से काम करती है। इससे डेटा हस्तान्तरण का काम तेज और विश्वसनीय रूप से होता है क्योंकि समयांतराल का प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसा माना जाता है कि यह मेमोरी EDO को हटाकर सर्वाधिक प्रचलित मेमोरी बन जाएगी।

रैम्बस DRAM (RDRAM) इंटेल द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा डिजाइन है और भविष्य के सभी । कम्प्यटरों में इसे ही लगाया जाएगा। चूंकि यह बहुत तेज है, इसलिए सिस्टम में कुछ परिवर्तन भी आवश्यक है । ताकि इसका प्रयोग किया जा सके। RDRAM हाई बैंडविड्थ चैनल पर मानक DRAM की तुलना में 10 गुना तेज डेटा प्रेषित करता है।

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डबल डेटारेट क्लॉक स्पीड को 200 MH- अ को भेजती रहती है, इसीलिए इसकी के कारण सभी चिपसेट निर्माता DDD डेटा रेट SDRAM (DDR-SDRAM) SDRAM का ही सुधरा हुआ रूप है। यह मेमोरी की 900 MHz अधिक तक बढ़ा देती है। क्लॉक चक्र के उठते-गिरते क्रम के साथ यह बस में डेटा हसीलिए इसकी गति मानक SDRAM से दोगुनी होती है। RDRAM की तुलना में श्रेष्ठ होने निर्माता DDR-SDRAM के लिए सपोर्ट देने लगे और शीघ्र ही यह RAM का सर्वाधिक प्रयोग मे आने वाली रुप बन गया । आज यह मानक रुप से हर PCमें होती है ।

स्टैटिक रैम [Static RAM (SRAMI आकार बड़ा और कीमत अधिक होती है करना पड़ता। अपनी गति के हो जाता है। ऐसा इसके हर बार रिफ्रेश होने केकी नियन्त्रण करने में सरल और वास्तव में रैंडम एक्सेस में आने वाला रूप बन गया। आज यह मानक रूप से हर PC में होती है। यह DRAM का ही भाँति होती है. लेकिन इसकी जान और कीमत अधिक होती है। इसे स्थिर या स्टैटिक इसलिए कहते हैं क्योंकि इसे बार-बार अपनी गति के कारण यह मेमोरी के एक विशेष भाग कैश में ही प्रयोग होती है। SRAMD. पता है जब तक इसे पावर सप्लाई मिलता रहता है। जबकि DRAM में डेटा पलक झपकते ही सके हर बार रिफ्रेश होने के कारण होता है। आधुनिक DRAM की तुलना में SRAM साल और वास्तव में रैंडम एक्सेस मेमोरी है। SRAM की जटिल आंतरिक संरचना के कारण का घनत्व DRAM की तुलना में कम है, इसलिए PC में इसका प्रयोग नहीं होता। SRAM Tी में विद्वात खपत कम होती है। कम्प्यूटर इसे स्वयं नियमित रूप से रिफ्रेश करता रहता है। यह RAM की सभी पोजीशनों को रीड करती है। कुछ DRAM सर्किटों में ‘रिफ्रेश सर्किट’ अंतर्निहित होता है ताकि कम्प्या पर भार न पड़े। SRAM निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं

सिंक्रोनस रैम (Asynchronous RAM)-SRAM का यह पुराना रूप बहुत से PC में L2 कैश के लिए प्रयक्त होता है। एसिंक्रोनस का अर्थ है कि यह सिस्टम क्लॉक से अलग स्वतन्त्र रूप से काम करती है। इसका अर्थ यह हआ कि CPU को L2 कैशे से मिलने वाले डेटा के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

सिंक्रोनस रैम (Synchronous RAM)-यह SRAM का एक अन्य प्रकार है, जो सिस्टम क्लॉक के साथ काम करती है। यह गति को तेज तो करती है, लेकिन इसकी कीमत भी अधिक होती है।

पाइपलाइन बर्स्ट रैम (Pipeline Burst RAM)-यह सामान्यतया प्रयोग होने वाली SRAM है जो पाइपलाइन डेटा प्रोसेसिंग के सिद्धान्त पर काम करती है। अर्थात् डेटा के बड़े पैकेट एक साथ मेमोरी में भेजे जाते हैं और इस पर तुरन्त प्रतिक्रिया होती है। SRAM की यह किस्म 66 MHz से अधिक की बस स्पीड पर चलती है, इसलिए प्रायः इसी का प्रयोग होता है।

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(ii) रीडओनलीमेमोरी [Read-only-Memory (ROM)] – यह एक अन्य प्रकार की मेमोरी है, जो माइक्रो प्रोग्रामों के काम आती है। रीड ओनली का अर्थ है कि इन प्रोग्रामों को देखा तो जा सकता है, परन्तु इसमें कोई निर्देश आदि देकर परिवर्तन नहीं किया जा सकता। ये प्रोग्राम निर्माण के समय ही मेमोरी में डाल दिए जाते हैं। इसमें कोई नई चीज या निर्देश नहीं जोड़ा जा सकता। रीड ओनली के माइक्रो प्रोग्राम्स के कई कार्य हैं लेकिन सबसे प्रमुख है-बार-बार प्रयोग होने वाले निर्देशों के समूह को रखना, जो कम्प्यूटर को चलाते ही चाहिए होते हैं और कम्प्यूटर के पूरे सर्किट में अन्यत्र उपलब्ध नहीं होते। ऐसे ही निर्देशों का एक समह है ROM-BIOS इसका पूरा नाम Read Only Memory Dasic Input Output System है। ये प्रोग्राम आधारभूत नियन्त्रण और निरीक्षण का कार्य करते हैं। ये लाडवयर की प्रारम्भिक आवश्यकताओं को भी परा करते हैं, जिनमें इनपुट/आउटपुट उपकरण आते हैं।

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ROM के विभिन्न प्रकार निम्नानुसार हैं

PROM-इसे Programmable Read Only Memory कहते हैं और यह स्थिर प्रकृति की होती। इस कवल एक ही बार प्रोग्राम किया जा सकता है. उसके बाद इसमें बदलाव करना सम्भव नहीं है।

PKOM-यह Erasable Programmable Read Only Memory है। इसके चिप को पकला प्रोग्राम किया जाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है. इसके प्रोग्राम को हटाया और पुनः लिखा जा है। अल्ट्रा-वायलट प्रकाश किरणों की सहायता से प्रोग्राम को हटाया जाता है।

EEPROM-  इसका पूरा नाम Electrically Erasable Programmable Read On Memory है और यह EPROM का ही एक रूप है। इलेक्टिकल चार्ज की सहायता से इसका डेटा हटाया जाता है ।

बबल मेमोरी (Bubble Memory)-यह मेमोरी सिंथेटिक गासेट की पतली की सिंगल क्रिस्टल फिल्म पर छोटे-छोटे मैग्नेटिक जेमेन (बबल्स) के रूप होती है, जो एक प्रकार के चुम्बकीय आकर्षण वाले सिलिंडर होते हैं।

सेंटीमीटर के हजारवें हिस्से से भी छोटे ये सिलिंडर इलेक्ट्रिकल चार्ज की सहायत से इधर-उधर विचरण करते हैं। इन बबल्स की उपस्थिति या अनुपस्थिति यह दर्शाती है कि

कोई बिट’आन’ है या ‘ऑफ’। बबल्स में मौजूद डेटा विद्युत आपूर्ति बन्द होने के बाद भी बना रहता है, इसलिए इसका सहायक मेमोरी के तौर पर भी उपयोग हो सकता है। सीधे एक्सेस करने की सुविधा और कम कीमत के कारण बबल्स मेमोरी काफी उपयोगी सिद्ध होती है, इसीलिए मुख्य मेमोरी तकनीक में इसी का प्रयोग होता है। छोटी, हल्की और विद्युत की कम खपत करने वाली बबल मेमोरी पोर्टेबल कम्प्यूटरों में सहायक मेमोरी के रूप में प्रयोग की जाती है। माना यह जाता है कि जितनी पोर्टेबल कम्प्यूटरों की संख्या बढ़ेगी, उसी अनुपात में बबल मेमोरी का प्रयोग भी बढ़ेगा।

फ्लैश मेमोरी (Flash Memory)-यह एक स्थिर प्रकार की मेमोरी है, जिस पर डेटा इलेक्ट्रिकली हटाया और पुनः प्रोग्राम किया जाता है। फ्लैश मेमोरी का प्रयोग मेमोरी कार्ड, USD फ्लैश ड्राइव, सॉलिड स्टेट ड्राइव में और कम्प्यूटर से डिजिटल उपकरणों में डेटा को लाने भेजने के काम में होता है। यह EEPROM का एक विशिष्ट रूप है। फ्लैश मेमोरी अन्य स्टोरेज माध्यमों की तुलना में सस्ती होती है, लेकिन इनकी स्टोरेज क्षमता कम होती है। PDA (Personal Digital Assistant), लैपटॉप, डिजिटल ऑडियो प्लेयर, डिजिटल कैमरा और मोबाइल फोन की मेमोरी इसके उदाहरण हैं। कंसोल वीडियो गेम के हार्डवेयर में भी इसका प्रयोग होता है ताकि गेम के डेटा को सेव किया जा सके। इसमें EEPROM या बैटरी बैकअप आधारित SRAM उतनी उपयोगी सिद्ध नहीं होती।

चूँकि फ्लैश मेमोरी स्थिर प्रकृति की होती है, इसलिए इसमें संचित जानकारी या डेटा को बनाए रखने का विद्युत आपूर्ति के होने न होने से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त हार्डडिस्क की तुलना में फ्लैश मेमोरी में रीड/राइट का काम कहीं तेजी से होता है।

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(2) द्वितीयक मेमोरी (Secondary Memory)

द्वितीयक मेमोरी को बाह्य मेमोरी या वैकल्पिक मेमोरी भी कहा जाता है। प्राथमिक स्टोरेज की गति बहुत तेज होती है और इसकी जानकारी या सूचना तक पहुँचने में पलक झपकने जितनी देर भी नहीं लगती। लेकिन | इसमें फाइलों को सेव करना सम्भव नहीं है क्योंकि इसमें स्थान कम होता है। सहायक स्टोरेज उपकरणों की क्षमता लगभग असीमित होती है और इसमें अरबों-खरबों बाइट्स डेटा सेव किया जा सकता है। मैग्नेटिड डिस्क एवं हाड डिस्क के डेटा को सीधे ही एक्सेस किया जा सकता है, जबकि टेप आधारित स्टोरेज को क्रमबद्ध रूप से एक्सेस किया जाता है। सहायक स्टोरेज को एक्सेस करने में प्राथमिक स्टोरेज की तलना में अधिक समय लगता है। यहा। यह बता देना प्रासंगिक होगा कि फ्लॉपी, मैग्नेटिकडिस्क.CD और DVD जैसी सहायक स्टोरेज माध्यम इनपुट

और आउटपट दोनों का काम करते हैं। सहायक स्टोरेज माध्यमों में काफी अधिक मात्रा में डेटा स्टोर किया जा सकता है।

चुम्बकीय फीता (Magnetic tape)

कम्प्यूटर के डेटा को टेप पर रिकार्ड करने वाली टेप ड्राइव को टेप युनिट या स्टीमर भी कहते हैं। कम्प्यूटर के पारम्भिक विकास के चरण में यह एक महत्वपूर्ण तकनीक थी, जिसमें लंबे समय तक डेटा सुरक्षित रखा जा

कम्प्यूटर के तत्व और इसे एक्सेस करना भी सरल था। आज कई अन्य तकनीकें किटेपका कार्य कर रही हैं और टेप का स्थान अन्य यक्तियों से लिया है। तकनीक के निरन्तर विकास के बावजद भी टेप योग आज भी व्यापक रूप से होता है। लेकिन इसकी सबसे ही कमी यह है कि इसमें डेटा क्रमबद्ध रूप से ही एक्सेस किया जा सकता है, फिर भी दाम कम होने की वजह से ये आज भी चलन में हैं। आज मैग्नेटिक टेप कार्टिज या कैसेट के रूप में मिलते हैं। टेप डाइव द्वारा टेप पर डेटा रीड/राइट किया जाता है। MIS एप्लीकेशन्स जैसे मेनफ्रेम और मिनी कम्प्यूटरों में हटाए और पन: लगाए जा सकने वाली टेप रील का प्रयोग होता है। डाक की भाँति दिखने वाले इन टेपों पर आइरन ऑक्साइड की परत चढी होती है जिसे 0 और 1 बिट के आधार पर एनकोड किया जाता है। ये टेप विभिन्न प्रकार की चौड़ाई, नाबाई और डेटा घनत्व के होते हैं। आधा इंच व्यास का 2400 फीट लंबी टेप रील इसका एक सामान्य मानक जिसमें प्रति इंच 6250 बाइट डेटा स्टोर होता है। दरअसल, यह विधि बिल्कुल वैसी ही है, जैसे कुछ समय पूर्व स्टीरियो सिस्टम में ऑडियो कैसेट लगाकर गाने सुने जाते थे-इसे रील-ट-रील विधि कहते हैं। इसमें खाली टेप रील और डेटा सप्लाई करने वाली टेप रील एकसमान गति पर चलती है। दो रीलों के बीच रीड/राइट हैड होता है, जो प्रोसेसिंग का काम करता है। कम्प्यूटर को दिए गए निर्देशों के अनुसार ही टेप डेटा को रीड या राइट करता है।

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मैग्नेटिक डिस्क (Magnetic Disc)-डेटा स्टोरेज का यह सर्वाधिक प्रचलित माध्यम है जिसे सीधे एक्सेस किया जा सकता है। सीधे एक्सेस से आशय विभिन्न रिकार्डों से गुजरे बिना लक्ष्य तक पहुँचने से है। दूसरा सीधा एक्सेस माध्यम फ्लॉपी है, जिसके विषय में हम आपको बता चुके हैं। डिस्केट की ही भाँति हार्ड डिस्क में भी डेटा ट्रैक्स में स्टोर होता है, जो सेक्टरों में बन्द होते हैं। हार्डडिस्क देखने में फ्लॉपी से बिल्कुल अलग होती है। हार्ड डिस्क में धातु के एक या अधिक प्लैटर एक के ऊपर लगे होते हैं, जो एक स्पिंडल पर घूमते हैं। प्रत्येक प्लैटर पर आइरन ऑक्साइड की परत चढ़ी होती है, और यह पूरी यूनिट एक सील चेम्बर में होती है। डिस्केट में जहाँ डिस्क ड्राइव अलग होती है, वहीं हार्ड डिस्क और हार्ड ड्राइव एक ही चीज है। इसमें हार्ड डिस्क, प्लैटर को घुमाने वाली मोटर और रीड/राइट हैड का एक सेट होता है। चूँकि हार्ड डिस्क को ड्राइव से अलग नहीं किया जा सकता इसलिए हार्ड डिस्क और हार्ड ड्राइव दोनों का ही बोलने में प्रयोग होता है। हार्ड डिस्क PC का प्राथमिक स्टोरेज उपकरण है, क्योंकि यह सुविधाजनक और कीमत में कम होती है। गति और क्षमता दोनों ही में यह डिस्केट से मीलों आगे है। उच्च घनत्व वाली 3.5 इंच की डिस्केट में जहाँ मात्र 1.44 MB डेटा स्टोर हो पाता है, वहीं हार्ड डिस्क की न्यूनतम स्टोरेज क्षमता 20GB और अधिक होती है। आज कम्प्यूटरों में 80 GB या अधिक क्षमता वाली हार्ड डिस्क लगी होती है। हार्ड डिस्क की कठोरता इसे तेजी से घुमाने में सहायक होती है, इसकी यह घूर्णन – गति फ्लॉपी की तुलना में 10 गुना से अधिक तेज होती है। इसीलिए हार्ड डिस्क के घूमने की गति 3600 से 7200

चक्र प्रति मिनट (rpm) होती है, जबकि फ्लॉपी में यह 300 प्रति मिनट ही होती है। डिस्क के तेजी से घूमने की क्षमता ही हार्ड डिस्क की क्षमता बढाती है। हार्ड डिस्क की कठोरता और तेज गति डिस्क पर अधिक मात्रा में डेटा स्टोर करना संभव बनाती है।

डेटा स्टोरेज (Data Storage)-हार्ड डिस्क में डेटा न केवल परस्पर निकट होता है, बल्कि प्लैटरों की सख्या अधिक होने के कारण डेटा भी अधिक मात्रा में स्टोर होता है। एक के ऊपर एक लगे ये प्लैटर डिस्क की क्षमता में असाधारण वृद्धि कर देते हैं। हार्ड डिस्क की स्टोरेज संरचना हार्ड डिस्क में रीड/राइट हैड यह निर्धारित करते हैं कि डिस्क कितनी साइडों पर काम करेगी। उदाहरणार्थ, किसी हार्ड डिस्क में 6 प्लैटर अर्थात् 12 साइडे है, लेकिन हैड 11 ही हैं। इसका अर्थ है एक साइड का उपयोग नहीं होगा। प्रायः ऐसा डिस्क में सबसे नीचे वाला हिस्सा होता है। फ्लॉपी डिस्क की भाँति हार्ड डिस्क के एक सेक्टर में 512 बाइट डेटा आता है, लेकिन अपना सहनशालता के कारण हार्डडिस्क के प्रत्येक ट्रैक में 54.63 या इससे अधिक सेक्टर होते हैं। हाड डिस्क का क्षमता फ्लॉपी की भाँति ही मापी जाती है, लेकिन यह संख्या काफी बड़ी होती है।

