लागत पत्रक में प्रदर्शित कुल लागत के विभिन्न अंग
लागत पत्रक के नमूने से स्पष्ट है कि लागत की प्रत्येक मद का विश्लेषण मुख्यत: निम्नलिखित वर्गों में किया जाता है
(1) मूल लागत (Prime Cost)-समस्त प्रत्यक्ष व्ययों के योग को मूल लागत कहते हैं अर्थात् प्रत्यक्ष सामग्री, प्रता श्रम तथा अन्य प्रत्यक्ष व्ययों को जोड़कर जो लागत आती है उसे मूल लागत कहते हैं। अन्य प्रत्यक्ष व्ययों के अन्तर्गत मुख्यत:
उत्पादन शुल्क, अधिकार-शुल्क, किसी विशेष कार्य के सम्बन्ध में आर्किटेक्ट या सर्वेयर को दी गई फीस , प्रत्यक्ष प्रभारित व्यय ,किसी विशेष कार्य के लिए नक्शे या डिजाइनों का व्यय, आदि को शामिल किया जाता है। मूल लागत को ज्ञात करने का उद्देश्य उत्पादित वस्तु की कुल लागत को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लागतों में बाँटना है ।
(2) कारखाना लागत (Works Cost or Factory Cost -मूल लागत में कारखाना उपरिव्यय जोड़ देने से कारखाना। लागत ज्ञात हो जाती है ।
ऐसे व्यय जो मुख्यतया कारखाने अथवा उत्पादन गहमें यात कार्य के संचालन तथा उसके नियन्त्रण, आदि क लए। किये जाते हैं, कारखाना उपरिव्यय कहलाते हैं। कारखाना उपरिव्ययों में मुख्यत: निम्नलिखित व्यय सम्मिलित किये जाते ह
(i) कारखाने का किराया बीमा व कर, (ii) कारखाने के कर्मचारियों (फोरमैन, निरीक्षक, प्रबन्धक,आदि) का वेतन, (iii) अप्रत्यक्ष सामग्री जो उत्पादन में सहायक होती है. जैसे-पेंच, कीलें, लही, फावकाल कोयला, ईंधन, स्टीम, आदि, (iv) प्रकाश, शक्ति, आदि (v) कारखाने के भवन, मशीनों तथा प्लाण्टा सहायक होती है, जैसे-पेंच, कीलें, लही, फेविकोल, आदि, (vi) कारखाने के भवन, मशीन तथा प्लाण्ट का मरम्मत तथा अनुरक्षण व्यय, (vii) कारखान का मशीन व्यय, (vii) कारखाने की मशीन तथा प्लाण्ट का बीमा. (viii) नक्शा कार्यालय के व्यय(Drawing office Expenses), (ix) श्रम कल्याण व्यय तथा भविष्य निधि में नियोक्ता का अंशदान, (x) कार्यहीन समय का वतन, (xi) कर्मचारी राज्य बीमा योजना में अंशदान. si) तकनीकी पत्रिकाओं का अंशदान, (XIII) दूषित का का व्यय, (xiv) बेकार अवशेष को हटाने का व्यय, (xv) प्रयोगात्मक तथा अनुसन्धानात्मक व्यय टाने का व्यय, (xv) प्रयोगात्मक तथा अनुसन्धानात्मक व्यय जो कि प्रत्यक्ष व्यय नहीं हैं. (xvi) कारखाने के अन्दर किये गये अन्य कोई भी व्यय।
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कारखाना लागत ज्ञात करने का उद्देश्य कारखाना लागत पर नियन्त्रण करना व कारखाने की कार्य-कुशलता ज्ञात करना है।
(3) कार्यालय लागत या उत्पादन लागत (Office Cost or Cost of Production)-कारखानाला एवं प्रशासन उपरिव्ययों की रकम जोड़ देने से कार्यालय लागत ज्ञात हो जाती है। इसे उत्पादन लागत भी कहा जाता है।
कार्यालय एवं प्रशासन उपरिव्ययों में कार्यालय प्रबन्ध, प्रशासन, वित्त एवं अन्य व्यवस्था के लिए किये गये व्ययों को शामिल किया जाता है। इनके कुछ प्रमुख उदाहरण निम्न प्रकार हैं
(i) कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों, प्रबन्धक तथा अन्य अधिकारियों का वेतन. (i) कार्यालय भवन का किराया. मरम्मत, ह्रास तथा बीमा, (ii) कार्यालय के फर्नीचर की मरम्मत, हास एवं बीमा, आदि (iv) छपाई, लेखन-सामग्री (स्टेशनरी), डाक तथा टेलीफोन व्यय, (v) कार्यालय में प्रकाश, आदि से सम्बन्धित व्यय, (vi) व्यापारिक पत्रिकाओं का चन्दा, (vii) गणना कार्यालय व्यय (Counting Office Expenses), (viii) संचालकों की फीस, (ix) वैधानिक या कानूनी व्यय, (x) बैंक सम्बन्धी व्यय, (xi) अंकेक्षण शुल्क, (xii) कार्यालय के अन्य सामान्य व्यय।
