BCom 2nd year Corporate Workmen Compensation Act 1923 Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd year Corporate Workmen Compensation Act 1923 Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd year Corporate Workmen Compensation Act 1923 Study Material Notes In Hindi: History of Workmen Compensation Act Objects of Workmen Compensation Act Basic Definition of This Act Difference Between Partial Disablement and total Disablement  Deference Between Workman and Contractor Liability and Payment for Compensation No Liability of Employer Computation and Payment of Amount of Compensation Notice and Claim of Accident Medical Examination Liability for Contracting Format of Application Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions  :

Act 1923 Study Material Notes
Act 1923 Study Material Notes

BCom 2nd year Industrial Disputes Act 1947 Study Material Notes in Hindi

कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923

(WORKMEN’S COMPENSATION ACT, 1923)

कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 भारतवर्ष का एक महत्त्वपूर्ण अधिनियम है। यह अधिनियम एक सुरक्षा चक्र की भाँति है जिसकी परिधि में रहकर श्रमिक कार्य कर रहा है। आज के तकनीकी युग में अधिकांश बड़े उद्योग खतरनाक स्वचालित मशीनें, अधिक जोखिम और तेज गति से चलने वाले यंत्रों का प्रयोग कर रहे हैं जिनके बीच कार्य करते रहने से श्रमिक का जीवन अत्यन्त जोखिम पूर्ण बन गया है कार्य के इस वातावरण में श्रमिकों के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर उसका और उसके परिवार का जीवन असहाय और असुरक्षित हो जाता है। ऐसे परिणामों के कारण कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 का जन्म हुआ। वर्तमान में भारत में रिलायन्स समूह, टाटा समूह, बिरला समूह, विप्रो आदि सभी इस अधिनियम का पालन करते हुए अपने श्रमिकों से कार्य ले रहे हैं।

कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम का इतिहास (History of Workmen’s Compensation Act)-देश में श्रमिकों की क्षतिपूर्ति की माँग निरंतर रूप से 1884, 1885 तथा 1910 वर्षों में की जाती रही है। इन्हीं मांगों के आधार पर 1923 में श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम का उद्गम हुआ। इस अधिनियम से पहले श्रमिक के घायल होने पर या चोट लगने पर उसे क्षतिपूर्ति लेने का कोई अधिकार नहीं था। यद्यपि सन् 1885 के भारतीय घातक दुर्घटना अधिनियम के अनुसार मालिक की असावधानी के कारण श्रमिक की मृत्यु होने पर मृतक श्रमिक के आश्रित क्षतिपूर्ति के लिए दावा कर सकते थे। लेकिन यह अधिनियम केवल नाम मात्र का था। इसके अन्तर्गत क्षतिपूर्ति का मिलना अत्यन्त कठिन कार्य था।

इस समस्या पर विचार करते हुए सन् 1921 में सरकार द्वारा जनता के विचार समझने के लिए क्षतिपूर्ति सम्बन्धी अनेक प्रस्ताव लाये गये। इन प्रस्तावों का विस्तृत रूप में अनुमोदन प्राप्त हुआ जिसके आधार पर मार्च, 1923 में श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम में सन् 1926 तथा 1929 में कुछ संशोधन किये गये जिनका उद्देश्य अधिनियम के दोषों को दूर करना था।

रॉयल श्रम आयोग (Royal Labour Commission)-रॉयल श्रम आयोग ने इस अधिनियम के प्रावधानों का गहन रूप से अध्ययन किया और इसमें सुझाव दिए। इन सुझावों के आधार पर सन् 1993 में इस अधिनियम को पुनर्गठित एवं संशोधित किया गया जिसे जनवरी 1934 से लागू किया गया है। इसके बाद भी इस अधिनियम में 1949, 1962, 1979, एवं 1984 में अनेक संशोधन किए गए।

अधिनियम का लागू होना (Application of the Act) इस अधिनियम को ‘श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम’ 1923 कहा जाता है। यह अधिनियम 1 जुलाई, 1924 से सम्पूर्ण भारतवर्ष में लाग है। यह अधिनियम उन सभी व्यक्तियों पर लागू होता है जिनकी नियुक्ति आकस्मिक प्रकृति की नहीं है तथा जिन्हें व्यवसाय के अतिरिक्त अन्य उद्देश्यों के लिए नियुक्त नहीं किया गया है, इनके अतिरिक्त यह अधिनियम निम्नलिखित पर भी लागू होता है।

Workmen Compensation Act 1923

1 भारतीय रेलवे अधिनियम की धारा-2(34) में परिभाषित एक रेलवे सेवक पर जो स्थायी रूप सेनियुक्त नहीं है तथा इस अधिनियम के द्वितीय अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भी पद पर नियक्त नहीं

2. इस अधिनियम की द्वितीय अनुसूची में वर्णित किसी पद पर नियुक्त व्यक्ति पर। 3. राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना देकर द्वितीय अनुसूची में शामिल किये गये व्यक्तियों के उस समूह

पर जो किसी खतरनाक आजीविका में कार्यरत हैं। अधिनियम की द्वितीय अनुसूची में उन व्यक्तियों की सूची दे रखी है जो श्रमिक की परिभाषा के अन्तर्गत सम्मिलित हैं। इस अनुसूची से स्पष्ट है कि यह अधिनियम कारखानों, बन्दरगाहों, खानों, जहाजों एवं नौकायन. भवन निर्माण टेलीफोन, रेल, डाक सेवा, विद्युत उत्पादन एवं वितरण, हवाई जहाजों के निर्माण, फिल्म निर्माण चाय-कॉफी,गैस.विद्यत एवं यांत्रिक शक्ति से किये जाने वाले कार्य, सर्कस भवनों में बिजली फिट करने तथा मरम्मत करने के कार्य करने वाले सभी व्यक्तियों पर लागू होता हैं।

कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के उद्देश्य

(Objects of Workmen’s Compensation Act)

इस अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1 दुर्घटना से ग्रसित श्रमिकों को उचित क्षतिपूर्ति दिलवाना।

2. उद्योगों के अर्न्तगत श्रमिकों के लिए सुरक्षा चक्र स्थापित करना।

3. श्रमिकों के आश्रितों को उचित मुआवजा दिलवाना।

4. श्रमिकों को आर्थिक, मानवीय एवं सामाजिक सुरक्षा देना।

5. श्रमिकों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण एवं उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि करना।

6. श्रमिकों में कार्य के प्रति आत्मविश्वास पैदा करना।

7. नियोक्ताओं को उनके दायित्वों के प्रति कानूनी रूप से सजग बनाना।

8. औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि करना।

9. औद्योगिक संघर्ष में कमी लाना।

10. श्रमिकों को उचित मान-सम्मान प्रदान करना।

11. देश के औद्योगिक विकास को सही दिशा देना।

12. श्रमिकों की कार्यक्षमता में वृद्धि करना।

13. श्रमिकों को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से संतुष्टि प्रदान करना।

14. श्रमिकों को आर्थिक एवं मानवीय सुरक्षा देना।

15. श्रमिकों की अयोग्यताओं के विरुद्ध सामाजिक सुरक्षा दिलवाना।

16. औद्योगिक कार्यों में रचनात्मक एवं सृजनात्मक दृष्टिकोण का विकास करना।

Workmen Compensation Act 1923

आधारभूत परिभाषाएँ

(Basic Definitions of this Act)

(1) आयुक्त (Commissioner)-इस अधिनियम की धारा 20 के अन्तर्गत आयुक्त से आशय उस कमिश्नर से है जो श्रमिकों की क्षतिपूर्ति के लिए नियुक्त किया गया है।

(2) क्षतिपूर्ति (Compensation)-क्षतिपूर्ति से आशय ऐसी राशि से है जिसकी व्यवस्था इस अधिनियम के अन्तर्गत की गयी है।

(3) आश्रित (Dependent)-आश्रित से आशय मृत श्रमिक के निम्नलिखित रिश्तेदारों में से किसी से

