BCom 3rd Year Use Computer Auditing Study material Notes in Hindi

BCom 3rd Year Use Computer Auditing Study material Notes in Hindi: Internal Control And Computers Audit Techniques Preparation of Audit Work Papers Examination Questions ( Most Important Notes For BCom 3rd Year Students:

Use Computer Auditing
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BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in Hindi

अंकेक्षण में संगणक का प्रयोग

[USE OF COMPUTER IN AUDITING]

संगणक का विकास लगभग 30 वर्ष पुराना है। लेखाकर्म के आंकड़ों की समस्या के लिए संगणक का प्रयोग 20 वर्ष पूर्व किया गया था। व्यापारिक संस्थाओं ने संगणक का महत्व विशेषतया सन् 1950 के पश्चात् सही रूप से समझा। औद्योगिक दृष्टि से विकसित देशों ने यह स्वीकार किया कि लेखाकर्म की दृष्टि से संगणकों से कार्य लेने से हिसाब-किताब में शुद्धता आती है तथा मितव्ययिता में वृद्धि होती है।

अंकेक्षक विशेष रूप से नियोक्ता के व्यापार में प्रचलित आन्तरिक नियन्त्रणों से सम्बन्धित होता है और जिन संस्थाओं में संगणक पद्धति का प्रयोग होता है, उनमें वह उन संगणक नियन्त्रणों में अधिक रुचि रखता है जिनमें उसके कार्य में सहायता मिलती है। संगणक-कार्यक्रम तैयार करने के लिए कुछ विशिष्ट निर्देशों की आवश्यकता होती है। किसी विशेष कार्य को करने के लिए निर्देशों की सूची तैयार की जाती है जिसको संगणक-कार्यक्रम (Computer Programme) कहते हैं। इन निर्देशों के अनुरूप कार्य लेने से परिणाम बड़े ही लचीले तथा विश्वस्त निकलते हैं।

के प्रयोग के साथ-साथ एक सर्वमान्य शब्दावली का विकास भी आवश्यक हो गया है। अमरीका में एक ऐसी भाषा का विकास किया गया जिसके फलस्वरूप संगणक का प्रयोग सरल तथा रोचक बन गया। यह सही है कि विकसित देश इस पद्धति का अधिक लाभ उठा पाये हैं और अर्द्ध-विकसित देशों में यह प्रयोग अभी तक प्रायः नगण्य अवस्था में है। इसी कारण इन देशों में संगणक के प्रयोग के लिए अभी रुचि नहीं हो पायी है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि औद्योगिक विकास के साथ-साथ संगणकों का प्रयोग आवश्यक होता जा रहा है और आंकड़ों के समीक्षीकरण तथा हिसाब-किताब को ठीक रखने के लिए संगणक अपरिहार्य होते जा रहे हैं।

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संगणक (Computer) क्या है?

संगणक एक ऋणाणुक साधन (Electronic Device) है जो सम्बन्धित ऋणाणुक-यान्त्रिक साज-सज्जा (Electro-mechanical Equipment) के साथ समंकों (Data) के प्रक्रियान्वयन (Processing of Data) के लिए प्रयोग किया जाता है। ये समंक (Data) साधारण संकेतबद्ध स्वरूप (Simple Coded Form) में स्वीकार किए जाते हैं, अत्यधिक उच्च नीतियों पर प्रक्रियाबद्ध किये जाते हैं तथा परिणाम संकेतबद्ध (Coded) अथवा साधारण भाषा में निकाले जाते हैं। साथ-ही-साथ आवश्यकतानुसार सामान्य गणितीय क्रियाएं जैसे, जोड़, बाकी, भाग, गुणा, आदि भी सम्पन्न की जाती हैं। इस प्रकार संगणक इस गणना के आधार पर तर्कसंगत अनुमान (Logical Deductions) लगाने में सक्षम होता है।

संगणक के कार्यात्मक ढांचे को निम्न शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है :

(1) कार्यक्रमात्मक इकाई (Programming Unit)

(2) इनपुट इकाई (Input Unit)

(3) भण्डारण इकाई (Storage Unit)

(4) गणितीय इकाई (Arithmetical Unit)

(5) आउटपुट इकाई (Output Unit)

साहित्य भवन पब्लिकेशन्स

(1) कार्यक्रमात्मक इकाई प्रत्येक क्रिया के लिए निर्देशा की सूची तैयार करना प्रोग्रामिंग कहलाता है । यह सूची कार्यक्रम Programme) कहलाती है। प्रोग्रामर (Programmer) विशिष्ट व्यक्ति होता है जो इस विषय का विशेषज्ञ होता है। वह निर्देशों व क्रियाओं का प्राथामिकताएं तय करता है । वह निर्देशों व क्रियाओं की प्राथमिकताएं तय करता है। लेखीय समको को संगणक में परिवर्तित करने से पहले व्यवस्था (System) का अध्ययन आवश्यक होता है।

(2) इनपुट इकाईसंगणक के इनपुट माध्यम (Input Media), पंच Medianपंच किये गये कार्ड (Punched Cards), पंच किये गये पेपर टेप्स, मैग्नेटिक (Magnetic) कार्ड व टेप, आदि हात है। अनुमान प्राप्त करने है, तो इस इकाई में उपलब्ध सही आंकड़ों का प्रयोग किया जाना चाहिए। इनपुट इकाई। का प्रयोग सूचना को मशीनी भाषा (Machine Language) म पारवात

