BCom 3rd Year Corporate Accounting Valuation Goodwill Study Material notes in hindi

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BCom 3rd Year Corporate Accounting Valuation Goodwill Study Material notes in Hindi

BCom 3rd Year Corporate Accounting Valuation Goodwill Study Material notes in Hindi:  Meaning  of Goodwill Reasons  for arising Goodwill Average Capital Employed Methods of Valuation of Goodwill Super Profit Method Capitalization of Profit (  Most important Notes for BCom )

Valuation Goodwill Study Material
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BCom 3rd Year Financial Management Cash Flow Statement Examination Questions Study Material Notes In Hindi

 ख्याति का मूल्यांकन

(Valuation of Goodwill)

ख्याति का आशय (Meaning of Goodwill)

ख्याति एक अमूर्त (intangible) सम्पत्ति है किन्तु अवास्तविक (fictitious) नहीं तथा कभी-कभी तो यह मूर्त सम्पत्तियों से भी अधिक मूल्यवान होती है। यह एक व्यावसायिक संस्था के अच्छे सम्बन्धों और यश का मूल्य है जो कि ग्राहकों को एक चुम्बक की भाँति उस इकाई विशेष के प्रति आकर्षित करती है जिसके परिणामस्वरूप वह इकाई अपनी विनियोजित पूँजी पर उसी प्रकार के व्यवसाय में लगी अन्य इकाइयों द्वारा अर्जित सामान्य लाभ स्तर से अधिक प्रत्याय प्राप्त करती है। तकनीकी भाषा में, “ख्याति एक फर्म के पूर्वानुमानित अतिरेक उपार्जनों का वर्तमान मुल्य है।”। ‘अतिरेक उपार्जन’ शब्दों का आशय फर्म द्वारा मूर्त सम्पत्तियों और ख्याति को छोड़कर अन्य सभी अमूर्त सम्पत्तियों में विनियोजित धन राशि पर उस उद्योग या व्यवसाय की प्रतिनिधि फर्मों द्वारा अर्जित सामान्य प्रत्याय दर से अधिक अर्जनों से होता है। न्यायालयों व लेखांकन साहित्य दोनों में ख्याति का यह आशय सामान्यतया स्वीकार्य है।

ख्याति उपार्जन के कारण (Reasons for arising Goodwill)

जैसा कि ऊपर बतलाया जा चुका है कि ख्याति उपार्जन का प्रमुख कारण एक फर्म की भविष्य में सामान्य से अधिक लाभार्जन की प्रत्याशा तथा यह प्रत्याशा अनेक कारणों से प्रभावित होती है। प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :

(1) व्यवसाय स्वामी का व्यक्तित्व, उसकी ईमानदारी, योग्यता व सद्व्यवहार।

(2) प्रबन्धकीय श्रेष्ठता अर्थात् प्रबन्ध का सक्रिय, प्रगतिशील व दूरदर्शी होना।

(3) कर्मचारियों की कार्यकुशलता, ईमानदारी व वफादारी।

(4) उच्च कोटि के तकनीकी ज्ञान की उपलब्धता की दीर्घकालीन व्यवस्था।

(5) उत्कृष्ठ माल या सेवा व उचित मूल्य की ग्राहकों में प्रसिद्धि।

(6) अच्छे श्रम सम्बन्ध।

(7) व्यवसाय का अनुकूल स्थान व प्रभावी विज्ञापन व्यवस्था।

(8) ट्रेडमार्क व पेटेन्ट संरक्षण और एकाधिकारी सुविधायें।

(9) विशेष व्यावसायिक लाभ, जैसे कच्चे माल व कल-पुर्जो की नियमित आपूर्ति व उत्पाद की बिक्री के सम्बन्ध में अनुकूल दीर्घकालीन प्रसंविदे।

(10) पूँजी प्राप्ति के पर्याप्त संसाधन तथा अच्छी साख सामर्थ्य

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ख्याति मूल्यांकन की आवश्यकता (Need for valuation of Goodwill)

ख्याति के मूल्यांकन की आवश्यकता निम्न दशाओं में हो सकती है:

(अ) एक कम्पनी की दशा में (In the case of a company)

(i) जब दो या दो से अधिक कम्पनियों का एकीकरण हो।

(ii)- जब एक कम्पनी दूसरी कम्पनी का संविलयन करे।

(iii) जब एक कम्पनी दूसरी कम्पनी में नियंत्रणीय हित प्राप्त करने के लिये उसके बड़ी संख्या में अंश क्रय करे।

(iv) जब कोई कम्पनी बेची जा रही हो या सरकार उसका अधिग्रहण कर रही हो।

(v) जब स्कन्ध विपणि से अंशों के मूल्य उपलब्ध न होने पर करारोपण के उद्देश्य से किसी व्यक्ति या संस्था के अंशों का सही मूल्य निर्धारित करना हो।

(vi) जब एक प्रकार के अंश दूसरे प्रकार के अंशों में बदले जाने हो।

(vii)जब कम्पनी ने पहले तो ख्याति को अपलिखित कर दिया हो किन्तु बाद में लाभ-हानि खाते की डेबिट बाकी को कम करने या समाप्त करने के लिये ख्याति को पुनः उपार्जित करना हो।