स्टोरेज क्षमता = रिकार्डिंग प्लैटरों की संख्या x प्रति प्लैटर ट्रैक्स की संख्या x प्रत्येक ट्रैक में सेक्टरों की संख्या – बाइटस प्रति सेक्टर।

उदाहरणार्थ, एक हार्ड डिस्क में 12 प्लैटर लगे हैं. जिनमें प्रत्येक प्लैटर में 3000 ट्रैक हैं। प्रत्येक टैक सेक्टरों में बंटा है और हर सेक्टर में 512 बाइटस आ सकते हैं। अब कुल रिकार्डिंग सतह 11 हैं। (कुल 227 (x2) क्योंकि ऊपर और नीचे की डिस्क सतह पर रीड/राइट हैड नहीं होता।

इसकी कुल रिकार्डिंग क्षमता होगी = 22×3000 x 200 x 512 अर्थात् 675,840,0000 बाइट्स कि लगभग 6 GB के बराबर है। किसी रिकार्ड को एक्सेस करने वाला समय तीन प्रकार का होता है

(i) Seek Time-यह वह लगने वाला समय है जो प्रयोग किए जाने वाले रिकॉर्ड ट्रैक पर रीड/राइट है को पहुँचने में लगता है। यदि रीड/राइट हैड स्थित है तो यह शून्य होगा।

(ii) Rotational Time-इसे Letency भी कहते हैं, जो स्टोरेज माध्यम को रीड/राइट हैड के नीचे स्टे लाने में लगता है।

(iii) Data Transfer Time-यह वह समय है जो रीड/राइट हैड को सक्रिय होकर वांछित डेटा को क रीड करके प्रोसेसिंग के लिए प्राथमिक मेमोरी में भेजने में लगता है।

उपर्युक्त तीनों का सम्मिश्रण एक्सेस टाइम कहलाता है, जो प्रायः 8 से 12 मिली सेकेण्ड के बीच होता है। इतनी सब विशेषताएँ होने के बाबजूद हार्ड डिस्क में एक भारी कमी है। इसकी अधिकतम क्षमता का उपयोग करने के लिए रीड/राइट हैड डिस्क की सतह के बहुत निकट होना चाहिए। कई बार यही निकटता तब खतरनाक बन जाती है, जब सतह पर पड़े धूल के कण, यहाँ तक कि उंगली के निशान भी उस अंतर को समाप्त कर देता है। ऐसे में हैड खराब होने की संभावना रहती है। हैड जब क्रेक (खराब) होता है तो सतह को छूने लगता है उस क्षेत्र में स्टोर डेटा को बेकार कर देता है।

मैग्नेटिक डिस्क के लाभ तथा हानियाँ (Advantages and Disadvantages of Magnetic Disc)-मैग्नेटिक डिस्क के लाभ निम्नानुसार हैं

    • कठोर सतह वाली डिस्क सीधे एक्सेस करने वाला स्टोरेज माध्यम है। पूरी फाइल को सर्च किए बिना अपने मतलब का डेटा ढूंढा जा सकता है।
    • इन डिस्कों की कीमत लगातार कम होती जा रही है।
    • जहाँ भी सीधे डेटा एक्सेस करना होता है, वहाँ इनका ही प्रयोग होता है। नए प्रकार के बबल स्टोरेज जैसे माध्यमों का प्रयोग अभी नगण्य है।
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    • जहाँ पराना रिकार्ड स्टोर था वहीं उसके ऊपर नया डेटा राइट करके रिकार्ड को आसानी से अपडेट किया जा सकता है।
    • सिवेबल डिस्क के साथ एक ही डिस्क ड्राइव में काफी मात्रा में डेटा स्टोर किया जा सकता है और कोई एक डिस्क ऑफलाइन रहती है। बैच एप्लीकेशनों के लिए डिस्क का ऑफलाइन होना कोई मायने नहीं रखता।
    • मैग्नेटिक डिस्क पर परस्पर जोड़ी गई फाइलें एक ही बार एक साथ प्रोसेस की जा सकती हैं।
    • पलॉपी डिस्क और मैग्नेटिक टेप जैसे स्टोरेज माध्यमों की तुलना में हार्ड डिस्क में डेटा खराब होने की संभावना काफी कम होती है।

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लॉपी डिस्केट्स (Floppy Diskettes)-1970 के दशक के प्रारम्भ में IBM ने एक नया डेटा उपकरण पेश किया। यह आठ इंच व्यास वाली प्लास्टिक की एक परत थी जिस पर ऑक्साइड का लेप बौटे सरक्षा जैकेट के आवरण में लिपटी प्लास्टिक की परत को ‘डिस्क’ कहा गया। यह बीच से गोल पपीताकि मैग्नेटिक सतह से सम्पर्क हो सके। डिस्क के लिए बने हार्डवेयर में डालने पर डिस्क अपने सुरक्षा राण के भीतर तेजी से घूमती थी और कम्प्यूटर की मेमोरी से डेटा डिस्क पर राइट हो जाता था। राइट होने के बाट स्टोर हए डेटा को कम्प्यूटर स्क्रीन पर पढ़ भी सकते थे। इस सहायक स्टोरेज उपकरण को डिस्केट या फ्लॉपी कि नाम दिया गया। ये डिस्क विभिन्न आकारों में उपलब्ध थी। सर्वप्रथम डिस्क का आकार 8 इंच था। 1980 के दशक में अधिकांश कम्प्यूटरों में 5.25 इंच की डिस्क प्रयुक्त होती थी। इन डिस्कों की स्टोरेज क्षमता 360 KB (1/3 MB) तक होती थी। इसके बाद 1.2 MB स्टोरेज क्षमता वाली उच्च घनत्व डिस्क आईं। आज 5.25 देव वाली डिस्क का स्थान 3.5 इंच वाली डिस्क ने ले लिया है। 720 KB (डबल डेंसिटी) और 1.44 MB (हाई डेंसिटी) PC में लगने वाली डिस्क के प्रमुख प्रकार हैं।

आप्टिकल डिस्क (Optical Disc)-इन डिस्कों में भी बड़ी मात्रा में डेटा स्टोर किया जा सकता है। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि ये ऑप्टिकल डिस्क अंतत: मैग्नेटिक डिस्क और टेप स्टोरेज माध्यमों को चलन से बाहर कर देंगी। इस तकनीक में मैग्नेटिक डिस्क में प्रयोग होने वाले रीड/राइट हैड के स्थान पर दो लेसर होते हैं। एक लेसर बीम डिस्क की सतह पर मैक्रोस्कोपिक पिट्स बनाकर राइट करती है और दूसरी लेसर बीम प्रकाश संवेदी रिकॉर्डिंग सतह से राइट किए डेटा को रीड करती है। इस बीम को ऑप्टिकल डिस्क में वांछित स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है. अत: मैकेनिकल एक्सेस आर्म की आवश्यकता नहीं रहती।

ऑप्टिकल डिस्कको काम्पैक्ट डिस्क भी कहा जाता है। काम्पैक्ट डिस्क को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

WORM डिस्क (WORM Disc)-इसका पूरा नाम Write Once Read Many है। यह ऑप्टिकल उस्क की ऐसी तकनीक है जिसमें डेटा को स्टोर करने के बाद रीड किया जा सकता है और राइट करने के बाद डटा को वहाँ से हटाया नहीं जा सकता। WORM स्टोरेज डिस्क 1880 के दशक के अंत में आई। यह बड़े संस्थानों के अभिलेख और संवेदनशील डेटा को रखने के लिए उपयोगी थी। WORM ड्राइव जब डिस्क पर डेटा ।इट करती है तो उसे डिस्क की सतह पर बदले हुए रंग के रूप में स्पष्ट देखा जा सकता है।

कम क्षमता वालेन लेसर से बने इन चिन्हों को हटाया नहीं जा सकता। यूँ तो WORL तब बेकार सिद्ध होती हैं, जब बात इस पर पुनः डेटा राइट का की आती है. लेकिन डेटा बैकअप के लिए इसे उपयोगी मानाRY क्योंकि यह डेटा में किसी प्रकार के हेर-फेर की अनुमति की जा देती। बहुत से संस्थानों को पुराने रिकार्ड जैसे के तैसे चाहिए हैं और लंबे समय बाद इनका उपयोग होता है। इसीलिए रिकार्डों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए मैग्नेटिक टेप या का डिस्क जैसे रिराइटेबल माध्यमों के साथ WORM का प्रयोः मा किया जाता है। जैसे ही WORM को राइट किया जाता है। तब WORM Estetiराइट किया हिस्सा तुरन्त रीड ओनली हो जाता है। एक बार राडा करने के बाद डेटा केवल पढ़ा जा सकता है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। PC के लिए WORN द कार्टिज के जैसा होता है, जो देखने में 3.5 इंच डिस्केटस का 5.25 इंच जैसा संस्करण लगता है। इसकी स्टोरेट क्ष क्षमता 200 MB होती है। हार्ड डिस्क की तुलना में CD-ROM और WORM को एक्सेस करने में समय ६ अधिक लगता है। यह 100 से 300 मिली सेकेण्ड के बीच होता है। अभिलेखों को स्टोर करने के लिए मैग्नेटिक टेप का विकल्प है WORM । उदाहरणार्थ, कोई कम्पनी पिछले वर्ष में हुई सभी वित्तीय ट्रांजेक्शंस का स्थायं प्र रिकार्ड रखना चाहती है। इसी प्रकार एक ऐसा सूचना सिस्टम है जिसमें टेक्स्ट और इमेंज मिली हुई हैं और कुछ समय तक उसमें कोई बदलाव नहीं होना है। इन दोनों कामों के लिए WORM श्रेष्ठ है।

CD-ROM डिस्क (CD-ROM Disc)-घूमने वाली इस CD तकनीक का पूरा नाम Compact Disk Read Only Memory है। जैसा इसका नाम है, काम भी वैसा ही है-CDROM प्राय: मास्टर कॉपी बनाने के काम आती है और व्यावसायिक रूप से जारी किए जाने वाले CD-ROM में किसी विषय विशेष से संबद्ध रेफरेंस मैटीरियल होता है। मास्टर कॉपी से कॉपी करके इसकी डुप्लीकेट कॉपियाँ बनाई जाती हैं। CD-ROM में डिस्क लगाने पर इसमें स्टोर सामग्री स्क्रीन पर देखी जा सकती है। इस CD पर लिखा डेटा स्थायी होता है, उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इसे राइट प्रोटेक्ट करना कहते हैं। एक CDROM की स्टोरेज क्षमता 650 MB से अधिक होती है, जो ढाई लाख पृष्ठों या 1500 फ्लॉपी डिस्कों के बराबर है। इसकी अपार CD-ROM डिस्क स्टोरेज क्षमता ने ही मल्टीमीडिया कार्यों के लिए संभावनाओं के द्वार खोले। मल्टीमीडिया से प्रेजेंटेशन में प्रभावोत्पादकता पैदा की जाती है। वीडियोटेप के विपरीत CD-ROM डिस्क पर मौजद किसी भी सामग्री को बिना पूरा डेटा सर्च किए खोजा जा सकता है।

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डिजिटल वीडियो डिस्क [Digital Video Disc| (DVD)]-इसे Digital Versatile Disc भी कहते हैं। यह DVD-R ऑप्टिकल स्टोरेज डिस्क डेटा स्टोर करने के अतिरिक्त उच्चस्तराव वीडियो और ध्वनि के साथ फिल्में स्टोर करने की भी सुविधा देती है। सिंगल साइड DVD में 4.7 GB डेटा स्टोर हो सकता है, यह 139 DVD मिनट की फिल्म के बराबर है। DVD डबल साइड वाली भी होता है। डबल साइड वाली दोहरी सतह की DVD में 17 GB तक वीडियो-ऑडियो रिकॉर्ड किया जा सकता है। DVD शब्दावला भिन्नता यह दर्शाती है कि डेटा किस प्रकार इस पर स्टोर किया गया है? DVD-Rom में डेटा केवल रीड किया जा सकता है, राक्ष डिजिटल वीडियो डिस्क करना इस पर संभव नहीं। DVDR और DVD + R पर केवल एक ही बार डेटा राम RW, DVD+RW 4 इमेज, फिल्में डेटा राइट किया जा सकता है, इसके बाद यह DVDRom की भाँति काम करती है। DVDRW और DVD-Rom पर डेटा को कितनी ही बार हटाकर राइट किया जा सकता है। टेक्स्ट, और हाई रिजॉल्यूशन ग्राफिक्स स्टोर करने के लिए विभिन्न प्रकार की DVD प्रयोग में लाई जाती हैं ।

ब्ल रे डिस्क डिस्क (Blu Ray Disc)-यह ऑप्टिकल डिस्क के क्षेत्र में आने वाले कल की डिस्क है, जिसे सोसिएशन (BDA) ने बनाया है, जो विश्व के अग्रणी कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स. PC और स्टोरेज ताओं का समूह है। हाई डेफिनिशन (वीडियो की रिकॉर्डिंग, रिराइटिंग और उन्हें चलाने के लिए इस का विकास किया गया, क्योंकि ब्लू रे की स्टोरेज क्षमता अधिक होती है। यह एक सतह वाली हो तो 25 GB और हर वाली हो तो 50 GB तक डेटा स्टोर कर सकती है। यह किसी भी DVD की तुलना में पाँच गुना अधिक है। अतिरिक्त के साथ अति उन्नत ऑडियो-वीडियो कोड का प्रयोग देखने को हाई डेफिनिशन पिक्चर का आनन्द देती है। वर्तमान में 5000 लेसर पर निर्भर करते हैं, जबकि यह नया फॉरमैट नीला-बैंगनी लेसर प्रयोग करता है। इसीलिए इसे ब्लू रे नाम दिया गया है। 405 मि.मी. के नीले बैंगनी लेसर की वेबलेंग्थ लाल लेसर की 650 मि. मी से कम होती है। यही कारण है कि ब्लू रे का लेसर कहीं अधिक सटीक काम करता है और डेटा को निकटता से जकड़े रहता है।

ब्लू रे डिस्क इससे कम स्थान में अधिक डेटा स्टोर होता है और यही कारण है कि आकार में CD/DVD के समान होने पर भी इसकी स्टोरेज क्षमता अधिक होती है। पायनियर द्वारा किए गये नवीनतम विकास के चलते 20 सतहों वाली एक डिस्क में 500 GB तक डेटा स्टोर करना संभव हो गया है। वर्तमान में 200 से अधिक विश्व में अग्रणी कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, PC, रिकार्डिंग माध्यमों, वीडियो गेम और म्यूजिक कम्पनियाँ ब्लू रे को सपोर्ट करती हैं। अभी यह पूरी तरह चलन में नहीं आ पाई है तो इसका मुख्य कारण इसकी कीमत अधिक होना है। इसके लिए HD टीवी और HD केबल कनेक्शन होना भी जरूरी है वरना ब्लू रे किसी काम की नहीं। लोगों का DVD से संतुष्ट होना भी एक कारण है, जिस वजह से ब्लू रे को अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही।

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अन्य वैकल्पिक संग्रहण डिवाइसेज (Other Auxillary Storage Devices)

तकनीक के विकास के साथ-साथ कुछ अन्य वैकल्पिक संग्रहण डिवाइसेज भी प्रचलन में हैं

(1) जिप डिस्क (Zip Disc)-हार्ड डिस्क में संचित विभिन्न सुचनाओं को अन्य स्थान पर ले जाने के लिए कोई ऐसी डिवाइस की आवश्यकता होती है जिसकी संग्रहण क्षमता अधिक हो। इन परेशानियों से बचने के लिए ऐसी ड्राइव का प्रयोग होने लगा जिसे जिप डाइव के नाम से जाना जाता है। जिप ड्राइव पोटेबल डिस्क होती है। जिप ड्राइव sa corporation द्वारा विकसित किया गया। जिप ड्राइव दो रिम आती है-100 MB और 250 MBI

पेनड्राइव (Pen Drive)-पेन डाइव जिसे जम्प ड्राइव भी कहा बल यू.एस.बी. फ्लैश मेमोरी डिवाइस है जिसका प्रयोग ॥डया और डेटा फाइल को एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर में ले किया जाता है। पेन ड्राइव पर कॉपी करने की प्रक्रिया फ्लॉपी व पेन ड्राइव अपक्षा तीव्र गति से होती है। हार्ड डिस्क से वांछित फाइल को डैग व जिप डिस्क को iomega corpora जाता है। एक पोर्टेबल यू.एस.बा ऑडियो, वीडियो और डेटाफ जाने के लिए किया जाताह सी.डी. की अपेक्षा तीव्र पेन ड्राइव में आसानी से कॉपी किया जा सकता है। आजकल बाजार में 1 TB की क्षमता वाले ड्राइव उपलब्ध हैं।

कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर (Computer Software)

कम्प्यूटर कोई भी कार्य स्वत: नहीं करता है। कम्प्यूटर को कार्य करने के लिए आवश्यक निर्देश उपळ कराने होते हैं। कम्प्यूटर को यह निर्देश देना आवश्यक है कि उसे कब, क्या और कैसे करना है। इन निर्देशों शृखलाबद्ध रूप से कम्प्यूटर की भाषा में तैयार किया जाता है। ऐसे श्रृंखलाबद्ध निर्देशों के समूह को कम प्रोग्राम अथवा कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर कहा जाता है।