(3) भण्डारण इकाईइस इकाई को स्मरण (Memory) इकाई कहते हैं। सम्पूर्ण सूचना एकत्रित की जाती है और उसे संगणक में एक बार भरने के पश्चात आवश्यकता के अनुसार स्मरण की जा सकती है। उदाहरण के लिए, वर्ष में कमाया गया लाभ इस भण्डारण इकाई से स्मरण किया जा सकता है।

(4) गणितीय इकाई इस इकाई से वह सूचना उपलब्ध होती है जिसके लिए आउटपुट इकाई में सूचना व अन्य आंकड़े भरे जाते हैं। परिणाम पस्तपालन तथा लेखाकर्म मशीनों से निकाले गये परिणामों के समान होते हैं।

(5) आउटपुट इकाई इस इकाई से वह सूचना उपलब्ध होती है जिसके लिए आउटपुट इकाई में सूचना व अन्य समंक भरे जाते हैं। परिणाम पुस्तपालन तथा लेखाकर्म मशीनों से निकाले गये परिणामों के अनुरूप होते हैं।

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आन्तरिक नियन्त्रण तथा संगणक

(INTERNAL CONTROL AND COMPUTERS)

अंकेक्षक के लिए उन नियन्त्रणों का जानना अत्यधिक महत्वपूर्ण है जो संगणक पद्धति में निर्माण होते हैं। यह इसलिए भी आवश्यक हो गया है कि अब इन नियन्त्रणों ने पुराने परम्परागत आन्तरिक नियन्त्रणों का स्थान ले लिया है, जो पुरानी पंच कार्ड पद्धति (Punched card system) में विद्यमान थे। अपने उद्देश्य के लिए इसको निम्न वर्गों में विभाजित कर सकते हैं :

1 स्व-निर्मित नियन्त्रण (Built-in controls)

2. कार्यक्रम नियन्त्रण (Programme controls)

3. संगठनीय नियन्त्रण (Organization controls)।

1 स्व-निर्मित नियन्त्रण स्व-निर्मित नियन्त्रण ऐसे नियन्त्रण हैं जो संगणक प्रणाली के महत्वपूर्ण अंग हैं। इस संगणक प्रणाली की विश्वसनीयता पिछले वर्षों में काफी बढ़ गई है। अंकेक्षक परीक्षण-आंकड़ों के प्रयोग से यह विश्वास कर सकता है कि संगणक साज-सज्जा ठीक प्रकार कार्य कर रही है। स्व-निर्मित नियन्त्रणों के परिणामस्वरूप इनपुट-आउटपुट (Input-output) साज-सज्जा में गलत परिणाम कम निकलते हैं, परन्तु यह आवश्यक है कि अंकेक्षक को इस संगणक प्रक्रिया का ज्ञान होना चाहिए और यह भी समझना चाहिए कि विश्वसनीयता की मात्रा प्रत्येक निर्माणी की विशिष्टता पर निर्भर होती है जिसके परिणाम इस साज-सज्जा के साथ किये गये अनुभव पर निर्भर होते हैं। साधारणतया संगणक प्रक्रिया में किसी त्रुटि के उत्पन्न होने पर स्व-निर्मित नियन्त्रण रुक जाने चाहिए। अंकेक्षक को इन त्रुटियों की सीमा का निर्धारण ठीक। कर लेना चाहिए और साथ-ही-साथ अंकेक्षक को समंक प्रक्रियान्वयन विभाग (data-processing department) की सुरक्षा नीति (maintenance policy) का पुनर्मूल्यांकन कर लेना चाहिए।

2. कार्यक्रम नियन्त्रण स्व-निर्मित नियन्त्रणों की अपेक्षा कार्यक्रम नियन्त्रण अंकेक्षक के लिए अधिक महत्वपूर्ण हैं। आंकड़ों के अनुवाद में त्रुटियां हो सकती हैं और इसके लिए मानवीय दोष अधिक जिम्मेदार। होता है। कुछ परिस्थितियों में निर्देशों के समायोजन करने से इन त्रुटियों में से कुछ का पता लग सकता है।। सीमा-रोकथाम (‘limit’ check) का आश्रय लेकर इस प्रकार का नियन्त्रण प्रयोग में लिया जा सकता है।। सामान्य सीमा-रोकथाम के द्वारा संगणक कार्यक्रम में फिट किया जा सकता है और इससे बड़ी त्रुटियों में सुधार किया जा सकता है।

सीमा-राकथाम (limit’ check) के अतिरिक्त सही आंकड़ों के लिए संगणक पराक्षण Test) रखना सम्भव हा सकता है। इस प्रकार के नियन्त्रणों को ‘प्रामाणिकता’ रोकथाम (Validity Checks) है। सगणक-कार्यक्रम में प्रूफ योगों (Proof totals) को भी सम्मिलित किया जा सकता है । प्रूफ योग (Proof Total) सगणक के लिए इनपुट का काम करता है जबकि आंकड़ों का प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाता हा सगणक के द्वारा प्रफ योग का मिलान प्रयक्त बीजकों के योग के प्रयोग से किया जाता हा इसक आतारक्त अन्य कार्यक्रम-नियन्त्रणों का प्रयोग भी इस प्रक्रिया में किया जाता है जिसमें सही फाइलो का निरीक्षण और सही लेखों की जांच सम्मिलित है।

