BCom 1st Year Unites Nations Conference Trade Development Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Unites Nations Conference Trade Development Study Material Notes in Hindi

BCom 1st Year United Nations Conference Trade Development Study Material Notes in Hindi  :  Meaning and Definition of  nations Conference Trade Development Most Important Notes For BCom 1st Year Students :

Unites Nations Conference Trade
Unites Nations Conference Trade

BCom 1st Year International Bank for Reconstruction Development Study Material Notes in Hindi

संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन

(UNITED NATIONS CONFERENCE ON TRADE AND DEVELOPMENT(UNCTAD)

गैट की स्थापना के बाद यह अनुभव किया जाने लगा कि गैट की क्रियाओं का लाभ विकसित देशों को ही प्राप्त होता है और गैट की कार्य प्रणाली से अर्द्ध विकसित एवं विकासशील देशों की सौदा शक्ति कमजोर होती है। इस विचार के कारण GATT को विकासशील देश अपने विकास में बाधक मानने लगे और यह अनुभव किया जाने लगा कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सहयोग के लिए किसी नई संस्था की स्थापना की जानी चाहिए ताकि अर्द्धविकसित देशों के व्यापार अन्तराल को दूर किया जा सके। इसी दिशा में संयुक्त राष्ट्र संगठन (UNO) ने 1960-70 के दशक को ‘संयुक्त राष्ट्र विकास दशक’ घोषित किया जिसका मुख्य उद्देश्य व्यापार और विकास की अतिरिक्त सम्भावनाओं का पता लगाकर अल्पविकसित देशों की आय में 5% प्रति वर्ष वृद्धि करना था। जुलाई 1962 में काहिरा में व्यापार मन्त्रियों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें व्यापार और विकास विषय पर सम्मेलन आयोजित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। इसी समर्थन के फलस्वरूप UNO ने मार्च-जून 1964 में ‘संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन’ (United Nations Conference on Trade and Development) आयोजित करने का निर्णय लिया। इस प्रथम सम्मेलन के साथ ही अंकटाड (UNCTAD) का जन्म हुआ जिसका पूर्ण श्रेय डॉ. राउल प्रेबिश को जाता है।

अंकटाड संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा का एक स्थाई अंग है, किन्तु उसकी स्वयं की सहायक संस्थाएं एवं स्वतन्त्र सचिवालय है। वर्तमान में यह सम्मेलन एक स्थायी संगठन बन चुका है और इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में स्थित है। इसकी सदस्यता पूर्णरूपेण ऐच्छिक है, वर्तमान में अंकटाड के 194 सदस्य

अंकटाड के प्रमुख कार्य

(i) सम्पूर्ण विश्व में विकसित और विकासशील देशों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन देना और आर्थिक विकास को गतिशील बनाना।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं उससे सम्बन्धित मामलों तथा आर्थिक विकास से सम्बन्धित समस्याओं के लिए सिद्धान्त एवं नीतियों का निर्धारण करना।

(iii) उपर्युक्त सिद्धान्त एवं नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए प्रस्ताव तैयार करना। (iv) UNO की अन्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित संस्थाओं के साथ अंकटाड से समन्वय स्थापित करने हेतु एक केन्द्र बिन्दु के रूप में कार्य करना।

Unites Nations Conference Trade

अंकटाड के विभिन्न सम्मेलन

1 प्रथम सम्मेलन (UNCTAD-I) जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) 23 मार्च से 16 जून, 1964- इस सम्मेलन का प्रमख उद्देश्य एक नई अन्तर्राष्ट्रीय श्रम-विभाजन की व्यवस्था स्थापित करना तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को अर्द्धविकसित देशों के अनुकूल बनाना था। इस सम्मेलन में विकसित देशों को यह सुझाव दिया गया कि वे अर्द्धविकसित देशों के लिए प्रशुल्क की दीवारें न खड़ी करें और उनकी आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति में सहयोग दें। यद्यपि UNCTAD-I अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल नहीं हो पाया, किन्तु यह सम्मेलन विकासशील देशों में संगठन एवं एकता की भावना जाग्रत करने में सफल रहा।