पारिभाषित शब्दों में डेटा को विधिवत् तथा क्रमबद्ध करने के लिए एवं उनका विश्लेषण करके परिण प्राप्त करने के लिए कम्प्यूटर को श्रृंखलाबद्ध रूप से दिये गये निर्देशों के समूह को सॉफ्टवेयर कहते हैं।

हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में सम्बन्ध (Relation between Hardware & Software)

किसी भी कम्प्यूटर से उपयोगी कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि उसके हार्डवेयर और सॉफ्टले परस्पर मिलकर कार्य करें। इसलिए कम्प्यूटर हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर में एक विशेष सम्बन्ध होता है। दोनों. एक-दूसरे के पूरक होते हैं। इन दोनों में से किसी एक की भी अनुपस्थिति में कम्प्यूटर से कोई उपयोगी कार्य किया जा सकता।

उदाहरण के लिए, बाजार से खरीदा गया एक कैसेट प्लेयर तथा एक कैसेट हार्डवेयर है, जबकि कैसेट रिकॉर्ड किये गये गाने इसके सॉफ्टवेयर हैं किसी विशेष गाने को सुनने के लिए पहले कैसेट में उस गाने को रिका करना होगा, उसके बाद कैसेट को कैसेट प्लेय में लगाकर कैसेट को Play करना होग Linux इसी प्रकार कम्प्यूटर से कोई कार्य कराने Microsoft लिए सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को कम्प्यव हार्डवेयर में स्थापित करना होगा।

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एक प्रकार के हार्डवेयर पर अनेक प्रकार के सॉफ्टवेया को स्थापित किया जा सकता है। सॉफ्टवेयर के द्वारा ही कम्प्यूटर को बूट किया जाता है अर्थात् उसे कार्य करने के प्रारम्भिक स्थिति में लाया जाता है, डेटा और प्रोग्राम को कम्प्यूटर में स्टोर और रिटीव किया जाता है, विभिन समस्याओं को हल किया जाता है तथा सॉफ्टवेयर के विकास के लिए यूजर-फ्रेन्डली वातावरण क्रिएट किया जात है। सॉफ्टवेयर के विकास की प्रक्रिया को प्रोग्रामिंग कहते हैं। प्रोग्रामिंग करने के लिए आपको किसी भी प्रोग्रामि लैंग्वेज की जानकारी होनी चाहिए

सॉफ्टवेयर के प्रकार (Types of Software)

मुख्य रूप से कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं

(1) सिस्टम सॉफ्टवेयर (System Software)-सिस्टम सॉफ्टवेयर के भी निम्नलिखित तीन प्रका होते हैं

(i) ऑपरेटिंग सिस्टम्स (Operating software)

(ii)  ( लैंग्वेज प्रोसेसर्स (Language processor) और

(iii) यूटिलिटीज (Utilities)

(2) एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software)-एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के भी निम्नलिखि दो प्रकार होते हैं

(i) रेडीमेड सॉफ्टवेयर (Readymade Software) और

(ii) कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर (Customized software)

(1) सिस्टम सॉफ्टवेयर सिस्टम एक अथवा एक से अधिक प्रोग्राम्स का एक सेट होता है, जो कम्प्यूटर की आन्तरिक क्रियावि नियन्त्रित करता है। सिस्टम सॉफ्टवेयर कम्पयूटर के हार्डवेयर रिसोर्सेस का विभिन्न प्रोग्राम्स द्वारा किये जा उपभोग को मॉनीटर और नियन्त्रित करता है। वास्तव में सिस्टम सॉफ्टवेयर ही अन्य सॉफ्टवेयर को करने के लि उपर्युक्त वातावरण उपलब्ध कराता है।

(ii) ऑपरेटिंग सिस्टम

ऑपरेटिंग सिस्टम, अनेकों छोटे-छोटे प्रोग्राम्स का एक सेट होता है, जो कम्प्यूटर के विभिन्न हार्डवेयर जैसे-मेमोरी. इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस इत्यादि का प्रबन्धन करता है और कम्प्यटर हार्डवेयर वाला के बीच एक इन्टरफेस की भाँति कार्य करता है।

MS DOS, UNIX, LINUX WIN DOS UNIX, LINUX, WINDOWS 98, WINDOWS NT, WINDOWS 2000 AnwsXP. WINDOWS 7, WINDOWS 8

ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य (Functions of Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

(i)  यह कम्प्यूटर और यूजर के मध्य एक इन्टरफेस स्थापित करता है, जिससे दोनों के बीच कम्प्यनिकेशन सम्भव हो पाता है।

  1. यह सभी इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस का प्रबन्धन करता है।
  2. यह कम्प्यूटर द्वारा सम्पादित होने वाले विभिन्न टास्कों को एलोकेट करता है।
  3. यह सिस्टम प्रोग्राम तथा यूजर के डेटा और प्रोग्राम को मेन मेमोरी तथा स्टोरेज एलोकेट करता है। है
  4. यह CPU द्वारा विभिन्न टास्कों अर्थात् जॉब्स के एग्जिक्यूट करने के क्रम का निर्धारण भी करता है।
  5. यह विभिन्न डेटा और प्रोग्राम को मेमोरी में इस तरह से व्यवस्थित करके रखता है कि वे एक दूसरे से इन्टरफेयर न करें।
  6. यह कम्प्यूटर सिस्टम और डेटा की एक्सेसिंग को अन्य यूजर से अर्थात् अनाधिकृत यूजर से सुरक्षित करता है।

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ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम को निम्नलिखित तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  1. बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Operating System)
  2. मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Programming Operating System) और
  3. 3. रीयल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real time Operating System)

बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Operating System)-बैच ऑपरेटिंग सिस्टम, एक सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम होता है, जो यूजर द्वारा दिये गए जॉब्स को एक-एक कर बैच में एग्जिक्यूट करता है। जॉब्स को प्रोसेस करने के लिए विभिन्न यूजर अपने-अपने डेटा और प्रोग्राम्स को इसको सौंप देते हैं। इसके पश्चात् यह एक समान जॉब्स का अलग-अलग समूह बनाकर उन्हें एक साथ कम्प्यूटर में लोड करता है। जब एक प्रोग्राम का एग्जिक्यूशन समाप्त हो जाता है तो ऑपरेटिंग सिस्टम दूसरे प्रोग्राम को एग्जिक्यूट करने के लिए लाड करता है। बैच ऑपरेटिंग सिस्टम उन एप्लीकेशन्स के लिए उपयुक्त होता है, जिसमें कम्प्यूटेशन टाइम अत्यधिक होता है और प्रोसेसिंग के दौरान यजर के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है। पे-रोल प्रोसेसिंग भविष्यवाणी और सांख्यिकीय विश्लेषण ऐसे एप्लीकेशन के कुछ उदाहरण है।

मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Programming Operating System)

ग्रामग ऑपरेटिंग सिस्टम एक साथ एक से अधिक प्रोग्राम अर्थात् जॉब को लोड करके एग्जिक्यूट कर सकत ह। मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के निम्नलिखित तीन स्वरूप हैं

(1) मल्टीयूजर ऑपरेटिंग सिस्टम (Multiuser Operating System)-यह ऑपरेटिंग सिस्टम

कम्प्यूटर सिस्टम के रिसोर्स पर दो या दो से अधिक टर्मिनल के माध्यम से एक साथ एक्सेस करने की अनुमात सुविधा देता है। मल्टीयूजर ऑपरेटिंग सिस्टम का एक ज्वलंत उदाहरण है।

(2) मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Tasking Operating syster सिस्टम का मल्टीप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम भी कहा जाता है। मल्टीटास्टिंग ऑपरेटिंग सिस्टम विभिन्न जाब्स को एक से अधिक प्रोसेसर पर एक साथ एग्जिक्यूट करते हैं अर्थात मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम्स, जॉब्स यूट करने के लिए एक से अधिक प्रोसेसर को हैंडल करते हैं। मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम, दो से आधक प्रोसेस को एक साथ एग्जिक्यूट कर सकता है।

(3) टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System)-यह ऑफो। सिस्टम क्विक रेसपॉन्स टाइम के साथ इन्टैक्टिव मोड में कार्य करता है। इसके लिए इसम टाइम शेयरिंग नाम तकनीक का प्रयोग किया जाता है। टाइम-शेयरिंग में प्रत्येक यूजर को एक पूर्व-निधारित क्रम मCPU को क समय (एक निश्चित समय) के लिए एलोकेट किया जाता है तथा इस समय को टाइम-स्लाइस कहते हैं। टाइम-स्लाइस 10 से 100 मिली सेकेण्डस का होता है। ऑपरेटिंग सिस्टम राउन्ड-रोबिन शेड्यूलिंग एल्गोरिक का प्रयोग करते हुए प्रत्येक यूजर को एक टाइम-स्लाइस एलोकेट करता है। ज्योंही एक यूजर का एक टा स्लाइस समाप्त होता है, ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा अगले यूजर को एक टाइम-स्लाइस एलोकेट कर दिया जाता है

रीयलटाइम ऑपरेटिंग सिस्टम-रीयल टाइम आपरेटिंग सिस्टम में प्रत्येक जॉब को प्रोसेस करनी सम्पादित करने की एक निश्चित समयावधि होती है तथा उन्हें इस समयावधि के अन्दर पूरा करना पड़ता है। रीयल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रमुख उद्देश्य क्विक रेस्पॉन्स टाइम का अत्याधिक उपयोग तथा यूजर का कार्य करना होता है। क्विक रेसपॉन्स टाइम प्रदान करने के लिए ज्यादातर समय मेन-मेमोरी में प्रोसेसिंग होती रहती है। यदि कोई जॉब निर्धारित समयावधि के अन्दर परा नहीं होता है, तो ऐसी स्थिति को डेडलाइन ओवररन कहा जा है। रीयल-टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम को डेडलाइन ओवररन जैसी परिस्थिति को कम से कम घटित होने के चाहिए। फ्लाइट कंट्रोल और रीयल-टाइम सिमुलेशन्स रीयल-टाइम एप्लीकेशन के उदाहरण हैं।

(ii) लैंग्वेज प्रोसेसर्स/ट्रान्सलेटर्स (Language Processor) ___लैंग्वेज ट्रान्सलेटर एक सिस्टम सॉफ्टवेयर होता है, जो यूजर द्वारा किसी हाई लेवल लैंग्वेज अथवा एसेम्बली लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में अनुवादित करता है, ताकि वह प्रोग्राम कम्प्यूटर द्वारा समझा जा सके। लैंग्वेज ट्रान्सलेटर तीन प्रकार के होते हैं-एसेम्बलर, इन्टरप्रेटर और कम्पाइलर।

एसेम्बलर (Assembler)- एसेम्बलर एक लैंग्वेज ट्रान्सलेटर होता है, जो एसेम्बली लैंग्वेज में लिखे गए किसी प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में अनुवादित कर देता है।

इन्टरप्रेटर (Interpreter)-इन्टरप्रेटर एक लैंग्वेज ट्रान्सलेटर होता है, जो किसी हाई लेवल लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में अनुवादित कर देता है। यह हाईलेवल लैंग्वेज में लिखे गए प्रोग्राम की। लाइनों को एक-एक कर मशीन लैंग्वेज में अनुवादित करता है। यह प्रोग्राम के प्रत्येक बार एग्जिक्यूट होने पर, प्रोग्राम की प्रत्येक लाइन को सिनटैक्स एरर के लिए जाँच करता है और इसके पश्चात् उस लाइन को मशीन लैंग्वेज के समतुल्य कोड में परिवर्तित करता है। यदि किसी लाइन में कोई अशुद्धि होती है, तो यह तत्क्षण उस अशुद्धि की जानकारी यूजर को देता है और प्रोग्राम का एग्जिक्यूशन समाप्त हो जाता है। प्रोग्राम का एग्जिक्यूशन तब तक पुनः प्रारम्भ नहीं होता है, जब तक कि प्रोग्राम की सभी अशुद्धियों को हटा दिया जाता है। किसी प्रोग्राम में मौजूद अशुद्धियों को बग्स और इनको प्रोग्राम से हटाने की प्रक्रिया को डिबगिंग कहा जाता है।

कम्पाइलर (Compiler)-कम्पाइलर भी एक लैंग्वेज ट्रान्सलेटर है और यह भी हाई लेवल लैंग्वेज में लिखे गए किसी प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज में अनुवादित करता है, परन्तु यह परे प्रोग्राम को एक बार रीड करता है तथा प्रोग्राम में मौजूद सभी अशुद्धियों को एक साथ उनके लाइन नम्बर के साथ प्रदर्शित करता है। जब प्रोग्राम से सभी अशद्धियों को हटा दिया जाता है तो यह पूरे प्रोग्राम को एक बार ही मशीन कोड में परिवर्तित कर, प्रोग्राम को एग्जिक्यूट करता है। कम्पाइलर, प्रोग्राम को मशीन कोड में कनवर्ट करने के बाद एक ऑब्जेक्ट फाइल भी बनाता है, जिसमें मशीन कोड संग्रहीत होता है। मशीन कोड को ऑब्जेक्ट कोड भी कहा जाता है। विदित हो कि इन्टरप्रेटर द्वारा ऑब्जेक्ट कोड क्रिएट तो किया जाता है, परन्तु उन्हें किसी फाइल में संग्रहीत नहीं किया जाता है।

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(iii) सिस्टम यूटिलिटी सॉफ्टवेयर (System Utility Software)

सिस्टम यटिलिटी सॉफ्टवेयर भी सिस्टम सॉफ्टवेयर के अन्तर्गत आते हैं और इन्हें यटिलिटीज अथवा सविस स्टीन्स भी कहा जाता है।

डिस्क डिफ़ेगमेन्टर एन्टीवायरस प्रोग्राम डिस्क और फाइल रिकॅवरी प्रोग्राम स्टोरेज-बैकअप प्रोग्राम इत्यादि, सिस्टम यूटिलिटी सॉफ्टवेयर के कुछ उदाहरण हैं। कुछ प्रमुख यूटिलिटी प्रोग्राम्स निम्नलिखित हैं

1 टैक्स्ट एडिटर (Text Editor)-टैक्स्ट एडिटर एक यूटिलिटी प्रोग्राम है, जो टैक्स्ट फाइल्स को क्रिएट और एडिट करने की सुविधा प्रदान करता है। यह डिस्क पर संग्रहीत किसी प्रोग्राम फाइल अथवा टैक्स्ट फाइल को ओपन कर, उसे पढने देर कोड को इन्टरप्रेट नहीं कर सकता है। टेक्स्ट एडिटर किसी पोणार नापेट नहीं कर सकता है। यह किसी टैक्स्ट फाइल में टेक्स्ट को इन्सर्ट, डिलीट किसी टैक्स्ट विशेषको और रिप्लेस करने की सुविधा भी प्रदान करता है। विन्डोज ऑपरेटिंग सिम्या पर सर्वाधिक लोकप्रिय एडीटर है।

2 अपयटिलिटी (Backup Utility)-बैकअप यूटिलिटी प्रोग्राम डेटा को एक स्टोरेज डिवाइस म्योरेज डिवाइस पर ट्रान्सफर करने की सुविधा प्रदान करता है। सामान्यत: इसका प्रयोग हार्डडिस्क

का बैकअप, मैगनेटिक टेप पर लेने के लिए किया जाता है। बैकअप का तात्पर्य डिस्क पर

की डप्लीकेट कॉपी तैयार करने से होता है। हार्डडिस्क पर संग्रहीत डेटा/इन्फॉर्मेशन के

से की स्थिति में बैकअप लिए गए डेटा/इन्फॉर्मेशन का प्रयोग किया जा सकता है। बैकअप देवा का उपयोग करने के लिए इसे रिस्टोर करना पड़ता है। डेटा को बैकअप यूटिलिटी द्वारा ही रिस्टोर किया जाता है।

3 डिस्क डिफ़ेगमेन्ट (Disk Defragment)-डिस्क डिफ्रेगमेन्ट भी एक यूटिलिटी प्रोग्राम होता है। में डेटा अथवा प्रोग्राम अथवा इन्फामशन को डिस्क पर किसी फाइल के रूप में संग्रहीत किया जाता है। किसी फाइल का आकार बहुत अधिक हो जाता है, तो वह फाइल गमेन्टेड हो जाती है, अर्थात उस फाइल डिस्क पर एक सेक्टर में स्टोर नहीं हो पाते हैं। परिणामस्वरूप उस फाइल के कन्टेन्ट्स क्रमान्तर में विभिन्न सेक्टर्स पर तितर-बितर ढंग से स्टोर हो जाते हैं, जिसके कारण उस फाइल की एक्सेसिंग धीमी हो जाती है, और सिस्टम का परफॉरमेन्स भी धीमा हो जाता है। डिस्क-डिफ्रगमेन्ट डिस्क पर संग्रहीत फाइल्स के फ्रेगमेन्टेशन को कम करता है। यह डिस्क पर संग्रहीत प्रत्येक फाइल के कन्टेन्ट्स को एक कन्टीगअस ब्लॉक में व्यवस्थित कर देता है। परिणामस्वरूप फाइलों की एक्सेसिंग तेज हो जाती है और सिस्टम का परफॉरमेन्स भी तेज हो जाता है।