(i) विधवा, अवयस्क पुत्र, अविवाहित पुत्री अथवा विधवा माता।

(ii) श्रमिक की आय पर पूर्णतः आश्रित वयस्क पुत्र तथा पुत्री जो दुर्बल है।

(iii) श्रमिक की मृत्यु पर उसकी आय पर पूर्णतः या अंशत: आश्रित

() विधुर

() विधवा माता के अतिरिक्त अन्य माता-पिता।

() अवयस्क, नाजायज पुत्र, अविवाहित नाजायज पुत्री, जायज या नाजायज विवाहित पुत्री ।

() अवयस्क भाई या बहन अथवा अविवाहित बहन या विधवा बहन ।

() विधवा पुत्रवधु।

() पूर्व मृतक पुत्र का अवयस्क बच्चा।

() पूर्व मृतक पुत्री का अवयस्क बच्चा।

() दादा-दादी यदि श्रमिक के माता-पिता उस पर आश्रित नहीं हैं।

(4) नियोजक/नियोक्ता (Employer)-नियोजक या नियोक्ता से आशय निम्नलिखित व्यक्ति से है) समामेलित या गैर समामेलित व्यक्तियों का कोई समूह ।

(ii) नियोक्ता का कोई प्रतिनिधि।

(iii) मृतक नियोक्ता का कानूनी प्रतिनिधि ।

(iv) जब श्रमिक की सेवाएं इस व्यक्ति द्वारा जिसके साथ श्रमिक ने अनुबन्ध किया है, किसी अन्य

व्यक्ति को भाड़े पर या अस्थायी रूप से दी गई हैं तो ऐसा अन्य व्यक्ति। [धारा 2(1)(e)]

(5) प्रबन्ध अभिकर्ता (Managing Agent)-प्रबन्ध अभिकर्ता से आशय किसी ऐसे व्यक्ति से है जो किसी अन्य व्यक्ति का व्यवसाय चलाने के उद्देश्य से उस दूसरे व्यक्ति द्वारा नियुक्त किया गया है या उसके प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहा है. लेकिन इसके अन्तर्गत नियोक्ता के अधीन कार्य करने वाला मैनेजर या प्रबन्धक शामिल नहीं है।

 (6) अवयस्क (Minor)-अवयस्क से आशय ऐसे व्यक्ति से है जिसने अपने जीवन के 18 वर्ष पूरे नहीं किये हैं।

Workmen Compensation Act 1923

(7) आंशिक अयोग्यता (Partial Disablement)-आंशिक अयोग्यता से आशय ऐसी अयोग्यता से है जिससे श्रमिक की आय कमाने की क्षमता में कमी आ गयी है और ऐसी कमी अस्थायी प्रकृति की है।

स्थायी आशिक अयोग्यता (Permanent Partial Disablement)-जब किसी श्रमिक की घटना ग्रस्त होने के कारण उसकी आय कमाने की क्षमता में कमी आ गयी हो और यह कमी स्थायी प्रकृति की हों तो इसे श्रमिक की स्थायी आंशिक अयोग्यता कहा जाता है। इस अधिनियम की प्रथम अनुसूची के द्वितीय भाग में 48 प्रकार की दुर्घटनाओं का वर्णन है जिनके लगने पर स्थायी आंशिक अयोग्यता हुई मानी जाती है ।

अस्थायी आंशिक अयोग्यता की दशा में अधिनियम के अन्तर्गत श्रमिक तभी क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सकता । है जबकि वह तीन दिन से अधिक की अवधि के लिए आंशिक रूप से कार्य करने में अयोग्य रहे ।

स्थायी तथा अस्थायी आंशिक अयोग्यता में अन्तर

8) निर्धारित (Prescribed)–निर्धारित से आशय श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के अधीन बनाये गये या निर्धारित किये गये नियमों से हैं।

(9) योग्य चिकित्सक (Qualified Medical Practitioner) -योग्य चिकित्सक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो किन्हीं केन्द्रीय नियमों के अन्तर्गत या राज्य विधान सभा के अधिनियम के अन्तर्गत रजिस्टर्ड है।

(10) नाविक (Seaman)-नाविक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो किसी जहाज के मल्लाहों के समूह का सदस्य है लेकिन जहाज का कप्तान नहीं है।

(11) पूर्ण अयोग्यता (Total Disablement)-पूर्ण अयोग्यता का आशय ऐसी स्थायी या अस्थायी अयोग्यता से है जिसके कारण श्रमिक उन सभी कार्यों के करने के लिये अयोग्य हो जाता है जिनको करने के लिये दुर्घटना के समय वह योग्य था।

महत्त्वपूर्ण बिन्दइस अधिनियम की प्रथम अनसची के प्रथम भाग में उल्लिखित प्रत्येक दुर्घटना के होने। पर स्थायी पूर्ण अयोग्यता समझी जायेगी।

इसी प्रकार अधिनियम की प्रथम अनुसूची के द्वितीय भाग में उल्लिखित दुर्घटनाओं के प्रतिशत का योग  सौ या उससे अधिक है तब भी पूर्ण अयोग्यता उत्पन्न समझी जायेगी।

पूर्ण अयोग्यता के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण तथ्य

(Important Facts Regarding Permanent Disablement)

(i) पूर्ण अयोग्यता स्थायी या अस्थायी किसी भी प्रकृति की हो सकती है।

(ii) पूर्ण अयोग्यता तब उत्पन्न हुई मानी जाता है जब श्रमिक उन सभी कार्यों के करने में पूर्णरूप से अयोग्य हो जाता है जिन कार्यों को वह दुर्घटना होने से पूर्व करने में समर्थ था। इस सम्बन्ध में अधिनियम की प्रथम अनुसूची के प्रथम और द्वितीय भाग के नियमों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

(iii) पूर्ण अयोग्यता से श्रमिक की आय कमाने की क्षमता स्थायी या अस्थायी रूप से समाप्त हो जाती है लेकिन उसकी आय का समाप्त होना जरूरी नहीं है।

(12) मजदूरी (Wages)-मजदूरी से आशय काम के लिये दिये जाने वाले पारिश्रमिक से है। इस अधिनियम के अन्तर्गत मजदूरी में मुद्रा में मूल्योंकित लाभ एवं विशेषाधिकार भी शामिल हैं लेकिन निम्नलिखित । शामिल नहीं हैं

(i) यात्रा भत्ता,

(ii) यात्रा सम्बन्धी रियायत,

(iii) प्रावीडेन्ट फण्ड तथा पेंशन फण्ड में नियोक्ता का अंशदान,

(iv) कर्मचारी द्वारा नौकरी के समय में किये गये विशेष व्ययों के लिये भुगतान की गई राशि।

(v)] महत्त्वपूर्ण बिन्दु-मँहगाई भत्ता, मुफ्त पानी की सुविधा तथा लाभ भागिता बोनस, मजदूरी में शामिल किया जायेगा।

Workmen Compensation Act 1923

दुर्घटना की सूचना एवं दावा

(Notice and Claim of Accident)

(1) सूचना एवं दावे को प्रस्तुत करना-दुर्घटना की सूचना निर्धारित रीति से दुर्घटना होने के बाद शीघ्र–से-शीघ्र कमिश्नर को दी जानी चाहिये अन्यथा वह क्षतिपूर्ति सम्बन्धी किसी भी दावे की सुनवाई नहीं करेगा। कमिश्नर के समक्ष दुर्घटना होने के या श्रमिक की मृत्यु होने के दो वर्ष के अन्दर दावा प्रस्तुत कर देना चाहिए।

यदि दुर्घटना अधिनियम की धारा 3(2) के अन्तर्गत रोग के कारण है तब यह दुर्घटना रोग के कारण उत्पन्न अयोग्यता की दशा में कार्य से अनुपस्थित रहने के प्रथम दिन से हुई मानी जायेगी।

यदि कोई श्रमिक निरन्तर सेवा में रहते हुये कार्य करता है और फिर सेवा कार्य छोड़ देता है तथा छोड़ने के दो वर्ष के अन्दर व्यावसायिक रोग होने के आसार बढ़ जाते हैं तो जिस दिन ऐसे आसारों (Symptoms) का पहली बार पता लगता है दुर्घटना उसी दिन से हुई मानी जायेगी।

यदि दुर्घटना की सूचना देने में कुछ कमी अथवा अनियमितता रह गई है तो क्षतिपूर्ति के लिये दावे की सुनवाई निम्नलिखित दशाओं में की जायेगी