(ब) एक साझेदारी संस्था की दशा में (In the case of a partnership firm)

(i) साझेदार के प्रवेश पर। (ii) साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर। (iii) साझेदार की मृत्यु पर। (iv) साझेदारों के लाभ विभाजन अनुपात में परिवर्तन किये जाने पर। (v) फर्म द्वारा अपना व्यवसाय बेचे जाने पर। (vi) दो फर्मों के एकीकरण पर। (vii) साझेदारी को कम्पनी में परिवर्तित किये जाने पर।

(स) एक एकाकी व्यापारी की दशा में (In the case of a sole trader)

(i) व्यापारी की मृत्यु पर सम्पत्ति-कर लगने पर। (ii) व्यवसाय की बिक्री पर। (iii) व्यवसाय में किसी अन्य व्यक्ति को साझेदार बनाये जाने पर। (iv) दो एकाकी व्यवसायों का एकीकरण करके उसे साझेदारी फर्म बनाये जाने पर।

ख्याति के मूल्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

(Main factors affecting the value of Goodwill)

एक व्यवसाय की ख्याति का निर्धारण निम्न कारकों पर आधारित होता है :

(1) व्यवसाय की भावी लाभप्रदता, (2) विनियोक्ताओं की आय प्रत्याशा, (3) व्यवसाय में विनियोजित पूँजी तथा (4) अन्य कारक।

(1) व्यवसाय की भावी लाभप्रदता (Future Profitability of the business) : एक फर्म की ख्याति के मूल्यांकन का प्रमुख आधार उसकी भावी लाभप्रदता है। किसी व्यवसाय की भावी लाभप्रदता का आकलन उसके गत वर्षों के लाभ, उनके घटने-बढ़ने की प्रवृत्ति तथा भावी सम्भावनाओं के आधार पर किया जाता है।

भावी लाभप्रदता का आशय भविष्य में बने रहने योग्य लाभों (future maintainable profits) की मात्रा का आकलन है। ये लाभ जितने अधिक होंगे, फर्म की ख्याति भी उतनी ही अधिक होगी। भावी बने रहने योग्य लाभों का आकलन निम्न कारकों पर आधारित होता है :

(अ) गत वर्षों के लाभ (Profits of past years): व्यवसाय के भावी सम्भावित लाभ की गणना के लिये उस व्यवसाय के गत वर्षों के परिणामों को आधार बनाया जाता है। गत लाभों की गणना करते समय निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक होगा :

(i) ऋणपत्रों पर व्याज व सम्पत्तियों पर हास सहित सभी सामान्य कार्यकारी व्ययों को घटाया जाय।

(ii) कर आयोजन सहित सभी दायित्वों के लिये आवश्यक आयोजन किये जायें किन्तु सामान्य संचय, लाभांश समानीकरण कोष, दायित्वों के भुगतान के लिये सिंकिंग फण्ड आदि लाभ के नियोजन न किये जायें।

(iii) यदि गैर-व्यापारिक सम्पत्तियों को विनियोजित पूँजी की गणना से अलग रखा गया है तो ऐसी सम्पत्तियों से प्राप्त आय को लाभों से अलग रखा जाय।

(iv) एक वर्ष के स्थान पर चार-पाँच वर्षों के लाभ के औसत को वार्षिक लाभ माना जाय। यदि गत वर्षों में किसी वर्ष के परिणाम किन्हीं असामान्य घटनाओं से प्रभावित हों तो औसत लाभ की गणना के लिये ऐसे असामान्य वर्ष के परिणाम को छोड़ देना चाहिये।

(v) असाधारण व अनावर्तक आय या व्यय की मदों को छोड़कर ही प्रत्येक वर्ष के लाभ ज्ञात किये जाने चाहिये।

(vi) यदि सम्पत्तियों को उनकी प्रतिस्थापन लागत पर दिखलाया जाता है तो हास की गणना भी इसी लागत पर होनी चाहिये।

(ब) सस्पष्ट बढ़ते या घटते लाभ (Markedly rising or falling profits) : यदि गत वर्षों के लाभ निरन्तर वृद्धि दर्शा रहे। हों तो सामान्य औसत के स्थान पर भारित औसत के आधार पर वार्षिक औसत लाभ ज्ञात करना चाहिये। भारित औसत लाभ की गणना करने के लिये प्रत्येक वर्ष के लाभ को एक भार दिया जाता है : अधिकतम हाल के वर्ष के लाभ को अधिकतम भार दिया। जाता है तथा सबसे पुराने वर्ष के लाभ को सबसे कम भार दिया जाता है। उदाहरण के लिये यदि 2012, 2013, 2014 व 2015 वर्षों के लाभ दिये हों तो उन्हें क्रमशः 1,2,3 व 4 का भार दिया जा सकता है।