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इन सभा कार्यक्रम-नियन्त्रणों के द्वारा त्रुटियों के कम करने में सहायता मिलती है। अतएव अंकेक्षक का कायक्रम-नयन्त्रणों का समझना अति आवश्यक है और यह भी महत्वपूर्ण है कि वह समय-समय पर आन्तरिक नियन्त्रणों का पूनर्मूल्यांकन करता रहे ताकि वह अपने कार्य की कुशलता के लिए इस प्रविधि पर विश्वास कर सके।

3. संगठनीय नियन्त्रण आन्तरिक नियन्त्रण की पद्धति का पनर्मल्यांकन अंकेक्षण के आधारभत अंग है। यह संगठनीय नियन्त्रण आन्तरिक नियन्त्रण की परम्परागत विचारधारा के समान है। इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को दो आधारभूत प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए :

(1) समक प्रक्रियान्वयन विभाग (Data-Processing Department) का संगठन के शेष भाग से क्या सम्बन्ध है?

(2) समंक प्रक्रियान्वयन विभाग का क्या आन्तरिक संगठन है?

इस सम्बन्ध में यह जानना महत्वपूर्ण है कि संगठन को प्रभावशाली बनाने के लिए समंक क्रियान्वयन विभाग को लेखाकार्यों से अलग कर देना चाहिए, इस प्रकार किसी मद (items) की हिसाबदेयता (Accountability) को उसके भौतिक कार्यान्वयन (Physical handling) से पृथक् कर देना चाहिए। उसी प्रकार समंक प्रक्रियान्वयन विभाग की स्थिति तथा औचित्य का संगठन में क्या सम्बन्ध है, यह भी जानना एक महत्वपूर्ण अंग है। अंकेक्षक को यह समझना चाहिए कि उसको वित्तीय विवरण-पत्रों के प्रमाणीकरण के अतिरिक्त सूचना-पद्धति (Information system) की प्रभावशीलता के विषय में प्रबन्ध को सही रूप में सूचित करना भी उसका प्रमुख कर्तव्य हो जाता है।

अंकेक्षण को समंक प्रक्रियान्वयन विभाग के विभिन्न सदस्यों के दायित्व तथा कर्तव्यों के सम्बन्ध में भी जानकारी करनी चाहिए। ऐसे विभाग के सही संचालन के लिए किसी मद जैसे रोकड़ की प्राप्ति तथा लेखा रखने के कार्य को अलग-अलग कर देना चाहिए। ऐसा करने से नियन्त्रण उचित रूप से बनाये रखा जा सकता है। उसी प्रकार संगणक-कार्यान्वयन (Computer Operation) तथा संगणक-कार्यक्रम के कार्यों को अलग-अलग कर देना चाहिए। ऐसा करने से संगणक पद्धति सुचारु रूप से कार्य कर सकती है। अंकेक्षक के सम्मख एक यह समस्या उत्पन्न हो जाती है कि वह किस प्रकार समंक प्रक्रियान्वन विभाग के वास्तविक संचालक की जांच करने में किस विशेष अंकेक्षण प्रविधि का प्रयोग करे।

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संगणक अंकेक्षण प्रविधि

(COMPUTER AUDIT TECHNIQUES)

संगणक अंकेक्षण प्रविधियां दो भाग में विभाजित करके अध्ययन की जा सकती हैं। किस दृष्टिकोण से कार्य हो. यह संगणक के प्रति अंकेक्षक की रुझान पर निर्भर होता है। संगणक एक उपकरण (Tool) समझा जाता है और वैसे ही संगणक एक पद्धति (System) भी समझा जाता है।

संगणक : एक उपकरण के रूप में (Computer as a Tool)

प्रारम्भ में हमको यह स्वीकार करना चाहिए कि संगणक एक उपकरण के रूप में देखा जाता है। संगणक एक सुविधाजनक साधन है जिसके द्वारा कार्य अधिक गति तथा कशलता के साथ पूरा किया जा सकता है। इस प्रकार अंकेक्षक के लिए संगणक निम्न क्षेत्रों में उपयोगी हो सकता है:

1 हिसाब सम्बन्धी गणना (Arithmetic Calculations)

2. नमूने का चुनाव (Selection of a Sample)

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1 हिसाब सम्बन्धी गणना हम यह जानते हैं कि नियोक्ता अपना हिसाब मशीन से पढ़ने योग्य व्यवस्था के आधार पर तैयार करता है। अतः अंकेक्षक के लिए विभिन्न मदों की हिसाब सम्बन्धी शुद्धता की जांच संगणक की सहायता से बड़ी आसान हो जाती है। अंकेक्षक के लिए कठिनाई इस बात से होती है कि संगणक की कोई दो पद्धतियां एक-सी नहीं होती हैं। अतः प्रत्येक नियोक्ता के लिए पृथक-पृथक अंकेक्षण-कार्यक्रम बनाना उसके लिए आवश्यक हो जाता है। इसमें काफी समय लग जाता है। इसके लिए दो रास्ते हो सकते हैं: अंकेक्षक फाइल की संक्षिप्त प्रतिलिपि मांग ले और उसकी हिसाब सम्बन्धी गणना की जांच कर ले। 4 अंकेक्षक स्वयं कार्यक्रम तैयार कर ले जिसमें मशीन से पढ़ने योग्य आंकडे लिए जाएं। इस प्रकार उसका कार्य सरल बन सकता है।