(i) नियोक्ता के परिसर में श्रमिक की मृत्यु होने की दशा में यदि श्रमिक की मृत्यु नियोक्ता के परिसर में घटित होने वाली दुर्घटना से हुई है या ऐसे कार्यक्षेत्र में हुई है जहाँ वह नियोक्ता के अधीन कार्य कर रहा

(ii) नियोक्ता को दुर्घटना की सूचना का प्राप्त होना-यदि नियोक्ता को या उसके किसी प्रबन्धकीय व्यक्ति को किसी भी अन्य साधन से दुर्घटना की सूचना प्राप्त हो गई हो।

यदि कमिश्नर को दुर्घटना की सूचना न दी गई हो या उचित समय में दावा प्रस्तुत न किया गया हो तब भी वह क्षतिपर्ति के दावे की सुनवाई कर सकता है यदि वह इस बात से संतुष्ट हो जाये कि सूचना न देने या उचित समय में दावा प्रस्तुत न करने का उचित कारण था।

(2) सूचना में दी जाने वाली मुख्य बातें-सूचना में निम्नलिखित बातों का वर्णन दिया जायेगा(अ) चोटग्रस्त श्रमिक का नाम एवं पता। (ब) दुर्घटना का कारण (स) दुर्घटना घटित होने की तिथि

यह सूचना निम्नलिखित में से किसी को भी दी जा सकेगी(अ) नियोक्ता (ब) यदि नियोक्ता एक से अधिक हैं तो किसी भी एक नियोक्ता को (स) नियोक्ता के यहाँ कार्य करने वाले प्रबन्ध के लिये उत्तरदायी व्यक्ति को जिसके अधीन चोटग्रस्त श्रमिक नियुक्त था।

(3) सूचना पुस्तिका का निर्दिष्ट प्रारूप में रखा जाना राज्य सरकार किसी विशेष वर्ग के नियोक्ताओं को यह आदेश दे सकती है कि वे निर्धारित प्रारूप में एक सचना पस्तिका रखेंगे। ऐसी पुस्तिका चोटग्रस्त श्रमिकों के लिये कारखाने में उपलब्ध रहेगी। ऐसी पस्तिका में चोटग्रस्त श्रमिक अपनी चोट का विवरण देगा। विवरण देने पर यह माना जायेगा कि दुर्घटना की सचना नियोक्ता को दे दी गई है। इसके बाद फिर नियोक्ता को लिखित सूचना देना अनिवार्य नहीं है।

(4) सूचना देने की रीतिसूचना, सूचना प्राप्तकर्ता के घर, कार्यालय या व्यवसाय के पते पर दी जायेगी अथवा रजिस्टर्ड डाक द्वारा इन पतों पर भेजी जायेगी। यदि सूचना पुस्तिका (Note Book) में इसकी प्रविष्टि (Entry) कर दी गई है तब भी यह सूचना देना ही माना जायेगा।

इस सम्बन्ध में भगवान दास बनाम प्यारेलाल (A.I.R. (1954) M.Bh. 59] का मामला महत्त्वपूर्ण प्राणघातक दुर्घटनाओं के सम्बन्ध में नियोक्ताओं से विवरण माँगने का अधिकार

(1) श्रमिक की मृत्यु की दशा में विवरण-जब कमिश्नर को यह सूचना मिलती है कि रोजगार के समय में और रोजगार के कारण दुर्घटना होने से श्रमिक की मृत्यु हो गई है तो वह नियोक्ता को रजिस्टर्ड डाक द्वारा एक नोटिस भेजेगा कि नियोक्ता नोटिस प्राप्त होने के 30 दिन के अन्दर निश्चित प्रारूप में एक विवरण प्रस्तुत करे जिसमें श्रमिक की मृत्यु के कारणों का उल्लेख करे तथा यह भी उल्लेख करे कि स्वयं की सहमति से वह मृत्यु के कारण क्षतिपूर्ति जमा करने के लिये उत्तरदायी है अथवा नहीं। [धारा 10A(1)]

(2) क्षतिपूर्ति की राशि को जमा करना–यदि नियोक्ता अपने आपको क्षतिपूर्ति की राशि जमा करने के लिये उत्तरदायी समझता है तो वह नोटिस मिलने की तिथि से 30 दिन के भीतर क्षतिपूर्ति की राशि कमिश्नर के पास जमा करेगा।

(3) राशि का जमा नहीं करनायदि नियोक्ता स्वयं को क्षतिपूर्ति की राशि जमा करने के लिये उत्तरदायी नहीं मानता है तो वह क्षतिपूर्ति की राशि को कमिश्नर के पास जमा नहीं करायेगा तथा विवरण में अपने आपको उत्तरदायी नहीं मानने का कारण स्पष्ट रूप से समझायेगा।

(4) नियोक्ता द्वारा दायित्व नहीं मानने पर कमिश्नर का कर्त्तव्य-यदि नियोक्ता क्षतिपूर्ति के लिये अपने दायित्व को स्वीकार नहीं करता है तो कमिश्नर जाँच-पड़ताल करके मृतक श्रमिक के आश्रितों को सूचित करेगा और निर्देश देगा कि वे अब क्षतिपूर्ति के लिये वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।

Workmen Compensation Act 1923

प्राणघातक दुर्घटनाओं तथा गम्भीर चोटों की रिपोर्ट [धारा 10B]

(Report of Fatal Accidents and Serious Injuries)

(1) 7 दिन के अन्दर कमिश्नर को रिपोर्ट देना-जहाँ किसी प्रचलित कानून के अन्तर्गत नियोक्ता द्वारा या उसकी ओर से किसी अधिकारी को ऐसी दुर्घटना की सूचना देना जरुरी है जिसके कारण उसके परिसर में श्रमिक की मृत्यु हुई है या गंभीर शारीरिक चोट पहुँची है तो ऐसा व्यक्ति मृत्यु होने या गम्भीर चोट पहुँचने के 7 दिन के भीतर आयुक्त के पास एक रिपोर्ट भेजेगा जिसमें उन सभी दशाओं का ठीक प्रकार से उल्लेख करेगा जिनमें मृत्यु हुई है या गम्भीर चोट पहुंची है।

यदि राज्य सरकार अनुमति दे तो सूचना देने वाला व्यक्ति आयुक्त को रिपोर्ट भेजने के स्थान पर उस अधिकारी को रिपोर्ट भेज सकता है जिसको रिपोर्ट भेजी जानी आवश्यक है।

गम्भीर शारीरिक चोट का स्पष्टीकरण-गम्भीर चोट से आशय ऐसी चोट से है जिसके परिणामस्वरूप निम्नलिखित के सम्बन्ध में स्थायी हानि हई है या होने की सम्भावना है

कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम

(i) श्रमिक के किसी शारीरिक अंग के प्रयोग की स्थायी हानि अथवा चोट

(ii) देखने की शक्ति की स्थायी हानि

(iii) सुनने की शक्ति की स्थायी हानि

(iv) शरीर के किसी अंग की हड़ी का ट्ट जाना, अथवा

(v) चोटग्रस्त श्रमिक का 20 दिन से अधिक समय के लिये कार्य पर अनुपस्थित रहना।

(2) राज्य सरकार द्वारा उपरोक्त धारा का क्षेत्र विस्तृत करना-राज्य सरकार सरकारी गजट में अधिसूचना देकर उपरोक्त धारा 10B(1) के प्रावधानों को अल्प वर्गों के नियोक्ताओं के परिसरों पर भी लागू कर सकती है साथ ही कमिश्नर को रिपोर्ट भेजने के लिये अन्य व्यक्तियों को भी निर्दिष्ट कर सकती है।

(3) प्रस्तुत धारा का लागू न होना-जिन कारखानों पर कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 लागू होता है उन पर इस धारा के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

Workmen Compensation Act 1923

डॉक्टरी जाँच (धारा 11)

(Medical Examination)