(स) प्रत्याशित विकास (Expected Developments) : यदि संस्था के विकास पर महत्वपूर्ण व्यय किया गया है तो विकास के सम्भावित फलों (results) के आधार पर गत वर्षों के वार्षिक औसत लाभों में आवश्यक समायोजन करके ही भावी बने रहने योग्य लाभों की गणना करनी चाहिये।

(2) विनियोक्ताओं द्वारा प्रत्याशित आय (Yield Expected by Investors) : ख्याति के मूल्यांकन में दसरा प्रमख कारक विनियोक्ताओं की अपने विनियोग से प्रत्याशित आय है। वस्तुतः विनियोक्ताओं की प्रत्याशा ही लाभों का सामान्य स्तर या सामान्य पत्याय दर (normal rate of return) निर्धारित करती है। इस दर का निर्धारण उसी प्रकार के व्यवसाय में लगी अन्य कम्पनियों के। अंगों के स्कन्ध बाजार में प्रचलित मूल्य-उपार्जन अनुपात (Price Earnings Ratio) के आधार पर किया जा सकता है।

विनियोक्ताओं की आय-प्रत्याशा दर बढ़ने पर ख्याति घटती है तथा आय-प्रत्याशा घटने पर ख्याति बढ़ जाती है। यह प्रत्याशा निम्न तत्वों से प्रभावित होती है :

(i) विनियोग में व्यावसायिक व वित्तीय जोखिम की मात्रा : जोखिम अधिक होने पर विनियोक्ताओं की आय-प्रत्याशा दर बढ़ जाती है।

(ii) विनियोग की अवधि : विनियोग की अवधि बढ़ने के साथ-साथ विनियोक्ताओं की आय-प्रत्याशा दर बढ़ती जाती है क्योंकि अवधि बढ़ने के साथ-साथ जोखिम बढ़ जाती है।

(iii) बैंक दर : बैंक दर बढ़ने पर आय-प्रत्याशा दर बढ़ती है तथा घटने पर घट जाती है।

(iv) व्यवसाय चक्र : व्यावसायिक तेजी के समय विनियोक्ताओं की आय-प्रत्याशा दर बढ़ जाती है तथा मंदी के समय इस दर में गिरावट आ जाती है।

(v) सामान्य आर्थिक व राजनैतिक स्थिति : विनियोक्ताओं का देश की आर्थिक व राजनैतिक स्थिति में विश्वास हिल जाने पर उनकी आय-प्रत्याशा दर तेजी से बढ़ जाती है।

(3) विनियोजित पूँजी (Capital Employed): ख्याति के मूल्यांकन में यह तीसरा महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि लाभों के आकार। का महत्व इन्हें अर्जित करने के लिये प्रयोग की गयी पूँजी से सम्बन्ध स्थापित करके ही जाना जा सकता है। सामान्यतया विनियोजित पूँजी का आशय शुद्ध स्थायी सम्पत्तियों और शुद्ध कार्यशील पूंजी के योग से होता है तथा इसमें गैर-व्यापारिक सम्पत्तियों (जैसे सरकारी प्रतिभूतियों में विनियोग) को सम्मिलित नहीं किया जाता है। इसे अंश पूँजी, संचयों व आधिक्य तथा दीर्घकालीन ऋणों का योग करके भी ज्ञात किया जा सकता है।

एक कम्पनी की ख्याति के मूल्यांकन के लिये विनियोजित पँजी का उपर्युक्त विचार उपयुक्त नहीं क्योंकि यहाँ पर ख्याति का लाभ केवल अंशधारियों को ही मिलता है। अतः विनियोजित पूँजी की गणना में ऋणपत्रों व अन्य ऋणों की राशि को इसके अन्तर्गत नहीं सम्मिलित करना चाहिये। इस सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि चूंकि लाभ चालू मूल्यों पर अभिव्यक्त किये जाते हैं, अतः स्थायी सम्पत्तियों को भी उनके चालू मूल्य पर ही दिखाया जाना चाहिये।

संक्षेप में, विनियोजित पूँजी की गणना के लिये निम्न विधियों का प्रयोग किया जा सकता है :

1 सम्पत्ति पक्ष विधि (Assets side approach):

नोट : कुछ विद्वान विनियोजित पूँजी की गणना सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत (replacement cost) के आधार पर करना अधिक उचित मानते हैं। ऐसी स्थिति में सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत के आधार पर हास का समायोजन करना आवश्यक होगा।

औसत विनियोजित पूँजी (Average Capital Employed)

विनियोजित पूँजी के उपर्युक्त वर्णित विचार के परिष्कार के तौर पर लेखापाल विनियोजित पूँजी के स्थान पर ‘औसत विनियोजित पूँजी’ की गणना करना उपयुक्त मानते हैं जिससे कि व्यवसाय में वर्ष-पर्यन्त लगे पूँजी विनियोग का सही ज्ञान हो सके। औसत विनियोजित पूँजी की गणना निम्न दो प्रकार से की जा सकती है ।

