Bcom 1st Year Accounting Standards With IFRS Study Material Notes In Hindi

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Bcom 1st Year Accounting Standards With IFRS Study Material Notes In Hindi

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Bcom 1st Year Financial Accounting Standards With IFRS Study Material Notes In Hindi: Formulation of Accounting Standards, Columnar form (This post is Most Important For BCom 1st Year Students ) :

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लेखांकन प्रमाप, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमाप सहित

(ACCOUNTING STANDARDS WITH I.F.R.S.)

लेखांकन प्रमाप से आशय ऐसे प्रमापों से है, जो सभी व्यवहारों के लिये, एक ही प्रकार की विधि पहचानने की क्रिया तथा परिणाम मापने तथा सूचना प्रदान करने की एक प्रक्रिया है जिसमें उसके प्रयोग करने वाले एक उचित निर्णय ले सकें।

-अमेरिकन एकाउन्टिंग एसोसियेशन।

यह अत्यन्त आवश्यक माना गया है कि एक कम्पनी के वित्तीय विवरणों की उसी के समतुल्य अन्य कम्पनियों के वित्तीय विवरणों से तुलना की जा सके। तदनुसार प्रबन्धक कम्पनी की आर्थिक स्थिति एवं लाभों पर कम या – व्यक्त करने पर नियन्त्रण लगा सके। यह भी आवश्यक है कि वित्तीय विवरणों में जो भी लेखांकन सूचनायें दी गयी हों, वह विभिन्न उपकृमियों द्वारा विश्वसनीय मानी जायें, समान रूप से वित्तीय विवरण बनाने से उनकी तुलनात्मक तथा विश्वसनीयता बढ़ती है। इसके निम्नलिखित दो अंग हैं

(1) विभिन्न लेखाकार वर्षों का एक उपक्रम का आर्थिक विवरण एक ही पद्धति तथा नीतियों पर आधारित होता है ताकि उपक्रम की अर्थपूर्ण तुलनात्मक समीक्षा प्रगति के सन्दर्भ में की जा सके। इसे सामान्य रूप से समय तालिका विश्लेषण (Time Series Analysis) कहते हैं।

(2) विभिन्न उपक्रमों के वित्तीय विवरण एक ही पद्धति एवं नीतियों से सम्बन्धित एक ही समय पर बनाये जाते हैं ताकि एक ही समय में सम्बन्धित कार्यों का परिणाम निकाला जा सके। इसे आड़ी खण्डनीय विश्लेषण (Cross Sectional Analysis) कहते हैं।

लेखांकन प्रमाप को कार्य है कि विवेकीकृत रचनात्मक रूपरेखा प्रदान करे ताकि विश्वसनीय आर्थिक विवरण उच्च स्थिति का बनाया जा सके।

“लेखांकन प्रमाप वह नीति गति प्रपत्र है जो मान्य लेखांकन निकाय द्वारा निर्गमित किया जाता है जिसमें लेखांकन व्यवहार घटनाओं के विभिन्न पहलू मापन, प्रबन्ध एवं प्रकटीकरण से सम्बन्धित होते हैं।”

-टी०पी० घोष

उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट है कि वित्तीय विवरण के प्रारूप के तैयार करने में लेखांकन प्रमाप का विशेष योगदान होता है। लेखांकन प्रमाप के अभाव में विभिन्न विकल्प उत्पन्न हो जायेंगें जिसमें लेखाकर अपनी रुचि के अनुसार लेखा तैयार करेगा। इस रचनात्मक लेखांकन पद्धति द्वारा बनाये गये वित्तीय विवरण अविश्वसनीय माने जायेगे और परिणामों पर विशेष संयम नहीं होगा इसलिये सार्थक लेखांकन प्रमापों का होना अति आवश्यक है।

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उद्देश्य

(i) लेखांकन प्रमाप के नियम बनाना।

(ii) जनहित में लेखांकन प्रमापों का संयोजन करना।

(iii) प्रकाशन कराना। (iv) विश्व स्तर पर मान्यता दिलाना

(v) वित्तीय विवरणों के परिणामों के सन्दर्भ में विश्वसनीयता जाग्रत करना।

(vi) असंयोगिक एवं भ्रमित लेखांकन क्रियाओं को हटाना।

इसलिये 29 जून, 1973 को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप समिति (International Accounting Standards Committee-IASC) का गठन किया गया।

भारत में लेखांकन प्रमाप

21 अप्रैल, 1977 में भारत में इन्सटीटयट ऑफ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट ऑफ इण्डिया ने लेखांकन मानक या प्रमाप लाश करने के लिये लेखांकन मानक बोर्ड (Accounting Standards Board) का गठन किया जिसन भारत का पारास्थतियों के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप समिति (International Accounting Standard Committee) द्वारा बताय गये । प्रमापों के भारत में लागू करने के सम्बन्ध में समय-समय पर लेखांकन प्रमाप बनाये।

एकाउन्टिंग मानक बोर्ड की रूपरेखा

सभी इच्छुक पार्टियों को अपना उचित प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान करने के लिये यह बनाया गया है। जिसमें। वतमान में परिषद के सदस्य, उद्योगों के प्रतिनिधि, बैंक. कम्पनी लॉ बोर्ड, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, महालेखा परीक्षक आडीटर जनरल ऑफ इण्डिया एवं सेवी (Security Exchange Board of India) है।

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लेखांकन प्रमापों की संरचना (Formulation of Accounting Standards)

(1) लेखांकन प्रमाप इस प्रकार के बनाये जाने चाहिये जो नियम, कस्टम एवं भारत के वातावरण के अनुकूल हों।

(2) लेखांकन प्रमाप प्रकृति से नियम तो हैं परन्तु वास्तव में नियम नहीं होते। यद्यपि इनकी संरचना करने में हर सम्भव सावधानी बरती जाती है तब भी कानून एवं लेखांकन प्रमाप में एक विरोध उत्पन्न हो सकता है क्योंकि समय-समय पर लेखांकन प्रमापों में संशोधन किया जाता है। किसी भी दशा में लेखांकन प्रमापों का विवरण लेखांकन प्रमापों की अवहेलना नहीं कर सकता। फिर भी असहमति की स्थिति में विभिन्न व्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हये वित्तीय विवरण सम्बन्धित उचित नियमों को ध्यान में रख कर तैयार करना चाहिये। ऐसी स्थिति में लेखांकन प्रमाप उचित सीमाओं तक लागू नहीं होंगे। फिर भी संस्थायें यह निश्चय करेंगी कि किस सीमा तक वित्तीय विवरण एवं अंकेक्षकों की रिपोर्ट में प्रकटीकरण किया जाये। यह प्रकटीकरण जिस मद के सम्बन्ध में हो उसका पूर्ण एवं उचित ।

(3) लेखांकन प्रमाप मदों से सम्बन्धित बनाये जायें तथा इन्स्टीट्यूट द्वारा वर्णित तारीख से ही उनका प्रयोग करना चाहिये

एवं सभी उपक्रमों में उनका प्रयोग करना चाहिये जब तक कि कोई विशेष बात न हो।

(4) लेखांकन प्रमाप जहाँ तक सम्भव हो महत्वपूर्ण विषयों से सम्बन्धित होने चाहिये।

उपरोक्त के संदर्भ में एकाउन्टिंग मानक बोर्ड ने लेखांकन प्रमाप बनाने के लिये निम्न विधि का प्रयोग किया :

(1) इस बोर्ड ने लेखांकन प्रमाप की एक सीमा तैयार की, जहाँ पर इनका प्रयोग करना आवश्यक होगा।

(2) विभिन्न उपक्रमों से नियम बनाने में सहायता लेगी। फिर यह उपक्रम प्रारम्भिक ड्राफ्ट तैयार करेंगे। तत्पश्चात् एकाउन्टिंग मानक बोर्ड इसका अध्ययन करेगा और उसके बाद विभिन्न बाह्य संस्थाओं को भेजेगा जैसे FICCI, ASSOCHAM, SCOPE, CLB, S8AG, ICWAI, ICSI, CDBT आदि। फिर यह बोर्ड उपरोक्त सभी के  प्रतिनिधियों को विचार विमर्श के लिये आमंत्रित करेगा।

(3) उपरोक्त कार्य करने के पश्चात् इन्स्टीट्यूट के सदस्यों को उनके विचार जानने के लिये इनकी प्रति इनके पास बोर्ड । भेजेगा तथा इन्स्टीट्यूट के जनरल में प्रकाशित करेगा जिसमें निम्न बातों का समावेश होगा :

(A) एक विवरण जिसमें अवधारणा एवं लेखांकन सिद्धान्त जोकि प्रमाप से सम्बन्धित हो,

(B) प्रमाप में दिये गये मदों की परिभाषायें,

(C) पद्धति जिसमें लेखांकन सिद्धान्त सम्बन्धी प्रमाप बनाये गये हैं,

(D) उपक्रमों की श्रेणी जिसमें प्रमापों का प्रयोग किया जायेगा,

(E) प्रमाप प्रयोग करने की तारीख।

(4) ड्राफ्ट पर सभी समालोचनाओं के बाद अन्तिम प्रारूप तैयार करना तथा इन्स्टीट्यूट को भेजना।

(5) अंत में इन्स्टीट्यूट की परिषद इस ड्राफ्ट का अध्ययन करेगी यदि आवश्यक हुआ तो एकाउन्टिंग मानक बोर्ड से राय लेकन परिवर्तन कर सकती है। तदुपरांत इन्स्टीट्यूट की अधिकृत परिषद इसको निर्गमित कर देगी।

इस तरह भारत में लागू करने के सम्बन्ध में समय-समय पर निम्नांकित लेखांकन प्रमापों के सुझाव दिये गये हैं :

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(1) लेखांकन नीतियों का प्रकटीकरण (Disclosure of Accounting Policies)

(2) स्कन्धों का मूल्यांकन (Valuation of Inventories)

(3) वित्तीय स्थिति में परिवर्तन (Changes in Financial Position)

(4) आर्थिक चिट्टे की तिथि के बाद होने वाली आकस्मिकतायें एवं घटनायें (Contingencies and Events Occuring after the Balance Sheet Date)

(5) अवधि में लाभ या हानि, पूर्व अवधि एवं असामान्य मदों तथा लेखांकन नीतियों में परिवर्तन (Profit or loss for the period, Prior period and Extracrdinary Items and Changes in Accounting Policies)

(6) हास लेखांकन (Depreciation Accounting)

(7) निर्माणी अनुबन्धों के लिये लेखांकन (Accounting for Construction Contracts)

8) शोध एवं विकास का लेखांकन (Accounting for Research and Development)

(9) आगम स्वीकृति या पहचान (Revenue Recognition)

(10) स्थायी सम्पत्तियों के लिये लेखांकन (Accounting for Fixed Assets)

(11) विदेशी विनिमय दर में परिवर्तन के प्रभावों का लेखांकन (Accounting for the effects of change in Foreign Exchange Rate)

(12) सरकारी अनुदानों का लेखांकन (Accounting for Government Grants)

(13) विनियोगा का लेखांकन (Accounting for Investments)

(14) एकीकरण का लेखांकन (Accounting for Amalgamations)

(15) सेवायोजकों के वित्तीय विवरणों में सेवा निवृत अनुलाभों का लेखांकन (Accounting for Retirement Benefits in the Financial Statements of Employers)

(16) ऋण लेने की लागतें (Borrowing Costs)

(17) प्रखण्ड लेखांकन (Segment Reporting)

(18) सम्बद्ध पक्षकार अभिव्यक्ति (Related Party Disclosures)

(19) पट्टे (Leases)

(20) प्रति अंश आय (Earnings Per Share)

(21) समेकित वित्तीय विवरण (Consolidated Financial Statements)

