BCom 1st Year Regulatory Framework Contracts Bailment Pledge Study Material notes In Hindi

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BCom 1st Year Regulatory Framework Contracts Bailment Pledge Study Material notes In Hindi

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Contracts Bailment Pledge
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BCom Insolvency And Bankruptcy Code-2016 Notes In Hindi

निक्षेप तथा गिरवी के अनुबन्ध

(Contracts of Bailment and Pledge)

हम प्रायः नित्यप्रति ऐसे अनेक व्यवहार करते और देखते हैं जिनके अन्तर्गत एक व्यक्ति अपनी कोई वस्तु किसी विशेष उद्देश्य के लिये किसी दूसरे व्यक्ति को देता है और उक्त उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद वह वस्तु उसे वापस कर दी जाती है, जैसे पढ़ने के लिये पुस्तक देना, सर्विस के लिये स्कूटर देना, सिलने के लिये टेलर को कपड़े देना, ड्राईक्लीन के लिये कपड़े देना आदि। इस प्रकार के व्यवहार को ही ‘निक्षेप’ कहते हैं। ‘निक्षेप’ भी एक विशेष प्रकार का अनुबन्ध ही माना जाता है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 148 से 181 में इसके लिये विशेष नियम दिये गये हैं।

निक्षेप का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Bailment)

निक्षेप को अंग्रेजी में बेलमेन्ट‘ (Bailment) कहते हैं जिसकी उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के ‘बेलर’ (Bailor) शब्द से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘सुपुर्दगी करना’ (To Deliver) है। परन्तु वैधानिक भाषा में इसका अर्थ ‘एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को स्वेच्छापूर्वक किसी वस्तु का हस्तान्तरण करना’ (Voluntary change of possession from one person to another) है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 148 के अनुसार, “यदि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को किसी विशिष्ट उद्देश्य से इस अनुबन्ध पर माल सुपुर्द करता है कि उद्देश्य के पूरा हो जाने पर माल वापिस कर दिया जायेगा अथवा उसके आदेशानुसार व्यवस्था (Disposed) कर दी जायेगी, तो ऐसे अनुबन्ध को निक्षेप अनुबन्ध कहेंगे।”

इस प्रकार माल की सुपुर्दगी करने वाले व्यक्ति को ‘निक्षेपी’ (Bailor) कहते हैं और वह व्यक्ति जिसे ऐसा माल सुपुर्द किया जाता है उसे ‘निक्षेपग्रहीता’ (Bailee) कहते हैं।

उदाहरणार्थ-(i) आशीष अपनी पैन्ट सिलने के लिये ‘सिल्को टेलर्स’ को कपड़ा देता है, तो आशीष और सिल्को टेलर्स के बीच हुआ अनुबन्ध निक्षेप का अनुबन्ध है जिसमें आशीष निक्षेपी और सिल्को टेलर्स निक्षेपग्रहीता है।

(ii) सुरेन्द्र अपनी पुत्री के विवाह में दावत की व्यवस्था हेतु किसी धर्मार्थ संस्था से बर्तन लेता है तो वर्तन लेने का अनुबन्ध निक्षेप का अनुबन्ध है जिसमें उक्त धर्मार्थ संस्था निक्षेपी तथा सुरेन्द्र निक्षेपग्रहीता है।

Regulatory Framework Contracts Bailment

निक्षेप अनुबन्ध के लक्षण

(Characteristics of Contract of Bailment)

निक्षेप की उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार निक्षेप अनुबन्ध के निम्नलिखित आवश्यक लक्षण हैं

1 दो पक्षकारों का होना (Two Parties)- अन्य अनुबन्धों की भाँति निक्षेप अनुबन्ध में भी दो पक्षकार होते हैं-एक माल सुपुर्द करने वाला निक्षेपी तथा दूसरा माल को रख लेने वाला व्यक्ति निक्षेपग्रहीता।

2. माल की सुपुर्दगी (Delivery of Goods)- निक्षेप के अनुबन्ध में माल की सुपुर्दगी एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति को अवश्य की जानी चाहिए। माल की सुपुर्दगी से आशय अपनी इच्छा से माल के अधिकार का हस्तान्तरण एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को करने से है। साधारणत: माल की सपर्दगी निम्नलिखित तीन प्रकार से की जा सकती है

(i) वास्तविक सुपुर्दगी (Actual Delivery)- जब माल वास्तविक रुप से एक व्यक्ति के अधिकार से दसरे व्यक्ति के अधिकार में चला जाये तो उसे वास्तविक सपर्दगी कहते हैं। जैसे ‘अ’ अपनी मोटरकार ‘ब’ को मरम्मत करने के लिए देता ह, यह माल की वास्तविक सपर्दगी है।

(ii) रचनात्मक सुपुर्दगी (Constructive Delivery)- यदि वस्तु पर पहले से ही किसी व्यक्ति का अधिकार हो और वह उसे निक्षेपग्रहीता के रुप में अपने पास रखना स्वीकार कर ले तो वस्तु का वास्तविक हस्तान्तरण न किए जाने पर भी निक्षेप अनबन्ध के लिए उचित सपर्दगी मानी जाएगी। उदाहरण के लिए राम, मोहन की दुकान से एक ‘ऊषा पंखा’ खरीदकर इस निर्देश के साथ उसकी दुकान पर ही छोड़ देता है कि पंखा मोहन द्वारा उसके घर पहुंचा दिया जाए। यहाँ पर यद्यपि राम ने मोहन को कोई वास्तविक सपर्दगी नहीं दी फिर भी राम निक्षेपी तथा मोहन निक्षेपग्रहीता माना जायेगा।

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(iii) सांकेतिक सुपुर्दगी (Symbolic Delivery)- सांकेतिक सुपुर्दगी कोई भी ऐसा कार्य करके दी जा सकती है जिसके द्वारा वस्तु निक्षेपग्रहीता अथवा उसके प्रतिनिधि के अधिकार में आ जाए। भण्डार की कुंजी, जहाजी बिल्टी आदि की सुपुर्दगी सांकेतिक सुपुर्दगी ही है। जैसे रमेश अपने गेहूँ के गोदाम की चाबी जिसमें 200 बोरे गेहँ हैं, सरेश को दे देता है। जिस समय चाबी रमेश द्वारा सुरेश को दी जाती हैं, उसी समय गोदाम सुरेश को सुपुर्द किया समझा जाएगा।

3. अस्थायी उद्देश्य (Temporary Purpose)-माल की सुपुर्दगी किसी अस्थायी उद्देश्य के लिए की जाती है। जैसे राम अपनी घड़ी मरम्मत के लिए घड़ी साज को देता है तथा घड़ी साज घड़ी की मरम्मत कर राम को वापस कर देता है यहाँ पर घड़ी मरम्मत के लिए अस्थायी रुप से सुपुर्द की गयी है।

4. माल के अधिकार का हस्तान्तरण (Transfer of Possession)-निक्षेप अनुबन्ध के लिए एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को माल के अधिकार का हस्तान्तरण होना आवश्यक है। माल की केवल रखवाली या देखभाल करना माल के हस्तान्तरण के अभाव में निक्षेप नहीं कहा जा सकता जैसे एक नौकर द्वारा अपने मालिक के माल की देखभाल करना।

5.निदिष्ट वस्तु को वापस पाने का अधिकार (Right of Return of Goods)-निक्षेप अनुबन्ध में माल की सुपुर्दगी इस शर्त पर की जाती है कि उस उद्देश्य के पूरा हो जाने पर जिसके लिए सुपुर्दगी दी गयी थी वही माल उसके स्वामी को वापस कर दिया जायेगा या उसके आदेशानुसार उसकी व्यवस्था कर दी जायेगी।

6. माल के स्वामित्व का हस्तान्तरण नहीं (Ownership is not Transferred) निक्षेप अनुबन्ध में केवल माल के अधिकार का हस्तान्तरण होता है, स्वामित्व का नहीं। वस्तु का स्वामित्व तो हमेशा निक्षेपी के पास ही रहता है और इसी के आधार पर वह अपने माल को पुनः प्राप्त कर सकता है।

7. चल सम्पत्ति का ही निक्षेप (Bailment of Movable Goods Only)- निक्षेप केवल चल सम्पत्ति का ही हो सकता है, अचल सम्पत्ति जैसे मकान जमीन आदि के निक्षेप अनुबन्ध नहीं किये जा सकते।

8. माल की वापसी मूलरुप में होना अनिवार्य नहींनिक्षेप किये गये माल के रुप-रंग में परिवर्तन हो सकता है, जैसे सुनार द्वारा सोने को आभूषण के रुप में परिवर्तित करके वापस करना।

9.माल की सपर्दगी स्वयं को होना (Delivery of Goods not for Own) निक्षेप अनबन्ध के लिए यह आवश्यक है कि माल की सुपुर्दगी एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को दी जानी चाहिए स्वयं को नहीं।

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क्या बैंक में रुपया जमा करना, निक्षेप अनुबन्ध है ?-यह प्रश्न कि क्या बैंक के खाते में रुपया जमा करना निक्षेप का अनुबन्ध है, महत्त्वपूर्ण है। बैंक के खाते में रुपया जमा करना निक्षेप का अनुबन्ध नहीं है क्योंकि जो रुपये, सिक्के, नोट आदि बैंक खातों में जमा किये जाते हैं, बैंक द्वारा उन्हें उसी मल रुप में वापिस करने की गारण्टी नहीं दी जाती, बल्कि उस राशि के बराबर की राशि ही वापिस करने का वचन बैंक द्वारा दिया जाता है, अत: बैंक व ग्राहक के बीच ऋणी व ऋणदाता का सम्बन्ध ही स्थापित होता है, निक्षेपी व निक्षेपग्रहीता का नहीं। इसके विपरीत यदि कोई व्यक्ति कुछ मूल्यवान वस्तयें. आभषण, सिक्के अथवा नोट एक बक्से में बन्द कर बैंक के पास सुरक्षा के लिये रख देता है तो यह अनुबन्ध निक्षेप का अनुबन्ध है।

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निक्षेप के प्रकार या रुप

(Kinds of Bailment)

प्राय: निक्षेप निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

1 सुरक्षा के लिये निक्षेप (Bailment for Safe Deposit)- जब निक्षेपी किसी वस्त को निक्षेपग्रहीता को सुरक्षा के उद्देश्य से सुपुर्द करता है तो इसे सुरक्षा के लिये निक्षेप कहते हैं। उदाहरण के लिये बैंक के लॉकर में रखे गये आभूषण या अन्य महत्त्वपूर्ण दस्तावेज, यात्रा पर जाते समय किसी। रश्तेदार या पड़ोसी को सुपुर्द किया गया सामान आदि।