2. द्वितीय सम्मेलन (UNCTAD-II) नई दिल्ली (भारत) 1 फरवरी से 18 मार्च, 1968 इस सम्मेलन में विकासशील देशों के लाभ से सम्बन्धित अनेक पहलुओं पर विचार किया गया। इस सम्मेलन से विकासशील देशों को काफी आशाएं थीं. किन्त अनेक विवादों और प्रतिकूल परिस्थितियों (जैसे स्वर्ण संकट, ब्रिटेन एवं अमेरिका के बीच भगतान शेष समस्या. अमरीकी मंदी. वियतनाम युद्ध आदि) के कारण यह सम्मेलन वांछित रूप में सफल नहीं हो पाया। इस सम्मेलन के प्रमुख सफल बिन्दु है

(i) प्राथमिकताओं की सामान्य योजना (GSP) स्वीकार की गई जिसके तीन उद्देश्य थे

(क) विकासशील देशों की निर्यात आय में वृद्धि करना, (ख) इन देशों के औद्योगीकरण में वृद्धि करना,

(ग) इन देशों की आर्थिक विकास दर को गतिशील बनाना,

(ii) विकसित राष्ट्रों को अपनी राष्ट्रीय आय का 1% भाग विदेशी सहायता के रूप में विकासशील देशों को देना चाहिए।

(iii) विकासशील और समाजवादी देशों के बीच व्यापार बढ़ाने पर बल दिया गया।

(iv) पूरक वित्तीय व्यवस्था के लिए विकसित देशों की सहमति।

(v) विकासशील देशों में परस्पर क्षेत्रीय एकता एवं व्यापार बढ़ाने पर जोर।

3. तीसरा सम्मेलन (UNCTAD-IIT सेण्टियागो (चिली) 13 अप्रैल से 17 मई, 1972-विश्व की। बदली आर्थिक परिस्थितियों (जैसे यूरोपीय साझा बाजार में इंग्लैण्ड का प्रवेश IMF में SDR की व्यवस्था, आदि) में इस सम्मेलन में चार प्रमुख बिन्दुओं पर विचार किया गया

(i) विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को विदेशी सहायता जारी रखना,

(ii) देशों के ऋण भार में राहत,

(iii) पिछड़े देशों को कम ब्याज की दर पर शर्त रहित ऋण.

(iv) अंकटाड की कार्य प्रणाली में सुधार।

इस सम्मेलन को विकासशील देशों के दृष्टिकोण से सफल नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उनके द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों में सहमति नहीं हो सकी और न ही उनके अनुकूल मौद्रिक सुधार संभव हुआ।

4. चतुर्थ सम्मेलन (UNCTAD-IV) नैरोबी (केन्या) 5 मई से 15 जून, 1976 इस सम्मेलन में विकासशील देशों की समस्याओं के समाधान के लिए आर्थिक उदारता एवं राजनीतिक सद्भावना की आवश्यकता पर बल दिया गया। पिछड़े देशों में आर्थिक विकास की सबसे बड़ी बाधा उपनिवेशवाद को जल्दी से जल्दी उखाड़ फेंकने पर भी बल दिया गया।

इस सम्मेलन के बाद विकसित और विकासशील देशों में मतभेद उभर कर सामने आ गये। साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया कि नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) के लिए विकासशील देशों को लम्बा संघर्ष करना पड़ेगा।

5. पंचम सम्मेलन (UNCTAD-V) मनीला,7 मई 1978 से 3 जून, 1979 इस सम्मेलन का प्रमुख उद्देश्य विश्व की आर्थिक प्रणाली के पुनर्निर्माण में विकसित और विकासशील देशों के बीच प्रमुख मुद्दों पर समझौता करना था। इस सम्मेलन में अन्य समस्याओं के साथ कुछ नई समस्याओं (जैसे तेल की बढ़ती कीमतें एवं विश्वव्यापी मुद्रास्फीति दशाएं) पर भी विचार किया गया। सम्मेलन में विकासशील देशों के ऊपर बढ़ते ऋण पर चिन्ता व्यक्त की गई, किन्तु इस समस्या के समाधान के लिए कोई कारगर उपाय सामने नहीं आ पाया।

6. छठा सम्मेलन (UNCTAD-VI) बेलग्रेड (सर्बिया एवं मोंटेनेग्रो-यूगोस्लाविया) 6 जून से 3 जुलाई, 1983 इस सम्मेलन में निम्नांकित प्रस्ताव पारित हुए