(22) आय पर करों हेतु लेखांकन (Accounting for Taxes on Income)

(23) समेकित वित्तीय विवरणों में निवेशों हेतु लेखांकन (Accounts for Investements in Associates in

Consolidated Financial Statements)

(24) बंद किये गये परिचालन (Discontinuing Operations)

(25) अंतरिम वित्तीय प्रतिवेदन (Interim Financial Reporting)

(26) अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible Assets)

(27) संयुक्त साहस में हितों का वित्तीय प्रतिवेदन (Financial Reporting of Interests in Joint Venture) (28) सम्पत्तियों की क्षति (Impairment of Assets)

(29) सम्भाव्य दायित्वों एवं सम्भाव्य सम्पत्तियों की व्यवस्था करना (Provisions, Contingent Liabilities and Contingent Assets)

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नोट 1. संस्थायें जिन पर लेखांकन मानक लागू नहीं होते :

(i) एकल व्यापारी संस्थायें/व्यक्ति

(ii) साझेदारी फर्मे

(iii) पंजीकृत सहकारी समितियाँ

(iv) एकल हिन्दू अविभाजित परिवार

(v) व्यक्तियों की संस्था (vi) प्रन्यास नोट

नोट 2. निम्नलिखित उपक्रमों में AS 3 तथा AS 17 अनिवार्य रूप में लागू हैं :

(i) वह उपक्रम जिनके अंश तथा ऋण प्रतिभूतियाँ भारत के मान्यता प्राप्त स्कन्ध विनिमय विपणि में सूचीबद्ध हों।

(ii) समस्त वाणिज्यिक औद्योगिक तथा व्यापारिक उपक्रम जिनकी लेखांकन अवधि में विक्रय 50 करोड़ से अधिक हो।

नोट 3. AS 20 उन उपक्रमों के लिये सामान्य रूप से अनिवार्य है जिनके समता अंश या सम्भावित अंश भारत में पंजीकृत स्कन्ध विनिमय में सूचीबद्ध हों। वह उपक्रम जिनके पास अंश या सम्भावित अंश नहीं हैं लेकिन वह सूचीबद्ध हैं जो प्रति अंश आय इंगित करते हैं, उनको AS 20 के आधार पर इनकी गणना करके प्रति अंश आय को प्रकट करना चाहिये।

नोट 4. AS 21 उस उपक्रम के लिये अनिवार्य हैं जो समेकित वित्तीय विवरण पेश करते हों।

नोट 5. AS 22 जिनकी लेखांकन अवधि 1.4.2001 या उसके बाद की हो। यह प्रकृति में उनके लिये अनिवार्य होती है, जो:

(A) जिनकी लेखांकन अवधि 1.4.2001 या उसके बाद प्रारम्भ होती हो जो कि निम्न से सम्बन्धित है : (i) वह उपक्रम जिनके अंश या ऋण प्रतिभूतियाँ भारत में पंजीकृत स्कन्ध विनिमय विपणि में सूचीबद्ध हों और वह उपक्रम जो अंश या ऋणप्रतिभूतियाँ निर्गमन करने के दौर गुजर रहे हों जो भारत में पंजीकृत स्कन्ध विनिमय विपणि ___ में सूचीबद्ध होंगे जैसा कि इस सन्दर्भ में संचालक मण्डल के प्रस्ताव से पता चलता है।

(ii) एक ग्रुप के सभी उपक्रमों में यदि सूत्रधारी कम्पनी समेकित वित्तीय विवरण तैयार करती है तो लेखांकन मानदण्ड उपरोक्त (i) के अर्थों से उस ग्रुप के किसी भी उपक्रम के सम्बन्ध में अनिवार्य प्रकृति का होता है।

(B) उपरोक्त  (A) में नहीं आती हों उन सभी की प्रारम्भ करने की लेखांकन अवधि 1.4.2002 या बाद की, के सम्बन्ध में।

(C) सभी उपक्रमों की प्रारम्भ करने की अवधि 1.4.2003 या बाद की सभी लेखांकन अवधियाँ।

AS1 – लेखांकन नीतियों का प्रकटीकरण (Disclosure of Accounting Policies)

सर्वप्रथम लेखांकन प्रमाप, जो लेखांकन नीतियों के प्रकटीकरण से सम्बन्धित हैं घोषित किया गया। इसमें उन नीतियों का वर्णन किया गया है जो वित्तीय विवरणों के तैयारकरने एवं उनके प्रस्तुतीकरण में अपनायी जाती हैं।

इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तीन आधारभूत लेखांकन मान्यतायें होती हैं :

स्थिरता या एकरूपता (Consistency) : यह एक सामान्य मान्यता है कि वर्ष प्रतिवर्ष लेखांकन नीतियों या सि मएकरूपता या स्थिरता होनी चाहिये जिससे लेखांकन सूचनाओं एवं समंकों में परस्पर तुलनीयता बनी रहे अन्यथा उन्हें निर्णय लेने में कठिनाई होगी।

 (ii) सतत व्यवसाय (Going concern) : यह मानकर चलना चाहिये कि व्यवसाय अनन्त समय तक चलता रहेगा। व्यवसाय या उपक्रम का अपने समापन के लिये न तो कोई विचार होता है, न ही कोई प्रवृत्ति होती है और न ही ऐसा जरूरी होता है। साथ ही व्यवसाय अपनी क्रियाओं को कम करने की भी कोई प्रवृत्ति नहीं रखता है।

(iii) उपार्जन (Accruals) : किसी भी व्यवसाय के लेखांकन अवधि से सम्बन्धित सभी व्यय जिनका उस समय भुगतान किया जा चुका है अथवा भुगतान नहीं किया गया है अर्थात् अदत्त व्यय है और उसी लेखांकन अवधि से सम्बन्धित सभी आय जो अर्जित कर ली गयी हैं चाहे उनकी प्राप्ति हयी है या होनी शेष है अर्थात् उपार्जित आय हैं उनको पुस्तकों में समायोजित कर लेना चाहिये जिससे कि लेखांकन अवधि की सही स्थिति ज्ञात हो सके।

विभिन्न उपक्रमों या व्यवसायों द्वारा निम्नलिखित क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न लेखांकन नीतियाँ अपनाई जा सकती हैं :

  1. ह्रास, रिक्तिकरण और अपलेखकन की पद्धतियाँ
  2. स्कन्ध का मूल्यांकन
  3. विनियोगों का मूल्यांकन
  4. निर्माण के समय व्ययों का लेखांकन
  5. ख्याति का लेखांकन
  6. अवकाश ग्रहण के लाभों का लेखांकन
  7. स्थायी सम्पत्तियों का मूल्यांकन
  8. विदेशी मुद्रा का परिवर्तन
  9. आकस्मिक दायित्वों का लेखांकन
  10. दीर्घकालीन अनुबन्धों के लाभों का लेखांकन

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लेखांकन नीतियों के प्रकटीकरण की अपेक्षायें

(i) सभी महत्वपूर्ण लेखांकन नीतियों को प्रकट करना चाहिये।

(ii) वित्तीय विवरणों एवं महत्वपूर्ण लेखांकन नीतियों का प्रकटीकरण एक ही स्थान पर प्रकट करना चाहिये।

(iii) वित्तीय विवरण तैयार करने में मूलभूत या आधारभूत लेखांकन मान्यतायें अपनायी जाती हैं जैसे चालू व्यवसाय, थरता और उपार्जन तो विशेष प्रकटीकरण करना आवश्यक नहीं है। लेकिन किसी मूलभूत या आधारभूत लेखांकन धारणा के न अपनाये जाने पर, यह तथ्य प्रकट किया जाना चाहिये।

(iv) यदि लेखांकन नीति में किसी प्रकार का परिवर्तन किया जाता है जिसका भौतिक प्रभाव चालू वर्ष की अवधि में पड़ता है तो जितनी राशि से वित्तीय विवरण का कोई मद प्रभावित होती है तो उस राशि के साथ यह परिवर्तन प्रकट करना चाहिये। परन्तु जहाँ ऐसी राशि पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से निश्चित न की जा सकती हो वहाँ इस तथ्य का उल्लेख किया । जाना चाहिये। यदि लेखांकन नीति में परिवर्तन का प्रभाव बाद की अवधियों में जाकर पड़ता है तो ऐसे परिवर्तन का तथ्य उस । अवधि में अवश्य कर देना चाहिये जिस अवधि में परिवर्तन किया गया है।

 AS-2 स्कन्ध का मूल्यांकन (Valuation of Inventories)

एक ही उद्योग की विभिन्न इकाइयों के रहतिये के मूल्यांकन में समानता लाने के लिये इसका प्रयोग किया जाता है जिससे | तलनात्मक अध्ययन सरलतापूर्वक किया जा सके। इसमें निम्नलिखित शब्दों का प्रयोग किया जाता है ।

1.स्कन्ध (Inventories): इसका आशय मूर्त या स्पर्शनीय सम्पत्ति से है जिसे व्यवसाय में विक्रय के लिये रखा जाता है। या माल के उत्पादन के प्रयोग करने के लिये होता है।

2 .क्रय की लागत (Cost of Purchase): इसमें क्रय मूल्य, आन्तरिक भाड़ा, आयात कर तथा अन्य व्यय जो माल के क्रय से सम्बन्धित हो, सम्मिलित किये जाते हैं तथा व्यापारिक बट्टे, ड्यूटी एवं अन्य अनुदानों को घटाया जाता है जो कि इस वर्ष तुरन्त या स्थगित रूप में इस उद्देश्य के लिये किये हैं? |

3 .ऐतिहासिक लागत (Historical Cost): इससे आशय उस लागत से है जो स्कन्ध को वर्तमान स्थिति में लाने के लिये की जाती है जिसमें परिवर्तन लागत, क्रय की लागत तथा अन्य लागत का योग सम्मिलित किया जाता है।

4 .प्रत्यक्ष लागतें (Direct Costs): यह वह विधि होती है जिसमें स्कन्ध की लागत केवल चल लागतों के उचित भाग के रूप में निर्धारित होती है, सभी स्थायी लागतें आगम के विरुद्ध उस अवधि में प्रभारित या लगाई जाती हैं, जिनमें कि वे व्यय की जाती हैं।

5 .परिवर्तन की लागत (Cost of Conversion) : यह लागत विशेष रूप से इकाइयों के उत्पादन में आती हैं, जैसे प्रत्यक्ष श्रम, प्रत्यक्ष व्यय आदि।

6 .स्थायी लागतें (Fixed Costs) : यह लागतें सदैव स्थायी होती हैं जिन पर उत्पादन की मात्रा का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता।

7 .शुद्ध वसूली योग्य मूल्य (Net Realisable Value) : इसमें व्यवसाय की सामान्य स्थिति में होनेवाले वास्तविक या अनुमानित विक्रय मूल्य में से माल को पूर्ण करने की लागतें एवं माल की बिक्री में की गई विशेष लागतें घटाने के बाद आने वाला मूल्य शुद्ध वसूली योग्य मूल्य माना जाता है।

8 .परिवर्तनशील लागतें (Variable Cost): यह लागते प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन की मात्रा से जुड़ी होती है। जैसे सामग्री की लागत, मजदूरी लागत आदि।

ऐतिहासिक लागत का निर्धारण (Determination of Historical Cost): इस लागत के निर्धारण करने में उत्पादन उपरिव्यय, बिक्री उपरिव्यय, सामान्य प्रशासन उपरिव्यय आदि का अध्ययन किया जाता है। उत्पादन उपरिव्यय में प्रत्यक्ष सामग्री एवं प्रतयक्ष श्रम को छोड़कर अन्य लागतों को शामिल किया जाता है जैसे अप्रत्यक्ष सामग्री, अप्रत्यक्ष श्रम, कारखाना भवन व उपकरण का ह्रास आदि। लेकिन बिक्री उपरिव्यय सामान्य प्रशासन उपरिव्यय एवं शोध की लागत को स्कन्ध की लागत में सम्मिलित नहीं किया जाता है।