2. नमूने का चुनाव संगणक का प्रयोग एक अंकेक्षक के द्वारा नमूने के लिए चुनी गयी फाइल के मदों के चनने के लिए किया जा सकता है। सगणक चालको के द्वारा इस ओर काफी अध्ययन किया गया है। अंकेक्षक सांख्यिकीय नमूना प्रविधि को चुन सकता है और नमूना निकाल सकता है। बहत-से मामलों में कछ मटों का अनायास चुनाव (selection of random) सम्मिलित किया जा सकता है। इस आधार पर सूची बनाने के लिए वह स्वंम या अपने व्यक्ति के द्दारा कार्यक्रम तैयार कर सकता है।

3. अंकेक्षण के कार्य सम्बन्धी पत्रों की तैयारी—अन्त में अंकेक्षक संगणक का प्रयोग कछ विश्लेषणों के तैयार करने के लिए कर सकता है जो उसको सामान्य स्थिति में उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। सम्पत्तियों की वृद्धि तथा कमी को चुनने के लिए वह एक प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है और इस प्रकार नियोक्ता के कार्य में बाधा डाले बिना अंकेशणं के उद्देश्य के लिए मशीन से पढ़ने योग्य आंकड़ों का प्रयोग कर सकता है। उसी प्रकार वह कागज पत्र भी तैयार कर सकता है । जिनको संगणक की अनुपस्थिति में अधिक समय तथा प्रयास कद्वारा वह तयार करता है। ऐसा करने से उसके कार्य की गतिविधि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

इस प्रकार सगंणक एक सुविधाजनक और आंकड़ों की कमी से उद्देश्य-पूर्ति का साधन बन गया है। यह माता (Accounts receivable) के हिसाब तैयार करने. स्टॉक-सची के तैयार करने बैंक खाता क मिलान करने तथा तलपट और वित्तीय खातों के तैयार करने की एक कुशल पद्धति है।

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संगणक : एक साधन के रूप में

व्यापारिक संस्थाओं की लेखा-प्रणाली के भाग के रूप में भी संगणक का उपयोग समझा जाता है। अकक्षक का दायित्व आन्तरिक नियन्त्रण की पद्धति का पुनर्मल्यांकन करना भी होता है जिसमें लेखा-पद्धति भी सम्मिलित है, अतः उसका दायित्व संगणक तथा कार्यक्रमों के पुनर्मुल्यांकन से भी अच्छी प्रकार सम्बन्धित है। अब संगणक ने पुरानी परम्परागत पद्धति का स्थान ले लिया है. अतः प्रत्यक्ष रूप से पद्धति का वास्तविक चलन का दिग्दर्शन सम्भव नहीं है। अब अंकेक्षक को ऐसी प्रविधि का प्रयोग करना होता है जिससे कि यह पता चल सके कि संगणक प्रणाली भली प्रकार से कार्य कर रही है। अंकेक्षक प्रविधि के निम्न दो सामान्य वर्ग बन जाते हैं :

1 संगणक के इर्द-गिर्द अंकेक्षण

2. संगणक के द्वारा अंकेक्षण

1 संगणक के इर्द-गिर्द अंकेक्षण (Auditing ‘around the computer)—वास्तव में अंकेक्षक अपने नियोक्ता को सभी लेखे, जर्नल और खाताबही बनाने को कहता है। अत: संगणक के इर्द-गिर्द अंकेक्षण एक साधारण प्रक्रिया है। वित्तीय विवरण-पत्र बनाने के लिए सभी हिसाब-किताब से सम्बन्धित लेन-देनों को संगणक के द्वारा मशीन से पढ़ने योग्य प्रारूपों में तैयार किया जाता है। इस संगणक की अंकेक्षण प्रविधि के निम्न लाभ व हानि हैं :

लाभ

(1) अंकेक्षण-स्टाफ के पुनप्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है।

(2) सभी अंकेक्षण-स्टाफ के द्वारा संगणक प्रक्रियाएं भली प्रकार समझ में आ जाती हैं।

(3) यह विशेष रूप से समूह के द्वारा (by group) नियन्त्रित संगणक संस्थाओं के लिए उपयोगी है।

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हानि

(1) संगणक-समय का दुरुपयोग होता है।

(2) सम्मिलित समंक प्रक्रियान्वयन में बाधा उत्पन्न करती है।

(3) संगणक से अंकेक्षक को कोई लाभ नहीं मिलता है।

(4) इस प्रणाली के जटिल हो जाने के कारण यह प्रविधि कठिन या असम्भव बन जाती है।

(2) संगणक के द्वारा अंकेक्षण (Auditing through the. computer)—संगणक के द्वारा अंकेक्षण एक अन्य प्रविधि है जिसमें संगणक का प्रयोग अंकेक्षक की सहायता के लिए किया जाता है । इस प्रविधि को तीन शीर्षकों में विभाजित करके अध्ययन किया जा सकता है :  (i) ‘परीक्षण डैक’ (Test decks). (i) नियोक्ता के संगणक-कार्यक्रम का प्रयोग, तथा (iii) अंकेक्षण मॉडल का प्रयोग।