2. प्रयोग के लिये निक्षेप (Bailment for Use) जब निक्षेपी किसी वस्तु की सपर्दगी। निक्षेपग्रहीता को इस उद्देश्य से तथा इस शर्त पर करता है कि निर्दिष्ट उद्देश्य अथवा निर्दिष्ट समय समाप्त होने पर वह वस्तु निक्षेपी को वापस कर दी जायेगी तो इसे प्रयोग के लिये निक्षेप कहते हैं। उदाहरणार्थ, रजत अपनी कार एक दिन के लिये दिल्ली जाने हेतु अपने मित्र भरत को देता है तो यह प्रयोग के लिये निक्षेप होगा।

3. किराये के लिये निक्षेप (Bailment for Hire) जब निक्षेपी द्वारा निक्षेपग्रहीता को किसी वस्तु की सुपुर्दगी किराया लेने के उद्देश्य से की जाती है तो यह किराये के लिये निक्षेप कहलाता है, जैसे शादी विवाह पर टैन्ट एवं क्रॉकरी का सामान किराये पर देना। ।

4. गिरवी द्वारा निक्षेप (Bailment by Pledge) जब कोई ऋणी, ऋण की जमानत के उद्देश्य से कोई वस्तु गिरवी के रुप में लेनदार को सौंपता है तो यह गिरवी द्वारा निक्षेप कहलाता है।

5. मरम्मत के लिये निक्षेप (Bailment for Repairs) यदि कोई वस्तु दूसरे व्यक्ति को मरम्मत के लिये हस्तान्तरित की जाये तो यह मरम्मत के लिये निक्षेप कहलाता है, जैसे रजत द्वारा अपनी बिजली की प्रेस मिस्त्री को मरम्मत के लिये देना।

6. परिवहन के लिये निक्षेप (Bailment for Carriage)-जब कोई वस्तु माल वाहक को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने के लिये सुपुर्द की जाती है, तो वह परिवहन सम्बन्धी निक्षेप कहलाता है।

7. निःशुल्क निक्षेप (Gratitious Bailment)-जब निक्षेप के लिये कोई शुल्क नहीं लिया जाता, तो उसे नि:शुल्क निक्षेप कहते हैं, जैसे अमित द्वारा अपनी पुस्तक सुमित को नि:शुल्क पढ़ने के लिये देना निःशुल्क निक्षेप है।

8. सशुल्क निक्षेप (Non-gratitious Bailment) यदि निक्षेप के लिये कोई शुल्क लिया अथवा दिया जाता है तो वह सशुल्क निक्षेप कहलाता है। उदाहरण के लिये बैंक, लाकर्स की सुविधा प्रदान करने के लिये कुछ शुल्क लेता है।

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निक्षेपी के कर्तव्य

(Duties of Bailor)

निक्षेपी के मुख्य कर्तव्य इस प्रकार है

1 निक्षेप किये गये माल के दोषों को प्रकट करना (To Disclose Faults in Goods Bailed)-धारा 150 के अनुसार निक्षेपी का यह महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि माल का निक्षेप करते समय निक्षेपग्रहीता को उन सब दोषों को बता दे जिनका कि उसे ज्ञान है तथा जो निक्षेपग्रहीता द्वारा माल के प्रयोग में बाधक है अथवा उसे असाधारण संकट में डाल सकता है। यदि निक्षेपी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता तो वह ऐसे दोषों के कारण निक्षेपग्रहीता को होने वाली प्रत्यक्ष हानि के लिये उत्तरदायी होगा। यदि माल का निक्षेप किराये पर किया गया है तो निक्षेपी ऐसे सभी दोषों के लिये निक्षेपग्रहीता के प्रति उत्तरदायी होगा जिनका कि उसे ज्ञान हो अथवा न हो। उदाहरणार्थ, अमित अपनी कार अपने मित्र सुमित को चलाने के लिये देता है। कार असुरक्षित है, परन्तु अमित को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। कार असुरक्षित होने के कारण सुमित को चोट लग जाती है तो अमित इसके लिये जिम्मेदार नहीं होगा। यदि अमित ने अपनी कार सुमित को किराये पर दी होती तो कार के असुरक्षित होने के कारण सुमित को लगी चोट के लिये वह जिम्मेदार होता।

2. निक्षेपग्रहीता द्वारा किये गये आवश्यक व्ययों का भुगतान करना (To Repay the Necessary Expenses) धारा 158 के अनुसार जहाँ निक्षेप अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार निक्षेपग्रहीता को निक्षेपित वस्तु को सुरक्षित रखना है या कहीं ले जाना है या वस्तु के सम्बन्ध में अन्य कोई कार्य करना है तथा निक्षेपग्रहीता को कोई पारिश्रमिक नहीं मिलना है, तो ऐसी दशा में निक्षेपी. निक्षेपग्रहीता को ऐसे सभी आवश्यक व्यय चुकाने के लिये बाध्य है जो निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेप के उद्देश्य के लिये किये। गये हो। उदाहरणार्थ, अमित अपनी गाय अपने गांव पहुंचाने के लिये सुमित को देता है। मार्ग में सुमित गाय के चारे के लिये तथा वाहन के लिये आवश्यक व्यय चुकाता है। सुमित द्वारा चुकाये गये व्ययों का भुगतान करने के लिये अमित बाध्य होगा।

3. निक्षेपग्रहीता की क्षतिपूर्ति करना (Indemnity of the Bailee)-निक्षेपी निम्नलिखित दो परिस्थितियों में निक्षेपग्रहीता की क्षतिपूर्ति करने के लिये बाध्य होता है निक्षेप का अधिकार न होने पर- यदि निक्षेपा का वस्तु का निक्षेप करने, निक्षेपित वस्त को वापस लेने अथवा उसके सम्बन्ध में आदेश देने का अधिकार नहीं हो तो निक्षेपग्रहीता को निक्षेपी के अधिकार की कमी के कारण पहँचने वाली हानि के लिये निक्षेपी उत्तरदायी होता है। उदाहरण कुछ माल भरत के पास निक्षेप के रुप में रखता है। रजत को उस माल को निक्षेप करने का अधिकार। नहीं था। माल के वास्तविक स्वामी प्रशान्त ने भरत पर मुकदमा कर दिया। भरत को अपने बचाव में कुछ खर्चा करना पड़ा। यहाँ पर भरत द्वारा किये गये खर्च को रजत को वहन करना पड़ेगा।

(ii) निःशुल्क निक्षेप की दशा में निश्चित समय से पूर्व वस्तु वापस माँगने पर-नि:शुल्क निक्षेप की दशा में यदि वस्तु निश्चित अवधि के लिये दी गई है अथवा किसी निश्चित उद्देश्य के लिये दी गई है और निक्षेपी निश्चित समय अथवा निश्चित उद्देश्य के पूरा होने के पूर्व ही अपनी वस्तु वापस माँग लेता है जिसके कारण निक्षेपग्रहीता को लाभ की अपेक्षा हानि अधिक होती है तो निक्षेपी हानि और लाभ के अन्तर को चुकाने के लिये उत्तरदायी होता है।

4.निक्षेपित वस्तुओं की हानियों को वहन करने का दायित्व (To Bear Risk of Loss to the Goods Bailed) यदि निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेपित वस्तुओं के प्रति उतनी ही सावधानी का प्रयोग किया। गया हो जितना कि कोई भी व्यक्ति सामान्यतः उसी प्रकार की अपनी वस्तुओं के लिये करता तो निक्षेपित वस्तुओं के खो जाने, नष्ट हो जाने अथवा खराब हो जाने आदि से होने वाली हानियो का दायित्व निक्षेपी को ही उठाना होता है।

5.निक्षेपग्रहीता को पारिश्रमिक (Remuneration to Bailee)-यदि निक्षेप माल में कुछ करने के लिए दिया गया है तो निक्षेपी को निक्षेपग्रहीता का उचित या निश्चित किया हुआ पारिश्रमिक या शुल्क चुका देना चाहिए। जैसे कपड़ा सिलने के लिए धोने के लिए, सुनार को आभूषण बनाने के लिए पारिश्रमिक देना।

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निक्षेपग्रहीता के कर्तव्य

(Duties of the Bailee)

1 निक्षेपित माल की देखभाल करना (To Take Care of Goods Bailed)-निक्षेपग्रहीता का यह कर्तव्य है कि वह निक्षेपित माल की उतनी ही देखभाल करे जितनी कि एक साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति, समान परिस्थितियों में उसी किस्म एवं मूल्य के अपने माल की करता है। यदि निक्षेपग्रहीता ने निक्षेपित वस्तु की ऐसी देखभाल की है तो वह सामान्यतः वस्तु के खोने, नष्ट होने या खराब होने के लिये उत्तरदायी नहीं होगा। सशुल्क और नि:शुल्क निक्षेप में इस दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। यदि निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेपित माल की इतनी देखभाल नहीं की जाती है तो वह निक्षेपी को क्षतिपूर्ति के लिये बाध्य है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ अपनी 50 बोरी चीनी एक महीने के लिये ‘ब’ के गोदाम में रखवा देता है। बरसात आती है और गोदाम की छत टूट जाती है लेकिन ‘ब’ को जानकारी होते हुये भी वह उसकी उपेक्षा करता है और ‘अ’ का माल नष्ट हो जाता है। यहाँ पर ‘ब’ गोदाम की छत ठीक कराकर इस नुकसान को बचा सकता था, अत: ‘ब’ ‘अ’ को क्षतिपूर्ति के लिये बाध्य है। (धारा 151, एवं 152)

2. निक्षेप की शर्तों के विपरीत कार्य करना (Not to do any Act Inconsistent with the Terms of Bailment)-धारा 153 के अनुसार निक्षेपग्रहांता का कर्तव्य है कि वह निक्षेप अनुबन्ध की शर्तों का पूर्णतया पालन करे। यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेपित माल के सम्बन्ध में कोई ऐसा कार्य करता है जोकि निक्षेप अनुबन्ध की शर्तों के विरुद्ध है तो निक्षेपी, अनुबन्ध को अपनी इच्छा पर समाप्त कर सकता है तथा निक्षेपित माल को वापस ले सकता है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ ‘ब’ को अपना घोड़ा व्यक्तिगत सवारी के लिये देता है और ‘ब’ उक्त घोडे को अपने ताँगे में चलाता है। यहाँ ‘ब’ की इच्छा पर निक्षेप अनुबन्ध समाप्त किया जा सकता है और ‘ब’ अपना घोड़ा वापस ले सकता है।

