BCom 3rd Year Verification & Valuation Assets & Liabilities Study Material Notes in Hindi

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BCom 3rd Year Verification & Valuation Assets & Liabilities Study Material Notes in Hindi: Verification  Objects of Verification of Assets  Importance of Verification Valuation Classification of Assets Objects of Valuations Significance of Valuation Difference Between Verification and Vouching Difference Between verification  Verification & Valuation Assets Valuation Goodwill Freehold land Duties of Auditor  Plant and Machinery  Plants Trade Marks

Verification & Valuation Assets
Verification & Valuation Assets

BCom 3rd Year Audit Types Classification Study Material Notes in hindi

सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सत्यापन एवं मूल्यांकन

[VERIFICATION AND VALUATION OF ASSETS AND LIABILITIES]

भूमि एवं भवन • प्लाण्ट एवं मशीन • विनियोग . व्यापारिक रहतिया • देनदार • नकद • बैंक में रोकड़ • लेनदार • ऋण • अंश पूंजी • सम्भाव्य दायित्व

सत्यापन

(VERIFICATION)

अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट लिखना होता है कि एक व्यापारिक संस्था का चिट्ठा उसकी आर्थिक स्थिति को सही रूप में प्रस्तुत करता है। दूसरे शब्दों में, चिढे में लिखी हुई सम्पत्ति और दायित्व की सत्यता की जाँच उसे करनी होती है। यह सत्यापन कहलाता है। सत्यापन का अर्थ सत्यता को प्रमाणित करना

1 जे. आर. बाटलीबॉय के अनसार “अंकेक्षण को इस बात की सन्तष्टि कर लेनी चाहिए कि सम्पत्तियां वास्तव में स्थिति-विवरण की तिथि पर विद्यमान हैं तथा वे सब प्रभारों के प्रमाणों से मुक्त हैं यथा उनका मूल्यांकन उचित प्रकार से किया गया है। दायित्वों के सत्यापन में उसे यह देखना होता है सही दायित्वों को उचित राशि पर दायित्वों में सम्मिलित किया गया है तथा कोई भी दायित्व छोड़ा नहीं गया है।”

2. स्पाइसर एवं पैगलर के अनुसार, “सम्पत्तियों के सत्यापन का अर्थ सम्पत्तियों के मूल्य, स्वामित्व, स्वत्व, विद्यमानता एवं अधिग्रहण तथा उन पर उपस्थित किसी प्रकार के प्रभार के बारे में जांच करने से है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं को ध्यान में रखते हुए सत्यापन के सन्दर्भ में अंकेक्षक को निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है :

1 संस्था के चिट्टे (Balance Sheet) में सम्पत्तियां स्पष्ट रूप से लिखी गई हैं।

2. सम्पत्तियां व्यापार के लिए उचित अधिकार से प्राप्त की गई हैं।

3. जो सम्पत्तियां स्थिति विवरण में दिखाई गई हैं, वह वास्तव में व्यापार में विद्यमान है।

4. ये सम्पत्तियां पूर्णतया संस्था के अधिकार में हैं और उन पर किसी प्रकार का प्रभार (Charge) नहीं है।

5. सम्पत्तियों का सही मूल्यांकन किया गया है।

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कभी-कभी प्रमाणन और सत्यापन को एक ही समझा जाता है। वास्तव में, ऐसा नहीं है। जैसा कि हम देख चुके हैं कि प्रमाणन में प्रमाणकों के आधार पर लेखाबहियों के लेखों की जांच करनी होती है, जबकि सत्यापन में सम्पत्तियों और दायित्वों की सत्यता की जांच करनी होती है। इस प्रकार सत्यापन केवल इतनी ही जांच नहीं है कि भिन्न-भिन्न सम्पत्तियां प्राप्त कर ली गयी हैं वरन इनके विषय में यह प्रमाणन करना अत्यन्त आवश्यक है कि (1) वे संस्था के पास मौजूद हैं. (2) संस्था ही की सम्पत्ति हैं, और (3) चिट्टे की तारीख के दिन उसका सही मूल्यांकन किया गया है।

सामायिक दृष्टिकोण से प्रमाणन का कार्य किसी भी समय किया जा सकता है, जबकि सत्यापन का कार्य सामान्यतः चिट्ठा बनाने के बाद किया जाता है।

सम्पत्तियों के सत्यापन के उद्देश्य

(OBJECTS OF VERIFICATION OF ASSETS)

इन्स्टीट्यूट के द्वारा जारी प्रमाप अंकेक्षण व्यवहार (Statement of Auditing Practices) के अनुसार, सम्पत्तियों के सत्यापन के सम्बन्ध में अंकेक्षक का उद्देश्य अपने आप को इस बात से सन्तुष्ट करना है कि सम्पत्तियां संस्था में :

(i) विद्यमान हैं,

(ii) वे उसके नियोक्ता की हैं,

(iii) वे उसके नियोक्ता के या उनके द्वारा अधिकृत व्यक्ति के अधिकार में हैं,

(iv) वे किसी अवर्णित बन्धक या प्रभार में नहीं हैं,

(v) उन्हें चिट्ठे में लेखांकन सिद्धान्तों के अनुसार उचित मूल्य पर दर्शाया गया है,

(vi) उनका लेखा पुस्तकों में विद्यमान है। उपर्युक्त उद्देश्यों का वर्णन निम्न प्रकार है:

(i) विद्यमानता (Existence)—स्थायी सम्पत्तियों की भौतिक विद्यमानता का प्रमुख उत्तरदायित्व संस्था के प्रबन्धकों का है न कि अंकेक्षक का।

सम्पत्तियों की विद्यमानता की जांच के सम्बन्ध में अंकेक्षक का कर्तव्य है कि वह लेखों की जांच मूल प्रमाणपत्रों एवं प्रलेखों के द्वारा तथा आन्तरिक नियन्त्रणों के द्वारा करे।

(ii) स्वामित्व (Ownership) सम्पत्तियों के स्वामित्व का सत्यापन स्वामित्व प्रलेखों (Title Deed) के द्वारा किया जाना चाहिए। यदि किसी सम्पत्ति के स्वामित्व सम्बन्धी प्रलेख किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों जैसे बैंक या अन्य किसी वित्तीय संस्था के पास हैं तो इसका प्रमाण उसे उन व्यक्तियों से प्राप्त करना चाहिए। यदि कोई ऐसी सम्पत्ति जिसके स्वामित्व का प्रलेख संस्था के पास नहीं है। जैसे—देनदार, रोकड, चाल कार्य. आदि तो इन सम्पत्तियों का स्वामित्व अंकेक्षण कार्यक्रम की कार्यविधि का निर्धारण करते समय कर लिया जाना चाहिए।

(iii) अधिकार (Possession)-अंकेक्षक को इस बात की भी जांच करनी चाहिए कि सम्पत्तियां उसके नियोक्ता के अधिकार में हैं। यदि सम्पत्तियां उसके नियोक्ता के अधिकार की अपेक्षा किसी अन्य व्यक्ति के अधिकार में हैं तो उसे इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि ऐसे अधिकार उसके नियोक्ता द्वारा पूर्ण रूप से अधिकृत हैं।

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(iv) बन्धक या प्रभार का उचित स्पष्टीकरण (Disclosure of Mortgage and Lien)-अंकेक्षक का इस सम्बन्ध में ऐसी अंकेक्षण कार्यक्रम विधि (Audit Procedure) का निर्माण करना चाहिए जिससे यह पता

प्रकार का प्रभार या बन्धक तो नहीं है। दूसरा यदि किसी सम्पत्ति पर किसी प्रकार का कोई प्रभार है तो इस तथ्य की पूर्ण जांच कर लेनी चाहिए कि उनका पूर्ण स्पष्टीकरण वित्तीय विवरणों में किया गया है।

 (v) मूल्यांकन एवं स्पष्टीकरण (Valuation and Disclosure)-अंकेक्षक को इस तथ्य से सन्तुष्ट कर लेना चाहिए कि सम्पत्तियों का उचित मूल्यांकन एवं प्रकटीकरण संस्था के वित्तीय विवरणों में सामान्य स्वीकृत लेखाकनं सिद्धान्त (Generally Accepted Accounting Principles) व वैधानिक आवश्यकता (Statutory Requirement) के अनुसार किया गया है।

सत्यापन का महत्व

(IMPORTANCE OF VERIFICATION)

लंकास्टर के शब्दों में, “किसी सम्पत्ति के प्राप्त करने का सन्तोषजनक प्रमाणन उसके निरन्तर अस्तित्व के सत्यापन करने की दशा में पहला कदम है किन्तु यह उसके वर्तमान अस्तित्व का निश्चयात्मक साक्ष्य नहीं है।” हां, इस कमी को सत्यापन के माध्यम से दूर किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि प्रमाणन की कमियों को सत्यापन के माध्यम से दूर किया जा सकता है। संक्षेप में, सत्यापन के महत्व निम्नलिखित हैं :