1 वर्ष के प्रारम्भ व अन्त की विनियोजित पूंजी का ऊपर बतलायी गई विधि से गणना करके उनका साधारण माध्य ज्ञात किया जाय। यह प्रारम्भ व अन्त की विनियोजित पूंजी के योग को दो का भाग देकर ज्ञात किया जाता है।

2. चूँकि प्रारम्भ व अन्त की विनियोजित पूँजी में अन्तर का मुख्य कारण वर्ष में अर्जित लाभ होता है, अतः वर्ष के अन्त की विनियोजित पूँजी की राशि से वर्ष में अर्जित लाभों का आधा भाग घटाकर अथवा वर्ष के प्रारम्भ की विनियोजित पूँजी की राशि में वर्ष में अर्जित लाभों का आधा भाग जोड़कर औसत विनियोजित पूँजी की राशि ज्ञात की जा सकती है।

यदि कम्पनी के चिठे के दायित्व पक्ष की ओर प्रस्तावित लाभांश (Proposed Dividend) दिया हुआ है तो शुद्ध लाभ में प्रस्तावित लाभांश की राशि जोड़कर आयी राशि वर्ष का कल लाभ होगा जिसके आधे भाग का समायोजन किया जायेगा। यदि व्यावसायिक संस्था अग्रिम आयकर चकाती है तो वर्ष के लाभ में से आयकर की राशि भी घटायी जायेगी तथा आयकर घटाकर प्राप्त लाभ के आधे का समायोजन किया जायेगा।

(4) अन्य कारक (Other Factors) : उपर्युक्त वर्णित तीन प्रमख कारकों के अतिरिक्त निम्न कारक भी ख्याति के मल्य को प्रभावित करते हैं :

(अ) प्रबन्धन में व्यक्तिगत चातुर्य (Personal Skill in Management) : यदि फर्म के अधिक लाभ व्यवसाय-स्वामी व प्रबन्धकों के व्यक्तिगत चातुर्य के कारण हैं तो उसकी ख्याति कम आँकी जाती है क्योंकि फर्म के विक्रय पर इन गुणों को क्रेता को हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता। जिस व्यवसाय में व्यक्तिगत कारकों का जितना अधिक महत्व होगा, उस व्यवसाय की ख्याति उतनी ही कम ऑकी जायेगी।

(ब) व्यवसाय की प्रकृति (Nature of Business) : यदि नई फर्मों के उस व्यवसाय में प्रवेश पर प्रभावपूर्ण बाधायें हैं तो विद्यमान फर्म की ख्याति अधिक होगी। इसी तरह यदि फर्म सतत् माँग की वस्तु या सेवा का विक्रय करती है तो इसकी ख्याति फैशन व अनिश्चित माँग की वस्तु या सेवा का विक्रय करने वाली फर्म से अधिक होगी।

(स) अनुकूल स्थिति (Favourable Location) : यदि व्यापार का स्थान ग्राहकों के लिये और/अथवा उस व्यवसाय विशेष के लिये अनुकूल है तो उस फर्म की ख्याति अधिक होगी।।

(द) कच्चे माल व कुशल श्रम की सुलभ आपूर्ति (Easy Availability of Raw Materials and Trained Labour): यदि कच्चे माल और कुशल श्रम की नियमित आपूर्ति के लिये किये गये अनुबन्धों का लाभ क्रेता को भी पूर्ववत् मिलता रहेगा तो फर्म की ख्याति अधिक आँकी जायेगी।

(इ) पेटेन्ट व ट्रेडमार्क का उपयोगी जीवनकाल (Useful Life of Patents and Trade Mark): यदि विक्रेता फर्म का पेटेन्ट व ट्रेडमार्क लम्बे समय तक उपयोगी बने रहने की सम्भावना है तो फर्म की ख्याति अधिक आँकी जायेगी।

(फ) राजनैतिक व सरकारी संरक्षण (Political and Government Protection) : जिन व्यवसायों को राजनैतिक और/अथवा सरकारी संरक्षण प्राप्त है, उनकी ख्याति अधिक आँकी जायेगी।

(ज) पूँजी आवश्यकतायें (Capital Requirements) : यदि अधिक लाभ अर्जित करने वाली फर्म कम पूँजी से ही संचालित हैं तो उसकी ख्याति अधिक आँकी जायेगी।

(ह) विशिष्ट अनुबन्ध (Specific Contracts) : ग्राहकों को माल या सेवा की आपूर्ति के बहुत अधिक अनुकूल अनुबन्ध फर्म की ख्याति बढ़ाते हैं किन्तु यदि इन अनुबन्धों का लाभ नये स्वामी को नहीं मिल सकेगा तो इन अनुबंधों का ख्याति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

ख्याति के मूल्यांकन की विधियाँ (Methods of Valuation of Goodwill)

ख्याति के मूल्यांकन की विधियाँ निम्नलिखित हैं : 

1 औसत लाभ विधि (Average Profit Method)

2. अधिलाभ विधि (Super Profit Method)

3. लाभ के पूँजीकरण की विधि (Capitalisation of Profit Method)

औसत लाभ विधि (Average Profit Method)