लागत सूत्र का उपयोग : लागत जानने के लिये विभिन्न पद्धतियाँ का प्रयोग किया जाता है जैसे पहले आना और पहले जाना, बाद में आना और पहले जाना, औसत लागत, आधार स्कन्ध, समायोजन विक्रय मूल्य, नवीनतम क्रय मूल्य, विशेष पहचान, प्रमाप लागत आदि।

पहले आना और पहले जाना, बाद में आना और पहले जाना, विशेष पहचान एवं आधार स्कन्ध के सूत्रों में उन लागतों का प्रयोग किया जाता है जो कि उपक्रम में किसी न किसी समय पर प्रयोग होती हैं। जबकि नवीनतम क्रय मूल्य पद्धति में उन लागतों का प्रयोग किया जाता है जो अब तक व्यय नहीं की गई है एवं ऐतिहासिक लागत पर आधारित नहीं होती है।

आधार स्कन्ध में न्यूनतम मात्रा का स्कन्ध अवश्य होना चाहिये। इसका मूल्यांकन उस लागत पर किया जाता है जिस पर आधार स्टॉक क्रय किया गया था जबकि प्रमाप लागत पद्धति का प्रयोग सामान्यतः स्कन्ध के मूल्यांकन के उद्देश्य से ऐतिहासिक लागत को निकालने में किया जाता है।

सामान्यतः स्कन्ध को वित्तीय विवरणों में निम्न प्रारूपों में दिखाया जाता है :

(1) कच्चा माल एवं संघटक (Raw Materials and Components)

(2) अर्द्धनिर्मित माल (Works-in-progress)

(3) निर्मित माल (Finished Goods)

(4) स्टोर्स (Stores)

स्कन्ध के मूल्यांकन के सन्दर्भ में लेखांकन प्रमाप से सम्बन्धित निम्नलिखित सिद्धान्तों (दिशा निर्देश) का पालन करना । चाहिये :

(1)  स्कन्ध का मूल्यांकन ऐतिहासिक लागत मूल्य या बाजार मूल्य, जो दोनों में कम हो, पर करना चाहिये।।

(2) ऐतिहासिक लागत की तुलना बाजार मूल्य पर करते समय प्रत्येक मद को पृथक रूप से लिया जाना चाहिये।

(3) ऐतिहासिक लागत का प्रयोग पहले आना और पहले जाना, बाद में आना और पहले जाना, आधार स्कन्ध में विशेष दशाओं में ही करना चाहिये।

(4) निर्मित माल मूल्यांकन करते समय उत्पादन से सम्बधित सभी व्ययों को शामिल करना चाहिये।

(5) स्कन्ध के मूल्यांकन करते समय केवल उन्हीं लागतों को सम्मिलित करना चाहिये जो स्कन्ध को वर्तमान स्थान तथा कि लान में अपना योगदान रखता हो। क्षतिग्रस्त माल, श्रम एवं अपवाद जनक व्यय स्कन्ध मूल्यांकन में शामिल नहीं किया जाता है।

(6) स्टास एवं रख-रखाव की सामग्री का मूल्यांकन प्राय: लागत पर, कुछ विशेष परिस्थितियों में लागत से कम पर भी किया जा सकता है।

(7) उप उत्पादों के स्कन्ध का मूल्यांकन लागत या बाजार मल्य, जो भी कम हो, उस पर किया जाना चाहिये।

(8) पुन: प्रयोग होने वाले क्षय के स्कन्ध का मल्यांकन कच्ची सामग्री की लागत में से पुनः प्रक्रिया की जाने वाली लागत को घटाकर करना चाहिये।

(9) गैर-पुनः योग्य क्षय का स्कन्ध का मूल्यांकन बाजार मूल्य पर करना चाहिये।

(10) स्थिति विवरण में स्कन्ध को उचित वर्गीकृत करके दर्शाना चाहिये। यह वर्गीकरण व्यवसाय के अनुसार होना चाहिये।

AS-3 वित्तीय स्थिति में परिवर्तन (Changes in Financial Position)

इस लेखांकन प्रमाप के अन्तर्गत कोषों के श्रोत एवं प्रयोगों को वित्तीय विवरण में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना होता है एवं इनमें होने वाले परिवर्तनों का वित्तीय स्थिति पर पड़ने वाले प्रभावों को भी व्यक्त करना होता है।

इस लेखांकन प्रमाप से सम्बन्धित सिद्धान्त (दिशा निर्देश) निम्नलिखित हैं :

(1) वार्षिक खातों के साथ ही वित्तीय दशा में परिवर्तन के विवरणों को भी प्रकाशित करना चाहिये।

(2) वित्तीय विवरण निश्चित अवधि के लाभ-हानि खाते एवं आर्थिक चिट्ठों से सम्बन्धित तैयार करना चाहिये। (3) उपक्रम के संचालन में प्रयुक्त कोषों में परिवर्तन के विवरणों को वित्तीय विवरण में पृथक रूप से दर्शाना चाहिये।

(4) वित्तीय स्थिति में परिवर्तनों के विवरण को बनाने में परिस्थितियों के अनुकूल प्रारूप प्रयोग में लाना चाहिये।

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AS-4 आर्थिक चिट्ठे की तिथि के बाद होने वाली आकस्मिकतायें एवं घटनायें

(Contingencies And Events Occuring after the Balance Sheet Date)

लेखांकन मानक बोर्ड द्वारा इस प्रमाप का प्रसारण किया गया। यह प्रमाप सम्भाव्य या आकस्मिक प्रकति की घटनाओं से सम्बन्धित है। यह प्रमाप यह दर्शाता है कि आयोजन किन-किन सम्भाव्य घटनाओं के लिये किये जाने चाहिये एवं चिट्टा बनाने के बाद की घटनाओं का समायोजन किस प्रकार किया जाना चाहिये। आकस्मिक हानि की राशि को लाभ-हानि विवरण में प्रावधान के रूप में दिखाया जाना चाहिये तथा स्थिति विवरण बनाने की तिथि के बाद घटित घटनाओं के लिये सम्पत्ति एवं दायित्वों का भी समायोजन किया जाना चाहिये ताकि स्थिति विवरण की तिथि पर रकमों का सही अनुमान लगाया जा सके।

AS-5 अवधि में लाभ या हानि, पूर्व अवधि एवं असामान्य मदों तथा लेखांकन नीतियों में परिवर्तन (Profit or Loss for the period, Prior period and Extraordinary Items and Changes in Accounting Policies)

इसमें उन असामान्य मदों का समायोजन वित्तीय विवरणों में किया जाता है जो स्थिति-विवरण बनने की अवधि से सम्बन्धित हैं। जनवरी 1987 से इस प्रमाप का अनिवार्य रूप से अपनाया जाना इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट ऑफ । इण्डिया ने कर दिया है।

असामान्य मदों से आशय उन मदों से है जो उन घटनाओं या लेन-देनों से उत्पन्न होती हैं जो व्यवसाय की सामान्य गतिविधियों से अलग होती हैं जैसे – व्यवसाय के महत्वपूर्ण भाग का विक्रय, पुनः विक्रय की दृष्टि से क्रय किये गये विनियोग आदि।

AS-6 ह्रास लेखांकन (Depreciation Accounting)

यह प्रमाप भी नवम्बर 1982 में घोषित किया गया। इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किस परिस्थिति में कौन-सी ह्रास विधि अपनायी जानी चाहिये। एक विधि से दसरी विधि में परिवर्तन तब ही किया जाना चाहिये जबकि यह परिवर्तन नियमानुसार आवश्यक हो।

इसमें निम्नलिखित प्रमुख दिशा-निदेर्शों का पालन करना चाहिये :

(i) प्रत्येक लेखांकन अवधि में सम्पत्ति पर हास की राशि सम्पत्ति के उपयोगी जीवन के कार्य काल में ठीक ढंग से लगाई जानी चाहिये।

(ii) चयन की गयी ह्रास पद्धति का प्रयोग प्रत्येक वर्ष करना चाहिये।

(iii) हास पद्धति में परिवर्तन तब हो किया जाना चाहिये जबकि वह आवश्यक एवं न्याय संगत हो।

(iv) ह्रास पद्धति में परिवर्तन करने पर, नवीन पद्धति को अपनाने पर सम्पत्ति के शेष उपयोगी जीवन पर ह्रास लगाना चाहिये। इस परिवर्तन को लेखांकन नीति में परिवर्तन मानना चाहिये।

(v) ह्रास सम्बन्धित सम्पत्ति का उपयोगी जीवन का अनुमान लगाते समय सम्पत्ति की टूट-फूट, अप्रचलन, प्रयोग सम्बन्धी वैधानिक सीमायें आदि तत्वों को भी ध्यान में रखना चाहिये।

(vi) सम्पत्तियों के उपयोगी जीवन की समय-समय पर जाँच की जानी चाहिये।

(vii) सम्पत्ति के विस्तार की स्थिति में, ह्रास की दर यथावत रखनी चाहिये।

(viii) यदि कोई ह्रास योग्य सम्पत्ति बेकार हो जाती है या नष्ट हो जाती है तो शुद्ध आधिकय या कमी को पृथक रूप से दर्शाना चाहिये।

(ix) वित्तीय विवरणों में सम्पत्ति पर ह्रास की विधि एवं दरों को अनिवार्य रूप से दिखाया जाना चाहिये।

AS-7 निर्माणी अनुबन्धों का लेखांकन (Accounting for Construction Contracts)

इस लेखांकन प्रमाप की घोषणा नवम्बर, 1983 में की गई। इसके अन्तर्गत निर्माणी अनुबन्धों से सम्बन्धित नीतियों का उल्लेख किया गया है जिनकी अवधि एक वर्ष से अधिक होती है उनसे सम्बन्धित अनेक समस्यायें उत्पन्न होती हैं जैसे – अग्रिम प्राप्तियाँ, चाल कार्य आदि।

इसमें निम्न दो विधियों का प्रयोग किया जाता है :

(1) पूर्ण हुये कार्य की प्रतिशत विधि (The Percentage of Completion Methods) : इसमें आगम को अनुबन्ध की क्रियात्मक उन्नति के रूप में पहचाना जाता है जो कि अनुबन्ध के पूर्ण होने की स्थिति पर आधारित होता है। इसमें पूर्ण की स्थिति में लागतें आगम से मिलती हैं जो कि परिणामों के रूप में होती हैं जिन्हें कार्य पूरा होने के अनुपात में बाँटा जाता है।

(2) पूर्ण कार्य अनुबन्ध विधि (Completed Contract Method) : इसमें आगम की पहचान तब ही की जाती है जबकि अनुबन्ध पूर्ण हो गया हो या अधिकांश भाग पूर्ण हो गया हो या कुछ भाग अधूरा हो जो निश्चित अवधि में पूर्ण हो जायेगा।

अनुबन्ध के परिणाम का उचित अनुमान लगाने के लिये पूर्णता प्रतिशत विधि प्रयोग करना चाहिये।

वित्तीय विवरणों में लेखांकन नीति में परिवर्तनों का प्रकटीकरण अनिवार्य रूप किया जाना चाहिये जिसका प्रभाव इसके परिवर्तन एवं राशि पर पड़ता हो

AS-8 शोध एवं विकास का लेखांकन (Accounting for Research and Development)

इस लेखांकन प्रमाप की घोषणा जनवरी 1985 में की गयी। इस प्रमाप द्वारा संस्था में शोध एवं विकास की सम्भावनाओं । को ध्यान में रखकर भविष्य की लागत का अनुमान लगाया जाता है।