(i) सम्पत्तियों व दायित्वों के मूल्यांकन में सत्यापन आधार होता है।

(ii) सत्यापन के माध्यम से सम्पत्तियों की विद्यमानता की जानकारी होती है।

(iii) सत्यापन के माध्यम से सम्पत्तियों के दुरुपयोग की जानकारी होती है।

(iv) सम्पत्तियों के अधिमूल्यन व अवमूल्यन की जानकारी सत्यापन से होती है।

(v) सत्यापन के माध्यम से संस्था के प्रति विनियोजकों में विश्वास जगाया जा सकता है।

(vi) इससे संस्था के चालू कार्यों के विकास की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

(vii) सत्यापन से सम्पत्तियों के प्रभार की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

(viii) सत्यापन से इस बात की जानकारी हो पाती है कि संस्था के कितने ऋण सुरक्षित हैं तथा कितने असुरक्षित।

(ix) सत्यापन से यह पता चल जाता है कि कौन-सी सम्पत्ति पर संस्था का स्वामित्व है तथा किस पर नहीं है, साथ ही कौन-सी सम्पत्ति पट्टे पर ली गयी है।

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सम्पत्तियों का वर्गीकरण

(CLASSIFICATION OF ASSETS)

साधारणतया सम्पत्तियों को निम्न पांच भागों में बांटा जा सकता है :

(1) अचल या स्थायी सम्पत्ति; (2) चल या अस्थायी सम्पत्ति; (3) क्षयी सम्पत्ति; (4) अदृश्य सम्पत्तियां; (5) बनावटी सम्पत्तियां।

(1) अचल या स्थायी सम्पत्ति (Fixed Assets)-जिन सम्पत्तियों का व्यापार में उत्पादन कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है तथा जिनको बार-बार नहीं बेचा जाता है, वे स्थायी सम्पत्तियां कहलाती हैं। व्यापार में इनका प्रयोग लाभ कमाने के लिए होता है। इसकी उपयोगिता इनके बिल्कुल बेकार होने तक बराबर बनी रहती है। भूमि (land), भवन (building), प्लाण्ट (plant), मशीन (machinery) तथा फर्नीचर (furniture) इन सम्पत्तियों के उदाहरण हैं।

इन सम्पत्तियों में भूमि (land) एक ऐसी सम्पत्ति है जो कभी नष्ट नहीं होती इसलिए भूमि का मूल्यांकन लागत-मूल्य पर किया जाता है। अन्य सम्पत्तियां समय के बीतने के साथ-साथ नष्ट होती हैं और घिसने वाली होती हैं. इसलिए उनको उनके जीवनकाल में ही अपलिखित करके समाप्त कर देना चाहिए। इसी कारण इनका मूल्यांकन उपयोगिता मूल्य (Going-concern Value or Conventional Value or Token Value) के आधार पर किया जाता है। उपयोगिता-मूल्य लागत-मूल्य से अनुमानित ह्रास घटाकर निकाला जाता है।

देनदार प्राप्य बिल आदि का मूल्यांकन पुस्तकांकित मूल्य (book value) के आधार पर किया जाता। के और अप्राप्य ऋण के लिए आवश्यक नियोजन कर लिया जाता है। कच्चा माल तथा अर्द्ध निर्मित माल का लागत-मूल्य पर किया जाता है। माल का मूल्यांकन लागत मूल्य या बाजारमूल्य में जो कम हो, उस पर किया जाता है (At cost or market price whichever is less)

(2) अस्थायी या चल सम्पत्ति (Floating or Current or Circulating Assets) ऐसी सम्पत्तियाँ जो पुनः बिक्री (resale) के लिए प्राप्त की जाती हैं अथवा उत्पादन के द्वारा रूपान्तर करके विक्रय-योग्य बनायी जाती हैं, अस्थायी स्वभाव की सम्पत्तियाँ कही जाती है। शेष माल (closing stock), कच्चा माल (raw materials), अर्द्ध-निर्मित सामान (semi-manufactured goods), देनदार (book debts), प्राप्य बिल (bills receivable), रोकड़ (cash), प्रतिभूतियां (securities), आदि इन सम्पत्तियों के उदाहरण हैं।

(3) क्षयी सम्पत्ति (Wasting Assets) क्षयी सम्पत्तियां स्थायी स्वभाव की होती हैं परन्तु धीरे-धीरे क्षीण हो जाती हैं। धातुओं की खाने, मिट्टी के तेल के कुएं, इत्यादि इन सम्पत्तियों के उदाहरण हैं। स्थायी सम्पत्तियों के मूल्य में समय के व्यतीत होने के साथ-साथ कमी होती जाती है लेकिन क्षयी सम्पत्तियों में व्यवसाय कार्य के साथ-साथ क्षीणता आती रहती है।

इन सम्पत्तियों को चिट्ठे में उनके वास्तविक मूल्य (original cost) पर दिखाया जाता है और अनुमानित क्षय के लिए आवश्यक रकम घटा दी जाती है। व्यवहार में इन सम्पत्तियों को चिट्ठे में वास्तविक मूल्य पर लिखकर इन्हें पुनर्स्थापित करने का प्रबन्ध सामान्य संचय (General Reserve) से कर दिया जाता है।

(4) अदृश्य सम्पत्तियां (Intangible Assets) इन सम्पत्तियों का कोई स्वरूप नहीं होता है। अतः ये प्रत्यक्ष रूप से दिखायी नहीं देती हैं। फिर भी इनका मूल्य अवश्य होता है तथा व्यापारिक संस्था के लिए उतनी ही उपयोगी होती हैं जैसी कि अन्य सम्पत्तियाँ। ख्याति (Goodwill), एकस्व (Patents), कृतिस्वाम्य (Copyrights), व्यापार चिह्न (Trade Marks), आदि इन सम्पत्तियों के उदाहरण हैं। मूल्यांकन की दृष्टि से अदृश्य सम्पत्तियों को स्थायी सम्पत्तियों की भांति समझा जाता है।

(5) बनावटी सम्पत्तियां (Fictitious Assets)—ये स्वभाव से ही भिन्न प्रकार की सम्पत्तियां होती हैं। इन पर रुपया तो व्यय किया जाता है परन्तु प्रत्यक्ष रूप से दिखायी नहीं पड़ती। वास्तव में ये डेबिट शेष हैं जो पूंजीगत व्यय से प्रकट होते हैं। इस प्रकार ये वास्तव में सम्पत्तियां नहीं हैं, पूंजीगत हानि या व्यय हैं, जो प्रत्येक व्यापारिक संस्था में किसी-न-किसी रूप में मिलते हैं। किसी कम्पनी के प्रारम्भिक व्यय (preliminary expenses), विकास व्यय (development expenses), ऋणपत्र अपहार तथा निर्गमन व्यय (debenture discount and issue expenses), आदि इनके उदाहरण हैं।

इस प्रकार के व्यय विशेष प्रकार के व्यय होते हैं और इन्हें वर्ष के साधारण आयगत व्ययों की भाँति नहीं समझना चाहिए। व्यवहार में, इनमें से कुछ राशि लाभ-हानि खाते में ले जायी जाती है और शेष उस वर्ष में चिढ़े में सम्पत्ति की ओर ले जायी जाती है। ऐसा करते-करते कुछ वर्षों के पश्चात सम्पूर्ण राशि अपलिखित कर दी जाती है।

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मूल्यांकन

(VALUATION)

मूल्यांकन सत्यापन का ही एक आवश्यक अंग है। जब अंकेक्षक किसी सम्पत्ति के विषय में सन्तुष्ट हो जाता है कि वह संस्था के अधिकार में है और उस पर किसी प्रकार का प्रभार नहीं है, तो उसे यह ज्ञात करना चाहिए कि उसका मूल्यांकन ठीक किया गया है। यह मूल्यांकन सत्यापन से अलग समझा जाता है तो वह बड़ी भारी भल है, क्योंकि सत्यापन में मूल्यांकन सम्मिलित है। किसी संस्था का चिटठा तब तक सत्य. पूर्ण और नियमानुकूल नहीं माना जा सकता जब तक कि उसमें दिखायी गयी सम्पत्तियां ठीक मूल्य पर न लिखी गयी हों। मल्यांकन सम्पत्तियों के मूल्य की जांच करना है, जबकि सम्पत्तियों के अधिकार प्रभार एवं मूल्य के सम्बन्ध में की गयी जांच सूक्ष्म जांच है।