4 एन्टीवायरस सॉफ्टवेयर (Anti Virus Software)-एन्टी-वायरस सॉफ्टवेयर एक यूटिलिटी है, जो कम्प्यूटर को वायरस के आक्रमण से बचाता है और साथ ही यदि कम्प्यूटर वायरस से ग्रसित है, तो उसे हटा भी देता है। कम्प्यूटर वायरस, एक कम्प्यूटर प्रोग्राम होता है, जो अपने आप रेप्लीकेट करता है और कम्प्यूटर सिस्टम को सही ढंग से कार्य नहीं करने देता है। जब कोई कम्प्यूटर सिस्टम, कम्प्यूटर वायरस से संक्रमित हो जाता है, तो कम्प्यूटर स्क्रीन पर अनचाहे संवाद अथवा ग्राफिक्स दिखाई देते हैं या फिर पूरा का पूरा सिस्टम ही हैंग कर जाता है। कुछ कम्प्यूटर वायरस तो हार्डडिस्क के डेटा को ही उड़ा देते हैं या फिर ऑपरेटिंग सिस्टम के पूर्व-परिभाषित कार्यों को ही बदल देते हैं। उदाहरण के लिए, फाइल को कॉपी करने के स्थान पर उसे डिलीट ही कर देते हैं। एन्टीवायरस सॉफ्टवेयर, वायरस का पता लगाने के लिए पूरी डिस्क को स्कैन करता है तथा वायरस मिलने की स्थिति में उन्हें डिस्क से हटा देता है। कुछ एन्टीवायरस प्रोग्राम हमेशा मेन मेमोरी में मौजूद रहते हैं तथा आमतौर पर वायरस द्वारा किये जाने वाले कार्यों की देख-रेख प्रोग्राम हमेशा मेन मेमोरी में मौजूद रहते हैं तथा आमतौर पर वायरस द्वारा किये जाने वाले कार्यों की देख-रेख करते रहते हैं तथा ज्यों ही वायरस के आक्रमण के लक्षण का पता लगता है, त्यों ही उस पर पलटवार करते हैं।

5 कम्प्रेशन यूटिलिटी (Compression Utility)-कम्प्रेशन यूटिलिटी का प्रयोग बड़े साइज की फाइला तथा डिस्क को कम्प्रेस करने के लिए किया जाता है। डिस्क कम्प्रेशन यूटिलिटी डिस्क को कम्प्रेस करता ह, ताक डिस्क की स्टोरेज क्षमता से अधिक डेटा को डिस्क पर स्टोर किया जा सके। किसी कम्प्रेस्ड फाइल का अभाग साध-सीधे नहीं किया जा सकता है. क्योंकि इसे इसके वास्तविक स्वरूप में लाने के लिए एक्सपैन्ड करने की आवश्यकता होती है।

6 फाइल मैनेजर (File Manager)-फाइल मैनेजर एक प्रोग्राम है. जो डिस्क पर फाइल क्रिएट, आर अपडेट करने की सविधा प्रदान करता है। फाडल मैनेजर डिस्क को फॉर्मेट करने की भी सुविधा देता है ।

(7) अनइन्सटालर (Uninstaller)-अनइन्सटालर एक यटिलिटी है. जो कम्प्यटर पर इन्सटाल्ड किसा अनइन्सटाल करने के लिए प्रयुक्त होती है। यह यूटिलिटी उन प्रोग्राम की भी सूची प्रदर्शित करता में इसपा जो विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम में प्रदर्शित नहीं होते हैं और साथ ही उन्हें अनइन्सटाल करने का ल करने की भी सुविधा प्रदान करता है। वे प्रोग्राम जो युटिलिटी द्वारा हार्डडिस्क से नहीं हटाये जा सकते हैं. अनइन्सटालर उन्हे भा अनइन्सटास करने की सुविधा देता है।

(2) एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर (Application Software)

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सॉफ्टवेयर. एक अथवा एक से अधिक प्रोग्राम्स का एक समूह होता है, जो किसी विशिष प्रकार के एप्लीकेशन के विभिन्न ऑपरेशन्स को सम्पादित करने के लिए डिजाइन किया गया होता है। उदाहरण और स्वरूप, वर्ड-प्रोसेसर, जैसे-डेटाबेस मैनेजमेंन्ट से सम्बन्धित ऑपरेशन नहीं कर सकता है। एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर आध को पैकेज भी कहा जाता है। पैकेज एक से अधिक प्रोग्राम का एक समूह होता है, जो किसी विशेष प्रकार के कार्य शब को सम्पादित करने के लिए प्रयुक्त होता है।

विभिन्न कार्यों को सम्पादित करने के लिए अनेक एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर अर्थात् पैकेज विकसित किये गये हैं। यद्यपि ये पैकेज आमतौर पर होने वाले कार्यों और कुछ विशिष्ट कार्यों को सम्पादित करने में सक्षम हैं, परन्त वर्ड ये कुछ एप्लीकेशन्स में होने वाले कार्यों को सम्पादित करने में अपर्याप्त पाए गए हैं। ऐसी परिस्थिति में किसी ली एप्लीकेशन विशेष के सभी कार्यों को सम्पादित करने के लिए प्रोग्रामर द्वारा विशिष्ट प्रोग्राम लिखा जाता है तथा ऐसे प्रोग्राम को यूजर रिटेन सॉफ्टवेयर अथवा कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर कहते हैं।

एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को दो वर्गों में रखा जा सकता है-रेडीमेड सॉफ्टवेयर/पैकेज और कस्टमाइज्ड साँफ्टवेयर ।

 (I)  सॉफ्टवेयर। रेडीमेड सॉफ्टवेयर/पैकेज (Readymade Software/Packages)

रेडीमेड सॉफ्टवेयर को निम्नलिखित प्रमुख उपवर्गों में रखा जा सकता है

  • डेटाबेस मैनेजमेंन्ट सॉफ्टवेयर (Database Management Software)
  • इलेक्टॉनिक स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर (Electronic Spreadsheet Software)
  • वर्ड-प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर (Word Processing Software)
  • डेस्कटॉप पब्लिशिंग सॉफ्टवेयर (Desktop Publishing Software)
  • एकाउन्टिंग सॉफ्टवेयर (Accounting Software)
  • कम्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर (Communication Software)
  • ग्राफिक्स, मल्टीमीडिया और प्रेजेन्टेशन सॉफ्टवेयर (Graphic, Multimedia&Presentation software)

डेटाबेस मैनेजमेंन्ट सॉफ्टवेयर (Database Management Software) डेटाबेस मैनेजमेंन्ट सॉफ्टवेयर का प्रयोग डेटा को स्टोर, मेन्टेन और मैनिपुलेट करने के लिए किया जाता है ये सॉफ्टवेयर नेटवर्क में डेटा की शैयरिंग की भी सुविधा देते हैं और साथ ही डेटा पर बाहरी और अनाधिप रोमिंग होने से भी रोकते हैं। ये सॉफ्टवेयर डेटा को लॉजिकल ऑर्डर में व्यवस्थित करने. डेटा का सब अर्थात क्वेरी और रिपोर्ट तैयार करने के लिए विभिन्न टूल्स भी प्रदान करते हैं। कुछ डेटाबेस मैनेजमेन्ट सिस का अपनी लैंग्वेज होती है, जिसका प्रयोग करके प्रोग्रामर किसी एप्लीकेशन विशेष की सभी आवश्यकता  करने के लिए वांछित प्रोग्राम लिख सकते हैं। काफी अधिक मात्रा में भी डेटा को सरलतापूर्वक सुचारू से हैंडल करने की क्षमता के कारण डेटाबेस मैनेजमेंन्ट सॉफ्टवेयर का प्रयोग अधिकांश संस्थाओं द्वारा अपने को स्टोर, मेन्टेन और मैनिपुलेट करने के लिए किया जाता है। DBASE, ACCESS, ORACLE, SE इत्यादि डेटाबेस मैनेजमेंन्ट सॉफ्टवेयर हैं।

कम्प्यूटर के तत्व निक स्प्रेडशीट सॉफ्टवेयर (Electronic Spreadsheet Software)-इलेक्टॉनिक’ स्प्रेडशीट का प्रयोग डेटा-एनालिसिस के लिए का प्रयोग डेटा एनालिसिस के लिए किया जाता हा य यूजर को तेजी से डेटा को टैबलर फॉर्म में यावस्थित करके, मैनिपुलेट और एनालाइज करने की सुविधा प्रदान करते है। एक पेपर की शीट होती है, जो अनेक पंक्तियों और कॉलम्स में विभाजित होती है। इस शीट में जा सकता है और इसके पश्चात् मनिपुलेट कर एनालाइज किया जा सकता है। जब डेटा को इनपुट किया जा सकता है और इसके यार और प्रदर्शित की जाती है, तो इसे इलेक्ट्रॉनिक स्प्रेडशीट कहते हैं। मल रूप से. हलेक्टॉनिक स्प्रेडशीट एकाउन्टिंग सम्बन्धी कार्यों को सम्पादित करने के लिए विकार कुल इनका प्रयोग बजट तैयार करने, फ्यूचर सेल की भविष्यवाणी करने, परीक्षा की रिजल्टशीट तैयार करने इत्यादि कार्यों के लिए बखूबी होता है। इनका प्रयोग विभिन्न सांख्यिकीय अभिकलनों को सम्पादित करने के लिए भी होता है। इलेक्ट्रॉनिक स्प्रेडशीट, डेटा को ग्राफ के माध्यम से दर्शाने की भी सुविधा प्रदान करता है।

वर्डप्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर (Word Processing Software)-वर्ड-प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर को वर्ड-प्रोसेसर भी कहा जाता है और इसका प्रयोग टैक्स्ट को प्रोसेस करने के लिए किया जाता है। यह सॉफ्टवेयर टैक्स्ट को इनपुट करने, स्टोर करने, एडिट करने, मैनिपुलेट करने तथा प्रिन्ट करने की सुविधा प्रदान करता है। आधनिक वर्ड-प्रोसेसर में इनपुट किए गए टैक्स्ट में विद्यमान वाक्यों की व्याकरण सम्बन्धी जाँच कर सकते हैं। शब्दों की स्पेलिंग की जाँच कर सकते हैं और गलतियों को सही भी कर सकते हैं। ये विभिन्न फॉन्ट साइज और स्टाइल का भी समर्थन करते हैं। इस प्रकार वर्ड-प्रोसेसर आपके डॉक्यूमेन्ट से स्पेलिंग और ग्रामर से सम्बन्धित अशुद्धियों को ठीक करने में आपकी सहायता करते हैं। अतः डॉक्यूमेन्ट की पठनीयता बढ़ जाती है। आप वर्ड-प्रोसेसर का प्रयोग करके करीब-करीब सभी प्रकार के डॉक्यूमेन्ट जैसे, बायोडेटा, व्यापारिक पत्र, आवेदन, लीगल डॉक्यूमेन्ट ऑर्गेनाइजेशनल चार्ट इत्यादि बना सकते हैं। आधुनिक वर्ड-प्रोसेसर में विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ, जैसे-वृत, आयत, लाइन इत्यादि अति सरलतापूर्वक ड्रॉ किये जा सकते हैं और मनोवांछित ऑब्जेक्ट बनाकर उसे कलर किया जा सकता है।

डेस्कटॉप पब्लिशिंग सॉफ्टवेयर (Desktop Publishing Software)-डेस्कटॉप पब्लिशिंग सॉफ्टवेयर का प्रयोग पब्लिशिंग इन्डस्ट्री में होता है। ये सॉफ्टवेयर टैक्स्ट को कम्पोज करने, पेज के लेआउट का निर्धारण करने और ऑब्जेक्ट को ड्रॉ करने की सुविधा प्रदान करते हैं और साथ ही ये ग्राफिक पैकेज से ग्राफिक ऑब्जेक्ट जैसे-चार्ट और पिक्चर को इम्पोर्ट कर, डॉक्यूमेन्ट के किसी पेज में इन्सर्ट करने की सुविधा भी प्रदान करते हैं। आधुनिक पैकेज/सॉफ्टवेयर में अन्तर्निर्मित कैलेन्डर, न्यूजलेटर, फ्लायर ब्रोकर इत्यादि के हैं, जिन्हें सीधे-सीधे प्रयोग कर मनोवांछित डाक्यूमेंट को शीघ्रातिशीघ्र तैयार किया जा सकता है।

एकाउन्टिंग सॉफ्टवेयर (Accounting Software)-एकाउन्टिंग सॉफ्टवेयर, ऑफिसों में एकाउन्टिंग से सम्बन्धित कार्यों को सम्पादित करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। ये सॉफ्टवेयर व्यापारिक संस्थानों के लिए काफी उपयोगी होते हैं।

कम्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर (Communication Software)-कम्प्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर का प्रयोग कम्प्यूटर फाइल्स को एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर ट्रान्सफर करने के लिए किया जाता है। उदाहरणस्वरूप एक कम्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर, जो कम्प्यूटर फाइल्स को नोटबुक कम्प्यूटर से डेस्कटॉप कम्प्यूटर पर ट्रान्सफर करने के लिए प्रयोग किया जाता है। कम्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर के अन्तर्गत फैक्स सॉफ्टवेयर भी आते हैं।

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ग्राफिक्स, मल्टीमीडिया और प्रेजेन्टेशन सॉफ्टवेयर (Graphics, Multimedia & Presentation Software)-जब इन्फॉर्मेशन को पिक्चर या ग्राफ के माध्यम से दर्शाया जाता है, तो उसे समझना और समझाना अत्यन्त सरल हो जाता है। हाथ से पिक्चर या ग्राफ को बनाने में काफी अधिक समय लगता है और साथ ही किसी भी पिक्चर या ग्राफ के त्रि-आयामी व्य को हाथ से पेपर पर ड्रा करना तो अत्यन्त काठन है, इस कार्य को पारंगत डिजाइनर्स ही कर सकते हैं, परन्तु ग्राफिक सॉफ्टवेयर की सहायता से कम्प्यूटर पर किसाभा पिक्चर या आकृति या ग्राफ को तेजी से डॉ तो किया ही जा सकता है, साथ ही उसे त्रिआयामी व्यू म आसा परिवर्तित कर उसे देखा भी जा सकता है।

ग्राफिक सॉफ्टवेयर इमेजों को ड्रॉ करने और उन्हें मैनिपुलेट करने की सुविधा तो प्रदान करत ह एनिमेट करने की सविधा नहीं देते हैं। मल्टीमीडिया सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर किसी भी ग्राफिक आँब्जेक्ट को एनिमेट किया जा सकता है। मल्टीमीडिया सॉफ्टवेयर का प्रयोग साउन्ड को क्रिएट करने तथा उसे किसी ऑब्जे जोड़ने के लिए भी किया जाता है। इस प्रकार किसी ऑब्जेक्ट में एनिमेशन और साउन्ड के प्रभाव को डालकर जीवंतता प्रदान की जा सकती है तथा उसे अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

प्रेजेन्टेशन सॉफ्टवेयर के अन्तर्गत वे ग्राफिक्स सॉफ्टवेयर आते हैं, जो प्रस्तुति तैयार करने के लिए प किये जाते हैं। प्रेजेन्टेशन के माध्यम से कोई भी व्यक्ति या संस्था अपने विचारों को प्रभावशाली ढंग से लोगों । बीच प्रस्तुत करता है। अत: प्रभावशाली ढंग से प्रेजेन्टेशन सॉफ्टवेयर का प्रयोग ही प्रेजेन्टेशन की सफलता का महत्वपूर्ण पहलू है।

(ii) कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर (Customised Software)

वे एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर जो किसी विशेष एप्लीकेशन की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लिखे जाते हैं, कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर कहलाते हैं। इस प्रकार के सॉफ्टवेयर को यूजर के द्वारा निर्दिष्ट आवश्यकतास को पूरा करने के लिए विकसित किया जाता है। भारतीय रेलवे आरक्षण तंत्र के लिए विकसित/लिखा गया सॉफ्टवेयर, कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर का एक ज्वलंत उदाहरण है, जो रेलवे की आरक्षण सम्बन्धी सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है। किसी एक संस्था या तंत्र के लिए लिखा गया कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर का प्रयोग दूसरी संस्था या तंत्र के यूजर द्वारा नहीं किया जा सकता है।

डी... (डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम)

वैज्ञानिकों के अलावा साधारण उपभोक्ताओं के लिये एक

ऑपरेटिंग सिस्टम की शुरुआत की गयी जिसका नाम डी.ओ. Pranite of DentageshMaininerate CISDoct से. (डिस्क ऑपरेटिंग सिस्टम) है। यह ऑपरेटिंग सिस्टम कंसोल or betting skin crate CABOCL seu ing  Set मोड पर आधारित अर्थात् इसमें माउस का उपयोग नहीं होता था

इसमें ग्राफिक्स से सम्बन्धित कोई काम हो सकता है। इसमें फाइल और डायरेक्टरी बनायी जा सकती थी। जिसमें हम टेक्स्ट को सुरक्षित कर रख सकते हैं और पुनः उपयोग भी कर सकते हैं।

डी... को ऑपरेटिंग सिस्टम की माँ भी कहा जाता है, क्योंकि हम आज जिस भी ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं उसका मुख्य आधार डी.ओ.स. ही होता है। पर्सनल कम्प्यूटर के लिए IBM ने सर्वप्रथम PCDOS नाम से ऑपरेटिंग सिस्टम तैयार किया था। अगस्त 1981 को माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन ने MS-DOS नाम के ऑपरेटिंग सिस्टम का संस्करण 1.0 विकसित किया।