1 डॉक्टरी जाँच करवानाजब कोई श्रमिक अपने नियोक्ता को दुर्घटना की सूचना देता है तो उसे सूचना देने के तीन दिन के भीतर, अपने नियोक्ता की सहमति से नियोक्ता द्वारा बताये गये योग्य चिकित्सक के समक्ष डॉक्टरी जाँच के लिये उपस्थित होना होगा। जिस श्रमिक को अर्द्धमासिक भुगतान मिल रहा हो उसे जब भी आवश्यक हो, समय-समय पर डॉक्टरी जाँच के लिये उपस्थित होना होगा। लेकिन किसी भी श्रमिक को इस अधिनियम के विरुद्ध अथवा निर्धारित समय अन्तराल के अतिरिक्त डॉक्टरी जाँच के लिये उपस्थित होने के लिये नहीं कहा जायेगा।

2. डॉक्टरी जाँच के लिये मना करने पर यदि कोई श्रमिक उप धारा (1) के नियमों के अन्तर्गत अथवा कमिश्नर के कहे जाने पर भी डॉक्टरी जाँच के लिये मना करता है या अन्य किसी प्रकार से बाधा उत्पन्न करता है तो ऐसी अनुपस्थिति की अवधि में वह क्षतिपूर्ति पाने के अधिकार से वंचित रहेगा। परन्तु यदि श्रमिक उचित कारणों के आधार पर डॉक्टरी जाँच के लिये मना करता है तो वह क्षतिपूर्ति पाने के अधिकार से वंचित नहीं रहेगा।

3. रोजगार के स्थान को छोड़ देने परयदि कोई श्रमिक बिना डॉक्टरी जाँच कराये अपनी इच्छानुसार | रोजगार के स्थान को छोड़ देता है तो वह क्षतिपूर्ति पाने के अधिकार से तब तक वंचित रहेगा जब तक कि | वह वापिस नहीं आ जाता है और डॉक्टरी जाँच नहीं करा लेता है।

4. बिना डॉक्टरी जाँच कराये मृत्यु होने पर यदि कोई श्रमिक जो उपधारा (2) या (3) के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति पाने के अधिकार से वंचित था, बिना डॉक्टरी जाँच कराये मर जाता है तो कमिश्नर उचित समझते | हुये मृतक श्रमिक के आश्रितों को क्षतिपूर्ति की राशि भुगतान करने का आदेश दे सकता है। [धारा 11(4)]

5. क्षतिपूर्ति से वंचित रहने की अवधि के लिये क्षतिपूर्ति यदि उप धारा (2) या (3) के अन्तर्गत किसी श्रमिक को क्षतिपूर्ति पाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है तो वंचित रहने की अवधि के लिये | उसे कोई भी क्षतिपूर्ति नहीं दी जायेगी। यदि वंचित रहने की अवधि प्रतीक्षा अवधि के समाप्त होने के पहले ही प्रारम्भ हो जाती है तो प्रतीक्षा अवधि को वंचित रहने की अवधि के समय तक बढ़ा दिया जायेगा।

6. डॉक्टरी जाँच के लिये मना करने अथवा डॉक्टरों के निर्देशों का उल्लंघन करने पर क्षतिपूर्ति यदि | किसी चोटग्रस्त श्रमिक ने नियोक्ता द्वारा निःशुल्क डॉक्टरी जाँच प्रस्तुत करने पर भी डॉक्टरी जाँच के लिये

मना कर दिया है अथवा जॉच कराने के पश्चात् डॉक्टर के निर्देशों का जानबूझकर उल्लंघन किया है जिसके  कारण उसकी चोट में और वृद्धि हो गई है तब यह माना जायेगा कि श्रमिक का नियमित रूप से योग्य चिकित्सक द्वारा इलाज कराया गया है और उसके निर्देशों का पालन किया गया है। इस दशा में क्षतिपूर्ति की वही राशि दी जायेगी जो चोट में वृद्धि होने से पहले दी जाती।

Workmen Compensation Act 1923

ठेके देने की दशा में दायित्व [धारा 12]

(Liability for Contracting)

सामान्यतया श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत श्रमिकों की क्षतिपूर्ति का दायित्व नियोक्ता का होता । है परन्तु कभी-कभी नियोक्ता श्रमिकों को नियुक्त करके कार्य नहीं करवाता वरन् ठेकेदारों के माध्यम से उनसे कार्य करवाता है, अतः कार्य करने वाले श्रमिक ठेकेदार द्वारा नियुक्त होते हैं। ऐसी दशा में ठेके पर कार्य  करवाने वाले व्यक्ति को नियोक्ता (Principal) तथा ठेका लेने वाले को ठेकेदार (Contractor) कहते हैं। ठेके देने की दशा में दायित्व का निर्धारण धारा 12 के प्रावधानों के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है

(1) प्रधान या नियोक्ता का दायित्व यदि कोई नियोक्ता या प्रधान (Principal) अपने व्यापार या व्यवसाय के किसी कार्य या उसके किसी भाग को पूरा करवाने के लिये किसी ठेकेदार से अनुबन्ध करता है

और ठेकेदार उस कार्य या उसके भाग को पूरा करने के लिये श्रमिकों को नियुक्त करके कार्य करवाता है तो ऐसे नियुक्त श्रमिक की क्षतिपूर्ति के लिये प्रधान (Principal) ठीक उसी प्रकार दायी होगी जैसे कि वे श्रमिक स्वयं उसी के द्वारा नियुक्त किये गये हों।

(2) क्षतिपूर्ति की राशि की गणनाऐसे श्रमिकों को देय क्षतिपूर्ति की राशि की गणना ठेकेदार द्वारा तुरन्त नियुक्त किये गये श्रमिकों की मजदूरी के आधार पर की जायेगी।

(3) क्षतिपूर्ति की राशि की वसली-यदि अधिनियम की धारा 12 के अन्तर्गत प्रधान का किसी श्रमिक की क्षतिपूर्ति करने का दायित्व उत्पन्न हो जाता है तो प्रधान क्षतिपूर्ति की राशि को उस ठेकेदार से या उस अन्य किसी व्यक्ति से वसूल कर सकता है जिससे श्रमिक क्षतिपूर्ति की राशि प्राप्त करने का अधिकारी था।

यदि इस सम्बन्ध में पक्षकारों के मध्य कोई मतभेद उत्पन्न होता है तो क्षतिपूर्ति के अधिकार सम्बन्धी समस्त मामले कमिश्नर द्वारा निश्चित किये जायेंगे।

(4) उप ठेके की दशा में क्षतिपर्ति की राशि की वसली-यदि ठेकेदार ही स्वयं प्रधान है और वह इस धारा के अन्तर्गत श्रमिक को क्षतिपूर्ति करने के लिये उत्तरदायी है तो वह ठेकेदार के रूप में अपने से सम्बन्धित किसी भी व्यक्ति से क्षतिपूर्ति वसूल करने का अधिकारी है।

(5) श्रमिक के वैकल्पिक अधिकारइस धारा के अन्तर्गत श्रमिक को यह विकल्प प्राप्त है कि वह प्रधान से या देवदार से किसी से भी क्षतिपूर्ति की राशि वसूल कर सकता है।

वर्धटना घटित होने का परिसर-यदि दुर्घटना प्रधान के परिसर या उसके आसपास (जहाँ प्रधान के नियन्वर्ण में यो देख रेख में काम किया जा रहा हो) घटित नहीं होती है वरन् किसी अन्य स्थान पर घटित होती हे तो इस चार्ज के प्रावधान लागू नहीं होंगे। इस सम्बन्ध में मेर बनाम डबलिन कारपोरेशन का मामला महत्त्वपूर्ण अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध नियोक्ता के उपचार (Remedies for Employer against Stranger) (धारा 13)-यदि किसी श्रमिक को कोई ऐसी क्षति पहुँची है जिसके लिये किसी अन्य व्यक्ति का वैधानिक – दायित्व उत्पन्न होता है परन्तु श्रमिक क्षतिपूर्ति की राशि धारा 12 के अन्तर्गत अपने प्रधान या ठेकेदार से प्राप्त कर लेता है तो प्रधान या ठेकेदार वैधानिक रूप से दायी व्यक्ति से क्षतिपूर्ति की राशि वसूल कर सकता है।