मूल्यांकन का अर्थ संस्था के लिए सम्पत्तियों की वास्तविक उपयोगिता मालम करना है। साधारणतया कीमत मे से ह्रास (depreciation) घटाने के पश्चात् मूल्यांकन किया जाता है। यदि ह्रास की रकम असली रकम से अधिक दिखायी जाती है और इस प्रकार सम्पत्ति का मल्यांकन उसकी वास्तविक उपयोगिता से कम मूल्य पर किया जाता है तो आर्थिक चिट्ठा संस्था की सही आर्थिक स्थिति को प्रकट नहा कर सकता है। इस प्रकार लाभ की रकम कम दिखायी जाएगी जिसके फलस्वरूप अंशधारियों को लाभाश भ कम मिलेगा। दूसरी ओर यदि ह्रास की रकम वास्तविक रकम से कम दिखायी जाएगी तो चिट्ठ के अस्तय  होने के साथ-साथ लाभ-हानि खाता ‘अधिक लाभ’ (inflation of profits) की स्थिति प्रकट करेगा और लाभांश पूंजी में से दिया जाएगा।

सम्पत्तियों व दायित्वों के मूल्यांकन की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने दी हैं जो निम्न प्रकार हैं:

1 लंकास्टर के शब्दों में, “सम्पत्तियों के उपयोगिता काल में उनके प्रारम्भिक मूल्यों को समान रूप से वितरित करने को मूल्यांकन कहते हैं।”

2. जे. आर. बाटलीबॉय के शब्दों में, “सम्पत्ति के सही मूल्य का अर्थ यह कदापि नहीं है कि यदि सम्पत्ति बिक्री के लिए रखी जाए तो उसका क्या मूल्य मिलेगा। कम्पना का आयिक पिला यह बतानक लिए नहा होता कि सम्पत्तियों को बेचकर प्राप्त राशि में से दायित्वों का भुगतान करने के बाद जो राशि बचती है, वह पूंजी का वास्तविक मल्य है बल्कि उसका उद्देश्य तो यह बताना होता है कि प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अन्त में संस्था की पंजी का विनियोग किस प्रकार है।”

विभिन्न सम्पत्तियों का मूल्यांकन करते समय निम्नांकित मूल्य प्रयोग किए जाते हैं  ।

(1) लागत मूल्य (Cost-Price) किसी सम्पत्ति के खरीदने में जो कुछ व्यय होता है, वही उसका लागत-मूल्य होता है। स्थायी सम्पत्तियों के लागत-मूल्य में प्रायः वे खर्चे भी शामिल होते हैं जो उनकी खरीद तथा उनके चालू हालत में करने में किए जाते हैं।

(2) प्रतिस्थापन मूल्य (Replacement Value)—वह लागत मूल्य है, जो किसी सम्पत्ति के स्थान पर नयी सम्पत्ति के स्थापित करने में लगता है। ऐसे मूल्य में खरीद से सम्बन्धित सभी व्यय, जैसे-कमीशन, भाड़ा, आदि सम्मिलित किए जाते हैं।

(3) बाजार मूल्य (Market Price)—किसी वस्तु या सम्पत्ति का वह मूल्य जो मूल्यांकन के दिन बाजार में प्रचलित होता है, बाजार मूल्य कहलाता है। यह मान लिया जाता है कि वह बाजार में बिकने योग्य है।

(4) पुस्तक मूल्य (Book Value)—वह मूल्य जिस पर सम्पत्ति पुस्तकों में लिखी होती है, पुस्तक मूल्य होता है।

(5) प्राप्य मूल्य (Realisable Value) सम्पत्ति का वह मूल्य जो उस समय उसके बाजार में बेचने में प्राप्त हो सकता है, प्राप्य मूल्य होता है। इसमें कमीशन, दलाली अथवा अन्य व्यय घटा दिए जाते हैं। साधारणतया काम में आने वाली सम्पत्तियों (existing assets) के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।

(6) उपयोगिता मूल्य (Going-concern Value or Value to the Business as a Going-concen)–उपयोगिता मूल्य किसी संस्था के सम्पत्ति की उपयोगिता के आधार पर निश्चित किया जाता है। किसी सम्पत्ति का उपयोगिता मूल्य उसके लागत मूल्य में से ह्रास घटाने के पश्चात् निकाला जा सकता है। इसको रीतिगत (conventional) या टॉकिन (Token) अथवा ऐतिहासिक (Historical) मूल्य भी कहते हैं।

(7) अवशिष्ट मूल्य (Break-up Value or Scrap Value) जो मूल्य किसी अनुपयोगी सम्पत्ति (unserviceable assets) के बेचने से प्राप्त होता है, अवशिष्ट मूल्य होता है।

यह प्रायः सुनिश्चित है कि मूल्यांकन का उद्देश्य चिटठे के द्वारा संस्था की ठीक-ठीक तथा सही स्थिति प्रकट करना है। सम्पत्ति का मूल्यांकन किस सीमा तक ठीक है यह सम्पत्ति के स्वभाव. उसके आकार तथा प्रयोग पर निर्भर होता है। इस सम्बन्ध में निश्चित आधार तथा स्पष्ट नियमों का उल्लेख करना बड़ी भारी भूल। होगी।

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मूल्यांकन के उद्देश्य

(OBJECTS OF VALUATION)

सम्पत्तियों एवं दायित्वों के मूल्यांकन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :

(1) आर्थिक स्थिति का विश्लेषण (Analysis of Financial Position) सम्पत्तियों एवं दायित्वों के मूल्याकन से इनके वास्तविक मूल्य की जानकारी प्राप्त होती है। इन मूल्यों को आर्थिक चिटठे में प्रदर्शित नि जाने के कारण संस्था की आर्थिक स्थिति का ज्ञान हो जाता है।

(2) सम्पत्तियों के मल्यों में अन्तर के कारणों का ज्ञान  between Value of Assets) मूल्यांकन के द्वारा सम्मान ने मूल्यों में अन्तर के कारणों का ज्ञान (Knowledge of reasons for difference Assets) मूल्याकन के द्वारा सम्पत्तियों को वास्तविक मूल्य व पुस्तक मुल्य में दिखाए।

गए मल्यों में अन्तर के कारणों का ज्ञान हो जाता है। इन अन्तरों के कारणों को ज्ञात कर उनका अध्ययन करना अंकेक्षक का मुख्य उद्देश्य है। इन कारणों को यदि रोका जा सकता है तो उसके आवश्यक सुझाव भी अंकेक्षक प्रबन्ध को दे सकता है।

(3) पूंजी के विनियोग की सूचना (Knowledge of Investment of Capital) संस्था द्वारा पूंजी के प्रयोग की जानकारी मूल्यांकन से पता लग जाती है। संस्था अपनी पूंजी का प्रयोग विभिन्न प्रकार की स्थायी सम्पत्ति में करते हैं जिनके मूल्यांकन से यह सूचना प्राप्त हो जाती है कि संस्था ने किन-किन सम्पत्तियों में कितना विनियोग किया है।

(4) अंकेक्षक रिपोर्ट में सहायक (Helpful in Auditor’s Report)-अंकेक्षक को अंकेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है जिसमें उसे इस बात का सत्यापन करना पड़ता है कि व्यवसाय की सम्पत्तियां एवं दायित्व संस्था की सही वित्तीय स्थिति को प्रस्तुत करते हैं। इस तथ्य की पुष्टि वह सम्पत्तियों एवं दायित्वों का मुल्यांकन करके करता है।

मूल्यांकन का महत्व

(SIGNIFICANCE OF VALUATION)

अंकेक्षक को अपने द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले प्रतिवेदन में यह सत्यापित करना होता है कि आर्थिक चिठे में दर्शायी गयी सम्पत्तियां एवं दायित्व व्यवसाय की सही आर्थिक स्थिति को दर्शाते हैं। इस तथ्य को अंकेक्षक मूल्यांकन द्वारा ही प्रमाणित करता है अर्थात् यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि “मूल्यांकन, सत्यापन का आधार है।” यदि सम्पत्तियों एवं दायित्वों का सही मूल्यांकन नहीं किया जाता है तो इस व्यवसाय का लाभ-हानि खाता व चिट्ठा दोनों ही प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। सम्पत्तियों के अधिमूल्यांकन (over-valuation) से संस्था के लाभ में वृद्धि हो जाती है और इस स्थिति में अंशधारियों को बांटा गया लाभांश वास्तविक लाभांश से अधिक बंट जाता है। इसका प्रभाव यह होता है कि लाभांश के रूप में बांटा गया लाभ पूंजी में कमी कर देता है अर्थात् लाभ पूंजी में से बंट जाता है।