3. निक्षेपित वस्तु का अनाधिकृत उपयोग करना (Not to Make an Unauthorised Use of the Goods Bailed)-धारा 154 के अनुसार निक्षेपग्रहीता का यह कर्तव्य है कि वह निक्षेप किये गये माल का अनाधिकृत उपयोग न करे अर्थात् वह उस वस्तु को केवल उसी काम में लाये जिस काम के लिये निक्षेपी ने उसको अधिकार दे रखा है। यदि वह अनाधिकृत उपयोग करता है और ऐसे उपयोग से माल की हानि होती है तो निक्षेपग्रहीता को ऐसी हानि पूरी करनी होगी। उदाहरणार्थ, ‘अ’, ‘ब’ से उसकी कार विशेष रुप से दिल्ली जाने के लिये किराये पर लेता है, परन्तु वह कार का उपयोग मेरठ जाने में करता है। रास्ते में कार दुर्घटना के कारण पूर्णतया नष्ट हो जाती है। अनाधिकृत उपयोग करने के कारण ‘अ’, ‘ब’ के प्रति क्षतिपूर्ति के लिये उत्तरदायी है।

4. निक्षेपित माल को अपने माल के साथ मिलाना (Not to Mix Goods Bailed with His Own Goods)-निक्षेपग्रहीता का यह कर्तव्य है कि वह निक्षेपों के माल को अपने माल के साथ। न मिलाये। परन्तु यदि वह निक्षेपित माल को अपने निजा माल में मिला लेता है तो उसका उत्तरदायित्व अग्र प्रकार निर्धारित होगा

() निक्षेपी की सहमति से माल को निजी माल के साथ मिलाना- यदि निक्षेपग्रहीता ने। निक्षेपी की सहमति से निक्षेपित माल को अपने निजी माल के साथ मिला दिया हो तो इस प्रकार मिले हया माल में दोनों का हित उसी अनुपात में होगा जो अनुपात दोनों के अलग-अलग माल का था। (धारा 155)

उदाहरणार्थ, रजत 50 किलो गेहूँ का निक्षेप भरत को करता है। भरत इसे रजत की सहमति से। अपने 50 किलो गेहूँ के साथ मिला देता है। इस प्रकार मिले हुये माल में आधा गेहूँ रजत का होगा और । आधा गेहूँ भरत का होगा।

() निक्षेपी की बिना सहमति से अलग किये जा सकने वाले माल को निजी माल के साथ मिलाना- यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेपित माल को निक्षेपी की सहमति के बिना ही अपने माल में मिला लेता है और वह माल ऐसा है कि मिलाने के बाद अलग-अलग किया जा सकता है तो दोनों अपने-अपने माल के अधिकारी रहेंगे। परन्तु माल को अलग-अलग करने में जो खर्चा या नुकसान होगा वह निक्षेपग्रहीता को ही सहन करना होगा क्योंकि उसने निक्षेपित माल को बिना निक्षेपी की सहमति के मिलाया था।

 () निक्षेपी की बिना सहमति के अलग न किये जा सकने वाले माल को निजी माल के साथ मिलाना

यदि निक्षेपग्रहीता ने निक्षेपी की सहमति के बिना निक्षेपित माल को अपने माल के साथ मिला लिया हो और माल ऐसा हो कि वह मिलाने के बाद अलग करना तथा वापस दे पाना असम्भव हो जाता है तो निक्षेपग्रहीता, निक्षेपी को उसके माल की हानि का मुआवजा देने के लिये बाध्य होगा। उदाहरणार्थ, ‘अ’ 800 ₹ प्रति बोरी के मूल्य का देसी गेहूँ ‘ब’ के पास निक्षेपित करता है। ‘ब’ बिना ‘अ’ की सहमति के, उसे 600₹ प्रति बोरी वाले अपने गेहूँ के साथ मिला देता है। परिणामस्वरुप ‘अ’ द्वारा निक्षेपित गेहूँ को अलग करना असम्भव है। ऐसी दशा में ‘ब’, ‘अ’ के माल का मूल्य चुकाने के लिये बाध्य होगा।

5. निक्षेपित माल को वापिस करने का कर्तव्य (To Return the Goods Bailed)निक्षेपग्रहीता का यह कर्तव्य है कि वह निक्षेप अनुबन्ध के निर्धारित समय के बीत जाने पर या उद्देश्य पूरा हो जाने पर निक्षेपी के बिना मांगे माल को वापिस कर दे अथवा निक्षेपी के आदेशानुसार उसकी व्यवस्था कर दे।

यदि निक्षेपग्रहीता ऐसा नहीं करता तो वह निक्षेप अनुबन्ध के समाप्त होने के समय से निक्षेपित माल की क्षति या विनाश के लिये निक्षेपी के प्रति उत्तरदायी होगा।

6. माल में हुई वृद्धि अथवा लाभ सहित वापस करना (To Return any Increase or Profit in Bailed Goods)- किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में निक्षेपग्रहीता का यह कर्तव्य है कि वह निक्षेपित माल में हुई वृद्धि अथवा लाभ को भी निक्षेपी को सौंप दे अथवा उसके आदेशानुसार उसकी व्यवस्था कर दें।

यह नियम प्रायः पशुओं के निक्षेप पर लागू होता है। उदाहरणार्थ, अमित अपनी गाय सुमित के पास छोड़ जाता है। सुमित के यहाँ गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया। सुमित का कर्तव्य है कि गाय के साथ बछड़े को भी अमित को वापिस कर दे।

7.संयक्त स्वामियों में से किसी एक को माल सुपुर्द करना (To Return Goods any one of Joint Owners)- किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में यदि माल का निक्षेप संयुक्त स्वामियों द्वारा किया गया है तो निक्षेपग्रहीता उनमें से किसी को भी माल वापिस कर सकता है अथवा उनमें से किसी एक के निर्देशानुसार माल की व्यवस्था कर सकता है। उसे सभी संयुक्त स्वामियों की अनमति लेना आवश्यक नहीं हैं।

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निक्षेपी के अधिकार

(Rights of Bailor)

भारतीय अनबन्ध अधिनियम के अनुसार जो धाराएँ निक्षेपग्रहीता के कर्त्तव्य के सम्बन्ध में लाग होती है. वें ही निक्षेपी के अधिकारों का वर्णन करती हैं। निक्षेपी के प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं

(1) निक्षेपग्रहीता की उपेक्षा से हुई हानि की क्षतिपूर्ति का अधिकार (Compensation of loss caused due to Bailee’s negligence)-धारा 151 के अनुसार किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में यदि निक्षेपग्रहीता ने माल की उचित देखभाल नहीं का हे जसी कि एक सामान्य व्यक्ति से उसी प्रकार की बात के सम्बन्ध में समान परिस्थितियों में अपेक्षा की जा सकती है अर्थात् माल की देखभाल में। निक्षेपग्रहीता ने उपेक्षा/लापरवाही की है तो इसके परिणामस्वरुप होने वाली क्षति की पति निक्षेपी। निक्षेपग्रहीता से प्राप्त करने का अधिकारी है। जैसे निक्षपग्रहाता की लापरवाही अथवा उपेक्षा से निक्षेपित माल का चोरी चले जाना, नष्ट हो जाना आदि।

(2) निक्षेपग्रहीता के अनाधिकृत उपयोग पर क्षतिपर्ति प्राप्त करने का अधिकार (Compensation on unauthorised use by the bailee)-धारा 154 के अनुसार यदि अनुबन्ध की शतों के विरुद्ध निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेपित माल का अनाधिकृत उपयोग किया गया है जिसके परिणामस्वरुप निक्षेपी को कोई हानि उठानी पड़ी है तो निक्षेपी को अधिकार है कि वह निक्षेपग्रहीता से ऐसी समस्त हानियों की क्षतिपूर्ति कर ले जो ऐसे अनाधिकृत उपयोग से या उपयोग के समय माल के । सम्बन्ध में हुई है।

(3) अनुबन्ध को समाप्त करने का अधिकार (Termination of Bailment)-धारा 153 के अनुसार निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेपित माल के सम्बन्ध में निक्षेप-अनुबन्ध की शर्तों के असंगत कार्य करने पर निक्षेपी को अनुबन्ध को समाप्त करने का अधिकार है अर्थात् ऐसी दशा में अनुबन्ध निक्षेपी की इच्छा। पर व्यर्थनीय है।

इस सम्बन्ध में यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि उपर्युक्त दोनों धाराएँ (153-154) निक्षेपी के दो विभिन्न उपचारों का वर्णन करती हैं। यह तथ्य सम्बन्धी प्रश्न है और न्यायालय समस्त परिस्थितियों को ध्यान में रखकर यह निर्णय करेगा कि निक्षेपग्रहीता द्वारा किया गया कार्य किस श्रेणी से सम्बन्धित है। यदि कार्य शर्तों के असंगत माना जाता है तो निक्षेपी को अनुबन्ध समाप्त करने का अधिकार है और यदि वह कार्य अनाधिकृत उपयोग के अन्तर्गत आता है तो निक्षेपी को केवल क्षतिपूर्ति का ही अधिकार प्राप्त है, अनुबन्ध को निरस्त करने का नहीं।

(4) निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेपित माल को स्वयं के माल में मिलाने पर क्षतिपूर्ति (Compensation when the bailee mixes the goods bailed, with his own goods)-यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेपी की सहमति के बिना निक्षेपित माल को अपने स्वयं के माल में मिला लेता है और माल पृथक-पृथक किया जा सकता है तो दोनों पक्षकार अपने-अपने माल के अधिकारी होंगे परन्तु माल के पृथक करने अथवा बांटने के व्यय अथवा मिलावट से उत्पन्न हानि की पूर्ति कराने का अधिकार निक्षेपी को होगा। यदि माल की मिलावट ऐसी है जिसमें से निक्षेपित वस्तु पृथक नहीं की जा सकती तो निक्षेपी सम्पूर्ण माल की क्षतिपूर्ति निक्षेपग्रहीता से प्राप्त करने का अधिकारी है। यदि निक्षेपग्रहीता ने माल निक्षेपी की सहमति से अपने माल में मिलाया है तो निक्षेपी किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।

(5) निःशुल्क निक्षेप की स्थिति में किसी भी समय निक्षेपित वस्तु वापिस लेने का अधिकार (Right of return of goods at any time in case of gratuitous bailment)-धारा 159 के अनुसार निःशुल्क निक्षेप की दशा में निक्षेपी को नियत अवधि अथवा उद्देश्य की समाप्ति से पूर्व ही वस्त वापस लेने का अधिकार है। किन्तु यदि निक्षेपी वस्तु को वापस पाने की माँग करता है तो उसे निक्षेपग्रहीता की उस हानि की पूर्ति करनी होगी जो उसको प्राप्त लाभ से अधिक हे जबकि उसने निर्धारित समय या विशिष्ट उद्देश्य के विश्वास पर इस प्रकार से कोई कार्य किया है या वचन दिया है, कि उसे नियत समय या उद्देश्य की पूर्ति के पूर्व वस्तु के वापस करने में हानि होगी।