Workmen Compensation Act 1923

नियोक्ता के दिवालिया होने की स्थिति में (In case of Insolvency of employer)  इस अधिनियम की धारा 14 के अधीन नियोक्ता के दिवालिया होने की दशा में कानूनी प्रावधानों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार है

बीमा कम्पनी के विरुद्ध नियोक्ता के अधिकार श्रमिक को हस्तांतरित होना-यदि किसी नियोक्ता ने इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी बीमा कम्पनी से किसी दायित्व के विषय में अनुबन्ध किया है तो नियोक्ता के दिवालिया होने की दशा में अथवा अपने लेनदारों के साथ समझौता करने या उसकी योजना बनाने अथवा यदि नियोक्ता कम्पनी है तो उसके समापन की कार्यवाही शुरू होने पर बीमा कम्पनी के विरुद्ध नियोक्ता के सभी अधिकार श्रमिक को हस्तांतरित हो जायेंगे। इस सम्बन्ध में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि बीमा कम्पनी का दायित्व जो नियोक्ता के प्रति था, वही श्रमिक के प्रति रहेगा तथा उसके दायित्व में कोई वृद्धि नहीं होगी।

(ii) बीमा कम्पनी का दायित्व कम होने की दशा में यदि श्रमिक के प्रति बीमा कम्पनी का दायित्व नियोक्ता के दायित्व से कम है तो श्रमिक शेष राशि के लिये दिवालिया सम्बन्धी कार्यवाही या समापन की कार्यवाही में अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है।

(iii) बीमा अनुबन्ध के व्यर्थ या व्यर्थनीय होने की दशा में यदि नियोक्ता द्वारा बीमा अनुबन्ध की किसी शर्त के भंग करने पर बीमा अनुबन्ध व्यर्थ या व्यर्थनीय हो जाता है तो बीमा कम्पनी दिवालिया कार्यवाही या समापन कार्यवाही में अपने द्वारा श्रमिक को दी गई राशि की वसूली के लिये दावा प्रस्तुत कर सकती है।

(iv) क्षतिपूर्ति की राशि को प्राथमिक ऋणों की श्रेणी में रखना-दिवालिया अधिनियम, 1909 की धारा 49, प्रान्तीय दिवालिया अधिनियम, 1920 की धारा 61 तथा कम्पनी अधिनियम, 1913 की धारा 230 के अन्तर्गत दिवालिया व्यक्ति के ऐसे ऋणों की श्रेणी में (जो ऋण उसकी सम्पत्ति में से प्राथमिक रूप से वसूल किये जाते हैं) क्षतिपूर्ति की देय राशि को भी शामिल किया जायेगा।।

(v) क्षतिपूर्ति की राशि को एकमुश्त राशि में बदलना-यदि श्रमिक को क्षतिपूर्ति की राशि अर्द्धमासिक रूप में भुगतान की जाती है तो इस उपधारा के अन्तर्गत उसे एकमुश्त राशि में बदला जा सकता है। इस सम्बन्ध में राशि के निर्धारण के लिये कमिश्नर का प्रमाण पत्र अन्तिम प्रमाण पत्र माना जायेगा।

(vi) बीमा कम्पनी को लाभ इस अधिनियम की धारा 14(4) का लाभ बीमा कम्पनी को भी प्राप्त होगा। इसका आशय यह है कि क्षतिपूर्ति के रूप में बीमा कम्पनी द्वारा दी गई क्षतिपूर्ति की राशि को भी प्राथमिक ऋणों की श्रेणी में शामिल किया जायेगा।

(vii) ऐच्छिक समापन की दशा में धारा का लाग नहीं होना–पुनर्निर्माण अथवा दूसरी कम्पनी के साथ एकीकरण करने के उद्देश्य से यदि कम्पनी का ऐच्छिक समापन होता है तो इस दशा में इस धारा के प्रावधान लागू नहीं होंगे।

हस्तान्तरित सम्पत्ति पर प्रथम प्रभार

(First Charge on Assets. Transferred)-

यदि नियोक्ता , क्षतिपूर्ति का दायित्व उत्पन्न होने के बाद अपनी सम्पत्ति का हस्तांतरण कर देता है तो इस प्रकार हस्तांतरित की गई अचल सम्पत्ति पर क्षतिपूर्ति की राशि का प्रथम प्रभार होगा भले ही इसके विरुद्ध कोई कानूनी प्रावधान विद्यमान हो।

जहाजों के कप्तान एवं नाविकों के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान

(Special Provisions regarding to Masters and Seamen)

श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम की धारा 15 के प्रावधान जहाजों के कप्तान या नाविकों पर ला ये प्रावधान निम्नलिखित हैं

1 दुर्घटना के सम्बन्ध में सूचना देने सम्बन्धी नियम-यदि चोटग्रस्त व्यक्ति जहाज का कप्तान नहीं है वरन् कोई अन्य व्यक्ति है तो दुर्घटना की सूचना और क्षतिपूर्ति का दावा जहाज के कप्तान को प्रस्तुत किया जायेगा परन्तु यदि दुर्घटना और अयोग्यता दोनों ही बातें जहाज पर हों तो इस परिस्थिति में किसी भी नाविक के लिये सूचना देना आवश्यक नहीं है।

2. कप्तान या नाविक की मृत्यु के बाद दावा प्रस्तुत करने की रीति-यदि कप्तान या नाविक की मृत्यु हो गई है तो उनके आश्रितों द्वारा मृत्यु की सूचना प्राप्त करने के एक वर्ष के भीतर क्षतिपूर्ति के लिये दावा प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि जहाज लापता हो गया है तो लापता होने की तिथि से 11 वर्ष के अन्दर क्षतिपूर्ति के लिये दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।

यदि दावा निर्धारित अवधि में प्रस्तुत नहीं किया जाता है और कमिश्नर इस बात से संतुष्ट हो जाये कि निर्धारित अवधि में दावा प्रस्तुत न करने के उचित कारण मौजूद थे तो निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद भी दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।

3. बयानों को गवाही के रूप में मानना जब कोई कप्तान या नाविक सेवा से हटा दिया गया है अथवा भारत या अन्य किसी भी देश के भाग में छोड़ दिया गया है तो देश के उस भाग में किसी न्यायाधीश या विदेश में राजदूत द्वारा लिया गया कोई बयान जो ऐसे व्यक्ति द्वारा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को भेजा गया है, दावे की कार्यवाही में गवाही के रूप में मान्य होगा।

() यदि उस बयान पर उस न्यायाधीश या राजदूत के हस्ताक्षर हों जिसके समक्ष यह बयान लिया गया था।

() यदि प्रतिवादी या अभियुक्त को गवाह से बहस करने का अवसर मिल गया था, और

() यदि बयान किसी दण्डनीय कार्यवाही के दौरान अभियुक्त की उपस्थिति में दिया गया था।

4. भरण पोषण का व्यय सहन करने पर यदि जहाज का स्वामी व्यापारिक जहाजरानी कानून के अधीन चोटग्रस्त जहाज के कप्तान या नाविक के भरण पोषण के व्यय सहन करता है तो जितनी अवधि तक वह ऐसे व्यय सहन करेगा वह किसी भी अर्द्धमासिक भुगतान के लिये उत्तरदायी नहीं होगा। . [धारा 15(4)]

5. क्षतिपूर्ति की राशि देय न होने पर श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम की धारा 15(5) के अन्तर्गत निम्नलिखित दशाओं में किसी भी चोट के लिये क्षतिपूर्ति की राशि देय नहीं होगी

() यदि उसे युद्ध पेंशन तथा रोक भत्ता (Detention Allowance) वाणिज्यिक नौ वहन योजना, 1939 के अधीन कोई ग्रेच्युइटी, पेंशन या भत्ता मिलता हो, अथवा

() यदि उसे युद्ध पेंशन तथा रोक भत्ता भारतीय नौ वहन योजना, 1941 के अधीन कोई ग्रेच्युइटी, पेंशन या भत्ता मिलता हो, अथवा

() केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाई गयी युद्ध पेंशन तथा रोक भत्ता योजना के अधीन कोई ग्रेच्युइटी, पेंशन या भत्ता मिलता हो ।

