BCom 1st year Trends Savings & Investment Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Trends Savings & Investment Study Material Notes in Hindi

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Trends Savings & Investment
Trends Savings & Investment

BCom 1st Year Income & National Income Study Material Notes in Hindi

बचत एवं निवेश की प्रवृत्तियां

[TRENDS IN SAVING AND INVESTMENT]

बचत एवं निवेश का अर्थ

(MEANING OF SAVING AND INVESTMENT)

उपभोग पर व्यय नहीं की गई आय को बचत कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, जिस आय को उपभोग पर खर्च नहीं किया गया वह बचत है। पारम्परिक व्यवहार में बचत का जो अर्थ होता है, उससे उपर्युक्त परिभाषा अधिक व्यापक है। बचत के लिए आय प्राप्तकर्ता के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह मुद्रा को बचत खाते में रखे या कोई परिसम्पत्ति (Asset) खरीदे। बचत की गई मुद्रा को चालू खाते में रखा जाता है या सन्दूक में, इसका कोई महत्व नहीं है, इतना ही पर्याप्त है कि सम्पूर्ण चालू आय को खर्च नहीं किया जाता है। बचत की इस परिभाषा को अर्थशास्त्र में इसलिए स्वीकार्य है क्योंकि इसके अनुसार आय का यह भाग वस्तुओं तथा सेवाओं पर खर्च के रूप में फर्म को वापस नहीं जाता है। बचत आय के चक्रीय प्रवाह से रिसाव (Leak) है और जब तक इसके बराबर रकम निवेश के माध्यम से इस प्रवाह के भीतर डाली नहीं जाएगी तब तक यह प्रवाह अनवरत चल नहीं सकता है। अगर बचत के बराबर निवेश होता है, तो आय एवं रोजगार में परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होगी अर्थात् वे संतुलन में होंगे। इसी अर्थ में, बचत की आर्थिक परिभाषा की जाती है।

सही अर्थ में, निवेश (Investment) भौतिक पूंजी पर किया गया व्यय है। लेकिन, आम बोलचाल की भाषा में, निवेश के अन्तर्गत किसी भी परिसम्पत्ति की खरीद को सम्मिलित किया जाता है या वस्तुतः प्रारम्भ में त्याग करने का कोई भी वायदा निवेश है जिससे बाद में लाभ (Benefit) मिलता है। इस अर्थ में, किसी साधारण अंश की खरीद निवेश है या विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण पर खर्च निवेश है। किन्तु, आय निर्धारण के सिद्धान्त में निवेश का अर्थ है पूंजीगत वस्तुओं पर व्यय। इस अर्थ में पूंजीगत स्टॉक में वृद्धि को निवेश कहा जाएगा।

बचत एवं निवेश का महत्व

(IMPORTANCE OF SAVING AND INVESTMENT)

बचत एवं निवेश की दोहरी भूमिका है। वे समग्र मांग को प्रभावित करते हैं। समष्टि अर्थशास्त्र में समग्र मांग की भमिका अल्पकालिक उत्पत्ति एवं रोजगार के निर्धारण में महत्वपूर्ण है। दीर्घकालीन उत्पत्ति में वद्धि । के लिए भी बचत एवं निवेश महत्वपूर्ण है। शायद ही किसी को सन्देह हो कि मुख्यतः घरेल बचत द्वारा भौतिक एवं मानवीय पंजी में निवेश का वित्त प्रबन्ध करना आर्थिक विकास की प्रक्रिया के लिए निर्णायक होता है। आर्थर लेविस ने 1954 में ही लिखा था : “आर्थिक विकास के सिद्धान्त की केन्द्रीय समस्या उस प्रक्रिया को समझना है जिसके माध्यम से राष्ट्रीय आय का 4 या 5 प्रतिशत बचत एवं निवेश करने वाला समाज अपने को उस समाज में परिवर्तित कर लेता है जहां स्वैच्छिक बचत की दर राष्ट्रीय आय के 12 या 15 प्रतिशत या अधिक हो जाती है।”