(6) माल को वापस प्राप्त करने का अधिकार (Right of return of goods bailed)-धारा 160 के अनुसार निक्षेप के उद्देश्य या उसकी अवधि के समाप्त होने पर निक्षेपी को निक्षेपित माल बिना माँग किये ही वापस प्राप्त करने का अधिकार है।

(7) माल में वृद्धि अथवा लाभ को प्राप्त करना (Bailor entitiled to receive any increase or profit from goods bailed)-धारा 163 के अनुसार किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में निक्षेपित माल में यदि कोई वृद्धि होती हे अथवा लाभ होता है तो निक्षेपी ऐसी वृद्धि अथवा लाभ को निक्षेपग्रहीता से प्राप्त करने का अधिकारी है।

(8) अधिकारों का प्रवर्तन (Enforcement of Rights)- निक्षेपग्रहीता के कर्तव्य ही निक्षेपी के अधिकार होते है, अत: इनका प्रवर्तन कराने का अधिकार निक्षेपी को होता है।

(9) निक्षेपित माल लौटाने पर क्षतिपूर्ति का अधिकार- यदि निक्षेपग्रहीता किसी भी कारण से माल वापस नहीं करता तो निक्षेपी को क्षतिपूर्ति का अधिकार है।

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निक्षेपग्रहीता के अधिकार

(Rights of Bailee),

निक्षेपी के कर्तव्य ही निक्षेपग्रहीता के अधिकार है, अत: निक्षेपी द्वारा जिन कर्तव्यों के पालन में अनि की जाती है उसी के विरुद्ध निक्षेपग्रहीता को अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम में सन्निहित निक्षेपग्रहीता के अधिकारों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है:

(1) आवश्यक व्यय पाने का अधिकार (Right to Claim Necessary Expenses)-धारा 158 के अनसार अपने कर्तव्यों के पालन करने में यदि निक्षेपग्रहीता निक्षेप की शर्तों के अन्तर्गत कोर्ड। वस्तु रखता है अथवा ले जाता है अथवा उस पर कोई कार्य करता है तथा इसके लिए उसे कोई। पारिश्रमिक नहीं मिलता है तो वह सभी आवश्यक व्ययों का भुगतान निक्षेपी से प्राप्त करने का अधिकारी। है-जैसे अद्वारा निक्षेप किए गये घोड़े को निक्षेपग्रहीता ब द्वारा खिलाने-पिलाने का व्यय। इसके अतिरिक्त उसे निक्षेपी से निक्षेपित माल अथवा वस्तु के सम्बन्ध में किए गए समस्त असाधारण व्यय (Extra-ordinary Expenses) जैसे निक्षेप किए गए घोड़े की बीमारी आदि पर किए गये व्यय पाने का भी अधिकार है।

(2) समय से पूर्व निक्षेप अनुबन्ध के खण्डन की दशा में (Right Against Pre-mature Termination of Bailment) धारा 159 के अनुसार निःशुल्क निक्षेप की स्थति में यदि निक्षेपी नियत। अवधि की समाप्ति से पूर्व अथवा निर्दिष्ट उद्देश्य की समाप्ति से पहले ही निक्षेपित वस्तु निक्षेपग्रहीता से वापिस ले ले तथा इसके परिणामस्वरूप निक्षेपग्रहीता को लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़े तो वह लाभ-हानि के अन्तर को, यदि कोई हो, तो निक्षेपी से प्राप्त करने का अधिकारी है। ऐसी हानि की पूर्ति तभी की जाएगी जबकि निक्षेपग्रहीता ने निक्षेप के निर्दिष्ट समय अथवा उद्देश्य के आधार पर इस प्रकार कार्य किया है कि निर्दिष्ट समय से पूर्व निक्षेपित माल वापस करने से उसे प्राप्त लाभ से अधिक हानि उठानी पड़ती है।

(3) निक्षेपी द्वारा माल के दोषों को प्रकट किये जाने पर (Defects not disclosed by Bailor)- निक्षेपग्रहीता को निक्षेपी से ऐसी समस्त हानियों की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार प्राप्त है। जोकि उसे माल के दोषों को निक्षेपी द्वारा प्रकट न किये जाने के परिणामस्वरुप उठानी पड़ी है।

(4) दूषित स्वत्व की दशा में क्षतिपूर्ति (Compensation Against Adverse Title)-धारा 164 के अनुसार यदि निक्षेपित वस्तु पर निक्षेपी का स्वत्वाधिकार दूषित है अर्थात् उसे निक्षेपित वस्तु को निक्षेप करने अथवा वापिस पाने अथवा उसके सम्बन्ध में किसी प्रकार का आदेश देने का अधिकार नहीं था और निक्षेपग्रहीता को इस दूषित स्वत्वाधिकार के कारण कोई हानि उठानी पड़ी है तो वह निक्षेपी से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है।

(5) सहस्वामियों में से किसी एक को माल सपुर्द करना (Delivery of goods to one of point owners)- धारा 165 के अनुसार किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में निक्षेपग्रहीता निक्षेपित माल के संयुक्त स्वामियों में से किसी भी एक को वस्तु वापिस कर सकता है अथवा उसके आदेशानुसार माल की व्यवस्था कर सकता है एवं इस सम्बन्ध में उसे अन्य स्वामियों की सहमति लेना आवश्यक नहीं है। एक सह-स्वामी को माल की सुपुर्दगी सभी सह-स्वामियों को की गई संपर्दगी मानी जाएगी।

(6) अन्तर्वाद चलाने का अधिकार (Right to Inter-plead)- यदि निक्षेपित माल पर निक्षेपी। का स्वत्व अच्छा नहीं है और निक्षेपग्रहीता माल को सद्भाव से निक्षेपी के आदेशानुसार लौटा देता है तो वह ऐसी सुपुर्दगी के लिए माल के स्वामी के प्रति उत्तरदायी नहीं है। यही नहीं यदि निक्षेपी के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति निक्षेपित माल पर दावा रखता है तो वह निक्षेपी को माल की सपर्दगी रोकने के लिए न्यायालय में प्रार्थना कर सकता है जिससे कि निक्षेपित माल के सम्बन्ध में वास्तविक स्वत्व का निर्णय कर लिया जाए।

(7) तृतीय पक्ष के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करने का अधिकार (Right to File a Suit Against Third Person)- यदि कोई तृतीय पक्षकार निक्षेपग्रहीता को दोषपूर्ण रुप से निक्षेप किये गये माल के उपयोग अथवा अधिकार से वंचित करता है अथवा कोई हानि पहुंचाता है तो निक्षेपग्रहीता ऐसे तृतीय। पक्षकार के विरुद्ध माल के वास्तविक स्वामी की भाँति ही वाद प्रस्तुत करने का अधिकारी है। इस प्रकार। के वाद में क्षतिपूर्ति के रुप में जो कुछ भी मिलेगा, उसको निक्षेपी एवं निक्षेपग्रहीता के बीच उनके हितों । के अनुसार वॉटा जाएगा।

(8) माल का पूर्वाधिकार (Right of Lien)-धारा 170 के अनुसार किसी विपरीत अनबन्ध के अभाव में यदि निक्षेपग्रहीता ने निक्षेप अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार निक्षेप किये गये माल के सम्बन्ध में। कोई ऐसा कार्य किया है जिसमें परिश्रम अथवा चतुरता की आवश्यकता हो तो निक्षेपग्रहीता को उस माल को तब तक अपने पास रोके रखने का अधिकार है, जब तक कि उसकी सेवाओं के लिये उचित पारिश्रमिक प्राप्त न हो जाए।

उदाहरण ब द्वारा अ को अपना स्कूटर मरम्मत के लिये दिया जाता है। अस्कटर को उस समय तक रोक सकता है जब तक कि उसके पारिश्रमिक का भुगतान न कर दिया जाए।

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ग्रहणाधिकार (Lien)

परिभाषा (Definition)- “ग्रहणाधिकार एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के माल को जोकि उसके अधिकार में है परन्तु जो किसी दूसरे व्यक्ति का है, उस समय तक रोके रखने का अधिकार है, जब तक कि उसकी कुछ मांगों को पूरा न कर दिया जाए।” “Lien is a right in one man to retain that which is in his possession belonging to another until certain demands of the person in possession are satisfied”| अतः ग्रहणाधिकार किसी ऋण या दावे का निपटारा होने तक माल को अपने कब्जे में रखने का अधिकार है। इसके लिए पूर्वाधिकार अथवा विशेषाधिकार शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है। ग्रहणाधिकार शब्द का यदि संधि-विच्छेद किया जाए तो इसका अर्थ और सरल हो जाता है। यह दो शब्दों ‘ग्रहण’ एवं ‘अधिकार’ से मिलकर बना है, अत: इसका शाबिक अर्थ ‘किसी वस्तु को ग्रहण करने का अधिकार’ होता है।

ग्रहणाधिकार, सन्नियम द्वारा उत्पन्न होता है, अनुबन्ध द्वारा नहीं। उदाहरणार्थ एक व्यक्ति हीरे के एक टुकड़े को किसी आभूषण विक्रेता को उस पर पालिश करने के लिये देता है, आभूषण विक्रेता विपरीत अनुबन्ध के अभाव में हीरे को उस समय तक रोककर रख सकता है जब तक कि उसकी सेवाओं का मूल्य न चुका दिया जाए। यह ग्रहणाधिकार तभी प्राप्त होता है जब निक्षेपग्रहीता काम को उचित या निश्चित समय के अन्दर पूरा कर देता है।

उदाहरणजय, नरायण नामक दर्जी को कमीज बनाने के लिये 2 मीटर कपड़ा देता है। नरायण जय को वचन देता है कि वह कमीज के तैयार होते ही उसे सुपुर्द कर देगा एवं मूल्य भुगतान के लिये एक माह के उधार की अवधि देगा। यहाँ नरायण ग्रहणाधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता अर्थात् कमीज को उस समय तक नहीं रोक सकता जब तक कि भुगतान प्राप्त न हो जाए।

ग्रहणाधिकार के लक्षण (Characteristics of Lien)-ग्रहणाधिकार के निम्नलिखित लक्षण हैं

(1) माल उस व्यक्ति के अधिकार में होना चाहिए जो ग्रहणाधिकार का प्रयोग करे।

(2) माल का वास्तविक स्वामी ग्रहणाधिकार का प्रयोग करने वाला व्यक्ति न होकर कोई अन्य व्यक्ति होना चाहिए।

(3) मांग के पूरा होने तक माल को रोके रखना।

(4) माल के अधिकार की समाप्ति के साथ ही ग्रहणाधिकार भी समाप्त हो जाता है।

(5) ग्रहणाधिकार का अधिकार अनुबन्ध से नहीं बल्कि सन्नियम द्वारा प्राप्त होता है।’