डी... पूर्णत: आदेश (command) पर आधारित होता है। आदेश के द्वारा कम्प्यूटर को निर्देशित कर सकते हैं। आदेश (command) कम्प्यूटर को निर्देशित करने का तरीका होता है। पहले ही कम्प्यूटर को यह बतला दिया जाता है की निम्न शब्द का प्रयोग करने से निम्न प्रकार का ही काम करना है और जब कोई उपभोक्ता उस आदेश को लिखता है तो कम्प्यूटर स्वत: उस काम को निष्पादित करता है।

कम्प्यूटर नेटवर्क्स (Computer Networks) संचार माध्यमों से जुड़े उपकरणों के सेट (नोड्स,टर्मिनल्स) को नेटवर्क कहते हैं। किसी संचार प्रणाली से जुड़े कम्प्यूटरों और टर्मिनल उपकरणों के समूह को कम्प्यूटर नेटवर्क कहते हैं, इनमें बड़े, मध्यम, छोटे कम्प्यूटर और माइक्रोप्रोसेसर शामिल होते हैं। टर्मिनलों में इंटेलिजेंट टर्मिनल भी हो सकते हैं और मूक भी। विभिन्न प्रकार के वर्कस्टेशन तथा अन्य उपकरण (सामान्य प्रयोग में आने वाले टेलीफोन उपकरण) भी इसमें शामिल होते हैं। कम्प्यूटर पर काम करने वाले अधिकांश लोग यह समझते हैं कि कम्प्यूटर नेटवर्क में एक से अधिक कम्प्यूटरों का इस्तेमाल होता है, और यह एक साधारण ऑनलाइन सिस्टम है।

कई अन्य का यह सोचना है कि दूरसंचार सेवाओं का प्रयोग ही इसमें प्रमुख है। इसलिए कह सकते हैं कि कम्प्यूटर नेटवर्क कि कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। कम्प्यूटर नेटवर्क न केवल कम्प्यूट। संसाधनों की विश्वसनीयता व पूरे सिस्टम का विकास करता है, बल्कि संसाधनों को बाँटने के प्राथमिक उद्देश्य का । भी पर्ति होती है। इसमें उपकरणों की शेयरिंग, फाइल शेयरिंग, प्रोग्राम शेयरिंग और प्रोग्राम्स का विखण्डन। शामिल है।

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नेटवर्क्स की आवश्यकता और सम्भावनाएँ (Need and Scope of Networks) व्यावसायिक कार्यों में कम्प्यूटर नेटवर्क निम्न प्रकार सहायता कर सकता है

फाइल शेयरिंग (File Sharing)-नेटवर्क द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधा में सबसे ज्यादा प्रचलित है फाइल शेयरिंग और सभी डेटा फाइलों को सर्वरों पर ग्रुप करना, जब किसी संस्थान की सभी फाइलें एक ही स्थान पर एकत्र हो जाती हैं तो उसमें काम करने वाले कर्मचारियों के लिए डॉक्यूमेंट्स और अन्य डेटा को शेयर करना सरल हो जाता है। यह पूरे कार्यालय की फाइलों को व्यवस्थित रूप देने का सर्वोत्तम तरीका है। विंडोज 2000 जैसे नेटवर्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम एडमिनिस्ट्रेटर को सुविधा देता है कि वह किसी को भी कुछ फाइलों तक एक्सेस करने से बाधित कर सकता है।

प्रिन्ट शेयरिंग (Print Sharing)-जब प्रिन्टर नेटवर्क पर उपलब्ध होता है तो उसी प्रिन्टर को कई लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे संस्थान को प्रिन्टरों पर अधिक खर्च नहीं करना पड़ता। व्यक्तिगत टर्मिनलों से जुड़े प्रिन्टर की अपेक्षा नेटवर्क प्रिन्टर की गति और क्षमता अधिक होती है तथा इनमें इन्वेलप फीडर और मल्टीपल पेपर ट्रे भी होती है।

मेल (e-mail)-ग्रुप या आन्तरिक ई-मेल की सुविधा से संस्थान के कर्मचारी आपस में तेजी से प्रभावशाली ढंग से संचार कर सकते हैं। ग्रुप ई-मेल एप्लीकेशन में कॉन्टेक्ट मैनेजमेंन्ट, वर्क शेड्यूलिंग की क्षमता भी होती है। बनाई गई कॉन्टेक्ट लिस्ट का प्रयोग पूरे संस्थान के कर्मचारी कर सकते हैं बजाय इसके कि हर कर्मचारी को उसकी कॉपी बना के दी जाए। सभी कर्मचारियों को कैलेण्डर शेयर करके सामूहिक कार्यक्रमों की जानकारी दी जा सकती है। इसके अलावा इन्टरनेट ई-मेल की पूरे संस्थान को सविधा होने से कर्मचारी दूर बैठे लोगों से भी मेल का आदान-प्रदान ठीक उसी प्रकार कर सकते हैं जैसा वे संस्थान के कर्मचारियों के साथ करते हैं। जहाँ जरूरी होता है वहाँ ई-मेल के साथ डाक्यूमेंट भी बहुत तेजी के साथ जोड़ दिया जाता है, यह फैक्स से तेज, सस्ता और सरल होता है।

फैक्स शेयरिंग (Fax Sharing)-नेटवर्क सर्वर से जुड़े मॉडेम को शेयर करने से कोई भी व्यक्ति अपने कम्प्यूटर पर बैठे-बैठे डॉक्यूमेंट को फैक्स कर सकता है और उसे प्रिन्ट करने की आवश्यकता भी नहीं होती, इससे कागज और प्रिन्टर का व्यर्थ प्रयोग नहीं होता, फैक्स के नेटवर्किंग एप्लीकेशन को ई-मेल कॉन्टेक्ट लिस्ट से जोड़ा जा सकता है और लोगों को सामूहिक रूप से फैक्स भेजे जा सकते हैं, बहुत बड़ी संख्या में फैक्स भेजने के लिए विशेष हार्डवेयर उपलब्ध हैं। आने वाले फैक्स को भी नेटवर्क संचालित करता है और उसे ई-मेल द्वारा सीधे सम्बन्धित व्यक्ति के पास भेज देता है, इससे एक बार फिर फैक्स का कागज पर प्रिन्ट लेने की जरूरत नहीं पड़ती और फैक्स मशीन कार्य के लिए हर समय तैयार रहती है।

रिमोट एक्सेस (Remote Access)-आज के इस पूर्णतः गतिशील विश्व में किसी कायार्लय के कर्मचारियों को ई-मेल, डॉक्यूमेंट और अन्य डेटा देखने की आवश्यकता तब भी हो सकती है जब वे अपने कार्य स्थल से दर होते हैं. इसलिए रिमोट एक्सेस किसी भी नटेवर्क का एक अविभाज्य हिस्सा है। इसमें वे टेलीफोन लाइनों द्वारा डेटा को उसी प्रकार एक्सेस कर सकते हैं जैसे वे अपने कार्यालय में बैठकर करते हैं।

वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN)-जो आपके नेटवर्क को इन्टरनेट द्वारा रिमोट एक्सेस प्रदान करता है, से लम्बी दूरी की कॉल दरों में भी कमी आती है। डेटाबेस शेयर करना (Sharing Database)-यह फाइल शेयरिंग के अर्न्तगत आती है। यदि किसी संस्थान का डेटाबेस बहत बडा है तो ऐसे में नेटवर्क ही एकमात्र रास्ता है जिनके द्वारा एक ही समय में बहुत से लोग उसका उपयोग कर सकते हैं। संवेदनशील डेटाबेस सर्वर सॉफ्टवेयर डेटा की सुरक्षा को बनाए रखते हैं।

फाँल्ट टॉलरेंस (Fault Tolerance)-नेटवर्किंग प्रक्रिया में इसका प्रयोग करके समय-असमय दुर्घटनावश डेटा की क्षति से बचने के कई उपाय मिलते हैं। हार्ड ड्राइव का फेल हो जाना या गलता स किसी फाइल को डिलीट कर देना डेटा क्षति का एक उदाहरण हैं। इसके लिए सर्वप्रथम आपके पासअतिरिक्त हार्डवेयर का होना जरूरी है, विशेषकर हार्ड ड्राइव, यदि एक खराब भी हो जाती है तो उस स्थान दूसरी हार्ड ड्राइव ले लेती है और डेटा की क्षति नहीं होती है। टेप बैकअप को सदैव सहाय स्टोरेज के रूप में प्रयोग करना चाहिए, प्राथमिक स्टोरेज के रूप में कदापि नहीं. वैसे तो आर बैकअप सिस्टम विश्वसनीय हैं लेकिन असफलता से फिर भी इन्कार नहीं किया जा सकता। इस लिए अतिरिक्त उपायों में UPS से जुड़ा सर्वर बहुत काम आता है, इससे विद्युत् में उतार-चढ़ाव और अन्य उपकरणों को क्षति होने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है।

नेटवर्क प्रयोग के लाभ (Benefits of Using Network)-जैसे-जैसे व्यवसाय प्रगति करता है। उसी अनुपात में कर्मचारियों के बीच बेहतर संवाद की जरूरत भी होती है। इसमें कोई संस्थान कॉमन फाटल शेयरिंग और डेटाबेस तथा बिजनेस एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर को कम्प्यूटर नेटवर्क पर शेयर करके यह काम का सकता है। नेटवर्क की क्षमता में वृद्धि और कहीं भी रहकर कार्य कर सकने की व्यवस्था के बाद भी प्रत्येक सफल व्यवसाय को समय-समय पर अपनी सूचना तकनीक क्षमता और आवश्यकताओं को जाँचते रहना चाहिए। कोई संस्थान अपनी सूचना व्यवस्था बढ़ाने के लिए कम्प्यूटरों को आपस में जोड़कर और मानक सिस्टम के साथ काम कर सकता है,

  • कर्मचारी, आपूर्तिकर्ता और ग्राहक आपस में सूचनाओं का आदान.प्रदान कर आसानी से एक-दूसरे से सम्पर्क कर सकते हैं।
  • जानकारी और सूचनाओं का जितना विस्तार होगा व्यवसाय को भी उतना ही लाभ होगा, जैसे कॉमन डेटाबेस तक नेटवर्क एक्सेस से एक ही डेटा को बार-बार टाइप करने का झंझट नहीं रहता, इससे समय की भी बचत होती है और गलतियाँ होने की सम्भावना भी नहीं रहती।
  • किसी भी प्रश्न का उत्तर देने के लिए कर्मचारियों के पास बेहतर जानकारी होती है और इससे ग्राहकों को सेवाएँ भी उच्च स्तर की मिलती हैं। एक केन्द्रीकृत डेटाबेस में सारी जानकारी स्टोर करके कार्य प्रणाली को एक सूत्र में बाँध दिया जाता है, इससे खर्च में कमी आती है और कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  • ग्राहकों और उत्पादों का डेटाबेस देखकर कर्मचारी एक साथ कई ग्राहकों से सम्पर्क कर सकता है,
  • नेटवर्क व्यवस्था केन्द्रीकृत होने से IT सपोर्ट की कम आवश्यकता पड़ती है।
  • प्रिन्टर, स्कैनर, बाहरी स्टोरेज डिस्क,टेप ड्राइव और इन्टरनेट एक्सेस को शेयर करने से खर्चों में कमी आती है। कार्य में निरन्तरता बनी रहती है और गलतियाँ होने की सम्भावना भी कम हो जाती है,क्योंकि सभी कर्मचारी एक ही सूचना स्रोत का प्रयोग करते हैं, इससे निश्चित समय पर डेटा का बैकअप किसी सिंगल पॉइंट पर लिया जा सकता है और कार्य पद्धति तथा निर्देशिकाओं के मानक संस्करण उपलब्ध कराए जा सकते हैं, इससे कार्य में निरन्तरता बनी रहती है।
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कम्प्यूटर नेटवर्क के प्रकार (Types of Computer Network)

एरिया कवरेज के आधार पर इसका वर्गीकरण निम्नानुसार है

लोकल एरिया नेटवर्क (Local Area Network-LAN)-LAN से एक सीमित क्षेत्र में नेटवक। सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं, लेकिन अब इस अवधारणा में बदलाव आने लगा है. क्योंकि LAN का दायरा भा।  अब काफी बढ़ चुका है, वैसे एक LAN कुछ सौ कम्प्यूटर WAN को एक छोटे क्षेत्र में आपस में जोडता है: जैसे-किसी इमारत या आस-पास स्थित कई इमारतों में संस्थानों में LAN इसलिए उपयोगी है, क्योंकि इससे सॉफ्टवेयर डेटा, और अन्य उपक MAN का उपयोग एक साथ कई लोग कर सकते हैं, WANI विपरीत LAN में एक मीडिया के माध्यम से परे क्षेत्र में सिस्टमा TAN को आपस में जोड़ दिया जाता है। LAN में हाई स्पीड में (1 Mbps से 30 Mbps या अधिक) का प्रयोग होता है आ य प्राय: निजी स्तर पर बनाए और चलाए जाते हैं। LAN की मुख्य विशेषताएँ अग्रनुसार हैं ।

  • एक साथ कई कम्प्यूटर जोड़े जा सकते हैं।
  • एक छोटे भौगोलिक क्षेत्र में मशीनें सीमित होती हैं।
  • इन मशीनों के बीच सम्पर्क चैनल प्राय: निजी होता है और इनकी गति भी बहुत तेज होती है।
  • ये चैनल त्रटिविहीन होते हैं। (for example,a biterror rate of 1 in 109 bits transmitted)

मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क (Metropolitan Area Network-MAN)-यह LAN और WAN वर्क है। किसी शहर के लोकल एरिया नेटवर्कों को आपस में जोड़ने का काम MAN करता है। जा ऑप्टिक तकनीक पर आधारित होता है और काफी तेज गति से काम करता है। MAN डेटा और को सपोर्ट करता है, केबल टीवी का नेटवर्क MAN का उदाहरण है, जो टीवी सिग्नल्स का प्रसार पता है। MAN में एक या दा केबल होते हैं और कोई स्विचिंग एलिमेंट नहीं होता है ।

वाइड एरिया नेटवर्क (Wide Area Network-WAN)-WAN काफी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को और उसमें विभिन्न प्रकार की संचार सुविधाएँ होती हैं, जैसे लम्बी दूरी की टेलीफोन सेवाएँ सैटेलाइट शन और समद्र की सतह के नीचे बिछी केबलें। WAN में उच्च स्तरीय कम्प्यूटरों और विभिन्न प्रकार के केशन हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का प्रयोग होता है। अन्तर्राज्यीय बैंकिंग नेटवर्क और हवाई टिकट आरक्षण प्रणाली WAN पर आधारित होती है।

WAN की मुख्य विशेषताएँ निम्नानुसार हैं।

  • मल्टिपल यूजर कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ा जा सकता है।
  • बड़े भौगोलिक क्षेत्र में मशीनों का फैलाव होता है।
  • मशीनों के बीच कम्यूनिकेशन चैनल का काम थर्ड पार्टी द्वारा किया जाता है।

(उटाहरण के लिए टेलीफोन कम्पनी. सार्वजनिक डेटा नेटवर्क, सैटेलाइट संवाहक)।

  • चैनल्स की क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है।
  • चैनल्स में गलतियाँ होने की सम्भावना अधिक होती है।

सर्वर और क्लाइन्ट (Server and Client)-इस नेटवर्क में सर्वर और क्लाइन्ट होते हैं। सर्वर शक्तिशाली कम्प्यूटर होते हैं जो उन्नत नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करते हैं और यूजर वर्कस्टेशन (क्लाइन्ट्स) डेटा को एक्सेस करते हैं या उन एप्लीकेशनों को चलाते हैं जो सर्वर पर Server मौजूद होते हैं। सर्वर पर ई-मेल. कॉमन डेटा फाइलें माइक्रोसॉफ्ट SQL सर्वर जैसे शक्तिशाली नेटवर्क एप्लीकेशन होते हैं। नेटवर्क के सेंटरपीस के रूप में सर्वर नेटवर्क पर लॉगइन को सत्यापित करता है और नेटवर्क संसाधनों और क्लाइन्ट सॉफ्टवेयर तक पहुँच Network का बाधित भी करता है। बैकअप और पॉवर प्रोटेक्शन सेन्टर का कन्द्र होता है सर्वर। तकनीकी रूप से जटिल तथा सरक्षित क्लाइन्ट-सर्वर नेटवर्क को संचालित करना बेहद आसान है और Client इसमें सहायता करता है नया केन्द्रीकत मैनेजमेंन्ट सॉफ्टवेयर। यह सबस सरल कंफिगरेशन है जिसमें अतिरिक्त क्षमताएँ भी उतनी ही क्लाइट सर्वर स जोड़ा जा सकती है। क्लाइन्ट-सर्वर मॉडल की सबसे बड़ी कमी है इस पर अत्यधिक खर्च आना, इसका हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर काफी महंगा होता है।