प्राय: शोध एवं विकास लागतें उसी अवधि में व्यय की जाती हैं जिनमें कि वे होती हैं। इन लागतों को भविष्य के लिये स्थगित किया जा सकता है किन्तु इस स्थिति में आवश्यक कार्यवाहियों को ध्यान में रखना चाहिये।

जब एक बार यह लागते अपलिखित कर दी गयी हों तो पन: स्थापित नहीं करना चाहिये जब तक कि अनिश्चितताये। दीर्घकाल तक विद्यमान न हों। इन व्ययों को आर्थिक चिट्टे में विविध व्यय शीर्षक के रूप में पृथक रूप से प्रकट करना चाहिये। यह मानदण्ड वापिस ले लिया गया है तथा मानदण्ड 26 में सम्मिलित कर लिया गया है।।

AS-9 आगम स्वीकृति या पहचान (Revenue Recognisition)

इस प्रमाप की घोषणा नवम्बर 1985 में की गयी। इसके अन्तर्गत संस्था में होने वाले आय तथा व्यय को आयगत तथा पँजीगत दो भागों में विभाजित किया जाता है। आगम से आशय रोकड़, प्राप्त किया जाता है। आगम से आशय रोकड़, प्राप्त रकमों या अन्य परिणामों के ऐसे सकल अ. से है जो उपक्रम को सामान्य प्रक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं। यह माल का विक्रय, सेवायें प्रदान करना एवं उपक्रमों के अन्य प्रयोगों जैसे प्राप्य रायल्टी, लाभांश और ब्याज की प्राप्ति से होता है। ।

इसमें यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि माल की विक्रय सेवायें प्रदान करने या दूसरों के द्वारा उपक्रम के संसाधनों का प्रयोग विचारणीय होता है। आगम की मायता को उस स्थिति में स्थगित कर दिया जाता है जब यह प्रतिफल निर्धारण योग्य नहीं । होता है।

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AS-10 स्थायी सम्पत्तियों का लेखांकन (Accounting for Fixed Assets)

यह प्रमाप नवम्बर 1985 में घोषित किया गया। स्थायी सम्पत्तियों का लेखांकन ठीक प्रकार से करने के लिये स्थायी सम्पत्तियों की पहचान, उनकी लागत के तत्व, जीवन अवधि के सन्दर्भ में आवश्यक दिशा निर्देश प्रदान करता है। स्थायी सम्पत्ति के आशय उस सम्पत्ति से होता है जो उत्पादन या सेवायें प्रदान करने के उद्देश्य से प्रयोग की जाती हैं न कि विक्रय के उद्देश्य से क्रय की जाती है।

इसकी लागत निकालते समय क्रय मूल्य, भाड़ा तथा इसकी प्रयोग की स्थिति तक लाने वाले समस्त व्ययों को जोड़ लिया जाता है तथा क्रय मूल्य में से व्यापारिक बट्टा या छूट को घटा दिया जाता है। .

जब कोई सम्पत्ति किसी सम्पत्ति के बदले में क्रय की जाती है तो उसकी राशि उचित बाजार मूल्य या दी गई सम्पत्ति के शुद्ध पुस्तक मूल्य के रूप में दर्शाना चाहिये। लेकिन जब सम्पत्ति अंश या अन्य प्रतिभूतियों के बदले में प्राप्त की जाती है तो ऐसी स्थिति में स्थायी सम्पत्ति को शुद्ध बाजार मूलय पर या निर्गमित प्रतिभूति के शुद्ध बाजार मूल्य पर दिखाया जाना चाहिये जो भी दोनों में अधिक स्पष्ट हो।

यदि वित्तीय विवरणों में किसी स्थायी सम्पत्ति का पुनर्मूल्यांकन दर्शाना है तो उस सम्पत्ति का चयन विधिपूर्वक ढंग से करना चाहिये। यदि पुनर्मूल्यांकन बढ़ोत्तरी की तरफ हो तो हास की राशि को लाभ-हानि खाते में जमा की तरफ नहीं दर्शाना चाहिये। किराया क्रय पद्धति के आधार पर क्रय की गई स्थायी सम्पत्ति को वित्तीय विवरण में नकद मूल्य पर दर्शाना चाहिये। पेटेन्ट्स से सम्बन्धिता प्रत्यक्ष लागतों को पूँजीगत मानना चाहिये एवं उसकी वैधानिकता या कार्यशील जीवन, जो भी कम हो, के आधार पर अपलिखित करना चाहिये।

AS-11 विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन के प्रभावों का लेखांकन

(Accounting for the effects of | change in Foreign Exchange Rates)

जो संस्थायें विदेशी मुद्रा में व्यवहार करती हैं उनके लिये यह प्रमाप उपयोगी है। वित्तीय विवरणों में अभिलेख करते समय | निम्नलिखित विनिमय दरों का प्रयोग किया जाता है :

(1) प्रारम्भिक दर (Opening Rate)

(2) तिथि विशेष दर (Particular Date Rate)

(3) औसत दर (Average Rate)

(4) प्रमापित दर (Standard Rate)

(5) भावी दर (Forward Rate)

(6) अन्तिम दर (Closing Rate)

प्रायः विदेशी मद्रा व्यवहार या विदेशी शाखा के तलपट की विभिन्न मदे विभिन्न दरों में परिवर्तन के सन्दर्भ में निम्नलिखित दिशा निर्देश महत्वपूर्ण हैं :

(1) विदेशी मुद्रा में किये गये व्यवहार का वित्तीय विवरणों में विनिमय दर का प्रयोग करते हुये लेखा किया जाता है जो भी उस समय प्रमापित दर होती है।

(2) चालू सम्पत्ति एवं दायित्वों को अन्तिम दर पर परिवर्तन किया जाता है।

(3) दीर्घकालीन दायित्वों को भी अन्तिम दर पर परिवर्तन किया जाता है।

(4) विदेशी शाखा के प्रारम्भिक एवं अन्तिम स्कन्ध को प्रारम्भिक तथा अन्तिम दर पर परिवर्तन किया जाता है।

(5) स्थायी सम्पत्तियों को तिथि विशेष दर या प्रारम्भिक दर पर परिवर्तन किया जाता है।

(6) क्रय, विक्रय, वेतन, मजदूरी, कमीशन आदि को औसत दर पर परिवर्तन किया जाता है।

(7) हास का परिवर्तन सम्बन्धित सम्पत्तियों के परिवर्तन मूल्यों के आधार पर करना चाहिये।

AS-12 सरकारी अनुदानों का लेखांकन (Accounting For Government Grants)

सरकार द्वारा दिया गया अनुदान नकद या अन्य प्रारूप में भूत या भविष्य के लिये विभिन्न शर्तो पर दी गयी एक सरकारी सहायता कहलाती है। लेखांकन के अंतर्गत सरकारी अनुदान का प्रमाणन तब ही सम्भव है जबकि यह पूँजीगत या आयगत आधार पर ली गयी हो।

लेकिन जब तक उचित आश्वासन न हो तब तक सरकारी अनुदान का प्रमाणन नहीं करना चाहिये कि (i) उपक्रम उन सभी सम्बन्धित शर्तों का पालन करेगा जो उसमें सन्निहित हैं। (i) अनुदान प्राप्त हो जायेगी। लेखांकन नीति सम्बन्धी एक उचित प्रकटीकरण करना होगा कि सरकारी अनुदान कैसे ली गयी है।

AS-13 विनियोगों का लेखांकन (Accounting for Investments)

एक उपक्रम को स्थिति विवरण में चालू विनियोग और दीर्घकालीन विनियोगों को अलग-अलग दिखाना चाहिये। चालू | विनियोग जिसकी राशि आसानी से प्राप्त होती है और उसे विनियोजन की अवधि एक वर्ष या कम की होती है। जो चालू विनियोग नहीं होता वह दीर्घकालीन विनियोग कहलाता है। इसकी लागत में दलाली, फीस, कर आदि जोड़ी जाती है। यदि अंश या अन्य प्रतिभूति के निर्गमन से कोई विनियोग प्राप्त किया जाता है तो जिस मूल्य पर प्रतिभूति निर्गमित की गई है वही उस विनियोग की क्रय लागत मानी जायेगी। यदि कोई विनियोग किसी सम्पत्ति के बदले में लिया गया है तो उस सम्पत्ति का उचित मूल्य ही इस विनियोग का मूल्य माना जायेगा। विनियोग सम्पत्तियों को दीर्घकालीन विनियोग मानना चाहिये।

वित्तीय विवरण में चालू सम्पत्ति का मूल्यांकन लागत या बाजार मूल्य में जो भी कम हो, पर किया जाना चाहिये। जबकि दीर्घकालीन सम्पत्ति का मल्य लागत पर ही आँका जाता है। वित्तीय विवरण में उचित प्र होगा- विनियोगों का वर्गीकरण, विनियोगों के विक्रय पर लाभ-हानि, मूल्यों में परिवर्तन, उद्धृत और अनउद्धृत मूल्यों के सम्बन्ध में।

AS-14 एकीकरण का लेखांकन (Accounting for Amalgamations)

यह प्रमाप एकीकरण के लेखांकन से सम्बन्धित है। इसमें पूँजी संचिति या ख्याति के परिणाम की गणना की जाती है। एकीकरण में दो स्थितियाँ होती है : (1) व्यावसायिक इकाइयों को मिलाने (Merger) की प्रकृति (ii) क्रय करने की प्रकृति (Purchase)| व्यावसायिक इकाइयों को मिलाने की प्रकृति को एकत्र ब्याज पद्धति (Pooling Interest Method) कहते है।। जबकि क्रय करने की प्रकृति को क्रय पद्धति (Purchase Method) कहते हैं। एकीकरण का उद्देश्य अंशों एवं प्रतिभूतियों को। इकट्ठा करना तथा बिकने या मिलने वाली इकाइयों को नकद या अन्य रूप में भुगतान करना होता है। एकीकरण में जो भी संचिति होगी तो मिलान (Merger) की स्थिति में उसको सुरक्षित कर लिया जाता है जबकि क्रय की स्थिति में केवल वैधानिक संचिति को सुरक्षित किया जाता है। दोनों ही स्थितियों में संचिति को एकीकरण समायोजन खाता (Amalgamation Adjustmert Account) में हस्तांतरित कर दिया जाता है जबकि ख्याति केवल क्रय पद्धति (purchase method) में होती है। उसे 5 वर्षों में, कोई विशेष स्थिति न हो, अपलिखित कर दिया जाता है।

AS-15 सेवायोजकों के वित्तीय विवरणों में सेवा निवृत अनुलाभों का लेखांकन (Accounting fro | Retirement Benefits in the Financial Statements of Employers)

इस प्रमाप में सेवायोजकों द्वारा निर्मित वित्तीय विवरण में निम्न बातों का समावेश किया जाता है :

(i) अवकाश निधि (Provident Fund)

(ii) अधिवर्षता निवृत्ति/पेंशन (Supernuation/Pension)

(iii) अनुग्रहदान (Gratuity)

(iv) अर्जित छुट्टियों का नकद भुगतान (Earned Leave Encashment)

(v) अन्य सेवानिवृत्ति लाभ (Other Retirement Benefits)

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AS-16 ऋण लेने की लागतें (Borrowing Costs)

यह अनिवार्य प्रकृति का मानदण्ड है। इसका उद्देश्य ऋण लेने की लागतों के लिए उपचार करने की व्यवस्था करना है। इसमें निम्नलिखित व्यय सम्मिलित होते हैं :