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ग्रहणाधिकार के प्रकार

(Kinds of Lien)

(1) विशिष्ट ग्रहणाधिकार (Particular Lien)-विशिष्ट ग्रहणाधिकार अथवा विशेषाधिकार एक व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति की वस्तु को, केवल उसी वस्तु विशेष के सम्बन्ध में किए गए परिश्रम तथा व्यय के परिशोध (भुगतान) के लिए रोके रखने का अधिकार है। अत: किसी बिकी हई वस्त के मूल्य अथवा किसी माल की ढुलाई अथवा किसी वस्तु विशेष से सम्बन्धित परिश्रम या चातुर्य के बदले जब किसी विशिष्ट वस्तु को रोकने का अधिकार प्राप्त हो तो उसे विशिष्ट ग्रहणाधिकार कहते हैं। विशिष्ट ग्रहणाधिकार केवल निम्नलिखित व्यक्तियों को ही प्राप्त है

(1) माल को पाने वाला (Finder of Goods)

(2) निक्षेपग्रहीता (Bailee)

(3) गिरवी रख लेने वाला (Pawnee)

(4) एजेण्ट (Agent)

(5) माल का अदत्त विक्रेता (Unpaid Seller)

(2) सामान्य ग्रहणाधिकार (General Lien)- इसको सामान्य अथवा व्यापक ग्रहणाधिकार भी कहते हैं। किसी दूसरे व्यक्ति की वस्तु को हिसाब की साधारण बाकी के परिशोध (भुगतान) के लिए रोके रखने का अधिकार व्यापक ग्रहणाधिकार कहलाता है। इसके अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के ऐसे माल को जो उसके अधिकार में है, उस समय तक रोक सकता है जब तक कि उसका परा हिसाब चुकता न कर दिया जाए, चाहे हिसाब-किताब उसी माल के सम्बन्ध में हो या अन्य किसी माल के सम्बन्ध में हो।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 171 के अनुसार साधारण ग्रहणाधिकार निम्नलिखित को प्राप्त होता है

(i) बैंकर्स (Bankers)

(ii) आढ़तिया (Factors)

(iii) हाईकोर्ट के वकील (Attornies of High Court)

(iv) गोदाम के अधिकारी (Wharfingers)

(v) बीमा-पत्र के दलाल (Policy Brokers)

(vi) लिखित अनुबन्ध द्वारा अन्य व्यक्ति

किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में उपर्युक्त सभी व्यक्ति उनके पास निक्षेप किए गए सभी माल को तब तक जमानत के रुप में रोक सकते हैं जब तक कि उनके दावों का सन्तोषजनक रुप से निपटारा नहीं हो जाता।

उदाहरण दिनेश ने अपने कुछ मूल्यवान जवाहरात ऋण लेने के लिए “यूनियन बैंक में जमा कराये तथा ऋण का भुगतान करने के बाद जवाहरात वापिस लेने की मांग की। बैंक का दिनेशे के ऊपर एक अन्य ऋण पहले से था जिसका भगतान नहीं हआ; अत: बैंक ने जवाहरात वापिस करने से मना कर दिया। बैंक सामान्य पूर्वाधिकार प्रयोग करने की स्थिति में है।

सामान्य एवं विशिष्ट ग्रहणाधिकार में अन्तर

(Difference Between General and Particular Lien)

खोई हुई वस्तु पाने वाले के अधिकार तथा कर्तव्य

(Rights and Duties of the Finder of Goods Lost)

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार जब किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति की खोई हुई। बरन मिल जाती है और वह उसको अपने अधिकार में रख लेता है तो उसका कर्तव्य निक्षेपग्रहीता का भाँति हो जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि जो व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के खोये हुए माल को प्राप्त कर । लेता है तो वह निक्षेपग्रहीता बन जाता है और उसके वे ही अधिकार तथा कर्तव्य हो जाते हैं जो सामान्यत: निक्षेपग्रहीता के होते हैं। खोई वस्तु को पाने वाले के अधिकार एवं कर्तव्यों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार हैं

कर्तव्य (Duties)-खोई हुई वस्तु को पाने वाले व्यक्ति के प्रमुख कर्तव्य निम्नलिखित हैं

माल के वास्तविक स्वामी का पता लगाने का पर्याप्त प्रयत्न करना।

(ii) पाये हुए माल की उचित देखभाल करना।

(iii) पाये हुए माल को अपने निजी माल में न मिलाना।

(iv) पाये हुए माल का अनुचित प्रयोग न करना।

(v) देख रेख में उपेक्षा करने पर माल के स्वामी की क्षतिपूर्ति करना।

(vi) वास्तविक स्वामी का पता लगने पर उसे वृद्धि या लाभ सहित मालिक को वापस करना।।

माल को पाने वाले के अधिकार (Rights of Finder of Goods) 

1 माल पर ग्रहणाधिकार (Lien on Goods) माल को पाने वाला यद्यपि वस्तु के मालिक के विरुद्ध ऐसे कष्ट और व्यय की क्षतिपूर्ति के लिये वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता जो उसने वस्तु की सुरक्षा अथवा वास्तविक स्वामी का पता लगाने में स्वेच्छा से किये हैं, परन्तु वह उन सब कष्ट और व्ययों के लिये माल को उस समय तक अपने पास रोककर रख सकता है जब तक कि उसकी क्षतिपूर्ति वास्तविक स्वामी द्वारा न कर दी जाये।

2. प्रस्तावित पुरस्कार के लिये वाद प्रस्तुत करने का अधिकार (Right to Suit for Reward Offered) दि माल के वास्तविक स्वामी द्वारा खोये हुये माल के सम्बन्ध में किसी पुरस्कार की घोषणा की गई है और उसने माल को पुरस्कार की घोषणा की जानकारी के बाद पाया है तो वह प्रस्तावित पुरस्कार की राशि को प्राप्त करने के लिये वाद प्रस्तुत कर सकता है और माल को रोकने के विशिष्ट पूर्वाधिकार के अपने अधिकार को भी प्रयोग कर सकता है। यदि उसने माल पुरस्कार की जानकारी के अभाव में पाया है तब उसे यह अधिकार प्राप्त नहीं होगा।

3. माल बेचने का अधिकार (Right for Sale)-माल पाने वाले का यह कर्तव्य है कि वह माल के वास्तविक स्वामी का पता लगाने का यथोचित प्रयास करे। यदि यथोचित परिश्रम के पश्चात् भी माल के वास्तविक स्वामी का पता न लगे अथवा माँग करने पर भी वह माल पाने वाले के वैध व्ययों को चुकाने से इन्कार कर दे तो निम्नलिखित दशाओं के अन्तर्गत माल को पाने वाला, माल को बेच सकता है-(अ) यदि वस्तु के नष्ट होने अथवा उसके मूल्य का अधिकतर भाग कम हो जाने का भय है अथवा (ब) वस्तु के सम्बन्ध में माल पाने वाले द्वारा किये गये व्यय वस्तु के मूल्य के 2/3 तक पहुँच गये हैं।

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निक्षेप अनुबन्ध की समाप्ति

(Termination of Bailment)

एक निक्षेप अनुबन्ध निम्नलिखित दशाओं में समाप्त हो जाता है

(1) शर्तों के विरुद्ध कार्य करने पर (Act inconsistent with Contract)-धारा 153 के अनुसार निक्षेपग्रहीता द्वारा निक्षेप अनुबन्ध की शर्तों के असंगत कार्य करने पर निक्षेपी को अनुबन्ध समाप्त करने का अधिकार है अर्थात् उसकी इच्छा पर अनुबन्ध समाप्त किया जा सकता है तथा निक्षेप किया गया माल वह वापस ले सकता है।

(2) निर्धारित अवधि व्यतीत होने पर (On expiration of Time)-धारा 160 के अनसार यदि निक्षेप किसी निर्धारित अवधि के लिए किया गया है तो निर्धारित अवधि की समाप्ति के बाद अनुबन्ध समाप्त हो जाता है। ऐसी दशा में निक्षेपग्रहीता को बिना मांगे ही निक्षेपी को निक्षेपित वस्तु वापस कर देनी चाहिए।

(3) निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति पर (On accomplishment of purpose)-धारा 160 के अनुसार निश्चित उद्देश्य (जिसके लिये निक्षेप किया गया था) की पूर्ति के पश्चात् अनुबन्ध समाप्त हो जाता है। जैसे अद्वारा ब को अपना ट्रैक्टर उसके खेत जोतने के लिये निक्षेप करना। खेत को जोतना समाप्त होने पर यह अनुबन्ध भी समाप्त हो जाता है।

(4) निक्षेपी की इच्छा पर (On a Bailor’s Will)-धारा 159 के अनुसार निःशुल्क निक्षेप किसी भी समय निक्षेपी द्वारा निर्धारत अवधि अथवा उद्देश्य से पूर्व भी समाप्त किये जा सकते है, किन्त ऐसी स्थिति में उसे निक्षेपग्रहीता को लाभ-हानि के अन्तर की क्षतिपूर्ति करनी होगी।

(5) मृत्यु द्वारा (By Death) धारा 162 के अनुसार निःशुल्क निक्षेप, निक्षेपी अथवा निक्षेपग्रहीता दोनों में से किसी एक की भी मृत्यु हो जाने पर समाप्त हो जाता है।

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गिरवी के अनुबन्ध

(Contract of Pledge)

सामान्यत: जब भी कोई व्यक्ति किसी से ऋण मांगता है तो ऋणदाता उससे कोई मूल्यवान वस्त जमानत के रुप में रखने के लिये कहता है ताकि यदि ऋण का भुगतान न हो पाये तो वह उस वस्तु को बेचकर अपनी रकम वसूल कर सके। जब इस प्रकार कोई वस्तु निक्षेप की जाती है तो उसे ‘गिरवी रखना’ कहा जाता है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 172 के अनुसार, “जब किसी ऋण के भुगतान या वचन के निष्पादन के लिये जमानत के रुप में कोई वस्त निक्षेप की जाती है, तो इसे गिरवी कहते है।” जो व्यक्ति वस्तु गिरवी रखता है अर्थात् निक्षेपी ‘गिरवी रखने वाला’ (गिरवीकर्ता) (Pledger or Pawner) एवं जिस व्यक्ति के पास वस्तु गिरवी रखी जाती है अर्थात निक्षेपग्रहीता ‘गिरवी रख लेने वाला’ (गिरवीग्राही) (Pawnee) कहलाते हैं। गिरवी के अन्तर्गत केवल चल सम्पत्ति ही गिरवी रखी जा सकती है, अचल सम्पत्ति नहीं। उदाहरणार्थ, अमित अपने कुछ आभूषण सुमित के पास रखकर सुमित से 2,000 ₹ उधार लेता है। आभूषणों का यह निक्षेप गिरवी अनुबन्ध कहा जायेगा। इसमें अमित गिरवीकर्ता तथा सुमित गिरवीग्राही है।