भारत में बचत की प्रवृत्ति

(TRENDS IN THE GROWTH OF SAVINGS IN INDIA)

भारतीय अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास का विश्लेषण करते हुए अनेक भारतीय अर्थशास्त्रियों ने ऐसा बताने का प्रयास किया है कि भारत की पारम्परिक निम्न दर पर विकास करती अर्थव्यवस्था ने 1980 के दशक में आधुनिक उच्च विकास दर के पथ पर पदार्पण किया। इस बदलाव के लिए घरेलू बचत तथा निवेश दर में वद्धि प्रमुख रूप से जिम्मेदार रहे हैं। बचत तथा निवेश का अध्ययन मुख्य रूप से बचत दर तथा निवेश दर की सहायता से किया जाता है, जिसे सकल घरेलू उत्पाद (सघउ-GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। इन दरों की गणना निम्न प्रकार से की जाती है:

(1) पारिवारिक क्षेत्र की बचत (Saving of Household Sector) सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से इस बचत को निर्धारित करने वाले कारक (factors) होते हैं वैयक्तिक (Personal) व्यय योग्य आय (disposable income) का स्तर, भविष्य में इसमें वृद्धि की आशा, विभिन्न आय वर्गों के मध्य इसका वितरण तथा ब्याज दर। भारत में पारिवारिक बचत में परिवार या व्यक्ति की बचत के साथ-साथ सभी अनिबन्धित (Unincorporated) उद्यमों की बचत को भी शामिल किया जाता है। इसलिए भारत में पारिवारिक बचत के निर्धारक कारकों में उपर्युक्त तत्त्वों के अतिरिक्त निम्न दो कारकों का भी प्रभाव पड़ता है, यथा,

  • अनिबन्धित उद्यमों के लाभ, तथा
  • सघउ में अनिबन्धित उद्यमों का हिस्सा।

एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि पारिवारिक बचत को वित्तीय बचत (financial savings) तथा भौतिक परिसम्पत्ति के रूप में बचत (saving in physical assets) नामक दो वर्गों में विभाजित किया जाता है।

(2) निजी निगम क्षेत्र की बचत (Savings of the Private Corporate Sector) इस क्षेत्र की सकल बचत दो स्रोतों से प्राप्त होती है, यथा, मूल्य ह्रास रिजर्व (depreciation reserve) तथा निगमों के अवितरित लाभ (retained or undistributed profit of corporate entities)| इस बचत के निर्धारक कारक हैं। सघउ में इस क्षेत्र का हिस्सा. इसकी लाभ-दर तथा इसकी पूंजी-तीव्रता (capital intensity)||

(3) सार्वजनिक क्षेत्र की बचत (Savings of the Public Sector)-इस बचत के दो घटक (components) हैं, यथा, केन्द्र या राज्य सरकारों की बचत (राजस्व-लोक व्यय) तथा लोक उद्यमों की बचत (लाभ)। यदि सरकारी व्यय सरकार की राजस्व प्राप्ति से अधिक हो, तो सरकार को ऋणात्मक बचत प्राप्त होगी।

घरेलू बचत का वर्गीकरण

सकल घरेलू बचत को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है, यथा, घरेलू निजी बचत (Domestic private savings) तथा घरेलू सार्वजनिक बचत (Domestic public savings)। पारिवारिक बचत तथा निजी निगम की बचत के योग को घरेलू निजी बचत कहा जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की बचत को अलग वर्ग में रखा जाता है जो घरेलू सार्वजनिक बचत है। इसके तीन घटक हैं, यथा, सरकारी प्रशासन की बचत (Savings of Government Administration), विभागीय उद्यमों की बचत (Savings of Departmental Enterprises) तथा गैर-विभागीय उद्यमों की बचत (Savings of Non-departmental Enterprises)