इस विधि के अनुसार ख्याति गत कुछ वर्षों के शुद्ध लाभों के औसत के कुछ वर्षों के क्रय (अर्थात गणनफल) के रूप में व्यक्त की जाती है। औसत वार्षिक लाभ की गणना के लिये निर्दिष्ट वर्षों के लाभ-हानि की राशियों का योग किया जाता है तथा फिर इस योग को वर्षों की संख्या से भाग दिया जाता है। कितने वर्षों के लाभों का औसत ज्ञात किया जाय, यह व्यवसाय की परिस्थितियों तथा आपसी समझौते से तय किया जाता है। अधिकतर तीन से पांच वर्षों की अवधि आदर्श मानी जाती है। इसी तरह, औसत लाभ के कितने वर्षों का क्रय ख्याति माना जाय, यह आपसी समझौते से अथवा मनमाने ढंग से तय किया जाता है। सामान्यतया दो या तीन वर्षों का क्रय मूल्य उचित माना जाता है।

वार्षिक लाभ ज्ञात करने के लिये असाधारण प्रकृति के सभी आय व व्ययों को छोड़ देना चाहिये। जब संस्था के लाभ लगातार बढ़ रहे हों या लगातार घट रहे हो तो औसत वार्षिक लाभ की गणना साधारण औसत के स्थान पर भारित औसत से की जानी माहियो। वैकल्पिक रूप में इसके लिये गत वर्षों के लाभों के साधारण औसत को व्यवसाय की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए समायोजित। करना चाहिये।

उदाहरण 1. एक व्यावसायिक फर्म की ख्याति गत तीन वर्षों के औसत लाभों के चार वर्ष के क्रय पर मूल्यांकित की जाती है जो कि निम्नलिखित हैं:

2012-10,000 ₹, 2013-11,000₹ और 2014-12,000₹

ख्याति की गणना कीजिये:

(i) जब साधारण औसत प्रयोग किया जाता है।

(ii) जब भारित औसत प्रयोग किया जाता है।

(iii) जब समायोजित औसत प्रयोग किया जाता है और वार्षिक लाभों में 10% की वृद्धि उचित समझी जाती है।

The goodwill of a partnership firm is valued at four years’ purchase of average profits of past three years which are as under:

उदाहरण 2. मि० अ ने ब का व्यवसाय 1 जनवरी 2015 से क्रय किया। गत 3 वर्षों के ब के व्यवसाय के लाभ इस प्रकार थे।

2012 40,0007 (5,000₹ के एक असाधारण लाभ को सम्मिलित करते हुए)

2013 50,000 ₹ (10,000₹ की एक असाधारण हानि को घटाने के पश्चात)

2014 45,000 ₹ (फर्म की सम्पत्ति, जिसका अब बीमा किया जाना है, पर 5,000 ₹ बीमा प्रीमियम को छोडकर)

व्यवसाय स्वामी का उचित पारिश्रमिक 6,000₹ प्रतिवर्ष है जिसे उपर्युक्त लाभों की गणना में प्रयोग नहीं किया है।

गत 3 वर्षों के औसत लाभों के दो वर्षों के क्रय के आधार पर फर्म की ख्याति के मूल्य की गणना करो।

Mr. A purchased the business of Mr. B with effect from 1st January 2015. The profits disclosed by B’s business for the last 3 years were as follows :

2012 ₹40,000 (including an abnormal gain of₹ 5,000)

2013 ₹50,000 (after charging an abnormal loss of₹ 10,000)

2014 345,000 (excluding 5,000 an insurance premium on firm’s property – now to be insured)

Reasonable remuneration of the proprietor of business is 6,000 per year, but it has not been taken into account for the calculation of above mentioned profits.

Calculate the value of firm’s goodwill on the basis of 2 years’ purchase of the average profits for the last three years.

औसत लाभ पद्धति के गुण (Merits of Average Profit Method)

1 यह एक सरल पद्धति है। यह गणितीय जटिलताओं से मुक्त है।

2. कई वर्ष के लाभों के आधार पर औसत लाभ निकालने के कारण इससे व्यवसाय की सही लाभार्जन शक्ति का ज्ञान प्राप्त होने की सम्भावना रहती है।

औसत लाभ पद्धति के दोष (Demerits of Average Profit Method)

1. इस पद्धति में गत वर्षों के लाभों को ही ख्याति मूल्यांकन का आधार बनाया जाता है किन्तु इसमें व्यवसाय में विनियोजित पूँजी का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है। वस्तुतः एक व्यवसाय की लाभार्जन-शक्ति का सही ज्ञान उसमें विनियोजित पूंजी के संदर्भ में ही हो। सकता है।

2. गत कितने वर्षों के लाभों के आधार पर औसत लाभ निकाला जाय, इसका कोई ठोस आधार नहीं।

3. व्यवसाय के कुल लाभों को ख्याति के मूल्यांकन का आधार बनाना गलत है। वस्तुतः एक व्यवसाय की ख्याति सामान्य से अधिक लाभ अर्जित करने की शक्ति के कारण ही उपार्जित होती है। अतः अर्जित लाभ का प्रत्येक रुपया ख्याति नहीं उपार्जित करता। इस पद्धति के इस दोष के कारण ही व्यवसाय जगत में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।