नेटवर्क इंटरवक इटरफेस काडर्स (Network Interface Cards)-नेटवर्क से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर म यह है। इस NIC कहते हैं, NIC के माध्यम से कनेक्टर को नेटवर्क केबल द्वारा सर्वर या वर्कस्टेशन से सार्कट प्रोटोकॉल और कमाण्ड्स उपलब्ध कराते हैं जो इस नेटवर्क कार्ड को सपोर्ट करने में सवाल जाने वाले डेटा पैकेट्स के लिए NIC में अतिरिक्त मेमोरी होती है। इससे नेटवर्क पाच हाता है एक स्लॉट भी होता है। रिमोट बट PROM के लिए. जिससे बोर्ड को डिस्कविहीन सकता है। NIC 8 बिट बस या 16 बिट बस के मानकों में मिलते हैं। NIC की कार्ड होता है। इसे NIC कर जोड़ा जाता है। ऑन बोड के लिए चाहिए होते हैं। आ की इनपुट में वृद्धि होती है एक वर्कस्टेशन पर लगाया जा सके अग्रलिखित विशेषताएँ हैं

  • होस्ट नेटवर्क से और होस्ट नेटवर्क के लिए डेटा बनाने, भेजने, प्राप्त करने और प्रोसेस करने काNIC करता है।
  • प्रत्येक NIC का अपना एक 8 बाइट्स का विशिष्ट MAC (Media Access Control) ए होता है, इसे फिजिकल एड्रेस भी कहते हैं।
  • NIC को चलाने के लिए ड्राइवर होना जरूरी है।
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स्विच और राउटर (Switches and Routers)-नेटवर्क पर मैसेज को दिशा देने के लिए ये हार्डव टेट उपकरण हैं। स्विच नेटवर्क पर दो नोड्स के बीच पॉइन्ट-टू-पॉइन्ट अस्थाई लिंक बनाते हैं और इसी पर सारा भेजते हैं। राउटर कम्प्यूटर ब्रिज के समान है, लेकिन इनमें प्रयोगकर्ता को नेटवर्क मैनेजमेंन्ट यूटीलिटीज डि आन्तरिक लाभ मिलता है। स्विच एक मल्टी पोर्ट कनेक्टिंग उपकरण की भाँति है जो हार्डवेयर एड्रेस के आधार है राउटिंग सम्बन्धी उचित निर्णय लेता है। यह आने वाले सिग्नलों को पुनः बनाता है और अग्रसरित करता है। व

राउटर (Routers)-राउटर ऐसा कनेक्टिंग उपकरण है जो नेटवर्क एड्रेस के आधार पर डेटा पैकेटस अग्रसरित करने का निर्णय लेता है। राउटर को इन्टरनेट की रीढ़ कह सकते हैं, क्योंकि इसी के द्वारा विभिन्न प्रक के नेटवर्क आपस में जुडते हैं। राउटर डेटा का संचालन करने में भी सहायक होते हैं जैसे कि अधिक डेटा टैफि को यह अन्य कम्प्यूटरों या उससे जुड़े उपकरणों को भेज देता है। इन्टरनेट पर संचार के दौरान राउटर न केवल डे को पास करता है, बल्कि रूट के व्यस्त होने या नेटवर्क खराब होने की दशा में अन्य रूट का चुनाव भी करता है। राउटर का मुख्य उद्देश्य इसे मिलने वाले डेटा पैकेट्स के सोर्स और डेस्टिनेशन IP एड्रेस की जाँच करके इन पैके को उचित पोर्ट और उस समय उपलब्ध अच्छे पाथ पर भेजना होता है।

हब (Hub)-यह एक मल्टी पोर्ट कनेक्टिंग उपकरण है, जो LAN उपकरणों को आपस में जोड़ता है। एक विशेष (Twister pair) तार की सहायता से प्रत्येक नोड हब से जोड़ा जाता है। इसके बाद हब दूस LAN, कम्पनी के WAN या इन्टरनेट के लिए हाई स्पीड लिंक्स प्रदान करता है। नेटवर्क की भौतिक लम्बा बढ़ाने का काम भी हब करता है। हब सक्रिय और निष्क्रिय हो सकते हैं। इसकी निष्क्रिय स्थिति में आने वाले सिग्नल आउटपुट की तरह भेजे जाते हैं। सक्रिय हब आने वाले सिग्नलों को पुन: बनाता है यह केवल समरूप नेटवर्क को ही सपोर्ट करता है।

ब्रिज, रिपीटर और गेटवे (Bridge, Repeaters and Gateways)-एक नेटवर्क के वर्कस्टेशन को कई बार दूसरे नेटवर्क या WAN के किसी अन्य हिस्से के संसाधनों को एक्सेस करने की जरूरत पड़ जाती है। उदाहरण के लिए, लोकल एरिया नेटवर्क का प्रयोग करने वाले किसी कम्पनी के अधिकारी को ऐसी जानकार प्राप्त करने की आवश्यकता हो सकती है, जो सार्वजनिक फोन प्रणाली पर VAN द्वारा उपलब्ध कराई जा रही हैं ऐसी जरूरतों को पूरा करने के लिए ब्रिज और रिपीटर का होना आवश्यक है।

ब्रिज (Bridges)-ब्रिज कम्प्यूटर का प्रमुख कार्य डेटा प्राप्त करके एक LAN से दूसरे को भेजना है। इस डेटा को सफलतापूर्वक भेजने के लिए ब्रिज डेटा ट्रांसमिशन सिग्नलों को बढ़ा देता है। इसका अर्थ यह हुआ कि रिपीटर और लिंक दोनों के रूप में काम करता है ब्रिज।।

रिपीटर (Repeaters)-सिग्नलों की गणवत्ता में गिरावट को ठीक करने का काम रिपीटर करता है, डेटा कई चैनलों से भेजते समय खराब हो जाते हैं। होता यह है कि केबल के अगले खण्ड पर सिग्नल का मजा से पहले रिपीटर उन्हें बूस्ट करता है।

गेटवे (Gateways)-ये ब्रिज के समान होते हैं क्योंकि ये भी डेटा को एक नेटवर्क से दूसरे पर भजता इनमें राउटर जैसी मैनेजमेंट विशेषताएँ नहीं होती हैं, लेकिन राउटर की भाँति ये डेटा को एक प्रोटोकॉल से दूस बदल सकते हैं। गेटवे का प्रयोग विभिन्न प्रकार के LAN को जोड़ने के लिए होता है जैसे इंटरनेट और टोकना और इसी प्रकार डेटा का भी अदल-बदल होता है। उपर्युक्त तीनों की तुलना करने पर हम पाते हैं कि गेटव हा और सॉफ्टवेयर सविधाओं का समूह है जो एक नेटवर्क के उपकरणों को अपने से अलग दसरे नेटवर्क के उप से जोड़ता है। ब्रिज की सामान्य विशेषताएँ गेटवे जैसी ही हैं, लेकिन यह एक ही प्रकार के प्रोटोकॉल वाले नेटव को जोड़ता है। राउटर समान है ब्रिज के, क्योंकि ये भी एक प्रकार के दो नेटवर्कों को आपस में जोड़ता है।

मॉडेम (Modem)-डेटा संचार का काम एन्कोडिंग/डिकोडिंग उपकरणों के विकास के कारण ही सन दो पाया है। ये उपकरण कम्प्यूटर के कोड फॉर्मेट को सम्प्रेषण के लिए कम्यनिकेशन चैनल्स के कोड मेंबर है। इसके बाद इस प्रक्रिया के विपरीत काम तब करते हैं जब डेटा प्राप्त किया जाता है। इन कम्यूनिकेशन में टेलीफोन लाइनें, माइक्रोवेव लिंक्स या सैटेलाइट ट्रांसमिशन शामिल हैं। इन्कोडिंग/डिकोडिंग का काम करने वाला उपकरण मॉडेम कहलाता है।

माँडेम अर्थात मोड्यूलेटर/डिमोड्यूलेटर सरल शब्दों में कहें तो यह डेटा सम्प्रेषण कार्य में प्रयोग होने वाला मटिंग डिकोडिंग उपकरण है। डेटा कम्यूनिकेशन सिस्टम में यह कम्प्यटर के डिजिटल सिग्नलों को एनालॉग ने सिग्नलों में बदलता है अर्थात् यह सिग्नलों को मोड्युलेट करता है और एनालॉग टेलीफोन सिग्नलों को पल कम्यटर सिग्नलों में बदलता है। अर्थात् सिग्नलों को डिमोडयलेट करता है। जडे हए उपकरण से डेटा पावाद को CPU तक ले जाने और वापस लाने का काम मॉडेम कॉमन कैरिअर नेटवर्क के माध्यम से करता पर डेटा को साधारण टेलीफोन लाइनों से भेजने के लिए मॉडेम का होना इसलिए जरूरी है, क्योंकि कम्प्यूटर डिजिटल होता है और टेलीफोन लाइनें एनालॉग मॉडेम की डेटा सम्प्रेषण की गति अलग-अलग होती है।

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मॉडेम का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे दूर स्थित कम्प्यूटरों को भी एक्सेस किया जा सकता है। इसका उदाहरण यह है कि बहुत से कर्मचारी घर बैठकर काम करते समय अपने कार्यालय के कम्प्यूटर को एक्सेस कर सकते हैं। मॉडेम से कम्पनी के नेटवर्क का नंबर डायल कर कोई कर्मचारी डेटा को एक्सेस कर सकता है और अन्य कर्मचारियों के साथ फाइलें तथा ई-मेल शेयर कर सकता है। फील्ड में रहने वाले विक्रय प्रतिनिधि मॉडेम के माध्यम से अपने कार्यालय से संपर्क बनाये रखते हैं। किसी कम्युनिकेशन सॉफ्टवेयर पैकेज की सहायता से पोर्टेबल कम्प्यूटर और कार्यालय के कम्प्यूटर के बीच सम्पर्क स्थापित किया जाता है। इसके बाद डेटा संचार लाइनों के माध्यम से भेजा जाता है। गति, मूल्य और अन्य विशेषताओं के आधार पर मॉडेम का वर्गीकरण किया जाता है, लेकिन अधिकांश लोग इसे आन्तरिक या बाहरी मॉडेम के रूप में देखते हैं। आंतरिक मॉडेम दिखने में साउंड कार्ड की तरह होता है जो कम्प्यूटर के अन्दर लगाया जाता है, इसे तब तक एक्सेस नहीं किया जा सकता जब तक कम्प्यूटर को चलाया न जाये, दूसरी ओर बाहरी मॉडेम कम्प्यूटर के सीरियल पोर्ट से जोड़ा जाता है, इसे कम्प्यूटर के आस-पास ही रखा जाता है, एक अन्य प्रकार का मॉडेम है PCMCIA| ये केवल लैपटॉप के साथ प्रयोग होता है। आकार में छोटा, विजिटिंग कार्ड के बराबर यह मॉडेम कीमती होता है।

ऐसे मॉडेम भी हैं जो कम्प्यूटर के पैरेलल पोर्ट से जोड़े जाते हैं, इससे सीरियल पोर्ट अन्य कार्यों के लिए उपलब्ध रहता है, लेकिन ऐसे मॉडेम बहुत कम हैं। आन्तरिक और बाहरी, दोनों ही प्रकार के मॉडेम अच्छी तरह काम करते हैं, लेकिन लोग बाहरी मॉडेम को बेहतर मानते हैं, क्योंकि वे उसे देख सकते हैं और नियन्त्रण में भी रख सकते हैं। इन्हें ऑन-ऑफ करना भी बहुत आसान होता है। बाहरी मॉडेम में जलने-बुझने वाली लाइटें डेटा सम्प्रेषण की स्थिति को दर्शाती रहती हैं। कीमत में भी कम आन्तरिक मॉडेम को सेट करना नये व्यक्ति के लिए काफी कठिन है। यदि काम के दौरान यह मॉडेम अटक गया या इसका कनेक्शन टूट गया तो इसे आसानी से रिसेट नहीं किया जा सकता. क्योंकि यह कम्प्यूटर के अन्दर का होता है। कम्प्यूटर को ही रिस्टार्ट करना ही इसका एकमात्र उपाय है। मॉडेम की गति Kbps में आंकी जाती है। बाजार में अपनी विशेषताओं के आधार पर 1500 और अधिक मूल्य के मॉडेम उपलब्ध हैं।

मल्टीप्लेक्सर (Multiplexer)-इस उपकरण की सहायता से एक संचार लाइन से कई उपकरण जोडे जाते हैं। मल्टीप्लेक्सर प्रत्येक उपकरण को स्कैन करके उनसे डेटा एकत्र कर एक लाइन पर CPU के पास भेजता है। यह CPU से होने वाले सम्प्रेषण को मल्टीप्लेक्सर से जुड़े टर्मिनल तक पहुँचाता है। उपकरण आपस में जुड़े होते हैं और समय-समय पर पछते हैं कि भेजने के लिए कोई डेटा शेष तो नहीं है। यह कार्य कुछ सिस्टमों पर काफी पेचीदा हो सकता है, वहाँ इस कार्य के लिए अलग से कम्प्यूटर प्रोसेसर होता है जिसे फॉन्ट एण्ड-प्रोसेसर कहते हैं।

संचार चैनल (Communication Channel)-इसमें विभिन्न प्रकार की केबल और वायरलेस तकनीक हाता हैं, जो नेटवर्क उपकरणों को LAN, MAN, WAN आदि से जोड़ते हैं। किसी भी नेटवर्क के सही ढंग से काम करने के लिए उचित माध्यम को चुनना बहुत जरूरी है। इन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता हैTwisted पेयर केबल (Twisted Pair Cable) Twisted पेयर केबल सर्वाधिक प्रयोग में आने वाले ट्रांसमिशन मीडिया हैं, जो इलेक्ट्रिकल सिग्नलों को संप्रेषित करते हैं। इनमें इंसुलेटेड ताँबे के तार का जोड़ा आपस में गुंथा हुआ रहता है। इनके गुंथे हुए होने से व्यवधान का प्रभाव कम हो जाता है। ये केवल दो प्रकार के होते हैं Unshielded Twisted Pair (UTP) & Shielded Twisted Pair(STP)

इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि STP में 8 तारें एक जालीदार कवच से भी ढकी होती हैं, जिससे यह अधिक सुरक्षित मानी जाती हैं और इसमें व्यवधान भी कम उत्पन्न होता है. लेकिन इनकी कीमत अधिक होती है, वैसे ये केबल बहुत मंहगी नहीं होती। ये 10. 100 &1000 Mbps की गति से 100 मीटर के दायरे में डेटा संप्रेषित कर सकती हैं।

कोऐक्सियल केबल (Co-axial Cable) Co-axial केबल को Coax भी कहते हैं और इसके केंद्र में एक ताँबे की तार दो सुरक्षा परतों से घिरी होती है। परतों का यह कवच इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक व्यवधान को कम करता है। कम्प्यूटर नेटवर्क में प्रयोग होने वाली ये केबल भी दो प्रकार की होती हैं-मोटी और पतली। अधिकतम 10Mbps की गति से ये केबल 500 मीटर के दायरे में बिना रिपीटर की सहायता के डेटा संप्रेषित कर सकती है। वायरलेस नेटवर्क को डेटा सम्प्रेषण के लिए प्रत्यक्षत: किसी केबल (मीडिया) की आवश्यकता नहीं होती, रेडियो तरंगें और इन्फ्रा-रेड सिग्नल संचार के लिए प्रयोग किये जाते हैं। कछ मामलों में माइक्रोवेव का भी इस्तेमाल होता है, वायरलेस LAN में प्राय: रेडियो तरंगों का प्रयोग होता है। वायरलेस संचार के एक बड़े क्षेत्र, जैसे-AM रेडियो (300 से 3000 KHz), FM रेडियो (30 से 300 MHz), में विभिन्न फ्रीक्वेंसी वाली रेडियो तरंगों का प्रयोग होता है।

फाइबर ऑप्टिकल केबल (Fiber Optical Cable)

ऑप्टिकल फाइबर ग्लास या प्लास्टिक का फाइबर होता है जो अपनी लम्बाई के साथ प्रकाश को लेकर चलता है। एप्लाइड साइंस और इंजिनियरिंग का ओवरलैप है, फाइबर-ऑप्टिक जो ऑप्टिकल फाइबर के डिजाइन और एप्लीकेशन से सम्बन्ध रखती है। फाइबर ऑप्टिक्स संचार में इसका प्रयोग व्यापक रूप से होता है और इसमें बड़े क्षेत्र में लम्बी दूरी तक अन्य संचार माध्यमों की तुलना में तीव्र गति से (बैंडविड्थ) डेटा भेजा जाता है। धातु की तार के स्थान पर फाइबर का प्रयोग होता है और इससे जब सिग्नल जाते हैं तो डेटा को क्षति की सम्भावना कम हो जाती है और इनमें इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक व्यवधान भी नहीं होता

फाइबर का प्रयोग चमक के लिए भी किया जाता है और समूहिक रूप से इनका प्रयोग इमेज ले जाने और उसे कम स्थान में देखने के लिए भी होता है, अन्य एप्लीकेशनों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए फाइबर होते हैं, जिनमें सेंसर और लेसर भी होता है। मोबाइल टेलीफोन और निजी संचार सिस्टम (300 से 3000 MHz), सैटेलाइट संचार (1GHz) से अधिक की रेडियो तरंगें माइक्रोवेव कहलाती हैं और वायरलेस LAN (1 से 10 GHz), इन्फ्रा-रेड लाइट (300 GHz से 400 GHz) भी वायरलेस LAN में प्रयुक्त होते हैं। ये नेटवर्क एक कमरे तक सीमित होते हैं, क्योंकि इन्फ्रारेड लाइट दीवारों के पार नहीं जा सकती। इन्फ्रा-रेड का एक अन्य दोष यह है कि ये सूर्य से उत्पन्न होने वाले इन्फ्रा-रेड विकिरण से आसानी से प्रभावित हो जाती हैं।

नेटवर्क की संरचना (Network Structure or Topology)

कम्प्यूटर संसाधनों, रिमोट उपकरणों और संचार सुविधाओं का ज्यामितीय व्यवस्थापन नेटवर्क की संरचना । है। कम्प्यूटर नेटवर्क में नोड्स और लिंक्स होते हैं, कम्प्यूटर, टर्मिनल, वर्कस्टेशन या अन्य किसी आपस में जुड़ उपकरण का अंतिम सिरा होता है नोड। दो नोडों के बीच का पाथ लिंक कहलाता है। लिंक को सर्किट या चैनल। भी कहते हैं। नेटवर्क संरचना में यह तय होता है कि कौन-सा घटक कम्प्यूटर नेटवर्क में आपस में संचार करेगा।

स्टार संरचना (Star Topology)-यह सबसे सामान्य प्रकार की संरचना है, जिसमें संचार चैनल। केन्द्रीकृत नियन्त्रण से निकलते हैं, इसका अर्थ यह है कि स्टार नेटवर्क में प्रोसेस करने वाले नोड सीधे केन्द्रीकृत सिस्टम से आपस में जुड़े रहते हैं। प्रत्येक टर्मिनल, छोटा कम्प्यूटर या बड़ा मैनफ्रेम केबल केन्द्रीकृत सिस्टम स संचार कर सकते हैं, नेटवर्क के अन्य नोड्स से नहीं। यदि एक नोड से दूसरे नोड को कोई सचना भेजनी है तो पहल।को भेजना होगा. वहाँ से इसे इनके गंतव्य पर भेजा जाएगा। स्टार नेटवर्क उन संस्थानों के लिया सयकता केन्द्रीकृत डेटाबेस या केन्द्रीकृत प्रोसेसिंग सुविधा की है। उदाहरण के लिए, किसी कार्यालय के वातावरण में रिकॉर्ड्स को केन्द्रीकृत रूप से रखने के लिए स्टार नेटवर्क उसे केन्द्रीय नोड को भेजना होगा उपयोगी है, जिनकी आवश्यकता केन्द्रीकत है में ऑन-लाइन शाखा कार्यालय के वातावगा। का प्रयोग किया जा सकता है।

स्टार संरचना के लाभ (Merits of Star Structure) .