(i) ऋण पर ब्याज

(ii) छूट का अपलेखन

(iii) ऋण के सम्बन्ध में सहायक लागतों का अपलेखन

(iv) वित्त प्रभार

(v) विदेशी मुद्रा के ऋणों से उत्पन्न सीमा तक विनिमय अन्तर जहाँ तक वे ब्याज लागतों के लिए एक समायोजन के रूप में माने जाते हैं।

पूँजीकरण का स्थगन (Suspension of Capitalization)

उस बढ़ी हुई अवधि के समय ऋण लेने की लागतों का पूँजीकरण स्थगित रखना चाहिये जिसमें सक्रिय विकास बाधित  रहता है।

पूँजीकरण का समापन (Cessation of Capitalisation)

यदि ऋण लागत का भुगतान हो चुका है या अहंकर सम्पत्ति पर्याप्त सीमा तक पूरी हो चुकी है उस दशा में ऋण लेने की लागतों का पूँजीकरण समाप्त कर देना चाहिये।

प्रकटीकरण (Disclosure) : वित्तीय विवरण में निम्न तथ्यों को स्पष्ट करना चाहिये :

(i) ऋण लेने के संदर्भ में अपनायी गयी लेखांकन नीति।

(ii) पूँजीकृत की गयी अवधि के अन्तर्गत् ऋण लागत की राशि।

AS-17 प्रखण्ड लेखांकन (Segment Reporting)

यह मानदण्ड अनिवार्य प्रकृति का है जो 1.4.2001 से प्रभावी है। इसके अन्तर्गत् उन उपक्रमों के वित्तीय विवरण के सम्बन्ध में वित्तीय सूचनाओं के प्रतिवेदन हेतु सिद्धान्तों की स्थापना की जाती है जो उत्पाद व सेवाओं तथा भौगोलिक क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के व्यवहार करते हैं। इन व्यवहारों में जोखिम एवं प्रत्याय भी अधिक होते हैं। यह प्रखण्ड दो प्रकार के होते हैं :

(i) व्यावसायिक प्रखण्ड (Business Segment) : यह विभिन्न जोखिमों और प्रत्यायों से जडे उत्पादों/सेवाओं के आधार पर बनाये जाते हैं।

(ii) भौगोलिक प्रखण्ड (Geographical Segment) : विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में जुड़े जोखिम एवं प्रत्याय के आधार पर बनाये जाते है। इसका उद्देश्य उपक्रम के जोखिम एवं प्रत्याय का उचित आंकलन प्रभावी स्रोत की। पहचान एवं सम्पूर्ण उपक्रम के सम्बन्ध में अधिक संज्ञान का निर्णयन करना होता है। यह उन व्यवसायिक इकाइयो। के लिए आवश्यक है जिनकी प्रतिभूतिया किसी स्टाक विषणि पर सूचीबद्ध (Listing) है और जिनकी बिक्री लेखा अवधि में 50 करोड़ रुपये से अधिक है।

AS-18 सम्बद्ध पक्षकार अभिव्यक्ति (Related Party Disclosures) |

यह मानदण्ड 1.4.2001 से प्रभावी है। इसके अन्तर्गत् एक प्रतिवेदक उपक्रम एवं सम्बद्ध पक्षकार के बीच लेनदेनों का .. प्रतिवेदन होना चाहिये। सम्बद्ध पक्षकार निम्नलिखित होते हैं :

(i) संयुक्त उपक्रम साझेदार (ii) पितृ और सहायक कम्पनी (iii) निवेशक एवं निवेशी (iv) सहयोगी संस्थान । (v) प्रतियोगी सहयोगियों के मुख्य प्रबन्धकीय अधिकारी (vi) व्यक्तिगत उपक्रमों की दशा में सहयोगी।

AS-19 पट्टे (Leases)

यह मानदण्ड 1.4.2001 से लागू हुआ है। इसके अन्तर्गत् वित्तीय पट्टे एवं परिचालन पट्टों के सम्बन्ध में लेखांकन नीतियों तथा अभिव्यक्तियों का पट्टाधारी एवं पट्टादाता दोनों के लिए निर्धारण करना है।

इसके अन्तर्गत् वित्त पट्टे के पट्टाधारी को पट्टे की एक सम्पत्ति एवं एक दायित्व ही मानना आवश्यक होता है। प्रत्येक भुगतान वित्त प्रभार एवं मुख्य राशि के बीच विभाजित किया जाता है। तदुपरान्त मूल राशि को अदत्त दायित्वों में से घटा दिया जाता है। फिर पट्टे की अवधि में वित्त प्रभार की राशि को इस प्रकार बाँटना चाहिये जिससे प्रत्येक अवधि के लिए दायित्व की शेष राशि पर ब्याज की सतत् प्रत्याय दर बनी रहे। पट्टाधारी को इस सम्पत्ति पर ह्रास की व्यवस्था करने का अधिकार होता है| एवं सम्पत्ति की देखभाल करने का दायित्व भी होता है।

AS-20 प्रति अंश आय (Earnings Per Share)

यह मानदण्ड 1.4.2001 से प्रभाव में आया है। इसके अनुसार इसमें प्रति अंश उपार्जन के निर्धारण के सिद्धान्तों का निरुपण किया गया है। जिन कम्पनियों के समता अंश स्कन्ध विपणि में सूचीबद्ध (Listed) है उन सभी पर यह लागू होता है।

इस मानदण्ड के अनुसार उपक्रम को लाभ-हानि के मुख पृष्ठ पर निम्न दो प्रकार के प्रति अंश अर्जन रिपोर्ट का समोवश करना चाहिये:

(i) मौलिक प्रति अंश उपार्जन (Basic Earnings Per Share)

(ii) अवमिश्रित प्रति अंश उपार्जन (Diluted Earnings Per Share)

मौलिक प्रति अंश उपार्जन : अवधि के दौरान समता अंशों को भारित औसत संख्या के द्वारा अंशधारकों के प्रति चिन्हित अवधि के आधार पर शुद्ध लाभ या हानि को भाग देकर प्रति अंश मौलिक अर्जन को निकाला जाता है।

शुद्ध लाभ/हानि की गणना (Calculation of Net Profit/Net Loss)

लाभांश में से कर को घटाने के बाद लाभ की गणना करनी चाहिये। यदि किसी उपक्रम में विभिन्न प्रकार के समता अंश है तो उस अवधि के शुद्ध लाभ या हानि को उनके लाभांश अधिकारों के आधार पर विभिन्न प्रकार के अंशों द्वारा विभाजित किया जाना चाहिये।

अवमिश्रित प्रति अंश उपार्जन : जब किसी उपक्रम में सम्भावित समता अंश (Potential Equity Shares) होते हैं तब इसकी गणना की जाती है। जैसे परिवर्तनीय ऋण-पत्र, परिवर्तनीय पूर्वाधिकार अंश, विकल्प वारंट आदि।

AS-21 समेकित वित्तीय विवरण (Consolidated Financial Statements)

यह मानदण्ड 1 अप्रैल 2001 या उसके बाद शुरु होने वाली लेखांकन अवधियों के सम्बन्ध में लागू होता है। इसके अनुसार वित्तीय विवरणों की रचना एवं प्रस्तुति हेतु सिद्धान्तों तथा प्रविधियों की व्यवस्था करना ही इसका उद्देश्य होता है। इसका प्रयोग निम्न में होता है:

1 .सूत्रधारी कम्पनी के अन्तर्गत् उपक्रमों के समूह के लिए समेकित वित्तीय विवरण तैयार करने में इसका प्रयोग किया।

जाना चाहिये।

2 .इसका प्रयोग सहायक कम्पनियों में विनियोग हेतु लेखांकन में करना चाहिये।

समेकिन प्रक्रियाँ (Consolidation Procedure)

1. अन्तकम्पनी निवेशों को समेकित आर्थिक चिट्टे के तैयार करते समय हटा देना चाहिये।

2 .सहायक कम्पनी में निवेश की लागत का सत्रधारी कम्पनी के भाग पर आधिक्य को ख्याति की राशि को समेकितं चिट्टे के सम्पत्ति पक्ष में दिखाना चाहिये।

3 .यदि निवेश की लागत सत्रधारी कम्पनी के भाग से कम हो तो इस अन्तर को पूजी संचय माना जायेगा जिसे। समेकित चिद्र के दायित्व की ओर दिखाना चाहिये।

4 .सूत्रधारी कम्पनी की कल आय ज्ञात करने के लिए सहायक कम्पनियों की शुद्ध आय में से अल्पमत हितों को। घटाकर समूह की आय से समायोजित करना चाहिये।

5 .अतकम्पनी शेषों और लेनदेनों के आधार पर अनार्जित लाभों को पूर्णरूप से समाप्त करना चाहिये।

6. सहायक कम्पनी के विनियोगों के विक्रय की दशा में लाभ-हानि को सत्रधारी कम्पना क लाभ-हान खातम मान्यता देनी चाहिये।

7.प्राय: सूत्रधारी कम्पनी एवं सहायक कम्पनी के खाते एक ही तिथि को बनाये जाते हैं। यदि तिथियों में अन्तर हो तो इन तिथियों के बीच हुए लेनदेनों के प्रभावों का समायोजन करना चाहिये।

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AS-22 आय पर करों हेतु लेखांकन (Accounting For Taxes on Income)

यह मानदण्ड 1.4.2001 को या इसके बाद प्रारम्भ होने वाली लेखांकन अवधियों से प्रभावी होता है।।

यह मानदण्ड निम्न उपक्रमों के लिए अनिवार्य हैं।

(i) ऐसी कम्पनियाँ, जिनके अंश या ऋण प्रतिभतियाँ किसी मान्य स्कन्ध विपणि में सूचीबद्ध है, तथा ऐसी कम्पनिया जा अंश या ऋण प्रतिभूतियाँ जारी करने वाली हैं।

(ii) एक समूह के सभी उपक्रमों के लिए लेखांकन मानदण्ड उपरोक्त ) की शर्तों में किसी उपक्रम के सम्बन्ध में अनिवार्य प्रकृति का हो।

कर योग्य आय की गणना आयकर अधिनियम के आधार पर की जाती है जबकि लेखांकन आय की गणना लेखांकन नीतियों और प्रक्रिया के अनुसार की जाती है इस तरह उपरोक्त कर योग्य आय तथा लेखांकन आय के बीच अन्तर दो भागों में व्यक्त किया जा सकता है :

(i) सामयिक अन्तर (Timing Differences): कभी-कभी एक ही अवधि में कर योग्य आय और लेखांकन आय के बीच अन्तर उत्पन्न हो जाता है। इसका कारण यह है कि कुछ आगम और व्ययों को कर योग्य आय में सम्मिलित किया जाता है जो उस अवधि में मेल नहीं खाते हैं। जैसे हास पद्धति, वैज्ञानिक शोध के लिए क्रय की गई मशीनरी, कुछ खर्चों को रोकड़ के आधार पर स्वीकार करना न कि उपार्जन के आधार पर, अशोधित हास आदि सामरिक अन्तर की भूमिका अदा करते हैं।

(ii) स्थायी अन्तर (Permanent Differences) : कर योग्य आय और लेखांकन आय के मध्य कुछ अन्तर एक अवधि में उत्पन्न होते हैं जैसे-आयकर के निर्धारण करने में कुछ व्ययों या उसके किसी भाग को स्वीकार न करने के कारण स्थायी अन्तर उत्पन्न हो जाता है।

AS-23 समेकित वित्तीय विवरणों में निवेशों हेतु लेखांकन

(Accounts for Investments in Associates in Consolidated Financial Statements)