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अधि-लाभ पद्धति (Super Profit Method)

इस पद्धति के अन्तर्गत फर्म के अधि-लाभों को ख्याति के मूल्य की गणना का आधार बनाया जाता है। अधि-लाभ का आशय संस्था के वास्तविक औसत लाभों का सामान्य प्रत्याय दर पर आधारित सामान्य लाभों पर आधिक्य से है। अर्थात

Super Profit = Actual Average Profit – Normal Profit

वास्तविक औसत लाभ का आशय संस्था के अनुमानित भावी वार्षिक लाभ (estimated future annual profit or future maintainable profit) से होता है। इसके लिये गत वर्षों के औसत सामान्य लाभ की राशि को भावी प्रत्याशाओं के संदर्भ में समायोजित किया जाता है।

सामान्य लाभ की गणना फर्म की औसत विनियोजित पूँजी (या शुद्ध विनियोजित पूँजी) को सामान्य प्रत्याय दर (Normal Rate of Return) से गणा करके की जाती है। यहाँ सामान्य प्रत्याय दर का आशय उस उद्योग की प्रतिनिधि फर्मों (या औसत फर्म) का। प्रत्याय दर (अर्थात व्यवसाय में विनियोजित पूँजी पर लाभ की प्रतिशत दर) से होता है। सामान्यतया प्रश्न में यह दर दी हई होती है। किन्तु यदि यह दर न दी हो तो विद्यार्थी मामले को ध्यान में रखते हुए ही उचित प्रत्याय दर मानकर प्रश्न का हल दें।

उदाहरण के लिये यदि किसी फर्म के अनुमानित भावी लाभ 1,50,000 ₹ हैं तथा उसमें विनियोजित पंजी 8.00,000 है। यदि । उस व्यवसाय की सामान्य प्रत्याय दर 10% हो तो अथिलाभ 1,50,000 – 10% of 8.00,000 = 70.000 ₹ होगा तथा यही अंक ख्याति की गणना का आधार होगा। यहाँ ध्यान रहे कि यदि अघि-लाभ ऋणात्मक आता है तो ख्याति का मूल्य शन्य माना जायेगा।

अधि-लाभ के आधार पर ख्याति की गणना की निम्न दो प्रचलित पद्धतियाँ हैं :

(अ) अधि-लाभ के क्रय की पद्धति तथा

(ब) अधि-लाभ के वार्षिकी की पद्धति।

(अ) अधि-लाभ के क्रय की पद्धति (Purchase of Super Profit Method) :

इस पद्धति के अन्तर्गत अधि-लाभ की राशि को किसी उचित वर्ष संख्या से गुणा किया जाता है। सैद्धान्तिक रूप से यह वर्ष संख्या इस तथ्य पर निर्भर करती है कि एक नये व्यवसाय को पराने स्थापित व्यवसाय के बराबर लाभ अर्जित करने में कितने वर्ष लगेंगे ? ख्याति के मूल्यांकन के लिये सामान्यतया 3 से 5 वर्षों का क्रय लिया जाता है। किन्तु यदि व्यवसाय के अधि-लाभ की राशि बहुत अधिक है तथा भविष्य में इसमें और वृद्धि की सम्भावनायें हैं तो इससे अधिक वर्षों के क्रय का प्रयोग भी अनुमत होगा। इसके विपरीत यदि विक्रेता फर्म के लाभ वर्ष-प्रति-वर्ष गिरने की प्रवृत्ति दर्शा रहे है अथवा । नई फर्म को विक्रेता फर्म के महत्वपूर्ण व्यक्तियों का सहयोग मिलने की सम्भावनायें नहीं हैं तो 1 या 2 वर्ष के क्रय का प्रयोग ही पर्याप्त रहेगा।

उदाहरण 3. निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर ख्याति का मूल्यांकन अधिलाभ विधि (साधारण एवं भारयुक्त) से कीजिए :

(i) व्यापार में विनियोजित औसत पूँजी 3,00,000 ₹।

(ii) फर्म में पिछले तीन वर्षों के व्यापारिक लाभ इस प्रकार थे:53,800 ₹,45,350 ₹ तथा 56,250₹

(iii) जोखिम के आधार पर अनुमानित ब्याज की दर 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष

(iv) साझेदारों को उनकी सेवाओं के प्रतिफल स्वरूप उचित पारिश्रमिक 6,000 ₹ वार्षिक है जो अभी तक लाभ-हानि खाते में

समायोजित नहीं किया गया है।

From the information, calculate the value of goodwill by Super Profit Method (simple and weighted):

(i) Average capital employed in the business is₹3,00,000.

(ii) Net trading profits of the firm for the past three years were 53,800, 45,350 and 56,250.

(iii) Rate of interest expected from capital having regard to the risk involved is 12%p.a.

(iv) Fair remuneration to the partners for their service ₹ 6,000 per annum, not charged to Profit and Loss A/c so far.