(i) परीक्षण डैक परीक्षण डैक’ अन्य दो साधनों की अपेक्षा अभि पृथक्-पृथक् विशेषताएं तथा लाभ-हानि हैं  लाभ

1 यह प्रविधि सरल है।

2. संगणक एवं संगणक-कार्यक्रमों के मिलान के उच्चस्तरीय ज्ञान की आवश्यकता नहीं होता है।

3. परिणाम आसानी से जांचे जा सकते हैं।

हानि

(1) यह प्रविधि सामूहिक समंक प्रक्रियान्वयन पद्धति में सीमित उपयोग वाली है।

(2) इसके लिए विस्तृत परीक्षण डैक की आवश्यकता होती है।

(3) अशुद्धि की मात्रा का अनुमान करना कठिन होता है। ।

(4) इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि उत्पादन कार्यक्रम वही है जो नियोक्ता ने वास्तव में प्रयोग किया है।

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(ii) नियोक्ता के संगणक-कार्यक्रम का प्रयोग इस प्रविधि का सम्बन्ध नियोक्ता के उत्पादन कार्यक्रम से है। यदि अंकेक्षक का इस कार्यक्रम के सम्बन्ध में कछ अनुभव होता है, तो वह चार्ट तथा कोडिंग का सुविधापूर्वक मिलान कर सकता है। इस पद्धति के निम्न लाभ व हानि हैं :

लाभ

(1) अंकेक्षक को किसी प्रोग्राम के लिखने की आवश्यकता नहीं होती है।

(2) कार्यक्रम को विशेष संगणक से सहमति की आवश्यकता नहीं है।

(3) अंकेक्षण ट्रेल (trail) के रखने की आवश्यकता कम हो जाती है।

(iii) अंकेक्षण मॉडल का प्रयोग संगणक प्रयोगों को चलाने के लिए अंकेक्षक को ऑडिट मॉडलों का विकास करना होता है। दैनिक वेतन-सूची, प्राप्य खाते (Accounts Receivable), स्टॉक-प्रबन्ध तथा रोकड़ भगतान व देय खातों (Accounts Payable) के प्रयोगों के लिए संगणक के अंकेक्षण मॉडलों का विकास करने की आवश्यकता होती है। उसके निम्न लाभ-हानि हैं :

लाभ

(1) प्रत्येक लेखा-प्रयोग के लिए एक साधारण प्रोग्राम विकसित किया जा सकता है।

(2) प्रोग्राम अंकेक्षक के द्वारा लिखा जाता है, अतः स्वतन्त्रता बनी रहती है।

(3) अंकेक्षण ट्रेल (trail) आवश्यकताओं के लिए आवश्यकता कम होती है।

(4) विशेष संगणक के प्रयोग केवल उन भागों के परीक्षण के लिए जो अंकेक्षक के दृष्टिकोण मेंआवश्यक है, अंकेक्षक को छूट मिल जाती है।

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हानि

(1) नियोक्ता के संगणक बड़े होने चाहिए, इस बात की आवश्यकता होती है।

(2) नियोक्ता के इनपुट आंकड़े उपलब्ध किये जाने चाहिए।

(3) विभिन्न नियोक्ताओं के कार्यक्रम के उपयोग के लिए अधिक विकल्पों की आवश्यकता होती है।

EDP वातावरण में अंकेक्षण (Auditing in an EDP Environment)

ऋणाणक समंक प्रक्रियान्वयन ई डी पी (Electronic Data Processing-EDP) वातावरण उन परिस्थितियों में बनता है जिनके अंकेक्षण के लिए महत्वपूर्ण लागत सम्बन्धी तथा वित्तीय सूचना (Cost and Financial Information) के प्रक्रियान्वयन (Processing) के लिए किसी भी आकार या स्वभाव के संगणक (Computer) का प्रयोग किया जाता है। इस आधुनिक विधि में लागत तथा वित्तीय लेखा सम्बन्धी सूचना पंच किए (punched) कार्डों या टेप्स (tapes), कागज या मैग्नेटिक (magnetic), आदि पर लिखी जाती है और संगणक-भाषा (computer language) में उतारी जाती है तथा आउटपुट निष्कर्षों (output results) के निकालने तथा प्रक्रियान्वयन के उद्देश्य के लिए EDP पद्धति में कार्यक्रम के रूप में प्रस्तुत की जाती (programmed) है। इस प्रकार संगणक (Computer) का प्रयोग लागत सम्बन्धी तथा वित्तीय सूचना के भण्डारण तथा प्रक्रियान्वयन में परिवर्तन ही नहीं लगता है, वरन् पर्याप्त आन्तरिक नियन्त्रणों के लिए संस्थान में लेखाविधि पद्धतियों तथा क्रियाकलापों के अपनाने को भी प्रभावित करता है। अतः अंकेक्षक को भी हिसाब-किताब की जांच के लिए संगणित लेखा-पुस्तकों (Computerised Books) के मूल्यांकन के अपने स्वतन्त्र व निष्पक्ष दृष्टिकोण को अपनाना होता है।