इसके विपरीत यदि सम्पत्तियों का मूल्यांकन कम किया गया है तो लाभ की मात्रा कम हो जाती है। इससे अंशधारियों को लाभ कम प्राप्त होगा और साथ ही साथ गुप्त संचय की सम्भावना बढ़ जाती है जिसका प्रयोग प्रबन्धकों द्वारा निजी हितों के लिए किया जा सकता है। इसी प्रकार के प्रभाव दायित्वों के अधिक व कम मूल्यांकन के कारण भी हो सकते हैं। अतः सम्पत्तियों एवं दायित्वों के सही मूल्यांकन के द्वारा ही अंकेक्षक संस्था में हित रखने वाले विभिन्न पक्षकारों के हितों की रक्षा कर सकता है। अंकेक्षक स्वयं मूल्यांकक नहीं होता बल्कि वह सम्पत्तियों एवं दायित्वों के सही मूल्यांकन के लिए विशेषज्ञों की राय व उनके महत्वपूर्ण सुझाव अपनी निर्णयन प्रक्रिया में शामिल कर सकता है।

अंकेक्षक मल्यांकक नहीं है, फिर भी सम्पत्तियों दायित्वों के उचित मूल्यांकन से उसका घनिष्ठ सम्बन्ध है।

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__इस कथन के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि अंकेक्षक मूल्यांकक नहीं है, क्योंकि वह समस्त सम्पत्तियों के तकनीकी ज्ञान से अनभिज्ञ होता है। इस कारण वह सम्पत्ति का सही-सही मूल्यांकन करने में असमर्थ होता है। मल्यांकन का कार्य संरचना के प्रबन्धक या उनके द्वारा नियुक्त किए गए विशेष विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। अंकेक्षक का कर्तव्य यह है कि वह इस बात की जांच करे कि प्रबन्धकों एवं विशेषज्ञों द्वारा सम्पत्तियों एवं दायित्वों के मूल्यांकन के लिए बनाए गए नियमों एवं अधिनियमों का पूर्णतया पालन किया गया है। इस सम्बन्ध में डी. पौला के विचार बिल्कुल सार्थक हैं जहां उन्होंने कहा है:

“यह बात ध्यान रखने योग्य है कि वास्तविक मूल्यांकन व्यापार के स्वामियों या ऐसे अधिकारियों द्वारा किया जाता है जिन्हें सम्पत्तियों के सम्बन्ध में व्यावहारिक ज्ञान होता है और अंकेक्षक का कर्तव्य मूल्यांकन की जांच करना है और जहां तक सम्भव हो अपने को इस बात से सन्तुष्ट करना कि चिठे द्वारा दशायी गयी स्थिति सही प्रतीत होती है, किन्तु वह किसी भी दशा में मूल्यांकन की सत्यता एवं शुद्धता की गारण्टी नहीं दे सकता है।

अंकेक्षक मूल्यांकनकर्ता नहीं है, परन्त चिटठे में दिखायी गयी विभिन्न सम्पत्तियों व दायित्वों का सही ढंग से मूल्यांकन किया गया है, यह देखना उसके लिए नितान्त आवश्यक है। अंकेक्षक को सम्पत्तियों का मूल्यांकन करने का न तो दायित्व एवं आवश्यक ज्ञान होता है और न इस सम्बन्ध में उसे अनुभव ही होता है, फिर भी वह इन मदों के मूल्यांकन के लिए उत्तरदायी होता है। अंकेक्षक को मूल्यांकन के सम्बन्ध में केवल यह देखना होता है कि मूल्यांकन का कार्य सिद्धान्तों का अनुपालन करके किया गया है।

___ संस्था की सम्पत्तियों का मूल्यांकन मख्य रूप से प्रबन्धकों द्वारा किया जाना चाहिए और अंकेक्षक को। अपन ज्ञान एवं कुशलता का प्रयोग इन मूल्यांकनों की जांच में करना चाहिए। उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इनके मूल्यांकन में सम्बन्धित सिद्धान्तों को ध्यान में रखा गया है या नहीं। यदि अंकेक्षक मूल्यांकन कार्य से सन्तुष्ट नहीं हो पा रहा हो तो इस सम्बन्ध में विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए। मूल्यांकन के कार्य की जांच करते समय अंकेक्षक को निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

1 अंकेक्षक मूल्यांकक नहीं है (Auditor is not Valuer) —अंकेक्षक मूल्यांकन करने वाला कोई विशेषज्ञ नहीं होता है। व्यवसाय की सम्पत्तियों व दायित्वों के मूल्यांकन का दायित्व व्यवसाय के प्रबन्धकों का होता है। अंकेक्षक प्रबन्धकों या विशेषज्ञों द्वारा किए गए मूल्यांकन की सत्यता, वास्तविकता एवं नियमानुकूलता की जांच करता है। इस क्रम में सन्देह उत्पन्न होने पर वह मूल्यांकन प्रक्रिया की भी जांच करता है।

लंकास्टर के शब्दों में, “अंकेक्षक मूल्यांकनकर्ता नहीं है और न इससे ऐसा करने की आशा की जा सकती है। वह केवल इतना ही कर सकता है कि असली लागत मूल्य का सत्यापन करे और जहां तक सम्भव हो, यह भी ज्ञात करे कि क्या चालू मूल्य उचित एवं न्यायसंगत है तथा मान्य व्यापारिक रीतियों के अनुसार निकाला गया है।”

2. मूल्यांकन के नियमों की जांच (Verification of Principles of Valuation)-अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि सम्पत्तियों व दायित्वों के मूल्यांकन के सम्बन्ध में नियमों व अधिनियमों को ध्यान में रखा गया है या नहीं। इन नियमों व अधिनियमों के अनुपालन में बार-बार परिवर्तन नहीं होना चाहिए। अंकेक्षक मूल्यांकन के नियमों की जांच करके मूल्य की सत्यता एवं औचित्य को स्पष्ट कर सकता है।

3. तकनीकी विशेषज्ञों से सूचनाएं लेना (Informations from Technical Persons)-सम्पत्तियों के मूल्यांकन की जांच करते समय यदि कोई तकनीकी समस्या सामने आ जाए तो अंकेक्षक को चाहिए कि इस सम्बन्ध में वह तकनीकी विशेषज्ञों से परामर्श कर ले। आवश्यकतानुसार वह उनसे इस सम्बन्ध में प्रमाण-पत्र भी ले सकता है।

4. मूल्यांकन के औचित्य की जांच (Examination of Fairness of Valuation)—अंकेक्षक मूल्यांकक नहीं है किन्तु मूल्यांकन से उसका घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। यह मान्य है कि मूल्यांकन का कार्य प्रबन्धकों व विशेषज्ञों का होता है, अंकेक्षक का नहीं। हां, अंकेक्षक इस बात का प्रमाण-पत्र देता है कि मूल्यांकन का। कार्य सही ढंग से हुआ है या नहीं। उसे पूरी तरह आश्वस्त हो जाने के बाद ही अपना प्रतिवेदन देना चाहिए। दूसरे शब्दों में, मूल्यांकन के औचित्य की जांच करना अंकेक्षक का दायित्व होता है।

5. मूल्यांकन के सम्बन्ध में न्यायाधीशों के निर्णयों को देखना (To See the Decisions of the Judges regarding Valuation)—मूल्यांकन की जांच करते समय अंकेक्षक जिस सम्पत्ति के मूल्यांकन की जांच कर रहा है, उसके सम्बन्ध में यदि न्यायालय द्वारा कोई निर्णय दिया गया हो तो इस बात की जांच अवश्य। करनी चाहिए कि क्या सम्बन्धित सम्पत्ति की दशा में उस निर्णय का उल्लंघन तो नहीं हो रहा है।

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सत्यापन एवं प्रमाणन में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN VERIFICATION AND VOUCHING)

सत्यापन एवं प्रमाणन दोनों ही वित्तीय विवरणों में वर्णित सम्पत्तियों के विद्यमानता के लिए लेखा पसकों एवं प्रलेखों की जाच से सम्बन्धित है। इसके बावजूद भी इन दोनों में अग्र आधार पर अन्तर किया। जा सकता है:

 (1) अर्थ एवं क्षेत्र (Meaning and Scope) सम्पत्तियों का प्रमाणन लेखा पुस्तकों में विद्यमान लेखा की सम्बन्धित प्रलेखों से जांच करने की प्रक्रिया है। इसके विपरीत सत्यापन सम्पत्तियों की विद्यमानता की। जांच सम्बन्धित प्रलेखों से है। इसके साथ ही साथ सम्पत्तियों के सम्बन्ध में विशेषज्ञों की राय सम्पत्तियों के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में (जैसे—विद्यमानता, स्वामित्व, अधिकार आदि) लेना है। इस प्रकार सत्यापन का क्षेत्र विस्तृत है एवं प्रमाणन के पश्चात् ही सत्यापन क्रिया प्रारम्भ की जाती है।।