6. सूचना देने अथवा वाद प्रस्तुत न करने पर इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत निर्धारित अवधि में सूचना न देने या दावा प्रस्तुत न करने पर किसी व्यक्तिगत चोट के लिये की गई कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, यदि (A) उपरोक्त वर्णित किसी योजना के अन्तर्गत उस चोट के भुगतान के लिये आवेदन पत्र दे दिया गया है, तथा (B) राज्य सरकार यह प्रमाणित कर दे कि आवेदन पत्र इस विश्वास के साथ दिया गया था कि उस योजना में चोट के लिये भुगतान की व्यवस्था थी, तथा (C) ऐसे प्रमाण-पत्र की तिथि से एक माह के अन्दर कार्यवाही प्रारम्भ करने वाले व्यक्ति ने कार्यवाही प्रारम्भ कर दी है।

Workmen Compensation Act 1923

हवाई जहाजों के कप्तानों तथा दल के अन्य सदस्यों के सम्बन्ध में प्रावधान

(Provisions regarding to Captains and other Members of Crew of Aircrafts)

1 दुर्घटना एवं दावे के सम्बन्ध में सूचना-यदि वायुयान के कप्तान के अतिरिक्त दल का कोई भी सदस्य दुर्घटना से चोटग्रस्त होता है तो वह दुर्घटना तथा दावे की सूचना वायुयान के कप्तान को यह मान कर देगा कि वह उसका नियोक्ता है।

2. वायुयान के अन्दर दुर्घटना या अयोग्यता होने पर सूचना देने की आवश्यकता नहीं यदि दुर्घटना तथा उससे उत्पन्न अयोग्यता चलते हुये वायुयान में होती है तो चोटग्रस्त व्यक्ति को सूचना देने की आवश्यकता नहीं है।

3. मृत्यु की दशा में दावा प्रस्तुत करने का समय-मृत्यु का दावा निम्नलिखित समयावधि में प्रस्तुत किया जा सकता है

(i) वायुयान के कप्तान या दल के अन्य सदस्य की मृत्यु पर उनके आश्रित मृत्यु की सूचना मिलने के एक वर्ष के अन्दर क्षतिपूर्ति का दावा प्रस्तुत कर सकते हैं।

(ii) यदि वायुयान नष्ट हो गया है या लापता हो गया है तो उसके नष्ट होने या लापता होने की तिथि से 18 महीने के अन्दर क्षतिपूर्ति के लिये दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।

4. निर्दिष्ट समयावधि के बाद दावा-यदि कोई व्यक्ति निर्दिष्ट समयावधि में दावा प्रस्तुत नहीं कर पाता है और आयुक्त को देरी के कारणों से संतुष्ट करा देता है तो वह निर्धारित अवधि व्यतीत हो जाने के बाद भी दावा प्रस्तुत कर सकता है।

5. बयान को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना यदि वायुयान के चोटग्रस्त कप्तान या दल के किसी सदस्य को भारत या किसी विदेशी राष्ट्र के किसी भाग में छोड़ दिया जाता है तो वहाँ पर उसके द्वारा किसी भी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को दिये गये बयान तथा केन्द्रीय या राज्य सरकार को भेजे गये बयान को दावे की कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में निम्नलिखित शर्तों पर स्वीकार किया जा सकता है

(i) यदि उस बयान को न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट ने हस्ताक्षर करके प्रमाणित कर दिया हो, कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम

(ii) यदि प्रतिवादी या अभियुक्त या उसके एजेन्ट को गवाह से बहस करने का अवसर दिया गया हो । तथा

(iii) यदि बयान दण्डनीय कार्यवाही में अभियुक्त की उपस्थिति में दिया गया हो। उपरोक्त शर्तों के विरुद्ध प्रमाण प्रस्तुत करने पर उनकी सत्यता सिद्ध करने की आवश्यकता होती है।

विदेशों में कार्यरत कम्पनियों तथा मोटर वाहनों के श्रमिकों के सम्बन्ध में प्रावधान

(Provisions Relating to Workers of Companies and Motor Vehicles Working abroad)

इस धारा के प्रावधान निम्नलिखित कर्मचारियों पर लागू होंगे(i) विदेश में कार्य करने के लिये नियुक्त एवं कार्य करने वाले श्रमिकों पर, तथा (ii) भारत में रजिस्टर्ड मोटर वाहनों के लिये विदेशों में कार्य करने के लिये भेजे गये चालकों, मैकेनिकों, क्लीनरों तथा अन्य श्रमिकों पर।

दुर्घटना होने तथा दावे की सूचना-ऐसे श्रमिकों की दुर्घटना तथा क्षतिपूर्ति के लिये दावे की सूचना दुर्घटना घटित होने वाले देश में कम्पनी या मोटर वाहन के स्वामी को या उनके एजेन्ट को दी जा सकती है।

1 मत्य की दशा में दावाश्रमिक की मत्य की दशा में उसके आश्रितों द्वारा मृत्यु की सूचना प्राप्त करने के एक वर्ष के अन्दर क्षतिपूर्ति के लिये दावा प्रस्तुत किया जा सकता है।

2. समयावधि के बाद भी दावा प्रस्तुत करने का अधिकार-यदि कोई व्यक्ति क्षतिपूर्ति के लिये दावा निर्धारित अवधि में प्रस्तुत नहीं कर पाता और आयुक्त को दावा न प्रस्तुत करने के कारणों से संतुष्ट करा देता है तो वह एक वर्ष की अवधि बीत जाने के बाद भी दावा प्रस्तुत कर सकता है।

3. कार्यवाही में बयान को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना यदि किसी चोटग्रस्त श्रमिक को भारत या किसी विदेशी राष्ट्र के किसी भाग में छोड़ दिया जाता है तो वहाँ उसके द्वारा किसी भी न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को दिये गये बयान तथा केन्द्रीय या राज्य सरकार को भेजे गये बयान को दावे की कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में निम्नलिखित शर्तों पर स्वीकार किया जा सकता है

(i) यदि उस बयान को न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट ने हस्ताक्षर करके प्रमाणित कर दिया हो,
(ii) यदि प्रतिवादी या अभियुक्त या उसके एजेन्ट को गवाह से बहस करने का अवसर दिया गया हो तथा

(iii) यदि बयान दण्डनीय कार्यवाही में अभियुक्त की उपस्थिति में दिया गया हो। उपरोक्त शर्तों के विरुद्ध प्रमाण प्रस्तुत करने पर उनकी सत्यता सिद्ध करने की आवश्यकता होगी।

Workmen Compensation Act 1923

क्षतिपूर्ति से सम्बन्धित प्रत्याय (Returns as to Compensation)

राज्य सरकार सरकारी गजट में अधिसूचना जारी करके यह निर्देश दे सकती है कि प्रत्येक नियोक्ता अथवा नियोक्ताओं का निर्दिष्ट वर्ग अधिसूचना में वर्णित प्रारूप एवं समय में अधिकृत अधिकारी के पास एक सही प्रत्याय भेजेगा जिनमें निम्न बातों का उल्लेख होगा

(i) उन सभी चोटों की संख्या एवं विवरण जिनके सम्बन्ध में गत वर्ष में नियोक्ता ने क्षतिपूर्ति की थी,

(ii) क्षतिपूर्ति की राशि, तथा

(iii) राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट अन्य कोई विवरण।

अनुबन्ध से मुक्ति (Contracting Out) [धारा 17]-इस अधिनियम के पूर्व या बाद में किया गया कोई भी अनुबन्ध जिसके द्वारा श्रमिक अपनी चोट के लिये नियोक्ता से क्षतिपूर्ति पाने के अपने अधिकार का परित्याग कर देता है तथा जिससे किसी व्यक्ति का क्षतिपूर्ति देने का दायित्व कम हो जाता है, पूर्णतया व्यर्थ है। इस सम्बन्ध में यह बात महत्त्वपूर्ण है कि चोट रोजगार से तथा उसके दौरान लगी हो।

निम्नलिखित त्रुटियों के लिये दोषी व्यक्ति 500 रु. तक के आर्थिक दण्ड का भागीदार हो सकता है