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लेखा पद्धति के संगणकीकरण (Computerisation of Accounting Systems) के लिए लेखा-विभाग के पुराने परम्परागत ढांचे में महत्वपूर्ण परिवर्तनों की आवश्यकता होती है। संगणकों के प्रयोग के लिए संगठन वं अंकेक्षण में संगणक का प्रयोग व लेखा-विधियों में परिवर्तन अति आवश्यक होते है। कि वह इस नवीन व तकनीकी विधियों के प्रयोग के परिप्रेक्ष्य में अपनी तदनुरुप तैयारी के साथ लेखों की जांच का कार्य सम्पन्न कर आख्या दे। संगणक में इनपुट समंक (input dari कि संगणक की मशीन के अन्दर क्या कार्यवाही चल रहा है सगणक में इनपुट समंक (input data) के प्रयोग होने पर अंकेक्षक यह नहीं जानता शान के अन्दर क्या कार्यवाही चल रही है और आउटपुट (output) के रूप में क्या निष्कर्ष का यह भी उसके लिए सम्भव नहीं है कि वह आउटपुट समंकों को इनपूट समंकों से मिलान मशान के अन्दर की क्रिया का उसको ज्ञान नहीं होता है। अंकेक्षक सदैव ई डी पी की क्रिया को समय स्वंय उपस्थित नहीं रह सकता और न उसके पास संगणक पर आधारित लेखों के मूल्यांकन के लिए। पर्याप्त साक्ष्य (evidence) उपलब्ध हो सकते हैं।

ई डी पी पद्धति की विशेषताएं (Characteristics of EDP System)

ई डी पी पद्धति की विशेषताओं को जिनका प्रभाव लेखाविधि और संगठन से सम्बन्धित आन्तरिक नियन्त्रणा पर होता है. तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है: 1) संगठनीय ढांचा. (2) प्रक्रियान्वयन का स्वभाव तथा (3) डिजाइन व गतिविधीय पहलू।

(1) संगठनीय ढांचा (Organisational Structure) अधिकांश ई डी पी पद्धतियों में बहुत कुछ हस्त-प्रचलित क्रियाएं सम्मिलित होती हैं. और वित्तीय सूचना के प्रक्रियान्वयन में संलग्न व्यक्तियों की संख्या कम कर दी जाती है। केवल कुछ प्रमुख अधिकारी व कर्मचारी ही समंकों के स्रोत का विस्तृत ज्ञान रखते हैं। अतः ये कर्मचारी कार्यक्रम या समंकों (data) में परिवर्तन करने में सक्षम हो सकते हैं। साथ ही बहुत से परम्परागत नियन्त्रण (conventional controls) प्रभावहीन हो सकते हैं, परिणामस्वरूप अशुद्धियां होने पर प्रकाश में न आने के कारण अतिरिक्त जोखिम की गुंजाइश हो जाती है।

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(2) प्रक्रियान्वयन का स्वभाव (Nature of Processing)—लागत व वित्तीय सूचना के प्रक्रियान्वयन में इनपुट प्रलेखों (input documents) का अभाव पाया जाता है, क्योंकि सम्बन्धित प्रलेखों के बिना भी समंकों को सीधे संगणक-विधि (computer system) में भर दिया जाता है। आदेश प्रविष्टि (Order entry) की स्वीकृति के लिए लिखित साक्ष्य के बिना अधिकृत करने को अन्य प्रक्रिया के माध्यम से दबाया जा सकता है। साथ ही प्रक्रियान्वयन में प्रत्यक्ष लेन-देन ट्रेल (trail) की कमी रहती है, क्योंकि कुछ समंकों (data) को केवल संगणक फाइल पर ही रखा जाता है। कोई-कोई लेन-देन (trial) कुछ सीमित समय के लिए ही रखा जाता है या आंशिक रूप से मशीन से पढ़ने योग्य स्वरूप में हो सकता है जिसके लिए अंकेक्षक के द्वारा स्रोत प्रलेख (source documents), लेखा फाइलों (record files), आदि से जांच करने में कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं। प्रक्रियान्वयन के कुछ निष्कर्ष ई डी पी पट पर कभी-कभी नहीं छपते हैं और इस प्रकार प्रत्यक्ष आउटपट का अभाव फाइलों में केवल संगणक के द्वारा पढ़ने योग्य ही बना रह सकता है। यह ही नहीं, उचित व पर्याप्त नियन्त्रणों के अभाव में समंकों व कार्यक्रमों में परिवर्तन आसानी से किया जा सकता है।

(3) डिजाइन व गतिविधीय पहलू (Design and Procedural Aspects) ई डी पी (EDP) पद्धति में डिजाइन तथा गतिविधीय विशेषताएं भिन्न होती हैं। यह सही है कि हस्तलिपि लेन-देनों से संगणकीय पद्धति से किया गया कार्य अधिक विश्वसनीय तथा स्थायी होता है बशर्ते कार्यक्रम द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से कार्य सम्पन्न किया जाये। पर यदि संगणक के माध्यम से कार्यक्रम ठीक प्रकार न पूरा किया जाये, तो निष्कर्ष प्रभावहीन व अविश्वसनीय हो सकते हैं। संगणक पद्धति में कार्यक्रमों को डिजाइन किया जाता है जिनके लिए इनपट प्रलेखों की आवश्यकता नहीं होती है। ई डी पी पद्धति से कार्य होने में क्रियाकलाप की स्थिरता तथा विश्वसनीयता बनी रहती है, पर यदि कार्यक्रम ठीक प्रकार से न भरे जाएं तो अशुद्धि की गुंजाइश बन जाती है।