(2) उद्देश्य (Object)—प्रमाणन का उद्देश्य लेखा पस्तकों में की गयी प्रविष्टियों की वैधता, अधिकार एवं व्यवहार की आवश्यकता की जांच करना है। सत्यापन का उद्देश्य अंकेक्षक द्वारा सम्पत्ति की विद्यमानता, स्वामित्व व अधिकार की जांच करना है व दायित्वों के सम्बन्ध में उनकी पूर्णता (completeness) की जांच करना है। इसके साथ ही साथ सम्पत्ति का मूल्यांकन एवं उनका प्रकटीकरण भी शामिल है।

(3) ज्ञान का स्तर (Level of Expertise)—प्रमाणन सामान्यतया कनिष्ठ क्लर्कों के द्वारा सम्पन्न कराया जाता है जिन्हें लेखांकन सिद्धान्तों का पर्याप्त ज्ञान होता है। सत्यापन वरिष्ठ क्लर्कों के द्वारा कराया जाता है जिन्हें न केवल लेखांकन की पर्याप्त ज्ञानता होती है अपित वैधानिक नियमों व अंकेक्षण कार्यविधि का भी पूर्ण ज्ञान होना है।

(4) समय (Time) सत्यापन का कार्य वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर लेखा पुस्तकें बन्द करने पर किया जाता है व प्रमाणन का कार्य वर्ष में कभी भी सम्पन्न किया जा सकता है।

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सत्यापन एवं मूल्यांकन में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN VERIFICATION AND VALUATION)

सत्यापन और मूल्यांकन दोनों ही व्यवसाय की वित्तीय स्थिति की सही जानकारी एवं व्यावसायिक परिणामों को जानने के लिए अति आवश्यक हैं। इन दोनों में निम्न आधारों पर अन्तर किया जा सकता है:

(1) क्षेत्र (Scope)—मूल्यांकन, सत्यता का एक भाग है। सत्यापन में सम्पत्ति की विद्यमानता, स्वामित्व, अधिकार, उचित मूल्यांकन व पर्याप्त प्रकटीकरण शामिल हैं। इसके विपरीत मूल्यांकन में चिट्टे में दर्शायी गयी सम्पत्ति के मूल्य की वैधता की जांच है।

(2) उद्देश्य (Object)-सत्यापन का उद्देश्य अंकेक्षक को अपने आपको सम्पत्ति की विद्यमानता. स्वामित्व, अधिकार व मूल्यांकन से सन्तुष्ट करना है, जबकि संस्था के प्रबन्ध द्वारा सम्पत्तियों के मूल्यांकन का उद्देश्य यह देखना है कि सम्पत्ति का मूल्य सामान्य स्वीकृत लेखांकन सिद्धान्तों के अनुसार किया गया है अथवा नहीं।

(3) उत्तरदायित्व (Responsibility)-अंकेक्षक का कर्तव्य सम्पत्तियों की जांच करना है और अनचित मूल्यांकन में लापरवाही कि लिए वह दोषी ठहराया जा सकता है। इसके विपरीत अंकेक्षक, मूल्यांकक नहीं हो सकता है। मल्यांकन का कार्य प्रबन्धकों का है और अंकेक्षक मूल्यांकन के सम्बन्ध में मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा जारी किए गए प्रमाण-पत्रों के ऊपर विश्वास कर सकता है।

(4) क्रम (Sequence) सम्पत्तियों के मूल्यांकन का कार्य पहले होता है, तत्पश्चात सत्यापन का कार्य किया जाता है।

(5) निर्भरता (Dependence) मूल्यांकन, सत्यापन पर निर्भर नहीं होता जबकि सत्यापन मूल्यांकन के बिना अधूरा है।

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अंकेक्षक के कर्तव्य

(DUTIES OF AUDITOR)

सम्पत्तियों एवं दायित्वों के मूल्यांकन के लिए अंकेक्षक को बड़ी सावधानी से कार्य करना चाहिए। सही मूल्यांकन न होने से लाभ-हानि खाता व चिट्ठा संस्था की ठीक स्थिति को नहीं दिखाते।

सम्पत्तियों एवं दायित्वों के मूल्यांकन के सम्बन्ध की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए निम्न बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं :

1 अंकेक्षक को इस बात का पता लगाना चाहिए कि सम्पत्तियों का मूल्यांकन लेखाकर्म के सामान्यतः । स्वीकत सिद्धान्तों तथा संस्था में प्रचलित प्रणालियों के अनुसार ही किया गया है।

2. सम्पत्तियों के मूल्यांकन की जांच करते समय यदि अंकेक्षक आवश्यक समझे तो वह तकनीकी । विशेषज्ञों से परामर्श कर सकता है।

3. अंकेक्षक को इस बात की पुष्टि करनी चाहिए कि संस्था में वर्ष-प्रति-वर्ष मूल्यांकन की एक ही विधि वा आधार को अपनाया गया है तथा उसमें कोई आमूल परिवर्तन नहीं किया गया है। एकरूपता के सिद्धान्त की अवहेलना होने पर अंकेक्षक को इसके लिए स्पष्टीकरण प्राप्त करना चाहिए।

4. अंकेक्षक आवश्यकतानुसार उत्तरदायी अधिकारियों से मूल्यांकन सम्बन्धी प्रमाण-पत्र अथवा गवाही प्राप्त कर सकता है।

5. मूल्यांकन की सत्यता एवं औचित्य के विषय में सन्देह होने पर अंकेक्षक को इस बात का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में अवश्य करना चाहिए।

6. कम्पनी के अन्तर्नियमों में मूल्यांकन के सम्बन्ध में यदि कोई विशेष व्यवस्था दी गई है तो अंकेक्षकको उस व्यवस्था के पालन की भी जांच करनी चाहिए।

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विभिन्न सम्पत्तियों का सत्यापन एवं मूल्यांकन

(VERIFICATION AND VALUATION OF VARIOUS ASSETS)

जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि अंकेक्षक को प्रत्येक सम्पत्ति के सत्यापन करने के लिए पांच बातों का ध्यान रखना होता है—चिट्ठे में सम्पत्ति का स्पष्ट विवरण. उचित अधिकार चिट्टे की तारीख के दिन विद्यमानता, प्रभार से मुक्त होना एवं उसका सही-सही मूल्यांकन। यहां इस क्रम के आधार पर प्रत्येक सम्पत्ति का सत्यापन करने का प्रयत्न किया गया है।

ख्याति

(GOODWILL)

लेखांकन प्रमाप-10 (Accounting Standard-10), स्थायी सम्पत्तियों का लेखांकन के अनुसार ख्याति का पस्तकों में लेखा तभी किया जाना चाहिए जब उसके बदले में कोई प्रतिफल मुद्रा या मुद्रा तुल्य रूप में अदा किया गया हो। AS-26 के अनुसार स्वयं सृजित (Self generated) ख्याति चाहे वह किसी भी कारण या कारणों से अर्जित की गयी हो, का पुस्तकों में लेखा नहीं किया जाना चाहिए अर्थात बिना प्रतिफल के कोई भी ख्याति का लेखा नहीं होना चाहिए।

इसी प्रकार जब किसी व्यवसाय का क्रय किसी प्रतिफल या मूल्य के बदले किया गया जो अर्जित की गयी शुद्ध सम्पत्ति के मूल्य से अधिक है, तो उस आधिक्य को ख्याति’ माना जाना चाहिए। लेखांकन प्रमाप-26 के अनुसार व्यवसाय के क्रय मूल्य में से ग्रहण की गयी शुद्ध सम्पत्तियों के उचित मूल्य को घटाने के पश्चात् प्राप्त राशि ‘ख्याति’ है।

सत्यापन व्यापार के क्रय की स्थिति में क्रयप्रसंविदा देखकर ख्याति खाते का सत्यापन करना चाहिए। अंकेक्षक ख्याति खाते की रकम को अपलिखित करने के लिए किसी प्रकार का दबाव संचालकों या साझेदारों पर नहीं डाल सकता। उसे कम्पनी के ख्याति खाते की जाँच के लिए अन्तर्नियम और संचालकों के प्रस्ताव व विक्रेता के अनुबन्ध (Vendor’s Agreement) देखने चाहिए।

ख्याति ऐसी सम्पत्ति है जिसका कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं होता है। अतः इस सम्पत्ति पर किसी प्रकार का प्रभार होने का प्रश्न ही नहीं उठता। _

मूल्यांकन ख्याति का मूल्यांकन लागत मूल्य पर किया जाता है। इस सम्पत्ति का अन्य स्थायी सम्पत्तियों की भांति हास नहीं होता है। इसका लागत मूल्य प्रारम्भिक मूल्य में से लाभ-हानि खाते में अपलिखित हुई रकम घटाकर निकाला जाता है। AS-14 (Accounting for Amalgamations) के अनुसार ख्याति का अपलेखन 5 वर्षों के अन्दर सामान्यतया हो जाना चाहिए।