कार्यालय लागत की पिछले वर्षों से तुलना करने पर कार्यालय की क्षमता का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और भविष्य में कार्यालय को उन्नत करने के लिए योजना बनाई जा सकती है।
(4) कुल लागत (Total Cost)-कार्यालय लागत में विक्रय एवं वितरण उपरिव्यय जोड़ देने से कुल लागत ज्ञात हो जाती है।
विक्रय तथा वितरण उपरिव्ययों के अन्तर्गत ऐसे व्ययों को शामिल किया जाता है जो निर्मित माल को बेचने तथा बेचे हुए माल को ग्राहकों तक पहुँचाने के लिए किये जाते हैं। ऐसे व्ययों के प्रमुख उदाहरण निम्न प्रकार हैं
(i) विक्रय प्रबन्धक तथा विक्रय प्रतिनिधियों का वेतन, कमीशन तथा यात्रा व्यय, आदि, (ii) प्रदर्शन व शोरूम के व्यय, (iii) विज्ञापन व्यय, (iv) मूल्य-सूची तथा सूची-पत्र एवं नमूने भेजने का व्यय, (v) शाखाओं के संचालन सम्बन्धी व्यय, (vi) ग्राहकों को दी गई छूट या बट्टा, (vii) अप्राप्य ऋण तथा अप्राप्य ऋणों की वसूली के सम्बन्ध में किये गये कानूनी व्यय, (viii) टेण्डर भरने तथा अनुमान लगाने के व्यय, (ix) विक्रय माल की ढुलाई, (x) गोदाम व्यय, (xi) पैकिंग सामग्री तथा पैकिंग कर्मचारियों का वेतन, आदि, (xii) सुपुर्दगी गाड़ियों के रख-रखाव, आदि के समस्त व्यय।
(5) बेचे गये माल की लागत (Cost of Goods Sold)-यदि उत्पादन लागत (Cost of Production) में निर्मित माल | का प्रारम्भिक रहतिया जोड़ दिया जाये एवं निर्मित माल का अन्तिम रहतिया घटा दिया जाये तो बिके हुए माल की लागत । (Cost of Goods Sold) ज्ञात हो जाती है।
(6) विक्रय लागत (Cost of Sales)-बेचे गये माल की लागत में विक्रय एवं वितरण सम्बन्धी व्यय जोड़ देने पर विक्रय लागत ज्ञात हो जाती है।
(7) विक्रय मूल्य (Selling Price or Sales)-विक्रय लागत में लाभ की रकम जोड़कर विक्रय मूल्य ज्ञात कर लेते हैं। यदि हानि हो तो उसे विक्रय लागत में से घटा दिया जाता है।”
लागत पत्र में सम्मिलित न की जाने वाली मदें
(Items Not Included in Cost Sheet)
कुछ मदें ऐसी होती हैं जो लागत से सम्बन्धित न होकर वित्तीय प्रकृति की होती हैं, इसलिए उन्हें लागत-पत्र में शामिल नहीं किया जाता है । सामान्यतता निम्नलिखित मदों को लागत- पत्रक में शामिल किया जाता है ।
(i) सामग्री या श्रम की असामान्य क्षति (ii) पूँजी पर दिया गया या प्राप्त ब्याज, (ii) बैंक में जमा राशि पर मिलने वाला अंश हस्तान्तरण की फीस (vi) विनियोगों पर प्राप्त ब्याज, (vii) अनुबन्द भंग करने पर दी गई क्षतिपूर्ति (vii) दिया गया लाभांश. (ix) आय कर एवं सम्पत्ति कर, (x) ख्याति या प्रारम्भिक गई रकम, (xi) पूँजीगत लाभ एवं हानियाँ, (xii) अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर दी गई छट, 2 (Cash discount), (xiv) संचयों में किये गये हस्तान्तरण, (xv) यन्त्रों के अप्रचलन, आदि की हानि (xvi) ऋणपत्रों पर ब्याज
लागत पत्रर के लाभ (Advantages of Cost-sheet) लागत-पत्र के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं
(i) इससे उत्पादन की कुल लागत तथा प्रति इकाई लागत का जानकारा
(ii) इससे प्रति इकाई लागत में विभिन्न व्ययों के भाग की जानकारी होती है।
(iii) इससे विक्रय मूल्य के निर्धारण में सहायता मिलती है।
(iv) इसके आधार पर निविदा मल्य (Ouotation Price) की गणना की जा सकती ह।
(V)लनात्मक लागत-पत्र की सहायता से व्ययों पर आवश्यक नियन्त्रण स्थापित किया जा सकता है ।