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संगणक प्रोग्राम में कुछ आन्तरिक नियन्त्रण की क्रियाएं डिजाइन की जाती हैं। संकेत शब्दों (Pass-words) के गण गांकों में अनाधिकत हेरा-फेरी रोकी जा सकती है। बहुत-से अन्य नियन्त्रण स्वभावतः हाथ-सम्बन्धी (manual) होते हैं।

ई डी सी पद्दति के अन्तर्गत लेखाविधि का एकल इनपुट (single input) स्वतःहा लनन्द . ई डी पी पद्धति के अन्तर्गत लेखाविधि का। रेनों को सही कर देता है। उदाहरणस्वरूप, माल प्राप्ति-पत्र (Goods Received Note) क्रय, विक्रता के लेखों की फाइल तथा सामान सम्बन्धी फाइल को सही कर देता है। इस प्रकार इस पद्धति में अशुद्ध प्रविष्टि अन्य खातों व लेखों में अशुद्धियां कर देती है।

ई डी पी पद्धति में समंकों व कार्यक्रमों को सहज ले जाने योग्य (portable) अथवा स्थायी भण्डारण। माध्यमों जैसे, मैग्नेटिक टेप्स, डिस्क्स, आदि के द्वारा सुरक्षित रखा जा सकता है। ये माध्यम (media) चोरी। हानि या किसी घटना से नष्ट हो सकते हैं।

संगणक द्वारा संचालित लेखा-पद्धति में नाम व विवरणों के रखने के लिए कोड संख्या (code numbers) का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। अंकेक्षक को इन कोडों से भली-भांति परिचित होना चाहिए। प्रारम्भ में ऐसा करने में कुछ समस्याएं आ सकती हैं। अंकेक्षक को एक कठिनाई और हो सकती है। संगणक से संचालित लेखों में विवरण (narrations) बिल्कुल नहीं दिये जाते हैं, अतः विभिन्न लेन-देनों को समझना उसके लिए अत्यन्त कठिन हो जाता है।

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ई डी पी पर आधारित खातों का अंकेक्षण (Audit of EDP Based Accounts) 

ई डी पी पर आधारित खातों की जांच में अंकेक्षक हस्तलिखित खातों की जांच की तुलना में स्वयं को। अच्छी स्थिति में पाता है, क्योंकि यदि वह आन्तरिक नियन्त्रणों से सन्तुष्ट है तो खातों की गणितीय शुद्धता (Arithmetical accuracy) पर उसकी विश्वसनीयता अधिक हो जाती है। संगणक द्वारा तैयार किये गये। खातों पर उचित व उत्तम नियन्त्रणों के बने रहने से अंकेक्षक को विस्तृत सत्यापन की आवश्यकता नहीं होती है। अतः वह अन्य कार्यों के लिए अधिक समय दे सकता है। संगणक द्वारा तैयार खातों से नियन्त्रण भली प्रकार डिजाइन किये जाते हैं और खातों में संलग्न व्यक्तियों के दायित्व स्पष्टतया परिभाषित होते हैं तथा स्वतः ही उन खातों की जांच (automatic checking) होती रहती है।

इस प्रकार संगणक से तैयार खातों में अंकेक्षक को विशेष समस्याओं तथा अवसरों (opportunities) का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं का समाधान विशेष नियन्त्रणों के लागू करने से सुविधापूर्वक किया जा सकता है तथा अंकेक्षण कार्यक्रम के अधिक प्रभावशाली व उपयोगी बनाने से अवसरों का अंकेक्षक अपने कार्य के लिए उपयोग कर सकता है। यह प्रक्रिया दो अवस्थाओं में पूरी की जा सकती है :

(1) आन्तरिक नियन्त्रणों का पुनर्निरीक्षण,

(2) समंक प्रक्रियान्वयन (Data Processing) पद्धतियों से लेखों की जांच।

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(1) आन्तरिक नियन्त्रणों का पुनर्निरीक्षण—आन्तरिक नियन्त्रणों की जांच करने के लिए अंकेक्षक संगठन-चार्ट, आन्तरिक नियन्त्रण, प्रश्नावली, पूछताछ, सर्वे तथा अन्य प्रलेखों से स्वयं को सन्तुष्ट कर सकता है। उसको ई डी पी पद्धति से संचालित संगठन की प्रक्रियाओं की पूर्ण जानकारी करनी चाहिए और नियन्त्रणों की प्रभावशालीनता तथा कुशलता की जांच करनी चाहिए। ये नियन्त्रण सामान्य (General) ई डी पी नियन्त्रण होते हैं जैसे संगठन तथा प्रबन्ध नियन्त्रण—प्रयोग पद्धतियां—विकास तथा रख-रखाव नियन्त्रण (Application Systems-Development and Maintenance Controls), समंक प्रवेश (Data Entry) व कार्यक्रम नियन्त्रण, इत्यादि। साथ ही ई डी पी प्रयोग नियन्त्रणों (E D P Application Controls) का विशिष्ट उद्देश्य यह विश्वास प्राप्त करने के लिए किया जाता है कि सभी लेन-देन अधिकृत हैं तथा सभी का लेखा कर दिया गया है और वे पूर्णरूपेण, सही-सही व समय के साथ प्रक्रियान्वित किए जा चुके हैं। इनपुट पर नियन्त्रण, प्रक्रियान्वयन तथा समंक फाइलों पर नियन्त्रण, आउटपट पर नियन्त्रण, आदि ई डी पी प्रयोग नियन्त्रणों के उदाहरण हैं।