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गिरवी अनुबन्ध के लक्षण या विशेषताएँ

(Essentials of Pledge)

गिरवी अनुबन्ध के निम्नलिखित आवश्यक लक्षण हैं

1 केवल चल सम्पत्ति की गिरवी (Pledge of only movable property)- गिरवी केवल चल-सम्पत्ति के सम्बन्ध में ही सम्भव है। अचल सम्पत्ति गिरवी के क्षेत्र से बाहर है। अत: किसी प्रकार के कागजात, दस्तावेज, मूल्यवान वस्तुएँ, अंश, सरकारी प्रतिभूतियाँ, विनिमय साध्य विलेख आदि गिरवी अनुबन्ध की विषय-वस्तु हो सकते हैं।

(2) वैधानिक अधिकार (Judicial Possession)- एक वैध गिरवी का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण यह है कि गिरवी रखने वाले का माल पर वैधानिक अधिकार होना चाहिए। माल पर केवल अधिकार ही (Mere Possession) होना पर्याप्त नहीं है। अत: एक नौकर जिसके अधिकार में मालिक का माल है, उसको वैध रूप से गिरवी नहीं रख सकता। परन्तु माल पर केवल अधिकार रखने वाला भी वैध गिरवी रख सकता है यदि उसने वस्तु को किसी अपराध या कपट से प्राप्त नहीं किया है एवं गिरवी रख लेने वाला सदभाव से मुल्यवान प्रतिफल के बदले वस्तु को गिरवी रखता है। यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे माल को गिरवी रखता है जिसमें उसका सीमित हित है तो गिरवी उस हित की सीमा तक ही वैध होगी।

(3) अधिकार का हस्तान्तरण (Transfer of Possession)-श्री डी०एफ० मुल्ला के अनुसार, गिरवी के अन्तर्गत वस्तु का हस्तान्तरण गिरवी रखने वाले व्यक्ति से गिरवी रख लेने वाले व्यक्ति को अवश्य हो जाना चाहिए जोकि वस्तु की सपर्दगी द्वारा किया जा सकता है, सपुर्दगी वास्तविक अथवा रचनात्मक हो सकती है, परन्तु बिना सुपुर्दगी के गिरवी की उत्पत्ति नहीं हो सकती।

(4) विक्रय योग्य वस्तु (Saleable Commodity)-गिरवी अनुबन्ध में एक आवश्यक लक्षण यह भी है कि गिरवी रखी जाने-वाली वस्तु विक्रययोग्य होनी चाहिए। जिस वस्तु का विक्रय नहीं किया जा सकता, उसको गिरवी नहीं रखा जा सकता है, जैसे मुद्रा को गिरवी नहीं रखा जा सकता।

(5) माल को वापिस करना (Return of Goods)-गिरवी के उद्देश्य के परा हो जाने अथवा निश्चित समय बाद गिरवी रख लेने वाले (Pawnee) द्वारा गिरवी की विषय-वस्तु गिरवी रखने वाले (Pawner) को वापस कर दी जाती है और गिरवी अनुबन्ध समाप्त हो जाता है। यदि गिरवी रख लेने वाला। गिरवी रखने वाले को किसी विशेष उद्देश्य के लिए माल वापिस करता है तो इस प्रकार की पुन: सुपुर्दगी.से गिरवी का अनुबन्ध समाप्त नहीं हो जाता। यदि गिरवी रखने वाले ने कपट द्वारा गिरवी रख लेने वाले से माल । को प्राप्त कर लिया है तो गिरवी रख लेने वाला उस माल को पुन: प्राप्त कर सकता है।

गिरवी (प्राधि) तथा निक्षेप में अन्तर

(Difference Between Pledge and Bailment)

माल के स्वामी के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों द्वारा गिरवी रखना

(Pledge by Non-owner of Goods)

सामान्यतः माल का स्वामी ही अपने माल की वैध गिरवी रख सकता है तथा अन्य व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के माल को गिरवी रखना अवैध होगा। यदि यह नियम न हो तो कोई भी व्यक्ति किसी भी अन्य व्यक्ति का माल उठाकर गिरवी रख देगा जिससे अनावश्यक झंझट पैदा होंगे। परन्तु निम्नलिखित दशाओं में अन्य व्यक्तियों (जो माल के स्वामी नहीं हैं) के द्वारा भी वस्तुओं को वैध रुप से गिरवी रखा जा सकता है

1 व्यापारिक एजन्ट द्वारा गिरवी (Pledge by Mercantile Agents)- यदि कोई व्यापारिक एजेन्ट अपने मालिक की सहमति से अपने अधिकारों के अनुसार अपने मालिक का माल या माल के अधिकार सम्बन्धी कागज किसी अन्य व्यक्ति के पास गिरवी रख देता है तो इस प्रकार रखी गई गिरवी वैध होगी बशर्ते कि गिरवी रख लेने वाला गिरवी लेते समय सदभावना से कार्य करता है और उसे इस बात का ज्ञान न हो कि गिरवी रखना उसके अधिकार में नहीं है। व्यापारिक एजेन्ट से अभिप्राय ऐसे । एजेन्ट से होता है जिसे व्यापार की सामान्य गतिविधियों के अनुसार माल के खरीदने, बेचने तथा गिरवी । रखने का अधिकार हो।

2.सीमित हित रखने वाले व्यक्ति द्वारा वस्तुओं का गिरवी रखा जाना (Pledge by a Person Having Limited Interest in Goods)- यदि कोई व्यक्ति माल का स्वामी नहीं है परन्तु वह माल में कल सीमित हित रखता है तो ऐसा व्यक्ति उस माल को अपने हित की सीमा तक दसरे व्यक्ति के पवैध रुप से गिरवी रखने के लिये अधिकारी होता है अर्थात् इस प्रकार से रखी गई गिरवी वैध होगी। उदाहरणार्थ, अमित को रास्ते में पड़ी एक घड़ी मिल जाती है। वह उसकी मरम्मत पर 10₹ खर्च करता

और घडी को समित के पास 50₹ में गिरवी रख देता है। ऐसी दशा में अमित के द्वारा 10₹ तक ही का गिरवी रखना वैध होगा क्योंकि अमित का हित इस घड़ी में केवल 10₹ तक ही है। घडी का वास्तविक स्वामी ‘सुमित को 10₹ देकर अपनी घड़ी प्राप्त कर सकता है।

3. सहस्वामी द्वारा माल का गिरवी रखना (Pledge by Co-owner)- यदि किसी वस्तु का कर सह-स्वामी हो और वह वस्तु अन्य सह-स्वामियों की सहमति से एक व्यक्ति के अधिकार में हो, तो ऐसा सह-स्वामी वस्तु को वैध रुप से गिरवी रख सकता है बशर्ते गिरवीग्राही ने सदविश्वासपूर्वक कार्य किया हो और उसे यह जानकारी नहीं रही हो कि वस्तुओं को गिरवी रखने वाला पूर्ण स्वामी न होकर केवल एक सह-स्वामी ही है।

4. विक्रय के बाद विक्रेता द्वारा अपने कब्जे वाली वस्तुओं को गिरवी रखना (Pledge of Goods by Seller in Possession of the Goods after Sale)- वस्तुओं के विक्रय के बाद भी यदि वस्तुयें विक्रेता के कब्जे में हो तो वह उनको वैध रुप से गिरवी रख सकता है, यदि गिरवीग्राही द्वारा सद्विश्वासपूर्वक कार्य किया गया हो और गिरवी अनुबन्ध करने के समय उसे पूर्व विक्रय की जानकारी नहीं थी।

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5. वस्तु विक्रय पूर्ण होने से पूर्व क्रेता द्वारा अपने कब्जे की वस्तुओं को गिरवी रखना (Pledge of Goods by Buyer in Possession of the Goods Before the Sale is Completed)- uf कोई क्रेता जिसे वस्तु का कब्जा (Possession) तो प्राप्त हो गया है परन्तु उसने अभी उसका मूल्य नहीं चकाया है अर्थात् वस्तु विक्रय अनुबन्ध पूर्ण नहीं हुआ है, तो ऐसी दशा में क्रेता द्वारा माल की गिरवी । वैध होगी बशर्ते गिरवीग्राही ने सदविश्वास से कार्य किया है और गिरवी अनुबन्ध करते समय उसे पूर्व व्यवहार की जानकारी नहीं थी।

6. व्यर्थनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल पर अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा वस्तुओं का गिरवी रखा जाना (Pledge by Person in Possession of Goods Under Voidable Contract)- यदि गिरवीकर्ता को माल का अधिकार उत्पीड़न, अनुचित प्रभाव, कपट, मिथ्यावर्णन आदि के कारण प्राप्त हुआ हो अर्थात् व्यर्थनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत प्राप्त हुआ हो और वह उक्त अनुबन्ध को निरस्त (व्यर्थ) किये जाने के पूर्व ही किसी अन्य व्यक्ति के पास गिरवी रख देता है तो यह गिरवी वैध मानी जायेगी अर्थात् गिरवीग्राही को ऐसे माल पर वैध अधिकार प्राप्त हो जायेगा, बशर्ते कि गिरवीग्राही ने यह कार्य सद्भावना से किया हो और वह यह न जानता हो कि गिरवीकर्ता को गिरवी रखने का अधिकार नहीं था।

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गिरवीकर्ता तथा गिरवीग्राही के अधिकार एवं कर्तव्य

(Right and Duties of Pawner and Pawnee)

गिरवी अनुबन्ध सामान्यत: निक्षेप अनुबन्धों की प्रकृति के ही होते हैं, अत: गिरवी रखने वाले (गिरवीकर्ता) एवं गिरवी रख लेने वाले (गिरवीग्राही) के सामान्यत: वे ही अधिकार एवं कर्तव्य होते हैं जोकि एक निक्षेपी एवं निक्षेपग्रहीता के होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विशिष्ट अधिकार एवं कर्तव्य भी होते हैं। दोनों के अधिकार एवं कर्तव्यों की संक्षिप्त विवेचना निम्नलिखित प्रकार हैगिरवीकर्ता के कर्तव्य (Duties of Pawner) .