यह मानदण्ड 1.4.2002 से प्रभावी है। यह सहचरों (Associates) में निवेशों के लेखांकन में लागू होता है। सहचर से आशय है जिसमें निवेशक का महत्वपूर्ण प्रभाव हो जो न तो एक सहायक कम्पनी हो और न ही निवेशक का एक संयुक्त रापकमा महत्वपूर्ण प्रभाव से आशय है जो निवेशित संस्था के वित्तीय या परिचालन नीति के निर्णयों में भाग लेने के लिए 20% या अधिक मताधिकार रखता हो।

AS – 24 बंद किये गये पारचालन (Discounting Operations)

यह मानदण्ड 1.4.2002 से लागू है जो कि परामर्शदात्री प्रकृति का है । परन्तु 1.4.2002 से निम्न उपक्रमों के लिए अनिवार्य  है :

(i) ऐसी कम्पनियाँ जिनके अंश या ऋण-पत्र ऋण- पत्र किसी मान्य स्कन्ध विपणी में सूचीबद्ध है तथा ऐसी कम्पनियाँ जो अशं या ऋण प्रतिभूतियाँ जारी करने वाली है ।

(ii) ऐसे उपक्रम जिनकी लेखावर्ष की बिक्री 50 करोड़ से अधिक है।

अन्य उपक्रमों के लिए यह मानदण्ड 1.4.2005 से अनिवार्य प्रकृति का होगा। इस मानदण्ड का उद्देश्य यह है जो उपक्रम बन्द किये जा रहे हैं उनके परिचालन के सम्बन्ध में सिद्धान्त स्थापित करना है।

AS-25 अंतरिम वित्तीय प्रतिवेदन (Interim Financial Reporting)

यह मानदण्ड 1.4.2002 से प्रभावी है। इसमें अन्तरिम वित्तीय प्रतिवेदन की न्यूनतम विषय सूची निर्धारित की गयी है। जैसे —

(i) संक्षिप्त आर्थिक चिट्ठा

(ii) संक्षिप्त लाभ-हानि खाता

(iii) संक्षिप्त रोकड़ प्रवाह विवरण

(iv) चयनित व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ।

AS-26 अमूर्त सम्पत्तियाँ (Intangible Assets)

यह मानदण्ड 1.4.2003 से लेखांकन अवधि में अमूर्त सम्पत्तियों पर किये गये व्ययों पर प्रभावी है।

यह मानदण्ड प्रारम्भिक व्ययों, ख्याति, विज्ञापन व्यय की राशि, शोध और विकास क्रियाओं, लाइसेंस के ठहरावों, पेटेन्ट्स, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क बाण्ड्स और कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर पर प्रभावी होता है।

प्रारम्भ में इन सम्पत्तियों को लागत मूल्य पर दिखाया जाना चाहिये। जबकि ख्याति जो कि आंतरिक संसाधनों से उत्पन्न होती है, सम्पत्ति की श्रेणी में नहीं रखना चाहिये। क्योंकि यह ऐसा कोई संसाधन नहीं है, जिससे इसकी लागत को विश्वसनीयता माना जा सके। शोध एवं विकास लागत के व्यय की लागत को व्यय के रूप में माना जाना चाहिये जब तब कि इसका आधार एवं लक्षण विद्यमान न हो।

AS-27 संयुक्त साहस के हितों का वित्तीय प्रतिवेदन (Financial Reporting of Interests in Joint Venture)

यह मानदण्ड 1.4.2002 से प्रभावी है। यह संयुक्त साहसों में हितों के लेखांकन और साहसियों तथा विनियोक्ताओं के वित्तीय विवरण से सम्बन्धित है। इसमें जो सम्पत्तियाँ, दायित्वों, आय तथा व्यय होते हैं उनकी रिपोटिंग में यह मानदण्ड लागू होता है। साहसी को अपने पृथक विवरणों में और फलस्वरूप समेकित वित्तीय विवरणों में निम्न को लिखना चाहिये:

1 .सम्पत्तियों तथा दायित्वों पर उसका नियंत्रण

2 .संयुक्त साहस में किये गये व्यय तथा आय में उसकी हिस्सेदारी

3 .नियंत्रित सम्पत्तियों में उसका भाग

4 .कोई दायित्व जो संयुक्त उपक्रम से सम्बन्धित है,

5 .संयुक्त साहसियों द्वारा किये गये व्ययों में उसका हिस्सा

6 .संयुक्त साहस में अपने द्वारा किये गये व्यय।।

AS-28 सम्पत्तियों की क्षति (Impairment of Assets)

यह मानदण्ड 1.4.2004 से प्रभावी है। यह उन उपक्रमों पर जिनकी समता या ऋणपत्र या ऋण सम्बन्धी कोई भी प्रतिभूति पर प्रभावी है जो किसी मान्यता प्राप्त स्कन्ध विपणि पर सूचीबद्ध है या सूचीबद्ध होने को है एवं उन सभी उपक्रमों पर, जिनकी बिक्री वित्तीय वर्ष में 50 करोड़ रुपये से अधिक है। यह उन क्षतिग्रस्त सम्पत्तियों पर भी लागू होगा जिनके लिए। कोई लेखांकन प्रमाप निश्चित नहीं किया गया है।

इस मापदण्ड के अनुसार, यह अनुमान लगाना होगा कि क्या ऐसी कोई सम्पत्ति है जिसकी क्षति हो सकती है। ऐसी दशा में उस सम्पत्ति का प्राप्य मूल्य का अनुमान लगाना होगा। यदि ये राशि धारण राशि से कम है तो धारण राशि को अनुमानित राशि पर लाया जायेगा और इस सम्पत्ति की क्षति की हानि की राशि को लाभ-हानि खाने में व्यय के रूप में नाम पक्ष की ओर दिखाया जायेगा। यदि सम्पत्ति की हानि राशि धारण राशि से अधिक है। तो इसे दायित्व के रूप में दिखाना चाहियतब ही सम्भव होगा जब इसके लिए कोई लेखांकन मानदण्ड में कोई व्यवस्था हो।

अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानदण्ड

(International Accounting Standards)

1973 में अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन मानदण्ड समिति की रचना की गई जो पूरे विश्व में वित्तीय लेखांकन नीतियों व्यवहारों के लिए प्रमापीकरण करें। इस समिति का भारत भी सदस्य है। इस समिति ने 41 लेखांकन मानदण्ड निर्गमित गि इनमें से कुछ मानदण्डों को संशोधित किया गया तथा 7 मानदण्डों को वापिस लिया जा चुका है। अब 34 अन्तर्राष्टीय लेखन मानदण्ड है जिसकी सची निम्नलिखित है जिसमें से AS-3.4.5.6.9, 13 और 25 निलिम्बत किये जा चुके हैं AS. निर्गमन के बाद AS-8 वापिस ले लिया गया है।

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अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमाप का अर्थ

(Meaning of International Financial Reporting Standards-IFRS)

विस्तृत अर्थ में अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमाप (IFRS) अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप मंडल (IASB) द्वारा अपनाये गये प्रमाप एवं निर्वचन हैं। इनमें (i) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमाप (IFRS), (ii) अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप (IAS), तथा (iii) अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन निर्वचन समिति (IFRIC) द्वारा अथवा पूर्व प्रमाप निर्वचन समिति (SIC) द्वारा विकसित निर्वचन (Interpretation) सम्मिलित हैं। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन (IFRS) अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप मंडल (IASB) द्वारा विकसित लेखांकन प्रमापों का सेट है जो कम्पनी के वित्तीय विवरण तैयार करने के लिए विश्वव्यापक प्रमाप बन रह है।

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमाप (IFRS) एक लेखांकन ढाँचा है जो वित्तीय विवरणों में प्रदर्शित लेनदेनों एवं घटनाओं सम्बन्धी पहचान, माप, प्रस्तुतिकरण एवं प्रकटीकरण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। सरल शब्दों में, यह अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमापों का समूह है जो यह बतलाता है कि विशेष प्रकार के लेनदेन एवं अन्य घटनाएँ वित्तीय विवरणों में किस प्रकार प्रतिवेदित की जाये। सामान्यत: ये नियम आधारित प्रमापों के स्थान पर सिद्धान्त आधारित प्रमाप हैं। इन्हें लागू करने के लिए इन्हें तैयार करने वाले तथा अंकेक्षकीय विवेक की आवश्यकता होती है।

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमापों का उद्देश्य

 (Objectives of IFRS)

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय लेखांकन प्रमापों का मुख्य उद्देश्य एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करना है जिसमें किसी भी संस्था के वित्तीय विवरणों को विश्व के विभिन्न भागों में रहने वाले विभिन्न उपयोगकर्ता आसानी से पढ़ एवं समझ सकें। दूसरे शब्दों में, IFRS का उद्देश्य लेखांकन प्रमापों का एक ही सेट तैयार करना है जो विश्व में कहीं भी अपनाया जा सकता है। संक्षेप में, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमापों (IFRS) का उद्देश्य एक संस्था के प्रथम वित्तीय विवरण तथा अन्तरिम वित्तीय प्रतिवेदन के लिए गुणवत्तापूर्ण सूचना सुनिश्चित करना है।

भारतीय लेखांकन प्रमापों (AS) का IFRS से अभिसरण

(Convergene of Indian AS with IFRS)

अभिसरण की आवश्यकता (Need for Convergence)

प्रत्येक देश के अपने नियम, विनियम तथा प्रतिवेदन प्रमाप होते हैं। जब एक कम्पनी विदेशी बाजारों से पूँजी एकत्रित करना तय करती है तब उस विदेशी देश के नियम तथा विनियम लागू होंगे। विदेशी निवेशकों को स्वीकार होने के लिए अन्तिम खातों को विदेशी । मद्रा से रुपये में परिवर्तित करना होगा। यदि एक भारतीय कम्पनी अमेरिका में पूँजी एकत्रित करना चाहती है तो अमेरिकन निवेशकों । को स्वीकार्य होने के लिए भारतीय लेखांकन प्रमापों पर आधारित अन्तिम खाते अमेरिकन लेखांकन प्रमापों के आधार पर पुनः लिखने होगे। लेखों के ये दोनों सेट-स्थानीय तथा वैश्विक तुलनीय होने चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय विश्लेषक एवं निवेशक वित्तीय विवरणों की समान लेखांकन प्रमापों के आधार पर तुलना करना चाहेंगे। इसी ने अन्तर्राष्ट्रीय स्वीकृति युक्त लेखांकन प्रमापों को बढ़ावा दिया है। अतः वित्तीय विवरणों में एकरूपता, तुलनीयता, पारदर्शिता तथा अनुकूलनीयता की अत्यधिक आवश्यकता है।

अभिसरण (Convergence) उन कम्पनियों के लिए और भी आवश्यक है जिनके अंश घरेल एवं विदेशी दोनों स्कन्ध विनिमय बाजारों (Stock Exchange) में सूचीबद्ध हैं।

कुछ भारतीय कम्पनियाँ पहले से ही विदेशी स्कन्ध बाजारों में सूचीबद्ध हैं और अनेक सूचीबद्ध होने की प्रक्रिया में हैं। इसके अतिरिक्त हाल ही के वर्षों में भारतीय कम्पनियों द्वारा विदेशी कम्पनियों का अधिग्रहण IFRS को अपनाने के लिए मजबूत आधार बनता जा रहा है।

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अभिसरण का अर्थ (Meaning of Convergence)

सामान्य शब्दों में, अभिसरण (Convergence) का आशय अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमापों (IFRS) से सामंजस्य बिठाना है। (convergence means to achieve harmony with IFRS)| सरल शब्दों में अभिसरण का आशय राष्ट्रीय लेखांकन प्रमापों (AS) को इस प्रकार निर्दिष्ट एवं सम्भरण करना ताकि राष्टीय लेखांकन प्रमापों के अनुसार तैयार किये गये वित्तीय विवरणों की IFRS से अनुपालना स्पष्ट हो सके अर्थात् राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप IFRS की सभी आवश्यकताओं की अनुपालना करते हैं। किन्तु अभिसरण का यह आशय नहीं है कि IFRS ज्यों-के-त्यों शब्दों में अपनाये जायें।।