(i) विकसित देशों द्वारा संरक्षणवादी नीति छोड़ दी जानी चाहिए,

(ii) वस्तु मूल्यों में उतार-चढ़ाव रोकने के प्रयल किये जाने चाहिए,

(iii) विकासशील देशों को आर्थिक सहायता जारी रहनी चाहिए।

इस सम्मेलन में विकसित देशों द्वारा किसी भी बात के लिए कोई निश्चित वायदा नहीं किया गया। जिससे विकासशील देशों को निराशा हुई।

7. सातवां सम्मेलन (UNCTAD-VIT) जेनेवा 3 अगस्त, 1987 को समाप्त—इस सम्मेलन में विश्व  अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण पहलओं पर विचार-विमर्श हआ (जैसे बढ़ता ऋण भार, प्रतिकूल व्यापार प्रवृत्तियां। ऊची वास्तविक ब्याज दर, विकासशील देशों में पंजी प्रवाह की अपर्याप्तता, अस्थिर विनिमय दरें। इस सम्मेलन में विकासशील देशों ने घरेलू वित्तीय एवं मानवीय साधनों को अधिक गतिशील बनाने पर अपनी सहमति व्यक्त की।

Unites Nations Conference Trade

8. आठवां सम्मेलन (UNCTAD-VIII) कोलम्बिया (8-25 फरवरी, 1992)- इस सम्मेलन में अंकटाइ के महासचिव केनेथ डेडजी ने गरीब देशों की धीमी विकास गति पर चिन्ता व्यक्त की। UNO ने विकसित देशों द्वारा अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 0.7% गरीब देशों सहायता के रूप में न दिये जाने पर दुख प्रकट किया।

भारत की ओर से यह प्रस्ताव किया गया कि बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था के नियम इस प्रकार होने चाहिए जो विकासशील देशों के लिए लाभप्रद हों। साथ ही गैट से मिल रहे लाभों को बनाये रखने का भी प्रस्ताव इस सम्मेलन में किया गया। इस सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में संरक्षणवादी प्रवृत्तियों का विरोध करने पर बल दिया गया ताकि विश्व व्यापार का विस्तार हो सके।

9. अंकटाड का नौवां सम्मेलन (UNCTAD-IX) मिडरैण्ड (दक्षिण अफ्रीका) व्यापार एवं विकास पर नौवां संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Conference on Trade & Development-UNCTAD IX) 27 अप्रैल से 11 मई, 1996 के दौरान दक्षिणी अफ्रीका के शहर मिडरैण्ड में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में 134 राष्ट्रों के दो हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया जिनमें 5 राष्ट्राध्यक्ष 62 मन्त्री तथा अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रमुख सम्मिलित थे।

इस सम्मेलन में विश्व व्यापार संगठन (WTO) एजेण्डे का एक प्रमुख मुद्दा था। अंकटाड के सदस्य देशों ने केन्द्रीय महत्व के व्यापार, विकास एवं प्राथमिकता’ वाले मुद्दों पर नीतियां बनाने एवं उनके प्रभावी क्रियान्वयन को प्राथमिकता के आधार पर विचार-विमर्श किया। इस सम्मेलन में वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार, विदेशी निवेश तथा सम्बन्धित वित्तीय मामलों पर तीन आयोगों का गठन 10 जुलाई, 1996 से ही पूर्व करने का निर्णय लिया गया।

अंकटाड के आठवें सम्मेलन की भांति अंकटाड के नवें सम्मेलन में भी इस बात पर बल दिया गया कि उत्तर-दक्षिण (विकसित-अविकसित देश) के बीच संघर्ष को समाप्त करने के कारगर उपाय किये जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त अंकटाड के नवें सम्मेलन में सदस्य देशों ने विकासशील देशों के बीच पारस्परिक सहयोग को बढ़ाने पर भी बल दिया। विचार-विमर्श में सदस्य राष्ट्रों ने यह विचार प्रस्तुत किया कि विकासशील देशों में विकास का स्तर एक समान न होकर भिन्न-भिन्न है, अतः सर्वप्रथम उन्नत विकास स्तर वाले विकासशील राष्ट्रों को कम विकास स्तर वाले विकासशील राष्ट्रों की सहायता हेतु आगे आना चाहिए।

अंकटाड की नौवीं बैठक में सदस्य राष्ट्रों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि निवेश नीति का पुनरीक्षण अंकटाड द्वारा किया जाना चाहिए। बैठक में निष्कर्ष के रूप में विकासशील राष्ट्रों से यह अपेक्षा की गई कि वे अपने निवेश वातावरण को अनुकूल बनाएं।