  • इसमें नोड आसानी से जोड़े व हटाए जा सकते
  • किसी नोड के खराब होने पर पूरा नेटवर्क कामकरना बन्द नहीं करता।
  • केन्द्रीकृत हब की सहायता से नेटवर्क की समस्या को हल करने में आसानी होती है।

हानियाँ (Demerits) Concentrator/Hub

  • यदि हब खराब हो जाये तो पूरा नेटवर्क काम करना बन्द कर देता है।
  • इसमें केबल पर होने वाला खर्च अन्य __ संरचनाओं के मुकाबले अधिक होता है।

बस संरचना (Bus Topology)-LAN के लिएस्टार संरचना यह एक लोकप्रिय संरचना है। इस संरचना में पूरे क्षेत्र (एरिया) में एक ही केबल होती है और सभी नोड्स इस संचार लाइन के दो सिरों से जुड़े होते हैं, जिन्हें बस कहते हैं। केबल के दोनों सिरे टर्मिनेटर से बन्द किए जाते हैं।

लाभ (Merits)

  • बहुत छोटे नेटवर्कों के लिए विश्वसनीय तथा प्रयोग करने व समझने में आसान। कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ने में केबल पर होने वाला खर्च बहुत कम होता है तथा यह अन्य संरचनाओं की तुलना में कम खर्चीली है।
  • इसका विस्तार आसानी से किया जा सकता है। कम्प्यूटर के साथ दो तारें जोड़कर इसे लम्बा करके अन्य कम्प्यूटरों को नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है।
  • इस कंफिगरेशन को बढ़ाने के लिए रिपीटर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
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हानियाँ (Demerits)

  • नेटवर्क पर अधिक भार होने पर बस की गति धीमी हो जाती है, क्योंकि कोई भी कम्प्यूटर किसी भी समय सम्प्रेषण कर सकता है, लेकिन इस काम में नेटवर्क साथ नहीं देता। आपस में अवरोध करने वाले कम्प्यूटर काफी बैंडविड्थ प्रयोग करते हैं।
  • दो तारों के बीच लगा हर कम्प्यूटर इलेक्ट्रिकल सिग्नलों को कमजोर कर देता है। बस संरचना
  • इसका दोष निवारण करना कठिन है। केबल सटूटा है या कौन-सा कम्प्यटर ठीक काम नहीं कर रहा. इसकी पहचान करना मुश्किल हाता ह और परिणामस्वरूप पूरा नेटवर्क ठप हो जाता है।
  • रिंग संरचना (Ring Topology)-यह भी LAN की एक संरचना है। इसमें नेटवर्क केबल एक नाड ता है, जब तक सभी नोड लूप या रिंग की शक्ल में जुड़ नहीं जाते। अगल-बगल के दोनों नोड्स के बीच सीधा पॉइंट-ट-पॉइंट लिंक होता है, इन लिंक्स की कोई दिशा नहीं होती, यह सुनिश्चित करती है कि किसी नोड द्वारा किया गया सम्प्रेषण पूरी रिंग में चक्कर काटकर वापस वहीं लो आता है।

लाभ (Merits)

  • रिंग संरचना कम संख्या में वर्कस्टेशन या बड़े नेटवर्क पर मौजूद ऐसे वर्कस्टेशन, जहाँ सभी पर समान भार हो, के लिए उपयोगी है और उच्च कार्यक्षमता प्रदान करती है। प्रकार अन्य नेटवर्कों की तुलना में रिंग नेटवर्क का फैला अधिक होता है।
  • इसका विस्तार सरलता से किया जा सकता है।

हानियाँ (Demerits)

  • इंस्टाल करने में कठिन व खर्चीला। . नेटवर्क पर एक भी कम्प्यूटर के खराब होने का प्रभाव है। पूरे नेटवर्क पर पड़ता है।
  • नेटवर्क से कम्प्यूटर को जोड़ने या हटाने पर नेटवर्क रिंग संरचना बाधित हो जाता है।

सम्प्रेषण तकनीकें (Transmission Technologies)

किसी संचार चैनल पर दो मशीनों के बीच डेटा सम्प्रेषण कई विधियों से किया जा सकता है। किसी सम्प्रेषण में निम्नलिखित तत्व प्रधान होते हैं

  • डेटा के हस्तान्तरण की दिशा,
  • सम्प्रेषण का प्रकार, एक साथ भेजी जाने वाली बिट्स की संख्या,
  • ट्रांसमीटर और रिसीवर के बीच सिंक्रोनाइजेशन (संयोजन)।

सीरियल बनाम पैरेरल सम्प्रेषण (Serial versus Parallel Transmission)  ट्रांसमिशन मोड या विधि से आशय बिट्स की उस संख्या से है, जो संचार चैनल द्वारा एक साथ ट्रांसलेट की जाएंगी। डिजिटल डेटा को भेजने की दो विधियाँ हैं-सीरियल और पैरेलल सम्प्रेषण।

सीरियल सम्प्रेषण (Serial Transmission)-सीरियल सम्प्रेषण में प्रत्येक बाईट की बिट्स एक ही पाथ पर एक के बाद एक भेजी जाती हैं।

पैरेलल सम्प्रेषण (Parallel Transmission)-इस विधि में बाईट की प्रत्येक बिट के लिए दो समान्तर पाथ होते हैं ताकि सभी कैरेक्टर बिट्स एक साथ भेजी जा सकें। सम्प्रेषण की विधियाँ (Transmission Modes)

सिम्पलेक्स, हाफ-डुप्लेक्स और फल डुप्लेक्स कनेक्शन (Simplex, Half-Duplex and Full Duplex Connections)-विशेषताओं के आधार पर सम्प्रेषण विधियों को इन तीन वर्गों में रखा जा। सकता है।

सिम्पलेक्स कनेक्शन (Simplex Connection)-इस कनेक्शन में डेटा एक ही ओर (ट्रांसमीटर से। रिसीवर) चलता है। इस विधि का प्रयोग प्रायः नहीं किया जाता है, क्योंकि प्राप्ति का उत्तर या कोई गलती वापस भेजने के लिए रास्ता जरूरी होता है। यदि दोनों दिशाओं में डेटा का प्रवाह नहीं चाहिए तो यह कनेक्शन लिया जा सकता है, जैसे कम्प्यूटर से प्रिंटर या माउस से कम्प्यूटर।

हाफडप्लेक्स कनेक्शन (Half-Duplex Connection)-इसे सेमी-डुप्लेक्स या अल्टरनेट कनेक्शन भी कहते हैं। इसमें डेटा एक समय में एक ही दिशा में चलता है, दोनों ओर से नहीं। इस कनेक्शन में बारी-बारा से दोनों सिरे डेटा सम्प्रेषण का काम करते हैं। इस कनेक्शन में लाइन की पूरी क्षमता का उपयोग करते हुए दाना। दिशाओं में संचार किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, वाकी-टॉकी।

फुल डप्लेक्स कनेक्शन (Full Duplex Connection)-इस कनेक्शन में नोडस और टर्मिनला। की एक ही समय में दोनों ओर चल सकता है और लाइन के दोनों सिरे एक ही समय में डेटा भेजते भी है तथा । प्राप्त भी करतें हैं यदि दोनों सिरों।प्राप्त भी करते हैं, अर्थात एक ही प्रकार का सम्प्रेषण माध्यम उपयोग में लाया जा रहा हो।

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बाँडं (Baud)

बॉड संकेत तत्वों की संख्या के पडा। धीमी गति पर, प्रत्येक इलेक्टि कलने प्रकार बॉड बिट्स प्रति सैकेण्ड बालों की संख्या है। Baudot टेलीग्राफ कोड के आविष्कारक के नाम पर इसका नाम बॉड पति पर प्रत्येक इलेक्टि कल के परिवर्तन में सूचनाओं की केवल एक बिट परिवर्तित होती है। इस बिटस प्रति सैकेण्ड की संख्या को इंगित करता है जो कि टान्समीटेड हो रही है। उदाहरण के लिए 200 बाँड प्रति सैकेण्ड 300 बिट्स टान्समीटेड कर रहा है। दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक्स में बॉड को प्रति सैकेण्ड का पर्याय माना गया है। यह एक डिजिटल संग्राहक संकेत है

बैंडविड्थ (Bandwidth)

कायटर नेटवर्क में, बैंडविड्थ अक्सर डेटा अंतरण दर के लिए एक पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता भोक निश्चित समय अवधि में एक छोर से दूसरे छोर पर डेटा की निश्चित राशि को अंतरण किया जा सकता कम्प्यूटर नेटवर्क में, बैंडविड्थ अक्सर डेटा अंतरण दर के लिए एक पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता है। बैंडविड्थ में डेटा को बिट्स प्रति सैकेण्ड (बीपीएस) में व्यक्त किया जाता है।

ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन मॉडल (OSI Model)-इसे ISO-International Organization for Standardization ने अलग-अलग हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर वाले सिस्टमों को आपस में सम्बद्ध करने के लिए बनाया है। OSI मॉडल लेयर युक्त संचार तथा कम्प्यूटर प्रोटोकॉल डिजायन के लिए सामान्य विवरण है, इसे ओपन सिस्टम इंटरकनेक्शन (OSI) के तौर पर विकसित किया गया, अपनी प्रारम्भिक अवस्था में यह नेटवर्क संरचना को सात भागों में बाँट देता है। इसमें लेयर में कई लेयरें होती हैं ऊपर से नीचे की ओर क्रमक: इसमें एप्लीकेशन, प्रेजेंटेशन, सेशन, ट्रांसपोर्ट, नेटवर्क, डेटा लिंक और फिजिकल लेयर होती हैं। इसलिए इसे OSI Seven Layer Model भी कहते हैं। लेयर में सैद्धान्तिक रूप से समान फंक्शन का संकलन होता है जो अपने से ऊपर वाली लेयर की सेवाएँ देती है और नीचे वाली लेयर से सेवाएँ लेती है।

OSI लेयरों का वर्णन (Description of OSI Layers)

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लेयर लयर संख्या 7 या एप्लीकेशन लेयर (Layer No. 7 ore गिकता के सबसे निकट होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह लयर माध्यम से सीधे सम्पर्क करते हैं। यह देती हैं, डेटाबेस की निरन्तरता आ लेयर (Laver No.7 or Application Layer)-यह लयर आन्तिम इसका अर्थ यह हुआ कि यह लेयर और यजर दोनों सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन के ” लपर साफ्टवयर से संवाद कर फाइल हस्तान्तरण फाइल शेयरिंग आदि संवाए का निरन्तरता और कुछ न हो सकने जैसी स्थितियाँ पर इस लेयर द्वारा नियन्त्रण रखा है लेयर है जहाँ संचार में भागीदार पहचाने जाते हैं। सेवाओं का स्तर पहचाना जाता है ।

पर पहचान जाते हैं। सेवाओं का स्तर पहचाना जाता है और यूजर की पहचान तथा कि को देखा जाता है और डेटा सिंटेक्स में किसी प्रकार की रुकावट को पहचाना जाता है

लेयर संख्या 6 या प्रेजेंटेशन लेयर (Laver No. 6 or Present Layer ) इसे सिरे लेयर भी कहते हैं। यह ऑपरेटिंग सिस्टम का एक हिस्सा होती है, हो यह आपरेटिंग सिस्टम का एक हिस्सा होती है. जो आने और जाने वाले डेटा की प्रस्तति । फार्मेट से दूसरे में बदलती है। उदाहरण के लिए, नए आए टेक्स्ट  लेता है।

उदाहरण के लिए, नए आए टेक्स्ट के साथ टेक्स्ट स्ट्रीम को पॉप अप किंग बदलना, इसके बाद प्रेजेंटेशन सर्विस देगा की यनिटस सेशन प्रोटोकॉल डेटा यूनिट्स में मिलकर स्टक में नीचे जाता है। यह स्क्रीन पर डेटा डिस्पले को नियन्त्रित करती है और डेटा को मानक एप्लीकेशन इंटरफे। बदलती है। इसी लेयर में डेटा का संकचन भी होता है।

लेयर संख्या 5 या सेशन लेयर (Laver No.5 or Session Layer)-एप्लाकशना क दोनों किस पर बातचात अदल-बदल और संवाद आदि की सेटिंग, समन्वय, और उसे समाप्त करने का काम इस लेहाता है इसका सम्बन्ध सत्र और सम्पर्क समन्वय से है। यह फुल डुप्लेक्स, हाफ डुप्लेक्स और सिम्लेक्स ऑपर देती है और चैक पॉइन्ट. स्थगन समाप्ति और रिस्टार्ट कि प्रक्रियाओं को स्थापित करती है। OSI मॉडल में लेयर सत्र का शालीन तरीके से समापन करने के लिए उत्तरदायी है।

लेयर संख्या 4 या ट्रांसपोर्ट लेयर (Layer No. 4 or Transport Layer)-यह लेयर यज प्रक्रियाओं मेसैज पैकेटों को इकट्ठा और अलग करने एरर रिकवरी और फ्लो कन्ट्रोल के बीच डेटा के विश्वसनी और स्पष्ट हस्तान्तरण का काम करती है। इसी लेयर में मल्टीप्लेक्सिंग और एनक्रिप्शन भी होता है। इसका असे यह हुआ कि ट्रांसपोर्ट लेयर खण्डों का ब्यौरा रखती है और जो असफल हो जाते हैं उन्हें दोबारा भेजती है।

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लेयर संख्या 3 या नेटवर्क लेयर (Layer No. 3 or Network Layer)-एक या अधिक नेटवका के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक डेटा की विभिन्न लम्बाई की श्रृंखला भेजने के लिए प्रक्रियागत और कार्यकारी वातावरण उपलब्ध करने का काम इस लेयर के जिम्में है। ट्रांसपोर्ट लेयर द्वारा सेवाओं का जो स्तर मांग जाता है उसे बनाए रखने का काम भी इसी लेयर का है। सम्प्रेषण के लिए फिजिकल रूट, डेटा सम्प्रेषण से ऊपरी लेयरों को मुक्त रखने के लिए वर्चुअल सर्किट बनाना और नोड्स के बीच स्विचिंग, स्थापना, कनेक्शन्स को बन्द करने तथा डेटा की सही राउटिंग के लिए पसन्द देने का काम भी यही लेयर करती है।

लेयर संख्या 2 या डेटा लिंक लेयर (Layer No. 2 or Data Link Layer)-नेटवर्क लेयर से मिले आग्रहों का उत्तर देती है। यह लेअर उन्हें फिजिकल लेयर के पास भेजती है। यह लेयर WAN में आस-पास के नेटवर्क नोड्स के बीच या LAN के समान प्रखण्ड में नोड्स के बीच डेटा हस्तान्तरण के लिए प्रोटोकॉल लेयर है।

यह हार्डवेयर लेयर भी है, जो चैनल एक्सेस नियन्त्रण विधि को बताती है और सम्प्रेषण माध्यम द्वारा डेटा के विश्वसनीय हस्तान्तरण को भी सुनिश्चित करती है। नेटवर्क इकाइयों के बीच डेटा हस्तान्तरण के लिए प्रक्रियागत और कार्यकारी विधियाँ उपलब्ध कराने और फिजिकल लेयर में होने वाली गलतियों को ढूंढकर उन्हें यथासम्भव ठीक करने का काम भी इसी लेयर का है।

लेयर संख्या 1 या फिजिकल लेयर (Layer No. 1 or Physical Laver)-यह एक एसा हार्डवेयर लेयर है जो उपकरणों और सम्प्रेषण के बीच कनेक्शन की मैकेनिकल और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विशेषता को बताती है, विशेषकर यह एक उपकरण और फिजिकल माध्यम के बीच सम्बन्ध को दर्शाती है। इसमें पिनों का लेआउट, वोल्टेज, केबल के मानक, हब, रिपीटर्स, नेटवर्क, एडेप्टर, होस्ट, बस एडेप्टर (HB स्टोरेज एरिया नेटवर्क में प्रयोग होते हैं, इत्यादि शामिल हैं।

फिजिकल लेयर द्वारा किए जाने वाले मुख्य कार्य इस प्रकार हैं

  • किसी संचार माध्यम से सम्पर्क जोड़ना व तोड़ना,
  • जहाँ संचार संसाधनों का प्रयोग कई लोग करते हैं, वहाँ इस प्रक्रिया में भाग लेना। उदाहरण के लिए। कॉन्टेनशन रिजोल्यूशन और फ्लो कन्ट्रोल,
  • मॉड्यूलेशन या यूजर के उपकरण में डिजिटल डेटा को बदलना और इसके बाद सिग्नलों को संचार
  • चैनल पर भेजना, ये सिग्नल कॉपर या प्टिक फाइबर या रेडियो लिंक पर भेजे जाते हैं।
  • Please Do Not Throw Sausage Pizza Away
  • All People Seem To Need Data Processing
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अभ्यासार्थ प्रश्न (Exercise Questions)

दीर्ध उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1.कम्पूयटरों की विभिन्न पीढ़ियों का वर्णन कीजिए।

Describe the various generations of the computer.