घरेलू बचत की स्थिति

सकल घरेलू बचत, जो 1950-51 के दशक में सघउ का 9.5 प्रतिशत थी, बढ़कर 2007-08 में 36.8 प्रतिशत हो गई और उसके बाद क्रमशः घटकर वर्ष 2015-16 में 32.3 प्रतिशत पर आ गई। बचत की दर की इस प्रवृत्ति का एक प्रमुख परिणाम यह रहा कि भारतीय आर्थिक वृद्धि का वित्त पोषण मुख्य रूप से घरेलू बचत द्वारा ही हुआ। विदेशी बचत, जो विदेशी व्यापार के चाल खाता के घाटे के बराबर होती है, की

यदि बचत की दीर्घकालीन प्रवत्ति का विश्लेषण किया जाय, तो स्पष्ट होगा बचत दर में लगातार वद्धि। नहीं हुई है, बीच-बीच में इसे गतिहीनता का भी सामना करना पड़ा है। चालू कीमत पर सघउ के प्रतिशत के रूप में सकल घरेलू बचत 1950-51 में 9.5 प्रतिशत थी। उसमें 2015-16 तक की वृद्धि को तालिका 5.1 में प्रस्तुत किया गया है:

पिछले दशकों की तुलना में 1980 के दशक में सकल घरेलू बचत दर की वृद्धि दर घट गयी। ऐसा दो कारणों से हुआ—(1) उपभोक्ता वस्तुओं को बड़ी मात्रा में उपलब्ध होने के कारण पारिवारिक बचत की वृद्धि दर घट गयी। शहरीकरण में तेजी से वृद्धि का भी प्रतिकूल प्रभाव पारिवारिक बचत की दर पर पड़ा। 1960 के दशक के मध्य से लेकर 1970 के दशक के मध्य तक पारिवारिक बचत के वित्तीय बचत (financial savings) घटक में अत्यन्त तीव्र गति से वृद्धि हुई, क्योंकि 1969 से 14 बड़े बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पश्चात बैंकों की शाखाओं का विस्तार तेजी से हुआ, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र में। इससे वित्तीय बचत के संग्रहण में सहायता मिली। उसके पश्चात पारिवारिक बचत में वित्तीय बचत का हिस्सा प्रायः स्थिर रहा। किन्तु, 1991 से आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में गति आने के कारण पूंजी बाजार का आधार विस्तृत हो गया। इससे वित्तीय बचत के रूप में पारिवारिक बचत अधिक होने लगी है।

निजी निगम क्षेत्र की बचत, जो 1950-51 में सघउ के 0.9 प्रतिशत थी, 2015-16 में बढ़कर सघउ का 11.9 प्रतिशत हो गयी।

निजी निगम क्षेत्र की बचत मुख्य रूप से मूल्य ह्रास रिजर्व (depreciation reserve) तथा निगमों की रख ली गई आय (retained earnings) द्वारा निर्धारित होती है। इसलिए इस क्षेत्र की बचत दर प्रमख रूप से सघउ में निगम क्षेत्र के हिस्से, इसकी लाभ दर तथा पूंजी की तीव्रता (capital intensity) से निर्धारित होती है। 1970 के दशक से इस क्षेत्र की बचत में स्थिर दर से लगातार वृद्धि होती रही तथा 1990 के दशक में, विशेषकर आठवीं योजना काल में, इस वृद्धि में तेजी आयी। नौवीं योजना काल में लाभ में कमी होने के कारण निजी निगम क्षेत्र की बचत दर आठवीं योजना काल के ही बराबर रही।

दसवीं योजना के अंत में निजी निगम क्षेत्र की बचत बढ़कर 7.9% हो गयी। ग्यारहवीं योजना के प्रारम्भ (2007-08) में इस क्षेत्र की बचत दर बढ़कर 9.4% हो गयी। यह वृद्धि दर क्रमशः घटते हुए वर्ष 2011-12 में 7.3% हो गयी। बारहवीं योजना के दौरान नई श्रृंखला 2011-12 के आधार पर वर्ष 2015-16 में यह दर 11.9% रही।

देश में बचत की संरचना को तालिका 5.2 द्वारा देखा जा सकता है:

सार्वजनिक क्षेत्र की बचत 1990 के दशक में 1.6 प्रतिशत थी, वह घटकर 2000 के दशक में 1.2% रह गयी। वर्ष 2007-08 में सरकारी क्षेत्र की बचत दर में सुधार हुआ और यह बढ़कर 5.0 प्रतिशत हो गयी। 2008-09 में सरकारी क्षेत्र की बचत दर में तेजी से गिरावट आई और यह 1.0 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी। वर्ष 2009-10 में यह घटकर 0.2 प्रतिशत हो गयी। 2010-11 में इसमें सुधार हुआ और यह बढ़कर 2.6% हो गयी। वर्ष 2012-13, वर्ष 2013-14, वर्ष 2014-15 तथा 2015-16 में यह दर क्रमशः 1.4%, 0.9% तथा 1.3% रही। इस तरह सरकारी क्षेत्र के बचत व्यवहार में पर्याप्त उतार-चढ़ाव परिलक्षित होता है। सकल घरेलू उत्पाद में कम सरकारी बचतों के अनुपात का कारण गैर-विभागीय सरकारी उद्यमों की कम बचतें और सरकारी प्राधिकरणों की वृहत्तर निर्बचतें थीं

भारत में निवेश की प्रवृत्ति (Trends in Investment in India)

आर्थिक विकास अनेक कारकों (factors) की अन्तक्रियाओं का परिणाम होता है। उन विकासशील देशों के लिए जहां आर्थिक साधनों की कमी होती है, पूंजी निर्माण अर्थात् निवेश अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता की वृद्धि के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए भारतीय योजनाओं में आर्थिक विकास को निवेश की दर के साथ जोड़ा गया है। भारतीय योजनाएं वस्तुतः निवेश की योजनाएं रही हैं।

योजना की निवेश वृद्धि नीति के अन्तर्गत निवेश दर जो 1950-51 में 9.3 प्रतिशत थी, 1960-61 में 14.3 प्रतिशत, 1970-71 में 15.1 प्रतिशत, 1980-81 में 19.2 प्रतिशत तथा 1990-91 में 26.0 प्रतिशत हो गई। ग्यारहवीं योजना (2007-12) के अनुसार ऊंची दर पर निवेश तीव्र गति से आर्थिक वृद्धि के लिए आवश्यक है। आठवीं योजना (1992-97) में निवेश की औसत वार्षिक दर 24.4 प्रतिशत रही। नौवीं योजना (1997-02) में भी यह दर लगभग इतनी (24.3 प्रतिशत) ही रही। दसवीं योजना (2002-07) में यह बढ़कर औसतन 32.1 प्रतिशत हो गई, जबकि दसवीं योजना के अन्तिम वर्ष (2006-07) में यह दर 35.5 प्रतिशत थी। ग्यारहवीं योजना में यह दर इस प्रकार थी : 2007-08 में 38.1 प्रतिशत, 2008-09 में 34.5 प्रतिशत, 2009-10 में 36.5 प्रतिशत, 2010-11 में 36.5 प्रतिशत तथा 2011-12 में 38.2 प्रतिशत, बारहवीं योजना के दौरान यह दर वर्ष 2012-13, 2013-14, 2014-15 में क्रमशः 38.7%, 33.8%, 34.4% तथा 33.3% रही।

विगत कुछ वर्षों में देश के निवेश व्यवहार में जो परिवर्तन हुआ है उसे तालिका 5.3 में दिखाया गया है।

वर्ष 2004-05 ऐसा विशिष्ट वर्ष रहा जब पहली बार निवेश दर 30 प्रतिशत से अधिक हो गयी। 2004-05 और 2013-14 के बीच निवेश दर का औसत लगभग 35.4 प्रतिशत था, जो 2007-08 में 38.1 प्रतिशत के शिखर स्तर पर पहुंच गया था। इस निवेश दर का औसत 2004-05 से 2007-08 की उच्च वृद्धि के काल में 35.3 प्रतिशत तथा 2011-12 तथा 2013-14 के बीच 35.7 प्रतिशत था। 2013-14 में 33.8 प्रतिशत की निवेश दर इन दो उप-अवधियों की औसत निवेश दर से कमतर है।