1 गिरवी रखे जाने वाले माल के दोषों को प्रकट करना (To disclose the defects of pledged goods) गिरवी रखने वाले व्यक्ति (गिरवतीकर्ता) का यह कर्तव्य है कि वस्त गिरवी रखते समय उसे उन दोषों के बारे में गिरवी रख लेने वाले (गिरवीग्राही) को बता देना चाहिए जिनका भी उसे ज्ञान है तथा जो गिरवीग्राही को संकट में डाल सकते हैं।

2. आवश्यक व्ययों का भुगतान (To Repay the necessary expenses)-यदि गिरवीग्राही द्वारा अनुबन्ध की प्रगति में गिरवी रखी हुई वस्तु की सुरक्षा आदि के सम्बन्ध में उचित व्यय किए गए हैं तो गिरवीकर्ता का कर्तव्य है कि ऐसे एकत्र साधारण एवं असाधारण व्ययों का भुगतान गिरवीग्राही को कर दे। ।

3. वचन का निष्पादन (Performance of the Promise)- यदि वचन के निष्पादन के लिए अथवा ऋण के भुगतान के लिए कोई अवधि निर्धारित की गयी है तो उसका कर्तव्य है कि नियत अवधि में अपने वचन को पूरा करे।

4. गिरवी रखे माल को विक्रय किये जाने की दशा में देय धन की तुलना में विक्रय मूल्य कम होने पर शेष राशि का गिरवीग्राही को भुगतान करना। गिरवीकर्ता के अधिकार (Rights of Pawner)

गिरवीकर्ता के मुख्य अधिकार इस प्रकार हैं

1 गिरवी रखे गये माल का दुरुपयोग होने पर क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार- यदि गिरवीग्राही ने माल का दुरुपयोग किया है तो गिरवीकर्ता उससे हुई हानि की पूर्ति करा सकता है।

2. माल वापस पाने का अधिकार- निश्चित समय पर वचन के पालन करने अथवा ऋण का। भुगतान करने पर गिरवीकर्ता, गिरवीग्राही से गिरवी किये गये माल को वापस पाने का अधिकारी है।

3. गिरवी के माल में वृद्धि अथवा लाभ सहित पाने का अधिकार- यदि गिरवी रखी हुई वस्तु में कोई वृद्धि अथवा लाभ होता है तो गिरवीकर्ता गिरवी के माल को उसमें हुई वृद्धि अथवा लाभ सहित पाने का अधिकारी है।

4.गिरवी माल के विक्रय की दशा में अतिरिक्त राशि को पाने का अधिकार- यदि गिरवीकर्ता की त्रुटि की दशा में गिरवीग्राही द्वारा गिरवी रखे गये माल को बेच दिया जाता है और माल का विक्रय मूल्य गिरवीकर्ता द्वारा देय राशि से अधिक है तो गिरवीकर्ता ऐसे आधिक्य को प्राप्त करने का अधिकारीहै

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गिरवीग्राही के कर्तव्य (Duties of Pawnee)

गिरवी रख लेने वाले (गिरवीग्राही) के कर्तव्य निक्षेपग्रहीता के समान ही होते है। संक्षेप में, इसके कर्तव्य इस प्रकार हैं

1 माल की उचित देखभाल करना (To Take care of Goods) [धारा 152]-गिरवी के अनुबन्ध में माल को जमानत के रुप में गिरवी रख लेने वाले (गिरवीग्राही) के पास रखा जाता है। अत: वह माल की उतनी ही देखभाल करे, जितनी कि वह अपने माल की देखभाल करता है अर्थात् जैसे सामान्य दशा में एक साधारण बुद्धि व विवेक वाला व्यक्ति अपने माल की देखभाल करता है।

2. अनुबन्ध की शर्तों का पालन करना (To Obey the terms of Contract) [धारा 153]-गिरवी के अनुवन्ध के अन्तर्गत गिरवी रख लेने वाले का यह एक महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि उसे ईमानदारी से गिरवी के अनुबन्ध की शर्तों की पालना करनी चाहिये। अत: उसे गिरवी अनुबन्ध की शर्तों के विपरीत कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिये, जिससे गिरवी रखने वाले के हितों पर विपरीत प्रभाव पड़े।

3.निजी उपयोग में लाना (Not to use the Goods for his own)-गिरवी के अनुबन्ध में गिरवी रख लेने वाले व्यक्ति (गिरवीग्राही) को गिरवी रखी हुई वस्तु को अपने निजी कार्य में उपयोग नहीं करना चाहिये, साथ ही उस वस्तु को किसी अन्य पक्षकार को भी उपयोग करने के लिए नहीं देना चाहिए।

4. वस्तु का अनाधिकृत उपयोग करना (Not to make Unauthorised use of Goods Pledged) [धारा 154]-गिरवी रख लेने वाले का यह भी कर्तव्य है कि गिरवी रखी हुई वस्तु का अनुबन्ध की शर्तों के विरुद्ध उपयोग नहीं करना चाहिये। यदि अनाधिकृत उपयोग से गिरवी रखने वाले (गिरवीकर्ता)की वस्तु को कोई हानि पहुँचती है तो उस हानि की पूर्ति गिरवी रख लेने वाले को करनी होगी।

5. अपने माल में गिरवी के माल को मिलाना (Not to Mix the Pledged Goods) [धारा 155, 156, 157]-गिरवी अनुबन्ध के अन्तर्गत गिरवी रख लेने वाले का यह कर्तव्य है कि गिरवी रखने वाले की सहमति के बिना उसे गिरवी रखे गए माल को अपने निजी या स्वयं के माल में नहीं मिलाना चाहिये। यदि गिरवी रख लेने वाला बिना सहमति के गिरवी रखे हुए माल को अपने निजी माल में मिलाता है, जिसके परिणामस्वरुप गिरवी रखने वाले को हानि होती है तो उसकी पूर्ति गिरवी रख लेने। वाले पक्षकार को करनी होगी।

6. माल को वापस करना (To Return the Goods)-गिरवी अनबन्ध के अन्तर्गत गिरवी रख। लेने वाले का यह कर्तव्य है कि जब गिरवी रखने वाला अपने ऋण, व्याज व अन्य राशि का पूर्ण भुगतान कर देता है तो ऐसी दशा में उसे गिरवी रखा हुआ माल वापस कर देना चाहिये।

7. असाधारण व्ययों के लिए वस्तु को रोकना (Not to Retain the Goods For Extra-ordinary Expenses)-गिरवी रख लेने वाले का यह कर्तव्य है कि उसे असाधारण व्ययों का भूगतान प्राप्त करने के लिये गिरवी रखी हुई वस्तु को नहीं रोकना चाहिये। लेकिन यदि ऋण का भुगतान या अनुबन्ध की शर्तों का निष्पादन नहीं किया जाता है तो ऐसी दशा में वह वस्तु को रोक कर रख सकता है। ।

8. अतिरिक्त राशि को वापस करना (To Return the Additional Receipts)-गिरवी अनुबन्ध के अन्तर्गत यदि ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं कि ऋण के भुगतान के लिए गिरवी रखी गई वस्तु का विक्रय करना पड़ता है और विक्रय से यदि ऋण की राशि से अधिक राशि गिरवी रख लेने वाले को प्राप्त होती है तो ऐसी अतिरिक्त राशि को गिरवी रखने वाले को वापस करने का उसका कर्तव्य है।

9. माल को स्वयं खरादना (Not to Purchase the Goods Pledged)-गिरवी अनुबन्ध । गिरवी रख लेने वाले का यह एक विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि यदि गिरवी रखने वाला ऋण का

भगतान नहीं करता है तो ऐसी दशा में दिये हुए ऋण का भुगतान प्राप्त करने के लिये उसे गिरवी रखी। हई वस्तु को स्वयं नहीं खरीदना चाहिए, बल्कि उसे बाजार में बेचकर उचित मूल्य प्राप्त करना चाहिये।

10. वृद्धि या लाभ को वापस करना (To Return any Increase or Profit) [धारा। 163गिरवी अनुबन्ध के अन्तर्गत निक्षेप अनुबन्ध की भाँति गिरवी रख लेने वाले का यह कर्तव्य है कि यदि गिरवी रखे हुए माल में कोई वृद्धि या लाभ हो जाता है तो किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में ऐसी वृद्धि या लाभ को गिरवी रखने वाले को लौटा देना चाहिये।

11. वस्तु पर प्रतिकूल स्वामित्व स्थापित करना (Not to Set up Adverse Title)-गिरवी के अनबन्ध के अन्तर्गत गिरवी रख लेने वाले का यह कर्तव्य भी है कि उसे गिरवी रखी हुई वस्तु पर गिरवी रखने वाले के स्वामित्व अथवा अधिकार के प्रतिकूल कोई अधिकार स्थापित नहीं करना चाहिये।

12. क्षतिपूर्ति करने का कर्तव्य (To Indemnify the Pawner)-गिरवी के अनुबन्ध के अन्तर्गत यदि गिरवी रख लेने वाले के आचरण, व्यवहार या लापरवाही के कारण गिरवी रखने वाले को क्षति हुई है तो ऐसी दशा में गिरवी रखने वाले पक्षकार की क्षतिपूर्ति गिरवी रख लेने वाले पक्षकार द्वारा की जानी चाहिये

गिरवीग्राही के अधिकार (Rights of Pawnee)

गिरवी रख लेने वाले (गिरवीग्राही) के प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं

1 माल रोकने का अधिकार (Right to Retain Goods)- गिरवीग्राही गिरवी रखे गये माल को तब तक अपने पास रोके रख सकता है जब तक कि उसे उसके मूल ऋण, उस ऋण पर देय ब्याज तथा माल को सुरक्षित रखने पर किये गये समस्त आवश्यक व्ययों का पूर्ण भुगतान नहीं मिल जाता। परन्तु गिरवीग्राही अपने इस विशिष्ट ग्रहणाधिकार का उपयोग किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में, केवल उसी ऋण या वचन के लिये कर सकता है जिसके लिये वह माल गिरवी रखा गया था, किसी अन्य ऋण या वचन के लिये नहीं।

2. गिरवी अनुबन्ध किये जाने के बाद दिये गये ऋण के लिये माल रोकने का अधिकार (Right of Retainer for Subsequent Advances)- जब गिरवीग्राही गिरवी अनुबन्ध किये जाने के बाद सम्बन्धित गिरवीकर्ता को कुछ और ऋण देता है, तो किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में यह मान लिया जाता है कि जमानत के रुप में दी गई वस्तुओं को इस प्रकार बाद में दिये गये ऋण के लिये भी रोका जा सकता है। उदाहरणार्थ, रमेश अपनी घड़ी महेश के पास गिरवी रखकर 200 ₹ महेश से उधार लेता है। इसके बाद वह महेश से 100 ₹ और उधार लेता है। यदि रमेश 200 ₹ लौटा भी देता है तो भी महेश घड़ी को रोक सकता है।