(ब) अधि-लाभ के वार्षिकी की पद्धति (Annuity of Super Profit Method) : अधि-लाभ के क्रय की पद्धति के आधार पर ज्ञात की गई ख्याति का दोष यह है कि क्रेता को ख्याति का भुगतान तो वर्तमान में करना होता है किन्तु इसकी वसूली अतिरिक्त लाभों के रूप में अगले कुछ वर्षों में हो पाती है। इससे ब्याज की भारी हानि होती है। वार्षिकी पद्धति इस दोष को दूर करती है। इस पद्धति के अन्तर्गत भविष्य में प्राप्त होने वाले अधि-लाभों का निश्चित ब्याज की दर से कटौती करके ज्ञात किया गया वर्तमान मूल्य ही ख्याति का मूल्य होता है। 1₹ की वार्षिकी का विभिन्न ब्याज-दरों पर वर्तमान मल्य ज्ञात करने के लिये निम्नलिखित गणितीय सूत्र का प्रयोग किया जाता है :

व्यवहार में उपर्युक्त सूत्र से तैयार की गई वर्तमान मूल्य तालिका का प्रयोग किया जाता है। इस तालिका में ₹ की वार्षिकी का वाभन्न व्याज की दरों पर विभिन्न वर्षों में वर्तमान मल्य दिये होते हैं। इस तालिका से लाभ की सामान्य दर (जिसव्याजदर कहा जा सकता है) पर दिये गये क्रय के वर्षों की पंक्ति में वर्तमान मूल्य कारक ज्ञात किया जाता है और फिर इसे अधिलाभ की राशि से गुणा करके ख्याति का मूल्य ज्ञात किया जाता है।

इस गणना के लिये वार्षिकी सारणियों का भी प्रयोग किया जा सकता है। इस सारणी की रचना गणित के निम्न सूत्र पर आधारित होती है:

 

वार्षिकी सारणी के अन्तर्गत प्रथम वर्ष के अतिरिक्त अन्य सभी वर्षों के कारकों का मूल्य एक से कम होता है। इस तालिका में। दिये गये कारक की वार्षिकी का दिये गये ब्याज दर पर दिये गये वर्षों में वर्तमान मूल्य 1₹ होता है। अतः ख्याति की गणना के लिये अधि-लाभ की राशि में इस कारक का भाग दिया जाता है।

उदाहरण 4. एक साझेदारी संस्था के सम्बन्ध में निम्नलिखित सूचना दी गई हैं :

(अ) शुद्ध, लाभ : 2013, 1,07,600 ₹ 2014,95,000 ₹ 2015, 1,00,800 ₹

(ब) व्यवसाय में औसत विनियोजित पूँजी : 6,00,000 ₹

(स) जोखिम को ध्यान में रखते हुए विनियोजित पूँजी से प्रत्याशित प्रत्याय : 12%

(द) 2013 के लाभों में 700 ₹ की एक राशि सम्मिलित है जो कि ऐसे देनदार से प्राप्त की गई है जिसका खाता कई वर्ष पूर्व अप्राप्त मानकर अपलिखित किया जा चुका था।

(इ) 12,000 ₹ प्रतिवर्ष का स्वामियों का पारिश्रमिक उचित माना गया है।

ख्याति की राशि ज्ञात करो, यदि यह आधारित है :

(1) अधि-लाभों के 8 वर्षों के क्रय पर।

(2) अधि-लाभों के वार्षिकी के वर्तमान मूल्य पर।

1₹ की वार्षिकी का 8 वर्षों में 12% की दर पर वर्तमान मूल्य 4.9618₹ है।

Following information are given in respect of a partnership firm:

(a) Net Profits: 2013₹1,07,600; 2014₹95,000; 2015₹1,00,800.

(b) Average capital employed in the business :₹6,00,000.

(c) Return expected from invested capital, having regard to the risk involved : 12%.

(d) An amount of₹700 is included in the profits of 2013 which has been recovered from a debtor whose account had been written off as bad several years before.

(e) Remuneration of₹ 12,000 p.a. to the proprietors is considered reasonable.

Calculate the amount of goodwill if it is based on:

(1) at 8 years’ purchase of the super profits,

(2) at present value of an annuity of the super profits.

Present value of an annuity of 1 in 8 years @ 12% is 4.9618.

उदाहरण 5. 31 दिसम्बर 2015 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिये चन्दन लि० का चिट्ठा निम्नांकित था। आप अथ-लाभ पखात। द्वारा तीन वर्ष के क्रय के आधार पर ख्याति का मूल्यांकन करो :

From the following Balance Sheet of Chandan Ltd, as at 31st December 2015, find out the value of goodwill according to Super Profit Method assuming three years’ purchase :

उदाहरण 6. नीचे दिये गये चिट्ठे और अतिरिक्त सूचना के आधार पर एक्स लि० के हस्तान्तरण की बातचीत चल रही है :

Negotiation is going on for the Transfer of X Ltd on the Basis of the Balance Sheet and the additional Information as given below :