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स्वकीय भूमि

(FREEHOLD LAND)

सत्यापनसबसे पहले अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि स्वकीय भूमि के अन्तर्गत किसी अन्य खाते को रकम तो सम्मिलित नहीं है। हो सकता है कि स्वकीय भूमि के खाते में पट्टे की भमि के खाते की रकम भी शामिल कर ली गयी हो। इसकी जांच खाताबही के खातों और चिट्ठे के मिलान से की जा सकती है।

अंकेक्षक भमि के अधिकार-प्रपत्र की वैधता को देखने के लिए सक्षम नहीं है, अतः सामान्यतया उसको कानूनी सलाहकारों से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। उसको यह देखना चाहिए कि इण्डियन रजिस्ट्रेशन ऐक्ट की धारा 17(1) के अन्तर्गत प्रपत्र की रजिस्ट्री की गयी है।

स्वकीय भूमि स्वयं मालिक की सम्पत्ति होती है। भूमि का मुख्य अधिकार प्रपत्र (Original Title Deed) और क्रय प्रपत्र देखना चाहिए और यह जांच करनी चाहिए कि अधिकार पत्र के अनुसार मालिक का अधिकार पूर्ण है और स्वयं का अधिकार-प्रपत्र भी शद्ध है। अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि इस सम्पत्ति में से कुछ बिक्री की गयी है तो अधिकृत अधिकारी की स्वीकति. विक्रय प्रपत्र की जांच करनी चाहिए। . यदि इस भूमि के या उसके किसी भाग को रहन पर रखकर कुछ ऋण लिया गया है, तो इसका

अधिकार-प्रपत्र ऋण देने वाले व्यक्ति या संस्था के अधिकार में होगा। ऐसी दशा में ऋणदाता से आवश्यक प्रमाण-पत्र प्राप्त करके सत्यापन करना चाहिए।

मूल्यांकन भूमि में किसी प्रकार का हास नहीं होता है। चिट्ठे में भूमि को हमेशा लागत मूल्य पर दिखाना चाहिए और वर्ष के बीच में की गयी वृद्धि की रकम को इसमें जोड़ देना चाहिए।

स्वकीय भवन

(FREEHOLD BUILDING)

सत्यापन—स्वकीय भवन के खातों को देखकर उनकी शुद्धता की जांच करनी चाहिए कि कहीं स्वकीय भूमि या अन्य ऐसे खातों की रकम इसमें हस्तान्तरित तो नहीं की गयी है। स्वकीय भूमि की लागत से उचित दर से ह्रास का प्रावधान किया गया है या नहीं, इसकी भी जांच की जानी चाहिए।

स्वकीय भूमि के सत्यापन की तरह स्वकीय भवन के सत्यापन के लिए अधिकार-प्रपत्र की सूक्ष्म जांच करनी चाहिए और वर्ष के बीच में जितने भवन बनाये गये हों उनके लेखों का प्रमाणन करना चाहिए। प्रमाणन के लिए ठेकेदार के साथ किये गये प्रसंविदे, ठेकेदार की रसीद, निर्माणकर्ता के प्रमाणपत्र और अन्य सम्बन्धित कागजों से सहायता लेनी चाहिए।

यदि भूमि की तरह भवन को भी रहन रख दिया गया हो तो उसी प्रकार ऋणदाता का प्रमाण-पत्र प्राप्त करके इसका सत्यापन करना चाहिए।

मूल्यांकन—(1) स्वकीय भवन का मूल्यांकन करने के लिए लागत मूल्य में से आवश्यक हास की रकम घटा देनी चाहिए। साधारणतया यदि इनके बाजार मूल्य में कोई उतार-चढ़ाव होता है तो इसके मूल्य में परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यदि कोई अन्य आधार अपनाया जाता है तो चिट्ठे में उनका स्पष्ट विवरण अवश्य देना चाहिए।

(2) यदि भवन का क्रय किया गया है तो लागत मूल्य में क्रय मूल्य, परिवर्तन व सुधार की लागत व कानूनी व्यय शामिल किए जाएंगे।

(3) यदि भवन का निर्माण कराया गया है तो ठेकेदार के बिल व आर्किटेक्ट के प्रमाण-पत्रों की जांच की जानी चाहिए।

(4) यदि भूमि व भवन की लागत का अलग से लेखा नहीं किया गया है तो इसका पृथक्-पृथक् लेखा करना आवश्यक है। इसके लिए मूल्यांकक की सहायता ली जानी चाहिए।

(5) यदि भवन के साथ फर्नीचर व फिक्सचर्स आदि जुड़े हैं तो उनकी लागत भवन की लागत से अलग की जानी चाहिए क्योंकि उन पर हास की दर अधिक होती है।

(6) भवन की मरम्मत पर हुए व्ययों की प्रकृति की जांच की जानी चाहिए कि वे पूंजीगत या आयगत। व्यय हैं। यदि आयगत व्यय हैं तो उनका लेखा अलग होना चाहिए।

पट्टे की सम्पत्ति

(LEASEHOLD PROPERTY)

सत्यापन जब एक संस्था कुछ वर्षों के लिए किसी सम्पत्ति को पट्टे पर प्राप्त करती है तो उसे पट्ट का सम्पत्ति कहते हैं। आवश्यक खातों को देखकर यह विश्वास कर लेना चाहिए कि इस सम्पत्ति की रकम म स्वकीय सम्पत्ति की रकम तो शामिल नहीं की गयी है।

पढ़े की सम्पत्ति की विद्यमानता के लिए पट्टे का प्रपत्र (lease deed) व रजिस्ट्रार के यहां उसके रजिस्ट्रेशन  का निरीक्षण करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि पट्टे की शर्तों का पूर्णतया पालन किया, गया है और विशषकर जमान क किराय (ground rent) का भगतान, बीमा, मरम्मत, आदि से सम्बन्धित। शतों का भली प्रकार पालन किया गया है, क्योंकि ऐसा न करने से पट्टा रद्द हो जाता है।

पट्टे की सम्पत्ति किसी प्रभार के रूप में नहीं हो सकती है परन्तु अन्य संस्था को किराये पर दी गयी है। तो आवश्यक समझौते की जांच करनी चाहिए।

मूल्यांकन स्वकीय भूमि में ह्रास नहीं होता परन्तु पट्टे की सम्पत्ति में जिसमें भूमि भी शामिल है, ह्रास होता है और हास की रकम पट्टे की अवधि के अनुसार निर्धारित की जाती है। इसका मूल्यांकन लागत मूल्य पर हास घटाने के पश्चात् करना चाहिए। यदि संस्था को किसी शर्त (dilapidation clause) के अनुसार पट्टे की अवधि समाप्त होने पर सम्पत्ति के जीर्ण होने के लिए कुछ रकम देनी हो, तो इसके लिए उचित आयोजन अवश्य कर लेना चाहिए।

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प्लाण्ट तथा मशीन

(PLANT AND MACHINERY)

अधिकतर संस्थाओं में प्लाण्ट तथा मशीन के प्राप्त करने में खर्च की गयी रकम एक ही खाते में लिखी जाती है। अंकेक्षक को खाताबही के खातों का चिट्टे से मिलान करना चाहिए और यह विश्वास करना चाहिए कि इस स्वभाव की सभी सम्पत्तियां प्लाण्ट और मशीनरी खाते में लिखी गयी हैं। इस सम्पत्ति का सत्यापन करने के लिए प्रमाणन की प्रणाली का ही आश्रय लेना होता है।

अंकेक्षक को प्लाण्ट रजिस्टर (Plant Register) की जांच करनी चाहिए जिससे प्रत्येक क्रय की गयी मशीन की लागत या प्रारम्भिक शेष बिक्री के सम्बन्ध में उचित लेखे तथा ह्रास आदि के लिए पूर्ण विवरण मिल सकता है। अच्छा यह हो कि चिट्ठे की तारीख के दिन प्लाण्ट रजिस्टर में से सूची तैयार करवा ली जाय जिसमें प्रत्येक मशीन का विवरण उसकी लागत, ह्रास का आयोजन तथा ह्रास के लिए किया गया पूर्वोपाय इत्यादि सभी बातों का उल्लेख होना चाहिए। अंकेक्षक को इस सूची के लेखों की प्लाण्ट रजिस्टर से जांच करनी चाहिए। यदि वर्ष के बीच में प्लाण्ट तथा मशीन का क्रय किया गया हो तो उचित प्रमाण-पत्र एवं अधिकार-प्रपत्रों से इस क्रय की जांच करनी चाहिए। यदि सम्पत्ति के किसी भाग को बेच दिया गया हो तो बेचने के अधिकार की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि आवश्यक लेखे कर दिये गये हैं या नहीं। बिक्री से होने वाले लाभ या हानि का ठीक लेखा हो जाना चाहिए। यदि विदेश में इस सम्पत्ति का प्रयोग किया जा रहा हो तो स्थानीय इन्जीनियर का प्रमाण-पत्र प्राप्त करके सत्यापन करना चाहिए। अंकेक्षक को यथासम्भव निजी निरीक्षण के द्वारा सम्पत्ति की विद्यमानता का पता लगाना चाहिए।

