प्रयोग की गई सामग्री की लागत की गणना करना
(Calculation of Material Consumed)
निम्नलिखित सूचनाओं से प्रयुक्त सामग्री के मूल्य की गणना करें
From the following information find out the amount of materials consumed:
सामग्री का प्रारम्भिक रहतिया (Opening Stock of Raw Material) 8,000
सामग्री का क्रय (Purchase of Raw Materials): 20,000
सामग्री के क्रय पर ढुलाई (Carriage on Purchase of Raw Material) 4,000
दोषपर्ण सामग्री की वापसी (Return of Defective Materials) 2,000
सामग्री की बिक्री (लागत मूल्य 1,600 ₹) [Sales of Materials (Cost Price 1.600 2,000
सामग्री का अन्तिम रहतिया (Closing Stock of Raw Material) Solution: 4,400
(6) अर्ध-निर्मित माल का समायोजन (Adjustment of Work-in-progress) इसे क्रियमाण कार्य अथवा चाल से मान से है जिस पर निमाण काय प्रारम्भता कायमा कहा जाता है। अर्ध निर्मित परन्तु जा अभा पूर्णतः निर्मित नहीं हारा से कार्य में सामग्री श्रम तथा उत्पादन व्यया का कुछ और लग चुका होता है तथा निर्मित माल बनने हेत कुछ व्यय और करने शष हा मत माल बनने हेतु कुछ व्यय और करने शेष होते हैं। चूंकि लागत-पत्रक या लागत विवरण तयार करते समय केवल निर्मित माल के है। उत्पादन लागत ज्ञात करने से पूर्व अर्ध-निर्मित माल के प्राराम्भिक साल का लागत ज्ञात करनी होती है, अत: अर्ध-निर्मित माल का समायोजन करना आवश्यक होता घटा दिया जाता है। परन्तु प्रश्न यह है कि उक्त समायोजन कहाँ (लरन स पूर्व अध-निर्मित माल के प्रारम्भिक रहतिये को जोड़ दिया जाता है तथा अन्तिम रहतिये को अरन यह है कि उक्त समायोजन कहाँ लागत के किस स्तर पर किया जाए। इसके सम्बन्ध म यह देखा जाता है कि अर्ध-निर्मित उत्पादन पर किस सीमा तक व्यय हुए अप-नामत उत्पादन पर किस सीमा तक व्यय हए हैं। यदि अर्ध-निर्मित कार्य के सम्बन्ध में केवल व्यय हुए हैं तो अर्ध-निर्मित माल का समायोजन मूल लागत ज्ञात करने से पूर्व किया जाएगा किन्तु यदि अपूर्ण कार्य के सम्बन्ध में कारखाना उपरिव्यय भी किये जा चुके हैं, तो समायोजन मूल लागत (Prime COS) शात करन क बाद परन्तु कारखाना लागत ज्ञात करने से पर्व किया जायेगा। इस प्रकार अर्ध-निमित माल का मल्याकन मूल लागत (Prime Cost) अथवा कारखाना लागत (Factory Cost) के आधार पर किया जा सकता है, किन्तु मूल लागत का आधार अधिक उचित माना जाता है क्योंकि अपर्ण कार्यों पर प्रायः प्रत्यक्ष व्यय ही हो पाते हैं। फिर भी प्रश्न में स्पष्ट निर्देश होने पर उन्हीं का पालन किया जाना चाहिए।
टिप्पणी-(i) प्रश्न में स्पष्ट सूचना के अभाव में अर्ध-निर्मित माल का मूल्यांकन कारखाना लागत पर ही करना चाहिए।
(ii) यदि अर्ध-निर्मित कार्य का प्रारम्भिक व अत्तिम स्टॉक लागत की विभिन्न मदों के अनुसार अलग-अलग ज्ञात किया गया हो तो लागत की प्रत्येक मद पर ही अर्ध-निर्मित कार्य का समायोजन करना चाहिए।
निर्मित या तैयार माल के स्टॉक का समायोजन- उत्पादन की लागत कुल निर्मित माल के लिए ही ज्ञात की जाती है चाहे वह सारा माल बिक जाए या उसका कुछ ही भाग बिके, लेकिन लाभ ज्ञात करने के लिए केवल उसी माल की । उत्पादन लागत पर विचार करना होता है, जो माल बिक चुका है। अत: चालू अवधि में किये गये उत्पादन के साथ-साथ निर्मित माल के प्रारम्भिक एवं अन्तिम स्टॉक पर विचार करना भी आवश्यक हो जाता है। निर्मित माल के स्टॉक का समायोजन निम्न प्रकार करेंगे
निर्मित स्टॉक के सम्बन्ध में कभी-कभी समस्या यह आ जाती है । कि स्कन्ध की केवल मात्रा दी हुई होती है । लेकिन उनका मूल्य ज्ञात नहीं होता । प्राय: निर्मित माल के स्कन्ध में निम्न मे से कोई एक स्थिति हो सकती है
(ii) प्रारम्भिक स्टॉक का मूल्य दिया हुआ हो लाकिन अन्तिम स्टाँक का मूल्य न दिया गया हो तो अन्तिम स्कन्ध का मूल्याकनं वर्तमान अवधि की प्रति इकाई उत्पादन लागत के आधार पर कर लेगेँ.