2014-15 के कर से पूर्व लाभ विनियोग पर 10.000 ₹ ब्याज को सम्मिलित करते हुए 6.00,000र थे। फिर भी व्यवसाय के सुचारु रूप से संचालन हेतु 50,000 र प्रतिवर्ष की अतिरिक्त राशि व्यय करना आवश्यक होगा।

भूमि व भवन तथा संयंत्र व मशीनरी के बाजार मूल्य क्रमशः 9.00.000 ₹ और 10,00,000 ₹ अनुमानित किये गये है। उपर्युक्त अंकों से मेल मिलाने के लिये 40,000 ₹ हास और लगाना होगा। आयकर 50% मान लीजिये। यह ध्यान रहे कि आयकर के उद्देश्य से अतिरिक्त हास स्वीकृत नहीं है। इस व्यवसाय के लिये इस समय पूँजी पर प्रत्याय 20% कर से पूर्व की दर को सामान्य माना जा सकता है।

प्रत्याय दर के निर्धारण के लिये उपर्युक्त समायोजनों के पश्चात इस वर्ष का लाभ प्रत्याशित औसत लाभ लिया जा सकता है। इसी तरह इस वर्ष की स्थिति के आधार पर ही औसत व्यापारिक विनियोजित पूँजी भी ली जा सकती है।

यह सहमति हुई है कि इस व्यवसाय के लिये अधि-लाभ के 4 वर्षों का क्रय ख्याति का मूल्य लिया जायेगा। आपको कम्पनी की ख्याति के मूल्य की गणना करनी है।

Profit before tax for 2014-15 amounted to ₹ 6,00,000 including ₹10,000 as interest on investment. However, an additional amount of 50,000 per annum shall be required to be spent for smooth running of the business.

Market values of land and buildings and plant & machinery are estimated at ₹9,00,000 and ₹ 10,00,000 respectively. In order to match the above figures further depreciation to the extent of 40,000 should be taken into consideration. Income-tax rate may be taken at 50%. It may be noted that additional depreciation is not allowed for income-tax purposes. Return on capital at the rate of 20% before tax may be considered normal for this business at the present stage.

For the purpose of determining the rate of return, profit for this year after the aforesaid adjustments may be taken as expected average profit. Similarly, average trading capital employed is also to be considered on the basis of the position in this year. It has been agreed that 4 years’ purchase of super profit shall be taken as the value of goodwill for the purpose of the deal. You are requested to calculate the value of goodwill of the company.

लाभ के पंजीकरण की पद्धति (Capitalisation of Profit Method)

इस पद्धति के अन्तर्गत लाभों का पूँजीकरण करके ख्याति का मूल्य ज्ञात किया जाता है। पूँजीकरण की निम्न दो विधियाँ हैं :

(1) अधि-लाभ का पूँजीकरण (Capitalisation of Super Profit) : इस विधि के अनुसार व्यवसाय के अधि-लाभों का सामान्य प्रत्याय दर से पूँजीकृत मूल्य ही ख्याति का मूल्य होता है। सूत्र रूप में :

Value of Goodwill = Super Profit *  100

Normal Rate of Return

(2) वार्षिक लाभ का पूँजीकरण (Capitalisation of Annual Profit) : इस विधि के अनुसार, ख्याति का मूल्य ज्ञात करने के लिये फर्म के अनुमानित वार्षिक लाभों का सामान्य प्रत्याय दर से पूँजीकरण किया जाता है तथा फिर इससे फर्म की शुद्ध मूर्त सम्पत्तियों को घटा दिया जाता है। इस प्रकार इस विधि से ख्याति ज्ञात करने की प्रक्रिया इस प्रकार होगी :

यहाँ यह ध्यान रहे कि लाभ के पूँजीकरण की पद्धति से ज्ञात किया गया ख्याति का मूल्य अधि-लाभ पद्धति से ज्ञात किये गये मूल्य से अधिक होता है।

उदाहरण 7. एक्स लि० को वाई लि० का व्यवसाय 1 अप्रैल 2015 से क्रय करना है। इसके लिये आपको अर्जनों के पंजीकरण के आधार पर वाई लि० के ख्याति के मूल्य की गणना करनी है। 31 मार्च 2015 को वाई लि० का चिट्ठा निम्नलिखित है :.

X Ltd. is to take over the business of Y Ltd. on 1st April 2015. For this purpose, you are required to calculate the value of Y Ltd.’s goodwill on the basis of the capitalization of earnings. The following is the Balance Sheet of Y Ltd. as at 31st March 2015:

निम्नलिखित अतिरिक्त सूचना दी गई है :

(1) मशीनरी और फैक्ट्री शेड पुस्तक मूल्य से 30% अधिक मूल्य के हैं। ख्याति की गणना के लिये मशीनरी और फैक्ट्री शेड के बढ़े मूल्य पर हास पर विचार नहीं करना है।

(ii) गत तीन वर्षों के कर के बाद के औसत लाभ पर आधारित अधि-लाभों के 4 वर्षों के क्रय के आधार पर ख्याति की गणना करनी है।

Valuation of Goodwill Study Material

chetansati

Admin

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