किसी प्रकार के प्रभार की जांच करने के लिए प्लाण्ट रजिस्टर से सहायता लेनी चाहिए।

मूल्यांकन—प्लाण्ट तथा मशीन का मूल्यांकन उपयोगिता मूल्य के आधार पर किया जाता है। सबसे पहले इसे चिढ़े में लागत मूल्य पर लिखा जाता है और लागत मूल्य में वे व्यय, जो इसके विस्तार (addition) या प्रतिस्थापन (substitution) में किये जाते हैं, जोड़ दिये जाते हैं। प्रति वर्ष ह्रास की अनमानित रकम घटा दी जाती है और मरम्मत तथा नवीनीकरण (repairs and renewal) का व्यय लाभ-हानि खाते में लिखा जाता है।

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फर्नीचर , फिक्सचर्स तथा फिटिंग्स

(FURNITURE, FIXTURES AND FITTINGS)

सत्यापन फर्नीचर फिक्स्चर्स तथा फिटिंग्स का अन्तर व्यावहारिकता के आधार पर इस प्रकार किया जा सकता है कि फर्नीचर वह सम्पत्ति है जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जायी जा सकती है, जैसेकुर्सी, मेज, चौकी, आदि। यह सुविधापूर्वक ले जाने योग्य (movable) सम्पत्ति होती है। फिक्स्च र्स वह सम्पत्ति है जो जमीन में मजबूती से गढ़ी हुई होती है। उदाहरण के लिए. विज्ञान की कक्षाओं के कमरों में फर्नीचर जमीन में गाढ़ कर रखा जाता है। यह हिल-डुल नहीं सकता है, साधारणतया यही फिक्स्च र्स का स्वरूप है, फिटिंग्स दीवारों पर किया जाता है। ऊपरी स्थानों पर फिट किया हुआ सामान फिटिंग होता है, जैसे—बिजली के तार, पंखों आदि की फिटिंग।

फनीचर इत्यादि सम्पत्तियों का सत्यापन प्रायः उसी प्रकार किया जाता है, जिस प्रकार प्लाण्ट तथा मशीन का। कुछ संस्थाएं फर्नीचर आदि का लेखा करने के लिए अलग रजिस्टर रखती हैं और कुछ केवल अधिक मूल्यवान वस्तुओं का लेखा रखती हैं। जैसा भी हो. देखना यह है कि चिट्ठे की तारीख के दिन फर्नीचर के रजिस्टर में वही बाकियां थीं जो चिट्रे में दिखाई गयी हैं। यदि फर्नीचर पट्टे (lease) पर प्राप्त किया गया हो तो यह देखना होता है कि पट्टे के समझौते की सब शर्तों का पूर्णतया पालन किया जा रहा है।

मूल्यांकन सम्पत्ति के मूल्यांकन के लिए अंकेक्षक को विशेष सावधानी से कार्य करना चाहिए। इसमें विभिन्न प्रकार की वस्तुएं सम्मिलित होती हैं जिनमें से कुर्सी, मेज, अलमारी, इत्यादि फर्नीचर कहलाती हैं तथा बिजली के तार, पुस्तक रखने के लिए दीवार में गढ़े हुए तख्ते, आदि फिटिंग कहे जाते हैं। अन्तर दोनों में यह है कि पहली श्रेणी की वस्तुएं एक स्थान से दूसरे स्थान को हटायी जा सकती हैं और वे एक ही स्थान पर स्थिर होती हैं। इस आधार पर ह्रास का आयोजन करना चाहिए। ध्यान रहे कि लागत मूल्य में से इतनी ह्रास की रकम घटानी चाहिए जिससे सम्पत्ति की आयु के अन्त तक उसे अपलिखित किया जा सके।

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एकस्व

(PATENTS

जब कोई व्यक्ति किसी नयी वस्तु के निर्माण करने के सम्बन्ध में आविष्कार करता है तो उसकी सरकार से रजिस्ट्री कराने पर आविष्कार की गयी वस्तु के बेचने का एकाधिकार प्राप्त किया जाता है जो कुछ निर्धारित वर्षों के लिए होता है। इसे बेचने के अधिकार का प्रयोग वह स्वयं कर सकता है अथवा किसी अन्य को दे सकता है, यही अधिकार एकस्व होता है।

सत्यापन सबसे पहले अंकेक्षक को एकस्व खातों की गहन जांच करनी चाहिए। जितने एकस्व प्राप्त किये गये हैं, उनका स्पष्ट विवरण चिट्ठे में अवश्य होना चाहिए।

एकस्व की विद्यमानता, स्वामित्व व अधिकार की जांच के लिए एकस्व का निरीक्षण करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि उसकी रजिस्ट्री कर दी गयी है या नहीं। एकस्व दो प्रकार से प्राप्त किये जाते हैं :

(1) क्रय के द्वारा—यदि ये अधिकतर क्रय के साधन से प्राप्त किये गये हैं तो इस सम्बन्ध में किया गया क्रय पूंजीगत व्यय होता है और एकस्व खाते में डेबिट किया जाना चाहिए। नवीनीकरण (renewal) की फीस आयगत होती है जो लाभ-हानि खाते में डेबिट की जानी चाहिए।

(2) विकास व शोध के द्वारा यदि शोध के द्वारा एकस्व का विकास किया गया है तो यह ध्यान रखना चाहिए कि शोध में किया गया व्यय पूंजीगत होता है जिसको एकस्व खाते में डेबिट किया जाना चाहिए। _

यदि एकस्व का क्रय किया है तो एकस्व का वास्तविक प्रमाणपत्र या क्रय का समझौता (Assignment of Purchase) अथवा एकस्व प्रतिनिधि का हिसाब (Patent Agent’s Account) देखना चाहिए। एकस्व के क्रय के पश्चात् यदि यह प्रथम अंकेक्षण का वर्ष है तो उचित संलेखों से एकस्व की लागत तथा आयु का सत्यापन करना चाहिए। हां, यदि एकस्व अधिक संख्या में हों तो अंकेक्षक को नियोक्ता से एक सूची (schedule) प्राप्त करनी चाहिए जिससे प्रत्येक एकस्व की रजिस्ट्री का नम्बर, प्राप्ति की तारीख, विवरण तथा कितने वर्ष की अवधि शेष है, आदि बातों का उल्लेख होना चाहिए। एकस्व की फीस अदायगी के लिए रसीदों की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि प्रति वर्ष नवीनीकरण की फीस (renewal fees) दी जाती है या नहीं। नवीनीकरण की फीस आयगत व्यय है जो लाभ-हानि खाते में लिखा जाना चाहिए। प्रति वर्ष नवीनीकरण न होने से एकस्व की आयु समाप्त हो जाती है।

एकस्व के लिए प्रभार या रहन का प्रश्न नहीं उठता है क्योंकि यह सम्पत्ति उसी संस्था के अधिकार तथा प्रयोग की होती है जो इसे प्राप्त करती है।

मूल्यांकन

(i)अंकेक्षक को इस बात को देखना होगा कि एकस्व लागत पर दिखाया गया है। अगर निम्न अपलिखित की गयी है तो वह राशि भी लागत में से घटा दी जानी चाहिए। एकस्व की लागत में उसका क्रय मूल्य व पंजीकरण लागत शामिल की जाती है।

(ii) यदि एकस्व का का निर्माण संस्था के अन्तर्गत किया गया है तो समस्त विकास व्यय, कानूनी व्यय व अन्य प्रत्यक्ष लागतों का पूंजीकरण किया जाना चाहिए।

(iii) एकस्व की लागत को उसकी वैधानिक अवधि या उसके व्यावसायिक जीवनकाल के अन्तर्गत अपलिखित कर दिया जाना चाहिए।

(iv) लेखांकन प्रमाप-26 में एकस्व का उपयोगी जीवनकाल 10 वर्ष निर्धारित किया गया है बशर्ते – अगर ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है जो इस बात की पुष्टि करता है कि उसकी आय 10 वर्ष से अधिक है तभी बढ़ा हुआ जीवनकाल स्वीकृत होगा।

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कृतिस्वाम्य

(COPYRIGHT)