10. अंकटाड का दसवां सम्मेलन (UNCTAD-X) बैंकाक (थाईलैण्ड)-अंकटाड का दसवां सम्मेलन 12-19, फरवरी, 2000 को बैंकॉक (थाईलैण्ड) में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में विश्व व्यापार के मुद्दे पर विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों में आपसी हितों को लेकर टकराव बना रहा। इस सम्मेलन में बहुपक्षाय। व्यापार प्रणाली में सभी देशों विशेषकर अल्पविकसित देशों को जोड़ने की बात पर बल दिया गया। सम्मलन । के घोषणा-पत्र में कहा गया कि उचित प्रबन्धन ही भूमण्डलीकरण के द्वारा विकास को बढ़ावा दे सकता है। अंकटाड के दसवें सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि का नेतृत्व केन्द्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मन्त्री मुरासोली मारन ने किया।

11. अंकटाड का ग्यारहवां सम्मेलन (UNCTAD-XI)-अंकटाड का ग्यारहवां सम्मेलन 13-18 जून, 2004 को साओ पाउलो (ब्राजील) में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन का विषय ‘आर्थिक विकास. खासकर विकासशील देशों के विकास के प्रति राष्ट्रीय कार्यनीतियों और वैश्विक प्रक्रियाओं के बीच सामंजस्य का सांवधान था।

इस सम्मेलन में 192 देशों ने भाग लिया। सम्मेलन का उदघाटन संयुक्त राष्ट्र के महासचिव कोफी किया। इसमें वर्ष 2015 तक निर्धनता उन्मूलन के लक्ष्य को पाने के लिए वित्तीय एजेंसियों की जवाबदहा पर बल दिया गया। भारत ने सम्मेलन में विश्व व्यापार म विकासशाल दशा क सहभागिता की बात उठाई।

12. अकटाड का बारहवां सम्मेलन (UNCTAD-XII) अंकटाड का बारहवां सम्मेलन 20-25 अप्रैल, 2008 का घाना में अक्रा में सम्पन्न हआ। इस सम्मेलन का विषय था ‘Addressing the Opportunities and Challenges of Globalization for Development’.

13. अंकटाड का तेरहवां सम्मेलन (UNCTAD-XIII) अंकटाड का तेरहवां सम्मेलन दोहा-कतर में 21 से 26 अप्रैल, 2012 तक सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन का विषय था ‘Development-centred Globalization : Towards Inclusive and Sustainable Growth and Development.

इस सम्मेलन में दो परिणाम अभिलेख’ (Outcome Documents) स्वीकार किए गए।

(1) दाहा जनादश के अनुरूप संपोषणीयता की ओर बढ़ते हुए सतत समावेशी एवं समतामूलक आर्थिक संवृद्धि एवं सम्पोषणीय विकास हेतु वित्त को वास्तविक अर्थव्यवस्था की सहायता करनी चाहिए।

(ii) 194 सदस्य देशों के इस सम्मेलन में “दोहा मानार” (Doha Manar) अरबी भाषा में मानार। का अर्थ ‘रात के अंधेरे में रास्ता दिखाना’ होता है के नाम से जानी जाने वाली राजनीतिक घोषणा को भी स्वीकार किया गया। इसके माध्यम से अगले चार वर्षों में वाणिज्य एवं संरचनात्मक परिवर्तनों द्वारा समावेशी विकास को बढ़ावा देने का समर्थन किया गया।

14. अंकटाड का चौदहवां सम्मेलन (UNCTAD-XIV)-अंकटाड का चौदहवां सम्मेलन केन्या की राजधानी नैरोबी में 17-22 जुलाई, 2016 को सम्पन्न हुआ। सम्मेलन का उद्घाटन मेजबान राष्ट्रपति उहरू केन्याता (Uhuru Kenyatta) ने किया। सम्मेलन में विकासशील राष्ट्रों के विकास हेतु व्यापार एवं निवेश सम्वर्धन पर चर्चा की गई तथा सम्बन्धित घोषणा-पत्र जारी किए गए।

प्रश्न

1 अंकटाड क्या है? इसके संगठन तथा कार्यों का विवरण दें।

2. क्या विकासशील देशों के सन्दर्भ में अंकटाड को सफलता से अधिक असफलता हाथ लगी है? विवेचना करें।

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