() यदि वह धारा 10(3) का पालन करते ते हुये सूचना पुस्तिका (Notice Book) नहीं रखता अथवा. (ब) यदि वह धारा 10A(1) के अधीन कमिश्नर के पास विवरण नहीं भेजता अथवा, (स) यदि वह धारा 108 के अन्तर्गत रिपोर्ट नहीं भेजता अथवा. (द) यदि वह धारा 16 के अधीन प्रत्याय (Return) नहीं भेजता।

2. विवाद का स्थानान्तरण करना यदि कमिश्नर ऐसा उचित समझता है कि उसके समक्ष चल रही किसी मामले की कार्यवाही किसी अन्य कमिश्नर द्वारा अधिक सविधापूर्वक निपटायी जा सकती है तो वह इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत यह आदेश दे सकता है कि मामले का स्थानान्तरण दूसरे राज्य के कमिश्नर के यहाँ कर दिया जाये। इस दशा में उस मामले से सम्बन्धित समस्त प्रलेख दूसरे कमिश्नर के पास भेज दिये जायेंगे।

परन्तु यदि मामले की कार्यवाही के बीच कोई पक्षकार कमिश्नर के समक्ष उपस्थित हो चुका है तो आश्रितों के मध्य क्षतिपूर्ति की राशि के बँटवारे से सम्बन्धित कोई मामला दूसरे कमिश्नर के पास तब तक स्थानान्तरित नहीं होगा जब तक कि उस पक्षकार को पुनः सुनने का अवसर न दे दिया जाये। ।

परन्तु श्रमिक को राशि का वास्तविक भुगतान अथवा आश्रितों को राशि वितरण के मामले छोड़कर अन्य सभी मामले अन्य कमिश्नरों को राज्य सरकार की सहमति से तथा पक्षकारों की सहमति से ही स्थानान्तरित किये जा सकेंगे।

3. अन्य कमिश्नर की कार्यवाहीजिस कमिश्नर के पास मामला स्थानान्तरित किया गया है वह इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत अपने विवेक से मामले से सम्बन्धित जाँच पड़ताल करेगा, अपनी रिपोर्ट भेजेगा या मामले को निपटाने के लिये मामले की कार्यवाही को उसी तरह जारी रखेगा जैसे कि मामला उसके समक्ष ही प्रस्तुत किया गया था।

4. रिपोर्ट के अनुसार निर्णय देना अधिनियम की उप धारा 21(2) के अन्तर्गत जिस अन्य कमिश्नर को मामला स्थानान्तरित किया गया है, उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही कमिश्नर अपना निर्णय देगा।

5. राज्य सरकार का अधिकार राज्य सरकार यदि उचित समझे तो किसी भी मामले को एक कमिश्नर से दूसरे कमिश्नर के पास स्थानान्तरित कर सकती है।

Workmen Compensation Act 1923

आवेदन पत्र का प्रारूप  

(Format of Application)

कमिश्नर को आवेदन पत्र देने के सम्बन्ध में इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्न प्रकार हैं

1 आयुक्त के समक्ष आवेदन जब किसी दुर्घटना के होने पर क्षतिपूर्ति का दायित्व उत्पन्न होता है तो इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन ऐसी क्षतिपूर्ति का दावा कमिश्नर के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है।

2. आवेदन की अनिवार्यता के सम्बन्ध में दशायें-किसी भी कमिश्नर को आवेदन निम्नलिखित दशाओं में दिया जा सकेगा

(i) श्रमिक के आश्रितों को क्षतिपूर्ति की राशि के लिये दावा करना हो; तथा

(ii) पक्षकार अपने मध्य उत्पन्न हुये विवाद को ठहराव द्वारा निपटाने में असमर्थ हों।

3. आवेदन पत्र का निर्धारित प्रारूप में होना—कमिश्नर को दिया जाने वाला आवेदन पत्र निर्धारित प्रारूप में होना चाहिए M.B. and G. Engineering Factory Vs. Bahadur Singh. AIR (1955) Allahabad, 82 के मामले में न्यायालय का यह मानना था कि आवेदन पत्र का निर्धारित प्रारूप में न होना एक अनियमितता है, न कि अवैधता अतः ऐसी अनियमितता को बाद में सुधारा जा सकता है।

4.निर्धारित फीसआवेदन पत्र के साथ उसके लिये निर्धारित की गई फीस भी प्रस्तत करनी होगी। 5. आवेदन पत्र में निहित बातें-आवेदन पत्र में निम्नलिखित बातों का उल्लेख किया जाना चाहिए(i) आवेदन पत्र जिन परिस्थितियों के कारण दिया गया है उनका उल्लेख तथा वह क्षतिपूर्ति की राशि या आदेश जिसके लिये आवेदक दावा करता है।

(ii) नियोक्ता के विरुद्ध क्षतिपूर्ति के दावे की स्थिति में, नियोक्ता को सूचना देने की तिथि तथा दावा प्रस्तुत नहीं किया गया है या देर से प्रस्तुत किया गया है तो ऐसी गलती या भूल का कारण

(iii) सभी पक्षकारों के नाम एवं पते।

(iv) आश्रितों द्वारा क्षतिपूर्ति के आवेदन के अतिरिक्त अन्य सभी मामलों का संक्षिप्त विवरण।

(v) अन्य कोई तथ्य जिसके लिये निर्देश कर दिया जाये।

4. आवेदक के निरक्षर होने पर यदि आवेदक अनपढ़ है या अन्य किसी कारणवश वह स्वयं आवेदन नहीं लिख सकता है तो वह अपना आवेदन पत्र कमिश्नर के निर्देशन में किसी अन्य व्यक्ति से लिखवा सकता है प्राणघातक

Workmen Compensation Act 1923

दुर्घटनाओं के मामले में कमिश्नर को अतिरिक्त जमा माँगने का अधिकार

(Power of Commission to ask for further Deposit in case of Fatal Accidents)

प्राणघातक दुर्घटनाओं की स्थिति में कमिश्नर अधिनियम के निम्नलिखित प्रावधानों के अन्तर्गत अतिरिक्त जमा माँगने का अधिकार रखता है

1 अतिरिक्त राशि जमा करने के लिये नोटिस भेजना–यदि किसी नियोक्ता ने दुर्घटना के कारण चोट लगने से किसी श्रमिक की मृत्यु होने पर क्षतिपर्ति की राशि कमिश्नर के पास जमा करवायी है और कमिश्नर यह मानता है कि जमा करायी गई राशि अपर्याप्त है तो वह नियोक्ता को अतिरिक्त राशि जमा करने के लिये नोटिस दे सकता है। इस नोटिस में वह उन कारणों का भी उल्लेख करेगा जिनके लिये अतिरिक्त राशि की माँग की गई है।

2. नियोक्ता द्वारा अतिरिक्त जमा राशि जमा न करने के कारण स्पष्ट करना यदि नियोक्ता अतिरिक्त राशि जमा नहीं करता है तो उसे उन सभी कारणों को स्पष्ट करना होगा जिनकी वजह से वह अतिरिक्त राशि जमा नहीं करना चाहता।

3. कमिश्नर के असंतुष्ट होने पर अतिरिक्त राशि जमा करने का आदेश यदि कमिश्नर नियोक्ता द्वारा अतिरिक्त राशि जमा न कराने के कारणों से सहमत नहीं होता है तो वह क्षतिपूर्ति की कुल देय राशि पर अपना निर्णय दे सकता है और शेष अतिरिक्त राशि को जमा करने का आदेश दे सकता है।

Workmen Compensation Act 1923

कमिश्नर की कार्य विधि एवं उससे सम्बन्धित शक्तियाँ

(Powers of Commissioner Regarding Procedure)

एक कमिश्नर को निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में दीवानी न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त हैं

(i) शपथ के साथ गवाही लेने के सम्बन्ध में,

(ii) गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित करने के सम्बन्ध में.