नियन्त्रणों की विश्वसनीयता के परीक्षण के पश्चात अंकेक्षक को यह विश्वास करना चाहिए कि जिन नियन्त्रणों पर वह विश्वास कर रहा है वे सभी प्रारम्भ से अन्त तक पूर्ण विश्वसनीयता के साथ उचित रूप। से क्रियान्वित होते रहे हैं। अंकेक्षक उपलब्ध प्रलेखीय साक्ष्य (Documentary evidence) के द्वारा आन्तारका नियन्त्रणों के प्रयोग के सम्बन्ध में आज्ञाकारिता (compliance) की जांच कर सकता है। साथ ही वह नियन्त्रणा के परिपालन को स्वयं ही देख सकता है। पंच किये गये का? (Punched cards) को देखकर यह विश्वास कर सकता है कि उनको उचित रूप से चिह्नित कर दिया है अथवा नहीं। प्रलेखीय साक्ष्यों की जांच के आतरिक्त । अंकेक्षक संगणक पर आधारित अंकेक्षण-तकनीकी के माध्यम से परिपालन (compliance) के पराक्षण कर। सकता है। इन परिपालन-परीक्षणों के सहारे अंकेक्षक यह विश्वास कर सकता है कि नियन्त्रण वास्तव में । उचित रूप से कार्य कर रहे हैं।

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 (2) समक प्रक्रियान्वयन पद्धतियों से लेखों की जांच आन्तरिक नियन्त्रणों की जांच के उपरान्त अंकेक्षक समकाक्रयान्वयन पद्धति (Data Processing System) के द्वारा प्रस्तुत लेखों की जांच तथा चयन कर सकता है जिससे कि वह लेखों की शब्द्धता तथा ठीक होने पर विश्वास कर सके। अंकेक्षण ट्रेल (Audit trail) व इकाइँया जो मूल लेन-देन को आगे अन्तिम आउटपट से जोडती हैं। इस अंकेक्षण ट्रेल में प्रमाणक. जर्नल, खाताबही तथा अन्य लेखा-पुस्तकें अन्तिम आउटपट तक पहंचने में कड़ियां जोडती हैं। इन कड़ियों के माध्यम से अकेक्षंक सम्पूर्ण लेन-देनों के वित्तीय विवरणों पर होने वाले अन्तिम प्रभाव को देख सकता है।

अकेक्षंक अंकेक्षण-परीक्षणों (Audit tests) के करने में संगणक का प्रयोग नहीं करता है। वह केवल मूल प्रलेखो (Original documents) से लेन-देनों का निरीक्षण करता है तथा संगणक पर निकाले हुए परिणामो की जांच करता है। अंकेक्षक विश्वास करता है कि पर्याप्त अंकेक्षण ट्रेल उसको उपलब्ध हो जायेगी और वह उसी प्रकार अपनी जांच कर सकेगा जिस प्रकार परम्परागत अंकेक्षण में वह करता है, परन्तु यह सभी मामलों में सम्भव भी नहीं हो सकता है और उसे ‘संगणक पर आधारित अंकेक्षण तकनीक’ (Computer Assisted Audit Techniques) का सहारा लेना होता है।

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प्रश्न

1 संगणक के इर्द-गिर्द अंकेक्षण से क्या आशय है? समझाइए।

What is meant by auditing ‘around the computer? Describe.

2. संगणक के द्वारा अंकेक्षण से क्या आशय है ? इसे करने के लिए तीन आधारभूत प्रणालियों को समझाइए।

What is meant by auditing ‘Through the Computer’? Suggest three basic methods for doing this.

3. संगणक-अंकेक्षण प्रविधि से आप क्या समझते हैं ? बताइए।

What do you understand by the computer audit techniques? Discuss.

4. आन्तरिक नियन्त्रण तथा संगणक का सम्बन्ध समझाइए।

Describe the relationship between internal control and computer.

5. संगणक क्या है? संगणकीय पद्धति के अंगों का वर्णन कीजिए।

What is a Computer? Describe the elements of a computerized system.

6. ई डी पी वातावरण पर एक टिप्पणी दीजिए।

Give a note on ‘EDP Environment’.

7. ई डी पी वातावरण क्या है ? इसकी विशेषताएं व समस्याएं बतइए।

What is EDP Environment? Discuss its characteristics and problems.

8. ई डी पी पर आधारित खातो का अकेक्षण करने में अंकेक्षक को क्या कार्यवाही करनी होगी. समझाइए। Discuss the procedure to the adopted by an auditor while auditing the EDP based accounts.

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chetansati

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