IFRS की अनुपालना एवं अपवाद (Compliance with IFRS and Exceptions)-इसका आशय यह है कि वित्तीय विवरण तब तक IFRS से अनुपालित नहीं माने जायेंगे जब तक वे IFRS की समस्त आवश्यकताओं की अनुपालना नहीं करते। जैसाकि (IAS-1) ‘वित्तीय विवरणों का प्रस्तुतीकरण’ (IAS-1) में कहा गया है किन्तु इसका यह आशय भी नहीं है कि वित्तीय विवरणों की IFRS की अनुपालना तभी होगी जब IFRS शब्दश: (word by word) अपनाये जायें। अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप मंडल (IASB) भी यह स्वीकार करता है कि प्रकटीकरण की आवश्यकताओं को सम्मिलित करना अथवा वैकल्पिक व्यवहार को हटा देना IFRS से गैर-अनुपालन (Non-compliance) नहीं है। इससे यह स्पष्ट है कि यदि एक देश एक प्रकटीकरण को जिसे स्थानीय वातावरण में आवश्यक समझा है, जोड़ा जाता है अथवा एक वैकल्पिक व्यवहार को हटा दिया जाता है तो इसे IFRS से अभिसरण का अभाव या असामंजस्यता नहीं मानी जायेगी। इस प्रकार, “IFRS से अभिसरण (Convergence) का आशय IFRS को जहाँ आवश्यक हो, उपयुक्त अपवादों के साथ लागू करना है।”

IFRS अनुपालित प्रमाप अथवा अभिसरण प्रगति

(IFRS Compliance Standard or Convergence Progress)

ICAI ने IFRS के तुल्य लेखांकन प्रमाप (AS) जारी करने तथा विद्यमान प्रमापों; दिशा-निर्देशों तथा टिप्पणियो। (Guidance Notes) को IFRS के तुल्य बनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है। अब तक लेखांकन प्रभाप मंडल (ASB) ने ऐसे 35 | लेखांकन प्रमाप जारी कर दिये हैं। निगमीय मामलात मंत्रालय (MCA) द्वारा फरवरी 2011 तक 35 भारतीय लखाकन प्रमाण IFRS से अभिसरित कर क्रियान्वित कर दिये हैं जिन्हें आगे से भारतीय लेखांकन प्रमाप (Ind AS) कहा जायेगा। यह मंत्रालय (MCA) अभिसरित IFRS भारतीय प्रमापों को सम्बन्धित विभागों से अनेक मद्दों पर (कर सम्बन्धी सहित) को सुलझाने के प्रश्चात अवस्थाबद्ध (Phased) रूप में क्रियान्वित करेगी। भारतीय लेखांकन प्रमापों को क्रियान्वित करने की तिथि मंत्रालय द्वारा बाद में घोषित की जायेगी।

अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमापों (IFRS) की विद्यमान स्थिति

(Present Status of IFRS)

21 मार्च 2016 तक अन्तर्राष्ट्रीय लेखांकन प्रमाप मंडल (IASB) द्वारा निम्नलिखित IFRS निर्गमित किये जा चुके हैं –

भारतीय कम्पनियों के लिए IFRS अपनाने के लाभ

(Advantages of Adopting IFRS for Indian Companies)

ICAI द्वारा IFRS से अभिसरण स्थापित करने का निर्णय मील का पत्थर है जो भारतीय कम्पनियों के लिए निम्न प्रकार लाभदायक है

(1) अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी बाजार में सरल एवं सुगम पहुँच (Easy and Convenient Access to International Capital Market)-अनेक भारतीय कम्पनियाँ भारत के बाहर विस्तार कर रही हैं अथवा कम्पनियाँ अधिग्रहित कर रही हैं जिसके लिए विशाल पूँजी की आवश्यकता होती है। अधिकांश स्कन्ध बाजार IFRS के अन्तर्गत वित्तीय सूचनाएँ चाहते हैं। IFRS में परिवर्तन भारतीय कम्पनियों की अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी बाजार में पहुँच सुगम तथा आसान बना देते हैं क्योंकि IFRS वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य हैं।

(2) पूँजी का कम लागत (Lower Cost of Capital)-IFRS में परिवर्तन से पूँजी इकट्ठा करने की लागत कम होगी, क्योंकि इसमें वित्तीय विवरणों के दो सेट (एक IFRS एवं दूसरा भारतीय AS के अन्तर्गत) बनाने की आवश्यकता नहीं होगी। इससे अंकेक्षण शुल्क तथा ब्याज की ऊँची दरें भी कम होंगी।

(3) बहविध प्रतिवेदन विलोपन (Elimination of Multiple Reporting)-समूह की सभी संस्थाओं द्वारा IFRS से अभिसरण भारतीय तथा विदेशों शाखाओं के लिए प्रब प्रतिवेदनों की आवश्यकता और एकीकृत वित्तीय वि या विदेशी शाखाओं के लिए प्रबन्ध को एक ही वित्तीय प्रतिवेदन प्रणाली अपनानी पड़ेगी। इससे बहुविधा आवश्यकता और एकीकृत वित्तीय विवरणों के लिए महत्त्वपूर्ण समायोजन अथवा विभिन्न स्कन्ध बाजारा मावत्ताय विवरण फाइल करना समाप्त हो जायेगा।

(4) अधिग्रहणों का सही व उचित मूल्य (True Value of Acquisitions)-कुछ अपवादों को छोड़कर AS में व्यावसायिक संयोजनों में सम्पत्तियों को उचित मल्य पर नहीं दिखाया जाता है बल्कि लागत पर दशाया जाता ख्याति, पेटेन्ट, कॉपीराइट, व्यापार चिन्ह आदि को आधिग्रह मूल्य पर नहा दिखाया जाता है बल्कि लागत पर दर्शाया जाता है। अमूर्त सम्पत्तियों यथा कापाराइट, व्यापार चिन्ह आदि को अधिग्रहण कर चकाये गये क्रय प्रतिफल को क्रेता की पुस्तकों में नहीं दिखाया। जाता है, इसलिए वित्तीय विवरणों में प्रदर्शित नहीं होता बल्कि राशि ख्याति में जुड़ जाती है। इस कारण वित्ताय संयोजन का सही मूल्य दर्शाने में असफल रहता हो मूल्य दर्शाने में असफल रहते हैं। IFRS इस समस्या को दर कर देते हैं क्योंकि इनमें सम्पत्तियों का लेखांकन ली गई सम्पत्तियों की मान्यता जरूरी है भले ही ये विक्रेता के वित्तीय विवरणों में नहीं दर्शाये गये हों।

(5) नवीन अवसर (New Opportunities)-)-IFRS के लाभों की लहर न केवल भारतीय निगमीय क्षेत्र तक ही सीमित है बलकि इससे सेवा श्रेत्र को भी  अनेक लाभ होगें। IFRS में प्रशिक्षित लेखापालों के कारण वैश्विक समुदाय के लिए भारत एक। लेखांकन केन्द्र बन जायेगा। IFRS उचित मूल्य केन्द्र बिन्दु हाने के कारण यह लेखाकंन समुदाय काो न जायगा।  अनेक अवसर प्रदान करेगा। भारतीय लेखांकन प्रमापोंं (AS) को IFRS से अभिसरित करने से उपरोक्त लाभों के अलावा देश की अर्थव्यवस्था।

(Economy) निगमिग संसार (Corporate World), निवेशकों तथा लेखांकन पेशेवरों को भी अनेक लाभ होंगे।

Bcom 1st Year Accounting Standards With IFRS Study Material Notes In Hindi

प्रश्नावली

अन्तर्राष्ट्रीय सैद्धान्तिक प्रश्न

(Theoretical Questions)

1 .लेखांकन माप की अवधारणा का वर्णन कीजिये. किन्हीं दो मापों का वर्णन कीजिये।

Explain the concept of Accounting Standards. Explain any two Standards.

2 .इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स ऑफ इण्डिया द्वारा वर्णित विभिन्न लेखांकन मापों को बताइये। किन्हीं चार मापों का वर्णन कीजिये।

Name various Accounting Standards issued by Institute of Chartered Accountants of India. Explain any four.

3 .क्या एक चुनी लेखांकन पद्धति परिवर्तित की जा सकती है? प्रथम लेखांकन माप में दी गयी सिफारिशों को समझाइये जबकि लेखांकन पद्धति परिवर्तित की जाती हो।

Whether an Accounting Policy once selected may be changed. Explain the recommendation of AS-1, when Accounting Policy is changed.

4 .लेखांकन नीतियों के पाँच उदाहरण दीजिये जिसके लिये प्रकटीकरण की आवश्यकता होती है। उनकी संक्षेप में विवेचना कीजिये।

Name five examples of Accounting Policies for which disclosure is required. Discuss in brief.

5 .लेखांकन मानदण्ड क्या है? उनकी उपयोगिता भी बताइये। निम्नलिखित को विस्तार से समझाइये। लेखांकन मानदण्ड संख्या 10 – स्थायी सम्पत्तियों का लेखांकन

लेखांकन मानदण्ड संख्या 27 – अमूर्त सम्पत्तियाँ।

What are accosting standards and their utility ? Describe the following :

What are accounting Standard No. 10 – Accounting for Fixed Assets.

Accounting Standard No.27 – Intangible Assets.

6. भारत में लेखांकन मानक पर एक निबन्ध लिखिये।

Write an essay on Accounting Standards in India.

7 .अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रतिवेदन प्रमाप का क्या आशय है? इनको अपनाने से क्या लाभ हैं?

What is the meaning of the International Financial Reporting Standard? What are the advantages to adopt these standards?

लेखांकन प्रमाप

खण्ड (ब): लघु उत्तरीय प्रश्न

(Section B: Short Answer Type Questions)

प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 100 से 120 शब्दों के बीच होना चाहिये।

The answer to every question should be between 100 to 120 words.

1 लेखांकन प्रमाप से आप क्या समझते हैं? ..

What do you mean by Accounting Standard?

2 .लेखांकन नीतियों का प्रकटीकरण पर एक नोट लिखिये।

Write a note on disclosure of Accounting Policies.

3 .लेखांकन प्रमाप के क्या उद्देश्य हैं?

What are the objects of Accounting Standard?

4 .एकाउन्टिंग मानक बोर्ड की रूपरेखा बताइये।

Explain the formulation of the Accounting Standard Board.

5 .एकाउन्टिंग मानक बोर्ड ने लेखांकन प्रमाप बनाने के लिए किन-किन विधियों का प्रयोग बताया है?

Discuss different methods in preparing the Accounting Standards are suggested by Accounts

Standard Board? onions

6. वित्तीय स्थिति में परिवर्तन (AS-3) पर एक लेख लिखिये।

Write a note on AS-3 changes in financial position.

7 .लेखांकन प्रमाप-6 ह्रास लेखांकन क्या है? विस्तार से लिखिये।

What is Accounting Standard-6 Depreciation? Discuss in detail.

8 .टिप्पणियाँ लिखिये(i) शोध एवं विकास लेखांकन AS-8, (ii) आगम स्वीकृति पहचान AS-9, (iii) सरकारी अनुदानों का मूल्यांकन | AS-12, (iv) विनियोगों का लेखांकन AS-13, (v) स्थायी सम्पत्तियों के लेखांकन AS-10, (vi) एकीकरण का लेखांकन

AS-14, (vii) सेवायोजकों के वित्तीय विवरणों में सेवा निवृत अनुलाभों का लेखांकन AS-15

Write short notes on :

(i) Accounting for Research and Development AS-8, (ii) Revenue Recognition AS-9, (iii) Accounting for Government Grants AS-12, (iv) Accounting for Investments AS-13, (V) Accounting for Fixed Assets AS-10, (vi) Accounting for Amalgamations AS-14, (vii) Accounting for Retirement Benefits in the financial statements of Employers AS-15.