वर्ष 2014-15 तथा 2015-16 में निवेश दर क्रमशः 34.4% तथा 33.3% रही।

विभिन्न संस्थाओं द्वारा निवेश के पैटर्न को तालिका 5.4 द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है :

तालिका से स्पष्ट है कि 1990-91 से 1999-2000 के बीच निवेश दर स. घ. उ. का 24.3 प्रतिशत था जो बढ़कर 2004-05 से 2007-08 के बीच 35.3 प्रतिशत हो गया। 2004-05 से 2007-08 के बीच की बढोत्तरी की अवस्था के दौरान समग्र निवेश में अधिकांश बढ़त का कारण निजी कार्पोरेट क्षेत्र के निवेश में हुई बढ़त रही। उसके उपरान्त के वर्षों में इस क्षेत्र में निवेश दर में आई गिरावट के कारण कुल निवेश दर में गिरावट आई। निजी कार्पोरेट क्षेत्र के निवेश में वृद्धि 2004-05 से 2007-08 तक की अवधि में विशेष रूप से तीव्र रही जब इसका औसत वर्तमान कीमतों पर वार्षिक रूप से 48.1 प्रतिशत था। इसकी वृद्धि दर 2008-09 से 2013-14 के बीच गिरकर 3.4 प्रतिशत रह गयी। सरकारी क्षेत्र का निवेश भी जो पूर्ववर्ती अवधि में 23.9 प्रतिशत की दर से बढ़ा, बाद में मंद हो गया। इसके विपरीत, पारिवारिक निवेश में वृद्धि 2004-05 से 2007-08 के दौरान वार्षिक औसत 12.3 प्रतिशत से बढ़कर 2008-09 से 2013-14 में औसत 23.5 प्रतिशत तक हो गयी। वर्ष 2015-16 में सरकारी क्षेत्र में निवेश दर 7.5% रही, जबकि निजी क्षेत्र में यह दर 23.9% रही।

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ग्यारहवीं योजना तथा निवेश (सकल, निजी एवं सार्वजनिक)

1900 के दशक में अपनाए गए आर्थिक सुधारों के कार्यक्रम के फलस्वरूप निजी निवेश पर लगाए गए। पनियों में कमी की गई, जिससे निजी निवेश के लिए अनुकूल वातावरण का सुजन हुआ। फलतः निजी क्षेत्र के निवेश में तेजी से वृद्धि हुई। यह स्वागत योग्य प्रवृत्ति है, अतः ग्यारहवीं योजना में इसे प्रोत्साहित करने का प्रयास किया गया। किन्तु, ग्यारहवीं योजना का यह भी कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की निवेश गिरावट चिन्ता का विषय है। कारण यह है इसके (सार्वजनिक निवेश दर में कमी के कारण नौवीं तथा इन्फ्रास्टक्चर जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में आवश्यक सार्वजनिक निवेश नहीं किया जा सका।

दसवीं योजना में इस प्रवत्ति का उलट जाना स्वागत योग्य परिवर्तन है और ग्यारहवीं योजना में इसे बरकराररखने की आवश्यकता की बात कही गयी। किन्तु, साथ ही सावधान भी किया गया कि सार्वजनिक निवेश दर में वृद्धि को तभी उचित ठहराया जा सकता है जब ऐसे निवेश की कार्यक्षमता (efficiency) में सुधार हो। यह भी ध्यान-योग्य है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में इतनी कमी है कि इस क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश में वृद्धि निजी निवेश को वस्तुतः प्रोत्साहित करेगी। इसी उद्देश्य से ग्यारहवीं योजना में सार्वजनिक निवेश दर को बढ़ाकर 8.0 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है (दसवीं योजना में यह दर 7.1 प्रतिशत थी तथा इस योजना के अन्तिम वर्ष-2006-07 में 7.8 प्रतिशत)। ग्यारहवीं योजना के दौरान 5 वर्षों में बाह्य कारणों से यह दर क्रमशः 8.9%, 9.4%, 9.2%, 8.4% तथा 7.7% रही। बारहवीं योजना में प्रारम्भिक चार वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र की औसत निवेश दर 7.15% रही।