2.अनुप्रयोग व उद्देश्य के आधार पर कम्प्यूटर का वर्णन कीजिए।

Describe the computer on the basis of utilization and objectives.

3.सांफ्टवेयर से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयरों का वर्णन कीजिए।

What do you understand by software ? Describe various types of software.

4.बलीयन बीजगणित क्या है? विभिन्न प्रकार के गेट का वर्णन कीजिए।

What is Boolean algebra ? Describe various types of gate.

5.मेमोरी से आप क्या समझते हैं? प्राथमिक और द्वितीयक मेमोरी का सचित्र वर्णन कीजिए।

What do you understand by Memory ? Describe primary and secondary memory with diagrams.

6.ओ. एस. आई. मॉडल से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न लेयरों का वर्णन कीजिए।

What do you understand by OSI model ? Describe its various layers.

7.नेटवर्क टोपोलॉजी क्या है? इसके विभन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।

What is Network Topology ? Describe its various types.

  1. ऑपरेटिंग सिस्टम से क्या समझते हैं? इसके विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिए।

What do you understand by operating system ? Describe its various components.

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1 कम्प्यूटर की इनपुट आउटपुट डिवाइस को बताइए।

Write the input and output devices of the computer.

2 मल्टी प्रोग्रामिंग व मल्टी प्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम में अन्तर बताइए।

Differentiate between multi programming and multi processing operating system.

3. ऑक्टल तथा हेक्साडेसीमल संख्या को बाइनरी संख्सा में कैसे परिवर्तित कर सकते हैं?

How can you converse Octal and Hexadecimal number in binary number?

4. कर्नाफ मेप क्या है?

What is Karnaugh Map?

5. ग्रे कोड से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by Gray Code?

6. इलेक्ट्रॉनिक डाटा प्रोसेसिंग के लाभ लिखिए।

Write the advantages of electronic data processing.

7. दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटरों की सामान्य विशेषताएँ लिखिए।

Write General characteristics of second generation computers.

8. विजुअल डिस्प्ले यनिट से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by visual display unit?

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बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1 EPROM का मतलब है

An Erasable Programmable Read-Only Memory

B Electronic Programmable Read-Only Memory

C Enterprise Programmable Read-Only Memory

D Extended Programmable Read-Only Memory

2. इनमें से बाइनरी संख्या नहीं है

(a)001

(b) 101

(c) 110

(d) रैम

3. निम्न में से कौन-सा स्थायी रूप से डाटा स्टोर नहीं करता है?

(a) रोम

(व) रैम

(c) फ्लॉपी डिस्क

(d) हार्ड डिस्क

4. मॉडेम जुड़ा होता है

(a) एक टेलीफोन लाइन

(b) एक की-बोर्ड

(c) एक प्रिंटर

(d) एक स्कैनर

5. डाटा को एक वर्कशीट के रूप में आयोजित किया जाता है

(a) चार्ट और चित्र

(b) पंक्तियों और स्तम्भों

(c) टेबल और बॉक्स

(d) रेखांकन

6. इनमें से एक भण्डारण माध्यम नहीं है

(a) हार्ड डिस्क

(b) फ्लैश ड्राइव (c) डीवीडी

(d) की-बोर्ड

7. कम्प्यूटर में आमतौर पर KB का मतलब है

(a) कुंजी ब्लॉक

(b) कर्नेल बूट (c) किलो बाइट

(d) किट बिट

8. रैम का मतलब है

(a) रैंडम एक्सेस मेमोरी

(b) तैयार आवेदन मॉड्यूल

(c) एक्सेस मेमोरी पढ़ें

(d) रिमोट एक्सेस मशीन

9. निम्न में से कौन-सा हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर नहीं है?

(a) एक्सेल

(b) प्रिंटर ड्राइवर

(c) ऑपरेटिंग सिस्टम

(d) नियन्त्रण इकाई

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10. लिनक्स है

(a) यह एटी एण्ड टी द्वारा विकसित की है

(b) यह माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित की है

(c) यह ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर है

(d) स्रोत सॉफ्टवेयर को बन्द कर दिया है

11. कम्प्यूटर का घटक है

(a) सॉफ्टवेयर अनुप्रयोग या सिस्टम सॉफ्टवेयर

(b) सॉफ्टवेयर या सीपीयू/रैम

(c) हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर

(d) इनपुट डिवाइस या आउटपुट डिवाइस

12. कम्प्यूटर मॉनीटर डिवाइस है(a) स्कैन

(b) इनपुट (c) प्रोसेसर

(d) आउट

13. मेमोरी यूनिट का एक हिस्सा है

(a) इनपुट डिवाइस

(b) नियन्त्रण इकाई

c) आउटपुट डिवाइस

(d) सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट

14. एल्गोरिथम और फ्लो चार्ट मदद करते हैं

(a) स्मृति क्षमता का पता लगाने में

(b) अंग प्रणाली के आधार को पहचाने में

(c) प्रिंटर के लिए प्रत्यक्ष आउटपुट

(d) पूरी तरह से और स्पष्ट रूप से समस्या को निर्दिष्ट करना

15. कौन-सा डिवाइस डेटा बैकअप करने के लिए प्रयोग किया जाता है?

(a) फ्लॉपी डिस्क

(b) टेप

(c) नेटवर्क ड्राइव

(d) उपर्युक्त सभी

16. एक कम्प्यूटर पर ध्वनि को सुनने के लिए जरुरत होती है

(a) एक साउणड कार्ड और स्पीकर

(b) एक माइक्रोफोन

(c) इनमें से सभी

(d) कोई भी आवश्यक नहीं होतै

17. निम्न में से कौन सा लागत या बिट के मामले में सबसे सस्ती स्मृति उपकरणों रहें हैं ?

(a) सेमीकंडक्टर मेमोरी

(b) चुम्बकीयन डिस्क

(c) कॉम्पैक्ट डिस्क

(d) चुम्बकीयन टेप

18. कम्प्यूटर में एक बाइनरी बिट को स्टोर करने के लिए सक्षम बनाता है ।

(a) केपेसीटर

(c) रजिस्टर

(c) रजिस्टर

(b) एक माइक्रोफोन

(19) फ्लिप फ्लाँप को एकीकृत सेट को कहा जाता है

(a)  कोपेसीटर            (b)  फ्लिप फ्लाँप

(c) रजिस्टर                            (d)  कोई नहीं

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(20) निम्न में से कौन सा एक ब्राह्रा भण्डारण युक्ति पर डेटा की सबसे अच्छी इकाइयाँ हैं

(a) बिट्स                       (b)  बाइट्स

(c) इर्ट्ज                  (d) क्लाक चक्र

21. शन में से कौन-सा एक बाह्य भण्डारण युक्ति पर डेटा की सबसे अच्छी इकाइयाँ हैं?

(a) सेमीकंडक्टर मेमोरी

(b) चुम्बकीय डिस्क (c) चुम्बकीय टेप

(d) कॉम्पैक्ट डिस्क

22/सेमी कंडक्टर स्मृति है

(a) गतिशील

(b) स्टेटिक

(c) बबल

(d) एक और दो दोनों

23. इनमें से एक प्रोग्रामिंग भाषा है

(a) लोटस

(b) पास्कल

(c) एमएस एक्सेल

(d) नेटस्के

24. अनुवादक जो असेमबली भाषा को इनपुट और मशीन भाषा कोड को आउटपुट के रूप में लेता है

(a) कम्पाइलर

(b) इंटरप्रीटर

(c) डीबगर

(d) असेंबलर

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25. कम्पाइलर है

(a) कम्प्यूटर हार्डवेयर का एक संयोजन

(b) उच्च स्तर की भाषा को दूसरे में तब्दील करने का प्रोग्राम

(c) उच्च स्तर से मशीन स्तरीय भाषा में अनुवाद करने का प्रोग्राम

(d) इनमें से कोई नहीं

26. की-बोर्ड पर कुंजी को दबाया जाता है तो कीस्ट्रोक बिट्स में परिवर्तित करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला मानक है

(a) एएनएसआई

(b) आस्की

(c) EBCDIC

(d) आईएसओ

27. पिक्सेल है

(a) एक कम्प्यूटर प्रोग्राम जो तस्वीर खींचता है

(b) सेकेण्डरी मेमोरी में संग्रहीत एक तस्वीर

(c) एक तस्वीर का छोटा हिस्सा

(d) इनमें से कोई नहीं

28. दोष और उनके कारणों का पता लगाने के लिए उपयोग किये जाने वाले प्रोग्राम होता है

(a) ऑपरेटिंग सिस्टम एक्सटेंशन

(b) कुकीज

(c) डायग्नोसिस सॉफ्टवेयर

(d) बूट डिस्केट

29. प्रोग्रामिंग भाषा निम्न स्तर की भाषा के रूप में वर्गीकृत है

(a) बेसिक, कोबोल, फोरट्रान

(b) प्रोलोग, विशेषज्ञ प्रणालियों

(c) नॉलेज सिस्टम्स

(d) असेम्बली भाषाएँ आधारित

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30. कम्प्यूटर प्रोग्राम जो वायरस को दूर नहीं करता है

(a) एनएवी

(b) एफ-प्रोट

(c) ओरेकल

(d) मैक्एफी

31. उपकरण जो इंटरनेट कनेक्शन के लिए आवश्यक है

(a) जॉयस्टिक

(b) मोडेम

(c) सीडी ड्राइव

(d) एनआईसी कार्ड

32. डीएमए होता है- MO

(a) भिन्न मेमोरी एक्सेस

(b) डायरेक्ट मेमोरी एक्सेस

(c) प्रत्यक्ष मॉड्यूल पहुँच

(d) प्रत्यक्ष स्मृति आबंटन

33. इनमें से एक भण्डारण युक्ति है

(a) टेप

(b) हार्ड डिस्क

(c) फ्लॉपी डिस्क

(d) उपर्युक्त सभी

34. जॉन नेपियर ने लघुगणक को विकसित किया

(a) 1416

(b) 1614

(c) 1641

(d) 1804

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35.एक ही समय में संचार चैनल को दोनों दिशाओं में प्रयोग किया जाता है

(a) फूल डुप्लैक्स

(b) सिंप्लेक्स

(c) हाफ डुप्लैक्स

(d) कोई नहीं

36. कम्प्यूटर का मुख्य घटक जिसके माध्यम से एक-दूसरे के साथ संवाद किया जाता है

(a) की-बोर्ड

(b) सिस्टम बस

(c) मॉनिटर

(d) मेमोरी

37. इंटरनेट का उपयोग करने के लिए एक वैध कार्यक्रम है

(a) एक्सेस

(b) फ्रंट पेज

(c) विंडोज एक्सप्लोरर

(d) नेटस्केप

38. एक अस्थिर स्मृति है

(a) रोम

(b) BIOSE

(c) प्रोम

(d) रैम

39. डिजिटल संकेतों को प्रतिनिधित्व किया जा सकता है

(a) बाइनरी कोड

(b) 0 और 1

(c) उच्च और निम्न

40. नेटवर्किंग के लिए आवश्यक है

(d) ऊपर के सभी

(a) एन आई सीA

(b) केबल

(c) कम्प्यूटर

(d) सभी

41. दूसरी पीढ़ी का कम्प्यूटर आधारित था

(a) वैक्यूम ट्यूब

(e) ट्रांजिस्टर

(d) जैव चिप्स

(b) सिलिकॉन चिप्स

42. BIOS का संक्षिप्त नाम है

(a) बेसिक इनपुट आउटपुट सिस्टम

(क) बेसिक इनपुट आउटपुट प्रतीक

(b) बेस्ट इनपुट आउटपुट सिस्टम

(d) बेस इनपुट आउटपुट सिस्टम

43. अरजे 45 केवला हैं

(a) 2 पेयर

(e) 4 पेयर

(b) 3 पेयर

(d) 5 पेयर

44. कम्पूयटर विज्ञान को पिता के रूप में जाना जाता है

(a) चार्ल्स बैबेज

(b) हावर्ड एकेन

(c) डॉ. हरमन होलेरिथ

(d) Blaise पास्कल

45. एक्सटी कीबोर्ड में कीज है

(a) 83

(b) 101

(d) 107

(c) 103

46. कौन-सा बयान मान्य है?

(a) 1 केबी = 8 बाइट्स

(b) 1 एमबी = 8 KB

(c)(1 केबी = 1024 बाइट

(d) 1 एमबी = 1024 बाइट

47. डेटा को प्रोसेस करने में प्रयोग किया जाने वाला उपकरण है

(a) सीपीयू

(b) रैम

(c) डीसीयू

(d) वीडीयू

48. इनमें से एक वैध इंटेल प्रोसेसर नहीं है

(a) 8085

(b) 80486

(c) पेंटियम III

(d) सीपीयू

49. CPU के प्रसंस्करण शक्ति में मापा जाता है

(a) आवर

(b) मिनट

(c) प्रति सेकेण्ड लाख निर्देश

(d) द्वितीय

50. चार्ल्स बैबेज का आविष्कार है

(a) डिफरेंस इंजन

(b) एनालिटिकल इंजन

(c) (a) और (b) दोनों

(d) इनमें से कोई नहीं

51. ताइवान से पर्सनल कम्प्यूटर निर्माता है

(a) सोनी

(b) आईबीएम

(c) सैमसंग

(d) एसर

52. एस सी एस आई सम्बन्धित है-SECT

(a) संग्रहण

(b) नेटवर्क डाटा ट्रांसफर

(c) की स्टोक रेट

(d) पिक्चर रिसोल्यून

53. एक प्रिंटर की गति को गिनने के लिए इस्तेमाल इकाइयाँ हैं

(a) सीपीएम

(b) डीपीआई

(c) पीपीएम

(d) बीआईटी

54. निम्नलिखइत संगठनों के जो इंटरनेट पर डेटा का प्रतिनिधित्व के लिए मानकों पर लग रहा हैं।

(a) आईएसओसी

(b) डब्ल्यू 3 सी

(c) आईईई

(d) आईईटीई

55. बीएसडी यूनिक्स के संस्थापक कौन हैं? (a) बिल गेट्स

(b) डेनिस रिची (c) बिल जोय

(d) लिनक्स टोरवाइल्ड्स

56. ओरेकल कॉर्पोरेशन के संस्थापक हैं

(a) बिल गेट्स

(b) लार्स एलिसन

(c) एंड्रयू एस ग्रोव

(d) मार्क एंडरसन

[उत्तर 1. (a), 2.(c), 3. (b), 4. (a), 5. (b), 6. (d), 7.(c), 8. (a), 9. (d), 10. (c), 11. (c), 12. (d), 13. (d 14. (d), 15. (d), 16. (a), 17. (c), 18. (b), 19. (c), 20. (b), 21. (a), 22. (d), 23. (b), 24. (d) 25. (c), 26. (a), 27. (c), 28. (c), 29. (d), 30. (c), 31. (b), 32. (b), 33. (d), 34. (b), 35. (c) 36. (b), 37. (d), 38. (d), 39.(d), 40. (d), 41. (c), 42. (a), 43. (c), 44. (a), 45. (a),46. (c. 47. (a), 48. (d), 49. (c), 50. (c), 51. (d), 52. (a), 53. (d), 54. (b), 55. (c), 56. (b)]

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