(ii) यदि प्रारम्भिक और अन्तिम स्टॉक, दोनों की केवल मात्राएं दी गई हैं परन्तु उसका मूल्य नहीं दिया गया है तो यह मान लिया जाता है कि गत अवधि की प्रति इकाई उत्पादन लागत और चालू अवधि की प्रति ईकाइ उत्पादन लागत में कोई अन्तर नहीं है अत: दोनों स्टॉक मात्राओं का मूल्यांकन वर्तमान अवधि की प्रति ईकाइ उत्पादन लागत के आधार पर ही कर लेगें ।
यह ध्यान रखने योग है । कि बिक्रित माल की उत्पादन लागत ज्ञात करने के उपरान्त ही बिक्रि तथा विवरण उपरिव्यय जोडें जाते हैं ।
Bcom 2nd year cost Accounting Unit output costing method study material notes in Hindi
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(8) उपरिव्ययों का अवशोषण (Absorption of Overheads)- उपरिव्यय वाले अध्याय में स्पष्ट किया जा चका कि उपारव्यय मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं कारखाना उपरिव्यय, कार्यालय उपारख्या इन तीनों की अनुमानित रकम कुल लागत में सम्मिलित कान गुमानित रकम कुल लागत में सम्मिलित की जाती है। अनुमानित रकम ज्ञात करने हेतु प्रश्न में दी गई सूचनाओं एवं अवशोषण आधारों का प्रयोग किया जाता है। ।
(9) वृथा या दूषित या छीजन या अवशेष की बिक्री (Sale of Scarp. Defective, Salvage or Residue)-स्पष्ट सूचना का दशा में सम्बन्धित लागत में ही समायोजन करेंगे परन्तु यदि यह स्पष्ट न हा कि वृथा या छान चीज का है तो उसे कारखाना लागत ज्ञात करने से पूर्व घटा देना चाहिए।
(10) दूषित या रद्द किया गया कार्य (Defective or Rejected Work)-कभी-कभा उत्पादन प्रक्रिया म खराब या प्रमाप स्तर का न होने के कारण दूषित हो जाता है। ऐसा माल यदि इस तरह का है कि उसे अतिरिक्त व्यय करके। भी प्रमाप स्तर तक सुधारा नहीं जा सकता तो उसे अस्वीकृत कर दिया जाता है एवं ऐसे माल को बाजार में रियायती दरों पर बेच दिया जाता है और बिक्री की रकम को कारखाना लागत में से और रद्द की गई इकाइयों (मात्रा) को कुल उत्पादन की इकाइयों में से घटा दिया जाता है। यदि दोषपूर्ण माल ऐसा है जिसे अतिरिक्त व्यय द्वारा सुधारा जा सकता है अथवा विक्रय योग्य बनाया जा सकता है तो इस अतिरिक्त व्यय को कारखाना उपरिव्ययों में अतिरिक्त कारखाना उपरिव्यय के नाम से जोड़ दिया जाता है। इसके बाद विक्रय योग्य इकाइयाँ व उनकी कुल लागत ज्ञात हो जाती है।
(11) लाभ की गणना (Computation of Profit)-कुल लागत में लाभ जोड़कर विक्रय मूल्य ज्ञात किया जाता है। प्रायः प्रश्नों में लाभ की राशि न देकर लाभ की प्रतिशत दी हुई होती है जिनके आधार पर लाभ की रकम ज्ञात की जाती है। लाभ की गणना हेतु निम्न दो दशाएँ हो सकती हैं
profit = Total cost *%of profit
100
(अ) जब लाभ का प्रतिशत लागत मूल्य पर दिया गया हो-ऐसी दशा में लाभ की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
(ब) जब लाभ का प्रतिशत विक्रय मूल्य पर आधारित हो-ऐसी दशा में लाभ की गणना हेतु अग्रलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है
profit = Total cost *% of Profit
100 – % of profit
(12) शुद्ध लाभ (Net Profit) तथा सकल लाभ (Gross Profit) ज्ञात करना-सकल लाभ की गणना हेतु लागत (Total Cost) या बेचे गये माल की लागत (Cost of Goods Sold) में विक्रय व वितरण व्ययों को सम्मिलित न कह। हए लाभ की गणना की जाती है। जबकि सकल लाभ की रकम में से विक्रय व वितरण व्ययों को घटाकर शुद्ध लाभ (21 Profit) ज्ञात हो जाता है। संक्षेप में, सकल लाभ (Gross Profit) तथा शुद्ध लाभ (Net Profit) की गणना को अगलहि लाभ विवरण की सहायता से सरलतापूर्वक समझा जा सकता है
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13) उत्पादन के विभिन्न व्ययों की प्रतिशत दरों की गणना (Calculation of Various) लागत लेखों में भावी अनुमानों के उद्देश्य से उत्पादन के विभिन्न व्यया में पारस्परिक सम्बन्ध ज्ञात करने तथा इनके कुल लागत से पाए जाने वाले सम्बन्ध को जानने के लिए विभिन्न प्रतिशत दरों की गणना की जाती है प्रचलित दरें तथा उनकी गणना विधि निम्न प्रकार है
(ब) लागत के प्रत्येक व्यय का बिक्री पर प्रतिशत निकालना-उपरोक्त सभी व्ययों का बिक्री से प्रतिशत भी ज्ञात किया जा सकता है। ऐसी दशा में केवल उपरोक्त सूत्रों में Total Cost के स्थान पर Sales लिख दिया जाता है।