निजी क्षेत्र में कृषि, माइक्रो, लघु तथा मध्यम उद्योग (MSMEs), एवं बड़े निजी कॉरपोरेट क्षेत्र शामिल हैं। अर्थव्यवस्था में होने वाले कुल निवेश में इनका हिस्सा 77 प्रतिशत है। रोजगार तथा उत्पत्ति में इनका हिस्सा और भी अधिक है। समावेशीकरण (inclusive) विकास के लिए इनके हिस्से में और वृद्धि की जरूरत है। विकास के क्षेत्रीय संतुलन के लिए MSMEs की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए ग्यारहवीं योजना में निजी क्षेत्र में निवेश की दर को दसवीं योजना की औसत दर 25.1 प्रतिशत से बढ़ाकर 28.7 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया। इसके लिए ऐसे आर्थिक पर्यावरण का सृजन करना होगा, जिसमें साहस (entrepreneurship) सभी स्तर पर फूले-फले। नए साहसी प्रवेश कर सकें। प्रतिस्पर्धा का सृजन हो ताकि इसके माध्यम से कार्यक्षमता में वृद्धि हो। इन सबके लिए यह जरूरी है कि सरकारी नीति निवेशकों के अनुकूल हो, लेन-देन लागत (transaction cost) कम हो तथा उच्चस्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर सेवाएं उपलब्ध हों। ऐसे व्यावसायिक वातावरण के अनेक तत्त्व मौजूद हैं। लाइसेन्स द्वारा नियंत्रण तथा विवेकाधीन स्वीकृति (discretionary approval) में काफी कमी हो चुकी है, किन्तु, नियंत्रित व्यवस्था के अवशेष अब भी मौजूद हैं, विशेषकर राज्यीय स्तर पर जिन्हें कम करना जरूरी है, यदि पूरी तरह खत्म करना संभव न हो। परिमाणात्मक नियंत्रण के स्थान पर राजकोषीय यंत्र का व्यवहार होना चाहिए तथा प्रतिस्पर्धात्मक बाजार पर अधिक भरोसा होना चाहिए, यद्यपि यह भी जरूरी है कि ऐसा बाजार प्रभावी एवं पारदर्शी विनियमन (regulation) के अन्तर्गत क्रिया करे। सरकारी एजेन्सियों द्वारा बहुल निरीक्षण व्यवस्था समाप्त होनी चाहिए। कर प्रणाली का तर्कसंगत होना जरूरी है। चूंकि MSMEs द्वारा ही अधिकांश नए रोजगार का सृजन संभव है, इसलिए आवश्यक है कि विस्तृत होती निजी क्षेत्र की आवश्यकता को पूरा करने योग्य वित्तीय व्यवस्था भी हो। इससे वित्तीय समावेशीकरण भी संभव होगा।

निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ, ग्यारहवीं तथा बारहवीं योजना में कृषि, सिंचाई तथा जल प्रबन्धन, तथा सामाजिक एवं आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र पर सार्वजनिक निवेश में पर्याप्त वृद्धि पर भी ध्यान दिया गया। इसका यह अर्थ है कि सार्वजनिक निवेश अब गैर-इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र से हटकर इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में अधिक होगा।

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 घरेलू बचत के विभिन्न स्रोतों की विवेचना करते हुए योजना काल में भारत के घरेलू सकल बचत का विश्लेषण करें।

2. 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों के आलोक में भारतीय निवेश की विवेचना करें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 पारिवारिक बचत की वर्तमान स्थिति प्रकाश डालें।

2. सार्वजनिक बचत की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालें।

3. सकल घरेलू बचत के विभिन्न स्रोत कौन-कौन हैं?

4. निजी निवेश की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालें।

5. आठवीं योजना काल से सार्वजनिक निवेश दर में गिरावट तथा निजी निवेश दर में वृद्धि के कारणों को बतायें।

6. ग्यारहवीं योजना के प्रथम दो वर्षों में क्यों निवेश दर में कमी तथा सार्वजनिक निवेश दर में वृद्धि हुई ?

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chetansati

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