3. असाधारण व्यय प्राप्त करने का अधिकार (Right to Recover Extraordinary Expenses)- गिरवीग्राही, गिरवीकर्ता से उन समस्त असाधारण व्ययों की रकम प्राप्त करने का भी अधिकारी है जो उसने माल को सुरक्षित रखने के लिये किये हो। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि असाधारण व्ययों के भुगतान के लिये वह गिरवी रखे हुये माल को नहीं रोक सकता, केवल दावा कर सकता है।

4. गिरवीकर्ता से श्रेष्ठ अधिकार (Better Title)- यदि गिरवीकर्ता ने कोई माल कपट. मिथ्यावर्णन, अनुचित प्रभाव एवं उत्पीड़न के द्वारा प्राप्त किया हो और अनुबन्ध निरस्त किये जाने से पूर्व ही उसे गिरवी रख दिया हो तो गिरवीग्राही को ऐसे माल पर गिरवीकर्ता से श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त होता है। बशर्ते कि उसे गिरवीकर्ता के दोषपूर्ण अधिकार की जानकारी न रही हो तथा उसने सद्विश्वास के साथ कार्य किया हो।

5.गिरवी रखने वाले (गिरवीकर्ता) की त्रुटि की दशा में अधिकार (Right Where Pawner Makes Default)- निश्चित समय पर यदि गिरवी रखने वाले द्वारा अपने वचन का निष्पादन नहीं किया जाता अथवा ऋण का भुगतान नहीं किया जाता तो गिरवी रख लेने वाले को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं

(i) गिरवी रखने वाले के विरुद्ध वचन के निष्पादन अथवा ऋण के भुगतान के लिये वाद प्रस्तत कर सकता है।

(ii) गिरवी रखी वस्तु को सहायक जमानत (Collateral Security) के रुप में रोक सकता है।

(iii) उचित सूचना देकर वस्तु को बेच सकता है।

(iv) विक्रय राशि के ऋण भुगतान के लिये भी अपर्याप्त होने पर बकाया धन के लिये गिरवी रखने वाले के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 निक्षेप की परिभाषा दीजिए और निक्षेपी एवं निक्षेपग्रहीता के कर्तव्य एवं अधिकार बताइये।

Define bailment and state the duties ard rights of the bailor and bailee.

2. निक्षेप की परिभाषा दीजिये और उसके आवश्यक लक्षण बताइये। यह कितने प्रकार का होता है? निक्षेपग्रहीता के अधिकारों एवं कर्तव्यों की व्याख्या कीजिए।

Define bailment and give its essentials, what are its kinds ? Explain the rights and duties of a bailee.

3. सामान्य ग्रहणाधिकार और विशिष्ट ग्रहणाधिकार में अन्तर बताइये। खोये हुए माल के पाने वाले के अधिकार व कर्तव्य क्या हैं ?

Distinguish between a general lien and a particular lien. What are the rights and duties of a finder of goods lost?

4.(अ) साधारण ग्रहणाधिकार (General lien) और विशिष्ट ग्रहणाधिकार (Particular lien) में अन्तर बताइये।

(ब) बन्धक (Pledge) तथा ग्रहणाधिकार (Lien) में अन्तर बताइये।

5. गिरवी तथा निक्षेप में क्या अन्तर है? गिरवी रख लेने वाले (Pawnee) के अधिकारों और कर्तव्यों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।

What is the difference between pledge and bailment? Discuss briefly the rights and duties of pawnee.

6. गिरवी क्या है ? गिरवी तथा ग्रहणाधिकार में अन्तर बताइए।

What is pledge ? Explain the difference between pledge and lien.

7. गिरवी से आप क्या समझते हैं ? गिरवी रखने वाले तथा रख लेने वाले के अधिकार तथा कर्तव्यों की व्याख्या कीजिए।

What do you mean by the term pledge ? Explain the respective rights and duties of pawner and pawner.

8. गिरवी की परिभाषा दीजिये और इसके आवश्यक लक्षणों की व्याख्या कीजिए। निक्षेप से यह किस प्रकार भिन्न है?

Define Pledge and describe its essential features. How it is different from bailment?

9. निक्षेप क्या है? खोये हुए माल को पाने वाले के अधिकार एवं कर्तव्य क्या हैं ?

What is Bailment? What are the rights and duties of finder of goods ?

10. ‘सामान्य ग्रहणाधिकार’ और ‘विशिष्ट ग्रहणाधिकार’ में क्या अन्तर है? निक्षेपग्रहीता के ग्रहणाधिकार को आप किस श्रेणी में रखेंगे?

Distinguish between ‘General Lien’ and ‘Particular Lien’. In what category would you place the Bailee’s lien ?

11. निक्षेप क्या है? क्या बैंक में जमा की गई धनराशि निक्षेप होती है? निक्षेपग्रहीता के कर्तव्यों को। बताइए।

What is Bailment? Is the money deposited in a bank a bailment? Describe the duties of a bailee.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 निक्षेप क्या है ? क्या बैंक में रुपया जमा कराना निक्षेप का अनुबन्ध है?

What is bailment? Is money deposited in a bank a contract of bailment?

2. निक्षेप के विभिन्न प्रकार बताइए।

State different kinds of bailment.

3. गिरवी तथा निक्षेप में क्या अन्तर है?

What is the difference between pledge and bailment?

4.खोई हुई वस्तु को पाने वाले के अधिकार एवं कर्तव्य बताइए।

Explain the right and duties of a finder of goods lost.

5.खोया हुआ माल पाने वाले की वैधानिक स्थिति क्या है?

What is the legal position of a finder of lost goods?

6. गिरवी रख लेने वाले (गिरवीग्राही) के क्या अधिकार हैं?

What are the rights of a pawnee?

7. ‘सामान्य ग्रहणाधिकार’ एवं ‘विशिष्ट ग्रहणाधिकार’ को समझाइए?

Explain the ‘General Lien’ and ‘Particular Lien.’

8. ‘सामान्य ग्रहणाधिकार’ एवं ‘विशिष्ट ग्रहणाधिकार’ में क्या अन्तर है?

What is the difference between ‘General Lien’ and ‘Particular Lien.’

9. निक्षेपग्रहीता के क्या अधिकार है?

What are the rights of a Bailee ?

10. निक्षेपग्रहीता के क्या कर्तव्य है ?

What are the duties of a Bailee?

11. निक्षेपी के क्या कर्तव्य हैं?

What are the duties of a Bailor?

12. निक्षेपी के क्या अधिकार हैं?

What are the rights of a Bailor?

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व्यावहारिक समस्याएँ

(Practical Problems)

PP1. A, B का वाहन किराये पर लेता है। वाहन असुरक्षित है, किन्तु B को इसकी जानकारी नहीं है। A घायल हो जाता है। क्या B,A को लगी चोट के लिए उत्तरदायी है ?

A hires a carriage of B. The carriage is unsafe, but B is not aware of it. A is injured. Is B responsible for the injury?

उत्तरB.A को लगी चोट की क्षतिपूर्ति हेतु बाध्य है, धारा 150 स्पष्ट करती है कि यदि माल का निक्षेप किराये हेतु किया गया है, (स:शुल्क निक्षेप होने के कारण) तो निक्षेपी उत्तरदायी होगा, भले ही उसे निक्षेप किये गये माल के दोषों/कमियों की जानकारी न हो।

PPPA अपनी गाय को दो वर्ष हेतु B की देखरेख में छोड़ देता है। इस अवधि में गाय एक बळडे को जन्म देती है। क्या B गाय के साथ-साथ बछड़े को भी A को लौटाने के लिए बाध्य है?

A leaves a cow in the custody of B for two years. The cow has a calf, during this period. Is B bound to deliver the calf as well as the cow to A ?

गाय के साथ-साथ बछड़ा भी A को लौटाने हेतु बाध्य है। धारा 163 के अनुसार यदि निक्षेपित माल में निक्षेपग्रहीता के यहां कोई बढ़ोतरी या लाभ होता है तो वह निक्षेपित माल को ऐसी वृद्धि या लाभ सहित निक्षेपी को वापस कर दे बशर्ते, इसके विपरीत अनुबन्ध न किया गया हो।

Pp3.A एक चावल की बोरी का निक्षेप B को करता है। B. A की सहमति लिए बगैर अपने चावलों को A के चावलों के साथ मिला देता है। B के दायित्व का वर्णन कीजिए।

A bails a bag of rice to B. B without A’s consent, mixes it with the rice of his own. Discuss B’s liability.

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उत्तरB, A को उसके चावलों का मूल्य चुकाने हेतु उत्तरदायी है। धारा 157 स्पष्ट करती है कि यदि मिश्रित माल को अलग नहीं किया जा सकता, तो ऐसी दशा में निक्षेपग्रहीता, निक्षेपी को हुई हानि का हर्जाना देने के लिए बाध्य होगा।

PP4. A, एक टेलर B को कोट बनाने के लिए कपड़ा देता है। B, A को यह वचन देता है कि जैसे ही कोट सिल जाएगा वह उसकी सुपुर्दगी A को दे देगा तथा 3 माह बाद सिलाई शुल्क लेने हेतु भी सहमत हो जाता है। क्या B को यह अधिकार है कि जब तक उसे सिलाई शुल्क प्राप्त नहीं हो जाता, वह कोट को अपने पास रोके रखे?

A gives cloth to B, a tailor to make into a coat. B promises A to deliver the coat as soon as it is made and to give A three months’ credit for the charges. Is B entitled to retain the coat until the charges are paid?

उत्तरनहीं, B को कोट को अपने पास रोके रखने का अधिकार नहीं है क्योंकि वह इस हेतु सहमति दे चुका है कि वह कोट की सुपुर्दगी दे देगा तथा 3 माह हेतु उधार भी देगा।

PP5. A, एक घोड़ा कलकत्ता में B से किराये पर स्पष्ट रुप से लेता है ताकि वह उस पर बैठकर बनारस जा सके। A उस घोड़े की उचित देखभाल करता है पर बनारस के स्थान पर कटक चला जाता है। घोड़ा दुर्घटनावश गिर जाता है तथा उसकी टाँग टूट जाती है। क्या A उत्तरदायी है?

A hires a horse in Calcutta from B, expressly to ride to Banaras. A uses the horse with due care but goes to Cuttack instead of Banaras. The horse accidentally falls and breaks its leg. Is A liable?

उत्तरधारा 154 के अनुसार, निक्षेपग्रहीता का यह कर्तव्य है कि वह निक्षेपित माल का प्रयोग इस प्रकार से न करे, जिसके लिए उसे निक्षेपी द्वारा अधिकृत नहीं किया गया है। ऐसा करने पर यदि माल को कोई नुकसान पहुंचता है तो उसकी क्षतिपूर्ति हेतु निक्षेपग्रहीता उत्तरदायी होगा। यद्यपि यहाँ पर A लापरवाह नहीं है किन्तु वह B के प्रति उत्तरदायी होगा।

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