(iii) आवश्यक प्रपत्रों एवं भौतिक वस्तुओं को प्रस्तुत करने के लिये बाध्य करने के सम्बन्ध में।

इसके अतिरिक्त अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 195 के उद्देश्यों के लिये भी कमिश्नर एक दीवानी न्यायालय माना जायेगा।

पक्षकारों की उपस्थिति (Appearance of Parties) [धारा 24]-कमिश्नर को अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने के लिये बाध्य कर सकता है, परन्तु कमिश्नर के समक्ष आवेदन करने, या अन्य किसी कार्य के लिये उसकी ओर से निम्न में से कोई भी व्यक्ति कमिश्नर के सामने उपस्थित हो सकता है

(i) कारखाना अधिनियम के अधीन नियुक्त कोई निरीक्षक।

(ii) खान अधिनियम के अधीन नियुक्त कोई निरीक्षक

(iii) पक्षकार का वकील।

(iv) सरकार द्वारा निर्दिष्ट कोई अधिकारी जिसे उस व्यक्ति ने अधिकत किया है।

(v) रजिस्टर्ड श्रम संघ का कोई पदाधिकारी।।

(vi) कमिश्नर की सहमति से सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा अधिकृत कोई व्यक्ति। (vii) बीमा कम्पनी का कोई भी अधिकारी के मामले में यह निर्णय दिया गया था कि संयुक्त हिन्दू परिवार का कतो (Karta) अधिकृत न किये जाने पर भी चोटग्रस्त श्रमिक की ‘ओर से आवेदन पत्र प्रस्तुत कर सकता है।

7 गवाही लिखने का तरीका (Method of Recording Evidence) [धारा 25]-गवाही लिखने से सम्बन्धित प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं

Workmen Compensation Act 1923

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(EXPECTED IMPORTANT QUESTIONS FOR EXAMINATION)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(LONG ANSWER QUESTIONS)

1 कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में सक्षम रहा है।” इस कथन की समालोचना कीजिए।

“Workmen’s Compensation Act has been able to improve the economic condition of workers.” Comment on this statement.

2. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 की आवश्यकता और उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।

Discuss the need and objects of the Workmen’s Compensation Act, 1923.

3. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत श्रमिक, मजदूरी तथा आश्रित की परिभाषा दीजिए।

Define workman, wages and dependent under the Workmen’s Compensation Act.

4. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम की विशेषताएँ बताते हए आंशिक अयोग्यता एवं पूर्ण अयोग्यता के बारे में बताइये तथा दुर्घटना का सामान्य अर्थ समझाइए।

Describe the main features of Workmen’s Compensation Act, state about partial disablement and total disablement and also write the general meaning of accident.

5. श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत एक मजदूर की सम्पूर्ण तथा आंशिक अंगहानि में क्या अन्तर है ? समझाकर लिखिए।

Point out the difference between total and partial disablement under the Workmen’s Compensation Act. Axplain clearly.

6. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत आंशिक अयोग्यता तथा पूर्ण अयोग्यता शब्दों की परिभाषा दीजिए। दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

Define Partial disablement and Total disablement under the Workmen’s Compensation Act. Distinguish between them.

7. दुर्घटना से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए कि एक दुर्घटना कब व्यवसाय से उत्पन्न हुई एवं व्यबसाय की प्रगति में घटित हुई मानी जायेगी।

What do you understand by an accident ? Explain fully when an accident arises out of and in the course of employment.

8. रोजगार उत्पन्न’ तथा ‘रोजगार के दौरान’ दुर्घटना से आप क्या समझते हैं ? प्रमुख निर्णयों के आधार पर इनकी व्याख्या कीजिए।

What do you understand by ‘Accident arising out of employment and ‘Accident arising in the course of employment? Explain this statement supported by leading cases.

9. एक श्रमिक को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति की राशि की गणना करने के सम्बन्ध में श्रमिक क्षतिपर्ति अधिनियम में जो भी प्रावधान हैं, उन्हें समझाइए।

Discuss the provisions relating to the calculation of compensation payable to a workman under the Workmen’s Compensation Act.

10 श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम में क्षतिपूर्ति की राशि और इसके वितरण सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।

the provisions of the Workmen’s Compensation Act in regard to the amount of compensation and distribution thereof.

11. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए

(i) आंशिक अयोग्यता

(ii) क्षतिपूर्ति की राशि की गणना करना, एवं

(iii) व्यवसाय में उत्पन्न हुई एवं व्यवसाय की प्रगति में हुई दुर्घटना।

Define the following under Workmen’s Compensation Act, 1923 :

(i) Partial disablement

(ii) Computation of amount of compensation and

(iii) Accident arising out of and in the course of employment.

Workmen Compensation Act 1923

12. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति हेतु मालिक के दायित्व सम्बन्धी नियमों का वर्णन कीजिए।

Discuss the rules regarding the employer’s liability for compensation under Workmen’s Compensation Act.

13. श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत कब-कब नियोक्ता का श्रमजीवी को क्षतिपूर्ति चुकाने का दायित्व होता है ? ऐसी परिस्थितियाँ बताइये जबकि नियोक्ता का ऐसा दायित्व नहीं होता है।

When is the employer liable for paying compensation to a workman under the Workmen’s Compensation Act ? State the circumstances in which the employer is not so liable.

14. श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अधीन नियोक्ता क्षतिपूर्ति के लिए कब उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और कब नहीं ? विवेचना कीजिए।

When an employer is liable and not liable for compensation under the Workmen’s Compensation Act ? Discuss.

15. मासिक मजदूरी का क्या अर्थ है और इसकी गणना श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत किस प्रकार की जाती है ?

What is the meaning of monthly wages and how they are calculated under the Workmen’s Compensation Act ?

16. श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत कमिश्नर की नियुक्ति, उसकी शक्तियों तथा उसकी नियुक्ति की प्रक्रिया से सम्बन्धित प्रावधानों की विवेचना कीजिए।

Describe the provisions relating to the appointment, powers, and procedure of the Commissioner under the Workmen’s Compensation Act.

17. क्षतिपूर्ति सम्बन्धी दावों के समझौतों का कमिश्नर के यहाँ पंजीयन किस प्रकार होता है ? इन समझौतों का पंजीयन न कराने का क्या परिणाम होगा ?

How are the agreements regarding settlement of compensation are registered with the commissioner? What will be the effect of failure to register agreements?

18. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति के भुगतान तथा उसमें त्रुटि पर अर्थदण्ड के प्रावधानों को बताइए।

State the provisions regarding payment of compensation and penalty for default, under Workmen’s Compensation Act, 1923. |

19. श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनिमय, 1923 के अन्तर्गत सूचना तथा दावों के सम्बन्ध में धारा 10 के प्रावधानों को स्पष्ट कीजिए।

Clarify the provisions relating to Notice and claims in Section 10 of the Workmen’s Compensation Act, 1923.

Workmen Compensation Act 1923

लघु उत्तरीय प्रश्न

(SHORT ANSWER QUESTIONS)

1. पूर्ण अयोग्यता एवं आंशिक अयोग्यता में अन्तर कीजिए।

Differentiate between total disablement and partial disablement.

2. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम में श्रमिक का अर्थ समझाइए।

Explain the meaning of Workman in Workmen’s Compensation Act.

3. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के क्या उद्देश्य हैं ?

4. स्थायी एवं अस्थायी आंशिक अयोग्यता में अन्तर कीजिए।

Differentiate between permanent and temporary partial disablement.

5. श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत कार्य के समय एवं कार्य के दौरान’ का अर्थ समझाइए।

Explain the meaning of ‘Out of and in the course of employment under Workmen’s Compensation Act.

6. आंशिक अयोग्यता का क्या अर्थ है ?

What is meant by ‘Partial Disablement’ ?

7. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत आश्रित में कौन-कौन से लोग शामिल होते हैं ?

Who are included as dependents under Employees Compensation Act ?

8. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति की राशि की गणना करने के नियम बताइए।

State the rules regarding determination of the amount of compensation under Workmen’s Compensation Act.

9. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत कमिश्नर की नियुक्ति तथा अधिकार सम्बन्धी प्रावधानों का वर्णन कीजिए।

Describe the provisions relating to appointment and powers of Commissioner under the Workmen’s Compensation Act.

10. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।

Write short notes on Workmen’s Compensation Act.

11. कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम के अन्तर्गत एक कमिश्नर के किन-किन आदेशों के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है ?

Under the Workmen’s Compensation Act, which orders of the Commissioner are Appealable to the High Courts?

Workmen Compensation Act 1923

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