किसी पुस्तक को प्रकाशित करना, फिर से छापना. उसका अनुवाद करना, किसी नाटक को उपन्यास का रूप देना और उपन्यास को नाटक का रूप देना, नाटक या गीत रिकॉर्ड करना, किसी भाषण को प्रकाशित करना, फिल्म उतारना, इत्यादि अधिकार कृतिस्वाम्य के उदाहरण हैं। किसी पुस्तक के प्रकाशित करने का एकाधिकार साधारणतया लेखक के जीवन के साथ रहता है और उसकी मृत्यु के पचास वर्ष बाद तक चलता

सत्यापनइसका सत्यापन करने के लिए अंकेक्षक को कतिस्वाम्य से सम्बन्धित क्रय प्रसंविदा की पूर्ण जांच की जानी चाहिए। यदि किसी संस्था के पास अधिक कतिस्वाम्य हैं तो अंकेक्षक को उनकी सूचना संस्था के अधिकारियों से मांग लेनी चाहिए और इस सूचना के आधार पर सत्यापन करना चाहिए। __

मूल्यांकन—जहां तक कृतिस्वाम्य के मूल्यांकन का प्रश्न है यह एकस्व के समान नियमों के अनुसार मूल्यांकित किया जाता है।

व्यापार चिह्न

(TRADE MARKS)

साधारणतया प्रत्येक वस्तु निर्माता अपने द्वारा बनायी गयी वस्तु के लिए व्यापारिक चिह्न का प्रयोग करते हैं और फिर उस चिह्न की सरकार से रजिस्ट्री करा लेते हैं। ऐसी वस्तु की बाजार में पहचान उसके चिह्न मात्र से होती है। इसके उदाहरण बन्दर छाप काला दन्त मंजन, सनलाइट साबुन, आदि हैं।

सत्यापन प्रत्येक व्यापार चिह्न के लिए रजिस्ट्री की जाती है और रजिस्ट्रार से प्रयोग करने का प्रमाण-पत्र प्राप्त किया जाता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार ख्याति, एकस्व, व्यापार चिह्न, परिरूप (designs) कम्पनी चिट्टे में उपयक्त स्थान पर दिखाने चाहिए। अंकेक्षक को खाताबही के खातों की जांच से यह देखना चाहिए कि व्यापारिक चिह्न अलग से दिखाये गये हैं।

यदि व्यापारिक चिह्न क्रय समर्पण अर्थात् हस्तांकन (assignment) से प्राप्त किये गये हैं तो क्रय प्रसंविदा एवं समझौते से भगतान की गयी रकम का प्रमाणन करना चाहिए। यदि व्यापार चिह्न रजिस्ट्री द्वारा प्राप्त किये हैं तो अंकेक्षक की रजिस्ट्री की फीस एवं अन्य पूंजीगत खर्ची का प्रमाणन करना चाहिए। यह सूचना किसी उच्च अधिकारी द्वारा अधिकत होनी चाहिए। साथ ही व्यापार चिह्नों के नवीनीकरण या फीस की रसीद की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि नवीनीकरण न होने से कोई चिह्न बेकार तो नहीं हो गया

मूल्यांकन (1) चिठे में व्यापार चिह्न को लागत पर व उसमें से अपलिखित की गयी राशि को घटाकर दिखाया जाता है।

(ii) यदि व्यापार चिह्न क्रय किए गए हैं तो लागत में क्रय मूल्य व पंजीकरण फीस शामिल की जाती

(iii) यदि व्यापार चिह्न का निर्माण संस्था के अन्दर किया गया है तो लागत में विकास की लागत (development cost) व डिजाइन (design) की लागत, आदि को शामिल किया जाना चाहिए।

(iv) व्यापार चिह्न की लागत को उसकी वैधानिक अवधि के अनगियावसायिक जीवनकाल (साधारणतया 10 वर्ष, लेखांकन प्रमाप-26 के अनुसार) जो दोनों में कम हों में अपलिखित किया जाना चाहिए।

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धर्मस्व बीमा

(ENDOWMENT POLICIES)

कभी-कभी भविष्य में देय किसी देनदारी के भुगतान करने के लिए अथवा किसी सम्पत्ति के पुनस्र्थापन  के कोषों के लिए आयोजन करने की आवश्यकता होती है। धर्मस्व बीमा लेने का यही उद्देश्य होता है। इनको ऋण शोधन निधि पॉलिसियां (sinking fund policies) कहते है।

इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को स्वयं इन पॉलिसियों का निरीक्षण करना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि इनके लिए प्रीमियम का भुगतान कर दिया गया है और ये अभी समाप्त नहीं हुई हैं। धर्मस्व बीमा पॉलिसियों के मूल्यांकन का प्रश्न नहीं होता है।

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नमूने , परिरूप एवं आलेख्य

(PATTERNS, DESIGNS AND DRAWINGS)

कुछ संस्थाएं अपने पास स्वयं द्वारा बनायी गयी वस्तुओं का नमूना रखती हैं जिनकी सहायता से वस्तु के आदेश (oders) प्राप्त किये जाते हैं। साधारणतया, किसी वस्तु का छोटा स्वरूप उसका नमूना कहलाता है।

और किसी वस्तु का कागज पर बना हुआ ढांचा आलेख्य (drawings) कहलाता है। परिरूप शब्द का प्रयोग विशेषकर वस्त्रों के नमूने के लिए किया जाता है। अंकेक्षक को इन सम्पत्तियों के खातों की जांच करनी चाहिए कि वे सभी चिट्टे में स्पष्ट रूप से दिखायी गयी हैं।

सत्यापनअंकेक्षक को सभी सम्पत्तियों के लिए एक अधिकृत सूची तैयार करनी चाहिए। यदि इन सम्पत्तियों का मूल्य बहुत कम है, तो साधारणतया इनकी लागत लाभ-हानि खाते में लिख दी जाती है। यदि इनकी लागत अधिक है तो लागत का पूंजीकरण कर दिया गया है।

मूल्यांकनमूल्यांकन के लिए यह ध्यान रखना चाहिए कि ये सम्पत्तियां बहुत थोड़े समय के लिए ही उपयोगी रहती हैं। कुछ समय और मौसम के अनुसार ही बदल जाती हैं जिनको सीधे उसी वर्ष के लाभ-हानि खाते में डेबिट कर देना चाहिए। जिनकी आयु लम्बी होती है उन्हें यथासम्भव समय के अनुसार अपलिखित कर देना चाहिए। इनका मूल्यांकन पुनर्मूल्यन पद्धति के आधार पर किया जाता है।

मोटर लारी इत्यादि

(MOTOR LORRIES)

सत्यापनमोटर लारी खाते में अलग से इस सम्पत्ति का उल्लेख होना चाहिए। अंकेक्षक को इस खाते की जांच करनी चाहिए। इस सम्पत्ति की लागत का सत्यापन करने के लिए विक्रेता से प्राप्त बीजकों की जांच करनी चाहिए और इनके स्वामित्व का सत्यापन Permit and Registration Book से करना चाहिए।

यदि किसी संस्था में मोटर लारियों की संख्या अधिक होती है तो प्लाण्ट रजिस्टर की तरह अलग रजिस्टर रखा जाता है। अंकेक्षक को इनके सत्यापन के लिए एक प्रमाणित सूची तैयार करनी चाहिए और रजिस्ट्रेशन पुस्तक की खाताबही की जांच करनी चाहिए। अंकेक्षक को इस सम्बन्ध में बीमा पॉलिसी व पथकर रसीद की जांच करना चाहिए। वर्ष के बीच में इस सम्पत्ति में जो वृद्धि हो गयी हो, उसका पूंजीकरण कर दिया गया है या नहीं यह देखना चाहिए। लाइसेंस की फीस की रसीद और बीमा की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिए।

मूल्यांकन माटर लारियों पर हास बहुत अधिक होता है इसलिए हास की काफी ऊंची दर होनी चाहिए। चिट्ठम लागत मूल्यमस हास घटाकर इन सम्पत्तियों को दिखाना चाहिए। हास की गणना चलन प्रति किलोमीटर। के हिसाब से की जानी चाहिए।

पशुधन

(LIVESTOCK)

सत्यापन खाताबही तथा चिट्टे के लेखों के मिलान करने के साथ-साथ अंकेक्षक को संस्था के अधिकारिया से गाय-बैल या घोड़े आदि के लिए एक अधिकृत सूची तैयार करनी चाहिए। प्रायः संस्थाआ सलेवा कराने के लिए प्लाण्ट रजिस्टर की तरह रजिस्टर रखे जाते हैं जिनमें पशुओं का खरीद-मत्य. आय तथा अन्य विवरण मिल सकता है। प्राप्त सूची तथा रजिस्टर का मिलान करना चाहिए।

मूल्यांकनपशु-धन के मूल्यांकन के लिए पुनर्मूल्यन प्रणाली (Revaluation Method) सर्वश्रेष्ठ है। अंकेक्षक को देखना चाहिए कि पशुओं का मूल्यांकन विशेषज्ञों द्वारा किया गया है।

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