     खण्ड (स): अति लघु उत्तरीय प्रश्न

      (Section c : Very Short Answer Type Questions)

सही उत्तर दीजिये

1. लेखांकन प्रमाप प्रकृति से नियम तो है परन्तु नियम नहीं है।

2. व्यापारिक संस्था द्वारा लेखांकन प्रमाप का पालन न करने पर आपराधिक मामला बनता है।

3. लेखांकन मानक बोर्ड की स्थापना 1979 में की गयी।

4 .लेखांकन प्रमाप AS-2 के आधार पर स्कन्ध का मूल्यांकन लागत मूल्य या चालू प्रतिस्थापन लागत जो भी कम हो, पर किया जाता है।

5 .लेखांकन प्रमाप AS-3 (संशोधित) कार्यशील पूँजी के आधार पर वित्तीय स्थिति में परिवर्तित विवरण तैयार करना होता है।

6. लेखांकन प्रमाप AS-5 में पूर्व समय की मदों का लाभ-हानि खातों में प्रकटीकरण कर देना चाहिये।

7. लेखांकन प्रमाप AS-6 (संशोधित) ह्रास पद्धति में परिवर्तन अतीत समय का स्वीकृत नहीं है।

8. लेखांकन प्रमाप AS-7 दीर्घकालीन निर्माणी ठेकों का आगम ठेके के पूर्ण होने पर ही मानी जाती है।

9 .लेखांकन प्रमाप AS-9 जब क्रेता से राशि प्राप्त हो जाती है तब बिक्री की राशि मानी जाती है।

10. लेखांकन प्रमाप AS-10 चिट्ठे में स्थायी सम्पत्ति में से समस्त ह्रास की राशि घटाकर दिखाई जाती है।

11. लेखांकन प्रमाप AS-13 चिट्ठे में दीर्घकालीन विनियोग कम लागत या बाजार मूल्य पर दिखाये जाते हैं।

12. लेखांकन प्रमाप AS-14 एकीकरण में हस्तांरिती हस्तांतरण कर्ता को क्रय मूल्य में सभी भुगतान की राशि जोड़ लेता है।

Indicate the Correct Answer:

Bcom 1st Year Accounting Standards With IFRS Study Material Notes In Hindi

1 .The accounting standards are in the nature of laws but not laws.

2 .The failure to follow an accounting standard leads to a criminal case against the business entity.

3. The Accounting Standards Board was established in 1979.’

4 .The inventory under AS-2 is valued on the basis of cost price or current replacement cost, which ever in less.

5 .Accounting Standard 3 (Revised) requires preparation of statement of changes in financial position on working capital basis.

6 .As per Accounting Standard 5, affect of prior period items should be disclosed in Profit & Loss account.

7 .As per Accounting Standard 6 (Revised) change of method of depreciation with retrospective effect is not permitted.

8 .As per Accounting Standard-7, revenue from long term construction contracts can be recognized only on completion of the contract.

9 .As per Accounting Standard-9, the revenue is recognised in case of sale when cash in received from the purchase.

10 As per Accounting Standard-10 the balance sheet generally shows fixed assets at cost less accumulated depreciation.

11 As per Accounting Standard-13 long term investments are generally shown in the balance sheet at the lower of cost or market value.

12 .As per Accounting Standard-14 purchase consideration for amalgamation includes all payments by the transfers company to the transferor company.

Answers

True : 1,6; False : 2, 3, 4, 5, 7, 8, 9, 10, 11, 12

निम्नलिखित प्रश्नों में प्रत्येक के चार वैकल्पिक उत्तर हैं। आपको चयन करके सही उत्तर लिखना है

1 .भारत में इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट्स ऑफ इण्डिया में लेखांकन बोर्ड का गठन कब किया?

(a) अक्टूबर 1975        (b) अप्रैल 1977      (c) जून 1976      (d) नवम्बर 1979

2 .भारत में प्रथम लेखांकन प्रमाप कब घोषित किया गया?

(a) अप्रैल 1977        (b) नवम्बर 1978        (c) नवम्बर 1979      (d) जून 1981

3 .लेखांकन में स्टॉक मूल्यांकन की कौन-सी पद्धति सर्वाधिक प्रयुक्त की जाती है?

(a) लागत मूल्य                                                           (b) बाजार मूल्य

(c) लागत या बाजार मूल्य जो भी अधिक हो                 (d) लागत या बाजार मूल्य जो भी कम हो

4 .स्टॉक मूल्यांकन पर लेखांकन प्रमाप लागू नहीं होता है

(a) वस्त्र उद्योग         (b) निर्माणी प्रोजेक्ट्स        c) साईकिल उत्पादन      (d) उपरोक्त सभी

5 .लेखांकन प्रमान-6 ह्रास से सम्बन्धित का प्रयोग नहीं होता

(a) भवन         (b) प्लाण्ट एवं मशीनरी        (c) पशुधन             (d) पेटेन्ट्स

6. ह्रास चार्ज करने की विभिन्न पद्धतियाँ है-

(i) स्थायी पद्धति                                         (ii) क्रमागत ह्रास पद्धति

(iii) वार्षिक वृति पद्धति                               (iv) उत्पादन घण्टा पद्धति

(v) संचय कोष पद्धति

लेखांकन मापन-6  के अनुसार व्यावसायिक तथा औधोगिक उपक्रम  में प्राय: किसा पद्धति का प्रयोग ज्यादातर किया  जाता है ।

(a)  (i) and (iii)               (b) (i) and (ii)                 (c) (ii) , (iv) and                    (v)  (d) (i) ,(iii) and (v)

7 .निम्नलिखित किस पद्धति में सम्पत्ति पूर्ण जीवन काल में मूल लागत पर ही दिखायी जाती है?

(a) वार्षिक वृत्ति पद्धति                              (b) क्रमागत ह्रास पद्धति

(c ) संचय कोष पदति                                  (d) उत्पादन घण्टा पटति।

8 .निम्नलिखित में से किन सम्पत्तियों पर ह्रास आयोजित नहीं किया जाता है? . .

(i) भवन   (ii) भूमि   (iii) फर्नीचर   (iv) पेटेन्ट   (v) ख्याति    (vi) स्कन्ध    (vii) देनदार    (viii) औजार     (ix) फर्नीचर एवं फिटिंग  (x) प्लाण्ट एवं मशीनरी

(a) (ii), (iv), (v), (vi), (vii) DI D                                  (b) (ii), (iii), (v), (vii), (viii) anico0

(c) (ii), (iv), (v), (vii)                                                    (d) (iii), (v), (vii), (viii)

9 निम्नलिखित स्थायी सम्पत्तियों पर लेखांकन प्रमाप-10 लाग होता

है

a) भूमि                                                      (b) जंगल

(c) पौधे                                                    (d) खाने ।

10 .लेखांकन प्रमाप-11 के अनुसार विदेशी शाखाओं की स्थायी सम्पत्तियों के ह्रास को किस दर पर परिवर्तित किया जाता है? ।

(a) प्रारम्भिक दर                                                    (b) अन्तिम दर

(c) तिथि विशेष दर                                                (d) प्रारम्भिक एवं तिथि विशेष दर

11. नवम्बर 1985 में नौवाँ एवं दसवाँ लेखांकन प्रमाप घोषित किया गया। इनमें दसवाँ लेखांकन प्रमाप किससे सम्बन्धित था?

(a) शोध एवं विकास का लेखांकन                                            (b) स्थायी सम्पत्तियों का लेखांकन

(c) वित्तीय दशा में परिवर्तन                                                    (d) आगम मान्यता या पहचान

The following questions have four alternative answers for each. You have to select and write correct answer.

Bcom 1st Year Accounting Standards With IFRS Study Material Notes In Hindi

1. When Accounting Standards Board was constituted in India by Institute of Chartered Accountant of India?

(a) October 1975            (b) April 1977″                    (c) June 1976               (d) November 1979

2 . When Accounting Standard 1 was declared in India?

(a) April 1977                    (b) November 1978          (c) November 1979              (d) June 1981

3. Which method is mostly used for stock valuation in Accounting?

(a) Cost Price         (b) Market Price               (c) Cost Price or Market Price, whichever is more

(d) Cost Price or Market Price, whichever is less

4 . Accounting standard on Inventory valuation is not applicable to : (a) Textile Industry

(b) Construction Projects (c) Cycle Manufacture

5. Accounting Standard-6 relating to depreciation is not applicable to :

(d) Patents                                                        (a) Building

(b) Plant & Machinery                                      (c) Live-stock

6 .There are several methods of providing depreciation :

(a) Fixed Method

(b) Diminishing Method                           (c) Annuity Method

(d) Production Hour Method                    (e) Sinking Fund Method

According to AS-6 which of these methods are commonly used in commercial and industrial

undertakings?

7. In which of the following methods, the asset account appears at the original cost throughout its life? (a) Annuity Method (b) Diminishing Method

(c) Sinking Fund Method                                   (d) Production Hour Method

8 .From the following assets, depreciation on which is not charged:

(i) Building (ii) Land (iii) Furniture (iv) Patent (v) Goodwill (vi) Stock (vii) Debtors (viii) Tools (ix) Furniture and Fittings (x) Plant and Machinery.

(a) (ii), (iv), (v), (vi), (vii)                              (b) (ii), (ii), (v), (vii), (viii)

(c) (ii), (iv), (v), (vii)                                     (d) (ii), (v), (vii), (viii)

9 .Accounting Standard 10 deals with the following fixed Assets :

(a) Land                                                              (b) Forests

(C) Plantations                                                    (d) Mines

10. According to Accounting Standard-11 depreciation of fixed assets is converted on which rate (a) Opening Rate                                                       (b) Closing Rate

(c) Particular Date Rate                                         (d) Opening and Particular Date Rate

11 .Accounting Standard IX and X were declared in November 1958. Out of this Accounting Standard 10 was related with which of the following:

(a) Accounting for Research and Development              (b) Accounting for Fixed Assets

(C) Changes in Financial Position                                      (d) Revenue Recognition Answers

Bcom 1st Year Accounting Standards With IFRS Study Material Notes In Hindi

रिक्त स्थानों को भरिये

1 .प्रथम लेखांकन प्रमाप ……… में घोषित किया गया।

2 .लेखांकन में स्कन्ध का मूल्यांकन ……… पर किया जाता है।

3 .विदेशी शाखाओं की स्थायी सम्पत्तियों को ……… दर पर परिवर्तित किया जाता है।

4. लेखांकन प्रमाप-10 ……… से सम्बन्धित है।

5 .आगम स्वीकृति लेखांकन प्रमाप-9 ……… में घोषित किया गया।

6. आर्थिक चिट्ठे की तिथि के बाद होने वाली इस प्रमाप की घोषणा ……… लेखांकन मानक बोर्ड द्वारा की गयी।

Fill up the Blanks :

1. First Accounting Standard was declared on ……… .

2. In Accounting Stock is valued at ……….

3. Fixed Assets in Foreign Branch are converted ……… rate.

4. Accounting Standard 10 is related to .

5 .Revenue Accounting Standard 9 was declared

6. Contingencies and Events occurring after the Balance Sheet date this standard was declared on……… by Accounting Standards Boards.

Answers

2 November 1979, 2. Cost or Market Price whichever is less, 3. Opening ar Particular date rate, 4. Accounting for fixed Assets, 5. November 1985, 6. November 1982

 

 

chetansati

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